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बहुत बहुत धन्यावादआखिरकार डेवी की इच्छा पूरी हो ही गई। मगर ये इस इच्छा का पूर्ण होना है या फिर इसका एक आदत में बदलने की तरफ एक कदम। अमर की ख्वाहिश भी पूरी हो गई और उसने इस पल पूरा फायदा भी उठाया। वही गेल और मेरी भी इस अनुभव से उत्साहित और खुश हो गए।
साथ में डेबी और अमर की एक पुरानी ख्वाहिश भी पूरी हो गई, मां बाप बनने की, अब देखना होगा की ये सफर अब किस तरफ मोड़ लेता है जब हनीमून पीरियड खत्म होगा और फैरीटेल का हकीकत से सामना होगा। देर आए मगर दुरुस्त आए। अति उत्तम अपडेट।
बात आपकी पूरी तरह से सही है - न जाने कैसे यह बात दिमाग में आई ही नहीं!Bemisaal avsji, maaf kijiyega ek shikayat thi, amar ki kaam-krida se to hum chit parichit hain hi par deviyani ka anubhav jan-ne ki utsukta zada thi.
Dhanyavaad is sundar update k liye.
Arey aap to sab soch/likh rakhe honge, maloom hai Deviyani ka drishtikon bhi jald hi aayega. Taang khichai achhi krte hain.बात आपकी पूरी तरह से सही है - न जाने कैसे यह बात दिमाग में आई ही नहीं!
लेकिन अब क्या कर सकते हैं। यह सब दुबारा लिखने का क्या लाभ? अब आगे ही बढ़ेंगे।
धन्यवाद इस सुझाव के लिए
भाई इस बात से मैं पूर्ण रूप से सहमत हूँप्रेग्नेंसी में हर चीज़ जेंटल हो जाती है। आचार, विचार, और व्यवहार - तीनों!
कम से कम मेरी अंजलि को खाने पीने को ले कर पागलपन के दौरे नहीं पड़ते थे।
Avsji bhai, अपने पाठकों को भूल गए क्या. इन्तेहा हो गई इंतजार की.
ह्म्म्म्म दो फूल एक मालीनया सफ़र - अनमोल तोहफ़ा - Update #1
गेल और मरी हमको बधाईयाँ देने के लगभग तुरंत बाद हमारे कबाना से निकल गए - जिससे हम दोनों एक दूसरे के साथ इस ख़ुशी का आनंद उठा सकें। जैसे ही हम अकेले हुए, डेवी की आँखों से आँसू निकल आए। वो खुद को बहुत देर से ज़ब्त किए हुई थी, लेकिन मेरी संगत में उसको किसी बनावटीपन की आवश्यकता नहीं थी।
“ओह हनी!” वो बस इतना ही बोल सकी, जब मैं उसको अपने आलिंगन में भर कर चूमने लगा।
इतनी ख़ुशी - इतनी ख़ुशी!
मैं पागलों के जैसे देवयानी को चूम रहा था - छोटे छोटे चुम्बन - उसके गालों पर, उसके होंठों पर, उसकी आँखों पर - उसकी ठोड़ी पर - उसके माथे पर! थोड़ी ही देर में उसका रुदन एक मीठी सी मुस्कान में बदल गया।
“जानती हो, तुमने क्या किया है?” मैं बोला, “तुमने मुझे दुनिया की सबसे बड़ी ख़ुशी दी है मेरी जान! आई लव यू सो मच!”
“तुम खुश हो?”
“बेहद! बेहद... बेहद... खुश...!”
“आई ऍम वैरी हैप्पी टू नो दिस, माय लव! मुझे तुमको पहले बताना चाहिए था!” वो अभी भी दुःखी लग रही थी, “आई गेस, आई वास् सेल्फिश!”
“अरे तुम क्या बकवास ले कर बैठ गई हो? व्हाट मैटर्स इस दैट व्ही आर नाउ टुगेदर इन दिस!”
डेवी मुस्कुराई, और फिर शरारती शिकायत के साथ बोली, “यू मेड मी प्रेग्नेंट!”
“हाँ! सो तो है!” मैं ख़ुश होते हुए बोला, “सच में इसमें मेरा बेबी है?” मैंने उसके लगभग सपाट पेट को सहलाया, “कुछ भी नहीं दिख रहा है यहाँ तो!”
“आई हैव मिस्ड माय लास्ट पीरियड! एंड द प्रेग्नेंसी टेस्ट कनफर्म्ड इट। फिर क्यों डाउट है आपको?”
“कोई डाउट नहीं है! बस, हमारी नन्ही सी जान से मिलने का मन है!”
डेवी मुस्कुराई, “आपको क्या लगता है क्या होगा? लड़का, या लड़की?”
“क्या फ़र्क़ पड़ता है? जो भी होगा, हमारा होगा!”
“फिर भी!”
“उम्म्म, शायद लड़की?”
“वो क्यों?”
“पता नहीं - मन में सबसे पहला ख़याल यही आया। इसलिए!”
“हम्म्म! आपको मिलना है अपनी ‘बेटी’ से?” देवयानी ने बड़ी सीरियस आवाज़ में कहा, और अपने कपड़े उतारने लगी।
“इस तरह से?” मैंने खींसे निपोरते हुए कहा।
“किसी भी तरह से!” देवयानी कपड़े उतारते हुए बोल रही थी, “जस्ट बिकॉज़ आई ऍम प्रेग्नेंट, डज़ नॉट मीन दैट आई डोंट वांट सेक्स!”
“नॉट एट ऑल माय लव!” मैंने भी कपड़े उतारने शुरू कर दिए।
“डोंट इवन थिंक अबाउट नॉट मेकिंग लव टू मी व्हाइल आई कैरी आवर बेबी!” वो अपनी पैंटी उतार रही थी।
“नॉट एट ऑल माय लव!” मैंने भी अपना निक्कर उतारते हुए कहा।
देवयानी मुस्कुराते हुए बिस्तर पर, अपनी पीठ के बल लेट गई।
कैसी अद्भुत सी बात है - कुछ ही देर पहले गेल ने डेवी के साथ सेक्स किया था। लेकिन इस समय उस बात का कोई महत्त्व ही नहीं था मेरे लिए। वो बात तो कब की पुरानी हो गई। मैंने कुछ देर बिस्तर पर यूँ पड़ी हुई देवयानी को देखा - कितनी सुन्दर लग रही थी वो। एक अलग ही तरह की दमक! शीघ्र ही प्राप्त होने वाले मातृत्व के अनुभव की दमक। हाँ - अभी समय था उसमें। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम देवयानी की गर्भावस्था का उत्सव न मनाएँ।
मैं भी अपने हाथों और पाँवों के बल चलते हुए बिस्तर पर, डेवी के साथ आ गया। कुछ इस तरह कि मेरा चेहरा डेवी के पेट के सामने रहे। अभी भी उसका पेट गर्भावस्था वाले जाने-पहचाने उभार से दूर था। मैंने अपना हाथ प्यार से उसके पेट पर चलाया।
“आर यू इन देयर?” मैंने अपने बच्चे से कहा, “आई ऍम योर डैडी! एंड आई लव यू ऑलरेडी! आई डोंट इवन केयर इफ यू आर अ गर्ल ऑर अ बॉय!”
डेवी ने इस बात पर मेरे कंधे पर प्यार से एक चपत लगाई।
मैंने डेवी को इस बात की सज़ा उसको सम्भोग की मीठी छटपटाहट दे कर दी। जब हम दोनों अपने सम्भोग के चरमसुख पर पहुँच कर हाँफ रहे थे, तब देवयानी पूरी तरह से निढाल हो कर बिस्तर पर यूँ पड़ गई, कि तीन घंटे बाद डिनर के समय ही उठी।
**
डिनर पर हम चारों ही साथ में थे। गेल न जाने कहीं से एक बढ़िया व्हिस्की का इंतजाम कर लाया था। लिहाज़ा, व्हिस्की हम तीनों - मुझे, गेल और मरी को दिया गया - और देवयानी के लिए फ्रूट-जूस का प्रबंध किया गया। अब से लेकर अगले कम से कम तीन चार साल तक देवयानी को मदिरा मना है। क्यों? क्योंकि मैंने उसको पहले से ही कह रखा है कि हमारी संतान को जब तक संभव है, वो स्तनपान कराएगी। और उसने यह बात मान भी ली है। वैसे भी, मदिरा न पीना, सेहत के लिए लाभदायक है।
एक बार फिर से गेल और मरी ने हमको शुभकामनाएँ दीं और फिर उसके बाद हम सभी बात चीत करने में मशगूल हो गए। न जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा था कि मरी और गेल हमसे किसी बात को ले कर झिझक रहे हैं। मैंने उनको कुछ कहना सही नहीं समझा - अगर उनको ठीक लगता है तो खुद ही कहेंगे। और जैसा मुझे शक़ था, पहल मरी ने ही की।
“अमर,” वो बोली, “कैन आई स्टील डेवी फ्रॉम यू फॉर अ फ्यू मिनट्स?”
“श्योर, इफ शी डज़न्ट माइंड!” मैंने मुस्कुराते हुए कहा।
मैंने देखा कि गेल डेवी और मरी की तरफ बड़ी उम्मीद भरी नज़र से देख रहा था।
‘क्या माज़रा है?’
दोनों लड़कियाँ वहाँ से उठ कर चली गईं, और करीब पंद्रह मिनट तक हमारी नज़रों से दूर ही रहीं। इस बीच मैं और गेल दुनियादारी की बातें करते रहे। मैं उससे फ्राँस और नीस शहर के बारे में कई बातें पूछता रहा। खैर, इंतज़ार ख़तम हुआ, और डेवी और मरी वापस टेबल पर आईं।
“जानू,” देवयानी ने जैसे ही यह कहा, मैं समझ गया कि कुछ तो अनोखा चल रहा है मेरी बीवी के दिमाग में, “मरी को कुछ कहना है!”
देवयानी को यूँ संयत आवाज़ में बात करते हुए देख कर गेल को थोड़ी राहत हुई - यह मैंने नोटिस अवश्य किया।
“से इट मरी!” डेवी ने मरी से कहा, “एंड डोंट वरि!”
मरी की झिझक साफ़ जाहिर हो रही थी, “अमर?”
“यस मरी?”
“डू यू नो दैट... दैट आई ऍम फर्टाइल राइट नाऊ ?”
“ओह... ओके!”
“यू... यू गाइस आर सो ग्रेट, सो कूल, दैट आई ऍम डेरिंग टू से इट!”
“मरी, यू डोंट हैव टू बी सो फॉर्मल विद अस!”
“आई नो!”
“देन प्लीज डोंट हेसिटेट!”
“यू नो! गेल एंड आई हैव बीन ट्राइंग फॉर अ बेबी फॉर सो मैनी इयर्स - एंड विदआउट एनी सक्सेस!” मरी ने गंभीर होते हुए कहा, “सो व्ही वर थिंकिंग, दैट इफ यू कुड...”
“व्हाट?!” मैंने अविश्वास से बारी बारी से गेल और मरी की तरफ कई बार देखा।
‘ऐसे कैसे बोल सकते हैं ये लोग!’
“बट यू गाइस केम हेयर फॉर दैट, इसंट इट?”
“व्ही डिड!” इस बार गेल ने कहा, “बट यू सी, माय स्पर्म काउंट इस वैरी लो। सो इन अ वे, व्ही वर होपिंग फॉर अ मिरेकल!”
“याह!” मरी बोली, “द आईडिया वास टू रिलैक्स अ बिट, एंड देन ट्राई फॉर आईदर स्पर्म डोनेशन, ऑर इन-विट्रो फर्टिलाइज़ेशन!”
“और वो सब बहुत महँगा होता है न, हनी! और गारंटी भी नहीं है!” डेवी ने कहा।
“आई... व्ही हैव कन्सिडर्ड एडॉप्शन आल्सो। बट आई वांट टू हैव माय... आवर ओन बेबी!” मरी ने कहा।
“बट मरी,”
“आई नो व्हाट यू आर गोइंग टू से अमर!” गेल ने कहा, “बट बिलीव मी, व्ही आलरेडी फील वैरी क्लोज टू यू गाइस! यू गाइस आलरेडी फील लाइक आवर फॅमिली!”
“एंड आफ्टर व्हाट व्ही डिड दिस नून, आई थिंक व्ही आर ओके!”
“हनी,” डेवी ने कहा, “व्ही रियली हैव बिकम गुड फ्रेंड्स! सो, लेट अस नॉट पुट देम टू सो मच मिसरी एंड एक्सपेंसेस! आई ऍम ओके इफ यू कैन मेक मरी प्रेग्नेंट!”
“व्हाट! यू श्योर यू डोंट माइंड?”
“व्हाई शुड आई माइंड? व्हाई विल आई माइंड? यू आर आलरेडी फ़किंग हर! व्हाई नॉट डू इट फॉर अ गुड कॉज!”
“लेकिन तुम? तुम्हारा?”
“मेरा क्या मेरी जान? बस चार पाँच दिनों की ही तो बात है! जब भी तुम रेडी हो, मरी के साथ सेक्स कर लो।” डेवी बोली, “एंड डोंट लेट् एनीवन थिंक दैट दिस इस नॉट ‘आवर’ बेबी! बोथ द बेबीज आर... विल बी ‘आवर’ बेबीज!”
फिर मरी की तरफ देखते हुए, “वोंट दे बी, मरी? माय चाइल्ड विल बी योर चाइल्ड ऐस वेल, एंड योर चाइल्ड विल बी माइन - आवर ऐस वेल!”
“आई ऍम कम्प्लीटली हैप्पी विद दिस!” गेल ने कहा।
“ओह थैंक यू मोन शेर!”
“ओके देन! इट इस डिसाइडेड! मरी विल नाऊ स्पेंड टाइम विद अमर।”
“एंड यू?”
“वेल, आई ऍम नॉट मच इन नीड ऑफ़ सेक्स राइट नाऊ। व्ही कैन स्वैप द रूम्स इफ दैट हेल्प्स !”
गेल ने मेरे चेहरे पर बेकरारी देखी तो बोला, “हे, डोंट वरी। आई नो डेवी इस प्रेग्नेंट! आई विल नॉट मिसयूज हर!” वो मुस्कुराया, “आवर चिल्ड्रन आर प्रेशियस! व्ही विल सेफगार्ड देम!”
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कैसी अजीब सी बात - हनीमून मेरा और देवयानी का, और सम्भोग हो रहा था मेरा और मरी का, और गेल और देवयानी का (हाँलाकि इस बारे में हमने बहुत डिसकस नहीं किया था, लेकिन जाहिर सी बात है कि एक कमरे में, एक सेक्सी लड़की के साथ रहने पर, उसके साथ सेक्स करने का मन तो किसी नपुंसक को भी होने लगेगा)! लेकिन यहाँ बात थोड़ी अलग हो गई थी - मुझ पर अब एक और जिम्मेदारी थी, और वो थी मरी को गर्भवती करने की। आइडिया यह था कि जब भी संभव हो, मैं और मरी सेक्स करें। पाँच दिन वो सबसे अधिक उर्वरा थी - और इसी समय में सारा करिश्मा कर के दिखाना था। आनंद लेने के शगल के बजाय यह एक मिशन सा हो गया। अब समझ में आया कि इस तरह के अंतरंग कर्मों में भी योग की अनुभूति कैसे हो सकती है।
करीब एक हफ्ते के बाद मैं और देवयानी हैवलॉक से वापस दिल्ली चले आए। मन में बड़ी इच्छा थी कि हमारे घर वालों को यह खुश-खबरी सुनाई जाए। और डेवी को डॉक्टर को भी दिखाना था - सलाह मशविरा के लिए। वापस आने से पहले हमने मरी और गेल से अपने अपने कांटेक्ट डिटेल्स शेयर किए और उनसे वायदा लिया कि जब वो दिल्ली आएँगे तो हमसे मिले बिना नहीं जाएँगे। उन्होंने भी अपना नीस (फ्राँस) का पता और कांटेक्ट दिया, और हमको अपने यहाँ आने का न्योता दिया।
जब हम अगली बार गेल और मरी से मिले, तब एक और महीना बीत गया था। अब उनकी ‘लम्बी छुट्टी’ भी समाप्त हो गई थी। इधर डेवी भी गर्भावस्था के आरंभिक दौर के सारे लक्षण प्रदर्शित करने लगी थी - मॉर्निंग सिकनेस, स्तनों में सूजन, थकावट, उसके एरोला और चूचकों का रंग भी थोड़ा गहरा हो गया था। लेकिन इन सब बातों के बावजूद, डेवी आराम करने वालों में से नहीं थी। वो अब जनरल मैनेजर थी, इसलिए उसका ऑफिस का काम भी बढ़ गया था। इस कंपनी में पेरेंटहुड पॉलिसी बढ़िया थीं - प्रेग्नेंट महिलाओं को तीन महीने का अवकाश, वेतन के साथ मिलता था, और तीन और महीने का अवकाश आधे वेतन के साथ। हाँ - पुरुषों को केवल एक सप्ताह की ही छुट्टी मिलती थी।
उसकी गायनेकोलॉजिस्ट ने भी उसको एक्सरसाइज इत्यादि करने के लिए प्रोत्साहित किया। उसने कहा कि देवयानी की सेहत अच्छी है, और अगर अभी व्यायाम की आदत डाल ली, तो वापस प्री-प्रेग्नेंसी वाला शेप लाने में अधिक समय नहीं लगेगा। बढ़िया बात थी! हमने निर्णय लिया कि जब तक संभव है, तब तक देवयानी ऑफिस जाएगी -- हाल ही में हमारे ऑफिस में एक मैडम अपनी डिलीवरी वाले दिन तक ऑफिस आई थीं, और जब उनको लेबर शुरू हुए, तब वो ऑफिस से ही सीधे अपने हॉस्पिटल गईं थीं। तो यह कोई बुरी बात नहीं थी।
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जब माँ और डैड को यह खबर सुनाई तो वो ख़ुशी से फूले नहीं समाए। माँ और काजल तो तुरंत हमारे वहाँ आना चाहते थे। इसलिए मैंने उन सभी को होली में घर आने का आमंत्रण दिया। फिलहाल मैं डेवी को अपने साथ कहीं भी घूमने नहीं ले जाना चाहता था। उधर जयंती दीदी और ससुर जी भी बड़े प्रसन्न हुए। वो तो खैर उसी दिन घर आ गए थे। जयंती दीदी ने हमको छेड़ते हुए कहा कि अच्छा हुआ कि हमने जल्दी शादी कर ली - नहीं तो प्रेग्नेंसी के फूले हुए पेट के साथ शादी के जोड़े में कैसी लगती! यह सभी बातें कितनी सामान्य हो जाती हैं जब लड़का लड़की शादी-शुदा हो जाएँ! नहीं तो उन दोनों पर दुनिया भर का नरक टूट पड़े! खैर - कोई कहने वाली बात नहीं है कि देवयानी को ढ़ेरों नसीहतें दी गईं कि कैसे सुरक्षित रहा जाए, क्या करे और क्या न करे इत्यादि!
होली में हमारा पूरा परिवार दिल्ली में इकठ्ठा हुआ। तीन चार दिनों तक हमने खूब मस्ती मज़ा किया। वैसे भी अपनी बीवी के साथ पहली होली का आनंद ही कुछ और है! लेकिन ये ‘वैसी’ होली नहीं थी। यह थोड़ी अलग तरह की होली थी। हमने रंग खेले, पकवान खाए, और ढेर सारी मस्ती करी।
काजल देवयानी की प्रेग्नेंसी के अनाउंसमेंट को ले कर थोड़ी आशंकित थी। उसका कहना था कि जब तक चार से छः महीने न हो जाएँ, तब तक किसी को न बताएँ। कहीं किसी की बुरी नज़र न लग जाए। बात मूर्खतापूर्ण थी, लेकिन इसमें केवल उसका प्यार ही झलक रहा था। मैंने और डेवी ने उसको समझाया कि हम किसी को बताएँ या नहीं, लेकिन लोगों को मालूम पड़ ही जाएगा। इसलिए अंधविश्वासों में पड़ कर हम अपना दिमाग क्यों खराब करें! काजल ने इस बात पर बुरा सा मुंह बनाया - लेकिन उसकी कही हुई बात में निहित प्रेम और चिंता हमको समझ में आ गई थी। वो चाहती थी कि इस बार मेरी संतान अवश्य हो, और वो स्वस्थ हो, और सुरक्षित भी! डेवी ने उसको बड़े आदर और प्रेम से अपने गले से लगा लिया। काजल के गिले शिकवे दूर हो गए। डेवी ने मज़ाक में कहा कि उसको तो लग रहा है कि जैसे उसकी तीन-तीन दीदियाँ और तीन-तीन माएँ हैं!
माँ और काजल अपने साथ ढ़ेर सारे तोहफ़े लाई हुई थीं। वो दोनों इतनी आह्लादित थीं कि देवयानी को प्रयास कर के उनको समझाना पड़ा कि उनको इतना खर्चा नहीं करना चाहिए। लेकिन मेरी माँ ऐसे मान जाएँ तो मेरी माँ क्यों कहलाएँ? और काजल का तो कहना ही क्या? वो इतनी खुश थी कि शब्दों में उसकी ख़ुशी बयान करना कठिन था।
आते ही उन्होंने देवयानी को ठूँस ठूँस कर खाना खिलाना शुरू कर दिया। क्यों?
“अरे पिंकी, अब तुम एक नहीं - दो लोगों के लिए खा रही हो!” -- यह उनका लॉजिक था।
उनकी बात पर मैं और डेवी ज़ोर ज़ोर से हँसने लगे।
“दीदी,” देवयानी माँ को समझाते हुए बोली, “दो लोग नहीं! जो पेट में है, वो चूहे जैसा है! जितना खाती हूँ, उतने से ही काम चल जाएगा। इस समय ज़रूरी यह है की हेल्दी खाना खाया जाए - जैसे कि खाने में प्रोटीन, विटामिन, और गुड फैट्स अच्छे से हों। यह हम दोनों के लिए बहुत है!”
“लेकिन...”
“दीदी, प्रेग्नेंसी में बॉडी ऐसे चेंज हो जाती है कि मेटाबोलिज्म एफिशिऐंटली सब खाना यूज़ कर लेता है। इसलिए तुम परेशान मत होवो! ज्यादा खाऊँगी, तो बेहद मोटी हो जाऊँगी - मेरी टेन्डेन्सी है वेट पुट ऑन करने की!”
“यू मॉडर्न पीपल!” माँ ने मैदान छोड़ते हुए कहा।
जानती वो भी थीं कि देवयानी सही कह रही है।
“दीदी - मैं तुमसे उम्र में बहुत छोटी नहीं हूँ!” उसने माँ को मज़ाक में छेड़ते हुए कहा, “और सच में - मैं नहीं चाहती कि मेरा ज़रुरत से अधिक वेट बढे! डिलीवरी के बाद आसानी से वेट लॉस ज़रूरी है न! हम सब तुम्हारे जैसी सेक्सी बॉडी ले कर थोड़े न आती हैं!”
“चल हट्ट!”
“और क्या! सही तो कह रही हूँ!” डेवी हँसने लगी, “नहीं सही है क्या, काजल दीदी?”
काजल भी डेवी की बात पर हँसने लगी, “हाँ दीदी, ये बात तो तुमने सही बोली!”
“चुप कर तू, दीदी की अम्मा!” माँ ने काजल को डाँटा - बहुत प्यार से, “जब देखो मेरी खिंचाई करती रहती है!”
“वैसे भी डॉक्टर ने कहा है कि ट्वेंटी फाइव से थर्टी पाउंड्स ही वेट बढ़ना चाहिए! वही हेल्दी है!”
“ठीक है! डॉक्टर ने कहा है तो ठीक ही कहा होगा!”
“हा हा! दीदी - तुम भी न!” देवयानी ने बड़े लाड़ से माँ से कहा - वैसे उन दोनों को इस तरह से बातें करते देखना बड़ा सुख दायक था, “डॉक्टर ने कहा, तो ठीक! मैं कहूँ तो ‘मॉडर्न पीपल’!”
माँ भी उसकी बात पर हँसने लगीं।
“बस मुझे एक बात की फ़िक्र है!”
“वो क्या?”
“मेरे ब्रेस्ट्स का साइज लगातार बढ़ता जा रहा है!”
“वो तो दूध बनाने की तैयारी में हो रहा है न, बेटा!”
“आई नो दीदी… लेकिन ऐसे ही चलता रहा न, तो ये डी-कप साइज के हो जाएँगे लगता है!”
“अरे तो होने दे! बच्चे को माँ का दूधू तो चाहिए ही न!” फिर थोड़ा सोच कर, “उसको पिलाओगी न?”
“हाँ दीदी! ये भी कोई कहने वाली बात है!”
“हाँ - नहीं तो आज कल की माएँ, बस दो तीन महीना पिला कर अपना हाथ पल्ला झाड़ लेती हैं। बच्चों को पूरा न्यूट्रिशन मिलना चाहिए - जब तक पॉसिबल हो, तब तक।” माँ ने अपना ज्ञान बघारा, “फिर तो इनका साइज बड़ा ही रहेगा! तब तक कि जब तक बच्चा पीना बंद न कर दे! थोड़ा बहुत तो कम हो जाएगा, लेकिन बहुत नहीं!”
“ओह! ऐसा है क्या?”
“हाँ! लेकिन तुम अपना प्रेग्नेंसी का वेट लॉस करोगी, तो थोड़े बड़े ब्रेस्ट्स के साथ और सुन्दर लगोगी!”
“हा हा हा हा!”
“और क्या! और इन मर्दों को यही तो पसंद आता है!”
“हा हा हा हा हा हा! दीदी! तुम बहुत शरारती हो!”
“बाबू जी को क्या पसंद आता है दीदी?” काजल ने माँ को छेड़ा, “वो तो तुमको छोड़ते ही नहीं!”
“पिटेगी तू अब!” माँ शरमा गईं।
“हा हा हा हा हा हा!” काजल और देवयानी दोनों ही इस बात पर हंसने लगीं।
“लगातार दूध पिलाने से फैट लॉस जल्दी होता है।” माँ ने फिर से समझाया, “मैंने भी तो अमर को इतने सालों तक पिलाया न! कभी वेट गेन नहीं हुआ मुझे!”
“हाँ - तुम तो अभी भी लड़की जैसी लगती हो! और मैं तुम्हारी बड़ी बहन!” देवयानी हँसते हुए बोली।
“हा हा हा हा!” इस बार हँसने की बारी माँ की थी।
“पिंकी दीदी,” काजल बोली, “तुम एक्सरसाइज करना छोड़ना मत! मैं रोज़ पूछूँगी फोन कर के कि आज क्या क्या किया!”
“बाप रे,” डेवी हंसती हुई बोली, “इतनी चिंता न करो दीदी मेरी!”
“मैं तुम्हारी चिंता न करूँ तो किसकी करूँ? बोलो?”
“किसी की नहीं,” देवयानी काजल की चिंता को देख कर, महसूस कर, प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी, “आई लव यू दीदी!”
“तुम जान हो हम सबकी!” काजल ने लाड़ करते हुए कहा, “बेटी हो, बहन हो, सखी हो - सब हो!”
“बस कर काजल,” माँ अपने आँसू पोंछते हुए बोलीं, “नहीं तो रोने लगेंगे हम सभी!”
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होली के करीब दो महीने बाद हमको गेल और मरी का कॉल आया - मरी भी प्रेग्नेंट हो गई थी। मतलब हमारा प्रयास सफल रहा। बहुत अच्छी बात थी! डेवी और मरी ने बहुत देर तक बात करी और अपने अपने अनुभव एक दूसरे के साथ शेयर किए। जाते जाते गेल और मरी ने हमको फ्राँस आने का एक और बार न्योता दिया, और वायदा किया कि हम रेगुलर फ़ोन या मेल से वार्तालाप करते रहेंगे।
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मेरा पहला बच्चा बेटी थीनया सफ़र - अनमोल तोहफ़ा - Update #2
देवयानी की प्रेग्नेंसी के नौ महीने ठीक उसी तरह बीते, जैसी कि हमको उम्मीद थी। मैंने इस दौरान पूरा प्रयास किया कि वो स्वस्थ रहे, और प्रसन्न रहे। उसके खाने पीने, व्यायाम, नींद, मनोरंजन और आराम का पूरा ख़याल रखा। आखिरी एक महीने के लिए माँ ही चली आई थीं - घर का काम देखने और देवयानी के आराम का ध्यान रखने के लिए। काजल वहीं रह गई - डैड के खाने पीने और सुनील और लतिका की पढ़ाई में व्यवधान नहीं होना चाहिए न!
देवयानी की प्रेग्नेंसी साधारण ही रही - बिना किसी कम्प्लीकेशन के, बिना किसी ड्रामे के, बिना किसी घबराहट के, और बड़े आराम से! और तो और, वो डिलीवरी से एक दिन पहले तक ऑफिस जाती रही! यह एक बड़ी अच्छी बात रही - क्योंकि अगले छः महीने तक वो आराम से, बिना किसी परेशानी के, मातृत्व का सुख उठा सकती थी। यह आवश्यक होता है। प्रसूति के समय कोई स्त्री लगभग मृत्यु के समान तकलीफ और दर्द महसूस करती है। उस अनुभव का पुरस्कार होती है संतान! न जाने कैसी कैसी मनोदशाएँ आती और जाती हैं। इसलिए सामान्य मातृत्व के लिए आवश्यक है कि कोई स्त्री बिना किसी अन्य विकर्षण के, केवल अपनी संतान पर ध्यान दे। उसका लालन पालन कर सके, और उसको अपना स्नेह दे सके।
मेरे ऑफिस में हमारे सहकर्मी बड़े अद्भुत थे। डिलीवरी के दिन मैंने सवेरे देवयानी को अस्पताल में भर्ती किया था। माँ भी हमारे साथ ही गई थीं। हमारे सहकर्मियों ने वहाँ आ कर हमारा हाल चाल पूछा, और घर की चाबी ले कर चले गए कि ‘वहाँ कुछ करना है!’ इतना कुछ हो रहा था कि मैंने कुछ सोचा नहीं। लेकिन हमारे पीछे उन्होंने घर को ऐसा अनोखे ढंग से सजाया कि अगर देवयानी देखती तो अत्यंत प्रसन्न होती! साथ ही साथ, नवागंतुक शिशु के लिए अनेकों उपहार भी लेते आए थे वो! ऐसे बढ़िया, सोने के दिल वाले सहकर्मी!
खैर, इस समय तो मैं बस अपने बच्चे की राह देख रहा था - अपने दोनों बच्चों की शक्ल तक नहीं देख पाया था मैं अभी तक! ऐसा अभागा! इसलिए बड़ी बेचैनी हो रही थी। दिल की धड़कनें ऐसी तेज़ थीं कि क्या कहें! माँ कभी कभी आ कर मुझे दिलासा देतीं, लेकिन उनके चेहरे पर भी बेचैनी और नर्वस साफ़ झलक रही थी। हो भी क्यों न - इतने ही दिनों में वो और देवयानी ऐसी करीब हो गईं थीं, कि क्या कहें! बीच में कुछ सहकर्मी भी आ कर हाल चाल ले कर चले गए, और मुझको शाम को मिलने का वायदा कर के वापस हो लिए कि अब तो बेबी से मुलाकात होने ही वाली है। इस तरह से हमारी संतान केवल हमारी ही नहीं, बल्कि बहुत लोगों की थी -- किसी बच्चे को इतना स्नेह मिले, तो वो बच्चा कितना भाग्यशाली होगा! मैं तो बस यही सोच सोच कर प्रसन्न हो रहा था, और अपने आने वाले बच्चे की राह देख रहा था।
मेरा तो न खाने का होश, और न ही पीने का! एक नर्स ने ही आ कर हमको खा लेने को कहा। उसने बताया कि लेबर पेन शुरू हुए हैं, और कुछ देर में बच्चा हो जाएगा। डेवी बढ़िया हेल्थ में थी, इसलिए नेचुरल तरीके से होने के अधिक चांस थे। फिर भी, डॉक्टर लोग कोई रिस्क नहीं लेते। खैर, जैसे तैसे मैंने एक सैंडविच और कॉफ़ी लिया, और माँ ने इडली सांबर! खाने के दौरान भी हमारा पूरा ध्यान बस डेवी पर ही था। खाना पाँच मिनट में निबटा कर हम वापस मैटरनिटी वार्ड में आ गए, और व्याकुलता से अपनी संतान की राह देखने लगे।
ऐसा लगा कि महीनों गुजर गए हों। लेकिन अंततः एक नर्स बाहर आई - उसके चेहरे पर ऐसी रौनक थी कि मैं समझ गया कि खुशखबरी आ ही गई!
“बधाई हो सर! बहुत बहुत बधाई हो! आपको लड़की हुई है! बहुत ही प्यारी सी है! गोरी गोरी! गोल गोल!”
वो ऐसे बोल रही थी जैसे कोई अनोखी संतान हुई हो। सब बच्चे प्यारे से ही लगते हैं। गोल गोल! हा हा हा हा!
‘क्या बात है!’
मेरा दिल भर आया! जैसे मनों भारी पत्थर किसी ने दिल से हटा दिया।
“अरे वाह!” माँ के चेहरे की मुस्कान देखने योग्य थी, “कॉन्ग्रैचुलेशन्स बेटा!”
“थैंक यू सिस्टर!” मैंने पूछा, “और देवयानी कैसी है?”
“मैडम बिलकुल परफेक्ट हैं! नेचुरल डिलीवरी थी सर! कोई दिक्कत नहीं हुई!” उसने बताया, “वो थकी हुई हैं, लेकिन कोई दिक्कत नहीं है!”
“ओह थैंक गॉड!”
मैं पलटा और माँ को मैंने चहकते हुए अपनी गोद में उठा लिया, “आई ऍम सो हैप्पी माँ, सो हैप्पी!”
बहुत बड़ी खबर थी - आज का दिन ऐसा सुन्दर दिन था कि उसकी सुंदरता को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। पिता बनना एक अद्भुत उपलब्धि होती है। ठीक है कि हमारे देश में लोग थोक के भाव पिता बन रहे हैं, लेकिन कम से कम मेरे लिए तो यह एक अद्भुत उपलब्धि थी। अब सब्र नहीं हो रहा था। मुझे अपनी बच्ची को देखना था। शायद नर्स ने मेरे मन का हाल पढ़ लिया हो,
“आप कुछ देर रुक जाईये - ठीक से खा लीजिए कुछ! कुछ देर में बुलाते हैं आपको।” नर्स ने समझाया, “थोड़ी ही देर की बात है सर, छोटी मोटी फॉर्मेलिटीज हैं। बस, और कुछ नहीं!”
“जी सिस्टर!” मैंने माँ की तरफ़ मुखातिब होते हुए कहा, “ओह माँ! दिस इस अमेजिंग!”
“हाँ बेटा! मेरी एक बेटी की मुराद भी पूरी हो गई!” माँ भी आह्लादित थीं, “बेटा आज अष्टमी है! माता जी का उपहार है ये बच्ची! देखना, ये आगे चल कर तुम्हारा और हमारा नाम बहुत रोशन करेगी!”
जिनको नहीं मालूम हो उसके लिए यह जानकारी है कि दुर्गा अष्टमी या महा अष्टमी बहुत ही शुभ तिथि होती है। इसी दिन महिषासुर का वध हुआ था। ऐसे शुभ दिन पर मेरी बेटी का आना - यह सच में ईश्वरीय प्रसाद ही हो सकता है! अद्भुत! उसी समय मैंने मन में सोचा कि इस बच्ची का नाम या तो अभया रखूँगा या फिर आभा! अभया, दुर्गा माँ का ही एक नाम है, और आभा समझ लीजिए ईश्वर का प्रकाश!
हाँ! अमर की आभा! देवयानी की आभा!
यही नाम ठीक बैठ रहा है!
आभा!
मेरी बच्ची!
मेरी गुड़िया!
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इस बार ठीक से खा कर मैं और माँ वापस वार्ड के सामने पहुँचे। कोई दस मिनट के बाद हमको लिवाने वही नर्स आई। हम जब कमरे में आए, तो देखा कि डेवी बिस्तर लगे पर तकियों पर पीठ टिकाए, और बच्ची को अपने सीने से लगाए बैठी हुई थी। थकावट उसके चेहरे पर साफ़ दिखाई दे रही थी। वो नन्ही सी बच्ची अपनी माँ के सीने पर अपने गाल के सहारे लेटी हुई, अपनी माँ के दिल की धड़कनों को सुन रही थी। उसकी आँखें अभी भी बंद थीं, तो शायद अपनी माँ से यही उसका पहला परिचय हो। ‘आभा’ बिलकुल शांत थी - शांत और सौम्य!
हमको देख कर देवयानी मुस्कुराई।
“ओह पिंकी! कॉन्ग्रैचुलेशन्स बेटा! कॉन्ग्रैचुलेशन्स एंड थैंक यू सो मच!” माँ ख़ुशी से चहकते हुए बोलीं।
देवयानी उत्तर में केवल मुस्कुराई।
“कैसी हो बेटा?”
“थक गई, दीदी!” वो मुस्कुराते हुए बोली, “बट आई ऍम सो हैप्पी!”
माँ बड़े जतन से अपनी आँखों में भर आये आँसुओं को गिरने से रोक पाईं। उधर मैं - सोच ही नहीं पा रहा था कि मैं क्या करूँ, क्या कहूँ! आदमी लोगों की ढेरों समस्याएँ होती हैं! कितनी ख़ुशी, लेकिन फिर भी व्यक्त करना नहीं आता! यह समस्या माँ ने ही हल की।
“बेटा, इधर आ! ऐसे खड़ा खड़ा क्या कर रहा है! सबसे पहले तू ले अपनी बेटी को अपने गोद में! उसके बाद ही हम लोग उसको खिलाएँगे!”
माँ ने बड़ी कोमलता से उस रुई के फ़ाए जैसी बच्ची को देवयानी के गोद से लिया और मेरी बाहों में डाल दिया!
‘ओह कितना मुलायम बच्चा!’
मैंने ‘आभा’ को पहली बार देखा -- ‘हाँ कैसा रौनक भरा चेहरा है इसका - आभा नाम बिल्कुल सही बैठता है!’ बच्चे की आँखें बंद थीं। होंठ सूखे हुए से लग रहे थे - जैसे पपड़ी सी बन गई हो होंठों पर। दूध होंठों पर सूख गया था। गाल सच में गोल गोल थे, लालिमा लिए हुए। उसके मस्तक पर कोमल रोएँ! कैसी मासूम सी बच्ची! प्रकृति का कैसा अद्भुत करिश्मा! ‘आभा’ कुछ भी नहीं कर रही थी - लेकिन उसमें भी मुझे आश्चर्य सा लग रहा था। उसका कुछ न करना भी जैसे कोई अद्भुत करामात हो! न जाने कब तक मैं अपनी बच्ची को यूँ अपनी गोद में थामे हुए उसको देखता रहा। बिना कुछ कहे! दीन दुनिया से पूरी तरह बेखबर!
“अरे कुछ बोल भी!” माँ ने उकसाया, “ये बेचारी कब से सोच रही है कि कुछ कहोगे!”
“शी इस सो ब्यूटीफुल!” मैंने कहा।
मेरी बात पर माँ और देवयानी दोनों ही हँसने लगे - प्रसव में डेवी का अंग अंग टूट सा गया था। थोड़ा भी हँसने से उसको तकलीफ हो रही थी। उसके गले से दर्द भरी आह सी निकल गई।
“ध्यान से बच्चे, ध्यान से!” माँ ने उसकी बाँह को सहलाया, और उसके माथे को चूमा।
डेवी के दर्द को महसूस कर के मुझे दिल में एक टीस सी हुई। एक तो अपनी बच्ची के पैदा होने की ख़ुशी, उसको पकड़ने का रोमांच, और देवयानी के दर्द को महसूस कर के मेरा खुद का दर्द - इन तीनों का मिला जुला असर यह हुआ कि मेरी आँखों से आँसू निकल गए।
डेवी ने मेरी आँखों से ढलते हुए आँसुओं। देवयानी का नहीं मालूम, लेकिन मुझको राहत महसूस हुई कि उसका लेबर पेन अब ख़तम हो गया था। मेरे कारण उसको इतनी तकलीफ़ झेलनी पड़ी थी। लेकिन क्या करें? प्रकृति ने ही ऐसा प्रबंध किया है - उस पर मनुष्य का क्या वश?
“क्या हो गया हनी?”
“थैंक यू डेवी!” मेरे मुँह से बस यही निकल पाया, “थैंक यू सो मच!”
“कम हियर हनी,” उसने अपनी बाँहें मेरी ओर पसार कर मुझको अपने पास बुलाया।
जब मैंने देवयानी के होंठों को चूमते हुए उसको आलिंगनबद्ध किया, तो वो बोली, “एंड, थैंक यू टू! यू गेव मी द अमेजिंग गिफ्ट ऑफ़ मदरहुड!”
मुझे लगा कि वो और भी बहुत कुछ कहना चाहती थी, लेकिन बहुत थकी ही होने के कारण कुछ कह न सकी। माँ ने यह महसूस किया और बोलीं,
“पिंकी बेटा, अभी सो जाओ! हमको भी यह ख़ुशख़बरी सभी को सुनानी है! जब तुम उठोगी, तब ढेर सारी बातें करेंगे! ठीक है बच्चे?”
“जी!” डेवी ने कहा, और फिर कुछ सोच कर, “आप लोग आस पास ही रहिएगा, दीदी!”
“हम लोग कहीं नहीं जा रहे हैं! तुम अब चिंता मत करो!”
मैंने एक बार फिर से देवयानी के होंठों को चूमा और उसको ‘आई ऍम प्राउड ऑफ़ यू’ कह कर सुला दिया। माँ वहीं रह गईं और मैं वार्ड से बाहर निकल कर अपने परिवारों, और मित्रों को फ़ोन कर के इस खुशखबरी की इत्तला देने चला गया।
सच में - मुझे मालूम नहीं था कि ‘मुझ जैसे’ प्राइवेट और रिज़र्व्ड आदमी के इतने मित्र और हितैषी लोग हो सकते हैं! बधाइयों का ताँता लग गया! पेजर पर किसी न किसी का मैसेज आता कि फ़लाने को कॉल कर लो, कि उनका सन्देश आया है। अगले दो घंटे तक बस लोगों से बात चीत होती रही। देर शाम को लोगों के आने का सिलसिला भी शुरू हो गया। इतनी देर तक अस्पताल में रहना मुश्किल हो रहा था, लेकिन इतना उत्साह, इतनी प्रसन्नता थी कि वो छोटी सी तकलीफ सुझाई भी न दी।
अगली बार जब मैं डेवी के कमरे में गया तो वो जगी हुई थी। हमारी लाडली भी जगी हुई थी। जाहिर सी बात है, वो इस समय अपनी माँ की गोदी में थी। इस समय उसने आँखें खोली हुई थीं - उसकी आँखें चमकदार काली थीं। एक अलग ही तरह का नूर था उनमें। एक पल मन में आया कि उसका नाम नूर-उन-निसा रख दूँ! फिर सोचा कि अपने दिल पर कण्ट्रोल रखूँ तभी अच्छा है! ‘आभा’ बेहद नन्ही सी, साफ़ रंग की, और गुड़िया जैसी क्यूट थी। उसकी उँगलियाँ नन्ही सी, कोमल सी थीं। उसके हाथ पाँव डप्पू जैसे गोल गोल और कोमल थे। नाक भी नन्ही सी - चपटी सी! होंठ भरे भरे - लेकिन अभी भी सूखे सूखे।
उसको देख कर माँ की कमेंट्री चालू थी कि बच्ची के कौन से फीचर्स अपनी माँ पर गए हैं, और कौन से अपने बाप पर। मुझे इन बातों से कोई सरोकार नहीं था - मुझे बस यह चाहिए था कि दोनों माँ बेटी स्वस्थ रहें और खुश रहें। बस। डेवी मुझसे कह रही थी कि उसको विश्वास नहीं हो रहा था कि उसने इस बच्ची को बस कुछ ही घंटों पहले जन्म दिया था। उसके अनुसार व्यायाम और अच्छे संतुलित खान पान के कारण उसको नेचुरल प्रसूति में आसानी तो हुई, लेकिन जन्म देने का अनुभव -- उसके लिए कैसी भी तैयारी कम पड़ती है। बात तो सच ही है। लेकिन सबसे अच्छी बात यह थी कि उसके शरीर में कोई भी काट पीट नहीं हुई थी, इसलिए रिकवरी में समय कम लगने की उम्मीद थी। ‘आभा’ मेरे जीवन में महत्वपूर्ण अवश्य थी, लेकिन देवयानी उससे अधिक महत्वपूर्ण थी।
अब तक ‘आभा’ को पैदा हुए तीन घंटे के आस पास को चुके थे, लिहाजा उसको भूख लगना आवश्यक था। उसका चेहरा रोने जैसा हो रहा था - शायद अभी तक उसको रोना नहीं आया था। लेकिन माँ की ममता अपने बच्चे के मनोभावों को बखूबी समझ ही लेती है। माँ और डेवी दोनों ने ही ‘आभा’ के चेहरे के बदलते भावों को देख लिया।
“पिंकी,” माँ बोलीं, “बच्ची को भूख लग रही है।”
“हाँ दीदी, मुझे भी यही लग रहा है!”
डेवी ने अस्पताल का ही गाउन पहना हुआ था। पीछे की डोरियाँ खुली ही हुई थीं, इसलिए गाउन को कंधे से ढलका कर स्तनों को आसानी से अनावृत किया जा सकता था। इस समय डेवी के चूचकों का रंग बहुत काला सा लग रहा था - उसके दोनों एरोला सूखे सूखे से, और सिलवटें पड़े दिखाई दे रहे थे! दोनों चूचक उर्ध्व थे, और न जाने कैसे, बेडौल लग रहे थे। प्रसूति के बाद उनका आकार भी बदल गया लग रहा था। उसके स्तनों में जो आकर्षण था, इस समय नदारद था। नीली नसें, रूखी सूखी त्वचा! अनग्लैमरस! वो सेक्सी देवयानी कहीं लुप्त हो गई थी। सोचा नहीं था कि कभी मैं देवयानी के आकर्षण के लिए ऐसी बात कहूँगा। लेकिन इस समय देवयानी एक माता थी, प्रेमिका या पत्नी नहीं। वो कैसी दिख रही थी, संभव है इसका उसके जीवन में कोई मोल नहीं था। हाँ, उसकी संतान को भर पेट दूध मिलेगा - यह उसका सबसे ज़रूरी कंसर्न था।
न जाने कैसे उसको स्तनपान के बारे में सब मालूम था। उसने अपने चूचक को थोड़ा एरोला के साथ ‘आभा’ के मुँह में दे दिया। जिस तेजी से ‘आभा’ ने अपनी माँ का चूचक पकड़ा, देवयानी उससे चौंक गई। माँ ने हँसते हुए समझाया कि नन्हे बच्चों में यह इंस्टिंक्ट होती है कि उनका भोजन कहाँ से आ रहा है। दूध की बूंद गले के नीचे गई नहीं कि ‘आभा’ के भूख से पीड़ित चेहरे पर संतुष्टि वाले भाव आ गए। उसका स्तनपान करने का तरीका आश्चर्यजनक रूप से शक्तिशाली था।
“लाइक फादर, लाइक डॉटर!” माँ ने हँसते हुए अपनी टिप्पणी दी।
उनकी बात पर डेवी भी हँसने लगी - उसको भी मालूम है इस बात की सच्चाई!
उसके दूसरे स्तन पर थोड़ा पीले रंग के दूध की बूँदें बन कर गिर रही थीं। माँ ने उसको चिंता से उसको देखते हुए देखा तो बोलीं,
“बेटा, उसकी चिंता न करो!”
डेवी ने आश्चर्य से माँ को देखा।
“ये पीले रंग के लिए परेशान हो रही हो न? मत होवो! इसको खीस बोलते हैं। बच्चे के लिए यह दूध सबसे अच्छा होता है। वेस्ट मत होने देना इसको। कोशिश कर के सब इसको पिला देना। दो एक दिनों में सफ़ेद दूध आने लगेगा। लेकिन इस पीले दूध में वो न्यूट्रिएंट्स होते हैं, जो बच्चे के लिए बहुत ज़रूरी हैं!”
“ठीक है माँ!” डेवी ने समझते हुए कहा।
‘आभा’ के स्तनपान से देवयानी को दर्द हो रहा था। मुझे स्तनपान करने का तरीका प्रेम वाला था। उसमे मैं डेवी को आनंद देने का प्रयास करता था। लेकिन यहाँ तो एक अबोध बच्चा, बस, अपने भोजन की तलाश में अपनी माँ के स्तनों से लगा हुआ था। अवश्य ही डेवी को कष्ट हो रहा था, लेकिन फिर भी उसके चेहरे पर संतुष्टि वाले भाव थे। संतुष्टि क्या, कोई पारलौकिक प्रभास सा दिख रहा था उसके चेहरे पर! यह होती है मातृत्व की शक्ति! सच में - माँ बन कर स्त्रियां जैसा दैवत्व प्राप्त कर लेती हैं, वो हम पुरुषों के लिए संभव नहीं लगता। इसका एक फिजियोलॉजिकल कारण भी है - स्तनपान कराते समय शरीर में एंडोरफीन नामक हॉर्मोन निकलता है, जिसके कारण मन में उल्लासोन्माद वाली फीलिंग आती है।
‘आभा’ को इतनी भूख लग रही थी कि उसने डेवी के दोनों स्तनों को पिया। जब वो संतुष्ट हो गई, तब उसने खुद ही उसका चूचक छोड़ दिया, और निढाल हो कर सो गई।
मैं उसको अपनी गोदी में उठाना चाहता था, लेकिन मैं यह भी चाहता था कि उसकी नींद न टूटे। शुरू के कुछ दिन देवयानी और माँ को ही उसका रोना धोना सहना था। इसलिए उन दोनों को जितनी कम तकलीफ हो, उतना ही अच्छा!
उधर माँ डेवी को समझा रही थीं कि स्तनपान कराने से यूटीरस अपने पुराने वाले शेप में वापस जल्दी आती है। यह केवल बच्चे के लिए ही लाभदायक क्रिया नहीं थी, बल्कि माँ के लिए भी उतनी ही लाभदायक क्रिया थी। डेवी भी इस बात को मानती थी - उसने हम दोनों से कहा कि वो हमारी बेटी को ब्रेस्टफीड कराती रहेगी, जब तक वो चाहे, तब तक!
“हनी,” एक समय में डेवी ने मुझसे पूछा, “इसका नाम क्या रखेंगे?”
“तुमको क्या नाम पसंद है?”
“मैंने सोचा ही नहीं कुछ!” उसने मज़ाक में कहा, “बच्चा पैदा करने में बिजी थी मैं! कम से कम ये वाला काम तो तुम ही करो!”
“हा हा हा! हाँ - एक नाम सोचा तो है! एक नहीं, दो नाम!”
“अच्छा, तो बताओ!” माँ ने कहा।
“अभया या फिर आभा!”
“अभया?”
“हाँ - माता जी का एक नाम है। अष्टमी को पैदा हुई है न, इसलिए!”
“अच्छा नाम है!” माँ ने कहा।
“हम्म्म। आई लाइक ‘आभा’!”
“बस, फिर क्या! डिसाइड हो गया!” माँ बोलीं, “मेरी प्यारी सी आभा!”
“चलो, जल्दी से अपने डैड को बता दो।” उन्होंने खुश होते हुए कहा, “अमर और देवयानी की आभा! सो क्यूट!”
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