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Adultery मै परिणीता (पति - पत्नी अंतर्दवंद)

Rahul_Singh1

आपकी भाभी (Crossdesar)
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डूबते सूरज को देखना मुझे अच्छा लगता था। और वो खिड़की जैसे मेरे लिए बाहर की दुनिया देखने का बस एकमात्र जरिया। खिड़की के पास पहुची तो ठण्ड महसूस होना शुरू हो गयी। अपनी साड़ी के आँचल को पकड़ कर दायें कंधे पर से ओढ़ कर अपने हाथ उसमे छुपाते ही थोड़ी गर्मी आ गयी।

भूल नहीं सकती मैं वो शाम। एक ही दिन में हम पति-पत्नी का जीवन हमेशा के लिए बदल गया था। उस वक़्त तो बिलकुल समझ नहीं आ रहा था कि ये अच्छा हुआ है या बुरा। पर समय के साथ और कई सुख दुःख भरे पलों के बाद आज हम दोनों पहले से बहुत ज्यादा करीब है। आज भी यकीं नहीं होता कि ऐसा कुछ भी किसी के साथ हो सकता है। मेरी कहानी को सच मानना आपके लिए तो क्या मेरे लिए भी मुश्किल है। एक लंबे सपने की तरह है।


यदि मेरे दिल में बसी हुई ये कहानी को मैं शब्दों में वैसे ही अंकित कर सकू तो जैसे मैं सोचती हूँ तो आप को भी पसंद आएगी. पर जब दिल में वो हॉट भावनाएं जागती है न तो उसे शब्दों में रेखांकित करना बहुत मुश्किल होता है. सच कह रही हूँ बिस्तर में अपनी साड़ी पहने करवटें लेते हुए इस कहानी को लिखते हुए बहुत कुछ हुआ है मेरे तन बदन में. इसलिए समय भी लग रहा है इस कहानी को लिखने में. आपको जैसी भी लगे, अपने विचार कमेंट में ज़रूर लिखे. यदि मेरी किसी बात से किसी की भावनाएं आहत होती है तो मैं क्षमा चाहती हूँ.
 
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Rahul_Singh1

आपकी भाभी (Crossdesar)
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गुलाबी ठण्ड वाली दिसंबर की शाम थी वो। आज से ३ साल पहले। खिड़की से सूरज मानो जाते जाते थोड़ी और गर्मी देकर जाना चाहता था कि हम ठंडी रात बर्दाश्त कर सके।

डूबते सूरज को देखना मुझे अच्छा लगता था। और वो खिड़की जैसे मेरे लिए बाहर की दुनिया देखने का बस एकमात्र जरिया। खिड़की के पास पहुची तो ठण्ड महसूस होना शुरू हो गयी। अपनी साड़ी के आँचल को पकड़ कर दायें कंधे पर से ओढ़ कर अपने हाथ उसमे छुपाते ही थोड़ी गर्मी आ गयी। गर्मी हो या ठण्ड, सही मटेरियल की साड़ी पहनो तो मौसम आपको कभी परेशान नहीं कर सकता। मैं अपनी साड़ी की चॉइस से बड़ी खुश थी मैं। आज ही दोपहर में कोरियर से आयी थी ये साड़ी। इसे देखने और पहनने को इतनी उतावली थी मैं कि आज काम से तबियत का बहाना बना कर समय से पहले ही छुट्टी लेकर आ गयी थी।

वैसे तो हर औरत अपनी नयी साड़ी को लेकर उत्साहित रहती है पर मेरे लिए और भी कारण थे। एक तो साड़ी मुझे अपने देश भारत और वहां की परम्पराओं से जुड़ने का मौका देती। दूसरा, मुझे यह मौका महीने में २-३ बार ही मिलता था जब मैं अपनी साड़ी पहनने की तमन्ना पूरी कर सकूं। कुछ घंटे के लिए ही सही, खूब अच्छी तरह सजती संवारती थी मैं। पर सिर्फ उस चारदीवारी के बीच में। दिल में हमेशा एक कसक रह जाती थी कि काश! कोई मेरी ओर देखे और मुझसे कहे कि मैं कितनी सुन्दर लग रही हूँ या कोई सहेली मेरी चॉइस की तारीफ़ करते हुए कहे कि हाय! नज़र न लगे तुझे इतनी अच्छी तरह साड़ी पहनी है तूने! कहाँ से खरीदी? मुझे भी बताना ज़रा!


अब इतना ही प्यार था इस परिधान से तो क्यों मैं चारदीवारी में बंद होकर पहनती थी ? क्यों नहीं किसी से मिलती? इन्टरनेट पे मेरी कई सहेलियाँ मुझसे ये सवाल करती थी। ऑनलाइन ही सही वहां कोई मेरी चिंता करती थी और मेरी तारीफ़ भी। इन सवालों के जवाब सोच कर कभी कभी मन थोड़ा उदास भी हो जाता था। वजह समझना ज्यादा मुश्किल भी नहीं है। मेरी पत्नी, परिणिता, को पसंद नहीं था कि मैं साडी पहनूँ या कोई भी औरतों वाले काम करूँ। उसकी नज़र में उसने एक आदमी से शादी की थी और वो आदमी ही चाहती थी। दुनिया की नज़र में मैं प्रतीक, एक आदमी, हूँ। लोग मेरी तरह के लोगो को क्रोसड्रेसर भी कहते है पर मैं सिर्फ एक ड्रेसर नहीं हूँ। मेरे अंदर एक औरत भी है और एक आदमी भी। एक को दबा दूँ कहीं तो मैं अधूरी रह जाऊंगी और कोई मुझे पूरी तरह समझ नहीं सकेगा।

परिणिता और मैं, US में अपनी MD की पढाई के वक़्त मिले थे। एक ही साथ थे हम दोनों और समय ने हम दोनों के बीच प्यार भी जगा दिया। काफी लिबरल माइंडसेट की थी वो। sexuality, gender, इन सब विषयों में काफी खुला मन था उसका। डॉक्टरों से ऐसी उम्मीद वैसे भी की जा सकती है। तब हमारे प्यार की शुरुआत ही हुई थी, तभी मैंने अपने बारे में उसे बताया था। मन में एक बड़ी आशा थी कि यह लड़की मुझे समझकर स्वीकार कर सकेगी। पर ये बात सुनकर तो उसे मानो सदमा लग गया था और साथ ही साथ मुझे भी। लिबरल परिणिता का खुला मन मानो अचानक से बंद हो गया। पर मैं भी उसे प्यार करती थी और उसे खोना नहीं चाहती थी। तो थोड़ा समझौता किया गया। उसने मुझसे कहा कि वो नहीं चाहती की मैं कभी उसके सामने स्त्रीरूप में आऊं। पर महीने में २-३ बार जब वो घर पे न रहे तब मैं घर की चारदीवारियों में जो करना है, वह कर सकती हूँ। तब से फिर यूँ ही छुप छुप कर कभी कभी मैं अपनी दिल के अरमानों को पूरा करती थी।

पर उस गुलाबी शाम को नयी साडी की ख़ुशी में मैं इतनी मशगूल हो गयी थी कि समय का एहसास ही नहीं रह गया था। परिणिता को आने में १५ मिनट रह गए थे। मैंने झटपट कपडे बदल कर मेकअप उतारना शुरू की। साड़ी फोल्ड करने में तो मैं एक्सपर्ट थी। ज्यादा समय नहीं लगा था। पर मेकअप उतारना और ऑय लाइनर साफ़ करने में बड़ा समय लग जाता था। किसी तरह परिणिता के पहुचने के पहले मैं रेडी थी या यूँ कहो कि मैं रेडी “था” ।


उसने आते ही मुझे गले लगा लिया। पति पत्नी के बीच ऐसे पल बड़े प्यारे होते है। पत्नी को गले लगाने पर जब उसके स्तन सीने से लग जाते है तब एक मीठा सा सुकून महसूस होता है। और पत्नी जब पति की बाहों में अपना सर छुपा लेती है तो उसके मन की भी सभी परेशानियाँ छू मंतर हो जाती है। फिर उसने सर उठा कर मुस्कुरा कर कहा, “कैसे हो तुम? मेरे इंतज़ार में क्या किये तुम?” परिणिता को पता न था कि मैं आज जल्दी आकर क्या करने वाली हूँ। पर अचानक ही उसके चेहरे के तेवर बदल गए। मैं समझ न सकी कि ऐसा क्या हो गया। वो मुझसे नाराज़ हो गयी और किचन की ओर बढ़ गयी। उसकी ओर जाते हुए मैंने खुद को शीशे में देखा और तब पता चला की मेरे होंठो पर थोड़ी लिपस्टिक रह गयी थी। आज तो अब मूड उखड़ा उखड़ा रहने वाला है, यह एहसास हो गया था।
 

sunoanuj

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बहुत ही जबरदस्त विषय चुना है आपने सर ! इसको बहुत ही सम्भाल कर लिखना पड़ेगा आपको !

शुरुआत बहुत ही शानदार है ! अगले भाग की प्रतीक्षा है !

👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
 

Rahul_Singh1

आपकी भाभी (Crossdesar)
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बहुत ही जबरदस्त विषय चुना है आपने सर ! इसको बहुत ही सम्भाल कर लिखना पड़ेगा आपको !

शुरुआत बहुत ही शानदार है ! अगले भाग की प्रतीक्षा है !

👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
Thank you so much
 
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Rahul_Singh1

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किचन से बर्तन के उठापटक की आवाज़ आ रही थी। अब समय था कि मैं एक अच्छे पति का कर्त्तव्य निभाऊँ। जल्दी से लिपस्टिक पोंछ कर मैं किचन की ओर चल पड़ी। और जाकर बिना मौका दिए, झट से पीछे से परिणिता को गले लगा लिया। मैंने उससे कहा, “तुम थक गयी होगी। मैंने तुम्हारे लिए पहले ही खाना बना रखा है। तुम टेबल पर बैठो मैं खाना गरम करके लाता हूँ।” उसकी आँखों में अभी भी थोड़ी नाराज़गी थी पर कम होने के आसार दिख रहे थे। परिणिता की नज़रो में तो मैंने एक अच्छे पति होने का एक काम तो किया था। पर सच तो यह था कि दोपहर में साड़ी पहनकर घर के काम और खाना बनाने में जो ख़ुशी मुझे मिली थी, मैं उसको समझा नहीं सकती थी। मैंने टेबल पे प्लेट और कैंडल पहले ही लगा रखी थी। यह सब घर के काम करके औरत होने का सुख वो ही समझ सकता है जिसे यह मौका कम मिलता हो। इन्टरनेट पे मेरी सभी सहेलियां ऐसे मौके की तलाश में रहती है। हम तो रेसिपीज भी एक्सचेंज करती है जो शायद असली जीवन में कभी न करें।

अब टेबल पर खाना लग चूका था और खुशबूदार कैंडल भी जल रही थी। कैंडललाइट में परिणिता नाराज़ ही सही पर बेहद खूबसूरत लग रही थी। उसने गुस्से से मेरी तरफ देखा और कहा, “मैं तुमसे कई बार कह चुकी हूँ कि तुम जब भी यह करते हो….”। उसके पूरा कहने के पहले ही मैंने उसके होठो पे पहले हाथ रख दिया और फिर उसे एक प्यार भरा किस दिया। मेरे होंठो पर एक बार फिर लिपस्टिक लग चुकी थी। “मेरे होंठो पर जब तुम्हारी लिपस्टिक लगती है, वही मेरी फेवरेट है।”, मैंने कहा। मेरी और देख कर फिर वो हँसने लगी। चलो एक मुश्किल तो दूर हुई थी। फिर खाना खाकर और थोड़ी देर बातें कर हम दोनों सोने चले गए।


बिस्तर पर सोने से पहले मन में बस एक ही विचार चल रहा था कि काश, परिणिता मेरी भावनाओं को स्वीकार कर पाती। मेरे अंदर की स्त्री को भी जीने का उतना ही हक़ है। कुछ देर ऐसा सोच कर मैंने परिणिता की और देखा और उसे अपनी बाहों में ले लिया। स्पूनिंग करते वक़्त हाथ पत्नी के स्तनों पर चले गए। मैंने उसकी lingerie से हाथ डालकर उसके स्तनों को प्यार से छूना शुरू किया। वो अब मेरे और पास आ गयी थी। तब यह एहसास हुआ कि पति पत्नी के जीवन से जुड़े पहलूओं में यह भी कितना प्यारा पहलू है। कम से कम इस वक़्त मैं पति बन कर परिणिता को उसकी सब परेशानियों से दूर कर उसे सुरक्षित अनुभव कराना चाहता था। यदि मुझमे एक प्यार से भरी स्त्री है जो मेरे लिए ख़ास मायने रखती है तो मेरा सुरक्षा देने वाला पुरुषरूप भी उतना ही महत्वपूर्ण है मेरे लिए। यह सोचकर मैं भी सो गया।

पर उस रात को जो होने वाला था वो हमारे जीवन को हमेशा के लिए बदल देने वाला था। रात गहरी हो चुकी थी और नया सवेरा एक अद्भुत घटना के साथ आने वाला था जो आज तक हमारी समझ से बाहर है।


अगली सुबह क्या हुआ। कैसे बताऊँ? थोड़ी सी शर्म आ रही है! औरतें ऐसी बातें करने में थोड़ा शर्माती भी है। पर मेरी यह कहानी तो एक पति पत्नी की कहानी है। फिर ऐसे विषयों से दूर भी नहीं रहा जा सकता। वैसे भी हम एक सामान्य पति-पत्नी तो थे नहीं। यहाँ मैं पति हूँ जिसके भीतर एक औरत भी छुपी हुई। तो यूँ कहे कि सामान्य शादी शुदा कपल में एक आदमी और एक औरत होते है, हमारे रिश्ते में एक आदमी और दो औरतें थी। हर क्रोसड्रेसर की यही कहानी है। जहाँ दो औरतें हो जाए वहां थोड़ी खींचतान तो होती ही है। पर मैं विषय से भटक रही हूँ।

उस दिन सुबह सुबह सूरज को रौशनी मेरे चेहरे पर पड़ी तो आँख खुली। वो सुबह संडे की थी। और संडे सुबह प्यार करने वाले दम्पत्तियों के बीच क्या होता है सभी को पता है। खुशनुमा सुबह थी और दिल में प्यार उमड़ रहा था। मैंने आँखें बंद की और परिणिता की ओर पलट गयी। बंद आँखों के साथ ही परिणिता के होंठो को चुम ली। मुझे फिर शर्म आ रही है पर फिर भी बताती हूँ। मेरी तरह ही परिणिता ने भी मेरे होंठो को चूमना शुरू किया। न जाने क्या बात थी पर जो उत्तेजना आज मेरे होंठो पे महसूस हो रही थी वो बाकी दिनों से बहुत अलग थी। मैंने उत्तेजना में परिणिता को अपने पास खिंच लिया। आँख बंद कर एक दुसरे को छूने में जो एह्सास है वो आँखें खोल कर छूने में नहीं है। इस ज़ोर के चुम्बन से मन और कामुक भावनाओं से उत्तेजित हो रहा था। और जब ज़ोर से एक दुसरे को सीने से लगाए, तो मैं तो बस अपना वश ही खो दी थी। आज तो सीने में जो हलचल हो रही थी उससे ऐसा लग रहा था कि जैसे मेरे सीने पर स्तन उग आये हो। कुछ तो अलग था आज पर इतना अच्छा था कि कुछ और सोचने का मन ही न किया। और तभी मैंने नीचे कुछ महसूस किया। क्षमा चाहती हूँ यदि आपको पढ़ कर ठीक न लगे तो। नीचे पुरुष लिंग पूरी तरह से तना हुआ महसूस हुआ। वहां हाथ ले जाने पर पता चला की वह लिंग मेरा नहीं है! मैंने किसी और पुरुष का लिंग अपने हाथो में पकड़ा हुआ था! और जैसे ही यह हुआ, दोनों शरीर एक दुसरे से दूर हो गए। अब आँखें खुल चुकी थी। पर जो आँखें देख रही थी वह दिमाग यकीन नहीं कर पा रहा था।


मैं एक पुरुष को किस कर रही थी! और वो मेरी आँखों के सामने था। मैं जो भी हूँ, मुझे हमेशा लड़कियां ही आकर्षित करती रही है। यह पहली बार था कि मैंने किसी पुरुष के होंठो को चुम रही थी। दिल की धड़कने बहुत तेज़ हो गयी थी और कामोत्तेजना ख़त्म। दिमाग ने काम करना मानो बंद कर दिया था। दिमाग कह रहा था कि शायद यह बुरा सपना है, सो जाओ तो सब ठीक हो जाएगा। पर इन्द्रियां कह रही थी यह सपना नहीं है। और मेरे सामने वाला भी उतना ही विचलित लग रहा था। दो लोग हैरानी से एक दुसरे की ओर देख रहे थे।

आज सालों बाद भी यकीन नहीं होता कि ऐसा भी कुछ हुआ था और हो सकता है। आखिर जो मेरे सामने था वो यकीन करने लायक नहीं था। मेरे सामने जो पुरुष था वो कोई और नहीं मैं ही था। या यूँ कहे उसका शरीर मेरा था! और मैं अपनी पत्नी परिणिता के शरीर में थी! डरते हुए मैंने कहा, “परिणिता?” और उसने कहा, “प्रतीक? ये तुम हो?” Body Swapping या शरीर का बदलना: अब तक फिल्मों में ही देखा था। और फिल्मों में दो लोगो के शरीर बदलने के बाद बस कॉमेडी होती है। लड़की के शरीर में लड़के का दिमाग चलने लगता है, और लड़के के शरीर में लड़की का दिमाग। और अंत में सब ठीक हो जाता है।

पर हमारी कहानी में सब इतना आसान नहीं था। परिणिता के शरीर में मेरे विचार तो दौड़ रहे थे पर हॉर्मोन तो परिणिता के ही थे। जो दिमाग था वो भी काफी कुछ परिणिता का ही था। या यूँ समझ लो कि हॉर्मोन, दिमाग और आत्मा की खिचड़ी में हम दोनों के दिमाग का दही होने वाला था। आज तो हम दोनों उन दिनों की बातों को याद करके थोड़ा हँस लेते है पर तब सब जितना कंफ्यूसिंग था और जितनी इमोशनल परेशानियाँ हमको सहनी पड़ी, वो तो हम ही जानते है। मेरी इस कहानी में यही सब आपको बताने वाली हूँ। यदि आपको लग रहा है कि क्योंकि मैं क्रोसड्रेसर हूँ और मैं औरतों की तरह रहना चाहती थी, इसलिए मुझे परिणिता के शरीर में जाकर बहुत ख़ुशी मिली होगी। तो यह पूरी तरह सच नहीं है क्योंकि अपनी सुविधानुसार औरत बन कर रहना बड़ा आसान है और वास्तविकता में औरत होना बहुत कठिन।

अपनी आगे की कहानी आगे के भागों में लिखती रहूंगी। तो इंतज़ार करिये!
 

kamdev99008

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बहुत ही जबरदस्त विषय चुना है आपने सर ! इसको बहुत ही सम्भाल कर लिखना पड़ेगा आपको !

शुरुआत बहुत ही शानदार है ! अगले भाग की प्रतीक्षा है !

👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
मैं भी यही कहने वाला था
ये एक अछूता विषय है

प्रतीक्षा है आगामी अद्यतन की
 

kamdev99008

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किचन से बर्तन के उठापटक की आवाज़ आ रही थी। अब समय था कि मैं एक अच्छे पति का कर्त्तव्य निभाऊँ। जल्दी से लिपस्टिक पोंछ कर मैं किचन की ओर चल पड़ी। और जाकर बिना मौका दिए, झट से पीछे से परिणिता को गले लगा लिया। मैंने उससे कहा, “तुम थक गयी होगी। मैंने तुम्हारे लिए पहले ही खाना बना रखा है। तुम टेबल पर बैठो मैं खाना गरम करके लाता हूँ।” उसकी आँखों में अभी भी थोड़ी नाराज़गी थी पर कम होने के आसार दिख रहे थे। परिणिता की नज़रो में तो मैंने एक अच्छे पति होने का एक काम तो किया था। पर सच तो यह था कि दोपहर में साड़ी पहनकर घर के काम और खाना बनाने में जो ख़ुशी मुझे मिली थी, मैं उसको समझा नहीं सकती थी। मैंने टेबल पे प्लेट और कैंडल पहले ही लगा रखी थी। यह सब घर के काम करके औरत होने का सुख वो ही समझ सकता है जिसे यह मौका कम मिलता हो। इन्टरनेट पे मेरी सभी सहेलियां ऐसे मौके की तलाश में रहती है। हम तो रेसिपीज भी एक्सचेंज करती है जो शायद असली जीवन में कभी न करें।

अब टेबल पर खाना लग चूका था और खुशबूदार कैंडल भी जल रही थी। कैंडललाइट में परिणिता नाराज़ ही सही पर बेहद खूबसूरत लग रही थी। उसने गुस्से से मेरी तरफ देखा और कहा, “मैं तुमसे कई बार कह चुकी हूँ कि तुम जब भी यह करते हो….”। उसके पूरा कहने के पहले ही मैंने उसके होठो पे पहले हाथ रख दिया और फिर उसे एक प्यार भरा किस दिया। मेरे होंठो पर एक बार फिर लिपस्टिक लग चुकी थी। “मेरे होंठो पर जब तुम्हारी लिपस्टिक लगती है, वही मेरी फेवरेट है।”, मैंने कहा। मेरी और देख कर फिर वो हँसने लगी। चलो एक मुश्किल तो दूर हुई थी। फिर खाना खाकर और थोड़ी देर बातें कर हम दोनों सोने चले गए।


बिस्तर पर सोने से पहले मन में बस एक ही विचार चल रहा था कि काश, परिणिता मेरी भावनाओं को स्वीकार कर पाती। मेरे अंदर की स्त्री को भी जीने का उतना ही हक़ है। कुछ देर ऐसा सोच कर मैंने परिणिता की और देखा और उसे अपनी बाहों में ले लिया। स्पूनिंग करते वक़्त हाथ पत्नी के स्तनों पर चले गए। मैंने उसकी lingerie से हाथ डालकर उसके स्तनों को प्यार से छूना शुरू किया। वो अब मेरे और पास आ गयी थी। तब यह एहसास हुआ कि पति पत्नी के जीवन से जुड़े पहलूओं में यह भी कितना प्यारा पहलू है। कम से कम इस वक़्त मैं पति बन कर परिणिता को उसकी सब परेशानियों से दूर कर उसे सुरक्षित अनुभव कराना चाहता था। यदि मुझमे एक प्यार से भरी स्त्री है जो मेरे लिए ख़ास मायने रखती है तो मेरा सुरक्षा देने वाला पुरुषरूप भी उतना ही महत्वपूर्ण है मेरे लिए। यह सोचकर मैं भी सो गया।

पर उस रात को जो होने वाला था वो हमारे जीवन को हमेशा के लिए बदल देने वाला था। रात गहरी हो चुकी थी और नया सवेरा एक अद्भुत घटना के साथ आने वाला था जो आज तक हमारी समझ से बाहर है।


अगली सुबह क्या हुआ। कैसे बताऊँ? थोड़ी सी शर्म आ रही है! औरतें ऐसी बातें करने में थोड़ा शर्माती भी है। पर मेरी यह कहानी तो एक पति पत्नी की कहानी है। फिर ऐसे विषयों से दूर भी नहीं रहा जा सकता। वैसे भी हम एक सामान्य पति-पत्नी तो थे नहीं। यहाँ मैं पति हूँ जिसके भीतर एक औरत भी छुपी हुई। तो यूँ कहे कि सामान्य शादी शुदा कपल में एक आदमी और एक औरत होते है, हमारे रिश्ते में एक आदमी और दो औरतें थी। हर क्रोसड्रेसर की यही कहानी है। जहाँ दो औरतें हो जाए वहां थोड़ी खींचतान तो होती ही है। पर मैं विषय से भटक रही हूँ।

उस दिन सुबह सुबह सूरज को रौशनी मेरे चेहरे पर पड़ी तो आँख खुली। वो सुबह संडे की थी। और संडे सुबह प्यार करने वाले दम्पत्तियों के बीच क्या होता है सभी को पता है। खुशनुमा सुबह थी और दिल में प्यार उमड़ रहा था। मैंने आँखें बंद की और परिणिता की ओर पलट गयी। बंद आँखों के साथ ही परिणिता के होंठो को चुम ली। मुझे फिर शर्म आ रही है पर फिर भी बताती हूँ। मेरी तरह ही परिणिता ने भी मेरे होंठो को चूमना शुरू किया। न जाने क्या बात थी पर जो उत्तेजना आज मेरे होंठो पे महसूस हो रही थी वो बाकी दिनों से बहुत अलग थी। मैंने उत्तेजना में परिणिता को अपने पास खिंच लिया। आँख बंद कर एक दुसरे को छूने में जो एह्सास है वो आँखें खोल कर छूने में नहीं है। इस ज़ोर के चुम्बन से मन और कामुक भावनाओं से उत्तेजित हो रहा था। और जब ज़ोर से एक दुसरे को सीने से लगाए, तो मैं तो बस अपना वश ही खो दी थी। आज तो सीने में जो हलचल हो रही थी उससे ऐसा लग रहा था कि जैसे मेरे सीने पर स्तन उग आये हो। कुछ तो अलग था आज पर इतना अच्छा था कि कुछ और सोचने का मन ही न किया। और तभी मैंने नीचे कुछ महसूस किया। क्षमा चाहती हूँ यदि आपको पढ़ कर ठीक न लगे तो। नीचे पुरुष लिंग पूरी तरह से तना हुआ महसूस हुआ। वहां हाथ ले जाने पर पता चला की वह लिंग मेरा नहीं है! मैंने किसी और पुरुष का लिंग अपने हाथो में पकड़ा हुआ था! और जैसे ही यह हुआ, दोनों शरीर एक दुसरे से दूर हो गए। अब आँखें खुल चुकी थी। पर जो आँखें देख रही थी वह दिमाग यकीन नहीं कर पा रहा था।


मैं एक पुरुष को किस कर रही थी! और वो मेरी आँखों के सामने था। मैं जो भी हूँ, मुझे हमेशा लड़कियां ही आकर्षित करती रही है। यह पहली बार था कि मैंने किसी पुरुष के होंठो को चुम रही थी। दिल की धड़कने बहुत तेज़ हो गयी थी और कामोत्तेजना ख़त्म। दिमाग ने काम करना मानो बंद कर दिया था। दिमाग कह रहा था कि शायद यह बुरा सपना है, सो जाओ तो सब ठीक हो जाएगा। पर इन्द्रियां कह रही थी यह सपना नहीं है। और मेरे सामने वाला भी उतना ही विचलित लग रहा था। दो लोग हैरानी से एक दुसरे की ओर देख रहे थे।

आज सालों बाद भी यकीन नहीं होता कि ऐसा भी कुछ हुआ था और हो सकता है। आखिर जो मेरे सामने था वो यकीन करने लायक नहीं था। मेरे सामने जो पुरुष था वो कोई और नहीं मैं ही था। या यूँ कहे उसका शरीर मेरा था! और मैं अपनी पत्नी परिणिता के शरीर में थी! डरते हुए मैंने कहा, “परिणिता?” और उसने कहा, “प्रतीक? ये तुम हो?” Body Swapping या शरीर का बदलना: अब तक फिल्मों में ही देखा था। और फिल्मों में दो लोगो के शरीर बदलने के बाद बस कॉमेडी होती है। लड़की के शरीर में लड़के का दिमाग चलने लगता है, और लड़के के शरीर में लड़की का दिमाग। और अंत में सब ठीक हो जाता है।

पर हमारी कहानी में सब इतना आसान नहीं था। परिणिता के शरीर में मेरे विचार तो दौड़ रहे थे पर हॉर्मोन तो परिणिता के ही थे। जो दिमाग था वो भी काफी कुछ परिणिता का ही था। या यूँ समझ लो कि हॉर्मोन, दिमाग और आत्मा की खिचड़ी में हम दोनों के दिमाग का दही होने वाला था। आज तो हम दोनों उन दिनों की बातों को याद करके थोड़ा हँस लेते है पर तब सब जितना कंफ्यूसिंग था और जितनी इमोशनल परेशानियाँ हमको सहनी पड़ी, वो तो हम ही जानते है। मेरी इस कहानी में यही सब आपको बताने वाली हूँ। यदि आपको लग रहा है कि क्योंकि मैं क्रोसड्रेसर हूँ और मैं औरतों की तरह रहना चाहती थी, इसलिए मुझे परिणिता के शरीर में जाकर बहुत ख़ुशी मिली होगी। तो यह पूरी तरह सच नहीं है क्योंकि अपनी सुविधानुसार औरत बन कर रहना बड़ा आसान है और वास्तविकता में औरत होना बहुत कठिन।

अपनी आगे की कहानी आगे के भागों में लिखती रहूंगी। तो इंतज़ार करिये!
इस अपडेट में तो सिर्फ मोड़ नहीं पूरा चक्कर घुमा दिया।

गजब
 

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इस अपडेट में तो सिर्फ मोड़ नहीं पूरा चक्कर घुमा दिया।

गजब
परणिता की कहानी अंजाने मोड़ो से गुजरती हुई ही परिणाम पर ठेरेगी..... 😁 आप कहानी के साथ जुड़े रहिये बस यही कामना है 🙏🏻
 

kamdev99008

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परणिता की कहानी अंजाने मोड़ो से गुजरती हुई ही परिणाम पर ठेरेगी..... 😁 आप कहानी के साथ जुड़े रहिये बस यही कामना है 🙏🏻
अपडेट जल्दी देना
 

Rahul_Singh1

आपकी भाभी (Crossdesar)
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बाथरूम पहुच कर मैंने अपनी नाईटी उतारी। मेरे नए शरीर को मैं निहारने लगी। उफ़ मेरे स्तन में एक कसाव महसूस हो रहा था। बिलकुल वैसे ही जैसे परिणीता के साथ होता था जब वो कामोत्तेजित होती थी। मेरे निप्पल भी बड़े होकर तन गए थे। समझाना बहुत मुष्किल है पर मैं ही जानती हूँ की कैसे मैं अपने आपको अपने ही स्तनों को अपने हाथो से मसलने से रोकी हुई थी।


एक दुसरे को आश्चर्य से देखते हमको कुछ देर हो गयी थी। अब तक हम दोनों को समझ आ गया था कि रातोरात हम पति-पत्नी एक दुसरे के शरीर में बदल गए थे। सोच कर ही देखो कि आप अपने शरीर को अपनी आँखों के सामने देख रहे है और उस शरीर में आपकी पत्नी है और आप उसके शरीर में। “प्रतीक, अब हम क्या करेंगे?”, परिणिता ने मुझसे पूछा। मेरे पास कोई जवाब न था और मैंने निराशा में नज़रे झुका ली। नज़रे झुकाते ही खुद के सीने पर गयी। कैसे कहूँ कि उस अजीब सी स्थिति में भी अपने सीने में स्तनों को देख कर कितना अच्छा लग रहा था! मैंने पुरुषरूप में तो ब्रेअस्फोर्म्स का उपयोग किया था पर असली स्तनों का वज़न और अनुभव कोई ब्रेअस्फोर्म नहीं दे सकते। खुद के स्तनों को देख कर छूने का जी चाह रहा था, मन कर रहा था की अपने ही हाथों से दबा कर देखूँ। पर परेशान परिणिता के सामने ऐसा कुछ नहीं कर सकती थी मैं! फिर भी बस सुन्दर सुडौल वक्षो को देखती रह गई मैं।

“प्रतीक!!”, परिणिता ज़ोर से चीखी। “यहाँ मैं परेशान हो रही हूँ और तुम ब्रेस्ट्स देखने में मगन हो! तुमको तो अच्छा लग रहा होगा कि तुम्हारा औरत बनने का सपना पूरा हो गया!”

“परिणिता, तुम ऐसा कैसे सोच सकती हो। मैं भी परेशान हूँ।” मेरे भी चेहरे पे गंभीरता आ गयी। अपनी पत्नी को दुखी नहीं देख सकती थी मैं| आखिर प्यार जो करती थी उससे। मैं उसके थोड़ा पास आयी और अपने बाहों में लेकर उसको ढांढस देना चाह रही थी। लेकिन परिणिता का शरीर अब मुझसे बहुत बड़ा हो गया था, उसको पूरी तरह पकड़ नहीं सकी जो मैं शरीर बदलने के पहले कर सकती थी। फिर न जाने कैसे मानो अपने आप ही मैंने परिणीता का सिर अपने सीने से लगा लिया और उसके सर पे हाथ फेरने लगी। बिलकुल एक नयी तरह की भावना थी वो जो शायद सिर्फ एक स्त्री अनुभव कर सकती है। परिणीता भी चुपचाप अपना सर मेरे स्तनों में छुपा ली। शायद वो भी कुछ पल के लिए ही सही प्यार महसूस कर रही थी। “हम जल्दी ही पता करेंगे परी की ये कैसे हुआ। सब ठीक हो जायेगा, आई प्रॉमिस”, मैंने कहा।


“कैसे होगा प्रतीक ? और कब तक होगा?”, परिणीता मुझसे बोली। “घबराओ मत, मेरी परी! आज संडे है। हमारे पास वक़्त है ये सब समझने के लिए। और वैसे भी किसी और को तो पता भी नहीं चलेगा की हम दोनों का शरीर बदल गया है। दुनिया की नज़रो में तो अब तुम प्रतीक और मैं परिणीता हूँ। हम कुछ न कुछ हल जल्दी निकाल लेंगे। ”

मैं यह सब बोल तो रही थी पर खुद इन बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था। और सच कहूँ तो यह बात कहते कहते खुद की आवाज़, एक मीठी सुरीली औरत की तरह सुन कर बहुत अजीब भी लग रहा था। यह आवाज़ तो परी की थी मेरी नहीं!

परिणीता ने अब अपना सर उठा कर मेरी ओर देखा। उसकी आँखों में एक उम्मीद थी कि सचमुच सब कुछ ठीक होगा। मैं भी उसकी आखों में देख कर बोली,” चलो पहले हम नहा कर तैयार होते है फिर सोचते है क्या करना है! मैं पहले नहाकर आता हूँ।”

“ठीक है, प्रतीक। जल्दी आना। अकेले बैठ कर इस बारे में सोचते हुए तो मैं पागल हो जाऊंगी। ” मेरी प्यारी परिणीता सचमुच परेशान थी।

मैं उठ कर बाथरूम की ओर बढ़ने लगी। न चाहते हुए भी अपने नए मोहक सुन्दर शरीर पर चलते हुए ध्यान चला ही गया था। पहले तो चलते हुए बहुत हल्का महसूस कर रही थी। मेरे छोटे छोटे क़दम भी बड़े मादक लग रहे थे। और उस खुली खुली सी नाईटी में चलते हुए मेरे स्तन जो उछल रहे थे, हाय! कैसे बताऊँ उस फीलिंग को! थोड़ा सा ध्यान देने पर ये एहसास की मेरी जांघो के बीच अब कुछ नहीं है और सॉफ्ट सी पैंटी मेरी नितम्ब से कस के लगी हुई है, मुझे उतावला करने लगा। बाथरूम बस २० कदम की दूरी पर था पर उन २० कदमो में जो अंग अंग का अनुभव था, बहुत ही मादक था। मेरे रोम रोम उत्तेजना से भर रहा था।


बाथरूम पहुच कर मैंने अपनी नाईटी उतारी। मेरे नए शरीर को मैं निहारने लगी। उफ़ मेरे स्तन में एक कसाव महसूस हो रहा था। बिलकुल वैसे ही जैसे परिणीता के साथ होता था जब वो कामोत्तेजित होती थी। मेरे निप्पल भी बड़े होकर तन गए थे। समझाना बहुत मुष्किल है पर मैं ही जानती हूँ की कैसे मैं अपने आपको अपने ही स्तनों को अपने हाथो से मसलने से रोकी हुई थी। मैं बाथरूम में ज्यादा समय नहीं लगाना चाहती थी क्योंकि बाहर परिणीता मेरा इंतज़ार कर रही थी। शावर में नहाने जाने से पहले मैंने पेंटी उतारी। उफ्फ, मेरी नयी स्मूथ त्वचा पर पेंटी तो जैसे मख्खन की तरह फिसल गयी। अब मेरे पैरों के बीच पुरुष लिंग की जगह स्त्री योनि थी। मेरा मन तो कामुक भावनाओं से मदमस्त हो रहा था। दिल तो किया योनि को हाथ लगा कर देखूँ कि कैसा लगता है। दिमाग कह रहा था कि शायद यह सपना है, सपना टूटने के पहले हाथ लगा कर जो मज़ा ले सकती हूँ ले लूँ। फिर भी किसी तरह मन को काबू में कर के मैं शावर में गयी।

पानी मेरे स्तनों पर पड़ रहा था। मैंने पहले अपने बालो पे शैम्पू लगाया और अपने उँगलियों से अपने लंबे बालों को धोने लगी। अब साबुन से तन तो धोने का वक़्त आ गया था। अब तो मुझे अपने नए शरीर को हाथ लगाना ही था। पहले अपने हाथो से साबुन मैंने अपने स्तनों पर लगाया। और न जाने कैसे अपनी उँगलियों से मैंने अपने निप्पल को ज़ोर से दबा दिया। जो कसक हुई और जो नशा मैंने महसूस किया, उसको काबू करने के लिए मैं अपने ही नाज़ुक होठो को अपने ही दांतो से काट गयी। किसी तरह रुक कर मैंने फिर पूरे शरीर पे साबुन लगाया। फिर हाथ से अपने शरीर को नहलाने लगी मैं। गरम बहते पानी में मेरी उँगलियाँ फिर मेरे स्तनों को छूती हुई मेरी नाभि की ओर बढ़ने लगी। नाभि पर कुछ देर उँगलियाँ घूमने के बाद मेरी ऊँगली निचे की ओर बढ़ने लगी। वहां जहाँ योनि होती है। दिमाग कह रहा था रुक जा रुक जा। पर उँगलियाँ तो मानो खुद ही बस योनि के अंदर जाने को आतुर थी और वो धीरे धीरे नीचे बढ़ती चली गयी और बिलकुल पास आ गयी।

मैं मानो मदहोश होती चली जा रही थी। मन पे काबू ही नहीं हो रहा था। आज भी उस दिन को याद करती हो तो रोम रोम में मानो करंट दौड़ पड़ता है। आगे क्या हुआ जानने के लिए अगले भाग का इंतज़ार करें! जल्दी ही लिखूंगी!
 
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