अध्याय 34
अब तक अपने पढ़ा कि नीलोफर उर्फ नीलिमा अपनी बीती ज़िंदगी के बारे में बताती है कि कैसे उसकी माँ नाज़िया ने मुसीबतों के साथ उसे पालकर पढ़ना शुरू किया.... एक दिन ……उसने अपने घर में माँ और मुन्नी आंटी के साथ एक लड़के-लड़की को देखा...
अब आगे...............
मेंने पीछे हटकर एकबार फिर से सोचा कि माँ इन्हें कैसे जानती हैं और यहाँ क्यूँ लाई हैं... ये जानते हुये भी कि ये मेरे कॉलेज में ही पढ़ते हैं... और इनके द्वारा कॉलेज तक सबको मेरे और माँ के बारे में पता चल जाएगा। तभी मुझे ध्यान आया कि शायद माँ को ये पता ही नहीं कि आज में कॉलेज नहीं गयी.... और इन दोनों का अपने घरों से लापता होना, माँ और मुन्नी आंटी के साथ यहाँ इस घर में होना.... ये साबित करता है कि नेहा और ये लड़का कहीं ना कहीं माँ के धंधे से जुड़े हैं.... यानि नेहा तो रंडी है ही.... ये लड़का दल्ला है इसका... और क्या पता ड्रग्स के कारोबार में भी माँ और विजय अंकल वगैरह शामिल हों। में तुरंत जाकर अपने कमरे में छुप गयी...और अपनी किताबें वगैरह सब उठाकर रख दीं इन लोगों के जाने का इंतज़ार करने लगी... अचानक मुझे ऐसा लगा कि कोई सीढ़ियों पर ऊपर आ रहा है... सीढ़ियों से ऊपर आने पर पहला कमरा माँ का था उसके बाद मेरा... नीचे हॉल, रसोई, और एक कमरा था जिसे माँ अपने काम के सिलसिले में बातचीत करने, कोई सामान या कागजात रखने, विजयराज अंकल, मुन्नी आंटी, विमला आंटी या उनके पति विजय सिंह के रुकने के लिए इस्तेमाल करती थी.... जब मेंने किसी के ऊपर आने कि आहात सुनी तो मुझे लगा कि अगर किसी ने भी मेरे दरवाजे को खोलने की कोशिश की तो उसे पता चल जाएगा कि में कमरे में हूँ ....इसलिए मेंने तुरन कमरे के अंदर से चिटकनी खोल दी जिससे किसी को मेरे यहाँ होने का शक ना हो और में धीरे से बेड के नीचे सरक गयी...
थोड़ी देर बाद वही हुआ जिसका मुझे डर था... मेरे कमरे का दरवाजा खुला और दो जोड़ी पैर अंदर आए... लेकिन पैरो और कपड़ों की झलक से ही मुझे पता चल गया कि इनमें माँ नहीं हैं... ये मुन्नी आंटी और नेहा हैं... कमरे में आकर मुन्नी आंटी सीधी मेरे कपड़ों की अलमारी खोलकर उसमें से कपड़े निकालने लगीं.... उन्होने 1 जोड़ी ब्रा-पैंटी और सलवार कमीज दुपट्टे के साथ निकालकर नेहा को दी और बोली कि ये ले और नहाकर पहन ले। नेहा कपड़े लेकर मेरे बाथरूम में चली गयी। में वहीं दम साधे पलंग के नीचे पड़ी रही तभी माँ भी कमरे में आ गयी और मुन्नी आंटी से नेहा के बारे में पूंछा तो उन्होने बाथरूम की ओर इशारा किया,
“अब इन दोनों का क्या करना है?” माँ ने कहा
“में क्या बताऊँ, विजय तो कह रहा है कि इस लड़के को गायब कर दो... और लड़की को छोड़ दो.... लड़की के मिलते ही...पुलिस भी शांत हो जाएगी और लड़की के घरवाले भी.... फिर इस लड़के को भी छोड़ देंगे... लेकिन पता नहीं क्या सोच के तू इन दोनों को अपने घर ले आयी?” मुन्नी आंटी ने कहा
“मुन्नी तुम समझती क्यों नहीं.... अगर ये लड़की अकेली पकड़ी गयी तो भी इसको साथ लेकर ये लोग हमारे सारे ठिकानों पर छापे मरेंगे... उसका ड्रग का मामला है.... नेहा के घरवाले कितना भी ज़ोर लगा लें... पुलिसवाले इसको जरूर तलाश करेंगे.........
और दूसरी बात.... इस लड़के के पूरे ड्रग रैकेट को हमारे हर ठिकाने का पता है.... इस लड़की की तलाश में सब जगह छापे पड रहे हैं.... तू तो खुद कल रात इन दोनों को आगरा की बस में बैठाकर आयी थी, जहां से ये सुबह फिर वापस लौटे हैं.... इस घर के अलावा और है कोई ठिकाना... जिसका किसी को ना पता हो” माँ ने झुँझलाते हुये कहा
“लेकिन यहाँ नीलो के होते हुये कैसे रखेगी इन्हें” मुन्नी आंटी ने फिर कहा
“में नीलों को तेरे यहाँ भेज दूँगी, उसे बोलना है कि में कहीं बाहर जा रही हूँ काम से...नीलों अकेली ना रहे इसलिए तुम्हारे साथ भेज रही हूँ। अभी के लिए ये दोनों नीचे वाले कमरे में छुपे रहेंगे... अब जल्दी से दोनों को लेकर उस कमरे में बंद कर दे.... नीलों आनेवाली होगी। तुम उसे साथ लेकर निकाल जाना और अपने घर छोड़ देना, वहाँ ममता और शांति के साथ बनी रहेगी फिर विजय को बुला कर ले आना यहीं बैठकर बात करते हैं.... क्या किया जाए” नाज़िया ने कहा तो मुन्नी को भी यही ठीक लगा
नेहा नहाकर बाहर निकल आयी तो उसे साथ लेकर वो दोनों वहाँ से नीचे चली गईं। अब मेरे सामने समस्या ये थी कि में अब माँ या मुन्नी आंटी के सामने भी नहीं आ सकती थी क्योंकि मेरे घर में मौजूद होने से ही वो समझ जाते कि मेंने सबकुछ जान-समझ लिया है
में भी उन लोगों के जाने के बाद बेड के नीचे से निकली और छुपते हुये नीचे झाँककर देखा तो वो चारों नीचे वाले कमरे में जा रहे थे। उनके जाने के बाद में नीचे उतरी और हॉल में पहुंची लेकिन अब समस्या ये थी कि घर से बाहर जाने के लिए मुझे उस कमरे के सामने से गुजरना था जिसमें वो सब थे, और कमरे का दरवाजा खुला हुआ था... क्योंकि उनको तो लगा था कि घर में सिर्फ वो हैं और में तो कॉलेज में हूँ.... तभी मेरे दिमाग में एक बात आयी रसोई कि खिड़की में कोई जाली या रुकावट नहीं थी में उससे घर के बाहर कूद सकती थी। लेकिन अगर बाहर कोई मौजूद होगा तो मुझे देख लेगा फिर पता नहीं वो चोर समझकर शोर ना मचा दे। लेकिन दूसरा कोई रास्ता नहीं था इसलिए में बिना कमरे कि ओर जाए रसोई में घुसी और खिड़की खोलकर बाहर झांकी तो घर के पीछेवाली पतली गली में कुछ बच्चे खेल रहे थे। में आराम से खिड़की पर चढ़ी और बाहर को उन बच्चों कि ओर देखकर उतारने लगी... बच्चों कि नज़रें मुझ पर ही थी। में गली में उतरकर बच्चों के पास पहुंची
“यहाँ क्या कर रहे हो तुम लोग” मेंने उनके पास जाकर थोड़ा गुस्से से कहा
“दीदी हम तो यहाँ रोज खेलते हैं” एक बच्चे ने जवाब दिया
“सामने वाली चौड़ी सड़क पर खेला करो... यहाँ कूड़ा पड़ा रहता है” मेंने बात को आगे बढ़ते हुये कहा जिससे बच्चे मेरे इस तरह खिड़की से बाहर निकालने पर ध्यान न दें और यही समझें कि में उनको डांटने के लिए खिड़की से बाहर आयी हूँ
“दीदी... बाहर वाली सड़क पर लोग आते जाते हैं...तो हम वहाँ ढंग से खेल नहीं पते... पिछले महीने इसे एक साइकल से टकराकर चोट भी लग गयी थी... इसलिए हमारे घरवाले कहते हैं कि पीछे वाली गली में ही खेलने के लिए” लड़के ने नीलोफर को पूरी तरह संतुष्ट करने के लिए अपनी दलील दी
“अच्छा-अच्छा ठीक है तुम्हारे चक्कर में खिड़की से उतर आई अब घूम के वापस घर जाना होगा” कहते हुये में उस गली से बाहर निकली और मेन रोड से घर के दरवाजे पर पहुंची। दरवाजा अंदर से बंद था, मेंने घंटी बजाई तो माँ ने दरवाजा खोला...
“आ गयी नीलों... और ऐसे खाली हाथ... कॉलेज ही गयी थी? आजकल तेरे रंग बहुत बदल रहे हैं?” मुझे सामने खाली हाथ खड़े देखकर माँ का पारा चढ़ गया। मुझे भी अपनी गलती का अहसास हुआ की मुझे अपना कॉलेज बैग लेकर बाहर निकालना चाहिए था... जो में जल्दी-जल्दी में सोच ही नहीं पायी लेकिन अब क्या हो सकती है
“अब अंदर आएगी या वहीं खड़ी कोई नयी कहानी सोच रही है मुझे सुनाने के लिए” माँ ने दोबारा कहा तो में अपनी सोच से बाहर निकलकर होश में आयी। अंदर आकर मेंने दरवाजा बंद किया और देखा कि हॉल में सोफ़े पर मुन्नी आंटी बैठी हुई हैं
“आंटी नमस्ते!” मेंने कहा
“नमस्ते बेटा! आजा मेरे पास आ” उन्होने हाथ बढ़ाते हुये कहा तो में उनके पास जाकर बैठ गयी उनके दूसरी तरफ माँ गुस्से में बैठी हुई थी
“अरे नाज़िया क्यों गुस्सा होती है... स्कूल में थोड़े ही पढ़ रही है ये। कॉलेज में तो कभी-कभी घूमने भी चले जाते हैं... फिर पढ़ती तो है ही” कहते हुये मुन्नी आंटी ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुये हुये मुझे खुद से चिपका लिया और माँ को आँखों-आँखों में कुछ इशारा किया
“अच्छा अब सुन! में किसी काम से कुछ दिन के लिए बाहर जा रही हूँ... तुझे अकेला कैसे छोड़ूँ... इसलिए मुन्नी दीदी को बुलाया है मेंने। तू इनके साथ रहेगी, जब तक में वापस नहीं आ जाती। और ध्यान रहे.... मुझे कोई शिकायत नहीं मिलनी चाहिए। घर से कॉलेज और कॉलेज से घर... वक़्त से.... वरना ...” नाज़िया ने गुस्सा दिखते हुये नीलोफर से कहा
“अम्मी... में...” नीलोफर ने जवाब में कुछ कहना चाहा
“अब जा और अपने कपड़े किताबें रख ले और इनके साथ जा... जो कहना हो मेरे वापस आने के बाद कहना... मुझे भी अभी निकालना है” नाज़िया ने उसकी बात काटते हुये कहा
नीलोफर चुपचाप ऊपर अपने कमरे में गयी और अपना बैग लेकर नीचे आकर मुन्नी के साथ उसके घर चली गयी। मुन्नी ने अपने घर जाकर नीलोफर और अपनी दोनों बेटियों को बिठाकर समझाया की वो नाज़िया के साथ किसी काम से जा रही है... बाहर, इसलिए तीनों यहीं साथ में रहेंगी। उस समय तक ममता की शादी हो चुकी थी विमला के बेटे दीपक से लेकिन वो अभी अपने मायके आयी हुई थी। बल्कि मुन्नी ने ही विमला को बोलकर ममता को अपने घर बुला लिया था... शांति अकेली न रहे मुन्नी के जाने के बाद इसीलिए।
ममता और शांति को चाहे पता ना हो लेकिन, नीलोफर को पता था कि नाज़िया और मुन्नी कहीं भी नहीं जा रहीं बल्कि नेहा के मामले को शहर में रहते हुये ही गुपचुप तरीके से निपटाने में लगीं हैं। विमला भी विजय के साथ नाज़िया के घर पहुँच गयी थी घर पर दीपक, कुलदीप और सिमरन को ये बताकर कि वो दोनों कहीं बाहर जा रहे हैं और कुछ दिन में आएंगे। यहाँ ये सब इकट्ठे हुये तो बात करके रास्ता निकालने से ज्यादा सबने अपनी हवस मिटाने के मौके तलाशने शुरू कर दिये....विजय, विमला, मुन्नी, नाज़िया तो थे ही पुराने पापी... नेहा और उसके साथ वाले लड़के ने भी उसी घाट का पानी पिया था। इनमें से कोई भी घर से बाहर तो निकलता नहीं था... घर में पड़े बस चुदाई, चुदाई और चुदाई।
इधर नीलोफर जब अगले दिन कॉलेज गयी तो वहाँ आज फिर वही हाल था पुलिस और नेहा के माँ-बाप कॉलेज आए हुये थे और शक के आधार पर पूंछताछ चल रही थी... नीलोफर को नेहा के माँ-बाप को देखकर बड़ा दुख हुआ, उनके हालत खासतौर पर नेहा की माँ बहुत ही ज्यादा हताश और दुखी थीं। विक्रम उन लोगों के साथ लगा हुआ था और उनको तसल्ली दे रहा था। अचानक नीलोफर के मन में ना जाने क्या आया कि उसने विक्रम के पास जाकर धीरे से उसे अकेले में मिलने को कहा। हालांकि नीलोफर और विक्रम एक दूसरे को उस दिन से जानते थे जब नाज़िया विजय से मिली और उसके घर में रुकी... फिर भी बाद में इन सब बच्चों का एक दूसरे के घर आना जाना कम ही होता गया और अब तो ये रहा कि एक ही कॉलेज में पढ़ते हुये भी नीलोफर और विक्रम ने कभी आपस में बात ही नहीं की।
“हाँ! नीलोफर क्या बात है? आज मुझपे ये मेहरबानी कैसे... प्यार का इजहार तो नही करनेवाली” कॉलेज पार्किंग में पहुँचकर नीलोफर के पास आते हुये विक्रम ने हँसते हुये कहा
“विक्रम कभी सोचना भी मत... बचपन में जब में तुम्हारे घर रही और मेरी माँ को तुम्हारे पापा ने उन झमेलों से बचाया तो मुझे तुम सब पसंद थे... लेकिन जैसे-जैसे मेरी माँ, तुम्हारे पापा और यहाँ कॉलेज में तुम्हारे कारनामे मेरे सामने आते गए... मुझे तुम सब से नफरत सी हो गयी है... हम सब में मुझे या तो रागिनी दीदी पसंद हैं या शांति... बाकी तुम सब एक से बढ़कर एक कमीने हो, विमला आंटी, ममता और मुन्नी आंटी व उनके बच्चे भी.... में तुम सब से बात करना भी पसंद नहीं करती............... अभी मुझे तुमसे कुछ कहना है... क्योंकि तुम करते कुछ भी हो लेकिन तुम्हारा ज़मीर अभी मरा नहीं है...इसीलिए तुम नेहा के माँ-बाप के साथ भी लगे हये हो” नीलोफर ने विक्रम की बात सुनकर अपने मन की भड़ास निकालते हुये कहा तो नीलोफर के गंभीर चेहरे को देखकर विक्रम भी गंभीर हो गया
“बताओ क्या कहना है? जरूर कोई खास बात ही होगी जो आज तुमने मुझसे इतने दिनों बाद बात की” विक्रम ने कहा
“मुझे पता है नेहा कहाँ है” नीलोफर ने धीरे से कहा
“क्या” विक्रम का मुंह खुला का खुला रह गया
“मतलब तुम्हें नेहा के बारे .....”विक्रम ने आगे कहना चाहा तो नीलोफर ने फौरन उसके मुंह पर हाथ रखते हुये उसे चुप करा दिया
“धीरे बोलो और मेरी बात सुनो.... फिर कुछ बोलना” नीलोफर ने कहा और उसके होठों पर से अपना हाथ हटाने लगी तो विक्रम ने उसका हाथ चूम लिया
“तुम नहीं सुधरोगे...अब सुनो नेहा इस समय उस लड़के के साथ हमारे घर पर है... मेरी माँ साथ में तुम्हारे पापा...विजय अंकल, विमला आंटी, मुन्नी आंटी भी हैं इन सबने जो रंडीबाजी का धंधा खोल रखा है उसमें कॉलेज से लड़कियां फंसा के उन्हें ड्रूग एडिक्ट बनाकर या ब्लैकमेल करके लड़कियों को लाया जाता है... वो लड़का भी नेहा को ड्रूग एडिक्ट बनाकर इस धंधे में लाया... अब अगर तुम नेहा को वहाँ से पकडवाते हो तो ना सिर्फ वो लड़का बल्कि ये सब भी पकड़े जाएंगे और हमारी भी बदनामी होगी, क्योंकि वो हमारे माँ-बाप हैं.... में ये चाहती हूँ की नेहा अपने माँ-बाप के पास पहुंचे और इस रंडीपने और ड्रूग की गंदगी से बाहर निकलकर अपनी ज़िंदगी जिये और शायद तुम भी यही चाहते हो जिसके लिए उन लोगों के साथ लगे हुये हो.... अगर में गलत नहीं हूँ तो” नीलोफर ने कहा तो विक्रम गहरी स में डूब गया
“ठीक है में देखता हूँ इस मामले में क्या किया जा सकता है, तुम अपने घर का पता मुझे दो। में एक बार खुद जाकर इन लोगों से बात करता हूँ... लेकिन तुम इन लोगों को कुछ नहीं बताओगी, कहीं ऐसा ना हो की जब में वहाँ पहुंचूँ तो कोई भी ना मिले” विक्रम ने कहा
“में घर का पता तो तुम्हें दे रही हूँ लेकिन बस ये ध्यान रखना कि किसी को भी साथ लेकर मत जाना... ऐसा कुछ मत करना कि मेरी माँ के लिए मुश्किलें खड़ी हो जाएँ... बड़ी ठोकरें खाने के बाद हमें ये सुकून की ज़िंदगी नसीब हुई है” नीलोफर ने अपने घर का पता विक्रम को देते हुये कहा
“तुम चिंता मत करो, में अपने या तुम्हारे किसी भी परिवार के लिए कोई परेशानी खड़ी नहीं होने दूंगा....फिर भी अगर मेरी वजह से तुम्हें कोई परेशानी हुई तो उसकी पूरी ज़िम्मेदारी लेते हुये तुम्हारा हर मुश्किल में साथ दूंगा... नीलोफर में इतना बुरा भी नहीं हूँ... ये तुम भी जानती हो... जैसे तुम्हारे सिर से बाप का साया हटा ऐसे ही मेरे सिर से भी माँ का साया क्या हटा, माँ-बाप दोनों ही नहीं रहे... ऐसे बाप को क्या कहूँ जिसे अपनी ऐश, अपनी हवस के आगे अपनी औलाद कि ही फिक्र नहीं...हालांकि अब तो परिवार ने मुझे सहारा दिया हुआ है... लेकिन उस दौर कि परिस्थितियों ने मुझे ऐसा बना दिया... जिससे तुम भी मुझे पसंद नहीं करती...” विक्रम ने भावुक होते हुये कहा
“ऐसा नहीं विक्रम...में बचपन से तुम्हें पसंद करती थी... बल्कि मेरी ज़िंदगी में तुम अकेले लड़के थे जिसे में पसंद करती थी... लेकिन पहले तो मुझे लगा कि तुम शांति को पसंद करते थे बाद में तुम घर ही छोडकर चले गए और अब जब दोबारा मिले तो ऐसे हो गए कि मुझे तो आज भी यहाँ तुमसे बात करते में डर लग रहा है कि अगर किसी ने देख लिया तो वो शायद मुझे भी तुम्हारे बिस्तर पर लेटने वाली लड़कियों में ना शुमार कर ले” नीलोफर ने भी अपने दिल का दर्द बाहर निकाल दिया
“नीलों! ये सच है कि में औरतों-लड़कियों के मामले में बदनाम हूँ... लेकिन मेंने किसी कि मजबूरी का कभी फायदा नहीं उठाया ना किसी पर दवाब डाला... और रही प्यार की बात.... में बचपन से.... शांति से ही प्यार करता था... जब हम छोटे-छोटे थे तो हर खेल में वो मेरी पत्नी बनती थी.... लेकिन वक़्त और हालात ने जैसा भी जो कुछ भी किया.... अगर ज़िंदगी ने मौका दिया तो फिर भी शांति के साथ ही ज़िंदगी जीने कि तमन्ना है मेरी... लेकिन अगर कहीं भी तुम्हारी ज़िंदगी में कोई मुसीबत आई तो तुम हमेशा मुझे अपने साथ खड़ा हुआ ही पाओगी.... चलो अभी तुम कॉलेज में जाओ... में तुम्हारे घर जा रहा हूँ...” कहते हुये विक्रम वहाँ से अपनी गाड़ी लेकर निकल गया
शाम को नीलोफर जब मुन्नी के घर पहुंची तो वहाँ मुन्नी के साथ-साथ नाज़िया भी मौजूद थी। नीलोफर को देखते ही उसने उठकर नीलोफर के मुंह पर थप्पड़ मारा तो ममता और मुन्नी ने आगे बढ़कर नाज़िया और नीलोफर को सम्हाला
“ये क्या किया तूने... पता है... विक्रम ने उन दोनों को पुलिस के हवाले कर दिया और अब में या तू उस घर या इस शहर तो छोड़ इस देश में भी नहीं रह सकते... पुलिस ने उस पूरे मकान कि तलाशी ली और उन्हें मेरे बारे में सब पता चल गया... वो तो उस लड़के और लड़की को इन सबके बारे में कोई जानकारी नहीं थी... इसलिए हम यहाँ बैठे हैं... वरना अब तक इन सब ठिकानों पर पुलिस पहुँचकर हमें और इन सबको ले गयी होती...” नाज़िया ने कुससे से नीलोफर को घूरते हुये धीरे से कहा
“तो क्या करतीं आप? कब तक उन दोनों को छिपाकर रखतीं... कभी न कभी तो उन्हें बाहर निकालना ही था...” नीलोफर ने भी गुस्से से ही कहा
“नाज़िया आंटी! पहले मेरी बात सुनो...फिर कुछ बोलना” तभी भिड़े हुये दरवाजे को खोलकर अंदर आते हुये विक्रम ने कहा
“बोलो अब क्या बोलना है तुम्हें... तुमने अपने बाप और बुआ को तो बचा लिया ... में ही कुर्बानी के लिए मिली...तुम बाप-बेटे ने भी हम माँ-बेटी की ज़िंदगी जहन्नुम बनाने में कोई कसर नहीं रखी....” गुस्से से भड़कते हुये नाज़िया ने कहा
“आंटी आपके बारे में नेहा ने भी कुछ नहीं कहा था... मेंने उसे समझा दिया था... लेकिन उस लड़के पर जब पुलिस ने अपना कहर ढाया तो वो तोते कि तरह सब बोलता चला गया... अब इसमें मेरी कोई गलती नहीं है... में सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ कि आप यहाँ से कहीं गायब हो जाओ... इस बारे में पापा से बात करो... वो कुछ इंतजाम कर ही देंगे... लेकिन न जाने कैसे हालात हों... इसलिए में नीलोफर को अपने कोटा वाले घर में छोड़ देता हूँ.... अब ये न तो उस घर में रह सकती है और न ही उस कॉलेज में पढ़ सकती है... अगर इस शहर में भी रही तो पुलिस इसे पकड़कर आपको दबोचने की कोशिश करेगी .... आपको कोटा ले जाने में ये मुश्किल है कि परिवार के लोगों से में क्या कहूँगा... इसलिए आपके लिए जो करना होगा पापा ही कर सकते हैं” विक्रम ने कहा
“लेकिन में नीलोफर को ऐसे अकेला कैसे भेज सकती हूँ तुम्हारे साथ” नाज़िया बोली
“आंटी आपको मुझ पर भरोसा हो या न हो... नीलोफर पर तो भरोसा है... और नीलोफर को मुझ पर भरोसा है या नहीं ....ये आप उससे पूंछ लो” विक्रम ने कहा तो नीलोफर ने तुरंत कहा
“माँ में विक्रम के साथ कहीं भी जाने या रहने को तैयार हूँ.... आप मेरी चिंता मत करो.... अपना देखो कि इस मामले से कैसे निकलोगी” कहते हुये नीलोफर विक्रम के साथ जाकर खड़ी हो गयी
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