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Romance मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक .......

रागिनी की कहानी के बाद आप इनमें से कौन सा फ़्लैशबैक पहले पढ़ना चाहते हैं


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amita

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अध्याय 22
इधर इन दोनों के घर से निकलने के बाद अनुराधा और अनुपमा आपस में बात करने लगीं तो प्रबल उठकर अपने कमरे की ओर चल दिया।
“तुम्हें क्या डॉक्टर ने मना किया है....बात करने को?” अनुपमा ने प्रबल को जाते देखकर उससे कहा तो प्रबल पलटकर उसकी ओर देखने लगा
“दीदी आपने मुझसे कुछ कहा क्या?” प्रबल ने अनुपमा से कहा
“मेंने सुबह कॉलेज में भी कहा था ना..... दीदी कहा कर अपनी दीदी को..... मेरा नाम अनुपमा है” अनुपमा ने उसे गुस्से से घूरते हुये उंगली दिखाकर कहा और फिर शर्मीली सी मुस्कान चेहरे पर लाते हुये बोली “प्यार से तुम मुझे अनु भी कह सकते हो”
“ओए कल्लो...मेरे भाई पर डोरे डालना बंद कर.... प्रबल तू जा आराम कर... यहाँ रहा तो ये तेरा दिमाग खा जाएगी” अनुराधा ने अनुपमा को हड़काते हुये प्रबल से कहा लेकिन प्रबल अनुराधा की बात को अनसुना करते हुये जाकर अनुपमा के पास बैठ गया
“देखो अनु मुझे तो कोई अनुभव है नहीं प्यार के बारे में...इसलिए अगर तुम मुझे सीखा सको कि कैसे प्यार से कहा जाता है... अब से तुम मुझे प्यार से कहना-सुनना सब सिखाओ....जिससे कि में किसी से प्यार से बात कर सकूँ या प्यार की बात कर सकूँ” प्रबल ने मुस्कराते हुये अनुपमा से कहा तो अनुपमा ही नहीं अनुराधा का भी मुंह खुला का खुला रह गया...दोनों को समझ नहीं आया कि क्या कहा जाए
“चल अब चुप हो जा... तू तो बहुत तेज निकला .... इस कल्लो की बोलती बंद कर दी.... में तो सोचती थी मेरा छोटा भाई कुछ जानता ही नहीं” अनुराधा ने खुद को समहलते हुये कहा... “अच्छा अनु ये बता ये ऊपर वाले फ्लोर पर जो आंटी रहती हैं...उनकी बेटी का नाम भी अनु ही लिया था उन्होने... इनके घर में कौन-कौन हैं?”
“देख राधा यहाँ अनु तो सिर्फ में ही हूँ.... तेरा नाम भी सिर्फ राधा ही लिया जाएगा.... उस लड़की का नाम अनुभूति है लेकिन उसे यहाँ लाली के नाम से बुलाते हैं....आंटी ने तुम लोगों के सामने लाली कहने में संकोच किया होगा इसलिए अनु बोला होगा.... वो दोनों माँ-बेटी को ही मेंने यहाँ देखा है.... बाकी उनके घर में और तो ना किसी को रहते और ना ही किसी को कभी आते-जाते देखा है मेंने... और कमाल कि बात तो ये है कि लाली तो पढ़ती है...हमारे वाले ही स्कूल में... तुम्हारे विक्रम भैया ने ही एड्मिशन कराया था लेकिन वो आंटी हमेशा घर पर ही रहती हैं... ना तो आस-पड़ोस में किसी के पास उठती-बैठती हैं और ना ही कोई काम करती हैं.... पता नहीं इन लोगों कि आमदनी का जरिया क्या है?” अनुपमा ने अपनी बात पूरी कि ही थी कि बाहर के दरवाजे पर खटखटाने की आवाज हुई।
प्रबल उठकर दरवाजे पर पहुंचा और खोलकर देखा तो दरवाजे पर शांति देवी और उनकी बेटी लाली खड़े हुये थे... प्रबल ने एक ओर हटकर उन्हें अंदर आने का रास्ता दिया उनको देखकर अनुराधा और अनुपमा भी चुप होकर खड़े हुये और उन्हें दूसरे सोफ़े पर बैठने का इशारा किया.... लाली तो सोफ़े पर जाकर बैठ गयी लेकिन शांति देवी उन दोनों के पास चलकर आयीं और अनुराधा को गले लगा लिया... अनुराधा को अजीब सा लगा...उनका शरीर हलके हलके झटके लेता हुआ लगा तो अनुराधा ने अपना सिर उनकी गार्डन से पीछे खींचते हुये उनके चेहरे की ओर देखा तो उनकी आँखों से आँसू बहते देखकर चौंक गयी और उन्हें साथ लिए हुये सोफ़े पर उनके बराबर बैठ गई
“आंटी आप रो क्यों रही हैं... क्या बात है...प्लीज चुप होकर बताइये” अनुराधा ने कहा
“राधा बेटा में तुम्हारी मौसी हूँ.... ममता दीदी की छोटी बहन... मेंने उस दिन रागिनी दीदी के परिचय देते ही तुमसे मिलने का सोचा.... लेकिन ममता दीदी ने उनके साथ जो किया था...मुझे डर था कहीं वो हमारे बारे में जानते ही इस घर से ना निकाल दें.... में अपनी इस मासूम बच्ची को लेकर कहाँ जाती...” शांति देवी ने रोते हुये ही कहा
“आप मेरी मौसी हो.... मतलब मेरी मम्मी कि छोटी बहन... लेकिन विक्रम भैया ने आपको यहाँ कैसे रखा हुआ था....ओह .... अब समझ में आया... विक्रम भैया को आपके बारे में पता था इसीलिए उन्होने आपको यहाँ रखा हुआ था ..... लेकिन अब आप क्यों बता रही हैं?” अनुराधा ने शांति देवी से कहा
“में विक्रम तक कैसे पहुंची इस बारे में तो में रागिनी दीदी के सामने ही बताऊँगी.... पूरी बात.... अभी में इसलिए आयी हूँ क्योंकि में उनसे पहले तुमसे मिलना चाहती थी.... पहले तुम फैसला करना कि तुम मुझे अपना सकती हो या नहीं...उसके बाद ही में रागिनी दीदी से कोई बात करूंगी.... आज जब उनको तुम दोनों के बिना यहाँ से जाते देखा तो में तुमसे अकेले में बात करने आ गयी...बात बहुत ज्यादा गंभीर है....क्या हम कहीं अकेले में बात कर सकते हैं?”शांति देवी ने अनुराधा से कहा
“ठीक है... मेरे कमरे में चलिये...” अनुराधा ने कुछ सोचते हुये कहा तो शांति देवी ने लाली यानि अनुभूति को वहीं बैठने का इशारा किया और अनुराधा के पीछे पीछे उसके कमरे में चली गयी
अंदर पहुँचकर शांति देवी ने अपने पीछे दरवाजा बंद करके कुंडी लगाई और बैड पर आकर बैठ गयी...अनुराधा सामने ही खड़ी थी तो उसका भी हाथ पकड़कर अपने पास बैठा लिया और बात करनी शुरू की.... अनुराधा बार-बार उनकी बातों को सुनकर चौंक जाती और कभी खुश तो कभी दुखी होती....करीब आधे घंटे बात करने के बाद दोनों मुसकुराती हुई कमरे से बाहर निकली और आते ही अनुराधा ने लाली को सोफ़े से हाथ पकड़कर उठाया और गले से लगा लिया।
“तू बिलकुल चिंता मत कर... माँ को आने दे...वो सब सही कर देंगी... वो बाहर से जितनी कडक हैं... अंदर से उतनी ही नरम.... और मौसी जी....मौसी जी ही कहूँ आपको...” अनुराधा ने शांति देवी कि ओर देखकर मुसकुराते हुये कहा तो वो शर्मा सी गईं “आप भी बिलकुल चिंता छोड़ दो.... माँ को आ जाने दो...आप उनके सामने सब सच-सच बता देना ....”
“अच्छा एक बात बताओ अभी कुछ दिन से एक लड़की जो तुम लोगों के साथ रह रही है...वो कौन है? कोई रिश्तेदार है क्या? आज भी रागिनी दीदी के साथ गयी है वो” शांति देवी ने पूंछा
“वो ऋतु बुआ हैं.... विक्रम भैया की चचेरी बहन...” अनुराधा ने बताया
“मोहिनी चाची की बेटी....लेकिन वो तुम्हारे साथ क्यों रह रही है?” शांति देवी ने पूंछा
“आप जानती हैं मोहिनी चाची को?” अनुराधा ने आश्चर्य से पूंछा
“हाँ ...वो विक्रम के साथ अक्सर यहाँ आती रहती थीं ...मुझसे मिलने.... विक्रम तो शुरू में बहुत गुस्से में थे...लेकिन मोहिनी चाची ने ही उन्हें अपनी कसम देकर हम दोनों को यहाँ रहने देने के लिए मनाया था....” शांति देवी ने कहा
“लेकिन आप लोगों का खर्चा कैसे चलता है... अभी हम लोग आपके बारे में ही बात कर रहे थे तो अनुपमा ने बताया कि आप हमेशा घर पर ही रहती हो और लाली अभी पढ़ रही है” अनुराधा ने पूंछा तो अनुपमा ने उसे घूरकर देखा... लेकिन अनुराधा ने उसकी ओर बिना ध्यान दिये शांति देवी कि ओर जवाब के इंतज़ार में देखा
“वो... मोहिनी चाची ने वैसे तो हमारा सारा इंतजाम किया था शुरू मे लेकिन फिर एक कंपनी से हर महीने कुछ पैसे मेरे और लाली के अकाउंट में आने लगे.... मोहिनी चाची ने बताया था कि ये कंपनी हमारी ही है और हमारे परिवार के सभी सदस्यों को इसी कंपनी से हर महीने पैसे मिलते हैं खर्चे के लिए.... इस कंपनी की पूंजी में परिवार के हर सदस्य का हिस्सा है.... लेकिन इसका प्रबंधन केवल विक्रम ही करते थे.... बाकी कोई भी परिवार का सदस्य इस कंपनी में दखल नहीं देता...” शांति देवी ने बताया
“कौन सी कंपनी है... मतलब उसका नाम वगैरह” अनुराधा ने पूंछा
“दीदी हमें ज्यादा जानकारी नहीं... लेकिन हमारे खाते में कंपनी का नाम सिंडिकेट लिख कर आता है.... राणा आरपी सिंह सिंडिकेट (ranarpsingh syndicate)” लाली ने बताया
“चलो ठीक है...अभी माँ से पूंछती हूँ कि वो कितनी देर में आ रही हैं” कहते हुये अनुराधा ने रागिनी को कॉल किया
“हाँ बेटा क्या बात है?” रागिनी ने फोन उठाते ही पूंछा
“माँ आप कब तक आ जाओगी?” अनुराधा ने कहा
“बस अभी निकले हैं बाहर 1 घंटे में घर पहुँच जाएंगे” रागिनी ने कहा “कोई खास बात है क्या?”
“नहीं माँ चिंता कि कोई बात नहीं.... लेकिन बात खास ही है....आप घर आ जाओ फिर बताती हूँ... और ऋतु बुआ को भी साथ ले आना”
“ऋतु भी मेरे साथ ही आ रही है....घंटे भर में पहुँच जाएंगे” कहते हुये रागिनी ने फोन काट दिया
“माँ एक घंटे में आ रही हैं” अनुराधा ने फोन रखते हुये बताया
“ठीक है... अभी हम ऊपर वाले घर में जा रहे हैं... रागिनी दीदी आ जाएँ तो फिर आते हैं” कहते हुये शांति देवी उठने को हुई
“आंटी अप लोग बैठकर राधा से बात करो.... अभी मुझे अपने लिए कॉलेज की किताबें लानी थीं बाज़ार से लेकिन अब इन दोनों ने भी एड्मिशन ले लिया है तो में और प्रबल बाज़ार होकर आते हैं... तब तक रागिनी बुआ भी आ जाएंगी” अनुपमा ने अनुराधा और प्रबल कि ओर मुसकुराते हुये देखकर कहा और उठ खड़ी हुई
अब शांति देवी के सामने अनुराधा या प्रबल ने कुछ कहना सही नहीं समझा इसलिए अनुराधा ने प्रबल को इशारा किया तो वो भी उठकर खड़ा हुआ और कपड़े बदलने के लिए कमरे में जाने लगा...
“तुम कहाँ जा रहे हो?” अनुपमा ने प्रबल से कहा
“कपड़े तो बादल लूँ” प्रबल ने जवाब दिया
“कहीं बाहर घूमने नहीं जा रहे हैं.... यहीं करोल बाग से किताबें लेनी हैं... तो कपड़े बदलने कि जरूरत नहीं... ऐसे ही ठीक लग रहे हो” अनुपमा ने कहा
“अरे मेरी माँ.... उसे पैसे तो ले लेने दे...और तू क्या ऐसे ही जाएगी...” अनुराधा ने कहा
“हाँ! में तो ऐसे ही चली जाती हूँ.... और पैसे हैं मेरे पास.... वापस आकर तुमसे हिसाब करके पैसे ले लूँगी” कहते हुये अनुपमा ने प्रबल का हाथ पकड़ा और खींचती हुई सी बाहर चली गयी
“कैसे चलना है... गाड़ी तो माँ ले गयी हैं... उनके वापस आने के बाद चलते हैं” बाहर निकलकर प्रबल ने कहा
“कोई जरूरत नहीं गाड़ी की...... ये राजस्थान नहीं है... जहां सबकुछ बहुत दूर-दूर होता हो.... यहाँ गाड़ी लेकर चलोगे तो पहले तो पूरा चक्कर लगाकर आनंद पर्वत होकर करोल बाग पाहुचेंगे.... उसमें भी जाम में फंस गए तो घंटों का समय लगेगा... हम यहाँ से पैदल फाटक पर करेंगे और गौशाला से रिक्शा लेकर 15 मिनट में करोल बाग पहुँच जाएंगे...1 घंटे में तो वापस भी आ जाएंगे” अनुराधा ने प्रबल को अपने साथ आगे खींचते हुये कहा तो प्रबल चुपचाप उसके साथ चल दिया... लेकिन उसने अनुपमा के हाथ से अपना हाथ छुड़ा लिया... क्योंकि वहाँ आसपास के लोगों के सामने अनुपमा का हाथ पकड़े उसे अजीब सा लग रहा था
वहाँ से दोनों आगे बढ़े और किशनगंज रेलवे स्टेशन के पल को पार करके दूसरी तरफ उतरते ही वहाँ खड़े एक रिक्शे पर बैठ गए और उसे गुप्ता मार्केट चलने के लिए बोला। रिक्शे पर बैठते ही अनुपमा ने फिर से प्रबल का हाथ अपने हाथ में ले लिया प्रबल ने हाथ छुड़ना चाहा तो अनुपमा ने उसे घूरकर देखा
“ओए अब तो बड़ा हो जा...या अपनी दीदी की उंगली पकड़कर ही चलता रहेगा... तेरी दीदी से दोस्ती है मेरी...बचपन की दोस्ती... समझा ...इसीलिए तुझे बिना पटाये मेरे जैसी हॉट लड़की के साथ करोल बाग में घूमने का मौका मिल रहा है.... वरना यहाँ कॉलेज में नखरे उठाते उठाते कंगले हो जाते हैं लड़के और किसी के साथ अकेले बैठकर कॉफी भी नहीं पीती...कॉलेज की कैंटीन में भी”
“जबसे में यहाँ आया हूँ ...तुम मेरे पीछे ही पड़ गयी हो... दीदी की तो कोई बात नहीं लेकिन अगर माँ को कुछ पता चल गया तो तुम्हारा तो मुझे पता नहीं... लेकिन मेरा क्या हाल करेंगी? इसलिए मुझे इन सब चक्कर से दूर रखो” प्रबल ने झुँझलाते हुये कहा तो अनुपमा ने अनसुना करते हुये अपना मोबाइल निकाला और किसी को कॉल करने लगी
“कहाँ मरवा रही है कमीनी...फोन उठाने की भी फुर्सत नहीं” बहुत देर तक घंटी जाने पर फोन उठते ही अनुपमा ने चिल्लाकर कहा तो प्रबल ने चौंककर उसकी तरफ देखा फिर रिक्शेवाले और आसपास चलते लोगों की ओर... लेकिन किसी का भी ध्यान न पाकर फिर से अनुपमा की ओर देखने लगा जो दूसरी ओर से कही जा रही बात को सुन रही थी
“चल ठीक है... जल्दी से तैयार होकर आजा में गुप्ता मार्केट पहुँच रही हूँ... और उन सबको भी फोन करके बुला ले” अनुपमा ने फोन काटते हुये कहा
“तुम लड़की होकर इतने गंदे तरीके से ऐसे बात करती हो...और हम तो किताबें लेने जा रहे हैं ना... फिर किस-किसको बुला रही हो वहाँ.... हमें जल्दी लौटकर जाना है... माँ आनेवाली होंगी”
“बच्चे...अब दिल्ली में आ गए हो... देखते जाओ...यहाँ लड़कियां लड़कों से कम नहीं हैं.....” अनुपमा ने प्रबल का गाल खींचते हुये कहा
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amita

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अध्याय 23

अनुराधा और शांति देवी अभी बैठकर बात कर ही रही थीं की तभी शांति देवी को कुछ याद आया तो उन्होने अनुराधा से प्रबल के बारे में पूंछा

“बेटा! तुम्हारा तो नाम सुनते ही में समझ गयी थी की तुम रागिनी दीदी की बेटी नहीं हो...बल्कि ममता दीदी की बेटी हो... क्योंकि मेंने तुम्हें बचपन में देखा था ममता दीदी जब घर आती थीं... कभी कभी...क्योंकि उनकी और माँ की आपस में बनती नहीं थी... इसलिए हम कभी भी यहाँ नहीं आते थे... .... लेकिन मुझे ये समझ में नहीं आया कि रागिनी की शादी विक्रम के चाचा से कैसे हो गयी और प्रबल क्या वास्तव में रागिनी का ही बेटा है....” शांति ने पूंछा

“नहीं मौसी जी... ना तो माँ मतलब रागिनी बुआ की शादी हुई है किसी से और ना ही प्रबल उनका बेटा है... प्रबल शायद विक्रम भैया का बेटा है... बाकी आप माँ को आ जाने दो तब उनसे ही सबकुछ पता चलेगा... और आप उनको सबकुछ सच-सच ही बताना.... कुछ भी छुपाना मत...” अनुराधा ने जवाब दिया फिर बोली “मौसी! में कुछ खाने को बना लेती हूँ तब तक माँ भी आ जाएंगी... और प्रबल भी … अब शाम भी होने वाली है और इन सब बातों में पता नहीं कितना समय लग जाए...इसलिए अभी कुछ चाय नाश्ता करके बात करेंगे”

“अरे बेटा तुम मेरे पास बैठो लाली सब कर लेगी ....” शांति ने कहा

“फिर ऐसा करते हैं मौसी सब चलते हैं रसोई में... इससे कोई बोर भी नहीं होगा और मिलजुलकर बनाते हैं” ये कहते हुये अनुराधा रसोई कि तरफ बढ़ गयी और वो दोनों भी उसके पीछे पीछे चली गईं

लगभग आधे घंटे बाद बाहर गाड़ी रुकी और रागिनी ने ऋतु के साथ घर में प्रवेश किया तो अनुभूति ने आकार दरवाजा खोला... दोनों उसे यहाँ देखकर चौंक गईं

“अनुराधा और प्रबल कहाँ हैं” रागिनी ने पूंछा

“माँ में रसोई में थी...और प्रबल अनुपमा के साथ बाज़ार में किताबें लेने गया है... अब कल से कॉलेज भी तो जाना है...” अनुराधा ने शांति के साथ रसोई से आते हुये कहा तो रागिनी ने आकर सोफ़े पर बैठते हुये शांति को भी बैठने को कहा

“आइए बहन जी ...बैठिए.... यहाँ आए हैं तब से आपसे तो बात क्या मुलाक़ात भी नहीं हो पायी...बस भागदौड़ में ही लगे रहे”

ऋतु भी रागिनी के बराबर में बैठ गयी, शांति देवी दूसरे सोफ़े पर बैठ गईं तो अनुराधा रागिनी के बराबर में दूसरी ओर आकर बैठी और शांति देवी को बोलने का इशारा किया

“रागिनी दीदी! में अनुराधा की माँ ममता की छोटी बहन हूँ... आपकी याददास्त जा चुकी है इसलिए उस दिन भी मेंने आपको और अनुराधा को पहचानकर भी कुछ नहीं बताया.... लेकिन अब में आपको सबकुछ बता देना चाहती हूँ” शांति देवी ने कहा

“माँ अभी अप और बुआ बाहर से आए हैं... प्रबल भी थोड़ी बहुत देर में आता होगा तो क्यूँ न आप दोनों फ्रेश हो जाएँ में चाय नाश्ता लगती हूँ... फिर उसके बाद बात करेंगे.... क्योंकि मौसी से कुछ मुझे भी बताया है...और वो छोटी मोटी बात नहीं बहुत बड़ी कहानी है............में प्रबल से पूंछती हूँ कि कितनी देर में आ रहा है” कहते हुये अनुराधा ने प्रबल को फोन लगा दिया। इधर रागिनी और ऋतु भी उठकर अंदर चले गए... अनुभूति उठकर रसोई में चली गयी

“हाँ बोल! घबरा मत तेरे भाई को लेकर भाग नहीं जाऊँगी... अभी चल दिये हैं यहाँ से 15 मिनट में पहुँच जाएंगे” प्रबल का फोन अनुपमा ने उठाया और अनुराधा से बोली तो अनुराधा भी फोन काट कर रसोई की ओर ही चल दी...

थोड़ी देर में ही रागिनी और ऋतु आकर वहीं हॉल में शांति के साथ बैठ गईं इधर प्रबल भी आ गया... अनुराधा और अनुभूति (लाली) ने चाय नाश्ता वहीं सेंटर तबले पर लगा दिया .... अनुपमा दोपहर से कॉलेज से आने के बाद से उनके ही साथ थी इसलिए वो अपने घर चली गयी

नाश्ते के बाद अनुराधा ने सभी को रागिनी के कमरे में चलने को कहा कि वहीं बेड पर बैठकर बात करते हैं... यहाँ सोफ़े पर बैठे-बैठे सभी थक जाएंगे

“हाँ तो शांति भाभी... भाभी इसलिए कह रही हूँ आपको... क्योंकि अप ममता भाभी कि बहन हैं..... बताइये ....और सबसे पहले तो ये कि आप विक्रम के संपर्क में कैसे आयीं जो उन्होने आपको यहाँ इस मकान में बसाया हुआ था” रागिनी ने प्रश्न किया

“में अनुराधा कि मौसी और आपकी ममता भाभी कि बहन के अलावा भी...आपकी कुछ और बन चुकी हूँ... अगर आपकी याददास्त न भी जाती तब भी आपको उस रिश्ते का पता नहीं चलता...बिना हमारे संपर्क में आए” शांति ने अजीब से अंदाज में कहा तो सबकी निगाहें शांति पर जाम गईं

“आपके गायब होने और नाज़िया के फरार होने के बाद ममता दीदी को विक्रम ने गिरफ्तार करा दिया था आपके पिता विजय सिंह भी चुपचाप हमारे घर पहुंचे और हम माँ बेटी को लेकर दिल्ली गुड़गाँव बार्डर पर नयी बन रही द्वारिका टाउनशिप के मधु विहार में रहने लगे.... कुछ समय बाद माँ एक दिन सुबह को बिस्तर पर ही मृत मिलीं... विजय जी ने बताया कि रात में उन्हें कुछ बेचैनी सी महसूस हुई थी लेकिन फिर वो नींद कि दवा लेकर सो गईं और सुबह जगाने पर जब नहीं उठीं तो उन्होने उनकी सान और धड़कन चेक कि....अब जो भी रहा हो... लेकिन मेरा तो इस दुनिया में कोई ऐसा नहीं बचा जिसे में अपना कह सकती.... पिताजी तो पहले ही नहीं रहे थे.... भाई खुद नशे और अपराध की दुनिया में गुम हो चुका था, बहन जाईल में थी...और अब माँ भी नहीं रही.... माँ के अंतिम संस्कार के बाद विजय जी मुझे लेकर रोहिणी सैक्टर 23 बुध विहार आ गए.... हम दोनों के ही घर-परिवार जन-पहचान के सब लोग किशनगंज से ही छूट गए थे... यहाँ कोई नहीं जनता था कि हम कौन हैं...

एक दिन विजय जी ने मुझसे कहा कि अब हम दोनों के अलावा हमारा और कोई तो है नहीं.... और हमारे बीच कोई ऐसा रिश्ता भी नहीं जो हमारे लिए कोई मुश्किल पैदा करे तो क्यों न हम दोनों शादी कर लें और पति पत्नी के रूप में नया परिवार शुरू करें... आगे चलकर कम से कम हमारा ख्याल रखने को हमारे बच्चे तो होंगे.... मेरी भी उम्र उस समय कुछ ज्यादा नहीं थी... लेकिन इतनी कम भी नहीं थी कि दुनियादारी को समझ ना सकूँ ..... मुझे भी लगा कि मेरा अकेला रहना हर किसी को एक मौके कि तरह दिखेगा.... घर-परिवार के बिना कोई शादी नहीं करनेवाला .... जिस्म के लिए सब तैयार हो जाएंगे लेकिन घर बसाने वाला शायद ही कोई मिले.... अभी ये मेरे साथ हैं तो कहीं भी रह पा रही हूँ... अकेले तो शायद सिर छुपाने को भी जगह ना मिले...और पता नहीं ज़िंदगी में क्या-क्या देखना पड़े.... इससे तो अच्छा है कि इनसे शादी करके इनकी पत्नी बनकर एक घर भी मिल जाएगा और आगे चलकर अगर बच्चे भी हो गए तो ज़िंदगी उन्हीं के सहारे कट जाएगी.... अभी तो ये मेरा और बच्चों का पालन-पोषण कहीं से भी कुछ भी करके कमा के करेंगे... अकेले तो कहीं कमाने भी जाऊँगी तो जिस्म के भूखे भेड़िये झपटने को तैयार मिलेंगे... यहाँ इनके साथ भी रहकर अगर ये मुझसे शारीरिक संबंध बनाने पर उतारू हो जाएँ तो मजबूरी के चलते क्या में इन्हें रोक पाऊँगी? इससे तो अच्छा है कि इनकी पत्नी बनकर रहूँ

यही सब सोचकर मेंने उनसे शादी के लिए हाँ कर दी और हमने बुध विहार के ही एक मंदिर में रीति रिवाज के साथ शादी कर ली... शादी के लगभग 10-11 महीने बाद ही अनुभूति का जन्म हुआ... विजय जी ने बुध विहार में ही एक दुकान शुरू कर ली थी जिससे हमारा खर्चा सही चलने लगा था... लाली भी धीरे धीरे बड़ी होने लगी... और उम्र के अंतर के बावजूद मेरे और विजय जी के बीच प्यार और अपनापन, लगाव पैदा हो गया था....

एक दिन ये दुकान से 2 घंटे बाद ही वापस आ गए इनके साथ एक और आदमी भी था... इनहोने बताया कि ये आदमी इंका बहुत पुराना परिचित है नोएडा से... जहां पहले इंका और हमारा परिवार रहा करता था.... ये उसके साथ नोएडा में ही काम शुरू करना चाहते हैं... जिससे हम सभी नोएडा में रहें वहाँ अपनी जान पहचान के लोग भी हैं तो धीरे धीरे हमें एक परिवार जैसा सुरक्शित माहौल भी मिल जाएगा... और कभी कोई परेशानी हुई तो साथ देनेवाले भी होंगे... मेंने भी उनकी बात को सही समझकर अपनी सहमति दे दी...

लगभग 2-3 महीने वो वहाँ कि दुकान को छोडकर नोएडा आते जाते रहे उसके बाद उन्होने एक दिन कहा कि एक सप्ताह बाद हमें नोएडा चलकर रहना है...काम वहाँ पर शुरू हो चुका है.... जान-पहचान कि वजह से काम भी अच्छा चल रहा है... नोएडा-गाज़ियाबाद-दिल्ली के बीचोबीच एक कच्ची आबादी खोड़ा कॉलोनी के नाम से है... वहीं काम भी है और रहने का इंतजाम भी.... ऐसे ही एक सप्ताह में इनहोने दिल्ली में अपनी दुकान और घर का सब लें दें और जो समान नोएडा भेजना था... भेजकर...सब कम निबटाया और हम नोएडा आ गए... वहाँ आकार मुझे भी अच्छा लगा क्योंकि वहाँ आसपास बहुत सारे परिवार इनको जानते थे... बल्कि इनके पूरे परिवार को जानते थे.... इनके और भी भाई नोएडा में रहते थे... लेकिन इनसे उनके संबंध टूट चुके थे पता नहीं इनकी ओर से या उनकी ओर से.... लेकिन इनके बारे में मुझे बचपन से पता था तो में समझती थी कि शायद इनके उल्टे-सीधे कामों कि वजह से ही पूरा परिवार इनसे दूर हो गया...

2005 में अनुभूति डेढ़ दो साल की होती एक दिन ये कहीं बाहर गए... ये बाहर आते-जाते ही रहते थे इसलिए कोई खास बात नहीं थी... लेकिन 2-3 दिन बाद भी जब ये वापस नहीं आए तो मेंने अपनी मकान मालकिन से बोला कि इनके साथियों से पता करें कि कहाँ पर है और कब आएंगे .... उन्होने पता किया तो पता चला कि ये 15 दिन के लिए हरिद्वार गए हुये हैं.... मेंने भी ज्यादा कोई गंभीरता से नहीं लिया... हो सकता है कोई काम हो... ऐसे ही 15 दिन बीत गए लेकिन ये नहीं आए... 20 दिन, फिर एक महीने से ज्यादा हो गया तो मेंने इनके साथियों से खुद जाकर कहा तो उन्होने कहा कि पिछले 10 दिन से उनकी खुद कि भी इनसे कोई बात नहीं हो प रही है.... 10 दिन पहले इनहोने बताया था कि काम के सिलसिले में वो ऋषिकेश से ऊपर पहाड़ों में रानी पोखरी नाम कि जगह है उसके पास किसी गाँव में जा रहे हैं... वहाँ फोन सुविधा ना होने की वजह से बात नहीं हो पाएगी... घर खर्च में भी परेशानी बताई मेंने तो उन लोगों ने कुछ पैसे भी दिये.... वैसे इन 4 सालों में उनके साथ रहकर मेंने अपने पास भी अच्छा खासा पैसा इकट्ठा कर लिया था... ये सोचती थी कि कुछ समय बाद लाली को भी स्कूल भेजना है.... बिना बाप के बच्चों कि ज़िंदगी हम भाई बहनों ने जी थी... लेकिन मेरी बेटी को एक भरपूर प्यार भरी ज़िंदगी मिलेगी माँ-बाप के साथ...........

लेकिन वक़्त ऐसे ही बीतता गया और उनकी कोई खबर नहीं मिली .... वहाँ के लोगों का भी नज़रिया बदलने लगा .... इनके परिवार के बारे में भी कोई बताने को तैयार नहीं था कि वो लोग कहाँ रहते हैं.... मेरे मकान मालिक भी इनके पूरे परिवार को जानते थे... एक दिन वो और उनकी पत्नी दोनों मेरे पास आए और बोले कि विजय के बड़े भाई जय कि तो मृत्यु वर्ष 2000 में ही कैंसर से हो चुकी थी... उनकी पत्नी और बच्चे 2003 में नोएडा से गाज़ियाबाद चले गए.... लेकिन कहाँ रहते हैं...कोई पता नहीं उनके छोटे भाई गजराज नोएडा से बहुत पहले ही गुड़गाँव रहने चले गए थे उनका भी पता किसी को मालूम नहीं.... एक भाई बलराज दिल्ली में कहीं रहते हैं लेकिन उनका भी किसी को पता नहीं............

अब वो मेरी एक ही सहता कर सकते हैं कि हमारा जो व्यवसाय था यहाँ पर उसका जो भी हिसाब किताब करके मिल सकता है... मुझे दिला देंगे...लेकिन उसके बाद मुझे कहीं और जाकर ही रहना होगा.... क्योंकि जो और साथी हैं विजय जी के व्यवसाय में वो आसानी से अब पैसा नहीं देना चाहेंगे.... तो जबर्दस्ती वसूलने पर वो दुश्मनी में कोई गलत कदम उठाते हैं तो हमारी ज़िम्मेदारी हमेशा के लिए कौन ले सकता है..... मेंने उनका कहा मन लिया.... साथ ही उन्होने मुझे थाने ले जाकर विजय जी के लापता होने कि रिपोर्ट भी दर्ज करा दी... और साथ ही मुझे उनके बिज़नस से मिल सक्ने वाला पैसा भी दिलवा दिया....

में एक बार फिर अकेली खड़ी थी... पहले विजय जी के साथ थी तो उन्होने ज़िम्मेदारी ली हुई थी मेरी ..... लेकिन अब मेरे ऊपर ज़िम्मेदारी थी मेरी बेटी की। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि कहाँ जाऊँ, क्या करूँ... तभी मेरे दिमाग में ममता दीदी का ख्याल आया... कि उनसे एक बार जाईल में मुलाक़ात करूँ... शायद वही कोई रास्ता बताएं.... वैसे भी ममता दीदी को विजय जी के पूरे परिवार कि जानकारी थी.... बल्कि वो भी सबको जानती थी और सभी उन्हें भी जानते थे....

में जब ममता दीदी से तिहाड़ जेल में जाकर मिली तो उन्होने बताया कि में उनके किशनगंज वाले घर जाकर विक्रम से मिलूँ और उसे सब बताऊँ तो वो मेरी और लाली की व्यवस्था करा देगा....मेंने वैसा ही किया लेकिन यहाँ आकार पता चला कि विक्रम तो कोटा रहता है...और यहाँ कभी-कभी ही आता है... मेंने यहाँ किराए पर रह रहे परिवार से विक्रम का मोबाइल नंबर लिया और कॉल करके बात की तो विक्रम ने मुझे कोटा आने के लिए बोला... और एक नंबर दिया कोई सुरेश नाम के आदमी का... कि में उनसे कोटा में मिलूँ .... वो मेरी सारी व्यवस्था करा देंगे... विक्रम खुद कहीं बाहर था..... मेंने वैसा ही किया... वहाँ सुरेश ने मेरे रहने और लाली के पढ़ने कि सब व्यवस्था करा दी... और साथ में हमारे रहने खाने के सब खर्चे भी.... जब इसके लिए मेंने मना किया और कहीं कोई काम देखने को कहा तो उसने मुझसे कहा कि ये सब व्यवस्था विक्रम ने ही की है...और वो विजय जी के परिवार का ही है... तो मेंने भी ज्यादा ज़ोर नहीं दिया ..... 4-6 महीने में विक्रम भी कभी कभार आता था तो बस थोड़ी देर बैठकर मेरा और लाली का हालचाल लेकर चला जाता था.... हमारी ज़िंदगी ऐसे ही कट रही थी.... 10 साल बाद एक दिन विक्रम आया और मुझसे कहा कि अब हमें दिल्ली इसी मकान में रहना है हमेशा के लिए और अपने साथ ही दिल्ली लेकर आ गया यहाँ आकर उसने हमसे मोहिनी जी को भी मिलवाया और बताया कि वो उनकी चाची जी हैं.... बस तभी से हम यहीं रह रहे हैं”

शांति की बात सुनकर रागिनी ने एक गहरी सांस ली...और बोली

“आपको मेरे बारे में भी ममता भाभी ने बता ही दिया होगा...में विजय सिंह उर्फ विजय राज सिंह की बेटी हूँ.... यानि इस रिश्ते से आप मेरी माँ और लाली मेरी छोटी बहन हुई............. मुझे आश्चर्य होता है कि मेरे पिता यानि आपके पति विजयराज सिंह ने अपने जीवन में क्या-क्या गुल खिलाये... अब भी उनकी मृत्यु का निश्चित नहीं........तो शायद कहीं कोई और नया परिवार बसाये बैठे होंगे.......

आपको पता है... विमला मेरी माँ नहीं थी...और दीपक कुलदीप भी मेरे सगे भाई नहीं थे..... विमला मेरी बुआ थी और दीपक कुलदीप उनके बेटे थे”

“हाँ! ये तो मुझे पता है.... लेकिन ममता दीदी ने एक और बात बताई थी मुझे” शांति ने कहा

“क्या?” रागिनी बोली

“विजय जी का एक बेटा भी है... आपका भाई...सगा भाई.... जो उनके किसी भाई के पास रहने लगा था...उनके इन्हीं कारनामों की वजह से... और वो शायद विक्रम ही था”

“हाँ .... अब तक मुझे जितना पता चला है... उसके हिसाब से विक्रम मेरा भाई हो सकता है”

“दीदी एक बात और बतानी थी आपको” अचानक अनुभूति ने कहा तो रागिनी ने प्रश्नवाचक दृष्टि से उसे देखा

“हमारे खर्चे के लिए जब से हम दिल्ली आए हैं... एक कंपनी से पैसे ट्रान्सफर होते हैं... उस कंपनी का नाम राणाआरपीसिंह सिंडीकेट लिखा आता है हमारे खाते में... विक्रम भैया ने बताया था कि ये कंपनी अपने परिवार कि है और पूरे परिवार को इसी कंपनी से पैसा मिलता है... हिस्से के रूप में” लाली (अनुभूति) ने बताया

“राणाआरपीसिंह सिंडीकेट..... कुछ सुना हुआ सा लगता है.....” रागिनी ने कहा तभी उसकी बात काटते हुये ऋतु ने कहा

“दीदी ये जो हमने वसीयत का रेकॉर्ड निकलवाया था नोएडा से उसमें परिवार के मुखिया जयराज ताऊजी के बेटे राणा रवीद्र प्रताप सिंह का नाम था उनके नाम को राणा आर पी सिंह भी तो लिखा जा सकता है”

................................
Aapki lekhni ka jawab nahi.
Aap ki sahitya par bahut acchi pakad hai, lekin aapko mujhe nahi lagta ki vo samman jiske aap hakdar hain, yanha mil payega.

Dhanyawad
 
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भाई पढ़ने के चक्कर में मूड नहीं बन पा रहा... और लॉकडाउन में नींद भी बहुत अच्छी आती है
आज अपडेट पूरा करने की कोशिश करता हूँ............मुझे मालूम है....आप ही नहीं बहुत सारे पाठक इंतज़ार में हैं

देरी के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ...............सुबह अपडेट पढ़ने को दे सकूँ.... यही प्रयास है आज मेरा
हा...हा.... कामदेव भाई को मैं रोज दसेक कहानियों के उपर लाईक और कमेन्टस करते हुए देखता हूं.... और वो भी रात के दो , तीन बजे तक ।
मैं तो चाहता हूं कि इस कहानी को लिखने के साथ साथ कोई और नजराना (नई कहानी) भी लेकर आएं ।
 

kamdev99008

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Aapki lekhni ka jawab nahi.
Aap ki sahitya par bahut acchi pakad hai, lekin aapko mujhe nahi lagta ki vo samman jiske aap hakdar hain, yanha mil payega.

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सम्मान, संपन्नता और संभोग................ इन्हीं के पीछे मनुष्य भागते फिर रहे हैं...........और यही कष्टों का कारण है
..............................
मेंने इन तीनों को भरपूर प्राप्त किया है अपने जीवन में...................अब कोई तृष्णा बाकी नहीं
मिले तो ठीक, ना मिले तो ठीक...................बस जो मन में है.............दुनिया के सामने रख रहा हूँ..................

साहित्य स्कूल कॉलेज में तो नहीं पढ़ा लेकिन4 वर्ष की उम्र से समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, कहानियाँ और उपन्यास पढ़ता आया हूँ.......... ....
किसी भी विषय की कोई भी पुस्तक हो अगर मुझे पढ़ने का मौका मिला, एक बार पढ़कर समझना जरूर चाहा है मेंने .........
 

amita

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amita jee........ye kitabon ya siddhanton aur paramparaon ne nahin sikhaya mujhe
isliye ye philosophy nahin

meine ye jindgi ke anubhavon se seekha hai......................ise jeevan darshan (lifestyle shayad sabse nazdiki angreji shabd hai) maanta hoon

aur sirf jaanta aur maanta hi nahin..........................yahi jeevan bhi jee raha hoon............

is kahani ke kuchh aur updates ke bad meri apni kahani.............atmkatha............shuru hogi, flashback mein................
apne jeevan mein ..............samajil nazariye se.................. meine achchhe kam to shayad kuchh hi kiye honge..............
bura kitna hoon......................aapko padhkar faisla karne ka haq hai

maryada purushottam SRI RAM ek hi huye hain jinhone raghuvansh mein janm liya...................
lekin raghuvansh mein janm lekar sabhi ram nahi ban sake........................ mein bhi nahi bana...........
aur naa banna chaha.............kabhi bhi
Ye aapki mahanta hai jo aap aisa sochate hain.

Maine bhi bahut sare logon ko dekha hai jinhone bahut sari degrees ko Arjit kiya hai lekin vyavahar nahi.

Aapne anubhavo se jo seekha vo har koi nahi seekh sakta, lekin Main yeh jarur kanhungi ki aapko samaj ke anubhavon ne bahut bada Darshnik bana diya hai jise sahitya ki barikiyoun ki bahut hi gehri samajh hai.

Aap apane sahityik sujhbujh ka sahi mayane me upyog kare. Meri rai hai ki aap chahe yanha apane shauk pure karen, lekin kisi acche sahitye me lekh likhe janha aap ko uchit samman milega.
Dhanyavaad
 

kamdev99008

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हा...हा.... कामदेव भाई को मैं रोज दसेक कहानियों के उपर लाईक और कमेन्टस करते हुए देखता हूं.... और वो भी रात के दो , तीन बजे तक ।
मैं तो चाहता हूं कि इस कहानी को लिखने के साथ साथ कोई और नजराना (नई कहानी) भी लेकर आएं ।
क्या करू पढे बिना मन नहीं मानता.......... रोजाना 200+ कहानियों पर जाकर देखता हूँ.... 50-60 पर अपडेट आए होते हैं..... वो भी पढ़ता हूँ.....

3 और नयी कहानियों की शुरुआत करके रोकी हुई हैं..... समय का प्रबंधन होने दो..... सबको साप्ताहिक अपडेट देकर चलाऊँगा
 

amita

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सम्मान, संपन्नता और संभोग................ इन्हीं के पीछे मनुष्य भागते फिर रहे हैं...........और यही कष्टों का कारण है
..............................
मेंने इन तीनों को भरपूर प्राप्त किया है अपने जीवन में...................अब कोई तृष्णा बाकी नहीं
मिले तो ठीक, ना मिले तो ठीक...................बस जो मन में है.............दुनिया के सामने रख रहा हूँ..................

साहित्य स्कूल कॉलेज में तो नहीं पढ़ा लेकिन4 वर्ष की उम्र से समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, कहानियाँ और उपन्यास पढ़ता आया हूँ.......... ....
किसी भी विषय की कोई भी पुस्तक हो अगर मुझे पढ़ने का मौका मिला, एक बार पढ़कर समझना जरूर चाहा है मेंने .........
Aap apani baat se kisi ko bhi niruttar kar sakte hain, fir bhi aap ek baar iss bare me manthan karen.

Dhanyavaad
 

mahadev31

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क्या करू पढे बिना मन नहीं मानता.......... रोजाना 200+ कहानियों पर जाकर देखता हूँ.... 50-60 पर अपडेट आए होते हैं..... वो भी पढ़ता हूँ.....

3 और नयी कहानियों की शुरुआत करके रोकी हुई हैं..... समय का प्रबंधन होने दो..... सबको साप्ताहिक अपडेट देकर चलाऊँगा
200 kahaniya kaha padhte ho ? mera to 20 ya 25 kahaniya padhke hi din nikal jaata hai ( jo new update aate hai ) ,, matlab 4 ya 5 site par visit karte honge ...
 

Mr. Pandit

SAB KUCH JAYAZ HAI....
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Pandit ji me mahatma nahi ek sadharan manushya bane rahne ke liye prayasrat rahta hu.... Lalsaon ke peechhe bhagne ki bajay jo mila usi me anand leta hu....
Aur naam..... Nam se aap kisi ko nahi jaan sakte.... Bas galatfahmi pal sakte hain, apne man me

Kahani to chalti hi rahegi... Lekin agar ap silent rahe to koshish karunga apne likhe huye me itna sudhaar lane ki... Jo ap comment karne par majbur ho jayein

Agla update jaldi hi
Bhaya mujhe majbur hona manjur hai magar update to time se dijiye. Aapki baato se lagta hai ki aapko moksh mil gaya hai jo ki hairani ki baat hai. Bhagwan to usi ko accept karta hai na jo maya moh se door hone ke sath sath sach bhi bole aur apni baat par kaayam bhi rahe. Ye nahi ki apne pathko ko goli hi deta rahe.... :D
 

Mr. Pandit

SAB KUCH JAYAZ HAI....
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isi baat par ek update post kar do ... main bhi yahi chahta hu ki XF ke saare log yahi aapki story par comments kare .. magar uske liye pehle likh kar post to kiya karo .. jaisa ki sadharan manushya karte hai ... lalsaon ke peeche bhaagne ke bajay jitni bijli aur laptop ki battery mein power mile usko .. story ke update likhne mein prayog kare .. to humein bhi aanand milega ...
Firefox bhaya....
Kamdev bhaya kahte hain ki ye laalsao ke piche nahi bhagte to fir 200 stories daily visit karke kaun bhaag raha hai aur kis liye bhaag raha hai. Jo mile usi me aanand lena to majburi wali baat kahlati hai....aisa to ham sab bhi kah sakte hain magar kahte is liye nahi kyo ki ham wahi bolte hain jo hamare andar hota hai...jabki ye to sarasar jhoot bol kar mahaatmao ki tarah pravachan de dete hain....

Kahna nahi chahiye kyo ki aakhir ye bade bhaiya hain magar sach ye hai ki paakhand bahut hai bhaiya ji ke andar aur kahte firte hain ki ye laalsao ke piche nahi bhagte. Are ham log kya bevkuf hain jo kuch samajhte nahi hain.???

Bade bhaiya ji kaha suna maaf karna aur ye laalsao ka jhutha pravchan na de kar time se update dijiye. Sabko naseehat dete ho aap to kabhi khud ko bhi dijiye.... :D
 
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