नींव - पहली लड़की - Update 5
हमारी अंतिम बोर्ड परीक्षा ख़तम होने के एक दिन बाद रचना मेरे घर आई। परीक्षाओं के बाद वो जब भी घर आती थी, तो सवेरे ही आ जाती थी, और लगभग शाम होने तक हमारे ही यहाँ रहती थी। उसकी मम्मी भी कहती थीं कि समझ नहीं आता कि रचना का घर कौन सा है! तो उस दिन भी रचना मेरे घर पर थी। लंच के कुछ ही देर बाद का समय था। उत्तर भारत में गर्मी के मौसम में हवा और तापमान बहुत ही जल्दी बहुत गर्म हो जाता है। तो उस दिन भी बहुत गर्मी थी। मेरी माँ ने उस दिन बहुत ही स्वादिष्ट खाना पकाया था। रचना माँ के हाथ के खाने की बहुत बड़ी फैन थी। माँ कुछ भी बना दें, रचना को वो सब खाना ही खाना था। तो हमने अभी अभी खाना खाया था, तो उसके और गर्मी के मिले जुले प्रभाव से मैं और रचना दोनों ही बहुत आलस महसूस कर रहे थे। हमने लंच ड्राइंग रूम में किया था : कमरे के सभी पर्दे खींचे हुए थे। गर्मियां तब भी गर्म होती थीं, लेकिन तब वैसा प्रदूषण नहीं था, जैसा कि अब है। उस गर्मी में पसीना आता था, थकावट होती थी, लेकिन फिर भी उस गर्मी में एक तरह का आनंद था। उस गर्मी में किसी पेड़ की छाया में बैठ जाने से ही बहुत राहत हो जाती थी। बस लू से बचना होता था, और उससे बचने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी पी लेना ही काफी था। बढ़ते प्रदूषण के कारण आज कल की गर्मी तो बर्दाश्त ही नहीं हो पाती।
ड्राइंग रूम में हम तीनों ने कुछ देर तक कैरम खेला (माँ और रचना एक टीम में थे, और मैं अकेला)। हम कुछ समय तक खेले, लेकिन जल्द ही यह खेल भी उबाऊ हो गया। माँ भी जल्दी हो ऊब गईं और हम सब के लिए बेल का शरबत बनाने चली गईं। पिताजी ने हाल ही में एक रेफ्रिजरेटर खरीदा था, और उसके उत्साह में माँ इसका अधिक से अधिक उपयोग करना चाहती थीं। तो अब हमको गर्मियों में बर्फ और ठंडा पानी मिल जाता था... दूध, दही, और खाना अधिक समय तक रह जाते थे। उन दिनों बिजली की आपूर्ति बेहद ही ग़ैरभरोसेमन्द थी - कभी कभी ही आती थी ... दिन में बारह घण्टे तक बिजली नहीं रहती थी। आप बिजली की आपूर्ति पर भरोसा नहीं कर सकते, खासकर गर्मियों के दौरान।
“अरे यार! कितनी गर्मी है!” रचना बोली, “आज तो कमरे में भी दिक्कत हो रही है!”
“हाँ यार! बहुत गर्मी है... अभी तो और गर्मी बढ़ेगी।” मैंने रचना की बात से सहमति जताई, “और दो महीने में तो उमस भी बढ़ जाएगी।”
“हाँ... हे! मैं कपड़े उतार दूँ?” वह शरारत से फुसफुसाई।
“क्या! पागल है तू! माँ यहीं हैं, घर पर ही। सोचा कि तुमको याद दिला दूँ!”
“हाँ हाँ। याद है मुझे। तू डरता बहुत है। तुम्हारी माँ बहुत अच्छी हैं! मुझे तो लगता है कि वो हमें कुछ नहीं कहेंगीं। मुझे तो लगता है कि वो इस बात को एक मज़ाक के तौर पर लेंगीं …” रचना ने कहा, और फिर सोच कर बोली, “मैं ही क्या, तू भी नंगा हो जा। वो हम दोनों को साथ में नंगा नंगा देखेंगी, तो उनको और हँसी आएगी। क्या कहता है?”
“तू मरवाएगी मुझे अपने साथ साथ! माँ हमको डाँटेंगी... डाँटेंगी क्या, मुझे तो लगता है कि शायद वो हम दोनों को पीट भी देंगी। इससे भी बदतर यह होगा कि वो डैडी से से हमारी इस हरकत की शिकायत भी कर देंगी!”
“ऐसा कुछ नहीं होगा। ट्रस्ट मी! मुझे तुम्हारी माँ का व्यवहार तुमसे ज्यादा समझ में आता है। वो हम दोनों से प्यार करती हैं और मुझे तो लगता है कि वो खुश होंगीं!”
“तू मरवायेगी यार मुझे!”
“अरे डर मत! इतनी अच्छी माँ हैं तेरी, लेकिन फ़िर भी इतना फट्टू है तू! चल, मेरे साथ साथ तू भी अपने कपड़े उतार दे।”
अब मैं पशोपेश में पड़ गया। माँ के सामने नंगा होना कोई बड़ी बात नहीं थी। रचना के सामने नंगा होने में भी दिक्कत नहीं थी। लेकिन हम दोनों उनके सामने ऐसे? मन में मुझे लग रहा था कि माँ को कोई आपत्ति नहीं होगी, लेकिन फिर भी न जाने क्यों यह एक बहुत बड़ा जोखिम लग रहा था। अगर माँ नाराज़ हो गईं तो? अगर उन्होंने इस बात की शिकायत डैडी से या रचना के माँ-बाप से कर दी तो? अगर डैडी नाराज़ हो गए तो बहुत मार मारेंगे! काम जोखिम भरा तो था, लेकिन अगर माँ ने कोई आपत्ति नहीं की और उनको हँसी आए, तो यह सब करने योग्य था। रचना मुझे देखते हुए अपने कपड़े उतार रही थी। पिछली बार उसको नंगा देखे कुछ समय हो गया था, और मुझे उसको फिर से पूरी तरह से नग्न देखने की इच्छा थी। तो, माँ और हमारे बीच की अंतरंगता को कुछ और कदम नज़दीक लाने की जिज्ञासा ने मुझ पर काबू पा लिया, और मैं भी अपने कपड़े उतारने लगा। कुछ ही देर में हम दोनों पूरी तरह से नग्न हो गए। फ़र्श ठंडी थी - हमने कैरम बोर्ड को ज़मीर पर रख दिया, और ज़मीन पर पालथी मार कर बैठ गए। चूतड़ों को ठंडक लगी, तो शरीर का बढ़ा हुआ तापमान थोड़ा कम हुआ।
बेशक, अब जो भी कुछ होने वाला था, उसकी प्रत्याशा में मैं उत्साहित था और परिणामस्वरूप, मेरा लिंग थोड़ा थोड़ा खड़ा होने लगा। मेरी हालत देख कर रचना हँसने लगी, लेकिन उसने कुछ कहा नहीं। जब माँ शर्बत के गिलास लेकर कमरे में आईं, तो हम दोनों को पूरा नंगा देखकर वाकई हैरान रह गईं। लेकिन, मुझे हैरानी इस बात पर हुई कि वो ‘केवल’ हैरान हुईं थीं, चौंक नहीं गईं थीं। माँ की प्रतिक्रिया ऐसी थी जैसे हमने जो भी कुछ किया, वो बहुत सामान्य सी बात हो,
“अरे! ये क्या?” माँ ने कहा, “बहुत गर्मी लग रही थी क्या?”
“जी आंटी!”
“हाँ, आज है भी बहुत गर्मी! लाइट भी चली गई है। अमर, पर्दे खोल दो। थोड़ी हवा ही आ जाएगी!”
“ठीक है माँ,” मैंने कहा और परदे खोल दिए।
घर के सामने आँगन में अमरुद के दो घने पेड़ लगे हुए थे। परदे खोल तो दिए, लेकिन हवा बिलकुल स्थिर थी। इसलिए गर्मी से कोई लाभ नहीं हुआ।
“कोई बात नहीं,” माँ ने हमको शरबत के गिलास थमाते हुए कहा, “ये पियो, थोड़ी राहत मिलेगी।”
सच में, बेल का शरबत पीते ही गले और शरीर में तरावट आने लगी।
“आंटी, ये शरबत भी आपकी ही तरह स्वीट है!” रचना ने माँ पर मक्खन मारा, “मेरा तो मन होता है कि मैं यहीं रहूँ! आपके साथ! पूरा दिन, पूरी रात!”
“हा हा हा!” माँ उसकी बात पर हँसे बिना न रह सकीं, “तो रहो न! किसने मना किया है?”
“मम्मी ने! वो तो अभी से कहने लगीं हैं कि समझ नहीं आता कि मेरा घर कहाँ है - यहाँ, या वहाँ!”
“तुम्हारी मम्मी सोंचती बहुत हैं।” माँ ने प्यार से कहा, “वैसे तुम दोनों ऐसे बहुत प्यारे लग रहे हो।”
“सच में आंटी?” रचना अपने दाँत निपोरते हुए बोली, “ये अमर तो बोल रहा था कि आप हमको ऐसे देखेंगी, तो हमारी बहुत पिटाई करेंगी!”
“अच्छा? मैंने कब तेरी पिटाई करी अमर?”
“कभी भी नहीं, माँ! आपने तो मेरे कान भी नहीं उमेठे कभी, और न ही कभी डाँटा!”
“सच में आंटी?”
माँ बस मुस्कुरा दीं।
“और मेरा तो कोई दिन नहीं जाता जिस दिन मुझे मम्मी से, या डैडी से, या दोनों से डाँट न पड़े! गनीमत यह है कि अब मैं जवान हो गई हूँ कर के मेरी पिटाई नहीं करते वो!”
रचना की बात सुन कर माँ मुस्कुराते हुए बोलीं, “जवान तो तू हो गई है बेटा! जवान और खूब सुन्दर!” और रचना के गालों को प्यार से सहलाया। रचना उनकी इस प्यार भरी हरकत पर खुश हो गई।
“रचना जवान हो गई है क्या माँ? कैसे?”
“अरे तू निरा बुद्धू ही है! ये देख न, कितने सुन्दर सुन्दर दूध हैं मेरी बिटिया के!” कहते हुए माँ की नज़र उसकी योनि पर भी पड़ी। रचना बस मुस्कुरा दी। लेकिन उसके गाल शर्म से लाल हो गए थे।
“माँ, मैं जवान हुआ हूँ या नहीं?”
“हाँ मेरे लाल, तू भी जवान हो गया है!”
माँ की बात सुन कर रचना खिलखिला कर हंसने लगी। मैंने उसके हंसने पर बुरा सा मुँह बनाया।
“कितनी प्यारी सी बच्ची है!” माँ ने हमारी हरकतों को नज़रअंदाज़ करते हुए कहा, “तू जिसके पास जाएगी, वो कितना भाग्यशाली होगा!”
“मैं किसके पास जाऊँगी, आंटी जी?” रचना को माँ की बात समझ में आ गई थी, लेकिन फिर भी वो विनम्र होने का दिखावा कर रही थी।
“अरे, जिसकी तू बीवी बनेगी, वो - वो बहुत लकी होगा। और तू किसी दिन एक बहुत अच्छी माँ भी बनेगी!”
“वो क्यों माँ?” मैंने पूछा।
“कितनी सुन्दर, कितनी सुशील है, इसलिए! बेटा, रचना का व्यवहार अच्छा है, और वो बहुत ही अफेक्शनेट लड़की है... और बच्चों को बड़ा करने के लिए बहुत प्यार चाहिए!”
मैं मुस्कुराया। माँ की बात तो सही थी - माँ और डैडी ने मुझे प्यार से सराबोर कर के पाला पोसा था और बड़ा किया था। माँ भी मुस्कुराईं,
“जब रचना बिटिया को बच्चे होंगे न, तो इनमें से ढेर सारा दूध निकलेगा,” माँ ने हल्के से उसके स्तनों को छू कर कहा।
अब यह मेरे लिए एक दिलचस्प बात थी। मतलब माँ बनने पर ही दूध आता है! इंटरेस्टिंग! मैं यह जानता था कि माँ के स्तन, रचना के स्तनों से बड़े थे। तो क्या माँ के स्तन मेरे पैदा होने के कारण बड़े हुए थे? क्या रचना भी जब माँ बनेगी, तो उसके स्तन भी माँ के स्तनों के जैसे ही बड़े हो जाएंगे? मैंने पूछ लिया।
अपने स्तनों के बारे में इस खुली चर्चा से रचना थोड़ी शर्मिंदा तो हुई, लेकिन इस सब के लिए उसे ही दोषी ठहराया जाना चाहिए। किसने कहा था कि नंगी हो कर बैठो?
माँ बोलीं, “बिलकुल हो सकता है। अधिकतर औरतों के दूध बच्चा होने पर थोड़े तो बढ़ ही जाते हैं। और मुझे लगता है कि रचना बिटिया के दूध मुझसे बड़े हो जाएँगे। जब मैं उसकी उम्र की थी, तब मेरे उससे छोटे थे!”
“क्या सच में आंटी?” रचना के साथ साथ मैं खुद भी यह सुन कर हैरान रह गया।
“हाँ बेटा!
मैंने कभी माँ के बारे में उनकी उम्र के लिहाज से नहीं सोचा। माँ सिर्फ माँ थीं मेरे लिए। लेकिन उनकी बात ने मेरा दृष्टिकोण थोड़ा बदल सा दिया।
“माँ, तो क्या रचना के बच्चे भी हो सकते हैं अभी?” मैंने एक और प्रश्न पूछा।
माँ ने रचना को देखा, रचना ने शर्म से मुस्कुराते हुए अपनी नज़रें झुका लीं। माँ स्नेह से मुस्कुराईं। हम तीनों में से मैं ही सबसे मूर्ख था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि दोनों के बीच आँखों ही आँखों में क्या बातें हो गईं।
“हाँ! जवान होना और किसे कहते हैं?” माँ मुस्कुराई।
यह एक आश्चर्यजनक खबर थी! ‘क्या बात है! रचना के बच्चे हो सकते हैं!’ यह एक बड़ी बात थी। यह जान कर रचना के लिए मेरा सम्मान कई गुना बढ़ गया। कितनी अद्भुत बात थी... है ना? मुझे यह भी जान कर अच्छा लगा कि वो कई बातें जिन्हें हम इन दिनों वर्जित मानते हैं, मैं अपने माँ और डैड के साथ उन बातों पर चर्चा कर सकता था। मुझे तो लगने लगा था कि उनके लिए कोई विषय वर्जित नहीं था और न ही है। वे बस इतना चाहते थे कि उनका परिवार सुरक्षित रहे। बस इतना ही। उन्होंने मुझे कुछ भी करने से कभी नहीं रोका। पालन पोषण के उनके इस तरीके का मुझ पर न तो कोई बुरा प्रभाव पड़ा, और न ही हमको किसी तरह का नुकसान हुआ।
“रचना, जब तुम्हारे पास दूध होगा, तो मैं भी पियूँगा!” मैंने रचना से कहा।
“लेकिन बेटा, उसके लिए रचना को पहले माँ बनना होगा!” रचना के कुछ भी कहने से पहले माँ ने मेरा जो संदेह था, उसको यकीन में बदल दिया।
“ओह! ऐसा क्या?”
“ऑन्टी जी, अमर को तो यह भी नहीं मालूम कि बच्चे कैसे पैदा होते हैं!” रचना ने मुझे चिढ़ाया - आखिर में उसको मेरे ज्ञान पर अपनी श्रेष्ठता दिखाने का मौका मिल ही गया। लेकिन मैं मैदान ऐसे कैसे छोड़ दूँ? मैंने अपने कुतर्क से उसको पहले भी निःशस्त्र किया था, तो अब भी कर सकता था।
“माँ, वह कहती है कि जब मेरी छुन्नी उसके चीरे के अंदर जाएगी, तभी उसको बच्चे होंगे!” मैंने अपनी शर्मिंदगी को छिपाने की कोशिश कर रहा था। मुझे अभी भी यकीन था कि उसकी जानकारी निराधार थी।