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Romance मोहब्बत का सफ़र [Completed]

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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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प्रकरण (Chapter)अनुभाग (Section)अद्यतन (Update)
1. नींव1.1. शुरुवाती दौरUpdate #1, Update #2
1.2. पहली लड़कीUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19
2. आत्मनिर्भर2.1. नए अनुभवUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3. पहला प्यार3.1. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह प्रस्तावUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21
3.3. पल दो पल का साथUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
4. नया सफ़र 4.1. लकी इन लव Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15
4.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
4.3. अनमोल तोहफ़ाUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
5. अंतराल5.1. त्रिशूल Update #1
5.2. स्नेहलेपUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10
5.3. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24
5.4. विपर्ययUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
5.5. समृद्धि Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20
6. अचिन्त्यUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28
7. नव-जीवनUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5
 
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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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बहुत ही शानदार अपडेट, बिलकुल आपके अपने पुराने कहानियों वाले अंदाज में या कहूं की avsji k अंदाज में
कितनी खूबसूरती और सफाई से गैबी की खूबसूरती का आपने जिक्र किया है, उस पर वस्त्र से लेकर शारीरिक वर्णन इतने सूक्ष्म तरीके से किया है की क्या ही कहने।
प्रथम मिलन का ब्योरा भी काफी विस्तृत और मजेदार था।
बहुत बहुत धन्यवाद भाई।
साथ मे बने रहें। उम्मीद है कि आगे भी आपको ये कहानी पसंद आती रहेगी।
 

Tiger 786

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नींव - शुरुवाती दौर - Update 1

मुझे यह नहीं पता कि आप लोगों में से कितने पाठकों को सत्तर और अस्सी के दशक के भारत - ख़ास तौर पर उत्तर भारत के राज्यों के भीतरी परिक्षेत्रों - उनके कस्बों और गाँवों - में रहने वालों के जीवन, और उनके रहन सहन के बारे में पता है। तब से अब तक - लगभग पचास सालों में - उन इलाकों में रहने वालों के रहन सहन में काफ़ी बदलाव आ चुके हैं, और अधिकतर बदलाव वहाँ रहने वाले लोगों की बेहतरी के लिए ही हुए हैं। मेरा जीवन भी तब से काफ़ी बदल गया है, और उन कस्बों और गाँवों से मेरा जुड़ाव बहुत पहले ही छूट गया है। लेकिन भावनात्मक स्तर पर, मैं अभी भी मज़बूती से अपनी भूमि से जुड़ा हुआ हूँ। मुझे उन पुराने दिनों की जीवंत यादें आती हैं। शायद उसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि अगर किसी का बचपन सुखी, और सुहाना रहता है, तो उससे जुड़ी हुई सभी बातें सुहानी ही लगती हैं! आज मैं जो कुछ भी हूँ, उसकी बुनियाद ऐसी ही जगहों - कस्बों और गाँवों - में पड़ी। मैं आप सभी पाठकों को इस कहानी के ज़रिए एक सफ़र पर ले चलना चाहता हूँ। मैं हमारे इस सफ़र को मोहब्बत का सफ़र कहूँगा। मोहब्बत का इसलिए क्योंकि इस कहानी में सभी क़िरदारों में इतना प्यार भरा हुआ है कि उसके कारण उन्होंने न केवल अपने ही दुःख दर्द को पीछे छोड़ दिया, बल्कि दूसरों के जीवन में भी प्यार की बरसात कर दी। इस कहानी के ज्यादातर पात्र प्यार के ही भूखे दिखाई देते हैं, और उसी प्यार के कारण ही उनके जीवन के विभिन्न आयामों पर प्रभाव पड़ता दिखाई देता है। साथ ही साथ, सत्तर और अस्सी के दशक के कुछ पहलुओं को भी छूता चलूँगा, जो आपको संभवतः उन दिनों की याद दिलाएँगे। तो चलिए, शुरू करते हैं!

आपने महसूस किया होगा कि बच्चों के लिए, उनके अपने माँ और डैड अक्सर पिछड़े, दक़ियानूसी, और दखल देने वाले होते हैं। लेकिन सच कहूँ, मैंने अपने माँ और डैड के बारे में ऐसा कभी महसूस नहीं किया : उल्टा मुझे तो यह लगता है कि वो दोनों इस संसार के सबसे अच्छे, सबसे प्रगतिशील, और खुले विचारों वाले लोगों में से थे। आपने लोगों को अपने माता-पिता के लिए अक्सर कहते हुए सुना होगा कि वो ‘वर्ल्ड्स बेस्ट पेरेंट्स’ हैं! मुझे लगता है कि अधिकतर लोगों के लिए वो एक सतही बात है - केवल कहने वाली - केवल अपने फेसबुक स्टेटस पर चिपकाने वाली। उस बात में कोई गंभीरता नहीं होती। मैंने कई लोगों को ‘मदर्स डे’ पर अपनी माँ के साथ वाली फ़ोटो अपने फेसबुक पर चिपकाए देखी है, और जब मैंने एकाध की माँओं से इस बारे में पूछा, तो उनको ढेले भर का आईडिया नहीं था कि मदर्स डे क्या बला है, और फेसबुक क्या बला है! ख़ैर, यहाँ कोई भाषण देने नहीं आया हूँ - अपनी बात करता हूँ।

मेरे लिए मेरे माँ और डैड वाक़ई ‘वर्ल्ड्स बेस्ट पेरेंट्स’ हैं। अब मैं अपने जीवन के पाँचवे दशक में हूँ। लेकिन मुझे एक भी मौका, एक भी अवसर याद नहीं आ पाता जब मेरी माँ ने, या मेरे डैड ने मुझसे कभी ऊँची आवाज़ में बात भी की हो! डाँटना तो दूर की बात है। मारना - पीटना तो जैसे किसी और ग्रह पर हो रहा हो! माँ हमेशा से ही इतनी कोमल ह्रदय, और प्रसन्नचित्त रही हैं कि उनके अंदर से केवल प्रेम निकलता है। उनके ह्रदय की कोमलता तो इसी बात से साबित हो जाती है कि सब्ज़ी काटते समय उनको जब सब्जी में कोई पिल्लू (इल्ली) दिखता है, तो वो उसको उठा कर बाहर, बगीचे में रख देती हैं। जान बूझ कर किसी भी जीव की हत्या या उस पर कैसा भी अत्याचार उनसे नहीं होता। वो ऐसा कुछ सोच भी नहीं सकतीं। डैड भी जीवन भर ऐसे ही रहे! माँ के ह्रदय की कोमलता, उनके व्यक्तित्व का सबसे अहम् हिस्सा है। माँ को मैंने जब भी देखा, उनको हमेशा हँसते, मुस्कुराते हुए ही देखा। वो वैसे ही इतनी सुन्दर थीं, और उनकी ऐसी प्रवृत्ति के कारण वो और भी अधिक सुन्दर लगतीं। डैड भी माँ जैसे ही थे - सज्जन, दयालु, और अल्प, लेकिन मृदुभाषी। कर्मठ भी बड़े थे। माँ थोड़ी चंचल थीं; डैड उनके जैसे चंचल नहीं थे। दोनों की जोड़ी, वहाँ ऊपर, आसमान में बनाई गई थी, ऐसा लगता है।

मेरे डैड और माँ ने डैड की सरकारी नौकरी लगने के तुरंत बाद ही शादी कर ली थी। अगर आज कल के कानून के हिसाब से देखा जाए, तो जब माँ ने डैड से शादी करी तो वो अल्पवयस्क थीं। अगर हम देश के सत्तर के शुरुआती दशक का इतिहास उठा कर पढ़ेंगे, तो पाएँगे कि तब भारत में महिलाओं को चौदह की उम्र में ही कानूनन विवाह योग्य मान लिया जाता था [हिन्दू मैरिज एक्ट 1955]। माँ के माता-पिता - मतलब मेरे नाना-नानी - साधन संपन्न नहीं थे। वे सभी जानते थे कि वे माँ की शादी के लिए आवश्यक दहेज की व्यवस्था कभी भी नहीं कर पाएंगे। इसलिए, जैसे ही उन्हें अपनी एकलौती बेटी के लिए शादी का पहला ही प्रस्ताव मिला, वैसे ही वे तुरंत ही उस विवाह के लिए सहमत हो गए। माँ के कानूनन विवाह योग्य होते ही मेरे नाना-नानी ने उनका विवाह मेरे डैड से कराने में बिलकुल भी समय बर्बाद नहीं किया। डैड उस समय कोई तेईस साल के थे। उनको हाल ही में एक सरकारी महकमे में क्लर्क की नौकरी मिली थी। सरकारी नौकरी, मतलब स्थयित्व, पेंशन, और विभिन्न वस्तुओं पर सरकारी छूट इत्यादि! छोटे छोटे कस्बों में रहने वाले मध्यमवर्गीय माँ-बापों के लिए मेरे डैड एक बेशकीमती वर होते। मेरी माँ बहुत सुंदर थीं - अभी भी हैं - इसलिए, डैड और मेरे दादा-दादी को वो तुरंत ही पसंद आ गईं थीं। और हालाँकि मेरे नाना-नानी गरीब थे, लेकिन फिर भी वे अपने समुदाय में काफ़ी सम्मानित लोग थे। इसलिए, माँ और डैड की शादी बिना किसी दहेज़ के हुई थी। उनके विवाह के एक साल के भीतर ही भीतर, मैं इस दुनिया में आ गया।

माँ और डैड एक युवा जोड़ा थे, और उससे भी युवा माता - पिता! इस कारण से उनको अपने विवाहित जीवन के शुरुवाती वर्षों में काफ़ी संघर्ष करना पड़ा। लेकिन उनके साथ एक अच्छी बात भी हुई - मेरे डैड की नौकरी एक अलग, थोड़े बड़े क़स्बे में थी, और इस कारण, उन दोनों को ही अपने अपने परिवारों से अलग रहने के लिए मजबूर होना पड़ा। न तो मेरे दादा-दादी ही, और न ही मेरे नाना-नानी उन दोनों के साथ रह सके। यह ‘असुविधा’ कई मायनों में उनके विवाह के लिए एक वरदान साबित हुआ। उनके समकालीन, कई अन्य विवाहित जोड़ों के विपरीत, मेरे माँ और डैड एक दूसरे के सबसे अच्छे दोस्त थे, और उनका पारस्परिक प्रेम जीवन बहुत ही जीवंत था। अपने-अपने परिवारों के हस्तक्षेप से दूर, वो दोनों अपने खुद के जीने के तरीके को विकसित करने में सफ़ल हो सके। कुल मिलाकर मैं यह कह सकता हूँ कि हम खुशहाल थे - हमारा एक खुशहाल परिवार था।

हाँ - एक बात थी। हमें पैसे की बड़ी किल्लत थी। अकेले मेरे डैड की ही कमाई पर पूरे घर का ख़र्च चलता था, और उनकी तनख्वाह कोई अधिक नहीं थी। हालाँकि, यदि देखें, तो हमको वास्तव में बहुत अधिक पैसों की ज़रुरत भी नहीं थी। मेरे दादा और नाना दोनों ने ही कुछ पैसे जमा किए, और हमारे लिए उन्होंने एक दो-बेडरूम का घर खरीदा, जो बिक्री के समय निर्माणाधीन था। इस कारण से, और शहर (क़स्बे) के केंद्र से थोड़ा दूर होने के कारण, यह घर काफ़ी सस्ते में आ गया था। घर के अधिकांश हिस्से में अभी भी पलस्तर, पुताई और फ़र्श की कटाई आदि की जरूरत थी। अगर आप आज उस घर को देखेंगे, तो यह एक विला जैसा दिखेगा। लेकिन उस समय, उस घर की एक अलग ही दशा थी। कालांतर में, धीरे धीरे करते करते डैड ने उस घर को चार-बेडरूम वाले, एक आरामदायक घर में बढ़ा दिया, लेकिन उसमें समय लगा। जब हमारा गृह प्रवेश हुआ, तब भी यह एक आरामदायक घर था, और हम वहाँ बहुत खुश थे।

आज कल हम ‘हेल्दी’ और ‘ऑर्गनिक’ जीवन जीने की बातें करते हैं। लेकिन मेरे माँ और डैड ने मेरे जन्म के समय से ही मुझे स्वस्थ आदतें सिखाईं। वो दोनों ही यथासंभव प्राकृतिक जीवन जीने में विश्वास करते थे। इसलिए हमारे घर में प्रोसेस्ड फूड का इस्तेमाल बहुत ही कम होता था। हम अपने पैतृक गाँव से जुड़े हुए थे, इसलिए हमें गाँव के खेतों की उपज सीधे ही मिलती थी। दही और घी मेरी माँ घर में ही बनाती थीं, और उसी दही से मक्खन और मठ्ठा भी! माँ ख़ुद भी जितना हो सकता था उतना घरेलू और प्राकृतिक चीजों का इस्तेमाल करती थीं। खाना हमेशा घर का बना होता था, और खाना पकाने के लिए कच्ची घानी के तेल या घी का ही इस्तेमाल होता था। इन सभी कारणों से मैंने कभी भी मैगी या रसना जैसी चीजों को आजमाने की जरूरत महसूस नहीं की। बाहर तो खाना बस यदा कदा ही होता था - वो एक बड़ी बात थी। ऐसा नहीं है कि उसमे अपार खर्च होता था, लेकिन धन संचयन से ही तो धन का अर्जन होता है - मेरी माँ इसी सिद्धांत पर काम करती थीं। हाँ, लेकिन हर इतवार को पास के हलवाई के यहाँ से जलेबियाँ अवश्य आती थीं। गरमा-गरम, लच्छेदार जलेबियाँ - आहा हा हा! तो जहाँ इस तरह की फ़िज़ूलख़र्ची से हम खुद को बचाते रहे, वहीं मेरे पालन पोषण में उन्होंने कोई कोताही नहीं करी। हमारे कस्बे में केवल एक ही अच्छा पब्लिक स्कूल था : कोई भी व्यक्ति जो थोड़ा भी साधन-संपन्न था, अपने बच्चों को उस स्कूल में ही भेजता था। मैं बस इतना ही कहना चाहता हूँ कि स्कूल के बच्चे ही नहीं, बल्कि उनके माँ और डैड भी एक-दूसरे के दोस्त थे।

उस समय उत्तर भारत के कस्बों की एक विशेषता थी - वहाँ रहने वाले अधिकतर लोग गॉंवों से आए हुए थे, और इसलिए वहाँ रहने वालों का अपने गॉंवों से घनिष्ठ संबंध था। यह वह समय था जब तथाकथित आधुनिक सुविधाएँ कस्बों को बस छू ही रही थीं। बिजली बस कुछ घंटे ही आती थी। कार का कोई नामोनिशान नहीं था। एक दो लोगों के पास ही स्कूटर होते थे। टीवी किसी के पास नहीं था। मेरे कस्बे के लोग त्योहारों को बड़े उत्साह से मनाते थे : सभी प्रकार के त्योहारों के प्रति उनका उत्साह साफ़ दिखता था। पास के मंदिर में सुबह चार बजे से ही लाउडस्पीकरों पर भजन के रिकॉर्ड बजने शुरू हो जाते थे। डैड सुबह की दौड़ के लिए लगभग इसी समय उठ जाते थे। माँ भी उनके साथ जाती थीं। वो दौड़ती नहीं थी, लेकिन वो सुबह सुबह लंबी सैर करती थीं। मैं सुबह सात बजे तक ख़ुशी ख़ुशी सोता था - जब तक कि जब तक मैं किशोर नहीं हो गया। मेरी दिनचर्या बड़ी सरल थी - सवेरे सात बजे तक उठो, नाश्ता खाओ, स्कूल जाओ, घर लौटो, खाना खाओ, खेलो, पढ़ो, डिनर खाओ और फिर सो जाओ। डैड खेलने कूदने के एक बड़े पैरोकार थे। उनको वो सभी खेल पसंद थे जो शरीर के सभी अंगों को सक्रिय कर देते थे - इसलिए उनका दौड़ना, फुटबॉल खेलना और कबड्डी खेलना बहुत पसंद था। हमारा जीवन बहुत सरल था, है ना?
Nice update
 
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नींव - पहली लड़की - Update 1

आज कल देखता हूँ तो पाता हूँ कि बच्चों के लिए अपनी शुरुआती किशोरावस्था में ही किसी प्रकार का ‘रोमांटिक’ संबंध रखना काफी औसत बात है। मैं और मेरी पत्नी अभी हाल ही में इस बारे में मजाक कर रहे थे। हम एक शॉपिंग मॉल में थे, जब मैंने देखा कि एक बमुश्किल से किशोर-वय जोड़ा एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए है, और एक दूसरे के साथ रोमांटिक अभिनय कर रहा है। मुझे यकीन है कि उन्हें शायद पता भी नहीं है कि यह सब क्या है, या यह कि वे एक-दूसरे के प्रति आकर्षित हैं भी या नहीं। कम से कम मैंने तो उस उम्र में विपरीत लिंग के लिए आकर्षण या सेक्स की भावना कभी नहीं महसूस करी। मैंने इन दोनों ही मोर्चों पर शून्य था।

कॉलेज से पहले, मैंने कभी भी विपरीत लिंग के साथ किसी भी तरह के संबंध बनाने के बारे में नहीं सोचा था। वो भावना ही नहीं आती थी। कॉलेज में आने के बाद पहली बार मुझे ऐसा आकर्षण महसूस हुआ। उस लड़की का नाम रचना था। रचना एक बुद्धिमान लड़की थी... और उसके स्तन! ओह! मेरे लिए यह आश्चर्य की बात थी कि उस उम्र में रचना के पास इतनी अच्छी तरह से विकसित स्तनों की जोड़ी थी! पहले मुझे लगता था कि स्तन का आकार, लड़की की उम्र पर निर्भर करता है। लेकिन अब मुझे मालूम है कि अच्छा भोजन और स्वस्थ जीवन शैली स्तनों के आकर पर अपना अपना प्रभाव डालते हैं। रचना ने मुझे बाद में बताया कि उसके स्तनों की जोड़ी अन्य लड़कियों से कोई अलग नहीं है। बात सिर्फ इतनी थी कि उसने उन्हें ब्रा में बाँध कर रखा नहीं हुआ है।

रचना मेरे स्कूल में नई नई आई थी। उसके पिता और मेरे डैड एक ही विभाग में काम करते थे, और उसका परिवार हाल ही में इस कस्बे में स्थानांतरित हुआ था। जैसा कि मैंने पहले ही बताया है, उसे मेरे ही स्कूल में दाखिला लेना था। और कोई ढंग का विकल्प नहीं था वहाँ। जब मैंने पहली बार रचना को देखा, तो मैं उसके बारे में सोच रहा था कि वह कितनी सुंदर दिखती है। निःसंदेह, मैं उससे दोस्ती करना चाहता था। मेरे लिए यह करना एक दुस्साहसिक काम था, क्योंकि मुझे इस मामले में किसी भी तरह का अनुभव नहीं था। और तो और मुझे यह भी नहीं पता था कि लड़कियों से ठीक से बात कैसे की जाए! यह समस्या केवल मेरी नहीं, बल्कि स्कूल के लगभग सभी लड़कों की थी। स्कूल में लड़के ज्यादातर लड़कों के साथ ही बातचीत करते थे और लड़कियाँ, लड़कियों के साथ! माँ डैड को छोड़ कर मेरी अन्य वयस्कों के साथ बातचीत आमतौर पर केवल पढ़ाई के बारे में और मुझसे पाठ्यक्रम से प्रश्न पूछने तक ही सीमित थी। तो कुल मिला कर पास लड़कियों से बातचीत और संवाद करने में कोई भी कौशल नहीं था।

जब इस तरह की बाधा होती है, तो लड़कियों से दोस्ती करने वाले सपने पूरे नहीं होते। ऐसे सपने तब ही पूरे हो सकते हैं जब आपके जीवन में ईश्वरीय हस्तक्षेप हो। तो इस मामले में मुझे एक ईश्वरीय हस्तक्षेप मिला। मैं पढ़ाई लिखाई में अच्छा था - वास्तव में - बहुत अच्छा। एक दिन, हमारी क्लास टीचर, जो हमारी हिंदी (साहित्य, व्याकरण, कविता और संस्कृत) की शिक्षिका भी थीं, ने दो दो छात्रों के स्टडी ग्रुप्स बना दिए, ताकि हम एक दूसरे के साथ प्रश्न-उत्तर रीवाइस कर सकें। सौभाग्य से रचना मेरे साथ जोड़ी गई थी। क्या किस्मत! बिलारी के भाग से छींका टूटा! तो, हम आपस में प्रश्नोत्तर कर रहे थे, और बीच बीच में कभी-कभी बात भी कर रहे थे।

ऐसे ही एक बार मैंने कुढ़ते हुए कहा, “ये लङ्लकार नहीं, लण्ड लकार है..” [लकार संस्कृत भाषा में ‘काल’ को कहते हैं, और लङ्लकार भूत-काल है]

मैंने बस लिखे हुए एक शब्द के उच्चारण को भ्रष्ट किया था। लेकिन उतने में ही अर्थ का अनर्थ हो गया। मैंने सचमुच में यह नादानी में किया था, और मुझे इस नए शब्द का क्या नहीं मालूम था। यह कोई शब्द भी था, मुझे तो यह भी नहीं मालूम था। रचना मेरी बात सुन कर चौंक गई। सबसे पहले तो उसको मेरी बात पर विश्वास ही नहीं हुआ। वो मुझे एक ईमानदार और सभ्य व्यक्ति समझती थी। मैंने आज तक एक भी गाली-नुमा शब्द नहीं बोला था। बेशक, रचना हैरान थी कि मैंने ऐसा शब्द कैसे बोल दिया। खैर, अंततः उसने मुझसे कहा,

“नहीं अमर, हम ऐसी बात नहीं करते।”

“क्यों क्या हुआ?”

“क्या तुम इसका मतलब नहीं जानते?”

“किसका मतलब?”

“इसी शब्द का... जो तुमने अभी अभी कहा।”

“शब्द? कौन सा? तुम्हारा मतलब लण्ड से है?”

“हाँ - वही। और इसे ज़ोर से मत बोलो। कोई सुन लेगा।”

“सुन लेगा? अरे, लेकिन मुझे पता ही नहीं है कि इसका क्या मतलब है! क्या इसका कोई मतलब भी होता है?” मैं वाकई उलझन में था।

बाद में, लंच ब्रेक के दौरान रचना ने मुझे ‘लण्ड’ शब्द का अर्थ बताया। मुझे आश्चर्य हुआ कि एक लिंग का ऐसा नाम भी हो सकता है। जब मैंने उसे बताया कि लिंग के लिए मुझे जो एकमात्र शब्द पता था वह था ‘छुन्नी’, तो वो ज़ोर ज़ोर से वह हँसने लगी। उसने मुझे समझाया छोटे लड़कों के लिंग को छुन्नी या छुन्नू कह कर बुलाते हैं। लड़कियों के पास छुन्नी नहीं होती है। उसने मुझे यह भी बताया कि बड़े लड़कों और आदमियों के लिंग को लण्ड कहा जाता है। यह कुछ और नहीं, बस छुन्नी है, जिसका आकार बढ़ सकता है, और सख़्त हो सकता है। एक दिलचस्प जानकारी! है ना?

“अच्छा, एक बात बताओ। तुम्हारा छुन्नू ... क्या उसका आकार बढ़ता है?” रचना ने उत्सुकता से पूछा।

मुझे थोड़ा हिचकिचाहट सी हुई कि मेरी सहपाठिन मुझसे ऐसा प्रश्न पूछ रही है, फिर भी मैंने उसके प्रश्न की पुष्टि करी, “हाँ! बढ़ता तो है, लेकिन कभी-कभी ही ऐसा होता है।” फिर कुछ सोच कर, “रचना यार, तुम किसी को बताना मत!”

“अरे ये तो अच्छी बात है। छुन्नू का आकार तो बढ़ना ही चाहिए। इसमें शर्मिंदा होने की कोई बात नहीं है। इसका मतलब है कि तुम अब एक आदमी में बदल रहे हो!” रचना से मुस्कुराते हुए मुझसे कहा, “वैसे मैं क्यों किसी को यह सब बताऊँगी?”

“नहीं! बस ऐसे ही कहा, तुमको आगाह करने के लिए। माँ और डैड को भी नहीं मालूम है न, इसलिए!”

“हम्म्म!”

“रचना?”

“हाँ?”

“एक बात कहूँ?”

“हाँ! बोलो।”

“तुम्हारे ... ये जो ... तुम्हारे दूध हैं न, वो मेरी माँ जैसे हैं।”

“सच में?”

मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“हम्म इसका मतलब आंटी के दूध छोटे हैं।”

“हैं?”

“हाँ! मेरी मम्मी के मुझसे दो-गुनी साइज़ के होंगे। बाल-बच्चे वाली औरतों के दूध तो बड़े ही होते हैं न!”

“ओह!”

“मेरे उतने बड़े नहीं हैं। बाकी लड़कियों जितने ही हैं। लेकिन मैं शर्ट के नीचे केवल शमीज़ पहनती हूँ। बाकी लड़कियाँ ब्रा भी पहनती हैं!”

“ओह?”

रचना ने मेरा उलझन में पड़ी शकल देखी और हँसते हुए बोली, “तुमको नहीं मालूम कि ब्रा और शमीज़ क्या होती है?”

“नहीं!” मैं शरमा गया।

“कोई बात नहीं। बाद में कभी बता दूँगी। लेकिन एक बात बताओ, तुमको हमारे ‘दूध’ में इतना इंटरेस्ट क्यों है?” रचना ने मेरी टाँग खींची।

“उनमे से दूध निकलता है न, इसलिए!”

“बुद्धू हो तुम!” रचना ने हँसते हुए प्रतिकार किया, “मेरे ख़याल से ये शरीर के सबसे बेकार अंगों में से एक हैं। सड़क पर निकलो तो हर किसी की आँखें इनको ही घूरती रहती हैं। ब्रा पहनो तो दर्द होने लगता है। ठीक से दौड़ भी नहीं सकती, क्योंकि दौड़ने पर ये उछलते हैं, और दर्द करते हैं। तुम लोग तो अपनी छाती खोल कर बैठ सकते हो, लेकिन हमको तो इन्हे ढँक कर रखना पड़ता है!”

जाहिर सी बात है, रचना अपने स्तनों पर चर्चा नहीं करना चाहती थी, इसलिए मैंने इस मामले को आगे नहीं बढ़ाया। लेकिन उस दिन के बाद से मैं और रचना बहुत अच्छे दोस्त बन गए। जब एक दूसरे की अंतरंग बातें मालूम होती हैं, तब मित्रता में प्रगाढ़ता आ जाती है।

उन दिनों लड़कियों का अपने सहपाठी लड़कों के घर आना जाना एक असामान्य सी बात थी। लेकिन एक अच्छी बात यह हुई कि हमारी माएँ एक दूसरे की बहुत अच्छी दोस्त बन गई थीं। क्योंकि जैसा कि मैंने आपको पहले भी बताया था कि हमारे पिता एक ही विभाग में थे। चूंकि, कक्षा में, रचना और मैं स्टडी पार्टनर थे, इसलिए हमारे माता-पिता के लिए हमें घर पर भी साथ पढ़ने की अनुमति देना तार्किक रूप से ठीक था। इसलिए, रचना और मैं दोनों ही एक-दूसरे के घर पढ़ाई के लिए जाते थे। वैसे रचना ही थी जो अक्सर मेरे घर आती थी, क्योंकि उसे मेरी माँ के हाथ का खाना बहुत पसंद था और वह उसका स्वाद लेने का कोई मौका नहीं छोड़ती थी। उसकी माँ भी इसके लिए उसको रोकती नहीं थीं।
Lazwaab update
 
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नींव - पहली लड़की - Update 3

रचना ने फिर से मेरे लिंग को फिर से अपने हाथ में पूरी तरह से पकड़ लिया और अपने हाथ को पीछे की तरफ थोड़ा सा खिसकाया। ऐसा करने से मेरा शिश्नमुण्ड थोड़ा दिखने लगा। मेरे लिंग का स्तम्भन बहुत मजबूत नहीं था; बच्चों में होने वाले स्तम्भनों से थोड़ा अधिक ही होगा - बस। उसको एक ‘क्यूट इरेक्शन’ कहा जा सकता है। उधर रचना पूरे उत्साह के साथ आज हाथ आए हुए लिंग का पूरा मुआयना कर लेना चाहती थी। उसने एक बार फिर से अपने हाथ को पीछे की तरफ धक्का दिया। इस बार लिंग मुण्ड पूरी तरह से उजागर हो गया। उसने हो सकता है कि पहली बार किसी लिंग को इतने करीब से देखा हो, लेकिन यहां तक कि मैंने ख़ुद भी पहली बार अपने इस अंग की बनावट पर इतने करीब से ध्यान दिया - उसका रंग वैसा था जैसे किसी गोरी चमड़ी पर बैंगनी-गुलाबी रंग मिला दिया गया हो! एक दिलचस्प रंग! और भी एक नई बात महसूस हुई - इस पूरे घटनाक्रम के दौरान मुझे पहली बार नितांत नग्नता महसूस हुई। यह पूरा अनुभव ही अलग था - बिलकुल अनूठा। लिंग मुण्ड के पीछे कुछ मैल जैसा जमा हुआ था। रचना ने मुझे वो दिखाया और कहा कि नहाते समय मैं स्किन को ऐसे ही पीछे कर के उसको साफ़ कर लिया करूँ। उसकी बात का कोई जवाब देते बन नहीं रहा था। रचना एक दोस्त थी, एक सहपाठी थी, और संभव है कि वो मुझे स्कूल में सभी की हँसी का पात्र भी बना सकती थी। लेकिन फिर भी, न जाने क्यों, मुझे उसके साथ सुरक्षित महसूस हो रहा था करती थी।

“मम्म…” रचना प्यार से मुस्कुराई, “यह बहुत प्यारा है! समझे बुद्धूराम?”

मेरी तन्द्रा टूटी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ! रचना ने जितना मन चाहा, मेरे लिंग की अच्छी तरह से छानबीन करी और फिर अंत में उसको छोड़ दिया। वह यह देख कर थोड़ी निराश तो ज़रूर थी कि उसका आकार अभी उतना नहीं बढ़ पा रहा था, जितना कि उसके पिता का होता था, वो इस बात को ले कर बहुत खुश भी थी कि आज उसने वो काम किया है, जिसको समाज द्वारा निषिद्ध माना जाता था। मैं अभी तक कुछ भी करने, कुछ भी कहने की अवस्था में नहीं आ पाया था - माँ या डैड के सामने नंगा होना, और रचना के सामने नंगा होना मेरे लिए बिलकुल अलग बात थी।

रचना ने मुझे मुस्कुराते हुए, अर्थपूर्ण दृष्टि से देखा। मेरे दिल की धमक और साँसों की धौंकनी अभी तक चल रही थी। उसको समझ आ गया कि मुझ बुद्धू से कुछ नहीं होने वाला है, और जो भी करना है उसको ही करना है। रचना ने आगे जो, किया वह मेरे लिए बिलकुल अविश्वसनीय था। अपने वादे के मुताबिक उसने अपनी फ्रॉक का हेम पकड़ा, और उसको उठाते हुए, अपने सर से हो कर अपने शरीर से उतार लिया। अगर माँ इस समय मेरे कमरे में आ जातीं, तो हमारे साथ न जाने क्या करतीं। खैर, मैंने देखा कि उसने अपने फ्रॉक के नीचे एक सफेद रंग की शमीज़ और एक होज़री वाली चड्ढी पहन रखी थी। उसने अपना फ्रॉक कुर्सी पर टांग दिया, और हंसती हुई उसने अपनी फ़्रॉक की ही तरह अपनी शमीज़ को भी उतार दिया। अब रचना मेरे सामने लगभग नंगी खड़ी थी। मेरे सामने जो नज़ारा था, उसका ठीक से बयान करना मुश्किल है। आज पहली बार मैंने माँ के अलावा किसी और के स्तन देखे थे! साहित्य में सुन्दर स्त्रियों के स्तनों को अक्सर ही ‘चक्रवाक पक्षियों’ के जोड़े की उपमा दी जाती है। माँ के स्तनों को ‘चक्रवाक पक्षियों’ का जोड़ा कहा जा सकता है, लेकिन रचना के स्तन उनके जैसे नहीं थे। सबसे पहली बात, मेरे आंकलन के विपरीत, रचना के स्तन, माँ के स्तनों से छोटे थे। माँ के स्तन गोलाकार थे, लेकिन रचना के स्तन शंक्वाकार थे। उसकी त्वचा बिलकुल साफ़ थी, बिना किसी दाग़ के। उसके चूचक मटर के दाने जितने बड़े थे और उनके गिर्द एरिओला का आकार एक रुपये के नए सिक्के से अधिक नहीं था। रचना गोरी तो थी ही, लिहाज़ा, उसके चूचक और एरिओला की रंगत गहरे नारंगी रंग लिए हुए थी - लगभग ‘एम्बर’ रंग जैसी। रचना मेरे सामने नंगी खड़ी हुई थी और मुझे अपने स्तनों को बहुत करीब से देखने दे रही थी। मुझे यह सोच कर बहुत आश्चर्य हुआ कि इतने सुंदर अंग उसके लिए इतने असुविधाजनक कैसे हो सकते हैं! यह लगभग अविश्वसनीय बात थी! सच कहूँ तो अपनी नग्नता में रचना बिलकुल परी जैसी लग रही थी... बेहद खूबसूरत!

उसकी दिव्य सुंदरता को देख कर मेरा मुँह खुला का खुला रह गया! मैंने नर्वस हो कर अपने होंठ चाट लिए। मैंने महसूस किया कि मैं अपने खुद के नंगेपन की वजह से नहीं, बल्कि रचना के नंगेपन के कारण घबराया हुआ था। आत्मविश्वास से लबरेज़ सुंदरता का किसी मेरे जैसे निरीह मनुष्य पर ऐसा प्रभाव पड़ सकता है। वह बहुत खूबसूरत लग रही थी! मैं उठा और उसके करीब आ गया : इतना करीब कि वह मेरी सांसों को अपने चूचक पर महसूस कर सकती थी। मेरे हाथ काँप रहे थे, और मेरी साँसें हांफती हुई सी आ रही थी। रचना अपना ‘अंग प्रदर्शन’ बंद कर दे, उसके पहले मैं उसके चूचक को मुँह में ले लेने के लिए ललचा गया था। मैंने अपना सिर थोड़ा नीचे किया और अपने होंठों को उसके चूचक पर धीरे से फिराया।

“पी लो,” उसने फुसफुसाते हुए मुझसे कहा।

‘हम्म्म’ तो रचना को कहीं जाने की कोई जल्दी नहीं थी। अब मैं थोड़ा आश्वस्त हो गया। रचना भी चाहती थी कि मैं उसके चूचकों को चूसूँ और पी लूँ। मैंने अपना मुंह खोला और उस एक चूचक को अपने होंठों में ले कर अपनी जीभ को उसके एरिओला के चारों ओर घुमाया। रचना को यह नहीं मालूम था कि मुझे स्तनों को चूसना और पीना अच्छी तरह से आता है। मैंने रचना के चूचक को अपने मुँह में भर कर चूसा, और जितना ही मैं उसको चूसता, वह उतना ही कड़ा होता जाता। वैसे मुझे मालूम था कि उसका चूचक ठीक इसी तरह से व्यवहार करेगा। माँ के चूचक भी ठीक इसी तरह व्यवहार करते थे। मैंने उसका स्तन पीते हुए उसके चेहरे की ओर देखा और पाया कि उसने अपनी आँखें बंद कर ली हैं। रचना ने कहा था कि लड़कियों में छुन्नी नहीं होता। मुझे उत्सुकता हुई और मैंने अपना हाथ उसके पेट के नीचे उसकी जाँघों के बीच फिराया। जैसे ही मैंने अपनी उँगलियाँ उसके जाँघों के जोड़ पर फिराया, मुझे उसकी कही हुई बात पर यकीन हो गया। वाकई, रचना के पास पास लिंग नहीं था!

मेरे छूने का रचना पर एक नया प्रभाव पड़ा - वो मेरे कान में हलके से कराह उठी, तो मैंने अपना हाथ वहां से हटा लिया। वह मुस्कुराई और उसने जल्दी से अपनी चड्ढी भी नीचे सरका दी। मेरे सामने पूरी तरह से नंगी होने वाली पहली लड़की! उस क्षण से पहले मैं यही सोचता रहा था कि लड़के और लड़कियों में केवल स्तनों का ही फर्क होता है, लेकिन जो मैं देख रहा था, वो मेरे लिए बिलकुल नया था। हमारे शरीरों में इतनी समानता थी, लेकिन फिर भी बहुत सारी असमानता भी थी। हमारे बीच इतना अंतर देखकर मैं चकित रह गया था। उसकी कमर क्षेत्र की बनावट मेरे जैसी ही थी, लेकिन अलग भी थी।

“तुम इससे सूसू कैसे करती हो?” छुन्नी की जगह एक चीरे को देखते हुए मैंने अविश्वसनीय रूप से पूछा।

“बैठ कर... ऐसे।” उसने बैठ कर मुझे दिखाया।

मैंने दिलचस्पी से यह देखा। बात तो समझ में आ गई, लेकिन फिर भी, मुझे ऐसा लगा जैसे उसे एक महान अनुभव से वंचित कर दिया गया हो। मेरा मतलब, हम लड़कों को देखो - कहीं भी अपनी गन निकाल कर गोली चला देते हैं! उस सुख का मुकाबला इस चीरे से तो मिलने से रहा! और तो और, आप अपने छुन्नू से सूसू करते हुए दीवार पर चित्र भी बना सकते हैं। काश, लड़कियों को इस तरह का मजा मिल पाता - मैंने सोचा। लेकिन एक बात तो थी - रचना की योनि का दृश्य मंत्रमुग्ध कर देने वाला था। उसके स्तनों की ही भाँति उसकी योनि को देखने के लिए मैं उसके पास आ गया। रचना बैठी हुई थी, और मैं उसकी योनि के सामने आ कर लेट गया। उसकी योनि पर हल्के हल्के, कोमल, रोएँदार बाल थे। मैं उसके इतना करीब था कि मैं व्यावहारिक रूप से उसके बाल गिन सकता था। मुझे बड़ी नाइंसाफी लगी - रचना के बाल थे और मेरे नहीं! उसकी योनि की होंठनुमा संरचना इतनी आकर्षक लग रही थी कि मेरा मन हुआ कि उसको चूम लूँ। लेकिन सूसू करने वाली जगह को चूमा थोड़े ही जाता है!

“इसको क्या कहते हैं?”

“उम्म्म, योनि?”

“हम्म! लण्ड जैसा कोई वर्ड नहीं है इसके लिए?”

“है। लेकिन सुन कर बहुत ख़राब लगता है।”

“क्या है? मुझे बताओ न, प्लीज!”

“चूत कहते हैं!”

“ओह!”

“लेकिन तुम अच्छे लड़के हो। तुम यह वर्ड मत यूज़ करना।”

“ठीक है!”

मैंने देखा कि रचना की योनि के ऊपर वाले हिस्से पर ही बाल थे, उसकी चूत के दोनों होंठों पर कोई बाल नहीं थे। मैं और करीब आ गया। एक गहरी साँस भरने पर मुझे उसके साबुन की महक आने लगी। मन तो बहुत था, लेकिन मैंने उसके गुप्तांगों को छुआ नहीं, क्योंकि मेरे पास ऐसा करने की हिम्मत नहीं हुई। खैर - यह एक बड़ा दिन था मेरे लिए। आज स्त्री और पुरुष के लिंगों के बीच के अंतर का मेरा पहला परिचय था!

“क्या तुमको मालूम है कि छुन्नी किस काम आती है?” उसने पूछा।

“सूसू करने के लिए! और क्या?”

“नहीं, तुम बेवक़ूफ़ हो! केवल सूसू करना ही इसका काम नहीं है!” कह कर वो ठठाकर हँसने लगी।

उसकी हँसी सुन कर अगर माँ आ जातीं, तो न जाने क्या क्या हो जाता! मैं उस उम्र में खुद को सर्वज्ञाता समझता था। इसलिए कोई मुझे ‘बेवक़ूफ़’ कहे, तो मुझे गुस्सा आना तो लाज़मी है!

“अच्छा! तो बुद्धिमान जी, आप ही मुझे बताएं कि इसका क्या काम है?”

“ज़रूर! तुम्हारी छुन्नी यहाँ जाती है…” उसने अपनी योनि के चीरे की तरफ़ इशारा किया।

“क्या? क्या सच में? क्यों?”

“हाँ। बिलकुल! जब ये यहाँ जाता है, तो बच्चे पैदा होते हैं।”

“क्या? बच्चे इस तरह से पैदा होते हैं?”

“हाँ! आदमी अपना बीज अपनी छुन्नी के रास्ते से औरत की योनि में बो देता है। औरत उस बीज को नौ महीने अपनी कोख में सम्हाल कर रखती है। और नौ महीने बाद बच्चा पैदा करती है। तुमको क्या लगा कि और किस तरह से पैदा होते हैं?”

मुझे क्या लगता? मुझको तो इस बारे में कोई भी ज्ञान नहीं था। लेकिन रचना से अपनी हार कैसे मान लूँ?

“तुम को कैसे मालूम?”

“मैंने मम्मी डैडी को ऐसा करते हुए देखा है।”

“वे दोनों ऐसा करते हैं?”

“हाँ!”

“मतलब तुम्हारे डैडी तुम्हारी मम्मी की कोख में अपना बीज बोते हैं?”

“हाँ!”

“लेकिन फिर तुम उनकी इकलौती संतान कैसे हो? अभी तक उनको कोई और बच्चे क्यों नहीं हुए?”

बात तो मेरी सही थी। मेरे तार्किक बयान ने रचना को पूरी तरह से निहत्था कर दिया। यह सच था - रचना अपने घर में इकलौती संतान थी। और अगर उसने जो कहा वह सही था, तो उसके और भाई-बहन होने चाहिए। इसलिए, मेरे हिसाब से बच्चे रचना के बताए तरीके से तो नहीं पैदा होने वाले! मुझे यह असंभव लग रहा था। वैसे भी उसकी योनि के चीरे में कोई जगह ही नहीं दिख रही थी, और न ही कुछ अंदर जाने की जगह! मुझे कोई ऐसा रास्ता नहीं दिख रहा था कि जिसमें से उसकी छोटी उंगली भी अंदर जा सके। छुन्नी तो बहुत दूर की बात है।

मुझ अनाड़ी को यह नहीं मालूम था कि योनि भेदन के लिए लिंग का स्तंभित होना आवश्यक है। बेशक, रचना को मुझसे कहीं अधिक ज्ञान था, लेकिन उसके खुद के ज्ञान और समझ की सीमा थी। इसलिए, जैसा कि अक्सर होता है, अच्छी तरह से जानने के बावजूद, रचना मेरे तर्कों का विरोध नहीं कर सकी। मैं मूर्ख था - मुझे चाहिए था कि मैं रचना से कहूँ कि मैं उसकी योनि में प्रवेश करना चाहता हूँ। लेकिन अपनी खुद की मूर्खता में मैंने इतना बढ़िया मौका गँवा दिया। फिर भी, रचना के यौवन की मासूमियत की अपनी ही खूबी और अपनी ही मस्ती थी, और उसके दर्शन कर के मुझे बहुत ख़ुशी मिली।

बहरहाल, हमारी छोटी सी बहस ने हम दोनों को फिर से होश के धरातल पर ला खड़ा किया, और हमने झट से अपने अपने कपड़े पहन लिए। फिर उसने अपनी किताबें उठाईं और अपने घर चली गई। रास्ते में उसकी मुलाकात मेरी माँ से हुई।

“आंटी, मैंने अमर को दूध पिला दिया है।” उसने जाते जाते माँ से कहा।

मैंने जब उसको यह कहते सुना, तो मुझे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ! क्या उसने सच में ऐसा कहा! रचना की हिम्मत का कोई अंत नहीं था!

“ठीक है बेटा, बाय!” मेरी माँ ने कहा और उसे विदा किया।
Bohot hi ummdha storie hai.jaise purane time me bacho ko sex ke bare main kam gayan hota tha.us baat ko apne bohot badiya dang se likha.
 
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नींव - पहली लड़की - Update 7


कुछ दिनों बाद, डैड हमें एक फिल्म देखने ले गए। क्योंकि हम लोग फ़िल्में देखने बहुत कम ही जाते थे, इसलिए फ़िल्म वाले दिन कुछ अलग होते थे। आज के मल्टीप्लेक्स जैसा मामला नहीं था तब। एक ही थिएटर था हमारे कस्बे में - सवेरे उनमे एडल्ट फ़िल्में लगती थीं। नहीं, बहुत एक्साइटमेन्ट की ज़रुरत नहीं। एडल्ट फ़िल्में मतलब बिलकुल छिछोरी, दोयम दर्जे की, दोअर्थी संवाद वाली फ़िल्में। तब ठरकी लोगों को उतने में ही मज़ा आ जाता था। गन्दा संदा सा रहता था अंदर - पान की पीक इधर उधर साफ़ देखी जा सकती थी। बीड़ी की गंध जैसे वहाँ समां ही गई थी। शायद इसीलिए डैड वहाँ जाना नहीं चाहते थे। लेकिन मुझे इन सब बातों से फ़र्क़ नहीं पड़ता था - हम बस बाहर जा रहे हैं, वही बहुत बड़ी बात थी मेरे लिए। फिल्म के बाद हम अक्सर बाज़ार में पैदल चलते, गैरज़रूरी खरीदारी करते, और बाहर खाना या चाट आदि खाते थे। मैं जितना माँ से प्यार करता था, उतना ही डैड से भी करता था। डैड बिलकुल भी सख्त नहीं थे, बल्कि वो भी माँ के सामान ही शांत और स्नेही स्वभाव के थे। डैड मेरी पढ़ाई में मेरी मदद भी करते थे, और एक दो साल पहले तक मेरे साथ खेला भी करते थे। फिल्म के अगले दिन रविवार था, इसलिए हमने अगला दिन हर तरह की मस्ती करते हुए बिताया। रचना आज नहीं आई थी। वो भी रविवार को अपने ही घर पर रहती थी। रात होते-होते मैं इतना थक गया था कि खाना खाते ही सो गया।

रात में मेरी नींद तब टूटी, जब मैंने उनके कमरे से आती हुई अजीब सी आवाजें सुनीं। मैं बिस्तर से उठा और उनके बेडरूम के दरवाजे तक गया, और दरवाज़े पर दस्तख़त देने ही वाला था कि मैंने उन दोनों की आहें सुनीं। मैं रुक गया, और बस दरवाज़े के बिलकुल बगल आ कर खड़ा हो गया कि उनकी बातें सुन सकूँ। माँ ने रचना को जो शिक्षा दी थी, यह उसके बिलकुल उलट थी, लेकिन जिज्ञासा का क्या करें?

“आह मेरी जान! मज़ा आ गया! जवानी के दिन याद आ गए!” वह मेरे डैड थे।

“हा हा हा! हम अभी भी जवान हैं, मिस्टर!”

“हा हा हा - हाँ, मेरा मतलब यह था कि आज बहुत दिनों बाद इतनी जबरदस्त तरीके से तेरे साथ सेक्स किया! मैं भूल गया था कि इतनी सारी एनर्जी से सेक्स करने में कितना मज़ा आता है!”

तो मेरे माँ और डैड ‘प्यार’ कर रहे थे!

मैं अपने घुटनों पर बैठ गया और सुनने की कोशिश की। वे जोर से बात नहीं कर रहे थे, इसलिए मैं केवल बस दबी हुई आवाज़ें और उनके बिस्तर की लयबद्ध तरीके से आगे पीछे खिसकने की आवाज़ सुन सकता था।

“सुनो जी, आपको और बच्चे चाहिए क्या?”

“आएँ! यह तुमको क्या सूझी?”

“नहीं, मैं बस पूछ रही हूँ। यदि आप और बच्चे चाहते हैं, तो अभी कर लेते हैं।”

“नहीं जान! मैं एक बच्चे से ही बहुत खुश हूँ। खर्च बढ़ रहा है। जल्द ही अमर ग्रेजुएशन शुरू करेगा, और इसके लिए बहुत सारे रुपयों की ज़रुरत पड़ेगी। एक और बच्चा पालने जितना वेतन नहीं मिलता। मुझे लगता है कि हम एक अमर को ही ठीक से पाल लें, बस बहुत है!”

उन्होंने कुछ मिनटों तक कुछ नहीं कहा ... कमरे से केवल बिस्तर की लयबद्ध आवाज़ें ही आ रही थीं।

“लेकिन सच में! हमारा बेटा तेजी से बड़ा हो रहा है। अच्छा लगता है! हा हा हा! अभी मानों कल तक ही घर भर में नंगा हो कर दौड़ता और खेलता था! और अब देखो!”

“हा हा हा! आपको ही ऐसा लगता है, क्योंकि आप दिन भर तो ऑफिस में रहते हैं न! आपका बेटा अभी भी घर में नंगा ही रहता है!”

“क्या? हा हा हा! बदमाश है! इतने बड़े लड़के को क्या अभी भी नंगा रहना चाहिए? ... और क्या उसे अभी भी तुम्हारा दूध पीना चाहिए? मेरा मतलब है कि अब तो उसे अपनी उम्र की लड़कियों के दूध देखने में इंटरेस्ट होना चाहिए! है न?” डैड ने कहा; उनकी आवाज़ में गुस्से वाला भाव नहीं था। वो बस चिंतित थे।

“हाँ, आपकी बात ठीक है। वैसे उसको अब लड़कियों में इंटरेस्ट आने लग गया है। मुझे रचना बहुत पसंद है। वह बहुत सुंदर और अच्छी लड़की है। अमर के लिए वो ठीक रहेगी!”

“अरे मेरी जान! तुम तो कितना आगे का सोचने लगी! हाँ, रचना एक अच्छी लड़की है... लेकिन उसको अपना दूध पिला कर तुमने उसे अपनी बेटी बना लिया है! हा हा हा!”

“अच्छा जी! इस हिसाब से तो आप भी मेरे बेटे हो गए!”

“हाँ माँ!” पापा ने माँ को चिढ़ाया।

‘क्या! पिताजी माँ के स्तन पीते हैं ?!’ एक और नई बात!

माँ ने हँसते हुए कहा, “सच कहूँ तो, मुझे उन दोनों को साथ में दूध पिलाना अच्छा लगा! दोनों के पीने का तरीका बहुत अलग है! ... पहली बार तो उसने इसके लिए रिक्वेस्ट करी थी, लेकिन अब वो इसकी डिमांड करती है ... जैसे कि वो सचमुच में मेरी अपनी बेटी है ... हा हा।”

“हा हा हा हा! अरे यार, मैं तुमको अमर को ब्रेस्टफीड बंद करने के लिए कह रहा हूँ, और यहाँ तुम एक और बच्चे को लिस्ट में जोड़ने की बात कर रही हो!” डैड ने विनोदपूर्वक कहा।

“हा हा! हाँ ... नहीं ... नहीं ... आप सही कह रहे हैं। मुझे अब यह सब बंद कर देना चाहिए …”

मुझे अचानक ही माँ की चिहुँकने और आहें भरने की आवाज़ आई; बिस्तर की चरमराहट थोड़ी तेज़ हो गई। जब थोड़ी शांति हुई तो माँ बोलीं,

“लेकिन मैं किसी और बात से चिंतित नहीं हूँ। मैं बस चाहती हूँ कि दोनों बच्चे अपने तरीक़े से सब कुछ डिस्कवर करें, और सुरक्षित रहें!”

“हम्म्म! क्या रचना... यहाँ खुश रहती है?”

“हाँ, मुझे तो ऐसा लगता है। अमर और रचना दोनों एक-दूसरे की संगत में रहते हैं! और खुश रहते हैं!”

“अच्छी बात है!”

“वो तो अब रचना के भी निप्पल चूसता है?”

“क्या! शैतान लड़का! हा हा हा ... लेकिन यह सुनकर मुझे बहुत राहत मिली है। उसे अपनी उम्र की लड़कियों पर ध्यान देना चाहिए ... अपनी मां पर नहीं।”

बिस्तर की कुछ और चरमराती हुई आवाज़ें आईं।

“क्या मैं ‘शर्मा’ से बात करूँ, इस बारे में?” डैड रचना के डैडी की बात कर रहे थे।

“नहीं, अभी नहीं! मुझे डर लगता है कि कहीं वो लोग कुछ उल्टा पुल्टा न कर दें! वो काफ़ी दकियानूसी लोग हैं और शायद वो यह सब बातें न समझ पाएँ। मुझे रचना बहुत पसंद है ... पसंद क्या, मैं उसको अपनी ही बेटी समान प्यार करती हूँ, और मैं नहीं चाहती कि उसको किसी तरह की हानि हो।”

फिर वे कुछ देर चुप रहे; बस बिस्तर की चरमराहट की आवाज़ें आती रहीं।

माँ ने कहा, “लेकिन मुझे इस बात का अफ़सोस होता है कि जल्दी ही मेरे बच्चे मेरा दूध पीना छोड़ देंगे!”

“अरे क्यों? इसमें अफ़सोस वाली क्या बात है? यह तो नेचुरल है। जहाँ तक मुझे मालूम है, अमर की उम्र का कोई लड़का अपनी माँ का दूध नहीं पीता!”

“आपने जो सोलह साल तक तक पिया था, उसका क्या?” मेरी माँ ने डैड को चिढ़ाया।

“अरे मेरी बात अलग है जानेमन! और माँ के लगभग तुरंत बाद ही तुम मुझे मिल गई! तुम अमर के लिए परेशान मत होवो! अच्छा लड़का है! मेहनती है, इंटेलीजेंट है। व्यवहारिकता समय के साथ साथ आती है। अभी उसका फोकस पढ़ाई लिखाई पर है। वहीं फोकस रहे, तो अच्छा है। वो लड़की कहीं भागी नहीं जा रही है!”

“सबसे पहले तो आप उसे ‘वो लड़की’ कहना बंद कीजिए ... उसे उसके नाम से बुलाइये या बेटी कहिए…” माँ ने प्रसन्नतापूर्वक विरोध किया।

उसी समय डैड ने एक लंबी, संतुष्ट ‘आह्ह्ह्ह’ वाली आवाज़ निकाली। उसके बाद सब कुछ शांत हो गया। कुछ पलों तक मैंने इंतजार किया, लेकिन और कोई आवाज़ नहीं आई। मैं बस जाने ही वाला था कि माँ की आवाज आई,

“लेकिन मुझे लगता है कि आपको उससे बात करनी चाहिए [माँ हँसने लगीं]। मैं उसे बहुत कुछ बता सकती हूँ, लेकिन आपको भी कुछ सिखाना चाहिए! उसे बहुत कम मालूम है। पता नहीं, अभी तक उसने हाथ से करना शुरू किया या नहीं!”

माँ की इस बात पर दोनों एक साथ हँसने लगे। मुझे समझ ही नहीं आया कि क्यों!

“तो, मेरा बेटा अब बड़ा हो गया है! हा हा हा!”
Bhai apki storie or lekhni ke liye shabad bi kam pad rahe hai.lazwaab
 
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नींव - पहली लड़की - Update 14


“अरे, दीदीयौ उतारति हैं।” पहले वाली महिला बोली, “हम कै देई तोहार मालिस?”

माँ ने एक पल सोचा, और कहा, “ठीक है दीदी!” और खड़ी हो गईं अपने बाकी के कपड़े उतारने के लिए। एक दो महिलाएँ उनके पास आ गईं उनकी मदद करने के लिए। और शीघ्र ही माँ भी मेरे और गायत्री के समान ही पूर्ण नग्न हो गईं।

“सास पतोहू मा कउनौ अंतरै नाही!” चाची ने माँ को देख कर कहा, और उनकी बात पर सभी ठहाके मार कर हँसने लगे। सच में, अपनी निर्वस्त्र अवस्था में माँ गायत्री से बस कुछ वर्ष ही बड़ी लग रही थीं।

“सही मा! दीदी, तुहौ करधनिया पहिरा करौ!” उनके लिए हर बुरी बात का इलाज़ करधन पहनना ही था।

माँ हँसते हुए गायत्री के बगल आ कर बैठ गईं और उसको प्यार से अपने गले लगा कर बोलीं, “बेटा, इन सबकी बात मत सुनो! तुम बहुत ही प्यारी, बहुत ही सुन्दर लड़की हो!”

उसकी माँ बहुत प्रसन्न हो गई और बोली, “ऊ तौ घामे मा काम करै का परत है, नाही तो हमार बिटिया गोर है खूब!”

“तौ के कहिस की आपन लौंडिया से घामे मा काम कराओ!” किसी ने कहा, “खेलै कूदै दियौ!”

“का खेलै कूदै देई! लउकी जस बाढ़ी जाति हय! कहूँ, अच्छे घरै बियाह होइ जाय तौ सांती हुवै! अउर काम ना करिहैं तो कईसे चले!”

सच में गाँव में उस समय बहुत गरीबी थी। हम भी वैत्तिक रूप से कोई संपन्न नहीं थे - महीने के अंत में बस थोड़े से ही रुपए बचते थे। लेकिन उतने में ही हम गाँव वासियों के लिए धन्ना सेठ जैसे थे। यह सब बातें मुझे थोड़ा और बड़े होने पर समझ आई। माँ का सारा भोलापन लगता है कि मुझे ही मिल गया था। या यह कह लीजिए कि उनके ममतामय पालन पोषण के कारण मेरे मन में छल कपट बिलकुल भी नहीं आया (बहुत बाद में आया)! माँ लेकिन हमेशा प्रेम, ममता, मृदुलता, मृदुभषिता, और भोलेपन की प्रतिमूर्ति रहीं! सच में, उस अभाव में भी अगर हमारे घर में प्रसन्नता और सुख था, तो उसका सबसे बड़ा कारण माँ ही रहीं।

“भगवान् ने चाहा, तो सब ठीक हो जाएगा, दीदी!” माँ ने कहा, “आप चिंता न करें!”

माँ और गायत्री की मालिश शुरू हो गई। सच में, चाची ने मेरी जो मालिश की थी, उससे आनंद तो आया ही आया, और साथ ही शरीर में स्फूर्ति भी खूब आई। मुझे उम्मीद थी कि माँ को भी ऐसा ही आनंद मिले। जितनी तसल्ली से चाची ने मेरी मालिश की थी, वैसी तसल्ली उन्होंने गायत्री की करते हुए नहीं दिखाई।

“चाची,” मैंने भोलेपन की एक्टिंग करते हुए कहा, “गायत्री के छुन्नी क्यों नहीं है?”

“बिटवा, छुन्नी जोन है न, लरिकन कै होवत है। ई तोहार जस खरा बाय, ई हियाँ जात है,” उन्होंने गायत्री की योनि के होंठों को थोड़ा खोल कर मुझे दिखाया।

“अमर,” माँ ने भी बनावटी नाराज़गी दिखाते हुए कहा, “बदमाशी नहीं!”

“औरतन अउर लड़कियन के लगे चूत होवत है, और लरिकन के लगे छुन्नू!”

“दीदी, उसको ये सब मत सिखाओ!” माँ ने चाची से कहा। वो भी मेरे भोलेपन की एक्टिंग में मेरा साथ दे रही थीं। एक महिला उनके स्तनों की मालिश कर रही थी, और दूसरी उनकी जाँघों की। उनकी आँखें बंद थीं।

“अरे बहू, ई सब न जाने हमार लल्ला, तो कइसे चले?” उन्होंने माँ को समझाते हुए कहा, “तू ओका कुछु सिखौतै नाही न! यही सब तौ सबसे जरूरी बाय जिंदगी मा जानै

“बिगड़ के जाएगा मेरा लड़का यहाँ से!”

गायत्री अब मुझे बड़ी रूचि ले कर देख रही थी।

“तू... तुम्हारा नाम क्या है?” उसने पूछा।

“अमर!”

“अपने भतार कै नाव नाही लिया जात, समझियु!” चाची ने उसको छेड़ा। आँगन में फिर से ठहाके गूँज उठे। बेचारी गायत्री मन मसोस के रह गई।

“हियाँ आवो लल्ला,” चाची ने मुझे अपने बगल बैठने को बुलाया, और फुसफुसाते हुए पुछा, “एका छुई कै देखबो?” वो पूछ रही थीं कि क्या मैं गायत्री के स्तन छूना चाहता हूँ! अरे बिलकुल! लेकिन माँ?

मैंने शंका से माँ की तरफ देखा, उनकी आँखें बंद थीं, और उनकी मालिश करने वाली महिला, उनकी योनि के होंठों को थोड़ा सा मसल रही थी, और उनसे कह रही थी, “दीदी, तुमहुँ बिटियै जस हौ! एक लरिका कै महतारी बन गयु, लेकिन हौ पूरी बिटियै!”

गायत्री मेरी ही तरफ देख रही थी। मैं ‘हाँ’ में सर हिलाया, और अपना हाथ उसके एक स्तन पर रख दिया। ठोस स्तन! माँ जैसे! छोटे, लेकिन ठोस! उसकी माँ भी मुझे अपनी बेटी के साथ ऐसे छेड़-छाड़ करते हुए देख रही थी। लेकिन कह कुछ नहीं रही थी। उसने अपनी माँ की तरफ़ देखा, और उनके चेहरे पर इस कृत्य के लिए मूक सहमति देख कर वो भी थोड़ी सहज हो गई। मैंने फिलहाल उसके दोनों स्तन पकड़ लिए, और मज़ाकिया ढंग से उनको अपनी हथेली से दबा दिया। उसके चूचक उठ आए। वो हलके से मुस्कुरा दी,

“कैसा लगा?” उसने पूछ लिया।

“बहुत सुन्दर!” मैंने कहा।

“हाँ! अब बाकी सब बियाहे के बाद किह्यौ!” चाची ने कहा, तो मैंने गायत्री को छोड़ दिया।

कुछ देर बाद माँ की मालिश भी समाप्त हो गई। उनका शरीर दमकने लगा था और बढ़े हुए रक्त प्रवाह से पूरे शरीर पर एक लाल रंगत फ़ैल गई थी। सच में, माँ और उनका भोला सौंदर्य! उनसे सुन्दर स्त्री मैंने जीवन में कोई नहीं देखी!

“नहाने का क्या करें?” उन्होंने पूछा।

“अरे बहू, अबहीं न नहाओ! संझा का नहाय लिह्यौ!”

“ठीक है दीदी! लेकिन तेल तेल महकेगा!” माँ ने हँसते हुए कहा।

“महकै दियौ! आज राते हमरे घरै लेट जायौ। काल हियाँ सब ब्यवस्था होई जायै! ठीक है?”

“ठीक है दीदी!”

माँ, मैंने और गायत्री ने फिर से अपने कपड़े पहन लिए। माँ ने गायत्री को अपने पास बुलाया, और फिर अपने पैरों की पायल उतार कर गायत्री के हाथों में दे दी। माँ के पास बस दो ही जोड़ी पायल थीं, और यहाँ आने के लिए उन्होंने भारी वाली पायल पहनी थी। इसलिए मुझे आश्चर्य हुआ कि उन्होंने वो पायल गायत्री को दे दी।

“गायत्री बेटा,” माँ ने कहा, “अपनी माँ की बात पर चिंता न किया कर! वो माँ है न! उनका काम ही चिंता करना है।” और गायत्री के माथे को चूम लिया। वो इतनी भावुक हो गई कि कुछ बोल ही न सकी। बस माँ के पैरों को छू कर, अपने आँसू पोंछते हुए घर से बाहर निकल गई।

बाद में जब मैंने माँ से पूछा कि उन्होंने अपनी भारी वाली पायल गायत्री को क्यों दे दी, तो उन्होंने कहा कि उनसे अधिक, गायत्री को उसकी आवश्यकता थी। इसी बहाने से उसके पास अपने विवाह के लिए एक आभूषण हो गया। कैसी हैं मेरी माँ! दूसरों को अधिक दे कर, अपने पास कम रखना - ऐसी हैं मेरी माँ! मालिश के बाद हम सभी दिन के बाकी कामों में व्यस्त हो गए। दोपहर का भोजन भी चाची के यहाँ ही था, जिसको सभी महिलाओं ने मिल कर पकाया। भोजन के बाद मैं माँ के साथ आँगन में ही ज़मीन पर एक चद्दर डाल कर सो गया। गर्मी बहुत थी, इसलिए मैं नंगा हो गया, और माँ भी। ऐसा बहुत कम ही हुआ है। उधर डैड खाना खा कर कल से शुरू होने वाले काम के लिए मिस्त्री और मजदूरों से बात करने में लग गए।

शाम होने पर जब मेरी नींद खुली, तो मैंने पाया कि माँ नहा कर, तरोताज़ा हो कर, तैयार बैठी हैं। चाची भी थीं, चाचा भी, और डैड भी। चाची का छोटा बेटा, जो मेरी उम्र का था, वो भी वहाँ बैठा था।

“ननकऊ,” चाची ने कहा, “लल्ला का नहुवाय कै लै आवो!”

“हाँ बेटा,” माँ ने भी कहा, “जाओ और नहा कर आ जाओ!”

“ऐसे?”

“हाँ, तुम्हारे कपड़े धुल गए हैं, और नए कपड़े नहाने के बाद मिलेंगे!”

नहा कर वापस आने पर मैं भी तैयार हुआ। गाँव के मंदिर में संध्या वंदन बड़ा सुन्दर होता है और माँ और डैड उसको देखना चाहते थे। हम मंदिर में ठीक समय पर पहुँचे। आरती का आनंद उठाया और ख़ुशी ख़ुशी घर वापस आ गए।


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विशेष उल्लेख : कहानी का यह अद्यतन kailash1982 जी के सुझावों से प्रेरित है।
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पहला प्यार - विवाह - Update #7


उसके स्तन - हे भगवान! गैबी के स्तन 34B आकार के, बड़े प्यारे से स्तनों की जोड़ी! उसके चूचक अपने प्राकृतिक रंग से सुशोभित हो रहे थे। दोनों चूचक स्तंभित थे, और थोड़े मोटे लग रहे थे। उसके चूचक हाँलाकि आकार में छोटे थे, लेकिन उत्तेजनावश कड़े हो रखे थे और अपनी अधिकतम लंबाई को प्राप्त थे। चूचकों के बगल लगभग डेढ़ इंच का, चूचकों के ही रंग का एरोला था। मतलब, ऐसे स्तनों को कोई कैसे न पिए? उसके चूचक इतने सख्त हो गए थे कि मैं उनको अपने होंठों, और दाँतों के बीच लेने को मरा जा रहा था। गैबी के प्रत्येक स्तन पर फूल का एक बड़ा ही मोहक पैटर्न बना हुआ था - चूचक और एरोला को फूल के मध्य भाग (कोर) के रूप में ले लिया गया था और एरोला के गिर्द फूल की पंखुड़ियाँ निकल रही थीं। अच्छा किया कि उसके चूचक और एरोला के प्राकृतिक रंग को छेड़ा नहीं गया। नहीं तो उन फूलों की शोभा कम हो जाती!

गौर करने वाली बात यह है कि मेंहदी का रंग ठीक से सेट होने के लिए, मेहंदी को लगभग 12 से 16 घंटे के लिए शरीर छोड़ देना चाहिए, ताकि रंग जम जाए। सूख तो करीब एक घंटे में जाती है! लेकिन उसका रंग चढ़ने में उतना समय लग जाता है। इसका मतलब है कि, गैबी, और जिसका भी ये आईडिया हो (बहुत संभव है की माँ का ही आईडिया हो), ने बड़ी मेहनत करी है! वाह! और वो भी इस ठंड के मौसम में! अद्भुत! गैबी कुछ देर तक तो वैसे ही खड़ी रही, लेकिन जब उसने सोचा कि मैंने मन भर कर उसको देख लिया है, तो वो वापस बिस्तर पर बैठ गई। इसके बाद, उसने अब तक का सबसे कामुक काम किया - उसने एक हाथ से अपने एक स्तन को पकड़ते हुए ऊपर उठाया, जैसे कि मुझे दे रही हो, और बोली,

कम माय लव! इसको पियो - स्चुपार मेउस पेइतोस (मेरे स्तनों को पियो)।”

पिछले दिनों काजल और मेरे बीच में जो कुछ हुआ था, वो सब बातें मेरे दिमाग में तुरंत कौंध गईं। मैंने नग्न गैबी की कुछ और तस्वीरें क्लिक कीं और फिर उसके पास बैठ गया। उसने धीरे से मेरा सर अपनी ओर लिया, और मैंने उसका एक चूचक अपने मुँह में पकड़ लिया। जब मैं चूस रहा था तो उसने अपने स्तन को धीरे से निचोड़ना शुरू कर दिया, ताकि मुझे और अधिक दूध पिलाया जा सके। लेकिन गैबी को दूध तो आता ही नहीं - तो क्या यह सहज मातृ वृत्ति है, जो सभी स्त्रियों में होती है? कह पाना मुश्किल है। फिलहाल तो मैं उसके चूचक चूसने का आनंद उठा रहा था - उनका आकार मेरे मुँह में आ कर बढ़ गया, और मैं उनकी दृढ़ता महसूस कर सकता था। मैंने उसके पूरे चूचक को अपने मुंह में ले लिया, और अपने होंठों को उसके एरोला की नरम त्वचा पर महसूस किया। मेरे ऊपर एक पागलपन सवार हो गया - मैं उसके चूचकों को चबा रहा था, उनको कुतर रहा था, और उन्हें जोर से काट रहा था। गैबी मेरी हर हरकत को बर्दाश्त कर रही थी। मैं यह सब नाटक करता, और फिर से उसके पूरे चूचक को मुंह में ले कर चूसता। और फिर से वही सारा चक्कर शुरू कर देता। न जाने क्यों दिल में यह इच्छा उठती कि काश उनमे दूध आ जाए! गैबी मेरी हरकतों से आहत हो कर, और कमावेश से वशीभूत हो कर आहें भरने, और कराहने लगी! साथ ही साथ वो अन्यमनस्क हो कर मेरे चूसने के लय में ही अपने स्तनों को निचोड़ने लगी।

गैबी के स्तनों को पीना, काजल के स्तनों को पीने के बहुत समान भी था, लेकिन उससे बहुत भिन्न भी। उसका एक स्तन पीने से जब मेरा मन भर गया, तब मैंने अपना सर उसकी छाती पर से उठा लिया; उसका चूचक मेरी लार से सन कर चमक रहे थे, और बहुत सख्त हो गए थे। फिर मैंने दूसरा स्तन पीना शुरू कर दिया। उसका दूसरा चूचक उत्तेजनापूर्वक बाहर निकला हुआ था, मानो जैसे पुझसे खुद को चूसे जाने का आग्रह कर रहा था! तो फिर मैंने उसको भी चूसना, चबाना, काटना, और फिर चूसना शुरू कर दिया। जैसा उसने पहले स्तन को किया था, मेरे चूसने के साथ गैबी फिर से ताल में अपने इस स्तन को भी निचोड़ने लगी।

“ओह हनी, बहुत अच्छा लग रहा है!” उसने कोमलता से कहा।

उसने अपना खाली हाथ मेरे सर पर रखा, और अपनी उँगलियों को धीरे से मेरे बालों में घुमाया! मुझको सहलाते सहलाते, धीरे-धीरे उसका हाथ पजामे के ऊपर मेरे लिंग तक पहुँच गया। मेरे अंडरगारमेंट के बावजूद, मेरा लिंग बाहर तक उभर कर दिख रहा था।

“ओह गॉड!” उसने कहा, “माय सिनामन इस सो बिग!” और धीरे से उसे सहलाना शुरू किया!

पहले तो उसका हाथ मेरे लिंग को कपड़े के ऊपर से सहला रहा था, पर फिर उसका हाथ मेरे पजामे के अंदर, सीधा उस पर आ गया और मेरे लिंग की लंबाई पर ऊपर और नीचे सरकने लगा। युवावस्था किसी मनुष्य के जीवन का एक अद्भुत समय है। आप बहुत कम समय में यौन क्रीड़ा के लिए स्तंभित हो सकते हैं। गैबी के हाथ का स्पर्श पा कर मैं आकाश में तैरने लगा - उसकी उंगलियों का स्पर्श गर्म और कोमल था! उसके चूचक मुझे आनंद देने के लिए तत्पर थे, उसकी छाती कोमल और आरामदेह थी, और वो मुझसे फुसफुसा कर बातें कर रही थी,

“तुम्हारा लण्ड तो बहुत सख्त हो गया है। बेचारा! इसे कुछ मदद की ज़रूरत है... है ना? इतना बड़ा लण्ड! इतना मर्दाना! इतने बड़े बड़े टेस्टिकुलोस (अंडकोष)!”

गैबी नटखट हो रही थी, तो मैंने भी उसी के अंदाज़ में जवाब दिया, “हाँ, मेरा लण्ड बड़ा है ... मेरे अंडकोष बड़े हैं, क्योंकि तुम एक बड़ी और नटखट लड़की हो। तुम्हारे हनी-पॉट (योनि) को भरने के लिए इनको ढेर सारे रस का उत्पादन करना होता है! मेरा लण्ड तुम्हारी चूत को खूब फैलाएगा, खूब चोदेगा, और फिर उसको अपने जूस से भर देगा... पूरा भर देगा! अब मुझे अपना दूध पीने दो!”

मैं उसके चूचक फिर से पीने लगा, उधर उसने मेरे लिंग पर अपनी पकड़ मजबूत कर दी, और शिश्नग्रच्छद को ऊपर और नीचे सरकाने लगी।

“क्या मेरे डार्लिंग को चोदने का मन है?” गैबी ने बड़ी शरारत से कहा। न जाने कैसे उसने शर्म को छोड़ कर मेरे खेल में शामिल होने का निर्णय ले लिया।

मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया; उसका चूचक मेरे मुँह में ही था, इसलिए सर हिलाने के साथ साथ उसका स्तन भी ऊपर - नीचे हुआ।

“क्या तुम मुझे चोदोगे?” उसने खेल को आगे बढ़ाया।

मैंने फिर ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“आह! मेरी जान, मेरी बिकानो (योनि) को जलन हो रही है, क्योंकि तुम्हारा सारा ध्यान मेरे पेइतो (स्तन) पर है!”

उस समय मेरी उत्तेजना की स्थिति यह थी, कि मैं अपने लिंग को किसी भी योनि में डाल कर उसको भोग लूँ! इस समय मेरा लण्ड एक अच्छी, गर्म, नम, और तंग योनि में डुबकी लगाने के लिए बेताब हुआ जा रहा था। मैं इस समय प्रेम-प्रसंग (लव मेकिंग) के मूड में नहीं था; मैं इस समय शुद्ध चुदाई के मूड में था! बड़े लम्बे समय से एक दबी हुई वासना मेरे मन में उबल रही थी, इसलिए मैं उसका दबाव निकालना चाहता था। मैं बिस्तर से उठा, और अपनी बाहों का उपयोग करके गैबी को बिस्तर पर लिटा दिया। इसके बाद, मैंने बेहद जल्दबाज़ी में अपने कपड़े फ़ेंके, और खुद को गैबी की जाँघों के बीच साधा!

“ओह, भगवान,” गैबी ने बड़ी कामुकता से कहा।

सम्भोग के पूर्वानुमान में उसका सर करवट में हो गया, उसकी आँखें कस कर बंद हो गईं, और उसका चेहरा लाल हो गया। गैबी सोच रही होगी कि मेरा लिंग उसके अंदर जाते समय उसको कैसा महसूस होगा। मैं, पति पत्नी के रूप में एक होने के लिए जैसे ही उसके ऊपर झुका, उसने अपनी उंगलियों से अपनी योनि के होंठ फैला दिए, और मेरे लिंग को अपने दूसरे हाथ से पकड़ कर उसे अपनी योनि की ओर निर्देशित किया। उसकी योनि पिछले कुछ दिनों से हमारे संसर्ग की प्रत्याशा, अभी अभी हुए उसके चरमोत्कर्ष, और उसके स्तनों के चूसे जाने की उत्तेजनाओं से, भीग रही थी। तो, मैंने ज़ोर लगाया, और उसकी योनि के फाटक के दोनों पटों को धकेलते हुए भीतर तक घुस गया - जब तक उसके योनि के होंठ मेरे लिंग के आधार को चूमने नहीं लगे। शायद अतिउत्साह और उत्तेजना के कारण, उस धक्के में बल की मात्रा बहुत अधिक थी, और क्योंकि उसकी योनि इतनी अधिक चिकनी थी, पहले ही धक्के में मैं अपनी पत्नी के भीतर प्रवेश कर गया।

“आआह्ह्ह्ह! हे भगवान,” गैबी इस अचानक हुए हमले से चौंक गई। उसका चेहरा दर्द से विकृत हो गया, और पूरा शरीर दर्द से ऐंठ गया। उसने अपनी आँखें खोलीं और मेरी तरफ निरीहता से देखा,

“आह्ह! हनी, तुम सच में बहुत बड़े हो! मैं इसके लिए छोटी हूँ! थोड़ा सावधानी से!”

मुझे खुशी थी कि लड़की अनुभवी थी; अन्यथा, मेरी अनुभवहीनता और मेरी अधीरता ने उसे बहुत नुकसान पहुँचा दिया होता। या संभव है कि नुकसान पहुँचा दिया हो, और मुझे मालूम नहीं पड़ा। मुझे सम्भोग सही तरीके से करना होगा। मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया और गैबी को धीरे-धीरे से भोगने लगा। उसका चेहरा अभी भी दर्द से विकृत था, लेकिन उसकी मुझे आनंद देने की इच्छा इतनी बलवती थी, कि उसने अपना हाथ नीचे बढ़ाया, और मेरे अंडकोष को छुआ।

“हनी, तुम्हारे टेस्टेस (अंडकोष) भी बड़े हैं।” उसने कहा, फिर उसने अपनी आँखें फिर से बंद कर लीं और अपनी पीठ को थोड़ा मोड़ कर मुझे और स्थान दिया - अब वो संभोग की बनती हुई लय को महसूस कर रही थी। लेकिन उसकी आँखों के कोनों से मुझे आँसू गिरते दिखे! लेकिन क्या करूँ! मेरा लिंग बड़ा है, तो है! अब इसको काट कर, या छील कर छोटा तो नहीं किया जा सकता है न! दर्द तो महसूस करना ही पड़ेगा बेचारी को।

“ओह, भगवान,” उसने अस्पष्ट सा विलाप किया, “इतना लंबा समय हो गया है! ओह! बहुत अच्छा लग रहा है! बहुत अच्छा ... करते रहो... मेरे दर्द की परवाह न करो!”

मैंने सम्भोग लय में थोड़ा मसाला डालने के लिए गैबी के स्तनों को पकड़कर, और उन्हें दबा कर अपनी ओर उभारा, और सम्भोग करते हुए उसके चूचकों को बारी बारी चूसना शुरू कर दिया। कुछ देर उसके स्तनों का आनंद लेने के बाद, मैं उस पर लगभग लेट गया और एक अच्छी, ठोस ‘चुदाई’ शुरू कर दी। जैसा मुझे उम्मीद थी, हर धक्के के साथ, गैबी का क्रंदन और विलाप निकलने लगा। उसको आनंद तो आ रहा था, लेकिन लिंग के आकार के कारन उसको असहज महसूस हो रहा था।

मुझको उत्साहित करने के लिए वो कराहते हुए, और रुक रुक कर बोली, “ओह डियर! माय लव! तुम बहुत अच्छे हो। मुझे बहुत खुशी है कि मैंने तुम्हारा इंतजार किया ... बहुत खुशी है कि मैंने इसके लिए इंतजार किया…”

अपने लिंग पर उसकी योनि की मज़बूत पकड़ मैं महसूस कर रहा था। काजल के साथ वैसा एहसास नहीं था - गैबी वाकई बहुत ही सँकरी थी। अपनी समझ से मैं तेज़ धक्के लगा रहा था, लेकिन योनि के सँकरेपन के कारण गति थोड़ी धीमी ही निकल रही थी। उसने मेरा साथ देने के लिए, मेरे ही लय में अपने कूल्हों से हल्का सा धक्का लगाया, और अपनी योनि को मेरे लिंग पर सरकने दिया। साथ ही वो मुझे प्रोत्साहन देने के लिए मेरी मर्दानगी की बढ़ाई करने लगी। लेकिन जब उससे बहुत अधिक हरक़त नहीं हो सकी, तो उसने अपनी टांगों को मेरी कमर के चारों ओर लपेट लिया, और मुझे दिल खोल कर सम्भोग करने दिया। इस प्रकार का उत्तेजन महसूस कर के, मुझे भी अपना चरमसुख आते हुए दिखने लगा। मैंने गैबी को आगाह किया मैं कुछ ही देर में स्खलित जाऊँगा। लेकिन, गैबी निश्चित रूप से बहुत अधिक उत्तेजित थी, और वो इस कार्य को रोकना नहीं चाहती थी, जिस कार्य में उसको ऐसा दर्दनाक आनंद आ रहा था!

उसने हाँफते हुए कहा, “अभी नहीं हनी, अभी नहीं। थोड़ा ब्रेक ले लो, और मुझे पोजीशन बदलने दो।”

तो मैंने उसको जो वो चाहती थी, वो करने दिया। उसने अपना दाहिना पैर ऊपर उठाया, और मुझसे अलग हो कर पेट के बल हो गई। इस पूरे समायोजन (एडजस्टमेन्ट) में एक बात यह दिलचस्प थी कि मेरा लिंग, गैबी की योनि से बाहर नहीं मिक्ला। मैं रुक गया, जब तक गैबी ठीक से एडजस्ट नहीं हो गई। अब तक मेरी साँसें थोड़ी शांत हो गईं। बढ़िया बात यह है कि मेरे लिंग ने मुझे निकट आते स्खलन का संकेत भेजना बंद कर दिया। मतलब हमारा पहला संभोग कुछ और देर चल सकता है। मैंने गैबी के कूल्हों को पकड़ लिया, और एक नए जोश के साथ धक्के लगाना शुरू कर दिया।

गैबी ने मेरी तरफ देखने की कोशिश करते हुए दर्द-भरी कामोत्तेजना से फुसफुसाया, “धीरे-धीरे, हनी... धीरे-धीरे!”

मैं अपनी गति पर थोड़ा विराम लगाया। गैबी ने अपना सर नीचे कर के मेरी तरफ़ हल्का सा धक्का लगाया। उसने एक मीठी आह भरी, और धीरे से कहा, “हनी, खूब आराम से करो! ये हमारा पहला मिलन है - मुझे यह देर तक चाहिए - इसलिए अपना समय लो सब करने में।”

एक सबक भी सीखने को मिला : एक अनुभवी महिला, जिसने लंबे समय तक सेक्स न किया हो, वो काफी अतृप्त हो सकती है! लेकिन ये एक अच्छी बात थी। सच में, पहला सम्भोग तो हमेशा ही यादगार होता है। इसलिए ये देर तक चलना चाहिए। मैंने धीरे-धीरे अपने लिंग को उसकी योनि से बाहर निकाला, और फिर धीरे-धीरे इसे अंदर की ओर धकेला। उसी लय में वो अपने कूल्हों को भी हिला रही थी - इसलिए योनि भेदन की गति अब अच्छी हो गई। हाँ, वाकई ये इंतजाम बहुत बेहतर था! मैं अब अपने दोनों हाथों से उसके स्तन और भगशेफ से खेल सकता था।

उसने कराहते हुए कहा, “ओह डार्लिंग! ए बिट ऑफ़ डायरेक्शन एंड यू परफ़ॉर्म ग्रेट!”

वास्तव में!

गैबी ने अब अपने कूल्हों की गति थोड़ा तेज कर दिया, और मैंने ठीक इसके विपरीत, अपनी गति धीमी कर दी। उसने इस बात को महसूस किया, मुस्कुराते हुए कहा, “अरे, तुम वाकई बड़ी तेजी से सीख गए!”

मैं हँसा, और अपनी उंगली ने उसके भगशेफ को छेड़ते हुए बोला, “हाँ, सिखाने वाली भी तो सेक्स की देवी है!”

कुछ और धक्कों के बाद, हाँफते हुए गैबी ने कहा, “हनी, अब बस, अब मैं थक गई! अब मैं ढलने के लिए बिलकुल तैयार हूँ!”

मैंने उसे चिढ़ाते हुए पूछा, “पक्का?”

वह मेरे लिंग पर अपना धक्का लगाते हुए, लगभग चिल्लाते हुए बोली, “येस!”

और फिर, उसके मुंह से रति-निष्पत्ति की चीख निकल गई; उसने अपने चेहरे को तकिए में घुसा दिया, जिससे उसकी चीख पुकार तक न जाए!

मुझे लगा कि उसकी योनि की दीवार मेरे लिंग की लम्बाई पर और भी अधिक कस गई है। अपने चरमसुख पर पहुँच कर गैबी की योनि एक अलग ही ताल पर नृत्य कर रही थी। मैं कराह उठा! उधर मेरी खुद की कामोत्तेजना ज़ोर पकड़ रही थी। मैं गैबी के साथ अपने सम्भोग के दौरान अपने आत्मविश्वास और जोश से हैरान था। वाकई, मज़ा आ गया! सच में, इतने दिनों तक इंतज़ार करने का फ़ल बड़ा ही सुखदायक रहा! मैं अपने आसन्न स्खलन के बारे में गैबी को सावधान करना चाहता था! लेकिन मैं कुछ कहता कि मेरा स्खलन शुरू हो गया - पहला वाला गोला, जैसे एक विस्फोट के रूप में मेरे लिंग से बाहर निकला, और गैबी के गर्भ में भीतर तक समां गया। अब मेरी बोली नहीं, बस सुख-कारी आहें ही निकलने वाली थीं। बोली फिर से एक धक्का लगाया, और दूसरी गोली चला दी। गैबी कराह उठी, और कांपने लगी! मानो उसे मेरे वीर्य का भार प्राप्त करने की बड़ी खुशी हुई हो! ऐसे ही कुछ और धक्कों के बाद, मेरा अंश पूरी तरह से गैबी के अंदर जमा हो गया।

जब मैंने अपना लिंग बाहर निकाला, तो यह देख कर दंग रह गया कि मेरे लिंग ने उस हालत में भी, गैबी के पेट पर एक दो और वीर्य की छोटी छोटी बूँदें गिराई! बहुत बढ़िया! जब मैं अंततः रुका, तो मैंने देखा कि मेरा वीर्य उसकी योनि से बाहर रिस रहा है...! हमारा पहला संसर्ग एक मैराथन था! अच्छा खासा समय बीत गया। थकावट और भावनाओं के रोलर-कोस्टर से उबर कर, मैं अपनी प्यारी पत्नी के ऊपर ही ढेर हो गया। हम दोनों ने अपनी साँसों को स्थिर करने में कुछ समय लिया। गैबी ने फिर अपनी योनि को छूने के लिए हाथ बढ़ाया - शायद वो पीड़ा के लक्षण महसूस कर रही थी, लेकिन हमारे सम्मिलित रसायनों ने उसकी उंगलियों को गीला कर दिया।

“हनी, क्या तुम... क्या तुम मेरे अंदर आए?” उसने पूछा।

“हाँ माय लव!”

“हे भगवान!” उसने कोमलता से कहा, “यह खतरनाक हो सकता है!”

उसके कहते ही हमारे बीच एक अजीब सी, संक्षिप्त सी खामोशी हो गई। मैं थोड़ा बुरा सा महसूस करने ही वाला था कि गैबी ने संतुष्ट हो कर कहा,

“ओह! मैं तो अब एक मैरिड वुमन हूं! और ये मेरे हस्बैंड का सीमन है! इसको तो मैं हमेशा अपने ही अंदर लेना चाहूँगी! किसी भी अन्य चीज से अधिक!”

गैबी ने यह बात बड़े आराम से कही थी। मुझे लगता है, कि क्योंकि अब हम शादीशुदा थे, तो अपने अंदर, मेरे बीज को स्वीकार करते हुए, उसे स्वाभाविक लगा होगा। उसने इस बात की पुष्टि की,

“हनी, उस बात को भूल जाओ जो मैंने पहले कही थी... मैं तुम्हारी पत्नी हूं, और मैं हमेशा, और बड़ी खुशी से अपने अंदर तुम्हारा सीमन लूंगी!”

उसने अपनी जीभ से अपनी उंगली को चाटा और कहा, “क्या तुमको मालूम है, कि तुम्हारा बड़ा बढ़िया है?”

मैंने उसका हाथ उसकी योनि पर जाते देखा; उसने अपनी उंगलियों पर मेरे रिसते हुए वीर्य को पोंछा, और फिर से उसको चाट लिया!

“बहुत बढ़िया!” उसने दोहराया।

***
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नींव - पहली लड़की - Update 15


मंदिर से लौट कर हमने खाना खाया, और फिर कुछ देर की बात-चीत के बाद, सोने के कल वाले ही इंतजाम में अपने अपने बिस्तर में लेट गए। आज मैंने माँ के कहने से पहले से ही अपने सारे कपड़े उतार दिए थे। आज उमस और गर्मी काफी बढ़ गई थी - संभव था कि रात में बारिश हो। इस उमस और गर्मी के कारण माँ भी केवल ब्लाउज और पेटीकोट में थीं। मैं उनके बगल लेट कर उनकी ब्लाउज खोलने लग गया।

“आज मालिश करा के अच्छा लगा?” माँ ने पूछा।

मैंने उत्साह से ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“अरे नीक काहे न लागै! लल्ला, हम तोहार रोज करबै!”

“दीदी, आप इसकी आदत बिगाड़ दोगी! वापस जा कर मैं यह सब कैसे करुँगी?”

“अरे ऊ बाद कै बात बाय! अबहीं एक हफ्ता तौ मजा लै लियौ!” चाची ने कहा, फिर बोली, “लल्ला, अपनी महतारी कै दुधवा तो रोजै पियत हो। हमहूँ पियाय देई?”

मुझे गाँव की भाषा बहुत समझ में नहीं आती थी। थोड़ा बहुत अंदाजे से समझ पाता था। माँ ने कहा,

“चाची जी का दूध पियोगे?”

मुझे समझ में नहीं आया कि क्या उत्तर दूँ! माँ के अतिरिक्त और किसी का स्तन नहीं पिया था मैंने। कम से कम मुझे तो याद नहीं पड़ता। अच्छा, एक और बात है - इसको शहर के लोग भले ही बहुत अनहोनी बात मान लें, लेकिन गाँवों में महिलाएँ एक दूसरे के बच्चों को स्तनपान कराने में कोई बुराई नहीं समझतीं। दूध का मुख्य स्त्रोत माता ही होती है, लेकिन अन्य महिलाएँ भी समय पड़ने पर बच्चे को अपना दूध पिला सकतीं हैं। इसी सामुदायिक लालन पालन के कारण गाँवों के बच्चे अपने समाज से अच्छी तरह जुड़े रहते हैं! मातृत्व और वात्सल्य एक ऐसा सुख है जो समुद्र जितना विस्तृत और गहरा है। उनको बाँटने में शायद ही कोई माँ कँजूसी करे! माँ को इस व्यवस्था का पता था, और उनको इसमें कोई बुराई नहीं दिखाई देती थी। इसलिए उन्होंने मुझे प्रोत्साहित करते हुए कहा,

“पी लो! जाओ!”

“आवो लल्ला, अइसी चले आवो!

मैं उठ कर चाची के पास चला गया। उन्होंने अपना ब्लाउज खोला और अपना एक स्तन मुझे पीने के लिए दे दिया। और मैं उनके स्तन पीने लगा। मुझे कोई उम्मीद नहीं थी, लेकिन आश्चर्य की बात यह हुई कि कुछ देर ऐसे ही चूसने के बाद उनके स्तन से मेरे मुँह में दूध आने लगा! मैंने चौंक कर उनकी तरफ़ देखा; उन्होंने मुझे मुस्कुरा कर ऐसे देखा जैसे वो इस रहस्य से परिचित हों! क्या आनंद! माँ का दूध! और ऐसा लग रहा था कि उनके स्तन पूरे भरे हुए थे। एक दो मिनट पीने के बाद,

“लल्ला, महतारी कै दूध पियै नीक लागत है?”

“दूध पीना अच्छा लग रहा है?” माँ ने मुस्कुराते हुए कहा।

“हाँ चाची जी!” मैंने प्रसन्न हो कर कहा!

“बहूरानी?”

“हाँ, दीदी?”

“तुहुँ आय जाव!”

“हा हा! क्या दीदी! ऐसे? अपने बेटे के सामने!” माँ ने लजाते हुए कहा।

“या देखौ! अब चली हैं सरमाय। जानत हौ लल्ला, तोहार महतारी जब हियाँ आई रहिन बियाह कै, तौ यैं जभ्भों रोवत कलपत रहीं, हमही आवत रहीं इनका दुलराय। अउर बहुत बड़ी होई गईं हैं अब!”

“हा हा हा! दीदी! आप तो माँ हो मेरी! मैं आपसे कभी बड़ी होऊँगी? आपसे भला क्या शरमाऊँगी!” माँ हँसते हुए अपने बिस्तर से उठीं, और आ कर चाची के बगल लेट गईं।

मुझे उनकी बातों से समझ नहीं आ रहा था कि किस बारे में बात हो रही थी। मैं तो दूध पीने में मगन था। दूध का स्वाद भूल गया था - और अब मुझे एक नया, गाँव की मिट्टी से पोषित शुद्ध दूध का स्वाद मिल रहा था। चाची करवट से हट कर पीठ के बल लेट गईं। माँ शर्माते हुए उनके बगल ही अपने हाथ का टेक लगा कर लेटी रहीं।

“अरे, अइसे दीठ लगाए का बइठी हौ? पीतियु काहे नाही?”

तब समझ आया कि चाची माँ को भी दूध पीने को कह रही हैं। यह तो बड़ी हैरानी वाली और अनोखी बात थी। मेरे लिए तो अभी तक केवल माँ ही थीं जो दूध पिला सकती थीं। लेकिन कोई उनको भी दूध पिला सकता है, यह अनोखी या अनहोनी सी बात थी। माँ की भी माँ! माँ शरमाते और संकोच से हँसते हुए चाची के दूसरे स्तन पर झुकीं, और उनका दूध पीने लगीं। सोचिए, उस समय हम दोनों माँ बेटा एक ही माता से स्तनपान कर रहे थे! मुझे अब कुछ कुछ समझ में आ रहा था कि माँ को इतना लाड़ दुलार क्यों मिलता था सभी से!

उस समय मुझे नहीं मालूम था, लेकिन चाची को लगभग एक साल पहले एक संतान हुई थी, जिसकी असमय मृत्यु हो गई थी। पीने वाला बच्चा नहीं रहा, लेकिन दूध बनता रहा। इसीलिए ननकऊ अभी भी उनका दूध पी सक रहा था। चाची करीब चालीस के उम्र की महिला रही होंगी। आज कल इस उम्र में स्त्रियों का गर्भधारण सामान्य बात नहीं लगती है। किन्तु उस समय गाँव देहात में यह सब कोई अनहोनी बात नहीं थी। अपने बच्चों के बच्चे होने लगते थे, लेकिन इधर माता पिता की संताने होना रूकती ही नहीं थीं। कितनी ही बार तो देखा है - सास और बहू दोनों एक ही समय पर गर्भवती रहती थीं। अच्छा खान पान हो, बढ़िया दिनचर्या हो, स्वस्थ शरीर हो, प्रसन्न मन हो, शुद्ध वातावरण हो - तो ये बेहद सामान्य सी बात है।

“खाली घुण्डिया काहे पियति हौ? लल्ला के जस पियौ।” माँ ने चाची की तरफ प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा, फिर मेरी तरफ देखा कि मैं कैसे पी रहा था। चाची निर्देश दे रहीं थीं,

“जब तक चुचिया ना दबाये, दुधवा ना निकरे।” माँ ने मेरी ही तरह उनके एरोला को पूरा मुँह में ले कर होंठों से दबाया और चूसा,

“हाँ, यस।” चाची ने पूछा, “निकरा न?”

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया। हम दोनों ने शांति पूर्वक चाची के दोनों स्तन खाली कर दिए।

“नीक लाग?” उन्होंने पूछा।

“हाँ!” मैंने उत्साह में उत्तर दिया। गाँव की छुट्टी तो बढ़िया होती जा रही है!

“अमर, बेटा” माँ ने कहा, “चाची जी ने तुमको अमृत पिलाया है। तुम उनके चरण छू कर उनका आशीर्वाद लो!”

मैंने झट से उनके पैर छुए।

“अरे जुग जुग जियो हमार लल्ला! हमार पूत!” कह कर उन्होंने मुझे कई बार चूमा।

चाची ने फिर अपने स्तन नहीं ढँके। मुझे तो लगता है कि गाँवों देहातों में, जब स्त्रियों को बच्चा हो जाता है, तो उसके बाद उनको अपनी छातियों को ले कर कोई ख़ास लाज शरम नहीं रह जाती है। उनका सारा आकर्षण बच्चा होने से पूर्व का ही है। दोनों महिलाएँ कुछ देर तक बतियाती रहीं, और मैं वहीं, चाची के बगल ही सो गया।


**


सवेरे मैं बहुत देर से उठा। उस समय चाची के घर पर कोई भी नहीं था। मैंने अगल बगल देखा - कोई नहीं था! मैंने कपड़े पहने और घर से बाहर आ गया। घर से निकल कर चार कदम चला ही था कि सामने डैड और चाचा जी दिख गए!

“बेटा,” मुझे देख कर डैड ने कहा, “कितना सोए आज! माँ कितनी देर से तुम्हारा इंतज़ार कर रही हैं खाने के लिए! चलो, जल्दी से तैयार हो जाओ, और नाश्ता कर लो!”

“डैड, आज से काम शुरू हो जाएगा?” मैंने पूछा।

“हाँ, बस शुरू ही हो गया! तुम नाश्ता कर लो, फिर देखने आ जाना।”

“जी ठीक है!”

घर से थोड़ी दूर पहले ही मैंने गायत्री को मुझे देखते, और मुस्कुराते हुए देखा। मैंने भी उसको मुस्कुरा कर देखा। वो मेरे पास आ कर मेरे कान में बोली, “सँझा को हमारे घर आ जाओगे?”

“क्यों?”

“हमसे बात करने?”

“ठीक है!”


**


आज का दिन थोड़ा शांति से निकला। चूँकि निर्माण कार्य शुरू हो गया था, इसलिए डैड घर के सामने ही व्यस्त थे। उनसे मिलने वाले वहीं आ कर उनसे मिल रहे थे। आज अधिकतर मिलने वाले लोग वृद्ध थे - इसका एक लाभ हुआ मुझे। सभी ने आशीर्वाद देने के लिए मुझे रुपए दिए। दोपहर के खाने का समय होते होते मैं धनाढ्य हो गया - पूरे एक सौ तीस रुपये मिले थे मुझे आशीर्वाद में! धनाढ्य - लेकिन कुछ देर के लिए। मैंने वो सारे रुपए माँ को दे दिए। मुझे कल अच्छा नहीं लगा था कि उन्होंने अपनी चाँदी की पायलें गायत्री को दे दी थीं, और उनका पैर अब सूना सूना था। मुझे वैसे भी रुपयों का कोई काम नहीं था। माँ ने मुस्कुराते हुए वो पैसे मुझसे ले लिए। डैड को खाना घर के बाहर परोसा गया। उनके साथ तीन चार और भी खाने वाले थे। घर के अंदर स्त्रियाँ थीं, जो माँ के साथ खाना पकाने का काम देख रही थीं, और ऐसे में पुरुषों का घर के अंदर आना वर्जित था। मैंने देर से नाश्ता किया था इसलिए भूख भी नहीं लगी हुई थी। करीब एक बजते बजते सभी ने खाना खा लिया। आज बेहद उमस और धूप थी। कारीगर और मजदूरों की हालत खराब हो गई। लेकिन बहुत अधिक काम नहीं था, इसलिए उन्होंने काम जारी रखा। दो शौचालय और उसके सामने एक आधी चाहरदीवारी का स्नानघर! बस, इतना ही। लेकिन उसके लिए सोकपिट भी चाहिए होती है, जो गहरी बनती है। शाम होते होते नींव की खुदाई, और कुटाई हो गई, और सोकपिट का गड्ढा खुद गया।

इस दौरान डैड ने मुझे इस गाँव के, और आस पास के गाँवों के संभ्रांत, प्रभावशाली, और गणमान्य लोगों से - जो उनसे मिलने चले आए थे - उनसे मिलवाया। डैड बड़े मृदुभाषी, सज्जन और कर्मठ पुरुष थे। क्रोध तो उनको छू भर नहीं गया था। यह गुण जैसे पुश्तैनी था - दादा जी भी वैसे ही थे। संभव है इसी कारण से उन्होंने डैड के लिए माँ जैसी लड़की को पसंद किया। अपनी सज्जनता के कारण ही डैड से मिलने उनसे कहीं वृद्ध पुरुष, जमींदार, और ठाकुर लोग अपनी हेकड़ी छोड़ कर चले आये थे। स्वयं संघर्ष करते हुए डैड ने बहुत पहले ही समझ लिया था कि एक दूसरे की मदद करने से ही समाज कल्याण होता है। यदि संभव है, तो डैड अपनी तरफ से दूसरों की मदद करने में कभी संकोच नहीं किए। दूसरे उनकी सज्जनता का क्या मोल देते हैं, उस बात की उन्होंने कभी फ़िक्र नहीं की। उस दिन जाना कि डैड की हमारे समाज में कैसी प्रतिष्ठा थी। संभव है कि वैसी ही प्रतिष्ठा नाना जी की भी थी। इसीलिए डैड और माँ का विवाह हो पाया।

सभी के खाना इत्यादि होने के बाद चाची ने मुझे मालिश के लिए बुलाया। वैसे भी डैड और उनके मित्र न जाने क्या बातें कर रहे थे, मुझे समझ नहीं आ रहा था कुछ। इससे बेहतर तो मालिश करवाना ही है। घर में आज केवल माँ, चाची, और कल पहले वाली अभिलाषी महिला, उनकी छोटी बहू और बेटी उपस्थित थे। साथ में उनकी छोटी बहू - जिसके बारे में वो कल बता रही थीं - का दूध पीता बच्चा भी था। मुझे तो ऐसा लगने लगा था कि शायद वो महिला उसी समय पर इसलिए आ जा रही थीं कि मुझे नंगा देख सकें, और अपनी बेट और बहू को भी दिखा सकें। दोनों लड़कियों को देख कर मैं ठिठका। सबसे पहली बात तो यह थी कि दोनों ही उम्र में मुझसे छोटी लग रही थीं। और मुझे आश्चर्य हुआ कि इसकी शादी भी हो गई, और बच्चा भी! कमाल है!

“आओ भइया, इनसे मिलो - ई तोहार भौजी हुवैं,”

“नमस्ते भाभी!” मैंने हाथ जोड़ कर ‘भाभी’ को नमस्ते किया।

“अमर?” माँ ने जैसे मुझे कुछ याद दिलाया।

मैंने बढ़ कर ‘भाभी’ के पैर छू लिए। माँ मुझसे अक्सर कहतीं कि गाँव में मैं अपने समकक्ष लगभग सभी बच्चों में सबसे छोटा था। सबसे छोटा, मतलब सबका आदर सम्मान! लेकिन उसके बदले में सबका प्रेम, और स्नेह भी तो मिलता था। उसको एक पल कुछ कहते नहीं बना।

“बहू, अपने देवर का आसीस ना देबौ?” उसकी सास ने कहा।

“खूब बड़े हो जाओ भइया!” उन्होंने संकोच करते हुए आशीर्वाद दिया।

“अउर ई हमार छोटकई लरिकी, निसा (निशा)”

“नमस्ते, दीदी!”

मैंने कहा, और उसके भी पैर छू लिए। निशा बहुत ज़ोर से शरमा गई।

“हा हा हा!” चाची मेरी बात पर हँसने लगीं, “पाँव जिन छुओ ओकै... हा हा हा! अरे दीदी न है तोहार!” और कुछ और बोलने से पहले ज़ोर ज़ोर से हँसने लगीं।

उन महिला को बुरा लगा होगा, लेकिन चाची को उनकी परवाह नहीं थी।

“जा निसा, जाय कै घरे कुछु काम देखौ!” उन्होंने अपनी बेटी को घुड़का।

“अरे रहय दियौ, सुरसतिया।” चाची ने कहा, “आई हैं दूनौ जनी! कुछु खाय का दै दियौ इनका, बहू!”

“हाँ, आओ बच्चों!” माँ ने बड़े स्नेह से कहा, और दोनों को भोजन देने के लिए अपने साथ ले कर रसोई में चली गईं।

दोनों लड़कियों के आँगन से जाने पर मुझे थोड़ी राहत हुई - कोई ऐसे नग्न देख ले, वो ठीक है। लेकिन ऐसे किसी के भी सामने - ख़ास तौर पर अपने से कम उम्र की लगने वाली लड़कियों के सामने - नग्न होने में मुझे शर्म आ रही थी। अपने बारे में मुझे यह एक नई बात मालूम चली। मेरी मालिश होने लगी, तो वो अपनी बेटी का गुणगान करने लगीं। चाची को उनकी चेष्टाएँ समझ में आ रही थीं। बाद में मालूम हुआ कि इस गाँव के किया, आस पास के पाँच छः गाँवों में जिन भी परिवारों में मेरी हमउम्र लड़कियाँ थीं, सभी हमारे ही परिवार में अपनी बेटी भेजना चाहते थे। दरअसल गाँवों में लड़का लड़की नहीं बल्कि उनके परिवारों का विवाह होता है। जैसे मेरे माँ और डैड थे, कोई भी अपनी बेटी को उनकी बहू बना कर धन्य हो जाता। मुझे आश्चर्य था - इतनी कम उम्र की लड़कियाँ अब ब्याहता ‘स्त्रियाँ’ थीं, उनकी गोदों में बच्चे थे! उनके अल्प-विकसित स्तनों से दूध चूसते हुए बच्चे! गोदी में बैठकर किलकारी मारते बच्चे! खुश होने से अधिक रोने बिलबिलाने वाले बच्चे!

मैंने एक बार पूछ भी लिया,

“आप लोग इतनी कम उम्र में लड़कियों की शादी क्यों देते हो?”

“अरे कम कहाँ, लल्ला? तोहार महतारी अइसे ही तौ रहिन, जब आई रहिन हियाँ, अउर तुँहका जनीं रहीं।”

“अउर का! हमार पतोहुआ अउर हमार निसवा दूनौ एक्कै उमरिया कै तौ हैं!”

जब तक उनका खाना चला, तब तक मेरी आधी मालिश हो भी गई। इस दौरान वो महिला मुझसे मेरी पढ़ाई लिखाई इत्यादि से सम्बंधित प्रश्न पूछती रहीं। आज फुर्सत थी, इसलिए वो अपना ‘एयर टाइम’ लेना चाहती थीं। माँ से भी उन्होंने काफी देर तक बात की। मुझे सरसों के तेल से सना हुआ देख कर निशा ऐसे शरमा रही थी जैसे मैं नहीं, वो ही नंगी हो! वैसा ही हाल भाभी का भी था। खैर, उनको बचाने उनका बच्चा आ गया - वो रोने लगा, तो वो उसको दूध पिलाने में व्यस्त हो गई। बड़ी अजीब सी स्थिति थी - भाभी एक कम उम्र लड़की थीं। और उस पर उनका बच्चा भी जल्दी हो गया लगता था। उन्होंने एक हल्की, पीले रंग साड़ी पहनी हुई थी, और लाल रंग का ब्लाउज। जब ब्लाउज खुला तो देखा कि उनके स्तन तो सावित्री से छोटे थे। जैसा मैंने पहले भी कहा है, कि संभव है कि गाँवों देहातों में, जब स्त्रियों को बच्चा हो जाता है, तो उसके बाद उनको अपनी छातियों को ले कर कोई ख़ास लाज शरम नहीं रह जाती है। तो इस बात की किसी को परवाह नहीं हुई कि भाभी के ‘स्तन’ खुले हुए थे।

खैर, मेरी मालिश के बाद, चाची माँ की भी मालिश करना चाहती थीं, लेकिन माँ ने बहाना कर दिया। जब मेहमान जाने लगे, तब माँ ने मुझे भेंट में जो भी रुपए मिले थे वो, और अपनी तरफ से भी मिला कर, दोनों लड़कियों को दो सौ इक्यावन - दो सौ इक्यावन रुपए आशीर्वाद स्वरुप दिए। भाभी तो गाँव के रिश्ते में माँ की बहू हुई, और निशा लड़की - इसलिए दोनों को आशीर्वाद में कुछ देना आवश्यक था। देखने में यह एक छोटी सी रक़म लगती है, लेकिन आज के समय में उसका मूल्य करीब करीब ढाई - ढाई हज़ार रुपए दोनों को मिले। यह रकम आज के समय में भी गाँव वालों के लिए एक बड़ी रकम होती है।
Purane waqt ke ghanv ke logo ka bola pan bohot badiya se warnan kiya apne,vo bholapan aaj kal dekhne ko nahi milta
 
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