बड़ी तेजी से अपने व्हीलचेयर को दौड़आते हुए मेरे जीजू बेडरूम से बाहर निकले और किचन में जाकर देखा मेरी दीदी चाय बना रही थी... ठाकुर साहब हॉल में सोफे पर बैठे हुए थे..
मैं सोया हुआ था.. झूठ मत ...
मेरे जीजू: अरे आप लोग सोए नहीं अभी तक?
ठाकुर साहब: मुझे नींद नहीं आ रही थी और चाय पीनी थी.. इसीलिए रूपाली को जगाया... चाय पीने के लिए..
मेरे जीजू: जी अच्छा....
मेरी रूपाली दीदी: आप सो जाइए... हम भी बस सोने ही वाले हैं चाय पीने के बाद...
मेरे जीजू को उन दोनों का व्यवहार कुछ अजीब लग रहा था... मेरी रूपाली दीदी ने भी अपनी साड़ी अपनी नाभि के बहुत नीचे बांध रखी थी.. ऐसा मेरे जीजू ने पहले कभी नहीं देखा था.. मेरी दीदी का व्यवहार भी कुछ बदला-बदला से लग रहा था उनको..
मेरी जूजू वही हाल में ही रहे.. वह मेरी दीदी और ठाकुर साहब से बातचीत करने के मूड में थे... ठाकुर साहब को मेरे जीजू की उपस्थिति बिल्कुल भी अच्छी नहीं लग रही थी..
मेरे जीजू: रूपाली... कल सोनिया के स्कूल में पेरेंट्स टीचर मीटिंग है ना.. तुम चली जाना..
मेरी रूपाली दीदी: हां चली जाऊंगी.. पर सोनिया पूछ रही थी कि पापा क्यों नहीं जा सकते... उसे बुरा लग रहा था..
मेरे जीजू: मैं कैसे जाऊंगा.. तुम तो देख ही रही हो मेरी हालत..
मेरे जीजा जी का सिर झुक गया था..
मेरी रूपाली दीदी: बेचारी .. सोनिया का तो बस एक ही सपना था कि उसके पापा उसको स्कूल छोड़ने जाए और फिर स्कूल से लेने आए.. पर अब क्या कर सकते हैं.. कुछ नहीं कर सकते..
मेरी दीदी की बातें सुनकर जीजा जी का मुंह लटक गया था.. पर ठाकुर साहब को यह एक सुनहरा अवसर लग रहा था..
ठाकुर साहब: अगर मैं सोनिया का पापा बनके उसके स्कूल जाऊं तो... उसको भी अच्छा लगेगा ना.. क्या बोलते हो तुम लोग..
मेरी दीदी हैरान थी ठाकुर साहब की बात सुनकर और उनकी तरफ बिल्कुल भी नहीं देख रही थी.. ठाकुर साहब मेरी बहन की तरफ भी देख रहे थे और कुटिल मुस्कान फेंक रहे थे.. मेरे जीजू तो बिल्कुल भी समझ नहीं पा रहे थे कि क्या जवाब दे ठाकुर साहब की बात का...
मेरी रूपाली दीदी: नहीं... मैं अकेली ही चली जाऊंगी..
ठाकुर साहब: क्या प्रॉब्लम है? आखिर सोनिया को भी तो अच्छा ही लगेगा.. बोलो विनोद...
मेरे जीजू: हां ठाकुर साहब ठीक कह रहे हैं रूपाली.. सोनिया को बहुत अच्छा लगेगा...
मेरी रूपाली दीदी: अरे आप क्या बोल रहे हो.. लोग क्या सोचेंगे हमारे बारे में..
मेरे जीजू: अरे लोगों की छोड़ो.. हमें अपने बच्चों के बारे में सोचना चाहिए... लोगों की बातों के बारे में नहीं..
ठाकुर साहब: बिल्कुल ठीक कह रहे हो विनोद... मैं और रूपाली कल सोनिया के स्कूल में उसके मम्मी पापा बनकर चले जाएंगे.. है ना रूपाली?
मेरी बहन ने कोई जवाब नहीं दिया तो ठाकुर साहब वहां से उठकर चले गए.. उनके चेहरे पर मायूसी थी....
मेरी रूपाली दीदी को एहसास हुआ कि शायद ठाकुर साहब नाराज हो कर चले गए हैं..
मेरी रूपाली दीदी ने बड़ी जल्दी से किचन का काम खत्म कर दिया.. उसके बाद जीजू को लेकर उनके बेडरूम में गई और उनको बेड पर सुलाने के बाद वह ठाकुर साहब के बेडरूम में गई.. मेरी बहन ने देखा ठाकुर साहब बेड के एक किनारे पर सोए हुए थे और सोनिया दूसरे किनारे पर लेटी हुई थी... बीच में खाली जगह थी.. दीदी समझ गई कि यह जगह किसके लिए है... मेरी रुपाली दीदी बीच में जाकर लेट गई.. ठाकुर साहब धीरे-धीरे उनके पास आने लगे.. ठाकुर साहब ने कंबल ले लिया दोनों के ऊपर.. दोनों अब बिल्कुल करीब आ चुके थे.
ठाकुर साहब: क्या प्रॉब्लम है तुम्हें अगर मैं सोनिया का पापा बन कर जाऊं तो?
मेरी रूपाली दीदी: लोग क्या सोचेंगे...
ठाकुर साहब: लोगों को क्या पता रूपाली.. मैं सोनिया का बाप हूं या तुम्हारा पति विनोद.. उनको कैसे पता चलेगा?
मेरी रूपाली दीदी: आपको तो कल सुबह जल्दी जाना है.. सुबह 6:00 बजे...
ठाकुर साहब: अगर सोनिया की खुशी के लिए थोड़ा लेट भी हो जाऊंगा तो क्या प्रॉब्लम है..
ठाकुर साहब की बात सुनकर मेरी बहन पिघल गई और उनकी बाहों में समा गई.. ठाकुर साहब मेरी बहन के साथ लिपट गए थे.. ठाकुर साहब ने मेरी बहन के पेट पर हाथ रख दिया और उनकी नाभि को ढूंढ निकाला अपनी उंगलियों से.. उन्होंने मेरी बहन के पेटीकोट का नाड़ा नाड़ा ढीला किया और नीचे खिसका दिया... अपने बीच वाली उंगली वह मेरी बहन की नाभि में गोल गोल घुमाने लगे.. मेरी रूपाली दीदी तड़पने लगी और उनके पास आ गई.. एक कामुक सिसकारी उनके मुंह से निकली...
ऊह्ह… अह्ह… मम्मी... रूपाली दीदी करने लगी थी..
ठाकुर साहब ने एक बार फिर मेरी रूपाली दीदी को पलंग पर ही पछाड़ दिया था और उनके ऊपर आकर मेरी बहन को पेलने की पूरी तैयारी कर चुके थे.. एक बार फिर.. साड़ी उठाके...
अचानक सोनिया जाग गई और रोने लगी.... मम्मी मम्मी करने लगी.. दोनों एक दूसरे से अलग हो गए... मेरे रूपाली दीदी ने सोनिया को अपनी बाहों में ले लिया और थपकी देते हुए उसको सुलाने की कोशिश करने लगी... ठाकुर साहब बगल में लेटे हुए देख रहे थे.. अब और कुछ भी कर पाना बहुत मुश्किल था.. वैसे भी आज ठाकुर साहब ने मेरी रुपाली दीदी के साथ मिलकर खूब जम के मजा लिया था..
मेरी रूपाली दीदी उनकी फेंटेसी थी उनकी सपनों की सौदागर थी ..उनके सपनों की अप्सरा थी ..उनके ख्वाबों की मलिका थी ... और आज की रात ठाकुर साहब दो बार चोद चुके थे मेरी बहन को.. वह सो गया.
मेरी रुपाली दीदी भी सो गई.. और मैं भी सो गया बाहर हॉल में..
आज की तूफानी रात गुजर चुकी थी..