- 4,190
- 23,418
- 159
Last edited:
इस सुंदर उपहार के लिए कोटि-कोटि धन्यवाद। रचना, काजल, गैबी, देवयानी और अब सुमन, इन सब की प्रेम लीला पढ़ कर न जाने कितने ही जज़्बात उमड़े। हर बार दिल प्यार से भर कर, फूल के गुब्बारा हो जाता है। ऊपर से भोली सी सुमन के साथ ये अंतरंगता भरे लम्हे, उसके साथ डर्टी टॉक करते समय उसकी योनि एवं गुदा को सहलाना, ओम्फौ, सच में आनंद से मृत्यु हो गई! (वैसे बड़ी जलन भी होती है सुनील से)
लेखक श्रीमान avsji और सब साथी पाठकों को दिवाली की अनेकों शुभकामनाएं।
भाई बंधु मित्र
आपको पवित्र दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं
तो सुमन अब पूरी तरह से एकाकार हो चुकी है सुनील के साथ। उसकी पसंद का खाना उसकी जिद पूरी करना बिल्कुल एक सम्पूर्ण भारतीय नारी की तरह। काजल भी एक दम कर्मचंद है हर छोटी से छोटी बात पकड़ लेती है। अब देखना है की सुनील अमर और काजल को कैसे मनाता है। शानदार अपडेट और दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं आपको और आपके परिवार को।अंतराल - विपर्यय - Update #7
एक बार पुनः, सभी प्रिय पाठकों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
कल छोटी दीपावली के शुभ अवसर पर प्रिय विराट कोहली और प्रिय हार्दिक पंड्या ने असंभव को संभव कर दिखाया था, उससे मन को अत्यंत प्रसन्नता मिली!
और आज तो है ही ख़ुशी का अवसर! तो मैंने सोचा कि एक छोटा सा अपडेट और लिख दूँ!
पढ़िए और आनंद लीजिए!
अंतराल - विपर्यय - Update #7
सुनील ने माँ के सामने ही अपने कपड़े पहने, और फिर उनको चूम कर बाहर निकल गया। उसके जाने के कोई पंद्रह मिनट बाद जब माँ फिर से अपने कपड़े पहन कर, अपने कमरे से निकलीं, तो उनके चेहरे पर संतोष की एक निश्चित चमक थी - ऐसी, कि जिसको कोई भी देख सकता था। वो खुशी से झूम रही थीं! भले ही प्रथम सम्भोग के कारण उनको चलने फिरने में थोड़ी तकलीफ़ हो रही थी, लेकिन उनको खुद को ऐसा लग रहा था कि जैसे उनके पाँव ज़मीन पर ही नहीं पड़ रहे थे। वो इस समय रंगीन सपनों के उड़नखटोले पर सवार थीं। आज वो फिर से एक विवाहित महिला बन गई थीं। वैधव्य का बदरंग बोझ उनके कंधे से उतर गया था, और वो अब फिर से अपने जीवन का खुले रूप से आनंद ले सकती थीं। वो अब उन इच्छाओं को भी पूरा करने की राह देख रही थीं, जो उन्होंने दशकों से दबा रखी थीं। उसके पास अब एक नया जीवनसाथी था, और उसने उनसे वायदा किया था, कि वो उनके सभी सपनों को पूरा करेगा!
किसी को भी ऐसा ‘दूसरा मौका’ मिलना मुश्किल है। किस्से कहानियों में ही यह सब सुनने को आता है। लेकिन न जाने किस शुभ कर्म के कारण उनको यह ईश्वरीय प्रसाद मिला था।
‘बहुत-बहुत धन्यवाद, मेरे ईश्वर! बहुत-बहुत धन्यवाद!’ माँ मन ही मन कई बार ईश्वर का धन्यवाद कर चुकी थीं।
अपने कमरे से वो सीधा रसोई में पहुंचीं। आज वो अपने पति के लिए खुद खाना बनाएँगीं!
सुनील ने उनको रसोई की तरफ जाते हुए देखा और मुस्कुरा दिया। माँ भी उसको देख कर मुस्कुराई! कुछ ही देर पहले की अंतरंग यादें ताज़ा हो आईं। आज उन्होंने सम्भोग किया था - दो बार! और दोनों ही बार उनको बड़ा ही अद्भुत अनुभव हुआ था! सुनील उनसे प्यार करता था, और उसने पूरी ईमानदारी और प्रमाणिकता से माँ को अपना प्यार दिखाया। सबसे अच्छी बात यह हुई कि माँ ने भी उसके प्यार पर बिना किसी पूर्वाग्रह के, सकारात्मक प्रतिक्रिया दी थी। अब दोनों का जीवन एक साथ हो गया था। अब दोनों को एक साथ अपने भविष्य की सुध लेनी थी।
सुनील माँ का रूप देख कर अंदर ही अंदर आनंदित हो रहा था, और उन पर मुग्ध हो रहा था। अपार गुणों से परिपूर्ण, ये सौंदर्य की देवी, अब उसकी पत्नी थी! उसकी सुमन इस रंगीन साड़ी में कितनी सुंदर लग रही थी! बहुत ही खूबसूरत! बहुत ही आकर्षक! बहुत ही जवान! कुछ और भी था जो माँ की सुंदरता में कई गुणा इजाफा कर रहा था - और वो था नारंगी रंग का चमकदार सिंदूर, जो उनकी माँग को सुशोभित कर रहा था। सच में - माँ के रूप की शोभा एक सुहागिन के रूप में सौ गुणा बढ़ गई थी! उनको देख कर सुनील के मन में संतुष्टि वाला भाव आया। अपनी सुमन को उस रूप में देखने की उसकी तमन्ना पूरी हो गई - और उसको इस बात का मान था कि उसके कारण सुमन की माँग में रौनक लौट आई थी।
सुनील ने महिलाओं वाली कुछ पत्रिकाएँ उठाईं, और माँ के लिए गहनों की तलाशने उनके पन्ने खंगालने लगा - विशेष रूप से मंगलसूत्र और कुछ अन्य छोटे गहने, जो वो अपनी सामर्थ्य के हिसाब से वो माँ के लिए खरीद सकता था। दूसरी ओर माँ खाना पकाने में व्यस्त हो गईं। माँ वैसे तो इन दिनों घर का काम ज्यादा नहीं करती थीं, क्योंकि काजल उन्हें कभी कुछ करने ही नहीं देती थी, और पूरे घर की ज़िम्मेदारी खुद पर ही ले रखी थी। लेकिन आज बात कुछ अलग थी। माँ सुनील के लिए अपना प्यार दिखाना चाहती थीं, और अपने प्रिय के लिए खाना पकाने से बेहतर प्यार जताने का और तरीका क्या हो सकता है?
खाना पकाते हुए माँ ने कई बार सुनील को अपनी तरफ़ देखते हुए देखा। वो रह रह कर रोमांटिक गीत गुनगुनाता, मैगज़ीन के पन्ने पलटता, और माँ को देखता। उसकी आँखें चंचल थीं, लेकिन ईमानदार थीं। सुनील के देखने का अंदाज़ ऐसा था कि माँ को उसमें अपने लिए प्रशंसा का संकेत दिख रहा था। माँ भी उत्तर में उसको मीठी मुस्कान देती रहीं। ऐसा दूर दूर का प्यार कितनी देर चलता, इसलिए एक समय सुनील माँ के पीछे से आया और पीछे से ही उसने उनको अपने आलिंगन में भर लिया। कुछ ही समय में वो रोमांटिक आलिंगन, एक कामुक आलिंगन में बदल गया, क्योंकि उसके हाथ माँ के स्तनों को दबाने कुचलने लगे। वो माँ के ब्लाउज को खोलना चाहता था, लेकिन माँ ने उससे ऐसा न करने का अनुरोध किया... काजल और बच्चे अब किसी भी क्षण वापस आ सकते थे। इतनी देर हो गई थी कि अब वाकई किसी भी क्षण उनका आगमन हो सकता था।
“नहीं नहीं... अभी नहीं!”
“मैं क्या करूँ दुल्हनिया!” सुनील ने मज़ाकिया हताशा से कहा, “मेरा मन होता है कि मैं इन्हें हमेशा देखता रहूँ, चूमता रहूँ, और प्यार करता रहूँ!”
माँ ने मुस्कुराते हुए उसकी बात सुनी, और फिर उसके गले में गलबैयाँ डाल कर प्रेम से बोलीं, “आप जानते हैं न कि मैं आपको किसी बात के लिए मना नहीं कर सकती! और न ही करूँगी! मैं आपकी हूँ अब! लेकिन अम्मा कभी भी आ सकती हैं न? इसलिए!”
माँ की बात सही थी, लेकिन वो बेचारा भी क्या करे? कुछ सोच कर सुनील ने खींसें निपोरते हुए कहा, “बस एक बार दिखा दो न!”
माँ का दिल उसकी इस बात पर पसीज गया। तुरंत। उन्होंने झटपट अपने ब्लाउज के बटन खोलने शुरू कर दिए, और कुछ ही क्षणों में उनके दोनों स्तन सुनील के भोगने हेतु प्रस्तुत थे। सुनील ने कोई पाँच मिनट तक दोनों स्तनों को बारी बारी पिया।
“बस, इतनी सी तो बात थी! उसके लिए भी!” सुनील ने नकली शिकायत करी।
माँ ने हँसते हुए कहा, “मेरे साजन, एक बार अम्मा को हमारे रिश्ते के बारे में मालूम हो जाए, फिर आप जो कहेंगे, मैं करूँगी!”
“पक्की बात?”
“पूरी तरह!”
“हम्म! अच्छा, मैं ये ब्रा अपने पास रखूँगा!”
“क्यों?”
“अरे बस! यूँ ही! मेरा मन!”
“ठीक है!” माँ ने हँसते हुए कहा, और अपनी ब्रा उतार कर सुनील को दे दी।
“तेरी कच्छी भी!”
“हे भगवान्!”
“जल्दी जल्दी!”
“आप कोई फ्रेश चड्ढी ले लीजिए न!”
“ना!” सुनील ने बदमाशी से कहा, “साड़ी ब्लाउज़ के नीचे नंगी चाहिए तू!”
“ओफ़्फ़ोह!” माँ ने हथियार डालते हुए अपनी साड़ी के नीचे अपनी चड्ढी उतार दी, “आप और आपकी ज़िद!”
और फिर अपनी कच्छी सुनील को पकड़ाते हुए बोलीं, “अब खुश हैं आप, मेरे स्वामी?”
“बहुत खुश!” सुनील ने कहा, और कुछ देर सोचा और फिर कहा, “दुल्हनिया, आज रात में मैं तुमको जम कर चोदूँगा!”
“और मैं अपने हैंडसम पति से इससे कम की उम्मीद भी नहीं करती।” माँ ने भी अदा से जवाब दिया।
माँ ने सुनील की पैंट की ज़िप खोली, उसके खड़े हुए लिंग को बाहर निकाला और उस पर एक कामुक चुम्बन दिया। सुनील तत्क्षण ही उत्साह, रोमांच, और कामुकता के शिखर पर पहुँच गया। माँ उसकी हालत पर हँसी, और फिर वापस खाना पकाने में व्यस्त हो गई। लेकिन उनका दिल यह सोचकर ज़ोर से धड़कने लगा कि सुनील आज रात में उनका खज़ाना कैसे लूटेगा!
**
जब काजल, लतिका और आभा के साथ उनके स्कूल से वापस लौटी, तो उसके हाथों में खरीदारी किए हुए घर के कई सामान भी थे। काजल के पास घर की चाबी रहती ही थी। उसने जैसे ही दरवाज़ा खोला, उसको स्वादिष्ट भोजन की सुगंध आई! तीनों जने सीधा रसोई में पहुँच गए, जहाँ उन्होंने माँ को खाना बनाते हुए पाया। डाइनिंग टेबल पर सुनील कोई पत्रिका पढ़ने में व्यस्त था, और माँ खाना पकाने में!
‘कुछ तो था जो बदला हुआ लग रहा है!’ काजल के मन में सबसे पहला ख़याल यही आया।
“मम्मा!” लतिका की आवाज़ सुन कर माँ चौंकीं।
लतिका दौड़ती हुई आई, और रोज़ की ही भांति अपनी मम्मा से लिपट गई!
“आ गई मेरी बिटिया रानी?” कह कर माँ ने उसके दोनों गालों और मुँह पर चुम्बन दिया।
आभा भी फुदकते हुए आई और अपनी दादी से लिपट गई, “ओ मेरी गुड़िया, ओ मेरी मिष्टी!” कह कर माँ ने उसके भी दोनों गालों और मुँह पर चुम्बन दिया। सुनील माँ को दोनों बच्चों को ऐसे लाड़ करते देख कर गर्व से मुस्कुराया।
“अरे वाह दीदी... कितनी बढ़िया सी सुगंध आ रही है खाने की!” रसोई में प्रवेश करते ही काजल ने घोषणा की।
माँ उत्तर में बड़े उत्साह से मुस्कुराईं, “बस, बन ही गया सब कुछ!” माँ ने कहा, “तुम सभी थोड़ा आराम कर लो! कुछ ही देर में खाना सजा दूँगी!”
“सॉरी दीदी, बहुत देर हो गई आज! स्कूल में इतनी देर तक बैठाये रखा कि क्या कहें! वहाँ के जंजाल से जब छूटे, तो सोचा कि घर के लिए कुछ चीजें, कुछ समान खरीदती चलूँ... इस नालायक से यह सब घर के काम तो होते नहीं!” उसने सुनील की ओर देखते हुए कहा, “बैठे बैठे औरतों वाली मैगज़ीन पढ़ती रहनी है!”
अपनी माँ की शिकायत पर सुनील ने आँखें नचाई!
काजल ने उसकी हरकत पर एक मीठी सी डाँट लगाई, “अपनी घर गृहस्थी जमाएगा, तो सब काम अपनी बीवी पर छोड़ कर ठाठ से बैठा रहेगा, या उसकी मदद भी करेगा?”
काजल की बात पर सुनील की नज़र तुरंत माँ पर पड़ी, और माँ की नज़र सुनील पर!
दोनों ने यह नहीं देखा कि काजल ने दोनों को एक दूसरे को ऐसे देखते हुए देख लिया है। उसी क्षण काजल को सब समझ में आ गया। वो मन ही मन मुस्कुराई। लेकिन उसने ऐसी एक्टिंग करी कि उन दोनों को पता न चले। उसने जल्दी जल्दी सब सामान जमाए, अपनी कमर में साड़ी का पल्लू खोंसा, और काम करने माँ के बगल आ गई। और तब, उसने भी पहली बार माँ के मस्तक को देखा,
“दीदी,” काजल ने प्रसन्न हो कर, उत्सुकता से माँ की ओर देखा, “ये सिंदूर?”
‘सिंदूर?’ माँ का माथा ठनका, ‘अरे हाँ! माँग में तो वो चमकदार सिन्दूर रचा बसा है!’
उनके दिमाग में ये बात आई ही नहीं कि घर के सभी सदस्यों को उनका ये बदला हुआ रूप साफ़ दिखाई दे जाएगा!
अपनी चोरी पकड़े जाने पर माँ को लगा कि जैसे उनको चक्कर आ रहा है, और वो गिर पड़ेगी। दोपहर का खाना पकाने की जल्दबाजी और उत्साह में वो अपने माथे से सिंदूर पोंछना ही भूल गई थी। लेकिन सच बात तो यह थी कि अगर वो सिन्दूर मिटाने भी चलती, तो भी न मिटा पाती। यह उनके सुहागिन होने का अपवित्रीकरण हो जाता। है न? सुनील ने उनकी माँग में सिंदूर लगाकर उनको फिर से ‘सौभाग्यवती’ बना दिया था, और अब उसी सिन्दूर को मिटा कर वो वापस ‘विधवा’ वाली स्थिति में नहीं जा सकती थी। यह असंभव था! यह सिंदूर तो अब उनके माथे में ही रहने वाला है।
लेकिन फिर भी उनका हाथ उसको पोंछने के लिए उठ ही गया।
“वो... वो... वो... मैं…” माँ ने हकलाते हुए कहा।
वो सिन्दूर लगाने के पीछे कोई कहानी गढ़ने की व्यर्थ कोशिश कर रही थीं। लेकिन कोई कहानी दिमाग में आई ही नहीं। माँ ऐसी थी ही नहीं कि वो झूठ बोल पाती! चालाकी, छल - यह सब उनको आता ही नहीं था।
माँ को इस मुसीबत से छुटकारा दिलाया लतिका ने,
“मम्मा, आपकी माँग में सिन्दूर बहुत अच्छा लगता है!” लतिका ने बाल-सुलभ भोलेपन से कहा, “आप हमेशा लगाया करिए!”
वैसे लतिका को समझ में आ रहा था कि उसकी मम्मा ने आज सिंदूर क्यों रचाया हुआ है! उसके दादा ने ही तो बताया था कि उनको उसकी मम्मा से बहुत प्यार है, और वो उनसे शादी करना चाहते हैं! जब लतिका ने यह बात सुनी तो वो ख़ुशी से फूली न समाई - मम्मा से अच्छी बोऊ-दी उसको और कहाँ मिलती? और तो और, वो अपनी क्लास में पहली लड़की होने वाली थी जिसकी भाभी आने वाली थी! उसकी सब सहेलियों और दोस्तों के केवल चाचियाँ, मामियाँ ही थीं! भाभी किसी के पास नहीं!
“हाँ! सही तो कह रही है पुचुकी!” काजल ने कहा, और सिन्दूर पोंछने के लिए माँ का उठा हुआ हाथ पकड़ते हुए - उनको सिन्दूर पोंछने से रोकते हुए - बोली, “बहुत सुन्दर लग रही हो… लगा रहने दो!” काजल ने मुस्कुराते हुए कहा, “सच में! ऐसे बहुत अच्छा लग रहा है... लगाए रखा करो सिन्दूर! मिटाना मत! ऐसा सजा हुआ माथा, बहुत अच्छा लगता है!”
फिर काजल ने बात थोड़ी पलट दी, “लेकिन तुम खाना क्यों पका रही हो? देर हुई है, लेकिन इतनी देर भी नहीं हुई है... तुम बैठो, मैं कर देती हूँ न! तुम आराम करो।”
माँ रसोई नहीं छोड़ना चाहती थीं, क्योंकि वो अपने पति के लिए खाना पका रही थीं। लेकिन वो क्या कह सकती थीं? आमतौर पर माँ रसोई में केवल कभी-कभी ही काजल की मदद के लिए आती थीं।
उधर काजल ने चूल्हों पर पक रहे व्यंजनों के बर्तनों को एक एक कर के खोला, और देख देख कर कहने लगी, “अरे वाह! क्या बात ही भई! दम आलू? आय हाय! मस्त! और ये क्या है... वाह... लाबरा? और... गोटा शेडो...? वाह वाह! क्या बात है दीदी! आज तो सब बंगाली डिशेज़! और इसमें क्या है... पुलाव! वाह! आज तो मस्त पार्टी है दीदी!”
उसने एक एक कर के सभी व्यंजनों को चखा और कहा, “वाह! वाह! बहुत बढ़िया स्वाद है, दीदी! तुमने तो पहली ही बार में बिलकुल परफेक्ट स्वाद निकाल दिया! अब तुम बैठो, बाकी काम मैं देख लूंगी! ठीक है?”
माँ से विरोध में कुछ कहते नहीं बना, और वो बड़ी अनिच्छा से रसोई से बाहर निकली के अपने कमरे में आ गई। कमरे के अंदर लगे आईने में उसने खुद को देखा। वो खुश लग रही थी... खुश नहीं, बहुत खुश! उनके मन में एक घबराहट तो थी, लेकिन वो बहुत खुश थीं। उनका चेहरा प्रसन्नता और सुख से दीप्तिमान था। सुनील ने उनके साथ जो कुछ भी किया था, उसने वास्तव में माँ का व्यक्तित्व ही बदल दिया था। वो एक नई सुमन की तरह महसूस कर रही थी। वो सुमन जो एक बूढ़ी दादी नहीं थी, बल्कि एक जवान आदमी की जवान बीवी थी! वो सुमन जो अपने भविष्य को लेकर आशान्वित भी थी, और उसके लिए तत्पर भी! घबराहट इस बात पर कि काजल को उनके और सुनील के बारे में बताना आवश्यक था।
माँ ने अपने माथे पर रचे सिंदूर को देखा, और उसे पोंछने को हुईं। लेकिन वो पोंछ न सकीं। यह उनके एक नए जीवन का उपहार था, जो उनके सुनील ने अपने हाथों से दिया था। माँ मुस्कुराई। उन्होंने फैसला किया कि सुनील जब बताना चाहें, तब बताएँ, लेकिन वो काजल को इस नए घटनाक्रम के बारे में सब कुछ बता देंगी - सब कुछ, सच सच! अभी!
माँ यह सब सोच ही रही थीं कि लतिका उनके उनके कमरे में चली आई, और उनसे लिपटते हुए बोली,
“मम्मा, यू आर लुकिंग सो ब्यूटीफुल एंड सो डिलिशियस!”
“हा हा!” माँ उसकी भोली बात पर हँसने लगीं, “इधर आ डिलिशियस की बच्ची!” कह कर माँ ने उसको अपने आलिंगन में भर कर उसको फिर से कई बार चूमा।
कल तक वो लतिका को अपनी पुत्री के समान पाल रही थीं - आज वो पुत्री उनकी ‘ननद’ बन गई थी, और वो उसकी मम्मा नहीं, बल्कि बोऊ-दी बन गईं थीं! बोऊ-दी मतलब भाभी! लेकिन वो इस परिवर्तन के बारे में अभी लतिका को नहीं बता सकती थीं - फिलहाल नहीं! रोज़ की ही भांति वो लतिका के स्कूली कपड़े उतारने लगीं।
“मम्मा, आज आप थोड़ी डिफरेंट लग रही हैं!”
“डिफरेंट? कैसे?”
“आई डोंट नो! यू सीम वैरी हैप्पी!”
बच्चों में सच्चाई होती है - वो ऐसी चीज़ें देख पाते हैं, जो हम लोग बड़े हो कर नहीं देख पाते। वो अपनी माताओं को केवल उनकी महक से भी पहचान लेते हैं। वो वयस्क लोगों को उनके बहुत बचपने की तस्वीरों से पहचान लेते हैं। लतिका भी अपनी मम्मा में हुए परिवर्तन को आसानी से देख सकती थी - माँ चाहे जितना भी छुपाएँ!
“मेरी बिटिया - तुझको देख कर तो मैं हमेशा ही खुश हो जाती हूँ! तो आज क्या नया है?” कह कर माँ ने उसके पेट में गुदगुदी लगाई, लेकिन मन ही मन वो उस छोटी सी बच्ची की पारखी नज़र की प्रशंसा भी करने लगीं।
लतिका खिलखिला कर हँसने लगी।
लतिका को माँ की खुशबू बहुत अच्छी लगती थी - जब भी वो माँ के आस पास होती, वो बस उनसे चिपकी रहती। एक तरफ माँ उसके स्कूली कपड़े उतार रही थीं, और दूसरी तरफ़ लतिका माँ की ब्लाउज के बटन खोल रही थी। यह उनका रोज़ का नियम था। स्कूल से आ कर उसको माँ के सीने को मुँह में ले कर ही आराम मिलता था। वो ही उसका परम सुख था। उसके बाद ही उसका भोजन, पढ़ाई या फिर खेल होता था।
कुछ ही देर में लतिका के सारे कपड़े उतर गए, और माँ के स्तन भी स्वतंत्र हो गए।
“मम्मा, व्हाट शुड आई वियर टुडे?”
“डू यू वांट टू वियर एनीथिंग?”
लतिका ने मुस्कुराते हुए ‘न’ में सर हिलाया!
माँ हँस पड़ीं - यह सारी दिनचर्या रोज़ रोज़ ही दोहराई जाती - लेकिन फिर भी माँ को उसके भोलेपन पर हँसी आती! और लतिका उनकी गोदी में बैठ कर उनके स्तन से जा लगी! आज माँ सोचे बिना न रह सकीं कि अगर उनको दूध उतर रहा होता, तो उनकी दोनों बच्चियों को और भी अधिक सुख मिलता।
करीब दस मिनट के बाद माँ ने काजल को अपने कमरे में प्रवेश होते हुए सुना। दोपहर का भोजन पकाते समय और दोपहर का भोजन करने के बाद, साथ में बैठ कर गप-शप करना उनकी दोपहर की एक रस्म बन गई थी। तो आज भी कोई अलग बात नहीं थी। माँ द्वारा अपनी पुत्री को स्तनपान कराते देख कर काजल मुस्कुरा दी, जवाब में माँ भी मुस्कुरा दी।
“दीदी, क्या बढ़िया बंगाली डिशेज़ पकाई हैं आज तुमने!”
माँ फिर से मुस्कुराई! उनको खुद पर गर्व महसूस हुआ। काजल पाक-कला में अत्यंत निपुण थी, और अगर वो उसकी प्रशंसा कर रही थी, तो उसमे सच्चाई तो थी! काजल आ कर माँ के सामने बैठ गई, और एक दबी हुई, षड़यंत्रकारी आवाज में बोली,
“अब जल्दी से हिल्सा भी पकाना सीख लो... मेरे सुनील को बहुत पसंद है!”
काजल ने जैसे ही यह कहा, माँ का जी धक् हो गया, और उनका कलेजा मुँह में आ गया। वो अचानक ही नर्वस हो गईं, और उसका चेहरा अजीब सी बेचैनी से तपने लगा।
तो किसी तरह काजल ने माँ के बदले हुए व्यवहार के ‘असली कारण’ को समझ ही लिया था। उसके माथे में सिंदूर था, और वो बंगाली खाना बना रही थीं, जो सुनील को पसंद था। यह बदला हुआ व्यवहार और क्या संकेत कर सकता है?
माँ ने शर्म से अपना सर और आँखें नीची कर लीं।
............
तो सुमन अब पूरी तरह से एकाकार हो चुकी है सुनील के साथ। उसकी पसंद का खाना उसकी जिद पूरी करना बिल्कुल एक सम्पूर्ण भारतीय नारी की तरह। काजल भी एक दम कर्मचंद है हर छोटी से छोटी बात पकड़ लेती है। अब देखना है की सुनील अमर और काजल को कैसे मनाता है। शानदार अपडेट और दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं आपको और आपके परिवार को।