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Romance मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक .......

रागिनी की कहानी के बाद आप इनमें से कौन सा फ़्लैशबैक पहले पढ़ना चाहते हैं


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Chutiyadr

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भाई........................ में पाठकों को बेमतलब में नहीं घुमाता............. कहानी वास्तविकता के जितने नजदीक हो सकती है.... लिख रहा हूँ
अब ये मेरी बद्किस्मती कह सकते हैं आप..... कि मेरा जन्म ऐसे थ्रिलर परिवार में हुआ
लेकिन में खुशकिस्मती मानता हूँ.................. कि इन्हीं मुश्किलों ने मुझे इतना काबिल बनाया................
वरना तो ज़िंदगी निकल जाती है............ये हुनर सीखते-सीखते
sahi kaha tha kaamdev bhai aapne , aap bhi meri tarah khud ki tarif karne se nahi chukte :lol1:
 

kamdev99008

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sahi kaha tha kaamdev bhai aapne , aap bhi meri tarah khud ki tarif karne se nahi chukte :lol1:
डॉ साहब...........जमाना जानता है............ हमने कभी झूठ बोलना नहीं सीखा......

क्योंकि .............................

झूठ वो बोलता है ..............जो सच से डरता है...........

और हम किसी की तारीफ के मोहताज नहीं........... सवाभिमानी हैं... इसलिए अपनी तारीफ खुद कर लेते हैं

:lol1: :lol1: :lol1: :lol1: :lol1:
 
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Icu

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kamdev99008 bhiya .. Ravi aur Radha ki jo story post ki thi aapne .. kya wo aapka personal experience tha .. ya useme jo darr tha Maa ke liye sirf wo he saccha tha ...

aaj wo story dobara se padhi .. par usko padhte hue .. ek story se kuch jyaada he mehsoos hua .. pata nahi kyu aapki kahani padhte waqt main sentimental sa ho jaata hu ...
 

kamdev99008

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kamdev99008 bhiya .. Ravi aur Radha ki jo story post ki thi aapne .. kya wo aapka personal experience tha .. ya useme jo darr tha Maa ke liye sirf wo he saccha tha ...

aaj wo story dobara se padhi .. par usko padhte hue .. ek story se kuch jyaada he mehsoos hua .. pata nahi kyu aapki kahani padhte waqt main sentimental sa ho jaata hu ...
Ye to sirf ek rang hai...pahla rang... Radha
Unke alawa 7 rang aur aye....
Tan se dur huye... Man se nahi....

Maa ke bare me jo likha hai... Jo aur jaisa hai.... Sach hi hai... Jindgi musafir ki tarah kaati.... Apno ke sath na sahi... Kitno ko apna banakar.... Kitne log-kitne thikane badalte gaye...

Aaj fir ek bar... 2 mahine sath rahne ke baad maa chhote bhai ke pas chali gayin... Man bechain hai... Sham ko update pura karke post karunga....

Ap mahsus karke emotional ho gaye... Me is jindgi ko jikar bhi emotional nahi hona chahta... Wo kandha hi nahi jispar sir rakhke dil halka kar saku....
 
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amita

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Shaandar
अध्याय 13

रात को रागिनी, अनुराधा और प्रबल दिल्ली पहुंचे तो उन्होने मोहिनी देवी के यहाँ सुबह जाने का निर्णय लिया और किशनगंज वाले घर पर पहुँच गए...खाना उन लोगो ने रास्ते मे ही खा लिया था... घर पहुँचकर वो लोग फ्रेश होकर सोने की तयारी करने लगे की तभी बाहर दरवाजे पर आवाज हुई तो प्रबल ने जाकर दरवाजा खोला, बाहर रेशमा खड़ी हुई थी और उनके साथ चाय नाश्ता लिए अनुपमा भी थी.... प्रबल ने उन्हें अंदर आने का रास्ता दिया और सोफ़े पर बैठने का कहकर रागिनी को बुलाने चला गया.... रागिनी को जैसे ही रेशमा और अनुपमा के आने का पता चला तो उन्होने प्रबल से अनुराधा को भी बुलाने का कहा और खुद बाहर ड्राइंग रूम मे आकर रेशमा के पास बैठ गईं

“भाभी नमस्ते! आप इतनी रात को क्यों परेशान हुई, हम लोग तो रास्ते में ही खाना खाकर आए थे... सुबह आपसे आकार मिलते... रात हो गयी थी तो सोचा की अभी सो जाते हैं.... सफर की भी थकान थी” रागिनी ने रेशमा से कहा तो रेशमा ने रागिनी का हाथ अपने हाथों में लेते हुये बड़े प्यार से कहा

“मुझे मालूम था की तुम अभी हमें परेशान करना नहीं चाहोगी ...इसीलिए तुम्हारी गाड़ी की आवाज सुनते ही मेंने चाय बनाने को कह दिया और लेकर यहाँ आ गयी... बेशक तुम लोग रास्ते में ही खाना खाकर आए हो.... लेकिन सफर के बाद अब कुछ चाय नाश्ता करके आराम करोगे तो नींद भी अच्छी आएगी और थकान भी कम हो जाएगी.... बाकी बात तो हम कभी भी दिन में बैठकर करते रहेंगे...”

तभी प्रबल और अनुराधा भी वहाँ आ चुके थे.... और अनुराधा अनुपमा के पास जाकर बैठ गयी तो रागिनी ने प्रबल को अपने पास बैठा लिया.... फिर चाय नाश्ते के दौरान हल्की-फुलकी बातचीत होने लगी। रेशमा ने बताया की आज दिन में विक्रम की चाची मोहिनी जी अपनी बेटी के साथ यहाँ आयीं थीं तो रागिनी ने कहा की उन्होने उसे फोन किया था और उनकी बात हो गयी है... साथ ही रेशमा ने बताया की बाहर चौक पर एक दुकान है.... वहाँ जो लड़का बैठता है वो भी रागिनी के बारे में पुंछने आया था कल... तो उन्होने उसे बता दिया था की वो 1-2 दिन में वापस आ रही हैं और अब यहीं रहेंगी... ये सुनकर रागिनी सोच में पड़ गईं तो अनुराधा ने कहा कि ये शायद वही है जिससे पहले दिन हमने इस घर का पता पूंछा था.... वो उस दिन भी रागिनी को बहुत ध्यान से देख रहा था.... जैसे बहुत अच्छी तरह जानता हो। तो रागिनी ने कहा की अब तो यहीं रहना है तो फिर किसी दिन उसको भी मिल लेंगे की वो क्यों मिलना चाहता है। इस सब के बाद रेशमा और अनुपमा वापस अपने घर चली गईं और वो सब अपने-अपने कमरे में जाकर सो गए।

...............................

इधर मोहिनी क घर ... शाम को लगभग 5 बजे एक टैक्सी आकर रुकी और उसमें से बलराज सिंह उतरे और घर में आ गए। मोहिनी ने उन्हें चाय नाश्ता दिया उसके बाद उन्हें आराम करने को कहा तो वो अपने बेडरूम में जाकर लेट गए और सो गए... 7 बजे ऋतु घर आयी तो मोहिनी ने उसे चाय दी और बताया की उसके पापा आ गए हैं और सो रहे हैं तो ऋतु ने उन्हें अभी सोने देने के लिए कहा और मोहिनी देवी के साथ रात के खाने की तयारी में लग गयी। 9 बजे खाना तयार होने पर मोहिनी देवी ने बलराज सिंह को जगाया और खाने के लिए कहा तो वो फ्रेश होने चले गए, फ्रेश होकर बाहर आए तो डाइनिंग टेबल पर ऋतु और मोहिनी बैठे उनका इंतज़ार कर रहे थे, वो भी आकर वहाँ बैठ गए और सबने खाना खाया।

खाना खाकर बलराज सिंह ने मोहिनी देवी की ओर देखा तो उन्होने सहमति मे सिर हिला दिया तो बलराज सिंह ने कहना शुरू किया

“ऋतु बेटा! अब तक तुम परिवार में सिर्फ मुझे और अपनी माँ को या फिर विक्रम को जानती थी... लेकिन अब तुम्हारी माँ ने तुम्हें रागिनी और अनुराधा के बारे में भी बता दिया होगा... विमला मेरी सगी बहन थी.... मुझसे बड़ी और गजराज भैया से छोटी.... किसी वजह से उससे हमारे संबंध खत्म हो गए और उसके या उसके परिवार से हमने कोई नाता नहीं रखा.... पूरे परिवार ने ही..... फिर आज से 20 साल पहले कुछ ऐसी परिस्थिर्तियाँ बनी कि हुमें विक्रम कि वजह से विमला से दोबारा मिलना पड़ा और उसके बाद परिस्थितियाँ बिगड़ती चली गईं.... जिसमें कुछ विमला का दोष था तो कुछ मेरा...... तुम्हारी माँ का कोई दोष तो नहीं था लेकिन उसने सिर्फ एक गलती की कि वो सबकुछ देखते हुये भी चुप रही...और उसकी चुप्पी ने वो कर दिया जो कि आज तुम्हारे सामने है.... विक्रम अब इस दुनिया मे ही नहीं रहा और रागिनी कि याददास्त चली गयी... तुम और अनुराधा कुछ जानते नहीं...अभी बहुत सी बातें हैं जो तुम्हें या यूं कहो कि मेरे और तुम्हारी माँ के अलावा जानने वाला कोई नहीं रहा घर मे। ये सब धीरे-धीरे वक़्त के साथ तुम सबको बताऊंगा लेकिन शायद तुम सुन न सको... या सह न सको... इसलिए अभी उन बातों को छोडकर हमें कल सुबह रागिनी के पास चलना है.... उस बेचारी का तो कोई दोष ही नहीं... जिसकी सज़ा उसने ज़िंदगी भर भोगी....और दुख कि बात ये है कि वो अब ये भी भूल चुकी है कि दोषी कौन था.... और शायद इसी वजह से में आज उसका सामना करने कि हिम्मत कर सकता हूँ।

अब तो सिर्फ यही कहूँगा कि जैसे रागिनी सबकुछ भूल गयी याददास्त जाने की वजह से .... तुम भी कुछ जानने या समझने को भूलकर... मिलकर ज़िंदगी नए सिरे से शुरू करो....कल चलकर रागिनी और अनुराधा को भी ले आते हैं और सब साथ मिलकर रहेंगे”

ऋतु एकटक उनके चेहरे कि ओर देखती रही... उनके चुप हो जाने के बाद भी कुछ देर तक ऋतु कि नजरें बलराज सिंह के चेहरे से नहीं हट पायीं। फिर ऋतु ने एक गहरी सांस लेते हुये उनसे कहा

“पापा में भी कुछ जानना नहीं चाहती कि पहले हमारे परिवार में ऐसा क्या हुआ कि हम सब बिछड़ गए और परिवार ही बिखर गया.... में भी चाहती हूँ कि हम सब मिलकर नए सिरे से अपनी ज़िंदगी शुरू करें। में सुबह रागिनी दीदी को फोन कर दूँगी... वो भी शायद दिल्ली पहुँच रही होंगी या पहुच चुकी होंगी”

इसके बाद सब अपने-अपने कमरे में चले गए। मोहिनी और बलराज बहुत रात तक धीमे-धीमे एक दूसरे से बातें करते रहे, हँसते, मुसकुराते और रोते रहे... शायद बीती ज़िंदगी की बातें याद करके, इधर ऋतु भी अपनी सोचों मे खोयी हुई थी...अपनी ज़िंदगी के सबसे महत्वपूर्ण फैसले को लेकर। वो जानती थी की विक्रम उसकी हर जिद पूरी करता था... और विक्रम का हर फैसला उसके माँ-बाप को मंजूर होता था.... इसीलिए वो सही वक़्त के इंतज़ार में थी... जब वो विक्रम को इस बारे में बताती और उसका मनचाहा हो जाता.... लेकिन विक्रम की मौत ने तो उसे अनिश्चितता के दोराहे पर खड़ा कर दिया.... अब इन बदलते हालत में तो वो इस बारे मे कोई बात भी करने का मौका नहीं बना प रही थी... विक्रम की मौत, फिर रागिनी और उसके बच्चों का सामने आना, फिर उन सबका राज खुलना वसीयत से और अब इस नए राज का खुलासा...की रागिनी कौन है? अभी तो इस घर में न जाने और क्या क्या बदलाव आएंगे.... तब तक उसे चुप रहना ही बेहतर लगा...साथ ही एक और भी उम्मीद उसे लगी, रागिनी। हाँ! रागिनी ही अब उसके लिए विक्रम की जगह लेगी... क्योंकि रागिनी के लिए उसने अपने माँ-बाप के दिल में एक लगाव और एक पछतावा भी देखा... साथ ही रागिनी के साथ इतने दिन रहकर उसे रागिनी बहुत सुलझी हुई भी लगी....

यही सब सोचते-सोचते ऋतु भी नींद के आगोश मे चली गयी..........एक नए सवेरे की उम्मीद में

.......................................

सुबह दरवाजा खटखटाये जाने पर रागिनी की आँख खुली तो उसने बाहर आकर दरवाजा खोला तो सामने अनुपमा चाय के साथ मौजूद थी... रागिनी ने उसे अंदर आने का रास्ता दिया तब तक अनुराधा और प्रबल भी अपने कमरों से निकालकर बाहर आ चुके थे...फिर सभी ने चाय पी और रागिनी अनुपमा के साथ ही रेशमा के घर जाकर उनसे बोलकर आयी कि अब वो उनके लिए खाना वगैरह न बनाएँ... आज से रागिनी अपने घर मे सबकुछ व्यवस्था कर लेगी... क्योंकि अब इन लोगों को यहीं रहना है...रेशमा के परिवार वालों के बहुत ज़ोर देने पर भी उसने नाश्ते को ये बताकर माना कर दिया कि उन्हें अभी विक्रम कि चाची के घर जाना है...वहीं नाश्ता कर लेंगे....

घर आने पर रागिनी को पता चला कि ऋतु का फोन आया था कि वो लोग आ रहे हैं तो रागिनी ने अनुराधा और प्रबल से घर का समान लेने के लिए बाज़ार चलने को कहा। अभी उनकी गाड़ी गली से बाहर निकलकर चौक पर पहुंची ही थी की रागिनी को रेशमा की बात याद आयी और उसने अनुराधा को गाड़ी उसी दुकान के सामने रोकने को कहा। दुकान पर वही आदमी मौजूद था जो उस दिन रास्ता बता रहा था। गाड़ी रुकते ही वो अपनी दुकान से निकलकर गाड़ी के पास आके खड़ा हो गया।

गाड़ी रुकने पर रागिनी अपनी ओर का दरवाजा खोलकर बाहर निकली और उसके सामने खड़ी हो गयी। रागिनी को देखते ही वो एकदम उसके पैरों मे झुका और पैर छूकर बोला “रागिनी दीदी...पहचाना आपने...में प्रवीण....आप कहाँ चली गईं थीं, इतने साल बाद आपको देखा है?”

रागिनी ने गंभीरता से उसे देखते हुये कहा “अब में यहीं रहूँगी... में राजस्थान में रहती थी.... मुझे रेशमा भाभी ने बताया था कि तुम मुझसे मिलने आए थे?”

“हाँ दीदी, उस दिन जब आप आयीं थीं तो मुझे कुछ पहचानी हुयी लगीं... और जब आपने अपने घर का पता पूंछा तो मुझे याद आ गया कि ये आप हैं... आइए आपको माँ से मिलवाता हूँ... माँ और सुधा दीदी आपको बहुत याद करतीं हैं...” उस आदमी ने रागिनी से कहा तो रागिनी असमंजस में पड गयी, तब तक उसे रागिनी के पैर छूते और बात करते देखकर प्रबल और अनुराधा भी गाड़ी से उतरकर रागिनी के पास ही खड़े हो गए

“नहीं भैया! फिर आऊँगी अभी तो बाज़ार जा रहे थे घर का समान लाना है... यहाँ रहना है तो सब व्यवस्था भी करनी होगी” रागिनी को असमंजस में देखकर अनुराधा ने उससे कहा

“आप चिंता मत करो दीदी, मुझे बताओ क्या समान लेना है... में सारा समान अभी घर भिजवा दूँगा... और ये दोनों कौन हैं” उसने रागिनी से कहा

“ये अनुराधा है... इसे तो जानते होगे.... मेरी भतीजी” रागिनी ने कहा

“हाँ! इसे तो में बहुत खिलाया करता था जब आप और सुधा दीदी इसे यहाँ दुकान पर लेकर आती थीं.... ये भी आपके साथ ही रहती होगी”

“हाँ! ये मेरे साथ ही रहती है...” रागिनी ने अनमने से होकर कहा तो उसे ध्यान आया कि वो बहुत देर से वहीं खड़े खड़े बात कर रहे हैं

“दीदी आप समान कि लिस्ट दो मुझे ये में पैक करा के गाड़ी में रखवाता हूँ, तब तक चलो माँ से मिल लो... उनकी तबीयत खराब रहती है... इसलिए चल फिर नहीं सकती” उसके कहने पर रागिनी ने अनुराधा को इशारा किया तो अनुराधा ने समान कि लिस्ट प्रवीण को दे दी और तीनों प्रवीण के पीछे-पीछे उसके घर में अंदर चले गए

अंदर एक कमरे में बैड पर एक 55-60 साल की औरत अधलेटी बैठी हुई कुछ पढ़ रही थी...प्रवीण के साथ इन लोगों को आते देखकर उसने ध्यान से सबको देखा और रागिनी को पहचानकर अपने पास आने का इशारा किया। पास जाते ही उसने रागिनी को खींचकर अपने सीने से लगा लिया और रोने लगी तो प्रवीण ने अनुराधा और प्रबल को बैठने का इशारा किया और कमरे से बाहर निकल गया

“रागिनी बेटा तुम्हें कभी हमारी याद नहीं आयी.... सुधा तो आजतक खुद को तुम्हारा दोषी मानती है.... ना वो उस कमीनी ममता के चक्कर में पड़ती और न ही तुम्हारे साथ ऐसा होता.... हमें तो ये लगता था कि पता नहीं तुम्हारे साथ क्या किया उन लोगों ने, पता नहीं तुम इस दुनिया में हो भी या नहीं या हो भी तो न जाने कैसी ज़िंदगी जी रही होगी” उस औरत ने कहा तो ममता का नाम सुनकर रागिनी और अनुराधा दोनों ही चोंक गईं। रागिनी के कुछ बोलने से पहले ही अनुराधा ने पुंछ लिया

“कौन ममता?”

“वही रागिनी की भाभी.... उसने सुधा के तो छोड़ो... रागिनी के भी विश्वास और प्यार को धोखा दे दिया... रागिनी तो उसे अपनी माँ से भी ज्यादा चाहती और मानती थी” उस औरत ने कहा तो अनुराधा मुंह फाड़े देखती रह गयी...रागिनी भी अवाक होकर देखने लगी... लेकिन वो अपनी धुन में आगे कहती गयी “रागिनी बेटा तुमने तो उसकी बेटी को भी अपनी बेटी की तरह पाला...बल्कि वो माँ होकर भी न पल सकी और न पाल सकती थी.... वैसे उसकी बेटी अनुराधा का कुछ पता है?”

“जी! ये अनुराधा ही है” रागिनी ने उलझे से अंदाज में अनुराधा की ओर इशारा करते हुये कहा तो एक पल के लिए प्रवीण कि माँ भी सकते से मे आ गयी और कमरे में मौजूद सभी एक दूसरे कि ओर देखने लगे लेकिन किसी के भी मुंह से कोई आवाज नहीं निकली

“अनुराधा बेटी... तुम्हें बुरा लगा होगा कि मेंने तुम्हारी माँ के बारे में ऐसा कहा... शायद रागिनी ने भी तुम्हें इस बारे में कभी बताया नहीं होगा... ये ऐसी ही थी... कभी किसी का न बुरा सोचती थी न बुरा कहती थी.... लेकिन जो मेंने कहा है... सिर्फ सुना है... सुधा के मुंह से... ममता के सामने... इसलिए जानती हूँ.... लेकिन रागिनी ने तो खुद भोगा है...इसीसे पूंछ लो?” कहते हुये उन्होने रागिनी कि ओर देखा तो रागिनी ने एक बार अनुराधा और प्रबल कि ओर देखा और प्रवीण की माँ कि आँखों में देखते हुये कहा

“मुझे कुछ भी याद नहीं... 20 साल से मेरी याददास्त गयी हुई है.... में पिछले 20 साल से राजस्थान मे रह रही थी... एक विक्रमादित्य सिंह थे उनके पास... उनकी मृत्यु के बाद उनकी वसीयत से मुझे यहाँ का पता मिला तब यहाँ पहुंची हूँ... और मुझे कुछ भी नहीं पता.... मुझे तो मेरा नाम भी विक्रमादित्य ने बताया था। ये दोनों बच्चे भी विक्रमादित्य ने मुझे सौंपे थे”

“ये तो तुम्हारे साथ बहुत बुरा हुआ.... लेकिन बस तुम सही सलामत हो...मुझे इसी की खुशी है..... एक मिनट में सुधा को भी बता दूँ तुम्हारे बारे में” कहते हुये उन्होने मोबाइल से कॉल मिलाया... थोड़ी देर बाद उधर से आवाज आयी

“माँ कैसी हो तुम? तबीयत तो ठीक है तुम्हारी?”

“सुन बेटा... तुझे एक खुशखबरी देनी है.... जो तू सोच भी नहीं सकती”

“क्या माँ? भैया के यहाँ कोई खुशखबरी है... नेहा के कुछ होनेवाला है क्या?”

“नहीं! उससे भी बड़ी खुशखबरी.......... अपनी रागिनी आयी है.... और अब वो यहीं रहेगी...अपने मकान में....ले बात कर” कहते हुये उन्होने फोन रागिनी को दे दिया फोन कान पर लगते ही रागिनी को उधर से भर्राई सी आवाज सुनाई दी

“रागिनी... तू सच में आ गयी... मेरा दिल कहता था तेरे साथ कभी बुरा नहीं हो सकता.... मुझे विक्रम पर पूरा भरोसा था कि वो तुझे बचा लेगा....” सुधा ने कहा तो रागिनी ने सिर्फ इतना कहा

“हाँ! में विक्रम के पास ही थी”

“चल ठीक है फोन पर नहीं अब तुझसे मिलकर ही बात करूंगी.... बच्चों को स्कूल से आ जाने दे... फिर में आती हूँ शाम तक... ‘उनको’ बोलकर.... रात को तेरे पास ही रुकूँगी” कहते हुये सुधा ने फोन काट दिया

तभी प्रवीण ने कमरे में आकर बताया कि उसने सारा समान पैक करा दिया है...चलकर गाड़ी में समान रखवा लें.... अनुराधा प्रबल का हाथ पकड़कर प्रवीण के साथ बाहर चली गयी... कुछ देर तक रागिनी भी कुछ नहीं बोली... फिर उसने कहा

“में फिर आऊँगी आपसे मिलने.... और सुधा भी शाम को आने का कह रही है...तब तक में भी कुछ जरूरी काम निपटा लेती हूँ” ये कहते हुये रागिनी भी बाहर निकाल आयी और गाड़ी में बैठ गयी... अनुराधा ड्राइविंग सीट पर बैठी हुयी थी, प्रबल ने गाड़ी में समान रखवाकर प्रवीण से समान के पैसे पूंछे तो प्रवीण ने माना कर दिया... इस पर रागिनी ने प्रवीण को पास बुलाकर समझाकर पैसे लेने को राजी किया और पैसे दे दिये। प्रबल भी जाकर आगे अनुराधा के बराबर में बैठ गया और गाड़ी चौक मे घुमाकर तीनों वापस घर आ गए।
 

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bhiya waiting. . kaha gayab ho.. koi reply to do...
 
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Icu

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