- 4,213
- 23,569
- 159
![b6ed43d2-5e8a-4e85-9747-f27d0e966b2c b6ed43d2-5e8a-4e85-9747-f27d0e966b2c](https://i.ibb.co/mhSNsfC/b6ed43d2-5e8a-4e85-9747-f27d0e966b2c.jpg)
Last edited:
Brilliant writing. Eagerly waiting for next update.नया सफ़र - विवाह - Update #5
आज से पहले भी मैंने कई बार डेवी के कपड़े उतारे थे - लेकिन उसका ब्लाउज कभी भी नहीं। तो यह पहला अनुभव था!
‘उसकी ब्लाउज़ उतारने का अनुभव दिलवाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, ससुर जी!’
डेवी ने जब मुझे उसकी ब्लाउज़ से छेड़खानी करने हुए देखा, वो वो शरमा कर मुस्कुराने लगी। मैं इस समय उत्तेजना से भर गया था और उसके कारण मेरा हाथ थोड़ा काँपने लगा। मैं हैरान था! ये तब हो रहा था जब हम आज से पहले भी कई बार सम्भोग कर चुके थे! जब मैंने उसके ब्लाउज के बटन खोल दिए, तो देखा कि उसके स्तन एक आकर्षक और सेक्सी, गहरे लाल रंग की ब्रा में छुपे हुए थे। वो एक डेमी-कप ब्रा थी - मतलब उसमे सामान्य से केवल आधा ही कप था। इस कारण से ब्रा में से उसके एरोला का कोई चौथाई हिस्सा दिख रहा था। वैसे यह कोई ब्रा नहीं थी, बल्कि ब्रा-लेट थी - और पारदर्शी गुईप्योर लेस की बनी हुई थी। यह बहुत ही कोमल वस्त्र था - यह स्तनों को सहारा देने के लिए नहीं बना था। वैसे भी देवयानी के स्तनों को किसी सहारे की आवश्यकता नहीं थी। नहीं। उस ब्रा-लेट का उपयोग देखने वाले की कामुकता बढ़ाने वाला था। सच में - डेवी के सेक्सी स्तनों को उस वस्त्र में देखना - यह दृश्य बेहद बेहद कामुक था! और वस्त्रों का ऐसा चयन, इस अवसर के लिए बिल्कुल सही भी था! मेरे लिंग में ऐसा स्तम्भन हो गया था कि जैसे अब उसमे विस्फ़ोट हो जाएगा! सही प्रभाव! मैंने डेवी का ब्लाउज उतार दिया, और बाहें उठा कर उसको उतरवाने में मेरी मदद भी करी। साड़ी वैसे भी आधी अधूरी लटकी हुई थी उसके पेटीकोट से, वो उसको भी एक झटके से उतार दिया गया। उस झटके से पेटीकोट के नाड़े ही गाँठ भी ढीली पड़ गई थी, जिहाजा, साड़ी के साथ वो भी स्वयं ही नीचे सरक गई। मैंने डेवी को अपनी गोद में उठाया और उसे बिस्तर पर लिटा दिया।
मैंने दो कदम पीछे हो कर उसकी ओर मन भर कर देखा - उसके सर से लेकर उसके पैरों तक - वो केवल अपने आभूषणों और उन सेक्सी, लैस के मैचिंग अधोवस्त्रों को पहने बिस्तर पर लेटी हुई थी।
बहुत देर तक देखने के बाद मैंने कहा, “वाह!”
“जानू मेरे! आपने मुझे कितनी बार तो देखा है!” उसने धीरे से, शर्माते हुए, और फिर भी मुस्कुराते हुए कहा।
“हाँ... देखा है! लेकिन फिर भी... ईमानदारी से कहूँ, तो आज तो तुम पूरी क़यामत लग रही हो!” उसकी आँखों में देखते हुए मैंने कहा, “तुम मेरे लिए सबसे खूबसूरत और सबसे सेक्सी लड़की हो!”
डेवी ने एक पल मेरी तरफ देखा - वो समझ रही थी कि मेरा हर एक शब्द पूरी तरह से सच्चाई से बोला गया था। वो इस प्रत्याशा से मुस्कुराने लगी कि अब मैं न जाने क्या करूँगा। मैंने आगे झुक कर उसकी जाँघों को चूमा - वो खुशी से चिहुँक गई। और उसी समय मुझे अचानक से एक विचार आया... मैंने मन ही मन अपने आपको कोसा भी - क्यों नहीं मैंने इसके बारे में पहले नहीं सोचा? लेकिन जिस क्षण, डेवी ने किलकारी मारी, मैं समझ गया कि मुझे उसकी तस्वीरें उतारनी हैं! मैंने उसे अपनी तर्जनी दिखाते हुए ‘एक मिनट’ का ब्रेक माँगा। वो मेरी इस हरकत पर हैरानी से मुस्कुराई।
मैं बिस्तर से उठा, और तेजी से दरवाज़े की तरफ़ बढ़ा। मैंने जैसे ही दरवाजा खोला और बाहर आया, मैंने देखा कि जयंती दीदी, मुझको चिढ़ाने वाले भाव लिए, और अपने हाथ में एक कैमरा लिए खड़ी हैं। जैसे कि उनको मालूम हो कि मैं अपनी बीवी की तस्वीरें उतारना चाहता था, और वो इसीलिए मेरा ही इंतज़ार कर रही थीं!
“दामाद जी,” उन्होंने मुझको चिढ़ाते हुए कहा, “क्या आप अपने सुहागरात की कुछ खास तस्वीरें नहीं लेना चाहते?” दीदी ने चुटीली, शरारती मुस्कराहट के साथ पूछा।
“ओह गॉड! थैंक यू, दीदी!”
“अरे अरे... नहीं नहीं! ऐसे नहीं! बिना अपनी एकलौती साली को कुछ दिए अपनी बीवी के पास जाओगे, तो यही होगा!” उन्होंने मुझे फिर से छेड़ा, “मेरा नेग कहाँ है?”
“क्या दीदी! मुझे जाने दीजिये न! मेरी दुल्हन मेरा इंतजार कर रही है।” मैंने भी शरारत से कहा।
“तो पहले मुझे मेरा नेग दो?”
“ओह गॉड! आप भी न! अच्छा बोलिए, आपको क्या चाहिए?”
“जो माँगूगी, दोगे?”
“अरे दीदी! पहेलियाँ न बुझाइए और बोलिये न!”
“आय हाय! कैसी बेकरारी!” उन्होंने मुझे फिर से चिढ़ाया, “बीवी से मिलने के लिए रहा नहीं जा रहा है आपसे?”
“ओह दीदी! ठीक है! न बताओ - आपका ही नुकसान है!” कह कर मैं जाने लगा!
“अरे रुको रुको!” जयंती दीदी का स्टाइल बिलकुल नहीं बदला, “मेरे प्यारे दामाद जी, नेग में मुझे तुम्हारा छुन्नू देखना है!”
“क्या!? धत्त!”
“क्या धत्त? मेरी पिंकी के हस्बैंड पर मेरा भी तो कोई हक़ है!”
“अरे दीदी! जाने दो न!”
“अरे चले जाना! वो तो बेचारी तुम्हारा ही इंतज़ार कर रही है! लेकिन मेरा भी तो काम कर दो न!” जयंती दी मुझे बुरी तरह से चिढ़ा रही थीं।
“दिखा दूँगा दीदी,” मैंने हथियार डालते हुए और पीछा छुड़ाते हुए कहा, “लेकिन अभी नहीं। बाद में?”
“बाद की किसने देखी है? चलो चलो... अब देर न करो! जल्दी से इसको बाहर निकालो, और मुझे दिखा दो! फिर ये कैमरा तुम्हारा!”
“ओह दीदी! यू आर इनकरीजिबल!” मैंने कहा और अपने पायजामे में हाथ डालकर अपना लिंग बाहर निकाल लिया।
जयंती दीदी ने उसे देखा और छुआ और फिर घोषणा की, “च च! ये तो नरम पड़ा हुआ है बिलकुल! पिल्लू जैसा! शिलाजीत दूँ क्या?”
ऐसे चिढ़ाए जाने पर चिढ़ना तो लाज़मी है - मैंने उनके हाथ से कैमरा छीन लिया, और वो मेरी इस हरकत से हँसने लगीं।
“फक यू!” उनको हँसता हुआ देख कर मैं भी हँसने लगा, लेकिन मैंने उनको डाँट लगाई।
“एनी टाइम हनी, एनी टाइम!” उन्होंने कहा और हँसते हुए वहां से चली गईं।
मैं कैमरा ले कर कमरे में वापस लौट आया, और देवयानी की तस्वीरें क्लिक करने लगा। देवयानी शुरू में शर्मीली अवश्य थी, लेकिन फिर इस नए अनुभव का आनंद उठाने लगी और फिर मुझसे खुलने लगी। मैं कुछ देर उसकी तस्वीरें निकालता और फिर उसको चूमता! कुछ देर बाद देवयानी ने मेरा कुर्ता हटा दिया, और पायजामे के ऊपर से मेरे लिंग के उभार को महसूस किया। मेरे लिंग के कड़ेपन को महसूस कर के वो कराह उठी। जब वो मेरे पायजामे को उतारने में मेरी मदद कर रही थी, तो मैं उसकी ब्रा और पैंटी को उतारने में उसकी मदद करने लगा। जैसे ही मैंने उसकी पैंटी उतारी, मेरे गले से सिसकारी निकल गई। उसकी योनि पर एक भी बाल नहीं था! उसकी योनि किसी बच्चे के नितम्ब जैसी चिकनी थी! मैंने उसकी तरफ़ आश्चर्य से देखा।
डेवी समझ गई कि मैं क्या पूछना चाहता हूँ। उसने कहा,
“हनी, हम पहले भी कई बार सेक्स कर चुके हैं... तो, मैं आपको कुछ नया देना चाहती थी... हमारी सुहागरात में आपको कुछ नया, कुछ अनोखा मिलना चाहिए न! तो मैंने सोचा कि आज रात के लिए... चिकनी चूत... ऐसे ही बोलते हो न आप लोग इसे? सो, दिस इस माय गिफ़्ट फॉर यू!” वो मुस्कुराई।
“आई लव इट माय लव!” मैंने उसकी योनि को चूमते हुए कहा, “सबसे प्यारी चूत है ये!” मैंने कहा और उसकी योनि के होठों को गहराई तक चूमा। फिर मैं अपनी पूर्ण-नग्न डेवी की तस्वीरें क्लिक करने लगा।
“ये ज़ेवर भी उतार दूँ?” उसने पूछा।
“बिलकुल भी नहीं!” मैंने कहा, “सुहागिन औरतें पूरी तरह सजी-धजी ही सुन्दर लगतीं हैं!”
“हा हा हा!” उसने हँसते हुए, रुचिपूर्वक कहा, “आप कैसी पोज़ चाहते हैं, मुझसे?”
“यहाँ... बिस्तर पर बैठ कर, अपनी एड़ियों को पीछे की तरफ़ एक साथ रखो।” मैंने समझाया।
“ऐसे?” उसने एक पोज़ कर के दिखाया।
“नहीं, एक सेकंड रुको।” मैं गया और उसके घुटनों को सामने की तरफ़ खोलते हुए मैंने उसको बैठाया।
उस पोज़ में उसकी योनि के होंठ कुछ खुल गए... ऐसा लग रहा था कि जैसे वो मुस्कुरा रहे हों! सच में, पागल कर देने वाला दृश्य था वो!
“अभी ठीक है?” उसने पूछा।
“ठीक? क़यामत है मेरी जान! क़यामत!” मैंने उसकी योनि को छूते हुए कहा “आई लव यू योर पुसी!”
“थैंक यू!” उसने शरमाते हुए कहा।
मैं फिर उसकी तस्वीरें लेने लगा।
“इसमें अपनी एक उंगली डाल सकती हो?” मैंने बेतहाशा तस्वीरें लेते हुए कहा, “बहुत सेक्सी लगेगा!”
“हनी, आज रात तो केवल तुम ही इसके अंदर जा सकते हो।” डेवी ने बड़ी अदा से कहा।
मैं मुस्कराया।
“ठीक! फिर एक हाथ को अपने बूब्स पर ले जाओ!”
“ऐसे?” उसने कर के दिखाया।
मैं तस्वीरें निकाल तो रहा था, लेकिन अब तक मैं पूरी तरह से पागल हो गया था! मुझे ये लड़की चाहिए थी! अभी के अभी!
“डिड यू रियली लाइक दिस हनी?”
“अब्सॉल्युटली!”
“सच में? प्लीज टेल मी ओनेस्टली!”
“मेरी जान! मैं तो कितना पागल हुआ जा रहा हूँ... ये तेरी नंगी चूत को देखकर मैं पागल हो गया हूँ! सच में, बहुत सुन्दर लगती है ये ऐसे, और तुम भी!” मैंने अपनी तर्जनी से उसके चीरे पर चलाया, “ये अब कितनी लम्बी भी लग रही है! और अब मैं तुम्हारी लेबिया का रंग भी जान गया हूँ! ओह... दोनों होंठ कितने सूजे हुए हैं! आर यू एक्साइटेड हनी?”
“डोंट यू नो इट येट?”
मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया, और धीरे से उसको बिस्तर पर धकेलने लगा।
मैंने कहा, “हनी, आई नो!” फिर उसको चूम कर आगे बोला, “हनी, आई नो कि यह बात कहने का टाइम आज नहीं है, लेकिन मैं फिर भी यह कहना चाहता हूँ... एस मच एस आई वांट टू मेक लव टू यू, आई आल्सो वांट टू इम्प्रेगनेट यू! मैं चाहता हूँ कि तुम्हारे पेट में मेरा बच्चा आ जाए - जितना जल्दी हो उतना! हो सके, तो आज ही!”
मैंने उसकी योनि के होंठों को चूमा, फिर उसके पेट को चूमा, “समझी जानू? मैं तुमको गर्भवती करना चाहता हूँ!”
डेवी ने मेरे चेहरे की ओर देखा और मेरे दोनों गालों को अपने हाथों से कोमलता से छूते हुए, धीरे से कहा, “और तुमको क्या लगता है कि मुझे ये नहीं चाहिए? आई नो दैट यू वांट मी टू हैव योर बेबीज़... और मैं भी तो यही चाहती हूँ! तुम्हारे नहीं, तो और किसके बच्चे करूँगी? एंड आई वांट यू टू नो दैट आई ऍम रेडी!”
मैं मुस्कुराया।
डेवी ने कहना जारी रखा, “तुमको यह सब कहने की ज़रुरत नहीं! मैं भी माँ बनना चाहती हूँ! मुझे यह सब उतना ही चाहिए जितना कि तुम चाहते हो। मैं ये सब चाहती हूँ! कई सारे बच्चे और उनको कई सालों तक अपना दूध पिलाना! मैं आपकी हर विशेज़ पूरी करूँगी!”
डेवी की बात दिल को छू गई! बाहर से कड़क और मॉडर्न दिखने वाली देवयानी, अंदर से कितनी नरम, मृदुल और पारम्परिक थी - यह देखने वाली बात थी!
मैंने उसे चूमा और कहा, “ओह जान! ऐसे मत बोलो! नहीं तो मुझसे कण्ट्रोल नहीं होगा।”
“अरे कौन चाहता है कि आज रात आप कण्ट्रोल करो!” वो अदा से मुस्कुराई।
मैं मुस्कुराया और उसे चूमने के लिए आगे बढ़ा। हमने कुछ देर तक फ्रेंच-किस किया - हमारी जीभें एक दूसरे के साथ झूमने लगीं। ऐसे ही चूमते हुए, मैंने देवयानी को अपनी गोद में बैठा लिया। डेवी जैसी बला की सुन्दर, और पूर्ण-नग्न लड़की का मेरी गोद में होने का अनुभव बहुत आश्चर्यजनक था! हम दोनों के शरीर कामुक उत्तेजना से गर्म हो चले थे और थरथरा रहे थे! उसने मेरी गोद बैठे बैठे, न जाने कैसे, असंभव आसन लगा कर मेरी चड्ढी को मेरे शरीर से खिसका दिया। अब मैं भी पूरी तरह से नग्न था। उसने मेरे लिंग को पकड़ लिया, जो उसके नरम गरम स्पर्श को पा कर पूरी तरह से कठोर हो गया।
“ओओओओह! कितना बड़ा हो गया है ये!” उसने कहा - उसकी आँखें विस्मय से भर गई थीं और उसके होंठ अंग्रेज़ी के ‘ओ’ के आकार में खुल हुए थे। सच में, औरतों को अपने आदमियों को खुश करने का तरीका मालूम होता है! मैंने उसे फिर से चूमा। मैंने डेवी को कई बार नग्न देखा था, लेकिन आज वो वास्तव में अलग लग रही थी। उसके स्तनों को केवल सुंदर कहना न्यूनोक्ति है! यौवन की पुष्टता से भरे हुए और दृढ़, स्ट्रॉबेरी के रंग के चूचक और उनके गिर्द गुलाबी रंग का एरोला! और डेवी के हिलने डुलने से वे मेरी आंखों के सामने कामुकता से हिल रहे थे। ऐसी कामुकता कि मुर्दे में भी जान डाल दे!
मैंने देवयानी की ठुड्डी को चूमा, फिर उसकी गर्दन को जीभ से गुदगुदाया, और एक एक कर के, उसके दोनों चूचकों को चूमा। मैंने उसे बिस्तर पर ही, घुटनों के बल खड़ा किया, और शरारत से अपनी उंगली को उसके नितंबों की दरार में चलाया, और इससे पहले कि वो कोई प्रतिक्रिया दिखा पाती, मैंने उसे अपनी ओर खींच लिया। डेवी मेरी गोद में गिर गई और मैंने उसके कूल्हों को कुछ इस तरह से व्यवस्थित किया कि मेरा लिंग उसके दोनों चूतड़ों के मध्य दब जाए। डेवी समझ गई कि मैं क्या करना चाहता हूँ, तो उसने भी हिल-डुल कर ऐसा किया कि मेरा लिंग उसके नितम्बों के बीच की दरार में ठीक से बैठ जाए।
हमारा चुम्बन जारी रहा - और उसके साथ ही मेरा उसके स्तनों के साथ खेलना, उनको गुदगुदी करना, उनको दबाना कुचलना, इत्यादि भी जारी रहा। डेवी ने मेरे लिंग पर अपने नितम्ब हिलाए, लेकिन वो बहुत कुछ कर न सकी - वो इस आसन में थोड़ी असहाय सी थी। लिहाज़ा, उसने हार मान कर मेरे कंधे पर अपना सर रख लिया, और मेरे साथ ही काम समुद्र में गोते लगाने लगी। मैंने उसके पूरे शरीर को सहलाया! यह सब करते करते डेवी को उस रात कर पहला चरमोत्कर्ष प्राप्त हुआ - और मैंने अभी तक उसकी योनि को ठीक से छुआ भी नहीं था! एक विवाहित स्त्री के रूप में उसका पहला ओर्गास्म - और उसे ‘वहाँ’ छुआ तक नहीं गया था! कमाल है!
यह एक ऐसी सफलता थी जिसकी मुझे जरूरत थी। मैंने पहले ही सोच रखा था कि डेवी की योनि में मेरा लिंग तभी जाएगा जब तो मुझसे यह करने की भीख मांगेगी! मैंने उसके एक चूचक को अपने मुँह में भरा और किसी भूखे बच्चे की तरह उसके चूचक को चाटना और चूसना शुरू कर दिया।
nice update..!!नया सफ़र - विवाह - Update #3
शादी का दिन :
कोई दो हफ़्तों के भटकाव के बाद अंततः, देवयानी और मेरी शादी का दिन आ ही गया! जैसा कि तय किया गया था - सवेरे ही हमारी कोर्ट में शादी थी, और फिर शाम को मंदिर में! बीच में खाने पीने का प्रबंध था। दोनों ही शादियों के लिए प्रक्रिया और व्यवस्था बहुत सरल सी रखी गई थीं। कोर्ट वेडिंग के लिए, डेवी और मैं टी-शर्ट और जींस पहन कर तैयार हुए थे। सवेरे हल्की सी ठंडक थी, लेकिन फिर दिन में बड़ा आरामदायक मौसम था। शादी ब्याह के लिए बिलकुल मुफीद! दोनों ही मौकों पर हमारे परिवार के सभी सदस्य, और कुछ बहुत ही करीबी दोस्त मौजूद थे। न तो गाँव से, और न ही मेरे पैतृक कसबे से ही - कोई भी आ सका।
फॅमिली कोर्ट में जो मजिस्ट्रेट थे, वो बहुत खुशमिजाज टाइप के व्यक्ति थे! पूरा समय वो हँसी मज़ाक कर रहे थे, और हमको चुटकुले सुना रहे थे। साथ ही साथ वो हमको जीने के कई सारे नुस्खे भी देते जा रहे थे - कि किस बात पर जोड़ों की शादी टूट जाती है इत्यादि। उन्होंने हमको अधिक से अधिक तस्वीरें लेने की अनुमति भी दी। वैसे भी कोर्ट वेडिंग्स में कुछ ख़ास करने को होता नहीं - बस कागज़ों पर दस्तखत करने होते हैं। अब उसकी क्या तस्वीरें लेना! खैर, हमने एक दूसरे को मालाएँ पहनाईं और जहाँ जहाँ हमको कहा गया, वहाँ वहाँ हमने दस्तखत कर दिए। उसके बाद हमको पंजीकरण की रसीद काट के दे दी गई, और बोला गया कि हमारा मैरिज सर्टिफिकेट एक हफ़्ते में तैयार हो जाएगा। अच्छी बात थी!
कोर्ट वेडिंग के बाद, हम सीधा एक पाँच सितारा होटल में गए और शाम को मंदिर में शादी के लिए तैयार होने से पहले दोपहर का भोजन किया। माँ डैड और ससुर जी के चेहरों पर निराशा वाले भाव तो दिख रहे थे, लेकिन वो सभी कोशिश भी कर रहे थे कि ज्यादा निराश न लगें! धूमधाम वाली शादी की तमन्ना लिखने वाले लोग, ऐसी फीकी फीकी शादी से निराश तो होंगे ही न! अच्छी बात यह थी कि सभी हमारी शाम वाली, मंदिर वाली शादी को ले कर बहुत उत्साहित थे।
डेवी ने मेरी और गैबी की शादी की तस्वीरें देखी थीं, और वो मंदिर वाले सेटअप से बहुत प्रभावित हुई थी। लेकिन आज फ़र्क़ यह था कि इस बार हम अपने गांव वाले मंदिर में नहीं, बल्कि दिल्ली की सीमा पर स्थित एक मंदिर में शादी करने वाले थे। शाम वाली शादी के लिए ऑफिस के भी कई मित्र आने वाले थे, और अगली रात के प्रीती-भोज पर एक बड़ा हुजूम आने वाला था। यह व्यवस्था अच्छी थी - शादी अपने लिए होती है, और शादी की पार्टी सभी के लिए! दोनों को मिक्स नहीं करना चाहिए! और, देवयानी भी चाहती थी कि शादी वाली रात को न तो उसको, और न मुझे कोई थकावट हो! शादी की रात - सुहागरात - को तरोताजा और ऊर्जावान रहना उसके लिए बहुत आवश्यक था। खैर!
हम सभी देवयानी के ही घर पर तैयार होने के लिए वापस आए। अलग अलग जाने का कोई मतलब नहीं था। मेरे पास अपनी गाड़ी थी, देवयानी के पास अपनी, जयंती दीदी के पास अपनी, और डैडी (ससुर जी) के पास अपनी। मैं, देवयानी, काजल और लतिका एक गाड़ी में बैठे; माँ, डैड, ससुर जी और सुनील दूसरी में; जयंती दीदी अपने पति और बच्चों के साथ तीसरी में; और चौथी गाड़ी हमारे एक पडोसी मित्र चला रहे थे - उसमें विवाह से सम्बंधित सामान इत्यादि थे। माँ, जयंती दी, और काजल ने साठ-गाँठ कर के एक ही रंग की और एक ही प्रकार की क्रीम रंग की और लाल बॉर्डर वाली बनारसी रेशमी साड़ियाँ पहनी हुई थीं। मुझे यह जान कर बहुत अच्छा लगा कि तीनों में इतनी जल्दी, इतनी मित्रता हो गई थी। वैसे बहुत आश्चर्य वाली बात भी नहीं थी - तीनों ही हमउम्र थीं, तीनों का स्वभाव बहुत मधुर था, इसलिए मित्रता होना स्वाभाविक ही था!
उधर, देवयानी वही दुल्हनों वाला, पारम्परिक, लाल ज़रीदार बनारसी रेशम की साड़ी और अपने सभी आभूषण पहने हुए थी। उसको यूँ हीरे और सोने के आभूषणों से लदा-फदा देख कर मैंने मज़ाक किया कि कहीं कोई सड़क पर उसको लूट न ले! उसके उत्तर में देवयानी ने तो कुछ नहीं कहा, लेकिन काजल ने मुझे बहुत डाँट लगाई। मुझे आश्चर्य हुआ कि दोनों लड़कियाँ कितनी करीब हैं एक दूसरे के! अच्छा लगा - ख़ास तौर पर तब, जब डेवी को मेरे और काजल के इतिहास के बारे में पता था! और काजल भी तो डेवी को ऐसे दुलार पुचकार रही थी जैसे डेवी उसकी छोटी बहन या बेटी हो! कभी कभी समझ नहीं पाता मैं अपने जीवन में उपस्थित महिलाओं को! हाँ, सबका दिल बहुत बड़ा है, और कूट कूट कर उनमे स्नेह भरा हुआ है, लेकिन फिर भी! कुछ न कुछ अनुत्तरित से प्रश्न रह ही जाते हैं। एक बात तो है - दुल्हन के लिबास में डेवी बिलकुल रानी लग रही थी। गौरव, उल्लास, शर्म, उपलब्धि - ऐसे न जाने कितने भाव उसके मुखमण्डल पर उपस्थित थे! मुझे स्वयं ही उसको देख कर आनंद आया और गर्व भी हुआ। ऐसी बला की खूबसूरत लड़की मेरी पत्नी बनने वाली थी - यह बहुत ही रोमांचक ख़याल था।
चलिए, कुछ अपनी भी बात कर लेते हैं! मैंने एक बढ़िया कढ़ाई कसीदा किया हुआ गहरे लाल रंग का रेशमी कुर्ता, और मुलायम कॉटन का क्रीम रंग चूड़ीदार पायजामा पहना हुआ था। ससुर जी के सुझाव और आग्रह पर मैंने क्रीम रंग का ही रेशमी साफा भी बाँधा हुआ था। चाहते वो थे मुझको तलवार भी पकड़वाना, लेकिन मैंने वो सुझाव नहीं माना - यार नौटंकी क्यों करनी? सीधी सादी शादी करनी है - बस! एक और मज़ेदार बात हुई - डैड, डैडी, और मेरे साढ़ू भाई - तीनों ने ही, महिलाओं की ही तर्ज़ पर एक ही तरह का पजामा कुर्ता पहना हुआ था! मतलब कि साफ़ लग रहा था कि बढ़िया कोऑर्डिनेटेड व्यवस्था है! चारों बच्चे अपने अपने हिसाब से रंग-बिरंगे कपड़े पहने हुए थे। उन पर क्या रोक टोक!
चूँकि मंदिर दिल्ली से थोड़ी दूर, उसकी सीमा पर था, इसलिए वहाँ वैसी भीड़ नहीं होती थी। मंदिर ये भी पुराना ही था। बगल में ही हाईवे होने के कारण, सामने से ट्रक लारी बस इत्यादि आते जाते थे। इसलिए बहुत सुरक्षित तो नहीं कहा जा सकता इसको। अच्छी बात यह थी कि हमारे कुछ मित्रों के आ जाने से हमारे दल की संख्या अधिक थी, इसलिए सुरक्षा का अनुभव हो रहा था। वैसे मैं यह सब आपको आज कह सकता हूँ, लेकिन उस समय सुरक्षा / असुरक्षा जैसी भावनाएँ मेरे मन में नहीं थीं। हमने शादी के लिए मंदिर में बुकिंग करी हुई थी, इसलिए मंदिर में अन्य भक्तों के लिए एक अलग से कतार की व्यवस्था कर दी गई थी! हमारे वैवाहिक अनुष्ठानों के लिए मंदिर के एक बड़े हिस्से की घेराबंदी की गई थी - जो कि अच्छी बात थी। बिना किसी ताक झाँक के हमारी शादी हो जानी थी।
हमारी शादी के अनुष्ठान कोई ढाई घण्टे तक चले। यह पूरी तरह से धार्मिक शैली का विवाह प्रयोजन रहा, जिसमे संछेप में ही सही, लेकिन लगभग सभी रस्में पूरी की गई थीं। मैंने देखा कि हमारे माँ बाप यह देख कर संतुष्ट लग रहे थे। चलो, सभी को आनंद आना चाहिए। शाम के समय मंदिर में कुछ नियमित कलाकार भी आते थे - गाने बजाने! तो उन्होंने मौके को देख कर कुछ पारंपरिक विवाह गीत, और अन्य धार्मिक गीत और भजन बजाए। इस तरह से ये शादी भी अनोखी ही रही। मुझे अच्छा लगा। शोर नहीं था - बस, कर्णप्रिय संगीत, और मन्त्रों से वातावरण गुंजायमान था। एक तरह से गाँव वाले मंदिर में शादी करने के मुकाबले यहाँ शादी करना मुझे ज्यादा अच्छा लगा। यहाँ मैं और देवयानी सैकड़ों की भीड़ के बीच में किसी अजूबे की भाँति नहीं बैठे हुए थे। हम वास्तव में शादी की रस्मों का आनंद लेते हुए अपने आसन्न मिलन के बारे में सोच रहे थे।
हालाँकि देवयानी की दुल्हन वाली पोशाक सामान्य ही थी, लेकिन मुझे वो न जाने किस कारण बहुत कामुक लगी! शादी का सबसे बड़ा अनुष्ठान नवविवाहितों के मिलन का ही तो होता है। इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि मैं अधिकतर समय विवाह की रस्मों के बाद होने वाले हमारे सम्भोग के बारे में सोच रहा था! मुझे रह रह कर गैबी के साथ अपनी शादी वाला दिन और रात याद आ रहे थे! मैंने बाद में यह बात देवयानी को बताई, और इसके लिए मैंने उससे माफ़ी भी माँगी। उसने मुझे यह कहते हुए क्षमा कर दिया कि वो यह बात समझती थी, और उसने मुझे भरोसा दिलाया कि वो मेरे मन से गैबी को हटाने नहीं, बल्कि मेरे मन ने और मेरे जीवन में अपनी जगह बनाने के लिए आ रही थी - यह कि और उसको पूरा यकीन था कि हम साथ में एक सुंदर जीवन व्यतीत करेंगे।
विवाह के दौरान देवयानी का चेहरा - आँखों के नीचे तक घूंघट से ढँका हुआ था। मुझे या मेरे घर वालों को यह सब पसंद नहीं है, लेकिन ससुर जी के आग्रह के आगे हमने हार मान ली। आखिर वो उम्र में हम सभी से बड़े थे इसलिए उनकी कुछ इच्छाओं का पालन करना एक तरह से हमारे लिए दायित्व हो गया था। उनकी हर बात को तो दरकिनार नहीं किया जा सकता था न! देवयानी के मेहंदी से रचे हाथ, चूड़ियों और कंगनों से सजी कलाईयाँ, और अँगूठियों से सुशोभित उँगलियाँ वैसे ही लग रहे थे जैसे कि वो किसी रानी के हाथ हों! आँखों को देखना मुश्किल था, लेकिन नाक पर बड़ी सी सोने की नथ सुशोभित हो रही थी, और लालिमा लिए, मुस्कुराते हुए होंठ!
'हे प्रभु!'
ठीक है कि देवयानी पहले से ही अति-सुन्दर है! लेकिन शादी के दिन क्या हो जाता है लड़कियों को? अप्सरा से कम नहीं लगतीं! दूल्हों की बिसात ही क्या ऐसी सुंदरियों के सामने? ब्लाउज के नीचे उसका खुला हुआ सपाट पेट, और उस पर त्रिवली और एक गहरी नाभि! यह दृश्य बहुत मनोहारी था!
मंदिर का पुजारी अनुष्ठान कर रहा था और मंत्रों का पाठ कर रहा था, और मेरे मन में एक विवाहित जोड़े के रूप में देवयानी के साथ अपनी पहली रात को होने वाले धमाल के बारे में रोमांचक ख़याल आ जा रहे थे। पुजारी ने हमें दो बड़ी बड़ी फूलों वाली मालाएँ (जयमाल) दीं, और हमें एक दूसरे के गले में डालने को कहा। तो हमने वो किया। एक दूसरे को मन से स्वीकार करने के बाद इन सभी रस्मों का कोई अर्थ नहीं रहता, लेकिन फिर भी, समाज के लिए ये सब करना पड़ता है। खैर, अच्छी बात यह थी कि ये वाली शादी में कोई बहुत देर नहीं लगी - जल्दी ही, मुझे डेवी के गले में मंगलसूत्र बांधने के लिए कहा गया। सामाजिक दृष्टि से यही वो पल है जब लड़का लड़की, विवाहित हो जाते हैं - पति पत्नी हो जाते हैं! मतलब, अब डेवी कानूनन, सामाजिक और धार्मिक तीनों ही रूप से मेरी पत्नी बन गई थी! सबसे आखिर में हम दोनों ने भगवान के सामने वेदी पर नमन किया और अपने सभी प्रियजनों के पैर छू कर, उनका आशीर्वाद मांगा।
पंडित को दक्षिणा इत्यादि देते देते और वहाँ से सब सामान पैक कर के वापस दिल्ली पहुँचते पहुँचते कोई साढ़े नौ बज गया। तो हम सीधे एक फाइव-स्टार होटल पहुँच गए - जश्न वाला डिनर करने! ससुर जी ने अपने समधी (डैड), अपने दोनों दामादों, अपने खुद के और वहाँ उपस्थित सभी पुरुष मित्रों के लिए डबल स्कॉच मँगाया, और स्त्रियों से पूछ पूछ कर बढ़िया वाइन मँगाई। डेवी ने वाइन लिया, लेकिन माँ, काजल, और जयंती दीदी ने अपने लिए शरबत मंगाया - जयंती दीदी पीती थीं, लेकिन वो अपने बच्चों को स्तनपान करा रही थीं, इसलिए उनका मदिरा पीना बंद था। मज़ाक मज़ाक में ससुर जी ने मुझसे कहा कि शादी की रात को दूल्हे को इससे अधिक नहीं पीना चाहिए - ऐसा न हो कि ‘परफॉरमेंस में कोई इशू’ हो जाए! उनसे मिलते समय मैंने सोचा भी नहीं था कि वो मेरे साथ इतना खुल जाएँगे, और मुझसे इस तरह से हँसी मज़ाक करेंगे!
nice update..!!नया सफ़र - विवाह - Update #4
पुनश्च, डेवी के डैडी के ही अनुरोध पर यह तय हुआ था कि विवाह की रात मैं देवयानी के साथ, उसके मायके में ही रहूँ, और अगली सुबह वो मेरे साथ अपने नए घर में जाए। न तो मुझे ही, और न ही मेरे माँ और डैड को इस बात पर कोई आपत्ति थी। खासकर इसलिए भी क्योंकि इस कारण से हमें शादी के रिसेप्शन के लिए आवश्यक व्यवस्था को पूरा करने के लिए थोड़ा और समय मिल गया। कल रिसेप्शन के बाद, हमें अगले ही दिन हनीमून पर जाना था! हनीमून के लिए माँ डैड ने ही हम पर दबाव बनाया था। गैबी की ही तरह, शादी के बाद डेवी भी मेरे पुश्तैनी गाँव में ही दो हफ़्ते बिताना चाहती थी। इस बात पर डैड ने उसको और मुझे समझाया कि गाँव वो हम किसी भी समय जा सकते हैं, लेकिन हनीमून एक ही बार होता है - और उसके लिए हमको किसी ढंग की, रोमांटिक जगह पर जाना चाहिए। तो, यह तय रहा कि हमारी सुहागरात देवयानी के घर होगी - हमारी वैवाहिक यात्रा और बहुत संभव है कि देवयानी की मातृत्व यात्रा भी वहीं से शुरू होगी! मेरा पूरा प्लान था कि देवयानी को हमारी पहली रात को ही गर्भवती कर दूँ! वो खुद भी यही चाहती थी! रात्रि-भोज के बाद माँ, डैड, काजल, सुनील और लतिका घर चले गए, और बाकी लोग देवयानी के यहाँ! घर पहुँच कर जयंती दीदी के पति ने हमें शुभ-रात्रि कहा और अपने घर के लिए निकल गए, जबकि जयंती दीदी और उनके दोनों बच्चे यहीं रह गए। जब मायका और ससुराल एक शहर में हो, तो बहुत आसानी हो जाती है।
बहुत बाद में मुझे बताया गया कि देवयानी के डैडी इस बात को लेकर भी परेशान थे कि वो अपनी सुहागरात में क्या पहने! उनका मत था कि डेवी को बढ़िया दुल्हन वाली साड़ी और आभूषण पहनने चाहिए, जबकि जयंती और काफी हद तक डेवी का भी यही मानना था कि कपड़े जितने आरामदायक हों, उतने ही अच्छे! आखिर, उनको वैसे भी उतरना ही है न! मैं भी दोनों महिलाओं से सहमत था (ऐसा नहीं है कि किसी ने मुझसे मेरी सलाह माँगी थी) - वैसे डेवी को तो मैं कैसे भी, किसी भी हालत में अपना बनाने को तैयार था! खैर, जब मैं घर पर आया तो जयंती दीदी ने डेवी को कुछ ‘तैयारी’ करने के लिए ड्राइंग रूम से हटा लिया। रात करीब साढ़े ग्यारह बजे मुझे उन्होंने बताया कि मैं कमरे में जाऊँ - डेवी मेरा इंतजार कर रही है!
‘चल भाई, बुलावा आ गया!’ मैंने सोचा!
सुहागरात!
पति-पत्नी की पहली रात!
कई पुरानी बॉलीवुड फिल्मों ने इस क्षण को बड़े कलाकारी, लेकिन फार्मूला वाले अंदाज़ में चित्रित किया है! सुहागरात में गहनों से सजी - लदी दुल्हन, फूलों की सेज पर अकेली बैठी रहती है! थोड़ा घूंघट रहता है; उसकी साँसे फूल रही होती हैं, और होंठ सन्निकट भविष्य की प्रत्याशा के कारण काँप रहे होते हैं। कुछ देर में कमरे के दरवाज़े पर उसका दूल्हा प्रकट होता है - या तो वो खुद ही आता है, या फिर अपनी बहनों या भाभियों द्वारा लाया जाता है - और फिर अपनी दुल्हन को गहरी नज़र भर देखता है! उसको मालूम है कि उसकी बीवी दिखती कैसी है - उसको अपनी किस्मत पर पहले से ही रश्क़ हो रहा होता है। लेकिन अभी भी उसकी बीवी का बहुत कुछ है जो उसने अभी तक नहीं देखा है! नहीं महसूस किया है। अब वही होने की सम्भावना बन रह होती है। लिहाज़ा वो अपनी दुल्हन को बड़ी लालसा से देखता है! उधर दुल्हन भी अपने उतावले होते हुए दूल्हे की हर इच्छा पूरा करना चाहती है। दूल्हा अपनी दुल्हन का घूंघट उठाता है - कभी कभी वो उसको अपने आलिंगन में भी बाँध लेता है। और बस ऐसे ही संक्षिप्त से, और हानि-रहित प्रेमालाप के बाद, कमरे की रोशनी बुझ जाती है! बाकी सब आप खुद ही समझ लें!
यह तो हुआ फार्मूला वाला चित्रण! मुझे यह पसंद है, लेकिन मुझे सबसे अधिक पसंद है फिल्म ‘कभी कभी’ वाला सुहागरात का सीन! जब यह फिल्म रिलीज़ हुई, तब डेवी कोई बारह साल की रही होगी - मतलब उसको इन बातों की थोड़ी ही सही, लेकिन समझ रही होगी। और मैं उस समय - खैर जाने दीजिए! मैं उस समय जितना बड़ा था, उस समय मुझे यकीन है कि मुझे खाने पीने और माँ का दूध पीने के अतिरिक्त और किसी भी बात की कोई अवधारणा नहीं थी! लिहाज़ा, मैंने वो सीन काफी बाद में देखा। शायद कभी चित्रहार में! डेवी ने कभी बाद में मुझे बताया कि यह उसका भी पसंदीदा ‘सुहागरात सीन’ था। जब उसने पहली बार वो सीन देखा, तो उस गाने के प्रतीकवाद को समझने के लिए वो बहुत छोटी थी।
मेरी इस कहानी के पाठकों को वो गाना अवश्य देखना चाहिए - दुल्हन (राखी) के लंबे, रेशमी बाल - जो बिखरे हुए थे, उसके नग्न होने की प्रक्रिया की ओर इशारा करते हैं। यह दृश्य दूल्हे (शशि कपूर) द्वारा दुल्हन के गहने एक एक कर के उतारने - उसके माथे का टीका, हार, झुमके, और अंत में नथ - के माध्यम से नवविवाहित जोड़े की बढ़ती अंतरंगता को खूबसूरती से दर्शाता है। गीत दूल्हे द्वारा दुल्हन की नथ उतारने पर समाप्त हो जाता है, जो संभव है यह दर्शाता है कि दुल्हन का कौमार्य-भंजन हो गया! हिंदी में ‘नथ उतारना’ वाक्यांश का अर्थ, पारंपरिक रूप से, किसी कुँवारी लड़की का कौमार्य-भंजन ही होता है!
ओह, इसके पहले मैं कहानी से भटक जाऊँ, मैं वापस आता हूँ!
हमारा शयनकक्ष घर की पहली मंजिल पर था। यह कमरा, घर के बाकी कमरों की अपेक्षाकृत बड़ा था। ये बाकी के घर से कोई अलग थलग नहीं था, लेकिन वहाँ काफ़ी गोपनीयता थी। वैसे दिल्ली के घरों में कैसी गोपनीयता? कोई भी बगल की खिड़की से आराम से ताक झाँक कर सकता है। लेकिन जितनी गोपनीयता मिल रही थी, वही बहुत थी। वैसे भी, यह शहर शायद ही पूरी तरह सोता हो। हाँ, लेकिन इतनी देर रात गए, वाहनों की टीं टीं पों पों की आवाज़ नहीं आ रही थी, जो कि बहुत अच्छी बात थी। मैंने कमरे में प्रवेश किया, और अपने पीछे का दरवाजा बंद कर लिया।
बिस्तर पर देवयानी मुस्कुराती हुई बैठी थी। इस बात का शुक्र है कि वो फिल्मों की तरह घूंघट नहीं काढ़े हुए थी। वो तो हद्द ज्यादा ड्रामा हो जाता! लेकिन फिर उसने जो किया, उसने मुझे वाक़ई चौंका दिया। मुझे देखते ही डेवी बिस्तर से उठी, और मुस्कुराते हुए और शर्माते हुए मेरे पास आई, और फिर अचानक मेरे पैरों को अपने माथे से छूने के लिए मेरे सामने घुटनों पर बैठ गई। मैं कुछ कर पाता या कह पाता, उसके पहले डेवी का माथा मेरे पैरों पर था!
‘हे भगवान्! ये क्या है!’
डेवी की इस हरकत से मुझे बहुत शर्म आई! पुराने समय में पति के पैर छूने वाली यह प्रथा प्रचलित थी, और कुछ विवाहित महिलाएं शायद आज भी ऐसा करती हैं। लेकिन मुझे आश्चर्य दरअसल इस बात पर हुआ कि डेवी जैसी लड़की ऐसा कुछ कर सकती है! मेरा मतलब है कि डेवी एक आधुनिक लड़की है - पूरी तरह से स्वतंत्र, और अपने पाँवों पर खड़ी! और सबसे बड़ी बात यह है कि वो उम्र में मुझसे बहुत बड़ी थी। तो फिर उसको मेरे पैर क्यों छूने थे? मन में उत्सुकता बहुत हुई, लेकिन मैंने पूछा नहीं। मैंने डेवी को उसके कंधों को थाम कर उठाया और फिर अपने गले से लगा लिया। थोड़ी देर के बाद जब हमारा आलिंगन टूटा, तो हमने एक दूसरे की आँखों में देखा। और फिर अचानक ही मैंने भी ठीक वही किया जो कुछ क्षणों पहले डेवी ने किया था - यानि मैंने भी घुटनों पर बैठ कर अपने माथे से उसके पैर छुए, और फिर उनको चूम भी लिया।
जब मैं उठा तो डेवी के चेहरे पर आश्चर्य, सदमा और प्यार के मिले जुले भाव साफ़ दिखाई दे रहे थे। उसकी सारी आंखें भर आई थीं।
मैंने कहा, “माय लव, आई आल्सो रेस्पेक्ट यू वैरी मच! इसलिए, मेरी जान, अगर आप मेरे पैर छुएंगी, तो फिर मैं भी आपके पैर छुऊँगा! मैं तो वैसे भी उम्र में छोटा हूँ! याद है न?”
डेवी मुस्कुराई, “आई नो! एंड, आई ऍम सो लकी! बट यू सी, अगर पति अपनी पत्नी के पैर छूता है, तो वो अपशकुन होता है।”
“हैं? वो क्यों?”
“वो मुझे नहीं मालूम! बस, होता है! एंड बिसाइड्स, मैं हमेशा से चाहती थी कि मैं अपने पति के पैर छुवूँ! इसलिए प्लीज, मुझे मत रोको, और मेरे पैर भी मत छुओ। प्लीज लेट दिस बी ओनली माय प्रीरोगेटिव?”
उसने कहा और इससे पहले कि मैं कुछ कह पाता, वो फिर से अपने घुटनों के बल बैठ गई और इस बार उसने अपने हाथों से मेरे पैर छुए, और फिर उन्हें अपने माथे से लगा लिया। देवयानी का प्यार करने का तरीका अनोखा था! मैं बस इतना कर सकता था कि मैं आगे झुकूँ और उसे उसके कंधों से थाम कर अपने आलिंगन में भर लूँ!
मैंने उसे अपने सीने में भींचते हुए कहा, “आई लव यू सो मच। यू नो दैट, डोंट यू?”
“इसमें कोई शक नहीं, मेरी जान!” उसने बड़ी अदा से कहा।
अदा से कहा, लेकिन उसकी बात में जो सत्यता थी, वो मुझे साफ़ सुनाई दी।
इतना प्यार!
और देवयानी इतनी प्यारी लग रही थी कि अब मेरे लिए रुकना मुश्किल था!
मेरे होंठ अपने आप ही देवयानी के होंठों से जुड़ गए।
‘अधर-रस-पान’!
सच में! देवयानी के मुँह का स्वाद वाकई रसीला था - हल्की सी मिठास लिए हुए। ताज़गी भरी महक लिए हुए! यह बताना मुश्किल है कि चुम्बन का अनुभव कितना आनंददायक था! यह एक स्नेहमय चुम्बन था, और कामुक चुम्बन भी! एक लम्बा चुम्बन - जिसके उन्माद में अब हम दोनों ही बह रहे थे। मेरे हाथ उसके चेहरे से सरकते हुए धीरे धीरे उसकी कमर पर चले गए, और वहाँ सरकते हुए उसके नितम्बों पर। मन में हो रहा था कि डेवी जितना संभव हो मेरे करीब ही रहे, लिहाज़ा, मैंने उसको अपनी ओर भींच लिया। यदि अत्यधिक बल होता, तो ‘आणविक संलयन’ वाली पद्धति लगा कर हम दोनों एक हो जाते! संभव है कि प्रकृति ने सम्भोग की प्रक्रिया इसीलिए बनाई हो कि दो प्रेमी एक दूसरे से ‘जुड़’ सकें - थोड़ी ही देर के लिए सही! अभी जितना संभव था, हम दोनों जुड़े हुए थे - मुझे अपने सीने पर डेवी के स्तनों के दबाव का एहसास हो रहा था। और इस एहसास के साथ डेवी को चूमना और भी सुखद अनुभव हो रहा था। मुझे समय का कोई ध्यान नहीं है कि पति पत्नी के रूप में हमारा यह पहला चुम्बन आखिर कितनी देर तक चला, लेकिन अंततः यह चुम्बन टूटा।
चुम्बन टूटते ही देवयानी मेरे आलिंगन से छूट कर मुझसे दूर जाने लगी।
‘ऐसे कैसे?’
मैंने तेज गति से उसकी साड़ी का पल्लू पकड़ा, और उसे ही पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया। इस प्रक्रिया से साड़ी के फेंटे, पेटीकोट में से बाहर निकल आए। डेवी मेरी ओर मुड़ी, और परिहास और आश्चर्य से चिल्लाई। मैंने उसे फिर से कमर से पकड़ लिया, और उसे अपनी ओर खींच कर फिर से उसके होठों पर चुम्बन किया। पिछले चुम्बन ने ही हमारे अंदर एक प्रकार का जोश भर दिया था - तो इस बार हमारे चुम्बन में स्नेह कम, और वासना अधिक थी। हमारे होंठ एक दूसरे के होंठों में खिलाफ कुचल गए - मुझे मालूम था कि अगर पहले नहीं हुआ तो अब डेवी के होंठों की लाली, मेरे होंठों पर अच्छी तरह से चुपड़ गई होगी। यह कोई कोमल चुंबन नहीं था, बल्कि जोश से भरा हुआ था - जो वास्तव में हमारे मन की स्थिति को दर्शा रहा था। हम दोनों ही अपनी सुहागरात के पूर्वाभास की अग्नि में जल रहे थे! अब तो समागम के जलाशय में स्नान करने के बाद ही वो अग्नि शांत होने वाली थी। हम दोनों ही कामुक फ्रेंच-किस का आनंद ले रहे थे, लेकिन हमारी साँसें उखड़ने लगीं थी। जब कुछ देर बाद सांस लेने के लिए हमने चुंबन तोड़ा, तो मैं स्वयं ही अपने जुनून की तीव्रता से हैरान हो गया। ऐसा नहीं है कि मैंने डेवी से पहले कभी सेक्स नहीं किया - लेकिन आज क्या हो गया था मुझे? ऐसा क्या अलग हो गया? क्यों मैं ऐसे, अपने ऊपर से नियंत्रण खो रहा था?
“तुम बहुत सुंदर लग रही हो, मेरी जान!”
मैंने कहा, और डेवी की गर्दन को चूमा, और फिर उसके कानों और उसकी गर्दन के पिछले हिस्से को अपने दाँतों से हल्के से कुतर दिया। देवयानी के गले से एक कामुक गुनगुनाहट निकलने लगी। वो मेरी हरकतों का आनंद लेते हुए खड़ी रही। उधर मैं उसकी गर्दन को चूमते और चाटते, उसके साथ मीठी-मीठी बातें करने लगा। मैंने डेवी को बताया कि मैं उससे कितना प्यार करता हूँ; मुझे उसका शरीर कितना पसंद है; वो दुल्हन के लिबास में कितनी शानदार लग रही है; और ऐसे ही और भी बहुत कुछ! जवाब में वो हर बार कराही! मैंने उसे चूमते हुए उसके स्तनों को सहलाया और दबाया। अब तक उसकी साड़ी का पल्लू उसके कंधे से फिसल कर फर्श पर गिर गया था - मतलब, उसके ऊपरी शरीर पर उसकी ब्लाउज़ के अतिरिक्त और कोई कपड़ा नहीं था...
nice update..!!नया सफ़र - विवाह - Update #5
आज से पहले भी मैंने कई बार डेवी के कपड़े उतारे थे - लेकिन उसका ब्लाउज कभी भी नहीं। तो यह पहला अनुभव था!
‘उसकी ब्लाउज़ उतारने का अनुभव दिलवाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, ससुर जी!’
डेवी ने जब मुझे उसकी ब्लाउज़ से छेड़खानी करने हुए देखा, वो वो शरमा कर मुस्कुराने लगी। मैं इस समय उत्तेजना से भर गया था और उसके कारण मेरा हाथ थोड़ा काँपने लगा। मैं हैरान था! ये तब हो रहा था जब हम आज से पहले भी कई बार सम्भोग कर चुके थे! जब मैंने उसके ब्लाउज के बटन खोल दिए, तो देखा कि उसके स्तन एक आकर्षक और सेक्सी, गहरे लाल रंग की ब्रा में छुपे हुए थे। वो एक डेमी-कप ब्रा थी - मतलब उसमे सामान्य से केवल आधा ही कप था। इस कारण से ब्रा में से उसके एरोला का कोई चौथाई हिस्सा दिख रहा था। वैसे यह कोई ब्रा नहीं थी, बल्कि ब्रा-लेट थी - और पारदर्शी गुईप्योर लेस की बनी हुई थी। यह बहुत ही कोमल वस्त्र था - यह स्तनों को सहारा देने के लिए नहीं बना था। वैसे भी देवयानी के स्तनों को किसी सहारे की आवश्यकता नहीं थी। नहीं। उस ब्रा-लेट का उपयोग देखने वाले की कामुकता बढ़ाने वाला था। सच में - डेवी के सेक्सी स्तनों को उस वस्त्र में देखना - यह दृश्य बेहद बेहद कामुक था! और वस्त्रों का ऐसा चयन, इस अवसर के लिए बिल्कुल सही भी था! मेरे लिंग में ऐसा स्तम्भन हो गया था कि जैसे अब उसमे विस्फ़ोट हो जाएगा! सही प्रभाव! मैंने डेवी का ब्लाउज उतार दिया, और बाहें उठा कर उसको उतरवाने में मेरी मदद भी करी। साड़ी वैसे भी आधी अधूरी लटकी हुई थी उसके पेटीकोट से, वो उसको भी एक झटके से उतार दिया गया। उस झटके से पेटीकोट के नाड़े ही गाँठ भी ढीली पड़ गई थी, जिहाजा, साड़ी के साथ वो भी स्वयं ही नीचे सरक गई। मैंने डेवी को अपनी गोद में उठाया और उसे बिस्तर पर लिटा दिया।
मैंने दो कदम पीछे हो कर उसकी ओर मन भर कर देखा - उसके सर से लेकर उसके पैरों तक - वो केवल अपने आभूषणों और उन सेक्सी, लैस के मैचिंग अधोवस्त्रों को पहने बिस्तर पर लेटी हुई थी।
बहुत देर तक देखने के बाद मैंने कहा, “वाह!”
“जानू मेरे! आपने मुझे कितनी बार तो देखा है!” उसने धीरे से, शर्माते हुए, और फिर भी मुस्कुराते हुए कहा।
“हाँ... देखा है! लेकिन फिर भी... ईमानदारी से कहूँ, तो आज तो तुम पूरी क़यामत लग रही हो!” उसकी आँखों में देखते हुए मैंने कहा, “तुम मेरे लिए सबसे खूबसूरत और सबसे सेक्सी लड़की हो!”
डेवी ने एक पल मेरी तरफ देखा - वो समझ रही थी कि मेरा हर एक शब्द पूरी तरह से सच्चाई से बोला गया था। वो इस प्रत्याशा से मुस्कुराने लगी कि अब मैं न जाने क्या करूँगा। मैंने आगे झुक कर उसकी जाँघों को चूमा - वो खुशी से चिहुँक गई। और उसी समय मुझे अचानक से एक विचार आया... मैंने मन ही मन अपने आपको कोसा भी - क्यों नहीं मैंने इसके बारे में पहले नहीं सोचा? लेकिन जिस क्षण, डेवी ने किलकारी मारी, मैं समझ गया कि मुझे उसकी तस्वीरें उतारनी हैं! मैंने उसे अपनी तर्जनी दिखाते हुए ‘एक मिनट’ का ब्रेक माँगा। वो मेरी इस हरकत पर हैरानी से मुस्कुराई।
मैं बिस्तर से उठा, और तेजी से दरवाज़े की तरफ़ बढ़ा। मैंने जैसे ही दरवाजा खोला और बाहर आया, मैंने देखा कि जयंती दीदी, मुझको चिढ़ाने वाले भाव लिए, और अपने हाथ में एक कैमरा लिए खड़ी हैं। जैसे कि उनको मालूम हो कि मैं अपनी बीवी की तस्वीरें उतारना चाहता था, और वो इसीलिए मेरा ही इंतज़ार कर रही थीं!
“दामाद जी,” उन्होंने मुझको चिढ़ाते हुए कहा, “क्या आप अपने सुहागरात की कुछ खास तस्वीरें नहीं लेना चाहते?” दीदी ने चुटीली, शरारती मुस्कराहट के साथ पूछा।
“ओह गॉड! थैंक यू, दीदी!”
“अरे अरे... नहीं नहीं! ऐसे नहीं! बिना अपनी एकलौती साली को कुछ दिए अपनी बीवी के पास जाओगे, तो यही होगा!” उन्होंने मुझे फिर से छेड़ा, “मेरा नेग कहाँ है?”
“क्या दीदी! मुझे जाने दीजिये न! मेरी दुल्हन मेरा इंतजार कर रही है।” मैंने भी शरारत से कहा।
“तो पहले मुझे मेरा नेग दो?”
“ओह गॉड! आप भी न! अच्छा बोलिए, आपको क्या चाहिए?”
“जो माँगूगी, दोगे?”
“अरे दीदी! पहेलियाँ न बुझाइए और बोलिये न!”
“आय हाय! कैसी बेकरारी!” उन्होंने मुझे फिर से चिढ़ाया, “बीवी से मिलने के लिए रहा नहीं जा रहा है आपसे?”
“ओह दीदी! ठीक है! न बताओ - आपका ही नुकसान है!” कह कर मैं जाने लगा!
“अरे रुको रुको!” जयंती दीदी का स्टाइल बिलकुल नहीं बदला, “मेरे प्यारे दामाद जी, नेग में मुझे तुम्हारा छुन्नू देखना है!”
“क्या!? धत्त!”
“क्या धत्त? मेरी पिंकी के हस्बैंड पर मेरा भी तो कोई हक़ है!”
“अरे दीदी! जाने दो न!”
“अरे चले जाना! वो तो बेचारी तुम्हारा ही इंतज़ार कर रही है! लेकिन मेरा भी तो काम कर दो न!” जयंती दी मुझे बुरी तरह से चिढ़ा रही थीं।
“दिखा दूँगा दीदी,” मैंने हथियार डालते हुए और पीछा छुड़ाते हुए कहा, “लेकिन अभी नहीं। बाद में?”
“बाद की किसने देखी है? चलो चलो... अब देर न करो! जल्दी से इसको बाहर निकालो, और मुझे दिखा दो! फिर ये कैमरा तुम्हारा!”
“ओह दीदी! यू आर इनकरीजिबल!” मैंने कहा और अपने पायजामे में हाथ डालकर अपना लिंग बाहर निकाल लिया।
जयंती दीदी ने उसे देखा और छुआ और फिर घोषणा की, “च च! ये तो नरम पड़ा हुआ है बिलकुल! पिल्लू जैसा! शिलाजीत दूँ क्या?”
ऐसे चिढ़ाए जाने पर चिढ़ना तो लाज़मी है - मैंने उनके हाथ से कैमरा छीन लिया, और वो मेरी इस हरकत से हँसने लगीं।
“फक यू!” उनको हँसता हुआ देख कर मैं भी हँसने लगा, लेकिन मैंने उनको डाँट लगाई।
“एनी टाइम हनी, एनी टाइम!” उन्होंने कहा और हँसते हुए वहां से चली गईं।
मैं कैमरा ले कर कमरे में वापस लौट आया, और देवयानी की तस्वीरें क्लिक करने लगा। देवयानी शुरू में शर्मीली अवश्य थी, लेकिन फिर इस नए अनुभव का आनंद उठाने लगी और फिर मुझसे खुलने लगी। मैं कुछ देर उसकी तस्वीरें निकालता और फिर उसको चूमता! कुछ देर बाद देवयानी ने मेरा कुर्ता हटा दिया, और पायजामे के ऊपर से मेरे लिंग के उभार को महसूस किया। मेरे लिंग के कड़ेपन को महसूस कर के वो कराह उठी। जब वो मेरे पायजामे को उतारने में मेरी मदद कर रही थी, तो मैं उसकी ब्रा और पैंटी को उतारने में उसकी मदद करने लगा। जैसे ही मैंने उसकी पैंटी उतारी, मेरे गले से सिसकारी निकल गई। उसकी योनि पर एक भी बाल नहीं था! उसकी योनि किसी बच्चे के नितम्ब जैसी चिकनी थी! मैंने उसकी तरफ़ आश्चर्य से देखा।
डेवी समझ गई कि मैं क्या पूछना चाहता हूँ। उसने कहा,
“हनी, हम पहले भी कई बार सेक्स कर चुके हैं... तो, मैं आपको कुछ नया देना चाहती थी... हमारी सुहागरात में आपको कुछ नया, कुछ अनोखा मिलना चाहिए न! तो मैंने सोचा कि आज रात के लिए... चिकनी चूत... ऐसे ही बोलते हो न आप लोग इसे? सो, दिस इस माय गिफ़्ट फॉर यू!” वो मुस्कुराई।
“आई लव इट माय लव!” मैंने उसकी योनि को चूमते हुए कहा, “सबसे प्यारी चूत है ये!” मैंने कहा और उसकी योनि के होठों को गहराई तक चूमा। फिर मैं अपनी पूर्ण-नग्न डेवी की तस्वीरें क्लिक करने लगा।
“ये ज़ेवर भी उतार दूँ?” उसने पूछा।
“बिलकुल भी नहीं!” मैंने कहा, “सुहागिन औरतें पूरी तरह सजी-धजी ही सुन्दर लगतीं हैं!”
“हा हा हा!” उसने हँसते हुए, रुचिपूर्वक कहा, “आप कैसी पोज़ चाहते हैं, मुझसे?”
“यहाँ... बिस्तर पर बैठ कर, अपनी एड़ियों को पीछे की तरफ़ एक साथ रखो।” मैंने समझाया।
“ऐसे?” उसने एक पोज़ कर के दिखाया।
“नहीं, एक सेकंड रुको।” मैं गया और उसके घुटनों को सामने की तरफ़ खोलते हुए मैंने उसको बैठाया।
उस पोज़ में उसकी योनि के होंठ कुछ खुल गए... ऐसा लग रहा था कि जैसे वो मुस्कुरा रहे हों! सच में, पागल कर देने वाला दृश्य था वो!
“अभी ठीक है?” उसने पूछा।
“ठीक? क़यामत है मेरी जान! क़यामत!” मैंने उसकी योनि को छूते हुए कहा “आई लव यू योर पुसी!”
“थैंक यू!” उसने शरमाते हुए कहा।
मैं फिर उसकी तस्वीरें लेने लगा।
“इसमें अपनी एक उंगली डाल सकती हो?” मैंने बेतहाशा तस्वीरें लेते हुए कहा, “बहुत सेक्सी लगेगा!”
“हनी, आज रात तो केवल तुम ही इसके अंदर जा सकते हो।” डेवी ने बड़ी अदा से कहा।
मैं मुस्कराया।
“ठीक! फिर एक हाथ को अपने बूब्स पर ले जाओ!”
“ऐसे?” उसने कर के दिखाया।
मैं तस्वीरें निकाल तो रहा था, लेकिन अब तक मैं पूरी तरह से पागल हो गया था! मुझे ये लड़की चाहिए थी! अभी के अभी!
“डिड यू रियली लाइक दिस हनी?”
“अब्सॉल्युटली!”
“सच में? प्लीज टेल मी ओनेस्टली!”
“मेरी जान! मैं तो कितना पागल हुआ जा रहा हूँ... ये तेरी नंगी चूत को देखकर मैं पागल हो गया हूँ! सच में, बहुत सुन्दर लगती है ये ऐसे, और तुम भी!” मैंने अपनी तर्जनी से उसके चीरे पर चलाया, “ये अब कितनी लम्बी भी लग रही है! और अब मैं तुम्हारी लेबिया का रंग भी जान गया हूँ! ओह... दोनों होंठ कितने सूजे हुए हैं! आर यू एक्साइटेड हनी?”
“डोंट यू नो इट येट?”
मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया, और धीरे से उसको बिस्तर पर धकेलने लगा।
मैंने कहा, “हनी, आई नो!” फिर उसको चूम कर आगे बोला, “हनी, आई नो कि यह बात कहने का टाइम आज नहीं है, लेकिन मैं फिर भी यह कहना चाहता हूँ... एस मच एस आई वांट टू मेक लव टू यू, आई आल्सो वांट टू इम्प्रेगनेट यू! मैं चाहता हूँ कि तुम्हारे पेट में मेरा बच्चा आ जाए - जितना जल्दी हो उतना! हो सके, तो आज ही!”
मैंने उसकी योनि के होंठों को चूमा, फिर उसके पेट को चूमा, “समझी जानू? मैं तुमको गर्भवती करना चाहता हूँ!”
डेवी ने मेरे चेहरे की ओर देखा और मेरे दोनों गालों को अपने हाथों से कोमलता से छूते हुए, धीरे से कहा, “और तुमको क्या लगता है कि मुझे ये नहीं चाहिए? आई नो दैट यू वांट मी टू हैव योर बेबीज़... और मैं भी तो यही चाहती हूँ! तुम्हारे नहीं, तो और किसके बच्चे करूँगी? एंड आई वांट यू टू नो दैट आई ऍम रेडी!”
मैं मुस्कुराया।
डेवी ने कहना जारी रखा, “तुमको यह सब कहने की ज़रुरत नहीं! मैं भी माँ बनना चाहती हूँ! मुझे यह सब उतना ही चाहिए जितना कि तुम चाहते हो। मैं ये सब चाहती हूँ! कई सारे बच्चे और उनको कई सालों तक अपना दूध पिलाना! मैं आपकी हर विशेज़ पूरी करूँगी!”
डेवी की बात दिल को छू गई! बाहर से कड़क और मॉडर्न दिखने वाली देवयानी, अंदर से कितनी नरम, मृदुल और पारम्परिक थी - यह देखने वाली बात थी!
मैंने उसे चूमा और कहा, “ओह जान! ऐसे मत बोलो! नहीं तो मुझसे कण्ट्रोल नहीं होगा।”
“अरे कौन चाहता है कि आज रात आप कण्ट्रोल करो!” वो अदा से मुस्कुराई।
मैं मुस्कुराया और उसे चूमने के लिए आगे बढ़ा। हमने कुछ देर तक फ्रेंच-किस किया - हमारी जीभें एक दूसरे के साथ झूमने लगीं। ऐसे ही चूमते हुए, मैंने देवयानी को अपनी गोद में बैठा लिया। डेवी जैसी बला की सुन्दर, और पूर्ण-नग्न लड़की का मेरी गोद में होने का अनुभव बहुत आश्चर्यजनक था! हम दोनों के शरीर कामुक उत्तेजना से गर्म हो चले थे और थरथरा रहे थे! उसने मेरी गोद बैठे बैठे, न जाने कैसे, असंभव आसन लगा कर मेरी चड्ढी को मेरे शरीर से खिसका दिया। अब मैं भी पूरी तरह से नग्न था। उसने मेरे लिंग को पकड़ लिया, जो उसके नरम गरम स्पर्श को पा कर पूरी तरह से कठोर हो गया।
“ओओओओह! कितना बड़ा हो गया है ये!” उसने कहा - उसकी आँखें विस्मय से भर गई थीं और उसके होंठ अंग्रेज़ी के ‘ओ’ के आकार में खुल हुए थे। सच में, औरतों को अपने आदमियों को खुश करने का तरीका मालूम होता है! मैंने उसे फिर से चूमा। मैंने डेवी को कई बार नग्न देखा था, लेकिन आज वो वास्तव में अलग लग रही थी। उसके स्तनों को केवल सुंदर कहना न्यूनोक्ति है! यौवन की पुष्टता से भरे हुए और दृढ़, स्ट्रॉबेरी के रंग के चूचक और उनके गिर्द गुलाबी रंग का एरोला! और डेवी के हिलने डुलने से वे मेरी आंखों के सामने कामुकता से हिल रहे थे। ऐसी कामुकता कि मुर्दे में भी जान डाल दे!
मैंने देवयानी की ठुड्डी को चूमा, फिर उसकी गर्दन को जीभ से गुदगुदाया, और एक एक कर के, उसके दोनों चूचकों को चूमा। मैंने उसे बिस्तर पर ही, घुटनों के बल खड़ा किया, और शरारत से अपनी उंगली को उसके नितंबों की दरार में चलाया, और इससे पहले कि वो कोई प्रतिक्रिया दिखा पाती, मैंने उसे अपनी ओर खींच लिया। डेवी मेरी गोद में गिर गई और मैंने उसके कूल्हों को कुछ इस तरह से व्यवस्थित किया कि मेरा लिंग उसके दोनों चूतड़ों के मध्य दब जाए। डेवी समझ गई कि मैं क्या करना चाहता हूँ, तो उसने भी हिल-डुल कर ऐसा किया कि मेरा लिंग उसके नितम्बों के बीच की दरार में ठीक से बैठ जाए।
हमारा चुम्बन जारी रहा - और उसके साथ ही मेरा उसके स्तनों के साथ खेलना, उनको गुदगुदी करना, उनको दबाना कुचलना, इत्यादि भी जारी रहा। डेवी ने मेरे लिंग पर अपने नितम्ब हिलाए, लेकिन वो बहुत कुछ कर न सकी - वो इस आसन में थोड़ी असहाय सी थी। लिहाज़ा, उसने हार मान कर मेरे कंधे पर अपना सर रख लिया, और मेरे साथ ही काम समुद्र में गोते लगाने लगी। मैंने उसके पूरे शरीर को सहलाया! यह सब करते करते डेवी को उस रात कर पहला चरमोत्कर्ष प्राप्त हुआ - और मैंने अभी तक उसकी योनि को ठीक से छुआ भी नहीं था! एक विवाहित स्त्री के रूप में उसका पहला ओर्गास्म - और उसे ‘वहाँ’ छुआ तक नहीं गया था! कमाल है!
यह एक ऐसी सफलता थी जिसकी मुझे जरूरत थी। मैंने पहले ही सोच रखा था कि डेवी की योनि में मेरा लिंग तभी जाएगा जब तो मुझसे यह करने की भीख मांगेगी! मैंने उसके एक चूचक को अपने मुँह में भरा और किसी भूखे बच्चे की तरह उसके चूचक को चाटना और चूसना शुरू कर दिया।
nice update..!!नया सफ़र - विवाह - Update #6
डेवी गुदगुदी से आहत होते हुए चिल्लाई, “अरे, इतनी ज़ोर से नहीं। आह हा हा हा! बस बस! गुदगुदी होती है।”
मैं थोड़ी देर के लिए रुक गया, और फिर धीरे धीरे से उसके चूचकों को चूसने लगा।
“ओ मेरा बच्चा! पियो! हाँ! ऐसे ही! इनको प्यार से चूसो!” वो बड़बड़ा रही थी।
और मैंने आनंद से उसका स्तनपान कर रहा था। स्तनपान के दौरान मुझे एक आईडिया आया - मैंने उसके दोनों स्तनों को आपस में दबा कर कुछ ऐसा सेट किया कि उसके दोनों चूचक एक साथ हो जाएँ। फिर मैंने उसके दोनों चूचकों को एक साथ चूसा। डेवी फौरन ही पागल जैसी हो गई। उसके कूल्हे, मेरे लिंग पर एक अनियंत्रित पैटर्न में मचलने लगे। यह तो एक अद्भुत रहस्योद्घाटन था!
“क्या तुम्हारे निपल्स का तुम्हारी चूत के साथ कोई सीधा कनेक्शन है?” मैंने उसको छेड़ते हुए कहा।
डेवी शर्म से लाल हो गई और फिर हँस पड़ी, “हा हा! हो सकता है!” उसने कहा, “पर ये भी तो पॉसिबल है ना, कि तुमने इतने दिनों में कोई नया कनेक्शन बना दिया हो? हम्म?”
मुझे उसका ये जवाब पसंद आया! मैंने चूसना जारी रखा।
“तुम इतने प्यार से मेरे निपल्स को चूसते हो... मैं तो दीवानी हो गई हूँ तुम्हारी!”
फिर उसने मेरे लिंग को पकड़ लिया, और उसे ऐसे पकड़ लिया, मानो उसे पकड़ कर ही उसको सारी खुशी मिल रही हो! और इस बात का अनुभव मैं पहले भी कर चुका हूँ - काजल, गैबी, और अब डेवी - तीनों का ही एक ही जैसा रिएक्शन!
“मुझे ये बहुत पसंद है! कितना मोटा और लंबा!” उसने मेरे लिंग की प्रशंसा की और फिर मेरे सामने घुटने टेक दिए, “मैं इसको इतना प्यार करूँगी, कि आपको जन्नत का मजा आ जाएगा।”
उसने मेरे लिंग को नीचे से लेकर ऊपर तक चाटा, फिर शिश्नाग्र पर उसके अपनी जीभ अच्छी तरह फिराई। फिर उसने उसको अपने मुँह में भर लिया! आह - वो गर्म गीला एहसास! उसने मेरे नितम्बों को पकड़ कर मुझे एक तरह से स्थिर कर दिया, और फिर मेरे लिंग की लम्बाई पर अपना मुँह ऊपर-नीचे करने लगी।
“हनी, इसमें से कुछ निकल रहा है!” उसने लिंग से निकलते हुए प्री-कम को चाट कर कहा, और फिर से मेरे लिंग को मुख-मैथुन देने लगी।
मैंने उसके बालों में अपनी उंगलियाँ चलाते हुए पूछा, “तुमको कैसा लग रहा है, डेवी?”
“मेरे हस्बैंड, मैं तो तुम्हारे पीनस की दीवानी हूँ! जब ये मेरे अंदर बाहर स्लाइड करता है न, तो मुझे बहुत सेक्सी लगता है।” वो बोली, और फिर फुसफुसाते हुए आगे बोली, “आई ऍम वैरी हॉर्नी हनी! माय पुसी इस वेट!”
इतना बोल कर वो वापस मेरे लिंग को मुख-मैथुन का आनंद देने लगी। वो मेरे नितम्बों को पकड़ कर अपनी तरफ़ खींच रही थी, तो मैं भी प्रोत्साहित हो गया। एक बिंदु पर मेरी उत्तेजना मेरे नियंत्रण से बाहर हो गई, और मैंने अपने कूल्हों को उसके मुंह में धकेल दिया - जैसे मैं उसके मुँह से ही सेक्स करने वाला होऊँ! गलती से मेरा लिंग उसके गले की गहराई तक चला गया और डेवी को खाँसी आने लगी। हमारा फोरप्ले कुछ देर के लिए रुक गया।
पानी पी कर जब डेवी कुछ संयत हुई तो बोली, “हनी, मेरी चूत में आग लग गई है। अब अंदर आ जाओ प्लीज!”
बस, इसी बात का तो इंतज़ार था मुझे! मैं उठा, और फिर देवयानी को वापस बिस्तर पर लिटाया! उसने मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देखा।
“आराम लेट जाओ... अब शुरू करते हैं!” मैंने कहा।
देवयानी की मुस्कान चौड़ी हो गई, “ओह! आई कांट वेट टू बी फक्ड फॉर द फर्स्ट टाइम एस अ मैरीड वुमन!”
उसने अपनी टाँगें थोड़ी फैला दीं, जिससे मुझे उसके अंदर प्रवेश करने में आसानी रहे। मैं उसके ऊपर कुछ इस तरह आ गया कि मेरे शरीर के ऊपरी हिस्से का भार मेरी बाहों पर रहे, और निचले हिस्से, ख़ास तौर पर नितम्बों का भार डेवी की श्रोणि पर रहे। फिर मैंने अपने घुटनों से उसकी जाँघों को और फैलाया, और उसके अंदर प्रविष्ट हो गया। मेरे लिंग का अगला हिस्सा उसकी योनि की गर्म, गीली सुरंग में सरसराते हुए प्रविष्ट हो गया। दो तीन धक्कों में ही मेरा लिंग पूरी तरह से उसके अंदर सुरक्षित हो गया।
इस अचानक हुई घुसपैठ के कारण डेवी कामुकता से चिहुँक लगी! लेकिन जब मैं पूरी तरह से उसके अंदर आ गया, तो वो आनंद से कराह उठी। उसका भगशेफ मेरी श्रोणि से रगड़ खा गया था। मुझे पता था कि डेवी भी मुझे ग्रहण करने के लिए तत्पर थी, और और वो उसकी चिहुंक दर्द के कारण नहीं, मेरे अकस्मात् प्रवेश के आश्चर्य के कारण निकली थी। आज से पहले मैं धीरे धीरे कर के उसके अंदर जाता था। लेकिन आज तुरंत ही चला गया। मैंने जल्दी ही मैथुन की एक तेज गति स्थापित की और डेवी को भोगने लगा। उधर डेवी ने मुझे अपनी गहराई के अंदर तक जाने देने के लिए, अपने पैर ऊपर कर लिए। यह कोई काव्यात्मक प्रेम-सम्बन्ध नहीं था, बल्कि एक पाशविक मैथुन क्रिया थी! यह एक अद्भुत कामुक जुनून था, जिसे केवल हम दोनों महसूस कर रहे थे और इस समय जी रहे थे।
सम्भोग के दौरान डेवी आनंद से कराहती रही, और लगातार मुझे प्रोत्साहित करती रही। उसने अपने पैरों को लगातार ऊपर कर रखा था दो, जिससे मैं ठीक से, निर्बाध अपनी काम पिपासा पूरी कर सकूँ। मैंने भी बिना रुके हुए तब तक धक्के लगाना जारी रखा, जब तक मेरा खुद का ओर्गास्म बनने लगा। मुझे समझ आ गया कि मैं और अधिक समय तक नहीं टिक पाऊँगा।
“डेवी, आई ऍम कमिंग!” मैंने हाँफते हुए कहा।
वह मुझ पर दिव्य रूप से मुस्कुराई, “यस हनी! यस! कम... एजाकुलेट इनसाइड मी! काम को पूरा करो!”
यह कहते हुए कि उसने मुझे चूमा - बेहद लुभावने अंदाज़ में - उसने मेरी जीभ को अपने होठों से चूस कर मुझमें सांस ली! यह एक बेहद कामुक क्रिया थी! ऐसा लगा कि जैसे उसके इस कामुक चुम्बन ने किसी ट्रिगर का काम किया हो! अगला धक्का मैंने जैसे ही लगाया, मैं पूरी तरह से डेवी की योनि के अंदर तक चला गया, और उसी समय मेरे अंदर जमा वीर्य का गोला, एक विस्फोट से साथ बाहर निकल पड़ा। मेरे उत्सुक शुक्राणु मेरे लिंग की लंबाई से तेजी से निकलते हुए, देवयानी की योनि की गर्म, गुलाबी सुरंग की रेशमी गहराइयों में जा बैठे! ये उनका नया घर था! मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे मुझे इच्छा रुपी बिच्छू ने डंक मार दिया हो - मैं अपनी देवयानी को हमेशा चूमना चाहता था, और चाहता था कि हमेशा ही मेरे लिंग से वीर्य निकल निकल कर उसकी योनि में समाहित होता रहे! उधर, जैसे ही डेवी ने मेरे स्खलन को महसूस किया, वो खुद भी इस प्रथम सम्भोग की दूसरी रति-निष्पत्ति को पा बैठी! मैं उसकी गर्म, आरामदायक सुरंग में स्खलित होता रहा, क्योंकि उसकी चरम आनंद प्राप्त करती योनि की दीवारों ने मेरे लिंग को निचोड़ना शुरू कर दिया था। उसकी योनि की गर्माहट के संकुचन ने मुझे सामान्य से बहुत देर तक स्खलन का सुख लेने दिया। लेकिन देर तक ओर्गास्म का आनंद पूरे शरीर को निढाल कर देता है। अब मैं सीधा खड़ा भी नहीं हो पा रहा था। थक कर मैं उसके धौंकनी की तरह चलते हुए सीने पर गिर पड़ा। इस समय हम दोनों ही पसीने से तर-ब-तर थे, और अपने श्रमसाध्य सम्भोग की तीव्रता के कारण भारी साँसे ले रहे थे।
कुछ देर सुस्ताने के बाद डेवीने कहा कि आज की रात एक बार सेक्स करना काफी नहीं था! वो मुझसे बार-बार सम्भोग करना चाहती थी - आज की रात कई बार! हम कुछ देर ऐसे ही एक दूसरे को चूमते रहे, और प्यार और वासना की बातें करते रहे। डेवी की बाहों में होना, उसको अपने आलिंगन में बाँध कर रखना, उसके साथ सम्भोग करना, उसे चूमना और उसकी सेक्सी आवाज़ सुनना - यह सब बहुत दिव्य था!
थोड़ी ही देर में मैं फिर से स्तंभित हो गया, और डेवी के मन की मुराद पूरी करने लगा। उसने अपने पैरों को मेरी कमर के चारों ओर लपेट लिया, और हमने इस बार फिर से, धीमी, और कम तीव्रता से सम्भोग किया। सम्भोग करने का तरीका अलग था, लेकिन पहले वाले के ही जितना आनंद इस बार भी आया - क्योंकि यह दीर्घकालीन सम्भोग था। मेरे स्खलन होने से पहले देवयानी दो और बार स्खलित हुई। जब वो तीस्री बार स्खलित हो रही थी, तब उसकी योनि की दीवारें, मेरे लिंग को बेहद कामुक रूप से मेरे लिंग को निचोड़ने लगीं। जैसे, वो चाहती हों, कि मैं अपनी संपत्ति उसके अंदर जमा कर दूँ! कहने वाली बात नहीं है, कि उस समय मैंने अपनी सुहागरात का दूसरा स्खलन प्राप्त किया।
अपनी नवविवाहित पत्नी से सम्भोग करना एक बेहद आश्चर्यजनक, लगभग दिव्य अनुभव होता है!
हमारे अब तक के सम्बन्ध में ये सबसे गर्म, और सबसे कामुक दो सम्भोग रहे थे। और दोनों ही हमारे विवाहित होने के बाद हुए थे। मतलब विवाहित होने से कामुक अंतरंगता बढ़ जाती है! संभव है! पहले भी हमको आनंद आता था, लेकिन इस समय का मज़ा कई गुणा अधिक था। मुझे लगता है कि हमको ऐसा अनुभव इसलिए हुआ था, क्योंकि नवविवाहित जोड़े, विवाहित जीवन की चिंताओं से ग्रस्त नहीं होते हैं! और शायद इसीलिए वो सेक्स का भरपूर आनंद उठा पाते हैं।
जब हम थोड़ा संयत हुए, तो डेवी ने मुस्कुराते हुए मुझे अपने में भींच लिया और बोली,
“टेल मी मिस्टर सिंह,”
“आस्क अवे, मिसेज़ सिंह?”
“हाऊ मैनी पुस्सीज़ हैव यू फक्ड सो फार?”
‘क्या बात है! डेवी गन्दी गन्दी बातें कर रही थी।’
डेवी बहुत ही साफ़-सुथरी महिला थी - भाषा से भी - मैंने उसको कभी गाली-गलौज करते, या बुरे शब्दों का इस्तेमाल करते नहीं सुना था। तो उसका इस समय का वार्तालाप दिलचस्प था।
“हम्म्म... लेट अस सी...” मैंने गिनने का नाटक किया, “... और... तुम...”
अपना नाम सुन कर वो मुस्कुराई।
“हम्म... ओके! हाँ! चार लड़कियाँ! तुमको मिला कर!” मैं उसकी प्रतिक्रिया देखने के लिए रुक गया, लेकिन उसने कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी - वो बस मुस्कुराई!
“और मैं आपको बता दूँ... तुम्हारी पुस्सी सबसे बढ़िया है!”
“हम्म... मक्खन लगा रहे हो?”
“नहीं, मक्खन तो डाल चुका हूँ! तुम्हारे अंदर!”
उसने मुझे कोहनी मारी।
“आऊ!”
“आप बहुत नटखट रहे हैं, मिस्टर सिंह।”
“मैं क्या कह सकता हूँ, मेरी जान?” मैंने विनम्र होने का नाटक करते हुए कहा, “मैं लड़कियों के मामले में बहुत लकी रहा हूँ! एक से बढ़ कर एक शानदार लड़कियाँ मिली हैं मुझे!”
“सबसे पहली वाली के बारे में बताओ?”
मैंने देवयानी को रचना के बारे में बताया! कैसे हमने माँ का स्तनपान एक साथ किया, कैसे माँ उसको अपनी बहू बनाना चाहती थीं, और कैसे हमने अपने पहले सेक्स का अनुभव एक साथ किया।
“अच्छा जी! तो आप उतनी ही उम्र में बदमाश हो गए थे!”
“अरे यार! उतनी उम्र में तो मेरी माँ, मेरी माँ भी तो बन गई थीं!” मैंने मुस्कुराते हुए कहा, “तुमने मुझसे कुछ पूछा, तो मैं बता रहा हूँ!”
डेवी भी मुस्कुराई, “मम्मी इस वैरी स्वीट! आई कांट बिलीव दैट वी हैव बिकम सच गुड फ्रेंड्स इन सच फ्यू डेज!”
“हाँ! वो हैं स्वीट!” फिर मुझे कुछ याद आया, “अच्छा, आज वो ‘यूनिफार्म’ वाला आईडिया किसका था?”
“हा हा हा! यूनिफॉर्म! वो आईडिया था दीदी का! काजल दीदी का!”
डेवी के मुँह से काजल के लिए ‘दीदी’ वाला सम्बोधन सुन कर मुझको बहुत अच्छा लगा।
“उन्होंने जयंती दी से कहा कि क्यों न तीनों ‘बहनें’ एक जैसी साड़ी पहन कर शादी में आएँ!”
“हा हा हा! बहुत अच्छे!” मैंने विनोदपूर्वक कहा, “बढ़िया था!”
“तुमको अच्छा तो लगा न डेवी? ऐसा तो नहीं लगा न कि फ़ीका फ़ीका हो गया सब?” मैंने पूछा।
“अरे नहीं यार! हम दोनों ने ही तो डिसाइड किया था न कि ऐसे करेंगे! और कल रात तो मस्ती होनी है खूब!” उसने उत्साह से कहा।
“हाँ! वो तो है!”
फिर हम दोनों कुछ देर के लिए चुप हो गए।
“हनी?”
“हाँ?”
“मैंने तुमसे अपनी फैंटसी शेयर करी थी न?”
“हम्म!” हाँ, याद था मुझे!
“तो,” उसने प्यार से मेरी छाती को सहलाया, और बड़ी मिठास से बोली, जैसे अक्सर छोटे बच्चे करते हैं, जब वो अपने बड़ों से कुछ चाहते हैं, “विल इट बी टू बैड इफ आई कैन आल्सो हैव सेक्स विद समवन एल्स?”
“किसके साथ?”
हाँ, देवयानी की फंतासी! बड़ी अनोखी फंतासी थी। और मुझे लग रहा था कि वो केवल फंतासी है - वो उसको साकार नहीं करना चाहती होगी। सच कहूँ, तो मुझे अपनी पत्नी को किसी अन्य आदमी के साथ शेयर करने के विचार से ही नफरत थी। मैं बाहर चाहे जितना दम भरूँ, अंदर से तो देसी आदमी ही हूँ! अपनी बीवी किसी और के साथ! न बाबा न! देवयानी ने भी मेरी आवाज में नाराजगी जरूर सुनी होगी, लेकिन वो मुझे बताना चाहती थी कि उसके मन में क्या है। और उसकी सच्चाई की मुझे बेहद क़द्र थी। अगर मेरी बीवी अपने मन की बातें मुझसे नहीं कर सकती, तो फिर किससे कर सकती है?
“आई डोंट नो... ऐसा कोई है नहीं। ... बस कोई ऐसा हो हू कैन कीप मी एंड अस सेफ एंड रेस्पेक्ट अस !”
“हम्म... तो,” मैंने बात की गंभीरता को हल्का करने की कोशिश की, “तुम्हारी ये छोटी सी चूत एक और लण्ड चाहती है?” मैंने उसे छेड़ा, और उसकी योनि में अपनी उँगली डाल दी।
डेवी इस अकस्मात् प्रहार से चिहुँक गई। फिर संयत हो कर बोली,
“हनी, यहाँ ‘चाहने’ जैसा कुछ नहीं है! मैं बस एक ‘और’ बार इसको एक्सपीरियंस करना चाहती हूँ!” उसने सच्चाई से कहा, “बस इतना ही हनी!”
हाँ, सालों पहले देवयानी का किसी से अफेयर तो था - उसको सेक्स का भी अनुभव मिला था।
मैंने तुरंत तो कुछ नहीं कहा, और बस सोचा कि डेवी अनुभव क्या करना चाहती है। कुछ देर सोचने पर मुझे लगा कि यह बहुत बुरी बात नहीं होगी अगर वो किसी और आदमी के साथ सेक्स का अनुभव कर सके! अगर मैं कई लड़कियों के साथ सेक्स कर सकता हूँ, तो वो भी कर सकती है। मुझे यकीन है कि कई महिलाएं ऐसा अनुभव लेना चाहती होंगी। कम से कम मेरी बीवी मुझसे इस बारे में खुले रूप से बातें कर रही थी। मुझसे कुछ छुपा नहीं रही थी। इसलिए इस बात को उसकी बेवफाई नहीं माना जा सकता।
“क्या सोच रहे हो हनी?” उसने डरते हुए पूछा।
“सोच रहा हूँ!”
उसने कुछ देर कुछ नहीं कहा; मैंने भी कुछ देर कुछ नहीं कहा।
“हनी, आई विल ओनली डू इट अगर आप बुरा न मानें! बिना आपकी इज़ाज़त के मैं कुछ नहीं करूँगी! आई लव यू! एंड आई विल नेवर चीट ऑन यू!” उसने जोड़ा।
“तुम समझती हो न डेवी, कि मेरे लिए यह करना बहुत कठिन होगा... मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ! और मेरे लिए तुमको किसी और से शेयर करना बहुत मुश्किल होगा!”
“मैं जानती हूँ। और मैं इसे हमेशा नहीं करना चाहती! बस एक बार... मुझे जो चाहिए, वो आप दे रहे हैं मुझे! मुझे बस एक और बार एक्सपीरियंस करने का मन है... अगर आपको ठीक लगे, तो! अगर आपकी इज़ाज़त हो तो!”
“और अगर मैं परमिशन न दूँ तो?”
“तो मैं इस बारे में सोचूँगी भी नहीं!” उसने संजीदगी से कहा, “मेरा प्रॉमिस है ये!”
मैंने कुछ देर उसकी तरफ देखा, और फिर उसका मुँह चूम लिया।
“सोचते हैं!” मैंने कहा।
हमने कुछ देर और बातें की और फिर अपने सम्भोग की थकावट के कारण हम आखिरकार एक-दूसरे की बाहों में सो गए। वैसे भी काफी रात हो गई थी। कुछ घंटों बाद मेरी नींद टूटी तो मैं बाथरूम जाने के लिए उठा। जब मैं वापस लौटा तो मैंने देखा कि डेवी की चादर आधी उघड़ी हुई है। यह जानते हुए कि वो उसके नीचे पूरी तरह से नग्न है, मैं फिर से उत्तेजित हो गया। मैंने बिस्तर में आराम से लेटा, और फिर उसकी गर्दन से शुरू कर के धीरे-धीरे उसके स्तनों तक चूमना गुदगुदाना शुरू कर दिया। डेवी मुस्कुराते हुए उठी और प्रत्युत्तर में मुझे भी चूमने लगी। अगले डेढ़ घंटे तक हमने दो बार सम्भोग किया, और चूर हो कर फिर से सो गए!
**
nice update..!!
toh aakhir devi kaanuni taur pe, samajik aur dharmit taur se amar ki patni ban gayi..bahot achha shaadi ka varnan kiya hai bhai aapne..!!
nice update..!!
suhagraat ka waqt bhi aagaya aur uski suruwat bhi bahot kamuk huyi hai..!! devi ka amar ke pair chhuna yeh bhi avishwasniy tha lekin devi ki aise karne ichha thi aur iss se amar ko aascharya bhi huva lekin devi ki ichha puri karna ab uska hi kaam hai..!!
nice update..!!
amar ne gaby ke bhi photos nikale the aur ab davy ke bhi photos nikale..kyunki iss raat ki yaade hamesha unke sath rahe..!! amar aur devy ka ek dusre ke liye pagalpan yahi batata hai ki dono ek dusre ko kitna pyaar karte hai..!!
nice update..!!
bhai aapne kya zabardast suhaagraat ka vrnan kiya hai..maja aagaya..!! bhai bas ek baat kehna chahunga ki devi ki fantasy sirf fantasy hi rahe toh achha hai kyunki koi bhi pati apni patni ko kisi aur ke sath share nahi kar sakta chahe woh ek baar ho ya sou baar..amar devi ke khushi ke liye haa bhi bolde lekin woh yeh sab kabhi dil se nahi chahega kyunki devi sirf uski hai aur iss fantasy ke chalte rishte me bhi darar aasakti hai..aur yeh baat devi ko bhi samajhni chahiye..!!
धन्यवाद मित्र!Brilliant writing. Eagerly waiting for next update.
Sahi kaha
Ab nhi padna, ab aap or me inki kahani k suhagraat k varnan ko reality me krenge....
Ek baat toh h
Inki kahani hai hi itni achi ki
Hm na chah kr bhi apne atit me chale jate hai...
bhai sujhav toh nahi hai..bas itna chahunga ki amar uss baat ko na maane..kyunki agar usne apni patni ke khushi ke liye maan li uski baat fir bhi woh yeh kabhi seh nahi payega..isliye na hi maane toh achha hai..!!भाई, आपके कमैंट्स के लिए बहुत बहुत धन्यवाद! पाठकों को मेरी कहानी का आनंद आए - बस यही ज़रूरी है मेरे लिए।
आपकी बात सही है - अमर और देवयानी दोनों के बीच प्रगाढ़ प्रेम है, और उसी प्रेम के कारण भरोसा भी है। अन्यथा देवयानी अपने मन की बात अमर से कभी न कह पातीं। अब यह अमर पर निर्भर करता है कि वो इस बात को माने, या नहीं।
इस कहानी में वो बात कोई मुद्दा नहीं है। ये एक बहुत लम्बी कहानी है, और न जाने कहाँ से शुरू हो कर न जाने कहाँ चली जानी है।
इसलिए साथ बने रहें - कोई सुझाव हो कहानी में, तो अवश्य बताएँ।![]()