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काफी दिनों बाद xforum पर एक्टिव हुआ। आते ही सबसे पहले आपकी कहानी पढ़ ली। Avsji में आपका प्रशंसक हूं।
१००वें पृष्ठ तक पहुंचने पर कथा एवं कथाकार avsji को बहुमान एवं हार्दिक शुभकामनाएं...
शतकीय अभिनंदन
सुनील ने पूरे घर का कायाकल्प ही कर दिया और सबकी खुशियां भी लौटा लाया। बच्चे भी खुश, काजल और मां भी खुश और इस सबकी वजह से अमर भी खुश। मगर एक प्रोब्लम है अब सुनील को प्यार हो गया है मां से और शायद तब से जब से उसने मां और बाबूजी को एक साथ देखा था और उसके बाद मां उसके साथ सोई थी। अब देखना है की वो अपना इजहार कैसे करता है और मां कैसे रिएक्ट करती है। बहुत ही सुंदर अपडेट।अंतराल - स्नेहलेप - Update #6
अगली दोपहर :
आज शनिवार था - मेरे ऑफिस में छुट्टी का दिन। कुछ महीने पहले तक मैं शनिवार और रविवार दोनों ही दिन काम करता रहता था, लेकिन अब नहीं। तो उन तीनों की मैटिनी गपशप सभा में मैं भी शामिल हो गया।
वैसे तो जश्न-ए-गपशप मनाने सभी माँ के कमरे में जमा होते थे, लेकिन आज चूँकि अधिक लोग थे, इसलिए हम सभी कॉमन हॉल में बैठे थे। दोनों बच्चे कुछ न कुछ खेलने में व्यस्त थे, और रह रह कर चिल्ल पों मचा रहे थे। अपने परिवार को यूँ साथ में देख कर बहुत सुकून का अनुभव हो रहा था मुझको। कुछ शुरुआती बातों के बाद, हमारी चर्चा जल्द ही रिलेशनशिप और शादी के विषय पर आ कर रुक गई। काजल और माँ मेरे सामने इसकी बातें नहीं करते थे, क्योंकि मेरे लिए यह थोड़ा दुःख साधक विषय था! हाँलाकि अब मैं पहले की भांति प्रतिक्रिया नहीं देता था, लेकिन फिर भी, इस विषय को मेरे सामने अवॉयड ही किया जाता था।
लेकिन आज इस पर खुले आम चर्चा हो रही थी। और मज़े की बात यह थी कि इस चर्चा में मैं बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहा था।
“सुनील,” मैंने उसको छेड़ते हुए कहा, “यार, अब तो तुम साढ़े पाँच लाख रुपया कमाने जा रहे हो! तो भई, उसको खर्च करने वाली भी तो चाहिए न?”
[सुधी पाठक इस बात का संज्ञान लें, कि उस समय का साढ़े पाँच लाख, आज के बीस लाख के बराबर है - केवल इन्फ्लेशन एडजस्ट कर के! आज भी ढेरों आईआईटी स्नातकों को इतनी सैलरी नहीं मिलती!]
“क्या भैया?!” सुनील थोड़ा शर्मिंदा होते हुए बोला।
“अरे, सुनो तो पूरी बात! तुम्हारा खर्चा तो लाख - दो लाख में निकल जायेगा। फिर बचे हुए पैसों का क्या करोगे?”
“क्या करेगा,” माँ ने कहा, “सेव करेगा न! अपने बच्चों के लिए। अपने लिए!”
“हाँ - लेकिन बच्चों से पहले बीवी भी तो चाहिए न माँ?” मैं विनोद के मूड में था, “हवा से थोड़े न टपकेंगे बच्चे!”
मेरी बात पर काजल ठठा कर हँसने लगी। उधर सुनील और भी अधिक शर्माने लगा।
“अभी तो इतना शर्मा रहा है... और हम दोनों को दिन भर लंबे लम्बे किस्से सुनाता रहता है!” काजल ने कहा।
“अरे, ऐसा है क्या? तो कोई है नज़र में?” मैंने उसे चिढ़ाया।
सुनील मुस्कुराया। उसने न तो इकरार किया, और न ही इनकार किया! बल्कि उसने आगे जो कहा, उसने पूरी चर्चा को एक अलग ही दिशा दे दी,
“भैया, हम सब... मेरा मतलब है कि हम चारों को शादी कर लेनी चाहिए।”
उसके कहने का अंदाज़ ऐसा था कि हम सभी एक पल के लिए खामोश हो गए, “आपको भी...” [उसने मेरी ओर इशारा किया], “आपको भी...” [उसने माँ की ओर इशारा किया], “... और अम्मा तुमको भी!”
माँ चुप रही, साथ ही मैं भी। गैबी, देवयानी, और डैड की याद बिजली की रफ़्तार से दिमाग में कौंध गई।
“अरे,” काजल ने मजाकिया अंदाज में कहा, “अब मुझे इस बात में घसीट रहे हो! हम तो तेरे बारे में बात कर रहे थे न! उसका जवाब दे पहले! बात को मत पलट!”
“और हाँ,” मैंने जैसे तैसे दुःख का कड़वा घूँट पी कर, विनोदपूर्वक कहा, “यह मत भूलो, कि हम सभी शादी-शुदा ज़िन्दगी का आनंद ले चुके हैं! अब तो तुम्हारी बारी है भई!”
“ऐसा नहीं है भैया! हाँ आपकी ठीक है! लेकिन हम सभी को खुश रहने का हक़ है!”
“अरे हमारे बच्चे खुश रहें, तो हम भी हैं!” काजल बात को सम्हालते हुए बोली!
“हाँ न! अब बताओ, तुम किस तरह की लड़की से शादी करना चाहोगे?” मैं खुश था कि काजल ने सही समय पर बात सम्हाल ली थी - डर था कि माँ को फिर से डिप्रेशन न महसूस होने लगे, “बताओगे, तो वैसी ही लड़की ढूंढनी पड़ेगी न?”
“क्या भैया!”
“अरे! तुम इसको मज़ाक में मत लो। ऑफिस में बड़ी अच्छी अच्छी, और सुन्दर सुन्दर लड़कियाँ हैं। कोई सही लगी तो बात करते हैं!”
सुनील बोला, “हाँ - अच्छी लड़कियाँ तो हैं, भैया। लेकिन उनमें से कोई नहीं!”
“अच्छा जी! मतलब कुछ सोचा तो हुआ है आपने। अरे बताओ बताओ!”
“हा हा हा! हाँ भैया, कुछ थॉट्स तो हैं!”
मैंने खुश होते हुए कहा, “हाँ, तो बताओ न!”
“अच्छा... सबसे पहली बात तो यह कि मुझे कोई बचकानी टाइप की लड़की नहीं चाहिए... चंचल होना अच्छी बात है, लेकिन थोड़ी गंभीर होनी चाहिए! गंभीर मतलब - सीरियस नहीं। चुपचाप रहने वाली नहीं, हँसती खेलती हो, चंचल हो - लेकिन उसके विचारों में गंभीरता होनी चाहिए! ठहराव होना चाहिए। इस बात की समझ होनी चाहिए कि शादी ब्याह कोई खेल नहीं है, बल्कि एक सीरियस कमिटमेंट है! तो ये है सबसे पहली बात! थोड़ी ज़िम्मेदार हो... शालीन हो... सौम्य हो! घरेलू टाइप की हो! कोई ऐसी, जो मुझे मन से प्यार करे... और दृढ़ चट्टान के जैसे मेरे हर सुख दुःख में मेरे साथ खड़ी हो!”
“हम्म्म,” उसकी बातें मुझे अच्छी लगीं, “घरेलू क्यों?”
“भैया, मुझे बच्चे बहुत पसंद हैं!” उसने जब यह बात कही, तब मैं उसकी आँखों में वात्सल्य की चमक साफ़ देख सका, “और मैं चाहता हूँ कि जब हमारे बच्चे हों, तब मेरी बीवी उनका ठीक से ध्यान रख सके! उनको अपने सारे गुण सिखाए। बाहर काम करेगी, तो फिर वो पॉसिबल नहीं है न!”
“लेकिन बच्चे पालने की तुम्हारी भी तो ज़िम्मेदारी है?” काजल बोली।
“बिलकुल है अम्मा! और मैंने कब उस ज़िम्मेदारी को निभाने से मना किया?” सुनील बोला, “मैं बिलकुल उसको सपोर्ट करूँगा। घर का काम करूँगा। खाना पकाना मैं देख लूँगा!”
“हा हा हा!” मैं हँसने लगा, “यार, तुमने तो पूरा प्लान कर रखा है!”
“हा हा हा हा! भैया - आपने इतना ज़ोर दिया, इसलिए मैंने कह दिया। मुझको तो ऐसी ही लड़की चाहिए। नौकरी करना चाहे, तो किसी स्कूल कॉलेज में करे! कम से कम बच्चे तो उसी के साथ रहेंगे!”
“हम्म्म!” मैंने कहा, “यार यह सब तो मैंने कभी सोचा ही नहीं!”
और सच में मैंने यह सब सोचा नहीं। गैबी और डेवी दोनों ही करियर वीमेन थीं। उनसे होने वाली संतान हमारे प्रेम का द्योतक थीं। हम बच्चे चाहते थे, लेकिन बच्चों के लिए हमने प्रेम / शादी नहीं करी थी। इस तरह से मेरे और सुनील के बीच में अंतर था। लेकिन यह बात भी सच है कि सुनील की कोई प्रेमिका नहीं थी - या फिर थी? मुझे नहीं मालूम। पूछना पड़ेगा।
सुनील बोल रहा था, “तो मेरे लिए आइडियल लड़की वो है, तो मेरे बच्चों के लिए एक अच्छी माँ बने - जैसे आप [उसने माँ की तरफ संकेत दिया] और आप [उसने काजल की तरफ संकेत दिया] हैं।”
मैंने हँसते हुए कहा, “अच्छा... तो सुनील, तुमने तो भई अपने बच्चों के लिए भी पूरा प्लान कर रखा है... ठीक है! अच्छी बात है! लेकिन यार, इस बात से मुझे अंदेशा हो रहा है कि तुम्हारे मन में कोई तो है! लेकिन कौन, वो समझ नहीं आ रहा! गर्ल फ्रेंड है? या फिर कोई लड़की देख रखी है?”
मेरी बात पर सुनील मुस्कुराया।
काजल ने यह देखा।
“है क्या कोई मन में?” काजल मातृ-सुलभ उत्साह से बोली।
सुनील फिर से केवल मुस्कुराया।
“है? अरे नालायक, तो इतनी पहेलियाँ क्यों बुझा रहा है? जल्दी से उसका नाम और पता बता दे न! मैं आज ही उसके पेरेंट्स से बात कर लेंगे!” काजल ने बड़े उत्साह से कहा।
“अरे अम्मा!” सुनील झिझकते हुए बोला, “रुक तो जाओ थोड़ा!”
काजल खुश होते हुए बोली, “यह सब भी छुपा कर रखेगा, तो कैसे चलेगा? अच्छा, कम से कम मेरी होने वाली बहू का नाम तो बता दे!”
“अम्मा... थोड़ा रुक तो जाओ! कम से कम पहले मुझे तो उसको बता लेने दो!”
“है राम, तो क्या तूने अभी तक उसको बताया भी नहीं?”
“नहीं... लेकिन मैं उसे जल्दी ही बता दूँगा!”
“ये लो, हमको ख्वाब दिखा कर, खुद ही उस पर पानी फेर दिया!”
सुनील मुस्कुराया।
“अच्छा, रहती कहाँ है?”
“यहीं, दिल्ली में!”
“बढ़िया है फिर - कॉलेज में साथ थी?”
“अम्मा!” सुनील ने परेशान होते हुए कहा।
“अच्छा ठीक है बाबा! माँ हूँ न, इसलिए खुद पर काबू नहीं कर पाती!” काजल ने हाथ झाड़ते हुए कहा, “अपने बेटे बेटी का घर बसते हुए देखना तो एक माँ का सबसे बड़ा सपना होता है!”
“ये बात सही कही काजल,” बहुत देर के बाद माँ कुछ बोलीं, “उसी में हमारा सबसे बड़ा सुख है!”
“हाँ न दीदी!” काजल सुनील से मांडवली करते हुए बोली, “अच्छा दिल्ली में रहती है, वो मालूम हो गया। नाम तू बता नहीं रहा। ये तो बता दे, कैसी दिखती है?”
सुनील मुस्कुराया, “बहुत सुंदर है अम्मा... मेरा उसका कोई साथ नहीं बैठता!”
“अरे, तो क्या इसलिए उसको नहीं बोला अभी तक?”
“सुनील बेटा,” माँ बोलीं, “अभी तक तुमने जितना बताया - अगर वो लड़की उतनी ही सौम्य और गंभीर है न, तो उसको तुम्हारे गुण ज़रूर पसंद आएँगे। अपने को किसी से कम न समझना! तुम हीरा हो हमारे। हमारे परिवार का गौरव हो!”
सुनील शर्म से मुस्कुराया।
“सुना तूने?” काजल बोली, “तो यह झिझक छोड़ दे। और कह दे उसको अपने दिल की बात!”
“हाँ भई!” मैंने भी अपना मंतव्य रखा, “बिना कहे तो कुछ नहीं होना। और यह कोई मुश्किल काम भी नहीं है। अगर सच्चा प्रेम करते हो, तो डरना मत। सच्चे प्रेम में आदर होता है। अगर वो न भी मानी, तो भी तुमको कम से कम एक अच्छी दोस्त तो मिल जाएगी!”
“पता नहीं भैया!”
“क्यों?”
“भैया, कह तो दूँ... पर इस बात का डर है... कि कहीं आपकी बात सच न हुई तो क्या होगा?”
“अरे, ऐसे कैसे?”
“भैया, कहीं ऐसा न हो जाए कि जो दोस्ती अभी है, वो ही न टूट जाए!”
“हम्म! ऑल ऑर नथिंग? हाँ, पॉसिबल तो है!” मैंने कहा, “लेकिन तुम्हारे दिल का बोझ तो कम हो जाएगा न!”
“अच्छा एक काम कर ले न,” काजल बोली, “क्यों न हम तीनों जा कर, उसके माँ बाप से बात कर लें?”
“नहीं काजल,” मैंने कहा, “इसने प्यार किया है, तो कहने की हिम्मत तो होनी ही चाहिए! ऐसे चोरी छुपे उस लड़की का ‘अपहरण’ नहीं करेंगे हम!”
“चोरी छिपे कहाँ? हमेशा से माँ बाप ही तो रिश्ते की बातें करते आए हैं!”
“हाँ, लेकिन इसकी बात अलग है!”
“हम्म्म! मानती हूँ तुम्हारी बात!” काजल बोली, फिर थोड़ा रुक कर, “अच्छा बेटा... तू हमको सच सच बता... तू ‘अपनी वाली’ को कितना चाहता है?”
“बहुत चाहता हूँ अम्मा... बहुत... शायद... उसके जैसी लड़की मुझे फिर कभी न मिले... वो मिल गई, तो लाइफ कम्पलीट हो जाएगी...”
“इतनी अच्छी है?”
सुनील धीर गंभीर बना, चुप बैठा रहता है!
“तो बेटा, ऐसी लड़की को पाने के लिए थोड़ी हिम्मत तो करनी पड़ेगी! तेरे भैया सही कह रहे हैं। तू कम से कम एक बार तो उससे अपने दिल का हाल कह! फिर अगर हमारी ज़रुरत पड़ी, तब हम ज़रूर सामने आएँगे!”
“थैंक्यू अम्मा...” सुनील ने बड़े आभार से कहा।
“अच्छा, तो तू इतना बड़ा हो गया कि अपनी अम्मा को थैंक्यू बोलता है...”
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बहुत मजेदार कहानियां लिखीं हैंनींव - पहली लड़की - Update 4
“माँ…” रचना के जाते ही मैंने माँ को पुकारा। उनको मालूम था कि मुझे क्या चाहिए था।
“बेटा, अब तुम बड़े हो गए हो …” मेरी माँ ने अपनी ब्लाउज के बटन खोलते हुए कहा, “और अब तो मुझे दूध भी नहीं आता है!”
“मैं क्या करूँ माँ,” माँ की गोदी में एडजस्ट होते हुए मैंने कहा, “आपका दूध पीना मुझे इतना अच्छा लगता है कि छोड़ना तो दूर, कभी छोड़ने की सोच भी नहीं पाता!”
माँ हँसने लगीं।
लेकिन आज का स्तनपान रोज़ के जैसा नहीं होने वाला था। मेरे मन में एक चोर बैठा हुआ था। आज से पहले मेरी माँ के स्तन मेरे लिए अमृत कलश के समान थे और मुझे सिर्फ उनमे भरे अमृत से ही सरोकार था, लेकिन आज मैं उन कलशों के बारे में भी जानना चाहता था। मेरा दिल अग्रिम प्रत्याशा से धड़क रहा था। माँ सोफे पर बैठ गई और मुझे दूध पिलाने के लिए उन्होंने मुझे अपना एक स्तन दे दिया - मैंने उत्सुकता से उनका चूचक लिया और उसको कुछ देर तक चूसता रहा। मेरे मुँह में रहते हुए माँ के चूचकों का बड़ा मन-भावन कायाकल्प होता - शुरू शुरू में उनका स्तम्भन होता, और वो थोड़े कड़े हो जाते, लेकिन धीरे धीरे उनका कड़ापन ख़तम हो जाता और वो मुलायम हो जाते। जब उनमे से दूध निकलता था, तो यह सब और भी आश्चर्यजनक होता। ख़ैर, स्तनपान करते हुए मैंने आगे जो किया वह कुछ ऐसा था जो मैंने पहले कभी नहीं किया। माँ आमतौर पर एक समय में केवल एक ही स्तन (जिससे वह मुझे दूध पिलाती थी) खुला रखती थीं, और दूसरा हमेशा अपने ब्लाउज या अपने पल्लू से ढका हुआ रखती थीं। आज मैंने ब्लाउज के उस हिस्से को हटा दिया जिसने माँ के दूसरे स्तन को ढक कर रखा हुआ था। फिर, मैं उस स्तन को अपने हाथ में लेकर सहलाने, दबाने लगा।
थोड़ी देर तक यह कार्यक्रम चलता रहा, फिर माँ ने मुझे अपने करीब, गले लगाते हुए कहा, “तुम्हें मेरे दूध पसंद हैं?”
“हाँ माँ!” चाहे कुछ हो, मैं माँ और डैड से झूठ नहीं बोल पाता था।
माँ हँसने लगीं। मैंने उनके दोनों स्तनों को एक-एक करके प्यार से चूमा, और सहलाया। माँ के दोनों चूचक कड़े हो गए थे। उन्होंने मुझे कुछ समय तक ऐसा करने दिया और फिर अपनी ब्लाउज के बटन वापस लगा दिए। फिर उन्होंने पूछा,
“क्या बात है बेटा? क्या हो गया?”
आश्चर्यजनक बात है न? बच्चों के व्यवहार में थोड़ा भी परिवर्तन आता है, तो माँ को ज़रूर मालूम पड़ जाता है।
“माँ, आई लव यू।”
“आई लव यू टू, बेटा। लेकिन बात क्या है?”
ऐसा लगता है कि माँ को मेरे मन के आर पार देखने की अद्भुत और सहज क्षमता है। यही वजह है कि मैं उनसे और डैडी से कभी भी कुछ भी नहीं छुपाता। सबसे बड़ी बात यह है कि मुझे उन दोनों पर सौ फीसदी से भी ज्यादा भरोसा है। मैंने हमेशा ही माँ को सब कुछ बताया था, और उस दिन भी उनसे कुछ भी छिपाने का कोई कारण नहीं था। मैंने माँ को बताया कि आज रचना और मेरे बीच में क्या क्या हुआ था। माँ ने सब कुछ सुना और फिर थोड़ी देर तक शांत बैठ कर हर बात के पहलू पर विचार किया, और अंततः उन्होंने कहा,
“दिखाओ।”
यह माँ का आदेश था। मैं तुरंत उठ खड़ा हुआ। इस बार माँ ने मेरे कपड़े उतारे। पिछली बार कोई दो साल हो गए होंगे, जब मैं उनके सामने ऐसे आया था। जब मैं पूरी तरह बिना कपड़ों के उनके सामने खड़ा हुआ, तो उन्होंने मुझे मन भर कर देखा - उनके चेहरे पर प्रशंसा और गर्व के भाव थे। मेरा लिंग आंशिक रूप से खड़ा था। माँ ने उसे प्यार से सहलाया। इतने लम्बे अर्से के बाद फिर से मेरे शरीर को देखने के कारण, उन्होंने बड़ी फुरसत से मेरे पूरे उपकरण का निरीक्षण किया। जब मेरा लिंग यथासंभव खड़ा हो गया, तब माँ ने जैसे प्रोत्साहन देते हुए उसको चूम लिया।
“मेरा सुन्दर बेटा!” माँ ने पूरे लाड़ से मेरी बलैयाँ लीं, “मेरी मेहनत रंग लाई! मेरा जवान बेटा!”
“माँ,” मैंने शर्माते हुए कहा, “तुम भी न!”
“अरे! मैं तुम्हें शर्मिंदा नहीं कर रही हूँ, बेटा! तुम सचमुच बहुत हैंडसम हो। रचना भी तुम्हें पसंद करती है, और इसलिए उसने जो कुछ किया, उसने किया।” माँ ने कहा, थोड़ी देर रुकीं, और फिर कहा, “क्या तुम उससे शादी करना चाहोगे?”
“क्या!”
शादी? इन सब बातों के बारे में कहाँ सोचता है कोई? लेकिन अब बात निकल ही आई है तो मैंने कुछ समय के लिए इसके बारे में सोचा। रचना से शादी? यह एक काफ़ी दिलचस्प विचार था, क्योंकि मुझे यह तो पता था कि लोग उससे शादी करते हैं जिसे वे ‘पसंद’ करते हैं। मैंने कुछ देर सोचा, और फिर काफ़ी सोच कर कहा,
“मुझे नहीं पता, माँ! शादी करने से पहले बहुत सारे काम करने हैं। और अभी मैं तो बहुत छोटा हूँ। ये सब मैं नहीं सोचता!”
“कितनी अच्छी, कितनी बुद्धिमानी वाली बात कहीं है बेटा तुमने! आई ऍम प्राउड ऑफ़ यू! सही कहा तुमने - शादी ब्याह में तो समय है... अच्छी पढ़ाई लिखाई कर लो, फिर उसके बाद कर लेना। लेकिन अगर तुम रचना से शादी करना चाहते हो तो मेरा आशीर्वाद है। वो मुझे अच्छी लगती है।” माँ ने बड़ी सरलता से कहा और कमरे से निकल गई।
वह मेरी ज़िन्दगी के सबसे यादगार दिनों में से एक था, और आज तक भी है। उस दिन मैंने बहुत कुछ सीखा। बहुत कुछ जाना। उस दिन के बाद से मैं और बुद्धिमान, और जिज्ञासु बन गया।
उस दिन के बाद से रचना और मेरे बीच की क़रीबियाँ और बढ़ गई। ऐसा बिलकुल भी नहीं था कि हम दोनों यौन रूप से करीब आ गए हों। ऐसा कुछ भी नहीं था। हम दोनों बस व्यक्तिगत और अंतरंग स्तर पर करीब आ गए। रचना कभी-कभी खेल खेल में मेरे लिंग से खेलती थी, लेकिन हमने जो कुछ उस दिन किया था, उसे हमने दोहराया नहीं। कुछ महीनों बाद मैंने नोटिस किया कि माँ भी उससे बहुत प्यार करने लगीं, और अक्सर मज़ाक मज़ाक रचना की मम्मी से उनकी बेटी को इस घर में भेजने के लिए कहती थीं। जानकार लोगों को पता होगा कि यह एक अप्रत्यक्ष तरीका है यह कहने का कि ‘मेरे बेटे की शादी अपनी बेटी से कर दो’। उन दोनों के बीच में नजदीकियाँ कुछ ऐसी थीं कि मेरे साथ पढ़ाई खत्म करने के बाद वो घर पर रुक जाती थी, और मेरी माँ से गप्पें मारती थीं।