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जिस तरह से घर में कभी मिठाई बनती है धीरे धीरे पूरा समय लेकर मगर जब मिठाई बन कर तैयार होती है तो अलग ही आनंद आता है वैसे ही avsji भाई अपडेट देते तो समय लेकर है मगर एक साथ 3-4 अपडेट्स आ जाते है वो भी इतने मनोरम की हृदय बाग बाग हो जाता है।अंतराल - विपर्यय - Update #11
सुनील के जाने पर काजल ने माँ की पेटीकोट का नाड़ा खोल कर उसको नीचे की तरफ़ सरका दिया। माँ अब काजल के सामने पूरी तरह से नंगी हो गईं। माँ की योनि के आकार में थोड़ा अंतर तो आ गया था - इतने लम्बे समय के बाद सम्भोग करने के कारण वहाँ थोड़ी सूजन आ गई थी, और थोड़ी लालिमा भी। साथ ही साथ उनकी योनिमुख के आस पास थोड़ा गीलापन भी था। अपनी सहेली की शारीरिक बनावट को काजल ने अंतरंगता से जाना था, इसलिए उसने वो अंतर तुरंत देख लिया।
‘मतलब सेक्स हुआ है!’ काजल ने मन ही मन सोचा, ‘सुनील सच कह रहा था!’ और प्रत्यक्षतः मुस्कुरा उठी।
लेकिन उसने माँ को इस बात के लिए छेड़ा नहीं, और ऐसा दिखाया कि जैसे वो माँ और सुनील की अंतरंगता के बारे में अनभिज्ञ है। लेकिन उसके मन में ख़याल भी था कि अगर दोनों में सेक्स हो गया है, तो दोनों की शादी जल्दी से जल्दी कर देनी चाहिए। बेहतर तो यही होगा कि सुनील जब अपने नए काम पर जाए, तो बहू को साथ ही में लेता जाए।
“हाय भगवान्! मेरी बिटिया को मेरी ही नज़र न लग जाय!”
“अम्मा!” माँ शरमाते हुए शिकायत करी।
“अरे क्या अम्मा? सच ही तो कह रही हूँ! तू कितनी सुन्दर है, तुझे इस बात का कोई ज्ञान भी है?” काजल ने नज़र भर के माँ को देखा, और कहा, “तेरा हर अंग सोना है सोना!” उसने सुनील की कही हुई बात दोहराई, “दूध पी ले, फिर चल... हम सब साथ बैठ कर खाना खा लेते हैं... आज तो मैं तुझे अपने हाथों से खिलाऊँगी खाना! हाँ नहीं हो! और फिर मैं अपनी बहू को दुल्हन की तरह सजाऊंगी मँगनी के लिए!”
“लेकिन अम्मा, ऐसे?” माँ ने हैरत से कहा, “नंगी नंगी जाऊँगी वहाँ?”
“हाँ! तो? क्या हुआ? तेरा रूप अब किसी से छुपने छुपाने जैसा क्या चाहिए? तू अब मेरे घर की बहू है... मतलब मेरी बेटी है तू। तो जैसी मेरी पुचुकी है, जैसी मेरी मिष्टी है, वैसी ही मेरी तू! और अपनी इस बेटी को भी मैं अपनी दोनों बेटियों जैसे ही पालूँगी!” काजल पहले तो बड़े अधिकार और बड़े लाड़ से बोली।
“लेकिन अम्मा!”
“अरे लेकिन वेकिन क्या? तू तो मेरी पुचुकी से भी छोटी है! मेरी छोटी बिटिया है तू!” काजल ने माँ को अपनी गोदी में दूसरी तरफ़ बैठने का इशारा किया, “ये स्तन खाली हो गया है, दूसरा वाला पी ले अब!”
माँ भी उसकी बात मान कर उसकी गोदी में दूसरी तरफ पुनर्व्यवस्थित हो गईं, “अरे, उससे छोटी कैसे हुई मैं?” माँ ने छोटे बच्चों की ही तरह ठुनकते हुए कहा, “उसकी तो मैं भाभी हूँ! भाभी मतलब माँ!”
“हाँ, तू उसकी भाभी है! लेकिन भाभी अपने देवर की माँ होती है! ननद की नहीं। अपनी ननद से तो वो पद में छोटी होती है। तभी तो बड़ी होने के बावज़ूद वो उसके पैर छूती है!”
हाँ - हमारे तरफ़ तो यही चलन है। काजल को यह बात मालूम थी। माँ न जाने कैसे भूल गईं।
“ओह्हो! घाटे का सौदा हो रहा है ये तो!” माँ ने बनावटी दुःख से कहा।
“होने दे! हमारे को तो फायदे ही फायदे हैं! और तू चिंता न कर! ये सब हमारे में नहीं होता। पुचुकी को तू अपनी बेटी मानती है, तो वो वैसी ही रहेगी तेरे लिए। पर हाँ, आज तुम दोनों की मँगनी कर दूँ, फिर तो मेरा पूरा हक़ है तुम पर!”
काजल की बात पर माँ का गला भर आया, “तुम्हारा मुझ पर सबसे बड़ा अधिकार है अम्मा!” माँ ने पूरी निष्कपटता से कहा, “तुमने मुझे वो सुख दिए हैं जिनकी मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी! घाटे वाली बात मैंने मज़ाक में कही थी अम्मा! मुझे तो सिर्फ़ नफ़ा ही नफ़ा है! अपनी माँ का प्यार मिले, अपनी माँ का दूध पिए एक मुद्दत हो गई... अब वो भी मिल गया मुझे!”
“मेरे दूध पर तेरा हक़ है बेटू!” काजल मुस्कुराई, “मुझे भी तो तेरी माँ बनने का सुख मिला है न! तुझे हमेशा के लिए अपने परिवार में शामिल करने का सुख मिला है न! बस, अब और इमोशनल मत हो! पी ले!”
माँ दूसरे वाले स्तन को पीने लगीं। काजल बड़े प्यार से माँ को सहलाते पुचकारते अपना दूध पिलाती रही। फिर अचानक ही वो किसी बात पर मुस्कुरा दी।
“क्या सोच रही हो अम्मा?”
“सोच रही थी कि जल्दी ही तेरी भी कोख भर जाएगी। तेरी भी गोद में एक नन्हा मुन्ना आ जाएगा! तुझको भी दूध आने लगेगा!”
“तब तुम भी मेरा दूध पी लेना?”
“चल! कभी माँ भी अपनी बेटी का दूध पीती है? अब तो मैं ही पिलाऊँगी तुझे हमेशा! जब तक आएगा इनमें दूध!”
“अम्मा!”
“चल, जल्दी से पी लो। फिर खाना खा लेते हैं!”
“पी लिया अम्मा! अब कपड़े पहन लूँ?” माँ ने शरारती अंदाज़ में कहा, लेकिन फिर भी उसका चूचक नहीं छोड़ा।
माँ जिस भूमिका में आ गई थीं, अब उस भूमिका को जीने में उनको आनंद आने लग गया था। सच में - स्वच्छंद रूप से जीने में क्या आनंद आएगा! वो आनंद, जो भूतकाल की बात हो गई थी उनके लिए!
“अरे! इतना समझाया फिर भी!” काजल बोली और फिर दबी हुई, षड़यंत्रकारी आवाज़ में आगे बोली, “ज़रा अपने ‘जानू’ को भी तो अपना जलवा देखने दे! तुझे यूँ पूरी नंगी देख लेगा न, तो उसका पूरा भूगोल ही बिगड़ जायेगा!”
इस बात पर दोनों खिलखिला कर हँसने लगीं।
लेकिन माँ ने काजल को यह नहीं बताया कि सुनील का भूगोल जब बिगड़ेगा तब बिगड़ेगा, फिलहाल तो उनका ही भूगोल बिगड़ गया है। ठीक है कि पशम के कारण उनके भगोष्ठों की सूजन छुप गई थी - लेकिन चाल में अंतर तो आ ही गया था।
“अम्मा,” माँ ने शर्माते हुए कहा, “आपसे एक बात कहूँ?”
“हाँ बेटू, बोल न?”
“जी वो... वो... क्या है कि...” माँ ने झिझकते हुए कहा, “वो... हम दोनों... न... हम दोनों... एक... मेरा मतलब... हम दोनों एक हो गए हैं!”
“तुम कहना चाहती हो कि तुम दोनों ने सेक्स किया है?”
काजल की बात पर माँ के गाल लाल हो गए। उन्होंने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“बहुत अच्छा! आई ऍम सो हैप्पी टू हीयर दिस!” काजल ने कहा और उनके मुँह को चूम लिया, “हस्बैंड वाइफ सेक्स नहीं करेंगे, तो और कौन करेगा?”
“आपको बुरा नहीं लगा?”
“अरे बुरा क्यों लगेगा? मैं तो चाहती ही हूँ कि तुम दोनों खूब सेक्स करो। खूब मज़े करो।” काजल ने कहा, “तुमको मैं बोल ही रही थी कि जवान शरीर की ज़रूरतें होती हैं! इसीलिए तो मैं चाहती हूँ कि तुम दोनों की शादी जल्दी से हो जाए! उसके बाद बिना डरे खूब सेक्स करो।”
माँ शर्म से कसमसाईं।
“अच्छा एक बात बता,” काजल ने पूछा, “सुनील ने तुझे सुख तो दिया न बेटा? तू सम्भोग के दौरान आई तो है न?”
अब ऐसे प्रश्नों के उत्तर कैसे दिए जाएँ! लेकिन काजल सहेली भी तो है!
“ओह अम्मा, बहुत सुख मिला।” माँ ने बताया - उनको संकोच हो रहा था, लेकिन फिर भी अपनी सहेली से यह गुप्त बात साझा किये बगैर न रह सकीं, “इन्होने दो बार... किया!”
“अरे हाँ! जितनी बार भी करे! तुझे आनंद मिला या नहीं?”
“वही तो बता रही हूँ अम्मा! दोनों बार मुझे ऐसा आनंद मिला, कि कैसे बताऊँ!” वो अनुभव याद कर के माँ को लज्जा आने लगी, “चार बार!” माँ लजाते हुए दबी आवाज़ में बोलीं, “ऐसा पहली बार हुआ! ... पहले कभी नहीं हुआ! न जाने कहाँ कहाँ से बदमाशियाँ सीख सीख कर आए हैं, और मुझ पर आज़मा रहे हैं!” माँ ने विनोदपूर्वक शिकायत करी।
“क्या? मतलब दूसरी औरत?” काजल का पारा अचानक ही चढ़ने लगा। उसको लगा कि सुनील ने उससे झूठ कहा था। ऐसी बातों में काजल को झूठ बर्दाश्त नहीं था। उसको एक लम्पट पति मिल चुका था। सुमन के लिए वैसा ही लम्पट नहीं चाहिए था उसको।
“नहीं अम्मा! ऐसे मत सोचो। कह रहे थे कि इंटरनेट पर देखा और वहीं से सीखा है। और मुझे उन पर विश्वास है!”
“हम्म्म! ठीक है फिर!” काजल को यह जान कर राहत हुई, “कहीं से तो सीखना ही पड़ेगा न! और उसको जो न आता हो, वो तू उसको सिखा देना! ठीक है?”
माँ मुस्कुरा दीं।
“चलें अब?”
“अम्मा, मैं पुचुकी और ‘इनके’ सामने ऐसे नंगी जाऊँगी, तो मुझे बहुत शर्म आएगी!” माँ अभी भी काजल का स्तन नहीं छोड़ रही थीं।
“देख बहू, मैं तो तेरे ‘उनको’ भी नंगा कर दूँगी! मेरे चारों बच्चे मुझे आज बिना किसी कपड़ों के चाहिए खाने की टेबल पर!”
उतने में कमरे में लतिका ने प्रवेश किया - बहुत देर से उसने घर के ‘बड़ों’ को नहीं देखा था, इसलिए वो उत्सुकतावश माँ के कमरे में चली आई। अपनी मम्मा को अपनी अम्मा की गोद में लेटी और उनके स्तन से दूध पीती हुई देख कर उसको बहुत ख़ुशी मिली। कल अम्मा चोरी छुपे उनको दुद्धू पिला रही थीं, और आज खुलेआम! मतलब, मम्मा और दादा ने अपने रिलेशनशिप के बारे में अम्मा को बता दिया था। वाओ!
“मम्मा!” उसने उत्साह से कहा, “आप अम्मा का दुद्धू पी रही हैं?!”
मज़े की बात यह कि उसने इस बात पर आश्चर्य नहीं दिखाया कि उसकी मम्मा पूरी तरह से नग्न थीं। माँ को कल की याद हो आई। माँ उसकी बात का कोई उत्तर नहीं दे सकीं - वो बस शर्मा कर रह गईं।
“पुचुकी बेटा, इधर आ जा!” काजल बोली; उधर माँ काजल के सीने में अपना मुँह छुपा कर शर्म से गड़ गईं, “देख बेटू, मैं तुमको एक बहुत ज़रूरी बात बताने जा रही हूँ!”
काजल को मालूम था कि लतिका भी सब जानती है, लेकिन आधिकारिक रूप पर सुनील और सुमन के सम्बन्ध के बारे में सभी को बताना अनिवार्य था।
“क्या अम्मा?” लतिका ने बेहद उत्सुकतावश पूछा!
“जैसे तू मेरी बेटी है न, वैसे ही तेरी मम्मा भी मेरी बेटी हैं अब!”
“आपकी बेटी? लेकिन अम्मा, आप तो मम्मा को अपनी दीदी मानती हैं न?”
“मानती थी बेटा! लेकिन आज हम दोनों के बीच कुछ बदल गया है - आज से तेरी मम्मा तेरी बोऊ-दी हो गई हैं!”
“व्हाट! व्हाट? मम्मा!” लतिका ख़ुशी से लगभग चीख पड़ी, “मम्मा मेरी बोऊ-दी हो गई हैं! ओह फाइनली!! ओह गॉड! आई ऍम सो हैप्पी!” और माँ से लिपट गई।
“आई ऍम वेरी हैप्पी टू माय बेबी!” माँ ने शर्म से हँसते हुए कहा!
“मम्मा मेरे दादा की वाइफ बनेंगी! वाओ!”
“हाँ बेटू, इसलिए अब से इनको मम्मा नहीं, बोऊ-दी कह कर बुलाया करो!” काजल ने हँसते हुए लतिका को समझाया!
“ओह हाँ! बोऊ-दी! बोऊ-दी!” लतिका ने माँ को और भी ज़ोर से अपने आलिंगन में भरते हुए कहा, “आई ऍम सो हैप्पी!”
“लेकिन बेटू, तुम अभी अमर अंकल को ये सब मत बताना! उनको सरप्राइज देंगे आज! ठीक है?” काजल भी लतिका की प्रतिक्रिया पर मुस्कुराए बिना न रह सकी।
लतिका ने उत्साहपूर्वक ‘न’ और ‘हाँ’ में सर हिलाया। उसके सामने यह बहुत रोमाँचक सी बात हो रही थी!
“लेकिन अम्मा, मम्मा - ओह सॉरी - आई मीन, बोऊ-दी नंगू नंगू क्यों हैं?”
“मेरी लाडो, तू भी तो नंगू नंगू है! तू मेरी बच्ची है न, इसलिए तू हमारे सामने नंगू नंगू रह सकती है। और अब तो तेरी बोऊ-दी भी मेरी बेटी है, इसलिए वो भी मेरे सामने नंगू नंगू रह सकती हैं!” काजल ने लतिका को समझाया, “जैसे तू मेरी बच्ची, वैसे ये भी मेरी बच्ची! जैसे तू रहती है, वैसे ही ये भी रहेगी अब से! कपड़े पहनेगी तो रंग-बिरंगे, नहीं तो नंगू नंगू ही रहेगी! लेकिन हाँ, ये जेवर सारे पहनेगी - चूड़ियाँ, मंगलसूत्र, पायल, अंगूठियाँ, करधन, बिछिया, झुमका, नथ, बिंदी और सिन्दूर! सुहागिनों वाला पूरा श्रृंगार कर के रहेगी!”
“ओह?”
“हाँ! ये अब से सुहागिन है न!”
“ओके!” लतिका को न जाने क्या समझ में आया।
“लेकिन तेरे और मिष्टी के साथ खेलने पर इनको कोई रोक टोक नहीं है!”
लतिका की मुस्कान खिल गई!
“ओके!” उसने अपने दाँत निपोरते हुए कहा।
फिर कुछ सोच कर, “अम्मा, क्या मैं अभी भी बोऊ-दी का दुद्धू पी सकती हूँ?”
“बोलो बहू?” काजल ने माँ से पूछा!
“हाँ मेरी बेटू! तुम हमेशा मेरा दुद्धू पी सकती हो!” माँ ने कहा और लतिका के होंठों को चूमा, “मेरे दुद्धूओं पर मेरे बच्चों का सबसे पहला अधिकार है!” माँ ने मिठास लिए कहा।
“और तो और, अब तो जल्दी ही इनके दुद्धूओं में भी मीठा मीठा दूध आ जाएगा!” काजल ने रहयोद्घाटन किया।
माँ उस बात पर शर्म से लाल हो गईं - भविष्य के कोमल सपनों की प्रत्याशा की लालिमा उनके पूरे शरीर में फ़ैल गई।
“आई नो अम्मा! जब दादा और मम्मा - ओह आई मीन, बोऊ-दी के बच्चे होंगे, तो बोऊ-दी को दूध आने लगेगा!” लतिका ने प्रसन्न हो कर अपने ज्ञान का बखान कर दिया।
माँ कुछ न बोलीं, बस लतिका को अपने में समेट कर मुस्कुरा भर दीं।
“अच्छा चलो चलो,” काजल अंदर ही अंदर प्रसन्न होते हुए बोली, “भाभी-ननद खूब प्यार करते रहना! लेकिन अभी खाना खा लेते हैं न? बहू ने इतना बढ़िया खाना पकाया है आज, और इतनी अच्छी खबर सुन कर मुझे भूख भी खूब ज़ोरों की लग गई है!”
माँ काजल की बात पर बहुत खुश होते हुए लतिका से बोलीं, “चल बेटू, खाना खाने के लिए तैयार हो जा!”
लतिका फुदकते हुए कमरे से बाहर चली गई।
“तू भी चल बहूरानी!”
माँ के कमरे से बाहर सुनील, आभा और लतिका के चहकने हँसने की आवाज़ें आ रही थीं। उनकी आवाज़ सुन कर माँ काजल के पीछे छुप गईं।
“अरे क्या हो गया?” काजल ने हँसते हुए पूछा।
“अम्मा, मैं ‘उनके’ सामने ऐसे नहीं जाऊँगी!” माँ ने किसी छोटी बच्ची के ही जैसे ठुनकते हुए कहा।
“अरे मेरी लाडो,” काजल ने - जैसे छोटे बच्चों को समझाया जाता है वैसे ही - माँ को समझाते हुए कहा, “अगर तू अपने ‘उनके’ सामने नंगी नहीं होगी, तो तेरे पेट में उसका बच्चा कैसे आएगा?”
“वो सब मुझे नहीं मालूम!” माँ अभी भी ठुनकते हुए बोलीं, “अम्मा, मुझे ऐसे न जाने दो उनके सामने!”
“लेकिन वो हस्बैंड है तेरा मेरी बच्ची!”
“नहीं अम्मा!”
“नहीं है?” काजल ने माँ की टाँग खींची।
“अरे मैं वो नहीं कह रही हूँ!” माँ अपनी ही बात पर झेंपते हुए बोलीं, “वो तो मेरे हैं!”
माँ ने इतने प्यारे तरीके से ये बात कही कि काजल का दिल भी लरज गया, “बिटिया मेरी, मैं उसको भी नंगा रहने को कह दूँगी!”
“हाआआ!” माँ ने अपने खुले हुए मुँह पर हाथ रख कर कहा।
“अब ठीक है?”
“अम्मा, कम से कम कच्छी तो पहनने दो?”
“बिलकुल भी नहीं - अब से तू वो जाँघिया जैसी कच्छियाँ कभी नहीं पहनेगी!” काजल ने हँस कर माँ को मना किया, “उसको पहन कर मेरी सुन्दर सी बिटिया किसी दादी अम्मा जैसी लगती है! उससे अच्छा है कि तू नंगी रह!”
“अम्मा!” माँ ने फिर से अनुनय विनय करी, “मुझे बहुत शर्म आएगी!”
“तो आने दे!” काजल ने फिर से अनसुना कर दिया, “मेरी पुचुकी और मिष्टी को तो नहीं आती शरम! तू क्यों शर्माएगी? तू उनसे कोई अलग है?”
“मैं उनसे बड़ी हूँ न अम्मा!”
“अभी अभी मेरा दूध पिया है कि नहीं?”
माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया। वो सच में छोटी बच्ची ही बन गई थीं।
“तो फिर कोई बड़ी वड़ी नहीं है तू! मैं जैसा कहूँ, वैसा ही कर!”
“मिष्टी की तो दादी हूँ न!” माँ जैसे मोल-भाव पर आ गईं।
“अभी तू किसी की कोई दादी वादी नहीं है! अभी तू केवल मेरी बेटी, मेरी बहू है! बस!”
“ओह्हो! अम्मा!”
“चल अब! देर हो रही है खाने को!”
काजल ने कहा, और माँ के साथ डाइनिंग हॉल में आ जाती है। माँ काजल के पीछे पीछे चल रही थीं - लगभग छुपी हुई! काजल ने माँ को स्तनपान कराने के बाद ब्लाउज पहनने की जहमत नहीं उठाई। लिहाज़ा वो स्वयं भी केवल साड़ी और पेटीकोट पहने हुए डाइनिंग हॉल में आई।
“आओ बहू, बैठो!”
कह कर काजल ने माँ का हाथ पकड़ कर, अपने पीछे से, अपने आगे ला खड़ा किया! कुछ स्त्रियों की नैसर्गिक सुंदरता ऐसी होती है कि उनके बारे में कविताएँ, शायरियाँ, ग़ज़लें, और नज़्में लिखी जा सकती हैं! माँ भी नैसर्गिक रूप से इतनी सुन्दर थीं कि क्या कहें! गैबी का सौंदर्य भी वैसा ही था और देवयानी का भी! काजल भी बड़ी सुन्दर थी - लेकिन वो अपनी सुंदरता सही तरह से सम्हाल नहीं रही थी। माँ के शरीर पर इस समय केवल एक ही प्रदर्शित आभूषण था - उनकी माँग में सजा हुआ नारंगी रंग का सिन्दूर! इनकी नाक और कान की कील इतनी छोटी थी, कि उनकी उपस्थिति ही दिख रही थी।
खैर, केवल वही आभूषण धारण किये हुए माँ की नग्न सुंदरता देख कर सुनील की बोलती कुछ क्षणों के लिए बंद हो गई। उनके मिलन के पहले माँ बड़ी सुन्दर लग रही थीं, लेकिन इस समय उनकी सुंदरता न जाने कैसे कई गुणा बढ़ गई थी! शायद पुरुष हॉर्मोन का प्रभाव हो! या फिर सम्भोग के उपरांत के सुख की लाली! या कुछ और! या इन सभी बातों का मिला-जुला प्रभाव!
लतिका और आभा ने तो खैर माँ को नंगा देखा ही था। उनको इस बात में कुछ अलग नहीं लगा। बच्चों में वयस्कों जैसी संवेद्यता नहीं होती है। हम वयस्क अपने ही बनाये हुए नियमों और कायदों में जकड़े रहते हैं। बच्चे तो बस इसी बात से खुश रहे हैं कि सभी लोग उनके साथ में हों, और खुश रहें।
उधर काजल सुनील पर सुमन के सौंदर्य का ऐसा प्रभाव देख कर हँसने लगी, और बोली, “सुनील बेटे, चल तू भी बाकी बच्चों जैसा ही हो जा!”
“अम्मा?”
“सुना नहीं क्या? मैंने कहा न, कि मुझे अपने सारे बच्चे एक जैसे चाहिए! तो बस!” काजल ने कहा, “और... अपने नुनु पर कण्ट्रोल रखना! बच्चे भी हैं यहाँ - मैं नहीं चाहती कि वो डर जाएँ!”
सुनील कुछ पल तो झिझका, लेकिन काजल की प्यार भरी उलहनाएँ सुन कर मान गया। कुछ ही देर में काजल के चारों बच्चे पूर्ण रूपेण नग्न थे और खाने की टेबल पर आस पास बैठे हुए थे। माँ और सुनील को अगल बगल ही बैठाया गया था। लतिका ने अपने दादा को छोटेपन में नग्न देखा था। कई बार या तो मम्मा (ओह सॉरी, बोऊ-दी) या फिर अम्मा उसको और उसके दादा को साथ में ही नहला देती थीं। लेकिन पिछले तीन सालों से वो बंद हो गया था। अब सुनील ही उसको और मिष्टी को नहलाता था - बस कभी कभार ही उनके साथ नहा लेता था। अपने दादा का पिल्लू जैसा नुनु उसको फनी लगता था। आभा को खैर अभी इन सब बातों का कोई ज्ञान नहीं था।
सभी ने एक बहुत ही खुशहाल परिवार की तरह एक साथ लंच किया। काजल बात बात पर हँस रही थी। सभी हंसी मज़ाक कर रहे थे; चुटकुले सुना रहे थे। सुनील खुश ज़रूर था, लेकिन माँ के बगल बैठे हुए और उनकी नग्न सुंदरता का आस्वादन करते हुए, वास्तव में उसका भूगोल बिगड़ गया था। वो रह रह कर अपने ‘नुनु’ को व्यवस्थित कर रहा था, कि अपनी अम्मा और दोनों बच्चों के सामने बेइज़्ज़ती न हो जाए। माँ भी हँस और मुस्करा रही थी, लेकिन उनको शर्म भी बहुत आ रही थी।
अपने वायदे के मुताबिक, माँ को खाना आज काजल ने अपने हाथों से खिलाया। लेकिन यह सब कुछ इतना रोमांचक था कि उन्होंने बस किसी तरह से अपना लंच खत्म किया। खाना स्वादिष्ट था, लेकिन माँ को थोड़ा अलग लगा। वो बहुत उत्साहित भी थीं, और थोड़ी आशंकित भी। जीवन के इस पड़ाव में पहुँच कर यह सब करना, ऐसा अभूतपूर्व बदलाव लाना, यह सब उनके लिए बहुत नया और अज्ञात था। माँ को समझ नहीं आ रहा था कि मैं - उनका बेटा - इस खबर पर कैसे रिएक्ट करूँगा। यह हमारे और काजल के परिवार के साथ हमारे संबंधों में बड़े पैमाने पर पुनर्समायोजन (re-adjustment) था!
लंच खत्म होने पर, काजल ने कहा, “मिष्टी, पुचुकी - तुम दोनों बच्चों अपने दादा के साथ खेलो और आराम करो! मैं बहू को तैयार करती हूँ! ठीक है?”
“यस दादी!” कह कर आभा फुदक कर अपने दादा की गोदी में आ गई।
काजल ने सुनील को आभा और लतिका की देखभाल करने का निर्देश दिया, और फिर माँ के साथ उनके कमरे में चली गई। वो खुद घर की विभिन्न अलमारियों से रंग-बिरंगी रेशमी साड़ियों, पेटीकोट और मैचिंग ब्लाउज़, और समस्त ज़ेवर निकाल कर वो भी माँ के कमरे में चली गई, और दरवाज़े को अंदर से बंद कर ली।
वो दोनों बहुत देर बाद बाहर आएँगे!
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अमर जी ,निसंदेह आप मेरे फेवरेट लेखक हे और रहेंगे ,अगर मेरी विवाहित ज़िंदगी रंगो से सरोबार हे तो उसकी वजह आप भी हे।
आप की कोई भी कहानी पढ़ लो सेक्स का मूड तो बन ही जाता हे ,असल में देवयानी की मृत्य के बाद मुझे आपकी इस कहानी में कोई दिलचस्पी नहीं रह गयी थी ,मुझे उसकी मृत्य का गहरा दुःख पंहुचा था ,एक आत्मविश्वासी और बिंदास लड़की का अंत मुझे भाया नहीं तो मेने काफी समय तक आपकी इस स्टोरी को पढ़ा नहीं।
दीपावली के दिन में थोड़ा फ्री थी तो यूही आपकी इस कहानी के आखिर के कुछ अंश पड़ना शुरू किये आप यकीं कीजिये की में २ घंटे तक पढ़ती रही। मुझे मेरा अतीत याद आ गया। मेरे अभी के डैड और मॉम का रोमांस याद आ गया। मेरी मॉम मेरी अच्छी फ्रेंड भी हे उन्होंने मुझे काफी दिनों बाद बताया की उन्हें तुम्हारे डैड के साथ सेक्स कर जवानो जैसी फीलिंग आती हे।
में अब चाचा को डैड ही कहती हु ,उन्होंने मॉम से कभी बच्चे की इच्छा जाहिर नहीं की वो यही कहते रहे हम जूही को ही अपना पूरा प्यार देंगे। में तो अब भी उनसे कहती हु मुझे कोई बहन भाई ला दो तो वो मुझ पर ही टाल देते हे अब तेरी उम्र हे ये सब करने की।
देखिये समाज की बात मेरे समझ में आती हे उन्हें इस बात से चिढ़ होती हे की किसी विधवा का फिर से जीवन कैसे संवर सकता हे और उसकी शादी कैसे हो सकती हे। आपने इस कहानी में जिक्र भी किया हे जब सुनील सुमन को कहता हे की 50 साल के व्यक्ति से शादी कर उन्हें सहारा तो मिल सकता हे लेकिन सुख नहीं ,उन्हें भी उस उम्रदराज व्यक्ति का ख्याल रखना पड़ेगा।
मेरी बुआओं का फंदा दूसरा था वोउनकी सोच थी की मॉम किसी दूसरे से शादी कर लेगी तो उन्हें प्रॉपर्टी छोड़नी पड़ेगी और उनके हिस्से में प्रॉपर्टी आ जाएगी ,लेकिन चाचा से शादी के बाद प्रॉपर्टी का कुछ नहीं होगा। मेरी बुआओँ ने मेरे मॉम और डैड को जितना बदनाम किया होगा उतना तो अन्य लोगो ने भी नहीं कहा होगा। कुछ बाते तो ऐसे भी की ,की अगर इतनी ही आग लग रही थी तो कोठे पर बैठ जाती।
भुला दिया अब हमने सब।
आपको ,अंजलि भाभी को और दोनों बच्चियों को दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाये।
एक शेर जो मुझे आपके लिए बेहद पसंद हे
तेरा ख़याल तेरी तलब और तेरी आरज़ू,
इक भीड़ सी लगी है मेरे दिल के शहर में।
जिस तरह से घर में कभी मिठाई बनती है धीरे धीरे पूरा समय लेकर मगर जब मिठाई बन कर तैयार होती है तो अलग ही आनंद आता है वैसे ही avsji भाई अपडेट देते तो समय लेकर है मगर एक साथ 3-4 अपडेट्स आ जाते है वो भी इतने मनोरम की हृदय बाग बाग हो जाता है।
सुनील की हरकतों को देख कर आखिरकार काजल ने कमान अपने हाथों में ली और सारी सच्ची जान ली। काजल कहीं भी ये सोच कर की मेरा बेटा है तो कुछ ऊंच नीच कर सकता है वाला स्वभाव नहीं रक्खा और जहां उसको लगा की शायद सुनील सुमन के लिए गलत सोच या कर सकता है वहां उसकी अच्छे से क्लास भी लगा दी। मगर आखिर में सुनील की सच्ची भावनाओ को जान कर उसको संतुष्टि हुई।
सुमन के साथ भी काजल ने यही प्रयोग किया उसके दिल की बात जानने के लिए कि क्या वो सच में सुनील से शादी करना चाहती है या आवेश या भावनाओ में बह कर तो सुनील को पसंद नही कर रही है और जब उसको ये विश्वास हो गया कि सुमन ने सब कुछ सोच समझ कर सुनील को अपना माना है तो उसने एक क्षण में सुमन को अपनी बेटी बना लिया।
इस घर में रिश्ता की परिभाषा ही कुछ अलग है जहां रिश्तों को उम्र, समाज के नियमों या आरती स्तर से हट कर मानवीय भावनाओं और स्वेंदनाओं के आधार पर निर्धारित किया जाता है। एक भावनाओ के बाजीगर की अप्रतिम कलाकारी का नमूना है ये कहानी और इसके लिए बहुत बहुत साधुवाद avsji भाई।
अंतराल - विपर्यय - Update #6
माँ ने कभी सुनील को उस दृष्टि से नहीं देखा। देखने का कोई कारण भी नहीं था। उन्होंने जब भी सुनील को देखा, अपने बेटे के रूप में ही देखा। उनको याद आया कि कैसे वो सुनील को दसवीं, ग्यारहवीं, और यहाँ तक कि बारहवीं कक्षा में भी, कई बार अपने हाथों से नहलाती थीं! सुनील को भी मेरी ही तर्ज़ पर पाला था माँ ने! इंजीनियरिंग के पहले साल में, जब वो पूजा के दौरान घर आया था, वो माँ एक दिन सुनील को आँगन में नहला रही थीं। वो शर्म के कारण चड्ढी पहने हुए था - लेकिन माँ ने पहले के ही जैसे नहलाने के लिए उसकी चड्ढी नीचे खिसका दी। नहलाने के बाद माँ ने उसके पूरे शरीर पर बादाम तेल लगाया था। सुनील उस दिन बहुत लज्जित हुआ था। होता भी कैसे न - सभी तो थे उस दिन घर में - डैड, काजल, पुचुकी - और सभी के सामने माँ यह सब कर रही थीं! न चाहते हुए भी उसका लिंग स्तंभित हो गया था। उस समय भी वो डैड के लिंग से थोड़ा ही छोटा था।
डैड ने माँ को यह करते देख कर उनसे कहा था, “अरे भाग्यवान, बेटा बड़ा हो गया है!”
“हाँ तो?” माँ ने जैसे न समझते हुए कहा।
“तुमको तो समझाना ही मुश्किल है!” कह कर डैड ने तुरंत ही हथियार डाल दिए।
न तो वो ही, और न ही काजल उनके काम में कैसी भी दखल देते। माँ दोनों बच्चों का भला जानती थीं, और उनके पालन पोषण, और पढ़ाई लिखाई का पूरा ध्यान रखतीं। कैसे वो अक्सर रात में सुनील के कमरे में आती थीं, उसको दूध-बादाम देतीं, और उसकी पढ़ाई लिखाई के बारे में पूछतीं! उसको पढ़ते हुए रात में अगर बहुत देर हो जाती, तो वो उसको जबरदस्ती कर के बिस्तर पर लिटा देती थीं, और सुला कर ही वापस जाती थीं। वो अक्सर उससे पूछतीं कि क्या वो उसको दूध पिला दें, लेकिन वो साफ़ मन कर देता। उसके खान-पान में और शारीरिक व्यायाम में जो अनुशासन और दिनचर्या पड़ी थी, वो माँ के ही कारण थी। सुनील ने माँ के साथ ही पहले ब्रिस्क वाकिंग, और फिर जॉगिंग करनी शुरू करी - और उस आदत को उसने इंजीनियरिंग कॉलेज में भी जारी रखा, जहाँ पर वो व्यायाम इत्यादि भी करने लगा। माँ के ही कहने पर काजल ने सुनील और लतिका को पुनः स्तनपान कराना शुरू किया था, और यह सिलसिला तब तक चलता रहा जब तक सुनील हॉस्टल का ही हो कर न रह गया! लेकिन हॉस्टल में भी रहते हुए सुनील ने सेहत से कभी कोई खिलवाड़ नहीं करी। न ही उसने कोई ऐब पाले, और न ही कोई खराब आदतें - क्योंकि उसने अपनी अम्मा से, और माँ से वायदा किया था! उन सभी अच्छी बातों और आदतों का संचित फल मिल गया था उसको!
“मज़ाक में मत लो इस बात को, मेरी जान! सच में, जब से होश सम्हाला है, तब से तुम्हारी ही छवि बसी है मेरे मन में! तुम्ही को अपनी पत्नी माना!” सुनील ने माँ की योनि को सहलाते हुए कहा, “मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मेरा ये हसीन सपना कभी साकार भी हो सकता है! सपने कहाँ सच होते हैं - उनको तो बस देखा जाता है, और उम्मीद करी जाती है कि उन सपनों के जैसा कुछ कुछ हो जाए! लेकिन मेरा तो हर सपना पूरा हो रहा है!”
कह कर सुनील कुछ देर के लिए चुप हो गया। तो इस बार माँ ने बातचीत का सूत्र पकड़ा,
“एक बात बताइए मुझे,”
“क्या? बोलो?”
“आप कह रहे हैं कि आप मुझे सात साल से चाहते हैं।”
“हाँ!”
“तो जब...” माँ हिचकिचाईं, “तो जब ‘वो’... मेरे साथ... ये... ये सब करते थे, तो आपको बुरा नहीं लगता था?”
“क्या? बाबूजी?”
माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“तुम्हारा मतलब है कि जब बाबूजी तुमसे प्यार करते थे, और तुमसे सेक्स करते थे, तो मुझे बुरा लगता था?”
माँ ने फिर से ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“नहीं मेरी जान!” सुनील ने कहा, “बुरा मुझे केवल तब ही लग सकता है जब तुम दुःखी रहो!”
सुनील थोड़ा रुका, और फिर थोड़ा गंभीर होते हुए बोला, “जब अम्मा ने फ़ोन पर सब कुछ बताया, तो लगा कि भगवान् जी ने कैसा अत्याचार कर दिया! उस दिन मुझे बहुत बुरा लगा। बहुत दुःख हुआ। यही क्वेश्चन आता है मन में कि भगवान् ने ऐसा क्यों किया! लेकिन फिर मुझे लगा कि जैसे खुद उन्होंने ही यह मौका मुझे उपहार में दिया है! मुझे लगा कि ये समय है - ज़िम्मेदारी लेने का! आदमी बनने का! तुमको प्यार करने का...!”
उसने माँ के मुँह को फिर से चूमा, “तुम्हारे साथ तो एक पल बिताने के बदले, अगर ऊपर वाला मेरी ज़िन्दगी भी माँग ले न, तो मैं ख़ुशी ख़ुशी दे दूँ!”
“ऐसा अशुभ अशुभ मत बोलिए!” माँ ने तुरंत ही सुनील के होंठों पर अपनी उँगली रखते हुए कहा, “प्रॉमिस कीजिए मुझसे, कि आप ऐसी अशुभ बातें नहीं करेंगे कभी?”
“मेरी दुल्हनिया...”
“नहीं!” माँ ने ज़िद करते हुए अपना विरोध दर्ज़ कराया, “कोई दुल्हनिया वुल्हनिया नहीं! मैं कुछ नहीं सुनूँगी! आप पहले प्रॉमिस कीजिए!”
माँ की आँखों से आँसू निकलने लगे, और उनकी आवाज़ भरने लगी। वो दूसरी बार अपना सुहाग छूटने की बात सोच कर ही दहल गईं। एक बार तो अपना सुहाग उजड़ने पर वो जैसे तैसे सम्हल गईं थीं; पर दूसरी बार वही अवसाद, वही दुःख वो नहीं झेल सकती थीं। लेना तो दूर, उसके बारे में सोच भी नहीं सकती थीं!
सुनील मुस्कुराया, “आई ऍम सॉरी माय लव! अब नहीं बोलूँगा ऐसी बातें, मेरी जान! नहीं बोलूँगा! कभी नहीं! आई प्रॉमिस! ऐसे कैसे चला जाऊँगा? अभी तो हमको साथ में कितने सारे काम करने हैं! हमें शादी करनी है; तुमको खूब प्यार करना है! तुमको पूरे जहान की खुशियाँ देनी हैं! दो तीन बच्चे पैदा करने हैं; उनको पाल पोस कर बड़ा करना है! उनकी शादी करनी हैं! उनके बच्चे खिलाने हैं! ये सब किये बिना मैं कहीं नहीं जा रहा हूँ - और न ही तुम! मुझसे इतनी आसानी से पीछा नहीं छूटेगा तुम्हारा दुल्हनिया!” वो अपने जाने पहचाने मज़ाकिया अंदाज़ में बोलता चला गया।
उसकी बातों से माँ की अश्रुपूरित आँखों में मुस्कान दिखाई देने लगी।
“हाँ!” माँ ने भरी हुई आवाज़ में ही कहा, “ये सब किए बिना आप गए न, तो मैं आपको बहुत मारूँगी!”
“हा हा हा हा हा हा!”
“और अगर मुझसे पहले आप मुझे छोड़ कर गए न, तो और भी मारूँगी!”
“हा हा हा हा हा हा! नहीं जाऊँगा मेरी सोनी! कभी नहीं!”
माँ ने संतोष भरी एक गहरी साँस ली, और वापस अपने गाल को सुनील की छाती पर रख कर लेट गईं। सुनील ने माँ को अपने में समेट लिया - कुछ इस तरह कि माँ अपनी एक जांघ और टांग सुनील के ऊपर रख कर लेटी हुई थीं। और वो प्यार से माँ के दोनों नितम्बों के बीच उनको योनि और गुदा को बारी बारी सहला रहा था।
“सुनिए जी?”
“बोलो मेरी जान?”
“जब आपको मेरी याद आती थी तो क्या होता था?”
“क्या होता था?” सुनील ने माँ को छेड़ते हुए कहा, “तू इतनी सेक्सी है दुल्हनिया कि तेरा नाम दिमाग में आते ही लण्ड खड़ा हो जाता!”
“धत्त! गंदे!” माँ ने उसकी छाती पर मज़ाक वाला मुक्का मारते हुए शिकायत करी, फिर हँसते हुए कहा, “अच्छा, तो फिर क्या करते थे?”
“और क्या करता दुल्हनिया? जब लण्ड खड़ा होता, तो हाथ चला कर उसको जैसे तैसे समझा बुझा लेता, कि बेटा सब्र कर ले! किस्मत होगी, तो तुझे अपनी सुमन की बुर को चूमने, उसको प्यार करने का सौभाग्य मिलेगा!”
“धत्त! बहुत गंदे हो आप!”
“अरे, इसमें गंदे होने वाली क्या बात है? मेरी बीवी इतनी सेक्सी है, और मेरा लण्ड भी नहीं खड़ा होगा? वाह भई!”
“मैं सच में सुन्दर लगती हूँ?”
“सुन्दर एक चीज़ होती है दुल्हनिया! लेकिन तेरे रूप में जो नमक है न, वो कहीं नहीं है! तू सच में पच्चीस छब्बीस से अधिक की नहीं लगती!” सुनील ने माँ के स्तनों को दबाते हुए कहा, “ये देख - कैसे छोटे छोटे, फर्म फर्म हैं!”
माँ मुस्कुराईं।
“यार दुल्हनिया मेरी, एक बात तो बता?”
“जी?”
“इतने छोटे छोटे दुद्धूओं में कितना ही दूध बनता होगा?”
“हटिए जी, ऐसे छोटे दूधू नहीं हैं मेरे!” माँ ने अदा में इठलाते हुए कहा, “ये देखिए - आपकी हथेली भर जाती है पूरी!” कह कर माँ ने सुनील की हथेली अपने स्तनों पर दबाई, “इनको छोटा थोड़े ही कहते हैं!”
“मेरी जान, हैं तो ये छोटे ही, चाहे तुम कुछ भी कहो! अम्मा के ही देख लो, तुमसे तो बड़े हैं!”
“जब इनमें दूध बनता है, तो इतने छोटे नहीं रहते!” माँ ने इठलाते हुए कहा।
“अच्छा? तो फिर ठीक है! लेकिन तेरे में कितना बनता रहा होगा?”
“क्या? दूध?”
सुनील ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“दिन में डेढ़ दो लीटर तो बनता रहा होगा - अमर खूब पीता था!”
“इतने नन्हे से दुद्धूओं में डेढ़ दो लीटर दूध?”
“नन्हे!? हा हा हा! आप भी न! अरे एक बार में इतना दूध नहीं बनता मेरे भोलू बाबा! पूरे दिन भर में बनता है इतना! वो भी तब, जब बच्चा ढंग से पीता रहे!”
“और भैया पीते थे खूब?”
“हाँ! खूब! चार पाँच साल तक तो वो दिन में पंद्रह बीस बार पीता था। उसके बाद उसका पीना कुछ कम हुआ, लेकिन जब वो दस साल का था, तब भी बहुत बार पीता था - चार पाँच बार।”
“सही है!”
“हाँ! तब भी तो उतना दूध तो पी ही लेता था!”
“कब तक पिलाया?”
“टेंथ तक! तब तो कम दूध आता था। लेकिन वैसे तो बहुत बार! आपके यहाँ आने से पहले भी कभी कभी पिलाया है। उसकी बीवियों को भी, और उसकी बच्ची को भी!”
“लेकिन अभी तो नहीं आता?”
“नहीं!” माँ ने शर्माते हुए कहा।
“कोई बात नहीं मेरी जान! जल्दी ही ये दोनों दूध से लबालब भरे रहेंगे!”
“हा हा हा!”
“अम्मा को भी अभी तीन चार साल तक दूध आ सकता है?”
“हाँ! हो सकता है! अगर पुचुकी और मिष्टी उनका दूध पीती रहें!”
“तुम भी पिया करो मेरी जान!”
“हाय रे!”
“अरे, इसमें हाय रे वाली क्या बात है?” सुनील ने कहा, “देखना तुम! जब अम्मा को पता चलेगा न कि तू उनकी होने वाली बहू है, तो वो खुद ही तुमको अपने सीने से लगा लेंगी!” सुनील बड़े विश्वास से बोला, “वो तुमको बहुत प्यार करती हैं!”
“हा हा!” माँ ने शर्मा कर हँसते हुए कहा, “कैसा लगेगा भगवान्!”
“मेरे साथ कैसा लग रहा है?”
“बहुत अच्छा!” माँ ने संतुष्टि वाले भाव से कहा, “आई ऍम वेरी लकी!”
“तो बस! वैसा ही अम्मा के साथ लगेगा!” सुनील ने माँ को चूमा।
माँ मुस्कुराईं, फिर शर्माते हुए उन्होंने कहा, “मैंने आपकी अम्मा को भी पिलाया है, और मिष्टी को भी!”
“अरे तो अभी भी पिलाया करो न, मेरी जान!” सुनील ने माँ की योनि में उंगली डालते हुए कहा, “अम्मा को नहीं - मिष्टी को! मैं क्यों मना करूँगा?”
सुनील मुस्कुराते हुए बोला, “मिष्टी इतनी स्वीट है कि मैं क्या कहूँ, दुल्हनिया! जब से उसको देखा है, मेरा मन बस यही करता है कि काश वो मेरी बेटी होती!” वो रुका, फिर आगे बोला, “अरे वो है मेरी बेटी! पुचुकी भी! इस लिहाज़ से तुम दोनों की माँ भी हो! इसलिए पिलाया करो!”
“आप इनमें दूध भरने का इंतजाम कर दीजिए, मैं पिला दूँगी!” माँ ने बड़ी शोख़ अदा से कहा।
“आए हाए मेरी दुल्हनिया! बिलकुल! बड़ी ख़ुशी से!” सुनील ने शेखी बघारते हुए कहा, और फिर आगे जोड़ा, “अच्छा, तुझे एक राज़ की बात बताऊँ दुल्हनिया?”
“हाँ, बताइए?” माँ को भी अब सुनील के साथ ऐसे सेक्स के बाद ऐसी छोटी छोटी बातें करने में आनंद आने लगा था।
“तेरी गाँड़ पे न, एक बहुत क्यूट सा लाल भूरे रंग का तिल है!”
“धत्त!” माँ ने शर्माते हुए कहा, “आप भी न जाने कहाँ कहाँ, क्या क्या ढूंढते रहते हैं!”
“तुझे मालूम है कि वो वहाँ है?”
“नहीं!”
“थोड़ा पलट, तो बताऊँ?”
“जी नहीं! कोई ज़रुरत नहीं है! आपको मालूम चल गया, वही बहुत है!” माँ शर्माते हुए बात टालने की कोशिश करने लगीं।
“अरे पलट न!”
सुनील की बात से इंकार नहीं कर सकती थीं माँ! वो पलट गईं - सुनील की शरारतें बहुत ही सरल और हास्यास्पद थीं।
सुनील ने उँगली से उनके गुदाद्वार के निकट दाहिने नितम्ब को छुआ, “यहाँ पर है वो!”
उसने कहा और झुक कर वहाँ पर चूम लिया।
माँ के गले से एक आह निकल गई।
“दुल्हनिया?”
“जी?”
“कभी यहाँ डलवाया है?” कह कर उसने माँ की गुदा को छुआ।
“धत्त! वो भी कोई जगह है इसके लिए?” स्वतः प्रेरणा से उनकी गुदा संकुचित हो गई।
“अरे क्यों! क्यों नहीं है?” उसने उंगली थोड़ा अंदर सरकाते हुए कहा।
माँ को एक अलग सा अनुभव हुआ लेकिन उन्होंने हँसते हुए पूछा, “वहाँ डालने से आप दो तीन बच्चों के बाप बनेंगे?”
“अरे मैंने बस इतना ही पूछा कि कभी वहाँ डलवाया है?”
“नहीं!”
“हम्म्म, तो मैं डालूँगा कभी!”
“बाप रे! नहीं नहीं! मैं मर जाऊँगी! फिर करते रहिएगा मुझसे बच्चे!”
“हा हा हा!” सुनील दिल खोल कर हंसा, फिर बोला, “एक बात तो बता दुल्हनिया, तुझे मेरा लण्ड तो अच्छा लगा न?”
“धत्त!”
“अरे क्या धत्त! बोल ना कैसा लगा?”
“बहुत बदमाश है!” कुछ पल झिझकने के बाद माँ ने शरमाते हुए जवाब दिया।
“अरे मैं अपनी नहीं, मेरे लण्ड की बात कर रहा हूँ!”
“हाँ... वो ही! आपका ‘वो’ बहुत बदमाश है!”
“हम्म... तो तुझे इसकी बदमाशी पसंद आई?”
माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, और मुस्कुराई।
सुनील ने माँ को कई बार होंठों पर चुम्बन दिया और फिर उससे अलग होने से पहले उसने कहा, “रात में दरवाजा खोल कर रखना। आऊँगा! थोड़ी और बदमाशी करेंगे।”
“आप जा रहे हैं?” माँ ने निराशा से कहा।
“हाँ! मन तो नहीं है, लेकिन क्या करें! अम्मा और बच्चे आने ही वाले होंगे!” सुनील मुस्कुराया, “इसीलिए तो रात का वायदा किया है!”
माँ निराश तो थीं, लेकिन फिर भी मुस्कुराईं। प्रेम वाकई बलवान वस्तु होता है - कल तक माँ जिस से दूरियाँ बनाए रखने की चेष्टा कर रही थीं, आज उसी से दूरी होने की सम्भावना से भी उनको दिक्कत हो रही थी।
“लेकिन,” सुनील ने कहना जारी रखा, “अम्मा से बात करना है मुझको! भैया से भी! आज ही! अब और देरी नहीं!”
सुनील की बात पर माँ को बहुत संतोष हुआ - और वो प्रसन्नता से मुस्कुरा दीं।
उनके वैधव्य की काली घटा छँट गई थी, और उनके जीवन में इंद्रधनुषी रंग वापस शामिल हो गए थे।
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ह्म्म्म्म अब लुका-छिपी और शरारत भी शुरूअंतराल - विपर्यय - Update #7
एक बार पुनः, सभी प्रिय पाठकों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
कल छोटी दीपावली के शुभ अवसर पर प्रिय विराट कोहली और प्रिय हार्दिक पंड्या ने असंभव को संभव कर दिखाया था, उससे मन को अत्यंत प्रसन्नता मिली!
और आज तो है ही ख़ुशी का अवसर! तो मैंने सोचा कि एक छोटा सा अपडेट और लिख दूँ!
पढ़िए और आनंद लीजिए!
अंतराल - विपर्यय - Update #7
सुनील ने माँ के सामने ही अपने कपड़े पहने, और फिर उनको चूम कर बाहर निकल गया। उसके जाने के कोई पंद्रह मिनट बाद जब माँ फिर से अपने कपड़े पहन कर, अपने कमरे से निकलीं, तो उनके चेहरे पर संतोष की एक निश्चित चमक थी - ऐसी, कि जिसको कोई भी देख सकता था। वो खुशी से झूम रही थीं! भले ही प्रथम सम्भोग के कारण उनको चलने फिरने में थोड़ी तकलीफ़ हो रही थी, लेकिन उनको खुद को ऐसा लग रहा था कि जैसे उनके पाँव ज़मीन पर ही नहीं पड़ रहे थे। वो इस समय रंगीन सपनों के उड़नखटोले पर सवार थीं। आज वो फिर से एक विवाहित महिला बन गई थीं। वैधव्य का बदरंग बोझ उनके कंधे से उतर गया था, और वो अब फिर से अपने जीवन का खुले रूप से आनंद ले सकती थीं। वो अब उन इच्छाओं को भी पूरा करने की राह देख रही थीं, जो उन्होंने दशकों से दबा रखी थीं। उसके पास अब एक नया जीवनसाथी था, और उसने उनसे वायदा किया था, कि वो उनके सभी सपनों को पूरा करेगा!
किसी को भी ऐसा ‘दूसरा मौका’ मिलना मुश्किल है। किस्से कहानियों में ही यह सब सुनने को आता है। लेकिन न जाने किस शुभ कर्म के कारण उनको यह ईश्वरीय प्रसाद मिला था।
‘बहुत-बहुत धन्यवाद, मेरे ईश्वर! बहुत-बहुत धन्यवाद!’ माँ मन ही मन कई बार ईश्वर का धन्यवाद कर चुकी थीं।
अपने कमरे से वो सीधा रसोई में पहुंचीं। आज वो अपने पति के लिए खुद खाना बनाएँगीं!
सुनील ने उनको रसोई की तरफ जाते हुए देखा और मुस्कुरा दिया। माँ भी उसको देख कर मुस्कुराई! कुछ ही देर पहले की अंतरंग यादें ताज़ा हो आईं। आज उन्होंने सम्भोग किया था - दो बार! और दोनों ही बार उनको बड़ा ही अद्भुत अनुभव हुआ था! सुनील उनसे प्यार करता था, और उसने पूरी ईमानदारी और प्रमाणिकता से माँ को अपना प्यार दिखाया। सबसे अच्छी बात यह हुई कि माँ ने भी उसके प्यार पर बिना किसी पूर्वाग्रह के, सकारात्मक प्रतिक्रिया दी थी। अब दोनों का जीवन एक साथ हो गया था। अब दोनों को एक साथ अपने भविष्य की सुध लेनी थी।
सुनील माँ का रूप देख कर अंदर ही अंदर आनंदित हो रहा था, और उन पर मुग्ध हो रहा था। अपार गुणों से परिपूर्ण, ये सौंदर्य की देवी, अब उसकी पत्नी थी! उसकी सुमन इस रंगीन साड़ी में कितनी सुंदर लग रही थी! बहुत ही खूबसूरत! बहुत ही आकर्षक! बहुत ही जवान! कुछ और भी था जो माँ की सुंदरता में कई गुणा इजाफा कर रहा था - और वो था नारंगी रंग का चमकदार सिंदूर, जो उनकी माँग को सुशोभित कर रहा था। सच में - माँ के रूप की शोभा एक सुहागिन के रूप में सौ गुणा बढ़ गई थी! उनको देख कर सुनील के मन में संतुष्टि वाला भाव आया। अपनी सुमन को उस रूप में देखने की उसकी तमन्ना पूरी हो गई - और उसको इस बात का मान था कि उसके कारण सुमन की माँग में रौनक लौट आई थी।
सुनील ने महिलाओं वाली कुछ पत्रिकाएँ उठाईं, और माँ के लिए गहनों की तलाशने उनके पन्ने खंगालने लगा - विशेष रूप से मंगलसूत्र और कुछ अन्य छोटे गहने, जो वो अपनी सामर्थ्य के हिसाब से वो माँ के लिए खरीद सकता था। दूसरी ओर माँ खाना पकाने में व्यस्त हो गईं। माँ वैसे तो इन दिनों घर का काम ज्यादा नहीं करती थीं, क्योंकि काजल उन्हें कभी कुछ करने ही नहीं देती थी, और पूरे घर की ज़िम्मेदारी खुद पर ही ले रखी थी। लेकिन आज बात कुछ अलग थी। माँ सुनील के लिए अपना प्यार दिखाना चाहती थीं, और अपने प्रिय के लिए खाना पकाने से बेहतर प्यार जताने का और तरीका क्या हो सकता है?
खाना पकाते हुए माँ ने कई बार सुनील को अपनी तरफ़ देखते हुए देखा। वो रह रह कर रोमांटिक गीत गुनगुनाता, मैगज़ीन के पन्ने पलटता, और माँ को देखता। उसकी आँखें चंचल थीं, लेकिन ईमानदार थीं। सुनील के देखने का अंदाज़ ऐसा था कि माँ को उसमें अपने लिए प्रशंसा का संकेत दिख रहा था। माँ भी उत्तर में उसको मीठी मुस्कान देती रहीं। ऐसा दूर दूर का प्यार कितनी देर चलता, इसलिए एक समय सुनील माँ के पीछे से आया और पीछे से ही उसने उनको अपने आलिंगन में भर लिया। कुछ ही समय में वो रोमांटिक आलिंगन, एक कामुक आलिंगन में बदल गया, क्योंकि उसके हाथ माँ के स्तनों को दबाने कुचलने लगे। वो माँ के ब्लाउज को खोलना चाहता था, लेकिन माँ ने उससे ऐसा न करने का अनुरोध किया... काजल और बच्चे अब किसी भी क्षण वापस आ सकते थे। इतनी देर हो गई थी कि अब वाकई किसी भी क्षण उनका आगमन हो सकता था।
“नहीं नहीं... अभी नहीं!”
“मैं क्या करूँ दुल्हनिया!” सुनील ने मज़ाकिया हताशा से कहा, “मेरा मन होता है कि मैं इन्हें हमेशा देखता रहूँ, चूमता रहूँ, और प्यार करता रहूँ!”
माँ ने मुस्कुराते हुए उसकी बात सुनी, और फिर उसके गले में गलबैयाँ डाल कर प्रेम से बोलीं, “आप जानते हैं न कि मैं आपको किसी बात के लिए मना नहीं कर सकती! और न ही करूँगी! मैं आपकी हूँ अब! लेकिन अम्मा कभी भी आ सकती हैं न? इसलिए!”
माँ की बात सही थी, लेकिन वो बेचारा भी क्या करे? कुछ सोच कर सुनील ने खींसें निपोरते हुए कहा, “बस एक बार दिखा दो न!”
माँ का दिल उसकी इस बात पर पसीज गया। तुरंत। उन्होंने झटपट अपने ब्लाउज के बटन खोलने शुरू कर दिए, और कुछ ही क्षणों में उनके दोनों स्तन सुनील के भोगने हेतु प्रस्तुत थे। सुनील ने कोई पाँच मिनट तक दोनों स्तनों को बारी बारी पिया।
“बस, इतनी सी तो बात थी! उसके लिए भी!” सुनील ने नकली शिकायत करी।
माँ ने हँसते हुए कहा, “मेरे साजन, एक बार अम्मा को हमारे रिश्ते के बारे में मालूम हो जाए, फिर आप जो कहेंगे, मैं करूँगी!”
“पक्की बात?”
“पूरी तरह!”
“हम्म! अच्छा, मैं ये ब्रा अपने पास रखूँगा!”
“क्यों?”
“अरे बस! यूँ ही! मेरा मन!”
“ठीक है!” माँ ने हँसते हुए कहा, और अपनी ब्रा उतार कर सुनील को दे दी।
“तेरी कच्छी भी!”
“हे भगवान्!”
“जल्दी जल्दी!”
“आप कोई फ्रेश चड्ढी ले लीजिए न!”
“ना!” सुनील ने बदमाशी से कहा, “साड़ी ब्लाउज़ के नीचे नंगी चाहिए तू!”
“ओफ़्फ़ोह!” माँ ने हथियार डालते हुए अपनी साड़ी के नीचे अपनी चड्ढी उतार दी, “आप और आपकी ज़िद!”
और फिर अपनी कच्छी सुनील को पकड़ाते हुए बोलीं, “अब खुश हैं आप, मेरे स्वामी?”
“बहुत खुश!” सुनील ने कहा, और कुछ देर सोचा और फिर कहा, “दुल्हनिया, आज रात में मैं तुमको जम कर चोदूँगा!”
“और मैं अपने हैंडसम पति से इससे कम की उम्मीद भी नहीं करती।” माँ ने भी अदा से जवाब दिया।
माँ ने सुनील की पैंट की ज़िप खोली, उसके खड़े हुए लिंग को बाहर निकाला और उस पर एक कामुक चुम्बन दिया। सुनील तत्क्षण ही उत्साह, रोमांच, और कामुकता के शिखर पर पहुँच गया। माँ उसकी हालत पर हँसी, और फिर वापस खाना पकाने में व्यस्त हो गई। लेकिन उनका दिल यह सोचकर ज़ोर से धड़कने लगा कि सुनील आज रात में उनका खज़ाना कैसे लूटेगा!
हाँ बहुत कुछ**
जब काजल, लतिका और आभा के साथ उनके स्कूल से वापस लौटी, तो उसके हाथों में खरीदारी किए हुए घर के कई सामान भी थे। काजल के पास घर की चाबी रहती ही थी। उसने जैसे ही दरवाज़ा खोला, उसको स्वादिष्ट भोजन की सुगंध आई! तीनों जने सीधा रसोई में पहुँच गए, जहाँ उन्होंने माँ को खाना बनाते हुए पाया। डाइनिंग टेबल पर सुनील कोई पत्रिका पढ़ने में व्यस्त था, और माँ खाना पकाने में!
‘कुछ तो था जो बदला हुआ लग रहा है!’ काजल के मन में सबसे पहला ख़याल यही आया।
हा हा हा“मम्मा!” लतिका की आवाज़ सुन कर माँ चौंकीं।
लतिका दौड़ती हुई आई, और रोज़ की ही भांति अपनी मम्मा से लिपट गई!
“आ गई मेरी बिटिया रानी?” कह कर माँ ने उसके दोनों गालों और मुँह पर चुम्बन दिया।
आभा भी फुदकते हुए आई और अपनी दादी से लिपट गई, “ओ मेरी गुड़िया, ओ मेरी मिष्टी!” कह कर माँ ने उसके भी दोनों गालों और मुँह पर चुम्बन दिया। सुनील माँ को दोनों बच्चों को ऐसे लाड़ करते देख कर गर्व से मुस्कुराया।
“अरे वाह दीदी... कितनी बढ़िया सी सुगंध आ रही है खाने की!” रसोई में प्रवेश करते ही काजल ने घोषणा की।
माँ उत्तर में बड़े उत्साह से मुस्कुराईं, “बस, बन ही गया सब कुछ!” माँ ने कहा, “तुम सभी थोड़ा आराम कर लो! कुछ ही देर में खाना सजा दूँगी!”
“सॉरी दीदी, बहुत देर हो गई आज! स्कूल में इतनी देर तक बैठाये रखा कि क्या कहें! वहाँ के जंजाल से जब छूटे, तो सोचा कि घर के लिए कुछ चीजें, कुछ समान खरीदती चलूँ... इस नालायक से यह सब घर के काम तो होते नहीं!” उसने सुनील की ओर देखते हुए कहा, “बैठे बैठे औरतों वाली मैगज़ीन पढ़ती रहनी है!”
अपनी माँ की शिकायत पर सुनील ने आँखें नचाई!
शाबाशकाजल ने उसकी हरकत पर एक मीठी सी डाँट लगाई, “अपनी घर गृहस्थी जमाएगा, तो सब काम अपनी बीवी पर छोड़ कर ठाठ से बैठा रहेगा, या उसकी मदद भी करेगा?”
काजल की बात पर सुनील की नज़र तुरंत माँ पर पड़ी, और माँ की नज़र सुनील पर!
दोनों ने यह नहीं देखा कि काजल ने दोनों को एक दूसरे को ऐसे देखते हुए देख लिया है। उसी क्षण काजल को सब समझ में आ गया। वो मन ही मन मुस्कुराई। लेकिन उसने ऐसी एक्टिंग करी कि उन दोनों को पता न चले। उसने जल्दी जल्दी सब सामान जमाए, अपनी कमर में साड़ी का पल्लू खोंसा, और काम करने माँ के बगल आ गई। और तब, उसने भी पहली बार माँ के मस्तक को देखा,
“दीदी,” काजल ने प्रसन्न हो कर, उत्सुकता से माँ की ओर देखा, “ये सिंदूर?”
‘सिंदूर?’ माँ का माथा ठनका, ‘अरे हाँ! माँग में तो वो चमकदार सिन्दूर रचा बसा है!’
उनके दिमाग में ये बात आई ही नहीं कि घर के सभी सदस्यों को उनका ये बदला हुआ रूप साफ़ दिखाई दे जाएगा!
अपनी चोरी पकड़े जाने पर माँ को लगा कि जैसे उनको चक्कर आ रहा है, और वो गिर पड़ेगी। दोपहर का खाना पकाने की जल्दबाजी और उत्साह में वो अपने माथे से सिंदूर पोंछना ही भूल गई थी। लेकिन सच बात तो यह थी कि अगर वो सिन्दूर मिटाने भी चलती, तो भी न मिटा पाती। यह उनके सुहागिन होने का अपवित्रीकरण हो जाता। है न? सुनील ने उनकी माँग में सिंदूर लगाकर उनको फिर से ‘सौभाग्यवती’ बना दिया था, और अब उसी सिन्दूर को मिटा कर वो वापस ‘विधवा’ वाली स्थिति में नहीं जा सकती थी। यह असंभव था! यह सिंदूर तो अब उनके माथे में ही रहने वाला है।
लेकिन फिर भी उनका हाथ उसको पोंछने के लिए उठ ही गया।
“वो... वो... वो... मैं…” माँ ने हकलाते हुए कहा।
वो सिन्दूर लगाने के पीछे कोई कहानी गढ़ने की व्यर्थ कोशिश कर रही थीं। लेकिन कोई कहानी दिमाग में आई ही नहीं। माँ ऐसी थी ही नहीं कि वो झूठ बोल पाती! चालाकी, छल - यह सब उनको आता ही नहीं था।
माँ को इस मुसीबत से छुटकारा दिलाया लतिका ने,
“मम्मा, आपकी माँग में सिन्दूर बहुत अच्छा लगता है!” लतिका ने बाल-सुलभ भोलेपन से कहा, “आप हमेशा लगाया करिए!”
बड़ी समझदार निकली लतिकावैसे लतिका को समझ में आ रहा था कि उसकी मम्मा ने आज सिंदूर क्यों रचाया हुआ है! उसके दादा ने ही तो बताया था कि उनको उसकी मम्मा से बहुत प्यार है, और वो उनसे शादी करना चाहते हैं! जब लतिका ने यह बात सुनी तो वो ख़ुशी से फूली न समाई - मम्मा से अच्छी बोऊ-दी उसको और कहाँ मिलती? और तो और, वो अपनी क्लास में पहली लड़की होने वाली थी जिसकी भाभी आने वाली थी! उसकी सब सहेलियों और दोस्तों के केवल चाचियाँ, मामियाँ ही थीं! भाभी किसी के पास नहीं!
“हाँ! सही तो कह रही है पुचुकी!” काजल ने कहा, और सिन्दूर पोंछने के लिए माँ का उठा हुआ हाथ पकड़ते हुए - उनको सिन्दूर पोंछने से रोकते हुए - बोली, “बहुत सुन्दर लग रही हो… लगा रहने दो!” काजल ने मुस्कुराते हुए कहा, “सच में! ऐसे बहुत अच्छा लग रहा है... लगाए रखा करो सिन्दूर! मिटाना मत! ऐसा सजा हुआ माथा, बहुत अच्छा लगता है!”
हम्म्म दिल से आत्मा की डोरी से बंध जो गईफिर काजल ने बात थोड़ी पलट दी, “लेकिन तुम खाना क्यों पका रही हो? देर हुई है, लेकिन इतनी देर भी नहीं हुई है... तुम बैठो, मैं कर देती हूँ न! तुम आराम करो।”
माँ रसोई नहीं छोड़ना चाहती थीं, क्योंकि वो अपने पति के लिए खाना पका रही थीं। लेकिन वो क्या कह सकती थीं? आमतौर पर माँ रसोई में केवल कभी-कभी ही काजल की मदद के लिए आती थीं।
उधर काजल ने चूल्हों पर पक रहे व्यंजनों के बर्तनों को एक एक कर के खोला, और देख देख कर कहने लगी, “अरे वाह! क्या बात ही भई! दम आलू? आय हाय! मस्त! और ये क्या है... वाह... लाबरा? और... गोटा शेडो...? वाह वाह! क्या बात है दीदी! आज तो सब बंगाली डिशेज़! और इसमें क्या है... पुलाव! वाह! आज तो मस्त पार्टी है दीदी!”
उसने एक एक कर के सभी व्यंजनों को चखा और कहा, “वाह! वाह! बहुत बढ़िया स्वाद है, दीदी! तुमने तो पहली ही बार में बिलकुल परफेक्ट स्वाद निकाल दिया! अब तुम बैठो, बाकी काम मैं देख लूंगी! ठीक है?”
माँ से विरोध में कुछ कहते नहीं बना, और वो बड़ी अनिच्छा से रसोई से बाहर निकली के अपने कमरे में आ गई। कमरे के अंदर लगे आईने में उसने खुद को देखा। वो खुश लग रही थी... खुश नहीं, बहुत खुश! उनके मन में एक घबराहट तो थी, लेकिन वो बहुत खुश थीं। उनका चेहरा प्रसन्नता और सुख से दीप्तिमान था। सुनील ने उनके साथ जो कुछ भी किया था, उसने वास्तव में माँ का व्यक्तित्व ही बदल दिया था। वो एक नई सुमन की तरह महसूस कर रही थी। वो सुमन जो एक बूढ़ी दादी नहीं थी, बल्कि एक जवान आदमी की जवान बीवी थी! वो सुमन जो अपने भविष्य को लेकर आशान्वित भी थी, और उसके लिए तत्पर भी! घबराहट इस बात पर कि काजल को उनके और सुनील के बारे में बताना आवश्यक था।
माँ ने अपने माथे पर रचे सिंदूर को देखा, और उसे पोंछने को हुईं। लेकिन वो पोंछ न सकीं।
यार यह हिलसा हमारा भी सबसे प्रिय व्यंजन हैयह उनके एक नए जीवन का उपहार था, जो उनके सुनील ने अपने हाथों से दिया था। माँ मुस्कुराई। उन्होंने फैसला किया कि सुनील जब बताना चाहें, तब बताएँ, लेकिन वो काजल को इस नए घटनाक्रम के बारे में सब कुछ बता देंगी - सब कुछ, सच सच! अभी!
माँ यह सब सोच ही रही थीं कि लतिका उनके उनके कमरे में चली आई, और उनसे लिपटते हुए बोली,
“मम्मा, यू आर लुकिंग सो ब्यूटीफुल एंड सो डिलिशियस!”
“हा हा!” माँ उसकी भोली बात पर हँसने लगीं, “इधर आ डिलिशियस की बच्ची!” कह कर माँ ने उसको अपने आलिंगन में भर कर उसको फिर से कई बार चूमा।
कल तक वो लतिका को अपनी पुत्री के समान पाल रही थीं - आज वो पुत्री उनकी ‘ननद’ बन गई थी, और वो उसकी मम्मा नहीं, बल्कि बोऊ-दी बन गईं थीं! बोऊ-दी मतलब भाभी! लेकिन वो इस परिवर्तन के बारे में अभी लतिका को नहीं बता सकती थीं - फिलहाल नहीं! रोज़ की ही भांति वो लतिका के स्कूली कपड़े उतारने लगीं।
“मम्मा, आज आप थोड़ी डिफरेंट लग रही हैं!”
“डिफरेंट? कैसे?”
“आई डोंट नो! यू सीम वैरी हैप्पी!”
बच्चों में सच्चाई होती है - वो ऐसी चीज़ें देख पाते हैं, जो हम लोग बड़े हो कर नहीं देख पाते। वो अपनी माताओं को केवल उनकी महक से भी पहचान लेते हैं। वो वयस्क लोगों को उनके बहुत बचपने की तस्वीरों से पहचान लेते हैं। लतिका भी अपनी मम्मा में हुए परिवर्तन को आसानी से देख सकती थी - माँ चाहे जितना भी छुपाएँ!
“मेरी बिटिया - तुझको देख कर तो मैं हमेशा ही खुश हो जाती हूँ! तो आज क्या नया है?” कह कर माँ ने उसके पेट में गुदगुदी लगाई, लेकिन मन ही मन वो उस छोटी सी बच्ची की पारखी नज़र की प्रशंसा भी करने लगीं।
लतिका खिलखिला कर हँसने लगी।
लतिका को माँ की खुशबू बहुत अच्छी लगती थी - जब भी वो माँ के आस पास होती, वो बस उनसे चिपकी रहती। एक तरफ माँ उसके स्कूली कपड़े उतार रही थीं, और दूसरी तरफ़ लतिका माँ की ब्लाउज के बटन खोल रही थी। यह उनका रोज़ का नियम था। स्कूल से आ कर उसको माँ के सीने को मुँह में ले कर ही आराम मिलता था। वो ही उसका परम सुख था। उसके बाद ही उसका भोजन, पढ़ाई या फिर खेल होता था।
कुछ ही देर में लतिका के सारे कपड़े उतर गए, और माँ के स्तन भी स्वतंत्र हो गए।
“मम्मा, व्हाट शुड आई वियर टुडे?”
“डू यू वांट टू वियर एनीथिंग?”
लतिका ने मुस्कुराते हुए ‘न’ में सर हिलाया!
माँ हँस पड़ीं - यह सारी दिनचर्या रोज़ रोज़ ही दोहराई जाती - लेकिन फिर भी माँ को उसके भोलेपन पर हँसी आती! और लतिका उनकी गोदी में बैठ कर उनके स्तन से जा लगी! आज माँ सोचे बिना न रह सकीं कि अगर उनको दूध उतर रहा होता, तो उनकी दोनों बच्चियों को और भी अधिक सुख मिलता।
करीब दस मिनट के बाद माँ ने काजल को अपने कमरे में प्रवेश होते हुए सुना। दोपहर का भोजन पकाते समय और दोपहर का भोजन करने के बाद, साथ में बैठ कर गप-शप करना उनकी दोपहर की एक रस्म बन गई थी। तो आज भी कोई अलग बात नहीं थी। माँ द्वारा अपनी पुत्री को स्तनपान कराते देख कर काजल मुस्कुरा दी, जवाब में माँ भी मुस्कुरा दी।
“दीदी, क्या बढ़िया बंगाली डिशेज़ पकाई हैं आज तुमने!”
माँ फिर से मुस्कुराई! उनको खुद पर गर्व महसूस हुआ। काजल पाक-कला में अत्यंत निपुण थी, और अगर वो उसकी प्रशंसा कर रही थी, तो उसमे सच्चाई तो थी! काजल आ कर माँ के सामने बैठ गई, और एक दबी हुई, षड़यंत्रकारी आवाज में बोली,
“अब जल्दी से हिल्सा भी पकाना सीख लो... मेरे सुनील को बहुत पसंद है!”
कमाल हो गया जी कमाल हो गयाकाजल ने जैसे ही यह कहा, माँ का जी धक् हो गया, और उनका कलेजा मुँह में आ गया। वो अचानक ही नर्वस हो गईं, और उसका चेहरा अजीब सी बेचैनी से तपने लगा।
तो किसी तरह काजल ने माँ के बदले हुए व्यवहार के ‘असली कारण’ को समझ ही लिया था। उसके माथे में सिंदूर था, और वो बंगाली खाना बना रही थीं, जो सुनील को पसंद था। यह बदला हुआ व्यवहार और क्या संकेत कर सकता है?
माँ ने शर्म से अपना सर और आँखें नीची कर लीं।
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Bahut hi badhiya update
Or is update main keval prem ka ras chalak rha hai. Joki bahut Madhur hai
ह्म्म्म्म अब लुका-छिपी और शरारत भी शुरू
दिल ए बेकरार
मुश्किल ए इंतजार
हाय यह प्यार
हाँ बहुत कुछ
हा हा हा
नालायक
शाबाश
बड़ी समझदार निकली लतिका
हम्म्म दिल से आत्मा की डोरी से बंध जो गई
यार यह हिलसा हमारा भी सबसे प्रिय व्यंजन है
यहाँ ओड़िशा में एक कहावत मशहूर है
नौकरी करो पुलिसी
रोज खाओ हिल्सी
कमाल हो गया जी कमाल हो गया
पर अधूरा हाल ए दिल रह गया
कोई ना अगले अपडेट में सब सेट हो जाएगा
प्रिय मित्र, मेरा यह छोटा सा प्रयास आपको इतना पसंद आया, यह जान कर हृदय आनंदित हो गया। ऐसा फीडबैक जब मिलता है तो बस, "सुख" की ही अनुभूति होती है। बहुत बहुत धन्यवाद मित्रवासना, जिस वजह से इस कहानी को पढ़ना शुरू किया था, जो शीघ्र ही आनंद में परिवर्तित हो गया। और आनंद भी ऐसा कि जिसकी कोई सीमा नहीं, एक दम भर के बहने लगता था मन किंतु अब यह आनंद सबसे उच्चकोटि की भावना में तब्दील हो गया है, सुख, अब पढ़कर सुख की अनुभूति होती है। और मैं आपको यह भी बताना चाहूँगा लेखकजी कि इस कहानी की वजह से मेरी सोच में भी बदलाव आया है। आप सुखी रहें, स्वस्थ्य रहें और यूँ ही लिखते रहें। आभार
बिल्कुल सहीप्यार करने का मज़ा आता चुपके चुपके या फिर खुल्लमखुल्ला!
इन दोनों के बीच सब कन्फ्यूज्ड मामला होता है!
भाई भले ही बंगालीयों का मछली प्रेम जग जाहिर होबहुत समझदार!
बंगालियों का मछली प्रेम जग-जाहिर है। सुमन शाकाहारी है; इसलिए उसको अपने होने वाले पति की पसंद की जानकारी होनी चाहिए!
हा हा हाअधूरा कहाँ है?!! इतने सारे अपडेट्स दिए तो हैं उसके बाद!
इससे सिद्ध होता है कि आप मेरे सारे अपडेट्स नहीं पढ़ते!