नींव - पहली लड़की - Update 9
डैड मुस्कुराए और माँ को पकड़ कर चूमने लगे। मुझे यह देख कर बहुत अजीब सा लगा - अलग सा। मैं हमेशा सोचता था कि माँ मेरी हैं; लेकिन स्पष्ट बात थी कि मेरी माँ सिर्फ मेरी नहीं थीं। वो मुझसे पहले मेरे डैड की थीं, और जीवन पर्यन्त उनकी रहेंगीं। थोड़ा और सोचने पर लगा कि माँ मेरी कम और डैड की ज्यादा हैं! खैर, डैड ने माँ की मैक्सी उतार दी, और इस समय वो बहुत प्यार से उनके स्तनों को चूमने में व्यस्त थे। फिर वो माँ के भगांकुर के साथ कुछ देर तक खिलवाड़ करते रहे। फिर उन्होंने उनकी योनि में दो उँगलियाँ डाल कर बाहर निकालीं,
“देखो बेटा, जब मैं तुम्हारी माँ की योनि के अंदर से अपनी उँगलियाँ निकालता हूँ, तो देख सकते हो कि वो अब पूरी तरह से गीली हो गई है। इसका मतलब है कि माँ अब कामुक हो गई है, और सेक्स के लिए रेडी हैं। अब मैं तुमको बेसिक मूव्स दिखाता हूँ।”
कह कर डैडी ने अपना लिंग माँ की योनि में डाल दिया और उनके अंदर बाहर होने लगे। वो दोनों कुछ ही देर में भूल गए कि मैं भी वहीं था, और उन दोनों की रंगरेलियाँ देख रहा था। अपनी कमर को माँ की योनि में ठोंकते हुए वो उनके स्तनों को भी चूस रहे थे। और जब वो चूस नहीं रहे होते, तो उँगलियों से माँ के चूचक मसल रहे होते। फिर वो एक दुसरे आसन में माँ से सम्भोग करने लगे - माँ अपने करवट में लेटी हुई थीं, और डैड भी करवट में ही लेट कर धक्के लगा रहे थे। यह करते हुए अचानक डैड ने मुझे देखा और फिर मुझे आँख मारी, जैसे यह कोई मज़ाकिया किस्सा हो। ख़ैर, करीब पाँच मिनट बाद माँ जोर-जोर से कराह उठी। इसी समय डैड भी आहें भरने लगे, और अजीब तरह से दो तीन और धक्के मारने के बाद माँ पर ही ढेर हो गए। जब दोनों थोड़ा संयत हुए तो साथ में हँसने लगे। और मैं सोच रहा था कि उन्हें क्या हो गया है!
“तो समझे बेटा कि सेक्स कैसे करते हैं?” डैड ने पूछा।
“यह तो बहुत उबाऊ लग रहा है!” मैंने ईमानदारी से कहा।
सच में - माँ और डैड के सेक्स करने का तरीका मुझे बिलकुल भी प्रभावशाली नहीं लगा। लेकिन इतना तो तय है कि दोनों को मज़ा आता है यह कर के! मेरी बात पर दोनों ज़ोर से हँसने लगे, और हँसते हँसते बिस्तर पर से लुढ़क गए।
“बोर नहीं लगेगा बेटा, जब तुम करोगे!” माँ ने मुझे आश्वासन दिया।
मैं माँ की इस बात से इत्तेफ़ाक़ नहीं कर पा रहा था। लेकिन मुझे यह बात ज़रूर मालूम थी कि मुझे अपनी माँ के स्तनों को चूसना बहुत अच्छा लगता है। मैं मुस्कुराते हुए माँ के पास गया, और उनके एक चूचक को चोरी से पीने लगा। माँ उस समय पसीने से तर हो कर, सम्भोग के आनंद सागर में, आँखे बंद किये हुए गोते लगा रही थीं। मुझे अचानक ही इस तरह स्तनपान करते देख कर वो हँस पड़ीं।
“तुम बाप, बेटे, और रचना, तुम तीनों मिल कर मेरी जान निकाल दोगे!”
यह सुनकर डैड भी मेरे साथ हो लिए और दूसरे स्तन को पीने लगे। और माँ बड़े प्यार और लाड़ से हमको पिलाने लगीं। मैं उस समय बहुत खुश था। न जाने कब आँख लग गई, याद ही नहीं! जब मैंने अपनी आँखें खोली तो देखा, कि माँ और डैड एक दूसरे की बाहों में लिपटे सो गए थे। मैं मुस्कुराया और दबे पाँव कमरे से बाहर निकल आया। बाहर आते आते मैंने उनके कमरे की किवाड़ लगा दी कि उनको कोई डिस्टर्बेंस न हो।
रोज़ की भांति रचना ने दरवाज़े पर दस्तक दी। वैसे तो रोज़ माँ ही दरवाज़ा खोलतीं, लेकिन आज मुझे देख कर वो बोली,
“माँ कहाँ हैं?”
“अरे, माँ की बेटी! कभी मुझसे भी मिल लिया कर!”
“हा हा हा! अरे मैं तो तुझसे भी तो मिलती हूँ! उनसे मेरा रिश्ता तुझसे ही तो है!”
मुझे रचना की बात समझ नहीं आई। लेकिन भोंदू होने के कारण मैंने कुछ पूछा नहीं।
“माँ डैड सो रहे हैं!”
“अच्छा! तो अंकल जी भी हैं?”
“हाँ! आज उन्होंने छुट्टी ली हुई है।”
“तबियत तो ठीक है न उनकी?”
“हाँ! बिलकुल ठीक है। उन्होंने मेरे कारण छुट्टी ली है।”
“तुम्हारे कारण? क्यों? क्या हो गया?!”
मैंने रचना को आज की मेरी यौन शिक्षा के बारे में बताया। वो मेरी बात सुन कर घोर आश्चर्यचकित थी। यह एक बहुत ही अलग सी बात थी, जिस पर भरोसा करना नामुमकिन था। लेकिन फिर मैंने उसको दबे पाँव माँ डैड के कमरे की तरफ़ आने को बोला, और उनके कमरे के दरवाज़े को थोड़ा सा खोल कर उसको अंदर देखने को कहा। अंदर का नज़ारा देख कर वो दंग रह गई। वो दोनों अभी भी एक दूसरे के आलिंगन में बंधे, पूर्ण नग्न सो रहे थे।
“बाप रे यार!” जब हम मेरे कमरे में आ गए तो रचना बोली, “माँ और डैड तो कितने कूल हैं!”
“हाँ! है न?”
“काश मैं इनकी बेटी होती। मेरे मम्मी डैडी तो मेरी खाल खींच कर उसमे भूसा भर देते अगर मैं उनसे ऐसा कुछ भी कह देती!”
“कोई बात नहीं! मेरी माँ और डैड तो हैं न! उनसे तुम कुछ भी कह सकती हो!”
कह कर मैं उसकी स्कर्ट का हुक खोलने लगा। रचना ने मुझे रोका नहीं, लेकिन हँसते हुए बोली,
“अगर तेरी माँ, मेरी भी माँ हैं, तो उस हिसाब से हम दोनों भाई बहन हुए न! समझ में आ रही है बात?”
“तुम मेरी बीवी भी तो हो सकती हो न?” मैं उसकी स्कर्ट नीच गिराते हुए बोला, “पति की माँ, पत्नी की भी तो माँ ही होती है!”
“अच्छा जी! तो आप मुझे अपनी बीवी बनाना चाहते हैं?”
“हाँ! क्यों नहीं! क्या कमी है तुममें?” मैंने रचना को छेड़ा, और साथ ही साथ उसकी ब्लाउज/टी-शर्ट भी उतार दी। उसने आज अंदर शमीज़ भी नहीं पहनी थी। गर्मी में क्या करे!
मेरी बात सुन कर वो खिलखिला कर हँसने लगी। उसके हँसने से उसके स्तन बड़ी अदा से हिलने लगे।
“कमी मुझमे नहीं है उल्लूराम! अपनी शकल देखी है कभी? बन्दर जैसी शकल है तुम्हारी!” रचना उलाहना तो दे रही थी, लेकिन साथ ही साथ अपनी चड्ढी उतरवाने में मेरी मदद भी कर रही थी।
“अच्छा है न! तू बनेगी, इस बन्दर की बंदरिया!”
रचना मुस्कुराते हुए बोली, “तेरी माँ की बेटी बनने के लिए मुझे बंदरिया भी बनना पड़े, तो मंज़ूर है!” फिर उसको जैसे कुछ याद आ जाता है, और अचानक ही बोल पड़ती है, “हाय राम! आज तो अंकल जी भी घर पर हैं?”
“हाँ!” मैं अपने कपड़े उतार रहा था, “तो?”
“अरे बन्दर - उनके सामने मैं ऐसे रहूंगी क्या?”
“अरे तो क्या हो गया?” सच में व्यवहारिकता मुझसे अभी भी दूर थी। पता नहीं, कभी मेरे पास वो आएगी भी या नहीं! क्या मैं उस समय भोला था, या बेवक़ूफ़! नहीं, वक़ूफ़ (ज्ञान, बुद्धि, समझ) तो कूट कूट कर भरा हुआ था। तो मतलब भोलापन ही होगा - युवा शरीर, लेकिन बाल-मन! ठीक है, अपने समय पर जो भी कुछ होगा, बढ़िया है।
“मुझे बहुत शर्म आएगी। और वो भी न जाने क्या सोचेंगे!”
“क्या सोचेंगे? तुम भी तो उनकी बेटी ही हो न? डैड बहुत अच्छे हैं। माँ जैसे ही!”
“सच में?” रचना ने उम्मीद और आश्चर्य में मेरी तरफ देखा।
“और क्या! ही इस दी बेस्ट डैड! तुम इतना मत सोचा करो!”
जब माँ और डैड कमरे से बाहर निकले, तो दोनों ही कपड़े पहने हुए थे। रचना को ऐसे नग्न देख कर डैड अचकचा से गए। माँ के अलावा शायद ही कभी उन्होंने कोई और लड़की पूर्णतया नग्न देखी हो! वो तो अच्छा हुआ कि माँ उनको सारी बातें बताती थीं, नहीं तो वो न जाने क्या सोचते!
“अरे, रचना बेटा?” उन्होंने सम्हलते हुए कहा, “कब आई?”
“नमस्ते अंकल जी! बस अभी आई।” रचना भी घबराई हुई थी।
मेरे या माँ के सामने नग्न होना एक अलग बात थी, लेकिन डैड के सामने बिलकुल अलग बात थी। खास तौर पर तब, जब उसको पुरुषों की कामुक दृष्टि का अच्छा खासा अनुभव था। लेकिन मेरे डैड सौ प्रतिशत, शुद्ध, शिष्ट पुरुष थे! वो जब तक हमारे साथ रहे, उनकी नज़र हमेशा रचना के चेहरे पर ही रही - उसके स्तनों, या योनि पर कभी नहीं!
“अच्छा बेटा!” कह कर उन्होंने थोड़ी देर तक उससे इधर उधर की बातें करीं, फिर किसी काम से घर के बाहर चले गए।