एक दिन सुबह उठकर मैने अख़बार लेने के लिए दरवाज़ा खोला, तो शिखा अपने फ्लॅट की चौखट पर रंगोली बना रही थी अपने बालों को तौलिए में लपेटे और पतला झीना गाऊन पहने वह कोई मराठी गाना गुनगुना रही थी.
उसकी मीठी आवाज़ शहद की तरह मेरे कानों में घुल रही थी, और मैं वहीं खड़ा रह कर उसकी नशीली खूबसूरती को अपनी आँखों से पी रहा था.
गालों पे घिर आई बालों की पतली लट को उसने अपने हाथों से हटाने की कोशिश की, मेरी नज़रें उसके उरूजों पर टिक गयीं, झीने गऊन में उसके उरूजों में उभार आया था,
मैं पेपर उठाने नीचे झुका तो उसकी नज़र मुझ पर पड़ी, उसने बालों की लट को हटाने की कोशिश की तो रंगोली का सफेद रंग उसकी आँख में चला गया|
“उफ़” उसने अपनी आखों को मींचते हुए आवाज़ निकाली और कराहने लगी, रंगोली के रंग उसकी आखों में चुभ रहा था|
अब या तो यह हुस्न का जादू था, या मेरे दिल में उसके लिए हमदर्दी चाहे जो कह लें मुझे उसका यूँ दर्द से कराहना सहा नहीं गया और मैं पेपर छोड़ कर उसे उठाने गया| पहली बार उसे इतने करीब से देख रहा था मैने अपने हाथों से उसे हौले से उठाया,
वह अभी भी कराह रही थी
“आखें खोलिए” मैने कहा
“न...नहीं जलता है...”
“मुझे देखने दो...”
“न...नहीं”
“प्लीज़ मिसेज़ राजन”
उसने आँखें खोलीं अपने आप को मेरी बाहों में देख कर वह घबराई टुकूर टुकूर इधर उधर देखने लगी, उसके हाथ में पकड़ी रंगोली का रंग मुझ पर उडेल दिया
“घबराईए नहीं मैं आपकी आँखों में फूँक मारता हूँ, ठंडक लगेगी”
“न...नहीं आप जाइए में देख लूँगी” वह गिड गिडाआई”
मैने उसको अपनी बाहों को कस कर पकड़ लिया, मुझे उसका जिस्म अपनी बाहों के बीच महसूस जो करना था सो यह मौका हाथ से कैसे जाने देता.
उसने आखें खोली और मैने फूँक मारी
“आहह...” उसने मानों चैन की सांस ली
“वाट्स हॅपनिंग देयर?” मैने राजन की आवाज़ सुनी
शिखा एक झटके से मुझसे अलग हट कर एक कोने में खड़ी हो गयी, मैं भी बिजली की तेज़ी अपना पेपर पकड़े फ्लॅट में लपका.
राजन बाहर आया और शिखा से कहा”आर यू ओके? शिखा क्या हुआ?”
“अँ?” शिखा से उसकी ओर देखा”क...क...कु.कुछ न नहीं... कुछ भी तो नहीं” उसने हकलाते हुए कहा और हंस दी
“क्या बिनडोक पना है” राजन झुंझलाते हुए बोला
मैं पेपर की आड़ से उनको देख रहा था और राजन को देखा मेरी हँसी छूट गयी राजन बदहवासी में लुँगी लपेटे आया था, और इसके अलावा उसने कुछ पहना नही था उसको इस हालत में देख कर मैं अपनी हँसी नहीं रोक पाया,
उसकी बीवी शिखा भी मुँह छुपा कर हँसने लगी
मुझे देख कर वह उसी हालत में मेरे घर आया”ओह... मिसटर? सॉरी फॉर डॅट डे... लेट मी इंट्रोड्यूस माइसेल्फ आई एम राजन बेंद्रे असोसिएट वाइज़ प्रेसीडेंट, बॅंक ऑफ...” उसने मुस्कुराते कहा
मैने उसकी बात काटते हुए कहा”नाईस मीटिंग योउ मिस्टर बेंद्रे आई एम अमन मलिक” और शेक हॅंड के लिए हाथ बढ़ाया
उसने भी हंसते हुए हाथ तो बढ़ाया पर फिर उसे अहसास हुआ की उसी लुँगी सरकने लगी है... वह कभी एक हाथ से अपनी लुँगी पकड़ता कभी दोनो हाथों से मशक्कत करता
उसे यूँ अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए उट पटांग हरकतें करते देख बड़ा मज़ा आ रहा था उसकी हालत वाकई बड़ी शर्मनाक थी, किसी भी पल उसकी लुँगी खिसकती.
“एक्सक्यूस मी, मिस्टर मलिक, आई विल सी यू लेटर, यू नो ई हॅव टू अटेंड एन इंपॉर्टेंट बिज़्नेस राइट नाउ, होप यू वॉन'त माइंड” बेंद्रे अपनी लूँगी संभालते बोला
“टेक इट ईज़ी मिसटर बेंद्रे” मैने मुस्कुरा कर कहा
“शिखा...? शिखा?” वह अपने घर के अंदर घुसते हुए अपनी बीवी के नाम से चिल्लाए जा रहा था”चाय अब तक क्यों नहीं बनी अब तक?”
अब जाहिर था सुबह सुबह हुई अपनी इस दुर्गति का गुस्सा उसे बेचारी शिखा पर निकालने था.
“पूरा पागल है यह बेंद्रे” मैने का”हरामी, चूतिया साला”
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