अध्याय ६
“तो इसका मतलब यह हुआ कि लाल बाबा के बेटे लाडला का यह जिंदगी का पहला एहसास था... और जिंदगी में पहली बार उसका सड़का (वीर्य) फुटकर निकला था?” मेरी सासू मां आलता देवी ने मुझसे सवाल किया|
मैंने कहा “हां”
बातों ही बातों में मैं न जाने कब मैं अपनी सासू मा आलता देवी की गोद में सर रखकर अपने वतन को बिल्कुल ठीक ना छोड़ कर लेट गई थी; इस बात का मुझे ध्यान ही नहीं| उन्होंने मेरे खुले बालों में प्यार से उंगलियां चलाते हुए पूछा, “तेरी बातें सुनकर तो ऐसा लगता है कि तू ने जबरदस्ती ही उसको अपनी जिंदगी का सबसे हसीन एहसास दिलाया...”
“जी हां आपने बिल्कुल ठीक कहा”
“मुझे तो ऐसा लग रहा है कि जैसे पहली बार किसी कुंवारी लड़की के साथ जिंदगी में पहली बार सुहागरात मनाया जाता है... और उसका कुंवारी पना फाड़ दिया जाता है”
“ही ही ही ही” मैं हंस पड़ी, “आपका कहना लगभग सही है ,सासु मैया”
“लेकिन जहां तक मैं जानती हूं पुराने जमाने की बड़ी बूढ़ी औरतें हैं यह कहा करती है कि जैसे किसी कुंवारी लड़की को पहली बार भोगना किसी आदमी के लिए किस्मत की बात है ठीक वैसे ही किसी लड़की के लिए एक कुंवारे लड़के के साथ सोना उतना ही अहम है... खासकर ऐसे किसी आदमी या फिर लड़के का निकला हुए माल (वीर्य) को कुबूल करना... तो तूने क्या किया? क्या तूने सिर्फ ऐसे ही अपना हाथ पोंछ लिया?”
“हां हां हां, मैं पुराने जमाने की बड़ी-बड़ी औरतों की यह सब बातों को अच्छी तरह से जानती हूं, सासु मैया| इसलिए जब लाल बाबा का बेटा लाडला अपनी आंखें मूंद कर हाफ रहा था तब मैंने उसकी नजरें बचाकर अपने हाथ में लगा हुआ उसका सड़का (वीर्य) चाट चाट के चूसा और फिर मैं उसे निगल गई...”
“चलो अच्छा हुआ, यह तो तूने बहुत अच्छा किया... लाडला का गिरा हुआ पहला सड़का तू अगर अपनी योनि में ना ले सकी तो तू उसे पी गई... अच्छा हुआ कि तूने उसे यूं ही बर्बाद ना जाने दिया... लेकिन तू यह पुराने जमाने की औरतों वाली बातें कब से जानती है?”
“यह तुम्हें ठीक से नहीं कह सकती लेकिन इतना तो मुझे याद है जब तक मेरी नदियां का बांध टूटा (मेरा मासिक शुरू हुआ)... तब मेरी उम्र क्या रही होगी 12 या 13 साल की होंगी मैं... मैं तब तक सब कुछ जान चुकी थी... यहां तक की आदमी और औरत के बीच संबंध के बारे में भी”
मेरा जवाब सुनकर मेरी सासू मां आलता देवी फिर से हंस पड़ी और उन्होंने कहा, “ तब तो तेरे कुटुंब और अड़ौसी पड़ोसियों का क कहना बिल्कुल ठीक था कि तुम बहुत कच्ची उम्र में ही शरीर और मन से जल्दी ही पक गई थी यानी कि उम्र के हिसाब से जल्दी ही तेरे अंदर जवानी आ गई थी.. हा हा हा”
“ही ही ही ही ही ही”
"अच्छा उसके बाद क्या हुआ" मेरी सासू मा आलता देवी ने लाल बाबा के बेटे लाडला के बारे में पूछा|
मैंने फिर से बोलना शुरू किया-
लाल बाबा के बेटे लाडला के लिए यह एक बहुत ही हसीन और मदहोश कर देने वाला एहसास था वह काफी देर से ऐसे बिस्तर पर पड़ा रहा मानव हो नशे में हो और शायद उसे ऐसा लग रहा था कि उसने अपनी जिंदगी का एक बहुत ही अहम मुकाम हासिल कर दिया है और अब शायद उसे जिंदगी में कुछ और करने की कोई जरूरत भी नहीं है...
लेकिन अपने मालिक लाल बाबा के हुकुम के मुताबिक मेरी यह जिम्मेदारी बनती थी कि मैं उसको पूरी तरह से शारीरिक संपर्क के बारे में तजुर्बे दार बना दूं और यह उसके लिए उसकी जिंदगी की एक नई सीढ़ी बन जाएगी...
इसलिए मैंने उसको उसका आने के लिए दोबारा अपनी कोशिश शुरू कर दी... और मैं उसे प्यार से दुलारने और पुचकारने लगी|
मैं उसको चूमने लगी... उसके होठों पर, पलकों पर, गर्दन पर छाती में और फिर उसकी नाभि की छेद में अपनी जीभ डाल कर उसे उस गाने की कोशिश करने लगी...
कुछ देर बाद मुझे लगने लगा कि वह धीरे-धीरे गरम हो रहा है और उसका लिंग भी धीरे बड़ा हो रहा है| यह देखकर मैंने और देर नहीं की... और मैंने उसकी दोनों टांगों को फैला कर उसके अंडकोष को चाटने लगी...
लाडला को यह सब बहुत अच्छा लग रहा था और उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें लेकिन अनजाने में ही है वह भी मेरे बालों में अपनी उंगली घुसा कर धीरे-धीरे सहलाने लगा... और आप तो अच्छी तरीके से जानती है सासू मैया कि वह लोग जात और धर्म में परे मलेछ (दूसरे धर्म के) है और उनके अंगों के सिरों की चमड़ी का टांका छिला हुआ रहता है...
इसलिए जितना तक हो सके मैंने उसके लिंग की चमड़ी को नीचे की तरफ खींच दिया और और उसका गुलाबी गुलाबी कुंवारा लिंग दिखने में न जाने क्यों मुझे बहुत अच्छा लग रहा था... और मेरा जी ललचाया और मैं उसको चाटने लगी... धीरे धीरे लाडला के अंदर कामना का सैलाब उमड़ने लगा… मैं उस वक्त पूरा जी जान लगाकर उसके लिंग को अपने मुंह के अंदर डाल कर दबा दबा कर चूस रही थी...
"हां यह तूने अच्छा किया.." सासू मां आलता देवी ने कहा, " ऐसा करने से अनजाने में ही लाडला की समझ में यह आ जाएगा की लड़कियों की पुद्दी में अपना लंड घुसाने से लड़कों को कैसा एहसास होता है..."
" हां, सासु मैया... मेरे ख्याल से लाडला को भी जरूर ऐसा ही लग रहा होगा... "
"फिर क्या हुआ?"
मैंने गौर किया कि लाडला का लंड अब काफी सख्त और खड़ा हो चुका था... मैंने सोचा कि अब वक्त आ गया है इसलिए मैं भी उसके बगल में लेट गई और फिर मैंने उससे कहा, "मेरी जानेमन लाडला, क्या तू अपनी है मैली दिद्दी (दीदी) की फुद्दी (योनि) में अपना खंबा नहीं गढ़ेगा?"
गहरी और लंबी सांसों के बीच बड़े ही भोलेपन से लाडला ने पूछा, " खंबा करने का मतलब क्या है, मैली दिद्दी (दीदी)?"
"धत तेरी की..."
मेरे मुंह से निकलने वाला था, ' धत्त तेरी की पागल कहीं का'... लेकिन मैंने अपने आप को रोक लिया... क्योंकि मैं जाती थी 'पागल' शब्द सुनकर लाडला को बहुत गुस्सा आता है और इस वक्त मैं उससे नाराज नहीं करना चाहती थी|
आखिरकार मेरे मालिक लाल बाबा ने मुझे एक हुक्म दिया था और उसकी तामील करना मेरी जिम्मेदारी थी, इसलिए मैंने अपने आपको एंड मौके पर किसी तरह संभाल कर उसे समझाया, "अरे मेरी भोली जानेमन लाडला, देख देख देख तेरा नन्नू ऐसे खड़ा होकर एकदम खंभे जैसा लंड बन गया है... अब तुझे इसे मेरी फुद्दी (योनि) में घुसा कर मेरे ऊपर लेट जाना है... और उसके बाद जैसा कि तूने देखा था कि तेरे अब्बू किस तरह से मेरे ऊपर लेट कर अपनी कमर को ऊपर-नीचे... ऊपर-नीचे... ऊपर-नीचे... कर रहे थे और मजे ले रहे थे तुझे वैसा ही करना है... और तुझे ऐसा तब तक करने देना है जब तक की तेरी लंड से सड़का नहीं फूट पड़ता... तूने देखा था थोड़ी देर पहले ही तुझे एकदम से कितनी खुशी और एक बहुत ही हसीन एहसास हुआ था? वैसा ही तेरे साथ दोबारा होगा... इसी को कहते हैं फुद्दी (योनि) में अपना खंबा गाढ़ना..."
यह कहकर लेटे लेटे ही मैंने अपनी दोनों टांगे फैला दी|
"अरे हां... अच्छा अच्छा अच्छा" यह बोलकर लाडला झटपट उठ बैठा और उसके बाद मेरे यो नाम को देखते हुए बोला, "लेकिन मैली दिद्दी (दीदी), तुम्हारी फुद्दी (योनि) तो एकदम सपाट बंद है... अपने मुंह की तरह इसे भी खोलो ना? तभी तो मैं अपना नन्नू इसके अंदर डाल पाऊंगा"
मैंने मन ही मन सोचा इस बंदे को कुछ भी नहीं आता... इसे तो यह भी नहीं मालूम कि औरतों की फुद्दी (योनि) को मुंह तरह खोला नहीं जाता|
लेकिन मैंने वक्त जायर नहीं किया और मैंने कहा, "हां हां जरूर... यह ले.." यह कह कर मैंने अपनीउंगलियों से अपने यूनान के दोनों लबों को थोड़ा फैला दिया, "और हां, देख रहा है ना तेरा नन्नू कैसे खड़ा होकर सख्त होकर एकदम खंभे जैसा लंड बन गया है? इसलिए तू अपने नुन्नू को लंड ही बोलेगा..."
" हां... हां... हां... ठीक है... ठीक है... ठीक है..." लाडला बड़े ही जोश में आकर मेरी योनि में धीरे धीरे अपना लिंग घुसाने लगा...
"अरे बाप रे... मुझे बड़ा अजीब सा लग रहा है... मैली दिद्दी (दीदी), थोड़ा थोड़ा दर्द भी हो रहा है"
"एकदम रुकना नहीं मेरी जानेमन लाडला... तेरे से जितना हो सके अपने खंभे को उतना ही अंदर डाल... अगर जरूरत पड़े, तो जोर लगाकर ही सही है और उसके बाद तो मेरे ऊपर लेट जा"
लाडला ने बिल्कुल एक आज्ञाकारी लड़के की तरह जैसा जैसा मैंने कहा बिल्कुल वैसा ही किया और उसके बाद वह मेरे ऊपर लेट गया|
मैंने उसको अपनी आगोश में ले लिया और मैं जानती थी कि अनजाने में ही उसके ज़हन में भी की यौन भावनाएं धड़कने लगी थी... इसलिए बिना कहे ही वह भी मुझसे लिपटकर मुझे प्यार से सहलाने और दुलारने लगा और फिर अपने आप ही अपनी कमर को ऊपर-नीचे... ऊपर-नीचे... ऊपर-नीचे... हिला हिला कर... मजे लेने लगा...
इतने में मुझे भी सब कुछ अच्छा लगने लगा और मेरी सांसे भी गहरी और लंबी होने लगी थी... और मैंने उसे थोड़ा और उकसाने के लिए उसकी कान में घुस घुस आया, "जानता है रे जानेमन लाडला? लड़की लोग जब इस तरह से अपना लंड लड़कियों की फुद्दी (योनि) मैं डाल कर हिलाते हैं तो उसे क्या कहते हैं?"
"क्या कहते हैं, मैली दिद्दी (दीदी)?" लाडला ने कांपती हुई आवाज में मुझसे पूछा|
मैंने उसे समझाया, "इसे कहते हैं, ठुकाई करना या फिर ठापना..."
तब तक लाडला के मुंह से दबी दबी से आए हैं और आवाजें निकलने लगी थी, "उउउ.... हूँ- हूँ- हूँ- .... उउउ.... हूँ- हूँ- हूँ- .... उउउ.... हूँ- हूँ- हूँ- ...."
और उसके बाद मुझे कुछ बोल नहीं है समझाने की जरूरत नहीं पड़ी, उसने खुद ब खुद अपने मैथुन की गति बढ़ा दी... क्योंकि अब तक लाडला को एक अनजाने मजेदार फल के रस का स्वाद मिल गया था और वह उसी में मगन हो उठा था... उसके अंदर हवस की लहरें उमड़ने लगी थी और वह उसी अनजाने बहाव में बहता गया...
और पूरे कमरे में सिर्फ हम दोनों की गहरी सांसे... आहें और ठपाने की आवाज गूंजने लगी... थप! थप! थप! थप! थप! थप!
लाडला का किसी औरत के साथ यह पहला तजुर्बा था इसलिए ज्यादा देर तक वह अपना जोश बरकरार नहीं रख पाया... इसलिए इससे पहले की मुझे खुशी मिल पाती लाडला अपने आप को रोक नहीं पाया और उसका वीर्य मेरे अंदर फूट पड़ा और फिर वह मेरे ऊपर ही लेटे लेटे सुस्ताने लगा...
मेरी बातें सुनकर मेरी सासू मां आलता देवी को भी बड़ा मजा आ रहा था वह भी मस्ती भरे स्वर में मेरे से बोली, "अरे वाह रे वाह! तेरी बातों को सुनकर तो ऐसा लग रहा है कि तूने अपने मालिक के हुकुम की बखूबी तामील की है... और इसके साथ ही तूने उस लड़कियों वाली आदतों वाले लौंडे लाडला को बहुत सारी बातें और शब्द भी सिखा दिए जिसका उसको तक खुद ब खुद पता चल जाना चाहिए था... अच्छा फिर तूने क्या किया?"
मेरे ऊपर कुछ देर तक एकदम निढाल होकर बड़े रहने के बाद लाडला मुझे छोड़कर मेरे बगल में लेट गया| पर मुझे ऐसा लग रहा था कि तभी उसको शायद कोई होश नहीं है, इसलिए मैंने खुद ही उसके चेहरे से उसके उलझे उलझे लंबे बालों को हटाया और फिर प्यार से उसके चेहरे को छोड़कर खुद ही अपनी फुद्दी (योनि) में उंगली डालकर हिलाने लगी...
उस दिन शायद उसके बाद थोड़ी देर के लिए मैं सो गई थी|
जब दरवाजे पर दस्तक हुई है तो मेरी नींद खुली| घर में तो और कोई है ही नहीं इसलिए मैं समझ गई कि और कोई नहीं यह खुद लाल बाबा खुद ही आकर दरवाजा खटखटा रहे हैं|
लगता है एक-एक करके लाल बाबा को मानने वाले जा चुके हैं और उनकी अगली वादत का वक्त हो गया है|
मैहर बड़ा कर बिस्तर से उठी और जल्दी जल्दी किसी तरह से अपने बदन पर साड़ी लपेटी|
जैसे ही मैंने दरवाजा खोला, लाल बाबा मेरे उलझे उलझे बाल और चेहरे की हालत को देख कर ही समझ गए थे किमैंने उनके हुकुम का बखूबी तामील किया था... लेकिन इस हड़बड़ी में जी बिल्कुल भूल ही गई थी लाडला पलक पर बिल्कुल नंगा सो रहा है|
मुझे समझ में नहीं आ रहा था मैं क्या करूं, इसलिए सबसे पहले तो मैंने लाल बाबा से माफी मांगी, "माफ कीजिएगा मालिक, आपके लड़के को प्यार करते करते शायद मैं भी सो गई थी..."
लाल बाबा ने कहा, "ठीक है... ठीक है... कोई बात नहीं" फिर उन्होंने मुझे सर से पांव तक एक बार अच्छी तरह से देखा और फिर उन्होंने कहा, "अब तू चल मेरे कमरे में..."
यह कहकर उन्होंने मेरे खुले बालों को समेट कर अपने बाएं हथेली की मुट्ठी में एक पोनीटेल कितना पकड़ा और बड़े जतन के साथ मुझे अपने कमरे में ले गए...
मैं यह बात जानती हूं कि उनका मेरे बालों को इस तरह से पकड़ने का मतलब क्या था| वह यह जताना चाहते थे कि उनका मेरे ऊपर पूरा पूरा अधिकार है और वह जो चाहे मेरे साथ कर सकते हैं क्योंकि मैं उनकी एक कनीज़ -बंधीया-रखैल हूँ... इसलिए हमें चुपचाप सर झुका कर उनके साथ साथ उनके कमरे में चली गई...
मुझे कमरे के अंदर ले जाने के साथ ही उन्होंने दरवाजा बंद कर दिया... और मैं चुपचाप अपनी जैसे तैसे अरे बेटी हुई साड़ी उतारकर बिल्कुल नंगी होकर उनके बिस्तर पर लेट गई और मैंने अपनी दोनों टांगों को फैला दिया|
लालबाबा भी अपनी बनियान और लूंगी उतार कर एकदम नंगे हो गए और धीरे-धीरे मेरे ऊपर लेट गए...
मुझे लगता है मेरी वैसी हालत और अपने बेटे को नंगा देखकर शायद उनके मन में भी हवस का जोहार उमर आया था या फिर वह जानते थे की लाडला के लिए गे पहला तजुर्बा है इसलिए शायद मुझे शांत नहीं कर पाया होगा... हो सकता है इसीलिए वह दोबारा मुझे मेरे बालों को पकड़कर अपने कमरे में लेकर गए...
लाडला के मुकाबले लाल बाबा शरीर और मन से काफी काबिल है और उनका बदन भी काफी गठीला है और उनके पास तो उम्र का तजुर्बा भी है... लाडला तो खुद शांत होकर सो रहा था, लेकिन मैं प्यासी रह गई थी अच्छा हुआ कि लाल बाबा मुझे अपने कमरे में लेकर आए ताकि मेरी अधूरी प्यास बुझ सके...
***
इसलिए उस दिन मुझे काफी देर लग गई थी... फिर भी मैंने लाल बाबा के बिस्तर से उठने के बाद अपनी साड़ी पहनते हुए मुझसे बोली, "मेरे मालिक, अब मैं जाकर आपके बेटे लाडला को नींद से उठा देती हूं... आज तो मुझे उसके बालों में तेल लगाने का मौका ही नहीं मिला और ना ही मैंने उसकी कंघी- चोटी की है... "
लाल बाबा का मिजाज मुझे उस दिन दोबारा भोगने के बाद काफी खुश था, वह बोले, "ठीक है... ठीक है... ठीक है... मेरे बेटे को तैयार करके अपने घर की तरफ रवाना दे... घर जाकर तो तुझे घर की रसोई भी सवाल नहीं है ना?"
मैं अपने बालों कंघी- चोटी को जुड़े में बांधती हुई बोली , "जी हां मालिक, आपने बिल्कुल सही फरमाया..."
लाल बाबा ने कुछ सोचा और फिर उन्होंने मुझसे पूछा, " अच्छा एक बात बता, मैली... तेरी विधवा सास मांस मछली तो खाती होगी?"
"हां हां मालिक, आप की मेहरबानियां मिलने से पहले तो हमारे घर में बहुत ही तंगी चल रही थी... इसलिए जल्दी जो मिलता था हम लोग खा लेते थे... कभी कबार जब मुझे इधर उधर शादी वगैरा में बर्तन मांजने का काम मिल जाता था, तो वहां से पैसों के साथ खाना भी मिल जाता था... तब सेखाने में अगर कुछ अच्छा मिल जाता था तो हम दोनों मिल बांट के खा लेते थे..."
"बड़ी अच्छी बात है, आज जब तू घर वापस जाने के लिए निकलेगी तब मैं तेरे हाथ में एक पर्ची में लिख कर दे दूंगा... तू सीधे जुम्मन मियां की बिरयानी की दुकान में चली जाना वह तुझे दो लोगों की बिरयानी दे देगा..."
इसके बाद में लाडला के बालों में तेल लगा कर चोटियां बना कर उसके चेहरे पर और बदन पर पाउडर लगाकर... जुम्मन मियां की दुकान से खाना लेकर घर लौटी थी..."
मेरी सासू मां आलता देवी प्यार से मेरे गालों को सहलाती हुई बोली, "तू जब से मेरे घर आई है, मेरे घर की तंगी है दूर हो गई है... आज तेरी बदौलत हम थोड़ा अच्छा और पेट भर के खाना खा पा रहे हैं... मैंने तुझे लाल बाबा की कनीज़ -बंधीया-रखैल बनाकर जरूर रखा है लेकिन इसके अलावा हमारे पास कोई चारा भी तो नहीं था..."
"सासु मैया, इस बात पर मुझे कोई एतराज नहीं है... मैंने आपसे कहा था मैंने हंसी खुशी सब कुछ मान लिया है"
इसके बाद हम दोनों कुछ देर तक चुपचाप ऐसे ही बैठे रहे, फिर मैंने कहा, "सासु मैया, आज रसोई में जाकर के और खाना बनाने की जरूरत नहीं है... क्योंकि जैसा कि मैंने आपसे कहा था कि आज लाल बाबा के घर मैंने मांस पकाया है... दोनों ने हमारे लिए भी उसमें से कुछ हिस्सा निकालकर दे दिया है... और उन्होंने जितना दिया है उससे हम दोनों का दो वक्त का खाना आराम से पूरा पड़ जाएगा..."
यह बात सुनकर मेरी सांसों में आलता दीदी बहुत ही खुश हुई, और उसके बाद उत्सुकता वश उन्होंने मुझसे पूछा, "अच्छा एक बात बता, तेरी जानेमन लाडला के अंदर क्या अभी भी वह लड़कियों वाली आदतें बरकरार है?"
"जी हां सासु मैया" मैंने हंसकर कहा, "अभी तो सिर्फ 10 या 15 दिन ही हुए हैं कि लाडला मेरे ऊपर लेट रहा है... मुझे लगता है उसकी शख्सियत में बदलाव आने में अभी काफी वक्त लगने वाला है... और हां और एक बात आजकल लगभग हर रोज ही मुझे घर आने में देर हो रही है क्योंकि सबसे पहले तो मैं घर का सारा काम करती हूं... खाना बनाती हूं... उसके बाद लाल बाबा के बिस्तर पर अपना बदन पसार देती हूं... फिर लाडला को नहलाना- धुलना उसके बाद उसको अपने ऊपर लिटाना... उसके बाद हम दोनों को खाना परोसना और फिर घर के लिए रवाना होने से पहले आजकल लाल बाबा लगभग हर रोज मेरे बालों को पकड़कर मुझे अपने कमरे में दोबारा लेकर जाते हैं मुझे चोदने के लिए... आज भी वही हुआ"
मेरी बातें सुनकर मेरी सासू मा आलता देवी कुछ सोचने लग गई और फिर उन्होंने कहा, फिर तो मुझे ऐसा लगता है कि तू उन लोगों की जितनी खिदमत करती है उसके हिसाब से तेरी भरपाई में भी थोड़ा इजाफा होना चाहिए... मैं लाल बाबा से बात करके देखती हूं... अब उन्हें बताना पड़ेगा कि तेरी तनख्वाह के साथ-साथ अब हम दोनों के लिए दो वक्त के खाने का भी इंतजाम कर दे... क्योंकि तू तो उनके घर के सारे काम करती हैं... झाड़ू पोछा करना चूल्हा चौका करना... कपड़े धोना वगैरा-वगैरा और फिर उन दोनों के बिस्तरों को भी गर्म करना..."
मैंने मुस्कुराकर कहा, " तू जैसा आप ठीक समझें को कीजिए, सासु मैया... मैं तो सिर्फ आपका कहा मान कर चल रही हूं"
"हां री मेरी बच्ची मैली, मैं तो तेरी तेरी सास... तेरी मां जैसी... लेकिन अगर देखा जाए तो तेरे ऊपर हुकुम चलाना मेरा हक बनता है... और जब तक मेरा लड़का जेल में है तू मेरे हुकुम के मुताबिक दूसरे के घर जाकर दूसरे मर्द होकर बिस्तर में अपना बदन पसार कर थोड़ा बहुत लेचारी की बदौलत थोड़ा बहुत चुदाई करके अगर घर में थोड़े बहुत पैसे लेकर आ रही है तो इसमें बुरा ही क्या है?"
अबे धीरे-धीरे उठ कर बैठी और अपना साड़ी उतार कर अपने ब्लाउज के हुक खोलते हुए अपनी सासू मां आलता देवी से कहा, "सासु मैया, अब मैं जाकर नहा लेती हूं उसके बाद मैं आपका खाना परोस दूंगी... वैसे मैं दोबारा यह बात कहना चाहूंगी कि लाडला के अंदर बदलाव आने में अभी काफी वक्त लगेगा..."
" हा हा हा हा हा, इसमें हमें तो कोई नुकसान नहीं होने वाला गूगल की अच्छा ही होगा| तू जितने दिन लाल बाबा की और उनके बेटे की जैसे सेवा करती रहेगी तब तक तो हम लोगों के परिवार में तंगी का कोई नामोनिशान ही नहीं रहेगा..."
मैं मुस्कुरा कर नहाने चली गई... उस दिन की तरह आज भी बहुत देर हो गई थी| खाना खाने के बाद मुझे थोड़ा आराम करना है और उसके बाद रात को अच्छी तरह सोना भी है क्योंकि अगले दिन समय दोबारा मुझे काम पर निकलना पड़ेगा... और लाल बाबा और उनके बेटे की खिदमत करके उन दोनों को खुश भी रखना होगा...
*** समाप्त ***