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Romance मोहब्बत का सफ़र [Completed]

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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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प्रकरण (Chapter)अनुभाग (Section)अद्यतन (Update)
1. नींव1.1. शुरुवाती दौरUpdate #1, Update #2
1.2. पहली लड़कीUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19
2. आत्मनिर्भर2.1. नए अनुभवUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3. पहला प्यार3.1. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह प्रस्तावUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21
3.3. पल दो पल का साथUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
4. नया सफ़र 4.1. लकी इन लव Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15
4.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
4.3. अनमोल तोहफ़ाUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
5. अंतराल5.1. त्रिशूल Update #1
5.2. स्नेहलेपUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10
5.3. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24
5.4. विपर्ययUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
5.5. समृद्धि Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20
6. अचिन्त्यUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28
7. नव-जीवनUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5
 
Last edited:

Kala Nag

Mr. X
Prime
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144
अंतराल - स्नेहलेप - Update #3


काम में व्यस्त था मैं! या यह कह लीजिए कि अपने दुःखों से दो-चार होने से डर कर भाग रहा था मैं। पलायनवादी हो गया था मैं। ऊपर से अवश्य ही मज़बूत लगता और दिखता, लेकिन अंदर ही अंदर हिला हुआ था मैं। माँ का उदास और सूना सूना चेहरा देखने से कतरा रहा था मैं। कायर हो गया था मैं। देर रात घर आता, जल्दी ऑफिस के लिए निकल जाता। अकेले में ही अपनी दुनिया बना बैठा - खुद को सभी से दूर कर के!

अक्सर होता है न - दूसरों की छोटी छोटी कमियाँ हमको साफ़ दिखाई दे जाती हैं। लेकिन अपने तरबूज़ के समान कमियाँ दिखाई नहीं दिखतीं - भले ही आईना सामने रख दिया जाय। वही हो रहा था मेरे साथ। लेकिन इस चक्कर में क्या कुछ नहीं मिस कर रहा था मैं - आभा तेजी से बड़ी हो रही थी। उसका बचपना मिस कर रहा था मैं। इस बार उसका चौथा बर्थडे मैंने लगभग लगभग मिस ही कर दिया था - वो तो आखिरी समय पर काजल ने याद दिला दिया, नहीं तो मैं भूल ही जाता कि उसका जन्मदिन भी था। दूसरी छोटी बच्ची - लतिका - के बड़े होने का आश्चर्यजनक सफर मिस कर रहा था मैं। उसके बारे में कुछ मालूम ही नहीं था मुझको। और तो और, माँ से दूरी बनती जा रही थी मेरी। ऐसा मैं कभी सोच भी नहीं सकता था कि यह नौबत आ जाएगी - माँ से दूरी और मेरी? असंभव! लेकिन वही असंभव, अब मूर्त रूप ले रहा था, या ले चुका था। वो तो भला हो काजल का - अन्यथा, माँ मेरे लिए एक ‘मानसिक रोगी’ का रूप अख्तियार करने ही वाली थीं।

मेरे एक परम मित्र हैं - बिलकुल श्रवण कुमार जैसे। माता पिता को ईश्वर मानने वाले। लेकिन जब उनकी माता जी रोगिणी बन कर सदा के लिए बिस्तर पकड़ लीं, तब मैंने देखा कि ऐसे व्यक्ति भी अपनी श्रद्धा में कैसे बिखर जाते हैं। कई महीनों तक निर्लिप्त सेवा के बाद वो मित्र एक दिन मुझसे बोले कि उनको अपनी माता से नफरत हो गई है, और वो ईश्वर से मना रहे हैं कि उनको शीघ्र ही अपने पास बुला लें। कष्टप्रद था उनका अनुभव सुनना। लेकिन यही सच्चाई है। अगर कोई व्यक्ति चौतरफ़ा भाग्य की मार ही झेलेगा, तो वो और क्या करे? व्यक्ति ही तो है। मानुष की कमियाँ तो रहेंगी ही सदैव! इसलिए मुझे काजल का धन्यवाद करने में कोई गुरेज नहीं है। आज भी माँ और मेरे बीच जो आत्मीयता है, जो प्रेम है, वो उपस्थित है और निर्मल है तो केवल काजल के कारण! सच में देवी है काजल! कोई बहुत अच्छे कर्म किए होंगे मैंने कि उसकी दया, उसका प्रेम हम सभी पर इस तरह से बरस रहा था।

एक रात बहुत ही अधिक देर हो गई वापस आते आते। करीब करीं एक बजे होंगे रात के। थक कर चूर हो गया था और भूखा भी बहुत था। शायद इसीलिए नाराज़ भी था। उस समय यही हाल था मेरा - नाराज़ रहता - खुद पर, दूसरों पर। चिड़चिड़ाने लगा था। मैं स्वयं एक मानसिक रोगी बनता जा रहा था, या शायद बन गया था। घर में आया, तो देखा कि काजल वहीं सामने बैठी मेरा ही इंतज़ार कर रही थी। उसको देखते ही मेरा मन ग्लानि से भर गया। एक तो ठंडक थी - हल्का हल्का कोहरा छाया हुआ था, और ऊपर से थोड़ी ठंडी हवा भी चल रही थी।

“क्या हो गया काजल? इतनी रात, यहाँ बाहर?” मैंने पूछा - यद्यपि मुझे मालूम था कि वो वहाँ किसके इंतज़ार में बैठी है।

उसने कहा, “आओ, खाना लगा देती हूँ!”

यह सुन कर राहत हुई, “हाँ, भूख तो लग गई!” मैंने जबरदस्ती ही मुस्कुराने की कोशिश करी। लेकिन काजल ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

डाइनिंग टेबल पर दो प्लेटें लगी हुई थीं - एक मेरे लिए और एक काजल के लिए। देख कर इतना दुःख हुआ और ग्लानि हुई कि मैं आपसे कह नहीं सकता। बेचारी दिन भर काम करते नहीं थकती, और अब मेरा भी इंतज़ार! मेरी यह हिम्मत भी न हुई कि उससे कह सकूँ कि मेरा इंतज़ार क्यों किया। लगा, कि मैंने शिकायतें करने का अधिकार भी खो दिया।

बड़ी ख़ामोशी से खाना परोसा गया। काजल भी नाराज़ तो होगी ही।

आधा खाना खा लिया तब मुझे कुछ कहने की हिम्मत आई, “काजल, अब से मैं समय पर घर आऊँगा, समय पर जाऊँगा! आई ऍम सॉरी! प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो?”

“पक्का?”

“पक्का - तुमसे वायदा कर के उसको न फॉलो कर के, तुम्हारा अपमान नहीं करूँगा। यू डिज़र्व बेटर! मैं बदतमीज़ी कर रहा हूँ - यह मुझे भी मालूम है। आईन्दा ऐसी गलती नहीं होगी!”

“थैंक यू,” वो मुस्कुराते हुए बोली, “जब ज़रुरत है तब कर लेना लेट सिटिंग! लेकिन हर रोज़ तो ज़रुरत नहीं हो सकती न? और देखो, कितने हफ़्तों से एक्सरसाइज भी नहीं किया है तुमने! हैंडसम से बूढ़े बूढ़े लगने लगे हो!”

“आई ऍम सॉरी!”

“नहीं। सॉरी मत कहो। तुमको बात समझ आ गई, बस!”

फिर माहौल थोड़ा अच्छा हो गया। मैंने सबके बारे में पूछा। काजल ने बताया कि वो दीदी के साथ मॉर्निंग वाक पर जाती है। और तो और दीदी उसको इंग्लिश भी सिखा रही हैं। लतिका की पढ़ाई की ज़िम्मेदारी भी दीदी ने ही ले रखी है। इस बार के एक्साम्स में उसके नंबर भी अच्छे आए हैं। और अपनी आभा तो अब उछल कूद अधिक करने लगी है। दोनों बच्चे मायूस थे कि इस साल दिवाली नहीं मनाई गई (इसी साल के पहले क्वार्टर में डैड की मृत्यु हुई थी और इसलिए एक साल तक कोई तयोहार न मनाने की प्रथा का पालन कर रहे थे हम)!

हाँ दुःख तो था। लेकिन उस दुःख के ऊपर थोड़े और दुःख लाद कर भला कौन सा सुख निकल रहा था - यह सुधी जनों की बुद्धि से परे है। मूर्खता अपनी जगह होती है, लेकिन, हाँ - लोक रीति का पालन अपनी जगह है। देवयानी के गए एक साल हो गया था। उसकी याद आते ही आँखें नम हो गईं। बात बदलने के लिए मैंने सुनील के बारे में पूछा। सुनील का सातवाँ सेमेस्टर भी ख़तम होने वाला था। लेकिन वो सर्दी की छुट्टियाँ वहीं बिताने वाला था - किसी प्रोफेसर के साथ प्रोजेक्ट था उसका।

“काजल,” मैंने संजीदा होते हुए कहा, “मैं चाहता हूँ कि सब कुछ पहले जैसा हो जाए! आई मीन, सब कुछ वैसा तो नहीं हो सकता, लेकिन इस घर में थोड़ी खुशियाँ आ सकें, तो क्या हर्ज़ है!”

“मेरे मन की बात कह दी तुमने!” वो बोली, “एक आईडिया तो है!”

“वो क्या?”

“हम अपन चारों जने का कंबाइंड बर्थडे मनाते हैं, इस वीकेंड?”

“चारों जने?”

“हाँ - तुम, आभा, लतिका, और दीदी?”

“और तुम? तुम अलग हो इस घर में? मत भूलो कि तुम इस घर की मालकिन हो। सबसे पहले तुम्हारा बर्थडे मनेगा!”

“मतलब तुमको आईडिया पसंद आया?”

“बहुत पसंद आया! लेकिन बर्थडे मत मनाओ प्लीज़!”

“ठीक है फिर! किसी का नहीं मनेगा!”

“ओह्हो तुम भी न!”

“हाँ - मैं भी न! मालकिन हूँ इस घर की। मेरा हुकुम मानना पड़ेगा सभी को!”

मैं मुस्कुराया।

“दोनों बच्चे कहाँ हैं?”

“सो रहे हैं - पुचुकी (लतिका) के कमरे में!”

“उनको देख लूँ?”

“मुझसे पूछोगे? अपने बच्चों को देखने के लिए?”

न जाने मन में क्या आया कि मैं रोने लगा। काजल ने मुझे अपने आलिंगन में बाँध लिया, और रोने दिया। न जाने कब तक रोया। लेकिन रोना तभी रुका जब नाक इस कदर जम गई कि उससे साँस आनी बंद हो गई और आँखों से आँसू सूख गए। जब काजल ने मेरा रोना बंद होते हुए महसूस किया तब वो बड़ी ममता से बोली,

“बस, बस! अब हो गया! रो लिए - तो दिल का दुःख कम गया। अब बस! अब आगे की सुध लो! धैर्य रखो। भगवान् सब ठीक करेंगे!”

“ओह काजल! यार मैं बिलकुल टूट गया हूँ! अकेला हो गया हूँ!”

“टूट गए हो - हाँ। लेकिन अकेले नहीं हुए हो। मैं हूँ न। बच्चे हैं। दीदी हैं।” वो मुझको समझाते हुए बोली, “हम अपनी अपनी तरीके से टूट गए हैं। लेकिन हमारा साथ तो बना हुआ है। है न? तो अकेले नहीं हैं हम! जब तक हम में से कोई एक भी है न, तब तक तुम अकेले नहीं होने वाले!”

काजल की बात पर मैंने कांपती आवाज़ में सांस छोड़ी। सच में - काजल के रहने से सम्बल तो है ही।

“मन अच्छा करो, और आ जाओ... बच्चों से मिल लो। कल उनके साथ खेलना! बड़ा अच्छा लगेगा। दोनों बहुत नटखट हैं!”

उसकी बात इतनी अच्छी थी कि मेरी मुस्कान खुद-ब-खुद आ गई।

बच्चों के कमरे में गया। दोनों बेसुध पड़े सो रहे थे। आभा को हलके हलके खर्राटे भी आ रहे थे - शायद थोड़ी सर्दी हो गई थी उसको।

“कितना कुछ मिस कर दिया मैंने!” दोनों को देखते हुए मैंने कहा।

“वो सब मत सोचो। यह सोचो कि आगे यह सब मिस न करना पड़े!”

बात सौ प्रतिशत सही थी। जो बीत गया, उसका कुछ किया नहीं जा सकता। हाँ, आगे वही सब फिर से न हो, यह सुनिश्चित किया जा सकता है।

“दोनों कितने प्यारे लगते हैं!”

“बहुत ही प्यारे हैं। जब घर में नहीं होते, तब घर सुनसान लगता है। और जब आ जाते हैं, तो पूरा घर गुलज़ार रहता है!”

हमारी बातें सुन कर लतिका की नींद थोड़ा कच्ची हो जाती है। वो अपनी उनींदी आवाज़ में बोलती है,

“अंकल, आपको निन्नी नहीं आ रही है?”

“अब आ जाएगी बेटू!” मैंने उसको चूमते हुए कहा, “अब आ जाएगी!”

“मैं आपको सुला दूँ?”

“नहीं मेरी बच्ची! लेकिन तुम सो जाओ! मैं भी सो जाऊँगा!”

“ओके!”

“कल मेरे साथ खेलोगी?”

“हाँ!” वो नींद में भी खुश होते हुए बोली, “आई वुड लव टू!”

“ठीक है बेटा,” मैंने उसके मुँह को चूमते हुए कहा, “थैंक यू! आई लव यू!”

आई लव यू टू!”

कह कर लतिका वापस सो गई। मैंने बारी बारी से दोनों बच्चों को चूमा, और कमरे से बाहर निकल आया। मन बहुत ही हल्का हो गया; शांत भी। काजल भी मुस्कुराते हुए मेरे पीछे बाहर आ गई। इतने महीनों में इतनी मनःशांति नहीं मिली।

देखा कि काजल रसोई की तरफ जा रही थी।

“क्या हुआ?”

“नहीं, कुछ नहीं। बस, थोड़ा रख रखाव कर लूँ!”

“कल आएगी न कामवाली?”

“हाँ!”

“तो उसके लिए कुछ छोड़ दो! तुम भी आराम किया करो न?” मैंने कहा।

“कॉफ़ी पियोगे?”

“अभी नहीं! बाद की बाद में देखेंगे!” मैं बोला, “आओ। मेरे साथ बैठो न कुछ देर?”

काजल मुस्कुराई, “ठीक है!”

कमरे में आ कर मैंने मद्धिम मधुर संगीत बजाया। बहुत दिन हो गए यह काम किये। करीब करीब ढाई बज गए थे। देर रात! ठंडक। मैंने रजाई खींची, और काजल को अंदर आने के लिए आमंत्रित किया। बहुत ही लम्बा अर्सा हो गया था काजल और मुझे साथ लेटे हुए। कैसी आत्मीयता, और कैसी अंतरंगता थी हमारे बीच - लेकिन अब!

बात सुनील से शुरू हुई - काजल को उसके बारे में चिंता थी। उसको कैंपस प्लेसमेंट से एक नौकरी मिली तो थी, लेकिन अमेरिका पर आतंकवादी हमलों के कारण, उसकी कम्पनी ने वो ऑफर वापस ले लिया था। हमको यहाँ दुःख तो हुआ, लेकिन यह भी मालूम था कि सुनील जैसे कैंडिडेट के लिए नया जॉब ऑफर लेना, कोई कठिन काम नहीं होगा। और वैसे भी, उसने कभी जॉब को लेकर चिंता नहीं दिखाई थी। चारों साल उसने कठिन परिश्रम किया था, कई सारे प्रोजेक्ट्स किए थे, वो क्लास टॉपर्स में एक था, और उसका रेज़्यूमे अपने सहपाठियों में सबसे मज़बूत था। इसलिए डरने वाली बात थी ही नहीं। यही सब बातें मैंने काजल को समझाईं।

मैंने उसको यह भी समझाया कि अगर इतनी ही बुरी किस्मत हुई उसकी कि उसको कैंपस से जॉब ऑफर न मिले, तो मेरी कंपनी है ही न! वहाँ काम कर ले! काजल को यह सुन कर संतोष हुआ। फिर बात माँ पर आ गई। उनके जीवन में किसी साथी की आवश्यकता पर भी हमने बात चीत करी। अभी तक मैंने बस एक बार ही माँ से यह बात कही थी, लेकिन माँ की प्रतिक्रिया ऐसी थी कि दोबारा कहने की मेरी हिम्मत नहीं हुई। लेकिन तब से अब तक परस्थितियों में बहुत परिवर्तन हो चुका था। हो सकता है कि अब - जबकि वो पहले के अपेक्षा अधिक शांत थीं, तो इस प्रस्ताव पर वो सकारात्मक प्रतिक्रिया देतीं।

“काजल?”

“हम्म?”

“तुम मुझसे शादी करोगी?”

“ओह अमर! अगर मेरी शादी तुमसे होगी न, तो मैं बहुत ही लकी होऊँगी!” उसने कहा, “लेकिन हमने इस बारे में बात करी है न!”

“हाँ!” मैंने बुझे मन से कहा।

“हे, ऐसे मत रहो अमर! मुझे तुमसे बहुत प्यार है अमर, बहुत ही! ये तुम जानते हो और मैं भी जानती हूँ! लेकिन शादी का नहीं मालूम!”

“पर क्यों?”

“क्योंकि मैं तुम्हारे लायक नहीं हूँ, अमर। इसलिए! मैं गंवार हूँ। तुम्हारा समाज में एक अलग ही मुकाम है - मेरा उस मुकाम से दूर दूर तक कोई सम्बन्ध ही नहीं है!”

मैं कुछ कहना चाहता था, कि उसने मुझे रोक कर कहना जारी रखा, “बीवी ऐसी चाहिए जो तुमको तुम्हारे मुकाम से आगे ले जाए - पीछे नहीं। मुझे न तो तुम्हारे तौर तरीके मालूम, और न ही बोलने का कोई ढंग ही मालूम! पुचुकी के स्कूल जा कर उसकी टीचर से बात करने में भी डर लगता है मुझे। ऐसे थोड़े न होना चाहिए बीवी को! समझा करो। कोई तो बराबरी हो!”

“काजल, अगर मेरा बिज़नेस हमारे बीच की दीवार है, तो मैं जॉब कर लेता हूँ!”

“हाँ, और अपने, देवयानी दीदी, डैडी जी, और दीदी के सपनों को पानी में बहा दो! ठीक है? सबको बहुत अच्छा लगेगा, और सबको संतोष मिलेगा - तुमको भी!”

“पर काजल?”

काजल कुछ पल के लिए कुछ नहीं बोली, फिर रुक कर कहती है, “अच्छा चलो! भूल जाओ कि मैंने यह सब कहा। मैं करूँगी शादी तुमसे!”

“सच में?”

“हाँ! क्यों नहीं! बीवी दिखाने के लिए थोड़े न होती है। बीवी तो जीवन साथी होती है!”

मैं मुस्कुराया। लेकिन अगले ही पल मेरे पूरे शरीर में अज्ञात भय की लहार दौड़ गई।

“तुम सीरियस नहीं हो न?”

“हूँ! क्यों?”

“काजल। मुझे लगता है कि मेरी पत्नियाँ मेरे कारन से जी नहीं पातीं।”

मैंने इतना कहा ही था कि एक झन्नाटेदार झापड़ मेरे गाल पर आ कर लगा। और अगले ही पल काजल आलिंगन में कस कर बाँध लिया।

“तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ऐसा सोचने की?” उसने मुझे डाँटा, “आइंदा ऐसा कहा न तो मुझसे बुरा कोई न होगा! गैबी दीदी का एक्सीडेंट, और देवयानी दीदी का कैंसर - तुम्हारे कारण नहीं था। यह हमारा दुर्भाग्य है कि उनको वो सब झेलना पड़ा और हमको भी। लेकिन यह भी तो देखो, कि वो दोनों चली गईं और तुम रह गए। तुम्हारा दुःख अधिक है कि उनका? वो दोनों तो मुक्त हो गईं।”

उसने मेरे गाल को सहलाया - जहाँ अभी अभी मुझे झापड़ लगा था।

“आई ऍम सॉरी! लेकिन मैं तुमसे उम्र में बड़ी हूँ! इसलिए मेरा हक़ है तुम पर, कि तुमको समझाऊँ, तुमको डांटूं - अगर तुम गलत हो! है कि नहीं? अब बस! ऐसी बकवास फिर मत सोचना।”

उसने कहा, और अपनी ब्लाउज़ के बटन खोलने लगी।

“आओ, अपने को शांत करो! और मुझे भी! बहुत दिन हो गए!”

पहले तो कुछ पल समझ नहीं आया कि क्या करूँ। फिर मैंने उसके स्तनों पर अपने हाथ रखे - ऐसे कि उसके चूचक मेरे उँगलियों के बीच फँस जाएँ। वो स्तंभित हो रहे थे।

“उम्म्म्म... आह... बहुत दिन हो गए!” काजल ने फुसफुसाते हुए कहा।

अंततः मैंने उसके एक चूचक पर अपना मुँह लगाया - सच में, बहुत ही अधिक दिन हो गए थे। कोई चार - साढ़े साल! मेरे बाद काजल ने किसी के साथ सेक्स नहीं किया। उसके चूचकों पर मेरे मुँह की हर क्रिया पर उसकी योनि लरज रही थी। हाँ, उसका दूध अवश्य ही मेरे मुँह में भर रहा था, लेकिन वो एक काम-वर्धक का कार्य कर रहा था। उधर काजल का हाथ मेरे पाजामे को ढीला करने में व्यस्त था। उसकी उँगलियों की छुवन से मेरा लिंग भी तेजी से आकार में बढ़ने लगा। डेढ़ साल हो गए थे मुझे भी सेक्स किए। सेक्स की याद आते ही मुझे आखिरी बार देवयानी के साथ अपने मिलन की घड़ी याद हो आई।

देवयानी की याद आते ही जो भी मूड था, सब रफू-चक्कर हो गया। लिंग जितनी तेजी से स्तंभित हो रहा था, उससे भी दोगुनी गति से शिथिल पड़ने लगा। सब धरा का धरा रह गया। मैं वापस रोने लगा। काजल समझ रही थी कि मुझे क्या हो रहा है। वो मुझे दिलासा भी दे रही थी, और अपने और मेरे कपड़े भी उतारती जा रही थी। शीघ्र ही हम दोनों पूर्ण नग्न हो कर रजाई के भीतर आलिंगनबद्ध हो कर लेटे हुए थे।

“अमर, मत रोओ! मैं हूँ न!” उसने मुझे धीरज बंधाया।

उसका हाथ वापस मेरे लिंग पर चला गया। मेरे गले से एक आह निकल गई। उसने लिंग पर मुट्ठी बाँध कर कामुकता से अपना हाथ फिराया। कुछ ही पलों में मेरे लिंग में जीवन पुनः लौटने लगा। कुछ देर तक वो ऐसे ही मुझे हस्तमैथुन का आनंद देती रही - उसने इस बात का ख़याल रखा कि बहुत न करे। अन्यथा स्खलन की सम्भावना बड़ी तीव्र थी। इतने महीनों बिना सेक्स के...

जब मैं समुचित रूप से तैयार हो गया, तब वो बोली,

“आ जाओ! मेरे ऊपर! सब मीठी बातें याद दिला दो मुझे!”

मैंने किया वो सब।

हमारा यह संसर्ग बेहद संछिप्त था, लेकिन भावनात्मक ज्वार से भरपूर था। हम दोनों के ही मन में वर्षों से दबी हुई कामुक ऊर्जा थी। जो तेजी से निकल गई। बमुश्किल दो तीन मिनट में ही। अवश्य ही शारीरिक संतुष्टि न मिली हो, लेकिन मानसिक और भावनात्मक संतुष्टि हम दोनों को ही मिली। काजल के शरीर की गुणवत्ता भी बढ़ गई थी। अब लगता था कि हाँ, वो कोई खानदानी स्त्री है। खान-पान, रहन सहन में आमूलचूल बदलाव से यह सब होता ही है।

जब हम दोनों संतुष्ट हो कर लेटे हुए थे, तब मैंने काजल को देखा। वो करीब चालीस साल की हो गई थी। लेकिन अपनी उम्र से कहीं कम लगती थी। और सुन्दर भी वैसी ही थी, जब वो पहली बार मेरे घर आई थी। नहीं - उससे भी अधिक सुन्दर। हमारी बच्ची के जन्म के बाद, इतने सालों तक सतत स्तनपान कराने से उसके स्तन थोड़ा बड़े हो गए थे। लेकिन बाकी शरीर थोड़ा छरहरा ही था। उसमें स्थूलता नहीं थी - न तो पेट निकला था, और न ही नितम्ब। XForum में फोटो सेक्शन में देसी ‘सुंदरियों’ के जैसे स्थूल शरीर होते हैं, वैसा तो उसका बिलकुल भी नहीं था। हाँ - लेकिन उसके शरीर के कटाव बड़े लोचदार थे। माँ उसके सामने कमउम्र लगती थीं क्योंकि उनके शरीर में वैसे कटाव नहीं थे... वैसे लोच नहीं थे।

कुछ देर हम वैसे ही आलिंगनबद्ध अवस्था में ही पड़े पड़े, गहरी नींद सो गए। और बहुत देर तक सोए। माँ समझ गईं कि हम दोनों के बीच कल रात क्या हुआ था। इसलिए उन्होंने हमको परेशान नहीं किया और लतिका और आभा को तैयार करने, और नाश्ता पकने का काम खुद ही कर लिया।

जब हम दोनों उठे, तब तक कोई ग्यारह बज गए थे। कमरे से बाहर आते हुए मुझे भी और काजल को भी शर्म आ रही थी। लेकिन उनका सामना तो करना ही था। माँ ने हमको देखा, तो मुस्कुराईं - वही पुरानी जैसी मुस्कान! मन खुश हो गया। इतने समय में उनको बहुत ही कम बार मुस्कुराते देखा था। और यह मुस्कान स्पेशल थी। मैं तैयार हो कर, नाश्ता कर के ऑफिस के लिए जब रवाना हुआ, तब तक लंच का समय हो गया। ऑफिस पहुँचा तो पाया कि सभी लोग अपने अपने काम में मशगूल थे। और तन्मयता से काम कर रहे थे।

अच्छे, परिश्रमी लोगों को टीम में लेने के यही परिणाम होते हैं। काम ईमानदारी से होता रहता है। सच में - मुझे काम के पीछे अपनी जान निकालने की कोई आवश्यकता नहीं थी। काजल से किया गया वायदा निभाने का एक और कारण मिल गया। मन ही मन मैंने एक नोट बनाया कि कल या अगले दिन, पूरे ऑफिस को लंच मैं कराऊँगा - कहीं बाहर अच्छे होटल में ले जा कर।

मेरे जाने के बाद माँ ने काजल को घेर लिया।

“काजल, बेटा, तुम अमर से शादी क्यों नहीं कर लेती! तुम दोनों साथ में कितने सुन्दर, कितने सुखी लगते हो! पहले भी मना कर चुकी हो। लेकिन क्या तुम देखती नहीं, कि किस्मत ने हम दोनों के परिवारों का एक होना तय कर रखा है?”

“दीदी,” काजल ने बड़े प्रेम से कहा, “तुम्हारी बहू बनना तो बहुत सौभाग्य की बात है। अगर वो होता है, तो मैं सबसे लकी औरत होऊँगी दुनिया की। लेकिन मैं ये कर नहीं सकती। सही नहीं होगा!”

“क्या तुम अमर से प्यार नहीं करती?”

“बहुत करती हूँ! इस बारे में कभी शक न करना दीदी। लेकिन,” और फिर काजल का वही पुराना गाना शुरू हो गया, जो उसने मुझे सुनाया था रात में।

“काजल, इन सब बातों से मेरा विचार नहीं बदलता। तुम बहुत अच्छी हो, और बहुत सुन्दर भी हो! अमर भी बहुत लकी होगा अगर तुम उसकी पत्नी बनो। दोनों के दो तीन बच्चे भी हो सकते हैं।”

“दीदी!”

“क्या दीदी? अब देखो न... सुनील की पढ़ाई पूरी होने वाली है। नौकरी करने लगेगा वो जल्दी ही। वो तो रहेगा अपनी बहू के साथ अलग। रह गए तुम और लतिका। यहीं रह जाओ। इसी घर में। हमेशा। तुम्हारा घर है। इसी को गुलज़ार कर दो। नन्हे नन्हे बच्चों की किलकारियों से सजा दो!”

“दीदी, तुम बहुत अच्छी हो। इसीलिए तो आ गई यहाँ भागी भागी! तुमको छोड़ कर जाने का मेरा मन तो नहीं है। सुनील को कहीं रहना हो रहे! उसकी बीवी उसी को मुबारक। मैं और तुम काफी हैं!” काजल हँसते हुए बोली, “लेकिन यार ये शादी वाली बात न बोलो। अमर के पाँवों की चक्की नहीं बनना मुझे।”

माँ ने भी बहुत तूल नहीं दिया इस बात पर। शादी करना या न करना, एक बेहद व्यक्तिगत निर्णय होता है। इसको ज़ोर जबरदस्ती से नहीं करवाया जा सकता।

“देख लो! मैं तो केवल समझा सकती हूँ। बाकी तो सब तुम्ही दोनों पर है। लेकिन हाँ - अगर तुम दोनों शादी करना चाहोगे तो याद रखना कि मेरा आशीर्वाद है। और मुझे बहुत ख़ुशी होगी उस दिन!”

“मेरी छोड़ो दीदी, अपनी बताओ! तुम क्या सोचती हो शादी करने के बारे में?”

“पागल हो गई है क्या? मैं अब दादी माँ हूँ। इस उम्र में कोई शादी करता है क्या?”

“दीदी, दादी तो तुम हो, लेकिन तुम्हारी उम्र नहीं हुई है कुछ! आज कल तो कितनी सारी औरतें पैंतीस के बाद शादी करने लगी हैं।”

“नहीं रे! यह सब मैं नहीं जानती।”

“दीदी, मैं तुमसे बहस नहीं कर सकती। तुम्हरी बहुत इज़्ज़त करती हूँ। लेकिन, शरीर की ज़रूरतें होती हैं। उनकी संतुष्टि भी ज़रूरी है। तुम्हारी एक और बच्चे की चाहत के बारे में पता है मुझको। अगर कोई अच्छा आदमी मिल जाय, तो क्यों न उससे शादी कर लो?” काजल ने सजींदगी से कहा, “तुम्हारी माँग फिर से सिन्दूर से सज जाय, तुम्हारे चेहरे पर फिर से वही मुस्कान आ जाय, तो क्या बात बने!”

“मत देख सपने काजल। वो सब कुछ ‘उन्ही’ के साथ चला गया बेटा। सब ‘उन्ही’ के साथ चला गया!”


***
वाह वाह वाह
कुछ बातेँ हैं जैसे काम की बोझ से चिड़चिड़ापन
अतिरिक्त काम करना घर की माहौल को अवॉइड करने के लिए
बहुत कुछ हम खो देते हैं इस चक्कर में
फिर स्नेह लेप से वापस अपनी दुनिया में आना
वाह बहुत बढ़िया प्रस्तुति
मेरे जीवन का एक अंश जैसे मेरे आँखों के सामने चलचित्र के भांति गुजर रहा था l
बहुत ही भावनात्मक प्रस्तुतिकरण थी
 
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अंतराल - स्नेहलेप - Update #3


काम में व्यस्त था मैं! या यह कह लीजिए कि अपने दुःखों से दो-चार होने से डर कर भाग रहा था मैं। पलायनवादी हो गया था मैं। ऊपर से अवश्य ही मज़बूत लगता और दिखता, लेकिन अंदर ही अंदर हिला हुआ था मैं। माँ का उदास और सूना सूना चेहरा देखने से कतरा रहा था मैं। कायर हो गया था मैं। देर रात घर आता, जल्दी ऑफिस के लिए निकल जाता। अकेले में ही अपनी दुनिया बना बैठा - खुद को सभी से दूर कर के!

अक्सर होता है न - दूसरों की छोटी छोटी कमियाँ हमको साफ़ दिखाई दे जाती हैं। लेकिन अपने तरबूज़ के समान कमियाँ दिखाई नहीं दिखतीं - भले ही आईना सामने रख दिया जाय। वही हो रहा था मेरे साथ। लेकिन इस चक्कर में क्या कुछ नहीं मिस कर रहा था मैं - आभा तेजी से बड़ी हो रही थी। उसका बचपना मिस कर रहा था मैं। इस बार उसका चौथा बर्थडे मैंने लगभग लगभग मिस ही कर दिया था - वो तो आखिरी समय पर काजल ने याद दिला दिया, नहीं तो मैं भूल ही जाता कि उसका जन्मदिन भी था। दूसरी छोटी बच्ची - लतिका - के बड़े होने का आश्चर्यजनक सफर मिस कर रहा था मैं। उसके बारे में कुछ मालूम ही नहीं था मुझको। और तो और, माँ से दूरी बनती जा रही थी मेरी। ऐसा मैं कभी सोच भी नहीं सकता था कि यह नौबत आ जाएगी - माँ से दूरी और मेरी? असंभव! लेकिन वही असंभव, अब मूर्त रूप ले रहा था, या ले चुका था। वो तो भला हो काजल का - अन्यथा, माँ मेरे लिए एक ‘मानसिक रोगी’ का रूप अख्तियार करने ही वाली थीं।

मेरे एक परम मित्र हैं - बिलकुल श्रवण कुमार जैसे। माता पिता को ईश्वर मानने वाले। लेकिन जब उनकी माता जी रोगिणी बन कर सदा के लिए बिस्तर पकड़ लीं, तब मैंने देखा कि ऐसे व्यक्ति भी अपनी श्रद्धा में कैसे बिखर जाते हैं। कई महीनों तक निर्लिप्त सेवा के बाद वो मित्र एक दिन मुझसे बोले कि उनको अपनी माता से नफरत हो गई है, और वो ईश्वर से मना रहे हैं कि उनको शीघ्र ही अपने पास बुला लें। कष्टप्रद था उनका अनुभव सुनना। लेकिन यही सच्चाई है। अगर कोई व्यक्ति चौतरफ़ा भाग्य की मार ही झेलेगा, तो वो और क्या करे? व्यक्ति ही तो है। मानुष की कमियाँ तो रहेंगी ही सदैव! इसलिए मुझे काजल का धन्यवाद करने में कोई गुरेज नहीं है। आज भी माँ और मेरे बीच जो आत्मीयता है, जो प्रेम है, वो उपस्थित है और निर्मल है तो केवल काजल के कारण! सच में देवी है काजल! कोई बहुत अच्छे कर्म किए होंगे मैंने कि उसकी दया, उसका प्रेम हम सभी पर इस तरह से बरस रहा था।

एक रात बहुत ही अधिक देर हो गई वापस आते आते। करीब करीं एक बजे होंगे रात के। थक कर चूर हो गया था और भूखा भी बहुत था। शायद इसीलिए नाराज़ भी था। उस समय यही हाल था मेरा - नाराज़ रहता - खुद पर, दूसरों पर। चिड़चिड़ाने लगा था। मैं स्वयं एक मानसिक रोगी बनता जा रहा था, या शायद बन गया था। घर में आया, तो देखा कि काजल वहीं सामने बैठी मेरा ही इंतज़ार कर रही थी। उसको देखते ही मेरा मन ग्लानि से भर गया। एक तो ठंडक थी - हल्का हल्का कोहरा छाया हुआ था, और ऊपर से थोड़ी ठंडी हवा भी चल रही थी।

“क्या हो गया काजल? इतनी रात, यहाँ बाहर?” मैंने पूछा - यद्यपि मुझे मालूम था कि वो वहाँ किसके इंतज़ार में बैठी है।

उसने कहा, “आओ, खाना लगा देती हूँ!”

यह सुन कर राहत हुई, “हाँ, भूख तो लग गई!” मैंने जबरदस्ती ही मुस्कुराने की कोशिश करी। लेकिन काजल ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

डाइनिंग टेबल पर दो प्लेटें लगी हुई थीं - एक मेरे लिए और एक काजल के लिए। देख कर इतना दुःख हुआ और ग्लानि हुई कि मैं आपसे कह नहीं सकता। बेचारी दिन भर काम करते नहीं थकती, और अब मेरा भी इंतज़ार! मेरी यह हिम्मत भी न हुई कि उससे कह सकूँ कि मेरा इंतज़ार क्यों किया। लगा, कि मैंने शिकायतें करने का अधिकार भी खो दिया।

बड़ी ख़ामोशी से खाना परोसा गया। काजल भी नाराज़ तो होगी ही।

आधा खाना खा लिया तब मुझे कुछ कहने की हिम्मत आई, “काजल, अब से मैं समय पर घर आऊँगा, समय पर जाऊँगा! आई ऍम सॉरी! प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो?”

“पक्का?”

“पक्का - तुमसे वायदा कर के उसको न फॉलो कर के, तुम्हारा अपमान नहीं करूँगा। यू डिज़र्व बेटर! मैं बदतमीज़ी कर रहा हूँ - यह मुझे भी मालूम है। आईन्दा ऐसी गलती नहीं होगी!”

“थैंक यू,” वो मुस्कुराते हुए बोली, “जब ज़रुरत है तब कर लेना लेट सिटिंग! लेकिन हर रोज़ तो ज़रुरत नहीं हो सकती न? और देखो, कितने हफ़्तों से एक्सरसाइज भी नहीं किया है तुमने! हैंडसम से बूढ़े बूढ़े लगने लगे हो!”

“आई ऍम सॉरी!”

“नहीं। सॉरी मत कहो। तुमको बात समझ आ गई, बस!”

फिर माहौल थोड़ा अच्छा हो गया। मैंने सबके बारे में पूछा। काजल ने बताया कि वो दीदी के साथ मॉर्निंग वाक पर जाती है। और तो और दीदी उसको इंग्लिश भी सिखा रही हैं। लतिका की पढ़ाई की ज़िम्मेदारी भी दीदी ने ही ले रखी है। इस बार के एक्साम्स में उसके नंबर भी अच्छे आए हैं। और अपनी आभा तो अब उछल कूद अधिक करने लगी है। दोनों बच्चे मायूस थे कि इस साल दिवाली नहीं मनाई गई (इसी साल के पहले क्वार्टर में डैड की मृत्यु हुई थी और इसलिए एक साल तक कोई तयोहार न मनाने की प्रथा का पालन कर रहे थे हम)!

हाँ दुःख तो था। लेकिन उस दुःख के ऊपर थोड़े और दुःख लाद कर भला कौन सा सुख निकल रहा था - यह सुधी जनों की बुद्धि से परे है। मूर्खता अपनी जगह होती है, लेकिन, हाँ - लोक रीति का पालन अपनी जगह है। देवयानी के गए एक साल हो गया था। उसकी याद आते ही आँखें नम हो गईं। बात बदलने के लिए मैंने सुनील के बारे में पूछा। सुनील का सातवाँ सेमेस्टर भी ख़तम होने वाला था। लेकिन वो सर्दी की छुट्टियाँ वहीं बिताने वाला था - किसी प्रोफेसर के साथ प्रोजेक्ट था उसका।

“काजल,” मैंने संजीदा होते हुए कहा, “मैं चाहता हूँ कि सब कुछ पहले जैसा हो जाए! आई मीन, सब कुछ वैसा तो नहीं हो सकता, लेकिन इस घर में थोड़ी खुशियाँ आ सकें, तो क्या हर्ज़ है!”

“मेरे मन की बात कह दी तुमने!” वो बोली, “एक आईडिया तो है!”

“वो क्या?”

“हम अपन चारों जने का कंबाइंड बर्थडे मनाते हैं, इस वीकेंड?”

“चारों जने?”

“हाँ - तुम, आभा, लतिका, और दीदी?”

“और तुम? तुम अलग हो इस घर में? मत भूलो कि तुम इस घर की मालकिन हो। सबसे पहले तुम्हारा बर्थडे मनेगा!”

“मतलब तुमको आईडिया पसंद आया?”

“बहुत पसंद आया! लेकिन बर्थडे मत मनाओ प्लीज़!”

“ठीक है फिर! किसी का नहीं मनेगा!”

“ओह्हो तुम भी न!”

“हाँ - मैं भी न! मालकिन हूँ इस घर की। मेरा हुकुम मानना पड़ेगा सभी को!”

मैं मुस्कुराया।

“दोनों बच्चे कहाँ हैं?”

“सो रहे हैं - पुचुकी (लतिका) के कमरे में!”

“उनको देख लूँ?”

“मुझसे पूछोगे? अपने बच्चों को देखने के लिए?”

न जाने मन में क्या आया कि मैं रोने लगा। काजल ने मुझे अपने आलिंगन में बाँध लिया, और रोने दिया। न जाने कब तक रोया। लेकिन रोना तभी रुका जब नाक इस कदर जम गई कि उससे साँस आनी बंद हो गई और आँखों से आँसू सूख गए। जब काजल ने मेरा रोना बंद होते हुए महसूस किया तब वो बड़ी ममता से बोली,

“बस, बस! अब हो गया! रो लिए - तो दिल का दुःख कम गया। अब बस! अब आगे की सुध लो! धैर्य रखो। भगवान् सब ठीक करेंगे!”

“ओह काजल! यार मैं बिलकुल टूट गया हूँ! अकेला हो गया हूँ!”

“टूट गए हो - हाँ। लेकिन अकेले नहीं हुए हो। मैं हूँ न। बच्चे हैं। दीदी हैं।” वो मुझको समझाते हुए बोली, “हम अपनी अपनी तरीके से टूट गए हैं। लेकिन हमारा साथ तो बना हुआ है। है न? तो अकेले नहीं हैं हम! जब तक हम में से कोई एक भी है न, तब तक तुम अकेले नहीं होने वाले!”

काजल की बात पर मैंने कांपती आवाज़ में सांस छोड़ी। सच में - काजल के रहने से सम्बल तो है ही।

“मन अच्छा करो, और आ जाओ... बच्चों से मिल लो। कल उनके साथ खेलना! बड़ा अच्छा लगेगा। दोनों बहुत नटखट हैं!”

उसकी बात इतनी अच्छी थी कि मेरी मुस्कान खुद-ब-खुद आ गई।

बच्चों के कमरे में गया। दोनों बेसुध पड़े सो रहे थे। आभा को हलके हलके खर्राटे भी आ रहे थे - शायद थोड़ी सर्दी हो गई थी उसको।

“कितना कुछ मिस कर दिया मैंने!” दोनों को देखते हुए मैंने कहा।

“वो सब मत सोचो। यह सोचो कि आगे यह सब मिस न करना पड़े!”

बात सौ प्रतिशत सही थी। जो बीत गया, उसका कुछ किया नहीं जा सकता। हाँ, आगे वही सब फिर से न हो, यह सुनिश्चित किया जा सकता है।

“दोनों कितने प्यारे लगते हैं!”

“बहुत ही प्यारे हैं। जब घर में नहीं होते, तब घर सुनसान लगता है। और जब आ जाते हैं, तो पूरा घर गुलज़ार रहता है!”

हमारी बातें सुन कर लतिका की नींद थोड़ा कच्ची हो जाती है। वो अपनी उनींदी आवाज़ में बोलती है,

“अंकल, आपको निन्नी नहीं आ रही है?”

“अब आ जाएगी बेटू!” मैंने उसको चूमते हुए कहा, “अब आ जाएगी!”

“मैं आपको सुला दूँ?”

“नहीं मेरी बच्ची! लेकिन तुम सो जाओ! मैं भी सो जाऊँगा!”

“ओके!”

“कल मेरे साथ खेलोगी?”

“हाँ!” वो नींद में भी खुश होते हुए बोली, “आई वुड लव टू!”

“ठीक है बेटा,” मैंने उसके मुँह को चूमते हुए कहा, “थैंक यू! आई लव यू!”

आई लव यू टू!”

कह कर लतिका वापस सो गई। मैंने बारी बारी से दोनों बच्चों को चूमा, और कमरे से बाहर निकल आया। मन बहुत ही हल्का हो गया; शांत भी। काजल भी मुस्कुराते हुए मेरे पीछे बाहर आ गई। इतने महीनों में इतनी मनःशांति नहीं मिली।

देखा कि काजल रसोई की तरफ जा रही थी।

“क्या हुआ?”

“नहीं, कुछ नहीं। बस, थोड़ा रख रखाव कर लूँ!”

“कल आएगी न कामवाली?”

“हाँ!”

“तो उसके लिए कुछ छोड़ दो! तुम भी आराम किया करो न?” मैंने कहा।

“कॉफ़ी पियोगे?”

“अभी नहीं! बाद की बाद में देखेंगे!” मैं बोला, “आओ। मेरे साथ बैठो न कुछ देर?”

काजल मुस्कुराई, “ठीक है!”

कमरे में आ कर मैंने मद्धिम मधुर संगीत बजाया। बहुत दिन हो गए यह काम किये। करीब करीब ढाई बज गए थे। देर रात! ठंडक। मैंने रजाई खींची, और काजल को अंदर आने के लिए आमंत्रित किया। बहुत ही लम्बा अर्सा हो गया था काजल और मुझे साथ लेटे हुए। कैसी आत्मीयता, और कैसी अंतरंगता थी हमारे बीच - लेकिन अब!

बात सुनील से शुरू हुई - काजल को उसके बारे में चिंता थी। उसको कैंपस प्लेसमेंट से एक नौकरी मिली तो थी, लेकिन अमेरिका पर आतंकवादी हमलों के कारण, उसकी कम्पनी ने वो ऑफर वापस ले लिया था। हमको यहाँ दुःख तो हुआ, लेकिन यह भी मालूम था कि सुनील जैसे कैंडिडेट के लिए नया जॉब ऑफर लेना, कोई कठिन काम नहीं होगा। और वैसे भी, उसने कभी जॉब को लेकर चिंता नहीं दिखाई थी। चारों साल उसने कठिन परिश्रम किया था, कई सारे प्रोजेक्ट्स किए थे, वो क्लास टॉपर्स में एक था, और उसका रेज़्यूमे अपने सहपाठियों में सबसे मज़बूत था। इसलिए डरने वाली बात थी ही नहीं। यही सब बातें मैंने काजल को समझाईं।

मैंने उसको यह भी समझाया कि अगर इतनी ही बुरी किस्मत हुई उसकी कि उसको कैंपस से जॉब ऑफर न मिले, तो मेरी कंपनी है ही न! वहाँ काम कर ले! काजल को यह सुन कर संतोष हुआ। फिर बात माँ पर आ गई। उनके जीवन में किसी साथी की आवश्यकता पर भी हमने बात चीत करी। अभी तक मैंने बस एक बार ही माँ से यह बात कही थी, लेकिन माँ की प्रतिक्रिया ऐसी थी कि दोबारा कहने की मेरी हिम्मत नहीं हुई। लेकिन तब से अब तक परस्थितियों में बहुत परिवर्तन हो चुका था। हो सकता है कि अब - जबकि वो पहले के अपेक्षा अधिक शांत थीं, तो इस प्रस्ताव पर वो सकारात्मक प्रतिक्रिया देतीं।

“काजल?”

“हम्म?”

“तुम मुझसे शादी करोगी?”

“ओह अमर! अगर मेरी शादी तुमसे होगी न, तो मैं बहुत ही लकी होऊँगी!” उसने कहा, “लेकिन हमने इस बारे में बात करी है न!”

“हाँ!” मैंने बुझे मन से कहा।

“हे, ऐसे मत रहो अमर! मुझे तुमसे बहुत प्यार है अमर, बहुत ही! ये तुम जानते हो और मैं भी जानती हूँ! लेकिन शादी का नहीं मालूम!”

“पर क्यों?”

“क्योंकि मैं तुम्हारे लायक नहीं हूँ, अमर। इसलिए! मैं गंवार हूँ। तुम्हारा समाज में एक अलग ही मुकाम है - मेरा उस मुकाम से दूर दूर तक कोई सम्बन्ध ही नहीं है!”

मैं कुछ कहना चाहता था, कि उसने मुझे रोक कर कहना जारी रखा, “बीवी ऐसी चाहिए जो तुमको तुम्हारे मुकाम से आगे ले जाए - पीछे नहीं। मुझे न तो तुम्हारे तौर तरीके मालूम, और न ही बोलने का कोई ढंग ही मालूम! पुचुकी के स्कूल जा कर उसकी टीचर से बात करने में भी डर लगता है मुझे। ऐसे थोड़े न होना चाहिए बीवी को! समझा करो। कोई तो बराबरी हो!”

“काजल, अगर मेरा बिज़नेस हमारे बीच की दीवार है, तो मैं जॉब कर लेता हूँ!”

“हाँ, और अपने, देवयानी दीदी, डैडी जी, और दीदी के सपनों को पानी में बहा दो! ठीक है? सबको बहुत अच्छा लगेगा, और सबको संतोष मिलेगा - तुमको भी!”

“पर काजल?”

काजल कुछ पल के लिए कुछ नहीं बोली, फिर रुक कर कहती है, “अच्छा चलो! भूल जाओ कि मैंने यह सब कहा। मैं करूँगी शादी तुमसे!”

“सच में?”

“हाँ! क्यों नहीं! बीवी दिखाने के लिए थोड़े न होती है। बीवी तो जीवन साथी होती है!”

मैं मुस्कुराया। लेकिन अगले ही पल मेरे पूरे शरीर में अज्ञात भय की लहार दौड़ गई।

“तुम सीरियस नहीं हो न?”

“हूँ! क्यों?”

“काजल। मुझे लगता है कि मेरी पत्नियाँ मेरे कारन से जी नहीं पातीं।”

मैंने इतना कहा ही था कि एक झन्नाटेदार झापड़ मेरे गाल पर आ कर लगा। और अगले ही पल काजल आलिंगन में कस कर बाँध लिया।

“तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ऐसा सोचने की?” उसने मुझे डाँटा, “आइंदा ऐसा कहा न तो मुझसे बुरा कोई न होगा! गैबी दीदी का एक्सीडेंट, और देवयानी दीदी का कैंसर - तुम्हारे कारण नहीं था। यह हमारा दुर्भाग्य है कि उनको वो सब झेलना पड़ा और हमको भी। लेकिन यह भी तो देखो, कि वो दोनों चली गईं और तुम रह गए। तुम्हारा दुःख अधिक है कि उनका? वो दोनों तो मुक्त हो गईं।”

उसने मेरे गाल को सहलाया - जहाँ अभी अभी मुझे झापड़ लगा था।

“आई ऍम सॉरी! लेकिन मैं तुमसे उम्र में बड़ी हूँ! इसलिए मेरा हक़ है तुम पर, कि तुमको समझाऊँ, तुमको डांटूं - अगर तुम गलत हो! है कि नहीं? अब बस! ऐसी बकवास फिर मत सोचना।”

उसने कहा, और अपनी ब्लाउज़ के बटन खोलने लगी।

“आओ, अपने को शांत करो! और मुझे भी! बहुत दिन हो गए!”

पहले तो कुछ पल समझ नहीं आया कि क्या करूँ। फिर मैंने उसके स्तनों पर अपने हाथ रखे - ऐसे कि उसके चूचक मेरे उँगलियों के बीच फँस जाएँ। वो स्तंभित हो रहे थे।

“उम्म्म्म... आह... बहुत दिन हो गए!” काजल ने फुसफुसाते हुए कहा।

अंततः मैंने उसके एक चूचक पर अपना मुँह लगाया - सच में, बहुत ही अधिक दिन हो गए थे। कोई चार - साढ़े साल! मेरे बाद काजल ने किसी के साथ सेक्स नहीं किया। उसके चूचकों पर मेरे मुँह की हर क्रिया पर उसकी योनि लरज रही थी। हाँ, उसका दूध अवश्य ही मेरे मुँह में भर रहा था, लेकिन वो एक काम-वर्धक का कार्य कर रहा था। उधर काजल का हाथ मेरे पाजामे को ढीला करने में व्यस्त था। उसकी उँगलियों की छुवन से मेरा लिंग भी तेजी से आकार में बढ़ने लगा। डेढ़ साल हो गए थे मुझे भी सेक्स किए। सेक्स की याद आते ही मुझे आखिरी बार देवयानी के साथ अपने मिलन की घड़ी याद हो आई।

देवयानी की याद आते ही जो भी मूड था, सब रफू-चक्कर हो गया। लिंग जितनी तेजी से स्तंभित हो रहा था, उससे भी दोगुनी गति से शिथिल पड़ने लगा। सब धरा का धरा रह गया। मैं वापस रोने लगा। काजल समझ रही थी कि मुझे क्या हो रहा है। वो मुझे दिलासा भी दे रही थी, और अपने और मेरे कपड़े भी उतारती जा रही थी। शीघ्र ही हम दोनों पूर्ण नग्न हो कर रजाई के भीतर आलिंगनबद्ध हो कर लेटे हुए थे।

“अमर, मत रोओ! मैं हूँ न!” उसने मुझे धीरज बंधाया।

उसका हाथ वापस मेरे लिंग पर चला गया। मेरे गले से एक आह निकल गई। उसने लिंग पर मुट्ठी बाँध कर कामुकता से अपना हाथ फिराया। कुछ ही पलों में मेरे लिंग में जीवन पुनः लौटने लगा। कुछ देर तक वो ऐसे ही मुझे हस्तमैथुन का आनंद देती रही - उसने इस बात का ख़याल रखा कि बहुत न करे। अन्यथा स्खलन की सम्भावना बड़ी तीव्र थी। इतने महीनों बिना सेक्स के...

जब मैं समुचित रूप से तैयार हो गया, तब वो बोली,

“आ जाओ! मेरे ऊपर! सब मीठी बातें याद दिला दो मुझे!”

मैंने किया वो सब।

हमारा यह संसर्ग बेहद संछिप्त था, लेकिन भावनात्मक ज्वार से भरपूर था। हम दोनों के ही मन में वर्षों से दबी हुई कामुक ऊर्जा थी। जो तेजी से निकल गई। बमुश्किल दो तीन मिनट में ही। अवश्य ही शारीरिक संतुष्टि न मिली हो, लेकिन मानसिक और भावनात्मक संतुष्टि हम दोनों को ही मिली। काजल के शरीर की गुणवत्ता भी बढ़ गई थी। अब लगता था कि हाँ, वो कोई खानदानी स्त्री है। खान-पान, रहन सहन में आमूलचूल बदलाव से यह सब होता ही है।

जब हम दोनों संतुष्ट हो कर लेटे हुए थे, तब मैंने काजल को देखा। वो करीब चालीस साल की हो गई थी। लेकिन अपनी उम्र से कहीं कम लगती थी। और सुन्दर भी वैसी ही थी, जब वो पहली बार मेरे घर आई थी। नहीं - उससे भी अधिक सुन्दर। हमारी बच्ची के जन्म के बाद, इतने सालों तक सतत स्तनपान कराने से उसके स्तन थोड़ा बड़े हो गए थे। लेकिन बाकी शरीर थोड़ा छरहरा ही था। उसमें स्थूलता नहीं थी - न तो पेट निकला था, और न ही नितम्ब। XForum में फोटो सेक्शन में देसी ‘सुंदरियों’ के जैसे स्थूल शरीर होते हैं, वैसा तो उसका बिलकुल भी नहीं था। हाँ - लेकिन उसके शरीर के कटाव बड़े लोचदार थे। माँ उसके सामने कमउम्र लगती थीं क्योंकि उनके शरीर में वैसे कटाव नहीं थे... वैसे लोच नहीं थे।

कुछ देर हम वैसे ही आलिंगनबद्ध अवस्था में ही पड़े पड़े, गहरी नींद सो गए। और बहुत देर तक सोए। माँ समझ गईं कि हम दोनों के बीच कल रात क्या हुआ था। इसलिए उन्होंने हमको परेशान नहीं किया और लतिका और आभा को तैयार करने, और नाश्ता पकने का काम खुद ही कर लिया।

जब हम दोनों उठे, तब तक कोई ग्यारह बज गए थे। कमरे से बाहर आते हुए मुझे भी और काजल को भी शर्म आ रही थी। लेकिन उनका सामना तो करना ही था। माँ ने हमको देखा, तो मुस्कुराईं - वही पुरानी जैसी मुस्कान! मन खुश हो गया। इतने समय में उनको बहुत ही कम बार मुस्कुराते देखा था। और यह मुस्कान स्पेशल थी। मैं तैयार हो कर, नाश्ता कर के ऑफिस के लिए जब रवाना हुआ, तब तक लंच का समय हो गया। ऑफिस पहुँचा तो पाया कि सभी लोग अपने अपने काम में मशगूल थे। और तन्मयता से काम कर रहे थे।

अच्छे, परिश्रमी लोगों को टीम में लेने के यही परिणाम होते हैं। काम ईमानदारी से होता रहता है। सच में - मुझे काम के पीछे अपनी जान निकालने की कोई आवश्यकता नहीं थी। काजल से किया गया वायदा निभाने का एक और कारण मिल गया। मन ही मन मैंने एक नोट बनाया कि कल या अगले दिन, पूरे ऑफिस को लंच मैं कराऊँगा - कहीं बाहर अच्छे होटल में ले जा कर।

मेरे जाने के बाद माँ ने काजल को घेर लिया।

“काजल, बेटा, तुम अमर से शादी क्यों नहीं कर लेती! तुम दोनों साथ में कितने सुन्दर, कितने सुखी लगते हो! पहले भी मना कर चुकी हो। लेकिन क्या तुम देखती नहीं, कि किस्मत ने हम दोनों के परिवारों का एक होना तय कर रखा है?”

“दीदी,” काजल ने बड़े प्रेम से कहा, “तुम्हारी बहू बनना तो बहुत सौभाग्य की बात है। अगर वो होता है, तो मैं सबसे लकी औरत होऊँगी दुनिया की। लेकिन मैं ये कर नहीं सकती। सही नहीं होगा!”

“क्या तुम अमर से प्यार नहीं करती?”

“बहुत करती हूँ! इस बारे में कभी शक न करना दीदी। लेकिन,” और फिर काजल का वही पुराना गाना शुरू हो गया, जो उसने मुझे सुनाया था रात में।

“काजल, इन सब बातों से मेरा विचार नहीं बदलता। तुम बहुत अच्छी हो, और बहुत सुन्दर भी हो! अमर भी बहुत लकी होगा अगर तुम उसकी पत्नी बनो। दोनों के दो तीन बच्चे भी हो सकते हैं।”

“दीदी!”

“क्या दीदी? अब देखो न... सुनील की पढ़ाई पूरी होने वाली है। नौकरी करने लगेगा वो जल्दी ही। वो तो रहेगा अपनी बहू के साथ अलग। रह गए तुम और लतिका। यहीं रह जाओ। इसी घर में। हमेशा। तुम्हारा घर है। इसी को गुलज़ार कर दो। नन्हे नन्हे बच्चों की किलकारियों से सजा दो!”

“दीदी, तुम बहुत अच्छी हो। इसीलिए तो आ गई यहाँ भागी भागी! तुमको छोड़ कर जाने का मेरा मन तो नहीं है। सुनील को कहीं रहना हो रहे! उसकी बीवी उसी को मुबारक। मैं और तुम काफी हैं!” काजल हँसते हुए बोली, “लेकिन यार ये शादी वाली बात न बोलो। अमर के पाँवों की चक्की नहीं बनना मुझे।”

माँ ने भी बहुत तूल नहीं दिया इस बात पर। शादी करना या न करना, एक बेहद व्यक्तिगत निर्णय होता है। इसको ज़ोर जबरदस्ती से नहीं करवाया जा सकता।

“देख लो! मैं तो केवल समझा सकती हूँ। बाकी तो सब तुम्ही दोनों पर है। लेकिन हाँ - अगर तुम दोनों शादी करना चाहोगे तो याद रखना कि मेरा आशीर्वाद है। और मुझे बहुत ख़ुशी होगी उस दिन!”

“मेरी छोड़ो दीदी, अपनी बताओ! तुम क्या सोचती हो शादी करने के बारे में?”

“पागल हो गई है क्या? मैं अब दादी माँ हूँ। इस उम्र में कोई शादी करता है क्या?”

“दीदी, दादी तो तुम हो, लेकिन तुम्हारी उम्र नहीं हुई है कुछ! आज कल तो कितनी सारी औरतें पैंतीस के बाद शादी करने लगी हैं।”

“नहीं रे! यह सब मैं नहीं जानती।”

“दीदी, मैं तुमसे बहस नहीं कर सकती। तुम्हरी बहुत इज़्ज़त करती हूँ। लेकिन, शरीर की ज़रूरतें होती हैं। उनकी संतुष्टि भी ज़रूरी है। तुम्हारी एक और बच्चे की चाहत के बारे में पता है मुझको। अगर कोई अच्छा आदमी मिल जाय, तो क्यों न उससे शादी कर लो?” काजल ने सजींदगी से कहा, “तुम्हारी माँग फिर से सिन्दूर से सज जाय, तुम्हारे चेहरे पर फिर से वही मुस्कान आ जाय, तो क्या बात बने!”

“मत देख सपने काजल। वो सब कुछ ‘उन्ही’ के साथ चला गया बेटा। सब ‘उन्ही’ के साथ चला गया!”


***
जब दुख बार बार आता है वो भी एक ही दुख, जीवन साथी को खोने का तो इंसान अपने जीवन और अपने साथियों दोनो से विमुख हो जाता है। वही हाल अमर के साथ हो रहा है। अगर काजल ना होती तो घर, मां और बच्चे तीनों बिखर जाते। शायद काजल के समझने से कुछ अकल आए अमर को। मां दूसरी शादी के लिए मानेगी या अपने पति की यादों के सहारे ही जिंदगी गुजर करेगी ये भी एक बड़ा प्रश्न है। इंसान दुख और कठनाइयों से चुप का भागने लगता है तो उसको लगता है की उसने अपने आप को बचा लिया मगर इस छुपाने के चक्कर में जो सुख जैसे बच्चो का बचपन, परिवार के साथ हसी मजाक के पल जो को देता है उस नुकसान की भरपाई कोई नही कर पाता है। बेहतरीन अपडेट।
 
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फिर स्नेह लेप से वापस अपनी दुनिया में आना
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मेरे जीवन का एक अंश जैसे मेरे आँखों के सामने चलचित्र के भांति गुजर रहा था l
बहुत ही भावनात्मक प्रस्तुतिकरण थी
धन्यवाद भाई, बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🙏
सभी को रिकवरी की आवश्यकता है। बस वही दिखाया है यहाँ।
 
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जब दुख बार बार आता है वो भी एक ही दुख, जीवन साथी को खोने का तो इंसान अपने जीवन और अपने साथियों दोनो से विमुख हो जाता है। वही हाल अमर के साथ हो रहा है। अगर काजल ना होती तो घर, मां और बच्चे तीनों बिखर जाते। शायद काजल के समझने से कुछ अकल आए अमर को। मां दूसरी शादी के लिए मानेगी या अपने पति की यादों के सहारे ही जिंदगी गुजर करेगी ये भी एक बड़ा प्रश्न है। इंसान दुख और कठनाइयों से चुप का भागने लगता है तो उसको लगता है की उसने अपने आप को बचा लिया मगर इस छुपाने के चक्कर में जो सुख जैसे बच्चो का बचपन, परिवार के साथ हसी मजाक के पल जो को देता है उस नुकसान की भरपाई कोई नही कर पाता है। बेहतरीन अपडेट।
बहुत बहुत धन्यवाद मेरे भाई 🙏🙏
जी -- अमर के हृदय में तो त्रिशूल चुभ गया था।
उसका घाव भरने में समय तो लगना ही है। देखते हैं कि अमर पर काजल से किये गए वायदे का क्या असर होता है।
वैसे शुरुआत सकारात्मक हुई है 😊
 
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KinkyGeneral

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अंतराल - त्रिशूल - Update #1


जब हम प्रसन्न होते हैं, तरक्की करते हैं, सुखी रहते हैं, तो ऐसा लगता है कि दिन पंख लगा कर उड़े जाते हैं! हमारी शादी को हुए दो साल हो गए, और कुछ ही महीनों में आभा भी दो साल की हो गई। मस्त, चंचल, और बहुत ही सुन्दर सी, प्यारी सी बच्ची! गुड़िया जैसी बिलकुल! मीठी मीठी बोली उसकी। पहले तो हम सभी निहाल थे ही, अब तो और भी हो गए थे। प्यारी प्यारी, भोली भली अदाएँ दिखा दिखा कर आभा हम सबको अपना मुरीद बनाये हुए थी। हमने इस अंतराल में बहुत ही कम छुट्टियाँ ली थीं, और ऑफिस में भी दिसंबर की तरफ आते आते काम कम जाता था।

इसलिए हमने निर्णय लिया कि इस बार विदेश यात्रा पर चलते हैं। कहाँ चलें? यह तय हुआ कि ऑस्ट्रेलिया जायेंगे! ऑस्ट्रेलिया सुनने पर लगता है पूरा देश घूम लेंगे! लेकिन ऑस्ट्रेलिया देश नहीं, एक पूरा महाद्वीप है! पूरा ऑस्ट्रेलिया घूमने के लिए महीनों लग जाएँ! तो हम ऑस्ट्रेलिया में क्वीन्सलैण्ड गए। क्वीन्सलैण्ड ऑस्ट्रेलिया के उत्तरपूर्व में स्थित एक बड़ा राज्य है। और विश्व विख्यात ‘ग्रेट बैरियर रीफ़’ यहीं स्थित है!

क्वीन्सलैण्ड की सामुद्रिक तट रेखा कोई सात हज़ार किलोमीटर लम्बी है! समुद्र और सामुद्रिक जीवन के जो नज़ारे वहाँ देखने को मिलते हैं, पृथ्वी पर और कहीं संभव ही नहीं! सचमुच - ऐसा लगता है कि जैसे जादुई सम्मोहन है समुद्र में! असंख्य छोटे छोटे, बड़े बड़े टापू, साफ़, सफ़ेद रेत, नारियल के झूमते हुए पेड़, साफ़ समुद्र, रंग बिरंगे कोरल, असंख्य मछलियाँ, व्हेल, डॉलफिन, सील, नानाप्रकार के जीव जंतु, और ट्रॉपिकल रेन-फारेस्ट! ओह, लिखने बैठें, तो पूरा ग्रन्थ लिख सकते हैं क्वीन्सलैण्ड पर! भारत में हमने जंगल देखे हुए थे और हमको नहीं लगता था कि बाघ या हाथी को देखने जैसा रोमांचक अनुभव और कहीं मिल सकता है, इसलिए हमने केवल समुद्र पर फोकस किया।

अंडमान की ही भांति, हमने क्वीन्सलैण्ड में स्कूबा-डाइविंग का अनुभव किया। क्योंकि ग्रेट बैरियर रीफ एक संवेदनशील स्थान है, तो हम जैसे नौसिखिया डाइवर्स एक सुनिश्चित स्थान पर ही डाइव करते हैं। लेकिन वो छोटी सी जगह भी इतनी सुन्दर है कि क्या कहें! उम्र भर वो चित्र, वो अनुभव दिमाग में ताज़ा रहेंगे! चूँकि मैं और डेवी, दोनों को ही तैराकी का अनुभव था, और हम दोनों को ही उसमें आनंद आता था, इसलिए हमको बहुत ही मज़ा आया! आभा को भी होटल के पूल में पहली बार तैरने का अनुभव दिया। उसके चेहरे के भाव देखते ही बनते थे। अपनी टूटी फूटी भाषा में उसने बताया कि उसको बहुत मज़ा आ रहा है। दिल खुश हो गया कि मेरी बिटिया को भी तैराकी सीखने और तैराकी करने में मज़ा आएगा!

लोग ऑस्ट्रेलिया का नाम सुन कर तुरंत ही कंगारूओं के बारे में सोचने लगते हैं। लेकिन सच में, वहां के लोग कंगारूओं को सर का दर्द समझते हैं। जैसे हमारे यहाँ नीलगाय खेती का आतंक है, वैसे ही कंगारू आतंक हैं। खेती में, और सड़क पर भी! न जाने कितने ही एक्सीडेंट्स होते हैं उनके कारण। इसलिए कई स्थानों पर कंगारू का मीट खाया जाता है (अभी भी खाते हैं या नहीं - कह नहीं सकता! यह सब थोड़ा पुरानी बातें हैं)! खैर, कुल मिला कर हमारा दो हफ़्तों का ऑस्ट्रेलिया भ्रमण बहुत ही आनंद-दायक रहा।


**


इसी बीच ऐसी घटना हो गई जिसकी उम्मीद नहीं थी। काजल की अम्मा की तबियत कुछ अधिक ही खराब हो गई। वो अकेली ही रहती थीं, और उनकी देखभाल के लिए कोई भी नहीं था। जिन पुत्रों की चाह में उन्होंने जीवन स्वाहा कर दिया, जिनकी पढाई लिखाई में उन्होंने अपना सर्वस्व आग में झोंक दिया, वही लड़के (पुत्र) उनकी ज़रुरत पड़ने पर उनको लात मार कर आगे चल दिए। काजल ने जब यह सुना, तो वो पूरी तरह से घबरा गई। उसने निर्णय लिया कि वो अपनी अम्मा की सेवा करने वहां, अपने गाँव चली जाएगी। लेकिन इस बात का लतिका की पढ़ाई लिखाई पर बहुत ही बुरा असर पड़ता - गाँव में कोई ढंग का स्कूल नहीं था। यहाँ वो अच्छा सीख रही थी, लेकिन वहां उसका न जाने क्या होता! और फिर खान पान, रहन सहन - हमारी मेहनत पर पानी फिरने वाला था।

लेकिन फिर सवाल तो काजल की माँ का था। माँ तो एक ही होती है। भले ही कैसी भी हो? और फिर काजल का तो दिल ही ऐसा था कि वो हम जैसे लोगों के लिए, जिनसे उसका न तो कोई नाता था, और न ही कोई सम्बन्ध, भागी भागी चली आई थी, तो अपनी माँ के लिए तो उसको जाना ही जाना था। माँ का दिल टूट गया - काजल से आत्मीयता तो थी ही, लेकिन लतिका के साथ उनका जो सम्बन्ध था, वो माँ बेटी से कैसे भी कम नहीं था। लेकिन अपनी बेटी के बगैर काजल वहाँ जाती भी तो कैसे? और माँ और डैड किस अधिकार से उसको या लतिका को अपने पास रोक पाते?

लिहाज़ा, काजल अचानक ही अपने गाँव चली गई। ऐसा नहीं है कि उसको इस बात में कोई आनंद आ रहा था, लेकिन वो भी क्या करती? संतान का दायित्व, संतान का कर्तव्य तो निभाना ही था न उसको! यह हमारे ऑस्ट्रेलिया से वापस आने के कुछ हफ़्तों बाद की बात है। मैंने भी एक दो बार काजल को रुक जाने को कहा, और उसको समझाया कि उसकी अम्मा को यहाँ दिल्ली ले आते हैं। वहां अच्छे अस्पताल में उनकी देखभाल हो सकती है। लेकिन काजल ने कहा कि उनका मरना निश्चित है, और वो अपने गाँव में ही अपना दम तोड़ना चाहती थी। अब इस बात पर हम क्या ही कर सकते थे?


**


इतने सालों की आनाकानी के बाद अंततः मैंने निश्चय कर ही लिया कि मैं ससुर जी की कंपनी में बतौर सी ई ओ ज्वाइन करूँगा। कंपनी का काम पटरी पर था, और एक जानकार निर्देशन में वो बहुत फल फूल सकती थी। ऐसे में मुझे कोई कारण नहीं दिख रहा था कि मैं क्यों न वहां काम करूँ। देवयानी मेरे निर्णय पर बहुत खुश हुई, और उसने मुझे बहुत बधाइयाँ भी दीं। ससुर ही ने मेरे ज्वाइन करते ही कंपनी छोड़ दी। उन्होंने रिटायरमेंट में थोड़ा व्यस्त रहने के लिए यह काम शुरू किया था, लेकिन अब जब मैं आ गया था, तब उनको बिना वजह मेहनत करने की आवश्यकता नहीं थी। कुछ ही दिनों में उन्होंने कंपनी भी मेरे नाम कर दी।

काम बहुत ही व्यस्त करने वाला था। लेकिन बड़ा ही सुकून भी था। अपना काम था, अपने तरीके से किया जा सकता था। नेटवर्क भी इतना बढ़िया था कि शुरुवाती दौर में छोटे छोटे प्रोजेक्ट और कॉन्ट्रैक्ट बड़ी आसानी से मिल रहे थे। उनके दम पर मैंने बड़े प्रोजेक्ट्स पर काम करना शुरू किया, और जल्दी ही कंपनी ने प्रॉफिट देना शुरू कर दिया। मुझको कंपनी से कोई लाभ या वेतन नहीं मिल रहा था - घर का खर्च इत्यादि सब देवयानी की सैलरी पर ही निर्भर था। किसी नए धंधे में तुरंत ही वेतन नहीं लिया जा सकता। सब कुछ री-इन्वेस्ट किया जाता है। तो फिलहाल वही चल रहा था। लेकिन कंपनी का वैल्युएशन हर तिमाही में बढ़ता जा रहा था। प्रॉफिटेबल वेंचर होने के अपने लाभ तो हैं!


**


मैं अपने व्यवसाय में बस रमा ही था कि एक दिन अचानक ही देवयानी ने कहा कि कुछ दिनों से न जाने क्यों उसको खाने पीने का मन नहीं कर रहा है। ऐसा नहीं था कि मैंने उसमें यह परिवर्तन नहीं देखा - अवश्य देखा। वो थोड़ी थकी थकी सी रहती, कम खाती! सोचा था कि शायद काम बढ़ा हुआ होने के कारण उसको यह अनुभव हो रहे हों। देवयानी ऐसी लड़की नहीं थी जो यूँ ही, आराम से एक जगह पर बैठी रहे। वो हमेशा से ही एक्टिव थी - शारीरिक रूप से भी, और मानसिक रूप से भी। और आभा के होने के बाद वो और भी एक्टिव हो गई थी। उसने पहले तो इसको सीरियस्ली नहीं लिया - बोली कि सर्दी जुकाम हुआ होगा। लेकिन जब मैंने और पूछा, तो वो बोली कि उसके स्टूल में भी थोड़े परिवर्तन दिखाई दे रहे थे। यह शंका वाली बात थी।

मैंने उसको कहा कि एक बार डॉक्टर से मिल ले। लेकिन फिर बात आई गई हो गई। लेकिन एक रात जब वो पानी पीने के लिए बिस्तर से उठी, तो उसको चक्कर सा आ गया और वो वापस बिस्तर पर बैठ गई। अब ये बेहद शंका वाली बात थी। मैंने सवेरे उठते ही उसको डॉक्टर के पास ले जाने की ठानी। डेवी अभी भी ज़िद किये हुए बैठी थी कि शायद कम खाने से कमज़ोरी हो गई होगी, लेकिन सबसे घबराने वाली बात यह थी कि उसने दस दिनों में ठीक से खाना नहीं खाया था। मुझको अब बेहद चिंता होने लगी थी। कहीं पीलिया तो नहीं था?

डॉक्टर के यहाँ कई सारे टेस्ट, स्कैनिंग, और बाईओप्सी करि गईं। मैं सोच रहा था कि बिना वजह यह सब नौटंकी चल रही है। लेकिन जिस डॉक्टर की देख रेख में यह ‘नौटंकी’ चल रही थी, उसने कहा कि उसको थोड़ा डाउट है, और उसी के निवारण के लिए वो यह सभी टेस्ट करवा रहा है। मैंने पूछा कि क्या डाउट है, तो उसने बताया कि उसको शक है कि देवयानी के पेट में कोई ट्यूमर है। ट्यूमर? यह नाम सुनते ही मेरा दिल उछल कर मेरे गले में आ गया।

‘हे प्रभु, रक्षा करें!’

पूरा समय वो देवयानी से पूछता रहा कि उसको पेट में दर्द तो नहीं। और वो बार बार ‘न’ में उत्तर देती।

मैं ऊपर ऊपर हिम्मत दिखा रहा था, लेकिन मुझे मालूम है कि मेरी हालत खराब थी। प्रति क्षण मैं यही प्रार्थना कर रहा था कि उसको कोई गंभीर रोग न हो!

फिर अल्ट्रासाउंड किया गया। उसमें साफ़ दिख रहा था कि देवयानी के पेट में सूजन थी, और उसका बाईल डक्ट जाम हो गया था! ट्यूमर तो था। इसी कारण से उसको भूख नहीं लग रही थी, और थकावट हो रही थी। बाईल डक्ट का जाम होना पैंक्रिअटिक कैंसर का चिन्ह है!

‘हे भगवान्!’

सी टी स्कैन में निश्चित हो गया कि ट्यूमर है, और पैंक्रियास में है। मतलब कैंसर है। पैंक्रिअटिक कैंसर, सभी कैंसरों में सबसे जानलेवा कैंसर है। अगर हो गया, तो मृत्यु लगभग निश्चित है।

‘यह सब क्या हो गया!’

पूरा दिमाग साँय साँय करने लगा। कोई क्या कह रहा है, क्यों कह रहा है, कुछ समझ में नहीं आ रहा था। पहले गैबी, और अब डेवी! ये तो अन्याय है भगवान्! सरासर अन्याय! ऐसा क्या कर दिया मैंने? इसको छोड़ दो प्रभु, मुझे ले लो। मेरी बच्ची की माँ छोड़ दो! उस नन्ही सी जान को किसके भरोसे छोड़ूँ? ऐसे मुझे बार बार बिना हमसफ़र के क्यों कर रहे हो प्रभु? ऐसे बार बार मुझे अनाथ क्यों बना रहे हो?

मैं दिखाने के लिए डेवी को हंसाने का प्रयास कर रहा था, लेकिन वो भी जानती थी कि मैं अंदर ही अंदर डर गया था। हमसफ़र से क्या छुपा रह सकता है भला? एकांत पा कर डेवी ने बड़े प्यार से मेरे गले में अपनी बाँहें डाल कर मेरे होंठों को चूमा, और कहा,

“मेरी जान, ये साढ़े तीन साल मेरी ज़िन्दगी के सबसे शानदार साल रहे हैं! मैं बहुत खुश हूँ! तुम गड़बड़ मत सोचो! मेडिकल फील्ड बहुत एडवांस्ड है! तुमको ऐसे नहीं छोडूँगी!”

वो यह सब कह तो रही थी, लेकिन मुझे उसकी बातों में केवल ‘अलविदा’ ही सुनाई दे रही थी। मेरी आँखों में आँसू आ गए। सारी मज़बूती धरी की धरी रह गई।

एक्स-रे में पता चला कि देवयानी के फेफड़ों के एक छोटे से हिस्से में कैंसर ट्यूमर के छोटे छोटे टुकड़े थे। मतलब यह स्टेज फोर कैंसर में तब्दील हो चुका था, और हमको मालूम भी नहीं चला! पैंक्रिअटिक कैंसर का इलाज स्टेज वन में हो जाय तो ठीक! स्टेज फोर का मतलब है, अब कुछ नहीं हो सकता।

इस बात पर मेरा दिल डूब गया। ऐसा लगा कि जैसे मुझे दिल का दौरा हो जाएगा! मन हुआ कि देवयानी से पहले मैं ही मर जाऊँ। दोबारा यह दर्द, यह दुःख - अब यह सब झेलने की शक्ति नहीं बची थी।

‘यह सब कैसे हो गया?’

‘फिर से!’

देवयानी ने इतने सालों में शराब की एक बूँद तक नहीं छुई थी। न ही वो सिगरेट पीती थी। वो नियमित व्यायाम करती थी, और तंदरुस्त थी। फिर भी! कैसे? अब इन सब बातों का कोई मतलब नहीं रह गया था। स्टेज फोर कैंसर! ओह प्रभु!

केवल एक ही दिन में मेरी हंसती खेलती दुनिया तहस नहस हो गई थी।

किस्मत ने कैसी क्रूरता दिखाई थी मेरे साथ! फिर से! जब लगा कि ज़िन्दगी पटरी पर आ गई, तब ऐसी दुर्घटना!!

काश कि ऊपर वाला मुझे उठा ले, लेकिन मेरी देवयानी को बख़्श दे! मेरी बच्ची को उसकी माँ के स्नेह से वंचित न होने दे! ओह प्रभु, प्लीज! मुझे देवयानी की बहुत ज़रुरत है! उसको वापस मत लो!


**


सच कहूँ - ये पूजा प्रार्थना - यह सब मन बहलाने का साधन है। कुछ नहीं होता इन सब से। जीवन पर मनुष्य का कोई वश नहीं होता - और यह बात ही परम सत्य है। हमको लगता है कि यह सब कर के हम खुद को जीवन की मार से बचा सकते हैं। लेकिन नहीं! कुछ नहीं होता - केवल क्षणिक मन बहलाव के अतिरिक्त!

देवयानी का कैंसर के साथ संघर्ष बेहद दुर्धुर्ष था। डॉक्टरों ने सुझाया कि ऑपरेशन कर के ट्यूमर तो हटाया जा सकता है, लेकिन स्टेजिंग हो जाने के कारण कीमो-थेरेपी करनी ही पड़ेगी। लेकिन मरता क्या न करता! देवयानी को मालूम था कि यह लड़ाई जीती नहीं जा सकती। लेकिन उसने जब मेरी मरी हुई हालत देखी, तो उसने ऑपरेशन के लिए हाँ कह दिया। चौदह घंटे चले ऑपरेशन के बाद ट्यूमर तो हटा दिया गया। कम से कम वो अब ढंग से खा तो सकती थी! कभी सोचा नहीं था कि ऐसा कहने, ऐसा चाहने की नौबत भी आ सकती है।

इस ऑपरेशन के बाद, जब उसके शरीर ने थोड़ा रिकवर किया, तब कीमो-थेरेपी शुरू हो गई। पाठको को यह ज्ञात होना चाहिए कि कीमो-थेरेपी बेहद कठिन चिकित्सा होती है। शरीर को लुंज पुंज करने के लिए यह पर्याप्त होती है। बेचारी नन्ही सी बच्ची अपनी माँ को ऐसी छिन्न अवस्था में देखती, तो समझ न पाती कि उसकी माँ के साथ क्या हुआ है! लेकिन आभा हमारे जीवन की रौशनी थी - उसको देख कर चाहे मृत्यु भी सामने खड़ी हो, होंठों पर मुस्कान आ ही जाती। देवयानी भी मुस्कुरा देती। और मेरी आँखों से बस, आँसू ढलक जाते! दुर्धुर्ष संघर्ष!

डेवी समझ रही थी कि कुछ लाभ नहीं होना। लेकिन वो बेचारी मेरे और आभा के लिए सब कुछ बर्दाश्त कर रही थी। उसको भी मेरे लिए, आभा के लिए जीने का मन था। लेकिन सब व्यर्थ सिद्ध हो रहा था। कभी कभी मन में यह प्रश्न उठता अवश्य है कि उसने ऐसा क्या किया कि वो ऐसे झेले! शायद मुझसे शादी करने का गुनाह! और क्या कहा जा सकता है? मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे मैं किसी दलदल में फंस गया हूँ, और वो मुझे धीरे धीरे लील रहा है! डेवी मर रही थी, और उसके साथ हर दिन, हर पल मैं मर रहा था। खुद को काम में व्यस्त रख कर मैं दुःख की तरफ पीठ कर के खड़ा तो होता, लेकिन फिर भी दुःख का प्रत्येक वार सीधे दिल पर आ कर लगता।

हाँ - यह एक संघर्ष था। लेकिन ऐसा कि जिसमें विजेता पहले से ही निश्चित था।

आखिरी दिनों में डॉक्टरों ने सुझाया कि कोई अल्टरनेटिव दवाओं को आज़मा लें! लेकिन फ्राँस के डॉक्टरों ने कहा, कि देवयानी के शरीर को प्रयोगशाला के जैसे इस्तेमाल न किया जाए। उसको थोड़ी डिग्निटी दी जाय। और अब केवल उपशामक चिकित्सा ही करी जाय तो बेहतर। उसको कोई तकलीफ न हो, बस इस बात का ध्यान रखा जाए। थोड़ी बहुत - जो भी ख़ुशी दी जा सकती है, दी जाए। दिल टूट गया यह सुन कर!

कैसी ज़िंदादिल लड़की है मेरी देवयानी और कैसी हो गई! उसकी छाया भी ऐसी कांतिहीन नहीं थी जैसी कांतिहीन वो हो चली थी! कैसी सुन्दर सी थी वो! और कैसी हो गई! लेकिन इस समय मेरी बस एक ख्वाईश थी - कैसे भी कर के वो रह जाए। जीवन में कोई तमन्ना नहीं बची थी।

हमको मालूम था कि हर अगले दिन उसका दर्द, उसकी तकलीफ बढ़ती जाएगी। इसलिए सभी को उससे मिलने बुला लिया गया। देवयानी बड़ी ज़िंदादिली से सभी से मिली। सबसे मुस्कुरा कर बातें करी उसने। लेकिन हर मिलने वाले का दिल टूट गया।

आखिरी बार उसने जब बुझती आँखों से मेरी तरफ देख कर “आई लव यू” कहा, तो मेरा दिल छिन्नभिन्न हो गया। वो दर्द आज भी महसूस होता है मुझको। लेकिन एक सुकून भी है कि मुझे देवयानी जैसी लड़की का हस्बैंड बनने का सौभाग्य मिला!

आखिरी तीन दिन वो आयोजित कोमा में रही! शरीर में कोई हरकत नहीं। बस ऑक्सीजन का रह रह कर टिक टिक कर के आने वाली आवाज़! मॉनीटर्स का बीप बीप! ओह, कितना भयानक मंज़र था वो! कितनी सुन्दर लगती थी वो - और अब - उसकी त्वचा काली पड़ गई थी, और सिकुड़ गई थी। उसको उस अवस्था में देख कर मैंने वो किया, जो मैं अपने सबसे भयावह सपने में भी करने का नहीं सोच सकता था। और वो था उसके मृत्यु की प्रार्थना।

ऐसे कष्ट से तो मृत्यु ही भली है!

तीन दिनों बाद देवयानी चली गई!

कैंसर के संज्ञान से मृत्यु तक केवल अट्ठारह हफ्ते लगे! बस! क्षण-भंगुर! और वो बस छत्तीस साल की थी! बस! हमारा पूरा परिवार उस दिन वहाँ उपस्थित था। मेरे डैड अभी भी किसी करिश्मे की उम्मीद लगाए बैठे थे। वो बेचारे इसी बात से हलकान हुए जा रहे थे कि उनका चहेता बेटा एक बार फिर से वही पीड़ा, वही कष्ट झेल रहा था, जो उसने कुछ वर्षों पहले झेला था। वो हमारे सामने कभी नहीं स्वीकारेंगे, लेकिन उनको देवयानी से अगाध प्रेम था। वो न केवल उनकी पुत्रवधू थी, बल्कि उनकी पोती की माता भी थी और एक तरह से अपनी पुत्री से बढ़ कर थी। देवयानी ने ऐसे ऐसे अनमोल तोहफे उनको दिए थे, कि उनका दिल भी टूट गया था। आभा उनके जीवन का केंद्र बन गई थी। और उसकी मम्मी के जाने की बात सोच कर वो हलकान हुए जा रहे थे। यह सब बहुत अप्रत्याशित सा था। देवयानी उनके लिए ‘श्री’ का स्वरुप थी। उसके आने के बाद से हमारे घर में कितनी सम्पन्नता, कितनी ख़ुशी आई थी कि कुछ कहने को नहीं! कुछ न कुछ कर के वो भी देवयानी से भावनात्मक तौर पर बहुत मज़बूती से जुड़ गए थे।

उसी दिन मैंने देवयानी की आखिरी क्रिया संपन्न कर दी।

इस बार किसी में हिम्मत नहीं हुई कि मुझे किसी तरह की कोई स्वांत्वना दे। क्यों मुझे ऐसा दंड मिला - वो भी दो दो बार, इसका उत्तर मुझे मिल ही नहीं रहा था। क्या मेरे में ही कोई खोट था? कि मेरी वजह से मेरे जीवन में आने वाली लड़कियों का जीवन ऐसे कम हो जा रहा था? संभव है न?

दिल टूट चुका था और जीने की आस भी छूट गई थी। लेकिन मेरे भाग्य में जो दंड लिखा था, अभी समाप्त नहीं हुआ था।

देवयानी की मृत्यु के बाद डैड का दिल भी टूट गया। वो एक भयंकर अवसाद में चले गए थे। उसकी मृत्यु के कोई एक महीने बाद उनको दिल का दौरा पड़ा। वो बेचारे बिस्तर पर आ गए। उनको दिल्ली लिवा लाया मैं, कि माँ अकेले उनकी देखभाल नहीं कर सकतीं! उन बेचारी का इन सब में क्या दोष? लेकिन बात इतने में सुलझ जाती तो क्या दिक्कत थी। तीन महीने बाद उनको एक और दिल का दौरा पड़ा। और इस बार उसने वो हासिल कर लिया, जो पहली बार में उसको हासिल नहीं हुआ था। डैड भी चल बसे!

भाग्य ने मेरे हृदय में त्रिशूल भोंक दिया था - पहले गैबी, फिर देवयानी और फिर डैड! तीन मेरे सबसे अज़ीज़ - और तीनों जाते रहे! देवयानी से बिछुड़ने के केवल चार महीनों में डैड भी चले गए। वो बस पचास साल के थे।

भाग्य ने मेरे किये किसी पाप का बेहद ख़राब दंड दिया था मुझको।

अब मेरे दिल में एक डर सा बैठ गया था - ‘अगला कौन होगा’ - मैं अक्सर यही सोचता! माँ? ससुर जी? आभा? ओह प्रभु! कैसे सम्हालूँ इन सभी को? मैं तो नहीं मर सकता - नहीं तो आभा को कौन देखेगा? और माँ - वो अवश्य ही मेरी माँ थीं, लेकिन उनका भोलापन ऐसा था कि वो भी एक बच्चे समान ही थीं। ऐसी खुश खुश रहने वाली माँ ऐसे अचानक ही विधवा हो गईं। उनके जीवन के रंग यूँ ही अचानक से उड़ गए! सच में, अब मुझे उनकी बेहद चिंता होने लगी थी। कभी सोचा भी न था कि मैं माँ की चिंता करूंगा! उनकी कोई उम्र थी यह सब झेलने की? उफ़!

माँ एक ज़िंदादिल महिला थीं। उनके अंदर जीने की, ज़िन्दगी की प्रबल लौ थी। डैड और माँ एक तरह से परफेक्ट कपल थे - जीवन से भरपूर! लेकिन अब - अपने लगभग अट्ठाईस साल के जीवन साथी को यूँ खो देना, उनके लिए बहुत बड़ा सदमा था। और इस सदमे से दो चार होना उनके लिए आसान काम नहीं था। इतनी कम उम्र में उनकी शादी हुई थी, और तब से डैड उनके एकलौते सहारा थे। वो कहते हैं न - वन एंड ओन्ली वन! उनका पूरा संसार! बस, वही थे डैड उनके लिए। कोई कहने की आवश्यकता नहीं कि डैड के जाने के बाद माँ एक गहरे अवसाद में चली गईं! उस ज़माने में मानसिक तकलीफों को इतना गंभीरता से नहीं लिया जाता था, जितना कि आज कल है। लेकिन मुझे लगा कि उनको डॉक्टर को दिखाना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि माँ भी डैड के पीछे चल बसें! इसलिए माँ को एक बढ़िया मनोचिकित्सक की देख रेख में रख दिया। रहती वो मेरे - हमारे साथ थीं - लेकिन उनका मन शायद डैड के साथ ही कहीं चला गया।

माँ बहुत घरेलु किस्म की महिला थीं। डैड भी वैसे ही थे। वो ही माँ की सभी आवश्यकताओं की पूर्ती करते थे। उनके लिए माँ की छोटी छोटी कमियाँ ही उनका सौंदर्य थीं। वो उनके लिए छोटे छोटे, रोमांटिक तोहफे लाते थे। उनका मन बहलाते थे। उनको कविताएँ सुनाते थे। और माँ में ही खोए रहते थे - ऐसे कि जैसे धरती पर उनके लिए अन्य किसी महिला का कोई वज़ूद न हो! माँ उनका प्रेम थीं, और वो माँ के!

डैड के बिना जीवन कठिन था। बयालीस की उम्र में विधवा होना - यह एक कठिन चुनौती है। किसी के लिए भी। उस सच्चाई से दो चार होना उनके लिए संभव ही नहीं हो रहा था। सामान्य दिन वो जैसे तैसे बिता लेतीं - लेकिन त्यौहार, जन्मदिन, सालगिरह - यह उनको बड़ा सालता। इन सबके कारण उनको डैड की बड़ी याद आती। दीपावली में वो दोनों सम्भोग करते - लेकिन अब उसी दीपावली के नाम पर उनको अवसाद हो आता। उनके चेहरे की रंगत उड़ जाती।

वो रंग बिरंगी साड़ियाँ पहनतीं। खूब सजतीं - मेकअप नहीं, बल्कि गजरा, काजल, बिंदी इत्यादि से। उतने से ही उनका रूप ऐसा निखार आता कि अप्सराएँ पानी भरें उनके सामने! लेकिन अब तो उनको रंगों से ही घबराहट होने लगी थी। बस दुःख का आवरण ओढ़े रहतीं हमेशा। होंठों पर लाली, और आँखों में काजल लगाने के नाम पर वो दुखी हो जातीं। हमारे लाख कहने पर भी उनसे सजना धजना न हो पाता। वो घर से बाहर भी नहीं निकलती थीं। बस डॉक्टर के पास जाते समय, और मुँह अँधेरे वाकिंग करते समय ही वो बाहर निकलती थीं।

कोई तीन महीने हो गए थे अब डैड को गए हुए। मेरी हिम्मत जवाब देने लगी थी।

कभी कभी मन में ख़याल आता कि क्यों न माँ की शादी करा दी जाए। विधवा होना कोई गुनाह नहीं। माँ को खुश रहने का पूरा हक़ था। लेकिन फिर यह भी लगता कि इतनी जल्दी क्या माँ किसी और को अपनाने का भी सोच सकती हैं? मुश्किल सी बात थी। लेकिन कोई बुरी बात नहीं।

उनको अकेली क्यों होना चाहिए? इस बात का कोई उत्तर नहीं था। अगर कोई ऐसा मिल जाए जो माँ को भावनात्मक रूप से सम्हाल सके, उनको प्रेम कर सके, उनके उदास वीरान जीवन में कोई फिर से रंग भर सके, तो मुझे वो व्यक्ति मंज़ूर था। मैं उदास था, और खुद भी डिप्रेशन में था; लेकिन माँ को देख कर मैं अपना ग़म भूल गया। और फिर मेरे सर पर आभा और बिज़नेस की ज़िम्मेदारी भी थी। उधर ससुर जो भी देवयानी के जाने के बाद से बेहद दुखी रहने लगे थे। एक और बाप न चला जाय कर के एक और डर मेरे मन में समां गया था। वो तो भला हो जयंती दी का, जिन्होंने कुछ समय के लिए आभा के पालन की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले ली थी। लेकिन वो बच्ची उनकी परमानेंट ज़िम्मेदारी नहीं हो सकती थी।

इस समय बस यही दो तीन ख़याल मन में रहते - कैसे भी कर के माँ बहुत दुखी न हों, और आभा की परवरिश ठीक से हो। कहाँ कुछ ही दिनों पहले मेरी पूरी ज़िन्दगी कैसी खुशहाल थी, और कहाँ अब सब कुछ पटरी से उतर गया था।

उसी बुरी दशा में मुझे फिर से काजल की याद आई। काजल - मेरे जीवन का लौह स्तम्भ! मेरा निरंतर सहारा।


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avsji, rula diya, dil tod kr chaknachoor kr diya
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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avsji, rula diya, dil tod kr chaknachoor kr diya
Sorry brother
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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bhala kaise na roye amar, jab pathak is dukh se baahr ni nikal pa raha

दुःख हुआ है तो सुख भी आएगा 🤗
 

snidgha12

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बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

सोचा था, कथानक पढ़ कर पुनः मौन होकर पलायन कर लेंगे परन्तु पिछले कुछ नवीन अपडेट पढ़कर अपने आपको रोक नहीं पाए

और जब कथा और कथानक १०० वें पृष्ठ तक पहुंचने को है आप श्री avsji भी कथा को रोचक और मनोरंजक बनाने में सफल हो गए हैं। कथा अब अपने आंग्ल भाषा के मूल कथानक कि छाया से मुक्त होकर नवीन पड़ावों कि ओर बढ़ रहा है रोचकता और बढ़ रही है। कथाकार को बहुमान
 
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