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Abaki कृपया कहानी को आगे बढ़ाएं। अपडेट आये हुए काफी दिन हो चुके हैं।
Sir update kab tak milega.
वैसे आर्य समाज मंदिर भी एक ऑप्शन होनी चाहिएनया सफ़र - लकी इन लव - Update #17
हम दोनों परिवारों का मिलन बहुत सुखमय रहा।
डेवी के डैडी उम्र में हम सभी से ही बड़े थे, लेकिन उनकी सज्जनता देखने वाली थी। उन्होंने माँ, डैड और काजल को उसी तरह का सम्मान दिया, जैसा समधियों को अक्सर ही दिया जाता है। कोई पाँच घण्टे के विस्तृत वार्तालाप के बाद हम सभी वापस घर लौट आए। वापस आते समय माँ ने डेवी को ‘घर’ आने का बुलावा दे दिया। इस न्योते पर डेवी के डैडी ने कहा कि ‘बेटा, देवयानी तो अब आपके ही घर जाने वाली है!’ बात तो सही थी, लेकिन माँ का उत्साह और उनका स्नेह अपनी सीमा नहीं समझ पाता।
मालूम पड़ा कि डैड और परिवार की वापसी की यात्रा का टिकट रविवार की रात के लिए बुक हुआ था। लिहाज़ा हमारे पास एक पूरा दिन का समय था जिसमे हम शादी के लिए ज़रूरी कामों के बारे में वार्तालाप कर सकते थे। अच्छी बात थी! विवाह के इंतजाम में और कोई समस्या नहीं थी, लेकिन माँ के जन्मदिन पर शादी करने के लिए हमारे पास समुचित तैयारी करने के लिए समय बहुत कम था, और काम बहुत अधिक! दिल्ली जैसे शहर में आनन फानन वाला काम हो पाना कठिन है।
वैसे देवयानी और मैं - दोनों ही एक साधारण सा विवाह समारोह चाहते थे! हमको किसी भी तरह की तड़क भड़क की दरकार नहीं थी - मेरी दूसरी शादी थी, और देवयानी बत्तीस-तैंतीस साल की थी। जब आप जीवन के ऐसे पड़ावों पर होते हैं, तो विवाह से आप तड़क भड़क की दरकार नहीं रखते। आप केवल वैवाहिक सुख चाहते हैं। मेरी भी वही दशा थी, और डेवी की भी! इस लिहाज़ से डेवी को गैबी के ही समान मंदिर में शादी करने का विचार बढ़िया लग रहा था। लेकिन इतने कम समय में तो दिल्ली में मंदिर में भी बुकिंग नहीं मिलती! मतलब दिक्कत तो थी। उधर डेवी के डैडी भी थोड़ा निराश थे - वो चाहते थे कि उनकी छोटी बेटी की शादी भी बड़ी बेटी की ही तरह धूमधाम से हो, न कि ऐसे भागमभागी में! लेकिन हमने उनको समझा लिया - कि शादी तो परिवारों की है। हम दोनों सुख से रहेंगे, और ख़ुशी ख़ुशी रहेंगे! अब ऐसे प्रयोजन में तड़क भड़क का क्या स्थान? कहीं भी आराम से, शांति से शादी कर लेंगे - या तो मंदिर में या फिर कोर्ट में! फिर अपने सभी मित्रों और परिवारों को शानदार न्योता दे देंगे! यह एक क्रांतिकारी विचार था - इसलिए इस विचार का उन्होंने कुछ समय तक विरोध अवश्य किया, लेकिन जब उन्होंने हमारे प्रस्ताव में निहित प्रासंगिक योग्यता देखी, तो उनका विरोध भी कम हो गया।
उन्होंने ही सुझाया कि हम पहले कोर्ट मैरिज करें, फिर उसके बाद मंदिर में शादी कर लें! वो एक आई ए एस रह चुके थे, इसलिए उनकी पहचान से कोर्ट मैरिज का इतना जल्दी इंतजाम संभव था। हाँ, मंदिर वाला विकल्प दिल्ली में मिलना मुश्किल था। वो सोचने का जिम्मा मुझ पर और डेवी पर छोड़ दिया गया। उनको इस बात से भी अफ़सोस था कि मैं और डेवी अपनी शादी में होने वाले सभी खर्चों का वहन खुद ही करना चाहते थे। इस बात से उनकी डेवी के ब्याह में दिल खोल कर खर्च करने की तमन्ना का खून हो गया था! डेवी और मैं यह चाहते थे कि हम दोनों ही, अपने ही हैसियत के हिसाब से हमारी शादी की सारी व्यवस्था करें और उसमे होने वाले सभी खर्चों को वहन करें। हम दोनों बढ़िया कमाते थे, इसलिए हमको अपनी योग्यता पर अभिमान भी था। जब हमारे हाथ में साधन है, तो फिर अपने माँ बाप से एक पैसा भी क्यों लें?
डेवी के यहाँ से आने के और रात्रिभोज के बाद, घर में सभा बैठी। कौन सा मंदिर मेरी और डेवी की शादी के लिए उपयुक्त है - यह निश्चित करना था।
“क्यों न,” काजल ने सुझाया, “गाँव वाले शिव-पार्वती मंदिर में ही शादी करी जाए?”
हाँ - पिछली बार शिव पार्वती मंदिर में शादी का बड़ा सुखद अनुभव हुआ था। इसलिए माँ और डैड तुरंत ही इस बात से सहमत हो गए। कोई और समय होता, तो मैं भी तुरंत ही मान जाता। लेकिन,
“नहीं काजल,” मैंने कहा, “वहाँ नहीं! दो साल ही पहले मेरी शादी हुई थी वहाँ! उसकी याद मुझे अभी भी है। आईडिया अच्छा है लेकिन वहाँ नहीं! प्लीज!”
“हम्म! बात तो ठीक है!” डैड ने कहा, “बहुत अच्छा इम्प्रैशन नहीं पड़ता! गाँव वाले अगर कुछ बातें बनाएँगे तो हम सभी को बुरा लगेगा! लोगों की सोच अभी इतनी विकसित नहीं हुई है! कुछ भी बोल सकते हैं। और बात अपने तक ही रहे तो ठीक है। लेकिन यहाँ समधी जी के आदर सम्मान का सवाल है!”
“आप ठीक कहते हैं, किसी के मुँह को रोका तो नहीं जा सकता है!” माँ ने भी उनकी बात का समर्थन किया।
काजल ने फिर कुछ सोच कर कहा, “बाबूजी, वो बड़ा गाँव वाला मंदिर कैसा रहेगा?”
“पूछ सकते हैं, लेकिन बात तो वही है न!” डैड ने कहा, “वो मंदिर भी गाँव से कोई दूर नहीं है! सभी लोग जान जाएँगे!”
“हाँ, वो भी है!”
“डैड, जगह ऐसी हो जहाँ चार पाँच घंटे की ड्राइव में जाया जा सके! दिन में कोर्ट वेडिंग, फिर मंदिर, अगले सवेरे शादी, और फिर वापसी। फिर उसी रात को, या अगले दिन, रिसेप्शन!” मैंने कहा, “इसमें सब जल्दी हो जाता है!”
“दिल्ली - एन सी आर के आउटस्कर्ट पर देखो फिर! अगर कोई ढंग का मंदिर मिल जाता है तो!”
“वैसे कोर्ट में शादी करने के बाद इसकी ज़रुरत ही क्या है?” मेरे मन में विचार आया।
“नहीं नहीं!” काजल ने तुरन्त कहा, “शादी जैसे काम में भगवान् का आशीर्वाद होना ज़रूरी है अमर!”
“काजल बिटिया बिलकुल ठीक कह रही है बेटा!” डैड ने कहा, “भगवान् ही सब बनाते हैं, वो ही सब बिगाड़ते है! सब उन्ही का खेल है! इसलिए उनका आशीर्वाद बहुत ज़रूरी है!”
उनकी मान्यता थी, इसलिए मैंने उसके विरोध में कुछ भी कहना मुनासिब नहीं समझा।
“अपने शहर वाले मंदिर में भी तो कर सकते हैं न!” काजल ने फिर से सुझाया।
“हाँ, लेकिन फिर आने जाने में बहुत दिक्कत है - दस बारह घंटे की ट्रेन यात्रा!”
“हम्म्म,” माँ ने कहा, “अमर बेटा, मेरे ख़याल से तुम यहीं, दिल्ली ही में कोई मंदिर ढूंढो। कोर्ट मैरिज के बाद मंदिर से कोई सर्टिफिकेट तो लेना नहीं है। बस, धार्मिक काम, धार्मिक संस्कार पूरे करने हैं। देख लो!”
“जी माँ!”
पिछली बार सब कितनी आसानी से हो गया था, लेकिन इस बार न जाने किस कारण से अपने विवाह को ले कर मेरे दिल में बेचैनी सी हो रही थी। वो कहते हैं न - दूध का जला, छाछ भी फूँक-फूँक कर पीता है! वही मेरी भी हालत थी। शादी को लेकर उत्साह नहीं था - हाँ, लेकिन मेरे और डेवी के विवाहित जीवन को ले कर रोमाँच सा महसूस हो रहा था। मन ही मन मैंने भगवान् से प्रार्थना करी कि सब कुछ ठीक रखें और अपनी दया बनाए रखें हम सभी पर!
हमारी बातें हो ही रही थीं कि इसी बीच लतिका उनींदी सी आई और काजल की गोद में आ कर झूल गई।
“अरे मेरी लाडो रानी!” माँ उसको लाड़ करते हुए बोलीं, “बेटू के निन्नी का टाइम हो गया!”
“अरे अभी कहाँ दीदी!” काजल बोली।
‘दीदी?’ मेरे दिमाग में यह शब्द गूँज गया, ‘माँ का डिमोशन हो गया क्या?’ मैंने मज़े लेते हुए सोचा।
“साढ़े नौ से पहले कहाँ सोती है ये!” काजल का कहना जारी था।
“हाँ लेकिन कल रात ट्रेन की धक्का मुक्की में ठीक से नींद नहीं आई होगी इसको! पूरी रात हिल रही थी ट्रेन!” माँ ने कहा, “देखो, कैसे आँखें बंद हुई जा रही हैं!”
“निन्नी आई है पुचुकी?”
लतिका ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“हाँ देखो न! आई है निन्नी!” माँ ने उसकी बात का अनुमोदन किया, “काजल, दूध पिला कर सुला दो इसे!”
“हाँ दीदी,” कह कर काजल ने लतिका को चूमा, और फिर अपनी ब्लाउज के बटन खोलने लगी।
मुझे यह जान कर और देख कर बहु ही अधिक अच्छा लगा कि काजल लतिका को अभी भी स्तनपान करा रही थी। और यह चमत्कार संभव हुआ था ‘हमारी’ संतान के कारण! अगर वो आज जीवित होती, तो डेढ़ साल की होती। अपनी अनदेखी अनजानी बच्ची के बारे में सोच कर मेरा दिल कचोट गया।
जब लतिका ने अपनी माँ का अमृत भरा चूचक अपने मुँह में भर कर संतुष्टि भरी ‘हम्म्म’ की आवाज़ निकाली, तो मुझे लगा कि जैसे मुझे ही उसके जैसी संतुष्टि मिल गई हो! जब बच्चे शांति से स्तनपान करते हैं, तो माँ और बच्चे दोनों के ही चेहरे पर उठने वाले भाव देखते ही बनते हैं - लगता है कि जैसे उस समय वहाँ स्वयं ईश्वर उपस्थित हों! लतिका को काजल का दूध पीता देख कर मुझे बहुत सुकून हुआ - लतिका भी तो अपनी ही बच्ची है!
मैं तो कहता हूँ कि माओं को चाहिए कि अपने हर बच्चे को, जब तक संभव है, तब तक स्तनपान कराती रहें! कितने सारे तो लाभ होते हैं - माँ को भी और बच्चों को भी! मैं शायद बेहद भाग्यशाली और बिरले लोगों में रहा हूँगा, जिनको अपनी माँ का स्तनपान अपने किशोरवय में भी करने को मिला। बाद में काजल से पूछने पर उसने बताया कि वो लतिका और सुनील दोनों को ही स्तनपान कराती है। उसको दूध प्रचुर मात्रा में बन रहा था! जब वो माँ और डैड के साथ रहने गई थी, तो माँ ने ही उसको स्तनपान कराते रहने के लिए बहुत प्रोत्साहित किया था। दोनों बच्चे भी खुश हैं, और इसके कारण उसका वज़न भी यथोचित था! बहुत अच्छी बात थी। मैं सुनील और लतिका - दोनों के लिए ही बहुत खुश हुआ।
“किसको किसको बुलाया जाए?” माँ ने हमारी बात को आगे बढ़ाया।
“गाँव से तो भईया और भाभी (पड़ोस वाले चाचा जी और चाची जी) को न्योता दे देते हैं। केवल वो ही आ पाएँगे फिलहाल! बाकी दो तीन लोग ऑफिस से आ जाएँगे।” डैड ने कहा, और फिर जैसे कुछ सोच कर बोले, “बहुत लोगों को यहाँ बुलाने का मन नहीं है! घर पर ही सभी को बुला कर पार्टी कर लेंगे न!”
“हाँ, मैं भी यही सोच रही थी।” माँ ने सहमति जताई, “काजल, तुम किसी को बुलाना चाहती हो?”
“नहीं दीदी! तुम तो जानती ही हो कि घर में झगड़ा चल रहा है।”
“झगड़ा? किस बात का?” मैंने पूछा।
“अरे, और किस बात का? प्रॉपर्टी को ले कर! किसी को करना धरना कुछ नहीं है, लेकिन चाहिए सब कुछ!”
बाद में पता चला कि चूँकि काजल की माँ बूढ़ी हो चली हैं, इसलिए उसके दोनों भाई उनसे गाँव की जायदाद अपने नाम लिखवाना चाहते हैं। लेकिन उसकी माँ ने सब कुछ काजल के नाम छोड़ दिया है। झगड़ा इसी बात का था। सोचने वाली बात थी कि जायदाद के नाम पर केवल झोपड़ी थी और कोई दस बीघा ज़मीन - जिस पर ठीक से खेती भी नहीं की जा सकती (बंगाली बीघा, देश के अन्य स्थानों के मुकाबले लगभग आधा होता है)। सब कुछ मिला कर, बहुत अधिक हो तो, कोई चार या साढ़े-चार लाख रुपए की संपत्ति थी वो - और यह तब जब वामी कैडर उसको बिकने दे। उसके लिए झगड़ा!
“तुम तीनों रहना काजल,” मैंने कहा, “तुम भी तो इसी परिवार का हिस्सा हो!”
“अरे, रहेगी कैसे नहीं?” माँ ने कहा, “बस, सुनील के एग्जाम होने वाले रहेंगे, कोई दो महीने बाद! लेकिन वो कोई दिक्कत नहीं! वो तो अव्वल नंबर बच्चा है!”
“तो फिर तय रहा,” डैड ने जैसे निर्णय सुनाते हुए कहा, “सुमन के बर्थडे के दिन तुम्हारा और देवयानी का ब्याह करवा देंगे! पहले कोर्ट मैरिज, और फिर मंदिर में विधि पूर्वक!”
“जी ठीक है, डैड!”
“लेकिन मंदिर तुम डिसाइड करो! और जल्दी! हमको अभी बहुत से इंतजाम देखने हैं!”
“जी डैड!”
“और अगर हो सके, तो बहू को कल बुला लो यहाँ! जाने से पहले साथ में खाना खा लेंगे!” डैड ने सुझाया।
“हाँ!” काजल चहकते हुए बोली, “मुझे तो बहुत सुन्दर लगीं देवयानी दीदी! और बहुत अच्छी भी!”
“हा हा हा! ठीक है काजल!”
वैसे आर्य समाज मंदिर भी एक ऑप्शन होनी चाहिए
ज्यादा तर प्रेमी युगल इस बात पर ध्यान नहीं देते
हाँ यह बात हैबिलकुल एक ऑप्शन है आर्य समाजी शादी! लेकिन वो बेहद सादा सादा होता है।
और काजल का पॉइंट ऑफ़ व्यू पढ़ा ही होगा आपने। मंदिर में थोड़ा ओम-तोम हो जाता है, तो भव्य लगता है।
इसलिए!
Nice update..!!नया सफ़र - लकी इन लव - Update #17
हम दोनों परिवारों का मिलन बहुत सुखमय रहा।
डेवी के डैडी उम्र में हम सभी से ही बड़े थे, लेकिन उनकी सज्जनता देखने वाली थी। उन्होंने माँ, डैड और काजल को उसी तरह का सम्मान दिया, जैसा समधियों को अक्सर ही दिया जाता है। कोई पाँच घण्टे के विस्तृत वार्तालाप के बाद हम सभी वापस घर लौट आए। वापस आते समय माँ ने डेवी को ‘घर’ आने का बुलावा दे दिया। इस न्योते पर डेवी के डैडी ने कहा कि ‘बेटा, देवयानी तो अब आपके ही घर जाने वाली है!’ बात तो सही थी, लेकिन माँ का उत्साह और उनका स्नेह अपनी सीमा नहीं समझ पाता।
मालूम पड़ा कि डैड और परिवार की वापसी की यात्रा का टिकट रविवार की रात के लिए बुक हुआ था। लिहाज़ा हमारे पास एक पूरा दिन का समय था जिसमे हम शादी के लिए ज़रूरी कामों के बारे में वार्तालाप कर सकते थे। अच्छी बात थी! विवाह के इंतजाम में और कोई समस्या नहीं थी, लेकिन माँ के जन्मदिन पर शादी करने के लिए हमारे पास समुचित तैयारी करने के लिए समय बहुत कम था, और काम बहुत अधिक! दिल्ली जैसे शहर में आनन फानन वाला काम हो पाना कठिन है।
वैसे देवयानी और मैं - दोनों ही एक साधारण सा विवाह समारोह चाहते थे! हमको किसी भी तरह की तड़क भड़क की दरकार नहीं थी - मेरी दूसरी शादी थी, और देवयानी बत्तीस-तैंतीस साल की थी। जब आप जीवन के ऐसे पड़ावों पर होते हैं, तो विवाह से आप तड़क भड़क की दरकार नहीं रखते। आप केवल वैवाहिक सुख चाहते हैं। मेरी भी वही दशा थी, और डेवी की भी! इस लिहाज़ से डेवी को गैबी के ही समान मंदिर में शादी करने का विचार बढ़िया लग रहा था। लेकिन इतने कम समय में तो दिल्ली में मंदिर में भी बुकिंग नहीं मिलती! मतलब दिक्कत तो थी। उधर डेवी के डैडी भी थोड़ा निराश थे - वो चाहते थे कि उनकी छोटी बेटी की शादी भी बड़ी बेटी की ही तरह धूमधाम से हो, न कि ऐसे भागमभागी में! लेकिन हमने उनको समझा लिया - कि शादी तो परिवारों की है। हम दोनों सुख से रहेंगे, और ख़ुशी ख़ुशी रहेंगे! अब ऐसे प्रयोजन में तड़क भड़क का क्या स्थान? कहीं भी आराम से, शांति से शादी कर लेंगे - या तो मंदिर में या फिर कोर्ट में! फिर अपने सभी मित्रों और परिवारों को शानदार न्योता दे देंगे! यह एक क्रांतिकारी विचार था - इसलिए इस विचार का उन्होंने कुछ समय तक विरोध अवश्य किया, लेकिन जब उन्होंने हमारे प्रस्ताव में निहित प्रासंगिक योग्यता देखी, तो उनका विरोध भी कम हो गया।
उन्होंने ही सुझाया कि हम पहले कोर्ट मैरिज करें, फिर उसके बाद मंदिर में शादी कर लें! वो एक आई ए एस रह चुके थे, इसलिए उनकी पहचान से कोर्ट मैरिज का इतना जल्दी इंतजाम संभव था। हाँ, मंदिर वाला विकल्प दिल्ली में मिलना मुश्किल था। वो सोचने का जिम्मा मुझ पर और डेवी पर छोड़ दिया गया। उनको इस बात से भी अफ़सोस था कि मैं और डेवी अपनी शादी में होने वाले सभी खर्चों का वहन खुद ही करना चाहते थे। इस बात से उनकी डेवी के ब्याह में दिल खोल कर खर्च करने की तमन्ना का खून हो गया था! डेवी और मैं यह चाहते थे कि हम दोनों ही, अपने ही हैसियत के हिसाब से हमारी शादी की सारी व्यवस्था करें और उसमे होने वाले सभी खर्चों को वहन करें। हम दोनों बढ़िया कमाते थे, इसलिए हमको अपनी योग्यता पर अभिमान भी था। जब हमारे हाथ में साधन है, तो फिर अपने माँ बाप से एक पैसा भी क्यों लें?
डेवी के यहाँ से आने के और रात्रिभोज के बाद, घर में सभा बैठी। कौन सा मंदिर मेरी और डेवी की शादी के लिए उपयुक्त है - यह निश्चित करना था।
“क्यों न,” काजल ने सुझाया, “गाँव वाले शिव-पार्वती मंदिर में ही शादी करी जाए?”
हाँ - पिछली बार शिव पार्वती मंदिर में शादी का बड़ा सुखद अनुभव हुआ था। इसलिए माँ और डैड तुरंत ही इस बात से सहमत हो गए। कोई और समय होता, तो मैं भी तुरंत ही मान जाता। लेकिन,
“नहीं काजल,” मैंने कहा, “वहाँ नहीं! दो साल ही पहले मेरी शादी हुई थी वहाँ! उसकी याद मुझे अभी भी है। आईडिया अच्छा है लेकिन वहाँ नहीं! प्लीज!”
“हम्म! बात तो ठीक है!” डैड ने कहा, “बहुत अच्छा इम्प्रैशन नहीं पड़ता! गाँव वाले अगर कुछ बातें बनाएँगे तो हम सभी को बुरा लगेगा! लोगों की सोच अभी इतनी विकसित नहीं हुई है! कुछ भी बोल सकते हैं। और बात अपने तक ही रहे तो ठीक है। लेकिन यहाँ समधी जी के आदर सम्मान का सवाल है!”
“आप ठीक कहते हैं, किसी के मुँह को रोका तो नहीं जा सकता है!” माँ ने भी उनकी बात का समर्थन किया।
काजल ने फिर कुछ सोच कर कहा, “बाबूजी, वो बड़ा गाँव वाला मंदिर कैसा रहेगा?”
“पूछ सकते हैं, लेकिन बात तो वही है न!” डैड ने कहा, “वो मंदिर भी गाँव से कोई दूर नहीं है! सभी लोग जान जाएँगे!”
“हाँ, वो भी है!”
“डैड, जगह ऐसी हो जहाँ चार पाँच घंटे की ड्राइव में जाया जा सके! दिन में कोर्ट वेडिंग, फिर मंदिर, अगले सवेरे शादी, और फिर वापसी। फिर उसी रात को, या अगले दिन, रिसेप्शन!” मैंने कहा, “इसमें सब जल्दी हो जाता है!”
“दिल्ली - एन सी आर के आउटस्कर्ट पर देखो फिर! अगर कोई ढंग का मंदिर मिल जाता है तो!”
“वैसे कोर्ट में शादी करने के बाद इसकी ज़रुरत ही क्या है?” मेरे मन में विचार आया।
“नहीं नहीं!” काजल ने तुरन्त कहा, “शादी जैसे काम में भगवान् का आशीर्वाद होना ज़रूरी है अमर!”
“काजल बिटिया बिलकुल ठीक कह रही है बेटा!” डैड ने कहा, “भगवान् ही सब बनाते हैं, वो ही सब बिगाड़ते है! सब उन्ही का खेल है! इसलिए उनका आशीर्वाद बहुत ज़रूरी है!”
उनकी मान्यता थी, इसलिए मैंने उसके विरोध में कुछ भी कहना मुनासिब नहीं समझा।
“अपने शहर वाले मंदिर में भी तो कर सकते हैं न!” काजल ने फिर से सुझाया।
“हाँ, लेकिन फिर आने जाने में बहुत दिक्कत है - दस बारह घंटे की ट्रेन यात्रा!”
“हम्म्म,” माँ ने कहा, “अमर बेटा, मेरे ख़याल से तुम यहीं, दिल्ली ही में कोई मंदिर ढूंढो। कोर्ट मैरिज के बाद मंदिर से कोई सर्टिफिकेट तो लेना नहीं है। बस, धार्मिक काम, धार्मिक संस्कार पूरे करने हैं। देख लो!”
“जी माँ!”
पिछली बार सब कितनी आसानी से हो गया था, लेकिन इस बार न जाने किस कारण से अपने विवाह को ले कर मेरे दिल में बेचैनी सी हो रही थी। वो कहते हैं न - दूध का जला, छाछ भी फूँक-फूँक कर पीता है! वही मेरी भी हालत थी। शादी को लेकर उत्साह नहीं था - हाँ, लेकिन मेरे और डेवी के विवाहित जीवन को ले कर रोमाँच सा महसूस हो रहा था। मन ही मन मैंने भगवान् से प्रार्थना करी कि सब कुछ ठीक रखें और अपनी दया बनाए रखें हम सभी पर!
हमारी बातें हो ही रही थीं कि इसी बीच लतिका उनींदी सी आई और काजल की गोद में आ कर झूल गई।
“अरे मेरी लाडो रानी!” माँ उसको लाड़ करते हुए बोलीं, “बेटू के निन्नी का टाइम हो गया!”
“अरे अभी कहाँ दीदी!” काजल बोली।
‘दीदी?’ मेरे दिमाग में यह शब्द गूँज गया, ‘माँ का डिमोशन हो गया क्या?’ मैंने मज़े लेते हुए सोचा।
“साढ़े नौ से पहले कहाँ सोती है ये!” काजल का कहना जारी था।
“हाँ लेकिन कल रात ट्रेन की धक्का मुक्की में ठीक से नींद नहीं आई होगी इसको! पूरी रात हिल रही थी ट्रेन!” माँ ने कहा, “देखो, कैसे आँखें बंद हुई जा रही हैं!”
“निन्नी आई है पुचुकी?”
लतिका ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“हाँ देखो न! आई है निन्नी!” माँ ने उसकी बात का अनुमोदन किया, “काजल, दूध पिला कर सुला दो इसे!”
“हाँ दीदी,” कह कर काजल ने लतिका को चूमा, और फिर अपनी ब्लाउज के बटन खोलने लगी।
मुझे यह जान कर और देख कर बहु ही अधिक अच्छा लगा कि काजल लतिका को अभी भी स्तनपान करा रही थी। और यह चमत्कार संभव हुआ था ‘हमारी’ संतान के कारण! अगर वो आज जीवित होती, तो डेढ़ साल की होती। अपनी अनदेखी अनजानी बच्ची के बारे में सोच कर मेरा दिल कचोट गया।
जब लतिका ने अपनी माँ का अमृत भरा चूचक अपने मुँह में भर कर संतुष्टि भरी ‘हम्म्म’ की आवाज़ निकाली, तो मुझे लगा कि जैसे मुझे ही उसके जैसी संतुष्टि मिल गई हो! जब बच्चे शांति से स्तनपान करते हैं, तो माँ और बच्चे दोनों के ही चेहरे पर उठने वाले भाव देखते ही बनते हैं - लगता है कि जैसे उस समय वहाँ स्वयं ईश्वर उपस्थित हों! लतिका को काजल का दूध पीता देख कर मुझे बहुत सुकून हुआ - लतिका भी तो अपनी ही बच्ची है!
मैं तो कहता हूँ कि माओं को चाहिए कि अपने हर बच्चे को, जब तक संभव है, तब तक स्तनपान कराती रहें! कितने सारे तो लाभ होते हैं - माँ को भी और बच्चों को भी! मैं शायद बेहद भाग्यशाली और बिरले लोगों में रहा हूँगा, जिनको अपनी माँ का स्तनपान अपने किशोरवय में भी करने को मिला। बाद में काजल से पूछने पर उसने बताया कि वो लतिका और सुनील दोनों को ही स्तनपान कराती है। उसको दूध प्रचुर मात्रा में बन रहा था! जब वो माँ और डैड के साथ रहने गई थी, तो माँ ने ही उसको स्तनपान कराते रहने के लिए बहुत प्रोत्साहित किया था। दोनों बच्चे भी खुश हैं, और इसके कारण उसका वज़न भी यथोचित था! बहुत अच्छी बात थी। मैं सुनील और लतिका - दोनों के लिए ही बहुत खुश हुआ।
“किसको किसको बुलाया जाए?” माँ ने हमारी बात को आगे बढ़ाया।
“गाँव से तो भईया और भाभी (पड़ोस वाले चाचा जी और चाची जी) को न्योता दे देते हैं। केवल वो ही आ पाएँगे फिलहाल! बाकी दो तीन लोग ऑफिस से आ जाएँगे।” डैड ने कहा, और फिर जैसे कुछ सोच कर बोले, “बहुत लोगों को यहाँ बुलाने का मन नहीं है! घर पर ही सभी को बुला कर पार्टी कर लेंगे न!”
“हाँ, मैं भी यही सोच रही थी।” माँ ने सहमति जताई, “काजल, तुम किसी को बुलाना चाहती हो?”
“नहीं दीदी! तुम तो जानती ही हो कि घर में झगड़ा चल रहा है।”
“झगड़ा? किस बात का?” मैंने पूछा।
“अरे, और किस बात का? प्रॉपर्टी को ले कर! किसी को करना धरना कुछ नहीं है, लेकिन चाहिए सब कुछ!”
बाद में पता चला कि चूँकि काजल की माँ बूढ़ी हो चली हैं, इसलिए उसके दोनों भाई उनसे गाँव की जायदाद अपने नाम लिखवाना चाहते हैं। लेकिन उसकी माँ ने सब कुछ काजल के नाम छोड़ दिया है। झगड़ा इसी बात का था। सोचने वाली बात थी कि जायदाद के नाम पर केवल झोपड़ी थी और कोई दस बीघा ज़मीन - जिस पर ठीक से खेती भी नहीं की जा सकती (बंगाली बीघा, देश के अन्य स्थानों के मुकाबले लगभग आधा होता है)। सब कुछ मिला कर, बहुत अधिक हो तो, कोई चार या साढ़े-चार लाख रुपए की संपत्ति थी वो - और यह तब जब वामी कैडर उसको बिकने दे। उसके लिए झगड़ा!
“तुम तीनों रहना काजल,” मैंने कहा, “तुम भी तो इसी परिवार का हिस्सा हो!”
“अरे, रहेगी कैसे नहीं?” माँ ने कहा, “बस, सुनील के एग्जाम होने वाले रहेंगे, कोई दो महीने बाद! लेकिन वो कोई दिक्कत नहीं! वो तो अव्वल नंबर बच्चा है!”
“तो फिर तय रहा,” डैड ने जैसे निर्णय सुनाते हुए कहा, “सुमन के बर्थडे के दिन तुम्हारा और देवयानी का ब्याह करवा देंगे! पहले कोर्ट मैरिज, और फिर मंदिर में विधि पूर्वक!”
“जी ठीक है, डैड!”
“लेकिन मंदिर तुम डिसाइड करो! और जल्दी! हमको अभी बहुत से इंतजाम देखने हैं!”
“जी डैड!”
“और अगर हो सके, तो बहू को कल बुला लो यहाँ! जाने से पहले साथ में खाना खा लेंगे!” डैड ने सुझाया।
“हाँ!” काजल चहकते हुए बोली, “मुझे तो बहुत सुन्दर लगीं देवयानी दीदी! और बहुत अच्छी भी!”
“हा हा हा! ठीक है काजल!”