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आपने खूब मेहनत की है इस कहानी में।
नई कहानी कब तक शुरू क़र रहे हैं।
हा हा हाअंतराल - विपर्यय - Update #12
मैं ऑफिस में एक मीटिंग में बैठा हुआ था, जब मुझे काजल का फ़ोन आया।
काजल या घर का कोई भी सदस्य मुझे शाम चार बजे से पहले कभी भी फोन नहीं करता था। यह समझ लीजिए कि यह हमारा एक तरीके का अनकहा नियम था। मैं घर पर शाम चार बजे के बाद कॉल करता, और अगर मैं न कर पाता, तो घर से कोई भी मुझे चार बजे के बाद कॉल कर देता। उन कॉल्स में भी सब सामान्य बातें ही होती थीं, जैसे कि काजल या माँ पूछतीं कि कब तक आ रहे हो; क्या खाओगे; शाम का क्या प्लान है; बच्चे पूछते कि हमारे लिए क्या लाओगे; या इसी तरह की सामान्य बातें, इत्यादि। इसी बात की आदत पड़ी हुई थी।
इसलिए जब दोपहर में, अपनी मोबाइल की घंटी बजी, और उसकी स्क्रीन पर ‘Home’ फ़्लैश होता हुआ देखा, तो उसको देखते ही मेरे दिमाग में कई सारे बुरे बुरे विचार कौंधने लगे... क्या हुआ होगा? सब ठीक तो था? क्या कोई इमरजेंसी थी? माँ तो ठीक है? काजल को चोट तो नहीं लग गई? आभा या लतिका को तो कुछ नहीं हो गया? सुनील ठीक है? इत्यादि!
मानव मस्तिष्क बहुत ही रोचक तरीके से काम करता है। असामान्य परिस्थिति से दो-चार होने पर हमारे दिमाग में जो सबसे पहले विचार आते हैं, वो केवल भय के ही होते हैं; आशंका के ही होते हैं! दिल बैठ गया। मैंने अनजान आशंका से डरते हुए फ़ोन उठाया।
इससे पहले कि मैं कुछ कह पाता, काजल बड़े उत्साह में चहकते हुए बोली,
“हेल्लो? अमर? हाँ, मैं काजल! सुनो, जल्दी से घर चले आओ। बहुत जरूरी काम है!”
जब मैंने काजल की उत्साहित और खुशनुमा आवाज सुनी तो मुझे बड़ी राहत मिली। मेरे चेहरे पर मुस्कान तैर गई - काजल थी ही ऐसी! मैं ‘हेलो’ भी नहीं बोल पाया, और काजल बड़े उत्साह से, और बिना किसी पृष्ठभूमिका के मुझे इतना सब बोल गई!
“बहुत जरूरी?” उसकी आवाज़ पर मेरे होंठों पर एक मुस्कान आ गई।
काजल की खुशी बेहद संक्रामक होती है। इस कारण से मैं खुद को मुस्कुराने से नहीं रोक सका।
“अरे सबसे जरूरी काम है! बस तुम आ जाओ... जितनी जल्दी हो सके आ जाओ! देर नहीं करना, और कोई बहाना नहीं करना! वैसे भी आज शनिवार है।”
“अरे काजल ... कुछ बताओ भी!”
“नहीं नहीं... बिलकुल भी नहीं! फ़ोन पर तो मैं कुछ भी नहीं कहूँगी! पूरे सरप्राइज का मजा खराब हो जाएगा!”
“अच्छा! तो मतलब कोई सरप्राइज है? बढ़िया!! अच्छा, कब आ जाऊँ?”
“अरे कहा तो! जितनी जल्दी हो सके, उतनी जल्दी।” काजल हँसते हुए बोली, “ज्यादा प्रश्न मत पूछो, नहीं तो गलती से मेरे मुँह से कुछ ऐसा निकल जाएगा कि सरप्राइज का मज़ा खराब हो जाएगा!”
“हा हा हा हा! ठीक है मेरी माँ! आता हूँ; जितना जल्दी हो सकता है, आता हूँ!”
“लव यू,” काजल ने कहा, “जल्दी आना! हम लोग राह देख रहे हैं!”
**
मुझे यथासंभव शीघ्रता से घर वापस आने को कह कर, काजल ने शाम को सुमन और सुनील की ‘चट मँगनी समारोह’ के लिए माँ को तैयार करने, और उनको सजाने पर अपना ध्यान केंद्रित किया। माँ को अपने कमरे में उसका इंतज़ार करने को बोल कर वो तैयारी का सामान एकत्र करने चली गई।
माँ अपने कमरे में बैठी हुई, अपनी ‘अम्मा’ की प्रतीक्षा कर रही थीं, कि कब वो आएँ, और उनको सजाएँ! अपने सभी पूर्वाग्रहों और आशंकाओं के विपरीत, माँ को अपनी यह नई भूमिका बड़ी आनंददायक लग रही थी। हम सभी में यह इच्छा होती है कि ‘काश, हम छोटे ही रहते!’, लेकिन फिर भी बड़े होने के लाभ का उन्माद छोड़ नहीं पाते। माँ को भी अपनी ‘बड़ी भूमिका’ छोड़ने में समय लगा, लेकिन काजल के व्यवहार ने साफ़ दिखा दिया कि उसकी बेटी बन कर वो बहुत आनंदित रहेंगी। माँ को आश्चर्यजनक रूप से बहुत अच्छा लग रहा था कि किसी और ने ‘उनके बड़े’ की भूमिका ले ली है! अब उनका पति था - जो अवश्य ही वो उनकी आधी उम्र का था, लेकिन उसका ओहदा उनके जीवन में उनसे बड़े का था। और फिर अब तो उनकी सास भी थी - ऐसी सास जो उनको हमेशा से ही बहुत प्यार करती आई थी। और अब वो ही सास उनको उनकी माँ का प्रेम दे रही थी। माँ को फिलहाल ऐसे ही व्यवहार की ज़रुरत थी; माँ को काजल की ज़रुरत थी; उनको फिर से युवा महसूस करने की ज़रुरत थी।
“उड़ी बाबा रे,” काजल ने कमरे में सामान के साथ प्रवेश करते हुए कहा, “बहुत सारे काम हैं आज तो! और समय भी नहीं है!” फिर माँ को देख कर प्रसन्नता से मुस्कुराई, “लेकिन अपनी बिटिया को अच्छे से तैयार करूँगी! एकदम परी के जैसे!”
“अम्मा, यह सब करने की क्या ज़रुरत है?” माँ ने शर्म से सिमटते हुए कहा - ऐसा नहीं है कि ये सारा अवधान उनको खराब लग रहा था। बस, उनको इसकी आदत नहीं थी।
“अरे, ऐसे कैसे? मेरे बेटे और बहू की सगाई है! कुछ तो करना चाहिए ही!” उसने एक गहरा निःश्वास छोड़ा, “और हम कर ही क्या रहे हैं? मेरे अरमान तो बड़े सारे हैं! देखो, क्या क्या पूरे हो पाते हैं!”
इतना कह कर काजल ने बादाम के तेल की थोड़ी थोड़ी मात्रा अपनी हथेलियों पर ली, और माँ के पूरे शरीर पर मलने लगी। बादाम का तेल त्वचा को मॉइस्चराइज़ करता है, और मेकअप के लिए एक अच्छा बेस देता है। माँ के स्तनों पर तेल मलते हुए काजल बोली,
“कल मालिश हो गई थी तेरी बूनियों की, इसलिए दाग़ गहरे नहीं हुए!”
कल की बातें याद कर के माँ शर्मा के मुस्कुरा दीं।
“अरे शरमा मत! मेरा सुनील तो इनका दीवाना लगता है! ख़ैर, इनका ही क्या, वो तो तेरा ही दीवाना है पूरा! और हो भी क्यों न? सारी हीरोइनें पानी भरती हैं मेरी बहू की सुंदरता के सामने!”
“मैं सच में सुन्दर लगती हूँ अम्मा?”
“देख बेटा - न तो कभी तूने, और न ही कभी मैंने - एक दूसरे से झूठ नहीं बोला! बोला है क्या? तो अब क्यों बोलेंगे?” काजल किसी गौरान्वित सास के लहज़े में बोली, “मेरी सारी उम्मीदें पूरी हो गई हैं तेरे आने से! कभी कभी जी में आता है कि ईश्वर से थोड़ा और माँग लेती! वो इच्छाएँ भी पूरी हो जातीं!”
वो उम्मीद से मुस्कुराई, “सच में! मन तो होता ही ऐसा है। उसके लालच का अंत कहाँ होता है? सच में बहू - मैं तो मरी जा रही हूँ कि अब जितनी जल्दी हो सके, तेरी और सुनील की शादी हो जाए! बस! फिर उसके बाद जल्दी से मैं अपनी गोद में अपने नन्हे-मुन्ने पोते-पोतियों को खिलाऊँ, उनको दुलार दूँ, उनको पाल पोस कर बड़ा करूँ! हो सके तो उनके भी बच्चे खेलते हुए देखूँ! अब तो बस यही इच्छा शेष है!”
माँ के गाल मारे लाज के सेब जैसे लाल हो गए।
“शरमा ले जितना मन हो!” काजल अपने पूरे फॉर्म में थी, “शर्माने से तेरा माँ बनना थोड़े ही रुकेगा!” काजल ने माँ के पेट पर बादाम तेल लगाते हुए कहा, “अब तो हमारे घर में भी खुशियाँ आने की बारी आई है! कहे देती हूँ - तुझे तीन बच्चे होंगे! हाँ! देख लेना तू!”
“हा हा हा! क्या अम्मा!” माँ खिलखिला कर हँसने लगीं, “तीन बच्चे! और इस उम्र में!”
“उम्र? ऐसी क्या उम्र हो गई? जवान लड़कियाँ पानी भरें तेरे सामने तू तो ऐसी है! और उम्र वाली बातें तो तू न ही किया कर!” काजल ने माँ की बात नकारते हुए कहा, “देवी माता की असीम कृपा है तुझ पर! सच कहती हूँ! बस तुम उन पर भरोसा रखो!” वो मुस्कुराई, “और सच कहूँ, मैं भी तो कितना चाहती हूँ कि तू फिर से माँ बन जाए! तेरी और बच्चे जनने की इच्छा मुझसे कभी नहीं छुपी - ख़ास कर एक बेटी की इच्छा।”
माँ ने एक गहरी साँस भरी। यह बात तो सच ही थी।
“जब तूने पहली बार पुचुकी को अपने सीने से लगा कर अपना दूध पिलाया था न, मैं तो तब ही समझ गई थी!” काजल ने धीरे से माँ के स्तन दबाए - उनके चूचक उभर आए, “तीन साल की ही तो थी वो तब!”
“अभी भी तो वो मेरे ही सीने से लग कर सोती है अम्मा!”
“हाँ! और हो भी क्यों न? लतिका जितनी मेरी बेटी है, उससे अधिक तेरी है!” काजल ने बड़े स्नेह से कहा, “लेकिन अब अपने बच्चे करने की बारी है तेरी!” काजल ने माँ के पेट पर तेल रगड़ते हुए कहा, “और बहुत देर मत करना, बहूरानी!” काजल मुस्कुराई, “इनको दूध से भरा हुआ देखना कितना सुखदायक होगा!”
काजल भविष्य में होने वाले आनंद की कल्पना से पुलकित होने लगी। फिर अचानक ही भक्तिभाव से बोली, “भगवान की बड़ी कृपा है तुझ पर, और तेरे कारण हम सभी पर! तू हमारी बहू नहीं, हमारा सौभाग्य बन कर हमारे घर आ रही है!”
माँ शरमा कर काजल के आलिंगन में छुप गई। माँ की इस भोली सी हरकत पर काजल प्यार से मुस्कुरा दी।
“और मैं तो चाहती हूँ कि मेरी लतिका भी बिलकुल तेरी जैसी ही बने। बस तेरी ही छाया उस पर पड़े। बस तेरे ही सारे गुण उसमें आएँ! तेरी ही जैसी सौभाग्यवती वो भी बने!”
काजल की कही बात पर माँ के दिल में जैसे भावनाओं का ज्वार उठ आया।
“वो बहुत प्यारी बच्ची है अम्मा! मिष्टी को कितने प्यार से रखती है - खुद बच्ची है, लेकिन मिष्टी को इतना प्यार करती है कि क्या कहूँ!” माँ ने मुस्कुराते हुए कहा।
काजल भी मुस्कुराई, “सब तेरा ही पुण्य प्रताप है! वो इतने अच्छे, संस्कारी, और स्नेही परिवार में पल कर बड़ी हो रही है, तो ऐसे गुण तो आएँगे ही!”
“वो मेरी बेटी है अम्मा!”
“बोल तो रही हूँ - ये तो सब तेरा ही पुण्य प्रताप है बिटिया! मेरा बेटा तुझे प्यार करता है और तुझसे शादी करना चाहता है। मेरी बेटी में तेरे ही गुण, तेरे ही संस्कार आ रहे हैं। और तेरे ही कारण मेरे परिवार में इतनी खुशियाँ आने वाली हैं! तेरे कारण ही मेरा परिवार बढ़ने वाला है! मुझसे अधिक भाग्यशाली औरत और कौन होगी? सच में - मैंने जितना भगवान से माँगा, उससे कई कई गुना अधिक आशीर्वाद मिल रहा है मुझको! आज तो मैं धन्य हो गई!”
“अम्मा!” माँ अपनी बढ़ाई से खुश हो कर काजल से और भी अधिक चिपक गईं।
कुछ देर काजल ने माँ को अपने से चिपकाए रखा, फिर खुद से अलग करते हुए, और उनको चूमते हुए वो बोली,
“ऐ सुमन, मेरी बिटिया रानी, मेरे सुनील को खूब प्यार देना!”
“हाँ अम्मा! वो मेरे पति हैं!”
“न बेटा!” काजल ने तुरंत ही कहा, “पत्नी के कर्तव्य के नाते नहीं! उस तरह के प्यार में कोई सुख नहीं है। उससे न तो तू सुखी होगी, और न ही वो! तू उसको सच में प्यार करना। छोटा है वो! तू उसको सही रास्ते पर रखना। वो गलतियाँ करेगा - तू उसको समझाना। उसको भटकने मत देना। उसको अपना पति-परेश्वर मान कर उसकी हर भूल को नज़रअंदाज़ मत कर देना। पति-परमेश्वर से पहले, तू उसकी गार्जियन रही है - माँ जैसी। तेरे ही संस्कार हैं उसमें। वो गलती करे तो उसके कान उमेठ देना!”
माँ अपने होंठों को ‘O’ के आकार में खोल कर आश्चर्य या अनहोनी वाली आवाज़ निकालती हैं। लेकिन काजल उसको नज़रअंदाज़ कर देती है।
“हाँ - और क्या?” फिर नरम पड़ते हुए बोली, “वो केवल प्यार का ही भूखा है! बहुत प्यार करता है वो तुमसे! मैंने देखा है ये! जब वो तेरे आस पास रहता है न, तो उसकी आँखों में एक चमक रहती है! ज़िन्दगी की चमक! भविष्य की चमक! वो चमक तेरे लिए उसके प्यार के कारण है। जब तू भी उससे प्यार करने लगेगी न, तो तुम दोनों का भविष्य चमक उठेगा!”
“हाँ अम्मा!” माँ फिर से शरमाईं, “उनसे प्यार होने तो लगा है!”
“बहुत बढ़िया बात है!” काजल संतोष से मुस्कुराई, “बहुत बढ़िया!”
जब शरीर के ऊपरी हिस्से पर तेल लग गया, तब काजल ने माँ को बिस्तर पर लिटा दिया, और उनकी टांगें खोल दीं। उसने जो देखा, उसे पसंद आया। माँ का जघन और जनन क्षेत्र, कोमल माँस और मज़बूत माँस-पेशियों का अद्भुत संयोजन लिए हुए था! चेहरा और शरीर अगर छोड़ भी दें, तो भी माँ की योनि अपनी असली उम्र से कहीं अधिक जवान दिखाई दे रही थी! उनकी योनि को ले कर सुनील की टिप्पणी बिलकुल भी गलत नहीं थी। और अगर इसका मुकाबला काजल की योनि से करें, तो माँ की योनि काजल की योनि के मुकाबले छोटी थी! बिलकुल किसी पच्चीस छब्बीस साल की छरहरी और स्वस्थ लड़की की योनि की तरह!
“बहुत सुन्दर!” काजल ने हमेशा की ही तरह उनकी योनि की सुंदरता की प्रशंसा की, “बहुत सुन्दर! ये चूत नहीं है - गुलाब की कली है!”
माँ ने अपना चेहरा अपनी हथेलियों के पीछे छिपा लिया। उनको याद आ रहा था कि कैसे वो भी अपनी बहुओं को इसी तरह से छेड़ती थीं, उनको दुलार करती थीं, उनके सौंदर्य की बढ़ाई करती थीं। आज वही सब कुछ उनके साथ भी हो रहा था। वही स्नेह जो उन्होंने पहले सब पर बरसाया था, अब उन पर बरस रहा था। और माँ शर्माते हुए ही सही, लेकिन उस स्नेह, उन छेड़खानियों का आनंद ले रही थीं।
अब इतने अंतरंग तरीके से छुए जाने और देखे जाने पर अपना चेहरा भाव-विहीन तो नहीं रखा जा सकता न! तो माँ भी न रख सकीं - उनके चेहरे पर लज्जा, पीड़ा और संकोच के भाव आने लगे। लेकिन वो क्या कर सकती थीं! बस, उन्होंने अपनी आँखें बंद कर लीं। काजल धीरे से मुस्कुराई। उसको मालूम था कि माँ को क्या महसूस हो रहा था।
हाँ, वो अब माँ की सास थी, लेकिन उससे बहुत पहले से वो उनकी सहेली भी थी - सबसे करीबी सहेली, सबसे चहेती सहेली! इसलिए अपनी सहेली को थोड़ा सा चिढ़ाना, थोड़ा सा छेड़ना, कोई अनुचित काम तो नहीं था।
“कल इसको देखने के बाद वो इसमें कैसे नहीं गया,” काजल ने उनको छेड़ा, “मुझे तो इसी बात से आश्चर्य होता है!”
माँ को बहुत शर्म आ रही थी - उनको बस कुछ ही देर पहले, अपने नए पति के साथ हुए अपने दोनों संभोगों की याद गई। शरीर कुछ बातों पर स्वयं ही उत्तेजित हो जाता है। जब आपने बेहद संतोषजनक सम्भोग का आनंद उठाया हुआ हो, तो उसकी याद आपके शरीर में स्वयं ही उत्तेजना भर देती है। सुनील के साथ अपने संभोग को याद कर के उनकी योनि स्वयं ही गीली होने लगी।
“चूत के होंठों में सूजन आ गई है!” काजल ने जाँच करते हुए कहा।
माँ शर्म से पानी हो रही थीं। लेकिन फिर भी उन्होंने कहा, “बहुत दिनों बाद हुआ है न अम्मा! इसलिए!”
“कोई बात नहीं! अब तो रोज़ यही होगा।”
“हाआआआ!”
काजल को एक छोटा सा संशय था, “बहूरानी, उसका साइज़ तो ठीक ही है ना... छोटा तो नहीं है न?”
“नहीं अम्मा...” माँ भी कब तक लज्जा कर के चुप रहतीं, “छोटा नहीं, बहुत बड़ा है।”
“क्या सच्ची?”
“हाँ न!” माँ को कहना ही पड़ा, “और ये सब तुम्हारी ही गलती है अम्मा!”
“मेरी? वो कैसे?”
“माएँ अपने बेटों को इतने लम्बे समय तक दूध पिलाएँगी, तो बहुओं को ही तो तकलीफ होगी ही न!” माँ ने अदा से कहा।
“हा हा हा! यही बात तो मैं भी तुझसे कह सकती हूँ न!” काजल ठठा कर हँसने लगी, “वैसे, इसीलिए तो अब मैं तुझे भी अपना दूध पिला रही हूँ, कि तू भी उसके जैसी ही ताक़तवर हो जाए!”
“हा हा हा!”
माँ हँसने तो अवश्य लगीं, लेकिन अपनी सास द्वारा, अपने पति के साथ किये गए सम्भोग की याद दिलाने पर, उनका चेहरा शर्म से लाल हो गया। उनके पूरे शरीर पर एक सुन्दर सी लालिमा फ़ैल गई, और उनके चेहरे पर एक नई दुल्हन वाली चमक आ गई! माँ के चूचक उस अद्भुत सम्भोग को याद करते हुए झुनझुना गए, और ऊर्ध्व हो गए। सुनील ने माँ के उनके जीवन के दो सर्वोत्तम सम्भोग के अनुभव दिए थे! माँ डैड के साथ सम्भोग कर के संतुष्ट हो जाती थीं, लेकिन सुनील के साथ तो अद्भुत अनुभूति मिली थी उनको! यह कहना कि माँ सुनील के साथ अघा गई थीं, कोई अतिशयोक्ति नहीं है। उन सम्भोगों, उन चर्मोत्कर्षों की याद ऐसी बलवान थी कि माँ अपनी योनि से अपने प्रेम-रस के अचानक ही हो चले प्रवाह को रोक नहीं पाईं, और दो ही पलों में उनका योनि मुख, उनके प्रेम-रस से भीग कर चमकने लगा।
सुनील के नाम से ही वो गीली हो गईं थीं!
यह सब काजल से छिपा नहीं रह सका। उसने छेड़छाड़ को और आगे बढ़ाया, “आज से तू सुनील के साथ ही सोया कर! उसका बिस्तर छोटा है। चिपक के सोने के अलावा कोई और ऑप्शन नहीं रहेगा तुम दोनों के पास! हा हा हा हा हा!”
माँ अदा से, लेकिन बहुत शर्म से मुस्कुराईं। उनकी मुस्कराहट से काजल को अपार संतोष मिला। पहले जब माँ हमारी ‘बड़ी’ थीं, तो वो हमारी टाँगें ऐसे ही खींचती थी! लेकिन अब चीजें बदल गई हैं।
“इतनी खुशियाँ अचानक ही मिल गई हैं, अम्मा!” माँ बड़े कोमल स्वर में बोलीं, जैसे कहीं दूर जा कर बोल रही हों, “इसलिए थोड़ा डर लग रहा है!”
“बिलकुल भी ऐसे ख़याल मत ला अपने मन में! मैं हूँ न तेरे साथ!” काजल मुस्कुरा कर बोली, “तेरी खुशियों को नज़र लगाने वाले की आँखें निकाल लूँगी!”
माँ आभारपूर्वक मुस्कुराईं।
“ये मेरे बेटे और बेटी की खुशियों का सवाल है,” काजल मुस्कुरा रही थी, लेकिन आवाज़ दृढ़ थी, “इस पर मैं कैसी भी आँच नहीं आने दूँगी!”
“थैंक यू, माँ!” माँ ने कहा। उनकी आवाज़ में कृतज्ञता छुपी न सकी।
लेकिन बात माँ की टाँग खिंचाई की हो रही थी और काजल नहीं चाहती थी कि सहेलियों का हँसी मज़ाक गंभीर मोड़ ले ले। इसलिए उसने बात पलट दी। माँ की योनि पर उंगली चलाते हुए उसने कहा,
“बहू, तेरे फूल से मधु निकल रहा है!” उसने अपनी गीली हुई उंगली माँ को दिखाई, “बुला दूँ सुनील को?”
माँ के चेहरे पर शर्म की ऐसी लाल रंगत चढ़ आई जो उनकी हालत किसी को भी बयां कर देती। माँ ने ‘न’ में सर हिलाया - लेकिन अगर काजल सुनील को बुला लेती, तो वो सच में सम्भोग से मना न कर पातीं। अपने पति से सम्भोग का नशा कैसा गहरा चढ़ा था उनको!
“बहू?”
“जी अम्मा?”
“कल सुनील जब तेरा दूध पी रहा था न, तब मेरे मन में एक दृश्य आ गया था!”
“क्या अम्मा?”
“यही कि तुम दोनों प्यार के बंधन में बंधे हुए हो!”
“हैं? मतलब अम्मा?”
“मतलब कि तुम दोनों नंगे हो कर एक दूसरे में गुत्थमगुत्थ हो, और सुनील का लण्ड, तेरी चूत में है!”
“हाय अम्मा!” रही सही कसर भी निकल गई, “कैसी कैसी बातें सोचती रहती हो!”
“कैसी कैसी क्या? अपने बेटे और बहू के प्रेम के दृश्य सोचती रहती हूँ!” काजल ने कहा।
“हाआआआ!”
“बड़ी शर्म आ रही है अब! जब अपने सामने अमर और मेरा मेल करवा दिया था, तब कुछ नहीं!”
“मैं चाहती थी कि तुमको अपने हिस्से का प्यार मिलता रहे अम्मा!” माँ ने कोमलता से अपनी सफ़ाई दी।
“हाँ, और मैं चाहती हूँ कि तुमको अपने हिस्से का प्यार मिलता रहे!” काजल भी उसी तरीके से बोली, “तुम दोनों की शादी का जल्दी से बन्दोबस्त कर देती हूँ! फिर तुम दोनों खूब मज़े करना!”
माँ तो अब और शर्माने की हद से बहुत दूर जा चुकीं थीं।
“मेरी लाडो... मेरी पूता... मेरी बिटिया, तू ऐसे मत शरमा! मैं तो इतने दिनों से तुझे अपनी बहू बनाने के ही सपने देख रही हूँ! भगवान जी से कितनी प्रार्थना कर रही हूँ कि तू मेरी बहू बन जा... अब तो मैं तेरे साथ बिलकुल बच्ची जैसा ही बर्ताव करूँगी! अब ये तेरे खुश रहने, और हँसने-खेलने के दिन हैं, और मैं पूरी कोशिश करूँगी कि तू खुश रहे, और हँसती खेलती रहे।” काजल ने माँ को ममता भरा आश्वासन दिया!
“मैं बहुत खुश हूँ, अम्मा... बहुत खुश!” माँ ने काजल को भरोसा दिलाया, “बस, सब कुछ इतना जल्दी हो गया है कि खुद को इस बदले हुए माहौल में ढालने का मौका ही नहीं मिला!”
“तुझे कुछ भी बदलने की ज़रुरत नहीं!” काजल ने माँ को समझाया, “तू जैसी है, वैसी ही हमको चाहिए! अब बस तू एक ही काम कर - अपनी मैरिड लाइफ का पूरा मज़ा ले!”
माँ मुस्कुराईं।
“और, हाँ - जल्दी जल्दी बच्चे कर ले!”
“हा हा हा!”
फिर कुछ सोच कर काजल ने आगे कहा,
“बेटू, तुझको वो गाँव के पास वाले तालाब के किनारे वाले माताजी वाले मंदिर के पुजारी जी याद हैं?”
उनको माँ कैसे भूल सकती थीं। आखिर, उन्होंने ही डैड और माँ का विवाह संपन्न कराया था। उनकी मृत्यु आभा के होने से कोई दो या तीन महीने पहले हुई थी। बेचारे! बड़े कष्ट में बिताए थे उन्होंने अपने अंतिम कुछ महीने! डैड और माँ से जो कुछ संभव हो सका, उन्होंने वो सब किया - बड़े अस्पतालों और डॉक्टरों के चक्कर लगाए, दवाईयों का ढेर लगा दिया, और भी न जाने क्या क्या किया! मैंने भी अपनी तरफ़ से यथासंभव उनके इलाज के लिए धन का बंदोबस्त किया था, जिससे डैड पर कोई बोझ न आए। लेकिन उनके जैसे वयोवृद्ध व्यक्ति का बच पाना संभव नहीं था। वो डैड को कई बार बोल चुके थे कि वो उनको जाने दें अब, लेकिन डैड का मन नहीं मानता था। वो एक तरह से उनके पितामह समान थे न! इसलिए। जीवन में जो सुख - दुःख भोगने लिखे होते हैं, वो सब भोग कर जाना होता है। उनके अंतिम संस्कार में माँ और डैड दोनों शामिल थे।
“हाँ अम्मा! क्यों? तुमको उनकी याद कैसे आ गई?”
“मुझे तो लगता है कि उनको भविष्य दिखता था!”
“अरे, ऐसा क्या सुन लिया तुमने?”
“याद नहीं है? उन्होंने तुमको पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया था!”
अचानक ही माँ को बरसों पुरानी बातें याद आ गईं!
‘हाँ, यह आशीर्वाद उन्होंने दिया तो था!’
उस समय माँ भी आश्चर्यचकित हुई थीं, कि बिना अपने पति के सहयोग के उनको संतान कैसे होगी! लेकिन उन्होंने इस बारे में बहुत नहीं सोचा! हो सकता है पुजारी जी ने यूँ ही, आदतवश वो आशीर्वाद कह दिया हो? या फिर शायद बूढ़े हो जाने के कारण उनको भ्रम हो गया हो। उस समय तो उन्होंने सब भुला दिया, लेकिन अभी काजल के याद दिलाए जाने से उनको पुरानी बातें याद आ गईं!
“और सुनील को देख कर वो बोल रहे थे कि ‘अब समझ में आ रहा है’! तो मैं सोच रही थी कि शायद उन्होंने देख लिया हो कि वो ही आगे चल कर तुम्हारा पति बनेगा?”
“हाय भगवान!”
माँ को शर्म आ गई - अगर उन्होंने भविष्य की ऐसी बातें देख लीं, तो फिर उन्होने न जाने क्या क्या देखा होगा!
“हा हा!” काजल माँ की इस हरकत पर हँसने लगी, “और उन्होंने दो तीन बार कहा था कि पुत्रवती भव! मतलब यह कि तुमको दो तीन बच्चे तो होंगे!”
काजल भविष्य की सुंदर कल्पना करते हुए चहक रही थी। उधर माँ संकोच, आनंद, और लज्जा के मिले जुले भावों में सिमटी जा रही थीं। अगर उनको दो तीन बच्चे हो गए, तो मतलब ‘इनकी’ इच्छा सारी पूरी हो जाएँगी! यह एक रोमांचक विचार था - लेकिन उनको थोड़ी घबराहट भी हुई। चौवालीस की उम्र में नई नई माँ बनना कोई आसान काम नहीं! कैसे सम्हालेंगी वो अपनी नई गृहस्थी? कैसे सम्हालेंगी वो अपने बच्चे?
“अम्मा, इस उम्र में मैं नई नई गृहस्थी जमा पाऊँगी क्या?”
“अरे क्यों नहीं? ब्लैंक स्लेट है! जैसा चाहो, अपना संसार बनाओ! इसीलिए तो तुम दोनों को जल्दी से जल्दी शादी के बंधन में बाँध कर मुंबई रवाना कर देना चाहती हूँ!” काजल ने समझाया, “और फिर भी कोई दिक्कत होती है, तो मैं हूँ न! तुम दोनों की हेल्प करने आ जाऊँगी!”
उधर माँ के पशम को सहलाते हुए काजल ने चर्चा का विषय बदलने का फैसला किया,
“सुमन बिटिया, अभी के लिए तो ठीक है, लेकिन शादी के पहले, यहाँ के बाल साफ करवा ले! वो क्या कहते हैं न - वैक्सिंग? हाँ, वैक्सिंग करवा ले! अपनी गुलाब कली को दिखने दे!” काजल ने आँख मारते हुए कहा, “तुझको और सुनील, दोनों को बहुत अच्छा लगेगा!”
काजल की बात पर माँ ने एक चौड़ी सी, लेकिन शर्मीली मुस्कान दी और सहमति में सर हिलाया।
“अभी मैं इनको कैंची से काट कर छोटा कर देती हूँ! अगली बार जब वो इसे देखेगा न, तो वो पूरा पागल ही हो जायेगा! ठीक है?”
माँ अंततः एक छोटी सी लड़की की तरह थी, जो अब बस ज़िंदगी का मज़ा लेना चाहती थीं। वो अंततः एक परीकथा के अंदर थीं, जिसके रंग बिरंगे कथानक का वो जिस तरह से चाहती थी, उसका आनंद ले रही थीं, और उसको जी रही थीं। माँ इस समय अपने नए जीवन की स्वतंत्रता का, स्वच्छंदता का आनंद ले रही थीं।
काजल ने एक छोटी कैंची से सम्हाल कर माँ के पशम को कतर दिया, और जब यह कार्य समाप्त हुआ तो माँ ने भी खुद को बहुत साफ़ और प्रसन्न महसूस किया। ‘वो’ आज रात जब फिर से उनको नग्न देखेंगे, तो ‘उनको’ सुखद आश्चर्य होगा! माँ को यकीन था कि अब तो ‘वो’ उनके साथ रोज़ ही सम्भोग करेंगे! संयम का बाँध टूट गया था, और उसमें से बहने वाली अथाह धारा अब रुकने वाली नहीं थी! रुकनी चाहिए भी नहीं!
विवाह से पूर्व, ऐसे चुपके चुपके सुनील के साथ सम्भोग करना, एक बहुत ही रोमांचक विचार था और उनको ये सब सोच सोच कर बहुत शर्म भी आ रही थी।
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काजल से बात कर के मुझको रहा नहीं गया।
न जाने क्यों, मुझे अब किसी भी तरह के सरप्राइज अच्छे नहीं लगते थे। सरप्राइज का नाम सुन कर ही उलझन होने लगती थी! जब ज़िन्दगी किसी को एक के बाद एक कई झटके दे देती है न, तब उस व्यक्ति को सामान्य बातें ही अच्छी लगती हैं। मेरा भी वही हाल था। मीटिंग जल्दी ख़तम कर के मैंने घर पर फ़ोन लगाया। इस बार फ़ोन लतिका ने उठाया। इस बच्ची की आवाज़ सुनते ही मेरा दिल खुश हो जाता। उसका प्यार का नाम अवश्य ही ‘पुचुकी’ था, लेकिन मैं अक्सर ही लतिका को ‘ख़ुशी’ नाम से बुलाता था।
“हेलो!”
“ख़ुशी बेटा, कैसी हो?”
इस नाम से वो तुरंत समझ गई कि मैं बोल रहा था।
“अंकल,” उसने बड़े मीठे और उत्साहित स्वर में कहा, “आप जल्दी से आ जाइए घर!”
“हाँ, आ तो जाऊँगा! लेकिन बेटे, बात क्या है?”
“अरे अंकल, आपको नहीं मालूम? आज बोऊ दी आ रही हैं!”
“बोऊ दी?” किसकी भाभी, “कौन बोऊ दी!”
“दादा की!”
“किसकी? सुनील की?”
“हाँ!”
“उसकी शादी कब हो गई?” मैंने लतिका से मज़ाक किया।
“नहीं, आप भी न अंकल! होने वाली है न... आज शाम को दादा और बोऊ दी की इंगेजमेंट है! अम्मा उसी के अरेंजमेंट में लगी हुई हैं। इसीलिए तो आपको जल्दी से आने को बोल रही हैं!”
‘सुनील की मंगेतर आ रही है?’ ये ख़याल आते ही मेरे मन में बड़ी ख़ुशी दौड़ गई!
लेकिन यह जान कर थोड़ी निराशा भी हुई कि उसने मुझे यह बात खुद नहीं बताई। आज भी साथ में था, फिर भी छुपा गया! वो तो कल काजल ने बताया नहीं तो मालूम ही न पड़ता। और अब ये अचानक से इंगेजमेंट! कभी कभी अपने ही घर में पराया सा लगता है। इस विचार के तुरंत बाद ही अगला विचार आया कि हो सकता है कि काजल ने ही दबाव दिया हो कि जल्दी से सगाई और फिर शादी कर लो। काजल जब चाहे, तो बहुत कन्विंसिंग हो सकती है। खैर, अगर सुनील नालायक होना चाहता है तो होता रहे! अच्छी बात यह है कि दोनों की सगाई - जो कि एक प्राइवेट मैटर है - सबके सामने हो रही थी।
“तुमने देखा है अपनी बोऊ दी को?”
“हाँ अंकल! देखा है न!” लतिका की आवाज़ में ख़ुशी साफ़ सुनाई दे रही थी।
“कैसी हैं वो?” मैंने उत्सुकतावश पूछा।
“ओह अंकल, बोऊ दी खूब खूब खूब सुंदर सी हैं।” लतिका ने बड़े उत्साह से बताया, “और मुझे और मिष्टी को खूब प्यार, खूब दुलार करती हैं! शी इस द बेस्ट!”
“अरे वाह!” बढ़िया है - लड़की ने आते ही सभी का मन मोह लिया - यह जान कर मुझे बहुत संतुष्टि हुई, “वो घर पर ही हैं क्या अभी?”
“हाँ अंकल हाँ! इसीलिए तो! अम्मा ने कहा कि टाइम क्यों वेस्ट किया जाए और आज ही इंगेजमेंट कर लेते हैं। आप बस जल्दी से आ जाइए।” लतिका ने चहकते हुए कहा, “हम सभी आपका ही वेट कर रहे हैं!”
‘हम्म्म मेरा शक सही निकला। काजल ने ही फ़ोर्स किया है!’
“अरे बेटा कुछ तो बताओ!”
“नहीं अंकल - अम्मा ने मना किया है! कह रही थीं कि आपको सरप्राइज देंगी। मैंने वैसे भी आपको बहुत कुछ बता दिया है। अब क्या सरप्राइज!” लतिका और उसकी भोली भाली बातें!
“अच्छा अच्छा! बेटू, अपनी मम्मा को फ़ोन दे सकती हो?”
मैंने पैंतरा बदला। ठीक है, अगर काजल नहीं बता सकती, लतिका नहीं बता सकती, तो माँ तो बता ही सकती हैं न सुनील की मंगेतर के बारे में!
“अंकल, मम्मा अभी नहीं आ सकतीं! वो तैयार हो रही हैं न, शाम के फंक्शन के लिए!”
‘क्या! माँ फंक्शन के लिए तैयार हो रही हैं? वाह! ये तो बड़ी अच्छी बात है!’ मैंने खुश होते हुए सोचा। मतलब माँ भी उत्साहित हैं। सही में बड़ी अच्छी बात थी। घर में जब लोग खुश रहते हैं तो जैसे मुझे स्वयं ही एक तरह की ख़ुशी मिलने लगती है। ऑफिस से घर आने पर सभी का हँसता मुस्कुराता चेहरा देखता हूँ, तो अपना दिन भर का संघर्ष भूल जाता हूँ। परिवार ही सबसे बड़ा खज़ाना होता है आदमी का!
“मतलब मेरे लिए सब सरप्राइज ही रहेगा?” मैंने बड़े विनोद से कहा।
“हाँ! अम्मा आपको सरप्राइज देना चाहती हैं! दादा भी!”
“हम्म, ठीक है!” मैंने हथियार डालते हुए कहा, “मत बताओ! मैं ही आ कर देखता हूँ सुनील की बहू को! जल्दी ही मिलते हैं! बाय बेटा!”
“बाय अंकल!” वो चहकती हुई बोली, “आई लव यू लोड्स!”
“मी टू बेटा!”
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हा हा हाअंतराल - विपर्यय - Update #13
काजल अवश्य ही इस बात को सरप्राइज रखना चाहती थी, लेकिन अब चूँकि मुझे ये बात मालूम थी, इसलिए मैंने भी सभी को अपनी तरफ से सरप्राइज देने की सोची। सुनील के पास फिलहाल तो पैसे नहीं थे, और काजल खुद भी अपने पैसे छूती भी नहीं थी, और मुझसे पैसे लेती भी नहीं थी। इसलिए मुझे समझ नहीं आया कि इस हड़बड़ी वाली सगाई में सुनील या काजल, सुनील की मंगेतर को भला क्या नेग और उपहार देंगे! नई बहू को उसकी सगाई पर सोने का कोई तो आभूषण मिलना ही चाहिए न! उसके भी तो कैसे कैसे अरमान होंगे! ये काजल भी कुछ समझती ही नहीं।
खैर, लतिका से बात करने के फ़ौरन बाद, मैं ऑफिस से निकला और वहाँ से सीधा एक ज्वेलर्स की दुकान पर गया। वहाँ से मैंने सुनील की मंगेतर के लिए एक सोने का जड़ाऊ हार और उसका मैचिंग कंगन का सेट खरीदा। यह मेरी - या कह लीजिए - हमारी तरफ से आने वाली बहू के लिए उपहार था। सुनील को क्यों पीछे छोड़ दूँ? इसलिए मैंने उसके लिए एक ब्रांडेड घड़ी खरीदी। अंगूठियाँ लेने का विचार मैंने तुरंत ही छोड़ दिया था क्योंकि दोनों की उँगलियों की नाप मुझे मालूम नहीं थी।
इस खरीददारी के बाद एक आईडिया आया। ज्वेलर्स की दुकान के पास में ही एक पाँच सितारा होटल था। मैंने होटल के मैनेजर से बात कर के सुनील के नाम से एक कपल के लिए एक रोमांटिक, फुल कोर्स डिनर बुक किया। बुकिंग के लिए मैंने सारी रकम अग्रिम ही भर दी थी, और डिनर का बिल मैंने उनको मेरे ऑफिस में भेजने की हिदायद दे दी। मैं कुछ बार यहाँ अपने क्लाइंट्स के साथ आ चुका था, इसलिए इस मामले में कोई दिक्कत नहीं हुई। इस बुकिंग को आज से अगले सप्ताह में कभी भी इस्तेमाल किया जा सकता था। ये सब कुछ करने में, जल्दी-जल्दी करते-करते भी करीब दो घण्टे लग ही गए।
आते समय मैं एक बढ़िया मिठाई वाली दूकान से मिठाईयों के कुछ पैकेट्स पैक करवाता आया कि समधियों को ‘कुछ’ भेंट तो दी जाए! कौन कौन हैं वहाँ, मुझे तो वो भी नहीं मालूम था। लेकिन मिठाई तो सभी को जमती है, और शुभ होती है। घर में कुछ कैश पड़ा हुआ था, इसलिए कोई प्रॉब्लम नहीं थी। लिफ़ाफ़े में रख कर बहू को ‘दस हज़ार एक’ रुपए की नेग दे दूँगा। सुनील को फिलहाल कुछ और देने की ज़रुरत नहीं है। अपना लड़का है - अपना तो सब कुछ उसी का है! मैं मन ही मन सारे दृश्य सोचता जा रहा था, और काजल को कोस रहा था कि कैसी औरत है। बिना कुछ बताए, बिना कुछ सोचे, और बिना कोई प्लानिंग किए सुनील की सगाई करवा रही है!
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काजल ने मेरे कमरे की अलमारी में से देवयानी के कपड़े खँगालने शुरू किये। देवयानी ने कई सारी नई साड़ियाँ और कपड़े लिए हुए थे। ज्यादातर कपड़े या तो केवल एक बार ही पहने गए थे, या फिर कभी पहने ही नहीं गए थे। दैवीय प्रकोप कुछ ऐसा हुआ था कि हमको भविष्य के लिए कोई प्लानिंग करने का कोई अवसर ही नहीं मिला। उसकी मृत्यु के बाद से उसका सब सामान - मतलब कपड़े लत्ते, ज़ेवर और अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेज़ - उसी अलमारी में सुरक्षित बंद पड़ा था। समय समय पर काजल उनको धो कर और इस्त्री कर के वापस सम्हाल कर रख देती, जिससे वो खराब न हों। हम जिनको प्रेम करते हैं, हम उनकी यादें ही नहीं बल्कि उनकी वस्तुओं को भी सुरक्षित रखने का प्रयत्न करते हैं। यह मानवीय स्वभाव है।
माँ की सजावट आज देवयानी के कपड़ों में ही होनी थी, क्योंकि उनके पास सादे और फ़ीके रंग की साड़ियों के अलावा और कुछ भी नहीं था।
उस अलमारी में से काजल ने देवयानी के कुछ लेसी अंडरगारमेंट्स ढूंढे, और माँ के लिए उनमें से सफ़ेद रंग की लेस वाली, और लगभग पारदर्शी ब्रा और पैंटीस पसंद करी। शादी के लिए देवयानी ने कुछ चुस्त, ब्राइडल लॉन्ज़रे (ब्रा और पैंटीस) खरीदी थीं, जो माँ को फिट आतीं। शादी के समय देवयानी के स्तन वैसे तो माँ के स्तनों से थोड़े बड़े थे, और आभा के जन्म के बाद डेवी के स्तन थोड़ा और बड़े हो गए थे! इसलिए ये पुराने अधोवस्त्र ही माँ को फिट आ सकते थे - नए वाले बिलकुल भी नहीं।
काजल ने ब्रा और पैंटी को माँ के सामने झलकाया। माँ ने काजल की इस हरकत पर एक बहुत नर्वस से हँसी हँसी। अपनी बहू के अधोवस्त्र पहनने में वो बहुत हिचकिचा रही थीं। संकोच इस बात का भी था कि कहीं मैं आपत्ति न करने लगूँ।
“अम्मा, ये तो बहू के कपड़े हैं!”
“हाँ, तो? साफ़ हैं, सुन्दर सुन्दर हैं, नए हैं! और सबसे बड़ी बात - एक सुहागिन के हैं! आज के लिए ये पहन लो, कल चलेंगे - शॉपिंग करेंगे! तेरे लिए नए नए कपड़े लेंगे! अभी बाज़ार गए तो पूरी रात इसी सब में बीत जाएगी। फिर तेरी और सुनील की सगाई कब करवाएँगे?”
“लेकिन अमर...?”
“उसके कपड़े थोड़े ही हैं ये,” काजल ने वो लेसदार ब्रा माँ के सीने पर रख कर निहारते हुए कहा।
माँ शर्मा गईं, “अम्मा, इसमें से तो सब दिखता है!”
“अरे तो दिखने दे न! इस लुक्का छिप्पी में ही तो मज़ा है! सोच न,” काजल ने फुसफुसाते हुए बड़े नाटकीय अंदाज़ में कहा, “एक तरफ तेरी ब्लाउज के बटन खुलेंगे, तो दूसरी तरफ़ उसको ये तेरे गोल गोल दुद्धू ऐसे अध-ढंके से दिखाई देंगे! सुनील तो दीवाना हो जाएगा!”
“अम्मा!”
“अरे क्या अम्मा!” काजल ने माँ को छेड़ते हुए कहा, “अरे तेरे ऐसी बीवी मिले, तो कौन आदमी पागल न हो जाए! और ऐसा रूप हो तो अपने हस्बैंड को अपने इशारों पर नचाना क्या गलत है? तुम दोनों अब से खूब मज़े लूटना! मैं तो चाहती हूँ कि तुम दोनों के रोमांस में कभी कोई कमी न आए!”
“हाय अम्मा! मुझे शरम आती है!”
“जितना मन करे शरमा ले! मैंने तो सुनील को समझा दिया है कि तेरी शरम उतारना उसका काम है!”
“हाआआआ!”
“मैं तो बस यही चाहती हूँ, कि सुनील तुझे जवानी के सारे सुख दे, और तेरे रूप और जवानी का खज़ाना अपने दोनों हाथों से लूटे!” काजल पुरानी बातें याद करते हुए बोली, “मुझे याद आता है - तुम और बाबूजी लगभग हर रात प्यार करते थे! कितना खुश रहते थे तुम दोनों - हमेशा हँसते खेलते रहते! चाहे कैसा भी समय हो - चाहे सुख हो या दुःख!”
फिर वो जैसे किसी तन्द्रा से बाहर निकली, “मैं चाहती हूँ कि अब से तू उस समय से भी अधिक खुश रहे! और यह ख़ुशी पूरी उम्र रहे!” वो मुस्कुराई, “इसलिए शरमाने वरमाने की ज़रुरत नहीं! अपने पति से नहीं, तो किससे प्यार करें हम? अपने बच्चों को तो अपना जलवा नहीं दिखा सकते न हम!”
काजल हँसते हुए बोली। उसकी बात पर माँ को डैड के प्यार करने का तरीका याद आ गया, और वो उसकी, सुनील के प्यार करने के तरीके से तुलना किए बिना न रह सकीं। सुनील से उनको जैसी संतुष्टि मिली थी, उसके बारे में सोच कर उनके चेहरे पर शर्म की लाली दौड़ गई।
“अम्मा?” माँ ने हिचकिचाते हुए कहा।
“क्या मेरी बच्ची?”
“तुमको अजीब तो नहीं लग रहा है हमको ले कर?”
“अजीब? हैं? क्यों? तू तो इतनी प्यारी सी बहू है मेरी! मुझे क्यों अजीब लगेगा?”
“हाँ, लेकिन उसके पहले कभी मैं तुम्हारी माँ भी थी... और बड़ी बहन भी!”
काजल मुस्कुराई; उसकी आँखों में कृतज्ञता और आदर भरे स्नेह का भाव झलक गया। कुछ पलों के लिए उसकी आँखों के सामने माँ की ममता वाली मूर्ति प्रकट हो गई। उसने माँ के स्तनों को प्यार से सहलाते हुए बोली, “हाँ! वो बात तो है! मेरे सबसे कठिन समय में तुमने मुझे मेरी माँ की ही तरह तो सम्हाला! और मुझे ही क्या - हम तीनों को बिलकुल माँ के जैसा ही प्यार और दुलार दिया! तुम न होती तो क्या होता हमारा - मैं वो सब सोच भी नहीं सकती! डर लगता है वो सब सोच कर! हम आज जहाँ हैं, जो कुछ भी हैं, वो सब तुम्हारे कारण ही तो संभव हुआ है! ये बातें तो मैं कभी भूल ही नहीं सकती।”
अचानक ही माँ को वो ममता वाले भाव आने लगे।
“मुझे याद है कि कैसे मुझे थोड़ा भी दुःख होता, और मैं तुम्हारे सीने से लग जाती थी!” काजल बोल रही थी।
माँ ममता से मुस्कुराईं - उनकी आँखें भरने लगीं। बात तो सही थी। और तो और, अभी दो दिन पहले भी माँ ने काजल को अपना स्तन पिलाया था!
काजल मुस्कुराई, और बोलती रही, “और तुम मुझे सम्हाल लेती! ममता भरा सुख और सहारा जो तुमने मुझे दिया है, उतना तो मेरी खुद की माँ भी नहीं दे पाई!”
भावातिरेक से माँ काजल के सीने में मुँह छुपा कर रोने लगीं।
“अरे, रो क्यों रही हो?”
“अब तुमको दुःख होगा, तो तुमको कौन सहारा देगा?” माँ काजल के स्तनों के बीच ही अपना मुँह छुपाए बोलीं।
“अरे! मुझे अब काहे का दुःख?” काजल ने माँ के सर को सहलाते हुए कहा, “मेरे तो सभी दुःख आज दूर हो गए! आज जैसी ख़ुशी मुझको कभी न मिली!”
“तुम सच में खुश हो अम्मा?” माँ ने बड़े भोलेपन से पूछा।
“तुमको कोई आईडिया नहीं है!” काजल बोली, “तुम्हारी माँ बनने का सुख मुझे सुनील को माँ बनने के सुख से अधिक लगता है। ऐसे कहना नहीं चाहिए नहीं तो तुम्हारी ममता, तुम्हारे प्रेम का अपमान होगा, लेकिन सच में - तुमने जो सब कुछ हमारे लिए किया है, उसके बदले में मुझे तुमको ऐसे प्यार करने का मौका मिला है। इसलिए मेरा दिल ख़ुशी से फूला नहीं समां रहा है!”
“नहीं अम्मा,” माँ ने काजल को आलिंगन में ले कर उसके एक गाल को चूमा, “कोई अपमान नहीं होगा। मैंने समझ रही हूँ तुम्हारी फीलिंग्स!”
“समझ रही है न, मेरी बेटू?” काजल मुस्कुराई और माँ के होंठों को चूमते हुए बोली, “तुझको देखती हूँ न, तो न जाने कैसे तू नन्ही सी गुड़िया जैसी लगती है मुझको! मेरी नन्ही सी गुड़िया!”
“हा हा हा!” माँ अपने आँसुओं को सम्हालते हुए हँस दीं, “तुम्हारी आँखों पर पट्टी बंधी हुई है!”
“बड़ी सुन्दर सी पट्टी है! मैं चाहती हूँ कि हमेशा ही बंधी रहे मेरी आँखों पर!”
माँ द्रवित हो कर वापस काजल के सीने में छुप गईं। इतना कुछ इतनी जल्दी परिवर्तित हो गया था कि उनको सम्हलने का अवसर ही नहीं मिल रहा था। वो इस स्नेह की फिसलपट्टी पर तेजी से फिसल रही थीं। और इस तरह की फिसलन में उनको आनंद भी असीम आ रहा था।
“मेरी गुड़िया?” काजल ने कुछ देर माँ के सर को सहला कर स्वांतवना देने के बाद कहा।
“हाँ अम्मा?”
“दुद्धू पिएगी?”
“क्या अम्मा, सच में? इतनी जल्दी?”
“है न अचरज वाली बात?” काजल हँसने लगी, “तुझे पिलाने की चाह में जल्दी जल्दी बन रहा है अब!”
माँ झटपट से काजल के सीने से अलग हो कर उसकी ब्लाउज के बटन खोलने लगीं - किसी नन्ही सी बच्ची की ही तरह - ठीक वैसे ही जैसे लतिका करती थी। माँ की तत्परता को देख कर काजल खिलखिला कर हंस दी। उसको यह देख कर सुकून भी हुआ कि सुमन भी अब खुद को उसकी बच्ची मान कर ही व्यवहार कर रही थी। इस पूरे कार्यक्रम के दौरान माँ का मुँह उत्सुकता, पूर्वानुमान और रोमांच से खुला हुआ था - जैसे बच्चे जब अपने मनपसंद कार्य करते हैं। ब्लाउज के उसके स्तनों से हटते ही माँ ने गप से उसका चूचक अपने मुँह में भर लिया, और बड़े ही सुखपूर्वक ‘अपने’ हेतु बना दूध पीने लगीं।
काजल ने हँसते हुए ही दुलार से माँ को कहा, “हाँ - बस ऐसे ही जब भी तेरा मन हुआ करे न, तू पी लिया कर। बेहिचक! [माँ ने चूचक को मुँह में लिए हुए ही ‘हाँ’ में सर हिलाया] ... तेरी माँ हूँ मैं - कभी मत भूलना ये बात! [माँ ने इस बात पर ‘न’ में सर हिलाया]”
काजल उनकी हरकतें देख कर आनंदित हो उठी, “ऐसी प्यारी सी हरकतें करती है, और फिर सोचती है कि तू मेरी गुड़िया नहीं है?”
माँ दूध पीते हुए मुस्कुरा दीं।
“तुझे तो दुलार कर कर के बिगाड़ दूँगी मैं!” काजल ने बड़े अभिमान से कहा।
कुछ देर स्तनपान करने के बाद माँ बोलीं,
“मानो,” माँ ने शरारत भरी मुस्कान दी, “मेरा तुमसे झगड़ा हो जाए, तो?”
“अरे! हा हा हा हा! झगड़ा! हा हा हा! अगर तू मुझसे झगड़ा करेगी, तो तू ही तो सम्हालेगी मुझे!” काजल ने हँसते हुए कहा, “पड़ोसी थोड़े न सम्हालेगी मुझे! और मैं तो चाहती हूँ कि हमारा सास-बहू का झगड़ा हो कभी, तो कुछ मज़ा आए! लेकिन तू है ही इतनी अच्छी, कि इसकी सम्भावना ही नहीं दिखती! सास बनने का कोई मज़ा ही नहीं! मेरे पास अपनी बहू के खिलाफ कोई मसाला ही नहीं है! अब मैं अपनी सहेलियों से अपनी बहू की बुराई कैसे करूँगी?”
“हा हा हा हा हा हा! अम्मा तुम भी न! लेकिन, तुमको तो मैं तब सम्हालूँगी न, जब मैं तुम्हारे साथ रहूँगी!”
“हाँ, तो?”
“लेकिन ‘ये’ तो कह रहे हैं कि साथ चलो!”
“कहाँ? मुंबई?”
“हाँ! बोल रहे थे कि अगले हफ़्ते ही शादी कर लेते हैं, फिर हनीमून, और फिर मुंबई में ऑफ़िस जोइनिंग!”
“अरे ये तो बहुत अच्छी बात है! मैं भी तो यही कह रही हूँ न! अपने पति के साथ नहीं जाओगी, तो फिर? यहाँ रहोगी क्या! यहाँ क्या है करने को? सुनील के साथ जाओ और अपना संसार बसाओ! और जल्दी से मेरे पोते पोतियों के मुँह दिखाओ मुझे!”
“अम्मा!” माँ फिर से शर्मा गईं।
“अम्मा क्या? ये तेरे छोटे छोटे थन हमेशा दूध से भरे रहें, यही मेरा आशीर्वाद है!” काजल ने मुस्कुराते हुए और दुलारते हुए माँ से कहा, “तेरे जैसी सौभाग्यवती लड़की को और क्या आशीर्वाद दूँ?”
“हा हा! मैं कोई गाय हूँ क्या?” माँ बोलीं, “और अपनी माँ का कोई भी आशीर्वाद हो, बच्चों के लिए ईश्वर का आशीर्वाद होता है!”
“जीती रह बेटू मेरी! जीती रह! और गाय वाली बात पर मेरा यही कहना है कि तू गाय नहीं, देवी है! सुरभि होती है माँ अपने बच्चों के लिए!” काजल किसी बड़े की ही भांति उनको समझाते हुए बोली, “तू तो हमेशा से ही हम सभी की इच्छाएँ पूरी करती आई है। लेकिन अब समय आ गया है कि तेरी भी सभी इच्छाएँ पूरी हों!”
“अमर समझेगा क्या अम्मा?” माँ ने बड़ी उम्मीद से पूछा।
“वो भी तो तुमको खुश देखना चाहता है न!”
“हाँ! लेकिन...”
“समझ जाएगा फिर! नहीं तो मैं हूँ न समझाने के लिए!”
इन्ही बातों बातों में काजल ने माँ को ब्रा और पैंटी पहना दी। उसके बाद काजल ने अलमारी से एक लाल रंग की खूबसूरत सी रेशमी साड़ी और मैचिंग ब्लाउज निकाली! शुभ अवसरों पर लाल रंग ही तो पहनाते हैं!
काजल ने जो भी सोने के गहने अपनी बहू के लिए बनवाए थे, वो निकाले और माँ को उनसे सजाया। अंततः जब माँ पूरी तरह से और काजल की संतुष्टि के अनुसार तैयार हो गईं, तो वाकई में किसी नवविवाहित दुल्हन जैसी लग रही थी।
माँ इस तरह से सज धज कर प्रसन्न तो लग रही थीं लेकिन उनके चेहरे पर चिंता की रेखाएँ भी थीं। यह बात काजल से न छिप सकी।
“क्या हुआ? क्या सोच रही हो?” उसने पूछा।
“सोच रही हूँ कि अमर क्या कहेगा!”
“बहू, तुम चिंता न करो थोड़ी भी। तुम और सुनील कोई पाप थोड़े न कर रहे हैं! मेरा बेटा नौजवान है, लायक है, कमाऊ है, और उसको अपने लिए एक सुन्दर सी, सर्वगुणसंपन्न बीवी चाहिए, जो तुम हो। तुम दोनों शादी करना चाहते हो - यह तुम्हारा अधिकार है! अगर वो तुमको या सुनील को कुछ उल्टा पुल्टा बोलेगा न मेरे हाथों पिट जाएगा! कहे देती हूँ मैं, हाँ!”
काजल के कहने का तरीका कुछ ऐसा था कि माँ हँसे बिना न रह सकीं। फिर काजल ने बड़े दुलार से माँ का गाल छू कर कहा,
“तुमको दोबारा खुश देखना, दुबारा हँसते खेलते देखना - जितना वो चाहता है न, शायद ही कोई और चाहता हो! मुझे मालूम है! इसलिए तू इस बात की चिंता न कर! बस खुश रह! सब कुछ अच्छा हो जाएगा!”
माँ ने अनिश्चितता में ‘हाँ’ में सर हिलाया।
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माँ को तैयार कर के काजल भी तैयार होने लगी। उसने सफ़ेद सिल्क पर लाल पार वाली बंगाली साड़ी पहनी। इससे अधिक बंगाली महिलाओं की पहचान बताने वाली पोशाक कोई नहीं है। पूजा के समय और अन्य शुभ-अवसरों पर बंगाली महिलाएँ यही साड़ी पहनती हैं : उसका सफ़ेद रंग शुद्धता और लाल रंग प्रजनन क्षमता का प्रतीक होता है। उसने साथ में लाल ब्लाउज और लाल चूड़ियाँ और लाल बिंदी लगाई हुई थी। खुद को तैयार होने में उसको मुश्किल से दस मिनट का समय लगा। जब काजल की संतुष्टि के अनुसार माँ तैयार हो गईं, तो वो उनको उनके कमरे से बाहर हॉल में ले आई।
तब तक सुनील भी अपनी समझ से तैयार हो गया था। उसने रेशम का बंगाली कुरता पहना है था, जिसको आम बोली में ‘पंजाबी’ कहते हैं। और नीचे रेशम की ही धोती पहनी हुई थी। बंगाली मानूस दिख रहा था पूरा वो इस समय। उसने दोनों बच्चों को भी उत्सव और त्योहारों वाले कपड़े पहना कर सजा दिया था, और इस समय उनका मेकअप कर रहा था। बाप बनने से पहले ही वो दो बेटियों के बाप वाली सारी जिम्मेदारियाँ निभा रहा था।
जब उसने हॉल में प्रवेश करते हुए अम्मा और अपनी पत्नी को देखा, जो अब ‘लगभग’ दुल्हन की ही तरह, रेशमी साड़ी और सुनहरे गहनों में खूबसूरती से सजी हुई थी, तो वो दंग रह गया। किसी मूर्ख व्यक्ति की तरह वो मुँह बाये माँ को ऐसे देख रहा था कि जैसे उसको उम्मीद ही न हो कि उसने किसको देख लिया! माँ सुबह दरवाज़ा खोलते समय जितनी सुन्दर दिख रही थीं, इस समय वो तब से कम से कम दस गुना अधिक सुन्दर लग रही थीं! अद्भुत सुंदरी! उसका दिल उसके मुँह में उछल पड़ा! माँ सचमुच किसी परी की तरह दिख रही थीं।
‘कैसी अनोखी किस्मत है मेरी,’ यह विचार उसके दिमाग में आया और बस गया।
ऐसा नहीं है कि केवल सुनील की ही वैसी हालत थी - लतिका और आभा भी उसी के जैसे आश्चर्यचकित थे।
“बोऊ-दी!” लतिका चहकते हुए बोली, “आप कितनी सुंदर सी लग रही हैं! अब से आप ऐसे ही कपड़े पहनना, और ऐसे ही सज धज के रहना! फ़ीके फ़ीके रंग आप पर अच्छे नहीं लगते।”
“हाँ बोऊ-दी,” आभा ने भी उछलते फुदकते हुए अपनी दीदी की हाँ में हाँ मिलाई।
“बेटू, मैं तुम्हारी बोऊ-दी नहीं हूँ,” माँ ने आभा को गोदी में उठा कर उसको चूमते हुए कहा, “मैं तुम्हारी दादी ही हूँ हमेशा!”
“ओह! ओके दादी!”
माँ मुस्कुराईं, फिर लतिका की तरफ़ मुखातिब होते हुए बोली, “थैंक यू बेटा! आई लव यू!”
“आई लव यू मोर, बोऊ-दी!”
केवल बच्चे ही हमें बिना लाग-लपेट के बता सकते हैं कि वे सही मायने में क्या महसूस करते हैं। बच्चों में ईगो नहीं होता; वो बिना किसी मिलावट के सभी से अपना व्यवहार करते हैं। उनके लिए चीजें या तो ब्लैक में होती हैं या फिर व्हाइट में।
“मी टू!” सुनील इतना अवाक रह गया था कि उसके मुँह से भी यही निकला।
सुनील की तारीफ सुनकर माँ शरमा गईं।
“चिंता मत करो बेटू,” काजल लतिका को आश्वस्त करते हुए बोली, “अब से ये ऐसे ही सज धज के रहेंगी! अच्छा, अब मैं थोड़ा सगाई की तैयारी कर लूँ! तुम सभी बैठो, और मज़े करो! सुनील बेटा, कुछ गाने वाने बजाओ! ऐसे सूना सूना अच्छा नहीं लग रहा है!”
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बड़े उत्साह से आज मैं घर आया - सुनील शादी कर रहा है! यह तो बहुत अच्छी बात थी। एक लम्बे समय के बाद इस घर में खुशियाँ आने वाली थीं! आखिरी ख़ुशी की खबर तब आई थी जब सुनील का देश के सबसे नामी इंजीनियरिंग संस्थान में दाखिला हुआ था। तब से अब तक कोई चार साल हो गए थे। उसके बाद से हमारा जीवन उथल पुथल हो गया था। अब वो ग्रेजुएट हो गया था, और उसकी नौकरी भी लग गई थी। सच कहें, तो हाल के समय में सारी खुशी वाली ख़बरें सुनील ही दे रहा था। इसलिए मुझे बहुत अच्छा लगा कि यह ख़ुशख़बरी भी उसी की तरफ से आई है!
न जाने क्यों मेरे मन में एक विचार उठा कि काश माँ भी थोड़ा खुश हो लें। उनको भी ख़ुशी मिल जाए! एक दूर की कौड़ी ही सही, लेकिन काश माँ की भी शादी हो जाती! उनका अकेलापन और सूनापन देखा नहीं जाता। पिछले कुछ समय से वो ठीक लग तो रही हैं, लेकिन उनको एक स्थाई ठिकाना चाहिए! यहाँ मेरे साथ रहते रहते अपना पूरा जीवन स्वाहा नहीं करना चाहिए उनको! उनकी भी शादी हो जाए! तो फिर... फिर क्या! उसके बाद जो होना हो, हो जाए!
शायद मेरी कार की आवाज़ काजल ने पहचान ली हो, या शायद वो मेरी ही बाट जोह रही हो। मैं जैसे ही घर के दरवाज़े पर पहुँचा तो काजल एक बड़ी सी मुस्कराहट लिए खड़ी हुई दिखाई दी। मैंने उसको देखते ही पूछा,
“बहू है घर में?”
काजल ने हँसते हुए कह, “हाँ हाँ! बहू है घर में ही! बस तुम्हारा ही वेट कर रहे हैं सभी! तुम्हारे बिना प्रोग्राम नहीं आगे बढ़ाया जा सकता!” वो समझ गई कि लतिका ने ‘कुछ’ सीक्रेट ‘लीक’ कर ही दिया है। लेकिन सब कुछ नहीं।
“जी मालकिन! लेकिन ज़रा मुझको समझाइए - बहू के लिए और सुनील के लिए कोई अँगूठी वग़ैरह, कुछ खाने पीने का कोई इंतज़ाम किया आपने, या ऐसे ही निकल पड़ीं सगाई करने?”
“अरे बाप रे! क्या बेवकूफी हो गई!” शायद अब जा कर काजल को ध्यान आया कि सगाई समारोह के नाम पर इंतजाम तो पूरी तरह शून्य था!
उसने अपने माथे पर हाथ मारते हुए कहा, “अमर, सच में! बिलकुल भी याद नहीं रहा मुझे! अब क्या करें?”
मैं हँसने लगा। काजल को रिसेप्शन में ला कर कहा,
“तुम भी न काजल! मारे एक्साइटमेंट के ज़रूरी बातें भूल गई! ऐसी चूक अगर तुमसे हो गई है, तो समझ लेना चाहिए कि तुम बहुत खुश हो!”
“अरे हाँ, लेकिन अब क्या करें!”
“कुछ नहीं! मुझे शक तो हुआ था! ऐसे हड़बड़ी में जब ये ज़रूरी काम किये जाते हैं न, तो ऐसे ही होता है!” मैंने अपनी शान बघारने के गरज़ से कहा, “देखो, मैंने कुछ इंतज़ाम तो किया है - अँगूठियाँ तो नहीं ला सका - न तो सुनील का और न ही बहू का नाप मुझे मालूम है! लेकिन लाया हूँ और कुछ,”
कह कर मैंने सुनील की मंगेतर के लिए खरीदा हुआ सोने का हार और कंगन दिखाया और सुनील के लिए लाई गई घड़ी!
“बहू को ये हार और कंगन, और दस हज़ार नेग में दे देंगे! ठीक रहेगा?”
मैंने पूछा, लेकिन काजल अभी भी हार और कंगन ही देख रही थी।
“कैसी है?” मैंने पूछा!
“बहुत बढ़िया! बहुत बढ़िया!” काजल बहुत खुश थी, “मैं ऐसी गधी हूँ! मारे उत्साह के सब भूल गई! सॉरी!”
“हा हा हा! लेकिन ऐसे आनन फानन में सब कैसे और क्यों हो गया? न पहले से बताया न कुछ! मुझसे मिलवाया भी नहीं!”
“अरे मिलवा ही तो रही हूँ!”
कह कर वो मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अंदर ले जाने लगी।
अंदर से ख़ुशी और मिष्टी की हँसने की आवाज़ें आ रही थीं, और बीच बीच में सुनील और माँ की। और किसी की नहीं!
‘ऐसे चुप चुप क्यों हैं हमारे मेहमान?’
अंदर गया तो देखा कि हॉल में माँ, सुनील, पुचुकी (ख़ुशी), और मिष्टी मौजूद थे। लेकिन सुनील की होने वाली मंगेतर तो कहीं नहीं दिख रही थी! एक माँ ही थीं, जो दुल्हन की तरह सजी हुई थीं। माँ को ऐसे दुल्हन की तरह सजा-धजा देख कर आनंद आ गया! उनका रूप ऐसा था कि जैसे समय का चक्र घुमा कर पीछे कर दिया गया हो! उस समय अगर किसी से मेरा और माँ का रिश्ता पूछा जाता, तो शायद वो यही कहता कि मैं उनका ‘बड़ा भाई’ हूँ! वो इतनी कमसिन लग रही थीं। कमसिन, और बेहद खूबसूरत! और वो मुस्कुरा भी रही थीं - वही चमकती हुई मुस्कान! लेकिन, उसमें लज्जा का भी सम्मिश्रण दिखाई दे रहा था। और भी एक नई बात - उनकी माँग में नारंगी रंग का चमकीला सिन्दूर पड़ा हुआ था - जो उनकी शोभा को और भी बढ़ा रहा था। उनको इस तरह से देख कर मेरे दिल को बहुत सुकून मिला। सच में - माँ को वैधव्य नहीं जीना चाहिए! वो सुहागिन ही अच्छी लगतीं हैं।
‘सिन्दूर?’
उनको एक सुहागिन के रूप में सजा हुआ देख कर अचानक ही मुझे सब कुछ समझ में आ गया! पिछले कुछ समय से माँ के व्यवहार में बदलाव, सुनील की उपस्थिति में उनका संकोच भरा लेकिन फिर भी मित्रवत व्यवहार - समझ आ रहा था! हृदय में एक लरज सी हुई - क्या मैं वाकई सही सोच रहा था? क्या जो सोच रहा था, वही सच है?
सुनील ने बंगाली कुर्ता और धोती पहनी हुई थी, और बहुत जँच रहा था। वो बहुत खुश दिख रहा था - वैसे वो हमेशा ही खुश रहता था। दुःख या उदासी जैसे उसको छू ही नहीं पाती थी। मैं कई बार सोचता था कि उसका यह गुण किसी तरह से मेरे अंदर आ जाए तो मेरी ज़िन्दगी और भी बहुत अच्छी हो जाए! आभा लतिका - दोनों बच्चे गुड़ियों के समान सजे धजे थे, और माँ के आस पास ही फ़ुदक रहे थे।
‘व्हाट द...”
मैंने काजल की तरफ़ देखा, और उससे पूछने ही वाला था, कि वो बोल पड़ी,
“अमर - लो मिल लो ‘बहू’ से! ये रही सुनील की मंगेतर और उसकी होने वाली बीवी!” और उसने माँ की तरफ इशारा किया।
‘माँ?’
“माँ!?” मैं वास्तव में चौंक गया।
‘मादरचोद! इसको मेरी ही अम्मा मिली थी चोदने को?’ सबसे पहला ख़याल मेरे दिमाग में यही आया।
ऑए यह क्या आगे भी झटके हैं क्यादिमाग का पारा चढ़ ही रहा था कि पिछले एक महीने की घटनाएँ जैसे किसी अति-द्रुतगामी ट्रेन की तरह मेरे मानस पटल से गुज़र गईं! वो सुनील का घर पर ही रह जाना, वो उसका सभी को बाजार घुमाना, वो सबको हँसाना, मेरे पीछे मेरे परिवार की देखभाल करना! उसके आने से पहले माँ कैसी थीं, और अब वो कैसी हो गईं थीं - ज़मीन आसमान का अंतर था! उनके चेहरे से मुस्कान जैसे किसी ने चुरा ली थी, लेकिन सुनील के आने के बाद जैसे माँ की हँसी और मुस्कान वापस आ गई थी।
माँ की मुस्कान का सोच कर अचानक ही वो पारा वापस अपने धरातल पर आ गया।
लेकिन इस समय उनके चेहरे पर घबराहट वाले भाव थे - शायद वो ये सोच रही हों, कि मैं कैसे रियेक्ट करूँगा! लेकिन उनके मन में संतोष है, प्रेम है, जीने की ललक है! केवल एक महीने में सुनील ने वो कर दिखाया था जो अच्छे डॉक्टर न कर सके - और वो यह कि उसने माँ को अवसाद के गढ्ढे से न केवल बाहर ही निकाल लिया, बल्कि उनको अपना जीवन फिर से जीने की राह भी दिखा दी।
माँ क्यों न बने सुनील की पत्नी?
सुनील क्यों न बने माँ का पति?
काजल ने मेरा हाथ दबाया - माँ और सुनील मेरी तरफ बड़ी आस भरी नज़र से देख रहे थे। दोनों के ही चेहरों पर डर और आशंका देखी जा सकती थी। वो भी मेरी ही प्रतिक्रिया का इंतज़ार कर रहे थे। काजल ने जब मेरा हाथ दबाया, तब मैं अपनी खुद की विचार श्रंखला से बाहर आया।
“अ...हह...हाँ?”
“मैंने कहा, कैसी लगी सुनील की होने वाली बीवी?” काजल ने खुशनुमा और मज़ाक करने वाले अंदाज़ में पूछा!
आशंका उसको भी थी। डर उसको भी था। लेकिन वो ऐसे बर्ताव कर रही थी कि जैसे उसमें बड़ी हिम्मत हो।
पिछले कुछ महीनों के दृश्य मेरे सामने घूम गए। आभा की चहक और उसका उछल कूद करना; लतिका का मुस्कुराता चेहरा; माँ के चेहरे की रंगत और उनकी माँग का सिन्दूर; और काजल की निश्चिंतता और भविष्य के लिए आशा। अपने दम्भ में आ कर मैंने कोई ऐसी हरकत नहीं करना चाहता था, कोई ऐसी बात नहीं कहना चाहता था कि इन सब बातों पर कोई हानिकारक प्रभाव पड़े।
मैंने काजल की तरफ़ देखा। वो अभी भी आस लगाए मेरी तरफ देख रही थी।
“बहुत अच्छी! सबसे अच्छी!” मेरे मुँह से निकल गया, “कॉन्ग्रैचुलेशन्स माँ!” कह कर मैंने माँ को गले से लगा लिया।
फिर सुनील की तरफ़ मुड़ कर, “कॉन्ग्रैचुलेशन्स सुनील!” कह कर मैंने सुनील को गले से लगा लिया।
“थैंक यू, भैया! थैंक यू! आपकी ब्लेसिंग्स बहुत मायने रखती हैं हमारे लिए!”
“नहीं सुनील! थैंक यू!” मैंने तहे दिल से उसको धन्यवाद दिया, “एंड कॉन्ग्रैचुलेशन्स! सब कुछ इतना अचानक से मेरे सामने आया कि कैसे रियेक्ट करूँ, मुझे समझ नहीं आया! कॉन्ग्रैचुलेशन्स!”
फिर माँ की तरफ मुड़ कर, “माँ - आई ऍम सो हैप्पी फॉर यू! कॉन्ग्रैचुलेशन्स! मे यू गेट एंड एन्जॉय आल द हैप्पीनेस दैट कम योर वे!”
“थैंक यू बेटा!” उनकी आँखें आँसुओं से भर गईं, “थैंक यू सो मच!”
वो बहुत कुछ कह नहीं सकीं। कुछ कहने की आवश्यकता ही नहीं थी।
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मैं ऐसा आदमी नहीं था जो अपनी माँ के पुनर्विवाह पर कोई आपत्ति दिखाए। मैं तो बहुत पहले से ही कहता आ रहा था, और माँ को समझाता आ रहा था कि वो फिर से शादी कर लें। इतना लम्बा जीवन है, बिना किसी जीवनसाथी के कैसे बीतेगा? अगर उनकी खुशियाँ किसी तरीके से वापस आ सकती हैं तो उनको वो तरीका ज़रूर आज़माना चाहिए!
मेरे ख़याल से मुझे धक्का इस बात पर लगा कि उनको सुनील से शादी करने की चाह थी। सुनील! सुनील ने ही प्रोपोज़ किया होगा माँ को! इतना तो तय था। मुझे बस एक बात की चिंता थी और वो ये कि उन दोनों ने इस रिश्ते के लिए समुचित रूप से सोचा हो। जल्दबाज़ी न करी हो। बहुत ही बेमेल सम्बन्ध था ये! लेकिन फिर अगला ख़याल यह आया कि अगर जल्दबाज़ी में भी उन्होंने साथ होने का निर्णय लिया है, तब भी उचित था। माँ अपने जीवन में खुशियाँ पाने की हक़दार थीं। अगर उनको वो खुशियाँ सुनील के साथ मिल सकती थीं, तो क्यों न करें वो उससे शादी?
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सगाई ‘समारोह’ बेहद साधारण सा था।
अब सोचता हूँ, तो लगता है कि अच्छा किया कि मैंने मिठाईयाँ और उपहार लेता आया था। नहीं तो समारोह के नाम पर सब ठन ठन गोपाल वाली हालत थी! अगर ये मूरख काजल ने पहले बता दिया होता, तो मैं कुछ बढ़िया इंतजाम कर देता। लेकिन... खैर! सुनील ने वो ही हार माँ को पहनाया, और माँ ने वो घड़ी सुनील को।
सुनील ने सबसे पहले काजल के, और फिर आश्चर्यजनक रूप से माँ के, और फिर अंत में मेरे पैर छुए! माँ ने पहले काजल के, फिर सुनील के पैर छुए, और अंत में लतिका के पैर छुए। मुझे अजीब सा तो लगा, लेकिन समझ सका कि उन्होंने यह सब अपनी परवरिश और संस्कारों से वशीभूत हो कर किया है। सुनील उनका पति है, इसलिए उसका आदर करना उनका धर्म है; और उसी नाते काजल उनकी सासू माँ है, इसलिए उसका आदर करना भी उनका धर्म है! लतिका उनकी ननद है, और पति की बहन होने के नाते, उनके संस्कार के हिसाब से वो पद में उनसे बड़ी है। इसलिए उसका आदर करना भी उनका धर्म है!
दोनों ने एक दूसरे को मिठाईयाँ खिलाईं। माँ और सुनील दोनों ही उतने से ही बड़े खुश और संतुष्ट लग रहे थे। उनको खुश देख कर मैं और काजल भी खुश थे। मैंने अपना पूर्वाग्रह छोड़ दिया - आज का दिन खुशियों वाला था। तो उचित था, कि माहौल को शुशनुमा ही रखा जाए!
फिर मैंने महसूस किया कि माँ और सुनील - दोनों ही वास्तव में बहुत खुश थे। खुश भी थे, और एक दूसरे को पा कर गौरान्वित भी। मैंने देखा कि कैसे वो दोनों ही रह रह कर एक दूसरे को कनखियों से ताक रहे थे। ऐसे करते हुए दोनों ऐसे क्यूट लग रहे थे, कि सच में - उन दोनों के लिए भी केवल ख़ुशी का ही अनुभव हो रहा था मुझको।
शायद मेरा संदेह गलत हो।
शायद दोनों ने एक दूसरे के साथ अपने भविष्य को ले कर गहरे तक सोचा हो।
ह्म्म्म्म यह स्वाभाविक सोच हैअंतराल - विपर्यय - Update #14
मुझे लग रहा था कि शायद मैं उन दोनों से अधिक सोच रहा हूँ। जब एक परिस्थिति यूँ अचानक से सामने आ जाती है, तब शायद मनुष्य ऐसे ही करता है। मैंने दोनों की तरफ़ देखा - हाँलाकि दोनों अगल बगल बैठे हुए थे, फिर भी उन दोनों को साथ में ‘सोचना’ मुश्किल सा हो रहा था मेरे लिए। क्यों? समझ नहीं आ रहा था - शायद अपनी माँ को किसी ‘दूसरे’ पुरुष की पत्नी बने देखना मुझसे हजम नहीं हो रहा था; या फिर शायद यह बात कि सुनील को मैं तब से जानता था जब वो महज़ एक छोटा लड़का ही था! कारण चाहे जो कुछ हो, मैं न जाने कैसे और क्यों माँ को लेकर अचानक ही बहुत पज़ेसिव महसूस कर रहा था उस समय। जैसे अपनी कोई चीज़ पराई हो गई हो!
दिमाग में कितने ही विचार गुत्थमगुत्था हो रहे थे। एक समय मैं खुद ही माँ की दूसरी शादी की पैरवी कर रहा था, और अब ये! ऐसा उलट-पलट व्यवहार क्यों कर रहा था मैं? क्या इसलिए कि वो सुनील से शादी करना चाहती हैं, या फिर इसलिए कि वो अपनी इच्छा से शादी करना चाहती हैं, या फिर इसलिए कि मैं उनको अपने से दूर नहीं जाने देना चाहता? अभी अभी ही तो माँ और मेरे सम्बन्ध भी सुधरे हैं! शादी के बाद तो वो सुनील के साथ मुंबई चली जाएँगी! ऐसे कैसे चले जाने दूँ उनको? लेकिन, माँ के साथ सम्बन्ध में सुधार की वजह भी तो सुनील ही है! उसके कारण माँ सामान्य हो कर व्यवहार कर रही थीं। और उसी सुधार के कारण ही तो मैं वापस उनसे पुराने जैसे ही जुड़ पाया!
ओफ़्फ़्फ़!
और फिर सुनील चला गया तो काजल और लतिका भी चले जाएँगे साथ ही! फिर मैं केवल मिष्टी के साथ यूँ अकेला... नहीं नहीं! ऐसे कैसे हो पाएगा सब? अचानक ही मेरी ज़िन्दगी में उथल पुथल मच जाएगी यार! इस विचार से दिल बैठ गया।
बढ़ियाकाजल मुझको बहुत देर से ‘शून्य’ को निहारते देख रही थी। मैंने अचानक ही अपने कंधे पर उसका हाथ महसूस किया। वो मेरी पीठ को सहला रही थी,
“क्या सोच रहे हो?”
“कुछ नहीं!” मैंने झूठ कहा।
“अमर!” काजल मेरे चेहरे को देख कर मेरे विचार पढ़ सकती थी। कम से कम मुझे उससे तो झूठ नहीं कहना चाहिए।
मैंने कातरता से काजल की तरफ़ देखा। वो सब समझ गई।
“मैं कहीं नहीं जा रही हूँ!” उसने दबी आवाज़ में कहा, “सुनील की गृहस्थी में मैं अपनी टाँग अड़ाने थोड़े ही जाऊँगी! और मैं चली जाऊँगी तो मेरी गृहस्थी कौन देखेगा? मेरी प्यारी सी मिष्टी को कौन देखेगा?”
राहत आई! आँसू निकलने को होने वाले थे, लेकिन मैंने बड़ी मुश्किल से उनको पी लिया। जज़्बाती नहीं होना है इस समय। खुशियों का मौका है। मैं स्पॉइल स्पोर्ट क्यों बनूँ, जबकि सभी लोग खुश दिख रहे हैं?
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वाकईकुछ देर बाद मुझे सुनील से अकेले में कुछ बातें करने का अवसर मिला। उससे बात करना आज कुछ अपरिचित सा, अनजाना सा लग रहा था। मैं मुस्कुराया। जबरदस्ती वाली मुस्कान! सच में, मैं खुद ही अपने व्यवहार से निराश होने लगा था। क्यों नहीं खुश हो पा रहा था मैं इन दोनों के लिए? ये दोनों - जो मेरे सबसे अजीज़ लोग हैं!
“भैया,” वो बोला, “आप सच में नाराज़ तो नहीं हैं?”
उसके प्रश्न से मेरा दिल ग्लानि से भर गया।
यह एक सॉल्यूशन हैइस लड़के ने अपने जीवन में हमेशा मुझे अपने पिता का स्थान दिया था। लेकिन मेरा दिल इतना छोटा है कि आज मैं उसकी ख़ुशी से खुश नहीं हो पा रहा था। ऐसा भी नहीं है कि उसने मुझसे कुछ माँग लिया हो - माँ मेरी व्यक्तिगत संपत्ति नहीं हैं। वो अपने निर्णय लेने के लिए, अपना जीवन अपने शर्तों पर जीने के लिए स्वतंत्र हैं। फिर मुझे मिर्च क्यों लग रही है?
“नहीं सुनील,” मैं कुछ पलों के लिए उसकी बात से अचकचा गया, “गुस्सा नहीं हूँ... बस, निराश हूँ।”
मेरी बात सुन कर सुनील सकते में आ गया। उसको लगा कि शायद मैं उस पर कोई इल्ज़ाम लगा रहा हूँ। मैंने बात सम्हाली,
“अपने आप से! अपने व्यवहार से! आई नो आई हैव बीन बिहेविंग लाइक अ बम! लेकिन ओनेस्टली, तुम दोनों को खुश देख कर अच्छा लग रहा है!”
“पक्की बात?” वो मुस्कुराया।
‘कितना मैच्योर है सुनील!’
“पक्की बात!” मैंने शांत स्वर में कहा, “सब कुछ ऐसे अचानक से मुझे पता चला न, इसलिए थोड़ा शॉक सा लग गया है। और कुछ नहीं। मैं ठीक हो जाऊँगा! आई ऍम हैप्पी फॉर यू गाइस!”
“उसके लिए अम्मा ज़िम्मेदार हैं भैया! उनको अचानक ही सनक सवार हो जाती है कुछ करने की न, इसलिए!” सुनील ठहर के बोला, “मैं आज शाम आप दोनों को सब बातें बताने वाला था। लेकिन अम्मा को पहले समझ आ गया, और उन्होंने हम दोनों को अकेले में ले जा कर पूछ-ताछ कर डाली। हम कुछ कहते या करते, उसके पहले ही उन्होंने ये सगाई वाला प्रोग्राम बना लिया। और आपको बताया भी नहीं।”
“अच्छा किया काजल ने! शायद मैं तब भी ऐसे ही बम के जैसे ही व्यवहार करता। वो समझती है मुझको!” मैं मुस्कुराया।
सुनील भी मुस्कुराया।
“भैया, आप और अम्मा मेरी... हमारी जड़ें हैं! आपसे दूर हो पाना पॉसिबल नहीं है हमारे लिए। इसलिए आप कभी मत सोचिएगा कि मुंबई जा कर हम आपसे दूर हो गए हैं।” सुनील वाकई बहुत मैच्योर था, “वैसे भी मुंबई - दिल्ली की फ्लाइट रोज़ ही कई सारी चलती हैं! जब मन करेगा हम मिल लेंगे!”
वक़्तवो कैसे मुझे छोटे बच्चों के जैसे मान कर समझा रहा था। मैं समझ रहा था कि सुनील क्या कर रहा है, लेकिन फिर भी मुझे अच्छा लगा।
“सुनील,” मैंने कुछ देर चुप रहने के बाद कहा, “सुनील, तुम दोनों ने ठीक से सोच तो लिया है न?”
“जी भैया,” उसने बड़ी ख़ुशी ख़ुशी कहा, “आज से नहीं, बहुत दिनों से... सालों से... मैं सुमन को चाहता हूँ (उसने आज पहली बार मेरे सामने माँ को उनके नाम से बुलाया था... और वो भी बिना किसी झिझक के)! उनसे बेहतर, उनसे अच्छी कोई और लड़की नहीं है मेरे लिए!” वो बड़े गर्व से बोला, “एंड आई होप कि मैं भी उनके लिए सूटेबल मैन होऊँ!”
“वेल... माँ ने भी तो तुमको पसंद किया है न! तो... मेरे ख़याल से... तुम आलरेडी उनके लिए सूटेबल मैन हो!” मैंने उसको समझाया, “लेकिन मैं इस बारे में नहीं कह रहा था। शादी एक बड़ा निर्णय है। तुमने सारे कॉनसीक्वेंसेस के बारे में सोचा तो है न? तुम्हारी उम्र क्या है अभी? इक्कीस - बाईस? माँ तुमसे इतनी ही बड़ी हैं। जब तुम चालीस के होंगे, तो माँ साठ के ऊपर हो जाएँगी। समझ रहे हो न?”
पता नहीं सुनील को क्या समझ में आया।
“समझ रहा हूँ, भैया!” वो बड़े गंभीरता से बोला, “लेकिन... शादी में सेक्स ही तो सब कुछ नहीं होता। आई लव सुमन... एंड शी लव्स मी! मेरे ख़याल से प्यार सबसे बड़ी चीज़ है शादी में!”
“हाँ... वो तो है ही!”
मैंने कह तो दिया, लेकिन पूरी शाम में पहली बार मुझे चमका कि इन दोनों की शादी होगी, तो सेक्स भी तो होगा! सुनील के मेरी माँ के साथ होने वाले अंतरंग सम्बन्ध की अवश्यम्भावी स्थिति को सोच कर मुझे बहुत अजीब सा लगा! बहुत ही अजीब! और ऊपर से यह संज्ञान कि एक तरफ तो मैं खुद भी उसकी अम्मा के साथ सम्भोग करता रहता हूँ! मैं उसकी अम्मा के साथ, और अब वो मेरी अम्मा के साथ! हे भगवान!
जीवन में कैसे कैसे नाटकीय परिवर्तन आते हैं। लगता है जैसे कल की ही तो बात हो - जब मैं उसको क-ख-ग-घ सिखाता था! और आज!
चलो पुरानी गानों में ही जज़्बातों की महक बसती है“उनका ख़याल अच्छे से रखना सुनील। वो तुमको अपने दिलोजान से प्यार करेंगी!”
“ये भी कोई कहने वाली बात है भैया? आप कभी भी सुमन की चिंता न करिएगा अब!”
“गुड टू नो!” मैंने कहा, “आज मैं बहुत खुश हूँ! बहुत! थोड़ा मर्दों वाला सेलिब्रेशन करें? स्कॉच?”
यह पहली बार था जब मैंने सुनील को किसी भी प्रकार की मदिरा मेरे साथ पीने की पेशकश करी थी।
वो हिचकिचाया, फिर उसने माँ की तरफ़ देखा। माँ मुस्कुराईं और उन्होंने हल्के से ‘हाँ’ में सर हिलाया। मैंने ऐसा अभिनय किया कि दोनों को न लगे कि मैंने उनको ऐसा करते देखा है।
सुनील मेरी तरफ़ देख कर बोला, “थैंक यू भैया... यस प्लीज!”
स्कॉच पीते पीते मैंने सुझाव दिया कि आज बाहर चल कर किसी बढ़िया होटल में खाएँगे और वहाँ केक काट कर सेलिब्रेट करेंगे फिर से! सभी को ये सुझाव जँच गया। तो मैं, हम सभी को कार में लेकर उसी पाँच सितारा होटल ले कर गया, जहाँ सुनील और माँ के लिए रोमांटिक डिनर की बुकिंग करी थी। वहाँ आनन फानन में हमारी टेबल को उत्सव के अनुरूप ही सजा दिया गया! बढ़िया खाना, संगीत, हंसी मज़ाक करते हुए, चुटकुले सुनते सुनाते आज की शाम अच्छी बीत गई। माँ बहुत खुश लग रही थीं... ऐसा नहीं है कि उनको ऐसे दिखावटी प्रोग्राम की आवश्यकता थी। लेकिन फिर भी, उनको सबसे ख़ुशी इस बात की मिल रही थी कि हम सभी उनकी ख़ुशी में शामिल थे। उनके होंठों पर वही पुरानी वाली मुस्कान देख कर दिल आनंद से भर आया।
जब मेरा खुद का दिल भी विचारों से खाली हो गया, तब बस एक ही ख़याल आया - काश माँ हमेशा ऐसी ही रहें : हँसती मुस्कुराती और खूबसूरत! जब ये ख़याल आया, तब सुनील और उनका संग बिलकुल भी नहीं खला। सुनील ही उनका साथी है!
**
जब हम सभी वापस घर लौटे, तब तक साढ़े नौ के आस पास हुआ रहेगा। कोई देर नहीं थी। वैसे भी घर में सभी बड़े उत्साह में थे। दोनों बच्चों की गर्मी की छुट्टियाँ शुरू हो गई थीं, और आज वो सोने के मूड में लग भी नहीं रही थीं।
“बोऊ दी,” लतिका ने चहकते हुए कहा, “इतना ख़ुशी का ओकेशन है - आपकी और दादा की इंगेजमेंट हुई है! आप कोई मीठा मीठा सा गाना सुनाइए न हमको!”
“अरे, इंगेजमेंट तो दोनों की हुई है, और गाना केवल अपनी बोऊ दी का सुनना है?” काजल ने कहा।
“हाँ!” लतिका इठलाते हुए मेरी गोदी में बैठती हुई बोली, “वो इसलिए कि बोऊ दी की आवाज़ मीठी मीठी है न, अम्मा। दादा की आवाज़ भी ठीक ठाक है... लेकिन... दादा... आपको गाना गाना भी आता है क्या?” लतिका ने अपने बड़े भाई को छेड़ा।
“इतनी बेइज़्ज़ती!” सुनील ने ड्रामा करते हुए कहा, “इतनी बेइज़्ज़ती! गाँव वालों मैं जा रहा हूँ। बम्बई, मैं आ रहा हूँ!”
“हा हा हा हा हा!” उसके नाटक पर हम सभी ठठा कर हँसने लगे।
“हाँ, जाओ जाओ! बम्बई जाओ! लेकिन बहू को साथ ले कर जाना!” काजल ने कहा।
“हाँ ख़ुशी बेटा,” उधर मैंने लतिका की बात पर हामी भरते हुए कहा, “बात तो तुम्हारी बिलकुल ठीक है - दोनों की इंगेजमेंट हुई है, तो गाना भी दोनों को साथ ही में गाना पड़ेगा!”
“क्या कहती हो जानेमन?” सुनील बोला (माँ को ऐसे अंतरंग तरीके से बुलाने पर मुझे फिर से थोड़ा अजीब लगा - लेकिन मैंने फिर से अपनी भावनाओं को काबू में किया), “गाएँ क्या? इतनी बढ़िया ऑडिएंस कहाँ मिलेगी?”
माँ ने सबके सामने खुद को ‘जान-ए-मन’ कहे जाने से शरमाते हुए कहा, “आप शुरू कीजिए, मैं आपके पीछे गाऊँगी!”
माँ को ऐसे बोलते देख कर मुझे अच्छा लगा। माँ का गाना गाना - मतलब माँ काफ़ी नार्मल हो गई हैं। एक बेहद लम्बा अरसा हो गया। पहले रोज़ कोई न कोई गीत गुनगुनाती रहती थीं। पिछले डेढ़ साल से कुछ नहीं! कम से कम मेरे सामने तो कुछ नहीं!
सुनील ने गुनगुनाना शुरू किया,
“ओ... रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे”
वाव डुएट“क्या बात है दादा! रोमांटिक सांग!” लतिका पहली लाइन पर ही चहकते हुए बोली।
“शहहह!” काजल ने उसको चुप रहने को कहा - काजल उनका गाना रिकॉर्ड भी कर रही थी।
सुनील ने बिना डिस्टर्ब हुए गाना जारी रखा,
“रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे, मोहे कहीं ले चल बाँहों के सहारे
बाग़ों में खेतों में नदिया किनारे, रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे”
माँ उस मधुर रोमांटिक गाने पर मुस्कुरा रही थीं! ऐसे सबके सामने सुनील उनके लिए ऐसा प्रेम गीत गा रहा था, इसलिए माँ के गाल शर्म से लाल हुए जा रहे थे। अपनी पंक्तियाँ ख़तम कर के सुनील ने माँ की तरफ़ इशारा किया - अब माँ की बारी थी।
कितने दिनों से उनकी गाने वाली आवाज़ सुनने को तरस गया था मैं!
“ओ... ओ ए सजनवा आजा तेरे बिना, ठंडी हवा... सही ना जाए
आ जा... हो... आ जा...
रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे, मोहे कहीं ले चल बाँहों के सहारे
हाँ... बाग़ों में खेतों में नदिया किनारे, रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे”
हा हा हा बहुत बढ़ियासुनील ने माँ के हाथ अपने हाथों में लिया, और उनको चूम लिया। अपने बेटे और बहू के इस प्रेम प्रदर्शन को देख कर काजल निहाल हुई जा रही थी। शाम से पहली बार मैं भी उन दोनों के लिए वाकई ‘बहुत खुश’ हुआ।
“ओ जैसे रुत पे छाए हरियाली, गहरी होए मुख पे... रंगत नेहा की
खेतों के संग झूमे पवन में, फुलवा सपनों के... डाली अरमां की
तेरे सिवा कछु सूझे नाहीं अब तो सांवरे”
सच में - माँ को सुनील के अलावा और कुछ सूझ ही नहीं रहा था! क्या जादू कर दिया था उस लड़के ने! उनके सूने जीवन में उसने प्रेम की मिठास घोल दी थी; प्रेम के रंग से उसने माँ को सराबोर कर दिया था!
“रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे, मोहे कहीं ले चल बाँहों के सहारे
हाँ बाग़ों में खेतों में नदिया किनारे, रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे”
ओ ओय सजनिया जान ले ले कोई मोसे, अब तो लागे नैना तोसे
आ जा, ओ आ जा”
सुनील की चंचलता और विनोदप्रियता किसी से छुपी नहीं थी - उसको इस बात की कोई परवाह नहीं कि कौन उसके साथ बैठा है। उसकी प्रेयसी, उसकी पत्नी उसके सामने थी, और वो उससे अपने प्रेम का इज़हार कर रहा था। उसको बस इसी बात से सरोकार था। मुझे यह देख कर अच्छा लगा कि उसको माँ से सच में बहुत प्रेम है।
“हो... मन कहता है दुनिया तज के, जानी बस जाऊँ, तेरी आँखों में
और मैं गोरी महकी-महकी घुल के रह जाऊं तेरी साँसों में
एक दूजे में यूँ खो जाएँ, जग देखा करे
रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे
मोहे कहीं ले चल बाँहों के सहारे
बाग़ों में खेतों में नदिया किनारे
रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे”
गाना खतम होते ही हम सभी उत्साह में तालियाँ बजाने लगे। लतिका मेरी गोदी से उछल कर उतरी, और अपनी ‘बोऊ दी’ के दोनों गालों का पिचका कर उनके होंठों को चूम ली। आभा ने भी अपनी दीदी की पूँछ होने के नाते वही किया। काजल भी माँ के सर को अपने सीने से लगा कर उनके माथे को चूम ली। बेचारे सुनील को किसी ने पूछा तक नहीं।
“बहुत बढ़िया सुनील!” मैंने ही उसके गाने की बढ़ाई करी।
“थैंक यू भैया!” उसने खींस निपोरते हुए कहा, “मुझे लगा कि मेरा गाना किसी को पसंद ही नहीं आया!”
“बहुत पसंद आया दादा,” आभा ने कहा, और अपने फ़ेवरिट ‘दादा’ की बढ़ाई करते हुए उनको भी चूमा।
“आह मेरी मिष्टी, मेरी बच्चू!” सुनील ने आभा को पकड़ कर कई बार चूमा।
“बोऊ दी, अब एक गाना आप गाइए!”
“हा हा हा! कौन सा मेरी बच्ची?”
“आपका जो मन हो! हमको तो बस आपकी मीठी सी आवाज़ में कुछ भी सुनने को मिल जाए!”
लतिका इतनी प्यारी बच्ची थी, और कैसी प्यारी प्यारी, लेकिन सयानी बातें करने लगी थी!
माँ ने एक क्षण सुनील को देखा, मुस्कुराईं और गाने लगीं,
“यशोमती मैया से बोले नंदलाला
राधा क्यों गोरी मैं क्यों काला
राधा क्यों गोरी मैं क्यों काला”
चलो यह पर्व अच्छे से बितामाँ गोरी गोरी थीं, और सुनील साँवला। दोनों की जोड़ी सुन्दर सी थी! यह गाना इस सिचुएशन पर बेहद सटीक फिट हो रहा था। लेकिन इस गाने के साथ एक बहुत पुरानी याद दौड़ती हुई चली आई - गैबी की याद! उसने भी यही गाना गाया था, जब गाँव में उसको गाने को कहा गया था!
“बोली मुस्काती मैया सुन मेरे प्यारे
बोली मुस्काती मैया सुन मेरे प्यारे
गोरी गोरी राधिका के नैन कजरारे
काले नैनों वाली ने, हो
काले नैनों वाली ने ऐसा जादू डाला
इसीलिए काला ”
“बहू जादूगर नहीं, देवी है! अप्सरा है!” काजल अपने में ही बड़बड़ा रही थी, “अच्छा हुआ मेरे इस लायक बेटे ने अपने लिए सच्चा सोना पहचान लिया! आज मैं इतनी खुश हूँ कि क्या कहूँ!”
“इतने में राधा प्यारी आई इठलाती
इतने में राधा प्यारी आई इठलाती
मैं ने न जादू डाला बोली बलखाती
मैया कन्हैया तेरा, हो
मैया कन्हैया तेरा जग से निराला
इसीलिए काला
यशोमती मैया से बोले नंदलाला
राधा क्यों गोरी मैं क्यों काला”
गाना ख़तम क्या हुआ कि काजल ने भावातिरेक में आ कर माँ को अपने सीने से लगा लिया।
“अरे वाह वाह!” वो ख़ुशी से बोल पड़ी, “क्या मिठास! क्या सुन्दर गीत बहू!”
काजल को इस तरह से माँ पर अपना प्रेम बरसाते देख कर अलग सा लगा - अलग सा, और बहुत ही अच्छा! दोनों में हमेशा से ही प्रगाढ़ प्रेम था। लेकिन अब वो निर्बाध रूप से माँ को अपनी बेटी के रूप में दुलार कर रही थी। बहुत बढ़िया!
हम सभी ने भी तालियाँ बजाईं। सुनील के चेहरे पर गर्व की दमक साफ़ दिखाई दे रही थी। आनंद ही आनंद!
सभी का और जागने का मूड था। लेकिन मैं आज थक गया था। इसलिए मैंने सभी से माफ़ी मांगी, और वहाँ से निकल लिया, और अपने बिस्तर पर आ कर लेट कर सारी परस्थिति का जायज़ा लेने लगा।
ह्म्म्म्म यह स्वाभाविक सोच हैअंतराल - विपर्यय - Update #14
मुझे लग रहा था कि शायद मैं उन दोनों से अधिक सोच रहा हूँ। जब एक परिस्थिति यूँ अचानक से सामने आ जाती है, तब शायद मनुष्य ऐसे ही करता है। मैंने दोनों की तरफ़ देखा - हाँलाकि दोनों अगल बगल बैठे हुए थे, फिर भी उन दोनों को साथ में ‘सोचना’ मुश्किल सा हो रहा था मेरे लिए। क्यों? समझ नहीं आ रहा था - शायद अपनी माँ को किसी ‘दूसरे’ पुरुष की पत्नी बने देखना मुझसे हजम नहीं हो रहा था; या फिर शायद यह बात कि सुनील को मैं तब से जानता था जब वो महज़ एक छोटा लड़का ही था! कारण चाहे जो कुछ हो, मैं न जाने कैसे और क्यों माँ को लेकर अचानक ही बहुत पज़ेसिव महसूस कर रहा था उस समय। जैसे अपनी कोई चीज़ पराई हो गई हो!
दिमाग में कितने ही विचार गुत्थमगुत्था हो रहे थे। एक समय मैं खुद ही माँ की दूसरी शादी की पैरवी कर रहा था, और अब ये! ऐसा उलट-पलट व्यवहार क्यों कर रहा था मैं? क्या इसलिए कि वो सुनील से शादी करना चाहती हैं, या फिर इसलिए कि वो अपनी इच्छा से शादी करना चाहती हैं, या फिर इसलिए कि मैं उनको अपने से दूर नहीं जाने देना चाहता? अभी अभी ही तो माँ और मेरे सम्बन्ध भी सुधरे हैं! शादी के बाद तो वो सुनील के साथ मुंबई चली जाएँगी! ऐसे कैसे चले जाने दूँ उनको? लेकिन, माँ के साथ सम्बन्ध में सुधार की वजह भी तो सुनील ही है! उसके कारण माँ सामान्य हो कर व्यवहार कर रही थीं। और उसी सुधार के कारण ही तो मैं वापस उनसे पुराने जैसे ही जुड़ पाया!
ओफ़्फ़्फ़!
और फिर सुनील चला गया तो काजल और लतिका भी चले जाएँगे साथ ही! फिर मैं केवल मिष्टी के साथ यूँ अकेला... नहीं नहीं! ऐसे कैसे हो पाएगा सब? अचानक ही मेरी ज़िन्दगी में उथल पुथल मच जाएगी यार! इस विचार से दिल बैठ गया।
बढ़ियाकाजल मुझको बहुत देर से ‘शून्य’ को निहारते देख रही थी। मैंने अचानक ही अपने कंधे पर उसका हाथ महसूस किया। वो मेरी पीठ को सहला रही थी,
“क्या सोच रहे हो?”
“कुछ नहीं!” मैंने झूठ कहा।
“अमर!” काजल मेरे चेहरे को देख कर मेरे विचार पढ़ सकती थी। कम से कम मुझे उससे तो झूठ नहीं कहना चाहिए।
मैंने कातरता से काजल की तरफ़ देखा। वो सब समझ गई।
“मैं कहीं नहीं जा रही हूँ!” उसने दबी आवाज़ में कहा, “सुनील की गृहस्थी में मैं अपनी टाँग अड़ाने थोड़े ही जाऊँगी! और मैं चली जाऊँगी तो मेरी गृहस्थी कौन देखेगा? मेरी प्यारी सी मिष्टी को कौन देखेगा?”
राहत आई! आँसू निकलने को होने वाले थे, लेकिन मैंने बड़ी मुश्किल से उनको पी लिया। जज़्बाती नहीं होना है इस समय। खुशियों का मौका है। मैं स्पॉइल स्पोर्ट क्यों बनूँ, जबकि सभी लोग खुश दिख रहे हैं?
**
वाकईकुछ देर बाद मुझे सुनील से अकेले में कुछ बातें करने का अवसर मिला। उससे बात करना आज कुछ अपरिचित सा, अनजाना सा लग रहा था। मैं मुस्कुराया। जबरदस्ती वाली मुस्कान! सच में, मैं खुद ही अपने व्यवहार से निराश होने लगा था। क्यों नहीं खुश हो पा रहा था मैं इन दोनों के लिए? ये दोनों - जो मेरे सबसे अजीज़ लोग हैं!
“भैया,” वो बोला, “आप सच में नाराज़ तो नहीं हैं?”
उसके प्रश्न से मेरा दिल ग्लानि से भर गया।
यह एक सॉल्यूशन हैइस लड़के ने अपने जीवन में हमेशा मुझे अपने पिता का स्थान दिया था। लेकिन मेरा दिल इतना छोटा है कि आज मैं उसकी ख़ुशी से खुश नहीं हो पा रहा था। ऐसा भी नहीं है कि उसने मुझसे कुछ माँग लिया हो - माँ मेरी व्यक्तिगत संपत्ति नहीं हैं। वो अपने निर्णय लेने के लिए, अपना जीवन अपने शर्तों पर जीने के लिए स्वतंत्र हैं। फिर मुझे मिर्च क्यों लग रही है?
“नहीं सुनील,” मैं कुछ पलों के लिए उसकी बात से अचकचा गया, “गुस्सा नहीं हूँ... बस, निराश हूँ।”
मेरी बात सुन कर सुनील सकते में आ गया। उसको लगा कि शायद मैं उस पर कोई इल्ज़ाम लगा रहा हूँ। मैंने बात सम्हाली,
“अपने आप से! अपने व्यवहार से! आई नो आई हैव बीन बिहेविंग लाइक अ बम! लेकिन ओनेस्टली, तुम दोनों को खुश देख कर अच्छा लग रहा है!”
“पक्की बात?” वो मुस्कुराया।
‘कितना मैच्योर है सुनील!’
“पक्की बात!” मैंने शांत स्वर में कहा, “सब कुछ ऐसे अचानक से मुझे पता चला न, इसलिए थोड़ा शॉक सा लग गया है। और कुछ नहीं। मैं ठीक हो जाऊँगा! आई ऍम हैप्पी फॉर यू गाइस!”
“उसके लिए अम्मा ज़िम्मेदार हैं भैया! उनको अचानक ही सनक सवार हो जाती है कुछ करने की न, इसलिए!” सुनील ठहर के बोला, “मैं आज शाम आप दोनों को सब बातें बताने वाला था। लेकिन अम्मा को पहले समझ आ गया, और उन्होंने हम दोनों को अकेले में ले जा कर पूछ-ताछ कर डाली। हम कुछ कहते या करते, उसके पहले ही उन्होंने ये सगाई वाला प्रोग्राम बना लिया। और आपको बताया भी नहीं।”
“अच्छा किया काजल ने! शायद मैं तब भी ऐसे ही बम के जैसे ही व्यवहार करता। वो समझती है मुझको!” मैं मुस्कुराया।
सुनील भी मुस्कुराया।
“भैया, आप और अम्मा मेरी... हमारी जड़ें हैं! आपसे दूर हो पाना पॉसिबल नहीं है हमारे लिए। इसलिए आप कभी मत सोचिएगा कि मुंबई जा कर हम आपसे दूर हो गए हैं।” सुनील वाकई बहुत मैच्योर था, “वैसे भी मुंबई - दिल्ली की फ्लाइट रोज़ ही कई सारी चलती हैं! जब मन करेगा हम मिल लेंगे!”
वक़्तवो कैसे मुझे छोटे बच्चों के जैसे मान कर समझा रहा था। मैं समझ रहा था कि सुनील क्या कर रहा है, लेकिन फिर भी मुझे अच्छा लगा।
“सुनील,” मैंने कुछ देर चुप रहने के बाद कहा, “सुनील, तुम दोनों ने ठीक से सोच तो लिया है न?”
“जी भैया,” उसने बड़ी ख़ुशी ख़ुशी कहा, “आज से नहीं, बहुत दिनों से... सालों से... मैं सुमन को चाहता हूँ (उसने आज पहली बार मेरे सामने माँ को उनके नाम से बुलाया था... और वो भी बिना किसी झिझक के)! उनसे बेहतर, उनसे अच्छी कोई और लड़की नहीं है मेरे लिए!” वो बड़े गर्व से बोला, “एंड आई होप कि मैं भी उनके लिए सूटेबल मैन होऊँ!”
“वेल... माँ ने भी तो तुमको पसंद किया है न! तो... मेरे ख़याल से... तुम आलरेडी उनके लिए सूटेबल मैन हो!” मैंने उसको समझाया, “लेकिन मैं इस बारे में नहीं कह रहा था। शादी एक बड़ा निर्णय है। तुमने सारे कॉनसीक्वेंसेस के बारे में सोचा तो है न? तुम्हारी उम्र क्या है अभी? इक्कीस - बाईस? माँ तुमसे इतनी ही बड़ी हैं। जब तुम चालीस के होंगे, तो माँ साठ के ऊपर हो जाएँगी। समझ रहे हो न?”
पता नहीं सुनील को क्या समझ में आया।
“समझ रहा हूँ, भैया!” वो बड़े गंभीरता से बोला, “लेकिन... शादी में सेक्स ही तो सब कुछ नहीं होता। आई लव सुमन... एंड शी लव्स मी! मेरे ख़याल से प्यार सबसे बड़ी चीज़ है शादी में!”
“हाँ... वो तो है ही!”
मैंने कह तो दिया, लेकिन पूरी शाम में पहली बार मुझे चमका कि इन दोनों की शादी होगी, तो सेक्स भी तो होगा! सुनील के मेरी माँ के साथ होने वाले अंतरंग सम्बन्ध की अवश्यम्भावी स्थिति को सोच कर मुझे बहुत अजीब सा लगा! बहुत ही अजीब! और ऊपर से यह संज्ञान कि एक तरफ तो मैं खुद भी उसकी अम्मा के साथ सम्भोग करता रहता हूँ! मैं उसकी अम्मा के साथ, और अब वो मेरी अम्मा के साथ! हे भगवान!
जीवन में कैसे कैसे नाटकीय परिवर्तन आते हैं। लगता है जैसे कल की ही तो बात हो - जब मैं उसको क-ख-ग-घ सिखाता था! और आज!
चलो पुरानी गानों में ही जज़्बातों की महक बसती है“उनका ख़याल अच्छे से रखना सुनील। वो तुमको अपने दिलोजान से प्यार करेंगी!”
“ये भी कोई कहने वाली बात है भैया? आप कभी भी सुमन की चिंता न करिएगा अब!”
“गुड टू नो!” मैंने कहा, “आज मैं बहुत खुश हूँ! बहुत! थोड़ा मर्दों वाला सेलिब्रेशन करें? स्कॉच?”
यह पहली बार था जब मैंने सुनील को किसी भी प्रकार की मदिरा मेरे साथ पीने की पेशकश करी थी।
वो हिचकिचाया, फिर उसने माँ की तरफ़ देखा। माँ मुस्कुराईं और उन्होंने हल्के से ‘हाँ’ में सर हिलाया। मैंने ऐसा अभिनय किया कि दोनों को न लगे कि मैंने उनको ऐसा करते देखा है।
सुनील मेरी तरफ़ देख कर बोला, “थैंक यू भैया... यस प्लीज!”
स्कॉच पीते पीते मैंने सुझाव दिया कि आज बाहर चल कर किसी बढ़िया होटल में खाएँगे और वहाँ केक काट कर सेलिब्रेट करेंगे फिर से! सभी को ये सुझाव जँच गया। तो मैं, हम सभी को कार में लेकर उसी पाँच सितारा होटल ले कर गया, जहाँ सुनील और माँ के लिए रोमांटिक डिनर की बुकिंग करी थी। वहाँ आनन फानन में हमारी टेबल को उत्सव के अनुरूप ही सजा दिया गया! बढ़िया खाना, संगीत, हंसी मज़ाक करते हुए, चुटकुले सुनते सुनाते आज की शाम अच्छी बीत गई। माँ बहुत खुश लग रही थीं... ऐसा नहीं है कि उनको ऐसे दिखावटी प्रोग्राम की आवश्यकता थी। लेकिन फिर भी, उनको सबसे ख़ुशी इस बात की मिल रही थी कि हम सभी उनकी ख़ुशी में शामिल थे। उनके होंठों पर वही पुरानी वाली मुस्कान देख कर दिल आनंद से भर आया।
जब मेरा खुद का दिल भी विचारों से खाली हो गया, तब बस एक ही ख़याल आया - काश माँ हमेशा ऐसी ही रहें : हँसती मुस्कुराती और खूबसूरत! जब ये ख़याल आया, तब सुनील और उनका संग बिलकुल भी नहीं खला। सुनील ही उनका साथी है!
**
जब हम सभी वापस घर लौटे, तब तक साढ़े नौ के आस पास हुआ रहेगा। कोई देर नहीं थी। वैसे भी घर में सभी बड़े उत्साह में थे। दोनों बच्चों की गर्मी की छुट्टियाँ शुरू हो गई थीं, और आज वो सोने के मूड में लग भी नहीं रही थीं।
“बोऊ दी,” लतिका ने चहकते हुए कहा, “इतना ख़ुशी का ओकेशन है - आपकी और दादा की इंगेजमेंट हुई है! आप कोई मीठा मीठा सा गाना सुनाइए न हमको!”
“अरे, इंगेजमेंट तो दोनों की हुई है, और गाना केवल अपनी बोऊ दी का सुनना है?” काजल ने कहा।
“हाँ!” लतिका इठलाते हुए मेरी गोदी में बैठती हुई बोली, “वो इसलिए कि बोऊ दी की आवाज़ मीठी मीठी है न, अम्मा। दादा की आवाज़ भी ठीक ठाक है... लेकिन... दादा... आपको गाना गाना भी आता है क्या?” लतिका ने अपने बड़े भाई को छेड़ा।
“इतनी बेइज़्ज़ती!” सुनील ने ड्रामा करते हुए कहा, “इतनी बेइज़्ज़ती! गाँव वालों मैं जा रहा हूँ। बम्बई, मैं आ रहा हूँ!”
“हा हा हा हा हा!” उसके नाटक पर हम सभी ठठा कर हँसने लगे।
“हाँ, जाओ जाओ! बम्बई जाओ! लेकिन बहू को साथ ले कर जाना!” काजल ने कहा।
“हाँ ख़ुशी बेटा,” उधर मैंने लतिका की बात पर हामी भरते हुए कहा, “बात तो तुम्हारी बिलकुल ठीक है - दोनों की इंगेजमेंट हुई है, तो गाना भी दोनों को साथ ही में गाना पड़ेगा!”
“क्या कहती हो जानेमन?” सुनील बोला (माँ को ऐसे अंतरंग तरीके से बुलाने पर मुझे फिर से थोड़ा अजीब लगा - लेकिन मैंने फिर से अपनी भावनाओं को काबू में किया), “गाएँ क्या? इतनी बढ़िया ऑडिएंस कहाँ मिलेगी?”
माँ ने सबके सामने खुद को ‘जान-ए-मन’ कहे जाने से शरमाते हुए कहा, “आप शुरू कीजिए, मैं आपके पीछे गाऊँगी!”
माँ को ऐसे बोलते देख कर मुझे अच्छा लगा। माँ का गाना गाना - मतलब माँ काफ़ी नार्मल हो गई हैं। एक बेहद लम्बा अरसा हो गया। पहले रोज़ कोई न कोई गीत गुनगुनाती रहती थीं। पिछले डेढ़ साल से कुछ नहीं! कम से कम मेरे सामने तो कुछ नहीं!
सुनील ने गुनगुनाना शुरू किया,
“ओ... रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे”
वाव डुएट“क्या बात है दादा! रोमांटिक सांग!” लतिका पहली लाइन पर ही चहकते हुए बोली।
“शहहह!” काजल ने उसको चुप रहने को कहा - काजल उनका गाना रिकॉर्ड भी कर रही थी।
सुनील ने बिना डिस्टर्ब हुए गाना जारी रखा,
“रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे, मोहे कहीं ले चल बाँहों के सहारे
बाग़ों में खेतों में नदिया किनारे, रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे”
माँ उस मधुर रोमांटिक गाने पर मुस्कुरा रही थीं! ऐसे सबके सामने सुनील उनके लिए ऐसा प्रेम गीत गा रहा था, इसलिए माँ के गाल शर्म से लाल हुए जा रहे थे। अपनी पंक्तियाँ ख़तम कर के सुनील ने माँ की तरफ़ इशारा किया - अब माँ की बारी थी।
कितने दिनों से उनकी गाने वाली आवाज़ सुनने को तरस गया था मैं!
“ओ... ओ ए सजनवा आजा तेरे बिना, ठंडी हवा... सही ना जाए
आ जा... हो... आ जा...
रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे, मोहे कहीं ले चल बाँहों के सहारे
हाँ... बाग़ों में खेतों में नदिया किनारे, रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे”
हा हा हा बहुत बढ़ियासुनील ने माँ के हाथ अपने हाथों में लिया, और उनको चूम लिया। अपने बेटे और बहू के इस प्रेम प्रदर्शन को देख कर काजल निहाल हुई जा रही थी। शाम से पहली बार मैं भी उन दोनों के लिए वाकई ‘बहुत खुश’ हुआ।
“ओ जैसे रुत पे छाए हरियाली, गहरी होए मुख पे... रंगत नेहा की
खेतों के संग झूमे पवन में, फुलवा सपनों के... डाली अरमां की
तेरे सिवा कछु सूझे नाहीं अब तो सांवरे”
सच में - माँ को सुनील के अलावा और कुछ सूझ ही नहीं रहा था! क्या जादू कर दिया था उस लड़के ने! उनके सूने जीवन में उसने प्रेम की मिठास घोल दी थी; प्रेम के रंग से उसने माँ को सराबोर कर दिया था!
“रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे, मोहे कहीं ले चल बाँहों के सहारे
हाँ बाग़ों में खेतों में नदिया किनारे, रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे”
ओ ओय सजनिया जान ले ले कोई मोसे, अब तो लागे नैना तोसे
आ जा, ओ आ जा”
सुनील की चंचलता और विनोदप्रियता किसी से छुपी नहीं थी - उसको इस बात की कोई परवाह नहीं कि कौन उसके साथ बैठा है। उसकी प्रेयसी, उसकी पत्नी उसके सामने थी, और वो उससे अपने प्रेम का इज़हार कर रहा था। उसको बस इसी बात से सरोकार था। मुझे यह देख कर अच्छा लगा कि उसको माँ से सच में बहुत प्रेम है।
“हो... मन कहता है दुनिया तज के, जानी बस जाऊँ, तेरी आँखों में
और मैं गोरी महकी-महकी घुल के रह जाऊं तेरी साँसों में
एक दूजे में यूँ खो जाएँ, जग देखा करे
रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे
मोहे कहीं ले चल बाँहों के सहारे
बाग़ों में खेतों में नदिया किनारे
रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे”
गाना खतम होते ही हम सभी उत्साह में तालियाँ बजाने लगे। लतिका मेरी गोदी से उछल कर उतरी, और अपनी ‘बोऊ दी’ के दोनों गालों का पिचका कर उनके होंठों को चूम ली। आभा ने भी अपनी दीदी की पूँछ होने के नाते वही किया। काजल भी माँ के सर को अपने सीने से लगा कर उनके माथे को चूम ली। बेचारे सुनील को किसी ने पूछा तक नहीं।
“बहुत बढ़िया सुनील!” मैंने ही उसके गाने की बढ़ाई करी।
“थैंक यू भैया!” उसने खींस निपोरते हुए कहा, “मुझे लगा कि मेरा गाना किसी को पसंद ही नहीं आया!”
“बहुत पसंद आया दादा,” आभा ने कहा, और अपने फ़ेवरिट ‘दादा’ की बढ़ाई करते हुए उनको भी चूमा।
“आह मेरी मिष्टी, मेरी बच्चू!” सुनील ने आभा को पकड़ कर कई बार चूमा।
“बोऊ दी, अब एक गाना आप गाइए!”
“हा हा हा! कौन सा मेरी बच्ची?”
“आपका जो मन हो! हमको तो बस आपकी मीठी सी आवाज़ में कुछ भी सुनने को मिल जाए!”
लतिका इतनी प्यारी बच्ची थी, और कैसी प्यारी प्यारी, लेकिन सयानी बातें करने लगी थी!
माँ ने एक क्षण सुनील को देखा, मुस्कुराईं और गाने लगीं,
“यशोमती मैया से बोले नंदलाला
राधा क्यों गोरी मैं क्यों काला
राधा क्यों गोरी मैं क्यों काला”
चलो यह पर्व अच्छे से बितामाँ गोरी गोरी थीं, और सुनील साँवला। दोनों की जोड़ी सुन्दर सी थी! यह गाना इस सिचुएशन पर बेहद सटीक फिट हो रहा था। लेकिन इस गाने के साथ एक बहुत पुरानी याद दौड़ती हुई चली आई - गैबी की याद! उसने भी यही गाना गाया था, जब गाँव में उसको गाने को कहा गया था!
“बोली मुस्काती मैया सुन मेरे प्यारे
बोली मुस्काती मैया सुन मेरे प्यारे
गोरी गोरी राधिका के नैन कजरारे
काले नैनों वाली ने, हो
काले नैनों वाली ने ऐसा जादू डाला
इसीलिए काला ”
“बहू जादूगर नहीं, देवी है! अप्सरा है!” काजल अपने में ही बड़बड़ा रही थी, “अच्छा हुआ मेरे इस लायक बेटे ने अपने लिए सच्चा सोना पहचान लिया! आज मैं इतनी खुश हूँ कि क्या कहूँ!”
“इतने में राधा प्यारी आई इठलाती
इतने में राधा प्यारी आई इठलाती
मैं ने न जादू डाला बोली बलखाती
मैया कन्हैया तेरा, हो
मैया कन्हैया तेरा जग से निराला
इसीलिए काला
यशोमती मैया से बोले नंदलाला
राधा क्यों गोरी मैं क्यों काला”
गाना ख़तम क्या हुआ कि काजल ने भावातिरेक में आ कर माँ को अपने सीने से लगा लिया।
“अरे वाह वाह!” वो ख़ुशी से बोल पड़ी, “क्या मिठास! क्या सुन्दर गीत बहू!”
काजल को इस तरह से माँ पर अपना प्रेम बरसाते देख कर अलग सा लगा - अलग सा, और बहुत ही अच्छा! दोनों में हमेशा से ही प्रगाढ़ प्रेम था। लेकिन अब वो निर्बाध रूप से माँ को अपनी बेटी के रूप में दुलार कर रही थी। बहुत बढ़िया!
हम सभी ने भी तालियाँ बजाईं। सुनील के चेहरे पर गर्व की दमक साफ़ दिखाई दे रही थी। आनंद ही आनंद!
सभी का और जागने का मूड था। लेकिन मैं आज थक गया था। इसलिए मैंने सभी से माफ़ी मांगी, और वहाँ से निकल लिया, और अपने बिस्तर पर आ कर लेट कर सारी परस्थिति का जायज़ा लेने लगा।
सुखद अनुभवअंतराल - विपर्यय - Update #18
“कैसा लगा?” उन्होंने पूछा, “अच्छा?”
रेडियो में नया गाना बज रहा था,
‘दिल ने पुकारा देखो रुत का इशारा देखो
उफ़ ये नज़ारा देखो... कैसा लगता है... बोलो
ऐसा लगता है कुछ हो जाएगा
मस्त पवन के ये झोके सैयाँ
देख रहे हो... देख रहे हो’
इस प्रश्न पर सुनील ने अपनी आँखें नचाईं। कुछ कहने की आवश्यकता थी क्या भला? माँ खिलखिला कर हँसने लगीं।
“अरे दुल्हनिया... तू कमाल है यार! हमारी सेक्स लाइफ गज़ब की होने वाली है!”
“हा हा!”
थोड़ा संयत हो कर सुनील बोला, “सोचा था कि देर तक सेक्स करेंगे आज की रात!”
“तो कीजिए न!”
“अभी?”
“हाँ!”
“लेकिन... मेरा तो सब तुमने पी लिया है...”
“मेरे साजन...,” आखिरकार माँ ने भी सुनील के अंदाज में कहा, “इसको तो मैं यूँ खड़ा कर दूँगी...”
माँ ने बड़ी अदा से कहा और उठते हुए अपनी पैंटीज़ उतार दीं। साक्षात् रति का रूप! इस समय उनके शरीर के हर अंग से कामना टपक रही थी। उनके प्यारे से स्तनों के ऊपर उत्तेजित चूचक सुशोभित हो रहे थे, और उनके शरीर का कसाव कुछ और अधिक लग रहा था। उनकी आँखों में भी कामुक उत्तेजना साफ़ दिखाई दे रही थी। आज पहली बार सुनील ने उनकी योनि पर उपस्थित पशम को खूबसूरती से कटे हुए देखा!
‘वाओ! कैसा रूप!’
‘एक्सोटिक!’
सुनील बिस्तर पर माँ के पैरों की तरफ चला गया, और उसने झुक कर उनके नाज़ुक से टखनों को पकड़ लिया। उसकी आँखें उस खूबसूरती से छंटे हुए, चमकदार योनि-पशम पर टिकी हुई थीं। उसने माँ की टांगों को फैलाया। कहाँ वो बेतरतीब सा जंगल, और कहाँ ये खूबसूरती से मैनीक्योर (सुव्यवस्थित) किया हुआ एक्सोटिक सा बाग़! सच में - सुनील पर इसका बड़ा ही सकारात्मक प्रभाव पड़ा। पहली बार उसने माँ के भगोष्ठों को देखा - कामुक आवेश से फूले हुए होंठ, उनके भीतर छुपी हुई लाल फूल जैसी पंखुड़ियाँ, और क्लिटोरल हुड के नीचे छुपा हुआ उनका भगशेफ़! अद्भुत नज़ारा! कुछ ही पल पहले स्खलन होने के बावजूद, सुनील उस दृश्य को देख कर पुनः उत्तेजना वाली गुदगुदी महसूस करने लगा।
माँ अपनी चुनौती पर खरी उतर रही थीं। सच में, सुनील ‘यूँ’ ही फिर से तैयार हो सकता था।
और फिर सुनील की नज़र उनकी जाँघों और पैरों पर पड़ी। कौन सा अंग उसको नापसंद था! कुछ भी ऐसा नहीं था सुमन में जो उसको पसंद न आता हो।
घुटने के बल बैठ कर वो माँ के ऊपर झुक गया और उनके पैरों को सहलाते हुए उनकी जाँघों को चूमने लगा और दूसरी को सहलाने लगा। वो जानबूझ कर उनकी योनि को सहलाने से खुद को रोक रहा था। इस हरकत से न केवल माँ फिर से उत्तेजित हो रही थीं, बल्कि सुनील भी उसी गति से उत्तेजना प्राप्त कर रहा था। वैसे भी सुनील उनकी योनि को फिर से छूने से पहले फिर से पूर्ण रूप से स्तंभित होना चाहता था। माँ की योनि के खुले हुए होंठों के बीच वो नम चमक साफ़ देख सकता था, जो अब योनि के निचले सिरे से बाहर निकल रही थी। ‘बढ़िया!’
उसका चूमना और सहलाना जारी रहा। शरीर का हर अंग। शरीर का हर कोना। उँगलियों से उसने माँ के उत्तेजित चूचकों को छेड़ा - उनका शरीर उसी तरह से झनझना गया जैसे कुछ देर पहले मुख-मैथुन के आनंद में सुनील का झनझना रहा था। माँ नियंत्रण से बाहर आते हुए कराह रही थीं। अपने शरीर को समायोजित कर रही थीं कि उनके अंगों का अधिक से अधिक अंश सुनील के हाथों में समा जाए, जिससे मदन क्रीड़ा में जो कष्ट उनको मिल रहा है, वो कुछ कम हो सके। लेकिन सुनील बदमाशी कर रहा था। माँ की इस हालत पर उसको मज़ा आ रहा था और उसकी खुद की उत्तेजना भी बढ़ रही थी। यह पूरा अनुभव बेहद अद्भुत था! दोनों के लिए ही। दोनों ही अब तक यौन क्रीड़ा का खुल कर आनंद ले रहे थे, और एक दूसरे को इस तरह से कामुक तरीके से छेड़ना दोनों को ही बहुत पसंद आया।
माँ की आँखों में देखते हुए, सुनील ने उनके स्तनों को सहलाया। उनकी आँखों में बुखार सा लग रहा था... उनमें कोई फोकस नहीं था। लग रहा था कि वो कहीं और ही हैं। धरती पर नहीं, कहीं और! सही समय था - सुनील उनके ऊपर आ गया और उनके स्तनों को चूमने, चूसने, चुभलाने और कुतरने लगा। आनंदातिरेक में माँ की आँखें बंद हो गईं। सम्भोग का आग्रह करते हुए उनकी कमर बिस्तर से उठ गई। वो चाहती थीं कि बस, अब सुनील का लिंग उनके अंदर प्रविष्ट हो जाए! वो कराह उठीं; उन्होंने अपने हाथों से सुनील का सर पकड़ लिया, और उसको अपने स्तनों पर ज़ोर से भींच लिया।
सुनील समझ रहा था कि माँ तैयार हैं। उनके स्तनों को छोड़ने से पहले उसने एक आखिरी बार उनके चूचकों को सहलाया, फिर उसने उनकी योनि की तरफ रुख किया। मुख मैथुन का आनंद जो माँ ने दिया था, वो उनको वापस देना चाहता था। ऐसे ही आनंदों के आदान प्रदान को ही तो सम्भोग कहते हैं। अंतर्वेधन सम्भोग थोड़े ही होता है। उसने माँ की योनि को देखते हुए, उनके नितंबों के बाहरी किनारों को सहलाया। थोड़ा झुक कर उसने माँ के कामोत्तेजना की सुगन्ध ली।
माँ की हालत अनूठी थी। सच में - आज से पहले उनको इस तरह से कभी भोगा नहीं गया था। सम्भोग के चरमोत्कर्ष को अनगिनत बार अनुभव कर पाना संभव भी था क्या? अपना यह नया पहलू माँ को आज पहली बार मालूम हुआ। थोड़ी ही देर पहले उन्होंने अपने पति को मौखिक सुख दिया था। अब वही सुख पाने की बारी उनकी थी... आनंद से विलाप करने की बारी उनकी थी!
सुनील ने उनकी योनि के होंठों को चूमा और उसका स्वाद चखा। जब उसकी जीभ की नोक ने उके भगशेफ़ को छेड़ा तब तक उनके कूल्हे सम्भोग के आग्रह में चिरंतन चल रहे ताल में हिलने लग गए थे। जबकि सुनील अभी तक उनके अंदर प्रविष्ट होने के मूड में था भी नहीं!
“ओह,” माँ उसकी जीभ के खेल से कराह उठीं और उनके कूल्हे उसके मुँह पर तेजी से चलाने लगीं।
बिना उनकी योनि को छुए, सुनील केवल अपनी जीभ से ही उनके भगोष्ठों को छेड़ रहा था। एक समय आया जब सुनील की जीभ उनकी योनि के द्वार में प्रविष्ट हो गई। सुनील को उसकी नमी महसूस हुई। माँ के नितम्ब लयबद्ध तरीके से आगे पीछे हो रहे थे; उन्होंने सुनील का सर अपनी योनि में दबाया। सुनील इस बात के लिए कोई शिकायत नहीं कर रहा था - उसको उनकी योनि के शहद का अद्भुत स्वाद मिल रहा था! सुनील को विश्वास नहीं हो रहा था, कि सुमन की योनि कितनी गीली हो गई थी, और इस बात ने उसके भीतर के कामना को और भी भड़का दिया। अब तक सुनील को समुचित अनुभव मिल चुका था - वो माँ की हरकतों और उनकी आवाज़ों से समझ रहा था कि उनका ओर्गास्म निकट ही है। वो उनकी जाँघों में उठने वाली बेकाम तरंगों को महसूस कर रहा था। वो समझ रहा था कि माँ अब आईं, कि तब आईं!
रेडियो पर कोई गाना बज रहा था।
क्या बज रहा था, अब दोनों को नहीं सुनाई दे रहा था।
अपने एक हाथ के अँगूठे से उसने माँ के भगशेफ को रगड़ना शुरू किया, और दूसरे हाथ की तर्जनी को उनकी योनि में प्रविष्ट किया। और दोनों उँगलियों के बीच के स्थान को अपनी जीभ से सहलाने लगा।
“आह!” माँ असहनीय आनंद से चिहुँक गईं।
कई क्षणों के लिए माँ की साँसे रुक गईं। इस तिहरे प्रहार से माँ का चरमोत्कर्ष बड़े हिंसक रूप से प्रकट हुआ। चरमोत्कर्ष पर पहुँच कर उनका शरीर अकड़ गया, और उसके ही उन्माद में वो अपनी योनि को सुनील के मुँह से टकराने लगीं, और रगड़ने लगीं। उनका पूरा वजूद - शरीर का हर एक अंग - हर्षातिरेक से काँप रहा था। बिस्तर पर कई बार उन्होंने अपने नितम्ब उठाने की कोशिश करी और हर बार किसी थके हुए अश्व की तरह वापस बिस्तर पर गिर गईं। उनका कामरस सुनील के व्यस्त मुख में रिसने लगा।
“हे भगवान!”
जब शरीर धोखा दे गया तब उन्होंने हाथों से ही सुनील के सर को पकड़ कर अपनी योनि से भींच लिया। कामोत्तेजना का ऐसा निर्लज्ज प्रदर्शन! माँ ने कभी सोचा भी नहीं था कि वो ये सब करने में समर्थ भी हैं! उनके दिमाग में ये बात आ रही थी, और वो सकुचा भी रही थीं। लेकिन इस समय वो पाशविक भावनाओं के वशीभूत हो चली थीं। सुनील का सर पकड़े पकड़े ही उन्होंने अपनी योनि को उसके मुख पर व्यग्रता से रगड़ा। इतना प्रबल ओर्गास्म! वो भी इतनी जल्दी! माँ आनंद से कराह रही थीं, क्योंकि उनके चरमोत्कर्ष ने उनको आश्चर्यजनक रूप से अभिभूत कर दिया था। अब तक सुनील भी पूरी तरह से कठोर स्तम्भन हासिल कर चुका था। लेकिन फिलहाल वो माँ की हिंसक कामोत्तेजना से मनोरंजक तरीके से हैरान हो रहा था! एक ही दिन के भीतर उसने अपनी पत्नी को ऐसा बना दिया था!
“आह्ह्ह! बस... बस...” माँ ने सुनील के मुख को अपनी योनि से परे धकेला, “प्लीज प्लीज!” वो गिड़गिड़ाई!
अपनी काम-कला के कौशल के ऐसे असामान्य प्रदर्शन पर खुद ही गर्व का अनुभव करते हुए सुनील माँ की योनि छोड़ कर ऊपर आ गया और माँ के बगल आ कर लेट गया। माँ भी उसके इस असामान्य कौशल से प्रभावित थीं और अनुगृहीत भी। दोनों के शरीर पसीने से तर थे, लेकिन फिर भी एक दूसरे के आलिंगन में बँध कर अपार सुख की अनुभूति महसूस कर रहे थे। सुनील का कठोर लिंग माँ के पेड़ू पर दबाव बना रहा था और उनको भी मालूम था कि आज की रात में उनके सम्भोग का अगला पड़ाव आने ही वाला है।
“मेरी सुमन... मज़ा आया?”
“पूरी ज़िंदगी ऐसा मज़ा नहीं आया...!” माँ ने सुनील की छाती में सिमटे हुए, थके हुए, नरम, लेकिन बेहद संतुष्ट स्वर में फुसफुसाते हुए कहा।
सुनील यह सुनकर अत्यंत प्रसन्न और गौरवान्वित हुआ! अपने यौन कौशल की प्रशंसा सुनकर कौन आदमी प्रसन्न और गौरवान्वित नहीं होगा? लेकिन माँ सचमुच चकित थीं। उन्होंने आज के ही दिन छः बार अद्भुत ओर्गास्म प्राप्त कर लिए थे, और ये उनके विवाहित जीवन का पहला ही दिन था! मधुमास - हाँ, सही नाम दिया गया है इसको! मधुमास एक तरह का उत्सव ही होता है विवाहित स्त्री और पुरुष के बीच! जहाँ दोनों के बीच संकोच, लज्जा, गोपनीयता इत्यादि का कोई स्थान नहीं होता।
“कैसी वल्गर हो गई मैं!” माँ ने संकोच करते हुए कहा।
“जानेमन, मेरे सामने वल्गर नहीं होगी, तो क्या पड़ोसी के सामने होगी?” सुनील ने माँ की टाँग खिंचाई करी।
माँ ने थके हुए ही हँसते हुए सुनील की पसली में एक मज़ाकिया मुक्का मारा।
सच में - कैसी अभूतपूर्व संतुष्टि!
कैसा अभूतपूर्व अनुभव!
वो दोनों ही कुछ देर के लिए शांति से आराम करते रहे। लेकिन सुनील का स्तम्भन अभी भी उतना ही कठोर और उतना ही मज़बूत था। मानना पड़ेगा - वो अपने सामने माँ के आनंद को अधिक तरजीह दे रह था। माँ भी इस बात को समझ रही थीं, और उसके इस व्यवहार से वो आश्चर्य और गौरव से दंग थीं! नहीं तो आदमी को बस अपने ही आनंद की परवाह रहती है हमेशा! उधर, सुनील भी जानता था कि एक आखिरी चीज है जो माँ चाहती हैं - बिना अंतर्वेधन हुए माँ उसको सोने नहीं देने वाली थीं - और उस संज्ञान ने उसके स्तम्भन को उत्साहित कर रखा था। अब वो भी उनके अंदर प्रविष्ट होना चाहता था। बेसब्री से!
माँ ने सुनील की बालों से ढँकी छाती को सहलाते हुए उसके बाहों को चूमा, और दूसरे हाथ को उसके शरीर के नीचे की तरफ़, उसके पेट से होते हुए, उसके आतुर, कठोर और धड़कते हुए स्तम्भन तक पहुँचाया। इस बार उनको कोई झिझक नहीं थी। उन्होंने थोड़ा उठ कर सुनील के होंठों को चूमा, और उसके सीने को सहलाना जारी रखा। उनके चुम्बन से सुनील की रही सही उत्तेजना वापस लौट आई - माँ ने पहल करते हुए उसको चूमना जारी रखा और कुछ ही देर में उनका चुंबन और अधिक आग्रहपूर्ण हो गया। दोनों की जीभें मल्ल युद्ध करने लगीं। सुनील को ऐसे चूमा जाना बहुत अच्छा लगा! उसको माँ को ऐसे उत्तेजित हुए देखना भी बहुत अच्छा लगा - आखिरकार उसकी पत्नी उसके साथ खुल कर अपनी इस नई कामुकता का आनंद ले रही थी! और उस कामुकता के मूल में वो स्वयं था!
सुनील माँ की आँखों में एक अलग ही तरह की खुमारी देख सकता था और समझ रहा था कि ये कामोत्तेजना की खुमारी थी। एक पल को उसने सोचा कि क्या उसकी आँखों में भी उत्तेजना की वैसी ही खुमारी दिखाई दे रही होगी? माँ ने चुंबन को तोड़ा और अपनी पीठ के बल लेट गईं। उनका शरीर एक कामुक तरीके से सुनील के सामने बिछ गया। साथ ही साथ उसको देखते हुए वो एक कामुक मुस्कान दे रही थीं। यह निमंत्रण था। हवन की वेदी आहुति प्राप्त करने के लिए तैयार थी। सुनील ने दिल भर कर कामदेवी जैसी अपनी पत्नी को देखा - उसका एक एक अंग मानो कामुकता के रस से भीगा हुआ था! बिना कुछ कहे ही उनका हर अंग सुनील को आमंत्रित कर रहा था। सुनील को अपनी खुद की उत्तेजना की तपन महसूस हो रही थी! उसको बुखार सा महसूस हो रहा था... वो उत्तेजना से काँप रहा था! अब रुकना मुश्किल था। वो उठा और माँ के पैरों के बीच खुद को व्यवस्थित करने लगा।
सुनील यौन उत्तेजना से काँप रहा था : उसका रुक पाना अब संभव नहीं था! रोकना और रुकना भी कौन चाहता था वैसे? पूर्वानुमान से काँपते काठों से उसने धीरे से माँ की जाँघों को खोला - उनकी योनि के होंठ खुल गए। बस थोड़े से! किसी कामुक प्रेमी के लिए एक नयनाभिराम दृश्य! छोटे छोटे, मैनिक्योर्ड, काले पशम के बीच माँ की योनि के होंठ, उनकी सेक्सी, पुष्ट जाँघों के बीच ऐसे लग रहे थे कि जैसे किसी घोंसले के अंदर दुबके हुए छोटे छोटे दो चूज़े हों! दोनों होंठ उनके पिछले ओर्गास्म के रस से भीग कर चमक रहे थे। माँ ने एक और काम किया जिससे सुनील का रहा सहा नियंत्रण जाता रहा - उन्होंने हाथ बढ़ा कर अपनी तर्जनी और मध्यमा की मदद से अपनी योनि के होंठ थोड़े और खोल दिए। उनको ऐसा करते देख कर सुनील के माथे पर पसीने आ गए।
“और मत सताइए अब...” उन्होंने फुसफुसाते हुए कहा।
बात तो सही थी। वैसे सुनील भी अब माँ को और सताने की स्थिति में नहीं था। उसका दिल ज़ोरों से धड़क रहा था, क्योंकि वो भी सोच रहा था कि वो माँ के इस पूर्ण समर्पण का आनंद कैसे ले! वो उसे आमंत्रित कर रही थीं, और यह एक अद्भुत एहसास था! इस समय सुनील अपने अब तक के सबसे प्रबल स्तम्भनों में से एक स्तम्भन प्राप्त कर चुका था। कुछ देर और अगर वो रुक गया तो बाहर ही स्खलित हो जायेगा।
तो अब रुकने वाली कोई बात नहीं थी। सुनील ने थोड़ा सा ज़ोर लगाया - माँ के चेहरे पर फिर से पीड़ा वाले भाव आ गए, लेकिन इस कठोर लिंग को अपनी मनमर्ज़ी करने से रोक पाना उनकी कोमल योनि के लिए संभव नहीं था। ऊपर से इतने लम्बे फोरप्ले के बाद माँ की योनि इस कदर चिकनी हो चली थी, कि केवल गुरुत्व मात्र से कोई वस्तु उनके अंदर चली जाती! केवल आधा लिंग अंदर गया, लेकिन उनकी योनि के कोमल होंठ अपनी सीमा से परे खिंच गए। तकलीफ और आनंद से तड़पते हुए माँ ने ज़ोर से आह भरी। अगर कोई जाग रहा हो, तो उसने सुना अवश्य होगा। उनके अंदर पहुँच कर सुनील को ऐसा कोमल, गुदगुदी का अनुभव हुआ कि सुनील का मन हुआ कि तेजी से सम्भोग को गति दी जाए - लेकिन उसने किसी तरह से खुद पर नियंत्रण बनाए रखा। वो बस धीरे-धीरे से अंदर बाहर होता रहा - छोटे छोटे धक्के! ये उसने अच्छा किया - कुछ पलों बाद माँ का दर्द कम हो गया, और बर्दाश्त के अंदर आ गया। अब माँ भी उसकी ही ताल में थिरकने लगीं। हर धक्के के साथ, सुनील कामुक आनंद के सागर में और गहरे डुबकी लगाने लगा। शीघ्र ही उनकी धक्के लम्बे और और भी गहरे होने लगे।
सुनील जब उनके अंदर पूरी तरह से प्रविष्ट हो गया, तो दोनों ही एक पल को रुक गए। दोनों ही उसके स्तम्भन की धड़कन को महसूस कर पा रहे थे। उसने एक-एक करके माँ के स्तनों को सहलाया और चूमा... जैसे ही उसने ऐसा किया, उसने महसूस किया कि उसका स्तम्भन किंचित ही सही, लेकिन शायद थोड़ा और भी बढ़ गया था। उसका एक कारण यह भी हो सकता है कि माँ की योनि उसके लिंग की लम्बाई को अद्भुत तरीके से दबा रही थी। अपने ही उन्माद में मत्त माँ ने अपना हाथ बढ़ाया, और अपने स्तनों को पकड़े हुए सुनील के हाथों को पकड़ कर ज़ोर से अपनी छाती पर भींच लिया। और साथ ही साथ अपने नितम्बों को उचकाने लगीं - जैसे वो सुनील को उकसा रही हों कि ‘रुक क्यों गए’! बिना कुछ कहे बातें! सुनील ने भी उनका कहा हुआ सुना और धक्के लगाने लगा। शीघ्र ही उनकी हरकतें लंबे और गहरे कामुक धक्कों में परिवर्तित हो जाती हैं। माँ का कमरा शीघ्र ही उनके प्रेम-प्रसंग से उत्पन्न होने वाले शोर से भर गया।
सुनील को मालूम था कि सोने से पहले वो सुमन को केवल एक बार ही भोग सकता है - तो वो पूरी तबियत से, तसल्ली से ये काम करना चाहता था। तो उसने वही किया... एक धीमा रमणीय प्रेम-समागम! अपनी जल्दी जल्दी करने की इच्छा के बावजूद! बड़ी मेहनत से सुनील ने खुद पर नियंत्रण किया और बिना कोई जल्दबाजी किए धीरे धीरे, देर तक माँ को भोगता रहा। तब तक, कि जब तक दोनों का ओर्गास्म अपने अपने चरम पर नहीं पहुँच गया। जब अंततः दोनों का ओर्गास्म आया, तो दोनों ने ही कोई जोर से कराहने की आवाज नहीं निकाली। इस ओर्गास्म में कोई उन्मत्त ज़ोर नहीं था... बस एक अविश्वसनीय, अद्भुत आनंद था। माँ के अंदर ही पैवस्त, सुनील का जननक्षम वीर्य स्खलित होने लगा, और उनके गर्भ को सिंचित करने लगा। उधर माँ की योनि के भीतर से भी अपना ही कामरस निकलने लगा। दोनों रसों का समिश्रण अंततः माँ के गर्भ की उर्वर भूमि को सिंचित करने वाला था। ऐसा नहीं है कि बहुत देर तक दोनों को ओर्गास्म हुआ हो - मुश्किल से दस बारह सेकंड! लेकिन दोनों को ही ऐसा लगा कि बहुत देर तक हो रहा था! ऐसा सुखद अनुभव! दोनों ही अपने अब तक के सबसे संतोषजनक चरमोत्कर्ष का देर तक आनंद लेते रहे।
दोनों ही अब तक पस्त हो चले थे। दोनों ही न तो कुछ कह पाने में, न कुछ कर पाने में, और न ही हिल-डुल पाने में समर्थ थे। यह सम्भोग का शुद्ध आनंद था! माँ पर ही लेते हुए सुनील कुछ देर सुस्ताया; उसके दिल की धड़कन धीरे-धीरे सामान्य हो गई, और शरीर में कुछ शक्ति वापस आई। उसका स्तम्भन नर्म पड़ गया था, लेकिन अभी भी वो माँ के अंदर ही था।
नाईट-लैंप अभी भी चालू था, और रेडियो में गाना बज रहा था,
‘दूरी न रहे कोई, आज इतने करीब आओ
मैं तुम में समा जाऊँ, तुम मुझ में समा जाओ...’
**
ऐसे प्यार किए जाने से कौन सी स्त्री अपने प्रेमी की मुरीद न बन जाए? माँ ने बड़े प्यार से अपने पति को अपने आलिंगन में बाँध लिया और उसको चूमा। सुनील अभी भी माँ के ऊपर ही पड़ा हुआ था। उसकी साँसें और हृदय-गति वो सुन पा रही थीं, नहीं तो सुनील ऐसा स्थिर पड़ा हुआ था कि जैसे वो कोई व्यक्ति नहीं, कोई वस्तु - जैसे कि रजाई - हो! माँ को एक अविश्वसनीय अनुभव हुआ था! वास्तव में आज जो हुआ वो एक मैराथन था! दोनों ने कोई दो घण्टों तक प्रेमाचार किया था, और उस दौरान माँ को तीन बार अपने ओर्गास्म का आनंद मिला! तीन बार! अभूतपूर्व! क्या ऐसा संभव भी है? और वो भी उनकी उम्र में? उम्र? एक ही दिन के साथ में माँ बहुत युवा महसूस करने लगी थीं। एक अलग ही तरह की ऊर्जा! ऐसा लग रहा था कि जैसे इतने वर्षों एक उन्होंने जो व्यायाम और संयमित दिनचर्या बरकरार रखी थी, वो सब आज के लिए ही थी। इसी हेतु थी!
सुनील का जनन-क्षम बीज अब उनके अंदर सुरक्षित था। वो मुस्कुराईं। वो निश्चित रूप से अपने पति को संतान रुपी उपहार देना पसंद करेंगी! सुनील का वंश-बेल बढ़ाना उन्ही का काम है। यह सोच कर वो लजा तो गईं लेकिन उनको गर्व भी हुआ।
उनके ऊपर लेटे हुए सुनील की साँसें धीरे धीरे लंबी और भारी हो रही थीं।
“आप सो गए क्या?” माँ ने धीरे से पूछा।
“बिल्कुल नहीं!” उसने भारी आवाज़ में कहा - सोने तो लगा था वो, और अच्छा हुआ कि माँ ने उसको उठा दिया, “थोड़ा सुस्ता रहा था, बस!”
उसने कहा और माँ के दोनों स्तनों के बीच कई बार चूमा, और फिर एक चूचक अपने मुँह में भर के उसको चूसने लगा। हाँलाकि आज रात के तीन ओर्गास्म के बाद माँ शिथिल पड़ गई थीं, लेकिन स्तनपान की इस क्रिया ने उनको और भी अधिक आराम दिया। जिस उत्साह से सुनील उनका स्तनपान करता था, माँ को वो बहुत पसंद आता था। भोलापन, कामुकता, उत्सुकता - और ऐसे ही न जाने कौन कौन से भाव उसमें सम्मिलित रहते थे।
“तेरे दूध मुझे बहुत सुंदर लगते हैं, दुल्हनिया!”
“आपके लिए ही हैं ये...”
“सबको पिलाया है तुमने इन्हें... बस एक मुझे छोड़ के!” यह कोई शिकायत नहीं थी।
“अब से बस आप ही पीना!”
“हाँ... मुझे पिलाना... और... जिस जिस को मैं कहूँ, उसको!”
“कोई लिस्ट है क्या आपकी?” माँ उसकी बात पर हँसने लगीं।
“हाँ न...”
“हम्म्म... कौन कौन है उस लिस्ट में... हम भी तो सुनें ज़रा...” माँ भी उसके खेल में शामिल हो गईं।
“हमारे बच्चे! जब भी हों।”
यह कोई कहने वाली बात थोड़े ही थी।
“ऐ जी...?” माँ ने बड़ी अदा से कहा।
“हाँ?”
“क्या सच में लड़कों को कई सालों तक दूध पिलाने से उनका ‘वो’ बड़ा सा हो जाता है?”
“क्या?” सुनील ने न समझने की एक्टिंग करी।
“वोही!”
“अरे क्या?”
“आप भी ना... छुन्नू!”
“मेरा कैसा है?”
“बड़ा सा!”
“भैया का कैसा है?”
“बड़ा सा!”
“फिर?”
“लेकिन...” माँ को कुछ याद आया, “‘उनका’ आप दोनों के जैसा बड़ा नहीं था!”
“किसका? बाबूजी का?”
माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“उन्होंने क्या हमारे जितना अपनी माँ का दूध पिया था?”
माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“होगी कोई बात! क्या पता? लेकिन देर तक दूध पिलाने में कोई बुराई है क्या?”
“नहीं! ऐसा मैंने कब कहा?” फिर माँ ने बातचीत का विषय वापस लाया, “ठीक है... हमारे बच्चों को तो पिलाऊँगी ही! ...और कौन कौन?”
“हम्म... मन हो तो भैया को पिला देना! वो तो बेटा है... तुम्हारा बेटा, मतलब, मेरा भी बेटा!”
सुनील द्वारा मुझे ‘अपना बेटा’ कहे जाने पर माँ अपने नए पति पर गर्व महसूस करती हुई मुस्कुराईं।
“हम्म...”
“लतिका को... क्योंकि... भाभी तो माँ समान ही होती है।”
“हा हा!” माँ आनंद से मुस्कुराईं, “माँ ही तो हूँ उसकी!”
“हाँ! इसीलिए! और... आभा को... वो तो हम सबकी ही बच्ची है!”
**
प्रेम मिलाप का क्या मनोरम दृश्य था, प्रेम और एक दूसरे के आनंद के भाव से परिपूर्ण। एक दूसरे को सच में पा लेने की भावना से परिपूर्ण। सुनील अपनी उम्र से अधिक परिपक्वता दिखा रहा था और सुमन अधिक अलहड़ता, बहुत ही मनोरम दृश्य और उस पर हर भाव को प्रदर्शित करते रेडियों पर चलने वाले मधुर गाने। एकदम स्वप्निल माहोल बना दिया था। बहुत खूब avsji भाई।अंतराल - विपर्यय - Update #18
“कैसा लगा?” उन्होंने पूछा, “अच्छा?”
रेडियो में नया गाना बज रहा था,
‘दिल ने पुकारा देखो रुत का इशारा देखो
उफ़ ये नज़ारा देखो... कैसा लगता है... बोलो
ऐसा लगता है कुछ हो जाएगा
मस्त पवन के ये झोके सैयाँ
देख रहे हो... देख रहे हो’
इस प्रश्न पर सुनील ने अपनी आँखें नचाईं। कुछ कहने की आवश्यकता थी क्या भला? माँ खिलखिला कर हँसने लगीं।
“अरे दुल्हनिया... तू कमाल है यार! हमारी सेक्स लाइफ गज़ब की होने वाली है!”
“हा हा!”
थोड़ा संयत हो कर सुनील बोला, “सोचा था कि देर तक सेक्स करेंगे आज की रात!”
“तो कीजिए न!”
“अभी?”
“हाँ!”
“लेकिन... मेरा तो सब तुमने पी लिया है...”
“मेरे साजन...,” आखिरकार माँ ने भी सुनील के अंदाज में कहा, “इसको तो मैं यूँ खड़ा कर दूँगी...”
माँ ने बड़ी अदा से कहा और उठते हुए अपनी पैंटीज़ उतार दीं। साक्षात् रति का रूप! इस समय उनके शरीर के हर अंग से कामना टपक रही थी। उनके प्यारे से स्तनों के ऊपर उत्तेजित चूचक सुशोभित हो रहे थे, और उनके शरीर का कसाव कुछ और अधिक लग रहा था। उनकी आँखों में भी कामुक उत्तेजना साफ़ दिखाई दे रही थी। आज पहली बार सुनील ने उनकी योनि पर उपस्थित पशम को खूबसूरती से कटे हुए देखा!
‘वाओ! कैसा रूप!’
‘एक्सोटिक!’
सुनील बिस्तर पर माँ के पैरों की तरफ चला गया, और उसने झुक कर उनके नाज़ुक से टखनों को पकड़ लिया। उसकी आँखें उस खूबसूरती से छंटे हुए, चमकदार योनि-पशम पर टिकी हुई थीं। उसने माँ की टांगों को फैलाया। कहाँ वो बेतरतीब सा जंगल, और कहाँ ये खूबसूरती से मैनीक्योर (सुव्यवस्थित) किया हुआ एक्सोटिक सा बाग़! सच में - सुनील पर इसका बड़ा ही सकारात्मक प्रभाव पड़ा। पहली बार उसने माँ के भगोष्ठों को देखा - कामुक आवेश से फूले हुए होंठ, उनके भीतर छुपी हुई लाल फूल जैसी पंखुड़ियाँ, और क्लिटोरल हुड के नीचे छुपा हुआ उनका भगशेफ़! अद्भुत नज़ारा! कुछ ही पल पहले स्खलन होने के बावजूद, सुनील उस दृश्य को देख कर पुनः उत्तेजना वाली गुदगुदी महसूस करने लगा।
माँ अपनी चुनौती पर खरी उतर रही थीं। सच में, सुनील ‘यूँ’ ही फिर से तैयार हो सकता था।
और फिर सुनील की नज़र उनकी जाँघों और पैरों पर पड़ी। कौन सा अंग उसको नापसंद था! कुछ भी ऐसा नहीं था सुमन में जो उसको पसंद न आता हो।
घुटने के बल बैठ कर वो माँ के ऊपर झुक गया और उनके पैरों को सहलाते हुए उनकी जाँघों को चूमने लगा और दूसरी को सहलाने लगा। वो जानबूझ कर उनकी योनि को सहलाने से खुद को रोक रहा था। इस हरकत से न केवल माँ फिर से उत्तेजित हो रही थीं, बल्कि सुनील भी उसी गति से उत्तेजना प्राप्त कर रहा था। वैसे भी सुनील उनकी योनि को फिर से छूने से पहले फिर से पूर्ण रूप से स्तंभित होना चाहता था। माँ की योनि के खुले हुए होंठों के बीच वो नम चमक साफ़ देख सकता था, जो अब योनि के निचले सिरे से बाहर निकल रही थी। ‘बढ़िया!’
उसका चूमना और सहलाना जारी रहा। शरीर का हर अंग। शरीर का हर कोना। उँगलियों से उसने माँ के उत्तेजित चूचकों को छेड़ा - उनका शरीर उसी तरह से झनझना गया जैसे कुछ देर पहले मुख-मैथुन के आनंद में सुनील का झनझना रहा था। माँ नियंत्रण से बाहर आते हुए कराह रही थीं। अपने शरीर को समायोजित कर रही थीं कि उनके अंगों का अधिक से अधिक अंश सुनील के हाथों में समा जाए, जिससे मदन क्रीड़ा में जो कष्ट उनको मिल रहा है, वो कुछ कम हो सके। लेकिन सुनील बदमाशी कर रहा था। माँ की इस हालत पर उसको मज़ा आ रहा था और उसकी खुद की उत्तेजना भी बढ़ रही थी। यह पूरा अनुभव बेहद अद्भुत था! दोनों के लिए ही। दोनों ही अब तक यौन क्रीड़ा का खुल कर आनंद ले रहे थे, और एक दूसरे को इस तरह से कामुक तरीके से छेड़ना दोनों को ही बहुत पसंद आया।
माँ की आँखों में देखते हुए, सुनील ने उनके स्तनों को सहलाया। उनकी आँखों में बुखार सा लग रहा था... उनमें कोई फोकस नहीं था। लग रहा था कि वो कहीं और ही हैं। धरती पर नहीं, कहीं और! सही समय था - सुनील उनके ऊपर आ गया और उनके स्तनों को चूमने, चूसने, चुभलाने और कुतरने लगा। आनंदातिरेक में माँ की आँखें बंद हो गईं। सम्भोग का आग्रह करते हुए उनकी कमर बिस्तर से उठ गई। वो चाहती थीं कि बस, अब सुनील का लिंग उनके अंदर प्रविष्ट हो जाए! वो कराह उठीं; उन्होंने अपने हाथों से सुनील का सर पकड़ लिया, और उसको अपने स्तनों पर ज़ोर से भींच लिया।
सुनील समझ रहा था कि माँ तैयार हैं। उनके स्तनों को छोड़ने से पहले उसने एक आखिरी बार उनके चूचकों को सहलाया, फिर उसने उनकी योनि की तरफ रुख किया। मुख मैथुन का आनंद जो माँ ने दिया था, वो उनको वापस देना चाहता था। ऐसे ही आनंदों के आदान प्रदान को ही तो सम्भोग कहते हैं। अंतर्वेधन सम्भोग थोड़े ही होता है। उसने माँ की योनि को देखते हुए, उनके नितंबों के बाहरी किनारों को सहलाया। थोड़ा झुक कर उसने माँ के कामोत्तेजना की सुगन्ध ली।
माँ की हालत अनूठी थी। सच में - आज से पहले उनको इस तरह से कभी भोगा नहीं गया था। सम्भोग के चरमोत्कर्ष को अनगिनत बार अनुभव कर पाना संभव भी था क्या? अपना यह नया पहलू माँ को आज पहली बार मालूम हुआ। थोड़ी ही देर पहले उन्होंने अपने पति को मौखिक सुख दिया था। अब वही सुख पाने की बारी उनकी थी... आनंद से विलाप करने की बारी उनकी थी!
सुनील ने उनकी योनि के होंठों को चूमा और उसका स्वाद चखा। जब उसकी जीभ की नोक ने उके भगशेफ़ को छेड़ा तब तक उनके कूल्हे सम्भोग के आग्रह में चिरंतन चल रहे ताल में हिलने लग गए थे। जबकि सुनील अभी तक उनके अंदर प्रविष्ट होने के मूड में था भी नहीं!
“ओह,” माँ उसकी जीभ के खेल से कराह उठीं और उनके कूल्हे उसके मुँह पर तेजी से चलाने लगीं।
बिना उनकी योनि को छुए, सुनील केवल अपनी जीभ से ही उनके भगोष्ठों को छेड़ रहा था। एक समय आया जब सुनील की जीभ उनकी योनि के द्वार में प्रविष्ट हो गई। सुनील को उसकी नमी महसूस हुई। माँ के नितम्ब लयबद्ध तरीके से आगे पीछे हो रहे थे; उन्होंने सुनील का सर अपनी योनि में दबाया। सुनील इस बात के लिए कोई शिकायत नहीं कर रहा था - उसको उनकी योनि के शहद का अद्भुत स्वाद मिल रहा था! सुनील को विश्वास नहीं हो रहा था, कि सुमन की योनि कितनी गीली हो गई थी, और इस बात ने उसके भीतर के कामना को और भी भड़का दिया। अब तक सुनील को समुचित अनुभव मिल चुका था - वो माँ की हरकतों और उनकी आवाज़ों से समझ रहा था कि उनका ओर्गास्म निकट ही है। वो उनकी जाँघों में उठने वाली बेकाम तरंगों को महसूस कर रहा था। वो समझ रहा था कि माँ अब आईं, कि तब आईं!
रेडियो पर कोई गाना बज रहा था।
क्या बज रहा था, अब दोनों को नहीं सुनाई दे रहा था।
अपने एक हाथ के अँगूठे से उसने माँ के भगशेफ को रगड़ना शुरू किया, और दूसरे हाथ की तर्जनी को उनकी योनि में प्रविष्ट किया। और दोनों उँगलियों के बीच के स्थान को अपनी जीभ से सहलाने लगा।
“आह!” माँ असहनीय आनंद से चिहुँक गईं।
कई क्षणों के लिए माँ की साँसे रुक गईं। इस तिहरे प्रहार से माँ का चरमोत्कर्ष बड़े हिंसक रूप से प्रकट हुआ। चरमोत्कर्ष पर पहुँच कर उनका शरीर अकड़ गया, और उसके ही उन्माद में वो अपनी योनि को सुनील के मुँह से टकराने लगीं, और रगड़ने लगीं। उनका पूरा वजूद - शरीर का हर एक अंग - हर्षातिरेक से काँप रहा था। बिस्तर पर कई बार उन्होंने अपने नितम्ब उठाने की कोशिश करी और हर बार किसी थके हुए अश्व की तरह वापस बिस्तर पर गिर गईं। उनका कामरस सुनील के व्यस्त मुख में रिसने लगा।
“हे भगवान!”
जब शरीर धोखा दे गया तब उन्होंने हाथों से ही सुनील के सर को पकड़ कर अपनी योनि से भींच लिया। कामोत्तेजना का ऐसा निर्लज्ज प्रदर्शन! माँ ने कभी सोचा भी नहीं था कि वो ये सब करने में समर्थ भी हैं! उनके दिमाग में ये बात आ रही थी, और वो सकुचा भी रही थीं। लेकिन इस समय वो पाशविक भावनाओं के वशीभूत हो चली थीं। सुनील का सर पकड़े पकड़े ही उन्होंने अपनी योनि को उसके मुख पर व्यग्रता से रगड़ा। इतना प्रबल ओर्गास्म! वो भी इतनी जल्दी! माँ आनंद से कराह रही थीं, क्योंकि उनके चरमोत्कर्ष ने उनको आश्चर्यजनक रूप से अभिभूत कर दिया था। अब तक सुनील भी पूरी तरह से कठोर स्तम्भन हासिल कर चुका था। लेकिन फिलहाल वो माँ की हिंसक कामोत्तेजना से मनोरंजक तरीके से हैरान हो रहा था! एक ही दिन के भीतर उसने अपनी पत्नी को ऐसा बना दिया था!
“आह्ह्ह! बस... बस...” माँ ने सुनील के मुख को अपनी योनि से परे धकेला, “प्लीज प्लीज!” वो गिड़गिड़ाई!
अपनी काम-कला के कौशल के ऐसे असामान्य प्रदर्शन पर खुद ही गर्व का अनुभव करते हुए सुनील माँ की योनि छोड़ कर ऊपर आ गया और माँ के बगल आ कर लेट गया। माँ भी उसके इस असामान्य कौशल से प्रभावित थीं और अनुगृहीत भी। दोनों के शरीर पसीने से तर थे, लेकिन फिर भी एक दूसरे के आलिंगन में बँध कर अपार सुख की अनुभूति महसूस कर रहे थे। सुनील का कठोर लिंग माँ के पेड़ू पर दबाव बना रहा था और उनको भी मालूम था कि आज की रात में उनके सम्भोग का अगला पड़ाव आने ही वाला है।
“मेरी सुमन... मज़ा आया?”
“पूरी ज़िंदगी ऐसा मज़ा नहीं आया...!” माँ ने सुनील की छाती में सिमटे हुए, थके हुए, नरम, लेकिन बेहद संतुष्ट स्वर में फुसफुसाते हुए कहा।
सुनील यह सुनकर अत्यंत प्रसन्न और गौरवान्वित हुआ! अपने यौन कौशल की प्रशंसा सुनकर कौन आदमी प्रसन्न और गौरवान्वित नहीं होगा? लेकिन माँ सचमुच चकित थीं। उन्होंने आज के ही दिन छः बार अद्भुत ओर्गास्म प्राप्त कर लिए थे, और ये उनके विवाहित जीवन का पहला ही दिन था! मधुमास - हाँ, सही नाम दिया गया है इसको! मधुमास एक तरह का उत्सव ही होता है विवाहित स्त्री और पुरुष के बीच! जहाँ दोनों के बीच संकोच, लज्जा, गोपनीयता इत्यादि का कोई स्थान नहीं होता।
“कैसी वल्गर हो गई मैं!” माँ ने संकोच करते हुए कहा।
“जानेमन, मेरे सामने वल्गर नहीं होगी, तो क्या पड़ोसी के सामने होगी?” सुनील ने माँ की टाँग खिंचाई करी।
माँ ने थके हुए ही हँसते हुए सुनील की पसली में एक मज़ाकिया मुक्का मारा।
सच में - कैसी अभूतपूर्व संतुष्टि!
कैसा अभूतपूर्व अनुभव!
वो दोनों ही कुछ देर के लिए शांति से आराम करते रहे। लेकिन सुनील का स्तम्भन अभी भी उतना ही कठोर और उतना ही मज़बूत था। मानना पड़ेगा - वो अपने सामने माँ के आनंद को अधिक तरजीह दे रह था। माँ भी इस बात को समझ रही थीं, और उसके इस व्यवहार से वो आश्चर्य और गौरव से दंग थीं! नहीं तो आदमी को बस अपने ही आनंद की परवाह रहती है हमेशा! उधर, सुनील भी जानता था कि एक आखिरी चीज है जो माँ चाहती हैं - बिना अंतर्वेधन हुए माँ उसको सोने नहीं देने वाली थीं - और उस संज्ञान ने उसके स्तम्भन को उत्साहित कर रखा था। अब वो भी उनके अंदर प्रविष्ट होना चाहता था। बेसब्री से!
माँ ने सुनील की बालों से ढँकी छाती को सहलाते हुए उसके बाहों को चूमा, और दूसरे हाथ को उसके शरीर के नीचे की तरफ़, उसके पेट से होते हुए, उसके आतुर, कठोर और धड़कते हुए स्तम्भन तक पहुँचाया। इस बार उनको कोई झिझक नहीं थी। उन्होंने थोड़ा उठ कर सुनील के होंठों को चूमा, और उसके सीने को सहलाना जारी रखा। उनके चुम्बन से सुनील की रही सही उत्तेजना वापस लौट आई - माँ ने पहल करते हुए उसको चूमना जारी रखा और कुछ ही देर में उनका चुंबन और अधिक आग्रहपूर्ण हो गया। दोनों की जीभें मल्ल युद्ध करने लगीं। सुनील को ऐसे चूमा जाना बहुत अच्छा लगा! उसको माँ को ऐसे उत्तेजित हुए देखना भी बहुत अच्छा लगा - आखिरकार उसकी पत्नी उसके साथ खुल कर अपनी इस नई कामुकता का आनंद ले रही थी! और उस कामुकता के मूल में वो स्वयं था!
सुनील माँ की आँखों में एक अलग ही तरह की खुमारी देख सकता था और समझ रहा था कि ये कामोत्तेजना की खुमारी थी। एक पल को उसने सोचा कि क्या उसकी आँखों में भी उत्तेजना की वैसी ही खुमारी दिखाई दे रही होगी? माँ ने चुंबन को तोड़ा और अपनी पीठ के बल लेट गईं। उनका शरीर एक कामुक तरीके से सुनील के सामने बिछ गया। साथ ही साथ उसको देखते हुए वो एक कामुक मुस्कान दे रही थीं। यह निमंत्रण था। हवन की वेदी आहुति प्राप्त करने के लिए तैयार थी। सुनील ने दिल भर कर कामदेवी जैसी अपनी पत्नी को देखा - उसका एक एक अंग मानो कामुकता के रस से भीगा हुआ था! बिना कुछ कहे ही उनका हर अंग सुनील को आमंत्रित कर रहा था। सुनील को अपनी खुद की उत्तेजना की तपन महसूस हो रही थी! उसको बुखार सा महसूस हो रहा था... वो उत्तेजना से काँप रहा था! अब रुकना मुश्किल था। वो उठा और माँ के पैरों के बीच खुद को व्यवस्थित करने लगा।
सुनील यौन उत्तेजना से काँप रहा था : उसका रुक पाना अब संभव नहीं था! रोकना और रुकना भी कौन चाहता था वैसे? पूर्वानुमान से काँपते काठों से उसने धीरे से माँ की जाँघों को खोला - उनकी योनि के होंठ खुल गए। बस थोड़े से! किसी कामुक प्रेमी के लिए एक नयनाभिराम दृश्य! छोटे छोटे, मैनिक्योर्ड, काले पशम के बीच माँ की योनि के होंठ, उनकी सेक्सी, पुष्ट जाँघों के बीच ऐसे लग रहे थे कि जैसे किसी घोंसले के अंदर दुबके हुए छोटे छोटे दो चूज़े हों! दोनों होंठ उनके पिछले ओर्गास्म के रस से भीग कर चमक रहे थे। माँ ने एक और काम किया जिससे सुनील का रहा सहा नियंत्रण जाता रहा - उन्होंने हाथ बढ़ा कर अपनी तर्जनी और मध्यमा की मदद से अपनी योनि के होंठ थोड़े और खोल दिए। उनको ऐसा करते देख कर सुनील के माथे पर पसीने आ गए।
“और मत सताइए अब...” उन्होंने फुसफुसाते हुए कहा।
बात तो सही थी। वैसे सुनील भी अब माँ को और सताने की स्थिति में नहीं था। उसका दिल ज़ोरों से धड़क रहा था, क्योंकि वो भी सोच रहा था कि वो माँ के इस पूर्ण समर्पण का आनंद कैसे ले! वो उसे आमंत्रित कर रही थीं, और यह एक अद्भुत एहसास था! इस समय सुनील अपने अब तक के सबसे प्रबल स्तम्भनों में से एक स्तम्भन प्राप्त कर चुका था। कुछ देर और अगर वो रुक गया तो बाहर ही स्खलित हो जायेगा।
तो अब रुकने वाली कोई बात नहीं थी। सुनील ने थोड़ा सा ज़ोर लगाया - माँ के चेहरे पर फिर से पीड़ा वाले भाव आ गए, लेकिन इस कठोर लिंग को अपनी मनमर्ज़ी करने से रोक पाना उनकी कोमल योनि के लिए संभव नहीं था। ऊपर से इतने लम्बे फोरप्ले के बाद माँ की योनि इस कदर चिकनी हो चली थी, कि केवल गुरुत्व मात्र से कोई वस्तु उनके अंदर चली जाती! केवल आधा लिंग अंदर गया, लेकिन उनकी योनि के कोमल होंठ अपनी सीमा से परे खिंच गए। तकलीफ और आनंद से तड़पते हुए माँ ने ज़ोर से आह भरी। अगर कोई जाग रहा हो, तो उसने सुना अवश्य होगा। उनके अंदर पहुँच कर सुनील को ऐसा कोमल, गुदगुदी का अनुभव हुआ कि सुनील का मन हुआ कि तेजी से सम्भोग को गति दी जाए - लेकिन उसने किसी तरह से खुद पर नियंत्रण बनाए रखा। वो बस धीरे-धीरे से अंदर बाहर होता रहा - छोटे छोटे धक्के! ये उसने अच्छा किया - कुछ पलों बाद माँ का दर्द कम हो गया, और बर्दाश्त के अंदर आ गया। अब माँ भी उसकी ही ताल में थिरकने लगीं। हर धक्के के साथ, सुनील कामुक आनंद के सागर में और गहरे डुबकी लगाने लगा। शीघ्र ही उनकी धक्के लम्बे और और भी गहरे होने लगे।
सुनील जब उनके अंदर पूरी तरह से प्रविष्ट हो गया, तो दोनों ही एक पल को रुक गए। दोनों ही उसके स्तम्भन की धड़कन को महसूस कर पा रहे थे। उसने एक-एक करके माँ के स्तनों को सहलाया और चूमा... जैसे ही उसने ऐसा किया, उसने महसूस किया कि उसका स्तम्भन किंचित ही सही, लेकिन शायद थोड़ा और भी बढ़ गया था। उसका एक कारण यह भी हो सकता है कि माँ की योनि उसके लिंग की लम्बाई को अद्भुत तरीके से दबा रही थी। अपने ही उन्माद में मत्त माँ ने अपना हाथ बढ़ाया, और अपने स्तनों को पकड़े हुए सुनील के हाथों को पकड़ कर ज़ोर से अपनी छाती पर भींच लिया। और साथ ही साथ अपने नितम्बों को उचकाने लगीं - जैसे वो सुनील को उकसा रही हों कि ‘रुक क्यों गए’! बिना कुछ कहे बातें! सुनील ने भी उनका कहा हुआ सुना और धक्के लगाने लगा। शीघ्र ही उनकी हरकतें लंबे और गहरे कामुक धक्कों में परिवर्तित हो जाती हैं। माँ का कमरा शीघ्र ही उनके प्रेम-प्रसंग से उत्पन्न होने वाले शोर से भर गया।
सुनील को मालूम था कि सोने से पहले वो सुमन को केवल एक बार ही भोग सकता है - तो वो पूरी तबियत से, तसल्ली से ये काम करना चाहता था। तो उसने वही किया... एक धीमा रमणीय प्रेम-समागम! अपनी जल्दी जल्दी करने की इच्छा के बावजूद! बड़ी मेहनत से सुनील ने खुद पर नियंत्रण किया और बिना कोई जल्दबाजी किए धीरे धीरे, देर तक माँ को भोगता रहा। तब तक, कि जब तक दोनों का ओर्गास्म अपने अपने चरम पर नहीं पहुँच गया। जब अंततः दोनों का ओर्गास्म आया, तो दोनों ने ही कोई जोर से कराहने की आवाज नहीं निकाली। इस ओर्गास्म में कोई उन्मत्त ज़ोर नहीं था... बस एक अविश्वसनीय, अद्भुत आनंद था। माँ के अंदर ही पैवस्त, सुनील का जननक्षम वीर्य स्खलित होने लगा, और उनके गर्भ को सिंचित करने लगा। उधर माँ की योनि के भीतर से भी अपना ही कामरस निकलने लगा। दोनों रसों का समिश्रण अंततः माँ के गर्भ की उर्वर भूमि को सिंचित करने वाला था। ऐसा नहीं है कि बहुत देर तक दोनों को ओर्गास्म हुआ हो - मुश्किल से दस बारह सेकंड! लेकिन दोनों को ही ऐसा लगा कि बहुत देर तक हो रहा था! ऐसा सुखद अनुभव! दोनों ही अपने अब तक के सबसे संतोषजनक चरमोत्कर्ष का देर तक आनंद लेते रहे।
दोनों ही अब तक पस्त हो चले थे। दोनों ही न तो कुछ कह पाने में, न कुछ कर पाने में, और न ही हिल-डुल पाने में समर्थ थे। यह सम्भोग का शुद्ध आनंद था! माँ पर ही लेते हुए सुनील कुछ देर सुस्ताया; उसके दिल की धड़कन धीरे-धीरे सामान्य हो गई, और शरीर में कुछ शक्ति वापस आई। उसका स्तम्भन नर्म पड़ गया था, लेकिन अभी भी वो माँ के अंदर ही था।
नाईट-लैंप अभी भी चालू था, और रेडियो में गाना बज रहा था,
‘दूरी न रहे कोई, आज इतने करीब आओ
मैं तुम में समा जाऊँ, तुम मुझ में समा जाओ...’
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ऐसे प्यार किए जाने से कौन सी स्त्री अपने प्रेमी की मुरीद न बन जाए? माँ ने बड़े प्यार से अपने पति को अपने आलिंगन में बाँध लिया और उसको चूमा। सुनील अभी भी माँ के ऊपर ही पड़ा हुआ था। उसकी साँसें और हृदय-गति वो सुन पा रही थीं, नहीं तो सुनील ऐसा स्थिर पड़ा हुआ था कि जैसे वो कोई व्यक्ति नहीं, कोई वस्तु - जैसे कि रजाई - हो! माँ को एक अविश्वसनीय अनुभव हुआ था! वास्तव में आज जो हुआ वो एक मैराथन था! दोनों ने कोई दो घण्टों तक प्रेमाचार किया था, और उस दौरान माँ को तीन बार अपने ओर्गास्म का आनंद मिला! तीन बार! अभूतपूर्व! क्या ऐसा संभव भी है? और वो भी उनकी उम्र में? उम्र? एक ही दिन के साथ में माँ बहुत युवा महसूस करने लगी थीं। एक अलग ही तरह की ऊर्जा! ऐसा लग रहा था कि जैसे इतने वर्षों एक उन्होंने जो व्यायाम और संयमित दिनचर्या बरकरार रखी थी, वो सब आज के लिए ही थी। इसी हेतु थी!
सुनील का जनन-क्षम बीज अब उनके अंदर सुरक्षित था। वो मुस्कुराईं। वो निश्चित रूप से अपने पति को संतान रुपी उपहार देना पसंद करेंगी! सुनील का वंश-बेल बढ़ाना उन्ही का काम है। यह सोच कर वो लजा तो गईं लेकिन उनको गर्व भी हुआ।
उनके ऊपर लेटे हुए सुनील की साँसें धीरे धीरे लंबी और भारी हो रही थीं।
“आप सो गए क्या?” माँ ने धीरे से पूछा।
“बिल्कुल नहीं!” उसने भारी आवाज़ में कहा - सोने तो लगा था वो, और अच्छा हुआ कि माँ ने उसको उठा दिया, “थोड़ा सुस्ता रहा था, बस!”
उसने कहा और माँ के दोनों स्तनों के बीच कई बार चूमा, और फिर एक चूचक अपने मुँह में भर के उसको चूसने लगा। हाँलाकि आज रात के तीन ओर्गास्म के बाद माँ शिथिल पड़ गई थीं, लेकिन स्तनपान की इस क्रिया ने उनको और भी अधिक आराम दिया। जिस उत्साह से सुनील उनका स्तनपान करता था, माँ को वो बहुत पसंद आता था। भोलापन, कामुकता, उत्सुकता - और ऐसे ही न जाने कौन कौन से भाव उसमें सम्मिलित रहते थे।
“तेरे दूध मुझे बहुत सुंदर लगते हैं, दुल्हनिया!”
“आपके लिए ही हैं ये...”
“सबको पिलाया है तुमने इन्हें... बस एक मुझे छोड़ के!” यह कोई शिकायत नहीं थी।
“अब से बस आप ही पीना!”
“हाँ... मुझे पिलाना... और... जिस जिस को मैं कहूँ, उसको!”
“कोई लिस्ट है क्या आपकी?” माँ उसकी बात पर हँसने लगीं।
“हाँ न...”
“हम्म्म... कौन कौन है उस लिस्ट में... हम भी तो सुनें ज़रा...” माँ भी उसके खेल में शामिल हो गईं।
“हमारे बच्चे! जब भी हों।”
यह कोई कहने वाली बात थोड़े ही थी।
“ऐ जी...?” माँ ने बड़ी अदा से कहा।
“हाँ?”
“क्या सच में लड़कों को कई सालों तक दूध पिलाने से उनका ‘वो’ बड़ा सा हो जाता है?”
“क्या?” सुनील ने न समझने की एक्टिंग करी।
“वोही!”
“अरे क्या?”
“आप भी ना... छुन्नू!”
“मेरा कैसा है?”
“बड़ा सा!”
“भैया का कैसा है?”
“बड़ा सा!”
“फिर?”
“लेकिन...” माँ को कुछ याद आया, “‘उनका’ आप दोनों के जैसा बड़ा नहीं था!”
“किसका? बाबूजी का?”
माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“उन्होंने क्या हमारे जितना अपनी माँ का दूध पिया था?”
माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“होगी कोई बात! क्या पता? लेकिन देर तक दूध पिलाने में कोई बुराई है क्या?”
“नहीं! ऐसा मैंने कब कहा?” फिर माँ ने बातचीत का विषय वापस लाया, “ठीक है... हमारे बच्चों को तो पिलाऊँगी ही! ...और कौन कौन?”
“हम्म... मन हो तो भैया को पिला देना! वो तो बेटा है... तुम्हारा बेटा, मतलब, मेरा भी बेटा!”
सुनील द्वारा मुझे ‘अपना बेटा’ कहे जाने पर माँ अपने नए पति पर गर्व महसूस करती हुई मुस्कुराईं।
“हम्म...”
“लतिका को... क्योंकि... भाभी तो माँ समान ही होती है।”
“हा हा!” माँ आनंद से मुस्कुराईं, “माँ ही तो हूँ उसकी!”
“हाँ! इसीलिए! और... आभा को... वो तो हम सबकी ही बच्ची है!”
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