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Romance मोहब्बत का सफ़र [Completed]

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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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प्रकरण (Chapter)अनुभाग (Section)अद्यतन (Update)
1. नींव1.1. शुरुवाती दौरUpdate #1, Update #2
1.2. पहली लड़कीUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19
2. आत्मनिर्भर2.1. नए अनुभवUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3. पहला प्यार3.1. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह प्रस्तावUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21
3.3. पल दो पल का साथUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
4. नया सफ़र 4.1. लकी इन लव Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15
4.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
4.3. अनमोल तोहफ़ाUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
5. अंतराल5.1. त्रिशूल Update #1
5.2. स्नेहलेपUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10
5.3. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24
5.4. विपर्ययUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
5.5. समृद्धि Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20
6. अचिन्त्यUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28
7. नव-जीवनUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5
 
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Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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अंतराल - समृद्धि - Update #2


ख़ुशी और मेरा - जैसे बैर वाला रिश्ता बना लगता है।

जब जब मैं खुश होता हूँ, तब तब मैं बर्बाद होता हूँ! जी हाँ - अंदाज़ अपना अपना फिल्म के एक संवाद पर ही मैंने ये बात लिख तो दी है, लेकिन मेरे केस में ये बात है पूरे सोलह आने सच! नहीं नहीं - फिलहाल ऐसी बर्बादी वाली कोई बात नहीं हुई है - कम से कम कहानी के इस पड़ाव पर! लेकिन क्या है न कि पिछले कुछ सालों से मैं बेहद स्वार्थी हो गया हूँ (हो गया हूँ, या फिर शायद हमेशा से ही था)। अधिकतर अपने ही बारे में सोचता हूँ; अपनी खुशियों के बारे में! अपने सामने दूसरों का ख़याल ही नहीं आता! इसीलिए जैसे ही कोई मुश्किल सामने आती है - मैं रोने लगता हूँ! बात कुछ यूँ है -

लतिका के हाई स्कूल परीक्षाओं के तीन सप्ताह पहले की बात है। सब कुछ सामान्य था। शाम को काजल मेरे कमरे में आई। कोई अनहोनी बात नहीं है ये। लेकिन आज कुछ अलग सा था।

“अमर?”

“हाँ, काजल?”

“बहू और बच्चों को देखे हुए बहुत दिन हो गए!”

“हाँ! बात तो ठीक है! बस कुछ दिनों की बात है - पुचुकी के एक्साम्स हो जाएँ! फिर चली जाना मुंबई? और इन दोनों शैतानों को भी लेती जाना! माँ भी देख लेंगीं दोनों को?”

मेरी बात सुन कर काजल कुछ देर चुप हो गई।

सच में - एक माँ के दिल का हाल हम आदमी लोग कैसे जान सकते हैं? कितनी भी कोशिश कर लें - लेकिन ममता पर तो स्त्रियों का ही एकाधिकार है। काजल की तो जान ही अपने बच्चों में बसती थी! लेकिन उसकी मुश्किल देखिए - उसके दो बच्चे यहाँ दिल्ली में, और चार वहाँ मुंबई में! जैसे उसके दिल के कई टुकड़े कर के देश के अलग अलग हिस्सों में रख दिए हों विधाता ने! माँ से रोज़ फ़ोन पर बात करती थी वो, लेकिन उससे कहाँ पेट भरता है? तब तक वीडियो कॉल का सिस्टम भी आम नहीं था, और न तो काजल को ही, और न ही माँ को कंप्यूटर और इंटरनेट का समुचित उपयोग करना आया था।

काजल के चुप होने का अंदाज़ सामान्य से थोड़ा अलग था।

मैंने पूछा, “क्या हुआ काजल? कोई प्रॉब्लम है क्या?”

काजल ने कुछ देर कुछ नहीं कहा, और उसके बाद धीमी आवाज़ में कहा, “अमर, वो क्या है न, जब मैं पहली बार सुनील के वहाँ गई थी, तब मुंबई में मैं किसी से मिली।”

“ओके?” मैंने कहा, “किससे?”

“एक आदमी से!” काजल ने थोड़ा हिचकते हुए कहा, “... और मुझे लगता है कि मैं उसे पसंद करती हूँ!”

“क्या! सचमुच?” मैं उसकी बात पर हैरान हो गया!

‘ये क्या हो गया? काजल? किसी और से?’ अब मेरा दिमाग चकराया।

“उससे बातें भी होती हैं - लगभग रोज़ ही! सुनील भी मिला है!”

‘अरे स्साला! बात तो काफी एडवांस्ड स्टेज में है!’ दिमाग में बात कौंधी - लेकिन अभी भी मुझे बात की वास्तविक हद का अंदाज़ा नहीं था।

“क्या वो तुमको पसंद करता है?” मैंने पूछा।

“मुझे ऐसा लगता तो है...” काजल ने थोड़ा अनिश्चित तरीके से कहना शुरू तो किया, लेकिन लगभग तुरंत ही संयत हो कर बोली, “हाँ, वो भी मुझे पसंद करता है। एक्चुअली, उसी ने प्रोपोज़ किया था मुझको!”

“फिर तुमने मुझे बताया क्यों नहीं?”

“सही टाइम का वेट कर रही थी!”

“ओह!”

मैं कभी सोच भी नहीं सकता था - सपने में भी नहीं - कि कभी ऐसा भी एक दिन आएगा, जब काजल मुझसे नहीं, बल्कि किसी और से प्यार करने लगेगी!

तो इसका मतलब, क्या वो मुझे छोड़ कर चली जाएगी?

‘हे भगवान!’

“अमर... अब ऐसे तो बीहेव मत करो,” काजल ने मेरे तेजी से मुरझाते हुए मूड को देखते हुए कहा, “तुम मेरा सबसे पहला प्यार हो, और ये बात कभी नहीं बदलेगी नहीं! ... क्या कुछ नहीं दिया है तुमने मुझे? इतनी इज़्ज़त - इतना मान! ... तुम्हारे कारण मुझे समाज में इतनी इज़्ज़त मिली। तुम्हारे कारण आज मेरा एक भरा पूरा परिवार है, और उसका सुख भी! मेरे बच्चे...”

काजल अतीत के पन्नों में खोते हुए बोली, “मैं और मेरे मेरे बच्चे समाज में आज इतनी इज़्ज़त के साथ खड़े हैं, वो बस तुम्हारे ही कारण है! मेरा सब कुछ तुम्हारे कारण है!”

“तो तुमने मुझे बताने के लिए इतनी देर इंतज़ार क्यों किया...” मेरी शिकायत भी जायज़ थी।

एक झटके में काजल ने मुझको अनजान बना दिया... अपने से अलग कर दिया!

काजल इस प्रश्न पर कुछ कह न सकी। फिर मैंने इस विचार को तुरंत झटका, और उसे अपने बहुत बगल में बैठाते हुए कहा, “अच्छा! अभी शिकायत नहीं करूँगा... मुझे उसके बारे में बताओ... सब कुछ!”

वो मुस्कुराई, “ओके... उसका नाम सत्यजीत है।”

“मराठी?”

उसने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “... सत्यजीत मुळे! उम्र में मुझसे कम है... चालीस इकतालीस का होगा।”

“वो तो ठीक है न?” काजल ने ‘हाँ’ में सर हिलाया; मैंने पूछा, “सिंगल?”

“हाँ! विडोड... बहुत कम उम्र में शादी हो गई थी उसकी... गाँव से है न! उसकी बीवी को मरे बहुत साल हो गए - शायद कोई चौदह पंद्रह साल हो गए! ... सुनील से दो ढाई साल छोटा एक बेटा भी है उसका... लेकिन... उसकी भी शादी हो गई है... और उसका भी एक बच्चा है... डेढ़ दो साल का!”

“हम्म… अच्छा! बढ़िया है... कम से कम पूरा परिवार तो है!” मैं कुछ और कहना चाहता था, लेकिन शायद काजल के दिल में चुभ जाता, इसलिए वो बात कहने के बजाय मैंने पूछा, “क्या करता है?”

“उसका बेकरी का बिज़नेस है।”

“हम्म… हा हा हा हा! तो मतलब, तुम केक लेने मिस्टर सत्यजीत के पास गई, और बदले में अपना दिल दे बैठी?”

काजल मेरी बात पर हँसने लगी, “नहीं! केवल केक ही नहीं... ब्रेड, बिस्किट, स्कोन, पेस्ट्री, कुकीज... भी!”

“हाँ... हाँ... समझ रहा हूँ।” मैंने काजल की टाँग खींची, “दिल्ली वाला नहीं, बल्कि मुंबई वाला बिजनेस-मैन पसंद आ गया है आपको!”

“अमर! ऐसे मत बोलो!” काजल की आँख भर आई, “तुम मेरे लिए क्या हो, वो तुम भी जानते हो! लेकिन, मुझे ये भी मालूम है कि जब तक मैं तुम्हारी ज़िन्दगी से बाहर नहीं जाऊँगी न, तब तक तुम अपनी ज़िन्दगी में आगे नहीं बढ़ोगे!”

मैंने इस बात पर कुछ नहीं कहा, लेकिन काजल की बात मेरे दिल को कचोट गई। शायद वो सही कह रही हो। मेरी आदत है किसी अन्य का सहारा पकड़ कर आगे बढ़ने की - अमरबेल की तरह... पैरासाइट! एक तरह से मैंने सालों साल काजल का शोषण किया है। और आज जब काजल को मौका मिला है कि वो अपना घर बसा सके, तो मैं उसको गिल्ट-ट्रिप पर ले जाने वाला था। कैसा मतलबी था मैं! धिक्कार है!

सच कहते हैं - किसी भी व्यक्ति का बुराई को ले कर नज़रिया ख़र्राटों समान होता है - दूसरों की कमियाँ और बुराईयाँ बखूबी सुनाई देती हैं, अपनी नहीं!

मैंने बात पलट दी, “तो, किसने किसको प्रोपोज़ किया?”

“बताया तो! सत्या ने... मुझे!” वो गर्व से मुस्कुराई।

“और तुमने मान लिया?”

“मानना चाहती हूँ,” काजल बोली, और हिचकिचाई।

“क्यों? क्या हो गया? किसने रोका?”

इस प्रश्न के उत्तर में काजल कुछ नहीं बोली। मुझे उत्तर अपने आप मालूम हो गया।

“सुनील को मालूम है?”

काजल ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “और बहू को भी! दोनों मिले हैं... सत्या से भी, और उसके बेटे और बहू से भी!”

“दोनों ओके हैं?”

काजल ने फिर से ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“तो इंतज़ार किस बात का है?”

“मैं उसके पहले तुमसे बात करना चाहती थी... और... तुम्हारी परमिशन लेना चाहती थी!”

“काजल… मेरी काजल… मैं तुम्हारा मालिक नहीं हूँ कि तुम मुझसे परमिशन लो! तुम इस घर की बड़ी हो... पूरे परिवार की बड़ी हो! मालकिन हो तुम! अपने डिसिशन खुद ले सकती हो! मैंने कभी रोका है तुमको? मैं तो तुमसे कितना प्यार करता हूँ!”

“आई नो! और इसीलिए तो मैं सत्या को हाँ कहने से पहले तुमको बताना चाहती थी!”

“हाँ कहना चाहती हो?”

काजल ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

हम दोनों कुछ देर के लिए चुप हो गए।

काजल के जाने का मतलब है कि लतिका भी उसके साथ ही चली जाएगी! फिर से आभा और मैं अकेले! सबकी ज़िन्दगी संवर रही थी, सबका संसार बस रहा था - बस, मैं ही पीछे छूटा जा रहा था। लेकिन मुझे अपना स्वार्थ छोड़ कर आगे बढ़ना था। अमरबेल जैसा परजीवी बन कर मैं और जीना नहीं चाहता था। अब समय आ गया था कि मैं अपने पाँवों पर खड़ा हो जाऊँ... पैसा कमाना ही अपने पाँव पर खड़ा होना नहीं होता। एक ज़िम्मेदार पुरुष के जैसे ही अपने परिवार की सारी ज़िम्मेदारी लेने का समय आ गया था। हम बचे ही कितने अब? मैं और आभा! बस... दो जने!

इस विचार से मेरा दिल बैठ गया।

प्रत्यक्षतः मैंने कहा, “काजल, अगर तुमको लगता है कि तुम सत्यजीत के साथ खुश रहोगी, तो प्लीज, इतना सब मत सोचो! उसको हाँ कह दो! उसके साथ रहो! उसका घर बसाओ! मुझे केवल तुम खुश चाहिए। और कुछ नहीं!”

काजल मुस्कुराई, लेकिन उसकी आँखों से आँसू ढलक गए, “आई नो!”

वो बहुत इमोशनल हो गई थी, लेकिन उसने खुद को सम्हाला, “मैं चाहती हूँ, कि तुम सत्या से मिल लो! देखो तो, वो मेरे लायक है भी कि नहीं?”

जिस तरह से काजल ने मुझसे ये बात कही, मेरा दिल बाग़ बाग़ हो गया!

मुझे लग गया कि शादी हो जाने के बाद भी काजल का सम्बन्ध मेरे साथ प्रगाढ़ ही रहेगा - वैसे ही जैसे बड़ी बहन जब विदा हो जाती है, तब भी उसका सम्बन्ध अपने भाई से नहीं छूटता। बात सही थी - काजल हमेशा यहाँ नहीं रह सकती थी। अगर यह बात माँ के लिए सच थी, तो काजल के लिए भी उतनी ही सच थी। और अब जा कर मुझे काजल के खिंचाव का कारण समझ में आया। जब दूसरे के साथ प्रीति होने लगे, तो फिर मेरे साथ वो क्यों अंतरंग होगी? अच्छा भी लगा कि काजल सत्यजीत के लिए समर्पित थी; वफादार थी।

“मैं उससे मिलूंगा।”

“हाँ?”

“हाँ! मैं... मैं तुमको बस खुश देखना चाहता हूँ, काजल! कुछ भी नहीं और...”

“थैंक यू, अमर!”

मैंने बड़ी मुश्किल से काजल को देखा।

क्या कुछ नहीं किया... सहा... देखा... हम दोनों ने! बारह साल का साथ! इतने समय में न केवल हमारे परिवारों के दिल भी मिल गए, बल्कि खून भी! हम एक परिवार थे। और काजल इस परिवार का दिल। उसके जाने का सोच कर मुझे ऐसा लगा कि जैसे किसी ट्रक ने मुझे टक्कर मार दी हो! ऐसे अज़ीज़ दोस्त को - मनमीत को - अलविदा कहना बड़ा मुश्किल है! काजल मेरे जीवन की सच्चाई है - वो इतनी करीब, इतनी आत्मीय है! दिल के विचार चेहरे पर आ ही गए - माँ से ये गुण मिला है मुझको। जो मन में चल रहा होता है, वही चेहरे पर भी।

“अमर... ओह अमर! प्लीज ऐसे मत रहो! ऐसे उदास न होवो।”

“मैं उदास नहीं हूँ काजल!” मैंने झूठ कहा, “लेकिन तुम्हारे बिना ये घर बिलकुल खाली हो जायेगा!” ये मैंने सच कहा।

“अरे...” उसने कहा, और मुझे उसने अपनी छाती से लगा कर, और मेरे सर को चूमते हुए कहा, “तुमको चाहने वाली कोई नई आ जाएगी! मुझे मालूम है ये बात!”

“हह!” मैंने टूटे हुए दिल से बोला, “दो बार लकी हो चुका हूँ! बार बार नहीं होता कोई!”

“होगा... मेरा दिल कहता है!”

“हम्म!”

“ऐसे मत बनो, अमर! तुमको भी मालूम है कि तुम्हारे लिए मेरे प्यार के कई सारे रूप हैं... बस तुम्हारे लिए मैं एक रूप में नहीं आ सकती - और वो है पत्नी का रूप! तुम मुझसे बेहतर डिज़र्व करते हो! ... बेहतर लड़की डिज़र्व करते हो। मैं उस पॉसिबिलिटी में रोड़ा नहीं बन सकती!”

उसने कहा और मुझे ज़ोर से अपने गले से लगा लिया।


**
ये अमरबेल वाली बात से पूर्णतया असहमत हूं, दोनो ही एक दूसरे का सहारा बने जब जरूरत थी दूसरे को।
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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अंतराल - समृद्धि - Update #10


रचना के बारे में सोच कर अच्छी फीलिंग आ तो रही थी, लेकिन फिर भी मैंने स्वयं पर थोड़ा काबू रखा। उसके संग के लिए बहुत तत्परता दिखाना, मतलब अपनी ही कमज़ोरी दिखाना!

लेकिन मैंने इस सन्दर्भ में सभी बड़ों से बात अवश्य करी। सबसे पहले बात काजल से ही हुई। वो रचना के बारे में सुन कर बहुत खुश हुई - क्यों न हो? अब उसका रवैया मुझको ले कर ‘माँ’ जैसा ही हो गया था। हमारा वो पुराना रिश्ता कब का बदल गया था। किसी भी माँ के जैसे वो भी चाहती थी कि मेरा घर फिर से बस जाए, मेरे भी जीवन में थोड़ी बहार आए। लिहाज़ा, उसने मुझको शीघ्र-अतिशीघ्र रचना से मिलने के लिए कहा।

माँ का भी कमोवेश वैसा ही रवैया था। पुरानी यादें उनकी ताज़ा हो आईं। रचना उनको पसंद बहुत थी - इसमें कोई शक नहीं। लेकिन मिसेज़ शर्मा का व्यवहार उनके दिल को कचोट गया था। लेकिन माँ ऐसी उदार हृदय वाली स्त्री हैं कि किसी को भी माफ़ कर सकती हैं। वो तो स्वयं ही मिलना चाहती थीं रचना से, लेकिन गर्भावस्था के नाज़ुक महीनों के कारण उनका ट्रेवल फिलहाल बंद था। उन्होंने भी मुझको रचना से यथासंभव जल्दी ही मिलने को कहा।

पापा का ऑब्ज़र्वेशन दोनों स्त्रियों से थोड़ा अलग था। उनको रचना के बारे में कुछ नहीं मालूम था। और जब उन्होंने पूरा किस्सा सुना, तो उनको बहुत उत्साह नहीं आया। उनका मानना था कि यह थोड़ा अरेंज मैरिज जैसा हो गया है - ऐसे में जो बेस्ट ऑप्शन हो, वो लेना चाहिए! रचना वाला ऑप्शन ऑप्परच्युनिस्टिक (अवसरवादी) है। उनके पिता को लगा कि बढ़िया लड़का है, अच्छा बिज़नेस है, सम्पन्नता है, कोई ‘बैगेज’ नहीं - तो क्यों न यहीं बात कर ली जाए! पापा ने यह भी कहा कि वो खुद भी मेरे लिए एक ‘सूटेबल’ लड़की ढूंढ रहे थे। लेकिन उनके ‘लायक बेटे’ के लिए कोई ढंग की लड़की अभी तक नहीं मिली। जब मैंने उनसे पूछा कि मैं क्या करूँ, तो उन्होंने कहा कि मिलो ज़रूर। उसमें बुराई नहीं है। लेकिन सतर्क रहना। अरेंज मैरिज में प्यार बाद में होता है, शादी पहले होती है। अगर उसमें उल्टा हो रहा है, तो समझ लेना कि तुमको ‘फँसाने’ के लिए जाल फेंका गया है।

मेरे तीन शुभचिंतक, और उनके तीन अलग तरह की सलाहें! लकिन एक बात तीनों में कॉमन थी कि रचना से मिलना तो चाहिए, और वो भी बिना बहुत देर किए।

तो मैं मिला उससे।

सभी से सलाह करने के अगले सप्ताहाँत मैं रचना से मिलने, उसके पिता के घर गया। रचना से आज कोई सत्रह - अट्ठारह साल बाद मिलने वाला था, इसलिए थोड़ा सा उत्साह भी बना हुआ था। जानता हूँ कि यह एक बेहद लंबा समय है। इस दौरान मेरे जीवन में कितना कुछ बदल गया था! जाहिर सी बात हैं रचना के जीवन में भी बहुत कुछ बदल गया होगा। शादी होने के बाद स्त्रियों और पुरुषों में तो वैसे भी परिवर्तन आ ही जाते हैं। जिस रचना को मैं जानता था वह नवयौवना थी, एक टीनएज लड़की थी! उसके अंदर जीवन को ले कर जिज्ञासा थी; उत्साह था। मैं नहीं जानता था कि यह नई वाली रचना कौन थी?

जब मैंने रचना को देखा तो एक प्रश्न का उत्तर मिल ही गया - यह नई वाली रचना थी तो बहुत सुंदर! मतलब बहुत ही सुन्दर! माँ बड़ी सुन्दर थीं - लेकिन वो भी नहीं टिकतीं उसके सामने! और न ही गैबी, डेवी, और काजल ही! मतलब अगर वो चाहती, तो अवश्य ही मिस इंडिया या मिस वर्ल्ड जैसी प्रतियोगिता में शामिल हो सकती! इतना निरुद्यमी सौंदर्य था उसका! जब वो टीनएज थी, तो भी सुन्दर लगती थी। लेकिन वो लड़की, इस महिला के सामने कुछ भी नहीं थी!

रचना ने स्वयं को और अपने सौंदर्य को बड़ा सम्हाल कर रखा था और यह साफ़ दिखता था! हालाँकि, उसका शरीर थोड़ा गुदाज़ था - जो उसकी आरामदायक जीवनशैली की तरफ इंगित करता था - लेकिन फिर भी, यह तय था कि वो अपनी त्वचा और रूप-रंग का बहुत ध्यान रखती थी। पैंतीस की हो गई होगी, लेकिन जवान दिख रही थी! उसकी मुस्कान बड़ी चमकदार, थोड़ी रहस्यमय, और बेहद संक्रामक थी। उसको मालूम था कि वो बहुत सुन्दर है, और वो जानती थी कि अपने आकर्षण का जादू कैसे चलाना है।

और वो अपने आकर्षण का जादू मुझ पर चलाने के लिए पूरी तरह से तैयार हो कर आई थी। आज के डिनर के लिए उसने शिफॉन साड़ी और चमकदार, स्किन-हगिंग ब्लाउज पहना था। ब्लॉउस का कपड़ा, कपड़ा न लग कर कोई तरल जैसा लग रहा था - ऐसा कि जैसे वो रचना की त्वचा का ही एक हिस्सा हो! ब्लाउज आगे से भी गहरी कटाव वाली थी, और पीछे भी! शिफॉन साड़ी अपने आप में बहुत पारभासी होती है, उसके अंदर से रचना का क्लीवेज (वक्ष-विदरण) और उसके सीने का एक बड़ा हिस्सा बड़ी आसानी से दिख रहा था! साड़ी स्वयं भी उसके शरीर के हर अंग के उतार चढ़ाव को दिखा रही थी! ठीक से वर्णन करना कठिन है, लेकिन इतना कहना उचित है कि मैं वहाँ किसी शिकार की भाँति बैठा हुआ था, और मेरा शिकार करने आई थी... रचना! उसका पहला ही तीर सीधा मुझको बेबस कर गया।

आज अपने बारे में मुझे एक बात पहली बार मालूम पड़ी - सुन्दर लड़कियाँ मुझे बहुत पसंद हैं!

जहाँ एक तरफ़ मेरा नब्बे प्रतिशत दिमाग रचना के सौंदर्य रस का पान करने में व्यस्त था, वहीं दूसरी तरफ़ वो बचा हुआ दस प्रतिशत दिमाग - जो शायद मेरा विवेकी, तर्कसंगत दिमाग होगा - सोच रहा था कि ये शर्मा परिवार तो बड़ा रूढ़िवादी हुआ करता था न? मुझे याद है कि रचना की माँ, उसके पहनावे को के कर कितना नाटक करती थी। उसी रूढ़िवादिता के चलते उसका हमारे घर आना जाना बंद हुआ था। तो उस हिसाब से रचना का पहनावा बड़ा भड़काऊ नहीं था क्या? तब यह सब ठीक नहीं था, लेकिन अब ठीक है?

लेकिन जैसा मैंने कहा, मेरा नब्बे प्रतिशत दिमाग उसके ही वश में था। मंत्रमुग्ध हो कर मैं उससे मिला। कई सालों की भूख सामने आ ही गई। रचना का मक्खन जैसा शरीर देखने, महसूस करने और भोगने का मन हो आया! आदमी का मन कमज़ोर होता है। इसीलिए उसको अपना विवेक नहीं खोना चाहिए! भगवान् की दया से दस प्रतिशत विवेक बचा हुआ था मेरे पास - और उसी ने मुझको रचना का गुलाम बनने से बचा रखा था अभी तक। अच्छा हुआ कि उसी समय उसकी बेटी भी आ गई - उसका नाम नीलिमा था। वो एक प्यारी सी लड़की थी, और मेरी आभा से कुछ साल बड़ी थी। एक्चुअली, वो लतिका की हमउम्र होनी चाहिए - उससे एक दो साल छोटी!

शायद ये विवेकी मन ही था, जिसके कारण मुझे लगा - और हो सकता है कि मुझे गलत लगा हो - कि वहाँ उपस्थित सभी लोगों का व्यवहार थोड़ा बनावटी है... जैसे सभी मुझे ‘खुश करने’ या ‘इम्प्रेस करने’ की कोशिश कर रहे हों! रचना का तो ठीक था, लेकिन उसकी बेटी के व्यवहार में भी बनावटपन लगा। लेकिन मैंने इस बारे में बहुत ज्यादा नहीं सोचा, और सभी के साथ अच्छी तरह से, घुल मिल कर बातचीत की।

कुछ देर उससे बात करने के बाद, मुझे समझ आया कि रचना का अपने जीवन को ले कर कोई बड़ा सपना जैसा नहीं था। वो पहले भी, और अब भी बस किसी की पत्नी ही बनना चाहती थी। इस बात में कोई बुराई नहीं है। लेकिन जैसा कि मैंने पहले महसूस किया था, रचना एक आरामदायक जीवनशैली की आदी रही थी, और उस जीवनशैली को जीने के लिए उसको एक संपन्न व्यक्ति से शादी करना ठीक बात लग रही थी। यार कुछ भी हो, शादी करने का यह सही कारण नहीं हो सकता। अवश्य ही घर में बैठो, और आराम से बैठो, आराम का जीवन जियो, लेकिन अपने जीवनसाथी को ले कर कुछ उत्साह तो चाहिए न! यह मेरा दस प्रतिशत वाला विवेकी मन बोल रहा था! नब्बे प्रतिशत गुलाम मन तो बस उसके मक्खन जैसे शरीर के विभिन्न कटाव और उसकी भाव-भंगिमाओं की समीक्षा करने में लगा हुआ था।

अगर कोई स्त्री अपनी पर उतर आए न, तो मर्द की औकात नहीं! वो स्त्री जैसा चाहे, उसको वैसा नचा सकती है। मेरी उस समय वही हालत थी। दोस्तों - पुरुषों को अपना जीवनसाथी चुनने में बहुत सावधानी बरतने की ज़रूरत है। सेक्स कुछ देर चलता है, लेकिन पति होना एक फुल-टाइम जॉब है! इसलिए अपने लिए स्त्री (पत्नी) ऐसी ढूंढनी चाहिए, जिसका साथ आपको अच्छा लगे। जिसको प्रेम (सेक्स नहीं) किया जा सके। सुन्दर ज़हर की पुड़िया के साथ जीवन नहीं जिया जा सकता। मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि रचना कोई ज़हर की पुड़िया है। बस एक मिसाल दी है मैंने। अभी तक मेरे जीवन में जो लड़कियाँ और स्त्रियाँ आई थीं, वो सभी बढ़िया किस्म की थीं। किस्मत मेरी अच्छी थी कि अभी तक इस तरह की स्त्रियाँ मिली। किस्मत अच्छी होना एक अपवाद है - नॉर्म नहीं! खैर, मैं यहाँ दर्शनशास्त्र पर चर्चा करने नहीं आया हूँ!

कहानी पर वापस लौटते हैं।

रचना के परिवार ने हमको कुछ देर अकेले में मिलने, और बात करने के लिए छोड़ दिया। यही एक्सपेक्टेशन भी थी न आज रात की... कि हम दोनों मिलें, और पुरानी बातें याद करें! जब हम दोनों गेस्ट रूम में अकेले हो गए, तो रचना ने मेरा हाथ पकड़ कर कहा,

“अमर... मुझे अभी भी हमारे बचपन के दिन याद हैं... क्या तुमको याद हैं?”

“मैं कैसे भूल सकता हूँ?” रचना मेरे तार खेल रही थी, और मैं उसकी हर छेड़खानी पर बज रहा था, “तुमने तो मुझे बहुत कुछ सिखाया है... तुम ही तो मेरी जिंदगी की पहली लड़की हो!”

“और तुम मेरे...” वो मुस्कुराई और बोली, “सोचो न! अगर सब कुछ ठीक ठीक चल गया होता, तो हम हस्बैंड वाइफ भी हो सकते थे... है न?” वो जैसे सोचते हुए बोली, “आंटी जी तो मुझे कितना प्यार करती थीं!”

“हाँ... सच में।”

“कैसी हैं वो?”

“ठीक हैं... खुश हैं, और हेल्दी भी!” मैंने कुछ सोच कर माँ से सम्बंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारियां रचना से छुपा लीं। क्यों? मुझे नहीं पता।

नहीं नहीं! मुझे यह ख़याल नहीं आया कि वो क्या सोचेगी! मेरी जान पहचान दिल्ली के कई संपन्न और संभ्रांत घरानों में थी, और सभी को मेरे पूरे परिवार के बारे में मालूम था। मेरी समस्या वो नहीं थी। कुछ और ही थी। क्या थी, कह नहीं सकता अभी।

“जान कर बहुत अच्छा लगा, अमर। ... अकेले रहना ... अकेले जीवन काटना बड़ा मुश्किल है!” उसने आह भरते हुए कहा।

हम कुछ मिनट चुपचाप बैठे रहे और फिर उसने अचानक ही, पूछ लिया, “अच्छा बताओ, मैं कैसी दिखती हूँ?”

“तुम बहुत सुंदर लग रही हो, रचना!” मैंने पूरी सच्चाई से कहा, “पहले से भी कहीं अधिक सुन्दर...”

“मुझे बहुत खुशी हुई कि तुमको सुन्दर लग रही हूँ...” उसने मुस्कुराते हुए कहा, “... मैंने तुम्हारे लिए ही तो यह सब किया है!” फिर एक रहस्य्मय मुस्कान के साथ उसने कहा, “मैं अपने अमर के लिए अच्छा दिखना चाहती थी!”

‘अपने अमर...!”

बिछ गया भाई... इस बात पर तो मैं पूरी तरह बिछ गया! विवेक अब सो गया। रचना ने जिस तरह यह बात कही थी, मेरा संदेह जाता रहा। जाहिर सी बात है, वो मेरे लिए ही तो तैयार हुई थी आज की रात! यह तो बड़े सम्मान वाली बात थी मेरे लिए!

“हा हा! ओह रचना, तुम सुन्दर ही नहीं... बल्कि स्मैशिंग लग रही हो!” मैंने कहा, “तुम जैसी सुन्दर लड़की नहीं देखी है मैंने!”

जादू...

“क्या तुम उनको छूना चाहते हो?” रचना ने बड़े रहस्य्मय तरीके से कहा।

मैं तुरंत समझ गया कि रचना की बात का क्या मतलब है... लेकिन मैंने मासूमियत का नाटक किया, “क्या छूना है? किसको?”

“मेरे बूब्स, स्टुपिड!” उसने फुसफुसाते हुए कहा, “इतनी देर से देख रहे हो इनको... तरस रहे हो...”

“डू यू वांट मी टू?”

“आई इवन वांट यू टू सकल देम... तुम पूरे बेवक़ूफ़ हो!” वो अभी भी मुस्कुरा रही थी, “लेकिन हमें कहीं से तो शुरुआत करनी ही होगी न... तो क्यों न इनको छू कर शुरू किया जाए?”

ऐसा अद्भुत निमंत्रण! कौन गधा उसको ठुकराएगा?

तो, मैंने रचना के स्तनों को उसके अद्भुत से ब्लाउज के ऊपर से महसूस किया। ओह प्रभु! कैसे नर्म टीले थे उसके स्तन! बचपन वाली कसावट अब नहीं थी... ऐसा लग रहा था कि स्तन नहीं, बल्कि लीची के बहुत बड़े बड़े फल थे, जिनके अंदर बीज नहीं था! बस, गूदा ही गूदा और रस! जाहिर सी बात है, उसके स्तन भी बड़े बड़े थे... माँ से भी बड़े, काजल से भी बड़े, और देवयानी के स्तनों से भी बड़े!

जैसा कि मैंने कहा, प्रचुर भोजन, और आरामदायक जीवनशैली!

उसके स्तनों को छूकर अच्छा लगा - यह एक न्यूनोक्ति है! एक लम्बे अर्से के बाद किसी ऐसी स्त्री के स्तन छुए, जो माँ या माँ समान नहीं थी! सच में - स्वर्गिक आनंद मिला। कुछ देर छूने टटोलने के बाद मैंने उसके ब्लाउज के नीचे हाथ लगा कर उनको उठाने की कोशिश करी। भारी थे! बड़े और भारी! ऐसे उन्नत स्तनों को पीना, उनका आस्वादन करना कैसा भाग्य का लाभ होगा! मैंने उसकी आँखों में देखा। उसकी हँसी छूट गई।

मुझे लगा मुझे ‘हरी झंडी’ मिल गई है, और मैंने फटाफट उसके ब्लाउज के बटन खोलना शुरू कर दिया।

“जल्दी करो... नहीं तो कोई आ जाएगा!” वो फुसफुसाई।

तो मैंने जल्दी जल्दी उसकी ब्लाउज के बटन खोले। रचना ने अंदर ब्रा नहीं पहनी हुई थी। मेरे सामने दुनिया के सबसे आश्चर्यजनक स्तनों की जोड़ी थी!

न भूतो, न भविष्यति!

मुझे नहीं लग रहा था कि इनसे अधिक सुन्दर कोई अन्य स्तन मुझको मयस्सर होंगे! सच में बड़े स्तन! लेकिन उनमे शिथिलता नहीं थी। उसके स्तनों की त्वचा भी बहुत गोरी थी - कहानियों में अक्सर यह उपमा दी जाती है कि जैसे ‘दूध में केसर मिला दिया गया हो’! यह उपमा पूरी तरह सत्य थी उस पर! उसके चूचक गुलाबी लाल रंग के थे। बचपन से अब तक रचना का रंग बदल गया था - वो अब और भी अधिक गोरी हो गई थी, और उसकी त्वचा दमक उठी थी। कमाल का सौंदर्य!

“सुंदर...” उसके सौंदर्य की तारीफ में मैं बस इतना ही कह सका!

कभी कभी शब्द बहुत कम पड़ते हैं। वैसे भी, सूर्य को क्या दीपक दिखाना?

रचना हँसने लगी! विजई रूप से!

जादू...

“टेस्ट देम...” उसने बड़ी कामुक कशिश के साथ कहा।

उसको कहने की क्या ज़रुरत थी! बेहद प्यासे आदमी के सामने पानी रख दो, तो क्या वो नियंत्रण रख पायेगा? रचना के इस प्रस्ताव ने मुझको पूरी तरह से शक्तिविहीन कर दिया!

मैंने मुँह बढ़ा कर उसका एक चूचक अपने अंदर ले लिया - तुरंत ही मुझे एक मीठा सा स्वाद आया!

‘मीठा?’ स्तनों का स्वाद ऐसा तो नहीं होता।

स्वाद तो एक बात है, उसके सीने से फूलों की महक भी आ रही थी। कहीं रचना ने अपने स्तनों पर शहद तो नहीं लगा लिया? हो सकता है न? कहीं यह सब उसकी प्लानिंग तो नहीं? अगर है भी तो क्या? मैं शिकायत थोड़े ही करूँगा, इस स्वर्गिक आनंद को पाने के लिए! अगर वाकई रचना ने यह सब प्लान किया था, वो भई, बेहद अच्छी प्लानिंग थी! उसने मुझे वाकई बहुत खुश कर दिया! मैंने कुछ पल उसके स्तनों का पान किया और आनंद से उसके स्तनों को भोगा! फिर उसने मेरे सर को परे धकेल दिया।

“अब...” उसने अपने ब्लाउज के बटन लगाते हुए कहा, “बस! अभी रुक जाते हैं... हम फिर कभी कर सकते हैं यह सब।”

“कब?” मैं किसी बच्चे की भांति बोल पड़ा।

“ये तो अब तुम ही बताओगे!”


**
ए ए ए फंसा.....
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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ये अमरबेल वाली बात से पूर्णतया असहमत हूं, दोनो ही एक दूसरे का सहारा बने जब जरूरत थी दूसरे को।

ये अमर के मन की बात है! वैसे जितना काजल ने उनके लिए किया, उतना अमर ने काजल के लिए नहीं किया।
लेकिन आपकी बात भी सही है। कुछ कामों का कोई मोल नहीं निकाला जा सकता है।

ए ए ए फंसा.....

हा हा हा! फँस तो गया!
क़ातिल निग़ाहों का एक वार बड़े बड़ों को ढेर कर देता है :)

आ गए हम भी साथ में भाई लोग

ख़ुशामदीद भाई!
साथ चलेंगे अब अगले पाँच 'और' साल के सफ़र पर!
 

dumbledoreyy

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भाई, थोड़ा भूखा है अमर अपना। भूख मिटेगी / कम होगी, तो बुद्धि / विवेक वापस आएगा।
रचना ऐसी बुरी भी नहीं है। उसके भी अपने प्लस पॉइंट्स हैं।

वैसे, एक मुद्दत हो गई सरकार! क्यों नहीं आते हमारे थ्रेड पर आप?
Avsji, पिछले कुछ महीनो से जीवन में बहुत सारी परेशानियां आ गई हैं। अम्मा की तबियत बिगड़ रही हैं दिन ब दिन। मेरा एक्सीडेंट भी हुआ था। और सबसे बड़ा जटका ये लगा की नौकरी चली गई हैं। और तो और सौतेली बहनें पैसों के लिए झगड़ा करती हैं आए दिन। इस वक्त में कोशिश कर रहा हूं की कही अच्छी नौकरी मिल जाएं। कुल मिलाके इतने मुश्किल वक्त से गुजर रहा हु की अब ज्यादा मन नही करता ऑनलाइन आने का।

वैसे काफी टाइम बाद आया तो देखा कहानी काफी आगे बढ़ गई हैं। और काफी सुखद रूप से आगे बढ़ी है तो पढ़कर अच्छा लगा। आपको लेखन शैली का तो के हमेशा से प्रशंसक हूं।
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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Avsji, पिछले कुछ महीनो से जीवन में बहुत सारी परेशानियां आ गई हैं। अम्मा की तबियत बिगड़ रही हैं दिन ब दिन। मेरा एक्सीडेंट भी हुआ था। और सबसे बड़ा जटका ये लगा की नौकरी चली गई हैं। और तो और सौतेली बहनें पैसों के लिए झगड़ा करती हैं आए दिन। इस वक्त में कोशिश कर रहा हूं की कही अच्छी नौकरी मिल जाएं। कुल मिलाके इतने मुश्किल वक्त से गुजर रहा हु की अब ज्यादा मन नही करता ऑनलाइन आने का।

वैसे काफी टाइम बाद आया तो देखा कहानी काफी आगे बढ़ गई हैं। और काफी सुखद रूप से आगे बढ़ी है तो पढ़कर अच्छा लगा। आपको लेखन शैली का तो के हमेशा से प्रशंसक हूं।

मेरे भाई - मुझे वाक़ई बहुत अफ़सोस है! कुछ सालों पहले जब मेरा बिज़नेस चौपट हुआ था, तब मेरी जो हालत हुई थी, वो मुझे ही पता है।
लेकिन उस समय मेरी पत्नी ने मुझे सम्हाला था... आपके ऊपर वो और भी समस्याएँ हैं!

आशा है कि आपकी माता जी की तबियत जल्दी ही ठीक हो जाए और आपको अपने कौशल के मुताबिक नौकरी मिल जाए!
उसके पहले आपका स्वास्थ्य सुधारना आवश्यक है - कृपया आप स्वयं पर ध्यान दें - स्वास्थ्य लाभ लें! जल्दी ठीक हो जाएँ! यही ईश्वर से मेरी प्रार्थना है।

इस कठिन समय में यदि इस कहानी ने आपके चेहरे पर एक बार भी मुस्कान लाई है, तो समझिए मुझे मेरा पारितोषिक (मेहनताना) मिल गया!
उम्मीद है कि शीघ्र ही आप अनेकों ख़ुशख़बरियों (आपका स्वस्थ्य लाभ, आपकी माता जी का स्वास्थ्य लाभ, आपकी नौकरी - और ५०% इन्क्रीमेंट के साथ) के साथ मुझसे बात करेंगे :)
 

Lutgaya

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काम बहुत है भाई!
लेकिन एक छोटा सा अपडेट दिया है :)
छोटे ने तो कमाल कर दिया भाई ।
आज़ काफी दिनों बाद पुनः आपकी कहानी पढनी शुरू की है । आन्न्द आ गया भाई।
आप प्र ति लि पि जैसे प्लेटफार्म पर भी लिखें तो सोने पे सुहागा जैसे हो जाए।
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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छोटे ने तो कमाल कर दिया भाई ।
आज़ काफी दिनों बाद पुनः आपकी कहानी पढनी शुरू की है । आन्न्द आ गया भाई।
आप प्र ति लि पि जैसे प्लेटफार्म पर भी लिखें तो सोने पे सुहागा जैसे हो जाए।

धन्यवाद भाई जी! साथ में बने रहिए - वैसे भी गिनचुन कर पाँच छः की पाठक हैं।
जो बिना कमेंट / रियेक्ट किये पढ़ते हैं, मैं उनको अपने पाठकों में नहीं गिनता - वो नाशुक्रा चोर हैं।
उनसे कोई मतलब नहीं है मुझे। लेकिन, जो थोड़ा रुक कर, समय निकाल कर अपने मन की बातें साझा करते हैं, वो ही मेरी कहानियों के सच्चे शुभचिंतक हैं!
प्र ति लि पि के बारे में मुझे नहीं पता - देखता हूँ!
वैसे कहीं और तब ही लिखूँगा जब कुछ $$ या लाभ मिलें! बेगारी करना झेलाऊ काम है दादा।
 

Lutgaya

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धन्यवाद भाई जी! साथ में बने रहिए - वैसे भी गिनचुन कर पाँच छः की पाठक हैं।
जो बिना कमेंट / रियेक्ट किये पढ़ते हैं, मैं उनको अपने पाठकों में नहीं गिनता - वो नाशुक्रा चोर हैं।
उनसे कोई मतलब नहीं है मुझे। लेकिन, जो थोड़ा रुक कर, समय निकाल कर अपने मन की बातें साझा करते हैं, वो ही मेरी कहानियों के सच्चे शुभचिंतक हैं!
प्र ति लि पि के बारे में मुझे नहीं पता - देखता हूँ!
वैसे कहीं और तब ही लिखूँगा जब कुछ $$ या लाभ मिलें! बेगारी करना झेलाऊ काम है दादा।
Aap try to kijiye
 

Lutgaya

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अंतराल - समृद्धि - Update #5


आज का इतना अद्भुत, इतना नाटकीय होगा, यह मैंने सपने में भी नहीं सोचा था। जिस लड़के को मैंने एक समय स्वयं पिता समान प्रेम दिया था, आज मैंने उसको ही अपना बाप बना लिया था। इस उम्र में भी शायद मुझे अपने भरे पूरे परिवार की तलाश थी। वो आज पूरी हो गई थी। मैंने एक बात नोटिस करी - जहाँ एक तरफ मेरे हाथ से कुछ जा रहा था, वहीं दूसरी तरफ मेरे हाथ में कुछ बहुमूल्य आ भी रहा था। लेन-देन के लहज़े में देखेंगे, तो मैं लगातार फायदे में ही था - वो अलग बात है कि हर व्यक्तिगत नुकसान पर मेरा रोना धोना होता था।

लेकिन अब नहीं! अब मेरे साथ मेरा पूरा परिवार खड़ा है। अब तो बस, आगे की ही सुध लेनी है।

रात्रि भोजन बड़ा आनंदमय रहा। मेरे नए पापा ने मुझे बड़े मान से, और प्रेम से खिलाया। सच में, उनको ऐसे व्यवहार करते देख कर कभी भी ऐसा नहीं लगा कि वो मुझसे उम्र में छोटे हैं। इतनी मैच्योरिटी है उनके अंदर! डिनर बड़ा शानदार था। माँ के हाथों का खाना वैसे भी प्रसाद जैसा स्वादिष्ट होता है। खाने की टेबल पर पापा तरह तरह के चुटकुले सुना रहे थे, जो ‘डैड जोक’ वाली केटेगरी के थे। न जाने क्यों वो मुझे बड़े पसंद भी आ रहे थे।

खाना समाप्त कर के मैं और पापा थोड़ी बातचीत करने बालकनी में बैठ गए, और माँ बच्चों को सुलाने में व्यस्त हो गईं। मैंने फिर से एक बड़ा मकान लेने की पेशकश करी। इस बार पापा मेरे विचार को ले कर अधिक ग्रहणशील थे। उन्होंने एक दो स्थानों के नाम भी लिए कि यहाँ बड़े, नए, और सस्ते मकान मिल सकते हैं। हम यही बातें कर रहे थे कि माँ भी हमारी बातों में शामिल हो गईं। उन्होने भी इस विचार कर अनुमोदन किया। लेकिन वो चाहती थीं कि वो अपनी सासू माँ के पास रहें, जितना संभव हो।

पापा ने कारण पूछा तो माँ ने कहा, “जब अम्मा को अगला बच्चा होगा, तो उनको मदद करने में आसानी रहेगी।”

“थॉट तो अच्छा है जान,” पापा ने कहा, “लेकिन उनकी आलरेडी एक बहू है! वो नहीं कर लेगी उनकी देखभाल?”

“हाँ, जैसे नई बहू, इस पुरानी बहू से ज्यादा देखभाल कर लेगी उनकी!”

“नहीं नहीं...” पापा ने डिफेंसिव होते हुए कहा, “ऐसा मैंने कब बोला?”

“तो क्या कहना चाहते थे आप?”

“अरे... कुछ नहीं,” पापा ने बात बदल दी - उन दोनों को ऐसे मिठास से मज़ाकिया झगड़ा करते देखना भी कितना सुखद था - पापा ने कहा, “लेकिन उनकी देखभाल तो तुम ही सबसे अच्छी कर सकती हो। लेकिन मुझे लगता है कि इस मंशा के पीछे तुम्हारा अम्मा के दूध का लालच अधिक है!”

“हाँ! वो भी है!” माँ ने बड़ी नटखट अदा से स्वीकारा।

“लेकिन माँ,” मैंने शंका जताई, “काजल के हस्बैंड - मतलब सत्यजीत - इस बात के लिए राज़ी हो जाएँगे?”

“उसकी चिंता मत करो बेटे,” पापा ने कहा, “अम्मा ने सत्यजीत को हमारे परिवार के हर सच को बता रखा है।”

“मतलब...” मैं चौंका।

“हाँ,” पापा ने ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए कहा, “सही समझे! इसी ईमानदारी, इसी सच्चाई पर ही तो सत्यजीत इम्प्रेस हो गए हैं अम्मा से! प्यार के साथ साथ जब सच्चाई भी मिलती है न, तो यह सारी बातें छोटी हो जाती हैं। कम से कम सत्यजीत के लिए तो यही सत्य है!”

“कमाल है!” मुझे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था।

“होता रहे कमाल! झूठ की बुनियाद पर अम्मा को अपना घर नहीं बसाना था।”

पापा ने बड़े ही आश्वास तरीके से कहा - जैसे सब कुछ तय हो गया हो। शायद हो भी गया हो। मैं शायद केवल खानापूरी करने जा रहा था कल। लेकिन अच्छा है - सभी से मुलाकात तो हो जाएगी।

पापा ने अचानक ही घड़ी पर नज़र डाली।

“अरे, बड़ी रात हो गई है!” उन्होंने कहा, “अमर बेटे, आज रात “तुम अपनी माँ के साथ ही सो जाना... तीनों बच्चे साथ में!”
“और आप...?”

“हमारी चिंता न करो बेटे!” उन्होंने कहा, “एक लम्बे अर्से के बाद मौका मिला है... एक बार हम दोनों को भी तुमको दुलार करने का मौका दे दो!”
पापा की इस बात पर न जाने क्यों मैं शर्मा गया।

“सुनिए जी,” माँ ने कहा, “जब तक मेरा बड़ा बेटा यहाँ है, मैं उसको अपना दूध पिलाती रहूँगी!”

“क्या माँ!” मैं इस बात से और भी अधिक शर्मा गया।

“अरे बेटे, इसमें क्या शर्माना? ये दोनों बच्चे भी तो पीते हैं न!” पापा ने कहा, “अभी कल रात को ही तुम्हारी माँ कह रही थीं कि बेटू को अपने पास सुलाए, और अपना दूध पिलाए बहुत लम्बा समय हो गया है!”

“आपका क्या होगा?” मैंने उनको छेड़ा।

“मेरा? क्यों मुझे क्या हो गया?”

“आपको अच्छी नींद आ जाएगी?” मैंने उनको छेड़ना जारी रखा।

“दो एक रोज़ नहीं पियूँगा, तो क्या हो जायेगा?” उन्होंने कहा, “मैं तो इसी लिए पी रहा था कि जब मेरा बड़ा बेटा आए, तब उसके लिए कमी न हो!”

“अरे वाह वाह!” माँ ने उनकी खिंचाई करी, “कितना बड़ा काम कर रहे थे आप!” फिर मेरी तरफ मुखातिब हो कर, “आजा मेरा बेटू,” माँ तो जैसे तैयार ही खड़ी थीं, “दोनों बदमाश सो गए हैं... आ कर सो जा!”

“हाँ बेटा,” पापा ने भी उठते हुए कहा, “अच्छी नींद ले लो। सवेरे जाना है वहाँ। शनिवार को ट्रैफिक अधिक रहता है उस तरफ, इसलिए थोड़ा जल्दी निकल लेंगे!”

“ठीक है पापा,” मैंने कहा, “गुड नाईट!”

मुझे उस पल कुछ अलग सा लगा। मेरे पिता के रूप में सुनील का होना एक सुकून भरा एहसास था, और मुझे लग रहा था कि यह एहसास भविष्य में बहुत सुखदायक होने वाला था। अंततः मेरे सर पर अपनी माँ और अपने पिता दोनों का प्यार था, जो कि आनंददायक अहसास है! हमारे परिवार में रिश्तों के एक अनूठा फेरबदल हो गया था, और यह जो नया रूप निकल आया था, वो मुझे बहुत पसंद आ रहा था।

**

उनके कमरे में कोई अन्य बिस्तर तो लगा नहीं हुआ था, इसलिए मुझे माँ के ही साथ लेटना था।

“माँ... आर यू श्योर?”

“क्या हो गया?”

“यही कि आप और पापा... अलग अलग...?”

“अरे, वो सब मत सोचो!” माँ ने बिस्तर पर बैठते हुए कहा, “जब तुम अपने माँ पापा के पास रहो, तो नन्हे बच्चे बन कर रहो। तुमको प्यार करने के लिए हम तरस गए हैं।”

मैं अचानक ही तीस बरस पहले चला गया। जब मैं छोटा सा था, और डैड और माँ के साथ सो जाता था। पहले पापा, और अब माँ की बात पर वैसी ही फीलिंग आई! मैंने माँ को देखा।

“आओ बेटू...” उन्होंने अपने बगल बिस्तर पर थपथपाते हुए कहा, “यहाँ मेरे बगल लेटो! बहुत जगह है। दोनों बच्चे सो रहे हैं, और पाँच छः घंटे के बाद ही उठेंगे! इसलिए आराम से सो जाओ!”

मैं बिस्तर पर आने लगा, तो माँ ने टोका, “कुछ भूल नहीं रहे?”

“क्या माँ?” मैं चकराया, ‘क्या भूल गया’?

“क्लोथ्स ऑफ,” माँ ने मेरे कपड़ों की तरफ इशारा किया, “मेरा बेटा मुझे नंगू नंगू चाहिए... बाकी बच्चों के ही जैसे...”

“क्या माँ!”

“अरे! अब हमसे क्या शर्माना? मैं तुम्हारी माँ हूँ, और ये तुम्हारे पापा!”

“हाँ, तो मैंने भी कब इस बात से इंकार किया?”

“थैंक यू!” माँ ने उत्तर में कहा। उनके चेहरे पर प्रसन्नता साफ़ झलक रही थी। उनके पति को मैंने इतना ऊँचा दर्जा दे दिया था, और उसके लिए माँ बहुत ही खुश थीं, “तो फिर हिचक क्यों?”

“कोई हिचक नहीं है माँ... कोई नहीं है!” कह कर मैं अपने कपड़े उतारने लगा, और कुछ ही पलों में पूर्ण नग्न हो कर उनके सामने खड़ा हो गया।

“मेरा सुन्दर बेटा...” कह कर माँ ने मेरा माथा चूम लिया।

माँ मुझे नज़र भर के ऐसे देख रही थीं कि जैसे वो अपनी ही कृति का अवलोकन कर के मुग्ध हो रही हों। उनका तो ठीक था, लेकिन माँ के सामने यूँ नग्न खड़े होने से मेरे लिंग में स्तम्भन आने लगा।

“ये क्या हो रहा है,” माँ ने मुझे मज़ाकिया अंदाज़ में डाँटा, “बदमाश कहीं का!”

“सॉरी माँ! बहुत दिनों के बाद ऐसे हुआ हूँ न...”

“कोई बात नहीं बेटे! आई अंडरस्टैंड!” उन्होंने मेरे लिंग को पकड़ कर उस पर हल्का सा चुम्बन ले लिया, “मैं और तुम्हारे पापा ‘इसका’ ख्याल वाली भी ढूंढ रहे हैं तुम्हारे लिए!”

“ओह माँ!”

“अरे माँ हूँ! मेरा मन नहीं करता कि मेरे बेटे का संसार भी भरा पूरा रहे?” माँ ने कहा, और बोलीं, “मेरा राजा बेटा... आ जा!” और उन्होंने अपना कुर्ता उतार दिया। इस समय उन्होंने ब्रा नहीं पहनी हुई थी।

माँ के चूचकों के सिरों पर दूध रिस रहा था। अमृत की बूंदें उनके चूचकों के सिरे पर चमक रही थीं!

“क्या देख रहे हो, बेटू?” माँ ने कहा, “चिंता न करो! इनमें अभी भी दूध है… बहुत दूध बनता है मुझको! सोचो मत… आओ…”

मैं मुस्कुराया, और आगे बढ़ कर उनके चूचक को अपने मुँह में भर लिया। तुरंत ही अमृत रस मेरे मुँह गले और पेट को भरने लगा।

“ओह, बढ़िया!” माँ ने आह भर दी।

थोड़ी देर में माँ का वो चूचक कोमल हो कर मेरे मुँह में जैसे घुल गया। मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं और माँ का दूध पीता रहा... धीरे-धीरे... लगभग बूंद-बूंद करके! इतने ठहर के स्तनपान करने में अद्भुत आनन्द आ रहा था। थोड़ी देर में वो स्तन खाली हो गया। फिर उन्होंने दूसरा चूचक मेरे मुँह में भर दिया।

उस क्षण में कितनी सारी पुरानी यादें वापस लौट आईं! बचपन से जवानी तक माँ और डैड ने ऐसे ही प्यार से पाल पोस कर मुझको बड़ा किया था। और अब फिर से... मन में आया कि कुछ ऐसा हो जाए कि मैं यहीं अपने माँ और ‘पापा’ के साथ ही रह जाऊँ! जब स्नेह की वर्षा होने लगती है न, तब उसमें हमेशा भीगते रहने का मन होता है। बहुत सोच नहीं पा रहा था, क्योंकि मन में सुकून की ऐसी फीलिंग आ रही थी कि उसका वर्णन करना कठिन हो रहा है मेरे लिए।

मैं स्तनपान करता रहा, और माँ मुझे उसके लिए प्रोत्साहित करती रहीं, “आई लव यू, मेरे बच्चे। आज तुमने मुझे वो सुख, वो मान दिया है, कि मैं कह नहीं सकती! पियो... मेरी जान... मेरे लाल!”

मैं पीता रहा - धीरे धीरे! बूँद बूँद कर के! देर हो रही थी। माँ का दूध पीते हुए कब आँख लग गई, कुछ याद नहीं।

**

रात में जब मैंने बिस्तर पर जानी पहचानी हलचल महसूस करी, तो मैं जाग गया। बस जाग गया - लेकिन न तो आँखें खोलीं, और न ही उठ कर बैठा। मैंने महसूस किया कि पापा और माँ अपनी प्रणय-क्रिया में तल्लीन थे। कमरे में वही जीरो वाट का बल्ब जल रहा था, इसलिए उन्हें पता नहीं चल रहा होगा, कि मैं जाग गया हूँ। पापा बड़े उत्साह से माँ की योनि में अपना लिंग पंप कर रहे थे। दोनों को ही बड़ा आनंद आ रहा था, इसलिए उन दोनों का कराहना और गुर्राना बहुत स्पष्ट तरीके से सुनाई दे रहा था।

“आ…आह…आह… धीरे धीरे करिए ना! … बेटा जग जाएगा!” माँ कह रही थीं।

“अरे दुल्हनिया… कैसे धीरे-धीरे करूँ?” पापा उखड़ती हुई साँसों के साथ बोले, “तुम होती हो तो खुद पर काबू रखना मुश्किल हो जाता है।”

मैं उनकी बात पर हँसना चाहता था, लेकिन मैं केवल मुस्कुराया, और वो भी बिना कोई आवाज किए। ये तो मुझे मालूम ही था कि पापा हमेशा से ही माँ के दीवाने थे। अभी भी हैं! मैं इस बात से खुश था कि उनको अभी भी माँ इतनी आकर्षक और सेक्सी लगती थीं! उन दोनों के बीच प्रगाढ़ प्रेम के साथ साथ वासना की गर्माहट भी बनी हुई थी, और यह बहुत अच्छी बात थी।

“हा हा... आह... आह... इतने साल हो... आह... गए हैं हमारी शादी को,” माँ ने प्रेम क्रीड़ा का आनंद लेते हुए कहा, “अब तो अपने पर काबू रखना... आह्ह्ह... सीख लीजिए!”

“सीख लेंगे मेरी दुल्हनिया!” पापा ने कहा और पंप करना जारी रखा, “जब लण्ड खड़ा होना बंद हो जाएगा, तब वो भी सीख लेंगे! लेकिन तब तक तो झेलना पड़ेगा तुमको!”

‘हा हा! अगर ये बात है तो माँ को अगले कम से कम तीस पैंतीस साल तक ‘झेलना’ पड़ेगा पापा के साथ प्रणय!’

सम्भोग होता रहा, और सम्भोग के हर धक्के पर माँ विलाप करती रहीं, और विनती करती रहीं। लेकिन सम्भोग होता रहा। यह एक अच्छा, पुराने स्टाइल वाला सम्भोग था, जो एक पति, अपनी पत्नी को खुश करने, संतुष्ट करने की इच्छा से करता है...

“तीन तीन बच्चों के बाप हैं अब आप,” माँ ने पापा को चिढ़ाते हुए कहा, “इतनी बेकरारी अच्छी नहीं लगती है इस उम्र में!”

“इस उम्र में? हैं? अरे दुल्हनिया, अभी हमारी उम्र ही क्या हुई है? एक दो बच्चे और पैदा कर सकते हैं हम अभी तो!”

“हा हा हा!” माँ इस सुझाव पर खिलखिला कर हँसने लगीं।

“क्यों? कुछ कम कहा? चलो - एक दो नहीं, दो तीन कर लेंगे?” पापा ने और ज़ोर से धक्के लगाते हुए कहा।

“आह... आह... क्या बात है? ... आह... आज बड़े जोश में हैं आप?”

“क्यों न रहूँ दुल्हनिया? आज मेरे बेटे ने मुझे जो मान दिया है... मन में आ रहा है हम एक बार और मम्मी पापा बन जाएँ!”

माँ इस बात पर और हँसने लगीं, “हा हा… आप भी न! ये दोनों बच्चे, मेरी पोती से भी कम उम्र के हैं! और आपको अभी भी और बच्चे चाहिए? तीन बच्चे काफ़ी नहीं हैं!”

“जितने बच्चे हों, मुझे तो उतना ही अच्छा है! बाप का प्यार लुटाने पर कम थोड़े होता है!”

उनकी बात पर माँ ज़रूर मुस्कुराई होंगीं - उनकी आवाज़ कुछ क्षणों तक नहीं आई। फिर माँ बोलीं, “मेरी एक बड़ी इच्छा यही है कि मेरे अमर की फिर से शादी हो जाए! उसके और बच्चे हों!”

“हाँ न! मैं भी तो कब से यही सोच रहा हूँ! ऑफिस में मुझे एक दो लड़कियाँ पसंद तो आई हैं बेटे के लिए! लेकिन पता नहीं - उनको हमारा परिवार कैसा लगेगा!”

“आपको पसंद आई हैं, तो कुछ बात तो होगी न?”

“हम्म...” पापा ने धक्के लगाना जारी रखा, “अम्मा की शादी का काम पूरा हो जाय, तो उधर फोकस करता हूँ!”

“भरा पूरा परिवार सोच कर कितना अच्छा लगता है न?” माँ ने कहा।

“हाँ! है न? सोचो न दुल्हनिया, क्या पता, अम्मा की भी गोद फिर से भर जाए?”

“क्या पता क्या? बिलकुल भरेगी! मुझे पूरा यकीन है!”

कुछ और धक्कों की आवाज़ें आईं।

“मेरे बेटू की ज़िन्दगी में भी फिर से बहार आ जाए बस!”

“हाँ दुल्हनिया! कितना अच्छा होगा!”

“हाँ न! एक प्यारी सी बहू आ जाए जो इसको फिर से इतना प्यार दे, कि ये अपने सब दुःख भूल जाए!” माँ ने प्यार से कहा, “आपकी तरह ही अमर को भी बच्चे पसंद हैं! लेकिन... खैर, जब ईश्वर चाहेंगे...!”

मैंने अपने माथे और सर पर माँ की हथेली का प्रेम और ममता भरा स्पर्श महसूस किया।

“कितना भोला लगता है सोते समय...” माँ ने कहा, और मुझे प्यार से स्पर्श करना जारी रखा।

“सोते समय ही? मेरा बेटा हमेशा ही बहुत भोला है।” पापा ने कहा, “ऐसा बेटा भगवान सबको दें!”

“सच में जी!” फिर थोड़ा हँसते हुए बोलीं, “ये देखिए... किसी हसीन सपने में डूबा हुआ है आपका भोला बेटा...”

दोनों ने क्या देखा, कह नहीं सकता। लेकिन मुझे अगले ही पल पापा के भी हँसने की आवाज़ सुनाई दी। तब जा कर मैंने महसूस किया कि मेरा लिंग इस समय पूर्ण स्तंभित हो कर तन गया था। या तो उन दोनों की काम-क्रीड़ा की आवाज़ सुन कर, या फिर रात में सोते समय जो स्तम्भन होता है उसके कारण!

‘अरे यार! माँ तो ठीक हैं, लेकिन पापा के सामने भी यूँ नंगू!’ मन में विचार आया।

“भोला भी है, और तंदरुस्त भी!” पापा ने बड़े गर्व से कहा।

“बचपन में कितनी ही बार इसका छुन्नू ऐसे ही खड़ा हो जाता था... लेकिन इस भोलेबाबा को बहुत देर में जा कर समझ में आया कि ऐसा क्यों होता है। आज बहुत दिनों बाद फिर से देखी ऐसा होते हुए... ओह इसके बचपन की बातें!”

“मेरा बेटा है...” पापा ने बड़े गर्व से कहा।

“वो तो है!”

“नहीं दुल्हनिया! तुम बुरा मान जाओगी, और मेरा बेटा भी! लेकिन आपको सच सच कहूँ मेरी जान? हम दोनों जब भी प्यार करते हैं न... हर बार मेरा मन यही करता है कि काश, अमर मेरे बीज से पैदा हुआ होता।”

माँ ने कुछ कहा तो नहीं, लेकिन मुझे लगा कि पापा ने जो कुछ कहा था, वो उसको सुन कर मुस्कुराई अवश्य होंगी! पापा की यह लंबे समय से पल रही ‘गुप्त’ इच्छा थी!

“काश मैं तेरी प्यारी सी कोख में अपना बीज भरता, और उसके कारण अमर तेरे पेट में आता! और फिर... जैसे आज किया है न तूने दुल्हनिया... तू उसको मेरे सामने अपना दूध पिलाती…”

“पिलाया तो आपके सामने!”

“हा हा! हाँ दुल्हनिया! पिलाया तो! मेरी कही अनकही - हर इच्छा पूरी की है तूने! देवी हो तुम! माता जी का आशीर्वाद हो तुम... सच में दुल्हनिया, तू मुझे पहले मिली होती, तो हमारे ढेर सारे बच्चे होते!”

“हा हा हा... आई नो! वैसे, अभी भी कोई कम बच्चे नहीं हैं हमारे।”

माँ ने कहा। शायद इस बात पर पापा ने चुम्बनों की बौछार लगा दी।

“दुल्हनिया, मैं अपने अमर को सब कुछ सिखाता… पढ़ाता, लिखाता, उसके साथ खेलता… उसको खूब प्यार करता! खूब ज्यादा…”

“आह्ह्ह्ह…” माँ के गले से ज़ोर की कराह निकल गई।

शायद पापा ने कुछ ज्यादा ही शक्तिशाली धक्का लगा दिया!

“तुमको मेरी बातें बेवकूफी भरी लगती हैं न दुल्हनिया?”

“नहीं नहीं! आपको ऐसा क्यों लगा?” माँ ने उनको चूम लिया, “मुझको तो ये बहुत स्वीट बातें लगती हैं!” माँ ने प्रसन्नतापूर्वक कहा।

कुछ देर तक उन दोनों ने शांत रह कर मैथुन किया। फिर माँ ने ही चुप्पी तोड़ी, “आप कब आओगे? मेरा तो दो बार हो चुका...”

पापा ने उत्तर में उनको चूमा, “उंगली से जो किया था, वो काउंट नहीं होगा।”

“नहीं, उसके बाद दो बार हो गया!” माँ ने हाँफते हुए कहा।

“अच्छा! बस बस, आ ही गया।”

पापा ने पाँच या छः और धक्के लगाए, तब जा कर उनका भी स्खलन हुआ।

‘सही है यार!’ मैंने सोचा, ‘इस उम्र में भी माँ को सम्भोग का ऐसा आनंद, ऐसी संतुष्टि मिल रही थी!’

पूरी तरह स्खलित होने तक पापा माँ को चूमते रहे, और फिर बोले, “मज़ा आया दुल्हनिया?”

“बहुत!” माँ ने उनको चूमा, और बहुत संतुष्ट स्वर में कहा, “आप ये बात हमेशा पूछते हैं...” उन्होंने पापा को फिर से चूमा, “आपको पूछने की ज़रूरत नहीं... अभी तक एक बार भी ऐसा नहीं हुआ कि मजा ना आया हो...”

“दुल्हनिया, ये तो पति का धर्म होता है कि अपनी पत्नी को हमेशा संतुष्ट करे! मैं तो केवल सर्टेन करने के लिए पूछता हूँ!”

बिस्तर के हिलने से मैंने महसूस किया कि दोनों बिस्तर से उठ गए थे - शायद बच्चों को देखने के लिए, या पानी पीने! जब दोनों वापस लौटे, तो आदर्श माँ की गोद में था। उसको कुछ देर दूध पिला कर वापस उसके पालने में सुला दिया गया। इस समय पापा माँ के बगल ही लेते हुए थे, लेकिन कुछ इस तरह कि मेरे लिए जगह की कोई कमी नहीं थी। शायद दोनों एक दूसरे से गुत्थम गुत्थ हो कर लेटे हुए थे।

लगभग पाँच मिनट के बाद, मुझे फिर से चूमने की आवाज़ें सुनाई देने लगीं। जाहिर तौर पर, पिताजी ने उसके स्तनों को निचोड़ा जिसके परिणामस्वरूप दूध के फव्वारे निकले, क्योंकि माँ ने कहा,

“अरे! फिर से भर गए।”

“कोई बात नहीं... आदित्य को पिला दो?”

“अरे कहाँ... जब वो सोता है, तब उसको कुछ होश नहीं रहता।”

“क्या? कैसा बच्चा है!” पापा ने विनोदपूर्वक कहा, “अपने भैया से कुछ सीखता नहीं! बेकार लड़का!”

“आपका भी यही हाल था। और आपने तो कितना जल्दी छोड़ दिया था अम्मा का दूध!” माँ ने भी विनोदपूर्वक कहा, “वो तो मेरे कहने पर उन्होंने आपको जबरदस्ती पिलाना शुरू किया था!”

“समझाना पड़ेगा आदित्य को! अगर अपने पापा और भैया जैसा नुनु चाहिए, तो मम्मा का दुद्दू पीते रहना चाहिए!”

“आप लड़के लोग और आपने नुनु!” माँ हँसने लगीं, “हम औरतों पर जो आफत आती है वो?”

“मज़ा भी तो आता है न मेरी जान? आता है कि नहीं?”

“आता है, लेकिन रात भर जागना भी तो पड़ता है न!”

“मैं भी तो जाग रहा हूँ!” पापा ने कहा, फिर बोले, “बेटे को पिला कर देखो?”

“वो भी सो रहा है!” माँ ने कहा और प्यार से मेरे बालों को सहलाया।

“दुल्हनिया, बच्चों के होंठों पर जब निपल्स छूते हैं, तो वो उनको अपने आप ही पहचान लेते हैं! इंस्टिंक्टस हैं ये सब!”

“हा हा! अच्छा जी? बड़ा नॉलेज है आपको? शैतानों के बाप!” माँ ने हँसते हुए कहा, “अच्छा ठीक है… ज़रा लाइट तो जला दीजिए न?”

मैं सतर्क हो कर सोने का नाटक करने लगा। पापा फिर उठे और कमरे की बत्ती ऑन कर आए। ये भी कम वाटेज वाला बल्ब था, लेकिन मंद प्रकाश भी कमरे को रोशन करने के लिए पर्याप्त था। माँ ने अपने स्तंभित हुए एक चूचक को मेरे मुँह पर छुआया। इस क्रिया में मुझे आनंद तो आया, लेकिन मैंने अपने होंठ नहीं खोले।

“थोडा ठीक से डालो। उसे पता भी तो चलना चाहिए न।” पापा ने सुझाया।

तो, माँ ने अपने चूचक से मेरे गाल को सहलाया और मेरे होठों के बीच उसको सटा कर दबा दिया। दूध की कुछ बूँदें मेरे मुँह में जा गिरीं। मैंने अब इस प्यारे खेल में भाग लेने और माँ की स्तनपान कराने की इच्छा पूरी करने का फैसला किया। मैंने अपना मुँह खोला और माँ का चूचक गृहण कर लिया। और स्तनपान करने लगा।

“देखा!” पापा बोले, “मैंने कहा था न? बच्चों को दूध की पहचान होती है!”

“हा हा!”

“बहुत सुन्दर है मेरा बेटा...” पापा बोले, “आई ऍम वैरी प्राउड!”

“आज आप बहुत खुश हैं!” माँ बोलीं।

“बहुत बहुत खुश दुल्हनिया!”

“मैं भी... अमर ने आपको जो आदर दिया है, वो अनमोल है।” माँ ने कहा, “इतने सालों की तमन्ना पूरी हो गई आज।”

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बहुत ही अस्वीकार्य से दृश्य दिखाई दे रहे हैं इस अपडेट में, सुनील पापा बन गया अमर का। काजल की शादी वो भी अमर के अलावा किसी अन्य से, बडी नांइसाफी कर दी बडे भाई।
 
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