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अच्छे दिन आने वाले हैं।अंतराल - समृद्धि - Update #9
अपनी माँ को कहते सुना था एक बार -
‘घर दरअसल एक कच्चा घड़ा होता है... और बहू होती है कुम्हार। अच्छी बहू घर को बढ़िया आकार देती है, उसकी वैल्यू बढ़ाती है...’
काजल ठीक वैसी ही बहू साबित हुई सत्यजीत के परिवार के लिए! बस कुछ ही हफ़्तों में न केवल वो सत्या के ससुर की भी चहेती बन गई, बल्कि उसके बेटे और बहू की भी। प्यार से किसी को भी जीता जा सकता है - काजल ने यह सिद्ध कर दिखाया। बिना किसी भी सदस्य पर दबाव बनाए, उसने शीघ्र ही सभी का मन मोह लिया। उसकी ‘बहू’ शुरू शुरू में उससे खिंची खिंची रहती थी... उसकी कोशिश रहती थी कि अपनी ‘सास’ से सामना न होने पाए। लेकिन बस कुछ ही हफ़्तों में दोनों का व्यवहार ऐसा हो गया कि जैसे बरसों पुराने दोस्त हों दोनों! पुरानी बहू का घर पर स्वामित्व वैसा ही रहा - काजल ने कभी भी उसकी स्थिति को चुनौती नहीं दी। बल्कि जैसा बहू कहती, वो वैसा करती, और मन लगा कर सब काम करती। बहू बेचारी ने कुछ ही दिनों में अपना स्वामित्व अधिकार छोड़ दिया, और काजल की बुद्धिमत्ता और कार्य कौशल में शरण ले ली।
सत्या जैसा चाहता था, उसकी बहू में भी सकारात्मक परिवर्तन आ गए थे। उसने अपने बेटे को पुनः स्तनपान कराना शुरू कर दिया, और वो भी बिना किसी पूर्वाग्रह और डर के! बेचारी छोटी सी लड़की थी और उसकी माँ ने उसको ससुराल का डर दिखा दिखा कर उसके सामने ससुराल का हौव्वा बना दिया था और उसके मन में तरह तरह की भ्रांतियाँ भर दी थीं। काजल ने उसके डर को चुटकियों में दूर कर दिया, और उसको अपने तरीके से जीने के लिए प्रेरित किया। यह उसका संसार था, और उसमे किसी का भी हस्तक्षेप ठीक नहीं था। बहू ने इस बात को समझा और अपनाया। दोनों में सबसे बढ़िया बॉन्डिंग तब हुई जब काजल ने अपने ‘पोते’ को स्तनपान कराने की पेशकश करी। पहले तो बहू को भी आश्चर्य हुआ, लेकिन फिर उत्सुकतावश उसने इस बात के लिए ‘हाँ’ कह दी। अपनी सास के स्तनों से दूध उतरता देख कर उसको बेहद और सुखद आश्चर्य हुआ।
सत्या और काजल की गृहस्थी में क्या हुआ, उसका व्यापक ब्यौरा देने की यहाँ कोई आवश्यकता नहीं है। लेकिन सही मायने में काजल सत्या के बेटे और उसकी पत्नी की माँ ही बन गई थी! काजल के आने से बहू का कार्यभार भी बहुत कम हो गया, तो वो अपने पति के साथ अधिक अंतरंग समय व्यतीत कर पाती थी। काजल दोनों को बहुत प्रोत्साहित भी करती अधिक से अधिक समय साथ व्यतीत करने के लिए और सम्भोग करने के लिए। कोई आश्चर्य नहीं कि उसकी बहू दोबारा गर्भवती हो गई - अपने आरंभिक डर के विपरीत! काजल भी वंश वृद्धि के मामले में कोई पीछे नहीं थी - सत्या और काजल की शादी के चार महीने बाद हमको खबर आई कि काजल भी गर्भवती हो गई है, और उसका पहला ट्राईमेस्टर पूर्ण हो चुका है।
बहुत ही अधिक ख़ुशी की बात थी।
कुछ स्त्रियाँ श्री का रूप होती हैं। काजल... माँ... ये सभी उन्ही स्त्रियों में से हैं। इनके आने से परिवार में समृद्धि आती है, वंश बढ़ता है, सुख बढ़ता है, ख़ुशियाँ आती हैं! हम सभी बहुत खुश थे। हमारा इतना बड़ा परिवार हो गया था - कुछ समय पहले हम क्या थे? अपनी अपनी नींव से उखड़ कर, इधर उधर भटकते हुए चंद लोग! लेकिन अब... अब हमारा भी ‘खानदान’ बन गया था। बड़ा परिवार। काजल उस परिवार का सूत्र थी। उसका अंश तीन तीन परिवारों में था या आने वाला था! मेरे साथ लतिका; माँ के साथ पापा; और काजल स्वयं सत्या के साथ! उसने हम सभी को बाँध कर एक साथ रखा हुआ था, और उसके ही कारण हम सभी एक परिवार जैसा महसूस करते थे।
काजल को माँ वाली ही गाइनोकोलॉजिस्ट ने देखना शुरू किया था। काजल की प्रेग्नेंसी को ले कर उसको थोड़ी चिंता तो थी, लेकिन वो चिंता बहुत अधिक नहीं थी। माँ के केस को दो बार हैंडल करने के बाद, उस डॉक्टर को भी काजल की प्रेग्नेंसी को ले कर बहुत आत्मविश्वास था। इस बीच एक और कमाल हुआ!
एक दिन पापा और माँ किसी पार्टी के लिए तैयार हो रहे थे।
कपड़े पहनते हुए माँ ने यूँ ही, ऐसे ही, चलते फिरते पापा से कहा,
“ये ब्लाउज़ थोड़ी कसी हुई महसूस हो रही है!” माँ ने पापा के सामने सम्मुख होते हुए कहा, “देखिए न, ये सामने, बटनों के बीच खिंच नहीं रहा है क्या?”
दूसरे बेटे के होने बाद, माँ बढ़िया स्वास्थ्य लाभ उठा रही थीं, और उनके शरीर से वसा की मात्रा भी बहुत कम हो गई थी, इसलिए उनको थोड़ा आश्चर्य हुआ और निराशा भी!
“ब्रा चेंज कर लो न! हो सकता है उसके कारण...”
“किया न! फिर भी... सेम रिजल्ट!”
“अरे कोई बात नहीं मेरी जान,” पापा ने अपने उसी चिर परिचित आश्वस्त अंदाज़ में माँ को अपने आलिंगन में लेते हुए कहा, “आज कल थोड़ा अधिक दूध बन रहा होगा, इसलिए ऐसा हो गया होगा! और वैसे भी, थोड़े बड़े बूब्स तो बहुत सेक्सी लगेंगे तुम्हारे सीने पर!”
“आप भी न,” माँ ने मुस्कुराते हुए और उनको परे ढकेलते हुए कहा, “हर बात में आपको मज़ाक ही लगता है! इतनी मेहनत करती हूँ, और उस पर ये!”
“अरे हो गया होगा! बॉडी है! ऊपर नीचे तो चलता ही रहता है!”
“नीचे नीचे रहे तो बढ़िया!”
“वैसे एक बात कहूँ?” पापा ने माँ को अपने आलिंगन में फिर से भरते हुए कहा, “तुम्हारी नारंगियाँ सबसे टेस्टी हैं!”
“और किस किस की चखीं हैं आपने?” माँ ने पापा को छेड़ा।
“हाय... ये अदा! किसी की भी नहीं दुल्हनिया! ... इतनी स्वाद नारंगियों को कौन गधा छोड़ेगा?”
“पता है...” माँ ने उनकी बात को नज़रअंदाज़ किया, “दो बार से पीरियड्स भी नहीं हुए मुझे!”
“ओह,” पापा ने बस थोड़ा गंभीर होते हुए कहा, “शायद... बुरा न मानना... लेकिन... मेरी जान, क्या पता... तुमको मेनोपॉज़ होने लगा हो? ... पॉसिबल है न?”
हाँ, संभव तो था ही। उम्र तो आ ही गई थी उस क्षेत्र में।
पापा की बात सुन कर माँ थोड़ा उदास हो गईं - जनन-क्षमता और स्त्रियाँ - समझिए एक दूसरे के पर्याय ही हैं। केवल स्त्री ही संतान उत्पन्न कर सकती है। जब वो शक्ति, वो क्षमता जाने लगती है, तो एक खालीपन सा महसूस होना लाज़मी ही है। पापा ने माँ के चेहरे पर वो उदासी वाले भाव देखे, और उनको स्वांत्वना देते हुए बोले,
“दुल्हनिया... ओ मेरी जान... इसके लिए क्या उदास होना? यह तो नेचुरल है न! ... सब ठीक रहेगा! मैं हूँ न तुम्हारे साथ!” फिर अचानक ही बदमाशी वाले स्वर में बोले, “अब तो हम बिना रोक टोक के मस्ती करेंगे!”
“हाँ जी,” माँ उनकी बात पर हँसे बिना न रह सकीं - उन्होंने उनको फिर से अपने से परे धकेला, और बोलीं, “जैसे कि अभी किसी रोक टोक के साथ मस्ती करते हैं हम!”
बात मज़ाक में आई गई हो तो गई, लेकिन माँ के दिमाग में एक शंका बैठ गई।
जब निर्बाध तरीके से किसी उर्वर महिला के साथ सम्भोग होता है, तो गर्भ ठहरने के चांस तो बड़े होते ही हैं। माँ और पापा इतने आश्वस्त थे कि उनको कभी लगा ही नहीं कि माँ एक और बार गर्भवती हो सकती हैं। अक्सर ट्रकों के पीछे लिखा देखा है, ‘सावधानी हटी, दुर्घटना घटी’! और यहाँ तो सावधानी का नामोनिशान ही नहीं था। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि माँ का पुनः गर्भवती होना कोई दुर्घटना हो जाएगी!
लेकिन माँ समझ रही थीं कि उनको क्या हो रहा है। उनको अपने शरीर में हो रहे परिवर्तन परिचित से लग रहे थे - भूख भी थोड़ी बढ़ गई थी, और उसका मौसम से कोई लेना देना नहीं था। इसलिए उनको शंका थी कि मेनोपॉज़ नहीं, बल्कि वो शायद फिर से गर्भवती हैं। यह बच्चा प्लान नहीं किया था, इसलिए इस बार उनको इतना आश्चर्य हुआ। आश्चर्य भी, और लज्जा भी!
‘इस उम्र में फिर से माँ बनना!’
इसी लज्जा के मारे माँ अपनी गाइनाकोलॉजिस्ट के पास दो सप्ताह और नहीं गईं। लेकिन अब उनको लगभग विश्वास हो गया था कि वो वाकई गर्भवती हैं। अंततः जब उन्होंने डॉक्टर को दिखाया, तब यह निश्चित हो ही गया। माँ एक बार फिर से गर्भवती थीं!
‘उफ़्फ़ ये हमारे बुज़ुर्ग लोग! इनको स्वयं पर कोई नियंत्रण ही नहीं! हा हा!’ मैं यही सोच कर हँसने लगा।
लेकिन लतिका, और आभा दोनों इस खबर को सुन कर बहुत उत्साहित हुए और खुश भी! काजल तो हर्षातिरेक से पागल ही हो गई।
माँ के डॉक्टर को काजल के मुकाबले, माँ को ले कर अधिक चिंता थी। उसका सबसे बड़ा कारण था उनकी उम्र, और जल्दी जल्दी प्रेग्नेंसी! सबसे अच्छी बात जो माँ के पक्ष में थी, वो यह कि उनका स्वास्थ्य अभी भी बढ़िया था - उम्र के हिसाब से तो बहुत ही बढ़िया! और अभी तक एक बार भी उनकी किसी भी प्रेग्नेंसी में कोई व्यवधान नहीं आया था। कुशल देखरेख, अच्छे खानपान, और नियमित व्यायाम से काजल और माँ दोनों के ही स्वास्थ्य में वृद्धि हुई थी। इसलिए हम सभी यही सोच रहे थे कि उनकी डिलीवरी नार्मल, प्राकृतिक तरीके से हो जाएगी।
काजल ने अपने नियत समय पर एक स्वस्थ पुत्री को जन्म दिया। बहुत सुन्दर सी गुड़िया थी वो! उस क्षण मुझे न जाने क्यों लगा कि जैसे हमारी ही बेटी वापस आ गई हो। बहुत भावनात्मक दिन था वो मेरे लिए! मैं न जाने कितने उपहार सामान ले कर सत्यजीत के घर गया था उस बच्ची से मिलने! बेवकूफों के जैसे! बच्चों को सामानों की क्या ज़रुरत? उनको तो बस प्यार और दुलार चाहिए! लेकिन न जाने क्यों वो मुझे अपनी वही वाली बच्ची लगी। उधर सत्या के घर में भी खुशियों का माहौल था। दो बच्चे जल्दी जल्दी हुए थे, और अब उनका घर भी खुशहाल हो गया था। उस बच्ची का नाम गार्गी रखा।
काजल के कोई चार महीने बाद माँ ने भी अपनी पहली बेटी को जन्म दिया। असिस्टेड लेबर था, लेकिन भगवान की दया सीज़ेरियन की आवश्यकता नहीं हुई। से मेरे बाद, उनकी ‘एक बेटी’ की तमन्ना - वो तमन्ना, जिसके कारण वो अपने रस्ते आते किसी भी लड़की को ‘अपनी बेटी’ कहने लगती थीं - आज पूरी हुई! ये भी गार्गी के जैसी ही स्वस्थ, सुन्दर, और गोल मटोल सी गुड़िया थी। माँ पापा ने इस बच्ची का नाम अभया रखा। पाठकों को याद होगा कि मेरी आभा के लिए संभावित नामों में से एक नाम यह भी था। माँ के हिसाब से यह बच्ची एक ईश्वरीय प्रसाद है! उनकी सारी इच्छाएँ पूरी हुई थीं और अब कोई इच्छा शेष नहीं रह गई थी। इसलिए उन्होंने बच्ची यही नाम रखा।
**
मेरे परिवार में इतना कुछ घटित हो रहा था। ऐसा नहीं है कि मेरे साथ कुछ भी नहीं हो रहा था।
क्या आप लोगों को वो शर्मा परिवार याद है? हम्म्म, हो सकता है कि नहीं! ठीक है, शर्मा परिवार नहीं, लेकिन क्या आप लोगों को रचना याद है? नहीं? मेरे जीवन की ‘पहली लड़की’? याद आया? हाँ? बढ़िया!
गार्गी के जन्म के कुछ ही दिनों बाद की बात है। एक क्लाइंट के साथ मैं एक बिज़नेस मीटिंग करने गया हुआ था, और वहाँ संयोग से मेरी मुलाक़ात रचना के पिता जी से हुई। वो अभी हाल ही में सेवानिवृत्त हुए थे, और अब एक निजी कंपनी में एक अंशकालिक कंसलटेंट के रूप में काम कर रहे थे। मीटिंग में वो अवश्य ही मुझे पहचान नहीं पाए, लेकिन मैंने उनको पहचान लिया और अपना परिचय दिया। यह देख कर अच्छा लगा कि वो मुझे देखकर वास्तव में बहुत खुश हुए! लग रहा था कि शायद न पहचानें! करीब सत्रह अट्ठारह साल जो हो गए थे उनको आखिरी बार देखे! उन्होंने मुझे इतना ‘बड़ा’ उद्यम स्थापित करने के लिए बहुत बहुत बधाई दी, और मुझसे बोले कि बड़ा अच्छा लगा यह देख कर कि मैंने इतनी तरक्की कर ली है। अपने बीच में से उठे लोगों को इतना मुकम्मल जहान हासिल करते देख कर अच्छा लगता है, वगैरह वगैरह!
मीटिंग के बाद हम फिर से मिले। बातें बढ़ीं, एक बात से दो बातें, और ऐसे ही करते करते हम अपने निजी जीवन के बारे में बात करने लगे। मैंने उन्हें डैड की मृत्यु के बारे में बताया (मैंने उनको माँ के पुनर्विवाह, उनके दोनों बच्चों, और उनकी वर्तमान गर्भावस्था के बारे में कुछ नहीं बताया - न जाने क्या सोच कर), गैबी और देवयानी के बारे में बताया, और आभा के बारे में बताया।
मेरी बातों को सुन कर उनको सच में दुःख हुआ - यह उनके चेहरे पर दिख रहा था। शर्मा जी सज्जन आदमी थे। शायद इसीलिए डैड और उनका साथ हो सका था। खैर, उन्होंने मुझे अपनी तरफ से सच्ची संवेदना दी, और आभा के बारे में उन्होंने बहुत कुछ पूछा। मेरा मन हो रहा था कि रचना के बारे में उनसे पूछूँ, लेकिन मैंने खुद को ज़ब्त कर लिया। हम उस दिन काफी देर तक बातें करते रहे। फिर उन्होंने ही खुद ही रचना के बारे में मुझको बताया - यह कि उसकी शादी बहुत पहले ही हो गई थी, और यह कि कुछ सालों पहले उसका अपने पति से तलाक हो गया था। शायद मेरी आभा से दो तीन साल बड़ी उसकी भी एक बेटी थी (जो कि नहीं था - वो मुझे बाद में मालूम हुआ)। जिस तरह से शर्मा जी मुझसे बात कर रहे थे, वो थोड़ा अप्राकृतिक सा लग रहा था मुझे। उनकी बातों में शुभचिंतक वाला भाव तो था, लेकिन थोड़ा चापलूसी वाला भाव भी लग रहा था।
दिमाग पर थोड़ा ज़ोर डाला तो समझ में आ गया कि इनके मन में क्या है। उनको मालूम था कि रचना और मैं बचपन के दोस्त थे, और यह कि माँ उसको बहुत पसंद करती थीं। अब, जबकि रचना तलाक़शुदा है, तो मुझे यकीन है कि वो उसकी दोबारा शादी कराने के लिए बेताब हो रहे होंगे! एकलौती लड़की है उनकी - यह चाह तो किसी भी बाप की होती है। और जब उन्होंने मुझे देखा - और जाहिर सी बात है, एक कंसलटेंट के रूप में उनको मेरी कंपनी के बारे में, उसकी इंडस्ट्री स्टैंडिंग के बारे में, और टर्नओवर के बारे में काफी कुछ पता होगा - तो उन्होंने सोचा होगा कि क्या मेरा और रचना का संग संभव है।
मुझे बहुत देर इस बात के सामने आने का इंतज़ार नहीं करना पड़ा। एक समय उन्होंने मुझसे कह ही दिया,
“अमर बेटे, आप से एक बात कहूँ?”
“जी अंकल जी, कहिए न!”
“प्लीज मुझको गलत मत समझना! लेकिन... मेरा मतलब है आप फिर से शादी करने के बारे में क्या सोचते हैं? आई नो, कि आपके मन में गैब्रिएला और देवयानी के लिए बहुत बड़ी जगह होगी... लेकिन यूँ अकेले कब तक रहेंगे आप? ... इसीलिए मैं आपको कहता हूँ कि आप इस मसले पर फिर से विचार करें...”
उन्होंने कहा, और अपनी बात क्या प्रभाव हुआ है, वो देखने के लिए थोड़ा ठहरे।
मैंने कुछ नहीं कहा। फिर उन्होंने ही हार कर आगे कहा,
“मेरी रचना… तुम तो जानते ही हो उसको। हाँ, वो तलाकशुदा है… लेकिन वो उस तलाक में निर्दोष थी... उसका हस्बैंड एक शराबी आदमी था। न अपनी कमाई सम्हाल पाया, और ऊपर से खानदानी दौलत भी उड़ा दी। और तो और, अपनी बीवी और बच्ची की देखभाल भी नहीं कर सका। ऐसे लम्पट के साथ कोई कैसे रहे? ... तुम दोनों तो एक-दूसरे को जानते भी हो... अगर तुम चाहो... तो... तो क्यों न उससे एक बार मिल लो?”
पाठक गण जानते ही होंगे कि रचना के बारे में मेरे विचार अच्छे रहे हैं। उसकी सिफ़ारिश करने की उनको कोई ज़रुरत नहीं थी। इसलिए मैंने भी पूरी संजीदगी से उनसे कहा,
“अंकल जी, क्या आप इस बारे में श्योर हैं? न जाने मुझे ऐसा लगने लगा है कि जो कोई लड़की मेरी लाइफ में आती है, मैं उसके लिए बैड लक ले आया हूँ!”
“क्या बकवास है! इतना पढ़े लिखे हो कर ऐसी बातें क्यों कर रहे हो बेटे? मेरे ख़याल से ये तो तुम हो, जो दुर्भाग्य का शिकार हो रहे हो! जो चला गया, वो तो मुक्त हो गया। उनके साथ जो हुआ, उसमें तुम्हारी क्या गलती है? वो तो सब भाग्य की गलती है! उसके लिए तुम खुद को दोष नहीं दे सकते…”
वो इंतज़ार कर रहे थे कि मैं कुछ कहूँगा।
जब मैंने कुछ नहीं कहा, तो उन्होंने कहा, “देखो बेटे, मैं घुमा फिरा कर कह नहीं पाऊँगा, इसलिये सीधा सीधा कहता हूँ। भाभी जी को भी मेरी रचना बहुत पसंद थी। उनकी छाया में वो बेवक़ूफ़ कितना कुछ सीख गई थी, और कितनी तमीज आ गई थी उसमें! मेरी मिसेज़ मुझसे अक्सर इस बात का जिक्र करती थी। तुम्हारी माँ ने मेरी मिसेज़ से बात भी करी थी... लेकिन उस समय तुम दोनों बच्चे ही थे।”
‘अच्छा, तो इनको भी माँ के प्रपोजल के बारे में मालूम हो गया था!’
“... तुम दोनों को ही अपना अपना करियर बनाने पर फ़ोकस करना चाहिए था उस वक़्त! और देखो न... तुमने आज जो हासिल किया है, उसके लिए तो मुझे भी तुम पर बहुत गर्व है! एक अच्छी सी बीवी आ जाएगी, तो तुम और भी आगे बढ़ सकते हो! और तरक्की कर सकते हो।”
मैंने मुस्कराया।
‘भाई साहेब ऐसे कह रहे हैं जैसे कि उनको उस समय भविष्य का सब मालूम था!’ मन में मेरे कसैलापन आ गया, ‘और मेरी माँ के साथ जो दुर्व्यवहार किया था, वो?’
मन में कसैलापन आया, लेकिन कुछ ही देर के लिए। रचना अपनी तरफ़ से बड़ी ऑनेस्ट रही, और उसके मन में माँ के लिए बहुत आदर और प्रेम था। बात रचना की हो रही थी। शर्मा लोग भाड़ में जा सकते हैं। मैं अपने विचार पर फिर से मुस्कुराया।
उनको लगा कि मुझको उनकी बात भली लगीं! तो उन्होंने उत्साहित होते हुए कहा,
“बेटे, इस के बारे में थोड़ा कुछ सोचो। ये रहा मेरा नंबर... और पता,” उन्होंने अपने विजिटिंग कार्ड के पीछे अपने घर का पता लिख कर मुझे दे दिया, “रचना और उसकी बेटी हमारे साथ ही रहती है! अगर कभी आपका मन करे, तो चाय पर, या तो लंच या डिनर पर बिना संकोच चले आना! आपका ही घर है बेटे!”
**
आ ही गए अच्छे दिन।अंतराल - समृद्धि - Update #11
रचना से मेरी इस मुलाकात के बारे में सभी ने पूछा, और लोगों को सब कुछ (अपनी अंतरंग होने वाली बातें मैं छुपा गया सभी से) सुन कर बड़ा अच्छा भी लगा। माँ इसी बात से निहाल हो गईं कि वो उनको अभी भी याद करती है। वैसे गर्भवती महिलाएँ किसी भी बात से भावुक और निहाल हो जाती हैं, इसलिए मैंने माँ की प्रतिक्रिया को बहुत सीरियसली नहीं लिया। काजल से जब बात हुई तो उसने कहा कि वो दिल्ली ही आने वाली है, तो विस्तार से इस बारे में बात करेगी। वैसे उसकी दृष्टि में सब बढ़िया बढ़िया था। पापा ने बहुत कुरेद कुरेद कर सारे राज़ की बातें निकाल लीं - किसने क्या कहा, क्या खिलाया इत्यादि। उनके हिसाब से भी सब बढ़िया था।
सभी ने सलाह दी कि मैं रचना से और मिलूँ और जल्दी जल्दी मिलूँ। अच्छी बात थी!
रचना को मैंने एक खुला निमंत्रण दिया कि वो जब मन करे, ‘घर’ आ जाए। हम उसको घर का खाना खिलाएँगे, और पुरानी बातें याद करेंगे!
रचना हमारे पहली बार मिलने के दूसरे सप्ताहांत में मेरे घर आई। वो टैक्सी में आई थी, तो मुझे इस बात से थोड़ा अजीब लगा कि वो अकेली ही आई; अपनी बेटी को साथ नहीं लाई! यह एक बढ़िया मौका था कि हमारी बेटियाँ भी आपस में मिल लेतीं और एक दूसरे को जान लेतीं। हम कोई डेट पर थोड़े ही जा रहे थे - जब घर में मिल रहे हैं, तो पारिवारिक मुलाकात है : व्यक्तिगत नहीं!
खैर, कोई बात नहीं। मैंने सोचा कि उसके लिए भी सब नया नया होगा! तो उसको जिस बात में सहजता रहे, वही अच्छा।
पिछली बार के जैसे ही वो इस बार भी बढ़िया से तैयार हो कर आई थी। इस बार उसने जींस और टॉप पहना हुआ था। स्किन हगिंग! जींस और टॉप दोनों ही उसके शरीर से इस तरह चिपकी हुई थीं कि उसके फिगर के बारे में कल्पना करने की कोई ज़रुरत ही नहीं थी। उसका टॉप किसी शिमरिंग कपड़े का था - कुछ कुछ उसकी ब्लाउज के जैसा - जो उसके रूप लावण्य को और भी लुभावना बना रहा था! सोचता हूँ तो लगता है कि अप्सराएँ ऐसी ही रही होंगी!
मैंने काजल को रचना के आगमन के बारे में पहले से ही आगाह कर रखा था। वो भी रचना से मिलने को बड़ी उत्सुक थी, और देखना चाहती थी कि मेरे जीवन की ‘पहली पसंद’ कैसी है! उसके हिसाब से यह रिश्ता तय हो गया था, और वो मुझसे प्यार व्यार की बातें करती थी। अब मैं काजल को कैसे समझाऊँ कि रचना से प्यार नहीं हुआ था मुझको - उससे वर्षों पुरानी पहचान थी, कभी हम अच्छे दोस्त हुआ करते थे, और हमने एक बार सेक्स किया है। उसको भी एक मुद्दत हो गया! बस, इतना ही! लेकिन काजल के हिसाब से वो होने वाली बहू ही थी!
उफ़्फ़्फ़! ये औरतें!
काजल ने रचना के आगमन पर उसके स्वागत की तैयारी खुद करी - मेरे लाख मना करने के बावज़ूद! कितना समझाया उसको की अपनी नन्ही सी बच्ची की देखभाल करो, लेकिन वो एक ज़िद जब पकड़ लेती, तो उसको छोड़ती नहीं थी। उसने कहा कि यह एक स्वस्थ चीज थी, और मुझे एक बार और प्यार पाने की कोशिश करनी चाहिए। कामवाली बाई बस उसकी सहायक बन कर रह गई। आभा और लतिका भी बड़े उत्साह से तैयार हुए थे कि मेरी ‘गर्लफ्रेंड’ से मिलेंगी दोनों!
रचना जब आई, तब उसके लिए दरवाज़ा मैंने ही खोला।
अपने बारे में एक बात आपको ज़रूर बताऊँगा कि इतनी दौलत आने पर भी मैं ज़मीन पर ही रहता था। उड़ता नहीं था। धन का क्या है? आज है, कल नहीं? हम अपने और अपने परिवार के लिए धन का संचय करते हैं; दूसरों को अगर उससे कुछ नहीं मिलता, तो दूसरों के सामने उस धन का ठसका क्यों मारना? इसलिए सरल जीवन ही व्यतीत करता था मैं। Kala Nag काला नाग भाई की कहानी के खेत्रपालों के जैसे आलू टोस्ट तो नहीं, लेकिन, अँकुरित अनाज को थोड़ा स्टीम कर के, सलाद के साथ खाना - यही मेरा मुख्य भोजन था। साथ में दही और फल भी! माँ ने अच्छे खाने की जो आदत लगवाई थी, वो आज तक नहीं छूटी। हाँ, बच्चे अपना मनचाहा अवश्य खाते थे, लेकिन चूँकि लतिका खुद भी एक एथलीट थी, तो उसका भोजन भी पौष्टिक था। उसकी देखा-देखी आभा का भी! हाँ - काजल के कारण आज व्यंजन अवश्य पके थे। नहीं तो बेचारी की यही शिकायत रहती थी कि मैं कुछ खाता नहीं!
रचना अंदर आई, तो मुझसे हाय हेलो के बाद घर का मुआयना करने लगी।
‘कितना अच्छा सजाया है’ ‘कितना सुन्दर है’ इत्यादि कमेंट उसने दिए।
इतने में काजल हमारे लिए चाय और जलपान के अन्य पदार्थ ले आई। शायद रचना को लगा हो कि काजल हमारे घरेलू सहायकों में कोई है, और तो उसने उसकी तरफ़ देखा भी नहीं। मुझे सच में इस बात से बहुत बुरा लगा!
ठीक है - आप न करें घरेलू सहायकों से हाय हेलो! लेकिन जब वो आपको कुछ दें, या आपके लिए कुछ करें, तो उनको उस काम के लिए ‘थैंक यू’ तो कह ही सकते हैं न? इतने से आप छोटे तो नहीं हो जाएँगे! कुछ गलत कहा? यह तो एक साधारण सा शिष्टाचार है!
सच में बड़ी गुस्सा आई!
‘काजल के सामने दो पैसे की भी औकात है क्या?’ मन में विचार आया।
फिर यह भी विचार आया कि रचना को काजल के बारे में कुछ भी नहीं मालूम। तो वो क्यों ही उसको कोई तवज्जो देगी?
इसलिए मैंने गुस्सा जब्त करते हुए उसका परिचय रचना से कराया, “रचना, इनसे मिलो! ये हैं इस घर की मुखिया... इस खानदान की एंकर... काजल!”
काजल मेरे परिचय पर मुस्कुराई, “नमस्ते रचना! अमर ने मुझे तुम्हारे बारे में बताया है... और जितना उसने बताया उससे कहीं सुन्दर हो तुम...”
रचना थोड़ा सा सकपका गई, लेकिन संयत हो कर बोली, “नमस्ते, काजल! आई ऍम सॉरी! रियली! मुझे सच में बिलकुल ही नहीं पता था कि आप इस घर की बड़ी हैं...”
“कोई बात नहीं! ये तो ऐसे ही मेरे बारे में बढ़ा चढ़ा कर बोलता है सब...”
“और सब कुछ सच सच!” मैंने कहा।
“हा हा...” काजल ने बात सम्हाली - आज की मुलाकात रचना के बारे में थी, उसके बारे में नहीं - सच में मैं कुछ मामलों में अभी तक लल्लू था, “रचना, इसको इतने सालों से सम्हाल रही हूँ न! इसलिए! यहाँ अमर और दो और जने रहते हैं - उसकी बेटी आभा... उसको हम मिष्टी कहते हैं, और मेरी बेटी लतिका... उसको हम पुचुकी कहते हैं! दोनों आते ही होंगे तुमसे मिलने! दे विल लव यू!”
रचना काजल की बात पर मुस्कुराई।
“आप नहीं रहतीं यहाँ?”
“नहीं! मैं तो मुंबई में रहती हूँ...”
काजल कुछ और कहती कि मैंने बीच में बात काट दी, “... हाँ, इनका बेकरी का बिज़नेस है न वहाँ! इनकी एक नन्ही से बेटी है, जो अभी अभी हुई है... पुचुकी की पढ़ाई न खराब हो, इसलिए वो यहीं रहती है!”
“ओह!” न जाने क्या समझ में आया रचना को।
काजल ने मुझे थोड़ा प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा, लेकिन बात आई गई हो गई।
हम तीनों ने चाय पीते हुए थोड़ी और बात की। अधिकतर बातों की शुरुवात काजल ही कर रही थी। एक तरह से वो रचना को इस घर के बारे में बताने की कोशिश कर रही थी। उसने रचना को यह भी बताया कि उसका एक बेटा भी है, जिसकी शादी हो चुकी है, और उसके भी दो बच्चे हैं, और अगला आने वाला है! शायद उसको भी मेरे मन की बात किसी तरह से समझ में आ गई, इसलिए उसने भी कुछ महत्वपूर्ण विवरण दबा लिए!
अंततः रचना ने मुझसे माँ के बारे में पूछा।
“अमर, माँ कहाँ रहती हैं? कैसी हैं वो?”
उसके मुँह से माँ के लिए ‘माँ’ शब्द सुन कर मुझे बड़ी खुशी हुई।
‘बढ़िया!’
“माँ बहुत अच्छी हैं... वो भी मुंबई में ही रहती हैं!” कहते हुए मैंने काजल को देखा, जो मेरी बात पर ‘हाँ’ में सर हिलाई, “तुमसे मुलाकात के बारे में वो भी बड़ी एक्साइटेड हैं! किसी कारणवश वो फिलहाल ट्रेवल नहीं कर सकतीं!”
“ओह? सब ठीक तो है न?”
“बताया न! सब ठीक है! थोड़ा बिजी हैं - बस!” मैंने मुस्कुराते हुए कहा।
“हम्म! लेकिन मुंबई दूर है न!” रचना ने बात का सूत्र नहीं तोड़ा, “हाँ फ्लाइट्स चलती हैं इतनी सारी, लेकिन फिर भी...”
“हाँ! वो भी कम ही आती हैं यहाँ!”
मेरी बात पर काजल हँसने लगी। रचना को कुछ समझा नहीं।
“मिष्टी को मिस करती होंगी!” उसने एक फैक्चुअल सी बात कही।
कोई भी दादी, अपनी पोती को मिस करेगी ही।
“हाँ, लेकिन वो वहाँ बहुत खुश हैं!” मैंने टालने वाले अंदाज़ में कहा।
मैं ठीक से कह नहीं सकता, कि रचना इस जानकारी पर कैसी प्रतिक्रिया देगी।
वो कुछ पल चुप रही, फिर बोली, “माँ मुझे बहुत प्यार करती थीं... मुझे सब याद है!”
उसने जिस अंदाज़ में यह बात कही - मैं यकीन से कह सकता हूँ कि वो इमोशनल हो गई थी।
“हाँ न? बहुत चाहती थीं तुमको! ... संयोग से हमारा साथ छूट गया... लेकिन मुझे पक्का यकीन है कि जब वो तुमको फिर से देखेंगी, तो बहुत खुश होंगी!”
“हाँ,” काजल भी बोल पड़ी, “आज ही ब... अ... सुमन से बात हो रही थी तुम्हारे बारे में...”
रचना यह सुन कर बहुत खुश हो गई, “मैं भी तो उनसे मिलना चाहती हूँ कितना!”
“जल्दी ही...” काजल बोली और इतने में दोनों बच्चे भी आ गए, “लेकिन फिलहाल इन दोनों से मिलो...” काजल ने बीच में अपनी बात रोकते हुए कहा, “... ये है हम सब की चहेती, हम सब की प्यारी... मिष्टी! अमर की बेटी!”
“हेल्लो!” आभा ने अपने सदा खुशमिजाज वाले अंदाज में रचना का अभिवादन किया।
“हेलो मिष्टी,” रचना ने भी उसी अंदाज़ में जवाब दिया, “आभा एक बहुत ही सुन्दर नाम है... लेकिन मिष्टी बहुत ही मीठा! आपको मैं इसी नाम से बुलाऊँगी तो चलेगा?”
आभा ने मुस्कुराते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“हाऊ ओल्ड आर यू?”
“आई ऍम नाइन एंड हाफ!” आभा ने बड़े गर्व से कहा, “हाऊ ओल्ड आर यू?”
“हा हा! आए ऍम ऐस ओल्ड ऐस योर डैडी इस...” रचना ने हँसते हुए कहा।
“ओह गॉड! यू आर ओल्ड!”
“हा हा! यू आर सो फनी, मिष्टी!” रचना बोली।
काजल भी आभा की बात पर हँसते हुए बोली, “और ये है लतिका... मेरी बेटी।”
“हैलो लतिका।”
“हेलो, रचना।” लतिका ने बड़े सौम्य तरीके से रचना का अभिवादन किया, “इट इस सो नाईस टू मीट यू! यू इनडीड आर वैरी ब्यूटीफुल!”
रचना मुस्करा उठी - शायद इस बात से कि कम से कम इसने तो उसे ‘आंटी’ कह कर संबोधित नहीं किया। और तो और, उसने उसके सौंदर्य की बढ़ाई भी करी!
“एंड हाऊ ओल्ड आर यू, लतिका!” रचना ने पूछा, “गॉश! योर नेम इस सो लवली! आई विल नॉट कॉल यू पुचुकी! होप इट इस ओके विद यू?”
“इट्स ऑल राईट, रचना! आई ऍम क्लोज़ टू फ़िफ़्टीन!” लतिका ने सौम्य, सधी हुई, और मीठी वाणी में बात करना जारी रखा, “आई विल रॉइट माय इण्टरमीडिएट एक्साम्स नेक्स्ट ईयर!”
“वाओ! यू आर अ लेडी, लतिका!” रचना उससे प्रभावित होती हुई बोली, “आई होप दैट व्ही कैन बी फ्रेंड्स!”
लतिका मुस्कुराई, “श्योर!”
सभी से परिचय होने के बाद, हमने आपस में कुछ देर और भी बातें करीं। काजल ने अपनी नवजात से भी रचना को मिलवाया। फिर हमने रात का खाना साथ ही में खाया। फिर सभी ने हमको अकेला छोड़ दिया आपस में बात करने के लिए। तब तक देर बहुत हो चुकी थी, इसलिए मैंने रचना को उसके घर वापस ले जाने की पेशकश की। मेरी बात से उसके चेहरे पर निराशा के भाव आ गए। मैंने जब उसकी तरफ प्रश्नवाचक दृष्टि डाली, तो उसने मुस्कुराते हुए एक मोहक पेशकश करी,
“मैं सोच रही थी कि काश हम दोनों साथ में थोड़ा और टाइम स्पेंड कर सकते... आज की रात के लिए मैंने रेडी होने में बहुत टाइम लगाया है!”
मैं मुस्कुराया, “व्हाट आर यू थिंकिंग?”
“नेक इरादे तो बिलकुल भी नहीं हैं!” वो सेक्सी अदा से मुस्कुराई।
“आई ऍम ऑल ईयर्स!”
“क्या मैं यहीं रह जाऊँ? रात के लिए?”
गज़ब की पेशकश! कितनी बोल्ड है रचना!
“आई कांट सी व्हाई नॉट!” मैंने बड़ी मुश्किल से अपनी लार टपकने से रोका, “लेकिन क्या तुम्हारे मॉम डैड... आई मीन, विल दे बी ओके?”
“मैंने उनसे कह रखा है कि शायद यहाँ रात भर रुकना पड़े!” उसने अर्थपूर्वक कहा, “इसीलिए नीलिमा को नहीं लाई साथ में! अगर तुम ओके हो, तो उनको फोन करके बता दूँ?”
“ओह रचना, तुमको मालूम है कि मुझे बहुत अच्छा लगेगा... अगर तुम यहाँ रुक जाओ!” मेरे दिमाग में हमारे आसन्न सम्भोग की कल्पना चमक उठी, “क्या रंग जमेगा, जब मिल बैठेंगे दो यार... और... बैगपाइपर...” मैंने एक पुराने सोडा के विज्ञापन की तर्ज में एक बकवास सा जोक कहा।
लेकिन उस पर भी रचना हँस दी!
खैर, रचना ने अपने घर फोन किया और बताया कि वो आज रात यहीं रुक रही है। कल सवेरे वो आ जाएगी। इस बीच मैंने काजल को भी इस बारे में बता दिया। वो मुस्कुराई और उसने मुझसे कहा कि रचना बड़ी अच्छी है, और उसको पसंद है! और यह भी कि वो मेरे लिए बहुत खुश है कि मेरे जीवन में फिर से ‘प्यार’ आ रहा है!
काजल यह सब कह तो रही थी, लेकिन किसी कारणवश वो आश्वस्त नहीं लग रही थी। एक हिचक सी थी उसकी बातों में! फिर भी, मैंने इसके बारे में ज्यादा नहीं सोचा, क्योंकि मैं सेक्स के बारे में सोच रहा था!
जब रचना की कॉल खत्म हुई, तो उसने मेरी तरफ देखा और बड़े सेक्सीपन से मुस्कुराते हुए बोली, “नाऊ... अ मैजिकल नाईट एट द एण्ड ऑफ़ अ लवली इवनिंग!”
“तुम तो खुद ही पूरी की पूरी मैजिकल हो रचना!”
वो मुस्कुराई और धीरे-धीरे चाल से चलती हुई मेरे पास आने लगी, और तब तक चलती रही जब तक हम दोनों एक दूसरे से स्पर्श नहीं करने लगे। मैंने न तो कुछ बोला और न ही वहाँ से हिला।
सम्भोग प्रलोभन का उसका अंदाज़ बड़ा रोचक था। एक लम्बा अर्सा हो गया था मुझे सम्भोग किए, और उससे भी लम्बा अर्सा हो गया था जब मेरी पार्टनर ने सेक्स की पहल करी हो मुझसे। इसलिए, सच में, मैंने इस अनुभव का भरपूर आनंद लिया। उसने मेरी आँखों में देखा, और अपने हाथों में मेरे हाथ पकड़ लिए!
‘क्या होने वाला है?’
उसने अपनी आँखें मेरी आँखों से मिलाए हुए ही मेरे हाथों को उठाया, और अपने पर रख दिया, और फिर मेरे हाथों के ऊपर अपने हाथों से दबाया!
मेरे हाथ स्वतः ही उसके स्तनों का मर्दन करने लगे। कोमलता से! यह नारी ऐसी है कि थोड़ी भी असावधानी हुई, तो टूट जाएगी!
नर्म, गुदाज़, पयोधर! ओह!
दिल में कुछ था जो पिघल गया और मेरे घुटनों में मुझे कमजोरी सी महसूस होने लगी! उफ़्फ़!
रचना बहुत सेक्सी थी। अगर अपनी पर उतर आए तो घातक भी! उसको इस बात की समझ थी कि अपने रूप का, अपने काम कौशल का इस्तेमाल किस तरह करना नहीं। मेरी सबसे पहली सहेली थी वो... कहने को हमने अपना अपना कौमार्य एक दूसरे के साथ खोया था, लेकिन मुझे इस बात में कोई संदेह नहीं है कि काम कौशल में वो मुझसे मीलों आगे थी। और अब इतने सालों बाद हम फिर से साथ में थे। वो दोपहर की यादें दिमाग में ताज़ा हो गईं!
मैंने उसके कोमल गोलार्द्धों को निचोड़ा, और उसको एक गहरा निःश्वास लेते हुए सुना। उसको और प्रोत्साहन देने की आवश्यकता नहीं थी - जो कमी पिछली बार रह गई थी, वो सब इस बार पूरी हो गईं। अच्छी तरह नाप तौल लेने के बाद, मैंने जब उसके स्तनों के चूचकों को छेड़ा, तो मस्ती में रचना की आँखें किसी शराबी की मानिंद पीछे लुढ़क गईं। उसका सर पीछे ढलक गया, और वो मस्ती में ही आँहें भरने लगी। अपनी उँगलियों में उसके चूचकों को पकड़ कर जब मैंने अपनी ओर खींचा तो जैसे उसके अंदर कुछ प्रज्ज्वलित हो गया। उसकी आँखें अभी तक बंद थीं! मेरी इस हरकत पर उसने अचानक ही आँखें खोलीं, और मेरी आँखों में झांकती हुई वो मुझसे बोली,
“डू यू वांट मी?”
अब इससे बड़ा, और खुला निमंत्रण और कहाँ मिलेगा? एक आदिम सी गुर्राहट मेरे सीने में उत्पन्न हुई। मैं जो कर रहा था, रचना उससे आनंदित तो हो रही थी। इस एक वाक्य से उसने बता दिया कि वो मुझको सर्वस्व अर्पण करना चाहती थी।
“मोर दैन आई कैन स्टैंड!” मैं बोला। बड़ी मुश्किल से!
मेरी बात पर उसकी दबी हुई सी हंसी निकल गई। उसका फेंका हर दाँव सही पड़ रहा था। अगर हम दोनों के बीच यह कोई महायुद्ध था, तो हमारी हर लड़ाई में वो विजयी हो रही थी।
उसी ने पहल करी। उसने मेरा चेहरा अपनी हथेलियों में दबा कर मुझे होंठों पर चूमा। जोशीला चुम्बन! एक तरोताज़ा महक से मेरी साँसें भी तरोताज़ा हो गईं। आनंद आ गया। कुछ देर तक चुम्बन करने के बाद हम अलग हो गए।
“मम्म्म...” जैसे वो उस चुंबन का आनंद लेते हुए कह रही हो, “आखिरी बार हमने ऐसा तब किया था जब तुम एक लड़के थे! और अब... अब तुम एक हैंडसम से मर्द बन गए हो! अ टाल, एंड स्ट्रांग मैन!”
“देखोगी नहीं कि अब तक क्या-क्या बदल गया है?”
“बड़ी ख़ुशी से!” उसने अधीरता से कहा, “लेकिन पहले कमरे में चलें?”
तो हम तेजी से अपने कमरे में भागे, और लगभग चीरते हुए एक दूसरे के कपड़े उतारने लगे। किशोरवय अधीरता! लेकिन क्या मस्ती! वैसे भी, जब रचना खुद भी सम्भोग के लिए प्रेरित थी, तो फिर उसको इंतज़ार क्यों कराया जाए? जब हम दोनों नग्न हुए तो मैंने रचना के शरीर को मन भर कर देखा! उसने भी कोई संकोच नहीं किया - एक निराली अदा से अपने अंग प्रत्यंग का प्रदर्शन करते हुए वो मेरे सामने खड़ी हो गई।
जैसा मैंने पहले भी लिखा है, रचना अब एक गुदाज़ शरीर की मालकिन थी। लेकिन मोटापा नहीं था उसमें बिलकुल भी! जो स्थूलता थी, वो उसको और भी सुन्दर बना रही थी। आरामदायक, विलासमय जीवन जीने वाली महिला ऐसी ही लगती होगी! वो पूरे शरीर में समान रूप से गोरी थी! योनि पर ब्राज़ीलियन वैक्सिंग की गई थी, लिहाज़ा, बस हल्की सी ही गहरे रंग की थी! योनि का रंग भी समझिए उसके चूचकों के रंग का था। अद्भुत, अलौकित सौंदर्य की मल्लिका!
मैं कुछ देर उसके हुस्न में मदहोश हो गया, और उसको अपलक निहारने लगा!
“लाइक व्हाट यू सी?” उसने मुस्कुराते हुए पूछा।
वो जानती थी वो क्या थी, उसका हुस्न क्या था! और उसको इस बात का गर्व भी था!
“ओह, यू वोन्ट नो हाऊ मच आई लव्ड...”
मैंने कहा और अपने शरीर पर पड़े बचे खुचे कपड़े उतारने लगा।
‘माना हो तुम बेहद हँसी... ऐसे बुरे हम भी नहीं’ इस गाने की पंक्तियाँ याद आ गईं!
रचना सुन्दर है, लेकिन मैं कोई चूतिया थोड़े ही हूँ! मैंने भी तो अपने शरीर को साँचे में ढाला हुआ है न! जब मैं अपने कपड़े उतार रहा था, तब रचना चलती हुई आई, और मेरे बिल्कुल करीब खड़ी हो गई! जब मेरा कच्छा उतरा, तो मेरा लिंग पूरी तरह से उत्तेजना में खड़ा हुआ था।
उसने कहा, “ओह अमर… तुम कितने सुंदर हो गए हो!” उसकी आवाज़ में प्रशंसा के भाव साफ़ सुनाई दे रहे थे, “यू हैव ग्रोन टू बिकम अ बिग एंड स्ट्रांग मैन… एंड आई कैन सी दैट योर पीनस हैस आल्सो बिकम बिग एंड स्ट्रांग… आई ऍम अ लकी वुमन!”
वो लगभग हैरत से मेरे लिंग को देख रही थी।
‘समझ में आया मैडम,’ मैंने मन में सोचा, ‘मैंने कई लेडीज़ को तृप्त किया है… अब तुम्हारी बारी है!’
“अमर, तुम मुझे चाहते हो ना?” उसने पूछा… जैसे कि वो हमारे रिश्ते की पुष्टि करना चाहती हो।
“ह हाँ… कोई शक नहीं!”
“देन टेक मी…”
बस इतना ही कहना था उसको। मैंने उसको अपनी बाहों में उठा लिया, और धीरे से उसे अपने बिस्तर पर गिरा दिया। उसके ऊपर छाते हुए मैंने उसके पूरे शरीर ऊपर चुम्बनों की बौछार कर दी। ऐसी सेक्सी लड़की ही बिस्तर में आनंद देती है! सच में - वो मेरे साथ काम क्रीड़ा कर रही थी - सही मायने में! और इस क्रीड़ा में मुझे बड़ा आनंद भी आ रहा था! उधर रचना भी मेरे चुम्बनों का समुचित उत्तर दे रही थी, और मेरे लिंग के साथ खेल रही थी - वो कभी उसको चूमती, तो तभी चाटने लगती, या कभी सहलाने लगती!
बीच बीच में वो बुदबुदा रही थी, “सो स्ट्रांग… सो बिग…”
उसके स्पर्श को पा कर मेरा लिंग आकार में थोड़ा और बढ़ गया। मैं पूरी तरह से तैयार था।
सम्भोग शुरू होने के पहले मैंने उसकी आँखों में देखा, और बोला, “शुड आई यूज़ प्रोटेक्शन?”
“व्हाट फॉर?”
“यू माइट गेट प्रेग्नेंट!”
“शादी के बाद तो प्रेग्नेंट होना ही है… तो इसके बारे में चिंता क्यों कर रहे हो? कम… एंड मेक लव टू मी…”
‘आएँ! ये तो सोचने भी लगी है कि हमारी शादी तय है!’
मैंने सोचा - एक खटका सा हुआ मन में! मैं उसे बताना चाहता था कि मैं उससे शादी करने का सोच तो रहा था, लेकिन यह पूरी तरह से निश्चित नहीं था! लेकिन ऐसा कहने से अच्छा खासा बना बनाया मूड का सत्यानाश हो जाता! जब दस्तरख्वान सजा हुआ हो, तो छोड़ कर भागना नहीं चाहिए!
इसलिए, मैंने कुछ नहीं कहा और मेरे सामने जो सुन्दर और स्वादिष्ट सा व्यंजन था, मैंने उसी पर अपना ध्यान केंद्रित किया।
मैंने उसकी कमर को पकड़ लिया, और उसके होठों पर एक एक लंबा सा दिया। उधर मैंने उसकी योनि से खेलना शुरू कर दिया। हमारे होंठ आपस में खेल रहे थे, और मेरी इस हरकत से रचना तड़प गई।
“स्टॉप टीसिंग मी… एंड प्लीज मेक लव टू मी…” वो जैसे तैसे बुदबुदाई।
हाँ - मुझे भी इस समय ‘सच्चा सम्भोग’ करने का मन था। मैं थोड़ा उठा, और उसके पैरों को अपनी बाहों में लेकर मैंने उसकी जाँघों को थोड़ा फैलाया। उसकी योनि के होंठ उजागर हो गए। दोनों होंठ सम्भोग की प्रत्याशा में फूले हुए थे।
“रेडी?” मैंने पूछा।
रचना ने आतुरता से ‘हाँ’ में सर हिलाया।
मैंने अपने लिंग के सर को उसकी योनि के होठों के मध्य समायोजित किया, और फिर उसकी टांगों को पकडे हुए ही मैंने एक आस भरा धक्का लगाया। रचना कराह उठी। कराही तो, लेकिन लिंग थोड़ा आसानी से अंदर चला गया - काम रस का स्राव और शायद उसके खुद के अनुभव से!
बहरहाल, मैंने उन सभी विचारों को त्याग दिया और आगे वही आदिकालीन प्रक्रिया को करना शुरू कर दिया। रचना के चेहरे और शरीर पर उत्पन्न होने वाली प्रतिक्रिया से साफ़ था, कि वो हमारे सम्भोग का आनंद ले रही थी। उसकी आँखें बंद थीं, चेहरा खिल कर चमक रहा था, और उसके होंठों पर कभी स्निग्ध मुस्कान आ जाती तो कभी पीड़ा वाली कराह! लेकिन कुल-मिला कर वो बेहद खुश नजर आ रही थी। मेरा लिंग अब काफी आसानी से उसके अंदर और बाहर फिसल रहा था।
मैंने काफी देर तक उससे सम्भोग किया। एक तो मुझे सम्भोग करने में आसानी हो रही थी, और रचना को देख कर ऐसा लग रहा था कि उसको देर तक भोगूं! तो, हमारा पहला संभोग काफी देर तक चला! लेकिन रचना को देख कर ऐसा नहीं लगा कि उसको ओर्गास्म हुआ है। मैं अब बहुत नहीं रुक सकता था। अंततः मेरा स्खलन आया - और तीन चार बलशाली धक्के लगा कर मैंने उसके गर्भ की गहराई में स्खलन छोड़ दिया।
थोड़ी निराशा हुई - न जाने मुझे क्यों लगा कि रचना अतृप्त रह गई!
मैंने रचना की तरफ देखा। उसका मुँह आनंद से खुला हुआ था, और उसकी आँखें बंद थीं। उसकी साँसें फूल रही थीं, और उसका शरीर काँप रहा था। मैं कुछ देर चुप रहा, और उसे बस चूमता रहा! और कोई पाँच मिनट बाद वो थोड़ी शांत हुई। अब तक मेरा लिंग भी नरम हो कर उसके अंदर से बाहर आ गया था।
रचना बिस्तर पर पीठ के बल लेटी थी, उसकी जाँघें खुली हुई थीं, उसकी योनि खुली हुई थी। और मैं उसमें से अपना वीर्य रिसते हुए देख सकता था। रचना ने आख़िरकार अपनी आँखें खोलीं।
“डिड यू कम?” मैंने पूछ ही लिया।
उसने ‘हाँ’ में सर हिलाया! मुस्कुराते हुए।
“जो मुझे इतनी देर हो रहा था...” उसने जैसे मुझे कोई राज़ बताते हुए कहा, “... वो वही है! ... मेरा ओर्गास्म...”
“लवली...”
हम दोनों कुछ देर चुप रहे, फिर जब मैंने उसके होंठों पर मुस्कराहट देखी, तो मैंने पूछा, “व्हाट? व्हाट आर यू थिंकिंग अबाउट?”
“आवर फर्स्ट टाइम!”
उसने पहली बार शर्म से कुछ कहा!
**
Aap try to kijiye
बहुत ही अस्वीकार्य से दृश्य दिखाई दे रहे हैं इस अपडेट में, सुनील पापा बन गया अमर का। काजल की शादी वो भी अमर के अलावा किसी अन्य से, बडी नांइसाफी कर दी बडे भाई।
अच्छे दिन आने वाले हैं।
थैंक्स भ्राता।
आ ही गए अच्छे दिन।
इंतजार रहेगा आपके नए शब्दजाल कापता नहीं भ्राता श्री! ऐसे ही समय का अभाव रहता है!
कहानी पर काम करने के लिए कम समय मिलता है, ऐसे में किसी अन्य स्थान पर बिना किसी पारितोषिक के लिखना - यह कोई बढ़िया सौदा नहीं लग रहा है।
हाँ - मुश्किल दृश्य तो हैं, लेकिन असंभव नहीं! काजल ने यह निर्णय ले कर न केवल स्वयं अपने जीवन में आगे बढ़ने की पहल करी, बल्कि अमर के लिए भी राह आसान कर दी।
अमर स्वयं से ऐसे कठिन निर्णय लेने में सक्षम नहीं। वैसे भी सुनील-सुमन के ब्याह के बाद काजल-अमर का मेल कठिन हो जाता है।
आ ही गए अच्छे दिन! अमर की किस्मत बढ़िया है - एक राह बंद होती है, तो अगली खुल जाती है।
हाँ, उसके कारण जो कष्ट उनको होते हैं, उनको शब्दों में बयान करना कठिन है।
कौन चाहेगा कि उसके स्नेही स्वजन यूँ ही स्वर्ग सिधार जाएँ! खैर, आगे बढ़ेंगे जल्दी ही अमर के साथ - उनके मोहब्बत के सफर पर!
साथ बने रहें!!
पर असली परीक्षा तो मां और सुनील के के बारे में जान कर पता चलेगीअंतराल - समृद्धि - Update #12
“आवर फर्स्ट टाइम?” मैंने कहा!
“हम्म म्मम...”
“हा हा... अरे! उस बारे में क्या सोच रही हो?” मैंने कहा, और फिर से रचना के एक चूचक को चूमने दुलारने लगा।
“यू नो… जब... हमने... पहली बार... पहली बार किया था न… तब... मैंने माँ से सब कुछ कह दिया था...” वो हिचकते हुए बोली, जैसे कि उसको डर हो कि मैं क्या कहूँगा।
मैं मुस्कुराया, और रचना को छेड़ते हुए बोला, “माँ का नंबर दूँ? बात करोगी?”
“इस टाइम?”
“हाँ! क्या प्रॉब्लम है?”
“और इस टाइम बात क्या करूँ उनसे?”
“यही,” मैंने तपाक से कहा, “कि मैंने आपके बेटे के साथ फिर से...” मैंने वाक्य पूरा नहीं किया।
“धत्त...”
“अरे माँ से शरमाओगी अभी भी...?”
उसने ‘न’ में सर हिलाया और बोली, “माँ तो इतनी प्यारी हैं कि उनसे क्या शर्म, और क्या छुपाना? ... पता है? जब मैंने उनको सब बात बताई थी, तो उन्होंने मुझे ब्लेस किया... और... मुझसे कहा कि अगर मैं कभी तुमसे शादी करना चाहूँ, तो वो मुझे अपनी बहू के रूप में पाकर बहुत खुश होंगी और मुझे बहुत प्यार करेंगी!”
‘माँ तो किसी को भी अपनी बेटी बना कर प्यार लुटाना शुरू कर देती हैं,’ मैंने मन ही मन सोचा, ‘वो तो उनकी बहुत पुरानी आदत है!’
प्रत्यक्षतः मैंने कहा, “हाँ, वो तुम्हें... सच में अपनी बेटी की ही तरह प्यार करती थीं!”
“हाँ न? हमेशा करती थीं...” रचना पुरानी बातें याद करती हुई बोली, “माँ ने मेरे लिए वो सब किया, जो मेरी खुद की माँ ने नहीं किया... सच में... मेरे कारण बहुत दुःख मिला न उनको?”
“नहीं ऐसा नहीं है!” ऐसा था तो सही, लेकिन रचना को वो सब कहा तो नहीं जा सकता न, “माँ तो सब भूल जाती हैं... सबको माफ़ कर देती हैं!” ये भी सच है!
“मैं उनसे माफ़ी मांग लूँगी जब उनसे मिलूँगी!” रचना ने बहुत संजीदगी से कहा - उसकी आवाज़ में सच्चाई, दुःख सब सुनाई दे रहा था, “पाँव पकड़ लूँगी उनके... सच कहूँ अमर? उस बात से मेरी अपनी ही माँ से बात चीत बहुत कम हो गई! अपने परिवार से तो अलग नहीं हुआ जा सकता न... इसलिए क्या करती?”
“वो सब मत सोचो रचना,” मैंने रचना की बातों में गंभीरता, प्रायश्चित और ईमानदारी जैसे भाव साफ़ सुने, “पुरानी बातें हैं सब!”
कुछ पल हम दोनों चुप रहे - मैं फिर से उसके चूचक पीने लगा।
फिर रचना मुस्कुराते हुए बोली, “याद है, माँ मुझे अपने सीने से लगा लेती थीं!”
“सीने से नहीं, वो तुमको ब्रेस्टफीड कराती थीं!” मैंने रचना की बात का सही सही आँकलन कर के उसके सामने रख दिया, “उनको दूध आता होता न, तो तुमको दूध पिलाने से वो न हिचकिचातीं...” मैंने उसकी बात का अनुमोदन किया।
रचना मुस्कुराई, “आई नो... मुझे तो आज भी हैरानी होती है कि मैं माँ के सामने न्यूड होने में कभी हेसिटेट नहीं करी... लेकिन अपनी खुद की माँ के सामने मेरी आज तक हिम्मत भी नहीं हुई वैसा कुछ करने की...”
“हम्म…” अब इस बारे में मैं क्या कहूँ?
फिर कुछ देर ख़ामोशी।
“अमर... मुझे तुमसे ही शादी करनी चाहिए थी!” रचना बोली, “मुझे... मुझे... फाइट करना चाहिए था...”
यह बड़ी ही बोल्ड बात कह दी रचना ने! जिस बैकग्राउंड से आई थी वो, यह बात कहना उसके लिए बहुत बड़ी बात थी! उसके दिल में कई गुबार थे, निकल जाने चाहिए थे। इसलिए मैंने उसको कुछ कहा नहीं, बस एक अच्छे दोस्त की तरह उसको प्यार से थामे उसकी बातें सुनता रहा।
“मम्मी पापा की हर बात आँख मूँद कर मान ली! क्या मिला? ... उस शादी ने मुझे बिगाड़ दिया यार...” वो बड़ी निराशा से बोली, “पूरी तरह से... मेरी इनोसेंस... मेरे अंदर की मिठास... सब चली गई!”
बोलते बोलते उसकी आँखों से आँसू आ गए। रचना को यूँ दुःखी होता देख बड़ा खराब लगा, लेकिन क्या करता? मैं उसको थामे, स्वन्त्वना देता रहा। रोमांटिक मूड का कबाड़ा हो गया पूरा!
“क्या थी मैं और क्या बन गई! इतनी बिटर हो गई हूँ अब...” वो अन्यमनस्क सी हो कर बोल रही थी, “फ़क दिस कास्ट स्टफ...” उसने बड़े फ़्रस्ट्रेट हो कर कहा, “उसके चलते कितनी ज़िन्दगियों का सत्यानाश हो जाता है!”
मैंने उसको गले से लगा कर कहा, “रचना... हे... पुरानी बातें भूल जाओ! बीत गईं! मत याद करो उन्हें... क्या मिलेगा उससे? प्रेजेंट में जियो न... उसका मज़ा लो!”
मैंने अभी तक उससे उसकी पहली शादी के बारे में कुछ नहीं पूछा था। आवश्यकता नहीं थी - जो उसके जीवन का हिस्सा नहीं, उसके बारे में पूछ कर क्या हासिल? अगर हमको साथ में आगे बढ़ना था, तो हमारे वर्तमान के साथ बढ़ना था।
“मैं हूँ न तुम्हारे साथ,” मैंने कहा और मैंने फिर से उसके चूचकों को चूसना और उन पर गुदगुदी करना शुरू कर दिया, जिससे रचना को खराब न लगे।
वो जबरदस्ती मुस्कुराई, लेकिन उसकी आँखों में आँसू भर गए थे। वो किसी तरह से अपनी पुरानी बातें भुला देना चाहती थी।
रचना कुछ देर चुप रही, और फिर कुछ सोच कर बोली, “अमर... तुमको बुरा तो नहीं लगेगा कि मेरी शादी किसी और से हुई थी, और मेरी उससे एक बेटी भी है?”
अब ये क्या बात हुई?
“मुझे बुरा क्यों लगेगा?” मैंने सच्चाई से कहा, “मेरी भी तो शादियाँ हुई हैं - दो दो! मेरी भी तो बेटी है एक!”
“वो ठीक है... लेकिन मर्दों को कुंवारी लड़कियाँ पसंद आती हैं!”
“तुम भी तो मुझे तब पसंद आई थी, जब तुम कुंवारी थी! है न? नादानी के खेल भी तो हमने तभी खेले थे!”
“हाँ! ... नादानी के खेल! हा हा!” तभी उसे अचानक कुछ याद आया, “... सच में यार! नादान ही रहते हम... क्यों बड़े होने लग गए?”
“छोड़ न यार रचना!”
वो मुस्कुराई, फिर कुछ सोच कर बोली, “तुम्हें याद है अमर... माँ ने कहा था कि मुझे बहुत दूध आएगा!”
मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“वैसा ही हुआ! मैंने अपनी बेटी को तीन साल तक दूध पिलाया!”
“दैट्स गुड रचना! आई ऍम प्राउड ऑफ़ यू!”
यह सच बात थी! मुझे हर उस स्त्री पर गर्व है, जो अपने बच्चों को एक लंबे समय तक स्तनपान कराती है।
“लेकिन केवल तीन साल ही क्यों? और पिलाती?”
“अरे मेरी सास उसको भी कण्ट्रोल करना चाहती थी... साल डेढ़ साल में ही उसको दूध पिलाने को ले कर चीं चुपड़ करने लगी... लेकिन मैंने भी सोच लिया कि अपनी बेटी को डेप्राइव कर के नहीं रखूँगी... एक तरह से हम दोनों एक दूसरे का सहारा थीं!”
“रचना... बुरी बातों को भूल जाना चाहिए!” मैंने उसको समझाया, “तुम यहाँ हो... तो प्रेजेंट में जियो न!”
“हम्म!” उसने सर हिलाया, “तुम सही कहते हो!” फिर तो शर्माती हुई बोली, “तुम्हारे साथ रहते रहते सब ठीक हो जायेगा! तुम बहुत अच्छे हो! अच्छे लोग अच्छे लोगों को या तो अट्रैक्ट करते हैं, या उनकी अच्छाईयाँ बाहर उकेर देते हैं!”
“आई ऍम श्योर!” मैं भी मुस्कराया।
अपनी तारीफ़ में खुद ही क्या कहूँ?
‘ओह गॉड! रचना तो मान कर चल रही है कि हमारी शादी हो ही जाएगी!’ लेकिन मेरे मन में विचार आया।
क्या यह बहुत जल्दी नहीं हो रहा है? क्या मुझे उसको चेताना चाहिए कि पहले हम एक दूसरे को जान लें, फिर शादी ब्याह की बातें करें?
मैं नहीं जानता। लेकिन मन में थोड़ा खटका सा लगा। हर बार, शादी से पहले मुझे मेरी प्रेमिकाओं के बारे में लगभग सब कुछ पता था, और उनको मेरे बारे में! मैं इस नई रचना के बारे में कुछ नहीं जानता था! बस दूसरी ही मुलाकात थी ये हमारी! लेकिन वो ऐसा व्यवहार कर रही थी कि जैसे वो मेरी पत्नी हो! या फिर, जैसे हमारी शादी होना कोई गारंटी है!
और मुझे यकीन है कि वो भी मेरे बारे में कुछ नहीं जानती थी। बचपन में हम जो जानते थे, उसके बूते पर आगे थोड़े ही बढ़ा जा सकता है! वो ज्ञान अब लागू नहीं होता। हम दोनों ही बदल गए थे, और इसलिए हम जिस रफ़्तार से आगे बढ़ रहे थे, वो थोड़ा खतरनाक था। मेरा मतलब है, मैं उससे इतने सालों बाद मिला था, और हमारी दूसरी ही मुलाकात में हमने सेक्स कर लिया था। क्या ये मेरी ही सेक्सुअल फ़्रस्ट्रेशन का संकेत नहीं था? मैं निश्चित नहीं था। बहुत संभव है कि वैसा ही हो!
मैं आंतरिक रूप से थोड़ा चिंतित हो गया, लेकिन यह सब रचना से कहने के लिए मेरी हिम्मत नहीं हुई। हो सकता है... मेरे मन में यह विचार आया, कि जैसे जैसे हमारी मुलाकातें बढ़ेंगी, हम एक-दूसरे के बारे में अधिक जान पाएंगे। तब तो ठीक रहेगा न?
‘हाँ, यह ठीक रहेगा!’
यह विचार आया, तो मन हल्का हो गया। मैं बिस्तर से उठा।
“कहाँ जा रहे हो?” उसने लगभग कूजते हुए पूछा।
“पानी पीने...”
“इस हालत में?” रचना ने मेरी नग्नता की ओर इशारा किया।
“हाँ। क्यों?”
“कोई देख ले तो?”
“देखा है... सभी ने!”
“ओह... तो किसी को अभी भी नंगू पंगू रहना पसंद है?”
मैं मुस्कराया।
हाँ, कम से कम घर में तो मुझे नग्न हो कर विचरण करना बहुत पसंद है! हमेशा से ही!
“आते समय मेरे लिए भी एक गिलास पानी लेते आना?” रचना ने कहा।
“नो! आओ और खुद पियो!” मैंने कहा और आगे जोड़ा, “एंड नो! ... नो क्लोद्स ऑन यू एस वेल!”
“अच्छा जी?”
मैं मुस्कराया, “हाँ जी!”
“मेरी न्यूड परेड लगने वाली है घर में?”
मैंने कुछ कहा नहीं, बस उसके बिस्तर से उठने का इंतजार करने लगा।
रचना कुछ पलों के लिए झिझकी, और फिर शायद मेरी खुशी के लिए, बिस्तर से उठकर मेरे पास आई।
नंगी!
“चलो!” वो बोली।
हिम्मत कर के रचना उठ तो गई, लेकिन पूरा काम करने का साहस नहीं था उसमें! कम से कम मैंने तो यही सोचा।
हम अपने कमरे से किचन को चल दिए। मेरा कमरा, और अन्य कमरे पहली मंजिल पर थे... गेस्ट हॉल, रिसेप्शन, डाइनिंग एरिया, किचन, स्टडी इत्यादि ग्राउंड फ्लोर पर थे। कमरे से निकल कर रसोई तक जाने के लिए हमें लगभग सभी कमरों के सामने, गैलरी में से हो कर जाना होता, और फिर सीढ़ियाँ उतरते हुए किचन में! लतिका और आभा, अपने-अपने कमरे होने के बावजूद साथ में ही सोती थीं, या फिर मेरे साथ में! मैंने देखा कि उनके कमरे में नाइट लैंप जल रहा था। सो ही रही हैं दोनों, यह तय था। आगे काजल के कमरे की बत्तियाँ अभी भी जल रही थीं - मतलब वो अभी भी जाग रही थी!
रचना ने उस कमरे से रौशनी छन कर आते देखी, तो अपने पंजों के बल, बिना कोई आहट किए चलने लगी। उसको ऐसे करते देखना बड़ा हास्यास्पद था! हम दो, वयस्क, बिलकुल बच्चों के जैसे व्यवहार कर रहे थे!
खैर, कोई भी बाहर नहीं आया।
जब हम किचन में पहुंचे तो मैंने उससे पूछा, “एनीथिंग आफ्टर वाटर? एनी ड्रिंक्स और समथिंग एल्स?”
“आइसक्रीम?” रचना चहकती हुई बोली।
उसने ऐसे अंदाज़ में कहा कि मुझे वो पुरानी वाली, नन्ही (?) सी रचना की याद आ गई!
‘रचना के साथ शायद उतना भी बुरा नहीं रहेगा!’ मैंने सोचा।
मैंने फ्रिज में देखा। जिस घर में दो दो लड़कियां हों, उस घर में आइसक्रीम तो मिल ही जाएगी!
मैंने रचना को आइसक्रीम की एक बाल्टी - जिसमें करीब एक चौथाई आइसक्रीम बची हुई थी, और एक चम्मच थमाया। रचना यह देखकर बहुत प्रसन्न हुई कि मैं उसे सीधे बाल्टी से ही खाने के लिए कह रहा था... मतलब मैं उसको एक तरह से अपने परिवार की ही तरह ट्रीट कर रहा था... ! मेरा मतलब है कि अगर मैं उसका जूठा खाना फ्रिज में रख सकता हूँ, तो उसका मतलब है कि मैं उसको इस परिवार का हिस्सा ही मान रहा था! मैंने पानी के दो गिलास उठाए और अपने लिए एक लार्ज स्कॉच बनाया।
“ये कब शुरू किया?”
“कुछ साल हो गए!” मैंने रुक कर कहा, “तुमको कोई प्रॉब्लम है?”
“नहीं,” वो मुस्कुराई, “आई आल्सो समटाइम्स ड्रिंक! बट नॉट टू मच! ... तुम भी कम ही पिया करो न! वन ऑर टू ड्रिंक्स पर वीक?”
“हम्म्म श्योर!”
मुझे रचना की बात का बुरा नहीं लगा - वो मेरी फ़िक्रमंद थी और मेरी भलाई के लिए ही कह रही थी। कोई भी शुभचिंतक हो, तो उसकी बात का बुरा नहीं मानना चाहिए!
हम दोनों बड़ी बेफ़िक्री से, किचन काउंटर पर लगी ऊँची कुर्सियों पर बैठ कर, किसी विवाहित जोड़े की भाँति ही बातें करने लगे। रचना के साथ सच में बहुत सुकून की अनुभूति हुई - पुरानी बातें साथ में याद करना, छोटी छोटी बातों पर खुल कर हँसना, भविष्य के लिए योजनाएँ करना! यह सब बहुत ही हसीन था! सुकून भी हुआ, और आनंद भी आया।
सोचता हूँ, तो लगता है कि एक तरह से बहुत अच्छा हुआ कि हम दोनों ने दोबारा मिलने के लगभग तुरंत ही सेक्स कर लिया! सेक्स को ले कर हम दोनों के बीच में कोई तनाव ही नहीं रह गया। इस समय हम दोनों, पुराने दोस्तों के मानिंद बातचीत कर रहे थे - यह संभव न होता अगर हम दोनों के बीच सेक्स का तनाव रहता।
कुछ देर की बातों के बाद मैंने उससे नीलिमा के बारे में पूछा। अगर मैं उसका भावी ‘पिता’ बनने वाला हूँ, तो मुझे उसके बारे में कुछ तो पता होना चाहिए न! तो रचना ने मुझे नीलिमा के बारे में बताया, और मुझ से लतिका और आभा दोनों के बारे में पूछा। फिर उसने मुझे अपनी पसंद, नापसंद, शौक, पसंदीदा चीजें आदि के बारे में बताया, और मुझसे मेरी पसंद नापसंद के बारे में में पूछा।
लग रहा था कि आज हमारी बातें रुकने वाली नहीं थीं! मुझे भी लग रहा था कि आज की रात लम्बी खिंच जाए! उसने मुझसे देवयानी के बारे में पूछा और उसके साथ मेरे रिश्ते की अंतरंगता के बारे में जानकर बहुत खुश हुई! डेवी, मैंने, और हमारी नन्ही सी आभा ने उसके देहावसान के बाद जो कुछ सहा होगा, उसके बारे में सोचकर वो बहुत दुःखी हुई। उसकी बातों की ईमानदारी सुन कर मैं बहुत खुश था। रचना के बारे में मुझे जो थोड़े बहुत संदेह थे, वो जाते रहे। वो एक बढ़िया जीवनसाथी बन सकती थी। उसके अंदर एक बढ़िया जीवनसाथी वाल वो सारी खूबियाँ थीं! उसने फिर मुझसे गैबी और उसके साथ मेरे अनुभवों के बारे में पूछा। पूरी बातें सुन कर, अंत में, उसने मुझसे कहा कि वो यह जानकर बहुत खुश हुई कि मुझे जीवन में दो बार प्यार मिला!
यह बहुत बड़ी बात थी, क्योंकि उसे एक बार भी प्यार नहीं मिला था। ग्रेजुएशन होते होते उसकी शादी हो गई थी, और कुछ ही समय में नीलू आ गई थी। रचना ने बताया कि उसका हस्बैंड उसे शारीरिक रूप से बहुत संतुष्ट कर देता था! वो मज़बूत जिस्म का मालिक था, और उसका लिंग भी उसके शरीर के हिसाब से ही था - संभवतः मुझसे बड़ा! वो रचना के साथ लंबे समय तक सेक्स करता था! लेकिन उन दोनों के बीच सम्बन्ध के नाम पर केवल सेक्स होता था! प्यार नहीं! वो एक व्यभिचारी व्यक्ति भी था। और उसके कई अन्य औरतों के साथ संबंध थे। जब रचना को इस बारे में पता चला, तो उसने सिर्फ एक बच्ची तक ही अपने को सीमित रखा, और उससे कोई और बच्चा पैदा न करने की कसम खाई! लेकिन समय जैसे जैसे आगे बढ़ा, उसकी और उसकी बच्ची की स्थिति खराब होती गई! कैसे, वो उसने नहीं बताया। अंततः, जब कोई रास्ता नहीं बचा, तब रचना ने उससे तलाक ले लिया। यह सब बताते हुए रचना के मुखड़े पर पीड़ा वाले भाव आ रहे थे, इसलिए मैंने बात को कुरेदा नहीं।
“तो तुमने दोबारा शादी करने का नहीं सोचा?” मैंने सब सुन कर रचना से पूछा।
“शुरू शुरू में नहीं, लेकिन पिछले एक साल से मैं दोबारा शादी करने के लिए ज़रूर सोच रही हूँ!” उसने खोए हुए अंदाज़ में कहा, “लेकिन मेरे सोचने से क्या होता है? पैंतीस की हूँ! मुझे नहीं लगता कि किसी मर्द को किसी ऐसी औरत में दिलचस्पी होगी जो इतनी बड़ी हो, और जिसकी अपनी एक बेटी भी हो!”
यह बात सही नहीं थी - मैं, पापा और सत्यजीत इस बात का उदाहरण थे! लेकिन फिलहाल मैंने कुछ कहा नहीं।
रचना बोल रही थी, “किसी और के बच्चे की जिम्मेदारी कोई नहीं लेता! है न?”
मैंने एक फ़ीकी मुस्कान दी - एक तरह से सहमति भी थी और असहमति भी!
“कम लोग लेते हैं! मानता हूँ!”
“तुम उनमें से नहीं हो! मानती हूँ!”
“ले आती उसको भी यहाँ?”
“आई नो! आभा और लतिका कितनी अच्छी लड़कियाँ हैं! नीलू को भी अच्छा लगता उनसे मिल कर!” रचना ने लगभग पछतावा करते हुए कहा, “लेकिन,” फिर उसने शैतानी का पुट डालते हुए कहा, “फिर हम ऐसे... यह सब कुछ कैसे करते?”
“हा हा...”
फिर रचना ने अपनी टीचिंग जॉब के बारे में बताया : दिल्ली के एक बड़े स्कूल में साइंस की टीचर थी वो। अच्छी सैलरी मिल रही थी। रह रही थी वो अपने मम्मी पापा के पास, इसलिए पैसे बच रहे थे... और वो खुद का और नीलिमा का अच्छे से भरण पोषण कर पा रही थी। अलीमनी कुछ मिली नहीं, लेकिन कम से कम उसके एक्स-हस्बैंड को नीलिमा पर कोई अधिकार भी नहीं मिला। इसलिए, अब कहीं जा कर रचना अपनी ज़िन्दगी में थोड़ा सा आनंद लेने लायक हुई। इसलिए जब उसके पिता जी ने उसको मेरे बारे में बताया, वो बेहिचक मुझसे मिलने को तैयार हो गई। शायद उसको यह भी लग रहा था (उसके पिता ने न जाने क्या कहा हो उसको) कि मेरी तरफ़ से उसके लिए प्रस्ताव आया है।
मैंने उसे अपने व्यवसाय के बारे में बताया। रचना को मालूम था कि मेरा बड़ा व्यवसाय है, और घर में सम्पन्नता है। मेरा घर देख कर कोई भी यह बात समझ सकता था। उसके पिता ने भी उसको मेरे बारे में (कम से कम, मेरी संपत्ति के बारे में) बहुत कुछ जानकारी दे दी होगी। उसके पिता की इनकम टैक्स विभाग में अच्छी जान पहचान थी, इसलिए कोई आश्चर्य नहीं, कि वो अब अपनी बेटी के लिए मुझमें दिलचस्पी ले रहे थे। जब किसी के पार दौलत आती है, तब उससे जुड़े हुए लोगों के मन में रहने वाले जाति, धर्म, और ऐसे अनेकों पाखंड और पूर्वाग्रह हवा में छू-मंतर हो जाते हैं। बस यही तमन्ना रहती है कि फलां की कृपादृष्टि उन पर पड़ जाए कैसे भी!
मन में फिर से कसैलापन आने लगा था, लेकिन मैंने उसको अपने दिमाग से बाहर झटक दिया।
फिर मुझे अचानक कुछ याद आया और मैं मुस्कराने लगा।
“क्या?” उसने पूछा।
“डिड यू... यू नो, अप्लाई हनी? ... ऑन योर निप्पल्स?”
“हनी? ओह… हा हा… नो! स्टुपिड यू... दैट इस नॉट हनी... दैट इस माय बॉडी लोशन! मेरा एक दोस्त है, वो हैंड मेड बॉडी लोशन बनाता है, जिसमें केवल नेचुरल इंग्रेडिएंट होते हैं। क्यों पूछा? मीठा लगा था क्या?”
“हाँ। इसीलिए तो मैंने पूछा।”
“हा हा! अमर! तुम एक बहुत शरारती लड़के हो!”
“हा हा!” मैं भी साथ में हँसने लगा।
“अच्छा रचना,” कुछ देर हँसने के बाद मैंने बात बदलने की गरज़ से कहा, “क्या तुमने सच में तीन साल तक नीलू को अपना दूध पिलाया था?”
“हाँ न! उस नरक में हम दोनों ही एक दूसरे का सहारा थे! देखो न - उसकी वजह से ही तो ये इतने बड़े बड़े हो गए!” उसने अपने एक स्तन को एक हाथ से उठाते हुए कहा, जबकि दूसरे हाथ से उसका आइसक्रीम खाना जारी रहा।
“डिड यू स्टॉप, ऑर शी?”
“दोनों ने ही! उसका इंटरेस्ट ख़तम होने लगा धीरे धीरे, और इनमें दूध बनना भी!” वो बोली, “सास तो पहले साल के बाद से ही कहती थी उसे ज्यादा ब्रेस्टफीड न कराऊँ! नहीं तो दोबारा प्रेग्नेंसी के चांस कम हो जाएंगे... जैसे मैं उस कमीने के और बच्चे करना चाहती थी। हुँह!” उसने कहा!
“मेरी आभा को दो ढाई साल ही पीने को मिला!” बात सही थी - आंशिक ही रूप में, लेकिन सही थी। अपनी माँ का दूध तो वो कम ही पी सकी।
“हम्म...” रचना ने स्वीकार किया। जब मैं बहुत देर तक कुछ नहीं बोली, तो उसने सोचा कि उसे कुछ और कहना चाहिए, “किसी भी बच्चे के लिए माँ के प्यार और देखभाल की बहुत ज़रुरत होती है। उसके बिना बच्चे के लिए बड़ा मुश्किल हो जाता है!”
काजल आभा का जिस तरह से ख़याल रखती आई थी, उससे आभा को शायद ही देवयानी की कमी महसूस होती हो! अब लतिका भी उसकी ऐसी देखभाल करती थी कि क्या कहें!
लेकिन बात वो नहीं थी। मैं रचना का टेस्ट लेना चाहता था।
“तुम उसको माँ का प्यार दोगी?”
“क्या?” रचना मेरी इस अचानक सी बात पर अचकचा गई, लेकिन उसने खुद को जल्दी ही सम्हाल लिया, “बेशक! अमर ये भी क्या बात हुई? बच्चों को बढ़ने में प्यार की बहुत जरूरत होती है। मैं आभा की देखभाल वैसे ही करूँगी जैसे मैं नीलू की करती आई हूँ!”
“सौतेली माँ बनना आसान नहीं है।”
“हाँ! आसान नहीं है।” उसने स्वीकार किया, “लेकिन मैं कोशिश ज़रूर कर सकती हूँ!”
“विल यू ब्रेस्टफीड हर?” मैंने एक अप्रत्याशित प्रहार किया।
मेरी बात पर रचना की आँखें फैल गईं। एक पल के लिए वह कुछ नहीं कह सकी।
फिर कुछ सम्हल कर, “आई मीन... आई कैन ट्राई... अगर तुम यही चाहते हो, तो! बट आई डोंट नो! न तो अब दूध आता है, और न ही मैं अब नीलू को पिलाती हूँ!”
“काजल तो पिलाती हैं!”
रचना कुछ नहीं बोली।
मैंने आगे जोड़ा, “आभा को भी और लतिका को भी!”
“व्हाट? लतिका को भी?”
“हाँ! है तो वो उनकी बेटी ही न?”
“हाँ! राइट!”
“इस घर में मम्मियाँ अपने बच्चों को दूध पीने से कभी नहीं रोकतीं!”
“इस इट? तो क्या... क्या... तुम अभी भी...?”
“हाँ,” मैंने ऐसी अंदाज़ में कहा कि यह भी कोई पूछने वाली बात है, “न तो माँ ने, और न ही पापा ने कभी रोका मुझे!”
यह बात तो सोलह आने सच थी।
“वाओ!”
“फ़ीड हर नाउ?”
“व्हाट! नो! आई ऍम नेकेड!”
“वेल, हाउ डस इट मैटर?” मैंने कहा, “याद है न? माँ ने तुमको पिलाया है... तुमने उनको भी नेकेड देखा है। अब अगर मेरी बेटी तुमको नेकेड देख ले, तो क्या हर्ज है?”
रचना ने कुछ देर सोचा। हाँ - यह उसका टेस्ट तो था - और वो यह बात अच्छी तरह समझ रही थी।
उसने कुछ देर सोचा और फिर बोली, “ठीक है...! आई विल फीड हर! ... नाउ।”
“कम,” मैंने कहा, और हम दोनों वापस ऊपर की तरफ़ चलने लगे और काजल के कमरे के सामने से होते हुए लतिका के कमरे में दाखिल हुए। मुझे मालूम था, कि आभा वहीं होगी। मैं और रचना खुद भी लगभग लतिका की ही उम्र के थे, जब हमने अपनी अपनी सेक्सुअलिटी की पहचान हो रही थी।
खैर, रचना को उम्मीद नहीं थी कि लतिका भी वहीं होगी। वो फिर से थोड़ा घबरा गई।
“अमर... लतिका भी है यहाँ!”
“तो क्या हो गया? वो भी तो बच्ची है। कम!” मैंने उसे इशारा कर के बच्चों के पास जाने को कहा।
रचना हिचकिचाई।
एक पल को लगा कि जैसे मैं उसका शोषण कर रहा हूँ। लेकिन मेरे लिए यह जानना बेहद ज़रूरी था कि आगे आ कर रचना मेरे बच्चों की देखभाल कर सकेगी; उनको माँ का प्यार दे सकेगी! रचना को कुछ भी करने के लिए मैं दबाव नहीं दे रहा था। बस देखना चाहता था कि क्या वो आवश्यकता आने पर अपने मानसिक अवरोधों को तोड़ कर मेरे बच्चों को प्यार दे पाएगी?
रचना आभा के पास जा कर लेटने लगी। आभा अपने बगल हलचल को महसूस कर के नींद से बाहर आने लगी।
“शह्ह्ह...” आभा के सीने पर हल्की सी थपकी देते हुए उसको शांत करने की कोशिश करी, और फिर बोली, “मम्मी का दूध पियोगी बच्चे?”
“मम्म?”
“मम्मी का दूध पियोगी?” रचना ने दोहराया।
“मम्मी का दूध?” आभा नींद में बड़बड़ाई।
“यस हनी! मीठा मीठा दुद्धू! आई प्रॉमिस!” रचना ने मेरी ओर देखते हुए शरारत से कहा।
मैं मुस्कुराया।
“हम्म।” आभा धीरे-धीरे जाग रही थी।
जब बच्चे होते हैं, तो नींद बड़ी गहरी आती है। लेकिन जैसे-जैसे आप बड़े होते जाते हैं, नींद उथली होती जाती है।
“हाँ बच्चे,” रचना ने दबी आवाज़ में कहा, जिससे लतिका न सुन ले।
“उम्म्म बोतल में?” आभा अभी भी नींद में ही थी।
“नहीं हनी… तुम्हारे जैसी प्यारी सी बच्ची को बोतल से नहीं, सीधा ब्रेस्ट्स से पिलाया जाना चाहिए!” रचना ने उसको दुलारते हुए कहा, “मेरे ब्रेस्ट्स से... तुम्हें बहुत अच्छा लगेगा… कम हनी… ओपन योर माउथ...” रचना ने आभा के कान में फुसफुसाते हुए कहा और उसके होंठों पर अपना स्तन छुवाया।
उनींदी अवस्था में आभा ने अपना मुँह खोला और रचना के उस चूचक को अपने मुँह ले लिया। इस काम की प्रत्याशा में रचना के चूचक पहले ही स्तंभित हो गए थे, इसलिए आभा को उसे पकड़ने में मुश्किल नहीं हुई।
“यस... सकल नाउ... यस... जस्ट लाइक दैट...”
आभा धीरे-धीरे जागते हुए स्तनपान कर रही थी, और दूसरी ओर लतिका भी अब जाग गई थी। उसने कौतूहलवश रचना द्वारा आभा को स्तनपान कराते देखा। उत्सुकता होनी लाज़मी थी! रचना भी समझ रही थी कि लतिका भी जाग गई थी। लेकिन फिर भी उसने निस्पृह सा भाव रखते हुए आभा को स्तनपान कराना जारी रखा।
“रचना,” लतिका कहने लगी, “आप आभा को दूधू पिला रही हैं?”
“हाँ लतिका! आपको भी पीना है क्या?”
लतिका ने आँखें मलते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“एंड व्हाई नॉट! कम हनी... टेक दी अदर वन...”
मेरे लिए यह एक खूबसूरत और अद्भुत दृश्य था! रचना हालाँकि शुरुवात में बहुत झिझक रही थी, लेकिन अब वो पूरी तरह से मातृत्व की मुद्रा में थी! वो कभी कभी आभा और लतिका को चूम लेती, तो कभी उनके गालों को सहलाती! और मैं तो जैसे वहाँ था ही नहीं। दोनों लड़कियाँ ‘दूध पीने’ में तल्लीन थीं। यह सिलसिला करीब पंद्रह मिनट तक चला। चूँकि दूध तो आ नहीं रहा था, इसलिए आभा बहुत जल्दी ही रुचि खो बैठी और वापस सो गई, लेकिन लतिका का काम जारी रहा!
अंत में, रचना को ही कहना पड़ा, “हनी, हो गया क्या? आर यू सैटिस्फाईड?”
“रचना, आपके ब्रेस्ट्स कितने सॉफ्ट हैं!” लतिका ने लगभग हैरानी से कहा, “और आपके निप्पल भी कितने कोमल हैं! मुँह में जैसे पिघल गए हों... बटर के जैसे! आई डोंट वांट टू स्टॉप!”
“ओह हनी! यू आर सो लवली टू से दीस लवली थिंग्स... बट आई नीड टू स्लीप ऐस वेल!”
“आप यहीं सो जाइए न?” लतिका ने रचना की कमर पर हाथ रख कर उससे अनुरोध किया।
रचना ने बेबसी से मेरी तरफ देखा।
“अमर अंकल भी यहाँ सो सकते हैं।" मेरे लिए जगह बनाते हुए और रचना से लगभग चिपकते हुए लतिका ने कहा।
“हा हा! नहीं बेटा! आप तीनों सो जाओ। आई विल सी यू आल इन मॉर्निंग!” मैंने प्रसन्नतापूर्वक कहा और वहाँ से निकल लिया।
सोचा कि अच्छा है कि तीनों में बढ़िया बॉन्डिंग हो जाए। रचना मुझे बहुत पसंद आने लगी थी, और मुझे लग रहा था कि वो आभा और लतिका के लिए अच्छी माँ और गार्जियन साबित होगी। लेकिन कुछ कदम आगे बढ़ा कर रुक गया और दबे पाँव वापस दरवाज़े पर खड़ा हो कर उनकी बातें सुनने लगा।
लतिका रचना से लिपट कर बड़े आनंद पूर्वक रचना से स्तनपान का आनंद लेती रही। काजल के विपरीत, रचना का शरीर बहुत कोमल और उत्तम गुणवत्ता वाला था। लिहाज़ा लतिका को भी अच्छा लग रहा था। एक नयापन भी था इस अनुभव में! खैर, जब उसने आखिरकार दूध पीना समाप्त किया, तो लतिका स्पष्ट रूप से प्रसन्न थी।
“थैंक यू सो सो मच, रचना!”
“यू आर वैरी वेलकम, हनी!” रचना ने विनोदपूर्वक कहा, “यू योरसेल्फ आर सच अ ब्यूटीफुल गर्ल! आई लव्ड फीडिंग यू, एंड आई ऍम श्योर आई कैन बी अ गुड मदर टू यू एंड आभा!” फिर कुछ अचकचा कर, “आई मीन, आई मेन्ट नो डिसरेस्पेक्ट टू काजल! शी मस्ट बी अमेजिंग टू रेज़ सच ऐन अमेजिंग गर्ल लाइक यू!”
“आई ऍम श्योर टू रचना! एंड डोंट वरि!” लतिका ने बड़े उत्साह से कहा, “आप बहुत सुन्दर हैं, और बहुत अच्छी भी! अंकल विल बी लकी टू हैव यू!”
“हा हा!”
मुझे दोनों की बातें सुन कर बहुत अच्छा लगा।
“रचना,” लतिका ने झिझकते हुए कहा, “आप न्यूड क्यूँ हैं? क्या आपने और अंकल ने...”
“यस हनी! व्ही हैड सेक्स!”
“डू यू लव हिम?”
“यस!” रचना ने बेहिचक कहा, “व्ही वर लवर्स अ लॉन्ग टाइम एगो! उनकी माँ भी मुझे बहुत पसंद करती थीं!”
“ओह? सच में?”
“हाँ! यू नो,” रचना ने बड़े गर्व से कहा, “जैसे मैंने तुमको पिलाया है न अपना दूध, वैसे ही वो मुझको पिलाती थीं!”
“वाओ!” लतिका सच में इस रहस्योद्घाटन से बहुत प्रभावित हुई, “बो... आई मीन मम्मा... ओह, आई मीन अंकल की मम, यूस्ड टू फीड मी!”
“अभी नहीं करतीं?”
“अभी भी करती हैं! लेकिन उनसे मिले हुए काफी दिन हो जाते हैं!”
“आई विल फीड यू! प्रॉमिस!”
“सच में रचना?”
“सच में!”
“तो, क्या आप अंकल के बच्चों की माँ बनेंगी?”
“आई होप सो!” रचना बड़े सुखद ढंग से मुस्कुराई।
“वाओ! रचना यू आर सो गुड!”
लतिका ने रचना को गले लगा लिया।
“रचना?” लतिका ने कुछ देर बार झिझकते हुए कहा।
“हाँ, लव?”
“क्या मैं एक बार और आपके ब्रेस्ट पी सकती हूँ?”
“ओह हनी! व्हाई नॉट!” यह कहकर उसने लतिका को अपनी गोद में लिटा दिया और अपना एक चूचक उसके मुँह में ठूंस दिया, “यू कैन व्हेनएवर यू वांट!”
लगभग दस मिनट तक दूध पिलाने के बाद रचना ने बोली, “हनी, मुझे लगता है कि अभी के लिए इतना काफी है। मुझे पता है कि तुम्हारे अंकल भी इनको प्यार करना चाहते हैं... इनको भी, और मुझसे भी! इसलिए अभी सो जाओ, सवेरे मिलेंगे? ओके लव? अब सो जाओ।” उसने कहा और लतिका के माथे को चूम लिया।
रचना और लतिका की बातचीत ऐसी सुन्दर थी कि आनंद आ गया मुझको! अचानक से ही रचना के बारे में मेरे मन में जो नकारात्मक विचार थे वो सभी जाते रहे! उसका और उसके व्यवहार का मूल्यांकन मेरे मन में सकारात्मक हो गया! जैसे मेरे जीवन में अन्य महिलाएँ थीं, रचना उन्ही के सामान एक अच्छी महिला थी।
मैं दबे पाँव अपने कमरे की तरफ़ भाग लिया।
हाल की घड़ी में तो सब अच्छा हो गया। जैसे लेखक भैय्या ने कहा, वर्तमान का आनंद लिजिए।पर असली परीक्षा तो मां और सुनील के के बारे में जान कर पता चलेगी
ज्यादा आनंद ज्यादा दुख लेकर आता है।हाल की घड़ी में तो सब अच्छा हो गया। जैसे लेखक भैय्या ने कहा, वर्तमान का आनंद लिजिए।
पर असली परीक्षा तो मां और सुनील के के बारे में जान कर पता चलेगी
हाल की घड़ी में तो सब अच्छा हो गया। जैसे लेखक भैय्या ने कहा, वर्तमान का आनंद लिजिए।
ज्यादा आनंद ज्यादा दुख लेकर आता है।
और वैसे हीरो के अभी अपने जीवन में आनंद नही आया है अभी, बस संभावना बन रही है।
आपकी बातों से लग रहा है की कहानी अपने अंजाम पर आ रही है, देखते है आप किस ओर ले जाते हैं इसे, शायद मेरी सोच और आपकी सोच में कुछ अंतर हो।धन्यवाद भाईयों! आप दोनों की ही बातें सही हैं।
सुमन और सुनील की जानकारी सुन कर रचना क्या करेगी, कह नहीं सकते। शायद इसीलिए अमर ने यह बात अभी तक छुपाई हुई है!
रचना ने भी अपने पूर्व-पति की सब बातें अमर से नहीं कही हैं। नीलिमा से उसका ठीक से मिलना बाकी ही है।
सब कुछ होगा - लेकिन अपने समय पर! जीवन में कोई पूरी तरह सही, और पूरी तरह गलत नहीं होता - बस सभी के अपनी अपनी सच्चाईयाँ होती हैं!
जाहिर सी बात है, रचना का भी स्वार्थ है और अमर का भी। स्वार्थवश ही लोग साथ में आते हैं - कभी प्रेम का स्वार्थ, तो कभी धन का, तो कभी कुछ और!
फिलहाल, अमर को और उसके परिवार को ठहराव की आवश्यकता है, और रचना उसको वो ठहराव दे सकती है।
अगले कुछ अपडेट उन दोनों के बीच होने वाली अंतरंग बातों पर ही आधारित हैं, जो दिखायेंगी कि रचना सही लड़की है।
इसलिए वर्तमान का आनंद आवश्यक है। शीघ्र ही मिलते हैं।
लैपटॉप की समस्या चल रही है, इसलिए लिखने का काम धीरे ही है।