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Adultery मै परिणीता (पति - पत्नी अंतर्दवंद)

Rahul_Singh1

आपकी भाभी (Crossdesar)
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बहुत ही जबरदस्त विषय चुना है आपने सर ! इसको बहुत ही सम्भाल कर लिखना पड़ेगा आपको !

शुरुआत बहुत ही शानदार है ! अगले भाग की प्रतीक्षा है !

👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
अपडेट जल्दी देना
New update posted...!
 

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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बाथरूम पहुच कर मैंने अपनी नाईटी उतारी। मेरे नए शरीर को मैं निहारने लगी। उफ़ मेरे स्तन में एक कसाव महसूस हो रहा था। बिलकुल वैसे ही जैसे परिणीता के साथ होता था जब वो कामोत्तेजित होती थी। मेरे निप्पल भी बड़े होकर तन गए थे। समझाना बहुत मुष्किल है पर मैं ही जानती हूँ की कैसे मैं अपने आपको अपने ही स्तनों को अपने हाथो से मसलने से रोकी हुई थी।


एक दुसरे को आश्चर्य से देखते हमको कुछ देर हो गयी थी। अब तक हम दोनों को समझ आ गया था कि रातोरात हम पति-पत्नी एक दुसरे के शरीर में बदल गए थे। सोच कर ही देखो कि आप अपने शरीर को अपनी आँखों के सामने देख रहे है और उस शरीर में आपकी पत्नी है और आप उसके शरीर में। “प्रतीक, अब हम क्या करेंगे?”, परिणिता ने मुझसे पूछा। मेरे पास कोई जवाब न था और मैंने निराशा में नज़रे झुका ली। नज़रे झुकाते ही खुद के सीने पर गयी। कैसे कहूँ कि उस अजीब सी स्थिति में भी अपने सीने में स्तनों को देख कर कितना अच्छा लग रहा था! मैंने पुरुषरूप में तो ब्रेअस्फोर्म्स का उपयोग किया था पर असली स्तनों का वज़न और अनुभव कोई ब्रेअस्फोर्म नहीं दे सकते। खुद के स्तनों को देख कर छूने का जी चाह रहा था, मन कर रहा था की अपने ही हाथों से दबा कर देखूँ। पर परेशान परिणिता के सामने ऐसा कुछ नहीं कर सकती थी मैं! फिर भी बस सुन्दर सुडौल वक्षो को देखती रह गई मैं।

“प्रतीक!!”, परिणिता ज़ोर से चीखी। “यहाँ मैं परेशान हो रही हूँ और तुम ब्रेस्ट्स देखने में मगन हो! तुमको तो अच्छा लग रहा होगा कि तुम्हारा औरत बनने का सपना पूरा हो गया!”

“परिणिता, तुम ऐसा कैसे सोच सकती हो। मैं भी परेशान हूँ।” मेरे भी चेहरे पे गंभीरता आ गयी। अपनी पत्नी को दुखी नहीं देख सकती थी मैं| आखिर प्यार जो करती थी उससे। मैं उसके थोड़ा पास आयी और अपने बाहों में लेकर उसको ढांढस देना चाह रही थी। लेकिन परिणिता का शरीर अब मुझसे बहुत बड़ा हो गया था, उसको पूरी तरह पकड़ नहीं सकी जो मैं शरीर बदलने के पहले कर सकती थी। फिर न जाने कैसे मानो अपने आप ही मैंने परिणीता का सिर अपने सीने से लगा लिया और उसके सर पे हाथ फेरने लगी। बिलकुल एक नयी तरह की भावना थी वो जो शायद सिर्फ एक स्त्री अनुभव कर सकती है। परिणीता भी चुपचाप अपना सर मेरे स्तनों में छुपा ली। शायद वो भी कुछ पल के लिए ही सही प्यार महसूस कर रही थी। “हम जल्दी ही पता करेंगे परी की ये कैसे हुआ। सब ठीक हो जायेगा, आई प्रॉमिस”, मैंने कहा।


“कैसे होगा प्रतीक ? और कब तक होगा?”, परिणीता मुझसे बोली। “घबराओ मत, मेरी परी! आज संडे है। हमारे पास वक़्त है ये सब समझने के लिए। और वैसे भी किसी और को तो पता भी नहीं चलेगा की हम दोनों का शरीर बदल गया है। दुनिया की नज़रो में तो अब तुम प्रतीक और मैं परिणीता हूँ। हम कुछ न कुछ हल जल्दी निकाल लेंगे। ”

मैं यह सब बोल तो रही थी पर खुद इन बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था। और सच कहूँ तो यह बात कहते कहते खुद की आवाज़, एक मीठी सुरीली औरत की तरह सुन कर बहुत अजीब भी लग रहा था। यह आवाज़ तो परी की थी मेरी नहीं!

परिणीता ने अब अपना सर उठा कर मेरी ओर देखा। उसकी आँखों में एक उम्मीद थी कि सचमुच सब कुछ ठीक होगा। मैं भी उसकी आखों में देख कर बोली,” चलो पहले हम नहा कर तैयार होते है फिर सोचते है क्या करना है! मैं पहले नहाकर आता हूँ।”

“ठीक है, प्रतीक। जल्दी आना। अकेले बैठ कर इस बारे में सोचते हुए तो मैं पागल हो जाऊंगी। ” मेरी प्यारी परिणीता सचमुच परेशान थी।

मैं उठ कर बाथरूम की ओर बढ़ने लगी। न चाहते हुए भी अपने नए मोहक सुन्दर शरीर पर चलते हुए ध्यान चला ही गया था। पहले तो चलते हुए बहुत हल्का महसूस कर रही थी। मेरे छोटे छोटे क़दम भी बड़े मादक लग रहे थे। और उस खुली खुली सी नाईटी में चलते हुए मेरे स्तन जो उछल रहे थे, हाय! कैसे बताऊँ उस फीलिंग को! थोड़ा सा ध्यान देने पर ये एहसास की मेरी जांघो के बीच अब कुछ नहीं है और सॉफ्ट सी पैंटी मेरी नितम्ब से कस के लगी हुई है, मुझे उतावला करने लगा। बाथरूम बस २० कदम की दूरी पर था पर उन २० कदमो में जो अंग अंग का अनुभव था, बहुत ही मादक था। मेरे रोम रोम उत्तेजना से भर रहा था।


बाथरूम पहुच कर मैंने अपनी नाईटी उतारी। मेरे नए शरीर को मैं निहारने लगी। उफ़ मेरे स्तन में एक कसाव महसूस हो रहा था। बिलकुल वैसे ही जैसे परिणीता के साथ होता था जब वो कामोत्तेजित होती थी। मेरे निप्पल भी बड़े होकर तन गए थे। समझाना बहुत मुष्किल है पर मैं ही जानती हूँ की कैसे मैं अपने आपको अपने ही स्तनों को अपने हाथो से मसलने से रोकी हुई थी। मैं बाथरूम में ज्यादा समय नहीं लगाना चाहती थी क्योंकि बाहर परिणीता मेरा इंतज़ार कर रही थी। शावर में नहाने जाने से पहले मैंने पेंटी उतारी। उफ्फ, मेरी नयी स्मूथ त्वचा पर पेंटी तो जैसे मख्खन की तरह फिसल गयी। अब मेरे पैरों के बीच पुरुष लिंग की जगह स्त्री योनि थी। मेरा मन तो कामुक भावनाओं से मदमस्त हो रहा था। दिल तो किया योनि को हाथ लगा कर देखूँ कि कैसा लगता है। दिमाग कह रहा था कि शायद यह सपना है, सपना टूटने के पहले हाथ लगा कर जो मज़ा ले सकती हूँ ले लूँ। फिर भी किसी तरह मन को काबू में कर के मैं शावर में गयी।

पानी मेरे स्तनों पर पड़ रहा था। मैंने पहले अपने बालो पे शैम्पू लगाया और अपने उँगलियों से अपने लंबे बालों को धोने लगी। अब साबुन से तन तो धोने का वक़्त आ गया था। अब तो मुझे अपने नए शरीर को हाथ लगाना ही था। पहले अपने हाथो से साबुन मैंने अपने स्तनों पर लगाया। और न जाने कैसे अपनी उँगलियों से मैंने अपने निप्पल को ज़ोर से दबा दिया। जो कसक हुई और जो नशा मैंने महसूस किया, उसको काबू करने के लिए मैं अपने ही नाज़ुक होठो को अपने ही दांतो से काट गयी। किसी तरह रुक कर मैंने फिर पूरे शरीर पे साबुन लगाया। फिर हाथ से अपने शरीर को नहलाने लगी मैं। गरम बहते पानी में मेरी उँगलियाँ फिर मेरे स्तनों को छूती हुई मेरी नाभि की ओर बढ़ने लगी। नाभि पर कुछ देर उँगलियाँ घूमने के बाद मेरी ऊँगली निचे की ओर बढ़ने लगी। वहां जहाँ योनि होती है। दिमाग कह रहा था रुक जा रुक जा। पर उँगलियाँ तो मानो खुद ही बस योनि के अंदर जाने को आतुर थी और वो धीरे धीरे नीचे बढ़ती चली गयी और बिलकुल पास आ गयी।

मैं मानो मदहोश होती चली जा रही थी। मन पे काबू ही नहीं हो रहा था। आज भी उस दिन को याद करती हो तो रोम रोम में मानो करंट दौड़ पड़ता है। आगे क्या हुआ जानने के लिए अगले भाग का इंतज़ार करें! जल्दी ही लिखूंगी!
बिना सेक्स के ही आग लगा देने वाला विस्तृत वर्णन आपकी लेखनी के पैनेपन को दर्शाता है
हिन्दी में आप जैसे लेखक यहां बहुत थोड़े ही हैं
avsji SANJU ( V. R. ) manu@84 Shetan
Rekha rani
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Rekha rani

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Congratulations for new story
Ek alag hatkar vishay par kahani shuru ki gayi hai, abhi tak ke sabhi update bahut behtarin likhe gaye hai,
Ek mard ke man me chhupe uske estree bhav se uska gender change ko bahut hi nayi sehlli me likha gya hai, abhi mukhya prinita kaise apne aap ko mard ke rup me svikar karti hai padhna aur bhi rochak hoga
 

Shetan

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Ye vakei adbhut lekhni hai. Purusarth ko nari ka ehsas. Ye alag hi nahi anokha bhi hai. Lekhak ne jo kalpna ki hai. Use bilkul sahi map dand se jataya hai.
 

manu@84

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जहाँ तक मेरी सोच पहुँच नही पाई, उसे इस राइटर ने लिख भी दिया... "मै अपनी रनिंग स्टरी मे (कसूरवार कौन) मे बिल्लू के बेटे को जनाना पात्र में दर्शीने की कल्पना ही शुरु नही कर पा रहा था, और कहानी को रोक दिया.... लेकिन यहाँ लिखने वाले भी पहले आ गये। लगता हैं मेरी उम्र के साथ सोच की रफ्तार कम हो गयी है।

कहानी का विषय नया है, crossdesar पति का एक किस्सा धुंधला सा याद है यूपी मे एक पुलिस अधिकारी ने मीरा का रूप धर लिया था, ये न्यूज़ अखबार में सुर्खियों में काफी रही थी।

फिल्हाल इस कहानी में स्त्री को पुरस्त्व का अहसास होना देखना बांकी है...????
 

kamdev99008

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Rahul_Singh1
अब तो धुरंधर आलोचक/पाठक भी बुला लिये
अपडेट में देरी बर्दाश्त नहीं होगी :D
 

kingkhankar

Multiverse is real!
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यूपी मे एक पुलिस अधिकारी ने मीरा का रूप धर लिया था, ये न्यूज़ अखबार में सुर्खियों में काफी रही थी।
I also remember this news. !
 

Rahul_Singh1

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Congratulations for new story
Ek alag hatkar vishay par kahani shuru ki gayi hai, abhi tak ke sabhi update bahut behtarin likhe gaye hai,
Ek mard ke man me chhupe uske estree bhav se uska gender change ko bahut hi nayi sehlli me likha gya hai, abhi mukhya prinita kaise apne aap ko mard ke rup me svikar karti hai padhna aur bhi rochak hoga
Ye vakei adbhut lekhni hai. Purusarth ko nari ka ehsas. Ye alag hi nahi anokha bhi hai. Lekhak ne jo kalpna ki hai. Use bilkul sahi map dand se jataya hai.
जहाँ तक मेरी सोच पहुँच नही पाई, उसे इस राइटर ने लिख भी दिया... "मै अपनी रनिंग स्टरी मे (कसूरवार कौन) मे बिल्लू के बेटे को जनाना पात्र में दर्शीने की कल्पना ही शुरु नही कर पा रहा था, और कहानी को रोक दिया.... लेकिन यहाँ लिखने वाले भी पहले आ गये। लगता हैं मेरी उम्र के साथ सोच की रफ्तार कम हो गयी है।

कहानी का विषय नया है, crossdesar पति का एक किस्सा धुंधला सा याद है यूपी मे एक पुलिस अधिकारी ने मीरा का रूप धर लिया था, ये न्यूज़ अखबार में सुर्खियों में काफी रही थी।

फिल्हाल इस कहानी में स्त्री को पुरस्त्व का अहसास होना देखना बांकी है...????
Bohot hi kathin vishay chuna hai,writer saheb apne.umeed hai aap kahani ko puri karenge.
I also remember this news. !
आप सभी के कॉमेंट और प्रशंसा पढ़ कर बहुत खुशी हुई.....। Thanks all of you.
 

Rahul_Singh1

आपकी भाभी (Crossdesar)
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अब तक आपने मेरी कहानी में पढ़ा: मैं एक क्रोसड्रेसर हूँ जिसे भारतीय औरतों की तरह सजना अच्छा लगता है। मेरी शादी हो चुकी है और मेरी पत्नी परिणीता है। हम दोनों अमेरिका में डॉक्टर है। परिणीता को मेरा साड़ी पहनना या सजना संवारना बिलकुल पसंद नहीं है। अब तक मैं छुप छुप कर अपने अरमानो को पूरा करती रही थी। पर आज से ३ साल पहले एक रात हम दोनों का जीवन बदल गया। सुबह उठने पर हम दोनों का बॉडी स्वैप हो चूका था मतलब मैं परिणीता के शरीर में और वो मेरे शरीर में थी। दोनों आश्चर्यचकित थे। जहाँ एक ओर परिणीता बड़ी परेशान थी और इस अजीबोगरीब स्थिति को ठीक करना चाहती थी, वहीँ मैं इस बदलाव का जादुई असर महसूस कर रही थी। पहली बार अपने नए शरीर को नहाते वक़्त छूकर मैं उत्तेजित हो रही थी। शॉवर में बहते हुए गर्म पानी के नीचे मेरी उँगलियाँ मेरे शरीर में आग लगा रही थी और मैं बस अपनी नयी योनि में बेकाबू होकर ऊँगली डालने ही वाली थी। अब आगे।

तभी अचानक मेरे अंदर का पति जाग गया और बिना कुछ किये मैं झट से शावर से बाहर आ गयी। अपने लंबे काले गीले बालो को आदतन रगड़ रगड़ कर टॉवल से पोंछने लगी। पर जैसे मेरे हाथों का अपना खुद का दिमाग चल पड़ा और वो फिर धीमे धीमे टॉवल से दबा कर बालों को सुखाने लगे। और फिर सामने झुक कर झट से सर उठा कर मैंने बालों को झटक कर बाल सीधे किये। इस दौरान मेरे स्तन ज़ोर से हिल पड़े। एक औरत बनने की मादकता मुझ पर भारी पड़ रही थी। रह रह कर अपने नए शरीर से खेलने का मन कर रहा था। किसी तरह कुछ करके मैं बाहर निकली।

बाहर परिणीता अपने घुटनो को पकड़ कर उसमे सिर छुपाये उदास बैठी थी। मेरे लिए अजीब सी स्थिति थी। सामने परिणीता मेरे पुराने पुरुष शरीर में थी। मेरे बाहर आने की आवाज़ सुनकर उसने सिर उठाया और मेरी ओर देखा। उसकी वो आँखें तो मेरी थी पर उसमे गुस्सा परिणीता का साफ़ झलक रहा था जिसे देख कर मैं समझ गयी कि मैंने कुछ गलती कर दी है।


“प्रतीक!!!”, वो मुझ पर चीख पड़ी। “यह क्या तरीका है? तुम पागल हो गए हो! टॉवल कोई ऐसे ब्रेस्ट्स के निचे लपेटता है?जल्दी से ब्रेस्ट्स पर से लपेटो!”

मैंने अपने लड़के वाली आदत अनुसार कमर के निचे टॉवल लपेटा था। जल्द से मैंने अपने स्तनों को ढका। चूँकि मैंने अपना टॉवल उपयोग किया था, उसकी लंबाई थोड़ी छोटी थी और मेरी कमर के नीचे का हिस्सा अब दिख रहा था।

मैं आगे कुछ कह पाती उसके पहले ही परी मुझ पर भड़क पड़ी, ” यह क्या है? तुमने अपना लड़को वाला अंडरवियर पहन लिया है!”

“पर परी! मैं तुम्हारी पेंटी कैसे पहन सकता हूँ? तुम्हे पसंद नहीं कि मैं कोई भी लड़कियों वाले कपडे तुम्हारे सामने पहनू। “, मैंने ईमानदारी से जवाब दिया क्योंकि सचमुच परी को यह पसंद नहीं था।

“तुम भूल रहे हो कि तुम मेरे शरीर में हो! मेरे शरीर को मेरे कपडे पहनाओ!”

“तो क्या तुम भी अब मेरे लड़को वाले कपडे पहनोगी?”, मैंने पूछा।

“हाँ! मैं अपनी ड्रेसेस तुम्हारे शरीर पर चढ़ा कर निकलूंगी तो दुनिया तो हम पर हँसेगी ही और मेरी ड्रेसेस भी ख़राब हो जाएगी! क्या तुम्हारे पास ज़रा भी अक्ल नहीं है? और किसने तुम्हे मेरे बालों को धोने कहा था। मैंने कल ही तो धोये थे। और देखो कैसे तुमने उन्हें गूँथ दिया है। मैंने इतने प्यार से संभाल कर इन्हें लंबा किया और तुम इन्हें एक दिन में ख़राब कर दोगे।” परिणीता की बात तो सच थी। मुझे भी लग रहा था कि मुझे बालों को इस तरह रगड़ रगड़ कर नहीं पोंछना चाहिए था। पर मेरे पास औरत होने का अनुभव न था।

“चलो, अब जल्दी से सही कपडे पहनो।”, गुस्से में परिणीता बोली।


मैंने उसके ड्रावर से एक सुन्दर सी गुलाबी रंग की पेंटी और मैचिंग ब्रा निकाली। मुझे एक बात की ख़ुशी तो थी की मुझे झट से ब्रा पहनना आता था। छुप छुप कर ही सही पर आसानी से ब्रा पहनना सिख चुकी थी मैं। परिणिता ने मुझे ब्रा पेंटी पहनते देखा पर कुछ बोली नहीं। ब्रा और पेंटी मेरी स्मूथ त्वचा पर परफेक्ट फिट आ गयी। पहली बार मैं असली स्तनों पर ब्रा पहन रही थी। परफेक्ट फिट का कम्फर्ट मेरे स्तनों पर पहली बार महसूस की थी। अचानक ही मेरे दिमाग में कहीं से एक तस्वीर उभरी कि जैसे कोई मेरी ब्रा उतार कर मेरे स्तनों को होठो से चुम रहा है। मैंने अपना सिर हिलाया तो थोड़ा होश सा आया। मैं खुद को कमरे में लगे आईने में एक पल को देखि। मैं बहुत सेक्सी लग रही थी। क्योंकि परिणीता मुझे देख रही थी, मैं जल्दी से उसका क्लोसेट खोल कर कपडे ढूंढने लगी पहनने के लिए। मैं फिर किसी कारण से उसे नाराज़ नहीं करना चाहती थी।


क्लोसेट खोलते ही एक तरफ मुझे उसकी सुन्दर महँगी साड़ियाँ दिखी। परी ने इन्हें मुश्किल से एक बार पहनी होगी या वो भी नहीं। मेरा उन्हें पहनने का बड़ा मन करता रहा है पर मैंने कभी उसकी साड़ियों को हाथ नहीं लगाया। आज तो जैसे मैं हक़ से इन साड़ियों को देख कर निहार रही थी। क्या आज एक पहन लूँ ? कौनसी पहनू? सच कहूँ तो मुझे पता था कि किस साड़ी पर मेरा पहले से दिल आया हुआ था। पर परिणीता के सामने मैं कुछ देर कंफ्यूज होने का नाटक करना चाहती थी। मैं नहीं चाहती थी कि उसे लगे कि हमारी इस नयी स्थिति में मैं बहुत खुश हूँ। मैं यह सब सोच ही रही थी कि परिणिता ने कहा, “आज दिवाली नहीं है कि आप साड़ी पहनो। मैंने एक ड्रेस निकाल कर रखी है कल रात से ही, आज पहनने के लिए। उसे पहन लेना। मैं नहाने जा रही हूँ। मेरे आते तक तैयार रहना| मुझे पता है तुम्हे ड्रेस पहनना आता ही होगा।


परिणीता इस बारे में गलत थी। मैं पारंपरिक भारतीय नारी के सामान थी, मुझे ड्रेस पहनने का ज्यादा अनुभव नहीं था। मैं ही जानती हूँ कि कितनी मुश्किल से मैंने ड्रेस में पीछे पीठ पर चेन चढ़ाई थी। परी ने साथ में एक पेंटीहोज भी रखी थी पहनने के लिए। यहाँ ठण्ड के दिनों में औरतें पैरो को ढकने के लिए पेंटीहोस पहनती है। स्मूथ पैरो पे पैंटीहोज पहनना बड़ा आसान था। मुझे बहुत ज़रुरत भी महसूस हो रही थी क्योंकि मुझे ठण्ड लग रही थी। घर का तापमान तो ठीक ही था पर पता नहीं क्यों आज ज्यादा ठण्ड लग रही थी और ऊपर से यह घुटनो तक की ड्रेस। पता नहीं परी ऐसे मौसम में भी क्यों छोटी लंबाई की ड्रेस पहनती है! मुझे मेरी अपनी हरी साड़ी याद आ गयी जो मैंने कल शाम को पहनी थी। ठण्ड में भी अच्छी गर्म थी वो और मैं ऊपर से निचे तक पूरी तरह उससे ढंकी हुई थी। कहीं से ठण्ड लगने का सवाल ही नहीं था।

अब मैंने एक मैचिंग स्वेटर भी निकाल कर पहन लिया था। और बस परी के बाथरूम से बाहर निकलने का इंतज़ार करने लगी। परी बहुत देर लगा रही थी। मुझे थोड़ी चिंता होने लगी थी। न जाने क्या बात हो गयी थी।
 
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