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Fantasy मेरी माँ रेशमा

andypndy

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मेरी माँ रेशमा -1



ये कहानी मेरी माँ और मेरे सफर की है, कैसे मेरी घरेलु संस्कारी माँ बहक गई थी एक सफर मे.

पाठक कहानी पढ़ते वक़्त विवेक से काम ले.



कहानी मेरी है यानि की मैं अमित एक छोटे से गांव का रहने वाला हूँ,

नौकरी पैसे ने गॉव कबका छुड़वा दिया था, मैं नॉएडा मे एक अच्छी कम्पनी मे नौकरी करता हुआ, पढ़ने लिखने मे होनहार था, एयर कुछ घर की जिम्मेदारियां जिस वजह से मैंने जल्द ही नौकरी पकड़ ली, मेरी age मात्र 22 साल है,

हम लोग उत्तरप्रदेश के एक छोटे से गांव के रहने वाले है जो की पूर्वांचल मे पड़ता है,

मेरे अलावा मेरे घर में पिताजी - रामशंकर शर्मा (50) मेरी माँ रेशमा जो की अभी 40 साल की ही है, पहले के समय मे शादी मे 10,15 साल का गेप होना आम बात थी,

वैसे मेरी माँ देखने मे बहुत सुन्दर है, जैसा नाम वैसा रूप, कमला कमल की तरह ही खूबसूरत और नाजुक थी.

संस्कारी घरेलु महिला कभी कहीं किसी को गलत नजर से नहीं देखा, पापा को सालो से दमे की बीमारी थी, उनकी सेवा सत्कार सब मेरी माँ के जिम्मे था किसे वो भली भांति निभाती भी थी.

गॉव मे अक्सर लोग मेरी माँ को घूरते थे, उसकी काया ही ऐसी थी लम्बी चौड़ी, गद्दाराया जिस्म, तने हुए, भारी स्तन, कमर पर बिल्कुल सटीक मांस.

नितांब सारी मे कसे हुए हिलते थे, थिरकते थे, इसी थिरकन को देखने के लिए पूरा गॉव मरता था

हालांकि मेरी नजर मैं माँ सिर्फ माँ ही थी, FB-IMG-1738910364973 मैं अक्सर शहर ही रहता था तो ज्यादा ध्यान भी नहीं देता था, गांव के लोग साले होते ही दकियानुसी ख्याल के होते है, मेरा ऐसा मानना था.

खेर मुझसे बड़ी एक बहन भी है जिसकी शादी मेरठ मे हो गई है.

मेरे पापा को दमे की बीमारी है, खेल खलिहन अक्सर मम्मी ही संभाला करती है, वैसे हमारे घर मे कोई कमी नहीं थी,

मैं ही पढ़ने शहर निकल गया था तो वापस गांव जा कर खेती बाड़ी करना मेरी शान के खिलाफ ही था.

खेतो मे मजदूर काम किया करते थे, मम्मी सिर्फ निर्देश दे दिया करती थी, पापा तो धूल मिट्टी देखते ही खासने लगते थे.

सो मैंने गॉव की मिट्टी से दूर रहता ही उचित समझा.

और पढ़ाई के बाद नौकरी भी पकड़ ली.

पूरा गांव मुझपे गर्व करता था, आखिर मैं ही था जो पढ़ लिख कर नौकरी कर रहा था शहर मे.

नॉएडा मे मैंने एक फ्लैट ले रखा था हिसाब मे कुछ मित्रो के साथ रहता था जो की मेरे साथ मेरी ही कम्पनी मे काम करते थे.

उम्र मे मैं ही सबसे छोटा था. अब नॉएडा जयश्री शहर मे अकेले फ्लैट लेना मेरे बस की बात तो नहीं थी.

तो ऐसे ही एक दिन मैं ऑफिस से शाम को घर लौटा, की मम्मी का फ़ोन बज उठा.

करररर.... करर....

हाँ मम्मी प्रणाम, कैसी है आप?" मैंने अभिवादान किया.

"ठीक हूँ बेटा, वो तेरे भाई नवीन की शादी है " मम्मी ने बताया

नवीन मेरे मामा का लड़का जो देहरादून मे रहते थे.



"अरे वाह मम्मी क्या बात कर रही हो, साले ने मुझे बताया भी नहीं "

मैं और नवीन भाई से ज्यादा दोस्त थे बचपन से ही तो मैं उसकी शादी मिस नहीं कर सकता था.

"कब है शादी?" मैंने उत्सुकता से पूछा.

"अगले सप्ताह ही है "

"आप पापा जा रहे है?" मैंने पूछा

"अरे तेरे पापा को तो खासने से ही फुर्सत नहीं है, वो कहाँ जा पाएंगे, सर्दी का मौसम है तबियत ख़राब हो जाएगी तो और दिक्कत हो जाएगी " माँ ने अपनी व्यथा कह सुनाई.

"तो फिर?" मैंने सर खुजाते हुए पूछा.

"तू आ जा ना गांव यही से चलते है " माँ ने सुझाव दिया

"मैं... मैं कैसे आ सकता हूँ माँ, नॉएडा से देहरादून पास ही है, आप आ जाओ यहाँ से हम दोनों साथ चल चलेंगे, मैं आऊंगा फिर वहाँ से जाऊंगा 2,4 दिन तो ऐसे ही निकल जायेंगे "

माँ कुछ सोचने लगी, उधर पापा से कुछ बात करने की आवाज़ आने लगी, जिसका आखरी शब्द था "ठीक है खो... खो... खाऊ..."

मैं समझ गया मम्मी पापा से बात कर रही थी.

"ठीक है बेटा मैं आ जाती हूँ, आज 5 नवंबर है, शादी 11 तारीख की है तो मैं काल रात की ट्रैन पकड़ लेती हूँ"

"वाह... मम्मी मजा आएगा आ जाओ" मैं बहुत खुश था मेरी माँ आने वाली थी, मैं माँ को करीबन एक साल बाद देखने वाला था, नयी नौकरी के चककर मे घर जा ही नहीं पाया था, सिर्फ फ़ोन पर बात हो जाया करती थी,

ज्यादा खुशी मामा के घर जाने की थी, मुझे बचपन से मामा का घर पसंद था.

वैसे भी मेरी नवीन से खूब पटती थी.

"क्या बे इतना क्यों दांत निपोर रहा है किसका फ़ोन था "

अचानक आई आवाज़ मे चौंक गया पीछे देखा आदिल खड़ा था.

मैं बताना भूल गया, जिस फ्लैट मे मैं रहता हूँ वहाँ मेरे साथ 2 दोस्त और भी रहते है,

आदिल, मोहित और प्रवीण, तीनो की age मुझसे बड़ी ही है करीबन 24, 26 साल के है.

"अरे कुछ नहीं यार माँ का फ़ोन था, मामा के लड़के की शादी है देहरादून मे उसी के लिए यहाँ आ रही है " मैंने ख़ुशी का कारण बताया.

तब एक प्रवीण और मोहित भी आ चुके थे कमरे मे.



"क्या.... क्या बे अकेला अकेला देहरादून जायेगा, वहाँ आस पास तो कितनी अच्छी जगह है घूमने की " मोहित ने कहाँ

"हाँ भाई मसूरी पास ही है, हरिद्वार है, गंगा है" प्रवीण चहक रहा था.

"प्लीज भाई हम भी चलते है ना, शादी के बहाने घूम आएंगे "

आदिल ने भी आग्रह कर दिया.

अब मैं कैसे मना करता, वैसे भी खरचा सिर्फ वहाँ जाने का था, रुकने मा इंतेज़ाम तो था ही शादी मे.

मैंने हामी मे सर हिला दिया, आखिर दोस्तों के साथ सेर सपाटा कौन मिस कर सकता था,

हम चारो मे वैसे भी कभी अच्छी पटती थी.

"कब चलना है? आंटी कब आ रही है?" आदिल ने पूछा.

"देख परसो सुबह मम्मी आ जाएगी, तो रात की ट्रैन देख लेते है " मैंने कहा

"ओके आज 5 तारीख है, परसो मतलब 7 की सुबह आंटी आ जाएगी, रात की ट्रैन... ओह... Shit.. यार ये तो एक भी ट्रैन मे टिकट नहीं है " मोहित irctc की वेबसाइट खोले बैठ था.

"अब?" सभी के मुँह से एक साथ निकला.

जबकि मेरे माथे पर परेशानी की लकीरें थी, क्यूंकि मैंने ही माँ को यहाँ आने का सुझाव दिया था,

"8 तारीख की देख ले ना बे " मैंने कहाँ

"अगले 10 दिन मे कहीं टिकट नहीं है यार, देख ही रहा हूँ, शादी का सीजन है सब फुल है " मोहित लैपटॉप मे आंखे गाढ़ाये बैठा था.

हम चारो सोच मे डूब गए थे

"एक आईडिया है, मैं एक कार का इंतेज़ाम कर सकता हुआ" आदिल ने चुटकी बजाते हुए कहा.

"क्या कार से, पागल है क्या इतनी दूर कार से " मैंने आंख भोहे चढ़ा ली.

"अबे सिर्फ 250km ही तो है, मामूली दुरी है, ऊपर से कार रहेगी तो मन मर्ज़ी से जा सकेंगे "

आदिल की बात सभी को हजम हो गई, रुक रुक भी गए तो 5,6 घंटे का सफर है सिर्फ.

हम लोग निश्चित थे, फैसला हो गया था की कार से जायेंगे, लेकिन मैंने माँ को नहीं बताया था, सोचा की आएंगी तो मज़बूरी बता दूंगा.

माँ कौनसा मना करने वाली है.

अगला दिन बीत गया, मम्मी से बात हुई उन्होंने रात की ट्रैन पकड़ ली थी, अगली सुबह 7 बजे मैं और आदिल स्टेशन पर मौजूद थे.

प्लेटफार्म no.5 पर पूर्वांचल एक्सप्रेस धीमी होती जा रही थी,

छरररर...... च्छीहिई..... ट्रैन रुक गई, मेरा दिल धाड़ धाड़ कर बज रहा था, मुझे माँ को देखने उनसे मिलने का उत्साह सा हो रहा था.

ट्रैन रुक गई थी, सामने s5 डब्बे से माँ उतर रही थी, शुद्ध घरेलु भारतीय नारी लाल साड़ी मे लिपटी, लाल लिपस्टिक से रंगे हुए होंठ, गोरी रंगत ली हुई मेरी माँ सामने ही खड़ी थी, ट्रैन रुकी तो माँ समान उठाने के लिए थोड़ा झुकी, माँ के स्तन लगभग पुरे ही बाहर को आ गिरे थे, मैं एकदम से सन्न रह गया,शायद आदिल की भी यही हालात रही होगी, 20211008-213656

मैंने भाग कर माँ के हाथ से बेग ले लिया.

"माँ प्रणाम " और पैरो को छू लिया मैं करीबन एक साल बाद माँ को देख रहा था.

मुझे बहुत आश्चर्य सा हो रहा था माँ को इतना सजा धाजा देख कर, या फिर यूँ कहु मैंने माँ को हमेशा घर के काम धाम, खेतो मे ही उलझा देखा था.

माँ का मैं जैसे कोई नया ही अवतार देख रहा था, माँ साड़ी मे लिपटी हुई थी लेकिन, जिस्म फिर भी अपनी छटा दिखा रहा था, मैंने आज से पहले माँ को कभी स्लीवलेस ब्लाउज मे नहीं देखा था,. लेकिन आज माँ डीपनैक, स्लीवलेस ब्लाउज पहने खड़ी थी, पल्लू भी सीने से हटा हुआ था

एक बार को तो मैंने अपना थूक निगल लिया था.

मैं हैरान था की गांव को औरत इस कद्र सुन्दर भी हो सकती है.

"उफ्फ्फ.... अमित... कैसा है तू " माँ ने मुझे अपने सीने से भींच लिया.

असीम शांति थी इस आलिंगन मे, एक ममता थी अपने बेटे के लिए.

"ठीक हूँ माँ " एक पल को मुझे अपनी सोच पर पछतावा हुआ.

माँ की नजरें मेरे पीछे खड़े आदिल पर गई.

"माँ ये मेरा दोस्त है, आदिल मेरे साथ ही रहता है "

मैंने आदिल की तरफ देखा, जिसकी आंखे माँ पर ही टिकी हुई थी वो अपनी जगह से हिल भी नहीं रहा था, जैसे लकवा मार गया हो.

"आदिल ये मेरी माँ है " मैंने आदिल के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

"ननन... नमस्ते आंटी जी "

माँ ने आदिल कर नमस्ते का कोई जवाब नहीं दिया, कारण मैं समझ गया था माँ की रूडीवाड़ी सोच, गांव का कल्चर. अभी भी धर्म जाती मे भेद करता था.

खेर मैं माँ का बेग ले के आगे चल पड़ा, माँ मेरे पीछे और आदिल माँ के पीछे जैसे किसी रस्सी से बंधा खींचता चला आ रहा था.

मैंने आदिल की हरकत मे कोई तावज्जो नहीं दी.

हम लोग फ्लैट पर आ गए थे, हमें आज रात ही निकलता था.

मोहित और प्रवीण से मैंने माँ का परिचय करवाया, माँ उनसे मिल कर ख़ुश हुई, बस आदिल से माँ का व्यवहार थोड़ा रुखा था.

मैंने महसूस किया प्रवीण और मोहित भी माँ को देखते ही रह गए थे, जैसे एक नजर मे माँ को भर लेना चाहते हो.

मैं खुद भी माँ को कुछ अलग सा महसूस कर रहा था,

सजी सवरी मेरी माँ को साड़ी ढकने से ज्यादा जिस्म दिखा रही थी,

कभी बेग उठाने, सैंडल खोलने को झुकती तो सभी की नजर माँ की तरफ ही जाती, मेरी भी नजर गई माँ के गहरे ब्लाउज से स्तन बहत गिर आने को आतुर दिख रहे थे.

लेकिन मेरी माँ के चेहरे पे कोई भाव नहीं था, वो सिर्फ मुस्कुरा के दूसरे कमरे मे चल दी.

आदिल कार का इंतेज़ाम करने चला गया था. माँ फ्रेश हो के आराम कर रही थी.

मैंने माँ को बता दिया था की कार से चलेंगे, माँ ने मज़बूरी समझते हुए हाँ कर दी थी.



ट्रिन... ट्रिन... कुछ ही समय मे मेरे फ़ोन की घंटी बज उठी

"हाँ आदिल बोल?"

"भाई कार का इंतेज़ाम तो नहीं हो पाया, वो कार वाला दोस्त बाहर गया हुआ है " आदिल ने जैसे बम फोड़ दिया हो.

"साले मदरचोद... अब क्या होगा, माँ को क्या बोलूंगा " मैं गुस्से से उखाड़ गया था क्यूंकि सारा आईडिया आदिल का ही था अब बोल रहा है कार का इंतेज़ाम नहीं हो सकता.



तभी प्रवीण बोला "मेरे पहचान का एक ड्राइवर है, उसके पास गाड़ी है, लेकिन वो खुद ही चलाता है कार रेंट पे नहीं देता "

मरता क्या ना करता " लगा फोर उसे " मैंने हामी भर दी

प्रवीण ने फ़ोन लगाया...

कुछ बात हुई.

"यार अमित ब्रेज़्ज़ा है उसके पास, कार मे स्पेस भी है, लेकिन कार वही चलाएगा, आना जाना 8000 मांग रहा है"

हम लोगो को यही सही लगा हमने बात फाइनल कर दी.

और आज रात 8 बजे कार लाने को बोल दिया.

हम सब लोग तैयार हो चुके थे, माँ भी लाल कलर की साड़ी पहने दिन से भी ज्यादा सुन्दर लग रही थी, प्रवीण और मोहित माँ के साथ हसीं मज़ाक कर रहे थे, जिसका जवाब माँ मुस्कुरा के ही दे रही थी.

करीबन 8.15 पर एक कार बिल्डिंग के बाहर आ कर रुकी.

"सलाम वालेकुम मियां " एक दाढ़ी वाले इंसान मे खिड़की से मुँह बाहर निकाल प्रवीण को सलाम किया.

सामने कार मे बैठा इंसान मुँह पे पान दबाये बैठा था, जिसका सबूत था की उसकी लार मुँह के कोने से टपक रही थी.

अब्दुल कादिर इस कार का मालिक था, देखने मे काफ़ी लम्बा चौड़ा था.



जेसे ही अब्दुल की नज़र मेरी मम्मी पे पड़ी उसकी तो मानो ख़ुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था, वो बुरी तरह मम्मी को ताड़े जा रहा था, मेरे लास खड़ी माँ मॉर्निंग उसने ऊपर से नीचे कई बार देखा, अब्दुल की उमर लगभाग 36 साल होगी

"माँ ये अब्दुल है " मैंने माँ से उसका परिचय कराया क्यूंकि अब्दुल से हम लोग पहले भी मिल चूके थे.

"नमस्ते आंटी जी " अब्दुल के लहजे मे एक अलग ही अंदाज था.

उसकी नजरें माँ के ब्लाउज से झाँकते स्तनों पर थी, शायद माँ के स्तन थे ही इतने कठोर और बड़े की ब्लाउज मे समाते ही ना थे,गॉव मे मैंने कभी इन सब बातो पे ध्यान दिया ही नहीं था या फिर मेरी उम्र ही नहीं थी तब ये सब देखने की.

लेकिन आज अब्दुल की नजर का पीछा किया तो मैं खुद हैतान था, माँ के स्तन वाकई मे बाहर गोरे और बड़े थे, जिसकी छाप ब्लाउज मे साफ जान पडती थी.


मम्मी ने भी हल्का मुस्कुरा कर, झुकते हुए नमस्ते किया और मेरा हाथ पकड़ कर मेरे कान में धीरे से बोली " ये मुल्ले की ही गाड़ी मिली थी तुमको"

"क्या मम्मी आप भी ना, भरोसे का आदमी है अब्दुल " मैंने मम्मी को दिलाशा दिया.

लेकिन मैं हैरान था माँ ने अपने पल्लू को बिल्कुल भी ठीक नहीं किया, ऊपर से झुकते हुए जमीन पर रखे बेग को उठाने लगी, 20231116-124459 जैसे की जो अब्दुल देखना चाह रहा था उसे दिखा रही हो. अब्दुल के चेहरे के भाव शून्य थे, गुटके से भरा मुँह खुला रह गया था, जैसे कोई भूत देख लिया हो

लेकिन माँ के चेहरे के भाव और कुछ कह रहे थे,

माँ मुझे देख बुरा सा मुँह बनाती कार मे पीछे की सीट पर जा बैठी, मैं माँ के साथ बैठे ही वाला था की एकदम से आदिल कूद के माँ के पास जा बैठा,

मुझे थोड़ा अजीब लगा लेकिन मैंने कोई रिएक्शन नहीं दिया और आदिल के बगल मे जा बैठा, मोहित दूसरी तरफ से माँ के बाजु मैं बैठ गया और प्रवीण आगे की सीट पर जा बैठा.

पीछे चार लोगो के बैठे की वजह से जगह तंग हो गई थी, सभी लोग एक दूसरे के साथ चिपके हुए थे.

हम सभी दोस्तों ने कम्फर्टेबले शॉर्ट्स पहने हुए थे, जो की तंग जगह पर आराम का अनुभव दे रहा था.

"तो फिर चले, भाभी जी बैठ गए ना अच्छे से, कुछ छूट तो नहीं गया?" अब्दुल ने कार के अंदर मिरार को सेट करते हुए कहा, जिसमे शायद मेरी माँ का गोरा खूबसूरत चेहरा दिखाई पढ़ रहा था.

"ना भैया चलो, देर क्यों करनी सब रख लिया है" माँ ने भी सामने कांच मे देखते हुए कहा, जहाँ अब्दुल और माँ की आंखे आपस मे मिल गई थी.

तुरंत ही कार स्टार्ट हुई और हम सडक पे दौड़ चले,

मोहित खिड़की से बाहर की और देख रहा था, जबकि मैंने गाने सुनने के लिए ईरफ़ोन लगा लिए थे,

तभी मेरी नजर आदिल पर गई, जिसकी नजरें कुछ खास देख रही थी, जैसे खुश टटोल रही हो.

मैंने देखा आदिल माँ के पास बैठा उनके सीने की तरफ मुँह झुकाये उनके बाहर निकले स्तन देख रहा था, जो की एक लकीर के रूप मे शुरू होती हुई ब्लाउज तक एक घाटी की शक्ल बना रही थी, गोरी उजली घाटी जो की लाल ब्लाउज मे एक अलग ही छटा बिखेर रही थी.

एकदम से मेरी नजर उस पर पड़ी तो मेरा टन बदन गुस्से जस सुलग उठा लेकिन फिर भी ना जाने क्यों मैं कुछ बोला नहीं,

मन तो कर रहा था अभी साले का टेटुआ दबा दू, लेकिन मेरी नजर भी ना चाहते हुए माँ के ब्लाउज मे कसे हुए स्तन पे चली जा रही थी, जो की कार की थिरकन के साथ ब्लाउज के बाहर थिराक रहे थे, मैंने आगे देखा तो अब्दुल ड्राइवर भी कांच मे वही नजारा देख रहा था जो आदिल और मैं देख रहे थे,

ना जाने मेरी माँ कहाँ खोई हुई थी, उसे तीन जवान लड़के घूर रहे थे उसे पता ही नहीं है, वो सामने देखे जा रही थी, पल्लू ब्लाउज से कबका सरका हुआ था,

इन सब के बीच मैं माँ को कैसे कहता की पल्लू ठीक कर लो.

मैं गुस्से और दुविधा के बीच फसा हुआ था, ऊपर से आदिल तो बिल्कुल ही माँ से चिपका हुआ था, मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था, क्या गाना चल रहा था मुझे पता ही नहीं, बस खून खोल रहा था जिस्म मे एक अजीब सी गर्मी उठ रही थी.



खैर मैंने इस बात को अब ज्यादा नोटिस नहीं किया और सफर का मजा लेने लगा, मुझे लगा माँ गॉव की देहाती है इन सब बातो से ज्यादा मतलब नहीं रखती है,.

हमको चलते-चलते 1.30घंटा हो गया था और बैठे बैठे सबके शरीर अकड़ने लगे थे, मेरी माँ भी रह रह के इधर उधर हो रही थी, माँ को बैठने में दिक्कत हो रही थी क्योंकि पीछे हम 4 लोग थे और ब्रेज़्ज़ा मे इतनी भी जगह नहीं होती है, ऊपर से माँ ने कसी हुई साड़ी पहन रखी थी, इसलिए ज्यादा दिक्कत हो रही थी,

"क्या भाभीजी जी दिक्कत हो रही है क्या बैठने मे " आगे से अब्दुल ने माँ बेचैन देख पूछा.

"हाँ माँ कोई तकलीफ है " मैंने भी अब्दुल की आवाज़ सुन माँ को देख पूछा.

"हाँ बेटा साड़ी भारी पहन ली मैंने भी, तो गर्मी और पसीना आ रहा है, अच्छे से बैठा नहीं जा रहा " माँ ने अपनी परेशानी बताई

"अभी तो देहरादून आने मे टाइम है, आप परेशान हो जाओगी " जवाब अब्दुल ने दिया

सभी की निगाहेँ माँ पर ही थी, वाकई माँ के गले से पसीना टपकता हुआ ब्लाउज तक आ गया था, जिसे आदिल बड़ी गैर से देख रहा था

f9b8e6aa979f011ff43e5a1cc83d394d मैंने भी देखा माँ के स्तन पूरी तरह पसीने से भीगे चमक रहे थे.

"तो माँ कोई हल्का कपड़ा पहन लो ना, कार रुकवा लेते है किसी होटल पर " मैंने कहा.

"अरे जाने तो बेटा, हम औरोतो को आदत होती है इन सब की, अब कहाँ बदलने बैठु कपडे " माँ ने बड़ी ही सहजता से कहाँ.

लेकिन मेरे मन मे एक गिलानी सी आ गई, औरतों को कितना सहन करना पड़ता है, हम लड़को का क्या है कहीं भी कुछ भी पहन लो.

"अरे आंटी हम से क्या शर्माना, अपने अमित जैसे ही है हम भी " आदिल ने माँ के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

आदिल के आग्रह मे जैसे जादू था " ठीक है बेटा तुम लोग कहते हो तो बदल लेती हूँ "

माँ और आदिल एक दूसरे को देख मुस्कुरा दिए.



"अब्दुल भाई कार कहीं होटल पे रोक लो "

"अमित भाई होटल तो बहुत दूर है अभी "

"कोई नी यार गाड़ी कहीं साइड लगा दे, आंटी जी अंदर ही चेंज कर लेगी हम लोग नीचे उतर जायँगे, क्यों आंटी जी?" मोहित ने कहा.

"मैं... मैं... ऐसे कैसे... " माँ थोड़ा घबरा गई इतने लड़को के सामने कैसे?

"कोई बात नहीं माँ, परेशान होने से अच्छा है कार मे चेंज कर लो"

"और क्या आंटी हम आपके बच्चे जैसे ही तो है" आगे से प्रवीण ने पीछे माँ को देखते हुए कहा.

माँ अब क्या कहती, कहने के लिए बचा ही क्या था.

"ठीक है रुका लो गाड़ी " माँ ने हामी भर दी थी.

शायद माँ ने यही वो गलती कर दी थी जो नहीं करनी चाहिए थी, मुझे भी इस बात का अहसास नहीं था की मैं इस गलती का भागीदार बन जाऊंगा.

अपने बहुमूल्य कमेंट जरूर दे.

Contd.....
 

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मेरी माँ रेशमा -2


5मिनट मे ही अब्दुल ने सुनसान जगह देख कार रोक दी, आस पास बिल्कुल सन्नाटा था, एक्का दुक्का गाड़िया निकल जा रही थी, सभी लोग कार से उतार गए.



"यार कमर ही टेढी हो गई मेरी तो " मोहित ने उतर के अपने बदन को खिंचते हुए कहा.



"हाँ यार मेरा भी बदन अकड़ गया " मैंने डिग्गी से माँ का बेग निकाल दिया.



"लो माँ आप चेंज कर लो, जब तक हम आते है " मैंने अपनी छोटी ऊँगली से माँ को पेशाब का इशारा कर दिया.



माँ ने गार्डन हिला के इशारा कर दिया सिर्फ.



हम चारो आगे झाड़ी मे निकल लिए, अब्दुल वही कार के बोनट के पास सिगरेट पीने लगा,



मैंने जाते जाते पीछे देखा माँ बेग से कुछ निकाल रही थी लेकिन तभी कार से हट के आगे की तरफ आ गई,



और अब्दुल से कुछ बात करने लगी, एक नजर माँ ने हमारी और भी देखा लेकिन हम अंघेरे मे थे जबकि माँ पर कार की हेड लाइट की डिम रौशनी पढ़ रही थी, माँ का गोरा जिस्म चमक रहा था.



ना जाने क्या बात ही रही थी, माँ ने छोटी ऊँगली उठा अब्दुल को दिखाई, अब्दुल ने सामने इशारा कर दिया, जहाँ हम मूतने गए थे उस से थोड़ा साइड मे.



अब माँ भी इंसान ही है, मैं भी फालतू सोचने लगा था, कोई पेशाब की बात करे तो आपको भी पेशाब आ ही जाती है.



मैंने अपने दिमाग़ को झटका दिया, और पैंट की चेन खोलने ही लगा थी की मेरे दिमाग़ ने झान्नाटा सा लिया, हलकी सरसराहत की आवाज़ ने मेरा ध्यान खिंचा, मैंने पीछे मुड़ कर देखा, अब्दुल वहाँ नहीं था.



कहा गया साला?



मेरे दिमाग़ मे हज़ार सवाल उमड़ पड़े, मुझे शक होने लगा.



मैं चुप चाप अँधेरे मे सबकी नजर बचा कर, साइड मे चलने लगा,



थोड़ी सी आगे जा कर रही झाड़ी मे माँ की परछाई सी दिखी.



माँ इधर उधर देख रही थी, फिर साड़ी को उठाने लगी,



छी मैं कैसा बेटा हूँ अपनी माँ को ऐसे देखने का पाप मैं कैसे कर सकता हूँ,



मैंने माँ पर से नजरें हटा ली, लेकिन तभी मेरी नजर माँ के पीछे खड़े अब्दुल पर जा पड़ी, मेरा खून खोल उठा,



साला मादर्चोद मेरी माँ को मूतते देखने पीछे पीछे चला आया हरामी. मेरा शक सही निकला,




मेरा मन किया अभी जा कर साले का सर फोड़ दू, लेकिन ना जाने क्यों मैं वही जमा रह गया मुझे कुछ कोतुहाल सा हो रहा था, दिल धाड़ धाड़ कर बज रहा था.



ना जाने क्यों मेरे जिस्म मे एक अजीब सी हलचल मच रही थी की कोई मेरी माँ को मूतते देखे, उसकी नंगी गांड देखे, मेरे मन मे पाप ने जगह बना ली थी.



मैंने माँ की और देखा माँ ने अपनी साड़ी घुटने तक उठा ली थी, कार की हलकी रौशनी यहाँ तक आ रही थी, गोरी चिकनी टांगे चमक उठी, साथ ही पीछे खड़े अब्दुल का हाथ हरकत करने लगा, उसके हाथ अपनी पैंट के आगे के भाग को रगड़ने लगे, मैं और अब्दुल सांस रोके आने वाले पल के इंतज़ार मे बैठे थे



माँ ने साड़ी और ऊपर की माँ की मोटी मोटी गोरी सुडोल जाँघे उजागर हो गई, मैं हैरान था माँ की जाँघे देख, मेरे पापा कितने लकी आदमी है,



अगले ही पल मेरी सांसे अटक गई, थूक गे मे ही अटक गया.



माँ ने साड़ी कमर तक उठा ली थी, और जल्दी से पैरो के बल उकडू बैठ गई.



माँ की बड़ी सुडोल गांड पुरे परवन पर अपनी चमक बिखेर रही थी, मैंने जनता तो था की माँ बड़ी गांड की मालकिन है लेकिन इतनी बड़ी और सुन्दर होंगी ये नहीं पता था, मैं तो साइड से ये नजारा देख के मरे जा रहा था.



मेरा ध्यान अब्दुल पे गया जो ठीक माँ के पीछे खड़ा था उसका क्या हाल हुआ होगा, अब्दुल का हाथ अपने लंड के उभार पर बुरी तरह कसा हुआ था.



वो जड़ हो गया था, उसके सामने माँ अपनी खूबसूरत गोल सुडोल गांड खोल के बैठी थी.

वो पक्का माँ की चुत और खूबसूरत गांड के दर्शन कर रहा था



ससससससस...... ससससस... ररररर... एक सिटी की आवाज़ ने सन्नाटे को चिर दिया..

इस आवाज़ ने मेरा धयान वापस माँ की एयर खिंच दिया, आधे मिनट तक मैं कभी अब्दुल को देखता तो कभी माँ को.



थोड़ी ही देर मे माँ ने थोड़ा सा उठ के गांड को झटका दिया, माँ की गांड थरथरा गई, इसके साथ ही मेरा दिल भी थरथरा गया.



माँ ने पेशाब की लास्ट बून्द को झाड़ दिया था वो तुरंत उठी और साड़ी नीचे कर ली, पलटी तो अब्दुल इधर उधर देखने लगा



"शुक्रिया अब्दुल जी, आप साथ आये अँधेरे मे डर लग रहा था "



"शुक्रिया कैसा भाभीजी आप हमारी मेहमान है "



मेरा दिमाग़ ठनक गया मतलब माँ ने खुद अब्दुल को साथ चलने के लिए कहा था,



मुझे भी तो कह सकती थी, शायद अपने बेटे से शर्मा रही हो.



मैं अपनी सोच मे डूबा था, माँ और अब्दुल कबके जा चुके थे.



मैंने भी जल्दी से पेशाब किया, और कार की ओर चल दिया.



"अबे कहा मर गया था " मुझे आता देख आदिल ने कहा.



"अरे जोर की लगी थी इसलिए टाइम लग गया "



सभी कार से दूर खड़े थे, माँ नहीं थी मतलब माँ अंदर चेंज कर रही थी,



आदिल की नजर बार बार कार की तरफ ही जा रही थी, मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था, फिर भी मैं चुप रहा कहीं कोई बखेड़ा ना खड़ा हो जाये, माँ भी बोलेगी कैसे दोस्त बनाये है तूने.



थोड़ी ही देर मे कार का दरवाजा खुला " अमित बेटा ले बेग वापस रख दे " माँ बाहर आ के खड़ी हो गई. जैसे ही माँ उतरी सब माँ को ही देखते रह गए, माँ के गाउन का कपड़ा बहुत हल्का था, माँ का जिस्म उसमे साफ झलक रहा था,
मुझे आश्चर्य हो रहा था की गॉव की मेरी घरेलू माँ बेहिचक ऐसे कपडे पहन सकती है, हालांकि गॉव मे भी कभी कभी पहनती थी, लेकिन तब मैं छोटा था, लेकिन यहां तो मेरे दोस्त मौजूद थे, शायद माँ थोड़ा सकूँचा भी रही थी बाहर सब के सामने आ कर, शायद माँ के पास यही एक गाउन था. >

मैं दौड़ के गया और बेग को डिग्गी मे डाल दिया,.



माँ ने गुलाबी कलर का गाउन पहन लिया था,



"अब कैसा लग रहा है आंटी " मोहित ने पूछा.



"बहुत बढ़िया, राहत महसूस हुई " माँ के गाउन का कपड़ा काफ़ी हल्का था, माँ के जिस्म का काटव साफ महसूस हो रह था.



मैं खुद माँ की खूबसूरती का दीवाना हुआ जा था था मेरे दोस्तों के तो कहने ही क्या वो तो बस माँ को देखे जा रहे थे,



हालांकि मैंने नोटिस किया माँ ने ब्रा भी नहीं पहनी है, माँ के स्तन चलने से ज्यादा हिल रहे थे, जबकि पैंटी तो माँ ने पहले से ही नहीं पहनी थी, माँ को पेशाब करते वक़्त देख ये बात समझ आ गई थी.



ना जाने क्यों माँ को देखने का मेरा नजरिया बदल था था, माँ की जगह मुझे सुडोल जवान खूबसूरत स्त्री नजर आ रही थी.



"अब तुम लोग चलोगे भी या यही रहने का इरादा है " माँ ने कहा



सभी कार मैं अपनी पुरानी पोजीशन मे बैठने लगे तभी प्रवीण भागता हुआ आया " यार मैं आगे नहीं बैठूंगा थोड़ी लग रही है मुझे "



तब तक पीछे की सीट पर माँ के बाजु आदिल बैठ गया था, और उसके बाजु मोहित बैठ चुका था, माँ खिड़की के पास आराम से बैठी थी, अब बचा मैं मरता क्या ना करता.



"ठीक है भोसड़ीके मैं बैठ जाता हूँ, तू पीछे बैठ " मैंने बुरा सा मुँह बना कर कहा



"हेहेहेहेहे...." प्रवीण हसता हुआ पीछे मोहित के पास जा बैठा.



कार चल पड़ी, मैं अब्दुल ड्राइवर के बाजु बैठा था.



साला बहुत खुश नजर आ रहा था, नॉएडा से निकले थे तो मुँह बिगाड़ रखा था साला अब देखो कितना ख़ुश है हरामखोर. साला अभी भी मिरर मे माँ को देख ले रहा था.



उसकी खुशी का कारण मैं जनता ही था.



खेर मैंने दिमाग़ को झटका दिया और उघने लगा.



1घंटे ही बीते होंगे की मुझे ठण्ड सी लगने लगी, मैंने कम्बल लेने के लिए सर पीछे घुमा कर देखा तो तो मैं हैरान रह गया,



माँ और आदिल ने एक ही कम्बल औड़ा हुआ था, और प्रवीण मोहित ने एक.



मैंने कुछ आवाज़ नहीं की और माँ को देखने लगा उनकी आंखे बंद थी, सर पीछे सीट पर लगा हुआ था, शायद माँ सो गई थी.



की तभी मेरी नजर आदिल के साइड वाली कम्बल पर पड़ी, उसके जाँघ के पास कम्बल कुछ उठी हुई थी और हिल भी रही थी.


मेरे सर पे एकदम से गुस्सा सावर हो गया, साला हरामी अपनी हरकतो से बाज नहीं आएगा, माँ के साइड मे ही लंड हिला रहा है अपना.



मेरे हलक से एक जोर की आवाज़ निकल गई आदिल.... साले...



मेरी आवाज़ से माँ और आदिल दोनों हड़बड़ा गए, मैंने दिखा कम्बल के नीचे से माँ का हाथ सरसराता हुआ निकला.



"कक्क... कक्क... क्या हुआ अमित " आदिल हड़बड़या



"कक्क.. क्या हुआ बेटा " माँ और आदिल के तोते उड़े हुए थे, एक पल को चेहरे सफ़ेद पढ़ गए थे.



मैं हैरान था, मुझे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था की जिसमे मैं आदिल का हाथ समझ रहा था असल मे वो मेरी माँ का हाथ था.. मतलब मेरी संस्कारी गॉव की घरेलु माँ मेरी मौजूदगी मे मेरे दोस्त का लंड हिला रही थी. tumblr-mttan8glrb1se163eo4-400



भरी शर्दी मे मुझे पसीना आ गया, यही हालात माँ और आदिल की भी थी.



"कक... कुछ नहीं माँ ठण्ड लग रही है, कम्बल चाहिए था " मेरे इस कथन से जैसे दोनों ने राहत की सांस ली हो लेकिन मेरे सीने मे अभी भी जवालामुखी फुट रहा था.



पहले वो पेशाब वाली घटना, और अब ये.



क्या वाकई मैं अभी तक अपनी माँ को नहीं जानता या ये सब मेरा वहम है एक गलतफहमी है.



मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था.



लेकिन माँ और आदिल की बोखलाहट कुछ और ही कहानी बताला रही थी, मुझे कन्फर्म करना था मैं गलत हूँ या सही.



"बेटा और कम्बल तो नहीं है, यही थी सिर्फ दो इसलिए साथ मे ओढ़ना पड़ रहा है " माँ ने बड़ी खूबसूरती से खुद को बचा लिया था, या वाकई वो सही बोल रही थी.



अंधेरा और मेरे वहम की वजह से मुझे ऐसा लगा,



"तो ठीक है आदिल तू अब आगे आ जा मैं पीछे बैठ जाता हूँ माँ के साथ "



"अबे नहीं अच्छा खासा गरम हुआ हूँ अभी, ज्यादा सर्दी लगेगी मुझे " आदिल ने मना मर दिया.



"ये लो ना अमित भाई मेरे पास extra शाल है " अब्दुल ने बीच मे हमारी बात काटते हुए मेरी ओर शाल बढ़ा दी.



"अब क्या बोलता, मरे हुए मन से मैंने शाल ले ली और ओढ़ के सीट पर सर टिका लिया.



मेरे जहन मे अभी भी यही सब चल रहा था, मुझे कन्फर्म करना था, ये अब्दुल साला शुरू से गड़बड़ कर दे रहा है हरामी, मन ही मन मैंने अब्दुल को खूब गाली दी.



मैं अगकी सीट पर इस कद्र करवट ले के बैठा था की पीछे देख सकूँ, चेहरे तक़ मैंने शाल डाल ली थी, और एक हल्का सा गेप बना लिया था मेरी नजर आदिल और माँ पर ही थी.



लेकिन करीबन आधे घंटे बीत गए थे दोनों ने कोई हरकत नहीं की, मैं खुद को कोस रहा था, साला मैं ही गन्दा आदमी हूँ, अपनी माँ के लिए इतना गन्दा कैसे सोच सकता हुआ.



मैं वापस सीधे बैठे के लिए हिलने ही वाला था की



"आअह्ह्ह.... आउच.... एक बेहद धीमी आवाज़ नेरे कानो से टकरा गई..



मेरे जिस्म मे हलचल सी हो गई, आंखे पीछे को जा टिकी माँ का सर पीछे सीट पर टिका हुआ था, माँ ने अपने होंठो को दांतो तले दबा रखा था, माँ जोर जोर से सांसेे ले रही थी,

इसका मतलब कहीं आदिल.... कहीं आदिल माँ के साथ कुछ... मैं सोच भी नहीं पा रहा था की ऐसा कुछ मेरी माँ कर सकती है,.



लेकिन... लल... लेकिन जो मैं देख रहा था उसे झूटाला पाना मुश्किल था,



मेरी माँ हलके हलके सिसक रही थी, उसे चिंता ही नहीं थी की इस कार मे उसका बेटा भी बैठा है .



मैंने देखा माँ ने एक हाथ से कम्बल उठा कर अपने चेहरे को ढँक लिया है, माँ का जिस्म हल्का हल्का हिल रहा था. जैसे कांप रहा हो.



कम्बल मे माँ और आदिल साफ साफ एक दूसरे से चिपके हुए महसूस ही रहे थे,



मेरा शक यकीन मे बदलता जा रहा था.



"कहीं... कहीं... आदिल माँ की चुत मे ऊँगली... नहीं नहीं मेरी माँ कभी ऐसा नहीं करने देगी... छी मैं भी क्या सोच रहा हूँ " मैं सामने देखते हुए भी खुद की सोच को धिक्कार रहा था, नेरा मन गवाही नहीं दे रहा था की ऐसा भी ही सकता है, मेरा माँ ऐसा भी कर सकती है.



मैंने पीछे देखना जारी रखा, माँ की साइड से कम्बल खींचने की वजह से थोड़ा हट गया था, माँ की गोरी मांसल जाँघ चमक रही थी, मतलब माँ का गाउन जांघो से ऊपर ही था.

अब मुझे पक्का यकीन होने लगा था आदिल माँ की चुत मे अपनी ऊँगली डुबो रहा है.

मुझे साफ नहीं दिख रहा था लेकिन मेरे दिमाग़ मे आकृतिया बनती जा रही थी, ना जाने क्यों मेरा लंड खड़ा होने लगा था.

तभी आदिल ने कम्बल से बाहर मुँह निकाल कर अब्दुल के कान मे कुछ फुसफुसाया.

मैं हैरान था साला ये चक्कर क्या है, अब्दुल को क्या बोल रह है.

मुझे ज्यादा सोचने की जरुरत नहीं पड़ी, अब्दुल ने फ़ौरन अपनी सीट थोड़ी आगे कर ली.

अब्दुल के पीछे माँ और आगे की सीट मे अच्छा खासा गेप दिखने लगा था, आदिल तुरंत उस गेप मैं जैसे तैसे माँ की जांघो पे झुकता हुआ बैठ गया, आदिल की हरकतो से मेरा दिल धाड़ धाड़ कर बज रहा था, लंड आगे की कल्पना से ही फटा जा रहा था.

मेरी संस्कारी माँ कोई आपत्ति नहीं थी वो तो बस मुँह तक़ कम्बल डाले पैर फैलाये बैठी थी,

इस उथल पुथल मे माँ की दोनों जाँघे कम्बल से बाहर आ गौ थी, जो की बाहर से आती रौशनी मे चमक उठती थी, मेरी माँ वाकई सुंदरता की मूरत थी, बेचारे आदिल जैसे जवान लड़के को बहक ही जाना था .

एक दम चिकिनी गोरी, सुडोल मोटी जांघो के बीच आदिल जा बैठा, उसकी सांसे कम्बल के ऊपर से माँ की चुत से टकरा रही थी, माँ की सांसे तेज़ चल रही थी शायद वो भी मेरी ही तरह आने वाले पल का इंतज़ार कर रही थी.

आदिल ने कम्बल को थोड़ा सा उठाते हुए अपने को ढक लिया...

इस्स्स्स..... आअह्ह्ह..... उउफ्फ्फ..... माँ की हलकी सी सिस्कारी कार मे गूंज गई, मैं शर्त के साथ कह सकता हूँ, जो भी कार मे जग रहा था सबने ये सिस्कारी सुनी होंगी,

मोहित प्रवीण सो गए थे, अब्दुल ने सिस्कारी सुन मिरर मे देख मुस्कुरा दिया,

मैं एक हाथ से लंड पकड़े आगे का नजारा देखे जा रहा था, मेरा दोस्त मेरी मौजूदगी मे मेरी माँ की चुत चाट रहा था, उसका रस पी रहा था.

मुझे अपनी माँ का चरित्र कुछ समझ नहीं आ रहा था ऐसी भी क्या मज़बूरी थी माँ की.

माँ की जाँघे पूरी तरह कम्बल से बाहर फैली हुई थी, सिर्फ जांघो के बीच मे आदिल का सर वाला हिस्सा ढका हुआ था जो की इधर उधर ऊपर नीचे हिल रहा था,

अब मुझे कोई शक नहीं रह गया था, माँ की सिस्कारिया, उसके कमाल मे गिरते उठते स्तन इस बात के गवाह थे की माँ को अपनी चुत चाटवाने मे मजा आ रहा है, 20230411-110733 .

शायद कम्बल के अंदर से माँ के हाथ आदिल के सर पर दबाव बना रहे थे, उसे उकसा रहे थे चाट सके और चाट अपने दोस्त की माँ की चुत को चाट, खा जा.

मैं खुद को कोष रहा था, समझ रहा था एक औरत का चरित्र.

आदिल को माँ की चुत चाटते 10 मिनट हो गए थे, लगता था साला माँ की चुत को पी पी कर सूखा ही देगा.

माँ की सिस्कारिया बढ़ती ही जा रही थी, आआहहहहह..... आउच..... उउउफ्फ्फ..... नहीं...

अचानक माँ जोर से चींख उठी.

शायद आदिल ने जोश मे आ कर माँ की चुत को काट लिया था.

मा के चिल्लाने से पीछे बैठे मोहित और प्रवीण भी हड़बड़ा के उठ गए,

"कक्क... कक्क... क्या हुआ आंटी?" मोहित ने आंखे मसलते हुए कहा.

मैं अभी भी वैसे ही बैठा था जैसे कुछ हुआ ही ना हो.

सामने का नजारा देख प्रवीण और मोहित हैरान थे, माँ की जाँघे पूरी नंगी फैली हुई थी, आदिल जांघो के बीच बैठा था.

माँ ने स्थति को देखते हुए तुरंत ही खुद को ढकना चाहा लेकिन इस कसमकस मे मुझे वो दिखा जिसे शायद ही कोई बेटा अपने जीवन काल मे देख पाता हो.

दो पल को माँ ने कम्बल पूरा उठा जाँघे समेट ली, और फिर से ढँक लिया.

दो पल ही सही मुझे अपनी माँ की चुत के दर्शन जरूर हो गए, एकदम चिकनी गोरी, बाल का एक तिनका भी नहीं था.

आदिल ने चाट चाट के पूरा गिला कर दिया था.

मैं हैरान था माँ गॉव की हो कर भी अपने जिस्म का कितना ख्याल रखती है, या फिर शादी मे जा रही है इसलिए साफ किया हो.

"और तू नीचे क्या कर रहा है ने आदिल " प्रवीण ने पूछा.

मोहित और प्रवीण सिर्फ माँ की चिकनी जाँघे ही देख सके रहे, उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था ऊपर से अभी अभी नींद से उठे थे सपना है या हक़ीक़त उनके समझ नहीं आ रहा था.

"अरे वो मोबइल गिर गया था तो उठा रहा था, लेकिन अँधेरे मे आंटी का पैर दब गया " आदिल ने साफ साफ खुद को बचा लिया था.

माँ के चेहरे पे भी सुकून था, जैसे बाल बाल बची हो.

"तो मुझे बोल देते बेटा मैं, उठा देती " माँ ने बड़े ही भोले पन से कहा..

मैं हैरान था मेरी माँ का रंग देख कर कितनी सफाई से खुद को बचा लिया था.



चरररर..... चीईई..... तभी अब्दुल ने कार रोक दी.

"चाय पी लेते है दोस्तों नींद सी आ रही है थोड़ी "

मैंने भी उठने का नाटक किया, और ऐसे रियेक्ट किया जैसे कब से सो रहा था.

"मेरे लिए अंदर ही ले आना चाय " माँ ने मुस्कुराते हुए आदिल से कहा.

हम पांचो उतर गए थे, माँ कार मे ही बैठी थी.

मैं अपनी सोच मे डूबा था, जो अभी तक़ देखा उस पर हैरान था, कैसे मेरी संस्कारी घरेलु माँ इस कदर कदम उठा सकती है,

एक मन कर रहा था आदिल को यही पिट दू, तो दूसरा मन कह रहा था माँ को सीधा जा कर बोल दू.

लेकिन मैं जानना चाहता था की माँ ने ऐसा किया क्यों? ऐसा क्या हुआ? औरत का चरित्र होता क्या है?

मेरी माँ बहक कैसे गई?

अपने बहुमूल्य कमेंट जरूर दे, अपने विचार जरूर शेयर करे, क्या कहानी मे कुछ सुझाव चाहते है आप?

ये कहानी आप ungrade वर्शन मे मेरे ब्लॉग पर पढ़ सकते है.

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Sushil@10

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मेरी माँ रेशमा -1



ये कहानी मेरी माँ और मेरे सफर की है, कैसे मेरी घरेलु संस्कारी माँ बहक गई थी एक सफर मे.

पाठक कहानी पढ़ते वक़्त विवेक से काम ले.



कहानी मेरी है यानि की मैं अमित एक छोटे से गांव का रहने वाला हूँ,

नौकरी पैसे ने गॉव कबका छुड़वा दिया था, मैं नॉएडा मे एक अच्छी कम्पनी मे नौकरी करता हुआ, पढ़ने लिखने मे होनहार था, एयर कुछ घर की जिम्मेदारियां जिस वजह से मैंने जल्द ही नौकरी पकड़ ली, मेरी age मात्र 22 साल है,

हम लोग उत्तरप्रदेश के एक छोटे से गांव के रहने वाले है जो की पूर्वांचल मे पड़ता है,

मेरे अलावा मेरे घर में पिताजी - रामशंकर शर्मा (50) मेरी माँ रेशमा जो की अभी 40 साल की ही है, पहले के समय मे शादी मे 10,15 साल का गेप होना आम बात थी,

वैसे मेरी माँ देखने मे बहुत सुन्दर है, जैसा नाम वैसा रूप, कमला कमल की तरह ही खूबसूरत और नाजुक थी.

संस्कारी घरेलु महिला कभी कहीं किसी को गलत नजर से नहीं देखा, पापा को सालो से दमे की बीमारी थी, उनकी सेवा सत्कार सब मेरी माँ के जिम्मे था किसे वो भली भांति निभाती भी थी.

गॉव मे अक्सर लोग मेरी माँ को घूरते थे, उसकी काया ही ऐसी थी लम्बी चौड़ी, गद्दाराया जिस्म, तने हुए, भारी स्तन, कमर पर बिल्कुल सटीक मांस.

नितांब सारी मे कसे हुए हिलते थे, थिरकते थे, इसी थिरकन को देखने के लिए पूरा गॉव मरता था

हालांकि मेरी नजर मैं माँ सिर्फ माँ ही थी, FB-IMG-1738910364973 मैं अक्सर शहर ही रहता था तो ज्यादा ध्यान भी नहीं देता था, गांव के लोग साले होते ही दकियानुसी ख्याल के होते है, मेरा ऐसा मानना था.

खेर मुझसे बड़ी एक बहन भी है जिसकी शादी मेरठ मे हो गई है.

मेरे पापा को दमे की बीमारी है, खेल खलिहन अक्सर मम्मी ही संभाला करती है, वैसे हमारे घर मे कोई कमी नहीं थी,

मैं ही पढ़ने शहर निकल गया था तो वापस गांव जा कर खेती बाड़ी करना मेरी शान के खिलाफ ही था.

खेतो मे मजदूर काम किया करते थे, मम्मी सिर्फ निर्देश दे दिया करती थी, पापा तो धूल मिट्टी देखते ही खासने लगते थे.

सो मैंने गॉव की मिट्टी से दूर रहता ही उचित समझा.

और पढ़ाई के बाद नौकरी भी पकड़ ली.

पूरा गांव मुझपे गर्व करता था, आखिर मैं ही था जो पढ़ लिख कर नौकरी कर रहा था शहर मे.

नॉएडा मे मैंने एक फ्लैट ले रखा था हिसाब मे कुछ मित्रो के साथ रहता था जो की मेरे साथ मेरी ही कम्पनी मे काम करते थे.

उम्र मे मैं ही सबसे छोटा था. अब नॉएडा जयश्री शहर मे अकेले फ्लैट लेना मेरे बस की बात तो नहीं थी.

तो ऐसे ही एक दिन मैं ऑफिस से शाम को घर लौटा, की मम्मी का फ़ोन बज उठा.

करररर.... करर....

हाँ मम्मी प्रणाम, कैसी है आप?" मैंने अभिवादान किया.

"ठीक हूँ बेटा, वो तेरे भाई नवीन की शादी है " मम्मी ने बताया

नवीन मेरे मामा का लड़का जो देहरादून मे रहते थे.



"अरे वाह मम्मी क्या बात कर रही हो, साले ने मुझे बताया भी नहीं "

मैं और नवीन भाई से ज्यादा दोस्त थे बचपन से ही तो मैं उसकी शादी मिस नहीं कर सकता था.

"कब है शादी?" मैंने उत्सुकता से पूछा.

"अगले सप्ताह ही है "

"आप पापा जा रहे है?" मैंने पूछा

"अरे तेरे पापा को तो खासने से ही फुर्सत नहीं है, वो कहाँ जा पाएंगे, सर्दी का मौसम है तबियत ख़राब हो जाएगी तो और दिक्कत हो जाएगी " माँ ने अपनी व्यथा कह सुनाई.

"तो फिर?" मैंने सर खुजाते हुए पूछा.

"तू आ जा ना गांव यही से चलते है " माँ ने सुझाव दिया

"मैं... मैं कैसे आ सकता हूँ माँ, नॉएडा से देहरादून पास ही है, आप आ जाओ यहाँ से हम दोनों साथ चल चलेंगे, मैं आऊंगा फिर वहाँ से जाऊंगा 2,4 दिन तो ऐसे ही निकल जायेंगे "

माँ कुछ सोचने लगी, उधर पापा से कुछ बात करने की आवाज़ आने लगी, जिसका आखरी शब्द था "ठीक है खो... खो... खाऊ..."

मैं समझ गया मम्मी पापा से बात कर रही थी.

"ठीक है बेटा मैं आ जाती हूँ, आज 5 नवंबर है, शादी 11 तारीख की है तो मैं काल रात की ट्रैन पकड़ लेती हूँ"

"वाह... मम्मी मजा आएगा आ जाओ" मैं बहुत खुश था मेरी माँ आने वाली थी, मैं माँ को करीबन एक साल बाद देखने वाला था, नयी नौकरी के चककर मे घर जा ही नहीं पाया था, सिर्फ फ़ोन पर बात हो जाया करती थी,

ज्यादा खुशी मामा के घर जाने की थी, मुझे बचपन से मामा का घर पसंद था.

वैसे भी मेरी नवीन से खूब पटती थी.

"क्या बे इतना क्यों दांत निपोर रहा है किसका फ़ोन था "

अचानक आई आवाज़ मे चौंक गया पीछे देखा आदिल खड़ा था.

मैं बताना भूल गया, जिस फ्लैट मे मैं रहता हूँ वहाँ मेरे साथ 2 दोस्त और भी रहते है,

आदिल, मोहित और प्रवीण, तीनो की age मुझसे बड़ी ही है करीबन 24, 26 साल के है.

"अरे कुछ नहीं यार माँ का फ़ोन था, मामा के लड़के की शादी है देहरादून मे उसी के लिए यहाँ आ रही है " मैंने ख़ुशी का कारण बताया.

तब एक प्रवीण और मोहित भी आ चुके थे कमरे मे.



"क्या.... क्या बे अकेला अकेला देहरादून जायेगा, वहाँ आस पास तो कितनी अच्छी जगह है घूमने की " मोहित ने कहाँ

"हाँ भाई मसूरी पास ही है, हरिद्वार है, गंगा है" प्रवीण चहक रहा था.

"प्लीज भाई हम भी चलते है ना, शादी के बहाने घूम आएंगे "

आदिल ने भी आग्रह कर दिया.

अब मैं कैसे मना करता, वैसे भी खरचा सिर्फ वहाँ जाने का था, रुकने मा इंतेज़ाम तो था ही शादी मे.

मैंने हामी मे सर हिला दिया, आखिर दोस्तों के साथ सेर सपाटा कौन मिस कर सकता था,

हम चारो मे वैसे भी कभी अच्छी पटती थी.

"कब चलना है? आंटी कब आ रही है?" आदिल ने पूछा.

"देख परसो सुबह मम्मी आ जाएगी, तो रात की ट्रैन देख लेते है " मैंने कहा

"ओके आज 5 तारीख है, परसो मतलब 7 की सुबह आंटी आ जाएगी, रात की ट्रैन... ओह... Shit.. यार ये तो एक भी ट्रैन मे टिकट नहीं है " मोहित irctc की वेबसाइट खोले बैठ था.

"अब?" सभी के मुँह से एक साथ निकला.

जबकि मेरे माथे पर परेशानी की लकीरें थी, क्यूंकि मैंने ही माँ को यहाँ आने का सुझाव दिया था,

"8 तारीख की देख ले ना बे " मैंने कहाँ

"अगले 10 दिन मे कहीं टिकट नहीं है यार, देख ही रहा हूँ, शादी का सीजन है सब फुल है " मोहित लैपटॉप मे आंखे गाढ़ाये बैठा था.

हम चारो सोच मे डूब गए थे

"एक आईडिया है, मैं एक कार का इंतेज़ाम कर सकता हुआ" आदिल ने चुटकी बजाते हुए कहा.

"क्या कार से, पागल है क्या इतनी दूर कार से " मैंने आंख भोहे चढ़ा ली.

"अबे सिर्फ 250km ही तो है, मामूली दुरी है, ऊपर से कार रहेगी तो मन मर्ज़ी से जा सकेंगे "

आदिल की बात सभी को हजम हो गई, रुक रुक भी गए तो 5,6 घंटे का सफर है सिर्फ.

हम लोग निश्चित थे, फैसला हो गया था की कार से जायेंगे, लेकिन मैंने माँ को नहीं बताया था, सोचा की आएंगी तो मज़बूरी बता दूंगा.

माँ कौनसा मना करने वाली है.

अगला दिन बीत गया, मम्मी से बात हुई उन्होंने रात की ट्रैन पकड़ ली थी, अगली सुबह 7 बजे मैं और आदिल स्टेशन पर मौजूद थे.

प्लेटफार्म no.5 पर पूर्वांचल एक्सप्रेस धीमी होती जा रही थी,

छरररर...... च्छीहिई..... ट्रैन रुक गई, मेरा दिल धाड़ धाड़ कर बज रहा था, मुझे माँ को देखने उनसे मिलने का उत्साह सा हो रहा था.

ट्रैन रुक गई थी, सामने s5 डब्बे से माँ उतर रही थी, शुद्ध घरेलु भारतीय नारी लाल साड़ी मे लिपटी, लाल लिपस्टिक से रंगे हुए होंठ, गोरी रंगत ली हुई मेरी माँ सामने ही खड़ी थी, ट्रैन रुकी तो माँ समान उठाने के लिए थोड़ा झुकी, माँ के स्तन लगभग पुरे ही बाहर को आ गिरे थे, मैं एकदम से सन्न रह गया,शायद आदिल की भी यही हालात रही होगी, 20211008-213656

मैंने भाग कर माँ के हाथ से बेग ले लिया.

"माँ प्रणाम " और पैरो को छू लिया मैं करीबन एक साल बाद माँ को देख रहा था.

मुझे बहुत आश्चर्य सा हो रहा था माँ को इतना सजा धाजा देख कर, या फिर यूँ कहु मैंने माँ को हमेशा घर के काम धाम, खेतो मे ही उलझा देखा था.

माँ का मैं जैसे कोई नया ही अवतार देख रहा था, माँ साड़ी मे लिपटी हुई थी लेकिन, जिस्म फिर भी अपनी छटा दिखा रहा था, मैंने आज से पहले माँ को कभी स्लीवलेस ब्लाउज मे नहीं देखा था,. लेकिन आज माँ डीपनैक, स्लीवलेस ब्लाउज पहने खड़ी थी, पल्लू भी सीने से हटा हुआ था

एक बार को तो मैंने अपना थूक निगल लिया था.

मैं हैरान था की गांव को औरत इस कद्र सुन्दर भी हो सकती है.

"उफ्फ्फ.... अमित... कैसा है तू " माँ ने मुझे अपने सीने से भींच लिया.

असीम शांति थी इस आलिंगन मे, एक ममता थी अपने बेटे के लिए.

"ठीक हूँ माँ " एक पल को मुझे अपनी सोच पर पछतावा हुआ.

माँ की नजरें मेरे पीछे खड़े आदिल पर गई.

"माँ ये मेरा दोस्त है, आदिल मेरे साथ ही रहता है "

मैंने आदिल की तरफ देखा, जिसकी आंखे माँ पर ही टिकी हुई थी वो अपनी जगह से हिल भी नहीं रहा था, जैसे लकवा मार गया हो.

"आदिल ये मेरी माँ है " मैंने आदिल के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

"ननन... नमस्ते आंटी जी "

माँ ने आदिल कर नमस्ते का कोई जवाब नहीं दिया, कारण मैं समझ गया था माँ की रूडीवाड़ी सोच, गांव का कल्चर. अभी भी धर्म जाती मे भेद करता था.

खेर मैं माँ का बेग ले के आगे चल पड़ा, माँ मेरे पीछे और आदिल माँ के पीछे जैसे किसी रस्सी से बंधा खींचता चला आ रहा था.

मैंने आदिल की हरकत मे कोई तावज्जो नहीं दी.

हम लोग फ्लैट पर आ गए थे, हमें आज रात ही निकलता था.

मोहित और प्रवीण से मैंने माँ का परिचय करवाया, माँ उनसे मिल कर ख़ुश हुई, बस आदिल से माँ का व्यवहार थोड़ा रुखा था.

मैंने महसूस किया प्रवीण और मोहित भी माँ को देखते ही रह गए थे, जैसे एक नजर मे माँ को भर लेना चाहते हो.

मैं खुद भी माँ को कुछ अलग सा महसूस कर रहा था,

सजी सवरी मेरी माँ को साड़ी ढकने से ज्यादा जिस्म दिखा रही थी,

कभी बेग उठाने, सैंडल खोलने को झुकती तो सभी की नजर माँ की तरफ ही जाती, मेरी भी नजर गई माँ के गहरे ब्लाउज से स्तन बहत गिर आने को आतुर दिख रहे थे.

लेकिन मेरी माँ के चेहरे पे कोई भाव नहीं था, वो सिर्फ मुस्कुरा के दूसरे कमरे मे चल दी.

आदिल कार का इंतेज़ाम करने चला गया था. माँ फ्रेश हो के आराम कर रही थी.

मैंने माँ को बता दिया था की कार से चलेंगे, माँ ने मज़बूरी समझते हुए हाँ कर दी थी.



ट्रिन... ट्रिन... कुछ ही समय मे मेरे फ़ोन की घंटी बज उठी

"हाँ आदिल बोल?"

"भाई कार का इंतेज़ाम तो नहीं हो पाया, वो कार वाला दोस्त बाहर गया हुआ है " आदिल ने जैसे बम फोड़ दिया हो.

"साले मदरचोद... अब क्या होगा, माँ को क्या बोलूंगा " मैं गुस्से से उखाड़ गया था क्यूंकि सारा आईडिया आदिल का ही था अब बोल रहा है कार का इंतेज़ाम नहीं हो सकता.



तभी प्रवीण बोला "मेरे पहचान का एक ड्राइवर है, उसके पास गाड़ी है, लेकिन वो खुद ही चलाता है कार रेंट पे नहीं देता "

मरता क्या ना करता " लगा फोर उसे " मैंने हामी भर दी

प्रवीण ने फ़ोन लगाया...

कुछ बात हुई.

"यार अमित ब्रेज़्ज़ा है उसके पास, कार मे स्पेस भी है, लेकिन कार वही चलाएगा, आना जाना 8000 मांग रहा है"

हम लोगो को यही सही लगा हमने बात फाइनल कर दी.

और आज रात 8 बजे कार लाने को बोल दिया.

हम सब लोग तैयार हो चुके थे, माँ भी लाल कलर की साड़ी पहने दिन से भी ज्यादा सुन्दर लग रही थी, प्रवीण और मोहित माँ के साथ हसीं मज़ाक कर रहे थे, जिसका जवाब माँ मुस्कुरा के ही दे रही थी.

करीबन 8.15 पर एक कार बिल्डिंग के बाहर आ कर रुकी.

"सलाम वालेकुम मियां " एक दाढ़ी वाले इंसान मे खिड़की से मुँह बाहर निकाल प्रवीण को सलाम किया.

सामने कार मे बैठा इंसान मुँह पे पान दबाये बैठा था, जिसका सबूत था की उसकी लार मुँह के कोने से टपक रही थी.

अब्दुल कादिर इस कार का मालिक था, देखने मे काफ़ी लम्बा चौड़ा था.



जेसे ही अब्दुल की नज़र मेरी मम्मी पे पड़ी उसकी तो मानो ख़ुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था, वो बुरी तरह मम्मी को ताड़े जा रहा था, मेरे लास खड़ी माँ मॉर्निंग उसने ऊपर से नीचे कई बार देखा, अब्दुल की उमर लगभाग 36 साल होगी

"माँ ये अब्दुल है " मैंने माँ से उसका परिचय कराया क्यूंकि अब्दुल से हम लोग पहले भी मिल चूके थे.

"नमस्ते आंटी जी " अब्दुल के लहजे मे एक अलग ही अंदाज था.

उसकी नजरें माँ के ब्लाउज से झाँकते स्तनों पर थी, शायद माँ के स्तन थे ही इतने कठोर और बड़े की ब्लाउज मे समाते ही ना थे,गॉव मे मैंने कभी इन सब बातो पे ध्यान दिया ही नहीं था या फिर मेरी उम्र ही नहीं थी तब ये सब देखने की.

लेकिन आज अब्दुल की नजर का पीछा किया तो मैं खुद हैतान था, माँ के स्तन वाकई मे बाहर गोरे और बड़े थे, जिसकी छाप ब्लाउज मे साफ जान पडती थी.


मम्मी ने भी हल्का मुस्कुरा कर, झुकते हुए नमस्ते किया और मेरा हाथ पकड़ कर मेरे कान में धीरे से बोली " ये मुल्ले की ही गाड़ी मिली थी तुमको"

"क्या मम्मी आप भी ना, भरोसे का आदमी है अब्दुल " मैंने मम्मी को दिलाशा दिया.

लेकिन मैं हैरान था माँ ने अपने पल्लू को बिल्कुल भी ठीक नहीं किया, ऊपर से झुकते हुए जमीन पर रखे बेग को उठाने लगी, 20231116-124459 जैसे की जो अब्दुल देखना चाह रहा था उसे दिखा रही हो. अब्दुल के चेहरे के भाव शून्य थे, गुटके से भरा मुँह खुला रह गया था, जैसे कोई भूत देख लिया हो

लेकिन माँ के चेहरे के भाव और कुछ कह रहे थे,

माँ मुझे देख बुरा सा मुँह बनाती कार मे पीछे की सीट पर जा बैठी, मैं माँ के साथ बैठे ही वाला था की एकदम से आदिल कूद के माँ के पास जा बैठा,

मुझे थोड़ा अजीब लगा लेकिन मैंने कोई रिएक्शन नहीं दिया और आदिल के बगल मे जा बैठा, मोहित दूसरी तरफ से माँ के बाजु मैं बैठ गया और प्रवीण आगे की सीट पर जा बैठा.

पीछे चार लोगो के बैठे की वजह से जगह तंग हो गई थी, सभी लोग एक दूसरे के साथ चिपके हुए थे.

हम सभी दोस्तों ने कम्फर्टेबले शॉर्ट्स पहने हुए थे, जो की तंग जगह पर आराम का अनुभव दे रहा था.

"तो फिर चले, भाभी जी बैठ गए ना अच्छे से, कुछ छूट तो नहीं गया?" अब्दुल ने कार के अंदर मिरार को सेट करते हुए कहा, जिसमे शायद मेरी माँ का गोरा खूबसूरत चेहरा दिखाई पढ़ रहा था.

"ना भैया चलो, देर क्यों करनी सब रख लिया है" माँ ने भी सामने कांच मे देखते हुए कहा, जहाँ अब्दुल और माँ की आंखे आपस मे मिल गई थी.

तुरंत ही कार स्टार्ट हुई और हम सडक पे दौड़ चले,

मोहित खिड़की से बाहर की और देख रहा था, जबकि मैंने गाने सुनने के लिए ईरफ़ोन लगा लिए थे,

तभी मेरी नजर आदिल पर गई, जिसकी नजरें कुछ खास देख रही थी, जैसे खुश टटोल रही हो.

मैंने देखा आदिल माँ के पास बैठा उनके सीने की तरफ मुँह झुकाये उनके बाहर निकले स्तन देख रहा था, जो की एक लकीर के रूप मे शुरू होती हुई ब्लाउज तक एक घाटी की शक्ल बना रही थी, गोरी उजली घाटी जो की लाल ब्लाउज मे एक अलग ही छटा बिखेर रही थी.

एकदम से मेरी नजर उस पर पड़ी तो मेरा टन बदन गुस्से जस सुलग उठा लेकिन फिर भी ना जाने क्यों मैं कुछ बोला नहीं,

मन तो कर रहा था अभी साले का टेटुआ दबा दू, लेकिन मेरी नजर भी ना चाहते हुए माँ के ब्लाउज मे कसे हुए स्तन पे चली जा रही थी, जो की कार की थिरकन के साथ ब्लाउज के बाहर थिराक रहे थे, मैंने आगे देखा तो अब्दुल ड्राइवर भी कांच मे वही नजारा देख रहा था जो आदिल और मैं देख रहे थे,

ना जाने मेरी माँ कहाँ खोई हुई थी, उसे तीन जवान लड़के घूर रहे थे उसे पता ही नहीं है, वो सामने देखे जा रही थी, पल्लू ब्लाउज से कबका सरका हुआ था,

इन सब के बीच मैं माँ को कैसे कहता की पल्लू ठीक कर लो.

मैं गुस्से और दुविधा के बीच फसा हुआ था, ऊपर से आदिल तो बिल्कुल ही माँ से चिपका हुआ था, मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था, क्या गाना चल रहा था मुझे पता ही नहीं, बस खून खोल रहा था जिस्म मे एक अजीब सी गर्मी उठ रही थी.



खैर मैंने इस बात को अब ज्यादा नोटिस नहीं किया और सफर का मजा लेने लगा, मुझे लगा माँ गॉव की देहाती है इन सब बातो से ज्यादा मतलब नहीं रखती है,.

हमको चलते-चलते 1.30घंटा हो गया था और बैठे बैठे सबके शरीर अकड़ने लगे थे, मेरी माँ भी रह रह के इधर उधर हो रही थी, माँ को बैठने में दिक्कत हो रही थी क्योंकि पीछे हम 4 लोग थे और ब्रेज़्ज़ा मे इतनी भी जगह नहीं होती है, ऊपर से माँ ने कसी हुई साड़ी पहन रखी थी, इसलिए ज्यादा दिक्कत हो रही थी,

"क्या भाभीजी जी दिक्कत हो रही है क्या बैठने मे " आगे से अब्दुल ने माँ बेचैन देख पूछा.

"हाँ माँ कोई तकलीफ है " मैंने भी अब्दुल की आवाज़ सुन माँ को देख पूछा.

"हाँ बेटा साड़ी भारी पहन ली मैंने भी, तो गर्मी और पसीना आ रहा है, अच्छे से बैठा नहीं जा रहा " माँ ने अपनी परेशानी बताई

"अभी तो देहरादून आने मे टाइम है, आप परेशान हो जाओगी " जवाब अब्दुल ने दिया

सभी की निगाहेँ माँ पर ही थी, वाकई माँ के गले से पसीना टपकता हुआ ब्लाउज तक आ गया था, जिसे आदिल बड़ी गैर से देख रहा था

f9b8e6aa979f011ff43e5a1cc83d394d मैंने भी देखा माँ के स्तन पूरी तरह पसीने से भीगे चमक रहे थे.

"तो माँ कोई हल्का कपड़ा पहन लो ना, कार रुकवा लेते है किसी होटल पर " मैंने कहा.

"अरे जाने तो बेटा, हम औरोतो को आदत होती है इन सब की, अब कहाँ बदलने बैठु कपडे " माँ ने बड़ी ही सहजता से कहाँ.

लेकिन मेरे मन मे एक गिलानी सी आ गई, औरतों को कितना सहन करना पड़ता है, हम लड़को का क्या है कहीं भी कुछ भी पहन लो.

"अरे आंटी हम से क्या शर्माना, अपने अमित जैसे ही है हम भी " आदिल ने माँ के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

आदिल के आग्रह मे जैसे जादू था " ठीक है बेटा तुम लोग कहते हो तो बदल लेती हूँ "

माँ और आदिल एक दूसरे को देख मुस्कुरा दिए.



"अब्दुल भाई कार कहीं होटल पे रोक लो "

"अमित भाई होटल तो बहुत दूर है अभी "

"कोई नी यार गाड़ी कहीं साइड लगा दे, आंटी जी अंदर ही चेंज कर लेगी हम लोग नीचे उतर जायँगे, क्यों आंटी जी?" मोहित ने कहा.

"मैं... मैं... ऐसे कैसे... " माँ थोड़ा घबरा गई इतने लड़को के सामने कैसे?

"कोई बात नहीं माँ, परेशान होने से अच्छा है कार मे चेंज कर लो"

"और क्या आंटी हम आपके बच्चे जैसे ही तो है" आगे से प्रवीण ने पीछे माँ को देखते हुए कहा.

माँ अब क्या कहती, कहने के लिए बचा ही क्या था.

"ठीक है रुका लो गाड़ी " माँ ने हामी भर दी थी.

शायद माँ ने यही वो गलती कर दी थी जो नहीं करनी चाहिए थी, मुझे भी इस बात का अहसास नहीं था की मैं इस गलती का भागीदार बन जाऊंगा.

अपने बहुमूल्य कमेंट जरूर दे.

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मेरी माँ रेशमा -2


5मिनट मे ही अब्दुल ने सुनसान जगह देख कार रोक दी, आस पास बिल्कुल सन्नाटा था, एक्का दुक्का गाड़िया निकल जा रही थी, सभी लोग कार से उतार गए.



"यार कमर ही टेढी हो गई मेरी तो " मोहित ने उतर के अपने बदन को खिंचते हुए कहा.



"हाँ यार मेरा भी बदन अकड़ गया " मैंने डिग्गी से माँ का बेग निकाल दिया.



"लो माँ आप चेंज कर लो, जब तक हम आते है " मैंने अपनी छोटी ऊँगली से माँ को पेशाब का इशारा कर दिया.



माँ ने गार्डन हिला के इशारा कर दिया सिर्फ.



हम चारो आगे झाड़ी मे निकल लिए, अब्दुल वही कार के बोनट के पास सिगरेट पीने लगा,



मैंने जाते जाते पीछे देखा माँ बेग से कुछ निकाल रही थी लेकिन तभी कार से हट के आगे की तरफ आ गई,



और अब्दुल से कुछ बात करने लगी, एक नजर माँ ने हमारी और भी देखा लेकिन हम अंघेरे मे थे जबकि माँ पर कार की हेड लाइट की डिम रौशनी पढ़ रही थी, माँ का गोरा जिस्म चमक रहा था.



ना जाने क्या बात ही रही थी, माँ ने छोटी ऊँगली उठा अब्दुल को दिखाई, अब्दुल ने सामने इशारा कर दिया, जहाँ हम मूतने गए थे उस से थोड़ा साइड मे.



अब माँ भी इंसान ही है, मैं भी फालतू सोचने लगा था, कोई पेशाब की बात करे तो आपको भी पेशाब आ ही जाती है.



मैंने अपने दिमाग़ को झटका दिया, और पैंट की चेन खोलने ही लगा थी की मेरे दिमाग़ ने झान्नाटा सा लिया, हलकी सरसराहत की आवाज़ ने मेरा ध्यान खिंचा, मैंने पीछे मुड़ कर देखा, अब्दुल वहाँ नहीं था.



कहा गया साला?



मेरे दिमाग़ मे हज़ार सवाल उमड़ पड़े, मुझे शक होने लगा.



मैं चुप चाप अँधेरे मे सबकी नजर बचा कर, साइड मे चलने लगा,



थोड़ी सी आगे जा कर रही झाड़ी मे माँ की परछाई सी दिखी.



माँ इधर उधर देख रही थी, फिर साड़ी को उठाने लगी,



छी मैं कैसा बेटा हूँ अपनी माँ को ऐसे देखने का पाप मैं कैसे कर सकता हूँ,



मैंने माँ पर से नजरें हटा ली, लेकिन तभी मेरी नजर माँ के पीछे खड़े अब्दुल पर जा पड़ी, मेरा खून खोल उठा,



साला मादर्चोद मेरी माँ को मूतते देखने पीछे पीछे चला आया हरामी. मेरा शक सही निकला,




मेरा मन किया अभी जा कर साले का सर फोड़ दू, लेकिन ना जाने क्यों मैं वही जमा रह गया मुझे कुछ कोतुहाल सा हो रहा था, दिल धाड़ धाड़ कर बज रहा था.



ना जाने क्यों मेरे जिस्म मे एक अजीब सी हलचल मच रही थी की कोई मेरी माँ को मूतते देखे, उसकी नंगी गांड देखे, मेरे मन मे पाप ने जगह बना ली थी.



मैंने माँ की और देखा माँ ने अपनी साड़ी घुटने तक उठा ली थी, कार की हलकी रौशनी यहाँ तक आ रही थी, गोरी चिकनी टांगे चमक उठी, साथ ही पीछे खड़े अब्दुल का हाथ हरकत करने लगा, उसके हाथ अपनी पैंट के आगे के भाग को रगड़ने लगे, मैं और अब्दुल सांस रोके आने वाले पल के इंतज़ार मे बैठे थे



माँ ने साड़ी और ऊपर की माँ की मोटी मोटी गोरी सुडोल जाँघे उजागर हो गई, मैं हैरान था माँ की जाँघे देख, मेरे पापा कितने लकी आदमी है,



अगले ही पल मेरी सांसे अटक गई, थूक गे मे ही अटक गया.



माँ ने साड़ी कमर तक उठा ली थी, और जल्दी से पैरो के बल उकडू बैठ गई.



माँ की बड़ी सुडोल गांड पुरे परवन पर अपनी चमक बिखेर रही थी, मैंने जनता तो था की माँ बड़ी गांड की मालकिन है लेकिन इतनी बड़ी और सुन्दर होंगी ये नहीं पता था, मैं तो साइड से ये नजारा देख के मरे जा रहा था.



मेरा ध्यान अब्दुल पे गया जो ठीक माँ के पीछे खड़ा था उसका क्या हाल हुआ होगा, अब्दुल का हाथ अपने लंड के उभार पर बुरी तरह कसा हुआ था.



वो जड़ हो गया था, उसके सामने माँ अपनी खूबसूरत गोल सुडोल गांड खोल के बैठी थी.

वो पक्का माँ की चुत और खूबसूरत गांड के दर्शन कर रहा था



ससससससस...... ससससस... ररररर... एक सिटी की आवाज़ ने सन्नाटे को चिर दिया..

इस आवाज़ ने मेरा धयान वापस माँ की एयर खिंच दिया, आधे मिनट तक मैं कभी अब्दुल को देखता तो कभी माँ को.



थोड़ी ही देर मे माँ ने थोड़ा सा उठ के गांड को झटका दिया, माँ की गांड थरथरा गई, इसके साथ ही मेरा दिल भी थरथरा गया.



माँ ने पेशाब की लास्ट बून्द को झाड़ दिया था वो तुरंत उठी और साड़ी नीचे कर ली, पलटी तो अब्दुल इधर उधर देखने लगा



"शुक्रिया अब्दुल जी, आप साथ आये अँधेरे मे डर लग रहा था "



"शुक्रिया कैसा भाभीजी आप हमारी मेहमान है "



मेरा दिमाग़ ठनक गया मतलब माँ ने खुद अब्दुल को साथ चलने के लिए कहा था,



मुझे भी तो कह सकती थी, शायद अपने बेटे से शर्मा रही हो.



मैं अपनी सोच मे डूबा था, माँ और अब्दुल कबके जा चुके थे.



मैंने भी जल्दी से पेशाब किया, और कार की ओर चल दिया.



"अबे कहा मर गया था " मुझे आता देख आदिल ने कहा.



"अरे जोर की लगी थी इसलिए टाइम लग गया "



सभी कार से दूर खड़े थे, माँ नहीं थी मतलब माँ अंदर चेंज कर रही थी,



आदिल की नजर बार बार कार की तरफ ही जा रही थी, मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था, फिर भी मैं चुप रहा कहीं कोई बखेड़ा ना खड़ा हो जाये, माँ भी बोलेगी कैसे दोस्त बनाये है तूने.



थोड़ी ही देर मे कार का दरवाजा खुला " अमित बेटा ले बेग वापस रख दे " माँ बाहर आ के खड़ी हो गई. जैसे ही माँ उतरी सब माँ को ही देखते रह गए, माँ के गाउन का कपड़ा बहुत हल्का था, माँ का जिस्म उसमे साफ झलक रहा था,
मुझे आश्चर्य हो रहा था की गॉव की मेरी घरेलू माँ बेहिचक ऐसे कपडे पहन सकती है, हालांकि गॉव मे भी कभी कभी पहनती थी, लेकिन तब मैं छोटा था, लेकिन यहां तो मेरे दोस्त मौजूद थे, शायद माँ थोड़ा सकूँचा भी रही थी बाहर सब के सामने आ कर, शायद माँ के पास यही एक गाउन था. >

मैं दौड़ के गया और बेग को डिग्गी मे डाल दिया,.



माँ ने गुलाबी कलर का गाउन पहन लिया था,



"अब कैसा लग रहा है आंटी " मोहित ने पूछा.



"बहुत बढ़िया, राहत महसूस हुई " माँ के गाउन का कपड़ा काफ़ी हल्का था, माँ के जिस्म का काटव साफ महसूस हो रह था.



मैं खुद माँ की खूबसूरती का दीवाना हुआ जा था था मेरे दोस्तों के तो कहने ही क्या वो तो बस माँ को देखे जा रहे थे,



हालांकि मैंने नोटिस किया माँ ने ब्रा भी नहीं पहनी है, माँ के स्तन चलने से ज्यादा हिल रहे थे, जबकि पैंटी तो माँ ने पहले से ही नहीं पहनी थी, माँ को पेशाब करते वक़्त देख ये बात समझ आ गई थी.



ना जाने क्यों माँ को देखने का मेरा नजरिया बदल था था, माँ की जगह मुझे सुडोल जवान खूबसूरत स्त्री नजर आ रही थी.



"अब तुम लोग चलोगे भी या यही रहने का इरादा है " माँ ने कहा



सभी कार मैं अपनी पुरानी पोजीशन मे बैठने लगे तभी प्रवीण भागता हुआ आया " यार मैं आगे नहीं बैठूंगा थोड़ी लग रही है मुझे "



तब तक पीछे की सीट पर माँ के बाजु आदिल बैठ गया था, और उसके बाजु मोहित बैठ चुका था, माँ खिड़की के पास आराम से बैठी थी, अब बचा मैं मरता क्या ना करता.



"ठीक है भोसड़ीके मैं बैठ जाता हूँ, तू पीछे बैठ " मैंने बुरा सा मुँह बना कर कहा



"हेहेहेहेहे...." प्रवीण हसता हुआ पीछे मोहित के पास जा बैठा.



कार चल पड़ी, मैं अब्दुल ड्राइवर के बाजु बैठा था.



साला बहुत खुश नजर आ रहा था, नॉएडा से निकले थे तो मुँह बिगाड़ रखा था साला अब देखो कितना ख़ुश है हरामखोर. साला अभी भी मिरर मे माँ को देख ले रहा था.



उसकी खुशी का कारण मैं जनता ही था.



खेर मैंने दिमाग़ को झटका दिया और उघने लगा.



1घंटे ही बीते होंगे की मुझे ठण्ड सी लगने लगी, मैंने कम्बल लेने के लिए सर पीछे घुमा कर देखा तो तो मैं हैरान रह गया,



माँ और आदिल ने एक ही कम्बल औड़ा हुआ था, और प्रवीण मोहित ने एक.



मैंने कुछ आवाज़ नहीं की और माँ को देखने लगा उनकी आंखे बंद थी, सर पीछे सीट पर लगा हुआ था, शायद माँ सो गई थी.



की तभी मेरी नजर आदिल के साइड वाली कम्बल पर पड़ी, उसके जाँघ के पास कम्बल कुछ उठी हुई थी और हिल भी रही थी.


मेरे सर पे एकदम से गुस्सा सावर हो गया, साला हरामी अपनी हरकतो से बाज नहीं आएगा, माँ के साइड मे ही लंड हिला रहा है अपना.



मेरे हलक से एक जोर की आवाज़ निकल गई आदिल.... साले...



मेरी आवाज़ से माँ और आदिल दोनों हड़बड़ा गए, मैंने दिखा कम्बल के नीचे से माँ का हाथ सरसराता हुआ निकला.



"कक्क... कक्क... क्या हुआ अमित " आदिल हड़बड़या



"कक्क.. क्या हुआ बेटा " माँ और आदिल के तोते उड़े हुए थे, एक पल को चेहरे सफ़ेद पढ़ गए थे.



मैं हैरान था, मुझे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था की जिसमे मैं आदिल का हाथ समझ रहा था असल मे वो मेरी माँ का हाथ था.. मतलब मेरी संस्कारी गॉव की घरेलु माँ मेरी मौजूदगी मे मेरे दोस्त का लंड हिला रही थी. tumblr-mttan8glrb1se163eo4-400



भरी शर्दी मे मुझे पसीना आ गया, यही हालात माँ और आदिल की भी थी.



"कक... कुछ नहीं माँ ठण्ड लग रही है, कम्बल चाहिए था " मेरे इस कथन से जैसे दोनों ने राहत की सांस ली हो लेकिन मेरे सीने मे अभी भी जवालामुखी फुट रहा था.



पहले वो पेशाब वाली घटना, और अब ये.



क्या वाकई मैं अभी तक अपनी माँ को नहीं जानता या ये सब मेरा वहम है एक गलतफहमी है.



मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था.



लेकिन माँ और आदिल की बोखलाहट कुछ और ही कहानी बताला रही थी, मुझे कन्फर्म करना था मैं गलत हूँ या सही.



"बेटा और कम्बल तो नहीं है, यही थी सिर्फ दो इसलिए साथ मे ओढ़ना पड़ रहा है " माँ ने बड़ी खूबसूरती से खुद को बचा लिया था, या वाकई वो सही बोल रही थी.



अंधेरा और मेरे वहम की वजह से मुझे ऐसा लगा,



"तो ठीक है आदिल तू अब आगे आ जा मैं पीछे बैठ जाता हूँ माँ के साथ "



"अबे नहीं अच्छा खासा गरम हुआ हूँ अभी, ज्यादा सर्दी लगेगी मुझे " आदिल ने मना मर दिया.



"ये लो ना अमित भाई मेरे पास extra शाल है " अब्दुल ने बीच मे हमारी बात काटते हुए मेरी ओर शाल बढ़ा दी.



"अब क्या बोलता, मरे हुए मन से मैंने शाल ले ली और ओढ़ के सीट पर सर टिका लिया.



मेरे जहन मे अभी भी यही सब चल रहा था, मुझे कन्फर्म करना था, ये अब्दुल साला शुरू से गड़बड़ कर दे रहा है हरामी, मन ही मन मैंने अब्दुल को खूब गाली दी.



मैं अगकी सीट पर इस कद्र करवट ले के बैठा था की पीछे देख सकूँ, चेहरे तक़ मैंने शाल डाल ली थी, और एक हल्का सा गेप बना लिया था मेरी नजर आदिल और माँ पर ही थी.



लेकिन करीबन आधे घंटे बीत गए थे दोनों ने कोई हरकत नहीं की, मैं खुद को कोस रहा था, साला मैं ही गन्दा आदमी हूँ, अपनी माँ के लिए इतना गन्दा कैसे सोच सकता हुआ.



मैं वापस सीधे बैठे के लिए हिलने ही वाला था की



"आअह्ह्ह.... आउच.... एक बेहद धीमी आवाज़ नेरे कानो से टकरा गई..



मेरे जिस्म मे हलचल सी हो गई, आंखे पीछे को जा टिकी माँ का सर पीछे सीट पर टिका हुआ था, माँ ने अपने होंठो को दांतो तले दबा रखा था, माँ जोर जोर से सांसेे ले रही थी,

इसका मतलब कहीं आदिल.... कहीं आदिल माँ के साथ कुछ... मैं सोच भी नहीं पा रहा था की ऐसा कुछ मेरी माँ कर सकती है,.



लेकिन... लल... लेकिन जो मैं देख रहा था उसे झूटाला पाना मुश्किल था,



मेरी माँ हलके हलके सिसक रही थी, उसे चिंता ही नहीं थी की इस कार मे उसका बेटा भी बैठा है .



मैंने देखा माँ ने एक हाथ से कम्बल उठा कर अपने चेहरे को ढँक लिया है, माँ का जिस्म हल्का हल्का हिल रहा था. जैसे कांप रहा हो.



कम्बल मे माँ और आदिल साफ साफ एक दूसरे से चिपके हुए महसूस ही रहे थे,



मेरा शक यकीन मे बदलता जा रहा था.



"कहीं... कहीं... आदिल माँ की चुत मे ऊँगली... नहीं नहीं मेरी माँ कभी ऐसा नहीं करने देगी... छी मैं भी क्या सोच रहा हूँ " मैं सामने देखते हुए भी खुद की सोच को धिक्कार रहा था, नेरा मन गवाही नहीं दे रहा था की ऐसा भी ही सकता है, मेरा माँ ऐसा भी कर सकती है.



मैंने पीछे देखना जारी रखा, माँ की साइड से कम्बल खींचने की वजह से थोड़ा हट गया था, माँ की गोरी मांसल जाँघ चमक रही थी, मतलब माँ का गाउन जांघो से ऊपर ही था.

अब मुझे पक्का यकीन होने लगा था आदिल माँ की चुत मे अपनी ऊँगली डुबो रहा है.

मुझे साफ नहीं दिख रहा था लेकिन मेरे दिमाग़ मे आकृतिया बनती जा रही थी, ना जाने क्यों मेरा लंड खड़ा होने लगा था.

तभी आदिल ने कम्बल से बाहर मुँह निकाल कर अब्दुल के कान मे कुछ फुसफुसाया.

मैं हैरान था साला ये चक्कर क्या है, अब्दुल को क्या बोल रह है.

मुझे ज्यादा सोचने की जरुरत नहीं पड़ी, अब्दुल ने फ़ौरन अपनी सीट थोड़ी आगे कर ली.

अब्दुल के पीछे माँ और आगे की सीट मे अच्छा खासा गेप दिखने लगा था, आदिल तुरंत उस गेप मैं जैसे तैसे माँ की जांघो पे झुकता हुआ बैठ गया, आदिल की हरकतो से मेरा दिल धाड़ धाड़ कर बज रहा था, लंड आगे की कल्पना से ही फटा जा रहा था.

मेरी संस्कारी माँ कोई आपत्ति नहीं थी वो तो बस मुँह तक़ कम्बल डाले पैर फैलाये बैठी थी,

इस उथल पुथल मे माँ की दोनों जाँघे कम्बल से बाहर आ गौ थी, जो की बाहर से आती रौशनी मे चमक उठती थी, मेरी माँ वाकई सुंदरता की मूरत थी, बेचारे आदिल जैसे जवान लड़के को बहक ही जाना था .

एक दम चिकिनी गोरी, सुडोल मोटी जांघो के बीच आदिल जा बैठा, उसकी सांसे कम्बल के ऊपर से माँ की चुत से टकरा रही थी, माँ की सांसे तेज़ चल रही थी शायद वो भी मेरी ही तरह आने वाले पल का इंतज़ार कर रही थी.

आदिल ने कम्बल को थोड़ा सा उठाते हुए अपने को ढक लिया...

इस्स्स्स..... आअह्ह्ह..... उउफ्फ्फ..... माँ की हलकी सी सिस्कारी कार मे गूंज गई, मैं शर्त के साथ कह सकता हूँ, जो भी कार मे जग रहा था सबने ये सिस्कारी सुनी होंगी,

मोहित प्रवीण सो गए थे, अब्दुल ने सिस्कारी सुन मिरर मे देख मुस्कुरा दिया,

मैं एक हाथ से लंड पकड़े आगे का नजारा देखे जा रहा था, मेरा दोस्त मेरी मौजूदगी मे मेरी माँ की चुत चाट रहा था, उसका रस पी रहा था.

मुझे अपनी माँ का चरित्र कुछ समझ नहीं आ रहा था ऐसी भी क्या मज़बूरी थी माँ की.

माँ की जाँघे पूरी तरह कम्बल से बाहर फैली हुई थी, सिर्फ जांघो के बीच मे आदिल का सर वाला हिस्सा ढका हुआ था जो की इधर उधर ऊपर नीचे हिल रहा था,

अब मुझे कोई शक नहीं रह गया था, माँ की सिस्कारिया, उसके कमाल मे गिरते उठते स्तन इस बात के गवाह थे की माँ को अपनी चुत चाटवाने मे मजा आ रहा है, 20230411-110733 .

शायद कम्बल के अंदर से माँ के हाथ आदिल के सर पर दबाव बना रहे थे, उसे उकसा रहे थे चाट सके और चाट अपने दोस्त की माँ की चुत को चाट, खा जा.

मैं खुद को कोष रहा था, समझ रहा था एक औरत का चरित्र.

आदिल को माँ की चुत चाटते 10 मिनट हो गए थे, लगता था साला माँ की चुत को पी पी कर सूखा ही देगा.

माँ की सिस्कारिया बढ़ती ही जा रही थी, आआहहहहह..... आउच..... उउउफ्फ्फ..... नहीं...

अचानक माँ जोर से चींख उठी.

शायद आदिल ने जोश मे आ कर माँ की चुत को काट लिया था.

मा के चिल्लाने से पीछे बैठे मोहित और प्रवीण भी हड़बड़ा के उठ गए,

"कक्क... कक्क... क्या हुआ आंटी?" मोहित ने आंखे मसलते हुए कहा.

मैं अभी भी वैसे ही बैठा था जैसे कुछ हुआ ही ना हो.

सामने का नजारा देख प्रवीण और मोहित हैरान थे, माँ की जाँघे पूरी नंगी फैली हुई थी, आदिल जांघो के बीच बैठा था.

माँ ने स्थति को देखते हुए तुरंत ही खुद को ढकना चाहा लेकिन इस कसमकस मे मुझे वो दिखा जिसे शायद ही कोई बेटा अपने जीवन काल मे देख पाता हो.

दो पल को माँ ने कम्बल पूरा उठा जाँघे समेट ली, और फिर से ढँक लिया.

दो पल ही सही मुझे अपनी माँ की चुत के दर्शन जरूर हो गए, एकदम चिकनी गोरी, बाल का एक तिनका भी नहीं था.

आदिल ने चाट चाट के पूरा गिला कर दिया था.

मैं हैरान था माँ गॉव की हो कर भी अपने जिस्म का कितना ख्याल रखती है, या फिर शादी मे जा रही है इसलिए साफ किया हो.

"और तू नीचे क्या कर रहा है ने आदिल " प्रवीण ने पूछा.

मोहित और प्रवीण सिर्फ माँ की चिकनी जाँघे ही देख सके रहे, उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था ऊपर से अभी अभी नींद से उठे थे सपना है या हक़ीक़त उनके समझ नहीं आ रहा था.

"अरे वो मोबइल गिर गया था तो उठा रहा था, लेकिन अँधेरे मे आंटी का पैर दब गया " आदिल ने साफ साफ खुद को बचा लिया था.

माँ के चेहरे पे भी सुकून था, जैसे बाल बाल बची हो.

"तो मुझे बोल देते बेटा मैं, उठा देती " माँ ने बड़े ही भोले पन से कहा..

मैं हैरान था मेरी माँ का रंग देख कर कितनी सफाई से खुद को बचा लिया था.



चरररर..... चीईई..... तभी अब्दुल ने कार रोक दी.

"चाय पी लेते है दोस्तों नींद सी आ रही है थोड़ी "

मैंने भी उठने का नाटक किया, और ऐसे रियेक्ट किया जैसे कब से सो रहा था.

"मेरे लिए अंदर ही ले आना चाय " माँ ने मुस्कुराते हुए आदिल से कहा.

हम पांचो उतर गए थे, माँ कार मे ही बैठी थी.

मैं अपनी सोच मे डूबा था, जो अभी तक़ देखा उस पर हैरान था, कैसे मेरी संस्कारी घरेलु माँ इस कदर कदम उठा सकती है,

एक मन कर रहा था आदिल को यही पिट दू, तो दूसरा मन कह रहा था माँ को सीधा जा कर बोल दू.

लेकिन मैं जानना चाहता था की माँ ने ऐसा किया क्यों? ऐसा क्या हुआ? औरत का चरित्र होता क्या है?

मेरी माँ बहक कैसे गई?

अपने बहुमूल्य कमेंट जरूर दे, अपने विचार जरूर शेयर करे, क्या कहानी मे कुछ सुझाव चाहते है आप?

ये कहानी आप ungrade वर्शन मे मेरे ब्लॉग पर पढ़ सकते है.

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मेरी माँ रेशमा -1



ये कहानी मेरी माँ और मेरे सफर की है, कैसे मेरी घरेलु संस्कारी माँ बहक गई थी एक सफर मे.

पाठक कहानी पढ़ते वक़्त विवेक से काम ले.



कहानी मेरी है यानि की मैं अमित एक छोटे से गांव का रहने वाला हूँ,

नौकरी पैसे ने गॉव कबका छुड़वा दिया था, मैं नॉएडा मे एक अच्छी कम्पनी मे नौकरी करता हुआ, पढ़ने लिखने मे होनहार था, एयर कुछ घर की जिम्मेदारियां जिस वजह से मैंने जल्द ही नौकरी पकड़ ली, मेरी age मात्र 22 साल है,

हम लोग उत्तरप्रदेश के एक छोटे से गांव के रहने वाले है जो की पूर्वांचल मे पड़ता है,

मेरे अलावा मेरे घर में पिताजी - रामशंकर शर्मा (50) मेरी माँ रेशमा जो की अभी 40 साल की ही है, पहले के समय मे शादी मे 10,15 साल का गेप होना आम बात थी,

वैसे मेरी माँ देखने मे बहुत सुन्दर है, जैसा नाम वैसा रूप, कमला कमल की तरह ही खूबसूरत और नाजुक थी.

संस्कारी घरेलु महिला कभी कहीं किसी को गलत नजर से नहीं देखा, पापा को सालो से दमे की बीमारी थी, उनकी सेवा सत्कार सब मेरी माँ के जिम्मे था किसे वो भली भांति निभाती भी थी.

गॉव मे अक्सर लोग मेरी माँ को घूरते थे, उसकी काया ही ऐसी थी लम्बी चौड़ी, गद्दाराया जिस्म, तने हुए, भारी स्तन, कमर पर बिल्कुल सटीक मांस.

नितांब सारी मे कसे हुए हिलते थे, थिरकते थे, इसी थिरकन को देखने के लिए पूरा गॉव मरता था

हालांकि मेरी नजर मैं माँ सिर्फ माँ ही थी, FB-IMG-1738910364973 मैं अक्सर शहर ही रहता था तो ज्यादा ध्यान भी नहीं देता था, गांव के लोग साले होते ही दकियानुसी ख्याल के होते है, मेरा ऐसा मानना था.

खेर मुझसे बड़ी एक बहन भी है जिसकी शादी मेरठ मे हो गई है.

मेरे पापा को दमे की बीमारी है, खेल खलिहन अक्सर मम्मी ही संभाला करती है, वैसे हमारे घर मे कोई कमी नहीं थी,

मैं ही पढ़ने शहर निकल गया था तो वापस गांव जा कर खेती बाड़ी करना मेरी शान के खिलाफ ही था.

खेतो मे मजदूर काम किया करते थे, मम्मी सिर्फ निर्देश दे दिया करती थी, पापा तो धूल मिट्टी देखते ही खासने लगते थे.

सो मैंने गॉव की मिट्टी से दूर रहता ही उचित समझा.

और पढ़ाई के बाद नौकरी भी पकड़ ली.

पूरा गांव मुझपे गर्व करता था, आखिर मैं ही था जो पढ़ लिख कर नौकरी कर रहा था शहर मे.

नॉएडा मे मैंने एक फ्लैट ले रखा था हिसाब मे कुछ मित्रो के साथ रहता था जो की मेरे साथ मेरी ही कम्पनी मे काम करते थे.

उम्र मे मैं ही सबसे छोटा था. अब नॉएडा जयश्री शहर मे अकेले फ्लैट लेना मेरे बस की बात तो नहीं थी.

तो ऐसे ही एक दिन मैं ऑफिस से शाम को घर लौटा, की मम्मी का फ़ोन बज उठा.

करररर.... करर....

हाँ मम्मी प्रणाम, कैसी है आप?" मैंने अभिवादान किया.

"ठीक हूँ बेटा, वो तेरे भाई नवीन की शादी है " मम्मी ने बताया

नवीन मेरे मामा का लड़का जो देहरादून मे रहते थे.



"अरे वाह मम्मी क्या बात कर रही हो, साले ने मुझे बताया भी नहीं "

मैं और नवीन भाई से ज्यादा दोस्त थे बचपन से ही तो मैं उसकी शादी मिस नहीं कर सकता था.

"कब है शादी?" मैंने उत्सुकता से पूछा.

"अगले सप्ताह ही है "

"आप पापा जा रहे है?" मैंने पूछा

"अरे तेरे पापा को तो खासने से ही फुर्सत नहीं है, वो कहाँ जा पाएंगे, सर्दी का मौसम है तबियत ख़राब हो जाएगी तो और दिक्कत हो जाएगी " माँ ने अपनी व्यथा कह सुनाई.

"तो फिर?" मैंने सर खुजाते हुए पूछा.

"तू आ जा ना गांव यही से चलते है " माँ ने सुझाव दिया

"मैं... मैं कैसे आ सकता हूँ माँ, नॉएडा से देहरादून पास ही है, आप आ जाओ यहाँ से हम दोनों साथ चल चलेंगे, मैं आऊंगा फिर वहाँ से जाऊंगा 2,4 दिन तो ऐसे ही निकल जायेंगे "

माँ कुछ सोचने लगी, उधर पापा से कुछ बात करने की आवाज़ आने लगी, जिसका आखरी शब्द था "ठीक है खो... खो... खाऊ..."

मैं समझ गया मम्मी पापा से बात कर रही थी.

"ठीक है बेटा मैं आ जाती हूँ, आज 5 नवंबर है, शादी 11 तारीख की है तो मैं काल रात की ट्रैन पकड़ लेती हूँ"

"वाह... मम्मी मजा आएगा आ जाओ" मैं बहुत खुश था मेरी माँ आने वाली थी, मैं माँ को करीबन एक साल बाद देखने वाला था, नयी नौकरी के चककर मे घर जा ही नहीं पाया था, सिर्फ फ़ोन पर बात हो जाया करती थी,

ज्यादा खुशी मामा के घर जाने की थी, मुझे बचपन से मामा का घर पसंद था.

वैसे भी मेरी नवीन से खूब पटती थी.

"क्या बे इतना क्यों दांत निपोर रहा है किसका फ़ोन था "

अचानक आई आवाज़ मे चौंक गया पीछे देखा आदिल खड़ा था.

मैं बताना भूल गया, जिस फ्लैट मे मैं रहता हूँ वहाँ मेरे साथ 2 दोस्त और भी रहते है,

आदिल, मोहित और प्रवीण, तीनो की age मुझसे बड़ी ही है करीबन 24, 26 साल के है.

"अरे कुछ नहीं यार माँ का फ़ोन था, मामा के लड़के की शादी है देहरादून मे उसी के लिए यहाँ आ रही है " मैंने ख़ुशी का कारण बताया.

तब एक प्रवीण और मोहित भी आ चुके थे कमरे मे.



"क्या.... क्या बे अकेला अकेला देहरादून जायेगा, वहाँ आस पास तो कितनी अच्छी जगह है घूमने की " मोहित ने कहाँ

"हाँ भाई मसूरी पास ही है, हरिद्वार है, गंगा है" प्रवीण चहक रहा था.

"प्लीज भाई हम भी चलते है ना, शादी के बहाने घूम आएंगे "

आदिल ने भी आग्रह कर दिया.

अब मैं कैसे मना करता, वैसे भी खरचा सिर्फ वहाँ जाने का था, रुकने मा इंतेज़ाम तो था ही शादी मे.

मैंने हामी मे सर हिला दिया, आखिर दोस्तों के साथ सेर सपाटा कौन मिस कर सकता था,

हम चारो मे वैसे भी कभी अच्छी पटती थी.

"कब चलना है? आंटी कब आ रही है?" आदिल ने पूछा.

"देख परसो सुबह मम्मी आ जाएगी, तो रात की ट्रैन देख लेते है " मैंने कहा

"ओके आज 5 तारीख है, परसो मतलब 7 की सुबह आंटी आ जाएगी, रात की ट्रैन... ओह... Shit.. यार ये तो एक भी ट्रैन मे टिकट नहीं है " मोहित irctc की वेबसाइट खोले बैठ था.

"अब?" सभी के मुँह से एक साथ निकला.

जबकि मेरे माथे पर परेशानी की लकीरें थी, क्यूंकि मैंने ही माँ को यहाँ आने का सुझाव दिया था,

"8 तारीख की देख ले ना बे " मैंने कहाँ

"अगले 10 दिन मे कहीं टिकट नहीं है यार, देख ही रहा हूँ, शादी का सीजन है सब फुल है " मोहित लैपटॉप मे आंखे गाढ़ाये बैठा था.

हम चारो सोच मे डूब गए थे

"एक आईडिया है, मैं एक कार का इंतेज़ाम कर सकता हुआ" आदिल ने चुटकी बजाते हुए कहा.

"क्या कार से, पागल है क्या इतनी दूर कार से " मैंने आंख भोहे चढ़ा ली.

"अबे सिर्फ 250km ही तो है, मामूली दुरी है, ऊपर से कार रहेगी तो मन मर्ज़ी से जा सकेंगे "

आदिल की बात सभी को हजम हो गई, रुक रुक भी गए तो 5,6 घंटे का सफर है सिर्फ.

हम लोग निश्चित थे, फैसला हो गया था की कार से जायेंगे, लेकिन मैंने माँ को नहीं बताया था, सोचा की आएंगी तो मज़बूरी बता दूंगा.

माँ कौनसा मना करने वाली है.

अगला दिन बीत गया, मम्मी से बात हुई उन्होंने रात की ट्रैन पकड़ ली थी, अगली सुबह 7 बजे मैं और आदिल स्टेशन पर मौजूद थे.

प्लेटफार्म no.5 पर पूर्वांचल एक्सप्रेस धीमी होती जा रही थी,

छरररर...... च्छीहिई..... ट्रैन रुक गई, मेरा दिल धाड़ धाड़ कर बज रहा था, मुझे माँ को देखने उनसे मिलने का उत्साह सा हो रहा था.

ट्रैन रुक गई थी, सामने s5 डब्बे से माँ उतर रही थी, शुद्ध घरेलु भारतीय नारी लाल साड़ी मे लिपटी, लाल लिपस्टिक से रंगे हुए होंठ, गोरी रंगत ली हुई मेरी माँ सामने ही खड़ी थी, ट्रैन रुकी तो माँ समान उठाने के लिए थोड़ा झुकी, माँ के स्तन लगभग पुरे ही बाहर को आ गिरे थे, मैं एकदम से सन्न रह गया,शायद आदिल की भी यही हालात रही होगी, 20211008-213656

मैंने भाग कर माँ के हाथ से बेग ले लिया.

"माँ प्रणाम " और पैरो को छू लिया मैं करीबन एक साल बाद माँ को देख रहा था.

मुझे बहुत आश्चर्य सा हो रहा था माँ को इतना सजा धाजा देख कर, या फिर यूँ कहु मैंने माँ को हमेशा घर के काम धाम, खेतो मे ही उलझा देखा था.

माँ का मैं जैसे कोई नया ही अवतार देख रहा था, माँ साड़ी मे लिपटी हुई थी लेकिन, जिस्म फिर भी अपनी छटा दिखा रहा था, मैंने आज से पहले माँ को कभी स्लीवलेस ब्लाउज मे नहीं देखा था,. लेकिन आज माँ डीपनैक, स्लीवलेस ब्लाउज पहने खड़ी थी, पल्लू भी सीने से हटा हुआ था

एक बार को तो मैंने अपना थूक निगल लिया था.

मैं हैरान था की गांव को औरत इस कद्र सुन्दर भी हो सकती है.

"उफ्फ्फ.... अमित... कैसा है तू " माँ ने मुझे अपने सीने से भींच लिया.

असीम शांति थी इस आलिंगन मे, एक ममता थी अपने बेटे के लिए.

"ठीक हूँ माँ " एक पल को मुझे अपनी सोच पर पछतावा हुआ.

माँ की नजरें मेरे पीछे खड़े आदिल पर गई.

"माँ ये मेरा दोस्त है, आदिल मेरे साथ ही रहता है "

मैंने आदिल की तरफ देखा, जिसकी आंखे माँ पर ही टिकी हुई थी वो अपनी जगह से हिल भी नहीं रहा था, जैसे लकवा मार गया हो.

"आदिल ये मेरी माँ है " मैंने आदिल के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

"ननन... नमस्ते आंटी जी "

माँ ने आदिल कर नमस्ते का कोई जवाब नहीं दिया, कारण मैं समझ गया था माँ की रूडीवाड़ी सोच, गांव का कल्चर. अभी भी धर्म जाती मे भेद करता था.

खेर मैं माँ का बेग ले के आगे चल पड़ा, माँ मेरे पीछे और आदिल माँ के पीछे जैसे किसी रस्सी से बंधा खींचता चला आ रहा था.

मैंने आदिल की हरकत मे कोई तावज्जो नहीं दी.

हम लोग फ्लैट पर आ गए थे, हमें आज रात ही निकलता था.

मोहित और प्रवीण से मैंने माँ का परिचय करवाया, माँ उनसे मिल कर ख़ुश हुई, बस आदिल से माँ का व्यवहार थोड़ा रुखा था.

मैंने महसूस किया प्रवीण और मोहित भी माँ को देखते ही रह गए थे, जैसे एक नजर मे माँ को भर लेना चाहते हो.

मैं खुद भी माँ को कुछ अलग सा महसूस कर रहा था,

सजी सवरी मेरी माँ को साड़ी ढकने से ज्यादा जिस्म दिखा रही थी,

कभी बेग उठाने, सैंडल खोलने को झुकती तो सभी की नजर माँ की तरफ ही जाती, मेरी भी नजर गई माँ के गहरे ब्लाउज से स्तन बहत गिर आने को आतुर दिख रहे थे.

लेकिन मेरी माँ के चेहरे पे कोई भाव नहीं था, वो सिर्फ मुस्कुरा के दूसरे कमरे मे चल दी.

आदिल कार का इंतेज़ाम करने चला गया था. माँ फ्रेश हो के आराम कर रही थी.

मैंने माँ को बता दिया था की कार से चलेंगे, माँ ने मज़बूरी समझते हुए हाँ कर दी थी.



ट्रिन... ट्रिन... कुछ ही समय मे मेरे फ़ोन की घंटी बज उठी

"हाँ आदिल बोल?"

"भाई कार का इंतेज़ाम तो नहीं हो पाया, वो कार वाला दोस्त बाहर गया हुआ है " आदिल ने जैसे बम फोड़ दिया हो.

"साले मदरचोद... अब क्या होगा, माँ को क्या बोलूंगा " मैं गुस्से से उखाड़ गया था क्यूंकि सारा आईडिया आदिल का ही था अब बोल रहा है कार का इंतेज़ाम नहीं हो सकता.



तभी प्रवीण बोला "मेरे पहचान का एक ड्राइवर है, उसके पास गाड़ी है, लेकिन वो खुद ही चलाता है कार रेंट पे नहीं देता "

मरता क्या ना करता " लगा फोर उसे " मैंने हामी भर दी

प्रवीण ने फ़ोन लगाया...

कुछ बात हुई.

"यार अमित ब्रेज़्ज़ा है उसके पास, कार मे स्पेस भी है, लेकिन कार वही चलाएगा, आना जाना 8000 मांग रहा है"

हम लोगो को यही सही लगा हमने बात फाइनल कर दी.

और आज रात 8 बजे कार लाने को बोल दिया.

हम सब लोग तैयार हो चुके थे, माँ भी लाल कलर की साड़ी पहने दिन से भी ज्यादा सुन्दर लग रही थी, प्रवीण और मोहित माँ के साथ हसीं मज़ाक कर रहे थे, जिसका जवाब माँ मुस्कुरा के ही दे रही थी.

करीबन 8.15 पर एक कार बिल्डिंग के बाहर आ कर रुकी.

"सलाम वालेकुम मियां " एक दाढ़ी वाले इंसान मे खिड़की से मुँह बाहर निकाल प्रवीण को सलाम किया.

सामने कार मे बैठा इंसान मुँह पे पान दबाये बैठा था, जिसका सबूत था की उसकी लार मुँह के कोने से टपक रही थी.

अब्दुल कादिर इस कार का मालिक था, देखने मे काफ़ी लम्बा चौड़ा था.



जेसे ही अब्दुल की नज़र मेरी मम्मी पे पड़ी उसकी तो मानो ख़ुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था, वो बुरी तरह मम्मी को ताड़े जा रहा था, मेरे लास खड़ी माँ मॉर्निंग उसने ऊपर से नीचे कई बार देखा, अब्दुल की उमर लगभाग 36 साल होगी

"माँ ये अब्दुल है " मैंने माँ से उसका परिचय कराया क्यूंकि अब्दुल से हम लोग पहले भी मिल चूके थे.

"नमस्ते आंटी जी " अब्दुल के लहजे मे एक अलग ही अंदाज था.

उसकी नजरें माँ के ब्लाउज से झाँकते स्तनों पर थी, शायद माँ के स्तन थे ही इतने कठोर और बड़े की ब्लाउज मे समाते ही ना थे,गॉव मे मैंने कभी इन सब बातो पे ध्यान दिया ही नहीं था या फिर मेरी उम्र ही नहीं थी तब ये सब देखने की.

लेकिन आज अब्दुल की नजर का पीछा किया तो मैं खुद हैतान था, माँ के स्तन वाकई मे बाहर गोरे और बड़े थे, जिसकी छाप ब्लाउज मे साफ जान पडती थी.


मम्मी ने भी हल्का मुस्कुरा कर, झुकते हुए नमस्ते किया और मेरा हाथ पकड़ कर मेरे कान में धीरे से बोली " ये मुल्ले की ही गाड़ी मिली थी तुमको"

"क्या मम्मी आप भी ना, भरोसे का आदमी है अब्दुल " मैंने मम्मी को दिलाशा दिया.

लेकिन मैं हैरान था माँ ने अपने पल्लू को बिल्कुल भी ठीक नहीं किया, ऊपर से झुकते हुए जमीन पर रखे बेग को उठाने लगी, 20231116-124459 जैसे की जो अब्दुल देखना चाह रहा था उसे दिखा रही हो. अब्दुल के चेहरे के भाव शून्य थे, गुटके से भरा मुँह खुला रह गया था, जैसे कोई भूत देख लिया हो

लेकिन माँ के चेहरे के भाव और कुछ कह रहे थे,

माँ मुझे देख बुरा सा मुँह बनाती कार मे पीछे की सीट पर जा बैठी, मैं माँ के साथ बैठे ही वाला था की एकदम से आदिल कूद के माँ के पास जा बैठा,

मुझे थोड़ा अजीब लगा लेकिन मैंने कोई रिएक्शन नहीं दिया और आदिल के बगल मे जा बैठा, मोहित दूसरी तरफ से माँ के बाजु मैं बैठ गया और प्रवीण आगे की सीट पर जा बैठा.

पीछे चार लोगो के बैठे की वजह से जगह तंग हो गई थी, सभी लोग एक दूसरे के साथ चिपके हुए थे.

हम सभी दोस्तों ने कम्फर्टेबले शॉर्ट्स पहने हुए थे, जो की तंग जगह पर आराम का अनुभव दे रहा था.

"तो फिर चले, भाभी जी बैठ गए ना अच्छे से, कुछ छूट तो नहीं गया?" अब्दुल ने कार के अंदर मिरार को सेट करते हुए कहा, जिसमे शायद मेरी माँ का गोरा खूबसूरत चेहरा दिखाई पढ़ रहा था.

"ना भैया चलो, देर क्यों करनी सब रख लिया है" माँ ने भी सामने कांच मे देखते हुए कहा, जहाँ अब्दुल और माँ की आंखे आपस मे मिल गई थी.

तुरंत ही कार स्टार्ट हुई और हम सडक पे दौड़ चले,

मोहित खिड़की से बाहर की और देख रहा था, जबकि मैंने गाने सुनने के लिए ईरफ़ोन लगा लिए थे,

तभी मेरी नजर आदिल पर गई, जिसकी नजरें कुछ खास देख रही थी, जैसे खुश टटोल रही हो.

मैंने देखा आदिल माँ के पास बैठा उनके सीने की तरफ मुँह झुकाये उनके बाहर निकले स्तन देख रहा था, जो की एक लकीर के रूप मे शुरू होती हुई ब्लाउज तक एक घाटी की शक्ल बना रही थी, गोरी उजली घाटी जो की लाल ब्लाउज मे एक अलग ही छटा बिखेर रही थी.

एकदम से मेरी नजर उस पर पड़ी तो मेरा टन बदन गुस्से जस सुलग उठा लेकिन फिर भी ना जाने क्यों मैं कुछ बोला नहीं,

मन तो कर रहा था अभी साले का टेटुआ दबा दू, लेकिन मेरी नजर भी ना चाहते हुए माँ के ब्लाउज मे कसे हुए स्तन पे चली जा रही थी, जो की कार की थिरकन के साथ ब्लाउज के बाहर थिराक रहे थे, मैंने आगे देखा तो अब्दुल ड्राइवर भी कांच मे वही नजारा देख रहा था जो आदिल और मैं देख रहे थे,

ना जाने मेरी माँ कहाँ खोई हुई थी, उसे तीन जवान लड़के घूर रहे थे उसे पता ही नहीं है, वो सामने देखे जा रही थी, पल्लू ब्लाउज से कबका सरका हुआ था,

इन सब के बीच मैं माँ को कैसे कहता की पल्लू ठीक कर लो.

मैं गुस्से और दुविधा के बीच फसा हुआ था, ऊपर से आदिल तो बिल्कुल ही माँ से चिपका हुआ था, मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था, क्या गाना चल रहा था मुझे पता ही नहीं, बस खून खोल रहा था जिस्म मे एक अजीब सी गर्मी उठ रही थी.



खैर मैंने इस बात को अब ज्यादा नोटिस नहीं किया और सफर का मजा लेने लगा, मुझे लगा माँ गॉव की देहाती है इन सब बातो से ज्यादा मतलब नहीं रखती है,.

हमको चलते-चलते 1.30घंटा हो गया था और बैठे बैठे सबके शरीर अकड़ने लगे थे, मेरी माँ भी रह रह के इधर उधर हो रही थी, माँ को बैठने में दिक्कत हो रही थी क्योंकि पीछे हम 4 लोग थे और ब्रेज़्ज़ा मे इतनी भी जगह नहीं होती है, ऊपर से माँ ने कसी हुई साड़ी पहन रखी थी, इसलिए ज्यादा दिक्कत हो रही थी,

"क्या भाभीजी जी दिक्कत हो रही है क्या बैठने मे " आगे से अब्दुल ने माँ बेचैन देख पूछा.

"हाँ माँ कोई तकलीफ है " मैंने भी अब्दुल की आवाज़ सुन माँ को देख पूछा.

"हाँ बेटा साड़ी भारी पहन ली मैंने भी, तो गर्मी और पसीना आ रहा है, अच्छे से बैठा नहीं जा रहा " माँ ने अपनी परेशानी बताई

"अभी तो देहरादून आने मे टाइम है, आप परेशान हो जाओगी " जवाब अब्दुल ने दिया

सभी की निगाहेँ माँ पर ही थी, वाकई माँ के गले से पसीना टपकता हुआ ब्लाउज तक आ गया था, जिसे आदिल बड़ी गैर से देख रहा था

f9b8e6aa979f011ff43e5a1cc83d394d मैंने भी देखा माँ के स्तन पूरी तरह पसीने से भीगे चमक रहे थे.

"तो माँ कोई हल्का कपड़ा पहन लो ना, कार रुकवा लेते है किसी होटल पर " मैंने कहा.

"अरे जाने तो बेटा, हम औरोतो को आदत होती है इन सब की, अब कहाँ बदलने बैठु कपडे " माँ ने बड़ी ही सहजता से कहाँ.

लेकिन मेरे मन मे एक गिलानी सी आ गई, औरतों को कितना सहन करना पड़ता है, हम लड़को का क्या है कहीं भी कुछ भी पहन लो.

"अरे आंटी हम से क्या शर्माना, अपने अमित जैसे ही है हम भी " आदिल ने माँ के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

आदिल के आग्रह मे जैसे जादू था " ठीक है बेटा तुम लोग कहते हो तो बदल लेती हूँ "

माँ और आदिल एक दूसरे को देख मुस्कुरा दिए.



"अब्दुल भाई कार कहीं होटल पे रोक लो "

"अमित भाई होटल तो बहुत दूर है अभी "

"कोई नी यार गाड़ी कहीं साइड लगा दे, आंटी जी अंदर ही चेंज कर लेगी हम लोग नीचे उतर जायँगे, क्यों आंटी जी?" मोहित ने कहा.

"मैं... मैं... ऐसे कैसे... " माँ थोड़ा घबरा गई इतने लड़को के सामने कैसे?

"कोई बात नहीं माँ, परेशान होने से अच्छा है कार मे चेंज कर लो"

"और क्या आंटी हम आपके बच्चे जैसे ही तो है" आगे से प्रवीण ने पीछे माँ को देखते हुए कहा.

माँ अब क्या कहती, कहने के लिए बचा ही क्या था.

"ठीक है रुका लो गाड़ी " माँ ने हामी भर दी थी.

शायद माँ ने यही वो गलती कर दी थी जो नहीं करनी चाहिए थी, मुझे भी इस बात का अहसास नहीं था की मैं इस गलती का भागीदार बन जाऊंगा.

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मेरी माँ रेशमा -2


5मिनट मे ही अब्दुल ने सुनसान जगह देख कार रोक दी, आस पास बिल्कुल सन्नाटा था, एक्का दुक्का गाड़िया निकल जा रही थी, सभी लोग कार से उतार गए.



"यार कमर ही टेढी हो गई मेरी तो " मोहित ने उतर के अपने बदन को खिंचते हुए कहा.



"हाँ यार मेरा भी बदन अकड़ गया " मैंने डिग्गी से माँ का बेग निकाल दिया.



"लो माँ आप चेंज कर लो, जब तक हम आते है " मैंने अपनी छोटी ऊँगली से माँ को पेशाब का इशारा कर दिया.



माँ ने गार्डन हिला के इशारा कर दिया सिर्फ.



हम चारो आगे झाड़ी मे निकल लिए, अब्दुल वही कार के बोनट के पास सिगरेट पीने लगा,



मैंने जाते जाते पीछे देखा माँ बेग से कुछ निकाल रही थी लेकिन तभी कार से हट के आगे की तरफ आ गई,



और अब्दुल से कुछ बात करने लगी, एक नजर माँ ने हमारी और भी देखा लेकिन हम अंघेरे मे थे जबकि माँ पर कार की हेड लाइट की डिम रौशनी पढ़ रही थी, माँ का गोरा जिस्म चमक रहा था.



ना जाने क्या बात ही रही थी, माँ ने छोटी ऊँगली उठा अब्दुल को दिखाई, अब्दुल ने सामने इशारा कर दिया, जहाँ हम मूतने गए थे उस से थोड़ा साइड मे.



अब माँ भी इंसान ही है, मैं भी फालतू सोचने लगा था, कोई पेशाब की बात करे तो आपको भी पेशाब आ ही जाती है.



मैंने अपने दिमाग़ को झटका दिया, और पैंट की चेन खोलने ही लगा थी की मेरे दिमाग़ ने झान्नाटा सा लिया, हलकी सरसराहत की आवाज़ ने मेरा ध्यान खिंचा, मैंने पीछे मुड़ कर देखा, अब्दुल वहाँ नहीं था.



कहा गया साला?



मेरे दिमाग़ मे हज़ार सवाल उमड़ पड़े, मुझे शक होने लगा.



मैं चुप चाप अँधेरे मे सबकी नजर बचा कर, साइड मे चलने लगा,



थोड़ी सी आगे जा कर रही झाड़ी मे माँ की परछाई सी दिखी.



माँ इधर उधर देख रही थी, फिर साड़ी को उठाने लगी,



छी मैं कैसा बेटा हूँ अपनी माँ को ऐसे देखने का पाप मैं कैसे कर सकता हूँ,



मैंने माँ पर से नजरें हटा ली, लेकिन तभी मेरी नजर माँ के पीछे खड़े अब्दुल पर जा पड़ी, मेरा खून खोल उठा,



साला मादर्चोद मेरी माँ को मूतते देखने पीछे पीछे चला आया हरामी. मेरा शक सही निकला,




मेरा मन किया अभी जा कर साले का सर फोड़ दू, लेकिन ना जाने क्यों मैं वही जमा रह गया मुझे कुछ कोतुहाल सा हो रहा था, दिल धाड़ धाड़ कर बज रहा था.



ना जाने क्यों मेरे जिस्म मे एक अजीब सी हलचल मच रही थी की कोई मेरी माँ को मूतते देखे, उसकी नंगी गांड देखे, मेरे मन मे पाप ने जगह बना ली थी.



मैंने माँ की और देखा माँ ने अपनी साड़ी घुटने तक उठा ली थी, कार की हलकी रौशनी यहाँ तक आ रही थी, गोरी चिकनी टांगे चमक उठी, साथ ही पीछे खड़े अब्दुल का हाथ हरकत करने लगा, उसके हाथ अपनी पैंट के आगे के भाग को रगड़ने लगे, मैं और अब्दुल सांस रोके आने वाले पल के इंतज़ार मे बैठे थे



माँ ने साड़ी और ऊपर की माँ की मोटी मोटी गोरी सुडोल जाँघे उजागर हो गई, मैं हैरान था माँ की जाँघे देख, मेरे पापा कितने लकी आदमी है,



अगले ही पल मेरी सांसे अटक गई, थूक गे मे ही अटक गया.



माँ ने साड़ी कमर तक उठा ली थी, और जल्दी से पैरो के बल उकडू बैठ गई.



माँ की बड़ी सुडोल गांड पुरे परवन पर अपनी चमक बिखेर रही थी, मैंने जनता तो था की माँ बड़ी गांड की मालकिन है लेकिन इतनी बड़ी और सुन्दर होंगी ये नहीं पता था, मैं तो साइड से ये नजारा देख के मरे जा रहा था.



मेरा ध्यान अब्दुल पे गया जो ठीक माँ के पीछे खड़ा था उसका क्या हाल हुआ होगा, अब्दुल का हाथ अपने लंड के उभार पर बुरी तरह कसा हुआ था.



वो जड़ हो गया था, उसके सामने माँ अपनी खूबसूरत गोल सुडोल गांड खोल के बैठी थी.

वो पक्का माँ की चुत और खूबसूरत गांड के दर्शन कर रहा था



ससससससस...... ससससस... ररररर... एक सिटी की आवाज़ ने सन्नाटे को चिर दिया..

इस आवाज़ ने मेरा धयान वापस माँ की एयर खिंच दिया, आधे मिनट तक मैं कभी अब्दुल को देखता तो कभी माँ को.



थोड़ी ही देर मे माँ ने थोड़ा सा उठ के गांड को झटका दिया, माँ की गांड थरथरा गई, इसके साथ ही मेरा दिल भी थरथरा गया.



माँ ने पेशाब की लास्ट बून्द को झाड़ दिया था वो तुरंत उठी और साड़ी नीचे कर ली, पलटी तो अब्दुल इधर उधर देखने लगा



"शुक्रिया अब्दुल जी, आप साथ आये अँधेरे मे डर लग रहा था "



"शुक्रिया कैसा भाभीजी आप हमारी मेहमान है "



मेरा दिमाग़ ठनक गया मतलब माँ ने खुद अब्दुल को साथ चलने के लिए कहा था,



मुझे भी तो कह सकती थी, शायद अपने बेटे से शर्मा रही हो.



मैं अपनी सोच मे डूबा था, माँ और अब्दुल कबके जा चुके थे.



मैंने भी जल्दी से पेशाब किया, और कार की ओर चल दिया.



"अबे कहा मर गया था " मुझे आता देख आदिल ने कहा.



"अरे जोर की लगी थी इसलिए टाइम लग गया "



सभी कार से दूर खड़े थे, माँ नहीं थी मतलब माँ अंदर चेंज कर रही थी,



आदिल की नजर बार बार कार की तरफ ही जा रही थी, मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था, फिर भी मैं चुप रहा कहीं कोई बखेड़ा ना खड़ा हो जाये, माँ भी बोलेगी कैसे दोस्त बनाये है तूने.



थोड़ी ही देर मे कार का दरवाजा खुला " अमित बेटा ले बेग वापस रख दे " माँ बाहर आ के खड़ी हो गई. जैसे ही माँ उतरी सब माँ को ही देखते रह गए, माँ के गाउन का कपड़ा बहुत हल्का था, माँ का जिस्म उसमे साफ झलक रहा था,
मुझे आश्चर्य हो रहा था की गॉव की मेरी घरेलू माँ बेहिचक ऐसे कपडे पहन सकती है, हालांकि गॉव मे भी कभी कभी पहनती थी, लेकिन तब मैं छोटा था, लेकिन यहां तो मेरे दोस्त मौजूद थे, शायद माँ थोड़ा सकूँचा भी रही थी बाहर सब के सामने आ कर, शायद माँ के पास यही एक गाउन था. >

मैं दौड़ के गया और बेग को डिग्गी मे डाल दिया,.



माँ ने गुलाबी कलर का गाउन पहन लिया था,



"अब कैसा लग रहा है आंटी " मोहित ने पूछा.



"बहुत बढ़िया, राहत महसूस हुई " माँ के गाउन का कपड़ा काफ़ी हल्का था, माँ के जिस्म का काटव साफ महसूस हो रह था.



मैं खुद माँ की खूबसूरती का दीवाना हुआ जा था था मेरे दोस्तों के तो कहने ही क्या वो तो बस माँ को देखे जा रहे थे,



हालांकि मैंने नोटिस किया माँ ने ब्रा भी नहीं पहनी है, माँ के स्तन चलने से ज्यादा हिल रहे थे, जबकि पैंटी तो माँ ने पहले से ही नहीं पहनी थी, माँ को पेशाब करते वक़्त देख ये बात समझ आ गई थी.



ना जाने क्यों माँ को देखने का मेरा नजरिया बदल था था, माँ की जगह मुझे सुडोल जवान खूबसूरत स्त्री नजर आ रही थी.



"अब तुम लोग चलोगे भी या यही रहने का इरादा है " माँ ने कहा



सभी कार मैं अपनी पुरानी पोजीशन मे बैठने लगे तभी प्रवीण भागता हुआ आया " यार मैं आगे नहीं बैठूंगा थोड़ी लग रही है मुझे "



तब तक पीछे की सीट पर माँ के बाजु आदिल बैठ गया था, और उसके बाजु मोहित बैठ चुका था, माँ खिड़की के पास आराम से बैठी थी, अब बचा मैं मरता क्या ना करता.



"ठीक है भोसड़ीके मैं बैठ जाता हूँ, तू पीछे बैठ " मैंने बुरा सा मुँह बना कर कहा



"हेहेहेहेहे...." प्रवीण हसता हुआ पीछे मोहित के पास जा बैठा.



कार चल पड़ी, मैं अब्दुल ड्राइवर के बाजु बैठा था.



साला बहुत खुश नजर आ रहा था, नॉएडा से निकले थे तो मुँह बिगाड़ रखा था साला अब देखो कितना ख़ुश है हरामखोर. साला अभी भी मिरर मे माँ को देख ले रहा था.



उसकी खुशी का कारण मैं जनता ही था.



खेर मैंने दिमाग़ को झटका दिया और उघने लगा.



1घंटे ही बीते होंगे की मुझे ठण्ड सी लगने लगी, मैंने कम्बल लेने के लिए सर पीछे घुमा कर देखा तो तो मैं हैरान रह गया,



माँ और आदिल ने एक ही कम्बल औड़ा हुआ था, और प्रवीण मोहित ने एक.



मैंने कुछ आवाज़ नहीं की और माँ को देखने लगा उनकी आंखे बंद थी, सर पीछे सीट पर लगा हुआ था, शायद माँ सो गई थी.



की तभी मेरी नजर आदिल के साइड वाली कम्बल पर पड़ी, उसके जाँघ के पास कम्बल कुछ उठी हुई थी और हिल भी रही थी.


मेरे सर पे एकदम से गुस्सा सावर हो गया, साला हरामी अपनी हरकतो से बाज नहीं आएगा, माँ के साइड मे ही लंड हिला रहा है अपना.



मेरे हलक से एक जोर की आवाज़ निकल गई आदिल.... साले...



मेरी आवाज़ से माँ और आदिल दोनों हड़बड़ा गए, मैंने दिखा कम्बल के नीचे से माँ का हाथ सरसराता हुआ निकला.



"कक्क... कक्क... क्या हुआ अमित " आदिल हड़बड़या



"कक्क.. क्या हुआ बेटा " माँ और आदिल के तोते उड़े हुए थे, एक पल को चेहरे सफ़ेद पढ़ गए थे.



मैं हैरान था, मुझे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था की जिसमे मैं आदिल का हाथ समझ रहा था असल मे वो मेरी माँ का हाथ था.. मतलब मेरी संस्कारी गॉव की घरेलु माँ मेरी मौजूदगी मे मेरे दोस्त का लंड हिला रही थी. tumblr-mttan8glrb1se163eo4-400



भरी शर्दी मे मुझे पसीना आ गया, यही हालात माँ और आदिल की भी थी.



"कक... कुछ नहीं माँ ठण्ड लग रही है, कम्बल चाहिए था " मेरे इस कथन से जैसे दोनों ने राहत की सांस ली हो लेकिन मेरे सीने मे अभी भी जवालामुखी फुट रहा था.



पहले वो पेशाब वाली घटना, और अब ये.



क्या वाकई मैं अभी तक अपनी माँ को नहीं जानता या ये सब मेरा वहम है एक गलतफहमी है.



मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था.



लेकिन माँ और आदिल की बोखलाहट कुछ और ही कहानी बताला रही थी, मुझे कन्फर्म करना था मैं गलत हूँ या सही.



"बेटा और कम्बल तो नहीं है, यही थी सिर्फ दो इसलिए साथ मे ओढ़ना पड़ रहा है " माँ ने बड़ी खूबसूरती से खुद को बचा लिया था, या वाकई वो सही बोल रही थी.



अंधेरा और मेरे वहम की वजह से मुझे ऐसा लगा,



"तो ठीक है आदिल तू अब आगे आ जा मैं पीछे बैठ जाता हूँ माँ के साथ "



"अबे नहीं अच्छा खासा गरम हुआ हूँ अभी, ज्यादा सर्दी लगेगी मुझे " आदिल ने मना मर दिया.



"ये लो ना अमित भाई मेरे पास extra शाल है " अब्दुल ने बीच मे हमारी बात काटते हुए मेरी ओर शाल बढ़ा दी.



"अब क्या बोलता, मरे हुए मन से मैंने शाल ले ली और ओढ़ के सीट पर सर टिका लिया.



मेरे जहन मे अभी भी यही सब चल रहा था, मुझे कन्फर्म करना था, ये अब्दुल साला शुरू से गड़बड़ कर दे रहा है हरामी, मन ही मन मैंने अब्दुल को खूब गाली दी.



मैं अगकी सीट पर इस कद्र करवट ले के बैठा था की पीछे देख सकूँ, चेहरे तक़ मैंने शाल डाल ली थी, और एक हल्का सा गेप बना लिया था मेरी नजर आदिल और माँ पर ही थी.



लेकिन करीबन आधे घंटे बीत गए थे दोनों ने कोई हरकत नहीं की, मैं खुद को कोस रहा था, साला मैं ही गन्दा आदमी हूँ, अपनी माँ के लिए इतना गन्दा कैसे सोच सकता हुआ.



मैं वापस सीधे बैठे के लिए हिलने ही वाला था की



"आअह्ह्ह.... आउच.... एक बेहद धीमी आवाज़ नेरे कानो से टकरा गई..



मेरे जिस्म मे हलचल सी हो गई, आंखे पीछे को जा टिकी माँ का सर पीछे सीट पर टिका हुआ था, माँ ने अपने होंठो को दांतो तले दबा रखा था, माँ जोर जोर से सांसेे ले रही थी,

इसका मतलब कहीं आदिल.... कहीं आदिल माँ के साथ कुछ... मैं सोच भी नहीं पा रहा था की ऐसा कुछ मेरी माँ कर सकती है,.



लेकिन... लल... लेकिन जो मैं देख रहा था उसे झूटाला पाना मुश्किल था,



मेरी माँ हलके हलके सिसक रही थी, उसे चिंता ही नहीं थी की इस कार मे उसका बेटा भी बैठा है .



मैंने देखा माँ ने एक हाथ से कम्बल उठा कर अपने चेहरे को ढँक लिया है, माँ का जिस्म हल्का हल्का हिल रहा था. जैसे कांप रहा हो.



कम्बल मे माँ और आदिल साफ साफ एक दूसरे से चिपके हुए महसूस ही रहे थे,



मेरा शक यकीन मे बदलता जा रहा था.



"कहीं... कहीं... आदिल माँ की चुत मे ऊँगली... नहीं नहीं मेरी माँ कभी ऐसा नहीं करने देगी... छी मैं भी क्या सोच रहा हूँ " मैं सामने देखते हुए भी खुद की सोच को धिक्कार रहा था, नेरा मन गवाही नहीं दे रहा था की ऐसा भी ही सकता है, मेरा माँ ऐसा भी कर सकती है.



मैंने पीछे देखना जारी रखा, माँ की साइड से कम्बल खींचने की वजह से थोड़ा हट गया था, माँ की गोरी मांसल जाँघ चमक रही थी, मतलब माँ का गाउन जांघो से ऊपर ही था.

अब मुझे पक्का यकीन होने लगा था आदिल माँ की चुत मे अपनी ऊँगली डुबो रहा है.

मुझे साफ नहीं दिख रहा था लेकिन मेरे दिमाग़ मे आकृतिया बनती जा रही थी, ना जाने क्यों मेरा लंड खड़ा होने लगा था.

तभी आदिल ने कम्बल से बाहर मुँह निकाल कर अब्दुल के कान मे कुछ फुसफुसाया.

मैं हैरान था साला ये चक्कर क्या है, अब्दुल को क्या बोल रह है.

मुझे ज्यादा सोचने की जरुरत नहीं पड़ी, अब्दुल ने फ़ौरन अपनी सीट थोड़ी आगे कर ली.

अब्दुल के पीछे माँ और आगे की सीट मे अच्छा खासा गेप दिखने लगा था, आदिल तुरंत उस गेप मैं जैसे तैसे माँ की जांघो पे झुकता हुआ बैठ गया, आदिल की हरकतो से मेरा दिल धाड़ धाड़ कर बज रहा था, लंड आगे की कल्पना से ही फटा जा रहा था.

मेरी संस्कारी माँ कोई आपत्ति नहीं थी वो तो बस मुँह तक़ कम्बल डाले पैर फैलाये बैठी थी,

इस उथल पुथल मे माँ की दोनों जाँघे कम्बल से बाहर आ गौ थी, जो की बाहर से आती रौशनी मे चमक उठती थी, मेरी माँ वाकई सुंदरता की मूरत थी, बेचारे आदिल जैसे जवान लड़के को बहक ही जाना था .

एक दम चिकिनी गोरी, सुडोल मोटी जांघो के बीच आदिल जा बैठा, उसकी सांसे कम्बल के ऊपर से माँ की चुत से टकरा रही थी, माँ की सांसे तेज़ चल रही थी शायद वो भी मेरी ही तरह आने वाले पल का इंतज़ार कर रही थी.

आदिल ने कम्बल को थोड़ा सा उठाते हुए अपने को ढक लिया...

इस्स्स्स..... आअह्ह्ह..... उउफ्फ्फ..... माँ की हलकी सी सिस्कारी कार मे गूंज गई, मैं शर्त के साथ कह सकता हूँ, जो भी कार मे जग रहा था सबने ये सिस्कारी सुनी होंगी,

मोहित प्रवीण सो गए थे, अब्दुल ने सिस्कारी सुन मिरर मे देख मुस्कुरा दिया,

मैं एक हाथ से लंड पकड़े आगे का नजारा देखे जा रहा था, मेरा दोस्त मेरी मौजूदगी मे मेरी माँ की चुत चाट रहा था, उसका रस पी रहा था.

मुझे अपनी माँ का चरित्र कुछ समझ नहीं आ रहा था ऐसी भी क्या मज़बूरी थी माँ की.

माँ की जाँघे पूरी तरह कम्बल से बाहर फैली हुई थी, सिर्फ जांघो के बीच मे आदिल का सर वाला हिस्सा ढका हुआ था जो की इधर उधर ऊपर नीचे हिल रहा था,

अब मुझे कोई शक नहीं रह गया था, माँ की सिस्कारिया, उसके कमाल मे गिरते उठते स्तन इस बात के गवाह थे की माँ को अपनी चुत चाटवाने मे मजा आ रहा है, 20230411-110733 .

शायद कम्बल के अंदर से माँ के हाथ आदिल के सर पर दबाव बना रहे थे, उसे उकसा रहे थे चाट सके और चाट अपने दोस्त की माँ की चुत को चाट, खा जा.

मैं खुद को कोष रहा था, समझ रहा था एक औरत का चरित्र.

आदिल को माँ की चुत चाटते 10 मिनट हो गए थे, लगता था साला माँ की चुत को पी पी कर सूखा ही देगा.

माँ की सिस्कारिया बढ़ती ही जा रही थी, आआहहहहह..... आउच..... उउउफ्फ्फ..... नहीं...

अचानक माँ जोर से चींख उठी.

शायद आदिल ने जोश मे आ कर माँ की चुत को काट लिया था.

मा के चिल्लाने से पीछे बैठे मोहित और प्रवीण भी हड़बड़ा के उठ गए,

"कक्क... कक्क... क्या हुआ आंटी?" मोहित ने आंखे मसलते हुए कहा.

मैं अभी भी वैसे ही बैठा था जैसे कुछ हुआ ही ना हो.

सामने का नजारा देख प्रवीण और मोहित हैरान थे, माँ की जाँघे पूरी नंगी फैली हुई थी, आदिल जांघो के बीच बैठा था.

माँ ने स्थति को देखते हुए तुरंत ही खुद को ढकना चाहा लेकिन इस कसमकस मे मुझे वो दिखा जिसे शायद ही कोई बेटा अपने जीवन काल मे देख पाता हो.

दो पल को माँ ने कम्बल पूरा उठा जाँघे समेट ली, और फिर से ढँक लिया.

दो पल ही सही मुझे अपनी माँ की चुत के दर्शन जरूर हो गए, एकदम चिकनी गोरी, बाल का एक तिनका भी नहीं था.

आदिल ने चाट चाट के पूरा गिला कर दिया था.

मैं हैरान था माँ गॉव की हो कर भी अपने जिस्म का कितना ख्याल रखती है, या फिर शादी मे जा रही है इसलिए साफ किया हो.

"और तू नीचे क्या कर रहा है ने आदिल " प्रवीण ने पूछा.

मोहित और प्रवीण सिर्फ माँ की चिकनी जाँघे ही देख सके रहे, उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था ऊपर से अभी अभी नींद से उठे थे सपना है या हक़ीक़त उनके समझ नहीं आ रहा था.

"अरे वो मोबइल गिर गया था तो उठा रहा था, लेकिन अँधेरे मे आंटी का पैर दब गया " आदिल ने साफ साफ खुद को बचा लिया था.

माँ के चेहरे पे भी सुकून था, जैसे बाल बाल बची हो.

"तो मुझे बोल देते बेटा मैं, उठा देती " माँ ने बड़े ही भोले पन से कहा..

मैं हैरान था मेरी माँ का रंग देख कर कितनी सफाई से खुद को बचा लिया था.



चरररर..... चीईई..... तभी अब्दुल ने कार रोक दी.

"चाय पी लेते है दोस्तों नींद सी आ रही है थोड़ी "

मैंने भी उठने का नाटक किया, और ऐसे रियेक्ट किया जैसे कब से सो रहा था.

"मेरे लिए अंदर ही ले आना चाय " माँ ने मुस्कुराते हुए आदिल से कहा.

हम पांचो उतर गए थे, माँ कार मे ही बैठी थी.

मैं अपनी सोच मे डूबा था, जो अभी तक़ देखा उस पर हैरान था, कैसे मेरी संस्कारी घरेलु माँ इस कदर कदम उठा सकती है,

एक मन कर रहा था आदिल को यही पिट दू, तो दूसरा मन कह रहा था माँ को सीधा जा कर बोल दू.

लेकिन मैं जानना चाहता था की माँ ने ऐसा किया क्यों? ऐसा क्या हुआ? औरत का चरित्र होता क्या है?

मेरी माँ बहक कैसे गई?

अपने बहुमूल्य कमेंट जरूर दे, अपने विचार जरूर शेयर करे, क्या कहानी मे कुछ सुझाव चाहते है आप?

ये कहानी आप ungrade वर्शन मे मेरे ब्लॉग पर पढ़ सकते है.

Contd....
Shuruaat bahut achhi hai
 
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Xforum पर लिमिटेड वर्शन ही होगा, क्यूंकि यहाँ भाषा की समस्या है.
 
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