ganwar to maanta hoon.....aap ho sakte hain......... mein bhi hoon............ lekin mostly members shahron mein rah rahe hain
ganwaar ...........matlab gaon ke rahnewalon ko kahte the pahle shahri log......... lekin fir ye common ho gaya un sab ke liye jo har baat ko gehrai se nahin samajhte the
baki anpadh............
ye to is forum ka level dekhkar hi samajh aa jata hai 90% members saal bhar koi na koi exam dete hi rahte hain
doctors, engineers aur intellectuals
kisan andolan ke mein shuru se khilaaf hoon.......... kyonki mein krishi bills ko deeply samajhkar is andolan ke peechhe chhupi rajnitigyon ki mansha aur kisano ki bewkoofi ko dekh pa raha hoon
ab kahani ki baat........... delhi tak ho aya 15 din ki saja kaat ke wapas gaon aya hu........ laptop lekar 1-2 din me wapas pahunch jaunga......
yahan gaon ki vyavastha bhi to dekhni hoti hai........... unhi ke liye to delhi saja kaatne ja raha hoon....... family 1st
mask mein suffocation jhelo ya 2000 ka challan.............
air, water and traffic pollution aur bhid-bhaad..............
karta hoon kahani ka express publication............ jald se jald pura karke fir apni dusri kahaniyon ko bhi sama dena hai
aaj raat ko pratishodh ka 1st update post karunga pura karke.......... bahut dino se latka hua hai....... pahla update bhi post nahin ho paya
aap serious kyon ho rahe hain.............. mein to majaak kar raha tha............
mujhe aap sabki baat bahut achchhe se aur gahrai se samajh aati hai
aur apni galtiyan bhi...........
mein bhi other writers ko pressurise karta hoon next update ke liye........... lekin apni hi kahani ka update nahin de pa raha
wajah bijli, time ya other kisi bhi tarah ki nahi........... lekin pichhle kuchh dinon se pariwarik mahaul aisa ho gaya hai ki
pahle to mood hi nahin banta kuchh likhne ka........ aur jab likhne baithta hoon to khud hi satisfy nahin ho pata........ writer's block ise hi kahte hain shayad
dusre........ pichhle dedh saal se gaon me hi pada hoon..... bahut raees baap ka beta tha ..... lekin bahut sangharsh se jivan jiya bachpan se aur bas kisi tarah pariwar paal raha hoon............. naa kheti, na business aur naukri kabhi ki nahin........... jamin jaydad bhi pitaji apne sath le gaye...... sirf ek akl hai apne pas.......aur jimmedariyan
to .......... bahut kuch sochkar dobara sangharsh karna shuru kiya hai............ usi mein dimaag busy rahta hai..... kya, kaise, kab aur kahan karoon
mata-pita, bhai-bahan, chacha-bua sabke liye karta raha ........... lekin aaj jab mere bachchon ka samay aya hai to akela hi khada hoon....khaali haath
ajkal man ashant hai......... dil ki baat kisi se kahne ka man kiya........ ghar mein to kisse kahun..... ap sab se hi kah diya
ise seriously .......dil par mat lena....... kyonki mein hi kabhi kuchh dil mein nahin rakhta........... dimag mein rakhta hoon....
............... vaise ye sab apko padhne ko milega.......... isi atmkatha mein
mein jindgi ka sath nibhata chala gaya,
har fikr ko dhuyein mein udata chala gaya,
jo mil gaya usi ko mukaddar samajh liya,
jo kho gaya mein usko bhulata chala gaya
barbadion ko shok manana fijool tha,
mein barbadiyon ka jashn manata chala gaya
yahi hai .........मोक्ष : सारी तृष्णाओं को तुष्टि तक ले जाने वाला मार्ग
जल्द ही मिलते हैं......................एक बार फिर
लगता है आपने भी वही भोगा हुआ है जो मैंने भोगा है ।
मैं भी अपनी फेमिली और दोस्तों की तन मन और धन से सेवा कर कर के अपना सब कुछ लुटा दिया ।
बीस साल से उपर हो गए । आज के तारीख में वो सभी करोड़पति हैं लेकिन वो सभी के सभी मुझे धोखा देकर ।
बाद में एक समय ऐसा भी आया जब हमारे बच्चों को दो जून की रोटी तक नसीब नहीं थी । आज तक मैं उबर नहीं पाया हूं ।
बहुत मेहनत करके मान सम्मान की रक्षा कर पा रहा हूं । ये कलयुग है । इस युग के सारे रिश्ते मतलबपरस्त और खुदगर्जी पर आधारित है । बिना स्वार्थ के तो पत्नी और बेटे तक मदद न करे । फिर भी......
मैंने बचपन में एक कहानी पढ़ी थी ।
एक ब्राह्मण था । गांव में रहता था । बहुत ही गरीब था । उसके फेमिली में और कोई भी नहीं था । एकदम मस्तमौला नौजवान था । अपने पुरे जीवन में कभी भी किसी देवी-देवता का पुजा पाठ नहीं किया था ।
लेकिन गांव में कभी किसी को मदद करना होता तो वो तुरंत ही हाजीर हो जाता । जैसे किसी बुजुर्ग की सेवा, लड़कियों की शादी में बढ़ चढ़कर मेहनत करना , किसी को चोट वगैरह लग गया हो तो उन्हें अस्पताल पहुंचाना ।
गरीब था तो अपने औकात के हिसाब से ही मदद करता ।
एक दिन शाम के समय वो टहलते हुए अपने झोपड़ी में जा रहा था तभी उसने देखा कि एक आदमी हाथ में वीणा लिए हुए ' नारायण नारायण ' कहते हुए गांव के रास्ते में टहल रहा था । ब्राह्मण को उस आदमी को देखकर शक हुआ ।
वो उनके पास गया और बोला -" विप्रवर ! आप कौन हैं ? यहां इस छोटे मोटे गांव में क्या कर रहे हैं ,,?"
वो आदमी वीणा बजाते हुए ' नारायण नारायण ' कहते हुए कहा - " वत्स ! मैं नारद मुनि हूं । और मैं भगवान विष्णु के आदेश का पालन कर रहा हूं ।"
ब्राह्मण चौंका । वो सोचने लगा कि नारद मुनि साक्षात इस कलयुग में धरती पर विचरण कर रहे हैं ।
उसने देखा कि नारद ऋषि के हाथ में एक बहुत ही मोटा किताब था ।
वो जिज्ञासा से पूछा -" प्रभू ! आपके हाथ में ये किताब कैसी है ? क्या है ये ?
नारद ऋषि मुस्कुरा कर बोले -" बेटा ! इसमें उन लोगों का नाम दर्ज है जो भगवान की अराधना करते हैं । भगवान की पूजा करते हैं ।"
" क्या होगा इस किताब का ?" - ब्राह्मण बोला ।
" ये किताब खुद भगवान देखेंगे और उसी के हिसाब से उन्हें फल देंगे ।"
ब्राह्मण सुनकर चौंका । उसने आग्रह पूर्वक नारद जी से किताब मांगा और देखा । पुरी किताब में कहीं भी उसका नाम दर्ज नहीं था ।
नारद जी के जाने के बाद वो सोचने लगा कि मेरा जीवन व्यर्थ है । लाखों लोगों के नाम भगवान विष्णु खुद ही पढ़ेंगे और फिर उन्हें फल भी देंगे । और मेरा तो नाम ही नहीं है ।
वो सोचा कि अब से बेकार का समाजसेवा बंद और कल से पूजा पाठ शुरू ।
वो घर गया और रात में ही गोबर से लिप पोत कर घर शुद्ध किया । पूजा की सारी सामग्री जुटाया । धूप , दीप , पुष्प आदि ।
सुबह उठकर पूजा करने का संकल्प लेकर सो गया ।
सुबह के चार ही बजे थे कि उसके दरवाजे को किसी ने जोर से खटखटाया । वो उठकर देखने गया कि इतनी सुबह सुबह कौन आ गया है ।
दरवाजे खोलते ही उसने अपने वृद्ध पड़ोसी को देखा । वृद्ध काफी चिंतित और परेशान था । उसके पुछने पर वृद्ध ने बताया कि उसके पोता का तबियत बहुत खराब है । उसकी हालत हर क्षण बिगड़ती जा रही है । अगर उसे अस्पताल जल्दी से नहीं ले गया तो कुछ भी हो सकता है ।
ब्राह्मण ने सोचा था कि आज से वह पूजा पाठ शुरू करेगा मगर आज भी कोई अपनी परेशानी लेकर उसके पास आ गया । थोड़ी देर सोचने के बाद वो वृद्ध के साथ ये सोचकर चला गया कि वो पूजा पाठ आज से नहीं बल्कि कल से शुरू करेगा ।
वो उस बिमार बच्चे को अपने गोद में उठा कर जल्दी से अस्पताल पहुंचा । उसे एड्मिट करवाया । दवा का प्रबंध किया । यहां तक कि उसे अपना खून भी चढ़ाना पड़ा । तब जाकर बच्चे की जान बची ।
ये सब करते करते शाम हो गया था । वो वापस अपने घर की ओर रवाना हुआ । वो उस जगह पहुंचा जहां पर पिछले दिन नारद ऋषि से मुलाकात हुई थी ।
उसने देखा कि आज भी नारद ऋषि अपने चिर परिचित अंदाज में ' नारायण नारायण ' कहते हुए घुम रहे हैं । लेकिन आज उनके हाथ में एक बहुत ही पतली किताब थी ।
वो नारद ऋषि के पास पहुंच कर उन्हें प्रणाम किया और बोला -" प्रभु ! आज किस कारण से इस मृत्युलोक में विचर रहे हैं और आज तो आपके हाथ में बहुत ही पतली किताब है ! ये कैसी किताब है ?"
नारद जी मुस्कराते हुए बोले -" बेटा ! आज भी मैं परमपिता परमेश्वर विष्णु भगवान की आज्ञा का पालन कर रहा हूं । और ये जो पतली किताब है न , इसमें उन लोगों का नाम दर्ज है जिसकी भगवान पूजा करते हैं ।"
" क्या ?" - ब्राह्मण बुरी तरह चौंकते हुए कहा -" ऐसा कैसे हो सकता है कि भगवान किसी आम आदमी की पूजा करें । पूजा तो लोग उनकी करते हैं ।"
" नहीं बेटा ! ये सत्य है । "- नारद जी ने ' नारायण नारायण ' कहते हुए कहा ।
ब्राह्मण ने सोचा कि जरा मैं भी तो देखूं कि ऐसे कौन कौन से लोग हैं जिनकी खुद भगवान पूजा करते हैं । उसने किताब खोली । पहले पृष्ठ पर ही उसका नाम लिखा हुआ था ।
ब्राह्मण रोने लगा । वो नारद जी को प्रणाम करके अपने घर की ओर प्रस्थान किया ।
" परहित सरिस धर्म नहिं भाई "
बिना स्वार्थ और मतलब के किसी का भी मदद करना - इससे बड़ा कोई भी धर्म नहीं है । कोई मानवता नहीं है ।
जैसे जन्म के साथ मृत्यु अटल सत्य है उसी तरह पाप के साथ पुण्य भी शास्वत सत्य है ।