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अरे अरे भैय्या, थैंक्यू फोर रिटर्निंग।Brother - thanks for returning to this story, even though I posted after a long time.
There was a bit of hesitation, before posting this - because of all these changes. Also, my laptop broke - really broke (not crash).
Anyway... a few clarifications: Sunil doesn't have any fetishes or fantasies. These are pure desires originating from love. Will not and can not write much to clarify on this point, because I am writing using my phone.
Other clarification on Amar: he is not 'folding' as you said... he is no cuckhold. It is more like evolving and moving forward in his life. He may also need loving - and not just from another woman. Letting go of Kajal was the first step. This makes space for possibility of love in his life. Rachna episode is coming up.
Please continue supporting... this is not a "normal" story.![]()
हम्म, अभी समझा मैं।प्रेम भी है ! वासना भी है ! लेकिन हवस नही है इस पुरी कहानी मे।
रिश्तों और उम्र के भंवर से उलझी यह कहानी शायद ही किसी को सहज से हजम हो लेकिन है तो सत्य ही।
अमर का सुनील को पापा कहकर सम्बोधित करना उसके लिए काफी असहज पूर्ण स्थिति रही होगी। जिस लड़के को वो बचपन से पाल रहा , जो लड़का उसके सामने बचपन मे सदैव नंग धड़ंग घर मे विचरण करता रहा , जिस लड़के को उसने स्कूल मे दाखिला करवाया और जिस लड़के की मां वर्षों तक उसके रात्री की अंकशायिनी रही , उसे पापा कहकर सम्बोधित करना किसी भी इंसान के लिए सहज नही है।
सुनील को भी शर्तिया वैसा ही फीलिंग्स हुआ होगा जैसा अमर ने महसूस किया होगा। लेकिन सुमन के साथ शादी एवं दो बच्चों के पिता बनने के बाद उसके आत्मविश्वास मे काफी परिवर्तन हुआ होगा। सुमन की मैच्योरिटी और अगाध प्रेम ने उसे भी समय से पूर्व मैच्योर कर दिया। जरूर इसी वजह से वो बिना संकोच के अमर के समक्ष अपनी भावना दर्शा गया।
इस अपडेट मे एक बार फिर से कहानी इरोटिका की तरफ बढ़ते बढ़ते रूक गई। अमर के चेतना अवस्था मे रहते हुए भी सुमन और सुनील का हमबिस्तर होना एडल्ट कहानी के लिहाज से काफी कामुक था लेकिन आप की लेखनी ने उस अंतरंग दृश्य को भी स्वच्छ और पाक प्रेम के रूप मे परिवर्तित कर दिया।
बहुत खुबसूरत अपडेट अमर भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड एमेजिंग।
प्रेम भी है ! वासना भी है ! लेकिन हवस नही है इस पुरी कहानी मे।
रिश्तों और उम्र के भंवर से उलझी यह कहानी शायद ही किसी को सहज से हजम हो लेकिन है तो सत्य ही।
अमर का सुनील को पापा कहकर सम्बोधित करना उसके लिए काफी असहज पूर्ण स्थिति रही होगी। जिस लड़के को वो बचपन से पाल रहा , जो लड़का उसके सामने बचपन मे सदैव नंग धड़ंग घर मे विचरण करता रहा , जिस लड़के को उसने स्कूल मे दाखिला करवाया और जिस लड़के की मां वर्षों तक उसके रात्री की अंकशायिनी रही , उसे पापा कहकर सम्बोधित करना किसी भी इंसान के लिए सहज नही है।
सुनील को भी शर्तिया वैसा ही फीलिंग्स हुआ होगा जैसा अमर ने महसूस किया होगा। लेकिन सुमन के साथ शादी एवं दो बच्चों के पिता बनने के बाद उसके आत्मविश्वास मे काफी परिवर्तन हुआ होगा। सुमन की मैच्योरिटी और अगाध प्रेम ने उसे भी समय से पूर्व मैच्योर कर दिया। जरूर इसी वजह से वो बिना संकोच के अमर के समक्ष अपनी भावना दर्शा गया।
इस अपडेट मे एक बार फिर से कहानी इरोटिका की तरफ बढ़ते बढ़ते रूक गई। अमर के चेतना अवस्था मे रहते हुए भी सुमन और सुनील का हमबिस्तर होना एडल्ट कहानी के लिहाज से काफी कामुक था लेकिन आप की लेखनी ने उस अंतरंग दृश्य को भी स्वच्छ और पाक प्रेम के रूप मे परिवर्तित कर दिया।
बहुत खुबसूरत अपडेट अमर भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड एमेजिंग।
अरे अरे भैय्या, थैंक्यू फोर रिटर्निंग।
एैज़ आई हैव मेंशनड बिफोर, इट'स मी हू'स सीइंग थिंग्स डिफरेंटली।
डोंट या वरी 'बाउट मी लीविंग दिस थ्रैड, आई लव योर वर्क 'न कांट स्टोप कमिंग बैक इवन इफ आई वॉन्टेड टु।
होप योर लैपटॉप सिचुएशन इज़ सोर्टिड सून। लव या 3000, लेखक बाबू।![]()
हम्म, अभी समझा मैं।![]()
भाई यह गुरुवार को आपने पोस्ट कर दिए भाई अपनी व्यस्तता के कारण मैं आपके इस अपडेट पर नहीं आ सकाअंतराल - समृद्धि - Update #6
चलो काजल के साथ कैसा भी रिश्ता रहा हैसवेरे तैयार हो कर, नाश्ता आदि कर के मैं और पापा दोनों सत्यजीत से मिलने चले गए।
मुझको पहले से ही एहसास था कि सत्यजीत के साथ मेरी मुलाकात बस एक औपचारिकता ही थी। लेकिन काजल का मन था कि मैं उससे एक बार तो मिलूँ, और अगर मुझको थोड़ा भी संशय हो उसके बारे में, तो वो उससे शादी नहीं करेगी। यह वायदा उसने किया था। एक बड़ी ज़िम्मेदारी थी यह! मैं उस ज़िम्मेदारी का निर्वाह पूरे गंभीरता से करना चाहता था।
यह बड़ी दुविधा वाली स्थिति जो कभी अमर को भैया कहता था आज उसे बेटा कह रहा हैरास्ते में ही पापा ने सत्यजीत के बारे में मुझे और भी बहुत कुछ बताया।
सत्यजीत का यह संक्षिप्त इतिहास या फिर परिचयसत्यजीत पुणे के पास ही एक गाँव के रहने वाले थे। घर में गरीबी थी, इसलिए बहुत ही छुटपन से उन्होंने काम करना और कमाना शुरू कर दिया था। पढ़ाई लिखाई का कोई ठिकाना न रहा इस कारण। किशोरवय होते होते उनके माता पिता दोनों चल बसे और उनका जो झोपड़ा था, वो बिक गया महाजनों से लिया हुआ कर्ज़ा पूरा करने के लिए। सड़क पर आने के बाद तो जीने के लिए कुछ भी करना पड़ता है। लेकिन सत्यजीत ने अपराध का रास्ता नहीं लिया। उस समय के मुंबई के सीमान्त के क्षेत्र में उन्होंने एक बेकर के यहाँ काम करना शुरू कर दिया। मेहनती और ईमानदार बहुत थे, इसलिए बेकर को बहुत पसंद भी आने लगे। छोटे छोटे काम से लेकर बेकिंग और गल्ले के रख-रखाव तक का सफर बड़ी तेजी से हुआ।
बेकर की एक लड़की भी थी - एक ही थी। उसकी शादी की उमर हो चली थी, लेकिन किसी कारणवश हो नहीं पा रही थी। शायद उम्र अधिक हो जाने के कारण से! सत्यजीत अभी भी कम उम्र ही थे, लेकिन बेकर के कहने पर उन्होंने शादी के लिए ‘हाँ’ कह दी। अवश्य ही लड़की और सत्यजीत की उम्र में अच्छा ख़ासा अंतर था, लेकिन यह निर्णय आशातीत तरीके से बड़ा अच्छा साबित हुआ। उस एक निर्णय से उस पूरे परिवार के जीवन में बदलाव आ गया - अच्छा और सकारात्मक बदलाव! अब सत्यजीत के तौर तरीके में और भी ठहराव आ गया था; वो और भी मेहनत और लगन से काम करने लगे थे। शादी का साल पूरा होने से पहले ही उनकी पत्नी ने एक लड़के को जन्म दिया। उधर बेकरी के धंधे में भी बड़ी बरक़त होने लगी - एक बेकरी से दो बेकरियाँ बनीं। इस बीच उनकी पत्नी को दो और बार गर्भ ठहरा, लेकिन बच्चे अजन्मे ही निकले। चौथी बार प्रसव के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। पत्नी और संतान दोनों जाते रहे। बस, पहला ही लड़का बचा। यह कोई पंद्रह साल पहले की बात है। उस समय उनका एकलौता बेटा तक सात साल का था।
पत्नी से बिछोह के दुःख से दो चार होने के लिए सत्यजीत ने काम में ही खुद को डुबो दिया। उनका ससुर - बूढा बेकर - चाहता था कि सत्यजीत फिर से शादी कर ले, लेकिन अपने नाती के लिए सौतेली माँ का डर भी लगा रहता था। लेकिन चूँकि सत्या को वो अपने बेटे समान मानता था, इसलिए वो उनकी ख़ुशी भी चाहता था। खैर, सत्या ने शादी नहीं करी। अपनी पत्नी से उनको प्रेम तो था, जिसके कारण वो किसी अन्य स्त्री को अपने जीवन में आने नहीं देना चाहते थे! उनका लड़का बड़ा हुआ, सत्या के साथ ही बेकरी धंधा सम्हालता है, और तीसरी बेकरी की दूकान सम्हालता है। कोई ढाई साल पहले ही उसकी शादी हो गई है, और उसका भी डेढ़ साल का एक बेटा है।
उम्र के इस पड़ाव मेंसत्या और काजल की मुलाकात माँ के पहले गर्भाधान के समय जब काजल यहाँ मुंबई आई थी, तब हुई। उस समय सत्यजीत अपने बेटे के लिए बहू ढूंढ रहे थे। मुलाकात बढ़ने लगीं। और यूँ ही, अनायास ही उनको काजल पसंद आने लगी। माँ के दूसरे गर्भाधान के समय सत्यजीत ने काजल से शादी करने की पेशकश करी। उनके बेटे का अपना संसार बन रहा था, लिहाज़ा, वो उसकी ज़िम्मेदारी से मुक्त हो गए थे। उधर, काजल को भी वो पसंद आने लगे थे, और उनसे विवाह की संभावनाएँ बढ़ने लगीं थीं। लिहाज़ा, काजल ने सत्या को अपने जीवन के बारे में सब कुछ साफ़ साफ़ बता दिया। सत्या खुद भी एक सच्चे, मेहनती, और ईमानदार आदमी थे, तो काजल में वैसे ही गुण देख कर वो उससे और भी इम्प्रेस हो गए। फिर दोनों परिवार भी आपस में मिले, और एक तरह से दोनों में रज़ामंदी हो गई।
अद्भुत वैसे किसी भी रिश्ते की किताब का आरंभ होने से पहले अतीत के पन्ने सुदृश्य रहने चाहिएसत्यजीत को मेरे और काजल के बारे में सब पता था। मतलब, सब कुछ पता था... काजल ने कुछ भी नहीं छुपाया था! हमारे परिवार की डाइनामिक्स कुछ ऐसी रोचक थी कि वो भी हमारी तरफ आकर्षित हो गए। वो पापा और माँ दोनों से मिले - दो तीन बार शायद। फिर दोनों परिवार भी एक दूसरे से मिले। औपचारिकतावश वो मुझसे भी मिलना चाहते थे, इसलिए मैं यहाँ उपस्थित था। जहाँ तक काजल और सत्यजीत के सम्बन्ध की बात थी... बात तो लगभग तय थी। बस - काजल को दिया हुआ वायदा पूरा करने के लिए मैं यहाँ उपस्थित था।
हा हा हासत्यजीत बड़ी ही गर्मजोशी के साथ मुझसे मिले। प्रतिद्वंद्वी जैसा व्यवहार नहीं लगा उनका। लेशमात्र भी नहीं।
यह एक सच्चे शुभचिंतक की निशानी हैदेखने भालने में एक औसत चेहरे के मालिक थे; सामान्य कद; थोड़ी सी तोंद! लेकिन कोई भी उनको देख कर कह सकता था कि मेहनती बहुत है ये व्यक्ति और शारीरिक तौर से शक्तिशाली भी! लेकिन बहुत मृदुभाषी। उनकी बातों में सच्चाई सुनाई देती - गाँव का होने के बावज़ूद साफ़ भाषा का प्रयोग मुझे बहुत अच्छा लगा। कोशिश कर के वो हिंदी में बात कर रहे थे। समझ में आ रहा था काजल का सत्यजीत के प्रति आकर्षण! देखने में तो नहीं, लेकिन हाँ, गुणों के हिसाब से ये जोड़ी बढ़िया थी। काजल सत्यजीत के हिसाब से बहुत ही सुन्दर है। लेकिन सुंदरता के धरातल पर विवाह का महल नहीं खड़ा होता। वो खड़ा होता है गुणों के धरातल पर। सत्यजीत के जैसा अच्छा आदमी मिले, तो उसको छोड़ने का कोई ठोस कारण भी तो होना चाहिए न! मुझे एक भी कारण नहीं मिला ‘न’ कहना का!
स्वाभाविक हैएक समय जब एकांत मिला, तो पापा ने मुझसे मेरी राय पूछी। मैंने भी यही सब कुछ कह दिया। उनको यह जान कर बड़ा संतोष हुआ। अब उनकी माँ का भी घर बस सकता था। समय ने कुछ ऐसा चक्र चलाया था कि सभी के जीवन में खुशहाली आ गई थी।
फिर आई दोनों की शादी की बात। काजल की एक शर्त थी कि शादी दिल्ली में हो। वो बात सभी ने मान ली, और वो विचार का विषय नहीं थी। सत्या का कहना था कि वो काजल के साथ विवाह में बिना आवश्यकता का शोर शराबा नहीं चाहते। उनको पत्नी चाहिए - कोई नुमाईश की वस्तु नहीं। काजल से उनको प्रेम है, वो बस एक जोड़ी कपड़े में लिपटी हुई अपनी दुल्हन विदा कर लेना चाहते हैं। सामान्य सी शादी बढ़िया है। लिहाज़ा, कोर्ट में शादी उनको अधिक स्वीकार्य है। अच्छी बात थी! हम लोग तो इसमें एक्सपर्ट हो गए थे अब! मैंने उनको बताया कि मैं लतिका के एक्साम्स के बात की कोई तारीख़ निकलवा लेता हूँ कोर्ट वेडिंग के लिए। तब तक शादी की व्यवस्था पूरी कर लेंगे। इस बात पर सत्या ने ज़ोर दिया कि कोई फ़िज़ूलखर्च न करें। बस परिवार और मित्रों को ही बुलाएँ।
मैं भी प्रभावित हो गयामैंने उनकी बात समझी और मान भी ली, और उनसे कहा कि शादी के दौरान हम उनके रहने और शादी के बाद के रिसेप्शन का इंतज़ाम, वहीं दिल्ली में कर देंगे। सत्यजीत ने फिर से मेरे प्रपोजल पर हस्तक्षेप किया, और मुझसे कहा कि हमको ज्यादा परेशान नहीं होना चाहिए। वो अपनी नवविवाहित दुल्हन को शादी के अगले ही दिन, जितना जल्दी हो सके उतना जल्दी विदा करा लेना चाहते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि यात्रा और रहने सहने का पूरा खर्च वो ही उठाएँगे। और मुंबई पहुँच कर एक प्रीती-भोज (रिसेप्शन) का आयोजन करेंगे, जिसमें हम सभी आमंत्रित हैं!
सच में - मैं उस आदमी से और भी अधिक प्रभावित हो गया!
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ओह यह वाकई बहुत बड़ा धर्म संकट हैअपनी चीज़ जब पराई होने लगती है न, तो दिल बैठने लगता है। काजल को लेकर मेरे मन में यही विचार थे। मज़े की बात यह है कि काजल अपनी ‘चीज़’ भी नहीं थी! वो खुद अपनी चीज़ थी। अच्छा हुआ कि मेरा पापा के साथ जो नया नया सम्बन्ध बना था, वो बन गया। अन्यथा काजल को छोड़ने का सोच भी नहीं सकता था। बढ़िया बात यह थी कि काम काज के चक्कर में मैं वैसे भी काफी घुल गया था। लेकिन अभी भी कई सारे महत्वपूर्ण निर्णय लेने बाकी थे।
सबसे पहली दिक्कत थी लतिका की पढ़ाई की। दसवीं कर के यहाँ दिल्ली में ही, अपने ही स्कूल में, वो अपनी पढ़ाई आगे जारी रख सकती थी, बिना किसी परेशानी के, और बिना किसी व्यवधान के। न तो जगह बदलने का चक्कर, और न ही यार दोस्त बदलने का। बच्चों के लिए बड़ा कष्ट होता है - पहले तो पढ़ाई का बोझ, और ऊपर से यह सब! ऊपर से दिल्ली से मुंबई जाना - डिस्टर्बेंस तो होता ही है न! फिर, लतिका के जाने से आभा का भी मन नहीं लगेगा। दोनों तो जैसे चड्ढी यार थीं! आभा की पढ़ाई लिखाई, खेल कूद, और खान पान का ध्यान भी लतिका ही रखती थी - किसी कुशल गार्जियन की तरह। लिहाज़ा, लतिका के जाने से आभा की पढ़ाई लिखाई, और सामान्य जीवन पर भी संभवतः नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता था। एक हल था इस समस्या का, और वो यह कि लतिका और आभा दोनों ही मुंबई चली जाएँ और या तो माँ के पास रहें या फिर काजल के पास। लेकिन उस हालत में लतिका अपनी माँ के यहाँ तो रह सकेगी, लेकिन आभा का क्या? पापा और माँ का घर उन दोनों के आने से बेहद छोटा पड़ता। और सबसे बड़ी बात, मैं अकेला रह जाता। नितांत! और अगर लतिका काजल के पास नहीं जाती, तो समझिए कि एक माँ और बेटी को अलग रखने का पाप मेरे सर हो जाता।
वाह एक बार फिर एक अप्रत्याशित मोड़ पर कहानी रुक गई हैइस समस्या का हल साधारण नहीं था, इसलिए मैंने इस बात की ज़िम्मेदारी पद में अपने से ‘बड़ों’ पर डाल दी। क्यों न हो? अगर उनको बड़ा बनने की चाह है, तो बड़ों की समस्याएँ अपने जिम्मे लेने की चाह भी होनी चाहिए। कई दिनों के गहन विचार विमर्श के बाद यह तय हुआ - और उस निर्णय से लतिका और आभा भी बेहद खुश थीं - कि दोनों लड़कियाँ मेरे साथ ही दिल्ली में रहेंगीं। काजल को अवश्य ही इस बात से निराशा हुई थी, लेकिन इस निर्णय के अच्छे और बुरे - दोनों पहलुओं पर ध्यान देने के बाद, उसको भी यही सही लगा। काजल के जाने के बाद, घर पर खाने पीने की समस्या होनी ही थी। कामवाली बाई भरोसे की लगने लगी थी, इसलिए उस पर घर के रख रखाव की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती थी। मेरे हिसाब से यह ठीक था। वैसे भी आवश्यकता पड़ने पर, मैं स्वयं भी साधारण लेकिन बेहद पौष्टिक खाना पका सकता था। उथल पुथल तो थी, लेकिन कम से कम इन सब बातों का लतिका के एक्साम्स पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा। नकारात्मक प्रभाव छोड़िए, उलटे लतिका का हाई स्कूल का परफॉरमेंस आश्चर्यजनक कर देने वाला था! हम में से किसी को उम्मीद नहीं थी कि उसका नाम अपने स्कूल के टॉप दस छात्रों में होगा! सच में - गर्व से सीना चौड़ा हो गया।
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भाई यह गुरुवार को आपने पोस्ट कर दिए भाई अपनी व्यस्तता के कारण मैं आपके इस अपडेट पर नहीं आ सका
चलो काजल के साथ कैसा भी रिश्ता रहा है
पर है तो अंतरंग मित्र
यह बड़ी दुविधा वाली स्थिति जो कभी अमर को भैया कहता था आज उसे बेटा कह रहा है
और अमर जिसे बेटा तुल्य स्नेह करता था आज उसे पापा कह रहा है
सत्यजीत का यह संक्षिप्त इतिहास या फिर परिचय
काजल के तरफ से अमर के लिए जानना अत्यन्त आवश्यक था
अभी अमर की भूमिका एक गार्डियन की तरह है
उम्र के इस पड़ाव में
दो मन परस्पर के प्रति समर्पित हुए हैं
अद्भुत वैसे किसी भी रिश्ते की किताब का आरंभ होने से पहले अतीत के पन्ने सुदृश्य रहने चाहिए
हा हा हा
यहाँ पर अमर आंशिक जलन का मारा होगा
यह एक सच्चे शुभचिंतक की निशानी है
स्वाभाविक है
मैं भी प्रभावित हो गया
ओह यह वाकई बहुत बड़ा धर्म संकट है
वाह एक बार फिर एक अप्रत्याशित मोड़ पर कहानी रुक गई है
यह भी एक जीवन युद्द है
चलिए अगली कड़ी की प्रतीक्षा में
एक बेकरी वाले की लड़की से विवाह कर सत्यजीत मुफ़लिसी से एक मध्यमवर्गीय इनकम प्राप्त करने लायक व्यक्ति बने और अब काजल से शादी कर एक करोड़पति के जमात मे शामिल हो जायेंगे। क्योकि काजल आज के तारीख मे एक करोड़पति से कोई कम नही है।
मै यह नही कहता हूं कि सत्यजीत साहब ने ये दोनो शादी किसी बदनीयत से की होगी। यह उनके परिश्रम , इमानदारी और अच्छे भाग्य की वजह से हुआ। मै यह भी समझ रहा हूं कि उनके मन मे एक सेकेंड के लिए भी धन दौलत का ख्याल नही आया होगा।
इसीलिए कहते है पुरुष का तकदीर कब बदल जाए , कोई नही जानता।
लतिका और आभा के लिए इस वक्त सबसे महत्वपूर्ण था उनका एजूकेशन । वो अब कोई नन्हे बच्चे तो है नही कि किसी भी स्कूल से हटाकर किसी और स्कूल मे डाल दें ! जरूरी भी था और सही भी था कि वो अपनी एजूकेशन वहीं से प्राप्त करे जहां फिलहाल कर रहे थे।
लेकिन जैसा रिजल्ट लतिका आया , उस हिसाब से और भी जरूरी है कि उच्च शिक्षा किसी बढ़िया इंस्टिट्यूट से करे , भले ही इसके लिए उसे दिल्ली और मुंबई से भी बाहर जाना पड़े !
एक और खुबसूरत अपडेट अमर भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड एमेजिंग।