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बहुत ही सुंदर अपडेट्स। आखिर अमर को फिर से एक सच्चा दोस्त, हमदर्द और जीवनसाथी मिल गया और डेबी को उसका प्यार। डेबी के डैड भी बहुत ही सरल इंसान निकले और व्यवहारिक भी।
बहुत बहुत धन्यवाद मित्रGood story , something new wave
Bahut hi badhiya update hai sirनया सफ़र - लकी इन लव - Update #16
जहाँ देवयानी के घर में हमारे रिश्ते को लेकर बड़ी तेजी से प्रगति हुई थी, वहीं मेरे घर पर भी उसको लेकर उत्साह में कोई कमी नहीं थी। डैड, माँ और काजल तीनों ने आज रात ही में इस बारे में सारी मंत्रणा कर डाली। सभी यह जानकर खुश थे कि मुझे फिर से अपना प्यार मिल गया है। मेरा काजल के साथ अनोखा सम्बन्ध था - वो भी मेरी बड़ी के जैसे या कहिए कि गार्जियन के जैसे ही बर्ताव कर रही थी। वो भी बहुत खुश थी कि मैं जो ‘डिज़र्व’ करता हूँ, वो मुझे मिल रही है! सच में, इन तीनों का हृदय कितना बड़ा है! उन तीनों के लिए ही बस यह मायने रखता है कि क्या मैं खुश हूँ! डैड ने कहा कि वो कोशिश करेंगे कि शुक्रवार रात की टिकट मिल जाय - नहीं तो शनिवार को या तो दिन या फिर रात के लिए कोशिश करनी पड़ेगी।
भारतीय रेलवे ने अभी हाल ही में ‘तत्काल’ टिकट आरक्षण की योजना शुरू की थी... यही लगभग एक महीने पहले। चूँकि इसके बारे में ज्यादा लोग नहीं जानते थे, इसलिए तत्काल ट्रेन की बुकिंग कराना उस समय आसान था। डैड सरकारी मुलाज़िम थे, लिहाज़ा उनकी जान पहचान भी थी बुकिंग केंद्र में। इसलिए उन्होंने सवेरे सवेरे ही किसी को फ़ोन कर के बता दिया कि उनको दिल्ली जाने के लिए पाँच तत्काल टिकट चाहिए थे, और वापस आने के लिए जब भी उपलब्ध हो।
मैं सवेरे लगभग साढ़े छः बजे उठा। मैंने डेवी को भी उठाया, जो अभी भी बिस्तर पर लस्त पड़ी हुई थी, और मीठी नींद का आनंद ले रही थी। मतलब सवेरे वाला राउंड करने का मौका नहीं था। जब डेवी उठी, तो मैंने उसको कहा कि अपने ऑफिस के कपड़े ले कर मेरे घर आ जाए - और वहीं से नहा कर हम दोनों साथ में ऑफिस चले जाएँगे। उसको यह आईडिया अच्छा लगा। उसने अपनी अलमारी से टी-शर्ट और शॉर्ट्स निकाल कर पहन ली, और अपने डैडी से बात करने कमरे से बाहर चली गई। इस बीच मैंने भी अपने कपड़े पहन लिए।
जब मैं उनसे बात करने निकला, तो उनको मेरे डैड से फ़ोन पर बातें करते हुए पाया। वो बड़े शिष्टाचार से डैड को दिल्ली में अपने घर आमंत्रित कर रहे थे। वो डैड से कोई सोलह सत्रह साल बड़े रहे होंगे और आई ए एस भी रह चुके थे, लेकिन फिर भी उनके बात करने के अंदाज़ में कैसा भी ग़ुरूर नहीं सुनाई दे रहा था। सच में - अगर परिवार के स्तर पर देखा जाए, तो हमारी कोई हैसियत ही नहीं थी उनके सामने! फिर भी उनको इस रिश्ते पर कोई आपत्ति नहीं थी। बड़ी बात थी - और मैं खुद को बहुत भाग्यशाली मानता हूँ कि मुझे ऐसे गुणी लोगों का आशीर्वाद मिला!
खैर, जब फ़ोन कॉल ख़तम हुआ, तो मैंने डेवी को अपने साथ ले जाने की मंशा दर्शायी। वो चाहते थे कि हम नाश्ता कर के घर से निकलें। लेकिन जब प्लान अलग हो तो मज़ा नहीं आता। कुछ देर की मान मनुहार के बाद वो मान गए।
उधर डेवी के डैडी से बात करने के बाद डैड को शुक्रवार की रात का टिकट मिल गया - लेकिन केवल चार टिकट ही मिले। सुनील ने कहा कि वो घर पर ही रह जाएगा। कोई बात नहीं! वैसे भी ‘लड़की देखने’ के लिए वो क्यों जाए! वो तो भैया ने देख ही ली हैं! अब तो जब वो ‘भाभी’ बनेंगी, तब ही वो उनसे मिलेगा! सच भी है - किशोरवय लड़कों को इन सब बातों में मज़ा नहीं आता। वो केवल बोर ही होता, और उसकी पढ़ाई में व्यवधान भी आता। दो महीने बाद उसका ग्यारहवीं का एग्जाम था, इसलिए किसी ने कोई आपत्ति नहीं जताई, और न ही निराशा! सुनील का लक्ष्य बड़ा था और महत्वपूर्ण था। उसमें कोई भी कैसा भी विघ्न नहीं डालना चाहता था।
मैंने डैड का यह सन्देश डेवी को दे दिया। वो भी उससे मिलने की मेरे माता-पिता की तत्परता को देख कर बहुत खुश तो हुई, लेकिन थोड़ी घबरा भी गई। जब मैंने उससे कारण पूछा कि उसे ऐसा क्यों लगा, तो उसने जवाब दिया कि पता नहीं मेरे माता पिता उसको पसंद करेंगे या नहीं! उसकी सबसे बड़ी चिंता हमारे बीच का उम्र का बड़ा अंतर था। मैंने उसे समझाया कि यह न तो मेरे लिए, और न ही मेरे पेरेंट्स के लिए कोई समस्या वाली बात थी! वे केवल एक चीज चाहते थे - हमारी खुशी! बस!
शनिवार सुबह सुबह मैं सभी को लिवाने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुँच गया। सबको इतने महीनों बाद देख कर बड़ा आनंद मिला। लतिका फुदकती हुई गुड़िया जैसी आई और मेरी गोद में चढ़ गई। सच में! बड़ा सुकून मिला। अब जा कर लगा कि मेरे जीवन में भी सब सामान्य हो गया है! आज दोपहर ही में डेवी के घर जाने का प्लान था, लिहाज़ा हम सभी नाश्ता कर के जल्दी जल्दी तैयार होने लगे।
माँ अपनी होने वाली बहू से पहली बार मिलने जा रही थीं - इसलिए वो खाली हाथ तो नहीं आ सकती थीं। इसलिए वो देवयानी और जयंती दीदी के लिए काटन (कपास नहीं) सिल्क की साड़ियाँ लाई थीं। साथ ही साथ सोने की एक चेन भी। डैड देवयानी के डैडी के लिए रेशमी कुरता और धोती लाए थे - अपने से बड़ों को देने के लिए वो हमेशा यही उपहार लाते थे। हाँ, बस इसकी गुणवत्ता बहुत अधिक थी क्योंकि सभी कपड़े सीधा कारीगरों से खरीदे गए थे। यहाँ दिल्ली में यही सामान पाँच गुना क़ीमत पर मिलता! जयंती दीदी के पति और दोनों बच्चों के लिए लखनवी चिकन के कुर्ते और पाजामे भी थे और साथ में मिठाईयाँ।
जब हम देवयानी के घर पहुंचे, तो उसके डैडी ने हमारा यथोचित स्वागत किया - लेकिन माँ और डैड दोनों ने ही और उनकी देखा देखी काजल ने भी उनके पैर छू कर उनका आशीर्वाद लिया। ऐसे संस्कारी परिवार को देख कर डैडी ऐसे ही लहालोट हो गए। कहने की आवश्यकता नहीं कि किसी भी तरह की बात करने से पहले ही डैडी को मेरा पूरा परिवार बहुत पसंद आया। सबसे अंत में मैंने उनके पैर छुए तो उन्होंने मुझे ‘जीते रहो बेटा’ टाइप का आशीर्वाद दिया। लतिका भी उनके पैर छूने वाली थी, तो उन्होंने उसको बीच में ही रोक कर अपनी गोदी में उठा लिया और उसके गालों को चूमते हुए कहा,
“अरे मेरी प्यारी बिटिया! बेटियाँ पैर नहीं छूतीं! तुम मेरी गोदी में रहो!”
मुझे उनका लतिका को इस तरह लाड़ करना बहुत अच्छा लगा।
उधर जयंती दीदी के हस्बैंड और उनका बड़ा बेटा भी हमारे स्वागत के लिए उपस्थित थे। लेकिन पैर छूने वाला काम केवल बेटे ने किया। हम सभी अंदर आए और बहुत देर तक सामान्य बातें - जैसे कि कैसे हैं, कोई तकलीफ तो नहीं हुई, स्वास्थ्य कैसा है, क्या करते हैं, आपके शहर / गाँव में क्या चल रहा है इत्यादि इत्यादि! बातचीत में ये सब बातें केवल फिलर होती हैं। अच्छी बात यह है कि डैडी जितना आदर से माँ और डैड से बात कर रहे थे, उतने ही आदर से काजल से भी कर रहे थे। बाद में देवयानी ने मुझे बताया कि उसने डैडी से काजल और उसके मेरे और मेरे परिवार से रिश्ते के बारे में उनको बताया था। सच में - देवयानी के पिता एक बेहद गुणी, अच्छे, और सरल - सुलझे हुए आदमी थे!
कोई पैंतालीस मिनट के बाद देवयानी और जयंती दीदी कमरे में आये। देवयानी मुस्कुराती हुई, उसी पारम्परिक अंदाज़ में आई - हाथों में चाय की ट्रे लिए! खाने की ट्रे जयंती दीदी के हाथों में थी। देवयानी ने लाल रंग की रेशमी, ज़री वाली साड़ी पहनी हुई थी, और जयंती दीदी ने बसंती रंग की, हरे बॉर्डर वाली साड़ी पहनी थी। दोनों ही ने बारी बारी से माँ और डैड के पैर छुए। और काजल से गले मिलीं। और मैं तो बस देवयानी को देखता रह गया - केवल अपने पहनावे में छोटा सा परिवर्तन करने से ही वो अप्सरा जैसी दिख रही थी! जयंती दी भी कोई कम नहीं लग रही थीं! कुछ देर तक मेरी बोलती ही बंद हो गई। मिलने के कोई आधे घंटे के भीतर ही सभी एक दूसरे से इतना सहज महसूस कर रहे थे जैसे बरसों की जान पहचान हो!
लतिका उम्र में जयंती दीदी के बड़े बेटे के ही बराबर थी। वो उसको अपनी गोदी में ले कर दुलार कर रही थीं।
“आपको क्या अच्छा लगता है?”
“मुझको खेलना अच्छा लगता है!” लतिका ने अपनी कोमल आवाज़ में कहा।
“हा हा! और क्या अच्छा लगता है?”
“गाना!”
“अरे वाह! कुछ हमको भी सुनाइए फिर?”
“क्या सुनाऊँ? गाना, या गीत?”
अब इसका अंतर तो हमको भी नहीं मालूम था - लिहाज़ा जयंती दी ने कहा, “गीत?”
“जी ठीक है!” कह कर लतिका उनकी गोदी से उतर गई, और ‘सावधान’ की मुद्रा में आ कर सभा के बीच में खड़ी हो गई। उसको ऐसे करता देख कर सभी लोग चुप हो गए और सोचने लगे कि बच्ची क्या गाने वाली है! उसका आत्मविश्वास देख कर मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो गया - ‘इतनी छोटी बच्ची और इतना कॉन्फिडेंस! कमाल है!’
फिर उसने अपनी मीठी, बच्चों वाली आवाज़ में कहा, “मैं आपके सामने श्री द्विजेंद्रलाल राय की रचना प्रस्तुत करने वाली हूँ। यह हमारी भारत माता की वंदना है।”
“धन-धान्ये-पुष्पे भरा आमादेर ए वसुंधरा, ताहार माझे आछे देश ऐक सकल देशेर शेरा।
शे जे स्वप्नो दिये तोरीम शे देश स्मृति दिये घेरा, ऐमोन देशटि कोथाओ खूंजे पाबे नाको तुमि।
सकल देशेर रानी शे जे आमार जन्मोभूमि।
शे जे आमार जन्मोभूमि, शे जे आमार जन्मोभूमि!”
देवयानी और जयंती दीदी ने अपनी जीभ अपने दाँतो तले दबा ली! उनको यकीन ही नहीं हुआ कि ऐसी नन्ही सी बच्ची ऐसा कुछ करिश्मा कर सकती है!
“चंद्र सूर्य ग्रह तारा कोथाय उजोल ऐमोन धारा, कोथाय ऐमोन खेले तोरीर ऐमोन कालो मेघे।
तार पाखीर डाके घूमिये पोडी पाखीर डाके जेगे, ऐमोन देशटि कोथाओ खूंजे पाबे नाको तुमि।
सकल देशेर रानी शे जे आमार जन्मोभूमि।
शे जे आमार जन्मोभूमि, शे जे आमार जन्मोभूमि!”
“वाह वाह वाह!” सभी लोग लतिका के गाने पर आह्लादित हो कर तालियाँ पीटने लगे!
सच में - कैसा मीठा गान!
लतिका भी तेजी से बड़ी हो रही थी। कितना कुछ मिस कर रहा था मैं अपने जीवन में! समझ नहीं आ रहा था कि समय के इस अथाह प्रवाह को मैं कैसे सम्हालूँ!!
“खूब शुंदोर!” देवयानी के डैडी बोल पड़े, “हृदय गदगद होए गेलो! खूब तरक्की करो बेटा! सबका नाम रोशन करो!”
“कितना मीठा ‘गीत’ गाया आपने!” देवयानी ने लतिका के सामने ज़मीन पर बैठते हुए कहा और उसको अपने सीने में भींचते हुए, उसको दुलारते हुए बोली, “किसने सिखाया आपको?”
“मम्मा ने!”
“अरे वाह!”
“हा हा! मैंने नहीं,” काजल बीच में बोल पड़ी, “मैं अम्मा हूँ, मम्मा माँ जी हैं!”
“क्या!”
अब ये बात तो मेरे लिए भी नई है! माँ ने कब बंगाली भाषा सीख ली?
“जी दीदी, मैं अम्मा हूँ - और अम्मा की अम्मा, मम्मा हैं!” काजल ने हँसते हुए खुलासा किया।
अगर देवयानी के मन में हमारे परिवार को ले कर थोड़ा भी संशय रहा होगा, तो बस इस एक छोटे से वाक्य से जाता रहा होगा। ऐसा सरल, प्रेम करने वाला परिवार उसको बहुत मुश्किल से मिलता।
अब आगे का समय यूँ ही हँसते बोलते बीत गया।
बीच में जब चारों स्त्रियों को मौका मिला तो माँ ने देवयानी और जयंती दीदी से कहा,
“... पिंकी बेटा, यह ठीक है कि तुम हमारी बहू हो - लेकिन तुमको मेरे पैर छूने की कोई जरूरत नहीं है। जयंती - तुमको तो बिलकुल भी नहीं! हम चारों समझो कि बहनों जैसी हैं - हमारी उम्र में कोई अंतर नहीं है। इसलिए, सच में, अगर तुम कम्फ़र्टेबल महसूस करती हो, तो मुझे अपनी बड़ी बहन मानो! न कि अपनी सास!”
माँ की ऐसी बातें सुन कर देवयानी मुस्कुराई - उसको अन्तः यह जानकर राहत मिली कि हमारे बीच उम्र का अंतर माँ के लिए कोई मुद्दा ही नहीं था - और बोली, “माँ, आपको अपनी बड़ी बहन और अपनी माँ - दोनों के रूप में देखना पसंद करूंगी! जब जैसा मन करेगा वैसा!”
उसकी बात पर सभी हँसने लगीं।
जयंती दी बहुत खुश थीं कि उनकी छोटी बहन की होने वाली सास ऐसी खुली हुई, और सहेली जैसा व्यवहार कर रही हैं। वो हमेशा से चाहती थीं कि डेवी को बहुत प्यार करने वाला परिवार मिले - माँ के अभाव में पली हुई बच्ची सूखी मिट्टी समान होती है, जो प्रेम और स्नेह के जल को सोख लेती है।
“हा हा हा! यार ये तो बहुत गड़बड़ है! लेकिन ठीक है। जब हम दोनों प्राइवेट में मिलें, तो मुझे तुम ‘दीदी’ कह कर बुलाना, लेकिन अमर के सामने नहीं… वो बेचारा कंफ्यूज हो जाएगा… हा हा हा!”
“दीदी... आप बहुत नटखट लड़की हो!” जयंती दी ने माँ को छेड़ा।
“अरे, इसमें मैं क्या करूँ! उसने जो डिसिज़न लिए हैं, उसके परिणाम भी भुगतने होंगे न। हा हा!” माँ सचमुच में मजे ले रही थीं, “अब बताओ... तुम दोनों कैसे मिले?”
देवयानी ने माँ को बताया कि हम कैसे मिले, और हमारा सम्बन्ध आगे कैसे बढ़ा। उसने अपने काम इत्यादि के बारे में भी माँ को बताया। माँ को यह जान कर अच्छा लगा कि जब मुझे भावनात्मक समर्थन और प्यार की आवश्यकता थी, तब देवयानी मेरे साथ खड़ी हुई थी! गाढ़े का साथी ही सच्चा साथी होता है। माँ ने यह बात देवयानी को बोली। उसके पूछने पर माँ ने संक्षेप में गैबी के साथ अपने संबंधों के बारे में भी बताया, और उससे वायदा भी किया कि वो उससे वैसा ही प्यार करेंगी... या शायद उससे भी ज्यादा! ऐसे ही बातें करते करते अंत में, जिज्ञासावश, माँ ने देवयानी से एक व्यक्तिगत प्रश्न पूछ लिया।
“देवयानी बेटा, क्या तुम दोनों ने सेक्स किया, या वैसे ही हो?”
“हाय भगवान्! दीदी! तुम मुझसे ऐसा कैसे पूछ सकती हो?”
“अरे, अगर तुम एम्बारास मत महसूस करो! ओके, कुछ मत कहो। मैं तो बस ये सोच रही थी कि तुम इतनी सुन्दर सी हो, तो वो बिना तुम्हे प्यार किए कैसे रह सकता है!”
“दीदी, क्या तुमको सच में लगता है कि मैं मैं सुंदर हूँ?”
“अरे! बेशक! तुमको इस बात में कोई संदेह है? तुम बहुत खूबसूरत हो - देखने में भी, और अंदर से भी!”
“ओह दीदी! मैं कभी-कभी... मतलब अब भी... मुझे लगता है कि अमर को कोई उसकी अपनी उम्र की लड़की मिलनी चाहिए... मुझे ऐसा लगता है कि मैं अपने फ़ायदे के लिए उसको एक्सप्लॉइट कर रही हूँ!”
“खबरदार कि तुमने ऐसा सोचा भी कभी!” माँ ने ज़ोर दे कर कहा, “... अच्छा, मुझे एक बात बताओ, क्या तुम अमर से प्यार करती हो?”
“ओह दीदी! मैं उसे बहुत प्यार करती हूँ!”
“और क्या वो भी तुमसे उतना ही प्यार करता है?”
“बेशक दीदी... नहीं तो ये नौबत ही न आती!”
“तो मुझे ये समझाओ कि तुम्हारा साथ, उसका एक्सप्लोइटेशन कैसे है?”
“मतलब उसे कोई अपनी उम्र की...”
“उम्र का क्या है बेटा? मेरी तुम्हारी उम्र में क्या अंतर है? लेकिन मुझसे तुमको माँ वाला ही प्यार मिलेगा!”
डेवी मुस्कुरा दी।
“मेरी बच्ची, हर किसी को प्यार करने का और प्यार पाने का अधिकार है। तुम और अमर बहुत भाग्यशाली हो, कि तुमको एक दूसरे का साथ, एक दूसरे का प्यार मिला है! और मैं तुम दोनों के लिए बहुत खुश हूँ! प्यार में उम्र मायने नहीं रखती। इसलिए ये सब विचार मन से बाहर निकाल दो! भगवान् करें, कि तुम दोनों हमेशा खुशहाल रहो!” माँ ने मुस्कुराते हुए देवयानी का माथा चूमा, “मेरा यही आशीर्वाद है!”
डेवी ने भावनाओं और स्नेह से अभिभूत होकर माँ को अपने गले से लगा लिया।
“माँ, मैं सच में सेल्फ़िश तो नहीं हूँ न?” डेवी ने एक बार और पूछा।
“यदि तुम अमर को ढेर सारा प्यार दे रही हो, और बदले में ढेर सारा प्यार पा रही हो, तो... मैं कहूँगी कि ऐसा स्वार्थी होना बहुत अच्छा है!”
तब तक मैं माँ के पास आया उनको सभी को बाहर बुलाने। हमारी शादी की तारिख निश्चित करनी थी।
हम कुछ भी कहते, उसके पहले ही देवयानी ने कहा, “डैडी,” फिर हमारी तरफ़ देख कर, “माँ डैड - मेरी एक रिक्वेस्ट है!”
“हाँ बेटा, बोलो न” डैड ने बड़े दरियादिली से कहा।
“जी, मैं सोच रही थी कि हमारी शादी XX फरवरी को हो - माँ का बर्थडे भी है उसी दिन!”
“क्या!” माँ का चेहरा देखने वाला था, “जुग जुग जियो बिटिया रानी! सदा मंगल हो तुम्हारा!”
उनको यकीन ही नहीं हुआ कि देवयानी ऐसी बात कह सकती है! इतना बड़ा सम्मान!
“लेकिन बेटा,” देवयानी के डैडी बोले, “इतनी जल्दी...”
“भाई साहब, जल्दी तो है - लेकिन...” डैड देवयानी के डैडी को समझाने लगे।
उधर एक तरफ तो माँ अपनी आँखों से गिर रहे आँसूं पोंछने लगीं, तो दूसरी तरफ़ काजल देवयानी को अपने गले से लगा कर चूमने लगी, “आप बहुत अच्छी हो दीदी! हम सभी बहुत लकी हैं! बस अब आप घर आ जाओ - जितना जल्दी हो सके, उतना!”
देवयानी मुस्कुराई, “हाँ दीदी, अब मैं भी बस यही चाहती हूँ!”
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avsji ka lekhan beshtam besht
बहुत बहुत धन्यवाद मित्र!Bahut hi badhiya update hai sir
Apko bhi holi ki bahut bahut Mubarak sirबहुत बहुत धन्यवाद मित्र!
और होली मुबारक!![]()
aapko ko bhi bhaijiअरे ज़र्रानवाज़ी का बहुत बहुत शुक्रिया भाई!
होली मुबारक!![]()
nice update..!!नया सफ़र - लकी इन लव - Update #11
आज रविवार था। मतलब आज भी चैन से नींद!
मुझे थोड़ी ग्लानि भी हो रही थी - कुछ दिनों से खाना पीना बढ़ गया था, और व्यायाम करना थोड़ा घट गया था। लेकिन, ठंडक में थोड़ी परेशानियाँ तो हो ही जाती हैं (सभी को मालूम है कि यह सब बहाने बनाने वाली बातें हैं)। सर्दियों में उत्तर भारत में तो कहते भी हैं न कि ये सेहत बनाने का टाइम है! मतलब खा पी कर थोड़े मोटे हो जाओ। अच्छी बात यह थी कि खाना पीना बढ़ा था, लेकिन उसकी गुणवत्ता नहीं कम हुई थी। इसलिए शरीर पर जो भी कुछ चढ़ रहा था, वो नुकसानदायक नहीं था।
रात में अद्भुत नींद आई - सपने में देवयानी भी थी, गैबी भी थी, और काजल भी! इससे हसीन सपना और क्या हो सकता है? मेरे जीवन में सभी सबसे अज़ीज़ और अंतरंग स्त्रियाँ (माँ को छोड़ कर), मेरे साथ थीं। ऐसा नहीं था कि हम सम्भोग कर रहे थे, लेकिन हम चारों मिल कर आनंददायक और अंतरंग समय व्यतीत कर रहे थे! पूरे विवरण तो याद नहीं, लेकिन मुझे यह तो याद है कि मुझे उन तीनों के सान्निध्य में सुख बहुत मिला था!
ऐसे ही एक के बाद एक हसीन सपने देखते हुए अचानक ही मुझे अपने घर के दरवाज़े की घंटी ही आवाज़ सुनाई दी। किसी ने दरवाज़े पर दस्तख़त दी थी। मेरी नींद उस घंटी की आवाज़ सुन कर ही खुली। घड़ी पर नज़र डाली तो देखा आठ बजे थे!
‘आठ बज गए! अरे प्रभु!’
आज तो बहुत देर हो गई थी - मतलब आज भी सुबह का व्यायाम गया काम से! दोपहर या शाम में कोशिश करनी होगी! मैं अभी भी लगभग पूरी तरह नींद में ही था।
दोबारा घंटी बजी।
‘डेवी होगी! वो सवेरे सवेरे ही तो आने वाली थी आज!’ नींद से थोड़ा बाहर आते ही मेरे दिमाग में आया पहला विचार था।
मैं जैसे तैसे बिस्तर से उठा - मेरी आँखें अभी भी लगभग बंद थीं। मैं उनींदा था। नींद के कारण मेरे पैर अस्थिरता से चल रहे थे। और, मैं पूरी तरह से नंगा था! जैसा कि पाठकों को मालूम होगा - मैं नग्न ही सोता हूँ। खिड़की से आती रौशनी से लग रहा था कि साढ़े छः ही बजे होंगे - जाहिर सी बात है, आज कोहरा बढ़ गया था।
मुझे तो यही ज्ञात था कि आने वाली डेवी ही होगी! अगर मुझे थोड़ी भी भनक होती, तो मैं नीचे कुछ पहन लेता - लेकिन अगर केवल डेवी है, तो कुछ भी पहनने की क्या ज़रुरत? मैंने दरवाजे की सिटकनी हटाई और दरवाज़ा खोल दिया।
“हाइईईई... वूप्स... हा हा हा!”
मैं अभी भी उनींदा था - एक अपरिचित महिला की आवाज! पहले उसकी आवाज़ कभी नहीं सुनी!
“ओह हनी! हा हा हा!” थोड़ी और ठठाकर कर हँसने की आवाज़, “अमर, जाओ और कुछ पहन लो पहले... हा हा हा!! पिंकी... यार, अमर तो बहुत हैंडसम है, और प्यारा भी!! हा हा हा!”
शुरुआती दो तीन सेकंड तो मैं समझ ही नहीं पाया कि हो क्या रहा है! फिर मुझे चमका कि यह तो डेवी की आवाज ही नहीं थी। तब जा कर मैंने अपनी आँखें खोलीं, और डेवी के बगल एक पूरी तरह से अजनबी महिला को खड़ी हुई देखा!
दिल गले तक आ गया।
‘हाय भगवान्! ये कौन है?’
अचानक ही एक झटके से मैं नींद से बाहर आ गया। ‘कोई और’ - यह ख़याल दिमाग में आते ही मुझे याद आया कि मैं तो पूरी तरह से नंगा था! और हद तो यह थी कि सुबह सुबह होने के कारण मेरा ‘मॉर्निंग वुडी’ (सुबह सुबह का स्तम्भन) बना हुआ था। कल मेरे लिंग के आकार प्रकार को ले कर जयंती दीदी की जैसी भी जिज्ञासा थी, इस दृश्य से शांत हो जानी चाहिए थी।
“हनी, चलो! अंदर चलते हैं!” यह डेवी ने कहा। वो भी मुस्कुरा रही थी।
मैं अभी भी दरवाजे को पकड़े हुए था। जैसे ही मुझे अपनी स्थिति का भान हुआ, मैंने एक हाथ से अपने उग्र लिंग को छिपाने की कोशिश की! लेकिन जाहिर सी बात है, मेरा लिंग केवल हाथ से ही छुपने वाला नहीं था, लिहाज़ा, ये बेकार का प्रयास था। दोनों लड़कियों को तब तक मेरे नग्न शरीर का तसल्लीबख़्श प्रदर्शन मिल गया था।
“कम अमर, प्लीज! एंड प्लीज डोंट बी इम्बैरस्ड बिकॉज़ ऑफ़ अस!”
‘फिर वही औरत! आखिर ये है कौन?’
न जाने क्यों वो जानी-पहचानी लग रही थी।
“आप... कौन?” मैंने अपनी उनींदी आवाज़ में पूछा!
उसने धीरे से मुझे हॉल के अंदर धकेला, और मेरे गाल को चूम लिया।
“आई होप दैट यू वोन्ट फील बैड, पिंकी!” उसने डेवी से मुस्कुराते हुए कहा, तब तक हम सभी हॉल में आ गए थे, “अमर तो मुझसे बहुत छोटा भी है, और बहुत प्यारा भी है!”
अब तक मैं पूरी तरह से जाग गया था।
‘ओह, अब समझ आ रहा था! शकल डेवी से मिलती जुलती थी इनकी! ओह, मतलब, ये डेवी की बड़ी बहन थी! हाय भगवान्!’
अब मुझे अपनी हालत पर शर्म आने लगी। जयंती दीदी ऊँचाई में डेवी से थोड़ी थीं; शकल बहुत हद तक डेवी से ही मिलती थी। उनके लंबे, घने और काले बाल पोनीटेल में बंधे हुए थे। वो थोड़ी सी मोटी भी थीं [आखिर वो दो बच्चों की माँ थीं - उनका छोटा बच्चा अभी केवल छः महीने का ही हुआ था]। वैसे जयंती दी भी डेवी की तरह ही आकर्षक महिला थीं। माँ बनने के पहले वो कोई मॉडल टाइप लड़की रही होंगी!
सुबह सवेरे मेरा उल्लू बन गया था - लेकिन फिर भी जयंती दीदी, और डेवी - दोनों ही बड़े स्नेह से मुस्कुरा रही थीं। उम्र में छोटा होने का लाभ तो होता है - स्त्रियों में आपके लिए बड़ा मातृत्व भाव उत्पन्न हो जाता है! मैंने डेवी को देखा - इतनी सुबह-सुबह भी वो कैसी शानदार लग रही थी… लगभग दीप्तिमान! डेवी की खूबसूरती देख कर उस गाने की लाइनें याद आ गईं,
‘अब क्या मिसाल दूँ मैं तुम्हारे शबाब की,
इनसान बन गई है किरण माहताब की…’
हाँ - माहताब होता तो चाँद है, लेकिन यहाँ शब्द नहीं, भावनाओं को समझने की ज़रुरत है!
डेवी के चेहरे पर जो आभा थी, जो दीप्ति थी, क्या वो कल के हमारे मिलन के कारण थी, या कुछ और? मैं ठीक ठीक कुछ कह नहीं सका। शायद उसने भी बहुत देर से खुद को ज़ब्त किया हुआ था, लिहाज़ा, उस बड़ी तेजी से मेरी तरफ आई और अपनी बाहों को मेरी कमर के चारों ओर लपेटकर मुझे कसकर अपने गले से लगा लिया।
“ओह हनी, आई मिस्ड यू!” उसने कहा!
“मिस्ड यू टू,” मैंने भी जवाब में, डेवी को अपने में समेटते हुए कहा।
मेरे आलिंगन में उसके बालों और शरीर की महक मेरे मन में समाने लगी! हमने एक संछिप्त सा चुम्बन लिया-दिया। जब हमारा आलिंगन छूटा, तो मुझे शिष्टाचार याद आया। मैंने जयंती दीदी की तरफ़ अपना हाथ बढ़ाया,
“नमस्ते, दीदी!”
“हा हा! नमस्ते अमर!” वो मुस्कुराईं, “आई ऍम सो हैप्पी टू फाइनली मीट यू!” और उन्होंने मेरा हाथ मिलाया, “कितना कुछ सुन लिया है तुम्हारे बारे में, इतने ही दिनों में।”
जयंती दीदी की बड़ी बड़ी, काली काली आँखें मुझसे मिलने की ख़ुशी से लगभग चमक उठीं। उनकी चौड़ी मुस्कान बड़ी सुन्दर थी - होंठों से उनके चमकीले सफेद दांत दिखाई दे रहे थे। बहुत ही सुन्दर व्यक्तित्व!
डेवी ने मेरा हाथ पकड़ा और कहा, “अमर, मीट माय दीदी, जयंती! एंड दीदी, मीट अमर, माय फ्यूचर हस्बैंड! अमर, मेरी दीदी मेरी सबसे अच्छी दोस्त हैं!” उसने चहकते हुए कहा, फिर थोड़ा रुकी, और फिर मेरी बाँह खींचते हुए बोली, “चलो, पहले आप कुछ पहन तो लो!”
“हा हा हा हा!” जयंती दीदी खिलखिला कर हँसते हुए बोली, “अरे अगर न भी पहनना हो, तो भी ठीक है! यहाँ तो सबसे बूढ़ी मैं ही हूँ!”
“ओह दीदी, ऐसे मत बोलो! अमर विल बी इम्बैरेस्ड!”
“इम्बैरेस्ड होने की कोई जरूरत नहीं है, अमर। यू आर वैरी हैंडसम एंड क्यूट!”
“दीदी…” डेवी ने दिखावटी आपत्ति दर्ज़ करी।
“अरे, मैंने क्या कहा?” जयंती दीदी ने कहा।
तब तक मैं कमरे में चला गया कपड़े पहनने।
“पिंकी, यू आर सो लकी यार!” मेरे जाने के बाद जयंती दी ने फुसफुसाते हुए डेवी के कान में कहा।
“क्यों? क्या हुआ दीदी?”
“क्या हुआ? अरे, कितना तो हैंडसम है अमर! और उसका पीनस... यार वह तो बहुत बढ़िया और मज़बूत है!”
“दीदी!”
“क्या दीदी!? अरे मैं सच में कह रही हूँ! अमर पूरे का पूरा बहुत खूबसूरत नौजवान है। और झूठी कहीं की - मुझे कितना छोटा सा दिखा रही थी। इसका तो कितना बड़ा है, और मोटा भी! और मजबूत। गुड जॉब!”
“गन्दी दीदी!” डेवी ने हँसते हुए कहा।
“अबे! तू गन्दी! रोज़ रोज़ तू अपनी इसी मोटे से पीनस से कुटाई करवाएगी, और गन्दी मैं हो गई? वाह रे वाह!”
दोनों लड़कियाँ इसी तरह से एक दूसरे से छेड़-खानी करती रहीं, और मैं अपने कपड़े पहनने लगा। जब मैं शॉर्ट्स और स्वेटर पहन कर वापस कमरे में आया तो जयंती दीदी ने कहा,
“अमर, देवयानी मुझे तुम्हारे बारे में सब बताती है। कितने ही दिनों से मेरा मन था तुमसे मिलने का... इसलिए आज जब मौका मिला, तो मैं तुमसे मिलने का लालच रोक नहीं पाई। ये मैडम तो अकेले ही आने वाली थीं, लेकिन मैंने आज ठान लिया था कि मैं आज मैं तुम्हारे क़बाब में हड्डी ज़रूर बनूँगी!”
जयंती दी के बात करने का बिंदास अंदाज़, और उनका खुशमिज़ाज़ व्यवहार देख कर मैं हँसे बिना नहीं रह सका। दोनों लड़कियाँ कितनी एक जैसी और कितनी अलग हो सकती थीं! कमाल वाली बात है!
खैर, मैं और जयंती दीदी (दी) ड्राइंग रूम में बैठ कर बातें करने लगे, जबकि देवयानी किचन में जा कर हम तीनों के लिए नाश्ता बनाने लगी। मैं मदद करने के लिए जाने वाला था लेकिन दीदी ने ही मना कर दिया। उनका कहना था कि ये मेरे लिए मौका है देखने का कि डेवी को कुछ पकाना आता भी है या नहीं! तीनों ने ही कुछ नहीं खाया था, इसलिए साथ में बैठ कर ब्रेकफास्ट करना एक अच्छा विचार था। देवयानी को मालूम था कि मैं बेहद बेसिक सा नाश्ता / खाना खाता हूँ (कोई भी मोटा अनाज - जैसे नाश्ते में दलिया, ओट्स, और साथ में फल), इसलिए वो घर आते समय, नाश्ता बनाने के लिए अपने साथ कुछ सामान भी लेती आई थी, जो तीनों की पसंद का हो। मतलब दोनों का इरादा घर आ कर नाश्ता पकाने का था।
मुझे जयंती दी से बात कर के बहुत अच्छा लगा। वो बहुत ही मिलनसार, बहुत ही जीवंत, बहुत ही ऊर्जावान, और मजाकिया लगीं। डेवी भी बीच बीच में रसोई से बाहर आ कर हमारी बात चीत में शामिल हो जाती। बीच बीच में वो दोनों कोई न कोई शिगूफ़ा छोड़ देतीं, और फिर खूब हंसतीं - भले ही कितनी भी बेतुकी बात क्यों न हो! मुझे इस तरह से वजह-बेवजह हँसने वाले लोग बहुत पसंद आते हैं। लेकिन उससे भी बढ़िया बात जो मैंने देखी वो यह कि दोनों में बहुत ही अधिक प्यार था। कई सारी सगी बहनों में भी मैंने इस तरह का प्यार, इस तरह की प्रगाढ़ता और इस तरह की उन्मुक्तता मैंने नहीं देखी। उन्होंने अपने बचपन, डेवी के बड़े होने की, और इसी प्रकार की अन्य बातें बताईं। उनसे बात कर के एक विचार मन में आया कि मेरा सम्बन्ध एक अच्छे, प्रेम-भरे परिवार में हो रहा है! सोच कर बहुत अच्छा लगा।
कोई एक घंटे बाद नाश्ता तैयार था, जिसको बहुत ही स्वादिष्ट मसाला चाय के साथ डेवी ने नाश्ते को खाने की टेबल पर सजा दिया। तब तक कोहरा छंट गया था, और सूरज खिल कर दिखाई देने लगा था। मैंने खिड़कियों के शीशे सब बंद कर दिए थे, इसलिए घर के अंदर तेजी से गर्मी होने लगी। इतनी कि जब तक हमने नाश्ता ख़तम किया, तब तक हमको पसीने भी आने लगे। तब याद आया कि सभी ने स्वेटर पहना हुआ था, जबकी उसकी कोई ज़रुरत ही नहीं थी। जब मैंने यह कहा, तो सभी ने अपने स्वेटर उतार दिए - तब जा कर कुछ आराम सा मिला।
लेकिन फिर भी बात चीत में हम सभी बड़े मगन थे। जयंती दीदी मुझसे मेरे घर के बारे में कई सारे प्रश्न पूछ रही थीं, और अपने घर के बारे में बता भी रही थीं। वैसे हम तीनों बात तो कर रहे थे, लेकिन साथ ही साथ डेवी के लिए मेरी इच्छा बलवती हो रही थी। घर की सभी खिड़कियाँ बंद थीं, और उनसे छन छन कर सूर्य की गर्मी घर को भर रही थी! और उसके साथ ही साथ मेरी और डेवी की कामुक इच्छाओं की गर्मी भी घर को भर रही थी! और जयंती दी को हमारी इच्छाएँ साफ़ दिखाई दे रही थीं!
सवेरे जब डेवी यहाँ आने को तैयार हो रही थी, तब जयंती दी ने देखा था कि उसने अंदर कुछ भी नहीं पहना था। बहुत स्पष्ट सी बात थी कि क्यों! उनको पूरा संदेह था कि हम दोनों अपने सम्बन्ध में बहुत आगे निकल चुके हैं। अब जब यह बात उनके सामने थी, तो उनको किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं थी। जयंती दीदी ने हमको एक दूसरे से हंसी मज़ाक करते हुए, और एक दूसरे को चिढ़ाते हुए देखा। उन्होंने हमें कुछ पलों के लिए देखा और मुस्कुराईं। उनको हम दोनों साथ में बहुत बढ़िया लगे! एक अच्छी दिखने वाली जोड़ी!
“बच्चों, तुम दोनों अंदर चले जाओ! अपने कमरे में!” जयंती दीदी ने कहा।
“हम्म? क्या दीदी?” डेवी अपनी बहन की ओर मुड़ी। हमने वाकई नहीं सुना जो उन्होंने कहा।
“मैंने कहा कि तुम दोनों अपने कमरे में चले जाओ!” जयंती दी ने अपनी बात दोहराई।
“ले.. लेकिन.. क्यों?” देवयानी ठिठक गई।
“ओह पिंकी! बस कर ये नाटक!” जयंती दी ने डेवी को एक प्यार भरी झिड़की दी, और मेरी ओर मुखातिब होते हुए बोलीं, “अमर, इसको अपने कमरे में ले जाओ और अच्छे से प्यार करो इसके साथ!” जयंती दीदी ने बेहद दो टूक तरीके से अपनी बात कह दी!
मैं कुछ कहता कि उन्होंने अपना हाथ उठा कर मुझे शांत रहने को कहा और बोलती रहीं, “नहीं रुको - मुझे बोल लेने दो! मुझे पता है कि तुम दोनों सेक्स करना चाहते हो... वेट! डोंट इंटरप्ट मी! तुम दोनों अंदर जाओ! आराम से सेक्स कर लो! जब तुम दोनों अच्छी तरह से संतुष्ट हो जाओ, तो हम फिर से बात करेंगे। ओके?”
“लेकिन दीदी!” मैं अभी भी यकीन नहीं कर पा रहा था कि वो ऐसा कुछ कह भी सकतीं है।
“अरे यार! अमर, अब तुम भी न शुरू हो जाना!” दीदी अब हँसने लगीं, “कल मैं अपनी पिंकी के चेहरे पर चमक और उसकी चाल में बदलाव को देख कर ही समझ गई थी कि उसको सेक्स का मज़ा मिल गया है। और सवेरे भी तुम उसी की आस में उठे थे! हा हा! चलो, अभी शरमाओ मत, आराम से कर लो, और जब फ्री हो जाना, तब बात करते हैं!”