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Thriller मोड़... जिंदगी के ( completed )

fountain_pen

Prime
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#5 The Woods Villa....

उस साए ने खंजर का वार अमर की ओर किया, और अमर ये देखते ही झटके से एक तरफ को करवट लेते हुए गिरा और जोर से चिल्लाया: "बचाओ......"

उसकी आवाज सुन कर हस्पताल में हलचल मच जाती है, ड्यूटी स्टाफ उसके कमरे में अंदर आते हैं और देखते हैं कि अमर के बिस्तर पर एक बड़ा सा खंजर गड़ा हुआ होता है। अमर ने अगर जो छलांग ना लगाई होती तो उसकी मौत निश्चित थी। मगर कमरे में कोई भी ऐसा नहीं दिखता जिस पर शक किया जा सके।

थोड़ी देर में डॉक्टर चंदन भी वहां आ जाते हैं और अमर का हाल चाल पूछते हैं। अमर ने चंदन को कल जो उसे महसूस हुआ था वो बता दिया।

चंदन: ये तो वाकई में आश्चर्य की बात है, लेकिन हॉस्पिटल में तो कोई भी आ जा सकता है, यहां तो तुम खतरे में रहोगे, वैसे भी अब तुमको हॉस्पिटल की कोई जरूरत है नही।

अमर: पर में जाऊंगा कहां? कहने के नाम पर मेरे अपने में बस तुम ही एक हो जिसको मैं अपना दोस्त कह सकता हूं।

चंदन: हां लेकिन मैं खुद एक कमरे के फ्लैट में रहता हूं वो भी अकेले, और मेरा घर तो जहां है वहां कोई सुरक्षा के इंतजाम नहीं है। वहां रहना भी खतरे से खाली नही है।

अमर: फिर मैं कहां जाऊंगा, और इस हॉस्पिटल का बिल? वो।कैसे भरूंगा?

चंदन: उसकी चिंता मत करो, रमाकांत अंकल ने सब पेमेंट कर दी है पहले ही। उनसे ही बात करता हूं सुबह होते ही, वही कुछ कर सकते हैं।

सुबह 10 बजे, डॉक्टर चंदन के रूम में।

अनामिका: चंदन, दादाजी ने मुझे कहा है की उसे होटल के एक रूम में रुकवाने के लिए।

चंदन: पर अंकल खुद क्यों नही आए?

अनामिका: उनके घुटनों में कल रात से दर्द बहुत बढ़ा हुआ है, इसीलिए उन्होंने मुझे भेजा है, आनंद भी आजकल छूटी पर है।

चंदन: अनु तुमको कोई दिक्कत तो नही उसे वहां रखने पर?

अनामिका: चंदन उसे तो होटल के एक रूम में ही रहना है न, और वैसे भी वहां स्टाफ के लोग उसकी देखभाल करेंगे, मेरा उसे कौन सा मिलना जुलना होगा ज्यादा।

चंदन: ठीक है फिर मैं उसके डिस्चार्ज पेपर बनवा देता हूं और सिस्टर को कह देता हूं उसको रेडी करवाने।

अनामिका: हां ये कुछ कपड़े है, उसको दे देना, अभी तो वो हॉस्पिटल के कपड़ों में ही होगा, और उसका तो कोई सामान है भी नही।

चंदन: अनु, ये उसी के कपड़े है न??

अनामिका: हां चंदन, अब रखे रखे खराब ही हो रहे थे, और इसके पास कुछ है भी नही, कद काठी में दोनो एक जैसे ही हैं लगभग तो आ जायेंगे उसको।

चंदन: चलो अच्छा है, तुम कुछ कोशिश कर तो रही ही आखिर। तुम बैठो, मैं सब फॉर्मेलिटी पूरी करवा कर उसे लेके आता हूं।

कुछ देर बाद चंदन वापस रूम में आया और पीछे पीछे एक।व्हील चेयर पर अमर को लाया गया। अमर ने अनामिका को देखते ही मुस्कुरा कर पूछा।

"कैसी है आप?"

"जी ठीक हूं।"

अनामिका, अमर को देखते ही थोड़ी सा उदास हो जाती है जो अमर की आंखों से छुपा नहीं रहता।

चंदन: अमर, अनामिका आपको अपने होटल ले जाने आई है, रमाकांत अंकल ने कहा है आप वहां सुरक्षित रह सकते हैं।

अमर: अरे ये तो अच्छा है, मैं रमाकांत जी का ये आभार कैसे चुकाऊंगा, वैसे भी उन्होंने मुझ जैसे अनजान के लिए इतना कुछ पहले ही कर दिया है।

अनामिका: ये सब कोई आभार की बात नही है, जैसा दादाजी ने किया वो कोई भी अच्छा इंसान दूसरे इंसान के लिए करता। आप ये सब न सोचें और अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दें। वैसे भी सुबह जैसा हुआ है, लगता है कोई आपकी जान के पीछे भी पड़ा है।

अमर: जी लगता तो ऐसा ही है।

चंदन: अब आप लोग निकालिए। अनामिका मैं अमर को गाड़ी तक छोड़ देता हूं, साथ में एक वॉकिंग स्टिक भी है, जिसकी सहायता से अब अमर थोड़ा बहुत चल सकता है, लेकिन ज्यादा चल फिर नही करनी है अमर अभी तुमको समझे।

अमर और अनामिका गाड़ी में बैठ कर चल देते हैं, 20 मिनिट के बाद गाड़ी एक बड़े गेट के अंदर जाती है, जिसके अंदर एक बहुत बड़ी हवेली बनी होती है, और गेट के बगल में एक बोर्ड लगा था


"The Woods Villa".......

lagta hai daada ji is umra m swordman ban ne k chakkar m ghutne tuda baithe
 
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pagal nandu

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#1 The Accident....

जंगल के बीचों बीच एक काली गाड़ी पूरी रफ्तार से चली जा रही थी, जिसे कोई 26- 27 साल का का एक हैंडसम सा आदमी चला रहा था। तभी उसका फोन बजता है।

आदमी: हां बस 3 से 4 घंटे में।पहुंच जाऊंगा। और पहुंचते ही कॉल करता हूं, होटल की बुकिंग है, उसका नाम याद नही, कहीं रुक कर बताता हूं।

फोन पर: .......

आदमी: हां पता है, सब कुछ इसी काम पर निर्भर करता है, हमारी आने वाली पूरी जिंदगी इस से जुड़ी है, काम खतम करूंगा जल्द ही। फिर आ कर मिलता हूं।

और फोन कट जाता है, शायद जंगल में सिग्नल की कोई दिक्कत होती है।

फिर उसका हाथ ने जेब से एक कार्ड निकाला जो किसी होटल का लग रहा था। जिसपर एक बड़ी सी हवेली की फोटो बने थी और लिखा था...

"Woods Villa"
Outer hill Road
Hameerpur

शाम के 4 बज रहे थे और उसे भूख सी लग रही थी। थोड़ा आगे जाने पर एक बस्ती जैसी दिखाई दी, उसमे एक कैफे था।

गाड़ी बाहर खड़ी करके वो अंदर गया, काउंटर पर एक 18 साल का लड़का बैठा था। लड़के ने उसका स्वागत किया और एक टेबल तक ले गया। वहां बैठने के बाद आदमी ने मेनू देख कर एक कॉफी और सैंडविच का आर्डर किया।

कोई 20 मिनिट के बाद उसके टेबल पर ऑर्डर सर्व हो चुका था। खाते खाते उसकी बात कैफे वाले लड़के से होने लगी, और उसने कैफे वाले लड़के से हमीरपुर के रास्ते के बारे में पूछा।

कैफे वाले लड़के ने बताया की यहां से अभी कोई 2 घंटे कम से कम लगेंगे, और रास्ता सही है, लेकिन...

"लेकिन क्या??"

"हमीरपुर से पहले घाटी पड़ती है और उसका आखिरी वाला मोड़ बहुत खतरनाक है, अक्सर धुंध रहती है वहां शाम के वक्त, और कई एक्सीडेंट हो चुके हैं वहां, वैसे भी अभी 5 बजने वाले है और एक घंटे में ही अंधेरा घिर जायेगा। तो जरा सम्हाल कर गाड़ी चलाएगा।"

"हम्म्, और कुछ?"

"नही, और सब सही है, बस वहां पर जरा सतर्क रहिएगा। फिर उस मोड़ से 5 किलोमीटर बाद शहर की आबादी शुरू हो जाती है।"

"अच्छा। चलो ठीक है ध्यान रखूंगा। कितने पैसे hue तुम्हारे?"

लड़का बिल लेकर आता है, और आदमी ने अपने पर्स से उसे पैसे दे कर वाशरूम की तरफ निकल गया, जो कैफे के दरवाजे के पास में ही था। फिर 5 मिनट बाद वो बाहर निकल कर अपनी गाड़ी में बैठ कर अपनी मंजिल की ओर बढ़ जाता है। उसके जाते समय कैफे वाला लड़का उसे नही दिखता, शायद वो और कस्टमर्स का ऑर्डर लेने अंदर की तरफ चला गया था। बाहर अंधेरा छाने लग था।

समय शाम के 6:30, गाड़ी हमीरपुर की घाटी को लगभग पार कर ही चुकी थी और मौसम साफ था, कुछ 2 या 3 मोड़ और थे, कि तभी उसका फोन फिर से बजा।

आदमी: हां डार्लिंग, बोला था न की पहुंचते ही कॉल करूंगा, अभी बस पहुंचने वाला ही हूं।

फोन: ......

आदमी: हां बस कल से ही इस काम में लग जाऊंगा, और जितनी जल्दी होगा उसको खत्म करके वापस आता हूं। आखिर हम दोनो की जिंदगी का सवाल जुड़ा है इस काम से। बस डार्लिंग कुछ दिनो की बात है, फिर हम साथ होंगे और अच्छी जिंदगी बिताएंगे क्योंकि इस काम के बाद ही तो पैसे आयेंगे अपने पास।

फोन: ......

आदमी: हां डार्लिंग, Love... आआ ओह नो...

और एक जोर का धमाका होता है....

गाड़ी एक मोड़ पर एकदम से अनियंत्रित हो कर खाई की तरफ ढलान पर मुड़ जाती है और एक पत्थर से टकरा जाती है। लड़के का सर जोर से स्टीयरिंग से टकरा कर खून से लथपथ हो जाता है, और उसका होश खोने लगता है, गलती से उसका पैर एक्सीलेटर पर लगता है और गाड़ी पत्थर से छूट कर उलट कर खाई की ओर फिसलने लगती है, और लड़का बेहोश हो जाता है।

कुछ देर बाद लड़के को जरा सा होश आता है, और वो निकलने की कोशिश करता है, मगर वो कामयाब नही होता। उसकी गाड़ी खाई के एकदम किनारे किसी तरह से बस अटकी हुई होती है, जो उसके बाहर निकलने की कोशिश से हिलने लगती है। तभी उसके कान में एक आवाज आती है।

"हाथ दो अपना"


वो एक तरफ देखता है तो बाहर रोशनी में उसे कोई खड़ा दिखता है, चेहरा नही दिखता लेकिन कंधे के पीछे लहराते बाल, और उसकी ओर बढ़ता एक हाथ जिसपर लंबे नाखून थे वो उसे दिखता है। आदमी अपना हाथ उस ओर बढ़ा देता है और फिर से बेहोश हो जाता है......
Lagta hai dr. Sahab ki isi story par bani hai vijay kumar aur tamanna ki lust story. Aapko kya lagta hai dr. Sahab?
 
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DesiPriyaRai

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#4 The Shadow...

चंदन: "अनु देखो जो बीत गया उसका क्या तुम जिंदगी भर शोक मनाओगी? सब भूल कर आगे क्यों नही बढ़ती तुम?"

अनामिका: "चंदन मैंने बहुत कोशिश कर ली, अब मुझसे नही होता, मेरी जिंदगी उस वाकए के बाद वहीं रुक गई है। और फिर भी तुम्हे यही नाम मिला?"

चंदन: "वो कौन सा तुम्हारे घर रहने आ रहा है? तुम यहां आना ही नही, बस।"

अनामिका:"ठीक है, अब मैं चलती हूं, अगर जो पुलिस की जरूरत पड़ती है तो बताना मुझे।"

ये बातें सुन कर अमर के दिमाग में एक बार अनामिका का चेहरा घूम जाता है, शक्ल से वो कोई खास आकर्षक नही थी, पर उसकी आंखे जो बहुत सूनी होने के बावजूद भी अमर को अपनी ओर आकर्षित करती महसूस हो रही थी। उसे शायद कोई बहुत बड़ा दुख है जो अमर को अभी नही मालूम था।

तभी डॉक्टर चंदन वापस से उसके कमरे में आता हैं।

चंदन: अमरजी, क्या मैं पूछ सकता हूं की आप पुलिस की हेल्प क्यों नही लेना चाहते?

अमर: देखिए डॉक्टर...

चंदन: यू कैन कॉल में चंदन, अपना दोस्त ही समझिए, वैसे भी आपको अभी मेरे सिवा और कोई बात करने वाला नही मिलेगा। तो बिना झिझक आप अपनी परेशानी बताएं।

अमर मुस्कुराते हुए: चंदन जी शुक्रिया मेरा दोस्त बनने के लिए। कम से कम अब कोई मेरा अपना तो हुआ कहने के लिए।

चंदन: अरे वैसी कोई बात नही अमर जी, वैसे भी मेरा पेशा ही है लोगों से घुल मिल कर बात करने का, और दूसरा इस शहर में मेरा भी कोई अच्छा दोस्त नही है अभी तक, बस इसीलिए।

अमर: ये तो अच्छी बात है कि आप मुझे अपना अच्छा दोस्त मानते हैं। देखिए चंदन जी, मुझे लगता है कि मैं इस दुनिया में अकेला ही हूं, वरना अगर जो कोई मेरा होता तो अब तक ढूंढने आ ही जाता। और मुझे एक डर और भी है।

चंदन: वो क्या??

अमर: जैसा मुझे अपनी पिछली जिंदगी के बारे में कुछ भी नही मालूम, मुझे डर है कि कहीं मैं जुर्म की दुनिया में काम करने वाला कोई व्यक्ति न होऊं। क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो पुलिस मुझे सजा दिलवा देगी, और मैं जिसे कुछ पता ही नही, अपनी बेगुनाही कैसे साबित करूंगा। हो सकता है कि मैने कई गुनाह किए हो, मगर बिना जाने उनकी सजा कैसे काट सकता हूं??

चंदन: बात तो आपकी सही है, पुलिस को इन्वॉल्व करना खतरनाक हो सकता है, हो सकता ही इससे आपका कोई दुश्मन हो जो आपके लिए खतरा बन जाय। चलिए मैं पर्सनल लेवल पर कुछ कोशिश करता हूं।

अमर: थैक्यू दोस्त।

चंदन: अरे दोस्त भी बोलते हो और थैंक्यू भी। चलो आप आराम करो, मैं जाता हूं अभी।

अगले दिन अमर कंपाउंडर की मदद से कॉरिडोर में टहल रहा होता है, कि तभी उसे ऐसा लगता है कि रोड के उस तरफ एक पेड़ के पीछे से कोई उसे देख रहा है। अमर उस ओर देखने लगता है पर कोई दिखता नही, उसे लगता है कि कोई वहम हुआ है उसको। फिर बाकी का दिन वैसे ही बीत जाता है।


रात के 3 बजे कुछ आवाज से अमर की नींद खुलती है और वो रूम में चारो तरफ देखने लगता है, मगर उसे कोई दिखता नही। वो फिर से सोने की कोशिश करता है, तभी उसको लगता है की उसके सिरहाने पर कोई खड़ा है। हैरत से वो पलटकर देखता है तो कोई लंबा सा साया उसे दिखता है, जिसके हाथ के एक खंजर होता है, और वो साया खंजर ऊपर उठा कर......
Koy Amar ko kyu marna chahega? Wo jisse wo bat kar rha tha? Ya fir wo girl? Dekhte he aage kya hota hai. Abhi Tak to maza aa raha he
 
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DesiPriyaRai

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#6 The Shadow returns......

उस होटल की पहली मंजिल पर उसका कमरा था, जिसमे बाहर की तरफ एक बालकनी थी, जहां से बाहर की सड़क साफ साफ दिखती थी, और इस सड़क से कोई भी साफ साफ देख सकता था की बालकनी में कौन खड़ा है।

कमरा काफी आरामदायक था और जरूरत की लगभग सारी चीजें जो एक होटल के कमरे में होनी चाहिए मौजूद थी। सुबह के 11 बजे थे और अनामिका उसको होटल के एक स्टाफ की मदद से कमरे में पहुंचा कर वापस जा चुकी थी।

अमर कमरे में आराम करते हुए सोच में डूब गया

"आखिर में मैं हूं कौन? कोई ऐसा जिसके कई दुश्मन हैं जो जान से मरना चाहते हैं या जुर्म की से मेरा वास्ता है जिस कारण वो लोग मुझे रास्ते से हटाना चाहते हैं। जो भी हो, फिलहाल तो अपनी जान बचाना ज्यादा जरूरी है। ये अनामिका और उसके दादाजी भी कितने अच्छे लोग है, एक तो मेरी जान भी बचाई, हॉस्पिटल का खर्चा भी खुद ही किया और अब मेरी जान की हिफाजत भी कर रहें हैं, वो भी बिना कोई जान पहचान के, जिंदगी भी कैसे कैसे मोड़ ले कर आई है। अगर जो मेरे कोई अपने है भी तो उनको कोई परवाह भी नही, और यहां जो मुझे जानते भी नहीं वो इतनी मदद कर रहे हैं, वो भी बिना किसी स्वार्थ के। अनामिका भी कितनी प्यारी लगती है, लेकिन उसकी आंखो का वो सूनापन देख कर दिल में दुख होता है, पता नही कौन सा दर्द समेटे बैठे है वो अपनी जिंदगी में.....

इसी तरह सोच विचार करते करते उसे नींद आ जाती है। 1 बजे के करीब उसके कमरे का फोन बजता है और लाइन पर अनामिका होती है।

अनामिका: अमर जी, आपको दादाजी ने दोपहर के खाने पर बुलाया है, आप तैयार हो जाइए मैं आपको लेने आ जाती हूं।

अमर: अरे अनामिका जी आप क्यों आइएगा, मैं किसी होटल के स्टाफ के साथ आ जाऊंगा।

अनामिका: कोई बात नही है अमर जी, मैं तो वैसे भी अभी होटल के रिसेप्शन पर ही हूं, मैनेजर आज कल छूटी पर है, तो हम लोग ही मैनेज कर रहे है, और मुझे भी तो जाना ही है ना खाना खाने।

अमर: अच्छा, फिर मैं जल्दी से रेडी होता हूं।

15 मिनट बाद अमर लिफ्ट से नीचे आता है, और रिसेप्शन पर अनामिका को बैठे देखता है। वो उसी एक सादे सलवार सूट में एकदम साधारण से मेकअप के साथ बैठी हुई थी, आंखो में वैसा ही सूनापन जो अमर को देखते ही और बढ़ गया था।

अनामिका उसे देख कर उसको अपने केबिन की तरफ ले जाती है, और उसी केबिन से अंदर के दरवाजे से होटल के पीछे बने अपने घर ले जाती है।

दरवाजे से अंदर जाते ही 2 सीढियां उतार कर एक आलीशान सा लिविंग एरिया होता है जिसमे 2 तरफ सोफे लगे होते हैं एक तरफ कोने में वो दरवाजा जिससे अमर और अनामिका अंदर आते है और दरवाजे से लगी हुई वॉल यूनिट जिसमे कई तरह के सजावटी सामान रखे होते हैं, उसी दीवाल के साथ वाली दीवाल में घर का मुख्य दरवाजा होता है और सामने वाले सोफे के पीछे एक बड़ा सा हाल दिखाई देता है जो शायद डाइनिंग रूम था। उसके चारो तरफ दरवाजे ही दरवाजे दिख रहे थे, शायद 7 या 8 दरवाजे थे। हवेली का ये हिस्सा नया बना लग रहा था, शायद आगे के हिस्से में होटल बनाने और घर के लोगों के रहने के लिए ही इसे बनवाया गया हो।

सामने वाले सोफे पर एक 65 - 70 साल के रोबीले इंसान बैठे होते हैं जिनका व्यक्तित्व देख कर लगता है वो कभी सेना में रह चुके हों।

अनामिका: "दादाजी!! चलिए खाना खा लेते हैं।"

उसके लहजे में ऐसा था कि वो जल्दी से खाना खा कर अमर को विदा करना चाहती हो।

रमाकांत जी (दादाजी): बेटा आपको भूख लगी है क्या? वैसे भी अभी खाना तैयार होने में कुछ देर है, आइए अमर जी, इधर बैठिए, में रमाकांत गुप्ता, अनामिका का दादा।

अमर: आपसे मिल कर बहुत खुशी हुई सर। और आपका ये जो आभार है मेरे ऊपर इसका शुक्रिया करने के लिए में खुद आपसे मिलना चाहता था। इतने अहसान है आप दोनो के मुझ पर कि उनकी कैसे चुकाऊंगा वो मेरी समझ में नहीं आ रहा।

रमाकांत: अरे बेटा आप मुझे सर ना कहो, बल्कि चाहो तो दादाजी ही कह सकते हो। और कोई अहसान वाली बात नही है, हमने बस उतना ही किया है जितना एक इंसान दूसरे इंसान के।लिए करता है।

अमर: ये तो आपका बड़ापन है, दादाजी, वरना आज कल के जमाने में किसी के लिए कौन कुछ करता भी है।

रमाकांत: अच्छा ये सब छोड़ो, और कुछ बातें करते हैं, ये अहसान वगैरा की बात ठीक होने के बाद करना।

तभी अनामिका आ कर, "चलिए खाना लग गया है।"

सब लोग डाइनिंग टेबल पर आते हैं, वहां पर एक 15 साल।का लड़का भी बैठा होता है, जिसका परिचय रमाकांत जी अपने पोते पवन के रूप में करवाते हैं।

फिर खाना खा कर अमर वापस होटल के कमरे में आ जाता है, और पूरा दिन ऐसे ही बीत जाता है।

अगले दिन सुबह अमर नहा धो कर नाश्ता करके बालकनी में धूप सेंकने जाता है, कुछ देर बाद उसे सड़क के पर एक पेड़ के नीचे एक आदमी दिखाई देता है जो काला ओवरकोट, काली कैप और काले ही चश्मे में होता है, उसको देखते ही अमर को उस दिन हॉस्पिटल वाले साए की याद आ जाती है और वो उसी को ध्यान से देखने लगता है।


वही उस आदमी की नजर जैसे ही अमर पर पड़ती है वो एक कुटिल मुस्कान से मुस्कुराते हुए अमर की तरफ अपना एक हाथ हिलाता है, अमर के देखने पर वो अपना एक हाथ अपनी गर्दन पर फेरते हुए दूसरे हाथ से अपना कोट किनारे करके एक वैसा ही खंजर अमर को दिखाता है.......
Kon he ye aadmi jo har jgah pahuch jata hai?
 
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DesiPriyaRai

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#8 He Strikes again....

तभी पीछे से रमाकांत जी आ कर अमर को चुप रहने का इशारा करते हैं और अनामिका का हाथ पकड़ कर उसके कमरे की तरफ ले जाते हैं। अमर आश्चर्य चकित सा देखता रहता है, उसे ऐसा लगता है कि अनामिका जैसे नींद में हो इस समय।

थोड़ी देर बाद रमाकांत जी अनामिका के कमरे से बाहर निकलते हैं और अमर से कहते हैं, "अब सब सही है, तुम सो जाओ, मैं सुबह तुमसे बात करता हूं।"

अमर कमरे में वापस आ जाता है, अभी घटी हुई घटनाओं के कारण उसे नींद नहीं आ रही होती। तभी उसकी नजर बेडसाइड में रखे लैंडलाइन फोन पर जाती है, जो शायद एक ही कनेक्शन का एक्सटेंशन था, उसे उठा कर कान से लगा लेता है। दूसरी तरफ से शायद लाइन चालू थी, और उसे रमाकांत जी का स्वर सुनाई देता है।

रमाकांत जी: चंदन आज 2 महीने बाद फिर से अनामिका को दौरा पड़ा था। बात बिगड़ने के पहले ही मैंने उसे दवा दे कर सुला दिया। इतने दिनो बाद ऐसा क्यों हुआ वो भी अचानक?

चंदन: अचानक नही अंकल, शायद अमर के घर आने से उसकी यादें उस पर हावी हो रही हैं, इसमें मेरी भी गलती है कि मैंने उस आदमी को वो नाम से दिया जिसके कारण अनामिका की ये हालत हो गई है।

रमाकांत जी: पर बेटा ऐसे कैसे चलेगा, अमर कोई वही एक तो था नहीं दुनिया में अकेला, ऐसे तो उसका जीना भी मुश्किल हो जायेगा? जब तक मैं जिंदा हूं तब तक तो ठीक, पर मेरे बाद क्या? पवन अभी छोटा है, और मोनिका अनामिका के प्रति क्या रवैया रखती है ये तो तुमको पता ही है।

चंदन: जी अंकल, समझता हूं, इसका एक ही उपाय है, अनामिका की जिंदगी में किसी का आना। और जब तक वो खुद किसी को अपनी जिंदगी में लाना नही चाहेगी कोई स्थाई उपाय नहीं है दवाइयों के अलावा। अंकल अभी एक 2 दिन उसे आराम करने दीजिएगा, और हो सके तो अमर और उसका आमना सामना कम से कम ही हो तो फिलहाल अच्छा है।

रमाकांत जी: ठीक है बेटा, आप सो जाओ आप, सुबह एक बार आ कर देख जाना।



फिर फोन काटने की आवाज आती है, और वो भी रिसीवर को क्रेडल पर वापस रख देता है। उसकी नींद उड़ चुकी थी वो वार्तालाप सुन कर, इसीलिए वो उठ कर कमरे में ही टहलने लगता है, तभी वो एक और अलमारी के सामने खड़ा हो कर उसे खोलता है और उसके अंदर देखने लगता है। उसमे भी कुछ लड़कियों के कपड़े और उनके इस्तेमाल की चीजें रखी होती हैं। अलमारी के ऊपर वाले खाने में उसे कुछ कागज जैसे दिखते हैं, वो इनको हाथ लगाता है तो उसे कोई मोटी सी डायरी जैसी चीज महसूस होती है, वो उसे उतरता है तो वो एक छोटा सा एलबम होता है। उसमे शायद किसी छोटे से फंक्शन की फोटो होती हैं। जिसमे रमाकांत जी और पवन भी दिखते हैं उसे, एक अधेड़ उम्र के आदमी और औरत भी दिखते हैं जो शायद अनामिका और पवन के मां बाप हैं, और एक अनामिका के उम्र की लड़की भी होती है जिसका चेहरा हर फोटो में चाकू या ब्लेड से बिगड़ा हुआ होता है। कुछ देर उस एल्बम को देख कर अमर उसे वापस अलमारी में रख कर सोने चला जाता है।

सुबह रमाकांत जी अमर को उसके कमरे में उठाने आते हैं और कहते है कि रेडी हो जाओ फिर साथ में नाश्ता करते हैं।

थोड़ी देर में अमर बहार आता है तो रमाकांत जी उसे ले कर अपनी स्टडी में ले जाते हैं, जहां पर नाश्ता लगा हुआ था। वो अमर को बैठने कहते हैं और खुद एक दूसरी कुर्सी पर बैठ जाते हैं।

रमाकांत जी: अमर तुम कल रात के बारे में शायद कुछ पूछना चाहते हो क्या??

अमर: जी दादाजी, आखिर वो क्या था?

रमाकांत जी: अनामिका एक मेंटल कंडीशन से गुजर रही है जिसे PTSD यानी की पोस्ट ट्राउमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर कहते हैं, जिसमे जब कोई व्यक्ति किसी दुर्घटना से गुजरता है तो उसकी यादें उसको बार बार परेशान करती हैं। अनामिका के पति अमर की मौत उसी मोड़ पर हुई थी जहां पर तुम्हारी गाड़ी का एक्सीडेंट हुआ था।

अमर: अनामिका का पति??

रमाकांत जी: हां अमर, उसके पति का ही नाम अमर था, इसीलिए वो तुमसे थोड़ा खींची खींची रहती है, क्योंकि तुम्हारा रखा हुआ नाम उसे उसकी याद दिलाता है। बेचारी बच्ची को कितना सहना पड़ा है इस छोटी सी जिंदगी में।

अमर: जी....?

रमाकांत जी: अमर मेरा एक ही बेटा था, अभिनव, उसकी शादी नाविका से हुई थीं, दोनो की लव मैरिज थी, मेरी तो सहमति थी, मगर नाविका के घर वाले इसके खिलाफ थे, जाती अलग होने के कारण। खैर दोनो शादी करके यहां रहने चले आए, और इस समय मैं अपनी पोस्टिंग में असम में था। शादी के एक साल बाद अनामिका का जन्म हुआ था। बहुत प्यारी बच्ची थी, उस समय कुछ गलती के कारण नाविका खतरे में आ गई और जीवित नही रही मेरी पत्नी जीवित थी, और मेरी रिटायरमेंट भी ज्यादा समय नहीं था, तो वो यहीं आ कर अनामिका को सम्हालने लगी थी। मेरे बेटे ने ही इस हवेली को होटल में बदला था और इस हिस्से को भी उसी ने बनवाया था। कुछ समय बाद, मेरी रिटायरमेंट से कुछ एक महीना पहले मेरी पत्नी की मृत्यु भी हार्ट अटैक से हो गई।

अमर: ओह ये तो बहुत ही दुखद हुआ।

रमाकांत जी:" हां, वो तो है। इस घटना के बाद मैं भी यहां चला आया, मगर हम दो बाप बेटों के बस का नही था अनामिका को अकेले पालना, और फिर अभिनव की उम्र भी कोई ज्यादा नही थी, तो मैंने ही जोर दे कर उसकी शादी मोना से करवा दी, मोना मेरे दोस्त की बेटी थी, जिसका भी तलाक हो चुका था। मोना एक बहुत अच्छी मां साबित हुई, वो अनामिका को अपनी ही बेटी मानती थी। कुछ समय के बाद उसको भी एक लड़की हुई, जिसका नाम मोनिका रखा गया। और कुछ और साल बाद एक बेटा, पवन, जो करीब 10 साल छोटा था अनामिका से। मोनिका शुरू में तो बहुत अच्छी बेटी थी, मगर जब वो कुछ बड़ी हुई तो उसकी एक मौसी का उस पर बहुत प्रभाव पड़ा, उसने मोनिका के कान भरने शुरू कर दिए की अनामिका उसकी सौतेली बहन है, फिर भी तेरी मां उसे ज्यादा मानती है और तेरी कोई औकात नही उसके सामने वगैरा वगैरा। छोटी बच्ची के मन पर ये बात हमेशा के लिए छप गई, और वो अनामिका से लगभग नफरत करने लगी, हालांकि मोना और अभिनव ने कभी भी किसी बच्चों में कोई अंतर नही किया था, फिर भी उसे हमेशा यही लगता कि उसके मां बाप उसे अनामिका से न सिर्फ कम मानते थे बल्कि उस पर ध्यान भी कम देते थे। वो यहां पर कम ही आती थी, होस्टल से छुट्टी होने पर जहां अनामिका यहां आती वहीं मोनिका अपनी उसी मौसी के पास चली जाती। धीरे धीरे वो अनामिका से नफरत करने लगी। फिर एक साल पहले जब अनामिका की पढ़ाई खत्म हो गई तो उसके मां बाप ने उसकी शादी अपने एक दोस्त के लड़के अमर के साथ तय कर दी। इसी बीच मोनिका की पढ़ाई भी पूरी हो गई, और उसने शहर में ही एक नौकरी कर ली, उसकी संगत भी बहुत बुरी हो गई थी, सिगरेट शराब तो उसके लिए आम बात थी, बाकी भी पता नही क्या क्या, उसके कई लड़के भी दोस्त थे, अब क्या ही बोलूं, कुल मिला कर कहा जाय तो वो लड़की पूरी तरह से हाथ से निकल चुकी है।"
"अमर एक बहुत ही अच्छा लड़का था, दोनो इस शादी से खुश भी बहुत थे। शादी के 6 महीने बाद, एक बार दोनो यहां आए हुए थे और पवन की छुट्टियां होने वाली थी। तो अभिनव और मोना उसे लेने जाने वाले थे, और अमर को शहर में कोई काम निकल आया, तो वो तीनो ही गाड़ी में पवन को लेने चले गए, यहां मैं और अनामिका ही थे। थोड़ी ही देर बाद खबर आई की उसी मोड़ पर उनका एक्सीडेंट हो गया और तीनो की मौत हो गई। इस एक्सीडेंट के बाद अनामिका एकदम टूट गई, उसे सही होने में 4 महीने लगे। इसी बीच मोनिका ने आ कर अपना हिस्सा मांगा मेरी प्रॉपर्टी में, उसे 2 हिस्से चाहिए थे, एक अपना और एक पवन का, उसके हिसाब से वो और पवन ही अपने मां बाप के बच्चे थे, और चूंकि अनामिका की शादी हो गई थी इसीलिए उसे कुछ भी नही मिलना चाहिए, मैंने साफ साफ बोल दिया कि होंगे तो 3 ही होंगे, मेरी प्रॉपर्टी है ये, हां कोई नही रहा तब 2 हिस्से हो सकते हैं। मोनिका की मुझसे खूब बहस हुई, अंत में मोनिका गुस्से में अनामिका को देख लेना की धमकी दे कर चली गई।"

अमर: अनामिका को क्या होता था, और कल रात??

रमाकांत जी: उसे दौरे पड़ते थे, वो रात को दुल्हन की तरह सज कर अमर का इंतजार करती और उसकी फोटो देख कर खूब रोती चिल्लाती थी, सम्हालना मुश्किल होता था, गुस्सा उसकी नाक पर रहता, और कभी कभी गुस्से में कई लोगों से मार पीट भी कर लेती थी। चंदन की दवाइयों से सही हुई 2 महीने से कुछ नही हुआ, लेकिन कल पता नही कैसे?

अमर: क्या मेरे कारण?

रमाकांत जी: हो सकता है।

अमर: तो क्या मैं कहीं और चला जाऊं?

रमाकांत जी: नही बेटा, मैं उसको समझाऊंगा, उसे आखिर अपने इस डर से बाहर निकलना जरूरी है, और वो दवाई से नही होगा, उसे खुद ही करना पड़ेगा।

अमर: पर फिर भी?

रमाकांत जी: पर वर कुछ नही, जब तक तुम पूरी तरह से सही नही होते, तब तक तो नही।

उसके बाद दोनों स्टडी के बाहर निकल जाते है, अनामिका आज पूरा दिन अपने कमरे में ही रहती है।

अमर के दिल में अनामिका के प्रति एक फिक्र की भावना जन्म लेने लगती है, और वो अभी के लिए अनामिका से बच कर ही रहने की कोशिश करता है।

ऐसे ही 2 3 दिन बीत जाते हैं, और अनामिका अपने कामों में लग जाती है। अमर उसको दूर से ही देखता रहता है, लेकिन दोनो की कोई बात नही होती। अब वो बहुत हद तक ठीक हो चुका था, और बिना वॉकिंग स्टिक के ही आराम से चल लेता था।

एक दिन अमर बहार लॉन में टहल रहा होता है तभी उसे वो आदमी (साया) फिर से सड़क पर दिखाई देता है, और उसी समय अनामिका भी बाहर की तरफ जा रही होती है। अमर दोनो पर नजर रखते हुए बाहर की ओर आता है, अनामिका उस आदमी के दूसरी तरफ जाने लगती है, अमर उस आदमी की ओर देखता है, और दोनो की नजर मिलती है। वो आदमी अनामिका की तरफ देख कर मुस्कुराता है, और पास खड़ी एक वैन की ओर बढ़ता है।


ये देख अमर अनामिका की ओर भागता है, और उसको आवाज देता है। अनामिका ये देख घबरा जाती है। साया वैन को अनामिका की तरफ मोड़ कर पूरी स्पीड से आगे बढ़ा देता है और.....
Kafi dardnak past he Anamika ka
 
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#9 And they meet....

अमर उछल कर अनामिका को अपने आगोश में ले कर रोड के एक साइड लुढ़क जाता है, और तभी वो वैन एकदम नजदीक से अमर की बांह पर रगड़ बनाते हुए निकल जाती है।

अमर और अनामिका एक दूसरे से लिपटे हुए रोड के किनारे बनी ढलान से लुढ़क कर नीचे आ जाते हैं। और दोनो एक दूसरे की आंखों में को से जाते हैं। तभी आस पास के लोग उनके तरफ आते हैं, जिनकी आवाजें सुन कर दोनो को होश आता है।

अमर की बांह पर गहरी खरोंचों के निशान आ जाते है और शर्ट की बाजू भी फट जाती है। अनामिका ये देख कर घबरा जाती है, और अमर से उसका हाल पूछती है। अमर कहता है कि वो ठीक है, और वो अनामिका से पूछता है की चोट तो नही लगी? रोड के किनारे पर घास होने से दोनो में से किसी को और कोई चोट नहीं आती है। दोनो वापस होटल के अंदर आते हैं।

आज अमर को अनामिका की आंखों में अपने लिए कुछ अलग सा दिखा, मगर वो उसे अपने नाम से मिला कर ज्यादा ध्यान नहीं देता उस पर। घर आ कर अनामिका फर्स्ट एड बॉक्स ले कर उसके घाव को साफ करती है।

रमाकांत जी अमर का हाल चाल लेते हैं और अमर से पूछते हैं कि ये कैसे हुआ, इस बार अमर झूठ बोल देता है की शायद उस गाड़ी का ब्रेक फेल हो गया था। अमर नही चाहता था कि उसके कारण इन लोगो को तकलीफ हो।

शाम को रमाकांत जी अमर को स्टडी में बुलाते है, वहां पर एक लड़का पहले से बैठा होता है।

रमाकांत जी: अमर, ये सूरज है, हमारे शेफ का भाई। इसका घाटी के उस पार वाले गांव में कैफे है जिसमे यहां आने वाले अक्सर ब्रेक लेते हैं। सूरज क्या यही हैं वो??

सूरज: जी साहब, ये वही हैं। लेकिन मेरी इनसे ऐसी कोई बात नही हुई थी कि ऐसा कुछ पता चले कि ये कहां से आ रहे थे।

रमाकांत जी: अच्छा, चलो ठीक है फिर तुम जाओ। और कोई काम है या वापस जाओगे।

सूरज: साहब वो जो पास में नया होटल बन रहा है, वहां भैया ने बात की है शायद, अब कैफे से उतनी कमाई होती नही, मेरी शादी भी तय हो चुकी है, इसीलिए देखता हूं कुछ वहां पर।

रमाकांत जी: ठीक है तुम जाओ।

उसके जाने के बाद, रमाकांत जी ने अपने टेबल पर रखे हुए एक पर्स को अमर की तरफ बढ़ते हुए कहा, "ये तुम्हारा है, देख लीजिए शायद कुछ मिल जाय जिससे कुछ पता चल सके। ये तुम सूरज के कैफे में छोड़ आए थे।"

अमर: आपने नही देखा?

रमाकांत जी, अब ये तुम्हारा ही है, और तुम खुद यहीं हो तो खुद ही देख लो।

अमर उस पर्स को खोल कर देखता है, उसमे बस कुछ पैसे होते हैं, और अमर की एक फोटो, और कुछ भी नही।

अमर: इसमें तो कुछ भी नही है।

रमाकांत जी: ओह बैडलक अगेन। ठीक है देखते है और क्या किया जा सकता है।

रात को अमर बेड पर बैठा उसी पर्स को देख रहा होता है, अपनी फोटो को जब वो ध्यान से देखता है तो उसे लगता है कि ये फोटो मुड़ी हुई है और बस सामने उसका चेहरा दिख रहा है। अमर उस फोटो को बाहर निकलता है और खोलने पर उसे दिखता है कि उस फोटो में उसके साथ मोनिका है और दोनो इस तरह से हैं उस फोटो में जैसे दोनो एक दूसरे के करीबी हों। ये देख अमर सोच में पड़ जाता है कि "क्या वो मोनिका का प्रेमी, या पति है क्या?? उसे रमाकांत जी को ये बता देना चाहिए?? लेकिन उनको मोनिका से ज्यादा मतलब है नही, और वो तो ये जनता भी नही की वो और मोनिका साथ में हैं या नहीं।"

इसी उधेड़बुन में अमर की आंख लग जाती है।

सुबह अनामिका उसे उठाने आती है, आज वो आसमानी रंग के सूट में बहुत प्यारी दिख रही होती है, और उसकी आंखों में एक चमक सी होती है। उसे देख अमर के दिल को बड़ा सुकून आता है, मगर तभी उसका दिमाग उसे फोटो वाली बात याद दिलाता है, जिसको याद कर के वो तुरंत अपनी नजरें अनामिका से हटा लेता है।ये देख अनामिका को थोड़ा दुख होता है।
दोपहर को बाहर गार्डन में अनामिका कुछ काम कर रही होती है, और अमर उधर जाता है, पवन वहीं पर खेल रहा होता है। अमर पवन की ओर चला जाता है, जिसे देख अनामिका फिर चिढ़ जाती है।

तभी एक होटल का स्टाफ अनामिका के पास आता है, और गलती से गार्डन की एक क्यारी में उसका पैर पद जाता है। जिसे देख अनामिका बहुत जोर से उसके ऊपर चिल्लाती है। उसका चिल्लाना सुन कर पवन बहुत डर जाता है, और रमाकांत जी आ कर अनामिका को अंदर ले जाते हैं।

पवन: आज दीदी को बहुत दिन के बाद ऐसे गुस्से में देखा है, और वो भी गार्डेनिंग के समय, जबकि इसी गार्डेनिंग से तो उनका गुस्सा शांत हुआ था।

अमर ये सुन कर सोच में पड़ जाता है कि क्या उसके बर्ताव से ऐसा हो रहा है अनामिका के साथ? मगर वो भी तो मजबूर था जब तक उसे अपने और मोनिका के बारे में पूरी सच्चाई ना पता चल जाए तब तक वो कैसे अनामिका के बारे में कुछ सोच पता, वैसे भी उसके कारण इस घर के लोगों की जान पर भी बन आई है।

वो फैसला लेता है कि वो ये घर छोड़ कर कहीं और चला जायेगा, और घर क्या, वो ये कस्बा भी छोड़ देगा, ताकि यहां पर लोग सुरक्षित रहें। और मोनिका तो शहर में ही है, मतलब वो भी वहीं से आया है।

रात को सबके सोने के बाद, अमर चुपके से घर से बाहर निकल जाता है, और अंदाज से एक ओर बढ़ने लगता है, कुछ आगे जाने पर उसे एक पान की दुकान दिखाई देती है, वहां से वो बस स्टैंड का पूछ कर वहां के लिए निकल जाता है।

बस स्टैंड पर पहुंचने पर उसे बताया जाता है की शहर की बस 1 घंटे बाद मिलेगी। वो बस स्टैंड पर ही बैठ जाता है। तभी उसे लगता है की सामने वाली दुकान पर वही काले कोट वाला शख्स खड़ा सिगरेट पी रहा है।


अमर चुपके से उसके नजरों से बच कर एक कोने में खड़ा हो कर उसको देखने लगता है, कुछ देर बाद वो आदमी एक ओर बढ़ जाता है, अमर चुपके से उसका पीछा करने लगता है। एक पुराने और छोटे से घर के बाहर पहुंच कर वो आदमी उसको खोलने लगता है, तभी अमर को एक नुकीला सा लोहे का चालू जैसा दिखता है जिसे उठा कर अमर उस आदमी की पीठ पर लगा कर......
Ye kya twist la diye Ricky ji, dono behno ke liye ek hi aadmi
 
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#10 The Artist.....

अमर ने उस चाकू नुमा लोहे के टुकड़े को उस आदमी की पीठ से लगा कर कहा

"चुपचाप दरवाजा खोल कर अंदर चलो"

वो आदमी शांति से दरवाजा खोल कर अंदर आता है, अमर उसके साथ में अंदर दाखिल होता है और अंदर आते ही उस आदमी से उसका हथियार देने को कहता है। कमरे में एक छोटा सा बल्ब जल रहा होता है और बहुत ही धीमी रोशनी होती है। दोनो मुश्किल से ही एक दूसरे का चेहरा अच्छे से देख पा रहे होते हैं।

वो आदमी चुपचाप से अपना खंजर और एक पिस्तौल अमर के हवाले देता है, और अमर के कहने पर कमरे के एक कोने में खड़ा हो जाता है।

अमर: कौन हो तुम, और मुझे क्यों मारना चाहते हो?

वो आदमी थोड़ा आश्चर्य से: क्या मतलब, तुम मुझे नही जानते

अमर: मैं किसी को नही जानता, मेरी यादाश्त चली गई है।

वो आदमी: चल मुझे ना बना, मैं तेरी रग रग से वाकिफ हूं। तू कुछ भी कर सकता है, एक्टिंग भी।

अमर: मैं सच कह रहा हूं, मुझे सच में कुछ याद नही, प्लीज मुझे बता दो मैं कौन हूं?

वो आदमी थोड़ा सोचते हुए: तू एक आर्टिस्ट हैं।

अमर: हैं? मतलब क्या? और आर्टिस्ट को जान से कौन मरना चाहता है।

वो आदमी: तू सच में मुझे नही पहचानता??

अमर: कितनी बार बोलूं एक ही बात। मुझे कुछ भी याद नही, सिवाय मेरे एक्सीडेंट के।

वो आदमी: हम्म्म। फिर तो कोई समस्या नही है, बेकार में तेरे पीछे पड़ा था।

अमर: मतलब?

वो आदमी: सुन, तेरा नाम कुमार है जैसा हम जानते है, असली नाम नही मालूम, तू खुद को एक आर्टिस्ट कहता था, पास असल में तू एक कॉन्ट्रैक्ट किलर है।

अमर: क्या? और तुझे कैसे पता ये सब?

वो आदमी: मैं और तू दोनो सिंडिकेट के लिए काम करते हैं, तू कुमार, में रघु। तू सबसे बेस्ट है पूरे सिंडिकेट में, तेरे काम करने का तरीका ऐसा है कि आज तक तेरा नाम कहीं भी पुलिस रिकॉर्ड के नही है। तू मर्डर को ऐसा बना देता था कि वो या तो एक्सीडेंट लगे या सुसाइड, कई बार तो प्राकृतिक मौत भी बना देता था तू। तेरा रेट सबसे ज्यादा है सिंडिकेट में। और सबसे ज्यादा डिमांड भी तेरा ही होता है।

अमर: ऐसा है तो फिर मेरी जान के पीछे क्यों पड़े हो?

रघु: क्योंकि तुमने सिंडिकेट का नियम तोड़ने की कोशिश की है।

अमर: क्या मतलब?

रघु: सिंडिकेट का नियम है कि कोई भी हत्या आपसी रंजिश के चलते नही होगी, बिना कॉन्ट्रैक्ट के कोई भी हत्या की सोच भी नही सकता, खुद का कोई मैटर है तो सिंडिकेट में ग्राहक बन कर आना होता है।

अमर: तो मैंने किसकी हत्या कर दी?

रघु: की नही, पर करने जा रहे थे। यहां तुम उसी काम के लिए आए थे, पर यादाश्त के चक्कर में भूल गए लगता है। मुझे लगा हॉस्पिटल वगैरा सब तुम्हारे प्लान का हिस्सा है।

अमर: पर यहां मैं किसकी हत्या करने आया था? एक मिनट।

अमर अपना पर्स निकाल कर रघु को मोनिका की फोटो दिखाया है।

अमर: इसी पहचानते हो?

रघु: मोनिका... इसी के चक्कर में तो तू बदल गया यार, इतना की वो कुमार जो कभी नियम से परे जा कर कोई काम नहीं किया आज सिंडिकेट के सबसे बड़े नियम को तोड़ने चला था।

अमर: पूरी बात बताओ।

रघु: तू सिंडिकेट का सबसे काबिल हत्यारा है, और लोग तुम्हारे से काम करवाने के मुंह मांगे रेट देते हैं। ये सब करीब 6 या 7 महीने पहले शुरू हुआ था। जब तुझे एक कॉन्ट्रैक्ट मिला था इसी तरफ का, उस काम के आने के बाद ही तेरी मुलाकात इस मोनिका से हुई, तुम दोनो एक दूसरे के काफी नजदीक आ गए। इतना की दोनो शादी करना चाहते थे। ऐसे तो तेरी जिंदगी में कई माशूकाएं थी, पर ये कुछ अलग ही थी, इससे मिलने के बाद तूने काम भी कम कर दिया, और अभी पिछले महीने किसी को ये बोला की तुझे अपना कोई काम करना है इसीलिए अभी कुछ दिन तू सिंडिकेट का काम नहीं करेगा अब, और शायद बाद में सिंडिकेट भी छोड़ देगा। बस इसी कारण मुझे तेरे पीछे लगाया गया। वैसे भी मेरा और तेरा ही सबसे ज्यादा साथ था। अपुन दोनो सबसे अच्छा दोस्त था, कई काम एक साथ किया था अपुन।

अमर: इसी तरफ किसका काम था, और किसकी हत्या की थी मैने।

रघु: भाई सिंडिकेट में सेक्रेसी के चलते किसका काम है और किसकी हत्या होनी है ये बातें बस सिंडिकेट के ऊपर के सदस्यों, काम लेने वालों और काम देने वालों को ही पता होती हैं।

अमर: पर तुझे ही क्यों चुना इस काम के लिए? मतलब मुझे मारने के लिए।

रघु: मुझसे ज्यादा कोई नही जानता तेरे को, इसीलिए बस।

अमर: तुझे पता यहां किस काम आ आया था मैं? और यहां आया ये कैसे पता?

रघु: सही से तो नही पता लेकिन अपना काम ही क्या है आखिर? उसी लिए से होगा तू। तेरी मोबाइल की लोकेशन ट्रेस हुई थी, बल्कि सिंडिकेट वाले सबकी करतें है, पर एक्सीडेंट के बाद वो गायब है। बस वही ढूंढते हुए आया इधर।

अमर: ये मोनिका और मेरी मुलाकात कैसे हुई पता है तुमको?

रघु: ज्यादा नही पता, लेकिन इतना पता है कि वो तेरे काम के बारे में जानती थी पहले से, अब कैसे तो उसके 2 ही कारण हो सकते हैं, या तो वो खुद किसी का कॉन्ट्रैक्ट ले कर आई हो, या फिर उसे किसी ने बताया हो इस बारे में।और दूसरी बात के चांस कम ही हैं। क्योंकि कॉन्ट्रैक्ट देने वाला भी हमारे सर्विलांस में रहता है कुछ समय तक।

अमर: फिर तुमने अनामिका को मारने की कोशिश क्यों की?

रघु: अनामिका? अच्छा वो जो उस दिन तुम्हारे साथ थी। मैं तो तुझे ही मार रहा था, उसको नही, वो बस साथ में थी तेरे तो हमारे काम में ये सब तो चलते रहता है, वो क्या बोलते हैं उसको अंग्रेजी में... कोलेट्रल डैमेज।

अमर: तो अब आगे क्या??

रघु: देख तू मेरा भाई है, अगर जो तू वादा कर की आगे ऐसा कुछ नही करेगा और अपनी जिंदगी बदल देगा, यादाश्त वापस आने पर भी, तो ये तेरा मेरा सीक्रेट, वहां जा कर मैं बोल दूंगा की तुझे मार दिया।

अमर कुछ सोच कर; मैं वादा करता हूं, मुझे भी अच्छी जिंदगी ही जीनी है, ऐसी गुनाहों वाली नही।

रघु: ठीक है, लेकिन तू यहीं रहना, बाहर तुझे कोई और देख लिया तो मेरी जान भी संकट में आ जाएगी, और सिंडिकेट वाले किसी को भी नही छोड़ते।

अमर: अच्छा, फिर मैं चलता हूं।

रघु: मेरा हथियार तो दे।

अमर: ताकि तू मुझे पीछे से मार सके?

रघु: बस क्या भाई?? ऐसा कुछ नही है।

अमर: रुक यहीं तू।

इतना बोल कर अमर घर से बाहर निकलता है और दरवाजा बाहर से बंद कर देता, पास में एक कचरे वाले ड्रम में सारे हथियार डाल कर आगे बढ़ जाता है। इसके दिमाग में विचारों की आंधियां चल रही होती हैं।

"क्या मैं एक हत्यारा हूं, और अगर जो हत्यारा हूं तो क्या यहां मैं किसी के हत्या के इरादे से आया था? क्या मोनिका के कहने पर?? क्या मैं अनामिका की हत्या करने आया था?? क्या उसके मां बाप और उसके पति अमर का एक्सीडेंट भी तो....


यही सब सोचते हुए अमर उर्फ कुमार का सर घूमने लगता है और वो बेहोश हो कर गिर जाता है....
Kya Amar Anamika, uske bhai aur uske dada ko Marne aaya tha? Monika ke kehne par
 
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उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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Kya Amar Anamika, uske bhai aur uske dada ko Marne aaya tha? Monika ke kehne par
जो भी होगा, सोच से परे होगा
 

DesiPriyaRai

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Bahut hi mazedar story thi. Aur bahut hi behtarin ant tha iska. Apne nam ko sarthak krte huve.

मोड़... जिंदगी के
 
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