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Lazwaabनींव - पहली लड़की - Update 19
हमको ऐसे बोलते देख कर माँ मुस्कुरा दीं, और अपने कमरे में चली गईं आराम करने। बाथरूम से हम सीधा मेरे कमरे में चले गए। जब हम अपने कमरे के अंदर गए, तो मैंने कमरे के किवाड़ लगा लिए। आज यह मैंने पहली बार किया था। न जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा था कि रचना और मुझे थोड़ी प्राइवेसी चाहिए। रचना ने भी यह नोटिस किया, लेकिन वो कुछ बोली नहीं। हम जब बिस्तर पर लेट गए, तब मैंने रचना से पूछा,
“रचना, तुमको कैसा लड़का चाहिए?”
“किसलिए?” वो जानती थी, लेकिन जान बूझ कर नादान बन रही थी।
“अरे शादी करने के लिए! कैसे लड़के की बीवी बनना चाहोगी?”
“तुम में क्या खराबी है?”
“मतलब मैं तुम्हारे लिए अच्छा हूँ?”
“हाँ! तुम अच्छे हो। हैंडसम दिखते हो। तुम्हारे माँ और डैड भी कूल हैं!” वो आगे कुछ कहना चाहती थी, लेकिन कहते कहते रुक गई।
मैंने कुछ पल इंतज़ार किया कि शायद वो और कुछ बोले, लेकिन जब उसने कुछ नहीं कहा, तो मैंने ही कहा,
“मैं तुमको प्यार कर लूँ?”
“मतलब?”
“मतलब, एस अ हस्बैंड?”
“अच्छा जी? मतलब आपका छुन्नू अभी अभी खड़ा होना शुरू हुआ है, और आपको अभी अभी मेरा हस्बैंड भी बनना है?”
“करने दो न?”
“हा हा हा! मैंने रोका ही कब है?”
रचना का यह कहना ही था कि मैंने लपक कर उसके कुर्ते का बटन खोलना शुरू कर दिया। मेरी अधीरता देख कर वो खिलखिला कर हँसने लगी। मैंने उसकी टी-शर्ट / ब्लाउज / शर्ट तो उतारी थी, लेकिन कुरता कभी नहीं। खैर, निर्वस्त्र करने की प्रक्रिया तो एक जैसी ही होती है। कुरता उतरा तो मैंने देखा कि उसने ब्रा पहनी हुई है।
“इसको क्यों पहना?” मुझे उत्सुकता हुई।
“बिना ब्रा पहने कैसे घर से बाहर निकलूँगी? मम्मी जान खा लेंगी!”
“वो क्यों?”
“अरे - इसको नहीं पहनती हूँ तो कपड़े के नीचे से मेरे निप्पल दिखने लगते हैं। और ब्रेस्ट्स को भी सपोर्ट मिलता है।”
“ओह तो इसलिए माँ भी बाहर जाते समय इनको पहनती हैं?”
“और क्या! नहीं तो आदमियों की आँखें खा लें हमको!”
मैंने उसके स्तनों की त्वचा को छुआ,
“कितने सॉफ्ट हैं तुम्हारे ब्रेस्ट्स!” फिर मैंने उनका आकार देखा, “थोड़े बड़े लग रहे हैं, पहले से!”
“हा हा! हाँ, माँ के हाथ का खाना मेरे शरीर को लग रहा है!”
“इतना कसा हुआ है! दर्द नहीं होता?”
“अरे बहुत दर्द होता है! मुझे इसे पहनने से नफरत है!”
कह कर वो मुड़ गई; उसकी पीठ मेरी तरफ हो गई। मेरी ट्यूबलाइट जलने में कुछ समय लगा, फिर समझा कि वो मुझे ब्रा हटाने या उतारने के लिए कह रही है। मैंने देखा कि पीठ पर ब्रा के पट्टे पर दो छोटे छोटे हुक लगे हुए थे। मैंने उनको खोला, और उसकी ब्रा उतार दी। उसके स्तनों और पीठ पर जहाँ जहाँ ब्रा का किनारा था, वहाँ वहाँ लाल निशान पड़ गए थे।
“अरे यार! इस पर कुछ लगा दूँ? कोई क्रीम?”
“ओह, ये? नहीं, अभी ठीक हो जायेगा।” लेकिन अपने लिए मेरी चिंता देख कर रचना प्रभावित ज़रूर हुई।
मैंने उन निशानों पर सहलाते हुए उंगली चलाई, तो रचना की आह निकल गई। जल्दी ही मैं उसके चूचकों को छूने लगा। मैंने एक स्तन को हाथ में पकड़ कर थोड़ा सा दबाया - फलस्वरूप उसका चूचक सामने की तरफ और उभर आया - मानों मुझे आमंत्रित कर रहा हो, या फिर मानों वो मेरे मुँह में आने को लालायित हो रहा हो। मैंने उस कोमल अंग को निराश नहीं होने दिया, और मुँह में भर कर उसको चूसने लगा। उसके कोमल चूचक की अनुभूति मेरे मुँह में हमेशा की ही तरह अद्भुत थी। रचना मीठे दर्द से कराह उठी, और मुस्कुरा दी। मैं उसकी सांसों को गहरी होते हुए सुन रहा था, जैसा कि उसके साथ हमेशा ही होता था। एक स्तन को पीते पीते ही मेरा लिंग पुनः स्तंभित हो गया। जब रचना ने यह देखा तो वो बहुत खुश हुई और हैरान भी!
“अरे वाह! तुम्हारे छुन्नू जी तो फिर से सल्यूट मारने लगे!”
मैं पीते पीते ही मुस्कुराया।
“डैडी का तो इतनी जल्दी कभी खड़ा नहीं होता!”
“आर यू इम्प्रेस्सड?” मैंने पूछ ही लिया।
उसने हाँ में सर हिलाया, “बहुत!”
“तो फिर ईनाम?”
“हा हा ... होने वाले पतिदेव जी, आपने अपना ईनाम अपने हाथ में पकड़ा हुआ है!” उसने मुझे प्रसन्नतापूर्वक याद दिलाया।
“बीवी जी, अपना दूध तो आप मुझे हमेशा ही पिलाती हैं। इस बार मुझे अपने अंदर जाने दीजिये न?”
रचना शरमा कर हँसी। वह समझ गई कि मैं क्या चाहता हूं। मुझे लगता है कि वो भी मन ही मन हमारे समागम की संभावना के बारे में सोच रही होगी। उसने संकोच नहीं किया। उसने अपनी शलवार का नाड़ा खोलना शुरू किया, और एक ही बार में उसने अपनी शलवार और चड्ढी दोनों ही नीचे की तरफ़ खिसका दिया। आज महीनों बाद वो इतने करीब वो बाद मेरे सामने नंगी बैठी हुई थी। वह बिस्तर पर लेट गई और मुझे ठीक से देखने के लिए उसने अपनी जाँघें फैला दी। साथ ही साथ उसने मेरे उत्तेजित लिंग पर अपना हाथ फेर दिया।
“तुम एक शरारती लड़के हो,” वह हंसी, “मैं तुमसे बड़ी हूँ, लेकिन मुझको नंगा करने में तुमको शर्म नहीं आती?”
मैं मुस्कराया, “तुम मेरी बीवी हो!”
उसने मेरा हाथ थाम लिया और मुझे अपनी ओर खींच लिया। जब मैं उसके ऊपर आ गया तो उसने मेरे माथे को चूमा और फुसफुसाते हुए कहा, “तुम एक बहुत हैंडसम और एक बहुत शरारती लड़के हो!”
मैं मुस्कुराया।
“लेकिन जब हमारी शादी होगी, तब मैं तुम्हारे पैर नहीं छूवूँगी! तुम मुझसे छोटे हो। तुम मेरे पैर छूना!”
मैं उठा, और उठ कर उसके पैरों की तरफ गया। मैंने बारी बारी से उसके दोनों पैरों की अपने सर से लगाया और चूमा। वो मेरी इस हरकत से दंग रह गई। मैंने अपने सामने नंगी लेटी रचना को प्यार से देखा। कितनी सुन्दर लड़की! माँ का सपना था कि वो हमारे घर में आए! शायद अब ये होने वाला था। मेरा लिंग रक्त प्रवाह के कारण झटके खा रहा था। रचना बहुत कमसिन, छरहरी, लेकिन मज़बूत लड़की थी! उसके पैर लंबे और कमर क्षीण लग रही थी; उसके नितम्ब गोल नहीं, बल्कि अंडाकार, और ठोस थे! उसकी योनि बाल वसीम के जैसे ही घुँघराले और थोड़े कड़े हो गए थे। योनि के दोनों होंठ अभी भी पतले ही थे; उनमें कोई परिवर्तन नहीं आया था।
“पसंद आई अपनी बीवी?” उसने बड़ी कोमलता, बड़े स्नेह से पूछा।
मैंने ‘हाँ’ सर हिलाया, और वो भी बड़े उत्साह से।
“और मैं?”
“तुम तो मुझे हमेशा से पसंद हो! मैं किसी बन्दर के पास थोड़े ही जाऊँगी हमेशा! आओ, अब अपना ईनाम ले लो। धीरे धीरे से अंदर आना! ठीक है?”
माँ और डैड ने सिखाया तो था, लेकिन न जाने क्यों मुझे लग रहा था कि कुछ कमी है मेरे ज्ञान में। ये वैसा ही है जैसे टीवी पर देख कर तैराकी सीखना! ख़ैर, मैंने अपने लिंग का सर उसकी योनि के द्वार पर टिका दिया।
“बहुत धीरे धीरे! ठीक है?” उसने मुझे फिर से चेताया।
“तुमने पहले कभी किया है यह?” मैंने पूछ लिया।
“तुम्हें क्या लगता है कि मैं क्या हूँ? वेश्या?” रचना का सारा ढंग एक झटके में बदल गया।
“आई ऍम सॉरी यार! मेरा मतलब उस तरह से नहीं था। मैं बस ये कहना चाहता हूँ मुझे नहीं पता कि कैसे करना है। यदि तुमको मालूम हो, तो तुम मुझे गाइड कर देना! प्लीज!”
मेरी बात का उस पर सही प्रभाव पड़ा। वो फिर से शांत हो गई,
“ओह। अच्छा! मुझे लगता है कि हम खुद ही जान जाएँगे कि कैसे करना है। बस इसे मेरे अंदर धीरे-धीरे स्लाइड करने की कोशिश करो। धीरे धीरे! मुझे अंदर कोई चोट नहीं चाहिए!”
मतलब मुझे डैड ने जो कुछ सिखाया था, उसी पर पूरा भरोसा करना था। अपने लिंग को पकड़कर, मैंने उसकी योनि की फाँकों के बीच फँसाया और धीरे से दबाव बनाया। रचना प्रतिक्रिया में अपनी योनि का मुँह बंद कर ले रही थी, लेकिन धीरे धीरे करने से लिंग का कुछ हिस्सा उसके अंदर चला गया। मुझे यह देखकर खुशी हुई। रचना सांस रोके अपने अंदर होने वाली इस घुसपैठ को महसूस कर रही थी। जब मैं रुका, तो उसने साँस वापस भरी। मैं उसी स्थिति में रुका रहा, और अनजाने में ही उसकी योनि को इस अपरिचित घुसपैठ के अनुकूल होने दिया।
“तुम ठीक हो?” मैं उसके माथे से बालों की लटें हटाते हुए पूछा।
उसने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“मैं तुम्हारे अंदर आ गया हूँ, देखो?”
रचना ने नीचे की ओर देखा, जहाँ हम जुड़े हुए थे,
“तुम थोड़ा और अंदर आ सकते हो!”
हम दोनों को ही नहीं पता था कि हमारे पहले समागम के दौरान हम किस तरह के अनुभव की उम्मीद करें! लेकिन जैसे जैसे मैं उसके अंदर घुसता गया, रचना के चेहरे पर आश्चर्य, प्रसन्नता, और दर्द का मिला जुला भाव दिखता गया। अंत में उसने आँखें खोल कर मुझे आश्चर्य भरी निगाहों से देखा,
“हे भगवान! अमर... यह बहुत बड़ा है!”
“क्या? मेरा छुन्नू?”
“हाँ!”
“छुन्नू तो उतना बड़ा नहीं है अभी! लेकिन तुम्हारी चूत छोटी सी ज़रूर है।”
रचना ने उत्तर में मेरे गाल पर प्यार भरी चपत लगाईं, “बदमाश लड़का!”
उसकी बातों से मुझे लगा कि जैसे मेरा लिंग उसके अंदर जा कर थोड़ा मोटा हो गया है। मैं उस समय बिलकुल भी हिल-डुल नहीं रहा था, और रचना के अंदर उसी स्थिति में था। योनि के भीतर रहने वाली भावना का वर्णन कैसे किया जाए? यह वैसा सुखद एहसास नहीं था, जैसा कि मेरे माँ और डैड दावा कर रहे थे। लेकिन उसके अंदर जा कर अच्छा लग रहा था - उसकी योनि की माँस-पेशियाँ मेरे लिंग की लंबाई को पकड़े हुए थीं। अंदर गर्मी भी थी, और चिकनाई भी।
“रुके क्यों हो? करो न?”
“क्या?”
“मुझसे प्यार!”
मुझे लगता है कि आप अधिक समय तक प्राकृतिक, सहज-ज्ञान को रोक कर नहीं रख सकते हैं। मैंने लिंग को थोड़ा सा बाहर निकाला और फिर वापस अंदर डाल दिया। धीरे से।
“फिर से करो?” उसने कहा।
मैंने फिर से किया। उसने ‘हाँ’ में सर हिलाया। हमारी सहज-वृत्ति हमारे मैथुन को दिशा दे रही थी। चार पांच बार धीरे धीरे करने के बाद मैंने इस बार थोड़ा तेज़ से धक्का लगाया। रचना ने एक दम घुटने वाली आह निकाली। मैंने न जाने क्यों, उसकी आह की परवाह नहीं की, और फिर से उसी गति में धक्का लगाया। रचना भी समझ गई होगी कि जिस पोजीशन में वो थी, उसमे रह कर मुझ पर नियंत्रण कर पाना मुश्किल था। उसने खुद को मेरे रहमोकरम पर छोड़ दिया, और मैंने उसके साथ धीमे और स्थिर लय में सम्भोग करना शुरू कर दिया। शायद उत्तेजना के कारण रचना का मुँह खुल गया। उसकी योनि की आंतरिक माँस-पेशियां मुझे सिकुड़ती हुई महसूस हुईं।
“ओह अमर। आखिरकार तुमने मुझे अपनी बीवी बना ही लिया! ओह्ह्ह! बहुत अच्छा लग रहा है।” रचना बुदबुदाई, “जो तुम कर रहे हो वही करते रहो।”
तो मैंने वही करना जारी रखा। लगभग दो मिनट बाद मैंने महसूस किया कि रचना का शरीर अकड़ने लगा; उसकी आँखें संकुचित हो गई थी, और उसकी उँगलियाँ मेरी बाँहों में जैसे घुसने को बेताब हो रही थी। और मुझे यह भी लगा कि वो धीरे धीरे रो भी रही है। मुझे नहीं मालूम था, लेकिन रचना का सारा शरीर सुख-सागर में गोते लगा रहा था। चूँकि यह मेरा भी पहला अनुभव था, इसलिए मुझे नहीं पता था कि हमारे मैथुन से क्या उम्मीद की जाए! लगभग उसी समय, मेरे लिंग से भी वीर्य की बूँदें छूटीं! एक बार, दूसरी बार, और फिर तीसरी बार! मेरा शरीर भी थरथरा रहा था। रचना ने मेरे शरीर में यह परिवर्तन महसूस किया, तो उसकी आँखें खुशी से चमक उठीं। एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया में, मैंने इस आनंद को थोड़ा और बढ़ाने की उम्मीद में, धक्के लगाने की गति धीमी कर दी। फिर मैंने चौथी बार भी वही आनंद महसूस किया, जो अभी तीन बार किया था। इस बार मैं आनंद से कराह उठा।
जैसे ही मेरा स्खलन समाप्त हुआ, रचना भी अपने चरमोत्कर्ष से बाहर आ गई, लेकिन थकावट के कारण लेटी रही। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं, मुझे अपनी ओर खींच लिया और फिर से सामान्य रूप से साँस लेने लगी। न जाने क्यों उसको चूमने का मन हुआ। मैंने उसके कान को चूमा, फिर गले को, और फिर उसके स्तनों के बीच में अपना चेहरा छुपा दिया। रचना मुझे अपने सीने में भींचे लेटी रही।
वो कोमलता से बोली, “क्या तुमको अपना ईनाम पसंद आया?”
“हाँ। बहुत!”
मेरी बात पर हम दोनों ही मुस्कुराने लगे।
“तुझे तो आया मज़ा.... तुझे तो सूझी हँसी.... मेरी तो जान फँसी रे....” उसने एक बहुत ही प्रसिद्द गाने की पंक्तियाँ गुनगुनाई।
“अरे! तुम्हारी जान कैसे फंसी?”
“वाह जी! पहले तो मार मार के मेरी छोटी सी चूत का भरता बना दिया, और अब पूछते हैं कि मेरी जान कैसे फंसी! अगर मुझे बच्चा ठहर गया, तो मेरे साथ साथ तेरी जान भी फंस जाएगी!”
“सच में ऐसा हो सकता है क्या?”
“उम्म्म नहीं.... शायद। चांस तो कम है। लेकिन हमको सावधान रहना चाहिए।”
रचना ने कहा और बिस्तर से उठ बैठी। इसके तुरंत बाद हमने कपड़े पहने। मै बिस्तर पर बैठा उसको अपने बाल सँवारते हुए देख रहा था। उसने मुझे आईने में मेरे प्रतिबिंब को देखा,
“क्या?” वह मुस्कुराई और धीरे से पूछा।
“रचना?”
“हाँ?”
“क्या हम इसे फिर से करेंगे कभी?”
उसका बाल सँवारना रुक गया, “ओह, अमर।”
“अरे! मैं तो बस पूछ रहा था।” मैंने कहा।
“हा हा! करेंगे! करेंगे!” उसने कहा, “लेकिन किसी को बताना मत!” फिर थोड़ा सोच कर, “उम्म्म माँ और डैड के अलावा किसी और को नहीं! ठीक है? क्योंकि... क्योंकि…” वो बोलते बोलते रुक गई, जैसे उपयुक्त शब्दों की तलाश कर रही हो, “क्योंकि... बाकी लोग कहेंगे कि यह सब नहीं करना चाहिए। या यह कि प्यार करना गन्दा काम है। और फिर हम दोनों मुश्किल में पड़ जाएंगे। हमारे साथ साथ शायद हमारे पेरेंट्स भी।”
मैंने पूछा, “लेकिन किसी और को हम क्या करते हैं वो देख कर बुरा क्यों लगना चाहिए?”
“लोग ऐसे ही होते हैं अमर,” रचना बड़े सयानेपन से बोली, “दूसरों के काम में टाँग लगाने वाले!”
“हम्म्म!” मैंने कुछ देर सोचा और कहा, “रचना, हम ये दोबारा करें या नहीं, लेकिन तुम हमेशा मेरी दोस्त रहना। मेरी बेस्ट फ्रेंड! तुम मुझे सबसे अच्छी लगती हो!”
“वाक़ई?” उसकी आँखों में एक चमक सी उठी।
“हाँ। मुझे तुम्हारा साथ बहुत अच्छा लगता है!”
वह मुस्कुराई, “जानकर खुशी हुई।”
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जीवन का पहला सेक्स अनुभव हमेशा याद रहता है। कोई तीस बत्तीस साल पहले हुई यह घटना मुझे आज भी याद है। सब कुछ मेरे ज़ेहन में ताज़ा तरीन है!
इस प्रकार के अनोखे अनुभव और लोगों से शेयर करने का मन तो होता है, लेकिन मैंने किसी को नहीं बताया - न तो माँ को और न ही डैड को। लेकिन रचना से रहा नहीं गया। उसने माँ से सारी बातें कह दीं। उसी दिन। कमरे से निकल कर जब मैं कोई और काम कर रहा था तब रचना ने हमारे यौन सम्बन्ध का पूरा ब्यौरा माँ को दे दिया। माँ ने उसकी बात को पूरे ध्यान से सुना और उसके बाद उन्होंने जो किया वह अद्भुत था। माँ ने रचना को गले से लगाया और उसको चूम लिया।
“मेरी बिटिया!” माँ ने स्नेह से कहा, “तुम जुग जुग जियो! अगर तू आगे चल कर मेरे अमर को अपनाना चाहेगी, तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा।”
“हा हा हा! माँ, मैं तो बस आपके लिए ही इस बन्दर से शादी करूँगी।” रचना के कहने के अंदाज़ पर माँ खिलखिला कर हँसने लगीं, “मुझे तो आप माँ के रूप में मिल जाएँ तो आनंद आ जाए! मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ, आपको अपनी माँ मानती हूँ, और मुझे मालूम है कि आपके साथ मैं बहुत खुश रहूंगी!” उसने कहा।
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कहानी जारी रहेगी
Behtreen updateआत्मनिर्भर - नए अनुभव - Update 1
इस घटना के बाद माँ ने स्वयं भी रचना की मम्मी से हमारी शादी की संभावना के बारे में बात की। मुझे यह तो नहीं पता कि उन्होंने क्या चर्चा की, लेकिन रचना की मम्मी ने माँ से साफ़ साफ़ कह दिया कि हमारा सम्बन्ध संभव नहीं था। रचना का परिवार ब्राह्मण था और वो हमसे जाति में उच्च थे। और तो और वे अपनी इकलौती बेटी से अपनी ही जाति में करना चाहते थे। रचना की मम्मी ने माँ को आश्वासन दिया कि उन्हें मेरे, और हमारे परिवार के बारे में सब कुछ पसंद है - उन्होंने स्वीकारा कि हमारा रचना के व्यवहार और आचरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा था। वह अब अच्छी तरह से पढ़ाई कर रही थी, घर का काम काज भी सीख रही थी, और हमारे संपर्क में आने के बाद से उसका व्यवहार बेहतर हो गया था। उन्होंने माँ से यह भी कहा कि मैं एक अच्छा लड़का हूँ, और वो मुझे रचना के संभावित पति के रूप में पसंद करती हैं, वो अपने समाज से अलग हो कर कोई निर्णय नहीं ले सकेंगी। और वैसे भी यह सब सोचने में अभी समय था - पहले मुझे अपने पैरों पर खड़ा हो जाना चाहिए; कुछ बन जाना चाहिए।
कहने की जरूरत नहीं है कि इसके बाद अचानक ही रचना का हमारे घर आना जाना काफ़ी कम हो गया। अब हम एक दूसरे से ज्यादातर कॉलेज में ही मिलते थे। एक बार कारण पूछने पर उसने मुझे बताया कि उसकी मम्मी ने उसको कहा था कि अब हम उसको ‘उलझाने’ के लिए उससे मीठी-मीठी बातें करेंगे, विभिन्न प्रलोभन देंगे, और उसको बरग़लायेंगे! और भी बातें कही गईं, लेकिन वो छुपा गई। रचना नहीं चाहती थी कि हम में से किसी पर भी, और ख़ास तौर पर माँ पर, ऐसा कोई भी इलज़ाम लगे। इसलिए अब वो बस कभी कभी ही घर आ सकेगी, और वो भी बस कुछ देर के लिए। यह सब मुझे सुन कर ख़राब तो बहुत लगा लेकिन कुछ कर नहीं सकते थे। मित्रता का ढोंग करने वाली उसकी मम्मी में इतना कपट भरा होगा, मैं सोच भी नहीं सकता था। सत्य है - मुँह में राम, बगल में छूरा वाली कहावत चरितार्थ हो गई थी यहाँ। माँ को भी थोड़ा दुःख तो हुआ, लेकिन उनकी प्रवृत्ति ही ऐसी थी कि वो सबको क्षमा कर देती थीं, और सबकी बुरी बातें भूल जाती थीं।
जल्द ही हमने अपनी अपनी स्नातक की शिक्षा शुरू कर दी। रचना का दाख़िला उसी राज्य के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में हो गया [क्योंकि उसके पेरेंट्स उसको घर से बाहर जाने नहीं देना चाहते थे - क्या पता अगर उनकी लड़की हाथ से निकल गई, तो?], जबकि मैं अपनी स्नातक की शिक्षा के लिए भारत के सबसे अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेजों में से एक में गया। पढ़ाई लिखाई में की गई मेरी मेहनत रंग लाई। और इसी के साथ रचना और मेरा नवोदित रिश्ता खत्म हो गया। चार साल की दूरी बहुत होती है। वैसे भी इंजीनियरिंग कॉलेजों में छात्रों का व्यक्तित्व बदल जाता है। हम दोनों भी बहुत बदल जाएँगे।
लेकिन रचना और मेरी कहानी का अंत यह नहीं था। रचना बाद में मेरे जीवन में लौटने वाली थी।
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इंजीनियरिंग कॉलेज का मेरा अनुभव बहुत अच्छा रहा - और उसका कारण था वहाँ का मुझ पर, और मेरे व्यक्तित्व पर काफी परिवर्तनकारी प्रभाव! अपने कस्बे की दुनिया से दूर, एक अलग ही दुनिया देखने को मिली वहाँ। पूरे देश भर से छात्र-छात्राएँ वहां पर आये थे, और सभी के जीवन के अनुभव अलग अलग थे। कुछ ही समय में मैं कुएँ के मेंढक से कुछ अलग बन गया। सोचने समझने की क्षमता भी काफी आई। सभी सहपाठियों से बहुत कुछ जानने और सीखने को मिला। मेरे बोलने और रहने सहने का ढंग भी काफ़ी बदला। दो साल के बाद मैं अच्छी अंग्रेजी भी बोलने लगा, जो की आगे चल कर मेरे लिए एक वरदान साबित हुआ। नए स्पोर्ट्स, जैसे कि लॉन टेनिस और तैराकी भी सीखी। अपना इंजीनियरिंग का विषय तो सीख ही रहा था। मेरी सोच भी काफ़ी विकसित हुई। समसामयिक विषयों की जानकारी और उनका विश्लेषण करने की क्षमता आई। संगीत भी सीखा - गिटार जैसे वाद्य-यंत्र मैं अब बजा लेता था। सबसे अच्छी बात यह थी कि यह सब करने में मुझे कैसा भी अतिरिक्त खर्च नहीं करना पड़ा। मेरा इंजीनियरिंग कॉलेज साधन संपन्न था, और छात्रों को अपने व्यक्तिगत विकास की सारी सुविधाएँ निःशुल्क उपलब्ध थीं। लेकिन एक कमी भी थी।
ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे कामदेव ने मेरी स्नातक शिक्षा के दौरान मेरा साथ छोड़ दिया था। विपरीत लिंग, अर्थात लड़कियों से निकट जाने का कोई अवसर नहीं मिल रहा था। हालाँकि, मेरे आसपास बहुत सारी लड़कियाँ थीं, मुझे उनमें से कोई भी आकर्षक नहीं लगी। या शायद, उन्होंने मुझे आकर्षक नहीं पाया। मेरी सहपाठिनियों के मुकाबले रचना तो अप्सरा कहलाएगी। रचना से जैसी सन्निकटता हुई थी, यहाँ तो सोचना मुश्किल हो गया था। आप देखते हैं, जब कॉलेज और छात्रावास की नई नई आजादी मिलती है, तो लड़कियां उसका भरपूर इस्तेमाल करती हैं - लड़कियां ही क्या, लड़के भी। लेकिन लड़कियाँ आमतौर पर उन ‘तथाकथित’ ‘स्टड लड़कों’ की ओर झुकाव दिखाती हैं, जो प्रायः अमीर परिवार से होते हैं, और जिनके पास मोटरसाइकिल होती हैं! हो सकता है कि यह सब पिछले कुछ दशकों के दौरान बदल गया हो सकता है, लेकिन मेरे इंजीनियरिंग कॉलेज के दिनों में ऐसा ही था। मुझे यह कहते हुए कोई शर्म नहीं आती कि मेरे पास न तो फालतू पैसे थे, और न ही मोटरसाइकिल! और तो और मेरे पास साइकिल भी नहीं थी। मुझे अपने माता-पिता से बहुत थोड़ा सा पॉकेट मनी मिलता था। यह हॉस्टल की कैंटीन में कभी-कभार परांठे और चाय के लिए पर्याप्त था, लेकिन किसी भी तरह के भोग विलास की अनुमति देने के लिए पर्याप्त नहीं था।
इसलिए, जब कॉलेज के समय के रोमांस के लिए मेरे पास कोई अवसर नहीं था। लोग, जिन्होंने इंजीनियरिंग कॉलेजों में भाग लिया है या भाग ले रहे हैं, इस तथ्य की पुष्टि करेंगे कि वास्तव में अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेजों में सुन्दर लड़कियाँ बिरले ही आ पाती हैं। ब्यूटी एंड ब्रेन एक मुश्किल कॉम्बिनेशन है। फेमिनिस्ट लोग - यह सब केवल मेरा सीमित अवलोकन हो सकता है ... यह मैं जो भी बता रहा हूँ वो मेरे कई दशकों पहले के, एक अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज में बिताए गए चार सालों के अवलोकन [कुल मिला कर सात (7) देखे गए बैच] पर आधारित है। मुझे स्त्रियों और लड़कियों के लिए बहुत आदर है - लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मैं अँधा हूँ।
ठीक है, इससे पहले कि मैं मूल विषय से बहुत अधिक दूर हट जाऊँ, मैं वापस कहानी पर आता हूँ।
एक और काम जो मैंने अपने कॉलेज के दिनों में ‘सही’ किया था, वह था अपनी शरीर निर्माण का कार्य। मैं अर्नोल्ड श्वार्ज़नेगर के व्यक्तित्व से बेहद प्रेरित था, उनकी कई फिल्में [खास तौर पर टर्मिनेटर, प्रिडेटर, टोटल रिकॉल] देख कर, और यह जानते हुए भी कि मैं उनके जैसा कभी नहीं बना सकता, मैं एक अच्छी गढ़न वाले, मजबूत शरीर बनाने के लिए प्रेरित था। मेरी शकल भी ठीक-ठाक ही थी। तो एक बढ़िया मस्कुलर शरीर के साथ मैं काफी प्रेसेंटेबल और हैंडसम दिखता था। उस समय बैगी और पैरेलल [सामानांतर] पैन्ट्स का फैशन चल रहा था। लेकिन वो कपड़े मुझे कभी पसंद नहीं आते थे। मैं हमेशा चुस्त पैन्ट्स सिलवाता था। वैसी ही चुस्त शर्ट्स भी। तो कपड़ों से सीने और बाहों की माँसपेशियों की बनावट दिखती थी। कपड़े सिलवाना सस्ता पड़ता था। जब तक मैंने अपनी पहली नौकरी शुरू नहीं की, तब तक मैंने अपनी पहली जोड़ी जींस नहीं खरीदी। लेकिन सस्ते कपड़ों में कमाल का गेटअप आपको नहीं मिल सकता। आज कल लोग कॉटन की शर्ट पहनना पसंद करते हैं, तब लोग ज्यादातर सिंथेटिक कपड़े पहनते थे। क्योंकि उसका ‘फॉल’ या ‘गेट अप’ अच्छा आता था। लेकिन मैंने पाया था कि अगर कॉटन के कपड़े ढीले वाले न सिलवाए जाएँ, तो उनका गेट अप भी अच्छा आता है।
वर्कआउट करने के अलावा, मैंने कॉलेज के दिनों में अपने सामाजिक कौशल पर भी ध्यान केंद्रित किया, जिससे मुझे एक बेहतर इंसान बनने में बहुत मदद मिली। मैंने अंग्रेजी में वाद-विवाद [डिबेट] प्रतियोगिताओं और सार्वजनिक भाषण [पब्लिक स्पीकिंग] में भाग लिया, और मैं दो साल तक छात्र प्रतिनिधि के रूप में काम करने के लिए चुनाव भी जीता। इन सभी चीजों ने मुझे एक परिपक्व व्यक्ति के रूप में विकसित किया।
मैं बहुत भाग्यशाली था कि मैं ऐसे इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ा, जो पहाड़ों के करीब स्थित था [कृपया मुझसे उस कॉलेज का नाम न पूछें - इस कहानी में पात्रों की गोपनीयता की रक्षा करना अनिवार्य है]! पहाड़ों की तलहटी में ऐसे कई रास्ते थे जिनसे आप पहाड़ो के ऊपर जा सकते थे और आसपास के क्षेत्र को ऊपर से देख सकते थे। कॉलेज में साहसिक खेलों [एडवेंचर स्पोर्ट्स], जैसे साइकिल चलाना, नौकायन, ट्रेकिंग इत्यादि की एक पुरानी संस्कृति थी। व्यायाम के एक अभिन्न अंग के रूप में, मैंने साइकिल बहुत चलाई [सहपाठियों से मांग मांग कर], खासकर पहाड़ी की तरफ! साइकिलिंग शरीर को शक्ति और सहनशक्ति दोनों देता है, और साथ-साथ में शरीर की चर्बी कम करने में मदद करता है।
मैं घर भी बहुत कम ही जाता था - कॉलेज में कुछ न कुछ करने को रहता ही था हमेशा। पहले दो साल एक एक महीने के लिए गर्मी की छुट्टियों में घर गया, उसके बाद नहीं। पूरे चार साल में, कुल मिला कर मैं बस तीन या साढ़े तीन महीने ही छुट्टियां बिताने घर गया। इंटर्नशिप, या किसी प्रोफेसर के साथ काम - या किसी और बहाने, मैं वहीं रहता था। यह सब करने के कुछ अतिरिक्त पैसे भी मिल जाते थे, और खर्चा भी कम होता था। और सच कहूँ, तो अब वापस कस्बे में जाने का मन नहीं होता था। यहाँ की दुनिया में बहुत कुछ सीखने को था, और मैं यह मौका दोनों हाथों से समेट लेना चाहता था।
Awesomeआत्मनिर्भर - नए अनुभव - Update 2
ऐसी ही एक सर्दी की सुबह मैंने देखा कि सुन्दर खुशनुमा मौसम है। उस दिन इतवार था, तो मैंने सोचा कि साइकिलिंग और ट्रैकिंग एक साथ करी जाए। इस काम के लिए पूरा दिन पड़ा था, क्योंकि मेरे पास उस दिन करने के लिए और कुछ नहीं था। इसलिए, मैं उस दिन को अन्य लड़कों की तरह सोने में बर्बाद होने के बजाय बस इस खुशनुमा ठंडे मौसम का आनंद लेना चाहता था। मैंने अपना नाश्ता बहुत जल्दी कर लिया; मेस से कुछ फल, सैंडविच, पानी उठाया और अपनी दूरबीन को अपने बैग में पैक कर के बाहर चला गया।
आज एक अच्छी हल्की सर्दी वाला दिन था, और मैंने साइकिल चलाने का भरपूर आनंद लिया। कोई दो घण्टा साइकिल चलाने के बाद मैं पहाड़ियों के एक सुनसान हिस्से पर ट्रैकिंग करते करते ऊपर तक चढ़ गया। वहाँ से मुझे नीचे शहर का शानदार दृश्य दिया। मैंने दृश्य देखने के लिए अपनी दूरबीन निकाली। सूर्य की सुनहरी धूप, हरियाली और धुंध, तीनों मिल कर एक अद्भुत दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे। मैंने देखा कि जिस जगह मैं था, वहाँ पर मेरे अलावा कुछ और भी ट्रेकर्स थे, लेकिन वे किसी और तरफ जा रहे थे। मैं थोड़ा और आगे की तरफ़ चला, तो पंद्रह मिनट में ही एक सूनसान सा क्षेत्र आ गया। वहां मैंने दूरबीन इधर उधर घुमा कर देखा तो एक आश्चर्यजनक दृश्य दिखा। मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मैं ऐसा कुछ देखूंगा!
मैंने अपनी दूरबीन से देखा कि एक घने पेड़ के नीचे, एक युवा माँ थी जो अपने बच्चे को सुखपूर्वक दूध पिला रही थी। जहां मैं खड़ा था, वो वहाँ से बहुत दूर नहीं थी, इसलिए, यहाँ से वो साफ़ साफ़ दिख रही थी। वह एक स्थानीय निवासी थी - मैंने अनुमान लगाया कि शायद वो ‘राजी’ या ऐसी ही किसी जनजाति की थी; वह संभवतः तेईस से पच्चीस साल की होगी। राजी लोगों को वनवासी के रूप में जाना जाता है और इसलिए यह समझना मुश्किल नहीं कि वो वहां क्यों और कैसे थी। लेकिन, ऐसे खुले में स्तनपान कराना एक अलग बात थी। उसने एक कुर्ता-नुमा चोली पहनी हुई थी, जिसके बटन पूरी तरह से खुले हुए थे। इस कारण उसके गोरे/सुनहरे रंग के स्तन पूरी तरह से उजागर हो गए थे। उसके स्तन बेहद खूबसूरत थे! न जाने किस प्रेरणावश मेरा मन हुआ कि उसको पास से देखा जाए। मैंने किसी तरह थोड़ी हिम्मत की और सोचा कि मैं ऐसे एक्टिंग करूंगा कि जैसे मैं पगडंडी पर ट्रैकिंग कर रहा हूँ, और फिर उसके करीब रुक कर उसके खूबसूरत स्तनों को देखने का आनंद उठाऊँगा। अगर वो औरत तब भी अपने बच्चे को स्तनपान कराना जारी रखती है, तो समझो किस्मत अच्छी! लेकिन अगर वो चली जाती है, तो कोई बात नहीं! इसी बहाने थोड़ी और ट्रैकिंग हो गई समझो! कुल मिलाकर मेरे पास खोने के लिए कुछ नहीं था और पाने के लिए सब कुछ था।
मैंने अपनी दूरबीन को वापस अपने बैग में रखा, और तेजी से उसकी ओर बढ़ा, ताकि देर न हो जाए। जैसे जैसे मैं उसके करीब आ रहा था, मैंने यह सुनिश्चित किया कि वो मुझे अपनी तरफ आते हुए सुन ले, ताकि चौंक न जाए। पहाड़ पर तेजी से चलते चलते साँस फूलने लगी। खैर, जब मैं उसके पास आ गया, तो मैंने एक गहरी सांस ली और मुस्कुराते हुए ‘नमस्ते’ कहा। मुझे लगा कि मुझे अपने इतना पास देख कर वो कम से कम अपने स्तन जल्दी से ढँक लेगी, या फिर अगर वो मेरी उपस्थिति से नाराज़ हुई तो दो चार गालियाँ भी दे देगी। लेकिन उसने ये दोनों ही काम नहीं किए और मेरी उम्मीद के विपरीत उसने बड़ी शालीनता से मेरे अभिवादन का उत्तर दिया। मुझे बड़ा ही सुखद आश्चर्य हुआ।
“मैं यहाँ बैठ जाऊँ? आपके साथ?”
“हाँ, बैठो।” उसने कहा।
मैंने साइकिल वहीँ लिटा दी, और अपना बैग उतार दिया, फिर उसके सामने बैठ गया। मैंने खाने के लिए एक सैंडविच निकाल दिया। इस बीच वो औरत न तो घबराई और न ही शरमाई, और उसने अपने खुले हुए स्तनों को ढँकने का भी कोई प्रयास किया। उसने बच्चे को पहले के ही जैसे स्तनपान कराना जारी रखा। जैसे कि मेरे रहने से उसको कोई फ़र्क़ ही न पड़ा हो। हम बीच बीच में बातें भी कर रहे थे, लेकिन मेरा ध्यान उसके स्तनों की तरफ था। उसके स्तन बहुत गोरे थे : उनमें नीली नीली नसों का जाल साफ़ दिख रहा था। उसके चूचकों का घेरा [अरीओला] उसके स्तनों के आकर के मुकाबले काफी बड़ा था - करीब ढाई इंच व्यास का; उसके बच्चे का मुँह उस घेरे को पूरी तरह से ढक नहीं सकता था। अरीओला का रंग नारंगी भूरे रंग का कोई शेड था। और उसी रंग के उसके चूचक थे। लेकिन पिए जाने के कारण उनका रंग थोड़ा लाल हो गया था। पिए जाने के कारण वो उसके स्तनों से करीब एक इंच बाहर निकले हुए थे। वह अपने बच्चे को ऐसे ही दूध पिलाती रही। तब तक मेरा सैंडविच खाना ख़तम हो गया। जब एक स्तन खाली हो गया, तो उसने बच्चे को दूसरा स्तन पीने के लिए दे दिया। अभी भी उसने अपने स्तनों को नहीं ढँका। इसने मुझे ब्लाउज से बाहर झांकते हुए स्तन बड़े सुन्दर लग रहे थे। उसके स्तन सख्त थे - ढीले ढाले नहीं। मैं जिस तरह से उसके स्तनों को काफी देर से घूर रहा था, उससे उसको समझ आ गया कि मैं उसके स्तनों को देख कर हतप्रभ हो गया था।
“तुम यहाँ अक्सर आते हो क्या?” उसने मुझसे पूछा।
“जी? अक्सर तो नहीं, लेकिन कभी कभी आता हूँ। इस तरफ पहली बार आया हूँ। साइकिल चला कर शहर तक तो आता रहता हूँ, लेकिन पहाड़ की चढ़ाई आज पहली बार की है!”
“हम्म्म! काफी मेहनत हो गई! मुझे यहाँ अच्छा लगता है। कोई शोर नहीं, कोई लोग नहीं। जब घर के काम ख़तम हो जाते हैं, तो मैं इधर आ जाती हूँ।”
“आपका बेटा है या बेटी?”
“बेटा!”
“कितना बड़ा है अभी?”
“एक साल का होने वाला है!”
“बढ़िया! जन्मदिन की बहुत बहुत बधाइयाँ बच्चे को! आप सैंडविच लेंगीं?”
“नहीं?”
“ओह! अच्छा, मेरे पास ये कुछ केले हैं?” मैंने बैग से निकाले।
वो मुस्कुराई और उसने केले स्वीकार कर लिए। मुझे लगता है कि ज़मीन से जुड़े लोग साफ़ सुथरा खाना ही पसंद करते हैं। जंक खाना नहीं। हमने कुछ देर खाया। फिर, अचानक ही उसने मुझसे पूछा,
“तुमको दूध पीते हुए बच्चे देखने पसंद हैं?”
मैं उस सवाल पर चौंक गया, लेकिन चूँकि झूठ बोलने वाली आदत नहीं थी, इसलिए मैंने ईमानदारी से जवाब दिया,
“जी... पसंद तो है। आपको दूर से दूध पिलाते हुए देखा, तो मन किया कि पास से देखूँ। इसलिए चला आया।”
“हा हा हा हा! मुझे लगा तुम इस बात से इंकार कर दोगे।”
“नहीं। मैं झूठ बहुत कम बोलता हूँ। लेकिन सच में आपके स्तन बहुत सुंदर हैं।”
वो सर हिलाते हुए मुस्कुराई, “क्या तुमने कभी माँ का दूध पिया है?”
उसके सवाल पर कई सारी पुरानी यादें दौड़ती हुई वापस आ गईं।
“सारे ही बच्चे माँ का दूध पीते हैं!” मैंने बोला।
“बचपन में नहीं, अभी?”
मैंने ‘न’ में सर हिलाया। मेरी उम्मीद से बेहतर जा रहा था यह तो!
वह मुस्कुराई, और अपने स्तन पर से ब्लाउज के फ्लैप को हटाते हुए बोली, “पियोगे?”
मैं अवाक रह गया। उसने अभी अभी जो कहा, मुझे उस बात पर विश्वास ही नहीं हो रहा था।
“आप सच में मुझे पिलाएँगीं?”
“हाँ! इसीलिए तो पूछा।” उसने सामान्य तरीके से कहा, “मुझे काफ़ी दूध आता है। इसलिए अभी भी बचा हुआ है ... तुम सभ्य लगे, इसलिए वह मुझको तुमसे डर नहीं लग रहा है।”
सच में, मुझे उस दिन लगा कि मैं धरती से सबसे भाग्यशाली लोगों में एक होऊँगा! जैसे-जैसे मैं उसकी तरफ सरक कर जा रहा था, वैसे वैसे मेरा दिल जोर से धड़क रहा था। उस महिला ने मुझे वो स्तन को लेने का इशारा किया, जिसमे अधिक दूध था। इतने सालों के बाद पुनः दूध भरे चूचक को मुँह में लेना एक स्वर्गीय एहसास था। मैंने स्तनपान शुरू किया और लगभग तुरंत ही ताज़ा, गर्म, और लगभग मीठा दूध मेरे पूरे मुँह में भर गया। मुझे दूध पिलाते हुए, उसने मेरे सर को प्यार से पकड़ लिया और धीरे से बोली,
“आराम से पियो! बहुत दूध है!”
दूध पीते हुए मैं एक अलग ही दुनिया में चला गया - माँ का दूध पिए कितने ही साल हो गए थे! जैसे जैसे दूध की धारा खुलकर मेरे मुँह में बहने लगी, वैसे वैसे मैं दीन दुनिया से बेखबर होता चला गया! मैंने करीब पाँच मिनट तक उस स्तन का दूध पिया होगा - लेकिन मुझे लगा जैसे मैंने पंद्रह मिनट तक पिया हो! जब वो स्तन खाली हो गया, तो मैंने उसकी ओर देखा। उसने मुझे दूसरा स्तन पीने को बोला, जो मैंने ख़ुशी ख़ुशी से पी लिया। सच में - स्तनपान करने से मैं कभी अघा नहीं सकता। लेकिन फिर कोई उधर आ न जाए, इस डर से मैंने अंत में उसका दूध पीना बंद कर दिया। वैसे भी उसके दोनों स्तन अब पूरी तरह से खाली हो गए थे। उसने मुझसे पूछा,
“पेट भर गया?”
“न तो पेट भरा, और न ही मन!”
“तो फिर पीते रहो।”
“नहीं नहीं! मैं आपको अधिक देर तक नहीं रोक सकता। लेकिन, सच में - आपको बहुत बहुत धन्यवाद! उम्मीद है, कि आपसे फिर कभी मुलाकात हो!”
वो मुस्कुराई और फिर उसने बड़ी कुशलता से अपनी चोली के बटन लगा दिए। मैंने उससे पूछा कि वह कहाँ रहती है लेकिन उसने मुझे बताने से इनकार कर दिया। उसने बच्चे को गोद में लिया और जंगल में कहाँ चली गई, समझ नहीं आया। मैंने एक बार उसका पीछा करने के बारे में सोचा, लेकिन सोचा कि ऐसा नहीं करना चाहिए।
तो वह था - इंजीनियरिंग कॉलेज से स्नातक होने से पहले मैं लगभग सबसे अच्छा, या कहिये कि एकलौता लगभग ‘यौन’ अनुभव था। लेकिन यह इतना कीमती अनुभव था कि मैं इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करके इसकी सुंदरता, इसकी ममता बर्बाद नहीं करना चाहता था। मैं उसके बाद भी कई बार पहाड़ की तरफ गया, लेकिन वह महिला नहीं मिली। मुझे कभी कभी तो लगता है कि वो कोई वनदेवी रही होगी!
Nice udateआत्मनिर्भर - नए अनुभव - Update 6
यह सब सवाल मेरे दिमाग में घूम रहे थे। महिलाओं में कभी-कभी मातृवृत्ति काफ़ी प्रबल हो जाती है, और उसके कारण वो ऐसे काम कर सकतीं हैं, जिनसे वो खुद भी आश्चर्यचकित हो जाएँ! आज शाम की घटना ऐसी ही एक घटना हो सकती थी। लेकिन इसका पक्का पता लगाना चाहिए, मैंने सोचा!
लगभग 15 मिनट तक ऐसे ही लेटे रहने के बाद,
“काजल?” मैंने उसको पुकारा; उसने कुछ नहीं कहा, “आप यहाँ बिस्तर पर आ जाओ?”
मुझे मालूम था कि मेरा अनुरोध एक खतरनाक, संभवतः निषिद्ध क्षेत्र में प्रवेश कर रहा था। लेकिन काजल उस अनुरोध के फ़लस्वरूप क्या करती है, वो हमारे सम्बन्ध को स्थायी रूप से बदल देगी। कुछ देर तक काजल ने कोई जवाब नहीं दिया।
“काजल?” मैंने फिर पुकारा।
मैं जानता था कि वो वह जाग रही है और कमरे के अंधेरे में मुझे देख रही है। उसकी आँखों की हल्की हल्की चमक दिख रही थी। न जाने उसने क्या सोचा। उसने अपने बगल लेटे हुए सुनील को, शायद देखने के लिए कि क्या वह पूरी तरह से सो रहा है या नहीं। फिर, वो अपने बिस्तर से उठी। मेरा दिल धमक गया। मतलब काजल के साथ बहुत कुछ हो सकता है! आगे उसने जो किया वह और भी अधिक उत्साहजनक था - उसने बिस्तर पर आने से पहले अपनी साड़ी उतार दी, फिर उसको तह कर के एक तरफ रखा और फिर मेरे बिस्तर में आ गई।
बिस्तर में आते ही उसने सबसे पहले मेरी ओढ़ी हुई चादर हटा दी, जिससे मैं एक बार फिर पूरी तरह से नंगा हो गया। इस बार मेरे लिंग में जीवन के कुछ लक्षण दिख रहे थे। फिर, मेरे बगल बैठ कर उसने अपनी ब्लाउज और ब्रा उतार दी। केवल पेटीकोट पहने वो मेरे बगल आ कर लेट गई। मुझे अपनी किस्मत पर विश्वास ही नहीं हो रहा था!
“अभी ठीक है?” उसने अपनी प्यारी सी मुस्कान के साथ पूछा।
“हाँ!”
मैंने कहा, और उसके दाहिने चूचक को अपने मुँह भर लिया, और साथ ही साथ उसके बाएँ स्तन को अपनी हथेली में ढँक लिया। मेरे इतना ही करने से काजल का शरीर काँपने लगा। इधर मेरा लिंग पूरी तरह से जीवित हो गया था और उत्तेजना के मारे झटके खा रहा था। काजल भी मेरी ही तरह कामोत्तेजित थी उस समय!
मैं काजल का दूध पीने लगा। हाँलाकि उनमे से दूध निकल रहा था , फिर भी उसने चूचक मेरे मुँह में सख्त हो गए थे। उत्तेजना की विवशता में काजल कमानी की तरह पीछे मुड़ गई - इससे उसके स्तनों का और भाग मेरे मुँह में आने लगा। मैंने यह भेंट सहर्ष स्वीकार करी और मजे में चूसना शुरू कर दिया। काजल की आह निकल गई। जल्दी जल्दी पीने से वह स्तन जल्दी खाली हो गया, तो मैंने दूसरा स्तन मुँह में ले लिया। काजल ने मुझे कस कर पकड़ रखा था और उसकी सांसें गहरी होती जा रही थीं। चूचकों से निकल कर एक मीठी झुनझुनी की तरंग उसके पूरे शरीर में तैर रही थी उसे मिल रही थी। उसकी साँसें फूल रही थीं।
“तुमी ... तुम बहुत आह्ह ... बहुत ज़ोर से चूसते हो…” काजल की आवाज़ बदल गई थी - जैसे उस पर सम्मोहन हो गया हो,
“... जैसे मानो ... जैसे ... तुम बहुत बुरे हो।” उसने कह दिया। ये शिकायत थी, या बढ़ाई, कहना बहुत मुश्किल था।
मैंने तो इसको बढ़ाई ही माना, और अपने स्वाभाविक तरीके से उसके स्तनों के ज़रिए उसको सुखसुख देता रहा। मुझे उसके दूध का सुख मिल रहा था, सो अलग! काजल के गले से संतुष्टि की गुनगुनाहट निकल रही थी। मुझे अचानक ही उसका हाथ अपने लिंग पर महसूस हुआ। उसने बड़ी देर से अपना हाथ मेरे जघन क्षेत्र पर रखा हुआ था, लेकिन अब वो मेरे लिंग को मज़बूती से पकड़े हुए थी।
“आह्ह्ह्ह्ह्ह!” अचानक ही काजल ने अपनी खुशी का इजहार किया।
लेकिन अभी उसका स्तन खाली नहीं हुआ था, लिहाज़ा, मैंने चूसना जारी रखा। उधर, उसका हाथ धीरे-धीरे मेरे लिंग की पूरी तरह से नाप तौल ले रहा था - अपने स्पर्श से उसने मेरे लिंग की लंबाई, मोटाई, उसके कड़ेपन, उसकी गर्मी और वृषणों का आकार और उनका भार - हर बात की जानकारी ले ली। साथ ही साथ वो मुझे सहलाते हुए स्तनपान भी कराती रही। लेकिन उस रात हम और आगे नहीं बढ़े।
“संतुष्ट हुए?” उसने कहा जब मैंने उसका दूसरा चूचक छोड़ा, “पेट भरा?”
वो इस समय करवट में लेटी हुई थी, और मेरी तरफ़ मुखातिब थी। उसका सर उसके दाहिने हथेली पर टिका हुआ था, और उसका बायाँ हाथ अभी भी मेरे लिंग से खिलवाड़ कर रहा था।
“हाँ!” मैंने मुस्कुराते हुए कहा, और फिर धीरे धीरे उसके स्तनों को सहलाया।
मैंने कुछ देर तक उसके स्तनों को सहलाया और फिर एक को अपने हाथ में भरकर थोड़ा उठा लिया।
“बहुत बड़े बड़े हैं, न?” उसने शिकायत वाले लहज़े में कहा। उसकी बात में कोई शर्म नहीं थी - हम दोनों पुराने दोस्तों के जैसे बात कर रहे थे। वो मेरे सामने खुद को प्रदर्शित कर रही थी, और हम दोनों ही इस बात को जानते थे।
“नहीं। बिल्कुल भी नहीं! परफेक्ट हैं - जोथाजाथो! खूब भालो!” मैंने अपनी टूटी फूटी बंगाली में कहा।
मेरी बात पर काजल हँसने लगी, “तुम झूठे हो ... और पागल भी,” उसने हंसते हुए कहा, लेकिन फिर भी उसने खुद को ढँकने की कोई कोशिश नहीं करी, “... मुझे अपने नाटक से फँसा लिया …” वो बोल रही थी, और साथ ही साथ मेरे लिंग को दबा और सहला भी रही थी, “मैं भी ऐसी पागल हूँ कि उस नाटक के फेर में पड़ गई …” उसने कहना जारी रखा।
“लाइट जला दूँ?” मैंने पूछा।
“क्यों?”
“तुमको देखना चाहता हूँ!”
“शाम को देखा तो था!” तब तक मुझे समझ आ गया कि काजल को मेरे द्वारा खुद को नंगा देके जाने पर कोई ऐतराज़ नहीं है।
“हाँ, लेकिन अभी ज्यादा दिख रहा है।”
“बदमाश हो तुम!” उसने प्यार से मुझे झिड़का, फिर बोली, “अभी नहीं! बाद में!”
“बाद में कब? बच्चे सो रहे हैं। यह मौका न जाने कब मिले!”
मैं मुस्कुराया। काजल मुस्कुराई। तो मैंने टेबल लैंप जला दिया। उस झीनी सी रौशनी में काजल बहुत सुन्दर सी, सेक्सी सी लग रही थी। मुझे ऐसे देखते देख कर वो शरमा गई।
“फिर से मुझे अपना दूध पिलाओगी, काजल?” मैंने बड़ी उम्मीद से पूछा।
“मैं तुम्हारे नाटक के चक्कर में एक बार पड़ चुकी हूँ न?”
मैंने उसकी इस बात को ‘हाँ’ के रूप में लिया, और इस के उत्साह में मेरा लिंग और भी सख्त हो गया।
“बदमाश नहीं, बहुत बदमाश!” कह कर काजल ने उसको थोड़ा और जोर से दबाया और सहलाया।
“पकड़े हुए हो, तो इसका दूध भी निकाल दो!” मैंने काजल से कहा, और तुरंत ही उसका हाथ मेरे लिंग के ऊपर नीचे फिसलने लगा।
उसने जो काम शुरू किया था उसे पूरा करने में अधिक समय नहीं लगा। मेरे अंदर दबाव पहले से ही बना हुआ था और जल्द ही मेरे लिंग ने मेरे मलाईदार वीर्य को बाहर निकालना शुरू कर दिया। यह कोई आइडियल स्खलन नहीं था। लेकिन चूँकि किसी और का हाथ कर रहा था इसलिए मज़ा अधिक आ रहा था। चरम आनंद पर पहुँच कर मेरा सर तकिए पर धँसा जा रहा था, और मैं अपने लिंग से निकलने वाले वीर्य की हर बूँद को अपने पेट और छाती पर गिरता देख रहा था।
“कुछ नहीं,” काजल जैसे मुझे दिलासा दे रही हो, “कुछ नहीं ... होने दो!”
काजल न तो रुकी और न ही मेरे लिंग को पूरी तरह निचोड़ लेने में कोई हिचक दिखाई। मैं अपने जीवन में इतना उत्साहित कभी नहीं था। हम दो मिनट तक बिस्तर पर ही पड़े रहे - उतने में मैंने अपनी साँस संयत करने की कोशिश की। तब काजल बिस्तर से उठी और एक छोटी तौलिया ले कर वापस बिस्तर पर आ गई। फिर उसने मुझे तसल्ली से पोंछ कर साफ़ किया। जब मैं पूरी तरह साफ़ हो गया तो उसने टेबल लैंप बुझाया, और वापस मेरे बगल आ कर बिस्तर में लेट गई। अब हमारे बीच कोई शर्म नहीं थी - कम से कम अंधेरे और एकांत में।
उसने कहा, “अच्छा है! बुखार वाला बिर्जो (वीर्य) था, निकल गया।” फिर मेरे माथे को छू कर कहा, “अब कैसा लग रहा है?”
शरीर अभी भी गर्म था, लेकिन उतना नहीं जितना पहले था। बुखार थोड़ा कम हो गया था।
“पहले से बेहतर।” मैंने उत्तर दिया।
“हम्म्म! तोमार नुनु खरा होय गेलो। ओटा भालो! अब जल्दी ही ठीक हो जाओगे। आओ, बुखार वापस आने से पहले, मैं तुम्हें सुला दूँ!”
यह कहकर वह करवट में हो कर मुझे थपकी दे कर सुलाने लगी। यह एक ऐसी मुद्रा थी जिसमें उसके स्तन मेरे मुंह के करीब थे। अब यह स्वाभाविक सी बात थी कि मैं फिर से उसके स्तन को अपने मुँह में ले लूँ। तो मैंने ले लिया और दूसरे स्तन को अपने हाथ में लेकर उसे सहलाने लगा।
“ना! थामून!” वह लगभग चिल्लाई और अपना शरीर मुझसे खींच लिया। उसका चूचक मेरे मुँह से निकल गया।
“मुझे यह चाहिए! मुझे तुम्हारा दूध चाहिए।” मैंने छोटे बच्चों के जैसे ज़िद पकड़ ली, और मेरे हाथ में जो स्तन था, उसको सहलाना और दबाना जारी रखा।
“दूध ख़तम हो गया है!” उसने फुसफुसाया।
“आधी कटोरी दूध भी चलेगा!” मैंने बदमाशी से कहा।
“तुम बहुत बुरे हो।”
मैंने कोई जवाब नहीं दिया और फिर उसका स्तन पीने लगा।
“इतना बड़ा हो के कोई दूध पीता है?”
“क्यों? सुनील को नहीं पिलाती?”
उसने ‘न’ में सर हिलाया।
“पिलाया करो! माँ के दूध से नुनु मज़बूत बनता है!”
मेरी बात पर काजल हँसने लगी। मुझे तब तक नहीं पता था कि इतनी देर तक ब्रेस्ट स्टिमुलेशन [स्तनों की छेड़-छाड़ी] करने के कारण काजल अपने सेक्सुअल टिपिंग प्वाइंट पर पहुंच गई थी। इतनी देर तक मैंने उसके स्तनों को पिया था कि अब वो अपने कामोन्माद के चरम पर पहुँचने वाली थी। यह बात शायद उसको भी न पता रही हो - क्योंकि उसने भी कोई भी भाव प्रदर्शित नहीं किया। यह भी संभव है कि मुझे एक महिला की भावनाओं को पढ़ना न आता हो!
थोड़ी देर बाद, उसने धीरे से कहा, “तुमको मेरे स्तन पसंद हैं।” और उसने मुझे अपने गले लगा लिया।
उसकी आवाज अस्थिर थी और उसकी सांसें भारी हो रही थीं। अब मैंने महसूस किया कि काजल बहुत काँप रही है। काँपते काँपते उसका आलिंगन मज़बूत हो गया और उसकी गहरी गहरी आहें निकलने लगीं। उसको संयत होने में दो मिनट लगे। तब तक उसने मुझे अपने स्तनों को चूसने दिया, लेकिन उसने आखिरकार अपने स्तन को मेरे मुंह से अलग कर दिया।
“चलो.... अब बस! आज के लिए बहुत हो गया। अब सो जाओ। मैं कहीं भागी नहीं जा रही हूँ। कल फिर से पिला दूँगीं!”
उसने प्यार से कहा और मेरे बिस्तर से उठ गई। वह अपने बेटे के बगल केवल पेटीकोट पहन कर सो गई।
Woww updateनींव - पहली लड़की - Update 19
हमको ऐसे बोलते देख कर माँ मुस्कुरा दीं, और अपने कमरे में चली गईं आराम करने। बाथरूम से हम सीधा मेरे कमरे में चले गए। जब हम अपने कमरे के अंदर गए, तो मैंने कमरे के किवाड़ लगा लिए। आज यह मैंने पहली बार किया था। न जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा था कि रचना और मुझे थोड़ी प्राइवेसी चाहिए। रचना ने भी यह नोटिस किया, लेकिन वो कुछ बोली नहीं। हम जब बिस्तर पर लेट गए, तब मैंने रचना से पूछा,
“रचना, तुमको कैसा लड़का चाहिए?”
“किसलिए?” वो जानती थी, लेकिन जान बूझ कर नादान बन रही थी।
“अरे शादी करने के लिए! कैसे लड़के की बीवी बनना चाहोगी?”
“तुम में क्या खराबी है?”
“मतलब मैं तुम्हारे लिए अच्छा हूँ?”
“हाँ! तुम अच्छे हो। हैंडसम दिखते हो। तुम्हारे माँ और डैड भी कूल हैं!” वो आगे कुछ कहना चाहती थी, लेकिन कहते कहते रुक गई।
मैंने कुछ पल इंतज़ार किया कि शायद वो और कुछ बोले, लेकिन जब उसने कुछ नहीं कहा, तो मैंने ही कहा,
“मैं तुमको प्यार कर लूँ?”
“मतलब?”
“मतलब, एस अ हस्बैंड?”
“अच्छा जी? मतलब आपका छुन्नू अभी अभी खड़ा होना शुरू हुआ है, और आपको अभी अभी मेरा हस्बैंड भी बनना है?”
“करने दो न?”
“हा हा हा! मैंने रोका ही कब है?”
रचना का यह कहना ही था कि मैंने लपक कर उसके कुर्ते का बटन खोलना शुरू कर दिया। मेरी अधीरता देख कर वो खिलखिला कर हँसने लगी। मैंने उसकी टी-शर्ट / ब्लाउज / शर्ट तो उतारी थी, लेकिन कुरता कभी नहीं। खैर, निर्वस्त्र करने की प्रक्रिया तो एक जैसी ही होती है। कुरता उतरा तो मैंने देखा कि उसने ब्रा पहनी हुई है।
“इसको क्यों पहना?” मुझे उत्सुकता हुई।
“बिना ब्रा पहने कैसे घर से बाहर निकलूँगी? मम्मी जान खा लेंगी!”
“वो क्यों?”
“अरे - इसको नहीं पहनती हूँ तो कपड़े के नीचे से मेरे निप्पल दिखने लगते हैं। और ब्रेस्ट्स को भी सपोर्ट मिलता है।”
“ओह तो इसलिए माँ भी बाहर जाते समय इनको पहनती हैं?”
“और क्या! नहीं तो आदमियों की आँखें खा लें हमको!”
मैंने उसके स्तनों की त्वचा को छुआ,
“कितने सॉफ्ट हैं तुम्हारे ब्रेस्ट्स!” फिर मैंने उनका आकार देखा, “थोड़े बड़े लग रहे हैं, पहले से!”
“हा हा! हाँ, माँ के हाथ का खाना मेरे शरीर को लग रहा है!”
“इतना कसा हुआ है! दर्द नहीं होता?”
“अरे बहुत दर्द होता है! मुझे इसे पहनने से नफरत है!”
कह कर वो मुड़ गई; उसकी पीठ मेरी तरफ हो गई। मेरी ट्यूबलाइट जलने में कुछ समय लगा, फिर समझा कि वो मुझे ब्रा हटाने या उतारने के लिए कह रही है। मैंने देखा कि पीठ पर ब्रा के पट्टे पर दो छोटे छोटे हुक लगे हुए थे। मैंने उनको खोला, और उसकी ब्रा उतार दी। उसके स्तनों और पीठ पर जहाँ जहाँ ब्रा का किनारा था, वहाँ वहाँ लाल निशान पड़ गए थे।
“अरे यार! इस पर कुछ लगा दूँ? कोई क्रीम?”
“ओह, ये? नहीं, अभी ठीक हो जायेगा।” लेकिन अपने लिए मेरी चिंता देख कर रचना प्रभावित ज़रूर हुई।
मैंने उन निशानों पर सहलाते हुए उंगली चलाई, तो रचना की आह निकल गई। जल्दी ही मैं उसके चूचकों को छूने लगा। मैंने एक स्तन को हाथ में पकड़ कर थोड़ा सा दबाया - फलस्वरूप उसका चूचक सामने की तरफ और उभर आया - मानों मुझे आमंत्रित कर रहा हो, या फिर मानों वो मेरे मुँह में आने को लालायित हो रहा हो। मैंने उस कोमल अंग को निराश नहीं होने दिया, और मुँह में भर कर उसको चूसने लगा। उसके कोमल चूचक की अनुभूति मेरे मुँह में हमेशा की ही तरह अद्भुत थी। रचना मीठे दर्द से कराह उठी, और मुस्कुरा दी। मैं उसकी सांसों को गहरी होते हुए सुन रहा था, जैसा कि उसके साथ हमेशा ही होता था। एक स्तन को पीते पीते ही मेरा लिंग पुनः स्तंभित हो गया। जब रचना ने यह देखा तो वो बहुत खुश हुई और हैरान भी!
“अरे वाह! तुम्हारे छुन्नू जी तो फिर से सल्यूट मारने लगे!”
मैं पीते पीते ही मुस्कुराया।
“डैडी का तो इतनी जल्दी कभी खड़ा नहीं होता!”
“आर यू इम्प्रेस्सड?” मैंने पूछ ही लिया।
उसने हाँ में सर हिलाया, “बहुत!”
“तो फिर ईनाम?”
“हा हा ... होने वाले पतिदेव जी, आपने अपना ईनाम अपने हाथ में पकड़ा हुआ है!” उसने मुझे प्रसन्नतापूर्वक याद दिलाया।
“बीवी जी, अपना दूध तो आप मुझे हमेशा ही पिलाती हैं। इस बार मुझे अपने अंदर जाने दीजिये न?”
रचना शरमा कर हँसी। वह समझ गई कि मैं क्या चाहता हूं। मुझे लगता है कि वो भी मन ही मन हमारे समागम की संभावना के बारे में सोच रही होगी। उसने संकोच नहीं किया। उसने अपनी शलवार का नाड़ा खोलना शुरू किया, और एक ही बार में उसने अपनी शलवार और चड्ढी दोनों ही नीचे की तरफ़ खिसका दिया। आज महीनों बाद वो इतने करीब वो बाद मेरे सामने नंगी बैठी हुई थी। वह बिस्तर पर लेट गई और मुझे ठीक से देखने के लिए उसने अपनी जाँघें फैला दी। साथ ही साथ उसने मेरे उत्तेजित लिंग पर अपना हाथ फेर दिया।
“तुम एक शरारती लड़के हो,” वह हंसी, “मैं तुमसे बड़ी हूँ, लेकिन मुझको नंगा करने में तुमको शर्म नहीं आती?”
मैं मुस्कराया, “तुम मेरी बीवी हो!”
उसने मेरा हाथ थाम लिया और मुझे अपनी ओर खींच लिया। जब मैं उसके ऊपर आ गया तो उसने मेरे माथे को चूमा और फुसफुसाते हुए कहा, “तुम एक बहुत हैंडसम और एक बहुत शरारती लड़के हो!”
मैं मुस्कुराया।
“लेकिन जब हमारी शादी होगी, तब मैं तुम्हारे पैर नहीं छूवूँगी! तुम मुझसे छोटे हो। तुम मेरे पैर छूना!”
मैं उठा, और उठ कर उसके पैरों की तरफ गया। मैंने बारी बारी से उसके दोनों पैरों की अपने सर से लगाया और चूमा। वो मेरी इस हरकत से दंग रह गई। मैंने अपने सामने नंगी लेटी रचना को प्यार से देखा। कितनी सुन्दर लड़की! माँ का सपना था कि वो हमारे घर में आए! शायद अब ये होने वाला था। मेरा लिंग रक्त प्रवाह के कारण झटके खा रहा था। रचना बहुत कमसिन, छरहरी, लेकिन मज़बूत लड़की थी! उसके पैर लंबे और कमर क्षीण लग रही थी; उसके नितम्ब गोल नहीं, बल्कि अंडाकार, और ठोस थे! उसकी योनि बाल वसीम के जैसे ही घुँघराले और थोड़े कड़े हो गए थे। योनि के दोनों होंठ अभी भी पतले ही थे; उनमें कोई परिवर्तन नहीं आया था।
“पसंद आई अपनी बीवी?” उसने बड़ी कोमलता, बड़े स्नेह से पूछा।
मैंने ‘हाँ’ सर हिलाया, और वो भी बड़े उत्साह से।
“और मैं?”
“तुम तो मुझे हमेशा से पसंद हो! मैं किसी बन्दर के पास थोड़े ही जाऊँगी हमेशा! आओ, अब अपना ईनाम ले लो। धीरे धीरे से अंदर आना! ठीक है?”
माँ और डैड ने सिखाया तो था, लेकिन न जाने क्यों मुझे लग रहा था कि कुछ कमी है मेरे ज्ञान में। ये वैसा ही है जैसे टीवी पर देख कर तैराकी सीखना! ख़ैर, मैंने अपने लिंग का सर उसकी योनि के द्वार पर टिका दिया।
“बहुत धीरे धीरे! ठीक है?” उसने मुझे फिर से चेताया।
“तुमने पहले कभी किया है यह?” मैंने पूछ लिया।
“तुम्हें क्या लगता है कि मैं क्या हूँ? वेश्या?” रचना का सारा ढंग एक झटके में बदल गया।
“आई ऍम सॉरी यार! मेरा मतलब उस तरह से नहीं था। मैं बस ये कहना चाहता हूँ मुझे नहीं पता कि कैसे करना है। यदि तुमको मालूम हो, तो तुम मुझे गाइड कर देना! प्लीज!”
मेरी बात का उस पर सही प्रभाव पड़ा। वो फिर से शांत हो गई,
“ओह। अच्छा! मुझे लगता है कि हम खुद ही जान जाएँगे कि कैसे करना है। बस इसे मेरे अंदर धीरे-धीरे स्लाइड करने की कोशिश करो। धीरे धीरे! मुझे अंदर कोई चोट नहीं चाहिए!”
मतलब मुझे डैड ने जो कुछ सिखाया था, उसी पर पूरा भरोसा करना था। अपने लिंग को पकड़कर, मैंने उसकी योनि की फाँकों के बीच फँसाया और धीरे से दबाव बनाया। रचना प्रतिक्रिया में अपनी योनि का मुँह बंद कर ले रही थी, लेकिन धीरे धीरे करने से लिंग का कुछ हिस्सा उसके अंदर चला गया। मुझे यह देखकर खुशी हुई। रचना सांस रोके अपने अंदर होने वाली इस घुसपैठ को महसूस कर रही थी। जब मैं रुका, तो उसने साँस वापस भरी। मैं उसी स्थिति में रुका रहा, और अनजाने में ही उसकी योनि को इस अपरिचित घुसपैठ के अनुकूल होने दिया।
“तुम ठीक हो?” मैं उसके माथे से बालों की लटें हटाते हुए पूछा।
उसने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“मैं तुम्हारे अंदर आ गया हूँ, देखो?”
रचना ने नीचे की ओर देखा, जहाँ हम जुड़े हुए थे,
“तुम थोड़ा और अंदर आ सकते हो!”
हम दोनों को ही नहीं पता था कि हमारे पहले समागम के दौरान हम किस तरह के अनुभव की उम्मीद करें! लेकिन जैसे जैसे मैं उसके अंदर घुसता गया, रचना के चेहरे पर आश्चर्य, प्रसन्नता, और दर्द का मिला जुला भाव दिखता गया। अंत में उसने आँखें खोल कर मुझे आश्चर्य भरी निगाहों से देखा,
“हे भगवान! अमर... यह बहुत बड़ा है!”
“क्या? मेरा छुन्नू?”
“हाँ!”
“छुन्नू तो उतना बड़ा नहीं है अभी! लेकिन तुम्हारी चूत छोटी सी ज़रूर है।”
रचना ने उत्तर में मेरे गाल पर प्यार भरी चपत लगाईं, “बदमाश लड़का!”
उसकी बातों से मुझे लगा कि जैसे मेरा लिंग उसके अंदर जा कर थोड़ा मोटा हो गया है। मैं उस समय बिलकुल भी हिल-डुल नहीं रहा था, और रचना के अंदर उसी स्थिति में था। योनि के भीतर रहने वाली भावना का वर्णन कैसे किया जाए? यह वैसा सुखद एहसास नहीं था, जैसा कि मेरे माँ और डैड दावा कर रहे थे। लेकिन उसके अंदर जा कर अच्छा लग रहा था - उसकी योनि की माँस-पेशियाँ मेरे लिंग की लंबाई को पकड़े हुए थीं। अंदर गर्मी भी थी, और चिकनाई भी।
“रुके क्यों हो? करो न?”
“क्या?”
“मुझसे प्यार!”
मुझे लगता है कि आप अधिक समय तक प्राकृतिक, सहज-ज्ञान को रोक कर नहीं रख सकते हैं। मैंने लिंग को थोड़ा सा बाहर निकाला और फिर वापस अंदर डाल दिया। धीरे से।
“फिर से करो?” उसने कहा।
मैंने फिर से किया। उसने ‘हाँ’ में सर हिलाया। हमारी सहज-वृत्ति हमारे मैथुन को दिशा दे रही थी। चार पांच बार धीरे धीरे करने के बाद मैंने इस बार थोड़ा तेज़ से धक्का लगाया। रचना ने एक दम घुटने वाली आह निकाली। मैंने न जाने क्यों, उसकी आह की परवाह नहीं की, और फिर से उसी गति में धक्का लगाया। रचना भी समझ गई होगी कि जिस पोजीशन में वो थी, उसमे रह कर मुझ पर नियंत्रण कर पाना मुश्किल था। उसने खुद को मेरे रहमोकरम पर छोड़ दिया, और मैंने उसके साथ धीमे और स्थिर लय में सम्भोग करना शुरू कर दिया। शायद उत्तेजना के कारण रचना का मुँह खुल गया। उसकी योनि की आंतरिक माँस-पेशियां मुझे सिकुड़ती हुई महसूस हुईं।
“ओह अमर। आखिरकार तुमने मुझे अपनी बीवी बना ही लिया! ओह्ह्ह! बहुत अच्छा लग रहा है।” रचना बुदबुदाई, “जो तुम कर रहे हो वही करते रहो।”
तो मैंने वही करना जारी रखा। लगभग दो मिनट बाद मैंने महसूस किया कि रचना का शरीर अकड़ने लगा; उसकी आँखें संकुचित हो गई थी, और उसकी उँगलियाँ मेरी बाँहों में जैसे घुसने को बेताब हो रही थी। और मुझे यह भी लगा कि वो धीरे धीरे रो भी रही है। मुझे नहीं मालूम था, लेकिन रचना का सारा शरीर सुख-सागर में गोते लगा रहा था। चूँकि यह मेरा भी पहला अनुभव था, इसलिए मुझे नहीं पता था कि हमारे मैथुन से क्या उम्मीद की जाए! लगभग उसी समय, मेरे लिंग से भी वीर्य की बूँदें छूटीं! एक बार, दूसरी बार, और फिर तीसरी बार! मेरा शरीर भी थरथरा रहा था। रचना ने मेरे शरीर में यह परिवर्तन महसूस किया, तो उसकी आँखें खुशी से चमक उठीं। एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया में, मैंने इस आनंद को थोड़ा और बढ़ाने की उम्मीद में, धक्के लगाने की गति धीमी कर दी। फिर मैंने चौथी बार भी वही आनंद महसूस किया, जो अभी तीन बार किया था। इस बार मैं आनंद से कराह उठा।
जैसे ही मेरा स्खलन समाप्त हुआ, रचना भी अपने चरमोत्कर्ष से बाहर आ गई, लेकिन थकावट के कारण लेटी रही। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं, मुझे अपनी ओर खींच लिया और फिर से सामान्य रूप से साँस लेने लगी। न जाने क्यों उसको चूमने का मन हुआ। मैंने उसके कान को चूमा, फिर गले को, और फिर उसके स्तनों के बीच में अपना चेहरा छुपा दिया। रचना मुझे अपने सीने में भींचे लेटी रही।
वो कोमलता से बोली, “क्या तुमको अपना ईनाम पसंद आया?”
“हाँ। बहुत!”
मेरी बात पर हम दोनों ही मुस्कुराने लगे।
“तुझे तो आया मज़ा.... तुझे तो सूझी हँसी.... मेरी तो जान फँसी रे....” उसने एक बहुत ही प्रसिद्द गाने की पंक्तियाँ गुनगुनाई।
“अरे! तुम्हारी जान कैसे फंसी?”
“वाह जी! पहले तो मार मार के मेरी छोटी सी चूत का भरता बना दिया, और अब पूछते हैं कि मेरी जान कैसे फंसी! अगर मुझे बच्चा ठहर गया, तो मेरे साथ साथ तेरी जान भी फंस जाएगी!”
“सच में ऐसा हो सकता है क्या?”
“उम्म्म नहीं.... शायद। चांस तो कम है। लेकिन हमको सावधान रहना चाहिए।”
रचना ने कहा और बिस्तर से उठ बैठी। इसके तुरंत बाद हमने कपड़े पहने। मै बिस्तर पर बैठा उसको अपने बाल सँवारते हुए देख रहा था। उसने मुझे आईने में मेरे प्रतिबिंब को देखा,
“क्या?” वह मुस्कुराई और धीरे से पूछा।
“रचना?”
“हाँ?”
“क्या हम इसे फिर से करेंगे कभी?”
उसका बाल सँवारना रुक गया, “ओह, अमर।”
“अरे! मैं तो बस पूछ रहा था।” मैंने कहा।
“हा हा! करेंगे! करेंगे!” उसने कहा, “लेकिन किसी को बताना मत!” फिर थोड़ा सोच कर, “उम्म्म माँ और डैड के अलावा किसी और को नहीं! ठीक है? क्योंकि... क्योंकि…” वो बोलते बोलते रुक गई, जैसे उपयुक्त शब्दों की तलाश कर रही हो, “क्योंकि... बाकी लोग कहेंगे कि यह सब नहीं करना चाहिए। या यह कि प्यार करना गन्दा काम है। और फिर हम दोनों मुश्किल में पड़ जाएंगे। हमारे साथ साथ शायद हमारे पेरेंट्स भी।”
मैंने पूछा, “लेकिन किसी और को हम क्या करते हैं वो देख कर बुरा क्यों लगना चाहिए?”
“लोग ऐसे ही होते हैं अमर,” रचना बड़े सयानेपन से बोली, “दूसरों के काम में टाँग लगाने वाले!”
“हम्म्म!” मैंने कुछ देर सोचा और कहा, “रचना, हम ये दोबारा करें या नहीं, लेकिन तुम हमेशा मेरी दोस्त रहना। मेरी बेस्ट फ्रेंड! तुम मुझे सबसे अच्छी लगती हो!”
“वाक़ई?” उसकी आँखों में एक चमक सी उठी।
“हाँ। मुझे तुम्हारा साथ बहुत अच्छा लगता है!”
वह मुस्कुराई, “जानकर खुशी हुई।”
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जीवन का पहला सेक्स अनुभव हमेशा याद रहता है। कोई तीस बत्तीस साल पहले हुई यह घटना मुझे आज भी याद है। सब कुछ मेरे ज़ेहन में ताज़ा तरीन है!
इस प्रकार के अनोखे अनुभव और लोगों से शेयर करने का मन तो होता है, लेकिन मैंने किसी को नहीं बताया - न तो माँ को और न ही डैड को। लेकिन रचना से रहा नहीं गया। उसने माँ से सारी बातें कह दीं। उसी दिन। कमरे से निकल कर जब मैं कोई और काम कर रहा था तब रचना ने हमारे यौन सम्बन्ध का पूरा ब्यौरा माँ को दे दिया। माँ ने उसकी बात को पूरे ध्यान से सुना और उसके बाद उन्होंने जो किया वह अद्भुत था। माँ ने रचना को गले से लगाया और उसको चूम लिया।
“मेरी बिटिया!” माँ ने स्नेह से कहा, “तुम जुग जुग जियो! अगर तू आगे चल कर मेरे अमर को अपनाना चाहेगी, तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा।”
“हा हा हा! माँ, मैं तो बस आपके लिए ही इस बन्दर से शादी करूँगी।” रचना के कहने के अंदाज़ पर माँ खिलखिला कर हँसने लगीं, “मुझे तो आप माँ के रूप में मिल जाएँ तो आनंद आ जाए! मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ, आपको अपनी माँ मानती हूँ, और मुझे मालूम है कि आपके साथ मैं बहुत खुश रहूंगी!” उसने कहा।
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कहानी जारी रहेगी