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Romance मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक .......

रागिनी की कहानी के बाद आप इनमें से कौन सा फ़्लैशबैक पहले पढ़ना चाहते हैं


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    43

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,765
117,167
354
अध्याय 36 आपके सामने प्रस्तुत है
कृपया पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया दें
Aakhir update aa hi gaya,,,,, :vhappy:


:reading:
 

firefox420

Well-Known Member
3,371
13,848
143
kami bhiya ab to aur koi update nahi aane wala na Nilu bhabi par .. iss baar to ek he jhatke mein saari ram-katha khatam kar di ...

sab-kuch set hogaya tha .. bas ek to Najma se ruka nahi gaya .. waise uska to samjh mein bhi aata hai .. uski ek bhi beti thi .. jiske sahare wo abhi tak jinda thi .. aur saari duniya bhar ke shareefo ko chhod kar wo iss duniya ke sabse harami aadmi ke sabse jugadi aur tharki bete ke saath thi .. to uska chinta karna to samajh mein aata hai .. aur wo lazmi bhi tha .. magar kuch bhi kaho .. iss kahani ka asli hero to Vikram ke pita VijayRaj he hai ...

well ab Neelam bhabi ne apni saari safaayi to pesh kar di .. ab dekhte hai .. Raagini didi, Anuradha, aur Prabal ka kya reaction hota hai .. Raagini aur Aruradha ka to fir bhi kaafi justifiable lagta hai .. magar Prabal shayad thoda insecure feel kare ki .. particularly 2 baccho mein usko he kyu alag kiya gaya .. ab aage uski samajhdaari aur uski emotional intelligence ki parakh hone wali hai ...

waise aisa kaise ho sakta hai .. ki Vikram ne illegally kayi saalo tak LOC ke dono taraf jaa - jaa kar life ji aur kisi bhi desh ki police ya khufiya agencies ko iski bhanak bhi na lag paayi ...

bahut he umda addayatan tha .. aage bhi aise he romanchkaari safar se ru-be-ru hone ki utsukta rahegi ...

well done judge saab ... :)
 

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
9,656
37,299
219
kami bhiya ab to aur koi update nahi aane wala na Nilu bhabi par .. iss baar to ek he jhatke mein saari ram-katha khatam kar di ...

sab-kuch set hogaya tha .. bas ek to Najma se ruka nahi gaya .. waise uska to samjh mein bhi aata hai .. uski ek bhi beti thi .. jiske sahare wo abhi tak jinda thi .. aur saari duniya bhar ke shareefo ko chhod kar wo iss duniya ke sabse harami aadmi ke sabse jugadi aur tharki bete ke saath thi .. to uska chinta karna to samajh mein aata hai .. aur wo lazmi bhi tha .. magar kuch bhi kaho .. iss kahani ka asli hero to Vikram ke pita VijayRaj he hai ...

well ab Neelam bhabi ne apni saari safaayi to pesh kar di .. ab dekhte hai .. Raagini didi, Anuradha, aur Prabal ka kya reaction hota hai .. Raagini aur Aruradha ka to fir bhi kaafi justifiable lagta hai .. magar Prabal shayad thoda insecure feel kare ki .. particularly 2 baccho mein usko he kyu alag kiya gaya .. ab aage uski samajhdaari aur uski emotional intelligence ki parakh hone wali hai ...

waise aisa kaise ho sakta hai .. ki Vikram ne illegally kayi saalo tak LOC ke dono taraf jaa - jaa kar life ji aur kisi bhi desh ki police ya khufiya agencies ko iski bhanak bhi na lag paayi ...

bahut he umda addayatan tha .. aage bhi aise he romanchkaari safar se ru-be-ru hone ki utsukta rahegi ...

well done judge saab ... :)
Bhai apke itne shandaar review ke ekmatr sawal ki itne sal sarhad ke ar-par ana jana kaise hua.... Ka ek hi jawab hai....
Jawab sabko pata hai... Lekin batayega koi nahi... Sari duniya me rojana karodo nahi to lakhon log jarur sarhadein par karte hi hain
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,765
117,167
354
अध्याय 36

मुन्नी के घर के बाहर पहुँचकर विक्रम ने नीलोफर को अंदर जाने को कहा और खुद अपनी गाड़ी को एक ओर लगाकर आने का बताया। नीलोफर जब मुन्नी के घर पहुंची तो वहाँ मुन्नी के साथ-साथ नाज़िया भी मौजूद थी। नीलोफर को देखते ही उसने उठकर नीलोफर के मुंह पर थप्पड़ मारा तो ममता और मुन्नी ने आगे बढ़कर नाज़िया और नीलोफर को सम्हाला

“ये क्या किया तूने... पता है... विक्रम ने उन दोनों को पुलिस के हवाले कर दिया और अब में या तू उस घर या इस शहर तो छोड़ इस देश में भी नहीं रह सकते... पुलिस ने उस पूरे मकान कि तलाशी ली और उन्हें मेरे बारे में सब पता चल गया... वो तो उस लड़के और लड़की को इन सबके बारे में कोई जानकारी नहीं थी... इसलिए हम यहाँ बैठे हैं... वरना अब तक इन सब ठिकानों पर पुलिस पहुँचकर हमें और इन सबको ले गयी होती...” नाज़िया ने गुस्से से नीलोफर को घूरते हुये धीरे से कहा

“तो क्या करतीं आप? कब तक उन दोनों को छिपाकर रखतीं... कभी न कभी तो उन्हें बाहर निकालना ही था...” नीलोफर ने भी गुस्से से ही कहा

तब तक विक्रम भी गाड़ी खड़ी करके मुन्नी के फ्लॅट पर पहुँच गया जब उसने अंदर से नाज़िया और नीलोफर की तेज आवाजें सुनी तो दरवाजे को धकेलते हुये अंदर घुसा

“नाज़िया आंटी! पहले मेरी बात सुनो...फिर कुछ बोलना” भिड़े हुये दरवाजे को खोलकर अंदर आते हुये विक्रम ने कहा

“बोलो अब क्या बोलना है तुम्हें... तुमने अपने बाप और बुआ को तो बचा लिया ... में ही कुर्बानी के लिए मिली...तुम बाप-बेटे ने भी हम माँ-बेटी की ज़िंदगी जहन्नुम बनाने में कोई कसर नहीं रखी....” गुस्से से भड़कते हुये नाज़िया ने कहा

“आंटी आपके बारे में नेहा ने भी कुछ नहीं कहा था... मेंने उसे समझा दिया था... लेकिन उस लड़के पर जब पुलिस ने अपना कहर ढाया तो वो तोते कि तरह सब बोलता चला गया... अब इसमें मेरी कोई गलती नहीं है... में सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ कि आप यहाँ से कहीं गायब हो जाओ... इस बारे में पापा से बात करो... वो कुछ इंतजाम कर ही देंगे... लेकिन न जाने कैसे हालात हों... इसलिए में नीलोफर को अपने कोटा वाले घर में छोड़ देता हूँ.... अब ये न तो उस घर में रह सकती है और न ही उस कॉलेज में पढ़ सकती है... अगर इस शहर में भी रही तो पुलिस इसे पकड़कर आपको दबोचने की कोशिश करेगी .... आपको कोटा ले जाने में ये मुश्किल है कि परिवार के लोगों से में क्या कहूँगा... इसलिए आपके लिए जो करना होगा पापा ही कर सकते हैं” विक्रम ने कहा

“लेकिन में नीलोफर को ऐसे अकेला कैसे भेज सकती हूँ तुम्हारे साथ” नाज़िया बोली

“आंटी आपको मुझ पर भरोसा हो या न हो... नीलोफर पर तो भरोसा है... और नीलोफर को मुझ पर भरोसा है या नहीं ....ये आप उससे पूंछ लो” विक्रम ने कहा तो नीलोफर ने तुरंत कहा

“माँ में विक्रम के साथ कहीं भी जाने या रहने को तैयार हूँ.... आप मेरी चिंता मत करो.... अपना देखो कि इस मामले से कैसे निकलोगी” कहते हुये नीलोफर विक्रम के साथ जाकर खड़ी हो गयी

“लेकिन जब तुम्हारी हमउम्र नीलोफर को साथ रखने पर तुम्हारे परिवार वालों को कोई ऐतराज नहीं तो मुझे साथ रखने में क्यों होगा... में तो तुम्हारी माँ की उम्र की हूँ? कहीं इसमें तुम्हारी कोई चाल तो नहीं... मेरी बेटी को क्या घुट्टी पीला दी जो वो मुझे छोडकर तुम्हारे साथ जाने को मारी जा रही है” नाज़िया ने भड़कते हुये कहा और घूरकर विक्रम व नीलोफर को देखा

“आंटी मेंने आजतक आपको कोई नुकसान पहुंचाया है कभी? मेरे पापा के साथ आप अपनी मजबूरी में जुड़ीं लेकिन उन्होने भी आपको कुछ न कुछ सहारा ही दिया होगा... मुझे नहीं पता हमारे बारे में आपके मन में क्यों और कैसे ये जहर भर गया... में आपको इसलिए नहीं ले जा रहा क्योंकि इस धंधे सिर्फ लड़कियों के ही नहीं, ड्रग्स और पासपोर्ट के भी... हर उस धंधे से जुड़ा व्यक्ति जो आप और पापा चलते हो.... आपको जानता और पहचानता है.... उनमें से कुछ पुलिस के मुखबिर भी हैं.... जब मुझे पता चल गया कि आपके उस लड़के ने क्या बयान दिया है पुलिस के सामने, आपको भी पता चल गया ....तो कल को आपके बारे में भी कोई बता सकता है.... और पुलिस आपके पीछे पागलों की तरह पड़ी हुई है.... आपके पड़ोसी देश की नागरिक होने के कारण......... मामला बड़ा है... इसलिए आपको ले जाने का रिस्क में नहीं लूँगा............रहा नीलोफर का सवाल ...तो... नीलोफर का सिर्फ नाम पता है उन्हें... फोटो मिला है उन्हें.... लेकिन उनका कोई मुखबिर या आपके धंधों से जुड़ा कोई भी व्यक्ति नीलोफर को नहीं जानता... इसलिए में नहीं चाहता कि ऐसे माहौल में नीलोफर आपके साथ रहे और वो पुलिस या आपके धंधे से जुड़े लोगों की नज़र में आए, कुछ भी हो... लेकिन हम सब में, नीलोफर, ममता, शांति, दीपक, कुलदीप और रागिनी दीदी... सब बचपन से एक परिवार कि तरह किसी न किसी तरह आपस में जुड़े रहे हैं.... इसलिए मुझे नीलोफर कि इतनी चिंता है...” विक्रम कि बात सुनने के बाद ना सिर्फ नाज़िया बल्कि नीलोफर, ममता, शांति और मुन्नी देवी भी थोड़ी देर तक उसकी ओर देखती रह गईं और कुछ कह ना सकीं

“ठीक है... लेकिन मुझे वहाँ का पता और अगर कोई फोन नंबर हो तो वो भी, दे दो जिससे में तुमसे संपर्क में रहूँ” आखिर हथियार डालते हुये नाज़िया ने कहा

“आंटी में आपको कोई भी जानकारी नहीं दूँगा... हो सकता है कल को कोई आपके जरिये नीलोफर तक भी पहुँच जाए.... रही नीलोफर से मिलने की बात... तो जब सब कुछ शांत हो जाएगा तो पापा आपको मुझ तक पहुंचा देंगे या आपकी सूचना मुझ तक पहुंचा देंगे तो में नीलोफर को लेकर आ जाऊंगा.... बीच में भी आप पापा से बोलकर मुझसे नीलोफर कि जानकारी प्रपट कर सकती हैं...” विक्रम ने सपाट लहजे में नाज़िया को समझते हुये कहा

इस सारी बातचीत के दौरान जिकों लेकर ये सब बातें हो रही थीं... यानि नीलोफर... वो चुपचाप खड़ी उनकी बातें ही सुनती रही... खुद कुछ भी नहीं बोली। विक्रम ने बात खत्म कि और नीलोफर को अपना जरूरी सामान कपड़े आदि लेकर साथ आने के लिए कहा और नेचे जाकर अपनी गाड़ी में बैठ गया

“विजय... अब विक्रम नीलोफर को अपने साथ ले जा रहा है... कह रहा है कि वो उसे कोटा में अपने घर में सुरक्शित रखेगा” नाज़िया ने विक्रम के जाते ही विजयराज को फोन मिलाया और सारी बात बता दी जो उसके और विक्रम के बीच हुई थी

“कोई बात नहीं ... ये तो और भी अच्छा रहा... तुम किसी बात कि चिंता मत करो कोटा के पास मेरे भाई देवराज की हवेली है वो वहीं ले जा रहा है... वहाँ मेरा भतीजा रविन्द्र रहता है... अगर कोई परेशानी हुई तो वो सबकुछ सम्हाल भी लेगा... किसी भी तरह से....... और तुम्हें जब भी नीलोफर से बात करनी हो में करवा दिया करूंगा” उधर से विजयराज ने कहा तभी अंदर से अपना बैग लेकर नीलोफर भी वहाँ आ गयी

“अब तो हो गयी तसल्ली आपको? विजयराज अंकल ने भी कह दिया... अब तो में जाऊँ?” नीलोफर ने कहा तो नाज़िया ने फोन रखते हुये सहमति में सिर हिलाया और आगे बढ़कर नीलोफर को गले लगा लिया

“आज पहली बार तू मुझसे दूर जा रही है? अपना ख्याल रखना। मेरा तेरे सिवा कोई भी नहीं इस दुनिया में। में ये ज़िंदगी सिर्फ तेरे लिए ही जी रही हूँ” नाज़िया ने नीलोफर को गले लगाकर कहा तो एक बार को तो नीलोफर का मन हुआ कि वो विक्रम से हुई सारी बात नाज़िया को बता दे... लेकिन फिर उसने सोचा कि पहले शादी हो जाए... तभी बताऊँगी तो आखिरकार इन्हें और विजयराज अंकल दोनों को ही ये रिश्ता कबूल करना ही पड़ेगा। फिर नीलोफर वहाँ से निकलकर विक्रम की गाड़ी में बैठी और चल दी एक अंजान सफर पर, अपने बचपन के प्यार के साथ।

नीलोफर को लेकर विक्रम चल दिया, नीलोफर अपने ख्यालों में खो गयी। नीलोफर सिर्फ प्यार या आकर्षण की वजह से विक्रम से शादी नहीं करना चाहती थी.... उसे भलीभाँति पता था कि उसकी माँ का पाकिस्तानी घुसपेथिया होना कभी भी ना सिर्फ उसकी माँ की ज़िंदगी में बल्कि उसकी अपनी ज़िंदगी में भी अस्थिरता ला सकता है। विक्रम से शादी करने से उसे ना सिर्फ यहाँ का नागरिक होने का प्रमाणन मिल जाना था बल्कि उसकी ऐसी सब पहचान भी खत्म हो जानी थीं जो उसके लिए परेशानी खड़ी करतीं।

अचानक नीलोफर ने देखा कि वो एक शहर से होकर निकल रहे हैं तो उसने वहाँ दुकानों पर लगे बोर्ड पर ध्यान दिया तो वहाँ बागपत उत्तर प्रदेश लिखा देखकर वो चौंक गयी। हालांकि वो कभी दिल्ली क्षेत्र से बाहर नहीं गयी थी लेकिन पढ़ लिखकर उसे ये तो मालूम ही चल गया था कि कौन सी जगह कहाँ पर है।

“ये हम इधर कहाँ जा रहे हैं... ये तो कोटा से बिलकुल उल्टी तरफ है” नीलोफर ने विक्रमादित्य से कहा

“अगर हम कोटा जाते तो वहाँ तुम्हारे माँ और मेरे पापा भी पहुँच जाते और शायद हमारे पीछे-पीछे ही पहुँच जाते... तब क्या करते... फिर तो वही दिल्ली वाली हालत हो जाती... इसलिए हम कहीं और जा रहे हैं... वहाँ चलकर शादी करते हैं फिर देखते हैं कहाँ रहना है, क्या करना है”

“ठीक है, जैसा तुम्हें सही लगे” नीलोफर ने कहा और विक्रम के कंधे से सिर टिकाकर गाना गाने लगी

तुझे जीवन की डोर से बांध लिया है........

बांध लिया है...........

तेरे जुल्मो सितम सर आँखों पर


.............................................

इसी तरह इधर विक्रम और नीलोफर शहर-शहर बदलते इन लोगों कि नज़रों से छुपते फिरते रहे उधर विजयराज ने जब नाज़िया को बताया कि विक्रम और नीलोफर का कोई आता पता ही नहीं तो नाज़िया भी अपने छुपने के ठिकाने से बाहर निकलकर दिल्ली आ गयी और चुपचाप इन दोनों की तलाश करने लगी। जब किसी भी तरह से उसे कुछ पता नहीं चला तो नाज़िया ने विजय पर दवाब बनाना शुरू किया कि या तो वो नीलोफर को तलाश करके विक्रम से छुड़कर उसके हवाले करे या फिर बदले में अपनी बेटी रागिनी को नाज़िया कि जगह ये धंधा सम्हालने के लिए नाज़िया के हवाले करे वरना नाज़िया ना सिर्फ विजय बल्कि मुन्नी और विमला को भी अपने साथ जेल तक पहुंचा देगी। विजय शुरू में तो भड़क गया लेकिन मुन्नी और विमला ने जब डर कि वजह से नाज़िया के साथ मिलकर उसपर दवाब बनाना शुरू किया तो वो भी ना-नुकुर के बाद बेमन से तैयार हो गया... पर उसने अपनी एक शर्त राखी कि उसकी बेटी रागिनी के साथ कोई भी बाहरी आदमी कुछ नहीं करेगा...जो कुछ भी करना है वो खुद करेगा। इस बात पर नाज़िया सहमत तो हो गयी लेकिन उसने विजय को कोई चालाकी करने से रोकने और दवाब बनाए रखने के लिए मुन्नी की बेटी और विमला की बहू ममता को इस काम पर लगाया कि वो रागिनी को विजयराज के साथ चुदाई करने का इंतजाम करे और उसकी विडियो रिकॉर्डिंग करके नाज़िया को दे। ममता ने इस काम में रागिनी कि सहेली सुधा को शामिल करना चाहा और सुधा को ब्लैकमेल करके तैयार कर लिया... साथ ही उसने सोचा कि विजयराज के साथ-साथ अगर बलराज को भी इस मामले में शामिल कर लिया जाए तो सबूत और भी मजबूत बन जाएगा। आखिरकार ममता ने अपनी योजना पर काम करना शुरू कर दिया इधर सुधा ने भी किसी तरह नेहा का पता लगाकर उसे ममता की इस योजना के बारे में विक्रम को खबर करने को कहा... सुधा का अंदाजा सही था, विक्रम दिल्ली की गतिविधियों की जानकारी के लिए सिर्फ नेहा के ही संपर्क में था। और किसी पर वो भरोसा भी नहीं कर सकता था क्योंकि नाज़िया को जननेवाला उसका हर परिचित... विजय का जानकार था...

विक्रम को ये खबर मिलते ही उसने अपने छुपने के ठिकाने से नीलोफर को लेकर वापसी की, उस समय नीलोफर के पेट में बच्चा होने की वजह से विक्रम उसे अकेला भी नहीं छोडना चाहता था। विक्रम ने दिल्ली आकर सुधा से मुलाक़ात की तो पता चला की विमला रागिनी को लेकर गायब है, विजय मुन्नी और नाज़िया विमला और रागिनी की तलाश कर रहे हैं। हुआ ये कि ऐन वक़्त पर जब विमला रागिनी को लेकर नाज़िया के हवाले करने जा रही थी जहां ममता विजयराज और बलराज को लेकर अनेवाली थी... तभी विमला कि अंतरात्मा ने उसे ऐसा करने से रोक दिया। विमला को याद आया कि कैसे उसे बचपन में उसकी भाभियों यानि रागिनी कि ताई और माँ ने अपनी बेटी कि तरह पाला... उसकी सगी माँ से ज्यादा ख्याल रखा... तो वो रागिनी को उनके हवाले करने की बजाय उसे लेकर अपनी ससुराल आगरा चली गयी।

इधर विक्रम ने सुधा के बताए अनुसार पहले ममता से मुलाक़ात की तो विक्रम के खौफ से ममता ने उसे सारा सच बता दिया। विक्रम, बलराज और नाज़िया सभी विमला और रागिनी की तलाश करने लगे... लेकिन विक्रम कि विजयराज और नाज़िया से मुलाक़ात नहीं हुई। इधर किसी तरह अंदाजा लगाकर अचानक ही विजयराज के दिमाग में विमला की ससुराल का ख्याल आया तो वो नाज़िया को लेकर वहाँ को चल दिया... इधर विक्रम के दिमाग में विमला को लेकर पहला ख्याल ही आगरा जाने का आया। इस तरह से सभी लगभग साथ-साथ ही विमला की ससुराल पहुंचे। वहाँ पहुँचकर जब सभी का आमना सामना हुआ तो विमला ने मौके कि नज़ाकत को देखते हुये रागिनी को विक्रम के हवाले कर दिया और खुद विजयराज व नाज़िया के साथ दिल्ली वापस लौटने को तैयार हो गयी। नाज़िया ने विक्रम के साथ रागिनी को जाने देने के लिए अपनी शर्त रख दी कि दिल्ली पहुँचकर विक्रम नीलोफर को उसके हवाले कर देगा। तो विक्रम ने नाज़िया को बताया कि उसने और नीलोफर ने शादी कर ली है साथ ही नीलोफर माँ बननेवाली है। नाज़िया ने कहा कि उसे इससे कोई ऐतराज नहीं है... लेकिन विक्रम एक बार नीलोफर से मिलवाये। इसके बाद वो सभी दिल्ली वापस आने लगे तो रास्ते में पलवल के पास मेवात इलाके के जंगल में उन्हें पाकिस्तानी इंटेलिजेंस के लोगों ने घेर लिया। वहाँ आपस में गोलीबारी हुई जिसमें विमला मारी गयी और रागिनी के सिर में चोट लगकर वो बेहोश हो गयी। आखिरकार इंटेलिजेंस वाले इन सबको मेवात के एक मुस्लिम गाँव में ले गए और विक्रम को इस शर्त पर छोड़ा कि वो नीलोफर को लेकर यहाँ वापस आए और रागिनी को ले जाए। रागिनी चोट लगने के बाद से ही बेहोश थी। विक्रम ने भी मौके की नज़ाकत और रागिनी की हालत को देखते हुये दिल्ली वापसी कि और नीलोफर को सबकुछ बता दिया तो नीलोफर ने भी उससे कहा कि अभी उसके हालात को देखते हुये उसके साथ कोई कुछ नहीं कर पाएगा जब तक कि उसके बच्चे का जन्म नहीं हो जाता, क्योंकि अगर उसके बच्चे को मरने कि कोशिश कि या उसके साथ जबरन बलात्कार करने कि कोशिश कि गयी तो बच्चे के साथ-साथ वो भी मारी जाएगी, अगर ऐसा हुआ तो नाज़िया उनके हाथ से निकल जाएगी...जो कि पाकिस्तानी इंटेलिजेंस नहीं चाहेगा। अभी विक्रम उसे उन लोगों के हवाले करे और रागिनी को बचाए उसके बाद अगर विक्रम को सच में नीलोफर से प्यार है तो वो लाहौर आकार उसे वापस लेकर आयेगा।

और हुआ भी ऐसे ही... बस कुछ तब्दीलियों के साथ

............. विक्रम और नीलोफर मेवात पहुंचे तो नीलोफर के हालात को देखते हुये इंटेलिजेंस वालों ने नीलोफर को गुपचुप तरीके से पाकिस्तान में घुसाने में असमर्थता जाहिर की और नीलोफर के बिना नाज़िया ने जाने से इंकार कर दिया। तब विक्रम ने कहा कि वो रागिनी को सुरक्षित जगह पर छोडकर यहाँ नीलोफर के साथ बच्चा होने तक रहेगा... बच्चा होने के बाद वो और नीलोफर बच्चे के साथ पाकिस्तान आ जाएंगे और फिर हमेशा वहीं रहेंगे.... नाज़िया के साथ। विक्रम को नए नाम राणा शमशेर अली के नाम से और नीलोफर को उसकी पत्नी के तौर पर पाकिस्तानी पासपोर्ट, भारतीय वीजा और उनके भारत में आने की जानकारी दर्ज करना पाकिस्तानी इंटेलिजेंस का काम होगा.... जिससे कि बच्चा होने के बाद वो लाहौर वापिस जा सकें।

इस तरह नाज़िया को लेकर वो लाहौर वापस लौट गए और विक्रम रागिनी व नीलोफर दोनों को लेकर दिल्ली वापस लौटा। दिल्ली आकर विक्रम ने ममता को रागिनी के अफरन और जान से मारने के मामले में पुलिस को ले जाकर गिरफ्तार करा दिया... विजय और मुन्नी पहले ही गायब हो गए मेवात से निकलते ही। रागिनी कि तबीयत ठीक होने पर जब उसे होश आया तो पता चला कि उसकी याददास्त चली गयी है तो विक्रम ने उसे ले जाकर कोटा में अपनी हवेली में छोड़ा... जहां पहले ही वो ममता की बेटी अनुराधा को पुलिस से अपनी कस्टडि में लेकर छोड़े हुये था...

इधर दिल्ली में जब नीलोफर को बच्चा पैदा होने के लिए भर्ती कराया गया तब तक लाहौर से कागजात आ चुके थे तो नाम पता राणा शमशेर आली और उसकी पत्नी जो उमेरकोट पाकिस्तान के रहने वाले थे दर्ज कराया गया। यहाँ एक रहस्योद्घाटन हुआ... नीलोफर के जुड़वां बच्चे थे.... इसकी जानकारी मिलते ही विक्रम ने अस्पताल के लोगों से मिलकर इस बात को दबा दिया और बच्चे पैदा होते ही रेकॉर्ड में केवल एक बच्चा दर्ज करवाया तथा दूसरे बच्चे को ले जाकर कोटा रागिनी के पास छोड़ आया।

अब नीलोफर कि वजह से विक्रम को पाकिस्तान तो जाना ही था... क्योंकि उन लोगों से बिगाड़कर वो नीलोफर को यहाँ नहीं रख सकता था वरना यहाँ की पुलिस नीलोफर को पकड़कर पाकिस्तान भेज देती...इन सब हालात को गौर करते हुये विक्रम उर्फ राणा शमशेर अली अपनी पत्नी नीलोफर और बेटे राणा समीर के साथ पाकिस्तान में रहने लगा... बीच-बीच में वो चुपके-चुपके घुसपैठिए के रूप में सरहद पार करके कोटा भी आता जाता रहता था।

फिर एक दिन नाज़िया अपनी ज़िंदगी से आज़ाद हो गयी... नाज़िया की मौत के बाद विक्रम ने वापस हिंदुस्तान लौटने के लिए एक योजना बनाई। विक्रम की नकली लाश श्रीगंगानगर में बरामद करा दी गयी जिससे यहाँ उसकी मौत प्रमाणित हो जाए साथ ही पाकिस्तान में उनका घर आतंकवादी हमले में बम से उड़ा दिया गया जीमें राणा शमशेर अली, नीलोफर जहां और राणा समीर मारे गए। विक्रम नीलोफर और समीर को लेकर गुपचुप तरीके से सरहद पार करके चंडीगढ़ पहुंचा और नए नामों... रणविजय सिंह, नीलम सिंह व समर प्रताप सिंह …….. के रूप में चंडीगढ़ में बस गया।

...............................................

“अब बताइये रागिनी दीदी और सुशीला दीदी आप भी......... इस सब में हमारी क्या गलती थी... या हमने क्या गलत किया... किसी के भी साथ... आज क्या मुझे अपने ही बेटे को अपने सीने से लगाने का हक नहीं है

.........................................
Waaah kya baat hai, zabardast kamdev bhai,,, :claps:
Vikram to sach me mastermind aadmi tha. Baap dadaao ne bade bade gul khilaye magar vikram ne filhaal achhe kaam kiye. Ragini ki ijjat to bacha li magar muthbhed me goli lagne se uski yaad-daast chali gayi. Khair abhi to bahut kuch baaki hai. Is liye dekhte hain aage kya hua tha,,,, :waiting:
 

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अध्याय 5

घर की घंटी बजने पर मोहिनी देवी ने दरवाजा खोला तो बाहर अभय और ऋतु एक अंजान लड़की और लड़के के साथ खड़े दिखे... उन्होने किनारे हटते हुये रास्ता दिया और सबके अंदर आने के बाद दरवाजा बंद करके उन सभी को सोफ़े पर बैठने का इशारा करते हुये खुद भी बैठ गईं... ऋतु की हालत उनको कुछ ठीक नहीं लगी तो उन्होने पूंछा

“क्या हुआ ऋतु... तेरी तबीयत ठीक नहीं है क्या?”

“नहीं माँ! में ठीक हूँ...” ऋतु ने धीरे से कहा और नौकर को आवाज देकर सबके लिए चाय लाने को कहा, फिर अपनी माँ से पूंछा “पापा अभी नहीं आए क्या?”

“आने ही वाले हैं...मुझे ऐसा क्यूँ लग रहा है कोई बात है जो तू मुझसे कहना चाहती है”

“माँ! विक्रम भैया नहीं रहे....”अपने रुके हुये आंसुओं को बाहर आने का रास्ता देते हुये ऋतु ने मोहिनी के गले लगकर रोते हुये कहा... तो एक बार को मोहिनी देवी उसका मुंह देखती ही रह गईं... फिर जब समझ में आया की ऋतु ने क्या कहा है तो उनकी भी आँखों से आँसू बहने लगे... तभी फिर से दरवाजे की घंटी बजी तो अभय ने उठकर दरवाजा खोला... बाहर बलराज सिंह थे ...अभय को अपने घर का दरवाजा खोलते देखकर उनको अजीब सा लग और बिना कुछ बोले चुप खड़े रह गए।

“अंकल नमस्ते!” अभय ने चुप्पी को तोड़ते हुये कहा और उन्हें अंदर आने का रास्ता दिया

अंदर आते ही बलराज सिंह ने देखा की एक सोफ़े पर मोहिनी बैठी हुई है, उसकी आँखों से आँसू निकाल रहे हैं, ऋतु उसे सम्हाले हुये है लेकिन खुद भी रो रही है... दूसरे सोफ़े पर एक लड़का और एक लड़की बैठे हुये हैं... सबकी नज़र दरवाजे की ओर बलराज सिंह पर है... तो वो जाकर मोहिनी के पास खड़ा होता है

“क्या हुआ मोहिनी? क्यों रो रही हो तुम दोनों? और ये दोनों कौन हैं”

“अंकल अप बैठिए में बताता हूँ” पीछे से अभय ने कहा तो बलराज सिंह ने सवालिया नजरों से उसकी ओर देखा और जाकर मोहिनी के बराबर मे सोफ़े पर बैठ गए

अभय भी आकार सिंगल सीट सोफ़े पर बैठ गया और बोला

“अंकल जैसा की आपको पता ही है की में विक्रम का दोस्त हूँ, हम कॉलेज मे साथ पढे थे”

“हाँ!” बलराज ने फिर प्रश्नवाचक दृष्टि से अभय को देखा

“आज सुबह मेरे पास कोटा से रागिनी का फोन आया था की श्रीगंगानगर मे पुलिस को एक लाश मिली है उन्होने रागिनी को फोन किया था ... तो रागिनी वहाँ पहुंची और लाश के पास मिले कागजातों, फोन तथा लाश के कद काठी से उसने विक्रम की लाश होने की शिनाख्त की है” अभय ने सधे हुये शब्दों मे बलराज सिंह को विक्रम की मौत की सूचना दी... एक बार को तो बलराज सिंह भावुक होते लगे लेकिन तुरंत ही संभलकर उन्होने अभय से पूंछा

“तो अब श्रीगंगानगर जाना है, विक्रम की लाश लेने?”

“नहीं अंकल रागिनी ने लाश ले ली है और वो सीधा यहीं दिल्ली आ रही है... में आपका एड्रैस उसे मैसेज कर देता हूँ...” अभय ने बताया

“ये रागिनी कौन है? ....ये सब बाद मे देखते हैं.... पहले तो उसे एक एड्रैस मैसेज करो पाहुचने के लिए.... क्योंकि विक्रम का दाह संस्कार दिल्ली मे नहीं.... उसी गाँव मे होगा जहाँ उसने और हम भाइयों ने, हमारे पुरखों ने जन्म लिया और राख़ हुये... एड्रैस नोट करो.... गाँव ...... ....... कस्बे के पास जिला..... उत्तर प्रदेश राजस्थान बार्डर से 100 किलोमीटर है .....”

अभय ने एड्रैस टाइप किया और रागिनी को मैसेज कर दिया साथ ही मैप पर लोकेशन सर्च करके भी भेज दी... फिर रागिनी को फोन किया

“हाँ अभय ये एड्रैस किसका है?” रागिनी ने फोन उठाते ही पूंछा

“रागिनी...तुम्हें विक्रम की लाश लेकर इस एड्रैस पर पाहुचना है, ये विक्रम के गाँव का पता है... में अभी विक्रम के चाचाजी बलराज सिंह जी के साथ हूँ उनका कहना है की विक्रम का दाह संस्कार उनके गाँव में ही किया जाएगा.... हम भी वहीं पहुँच रहे हैं” अभय ने उसे बताया

“ठीक है! अनुराधा और प्रबल तुम्हारे पास पहुंचे?” रागिनी ने पूंछा

“हाँ! वो दोनों अभी मेरे साथ ही यहीं पर हैं...वो हमारे साथ ही वहीं पहुंचेंगे” अभय ने अनुराधा की ओर देखते हुये कहा। अनुराधा अभय की ओर ही देख रही थी लेकिन उसने अभय की बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और वैसे ही चुपचाप बैठी रही

“ठीक है...” कहते हुये रागिनी ने फोन काट दिया

फोन कटते ही बलराज सिंह ने अनुराधा और प्रबल की ओर इशारा करते हुये पूंछा “ये दोनों कौन हैं?”

“ये आपके भाई देवराज सिंह और रागिनी के बच्चे हैं” अभय ने बताया

“देवराज के बच्चे... लेकिन उसने तो शादी ही नहीं की” बलराज ने उलझे हुये स्वर मे कहा फिर गहरी सांस छोडते हुये अभय के जवाब देने से पहले ही बोले “अभी ये सब छोड़ो.... तुम हमारे साथ गाँव चल रहे हो ना?”

“जी हाँ! में और ये दोनों भी”

“ठीक है! ऋतु तुम अपनी माँ को सम्हालो... इन्हें और तुम्हें जो कुछ लेना हो ले लो.... हम सब अभी निकाल रहे हैं 200 किलोमीटर का सफर है...रास्ता भी खराब है.... हमें उन लोगों से पहले गाँव में पहुँचना होगा...” कहते हुये बलराज सिंह ने फोन उठाकर कोई नंबर डायल किया

........................................................



उत्तर प्रदेश का एक छोटा सा गाँव.... सड़क के दोनों ओर घर बने हुये... लेकिन ज्यादा नहीं एक ओर 5-6 घर दूसरी ओर 10-12 घर गाँव के हिसाब से अच्छे बने हुये, देखने से ही लगता है की गाँव सम्पन्न लोगो का है,,,,,,,,, लेकिन ये क्या? ज़्यादातर घरों पर ताले लगे हुये जैसे उनमे किसी को आए अरसा बीत गया हो....धूल और सूखी पत्तियों के ढेर सड़क पर से नज़र आते हैं..... हर घर का मुख्य दरवाजा सड़क पर ही है....कोई गली नहीं....गाँव के शुरू में बाहर सड़क किनारे एक मंदिर है...उसकी साफ सफाई देखकर लगता है की गाँव मे कोई रहता भी है....मंदिर के सामने 2-3 बुजुर्ग सुबह के 5 बजे खड़े हुये हाइवे की तरफ सड़क पर नजरें गड़ाए हैं.... शायद किसी का इंतज़ार कर रहे हैं... लेकिन इतनी सुबह वहाँ कोई हलचल ही नज़र नहीं आ रही थी....

तभी उन्हें दूर से कुछ गाडियाँ इस ओर आती दिखाई देती हैं तो वो चोकन्ने होकर खड़े हो जाते हैं और एक बुजुर्ग गाँव मे आवाज देकर किसी को बुलाता है उसकी आवाज सुनकर 5-6 युवा लड़के गाँव की ओर से आकार मंदिर पर खड़े हो जाते हैं...

तब तक गाडियाँ भी आ जाती है... सबसे पहली गाड़ी का दरवाजा खुलता है और बलराज सिंह बाहर निकलते हैं... उन्हें देखते ही वो सब बुजुर्ग आकर उनसे गले मिलते हैं.... सभी लड़के शव लेकर आयी गाड़ी के पास पाहुचते हैं और उसमें से विक्रम का शव निकालकर मंदिर के बराबर ही खाली मैदान मे जामुन के पेड़ के नीचे जमीन पर रख देते हैं...... उस मैदान मे गाँव के अन्य आदमी औरतें शव के पास बैठने लगते हैं..... बलराज सिंह सभी को गाड़ियों से उतारने को बोलते हैं और खुद भी उन बुजुर्गों के साथ जाकर वहीं बैठ जाते हैं..... उनको देखकर ऋतु भी मोहिनी देवी को लेकर वही बढ्ने लगती है तो रागिनी आगे बढ़कर मोहिनी देवी को दूसरी ओर से सहर देकर चलने लगती है..... पीछे-पीछे अभय, पूनम, अनुराधा और प्रबल भी वहीं जाकर बैठ जाते हैं..... गाँव के युवा दाह संस्कार की प्रक्रिया शुरू करने के लिए बलराज सिंह व अन्य बुजुर्गो से पूंछते हैं तो सभी बुजुर्ग कहते हैं की विक्रम का विवाह तो शायद हुआ नहीं तो उसकी कोई संतान भी नहीं.... और कोई बेटा इनके घर मे है नहीं इसलिए बलराज सिंह को ही ये सब करना पड़ेगा... क्योंकि वो विक्रम के पिता समान ही हैं....

तभी अभय बलराज सिंह से इशारे में कुछ बात करने को कहता है.... बलराज सिंह और अभय उठकर एक ओर जाकर कुछ बातें करते हैं और लौटकर बलराज सिंह सभी से कहते हैं

“मुझे अभी अभय प्रताप सिंह वकील साहब ने बताया है की विक्रम की वसीयत इनके पास है.... उसमें विक्रम ने इच्छा जाहीर की हुई है की विक्रम की मृत्यु होने पर उसका दाह संस्कार प्रबल प्रताप सिंह करेंगे... जो हमारे साथ आए हुये हैं....”

गाँव वालों को इसमें कोई आपत्ति नहीं हुई क्योंकि ये विक्रम और उसके परिवार का निजी फैसला है की दाह संस्कार कौन करे..... लेकिन ये सुनकर मोहिनी देवी, ऋतु, रागिनी और प्रबल-अनुराधा सभी चौंक गए.....

लेकिन ऐसे समय पर किसी ने कुछ कहना या पूंछना सही नहीं समझा.... गाँव के युवाओं ने प्रबल को साथ लेकर शव को नहलाना धुलना शुरू किया.... कुछ काम जो स्त्रियॉं के करने के थे वो गाँव की स्त्रियॉं ने मोहिनी देवी को साथ लेकर शुरू किए.... कुछ युवा श्मशान मे चिता की तयारी करने चले गए....

अंततः सभी पुरुष शव को लेकर श्मशान पहुंचे और प्रबल के द्वारा दाह संस्कार करके वापस गाँव मे आए तो गाँव की स्त्रियाँ मोहिनी देवी, रागिनी व अन्य सभी को लेकर एक घर मे अंदर पहुंची और पुरुष बलराज सिंह, प्रबल आदि को लेकर उसी घर के बाहर बैठक पर पहुंचे......

…………………………………………..



“अंकल! आप सभी को रात 10 बजे एक जगह इकट्ठा होने को बोल दीजिये ... तब तक गाँव वाले और आपके जान पहचान रिश्तेदार सभी जा चुके होंगे.... मे वो वसीयत आप सभी के सामने रखना चाहता हूँ जो मुझे विक्रम ने दी थी.....उसमें कुछ दस्तावेज़ मेंने पढे हैं और कुछ लोगों ...बल्कि अप सभी के नाम अलग अलग लिफाफे हैं जो में नहीं खोल सकता... वो लिफाफे जिस जिस के हैं उन्हें सौंप दूंगा.... फिर उनकी मर्जी है की वो सबको या किसी को उसमें लिखा हुआ बताएं या न बताएं.......... जितना सबके लिए है... वो में सबके सामने रखूँगा” अभय ने बलराज सिंह को एकांत मे बुलाकर उनसे कहा

“ठीक है में घर मे बोल देता हूँ” बलराज सिंह ने बोला और अंदर जाकर मोहिनी देवी के को देखा तो वो औरतों के बीच खोयी हुई सी बैठी थीं तो उन्होने ऋतु को अपने पास बुलाकर उससे बोल दिया।

...................................

रात 10 बजे सभी लोग बैठक में इकट्ठे हुये क्योंकि घर गाँव के पुराने मकानों की तरह बना हुआ था तो केवल कमरे, बरामदा और आँगन थे.... आँगन मे सभी को इकट्ठा करने की बजाय बैठक का कमरा जो एक हाल की तरह था....वहाँ सभी इकट्ठे हुये........

अभय ने अपना बैग खोलकर उसमें से एक बड़ा सा फोंल्डर निकाला जो लिफाफे की तरह बंद था और उसमें से कागजात निकालकर पढ़ना शुरू किया

“में विक्रमादित्य सिंह अपनी वसीयत पूरे होशो हवास मे लिख रहा हु जो मेरी मृत्यु के बाद मेरी सम्पत्तियों के वारिसों का निर्धारण करेगी और परिवार के सदस्यों के अधिकार व दायित्व को भी निश्चित करेगी......

मेरी संपत्ति मे पहला विवरण मेरे दादाजी श्री रुद्र प्रताप सिंह जी की संपत्ति है जिसका विवरण अनुसूची 1 में संलग्न है.....मेरे दादा की संपत्ति संयुक्त हिन्दू पारिवारिक संपत्ति है.... जिसमें परिवार का प्रत्येक सदस्य हिस्सेदार है लेकिन वो संपत्ति परिवार के मुखिया के नाम ही है...और उसका बंटवारा नहीं होगा.... उस संपत्ति को परिवार का मुखिया ही पूरी तरह से देखभाल और व्यवस्था करेगा.... यदि परिवार का कोई सदस्य अपना हिस्सा लेना चाहे तो उसे उसके हिस्से की संपत्ति की कीमत देकर परिवार से अलग कर दिया जाएगा....... मेरे दादाजी के बाद इस संपत्ति के मुखिया मेरे पिता श्री गजराज सिंह थे लेकिन उनकी मृत्यु हो जाने के पश्चात और उनके मँझले भाई श्री बलराज सिंह के परिवार से निकाल दिये जाने तथा उनके छोटे भाई श्री देवराज सिंह के परिवार से अलग हो जाने के कारण में इस संयुक्त परिवार का मुखिया हूँ.... मेरे बाद इस संपत्ति का मुखिया प्रबल प्रताप सिंह को माना जएगा....और संपत्ति में मोहिनी देवी, रागिनी सिंह, ऋतु सिंह व प्रबल प्रताप सिंह बराबर के हिस्सेदार होंगे..... लेकिन प्रबल प्रताप सिंह का विवाह होने तक उनके हर निर्णय पर मोहिनी देवी की लिखित स्वीकृति आवश्यक है.... वो मोहिनी देवी की सहमति के बिना कोई फैसला नहीं ले सकते

मेरी दूसरी संपत्ति मेरे नाना श्री भानु प्रताप सिंह की है जिनकी एकमात्र वारिस मेरी माँ कामिनी देवी थीं लेकिन उनके कई वर्षों से लापता होने के कारण में उस संपत्ति का एकमात्र वारिस हूँ..... ये संपत्ति में मेरी मृत्यु के बाद रागिनी सिंह, ऋतु सिंह और अनुराधा सिंह तीनों बराबर की हिस्सेदार होंगी लेकिन ये संपत्ति ऋतु और अनुराधा की शादी होने तक रागिनी सिंह के अधिकार में रहेगी

मेरी तीसरी संपत्ति मेरे छोटे चाचाजी देवराज सिंह की है जिनको अपनी ननिहाल की संपत्ति विरासत मे मिली और उनके द्वारा गोद लिए जाने के कारण मुझे विरासत मे मिली.... ये संपत्ति अनुराधा और प्रबल को आधी-आधी मिलेगी लेकिन इन दोनों की शादी होने तक रागिनी सिंह के अधिकार मे रहेगी.....

और अंतिम महत्वपूर्ण बात................

रागिनी सिंह देवराज सिंह की पत्नी नहीं हैं

अनुराधा और प्रबल देवराज सिंह या रागिनी के बच्चे नहीं हैं

अनुराधा और प्रबल आपस मे भाई बहन भी नहीं हैं

लेकिन रागिनी की याददस्त चले जाने और अनुराधा व प्रबल दोनों को बचपन से इस रूप मे पालने की वजह से इन तीनों को ये जानकारी नहीं है.... लेकिन में इस दुनिया से जाते हुये इनको उस भ्रम मे छोडकर नहीं जा सकता, जो इनकी सुरक्षा के लिए मेंने इनके दिमाग मे बैठकर एक परिवार जैसा बना दिया था..... इन तीनों के लिए अलग अलग लिफाफे दे रहा हूँ.... जिनमें इनके बारे में जितना मुझे पता है... उतनी जानकारी मिल जाएगी.... ये चाहें तो इन लिफाफों मे लिखी जानकारियाँ किसी को दें या न दें.... अगर ये किसी तरह अपने असली परिवार को ढूंढ लेते हैं तो भी इनके अधिकार और शर्तों मे कोई बदलाव नहीं आयेगा”

ये कहते हुये अभय ने रागिनी, अनुराधा और प्रबल को उनके नाम लिखे हुये लिफाफे फोंल्डर में से निकालकर दिये...........

लेकिन इस वसीयत के इस आखिरी भाग ने सभी को हैरान कर दिया और उसमें सबसे ज्यादा उलझन रागिनी, अनुराधा और प्रबल को थी..... क्योंकि उन तीनों की तो पहचान ही खो गयी..... लेकिन अचानक रागिनी को कुछ याद आया तो उसने अभय से कहा

“तुम तो मेरे और विक्रम के साथ कॉलेज मे पढ़ते थे... तो तुम्हें तो मेरे बारे में पता होगा?” और उम्मीद भरी नज़रों से अभय को देखने लगी......

शेष अगले भाग में

bhiya ye kahani aapne ek masterpiece ke darje ki likhi hai.. main aaj isko dobara se padh raha hu.. dobara padhte hue bhi muzhe aaj fir se nayi kahani padhne wala romanch paida ho raha hai...

bas aur kya kahu lajawaab hai.. har ek update.. aur ab padhne mein wo pehle wali sar-chakrau pecheedgi bhi nahi utpann hui .. jo pehli baar padhte waqt hui thi... :headache:
 

kamdev99008

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bhiya ye kahani aapne ek masterpiece ke darje ki likhi hai.. main aaj isko dobara se padh raha hu.. dobara padhte hue bhi muzhe aaj fir se nayi kahani padhne wala romanch paida ho raha hai...

bas aur kya kahu lajawaab hai.. har ek update.. aur ab padhne mein wo pehle wali sar-chakrau pecheedgi bhi nahi utpann hui .. jo pehli baar padhte waqt hui thi... :headache:
भाई........................ में पाठकों को बेमतलब में नहीं घुमाता............. कहानी वास्तविकता के जितने नजदीक हो सकती है.... लिख रहा हूँ
अब ये मेरी बद्किस्मती कह सकते हैं आप..... कि मेरा जन्म ऐसे थ्रिलर परिवार में हुआ
लेकिन में खुशकिस्मती मानता हूँ.................. कि इन्हीं मुश्किलों ने मुझे इतना काबिल बनाया................
वरना तो ज़िंदगी निकल जाती है............ये हुनर सीखते-सीखते
 

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waiting .. ab to kayi dino ki aaram talbi ho gayi .. ab agle update ka intezaar hai .. jyaada samay na lijiyega .. Rana saab
 

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saab ya sahab........... to banna mujhe pasand hi nahin.....................
mere sath to ji laga lo.............wahi kafi hai :D ...................Rana Ji



agle update par kaam jaari hai...................aaj rat ya kal............jarur mil jayega
 

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भाई........................ में पाठकों को बेमतलब में नहीं घुमाता............. कहानी वास्तविकता के जितने नजदीक हो सकती है.... लिख रहा हूँ
अब ये मेरी बद्किस्मती कह सकते हैं आप..... कि मेरा जन्म ऐसे थ्रिलर परिवार में हुआ
लेकिन में खुशकिस्मती मानता हूँ.................. कि इन्हीं मुश्किलों ने मुझे इतना काबिल बनाया................
वरना तो ज़िंदगी निकल जाती है............ये हुनर सीखते-सीखते
Aisa birla hi hota hai bade bhaiya aur ye sach kaha aapne ki zindagi nikal jati hai hunar sikhte sikhte. Bhagwan ki banaayi huyi is srishti me bahut kuch aisa hai jo hamari kaalpnaao se pare hai. Aap aise ghar me paida huye aur aise aise vichitra halaato ko dekha suna aur jhela bhi. Mujhe to abhi bhi yakeen nahi hota ki aapke pariwar me aur khud aapke sath aisa kuch hua hai. Matlab saaf hai ki aisa bahut kuch hamesha rahega ya hota rahega jo ham insaano ki kalpnaao se pare hoga. Main is sabke liye ye bilkul bhi nahi kahuga ki ye sab galat tha kyo ki bhagwan hi sab kuch karne wala hota hai..ham insaan to mahaj uske haath ki kathputliya hain,,,,, :dazed:
 

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Update ka badi shiddat se intzaar hai kamdev bhai,,,, :waiting:
 
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