- 4,212
- 23,530
- 159
![b6ed43d2-5e8a-4e85-9747-f27d0e966b2c b6ed43d2-5e8a-4e85-9747-f27d0e966b2c](https://i.ibb.co/mhSNsfC/b6ed43d2-5e8a-4e85-9747-f27d0e966b2c.jpg)
Last edited:
ला जवाबनया सफ़र - विवाह - Update #11
“कभी मना नहीं करोगी?” मैंने उसकी ब्रा का हुक खोलते हुए कहा।
“कभी नहीं... जब जब आपका मन हो, तब तब कर लीजिए मेरे सरकार!” उसने मेरे गले में अपनी बाहों का हार डालते हुए कहा, “अगर मैं ही अपने हस्बैंड को शादी-शुदा ज़िन्दगी का सुख न दे पाऊँ तो क्या फायदा?”
“वेरी गुड!” मैंने उसकी चड्ढी उतारते हुए कहा! फिर दो क्षण डेवी को नज़र भर देखा और बोला, “यार डेवी! तुम बहुत खूबसूरत हो!”
“सूरत?” वो अदा से मुस्कुराई - उसको मालूम था कि मैं पूरी तरह से उसका ग़ुलाम बन गया था।
“ख़ूबसूरत और ख़ूबजिस्म - दोनों!” मैंने कहा, और फिर आगे जोड़ा, “यार लेकिन तुम ये ब्रा पहनती ही क्यों हो? याद है, तुमने कहा था कि आगे से नहीं पहनोगी! लेकिन फिर भी…”
“ठीक है मेरे मालिक! नहीं पहनूँगी!”
“हा हा!” मैं उसकी बदली हुई शब्दावली पर हँसा, “मालिक? सरकार? क्या हो गया मेरी जान?”
मेरी बात पर डेवी हँसी, “मैं तो बस तुमको छेड़ती हूँ! मेरे जानू - मैं तो तुमको रोज़ तुम्हारा लण्ड... अपनी चूत में डालने दूँगी! रोज़! कभी भी! कभी मना नहीं करूँगी।”
इतना सुनते ही मैंने डेवी को अपनी ओर भींच लिया, और उसके सपाट पेट पर एक जबरदस्त चुम्बन दिया। हमारी इस ‘डर्टी टॉक’ से डेवी बहुत उत्तेजित हो गई थी - और मैं भी। मैं तो वैसे भी कुछ घण्टों से भरा बैठा था। मैंने एक दो और चुम्बन जड़ने के बाद उसको बिस्तर पर पेट के ही बल पटक दिया।
“आऊ!” डेवी इस अप्रत्याशित हमले से चिहुँक गई, “आराम से! बिस्तर तोड़ना है क्या?”
“तोड़ना तो तुमको है! अब उसमें बिस्तर टूटे, तो टूटे!”
“मेरे शेर, तुमने तो मुझे कब का तोड़ दिया है! आह!”
डेवी को बिस्तर पर लिटा कर मैंने उसकी दोनों जाँघें कुछ इस प्रकार से फैलाईं जिससे उसकी योनि और गुदा - दोनों के ही द्वार खुल गए। इससे एक और बात हुई, डेवी के नितम्ब ऊपर की तरफ थोडा उभर आये और थोड़ा और गोल हो गए। जवान, स्वस्थ, और सुडौल नितम्ब…! पतली कमर, और उसके नीचे ऐसे स्त्रियोचित फैलाव लिए हुए नितम्ब! आह! क़यामत है ये लड़की! पता नहीं मैंने पहले बताया है या नहीं, लेकिन डेवी के नितम्ब भी उसके स्तनों के समान ही बड़े लुभावने थे। मैं जानता हूँ कि कुछ मर्दों को केवल स्तन पसंद आते हैं, और कुछ को केवल नितम्ब! और कुछ को दोनों! और कुछ बिरले ऐसे होते हैं, जिनको अपनी स्त्री में उसका सब कुछ पसंद आता है। मैं उन कुछ बिरले लोगों में था। और किस्मत ऐसी कि मुझे ऐसी लड़की मिली थी, जिसका सब कुछ उम्दा था - न केवल शरीर, बल्कि उसका मन और सोच - सब कुछ!
मैंने उसके दोनों नितम्बों को अपनी दोनों हथेलियों में जितना हो सकता था, भर लिया, और उनको प्रेम भरी निर्दयता से दबाने कुचलने लगा। मैं तो उत्तेजित था ही! लेकिन इस समय उत्तेजना का असर देवयानी पर साफ़ दिखाई दे रहा था - उसकी योनि और उसकी गुदा का द्वार रह रह कर खुल और बंद हो रहा था। योनि से काम-रस निकल रहा था, और उसके दोनों नितम्ब न केवल मेरे दबाने कुचलने से, बल्कि बढ़े हुए रक्त-प्रवाह से थोड़े लाल हो गए थे। कुछ देर ऐसे ही दबाने के बाद उसके नितम्बों के बीच की दरार की पूरी लम्बाई में अपनी तर्जनी फिराई। उसकी योनि पर जैसे ही मेरी उंगली पहुँची, मुझे उस पर उसकी उत्तेजना का प्रमाण मिल गया! मैंने उसकी योनि-रस में अपनी तर्जनी भिगो कर उसकी गुदा पर कई बार फिराया। जैसे ही मैं उसकी गुदा को छूता, हर बार स्व-प्रतिक्रिया में उसका गुदा-द्वार बंद हो जाता।
मैं शैतानी से मुस्कुरा उठा।
“बीवी?”
“हम्म?”
“तुमने सीपी क्या खाई, तुम्हारी सीपी से ही रस निकलने लगा?”
“मतलब?” उसने हाँफते हुए कहा।
“क्लैम! क्लैम खाया न - उसको सीपी कहते हैं!”
“ओह?”
“हाँ! और ये - तुम्हारी चूत - ये भी तो सीपी जैसी ही दिखती है!”
“धत्त!”
“अरे - डू यू नो - क्लैम इस एन अफ्रोदिसिआक!”
“कुछ भी!” डेवी हँसने लगी, “मुझको नहीं मालूम है, तो कुछ भी बोल बोल कर बहकाओगे मुझे?”
“अरे!! हाथ कंगन को आरसी क्या? चूत से रस टपक रहा है, और बोल रही है ‘कुछ भी’!” मैंने देवयानी को और उसकी योनि को छेड़ते हुए कहा।
“तुम मुझको ऐसे छेड़ोगे, तो ऐसा ही तो रिएक्शन होगा न?” डेवी अदा से बोली, “और आपके हाथों में ‘आरसी’ है क्या?”
“आय हाय मेरी वात्सयायनी!”
“वात्सयायनी? हैं! ये कौन है?”
“लेडी वर्शन ऑफ़ वात्सयायन!”
“हा हा हा हा!” डेवी ने ठट्ठा मार कर हँसते हुए कहा, “आप और आपकी बातें! अच्छा चलो - सेक्स नहीं करना है क्या?”
“अरे क्यों नहीं करना है मेरी जान!”
मैंने कहा, और उसके नितम्बों को जकड़ कर बारी बारी से दाँत से काट लिया!
“आऊ आऊ!” डेवी कराह उठी, “जानवर कहीं का!”
बोल कर वो पलट गई। मैं डेवी के ऊपर आ गया, और उसको अपनी बाहों में बाँध कर चूमने लगा। प्रतिक्रिया में उसने अपना हाथ बढ़ा कर मेरे लिंग को पकड़ लिया और कामुकता से उसको सहलाने लगी। सम्भोग के लिए बराबर होना आवश्यक है - लिहाज़ा, मैं अब उसके समान्तर आ गया और कभी उसके होंठो को चूमता, तो कभी उसके स्तनों को। हम दोनों की ही हालत बहुत खराब थी - डेवी कामोन्माद के भण्डार पर बैठी हुई थी। मेरी भी कमोवेश वही हालत थी। मेरा लिंग इस समय ऐसे अकड़ा हुआ था कि जैसे हलके से ही दबाव, हलके से ही झटके से उसमें विस्फ़ोट हो जाए! डेवी की योनि भी पूरी तरह से गीली हो चुकी थी - या तो उसको ओर्गास्म हो चुका था, या फिर होने वाला था! मुझसे अब रहा नहीं गया और मैंने बिना किसी पूर्व चेतावनी के डेवी के होंठों को चूमते हुए, अपने लिंग को उसकी योनिद्वार पर सटा कर एक ज़ोर का धक्का लगाया.... मेरा लिंग उसकी योनि में ऐसे सरकता हुआ भीतर तक चला गया, कि जैसे मुलायम से मोम में गर्म चाकू घुसा दिया गया हो।
डेवी के मुँह से एक कामुक सीत्कार निकल गई!
“मेरी जान... आह!” मैं भी बड़बड़ाते हुए पूरी गति से डेवी के साथ सम्भोग करने में व्यस्त हो गया। जब ‘पिच’ की ऐसी हालत होती है, तो खेल अधिक समय तक चल नहीं पाता। चाहे खिलाड़ी कैसे भी हों! हमारा खेल भी तीन चार ही मिनटों में अपने पूरे शबाब पर पहुँच गया। मैंने डेवी को भोगते हुए उसके घुटनों को ऊपर की तरफ उठा कर मोड़ दिया और उसके नितम्बों को सहलाना शुरू कर दिया। मुझे मालूम था कि मैं जल्दी ही स्खलित होने वाला था, लेकिन कुछ और देर तक अपना ‘विकेट’ बचाना चाह रहा था। शायद कुछ और ‘रन’ बन जाएँ! इसलिए मैंने धक्के लगाना रोक कर, अपने लिंग को बाहर निकालना चाहा! लेकिन उसी समय मेरी आग की तरह भड़कती बीवी ने मेरी कमर को अपनी टांगों के पाश में बाँध लिया! उसने ‘न’ में सर हिलाया। मतलब बदमाशी और शरारत का कोई चांस नहीं!
‘ठीक है!’ मैंने सोचा, और पुनः धक्के लगाने लगा। अगले कुछ ही क्षणों में मेरा लिंग, डेवी की कोख की गहराईयों को मेरे वीर्य से भरने लगा। मैंने आहें भरते हुए डेवी की कमर को कस कर अपने जघन क्षेत्र से चिपका लिया। डेवी भी नाक और मुँह से गहरी गहरी साँसे भरती जा रही थी। पहली बार हुआ था ऐसा मेरे साथ! लेकिन हाँ, एक बात का पक्का पता चल रहा था कि देवीनी को भी ओर्गास्म हो चुका था। बस ये नहीं समझ आ रहा था कि मेरे साथ हुआ, या मेरे से पहले! स्खलित होने के बाद मैं उसके ऊपर ही लेट गया। लेकिन मैंने उसके होंठों, आँखों, कानों, गले और स्तनों पर गर्म चुम्बनों की झड़ी लगा दी।
कुछ ही देर बाद मेरा लिंग सिकुड़ कर खुद ही डेवी की योनि से बाहर आ गया।
“आअह्ह्ह!” वो कराही, “मिस्टर सिंह?”
“हम्म?”
“ये क्या था?”
मुझे लगा कि देवयानी मेरी परफॉरमेंस से निराश हो गई। लेकिन,
“बाप रे! सही में मुझे तोड़ दिया! बदमाश कहीं का!”
“बेग़म, ठीक ठीक डिसाइड कर लो - बदमाश हूँ, या जानवर?”
“तुम तो मेरे सब कुछ हो!” वो मुस्कुराते हुए बोली, “मैंने जो सब कुछ चाहा, वो तुम हो!”
देवयानी ने इतने प्यार से ये बात कही, कि मेरा दिल बल्लियों उछलने लगा।
“ऐसे बोलोगी तो एक और राऊण्ड करने का मन होने लगेगा!”
“एक क्यों, कई राऊण्ड कर लेना सरकार!” उसने प्यार से गलबैयाँ डालते हुए कहा, “लेकिन दिल्ली से हज़ारों किलोमीटर दूर यही करने आए हैं क्या?”
“और क्या करना था?” मैंने उसको छेड़ा।
“अंडमान आए हैं! थोड़ा घूम फ़िर भी लेते हैं न, जानू?”
अच्छी बात थी। आधे घण्टे बाद हम पैदल ही घूमने निकल गए। कुछ देर चलने के बाद हम कोर्बिन कोव नामक बीच पर पहुँचे। शांत समुद्र! क्या आनंद! शायद इस समय समुद्र में भाटा आया हुआ था, जिसके कारण काफी दूर तक सिर्फ गीली, बलुई और घिसे हुए गोल पत्थरों से अटा हुआ समुद्र तल दिख रहा था। एक भी प्राणी नहीं था वहाँ! इतनी शांति! हम दोनों बातें करते, और समुद्री शंख, सीपियाँ और रंगीन पत्थर बीनते बीनते काफी दूर निकल गए। वापस चलने का होश तब आया, जब समुद्र का पानी कमर से ऊपर आने लगा। और जब तक हम बीच तक पहुँचे, हम पूरी तरह से भीग चुके थे।
मेरे कहने पर डेवी ने केवल शर्ट पहनी थी, उसके अंदर ब्रा नहीं। लिहाज़ा, गीली हो जाने के कारण, शर्ट उसके शरीर से अमरबेल के समान चिपक गई थी। और उस गीली शर्ट के लगभग पारदर्शी हो चले कपड़े से उसका शरीर पूरी तरह से दिख रहा था - उसके दोनों चूचकों का रंग और आकार, और स्तनों की गोलाईयाँ साफ़ दिख रही थीं! जब कोई कपड़ा स्त्री शरीर की स्थूलता को छुपाता नहीं, बल्कि दर्शाता है, तो वो कपड़ा ‘सेक्सी’ की श्रेणी में आ जाता है। मतलब, उस सेक्सी गीली शर्ट में देवयानी क़यामत लग रही थी - पूरी क़यामत! शाम हो रही थी, मतलब दिन की गर्म हवा के स्थान पर, सुखदाई बयार चल रही थी। और इन सभी सम्मिलित प्रभावों से डेवी के चूचक भी स्तंभित हो गए।
इससे पहले कि डेवी अपनी इस स्थिति पर ध्यान दे पाती, मैंने दनादन उसकी कई सारी फोटो उतार डाली! फिर उसको समझ में आया कि मैं क्यों उसकी तस्वीरें उतार रहा हूँ। वो बेहद क़ातिलाना मुस्कान से मुस्कुराई।
मैंने डेवी के कमर पर चिकोटी काट कर उसके कान में गुनगुनाया,
“समुन्दर में नहा के, और भी नमकीन हो गयी हो!
अरे लगा है प्यार का मोरंग, रंगीन हो गयी हो हो हो!”
मेरे ‘हो हो’ करने से डेवी खिलखिला कर हँसने लगी!
मैंने भी खुश हो कर गुनगुनाना जारी रखा,
“हंसती हो तो दिल की धड़कन हो जाए फिर जवान!
चलती हो जब लहरा के तो दिल में उठे तूफ़ान...”
“पतिदेव जी, तूफ़ान बाद में उठाइएगा - पहले सनसेट का मज़ा ले लेते हैं?”
“जी बीवी जी!”
द्वीपों पर सूर्यास्त का समय अत्यंत नाटकीय होता है। उन पंद्रह-बीस मिनटों में डूबता हुआ सूर्य जैसे पृथ्वी के साथ अठखेलियाँ कर रहा होता है। आसमान में विभिन्न रंगों की ऐसी सुंदर छटा बिखरती है, कि उस सुंदरता का शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता! और ऐसे नाटकीय सुन्दर दृश्य का अवलोकन मैं अपनी जीवन-संगिनी के साथ कर रहा था। मैं खुद को इतना भाग्यशाली पा कर आश्चर्यचकित हो गया था - न केवल मुझे प्रेम पाने का एक और अवसर मिला था, बल्कि देवयानी के रूप में मुझे ऐसा साथी मिला था, जिसके साथ जीवन रंगीन हो जाए!
यही सब सोचते सोचते हमने ख़ामोशी में सूर्यास्त का आनंद उठाया, और उसके कई चित्र उतारे। अन्ततः, मैं जब उस अलौकिक सौंदर्य का आनंद उठाने की तन्द्रा से बाहर निकला तो देखा, कि बीच पहले जैसा ही वीरान था। बस, अब अँधेरा गहरा गया था। लेकिन फिर भी मैं और डेवी वहाँ कुछ और देर बैठे रहे।
“क्या बात है जानू? तुम ठीक हो?” देवयानी ने चिंतित सुर में कहा।
“आई ऍम गुड माय लव!” मैंने कहा, “आई लव यू!”
वो मुस्कुराई, “आई नो!” फिर मेरी बाँह को अपनी दोनों बाँहों में पकड़ते हुए बोली, “कुछ भी उल्टा पुल्टा मत सोचना! मैं कहीं नहीं जा रही हूँ!”
‘बाप रे!’ मैंने सोचा, ‘इसको मेरे मन की बात कैसे सुनाई दे गई?’
“आई लव यू!” मैं बस इतना ही कह सका।
कुछ ही मिनटों में काफ़ी अँधेरा हो गया और अब समुद्र का कुछ दिख भी नहीं रहा था। इसलिए होटल की तरफ़ वापस चलने लगे।
चित्र में: कोर्बिन कोव
nice update..!!नया सफ़र - विवाह - Update #10
हमारे हनीमून के लिए हमने अंडमान द्वीप-समूह जाने का प्लान किया था। उस समय तक अधिकतर चलन था पहाड़ों पर जाने का - या फिर बहुत हुआ तो गोवा। कुछ मध्यमवर्गीय लेकिन साधन संपन्न लोग हनीमून के लिए बाहर के देश भी जाने लगे थे - जैसे कि मारीशश, थाईलैंड, लंका आदि! हम दोनों उतने साधन संपन्न नहीं थे, और हमारा पहाड़ों पर जाने का कोई मूड नहीं था। गोवा में भीड़ होगी, सोच कर हमने ठाना कि कुछ तूफानी करते हैं! इसलिए अंडमान जैसी नई अनछुई जगह जाने का प्लान हुआ!
आज के दिन आप अंडमान की शकल देखेंगे, तो अपना सर पीट लेंगे। भीड़-भड़क्का, शोर, और भीषण प्रदूषण! कैसे एक सुन्दर सी स्वर्ग सी जगह का सत्यानाश करें, हमसे सीख लेना चाहिए। लेकिन आज से कोई पच्चीस साल पहले यह एक बहुत ही अलग सी जगह थी। बेहद ख़ूबसूरत - लगभग स्वर्ग जैसी! उस समय तक अंडमान सामान्य पर्यटकों के राडार में नहीं आया था। मेरे कुछ पाठकों को लद्दाख़ में स्थित पैंगोंग झील के बारे में मालूम होगा। जब तक ‘थ्री इडियट्स’ फिल्म नहीं आई थी, कोई जानता भी नहीं था उस झील के बारे में! लेकिन अब देखो - कैसी फूहड़ता से उस सुन्दर से स्थान का विदोहन हो रहा है! फूहड़ पर्यटक उसमें कूड़ा फेंक देते हैं; जीप चला देते हैं। बस - वैसा ही हाल अंडमान का है अब! लेकिन तब वैसा कुछ नहीं था। पच्चीस साल पहले, वहाँ बहुत ही कम लोग आते थे - स्थानीय लोग भी कम थे, और पर्यटक भी! इस कारण से वहाँ अपार शांति थी। लोगों को इतना इत्मीनान था कि सामान एक स्थान पर रख दो, तो कई घण्टों बाद वापस आने पर भी, आपका सामान ज्यों का त्यों, सुरक्षित पाया जाता। ऐसा था अंडमान तब!
देश के पूर्वी हिस्से में होने के कारण यहाँ सूर्योदय और सूर्यास्त दिल्ली के मुकाबले कम से कम एक घंटे पहले होता है, इसलिए अगर वहाँ की सुंदरता का आस्वादन करना है तो जल्दी जागना आवश्यक है। वो सब बातें थोड़ी बाद में, लेकिन पहले थोड़ा इतिहास - मानव-विज्ञानी बताते हैं कि अंडमान में मानव जीवन कई हजारों सालों से है। जब अफ्रीका से उद्घृत हो कर मानव-जाति बाकी विश्व में प्रवास कर रही थी, तब उसकी एक शाखा यहाँ भी पहुँची। और यह हुआ कोई तीस हज़ार साल से भी पहले! हाँलाकि मानव-जाति की वहाँ उपस्थिति के पुरातात्विक प्रमाण केवल कोई ढाई हज़ार साल पहले के ही मिले हैं - लेकिन जान-जातीय रूप में मानव यहाँ हज़ारों साल से रह रहा है। माना जाता है कि प्राचीन ग्रीस के भूगोलवेत्ता क्लोडियस टालमियस को इन द्वीप-समूहों के बारे में मालूम था। उन्होंने इस द्वीप को अंगदेमान के नाम से लिखा है। भारत के महान चोल राजाओं को भी इन द्वीपों के बारे में मालूम था, और वे इन द्वीप समूहों को ‘अशुद्ध द्वीप’ कहते थे। ऐसा मानने का उनका कारण था यहाँ रहने वाली जन-जातियों का आदि-मानव के जैसा रहन सहन। वो प्राचीन जन-जातियाँ नरभक्षी थीं; वो सभी नग्न रहते थे; भाषा, आध्यात्म, संस्कृति, कला, पोशाक, भोजन, विज्ञान, इत्यादि किसी भी दिशा में कोई प्रगति नहीं थी। खैर, दक्षिण भारत के महान चोल राजाओं के लिए इन द्वीपों की महत्ता एक नौसेना छावनी से अधिक नहीं थी। यह सब हुआ था आज से कोई एक हज़ार साल पहले!
उनके बाद, तेरहवीं शताब्दी में यात्री मार्कोपोलो ने भी इन द्वीप के बारे में लिखा है - उन्होंने इसको अंगमनियन द्वीप के नाम से बुलाया है। आज से कोई चार सौ साल पहले, महान मराठा योद्धा, शिवाजी महाराज ने भी इन द्वीपों पर राज किया, और अपनी नौ-सेना की छावनियाँ बनाईं। उनके बाद अंग्रेजों ने अट्ठारहवीं शताब्दी के अंत तक इन द्वीपों पर अपना पूरा प्रभुत्त्व जमा लिया था, और अंडमान का प्रयोग नौ-सेना, और एक दण्ड-विषयक कॉलोनी के रूप में करना आरम्भ किया। 1857 की स्वतंत्रता क्रान्ति के बाद भारत के अनगिनत युद्ध बंदियों और स्वतंत्रता सेनानियों को यहाँ पर कारावास की सजा भुगतने के लिए भेज दिया गया, और यहाँ बनाई हुई ‘सेलुलर जेल’ में बंधक रखा गया। इस स्थान को वो ‘काला पानी’ कहते थे। भारतीयों के लिए ये स्थान अवश्य ही नर्क के समान हो, लेकिन अंग्रेज़ों ने अपनी सुख-सुविधा में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। चर्च, बॉल-रूम, बढ़िया बंगले, और बीच समुद्र वगैरह तो थे ही! मतलब उनके ढेरों मज़े थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, थोड़े समय के लिए जापानियों ने अंडमान पर कब्ज़ा कर लिया था, और उस इतिहास के अवशेष वहाँ अभी भी मौजूद हैं। स्वतंत्रता मिलने के पश्चात इनको केन्द्रशासित प्रदेश का दर्जा मिला, और तब से यहाँ शान्ति है।
उस समय अंडमान जाना एक महँगा काम था - समय के हिसाब से भी और धन के हिसाब से भी। उससे कम पैसे में तो थाईलैंड जैसी जगह जाया जा सकता था। मेनलैंड भारत से अंडमान जाने के लिए बेहद सीमित साधन थे। उस समय सप्ताह में केवल दो या तीन उड़ानें ही होती थीं - उसके भरोसे पर्यटन विकसित नहीं हो सकता। कनेक्टिविटी भी एक बड़ा मुद्दा थी - हवाई जहाज़ केवल कलकत्ता और चेन्नई से निकलते थे। चेन्नई से पोर्ट ब्लेयर के लिए शिप भी चलते थे। उसका उपयोग भी कुछ लोग करते थे। लिहाज़ा, ऐसे लोग जिन्होंने अंडमान देखा हो, उसका आनंद उठाया हो, कम थे। और ऊपर से इंटरनेट कनेक्टिविटी की भी घोर कमी थी - और इन कारणों से हमारे पास पर्याप्त और विश्वसनीय जानकारी नहीं थी। लेकिन जब हमने अपने आस पास के कुछ टूर ऑपरेटरों से बातें करीं, तो पता चला कि अंडमान जाने वाले अधिकांश पर्यटक पोर्ट ब्लेयर और उसके आस-पास के स्थानों पर रुकते थे। लिहाज़ा, हमने भी वही करने की सोची।
रात में दिल्ली से कलकत्ता, और फिर वहाँ से सुबह सुबह पोर्ट ब्लेयर! गनीमत यह थी कि फ्लाइट अपने निर्धारित समय पर निकली। अब तक हम दोनों को ही थकावट महसूस होने लग गई थी। और हम चाहते थे कि वहाँ जा कर बस आराम किया जाए - जितना संभव हो, उतना जल्दी। बंगाल की खाड़ी पर उड़ते समय कुछ भी साफ़ नहीं दिख रहा था – सूर्य की रौशनी कुछ इस तरह आँखों में आ कर पड़ती है, कि आँखें चुँधिया जाती हैं। इस कारण से नीचे का समुद्र कुछ भी नहीं समझ आ रहा था। लेकिन, जब हम द्वीप समूह के निकट पहुँचे, तब नीचे के नजारे एकदम दिखने लगे। समुद्री नीले हरे रंग का पानी, उसके बीच में अनगिनत हरे भरे टापू, उनके किनारों पर पीली रेत, हर तरफ़ नीला आसमान, और उसमें इधर उधर छिट-पुट सफ़ेद बादल! अचानक ही हमको स्वर्ग पहुँचने का अनुभव होने लगा - जैसा सोचा था, उससे कहीं अधिक सुन्दर जगह लग रही थी ये! जब हवाई जहाज़ उतर रहा था, तो और भी सुन्दर और मनोरम दृश्य थे - एअरपोर्ट की एकलौती हवाई पट्टी के हर तरफ़ छोटे-छोटे पहाड़ी टीले थे, जिन पर हरे हरे पेड़ों का जंगल था। इतनी हरियाली देख कर आँखें ऐसे ही ठंडी हो गईं। ऐसा लग रहा था कि यहाँ बहुत ठंडक होगी, लेकिन जब हम हवाई जहाज़ से बाहर निकले तो पाया कि वहाँ गर्मी थी। सूरज की गर्मी और समुद्री प्रभाव के कारण अंडमान का वातावरण गुनगुना गरम था, जो दिन में उमस भरी हो जाती है। लेकिन फिर भी, आनंद तो ऐसी ही जगहों पर आता है।
ऑफिस से पूरे तीन हफ़्ते ही छुट्टी ली थी हमने - मतलब आराम से इस जगह का आनंद उठाया जा सकता था। बैकअप प्लान यह भी था कि अगर वहाँ मन नहीं लगे, तो हम वापस आ कर जंगल या पहाड़ या रेगिस्तान में भी अपना हनीमून मना सकते थे। उस समय तक वहाँ बहुत बड़े बड़े होटल नहीं खुले थे। कुछ तो रहे ही होंगे, लेकिन अपना इतना बजट नहीं था। वैसे भी शादी का पूरा खर्च खुद से उठाने की ज़िद से हमारे पास हनीमून के लिए कम ही बजट बचा हुआ था। इसलिए हमने साधारण होटल में ही रहने की योजना बनाई थी। कैश और ट्रेवलर्स चेक़ ले कर हम वहाँ पहुंचे थे। ससुर जी ने हमको बोल रखा था कि कोई समस्या हो तो घर कॉल कर लेना। उनके आई ए एस कनेक्शन से हमको कुछ लाभ तो मिलता। लेकिन देवयानी ने उनसे कहा कि वो सब हम लोग केवल इमरजेंसी में करेंगे! नहीं तो हमको हमारे ही हाल पर छोड़ दें।
एयरपोर्ट से हम सीधा अपने होटल को गए। हमारा होटल सस्ता था, लेकिन बढ़िया था। जैसी डेवी की आदत थी, वो दिखावे में कम विश्वास रखती थी और उपयोगिता में अधिक! हमारा कमरा बड़ा और साफ सुथरा था, और सारी आवश्यक सुविधाएँ वहाँ उपलब्ध थीं। बड़ी शांति थी - हर तरफ नारियल के पेड़, और अन्य फूलों वाले पौधे! सुंदरता अच्छी थी! नीरवता भी! होटल में कुछ साईकिलें थीं - जिनका उपयोग आस पास जाने में किया जा सकता था। सवारी के नाम पर एम्बेसडर कार थीं, जो कि संख्या में कम थीं - लेकिन होटल में रिसेप्शन पर बोलने पर कार मिल जाती। यह सब हमको होटल आने पर मालूम पड़ा। रात में हम दोनों ही सोए नहीं थे और यात्रा लम्बी थी। इसलिए थकावट और भूख दोनों ही लग रही थी। तो खा पी कर सबसे पहले सोने का प्लान था। अंडमान का अपना कोई स्पेशल खाना नहीं है - अधिकतर लोग बंगाली खाने से प्रभावित हैं। अतिरिक्त बर्मा और थाईलैंड के खाने का भी प्रभाव यहाँ देखने को मिलता है। इसलिए चावल, सी-फ़ूड, और नारियल की बहुतायत है यहाँ के भोजन में। देवयानी को सी-फ़ूड का ऐसा कोई शौक नहीं है, लेकिन चूँकि वो यहाँ आई थी, इसलिए उसने अपने लिए सी-फ़ूड मंगाया। सी-फ़ूड होगा तो मछली होनी तो अवश्यम्भावी ही है, लेकन उसने रेस्त्रां की अनुशंसा पर एक डेलिकेसी, क्लैम या सीपी, भी मँगाई। मैं तो ठहरा घास-फूस वाला आदमी - इसलिए जो भी शाकाहारी भोजन मुझको मिला, वो मैंने निबटाया। बहुत दिनों बात इतने इत्मीनान से हमने भोजन किया था। खाते खाते ही सुस्ती सी छा गई शरीर में।
खाने के बाद हम अपने कमरे में आए, तो दरवाज़ा बंद करते हुए मैंने देवयानी से कहा,
“आओ जानेमन, तुम्हारा थोड़ा वज़न घटा दूँ?”
“मेरा वज़न? अरे, आज तो मैंने इतना अधिक खाया कि मेरा वज़न घटने के बजाय दो तीन किलो बढ़ गया होगा!”
“अरे मेरी जान, मैं तो इन मुये कपड़ों की बात कर रहा था!” मैंने खींसे निपोरते हुए कहा।
डेवी भी इस खेल में शामिल हो गई : जैसे ही मैंने उसकी तरफ अपना हाथ बढाया, वो झटक कर पीछे हट गई।
“क्यों रे, गंदे बच्चे!” डेवी ने शैतानी से मुस्कुराते हुए कहा, “मेरे कपड़े उतारेगा गन्दा बच्चा! छुन्नू बहुत फड़क रहा है क्या?”
“देखना है क्या?”
“अच्छा जी? आप मेरे कपड़े उतार देंगे, लेकिन अपने पहने रहेंगे?”
“बिल्कुल भी नहीं मेरी जान! तुम्हारा वज़न बढ़ाने का मिशन है मेरा। वो काम तो जल्दी से जल्दी फ़िनिश करना है!”
“हा हा हा! आपका मन नहीं भरता?”
“किस बात से?” मैंने उसके कपड़े उतारते हुए कहा।
“चुदाई से!” डेवी ने दबी हुई आवाज़ में, लगभग फुसफुसाते हुए कहा।
“अरे यार! तुम जैसी ‘हॉट गर्ल’ किसी की बीवी हो, और उसका चुदाई से मन भर जाए! इम्पॉसिबल!”
“हा हा हा हा!” डेवी अदा से हँसी।
“तो बोलो! शुरू करें आज का कार्यक्रम?”
“मुझे नहीं मालूम।“ डेवी ने ठुनकते हुए कहा।
“अरे! ऐसे कैसे?”
“हनी, पूरी बॉडी में मीठा मीठा दर्द है। और...” उसने थोड़ा हिचकिचाते हुए आगे कहा, “चूत में तो और भी!”
“हाँ! अच्छा तो है! इसका मतलब लड़की ठीक से चुदी है!” मैंने बेशर्मी से कहा।
अब तक मैं बिस्तर के कोने पर बैठ गया था, और डेवी मेरे बाँहों के घेरे में थी।
“गंदे हो आप!” डेवी बहुत देर से अपनी शर्म को ऊपर आने से रोक रही थी, लेकिन अब उसके लिए मुश्किल हो गया, “बहुत गंदे!”
मैंने डेवी के नितम्ब पर एक हल्की सी चपत लगाई, और कहा, “वेरी गुड मेरी जान! अगर हस्बैंड ‘बहुत गन्दा’ न हो, तो कुछ तो गड़बड़ है उसमें!”
“हम्म्म! आपको बहुत मालूम है ‘गंदे हस्बैंड्स’ के बारे में?”
“और नहीं तो क्या!” मैंने खिलंदड़े अंदाज़ में कहा और फिर उसकी मनुहार करते हुए बोला, “ओ बीवी, सोने से पहले एक बार कर लेते हैं न?”
“क्या करना है मेरे मालिक?” डेवी अच्छी तरह जानती थी कि मैं क्या करने की बात कह रहा था।
“बोला तो! चुदाई!”
मैं बड़ी फुर्सत से देवयानी को नंगी कर रहा था। इसलिए अब तक भी वो सिर्फ ब्रा और चड्ढी पहने मेरे सामने खड़ी हुई थी।
“पतिदेव जी! अपनी बीवी को ऐसे नहीं सताना चाहिए!”
“ये लो! इसमें सताने वाली क्या बात है?”
“हा हा हा!”
“देख न! मेरी उंगली भी तेरी चूत के अन्दर घुसी चली जा रही है!” मैंने डेवी की चड्ढी थोड़ा नीचे सरका कर, उसकी योनि में अपनी तर्जनी सरका दी, “
“घुस नहीं रही है... आप घुसा रहे हैं उसको!” डेवी ने इठलाते हुए कहा।
लेकिन मैं अनसुना करते हुए आगे कहा, “कुछ ही देर में इसमें मेरा लण्ड भी घुस जाएगा!”
“मैंने अभी ‘हाँ’ नहीं कहा, मेरे सरकार!” वो हँसते हुए बोली।
“अरे तो अब कह दो न, प्लीज! मेरे कान तरस रहे हैं तुम्हारी ‘हाँ’ सुनने को!” मैंने डेवी को चूमते हुए कहा, “बोलो न मेरी रानी!”
डेवी मुस्कुराई, “मैंने आपको मना ही कब किया है?”
nice update..!!नया सफ़र - विवाह - Update #11
“कभी मना नहीं करोगी?” मैंने उसकी ब्रा का हुक खोलते हुए कहा।
“कभी नहीं... जब जब आपका मन हो, तब तब कर लीजिए मेरे सरकार!” उसने मेरे गले में अपनी बाहों का हार डालते हुए कहा, “अगर मैं ही अपने हस्बैंड को शादी-शुदा ज़िन्दगी का सुख न दे पाऊँ तो क्या फायदा?”
“वेरी गुड!” मैंने उसकी चड्ढी उतारते हुए कहा! फिर दो क्षण डेवी को नज़र भर देखा और बोला, “यार डेवी! तुम बहुत खूबसूरत हो!”
“सूरत?” वो अदा से मुस्कुराई - उसको मालूम था कि मैं पूरी तरह से उसका ग़ुलाम बन गया था।
“ख़ूबसूरत और ख़ूबजिस्म - दोनों!” मैंने कहा, और फिर आगे जोड़ा, “यार लेकिन तुम ये ब्रा पहनती ही क्यों हो? याद है, तुमने कहा था कि आगे से नहीं पहनोगी! लेकिन फिर भी…”
“ठीक है मेरे मालिक! नहीं पहनूँगी!”
“हा हा!” मैं उसकी बदली हुई शब्दावली पर हँसा, “मालिक? सरकार? क्या हो गया मेरी जान?”
मेरी बात पर डेवी हँसी, “मैं तो बस तुमको छेड़ती हूँ! मेरे जानू - मैं तो तुमको रोज़ तुम्हारा लण्ड... अपनी चूत में डालने दूँगी! रोज़! कभी भी! कभी मना नहीं करूँगी।”
इतना सुनते ही मैंने डेवी को अपनी ओर भींच लिया, और उसके सपाट पेट पर एक जबरदस्त चुम्बन दिया। हमारी इस ‘डर्टी टॉक’ से डेवी बहुत उत्तेजित हो गई थी - और मैं भी। मैं तो वैसे भी कुछ घण्टों से भरा बैठा था। मैंने एक दो और चुम्बन जड़ने के बाद उसको बिस्तर पर पेट के ही बल पटक दिया।
“आऊ!” डेवी इस अप्रत्याशित हमले से चिहुँक गई, “आराम से! बिस्तर तोड़ना है क्या?”
“तोड़ना तो तुमको है! अब उसमें बिस्तर टूटे, तो टूटे!”
“मेरे शेर, तुमने तो मुझे कब का तोड़ दिया है! आह!”
डेवी को बिस्तर पर लिटा कर मैंने उसकी दोनों जाँघें कुछ इस प्रकार से फैलाईं जिससे उसकी योनि और गुदा - दोनों के ही द्वार खुल गए। इससे एक और बात हुई, डेवी के नितम्ब ऊपर की तरफ थोडा उभर आये और थोड़ा और गोल हो गए। जवान, स्वस्थ, और सुडौल नितम्ब…! पतली कमर, और उसके नीचे ऐसे स्त्रियोचित फैलाव लिए हुए नितम्ब! आह! क़यामत है ये लड़की! पता नहीं मैंने पहले बताया है या नहीं, लेकिन डेवी के नितम्ब भी उसके स्तनों के समान ही बड़े लुभावने थे। मैं जानता हूँ कि कुछ मर्दों को केवल स्तन पसंद आते हैं, और कुछ को केवल नितम्ब! और कुछ को दोनों! और कुछ बिरले ऐसे होते हैं, जिनको अपनी स्त्री में उसका सब कुछ पसंद आता है। मैं उन कुछ बिरले लोगों में था। और किस्मत ऐसी कि मुझे ऐसी लड़की मिली थी, जिसका सब कुछ उम्दा था - न केवल शरीर, बल्कि उसका मन और सोच - सब कुछ!
मैंने उसके दोनों नितम्बों को अपनी दोनों हथेलियों में जितना हो सकता था, भर लिया, और उनको प्रेम भरी निर्दयता से दबाने कुचलने लगा। मैं तो उत्तेजित था ही! लेकिन इस समय उत्तेजना का असर देवयानी पर साफ़ दिखाई दे रहा था - उसकी योनि और उसकी गुदा का द्वार रह रह कर खुल और बंद हो रहा था। योनि से काम-रस निकल रहा था, और उसके दोनों नितम्ब न केवल मेरे दबाने कुचलने से, बल्कि बढ़े हुए रक्त-प्रवाह से थोड़े लाल हो गए थे। कुछ देर ऐसे ही दबाने के बाद उसके नितम्बों के बीच की दरार की पूरी लम्बाई में अपनी तर्जनी फिराई। उसकी योनि पर जैसे ही मेरी उंगली पहुँची, मुझे उस पर उसकी उत्तेजना का प्रमाण मिल गया! मैंने उसकी योनि-रस में अपनी तर्जनी भिगो कर उसकी गुदा पर कई बार फिराया। जैसे ही मैं उसकी गुदा को छूता, हर बार स्व-प्रतिक्रिया में उसका गुदा-द्वार बंद हो जाता।
मैं शैतानी से मुस्कुरा उठा।
“बीवी?”
“हम्म?”
“तुमने सीपी क्या खाई, तुम्हारी सीपी से ही रस निकलने लगा?”
“मतलब?” उसने हाँफते हुए कहा।
“क्लैम! क्लैम खाया न - उसको सीपी कहते हैं!”
“ओह?”
“हाँ! और ये - तुम्हारी चूत - ये भी तो सीपी जैसी ही दिखती है!”
“धत्त!”
“अरे - डू यू नो - क्लैम इस एन अफ्रोदिसिआक!”
“कुछ भी!” डेवी हँसने लगी, “मुझको नहीं मालूम है, तो कुछ भी बोल बोल कर बहकाओगे मुझे?”
“अरे!! हाथ कंगन को आरसी क्या? चूत से रस टपक रहा है, और बोल रही है ‘कुछ भी’!” मैंने देवयानी को और उसकी योनि को छेड़ते हुए कहा।
“तुम मुझको ऐसे छेड़ोगे, तो ऐसा ही तो रिएक्शन होगा न?” डेवी अदा से बोली, “और आपके हाथों में ‘आरसी’ है क्या?”
“आय हाय मेरी वात्सयायनी!”
“वात्सयायनी? हैं! ये कौन है?”
“लेडी वर्शन ऑफ़ वात्सयायन!”
“हा हा हा हा!” डेवी ने ठट्ठा मार कर हँसते हुए कहा, “आप और आपकी बातें! अच्छा चलो - सेक्स नहीं करना है क्या?”
“अरे क्यों नहीं करना है मेरी जान!”
मैंने कहा, और उसके नितम्बों को जकड़ कर बारी बारी से दाँत से काट लिया!
“आऊ आऊ!” डेवी कराह उठी, “जानवर कहीं का!”
बोल कर वो पलट गई। मैं डेवी के ऊपर आ गया, और उसको अपनी बाहों में बाँध कर चूमने लगा। प्रतिक्रिया में उसने अपना हाथ बढ़ा कर मेरे लिंग को पकड़ लिया और कामुकता से उसको सहलाने लगी। सम्भोग के लिए बराबर होना आवश्यक है - लिहाज़ा, मैं अब उसके समान्तर आ गया और कभी उसके होंठो को चूमता, तो कभी उसके स्तनों को। हम दोनों की ही हालत बहुत खराब थी - डेवी कामोन्माद के भण्डार पर बैठी हुई थी। मेरी भी कमोवेश वही हालत थी। मेरा लिंग इस समय ऐसे अकड़ा हुआ था कि जैसे हलके से ही दबाव, हलके से ही झटके से उसमें विस्फ़ोट हो जाए! डेवी की योनि भी पूरी तरह से गीली हो चुकी थी - या तो उसको ओर्गास्म हो चुका था, या फिर होने वाला था! मुझसे अब रहा नहीं गया और मैंने बिना किसी पूर्व चेतावनी के डेवी के होंठों को चूमते हुए, अपने लिंग को उसकी योनिद्वार पर सटा कर एक ज़ोर का धक्का लगाया.... मेरा लिंग उसकी योनि में ऐसे सरकता हुआ भीतर तक चला गया, कि जैसे मुलायम से मोम में गर्म चाकू घुसा दिया गया हो।
डेवी के मुँह से एक कामुक सीत्कार निकल गई!
“मेरी जान... आह!” मैं भी बड़बड़ाते हुए पूरी गति से डेवी के साथ सम्भोग करने में व्यस्त हो गया। जब ‘पिच’ की ऐसी हालत होती है, तो खेल अधिक समय तक चल नहीं पाता। चाहे खिलाड़ी कैसे भी हों! हमारा खेल भी तीन चार ही मिनटों में अपने पूरे शबाब पर पहुँच गया। मैंने डेवी को भोगते हुए उसके घुटनों को ऊपर की तरफ उठा कर मोड़ दिया और उसके नितम्बों को सहलाना शुरू कर दिया। मुझे मालूम था कि मैं जल्दी ही स्खलित होने वाला था, लेकिन कुछ और देर तक अपना ‘विकेट’ बचाना चाह रहा था। शायद कुछ और ‘रन’ बन जाएँ! इसलिए मैंने धक्के लगाना रोक कर, अपने लिंग को बाहर निकालना चाहा! लेकिन उसी समय मेरी आग की तरह भड़कती बीवी ने मेरी कमर को अपनी टांगों के पाश में बाँध लिया! उसने ‘न’ में सर हिलाया। मतलब बदमाशी और शरारत का कोई चांस नहीं!
‘ठीक है!’ मैंने सोचा, और पुनः धक्के लगाने लगा। अगले कुछ ही क्षणों में मेरा लिंग, डेवी की कोख की गहराईयों को मेरे वीर्य से भरने लगा। मैंने आहें भरते हुए डेवी की कमर को कस कर अपने जघन क्षेत्र से चिपका लिया। डेवी भी नाक और मुँह से गहरी गहरी साँसे भरती जा रही थी। पहली बार हुआ था ऐसा मेरे साथ! लेकिन हाँ, एक बात का पक्का पता चल रहा था कि देवीनी को भी ओर्गास्म हो चुका था। बस ये नहीं समझ आ रहा था कि मेरे साथ हुआ, या मेरे से पहले! स्खलित होने के बाद मैं उसके ऊपर ही लेट गया। लेकिन मैंने उसके होंठों, आँखों, कानों, गले और स्तनों पर गर्म चुम्बनों की झड़ी लगा दी।
कुछ ही देर बाद मेरा लिंग सिकुड़ कर खुद ही डेवी की योनि से बाहर आ गया।
“आअह्ह्ह!” वो कराही, “मिस्टर सिंह?”
“हम्म?”
“ये क्या था?”
मुझे लगा कि देवयानी मेरी परफॉरमेंस से निराश हो गई। लेकिन,
“बाप रे! सही में मुझे तोड़ दिया! बदमाश कहीं का!”
“बेग़म, ठीक ठीक डिसाइड कर लो - बदमाश हूँ, या जानवर?”
“तुम तो मेरे सब कुछ हो!” वो मुस्कुराते हुए बोली, “मैंने जो सब कुछ चाहा, वो तुम हो!”
देवयानी ने इतने प्यार से ये बात कही, कि मेरा दिल बल्लियों उछलने लगा।
“ऐसे बोलोगी तो एक और राऊण्ड करने का मन होने लगेगा!”
“एक क्यों, कई राऊण्ड कर लेना सरकार!” उसने प्यार से गलबैयाँ डालते हुए कहा, “लेकिन दिल्ली से हज़ारों किलोमीटर दूर यही करने आए हैं क्या?”
“और क्या करना था?” मैंने उसको छेड़ा।
“अंडमान आए हैं! थोड़ा घूम फ़िर भी लेते हैं न, जानू?”
अच्छी बात थी। आधे घण्टे बाद हम पैदल ही घूमने निकल गए। कुछ देर चलने के बाद हम कोर्बिन कोव नामक बीच पर पहुँचे। शांत समुद्र! क्या आनंद! शायद इस समय समुद्र में भाटा आया हुआ था, जिसके कारण काफी दूर तक सिर्फ गीली, बलुई और घिसे हुए गोल पत्थरों से अटा हुआ समुद्र तल दिख रहा था। एक भी प्राणी नहीं था वहाँ! इतनी शांति! हम दोनों बातें करते, और समुद्री शंख, सीपियाँ और रंगीन पत्थर बीनते बीनते काफी दूर निकल गए। वापस चलने का होश तब आया, जब समुद्र का पानी कमर से ऊपर आने लगा। और जब तक हम बीच तक पहुँचे, हम पूरी तरह से भीग चुके थे।
मेरे कहने पर डेवी ने केवल शर्ट पहनी थी, उसके अंदर ब्रा नहीं। लिहाज़ा, गीली हो जाने के कारण, शर्ट उसके शरीर से अमरबेल के समान चिपक गई थी। और उस गीली शर्ट के लगभग पारदर्शी हो चले कपड़े से उसका शरीर पूरी तरह से दिख रहा था - उसके दोनों चूचकों का रंग और आकार, और स्तनों की गोलाईयाँ साफ़ दिख रही थीं! जब कोई कपड़ा स्त्री शरीर की स्थूलता को छुपाता नहीं, बल्कि दर्शाता है, तो वो कपड़ा ‘सेक्सी’ की श्रेणी में आ जाता है। मतलब, उस सेक्सी गीली शर्ट में देवयानी क़यामत लग रही थी - पूरी क़यामत! शाम हो रही थी, मतलब दिन की गर्म हवा के स्थान पर, सुखदाई बयार चल रही थी। और इन सभी सम्मिलित प्रभावों से डेवी के चूचक भी स्तंभित हो गए।
इससे पहले कि डेवी अपनी इस स्थिति पर ध्यान दे पाती, मैंने दनादन उसकी कई सारी फोटो उतार डाली! फिर उसको समझ में आया कि मैं क्यों उसकी तस्वीरें उतार रहा हूँ। वो बेहद क़ातिलाना मुस्कान से मुस्कुराई।
मैंने डेवी के कमर पर चिकोटी काट कर उसके कान में गुनगुनाया,
“समुन्दर में नहा के, और भी नमकीन हो गयी हो!
अरे लगा है प्यार का मोरंग, रंगीन हो गयी हो हो हो!”
मेरे ‘हो हो’ करने से डेवी खिलखिला कर हँसने लगी!
मैंने भी खुश हो कर गुनगुनाना जारी रखा,
“हंसती हो तो दिल की धड़कन हो जाए फिर जवान!
चलती हो जब लहरा के तो दिल में उठे तूफ़ान...”
“पतिदेव जी, तूफ़ान बाद में उठाइएगा - पहले सनसेट का मज़ा ले लेते हैं?”
“जी बीवी जी!”
द्वीपों पर सूर्यास्त का समय अत्यंत नाटकीय होता है। उन पंद्रह-बीस मिनटों में डूबता हुआ सूर्य जैसे पृथ्वी के साथ अठखेलियाँ कर रहा होता है। आसमान में विभिन्न रंगों की ऐसी सुंदर छटा बिखरती है, कि उस सुंदरता का शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता! और ऐसे नाटकीय सुन्दर दृश्य का अवलोकन मैं अपनी जीवन-संगिनी के साथ कर रहा था। मैं खुद को इतना भाग्यशाली पा कर आश्चर्यचकित हो गया था - न केवल मुझे प्रेम पाने का एक और अवसर मिला था, बल्कि देवयानी के रूप में मुझे ऐसा साथी मिला था, जिसके साथ जीवन रंगीन हो जाए!
यही सब सोचते सोचते हमने ख़ामोशी में सूर्यास्त का आनंद उठाया, और उसके कई चित्र उतारे। अन्ततः, मैं जब उस अलौकिक सौंदर्य का आनंद उठाने की तन्द्रा से बाहर निकला तो देखा, कि बीच पहले जैसा ही वीरान था। बस, अब अँधेरा गहरा गया था। लेकिन फिर भी मैं और डेवी वहाँ कुछ और देर बैठे रहे।
“क्या बात है जानू? तुम ठीक हो?” देवयानी ने चिंतित सुर में कहा।
“आई ऍम गुड माय लव!” मैंने कहा, “आई लव यू!”
वो मुस्कुराई, “आई नो!” फिर मेरी बाँह को अपनी दोनों बाँहों में पकड़ते हुए बोली, “कुछ भी उल्टा पुल्टा मत सोचना! मैं कहीं नहीं जा रही हूँ!”
‘बाप रे!’ मैंने सोचा, ‘इसको मेरे मन की बात कैसे सुनाई दे गई?’
“आई लव यू!” मैं बस इतना ही कह सका।
कुछ ही मिनटों में काफ़ी अँधेरा हो गया और अब समुद्र का कुछ दिख भी नहीं रहा था। इसलिए होटल की तरफ़ वापस चलने लगे।
चित्र में: कोर्बिन कोव
बहुत बहुत धन्यवाद भाईला जवाब
मैं अंडमान कभी जा नहीं पाया हूँ
और जिस समय का जिक्र कर रहे हैं उस समय हमने कभी अंडमान के बारे में सोचा भी नहीं था
बाकी और क्या कहें
हमने वह पढ़ किया जो कर ना सके![]()
धन्यवाद भाई !! हाँ कभी कभी सामान्य ज्ञान भी बढ़ाना चाहिए पाठकों काnice update..!!
couple ne spot toh achha chuna hai honeymoon ke liye..ab toh maje hai andmaan nikobar me dono ke..aur bhai aapne kya jankari di hai andman aur nikobar ki..maja aagaya..!!