नया सफ़र - विवाह - Update #12
अगले दिन हम साइकिल चलाते हुए पोर्ट ब्लेयर से वंडूर गए - हमारे होटल से कोई बीस किलोमीटर की दूरी थी।
जैसा कि मैंने पहले भी बताया, उस समय अंडमान में ऐसी किच किच नहीं होती थी, जैसी कि आज है, इसलिए साइकिल चलाना आसान था। हाँ, बस समय अधिक लगा। लोगों ने बताया कि वहाँ मरीन पार्क था, और समुद्र में वहाँ तैराकी करी जा सकती थी। मरीन पार्क दरअसल कई छोटे छोटे द्वीपों का समूह था। इस कारण से समुद्री जीव जंतुओं को फलने फूलने में सुरक्षा प्राप्त थी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि वहाँ कोरल रीफ़ देखे जा सकते थे। तो हमने अपना तैराकी का सामान उठाया, और साइकिल चलाते वंडूर चले गए। वहाँ एक नाव वाले से बात कर के तीन चार द्वीपों तक जाने और वापस आने का सौदा किया। अभी सारे नाम नहीं याद आते, लेकिन शायद उन द्वीपों के नाम ग्रब, चेस्टर, बेले, और स्नॉब थे। प्रत्येक द्वीप निर्जन, शांत, और स्वच्छ! ग्रब द्वीप पर हमने तैराकी के लिए कपड़े बदले - मैंने तो खैर तैराकी वाला नेकर पहना, और देवयानी ने अपना बिकिनी [जो आज कल मोनोकिनी के नाम से जाना जाता है] पहना। रंगीला फ़िल्म में उर्मिला ने जैसी काली बिकिनी पहनी थी - देवयानी की भी वैसी ही थी। कोई कहने की आवश्यकता नहीं कि वो इस समय बड़ी सेक्सी लग रही थी। मेरे मन में एक ख़याल आया - और सोचा कि उसका क्रियान्वयन अवश्य करूँगा।
खैर, हर जगह मैंने और देवयानी ने तैराकी करी। समुद्री पानी में वैसे तो आँखें खोलना आसान नहीं होता, लेकिन अगर स्विमिंग गॉगल्स लगा लें, तो बड़ी आसानी हो जाती है। ख़ास कर वो बड़े वाइसर वाले! नहीं तो स्नॉर्केलिंग गियर एक बेहतर ऑप्शन होता है। अच्छी बात यह थी कि हमारे नाविक के पास स्नॉर्केलिंग गियर थे। तो हमको पानी के अंदर कोरल, असंख्य और विभिन्न प्रकार की रंग-बिरंगी मछलियाँ, क्लैम, समुद्री घास, सॉफ्ट कोरल, अलग प्रकार की स्टार फिश, इत्यादि देखने को मिले। सच में - समुद्र के अंदर का नज़ारा बहुत अलग होता है। विज्ञान के छात्रों को ज्ञात होगा कि ध्वनि की गति जल में वायु की अपेक्षा तीव्र होती है। तो हमको अलग ही तरह की आवाज़ें सुनाई दे रही थीं पानी के अंदर! एक अलग ही दुनिया का अद्भुत नज़ारा होता है समुद्र के अंदर! और हाँलाकि ऊपर से देखने पर समुद्र तल बहुत पास लगता है, लेकिन होता बहुत गहरा है। मछलियों का आकार भी अपेक्षाकृत बड़ा लगता है क्योंकि स्नॉर्केलिंग गियर इस तरह का भ्रम पैदा कर सकता है। कुछ मछलियाँ बहुत बदमाश थीं - वो हमारे पैरों को दाँत से काट रही थीं। बाद में नाविक ने बताया कि शायद हम उनके घोंसले के काफी करीब होंगे, इसलिए वो ऐसा कर रही थीं।
यही सब करते करते जब हम आखिरी द्वीप पर पहुँचे, तो अपने ख़याल को क्रियान्वित करने की इच्छा जागृत हो गई। दरअसल देवयानी वाकई इतनी सेक्सी लग रही थी कि मेरे मन में उसके साथ सम्भोग करने की तीव्र इच्छा हो रही थी। शरीर में ऐसा जोश भर गया था, कि मेरे लिए रुकना लगभग असंभव हो गया था। ऐसी इच्छा तो पहले कभी नहीं हुई! शायद नाविक को भी मेरी इच्छा समझ में आ रही थी - इतना तो वो समझ ही गया था कि हमारी नई नई शादी हुई थी और हम यहाँ हनीमून के लिए आये हुए थे। लिहाज़ा, खुले में सेक्स करने के लिए यहाँ से बेहतर स्थान और क्या हो सकता था? बढ़िया नरम नरम, और सफ़ेद रेत थी वहाँ, और एक तरफ़ सिर्फ बीच! ऊपर नरम गरम धूप फैली हुई थी। बहुत ही सुखद माहौल! टापू के इस तरफ सब खुला खुला था, और नारियल के पेड़ टापू के दूसरी तरफ़ थे।
उसने कहा, “साहब, ये बढ़िया टापू है! आप लोग थोड़ा आराम कर लें कुछ देर! मैं कहीं से डाब (नारियल) तोड़ कर ले आता हूँ!”
पानी में बहुत देर तक रहने से भूख लगने लगती है। हम अपने साथ कुछ चॉकलेट लाए थे, जिसमे से कुछ हमने नाविक को दिया, और कुछ हमने खुद रख लिए। डाब पीने और खाने से भूख कम तो हो ही जाती।
“ठीक है दादा,” मैंने नाविक से कहा, “तीन चार डाब चाहिए होगा हम दोनों को!”
“आप चिंता न करें साहब,” नाविक ने समझते हुए कहा, “कम से कम आधा दर्ज़न लेता आऊँगा!”
उसने कहा, और हमको वहीं किनारे पर छोड़ कर दूसरी तरफ जाने लगा। जब नाविक जा रहा था, तो मैंने उसको आँख मार कर इशारा किया - बदले में उसने भी मुस्कुरा कर सर हिलाया। प्लान तो वो भी समझ गया था। जब कुछ देर बाद वो आँखों से ओझल हो गया, तो मैंने देवयानी को अपनी बाहों में भर के चूमना शुरू कर दिया।
मेरी इस बेसब्री वाली हरकत से वो हँसने लगी।
‘ये हस्बैंड लोग भी न! कैसे बच्चों जैसे होते हैं!’ देवयानी ने मन ही मन सोचा, ‘अपने ऊपर कोई कण्ट्रोल ही नहीं! न तो इनको टाइम का ख़याल होता है, और न ही प्लेस का! बस जहाँ देखो तहाँ, जब मन खेलने का मन किया, तब अपनी वाइफ को छेड़ने लगते हैं! लाइसेंस टू किल!’
मेरे बारे में देवयानी को अब तक लगभग सब कुछ मालूम चल गया था। मैंने अपने बारे में कोई भी बात उससे राज़ बना कर नहीं रखी कभी भी! तो उसको मेरी पसंद, नापसंद - हर बात मालूम थी। उसके कहने पर मैंने उसको गैबी और मेरे बारे में, और काजल और मेरे बारे में सब कुछ बता दिया। गैबी के नाम के एल्बम उससे छिपे नहीं थे। उधर पिछले कुछ दिनों में माँ और काजल भी उसकी करीबी सहेलियाँ बन गई थीं, और जो बातें मुझसे रह गई हों, वो सब उन दोनों से उसको मालूम पड़ गई थीं। अपनी पत्नी या प्रेमिका के साथ मैं बहुत कामुक हो जाता हूँ - यह बात देवयानी अच्छी तरह से जानती थी। और उसको इस बात से कोई शिकायत भी नहीं थी। अगर हस्बैंड वाइफ ‘हॉट’ सेक्स नहीं करेंगे, तो फिर कौन करेगा?
मेरा लिंग कठोर हो कर उसके पेट पर गड़ा जा रहा था। और उधर, मेरे द्वारा लिया जाने वाला चुम्बन, और साथ में किया जाने वाला उसका स्तन-मर्दन - देवयानी की सिसकियाँ बढ़ रही थीं, और उसको भी अपार आनंद मिल रहा था। लेकिन यह भी कोई जगह थी उसको इस तरह उकसाने की?
“क्या इरादे हैं, ठाकुर साहब?”
“नेक तो बिलकुल भी नहीं है ठकुराईन!” मैंने भी खिलंदड़े अंदाज़ में कहा।
“हा हा! अरे थोड़ा तो सब्र रखिए न! वो आदमी आ जाएगा!”
“नहीं आएगा इतनी जल्दी - अब तो वो आपका ‘केक’ कटने के बाद ही आएगा!”
“केक? हा हा हा! बद्तमीज़!”
“ओह, हाँ - सॉरी! केक नहीं! चूत!”
देवयानी ने मेरी बात पर पहले तो मुझे एक चपत लगाई और फिर मेरे गले में अपनी बाहें डाल कर झूलती हुई बोली, “बहुत बेशर्म हो गए हैं आप ठाकुर साहब?”
“अब अपनी बीवी से भी शर्म करूँ फिर तो हो गया काम हमारा!”
“हा हा! तो फिर मत करिए शर्म!” डेवी की अदा वाकई निराली थी - उसने अचानक ही सुर बदलते हुए, बड़ी सेक्सी अदा से कहा, “लेकिन आपका ‘केक’ मीठा नहीं रहा, बल्कि नमकीन हो गया है!”
“मेरी जान, हनीमून में तो नमकीन केक ही खाने में मज़ा आता है!”
देवयानी का शरीर, और उसको सेक्सी बातें, हमेशा ही मुझे रोमांचित कर देने के लिए काफी थीं! मैंने उसकी बिकिनी को उसके कन्धों की तरफ से, किसी केले के छिलके की तरह उतारते हुए उसको अर्धनग्न कर दिया, और फिर उसके शरीर के हर अंश को चूमने लगा।
देवयानी सिसकारी भरने लगी, “जानू! अभी नहीं! होटल में करते हैं न? ओह्ह… अगर वो आदमी आ गया तो?”
“तो क्या? तुम भी तो एक और लण्ड सैंपल करना चाहती हो न? उसी को बोल दूँगा!”
मेरी बात से देवयानी चौंक गई - “आह्ह! धत्त! नहींन्न!”
“क्यों? नहीं चाहिए?”
“जानू! वो मेरी फंतासी है! लेकिन वो मैं केवल एक बार करना चाहती हूँ! इसलिए अगर करना है, तो स्पेशल करवाना! नहीं तो आई ऍम मोर दैन फुल्ली सैटिस्फाइड!”
“हम्म! ठीक है मेरी जान! लेकिन वो आदमी इतनी जल्दी वापस नहीं आएगा! कम से कम आधा घंटा लेगा!”
“हा हा! आपका आधे घंटे में होता भी क्या है?”
“क्यों? कल की क्विकी में मज़ा नहीं आया?”
“बहुत मज़ा आया,” उसने कहा, और फिर मेरे स्विम-निक्कर को नीचे सरका कर बोली, “लेकिन पहले आपके नमकीन केले को मीठा बना दूँ?”
उसने कहा, और मेरे सामने रेत पर घुटने के बल बैठ गई, और मेरे उत्तेजित लिंग को अपने मुँह में लेकर चूसने लगी! देवयानी को अभी भी सीखना बाकी था, लेकिन फिर भी, वो जो कर रही थी, उसमे मुझे असीम आनंद मिल रहा था! उसने केवल एक या दो मिनट ही मुख-मैथुन किया होगा, लेकिन मुझे उतने में ही ऐसी कामुक गुदगुदी हुई, कि मैं क्या कहूँ! मैंने उसको जल्दी ही रोक दिया, कि कहीं उसके मुँह में ही स्खलित न हो जाऊँ!
“क्या हुआ?” उसने आश्चर्य से पूछा, “मज़ा नहीं आया क्या बाबू?”
“बहुत मज़ा आया मेरी जान!” मैंने उसके मुख को चूमते हुए कहा, “लेकिन चाकू इस समय तेज़ है! केक काट देता हूँ!”
“हा हा हा हा!” डेवी दिल खोल कर हँसी, “ओह! ये बात है?”
मैंने उसका स्विमसूट जल्दी से उतार दिया और उसको पूर्ण नग्न कर दिया। मारे आवेश में उसकी बिकिनी मैंने थोड़ी दूर फेंक दी।
“हाँ जी! ये तेज़, गरम चाकू, इस केक को अच्छी तरह से काटेगा अब!”
“काट दो मेरे राजा!” देवयानी ने बड़ी कामुक अदा से कहा, “जैसा मन करे, वैसे काटो इस केक को!”
मेरी और देवयानी दोनों की ही हालत बहुत खराब थी - मेरा लिंग तो ऐसा कठोर हो रखा था कि मानों हल्के से दबाव से फट जाए। और उधर देवयानी की योनि भी पूरी तरह से गीली हो चुकी थी। मुझसे अब और रहा नहीं जा रहा था - मैंने बिना किसी भूमिका के, डेवी के होंठ चूमते हुए अपने, लिंग को उसकी योनि के द्वार पर सटा कर एक ज़ोर का धक्का लगाया… मेरा लिंग वाकई उसकी योनि में ऐसे सरकता चला गया, जैसे किसी केक को चाकू से काट दिया गया हो। डेवी के मुँह से एक कामुक सी आवाज़ निकल गई।
“आह्ह्ह्ह जानू! फ़क मीईईई!” वो कामुकता से कराही, “फ़क मी हार्ड! इम्प्रेग्नेट मी!”
वैसे तो लग रहा था कि लगभग तुरंत ही स्खलित हो जाऊँगा, लेकिन देवयानी के अंदर जा कर लगा कि मोर्चा कुछ देर तक सम्हाला जा सकता है। उसके साथ तेजी से सम्भोग गया, लेकिन फिर भी कोई पाँच मिनट बीत गए। सोचा, कि कुछ मज़ा और बढ़ाते हैं - इसलिए मैंने डेवी को ऊपर उठा लिया, और खुद उसके नीचे आ गया। यह मज़ेदार था - देवयानी िस्तनी मस्त हो चली थी, कि शायद उसको हमारी इस बदली हुई अवस्था का ध्यान भी न रहा हो! वो मेरे लिंग पर अपनी योनि को निर्धारित कर के पहले की ही भांति धक्के लगाने लगी। इस अवस्था में मुझको खुद पर अधिक नियंत्रण महसूस हो रहा था। कोई पाँच मिनट और बीत गए, और इस नए ‘आसन’ में सम्भोग की पूरी क्रिया के दौरान देवयानी का शरीर इस तरह थरथराता रहा कि जैसे वो पूरा समय ओर्गास्म महसूस कर रही हो!
“कैसा लग रहा है मेरी जान?” मैंने पूछा।
“ओह गॉड! यू विल किल मी, हनी!”
देवयानी वाकई बहुत ही कामुक थी! उसके साथ सम्भोग कर के मुझे किसी राजा के ही जैसा महसूस होता था। अब हमारा खेल अपने पूरे शबाब पर पहुँच गया था। मैंने देवयानी को नीचे से ही भोगते हुए, उसके नितम्बों को सहलाना आरम्भ कर दिया। मैं जल्दी ही स्खलित होने वाला था; और अधिक देर खलने की हिम्मत अब नहीं थी। समुद्र के पानी ने पहले ही बहुत ताकत निकाल दी थी, और ऊपर से तीव्र सम्भोग!
मैंने अचानक ही एक बलवान झटका मारा, और देवयानी के गर्भ की गहराई में जा कर मेरे लिंग ने अपना ‘पे लोड’ छोड़ना शुरू कर दिया! कुछ ही क्षणों में मेरी बीवी की कोख मेरे वीर्य से भर गई…
“आह मेरी जान… आह! मज़ा आ गया…”
मैं देवयानी के ऊपर ही निढाल हो गया। डेवी भी संयत होकर गहरी साँसे भरती हुई लेट गई! लेकिन वो ऐसे आसानी से छूटने वाली नहीं थी। मैंने उसके होंठों, आँखों, कानों, गले और स्तनों पर अपने गर्म चुंबनो की झड़ी लगा दी। कुछ ही देर बाद मेरा लिंग सिकुड़ कर खुद ही उसकी योनि से बाहर आ गया।
हम दोनों अभी भी एक दूसरे के आलिंगन में बंधे हुए थे।
“अमर?” डेवी ने बड़ी ही कोमलता से मुझे पुकारा।
“हम्म?”
“एक बात कहूँ?”
“बोलो न?” मैंने उसके एक चूचक को चूमते हुए कहा।
“मैं चाहती हूँ कि हमारा बच्चा तुम्हारे जैसा हो!”
“मेरे जैसा? क्यों?”
“तुम बहुत भोले हो! इसलिए!” उसने मुझे प्यार से देखते हुए कहा।
“मैं भोला हूँ?”
देवयानी ने मुस्कुराते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“और जो मैं हमेशा ये तुम्हारा ‘केक’ काटता हूँ, वो?” मैंने देवयानी को छेड़ते हुए कहा।
“प्यार करना भी तो भोलेपन की ही निशानी है!” वो बोली, “मुझे मालूम है कि तुम बहुत ‘हॉट’ हो! लेकिन तुम्हारा सारा प्यार मुझ पर ही निछावर है!”
“और किसको प्यार करूँ?” मैंने भावनात्मक अंदाज़ में कहा, “तुमने मुझे उस समय जीने की आस दिखाई, जब मैं बस एक मशीन बन कर रह गया था! इमोशनलेस! तुमने मुझे दिखाया कि फिर से जिया जा सकता है! तुमको नहीं, तो फिर और किसको प्यार करूँ!”
“इसीलिए तो कह रही हूँ, अमर, कि मैं चाहती हूँ कि हमारा बच्चा तुम पर जाए!” वो प्यार से मुस्कुराई, “तुम्हारी जैसी सच्चाई, तुम्हारे जैसी मोहब्बत, हमारे बच्चे में चाहिए मुझे!”
मैंने उसको प्यार से चूमा, “और मैं चाहता हूँ कि हमारा बच्चा तुम पर जाए! तुम्हारे जैसी खूबसूरती - शरीर की भी, और मन की भी! तुम्हारी बुद्धिमानी! तुम्हारे जैसा प्यार! सब क्वालिटीज़ चाहिए!”
“हा हा हा! मिस्टर सिंह, बच्चों में बुद्धिमानी उनकी माँ से ही आती है!”
“ये तो और अच्छी बात है! मुझसे तो बस ‘भोलापन’ ही मिलेगा!”
“हा हा हा हा हा!” डेवी ज़ोर से हँसी; फिर मेरे सीने पर अपनी उंगली से वृत्त बनाते हुए बोली, “तुमको मालूम है - पहले मैं सोचती थी कि मुझे काजल से जलन होगी, या फिर कम्पटीशन जैसा लगेगा!”
काजल का नाम सुन कर मेरे कान खड़े हो गए - कहीं कोई शिकायत तो नहीं है डेवी को!
“लेकिन,” उसने कहना जारी रखा, “सरप्राइसिंगली मुझे वैसा कुछ भी फील नहीं होता उसके लिए! वो मुझे बहुत प्यार करती है! और... मैं भी!”
“हम्म्म! तो आपको भी काजल अच्छी लगने लगी?”
“हाँ न! आई ऍम सरप्राइज़्ड!”
“हा हा हा! हाँ, वो है ही ऐसी! मेरा खुद का रिलेशनशिप उसके साथ कितना बदल गया है! आई थी वो मेड बन कर! लेकिन अब तो वो मेरी बड़ी बहन - या गार्जियन - जैसी है!”
“हाँ! मुझे भी बड़ी बहन के ही जैसे ट्रीट करती हैं!”
“अरे वो बहुत अच्छे घर से है! बस, अपने घरवालों की बैकवर्ड थिंकिंग, और फिर ग़लत शादी के कारण उसकी ऐसी हालत हो गई! नहीं तो वो बहुत कुछ कर सकती थी अपनी लाइफ में!”
“अच्छा, एक बात पूछूँ? सही सही बताओगे?”
“ज़रूर! तुमसे कभी कुछ नहीं छुपाऊँगा!”
“उम्म्म... काजल या गैबी के साथ सेक्स करने में कैसा लगता था? मतलब, वो क्या अच्छा करती थी? मुझे क्या करना चाहिए?”
“अरे यार! कैसी बात पूछ रही हो मेरी जान? इसका आंसर कैसे दूँ?”
“देखो, तुमने प्रॉमिस किया है!”
“हम्म्म! कैसा लगता था? बहुत अच्छा लगता था - ठीक वैसा ही जैसे तुम्हारे साथ लगता है! सुख! संतुष्टि! पीस! पूरा मन और शरीर शांत हो जाता है! और तुमको कुछ भी अलग करने की ज़रुरत नहीं है! आई ऍम वैरी वैरी वैरी हैप्पी विद यू!”
“ठीक है! मान लेते हैं!” डेवी ने अदा से कहा, “लेकिन मुझको बताना ज़रूर अगर कुछ वेरिएशन चाहिए हो, तो!”
“ठीक है ठकुराईन!”
“हा हा हा! अब जाओ, जल्दी से नाव से मेरे सूखे कपड़े निकाल लाओ! ये बिकिनी तो अब मैं नहीं पहन पाऊँगी!”
जब तक नाविक वापस आया, तब तक हम दोनों अपने अपने सूखे, हलके कपड़े पहन कर तैयार हो गए। नाविक के लाए हुए नारियल का पानी पिया, और उसकी मलाई खाई। कुछ संतुष्टि मिली। मुझे पक्का यकीन था कि हमारे शरीर की रंगत बहुत साँवली हो चली है - ऐसी चटक धूप में और क्या उम्मीद करी जाए? लेकिन उससे क्या फ़र्क़ पड़ता है? शरीर में विटामिन डी भी तो बन रहा था खूब! हमारे लिए वही बहुत है!
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