अध्याय 49
“स्वाति! तुम्हारे फोन पर कॉल आ रही है” सुनकर स्वाति रसोई में से निकली और फोन उठाकर बोली भैया की कॉल है
“भैया नमस्ते! कैसे हैं आप?”
“नमस्ते बेटा! मैं तो ठीक हूँ तुम लोग कैसे हो” उधर से कहा गया
“भैया मैं भी ठीक हूँ....कहाँ हो आप? बहुत दिनों से आए नहीं” स्वाति ने कहा
“बस यहीं हूँ तुम लोगों के आसपास.... अब मैं भी बिज़ि हो गया हूँ.... माँ कैसी हैं” उधर से पूंछा गया
“वो भी ठीक हैं....लो आप उनसे बात कर लो” स्वाति ने कहा
“ उनसे तो बात कर ही लूँगा....तुम्हारी दीदी का फोन तो आ ही गया होगा.... फिर भी मैं बता देता हूँ.... सोमवार को रागिनी दीदी की शादी है....दिल्ली। तुम दोनों को हर हाल में आना है.... अब कोई बहाना नहीं सुनूंगा मैं”
“भैया ऐसी कोई बात नहीं होगी.... हम तीनों वहाँ पहुँच जाएंगे” स्वाति ने शर्मिंदा होते हुये जल्दी से कहा
“तीनों नहीं, तुम दोनों.... तुम और धीरेंद्र..... माँ को लेने के लिए अभी थोड़ी देर में गरिमा पहुँच रही है.... वो अपने साथ ले आएगी...अभी”
“जी भैया! में मम्मी जी की तैयारी कर देती हूँ” स्वाति ने कहा और फोन वसुंधरा को दे दिया
“रवीन्द्र! कैसे हो तुम?” वसुंधरा ने रुँधे स्वर में कहा
“नमस्ते माँ! मैं ठीक हूँ.....आप कैसी हैं?” उधर से बात कर रहे रवीन्द्र ने भी भर्राए से स्वर में कहा
‘बस ठीक हूँ....आज बहुत दिनों...बल्कि कई महीने बाद फोन किया....अपनी माँ की याद नहीं आती तुम्हें” वसुंधरा बोली
“आपको ही कब मेरी याद आई.... वैसे भी सुशीला तो आपसे बात करती ही रहती है” रवीद्र ने सपाट लहजे में कहा
फिर रवीन्द्र ने उन्हें वही सब कुछ बता कर तैयार रहने को कहा और फोन काट दिया।
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इधर रणविजय और सर्वेश को वहीं बैठाकर विनीता अंदर चली गयी और कुछ देर में ही एक लगभग 19-20 साल का लड़का पानी लेकर आ गया। आकर उसने पानी दिया और दोनों के पैर छूए। फिर वो वापस रसोईघर की ओर चला गया। थोड़ी देर बाद विनीता चाय लेकर और लड़का कुछ हल्का-फुल्का खाने का समान लेकर आ गए
“आप दोनों तख्त पर पैर ऊपर करके बैठ जाओ.... यहाँ कोई टेबल वगैरह तो है नहीं... और में ऐसे पकड़ के खड़ी नहीं रह सकती” विनीता ने मुसकुराते हुये कहा तो सर्वेश कुछ शर्मा गए और जूते उतारकर पैर ऊपर कर लिए लेकिन रणविजय आने ही मूड में वैसा ही बैठा रहा
“बेटा! आपका नाम क्या है?” विक्रम ने विक्रम ने ट्रे रखकर वापस जाते लड़के से कहा तो वो रुककर वापस पलट गया
“जी अनुज” लड़के ने पलटकर जवाब दिया
“तो अनुज किस क्लास में पढ़ते हो तुम?”
“जी! बीएससी फ़र्स्ट इयर में एड्मिशन लिया है इसी साल” अनुज ने जवाब दिया
“कौन से कॉलेज में हो” विक्रम ने फिर पूंछा तो अनुज ने कॉलेज का नाम बताया
“इतनी दूर क्यों एड्मिशन कराया इसका.... यहाँ पास के किसी कॉलेज में करा देना था” विक्रम ने कॉलेज का नाम सुनकर विनीता से कहा
“दूर की बात नहीं असल में माँ उसी कॉलेज में पढ़ती थीं पहले इसलिए उन्होने मुझे उसी कॉलेज में पढ़ने के लिए कहा” विनीता की बजाय अनुज ने ही जवाब दिया
“तो आप भी उसी कॉलेज में पढ़ती थीं? मुझे फिर भी नहीं मिलीं... भैया उस कॉलेज में नहीं पढे फिर भी उनको मिल गईं आप?” विक्रम ने मुसकुराते हुये विनीता को छेडने के लिए कहा
“में तो स्कूल में भी नहीं पढ़ी.... अंगूठा टेक हूँ.... ये अपनी माँ की बात कर रहा है” विनीता ने मुसकुराते हुये जवाब दिया
“इसकी माँ! मतलब ये आपका बेटा नहीं है? तो इसकी माँ कौन हैं” विक्रम ने उलझे हुये स्वर में कहा तो सर्वेश भी उन सब की ओर उत्सुकता से देखने लगे
“अरे आप नहीं जानते.... ये ममता दीदी का बेटा है.... आपकी विमला बुआ का नाती” विनीता ने चौंकते हुये विक्रम को अजीब नजरों से देखते हुये कहा तो विक्रम और सर्वेश दोनों ही चौंक पड़े
“ममता का बेटा! तो ममता ने इसके बारे में बताया क्यों नहीं.... और इसे साथ क्यों नहीं ले गईं घर पर” कहते हुये विक्रम ने घर पर सुशीला को फोन मिलाया
“भाभी आपसे एक जरूरी बात करनी है थोड़ा अकेले में पहुँचो” सुशीला के फोन उठाते ही विक्रम ने कहा
“हाँ बताओ क्या बात है?” सुशीला ने कहा
“भाभी ममता का बेटा अनुज इसी फ्लैट में रह रहा है लेकिन ममता ने न तो हम लोगों को कुछ बताया और ना ही अनुज को अपने साथ घर लेकर गईं... कल से अकेला ही है यहाँ ..........एक मिनट..... आपको भी तो पता होगा... जब ये लोग भैया के साथ यहाँ रह रहे हैं तो.......”विक्रम (रणविजय) ने गुस्से से कहा तो सुशीला को हंसी आ गई
“अच्छा एक काम करो अनुज को साथ लेते आओ.... मेंने तुम्हें इसीलिए तो भेजा था। जब ममता अनुज को साथ लेकर नहीं आई तो मेंने उससे कहा था इस बात को....वो अनुज को सबके सामने लाने में झिझक रही थी कि फिर तरह तरह की बातें और सवाल ना होने लगें.... “ सुशीला ने कहा
“आपने कब भेजा मुझे और ना ही आपने मुझसे कुछ कहा अनुज के बारे में..... ठीक है मैं अनुज को साथ लेकर आ रहा हूँ और सर्वेश चाचाजी को विनीता मामी जी के हवाले कर के आ रहा हूँ..... आजकल वो यहीं पर हैं भैया की सेवा के लिए... आप शायद उनको जानती होंगी, लीजिए बात कीजिए” कहते हुए रणविजय ने अपनी ओर से पूरी आग लगाकर मन में खुश होते हुये फोन विनीता की ओर बढ़ा दिया। विनीता फोन लेने में हिचकिचा रही थी लेकिन सर्वेश और अनुज की नजर अपनी तरफ देखकर चुपचाप फोन ले लिया
“हाँ बहुरानी कैसी हो?” विनीता ने बड़े संयत स्वर में कहा
“मामीजी नमस्ते! में ठीक हूँ.... आप कैसी हैं?” सुशीला ने भी सधे हुए अंदाज में बात शुरू की
“हम भी ठीक हैं..... रात लला का फोन आया था कि यहाँ अनुज अकेला है और सर्वेश जीजाजी भी अनेवाले हैं तो कुछ दिन रोजाना आकर खाने वगैरह का देख लिया करूँ इसलिए सुबह आ गई थी” विनीता ने अपनी सफाई सी देते हुए कहा
“अब तो ममता अपने घर में ही रहेगी तो वहाँ अपने लला के खाने पीने का आपको ही देखना पड़ेगा..... वो अकेले रहते हैं तो मुझे भी चिंता लगी रहती है... ना हो तो आप भी इनके साथ ही रहने लगो.... रात-बिरात कभी कोई जरूरत हो तो कौन होगा इनके पास.... मुझे तो साथ रखते नहीं” सुशीला ने कटाक्ष करते हुए कहा
“नहीं बहुरानी मैं तो आकर सिर्फ खाना बना जाया करूंगी..... में ऐसे इनके साथ कैसे रह सकती हूँ.... मुझे भी तो अपना घर देखना होता है... बच्चों को किसके ऊपर छोडूंगी” विनीता ने भी सुशीला कि बात में छुपे मतलब को समझते हुए थोड़ा सास वाले अंदाज में बात को बिना किसी लाग लपेट के साफ-साफ कहने की कोशिश की
“अरे नहीं मामीजी आप कुछ गलत मत समझना ...... में तो आपसे सिर्फ उनका ख्याल रखने को कह रही थी.... आप सब के भरोसे ही तो में निश्चिंत रह पाती हूँ गाँव में..... आप जितना कर सकती हैं.... में उसके लिए ही अहसानमंद हूँ..... में तो इतने पास होते हुए भी उनके लिए कुछ नहीं कर पा रही” सुशीला ने बात को संभालते हुए कहा
“बहुरानी मैं तो ऐसा कुछ भी नहीं कर रही, लला जी ने जो मेरे लिए किया है मैं ज़िंदगी भर उस अहसान को नहीं उतार सकती तुम दोनों की तो में सारी ज़िंदगी अहसानमंद रहूँगी” विनीता ने लज्जित स्वर में कहा और फोन रणविजय को पकड़ा दिया
कुछ देर बाद विक्रम अनुज को साथ लेकर वहाँ से चला गया, किशनगंज को। किशनगंज पहुँचकर अनुज को देखते ही ममता के मन में डर और झिझक आ गई और वो अनुज के सामने से हटकर अंदर किसी कमरे में चली गई। अनुज ने वहाँ मौजूद सभी के पैर छूए और सुशीला ने सबको अनुज का परिचय दिया
अनुज के बारे में जानते ही अनुराधा को समझ आ गया की उस दिन यहाँ आने से पहले उसकी माँ ममता ने अनुज को ही फोन किया होगा। लेकिन अनुज उसका सगा छोटा भाई है ये जानकर अनुराधा को बड़ा अजीब सा महसूस हुआ, खासकर सुधा के मुंह से ममता के अतीत को सुनकर उसकी स्थिति और भी दुविधा वाली हो गई थी अनुज के बारे में, की क्या वो वास्तव में उसका ‘अपना’ भाई ही है या ममता की ऐयाशियों का नतीजा। एक तरह से उसने अपनी ओर से अनुज को बिलकुल अनदेखा सा कर दिया। इधर जब सुशीला ने अनुज का सबसे परिचय कराया तो अनुराधा के बारे में जानते ही अनुज की आँखों में नमी आ गई और एक मोह और उम्मीद भरी नजरों से उसने अनुराधा की ओर देखा, लेकिन अनुराधा ने ना तो उसकी ओर देखा और ना ही कुछ कहा तो अनुज के चेहरे पर दर्द सा उभर आया। सबसे मिलने के बाद अनुज ने सुशीला से ही अपनी माँ के बारे में पूंछा तो सुशीला ने अनुराधा से उसे ममता के पास कमरे में ले जाने के लिए कहा लेकिन अनुराधा ने प्रबल को इशारा किया तो प्रबल अनुज को साथ लेकर अंदर चला गया।
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अब तक अनुराधा ने ना तो ममता से कुछ बात की और ना ही अनुज से.... इधर रागिनी भी अब पिछली सारी बातें, नफरत और गुस्सा भूलकर सबके साथ मिल जुलकर शादी की तैयारी में लगी थी। वीरेंद्र का परिवार और बलराज सिंह एक साथ शादी के एक दिन पहले ही आए, मंजरी और बच्चों को छोडकर वीरेंद्र और बलराज रवीन्द्र के नोएडा वाले फ्लैट पर गए और वहीं रुकने का फैसला किया। अब इतने सारे लोगों के रुकने की व्यवस्था को लेकर विक्रम ने आसपास किसी मकान की व्यवस्था का सोचा, और अनुपमा की माँ रेशमा से ममता ने कहा... लेकिन इतनी जल्दी और इतने कम समय के लिए मकान की व्यवस्था बन नहीं पा रही थी।
तभी अनुभूति ने कहा कि पापा से बोल देते हैं वो सबकुछ व्यवस्था कर देंगे। अनुभूति की बात सुनकर सभी चौंक गए और पूंछा कि विजयराज तो अब किसी काबिल हैं नहीं तो वो कैसे कर सकते हैं.... इस पर अनुभूति ने बताया कि वो राणा जी को ही बचपन से पापा कहती आ रही है....और मानती भी है। हालांकि रिश्ते के अनुसार वो उसके बड़े भाई हैं..... ताऊजी के बेटे, लेकिन उसने जबसे होश संभाला परिवार के नाम पर राणाजी अर्थात रवीन्द्र के अलावा किसी को नहीं देखा, बाद में विक्रम और मोहिनी देवी ने जब आना जाना शुरू किया तब तक वो इतनी समझदार हो चुकी थी कि उनको उनके रिश्ते के अनुसार ही संबोधित करती थी। विक्रम ने भी उसकी सलाह पर अपनी सहमति जताई कि रवीन्द्र भैया के पास हर समस्या का समाधान है.... किसी भी तरह से करना पड़े लेकिन वो कभी किसी काम को ना तो अधूरा छोडते हैं और ना ही हताश होकर बैठते।
आखिरकार सुशीला ने भानु से फोन मिलाकर देने को कहा। फोन उठाते ही सुशीला ने रवीन्द्र से कहा की यहाँ कुछ व्यवस्थाएँ करनी हैं जिनके लिए रणविजय बात करना चाहते हैं तो रवीन्द्र ने फोन स्पीकर पर डालने के लिए कहा और बताया कि विवाह तो इसी घर से होना है..... लेकिन यहाँ सबकी व्यवस्था नहीं हो सकती इसलिए उन्होने बारात के स्वागत, ठहरने और भोजन आदि के लिए पास में ही रूपनगर के सरकारी बारात घर को बुक कर दिया है, परिवार के बड़े बुजुर्गों को विशेष भागदौड़ नहीं करनी इसलिए उनके रहने कि व्यवस्था बलराज सिंह के घर कर दी गयी है। महिलाओं और बच्चों को इसी मकान में रखें और सारी व्यवस्था रणविजय को देखनी है.... अन्य कोई समस्या हो तो बताएं।
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शादी वाले दिन रवीन्द्र भी सर्वेश को साथ लेकर सीधे रूपनगर के बरातघर में सुबह ही पहुँच गए और वहाँ की तैयारियों की जानकारी विक्रम/रणविजय से लेकर परिवार के सभी लड़कों को काम सौंप दिये। सर्वेश ने बताया कि देवराज कि बारात शिवपुरी से मैनपुरी पहुँच चुकी है वहाँ के बाकी बरातियों को साथ लेकर वो सब शाम तक यहाँ पहुँच जाएंगे। रवीन्द्र ने बलराज, विजयराज, सर्वेश, वीरेंद्र और रणविजय/विक्रम को साथ बिठाकर कहा
“कुछ लोग गाँव से भी आ रहे हैं... जिनको सूचना दी जा चुकी है, कुछ रिश्तेदारों को भी सूचना दे दी गयी है..... यहाँ के जो भी नए-पुराने परिचित हैं जिनको रवीन्द्र जानते हैं.... ज़्यादातर को सूचना दे दे दी है....... अब भी अगर कोई रह गया है तो इस निमंत्रण सूची को देखकर इसमें नाम बढ़ा दें.... यहाँ के लोग तो शामिल हो ही जाएंगे.....”
“ज्यादा लोगों को बुलाने कि क्या जरूरत है.... जो आ रहे हैं वही काफी हैं” बलराज ने कहा
“देखिये चाचाजी! ये हमारे घर की सबसे बड़ी बेटी की शादी है.... ऐसे मौकों पर लोगों को हम इसलिए नहीं बुलाते कि हम उन्हें खाना खाने के लिए बुला रहे हैं..... खाना तो एक शिष्टाचार के लिए खिलाया जाता है, कि वो हमारे घर पर या हमारे कार्यक्रम में आए हैं तो भोजन करके जाएँ। इन लोगों को बुलाने का उद्देश्य होता है..... अपने सम्बन्धों को बनाए रखना, एक दूसरे से मिलना जुलना, उनको सम्मान देना, उनको यह महसूस हो कि, हमने अपनी खुशियों में और दुख में भी उनको शामिल किया.... उन्हें अपना माना है, वरना तो शादी में पंडित कि भी जरूरत नहीं होती..... शादी तो वर-वधू की होती है... मंत्र पढ़ने या फेरे लेने से नहीं उनके एक दूसरे पर विश्वास, समर्पण और प्रेम से उनका घर बसेगा, उनका विवाहित जीवन चलेगा” रवीन्द्र ने कहा
रवीन्द्र ने आगे कहा “आज देखा जाए तो हमारा अपना घर ही टुकड़ों में बिखरा हुआ है, हम अपने परिवार के सदस्यों के बारे में ही नहीं जानते कि कौन कहाँ है और कैसा है.... रिशतेदारों और परिचितों से तो आप सभी के संबंध लगभग खत्म ही हो गए। लेकिन, में आप सब से ही नहीं, गाँव में बसकर से गाँव के लोगों से भी जुड़ा और रिश्तेदारों व जान-पहचान वालों से भी जुड़ा रहा.... साधारणतः न सही उनके दुख-सुख, उनके कार्यक्रमों में शामिल होता रहा.... इसलिए मेरे संबंध सभी से जुड़े हैं......... बाकी आप सभी की इच्छा”
इतना कहकर रवीन्द्र ने आमंत्रित व्यक्तियों की सूची विक्रम को देकर बता दिया कि सभी मेहमानों तथा बारातियों के खाने-रहने की व्यवस्था और बारातघर की भी व्यवस्था उसने कर दी है.... अब किसी को कुछ भी लेना देना नहीं है..... सिर्फ शादी की व्यवस्था उन लोगों को देखनी होगी जो भी सामान-कपड़े-जेवर वगैरह देने हों.... उसमें भी अगर कोई परेशानी हो तो अपनी भाभी यानि सुशीला को बता दें। इतना कहकर रवीन्द्र वहाँ से उठकर सर्वेश को साथ लेकर एकांत में उनसे बात करते रहे फिर बाहर निकलकर अपनी बाइक स्टार्ट करके चले गए।
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रात को बारात आई और पहले बारात धूमधाम से चढ़ी फिर बरातियों को भोजन कराया गया। भोजन के बाद बारात में आए हुये लोग विश्राम करने लगे... कुछ खास लोग दूल्हे के साथ शादी के मंडप में बैठे। शादी के कार्यक्रम होने लगे कन्यादान के समय अचानक रागिनी के दिमाग में कुछ आया तो उसने विक्रम को पास बुलाकर उससे पूंछा, रागिनी कि बात सुनकर देव भी चौंका और उसने भी विक्रम को कुछ बोला।
विक्रम भी परेशान सा हो गया उन दोनों की बात सुनकर और सीधा सुशीला के पास जाकर बोला
“भाभी! भैया कहाँ हैं?”