malikarman
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Aapne "K" ka kya explanation diya he komal ji.. maine kabhi aise socha hi nhi.. aur uske baad bhasha or sahitya pr jo ek paragraph tha.. bohot deep.. kash mai aapki trh itna ghrai tk sochna sikh pau.. mai aapke fan se aapka student bnta ja rha huकोमल तुम्हारा नाम क्या है
मुझपर सवाल दाग दिया .
….
बस पीटा नहीं मैंने इनको,
" कोमल तुम्हारा नाम क्या है। "
मैं मारने के लिए कोई चीज ढूंढती उसके पहले उन्होंने दूसरा सवाल दाग दिया , जो थोड़ा मुश्किल था ,
" अच्छा चल तेरे नाम का पहला अक्षर क है न , तो ये बताओ अक्षर क्या है , और क्यों हैं ? "
मैंने थोड़ा सर खुजलाया , इनकी माँ बहन को गाली दी मन ही मन, लेकिन मैं भी बनारस की , मैंने सोच कर बोल दिया ,
" अक्षर, मतलब भाषा का बिल्डिंग ब्लाक, सबसे बेसिक यूनिट,... "
पर इन्हे संतुष्ट करना आसान नहीं था , उन्होंने ना ना में सर हिलाया और फिर पूछा ,
" नहीं नहीं , जैसे क , तो ये लिखा जाता है की बोला जाता है , ... "
अब मुझसे नहीं रहा गया , इतना घुमा फिरा के हम बनारस वालियां नहीं बात करती , जो सुनने के लिए उनके कान तरस रहे थे मैंने बोल दिया ,
" स्साले बहन के भंडुए , जब बचपन में क, ख , ग पढ़ाया जा रहा था तो क्या गाँड़ मरा रहे थे , लेकिन वो तो नहीं हो सकता क्योंकि तेरी अब तक कोरी है , ससुराल में अपने ससुराल वालियों/ वालों से मारने के लिए बचा रखी है , तो अपनी बहिनों के लिए मोटा औजार ढूंढ रहे थे क्या जो अब मुझसे पूछ रहे हो ,... बोलते भी हैं , लिखते हैं ,... "
वो जोर से हँसे , हँसते ही रहे , उनकी इसी हंसी पर तो सिर्फ मैं नहीं उनकी सारी ससुराल वालियां निहाल थीं , पर जो बात बतायीं उन्होनी , सच बताऊँ , किसी से बताइयेगा नहीं , कोमल के दिमाग में भी कभी नहीं आयी थी , ...
जीभ, तालू , होंठ के संयोग से जो हवा मुंह से निकलती है , वो एक आवाज होती है , लेकिन हर आवाज अक्षर , या शब्द नहीं होती। उसी तरह हम लाइने , कुछ ज्यामितीय आकृतियां उकेरते हैं , लेकिन हर बार उस का भी अर्थ नहीं होता , लेकिन जब दोनों को मिलाकर, जैसे हमने एक लाइन , गोला , पूँछ ( ाजिसे स्कूल में मास्टर जी सिखाते हैं क लिखने के लिए ) और उसको एक ख़ास अंदाज में बोलते हैं , तो ये दोनों का कन्वर्जेंस अक्षर होता है , और उसी के साथ जुड़ा होता है एक सोशल सैंक्शन , सभी लोग एक इलाके के , जो साथ साथ रहते हैं यह मान लेते हैं की इस ज्यामितीय आकृति के लिए यह जो आवाज निकल रही है वह क होता है ,
मैं चुपचाप सुनती रही , ये बात कभी मैंने सोची भी नहीं थी , कितनी बार क ख ग लिखा पर , पर मेरी आदत चुप रहने की नहीं थी तो मैं बोल पड़ी ,
" और उसी को जोड़ कर शब्द बनते हैं ,... "
ज्यादातर इनकी हिम्मत नहीं होती थी मेरी बात काटने की , माँ बहन सब की ऐसी की तैसी कर देती मैं , और उपवास का डर अलग, लेकिन आज बात काटी तो नहीं लेकिन थोड़ी कैंची जरूर चलायी।
" हाँ और नहीं , कई ट्राइबल सोसायटी में रिटेन लैंग्वेज अभी भी नहीं है , पर शब्द हैं गीत हैं कहानियां है , तो एकदम नैरो सेन्स में हम उन्हें लिटरेट नहीं मानते , लेकिन उनका अपना लिटरेचर अलग तरीके का है , लेकिन लिखने का फायदा है की सम्प्रेषण आसान हो जाता है , समय और स्थान के बंधन से हट कर , जो अशोक ने शिलालेख पर लिखा, वो हजारों साल बाद भी पढ़ कर उस समय के बारे में , पता चल जाता है , ... फिर जो यहाँ लिखा है उसे हजारो किलोमीटर दूर भी भेजा जा सकता है , तो कोई भी जीव, समाज , सभ्यता, संस्कृति अपने को प्रिजर्व करना चाहती है , तो लिखित भाषा उसमें सहायक होती है , ... "
मेरा भी दिमाग अब काम करने लगा था , मैंने जोड़ा और साहित्य ,
" एकदम लेकिन उसके पहले व्याकरण , और फिर वही बात सामाजिक स्वीकृत की , मान्यता की और बदलाव की भी , संस्कृत ऐसी भाषा भी , व्याकरण के नियम , शब्दों के अर्थ सब बदलते हैं , लेकिन हर अक्षर जिसमें अर्थ छिपा रहता है एक डाटा है , अच्छा चलो ये बताओ ढेर सारा डाटा एक साथ कब पहली बार संग्रहित किया गया होगा ,
मैंने झट से जवाब दिया और जल्दी के चक्कर में गलत जवाब दिया , कंप्यूटर पर उन्होंने तुरतं बड़ी हिम्मत बात काटी ,
नहीं किताब ,
और समझाया भी , जब शिलालेख पर , गुफाओं में कुछ उकेरते थे तो समय और स्थान की सीमा रहती थी पर किताब के एक पन्ने पर कितनी लाइनें , कितने शब्द , फिर जो एक के बाद एक पन्ने को जोड़ कर रखने की तरकीब निकली तो कितनी बातें एक साथ एक जगह और भाषा के साहित्य में बदलने में किताबों का बड़ा रोल था , ,
मुझसे नहीं रहा गया मैं पूछ बैठी , और कंप्यूटर ,
वो फिर हंसने लगे , और मैं उनसे एकदम सट कर बैठ गयी ,
कंप्यूटर बड़ी , ... वो हर भाषा , चित्र , संख्या , आवाज को ० और १ में बदल देता है तो एक यूनिवर्सिलिटी ,... लेकिन ये पहली बार नहीं हो रहा है , टेलीफोन और उससे पहले टेलीग्राफ , मोर्स कोड , इलेक्ट्रिक करेंट को , फिर ग्रामोफोन रिकार्ड , ... सौ साल बाद भी गौहर जान को सुन सकते हैं ,... चलो एक और सवाल पूछता हूँ कन्वर्जेन्स का , दो एकदम शुरू की सबसे बड़ी खोजें , मिल कर क्या बनीं ,
और अबकी मैं सही थी ,
इंजन जोर से बोली मैं ,
एकदम सही , आग और पहिया , ... और सिर्फ ट्रेन के इंजिन में नहीं , टरबाइन , और पहली औद्योगिक क्रांति जिसने यूरोप को इतना आगे कर दिया ,
हम दोनों बड़ी देर तक बतियाते रहे , वो बताते रहे , की वो लोग मिल कर क्या कर रहे हैं जिस कंपनी में वो ज्वाइन करने जा रहे हैं , वहां क्या क्या होता है और फिर उन्होंने अगला सवाल पूछ दिया , तेरा पैन नंबर , आधार कार्ड ,
मैंने झट से बता दिया , और ये भी मेरा आधार मेरी पहचान।
और बात दूसरी तरफ मुड़ गयी।
yah kahani thodi alag hai, and aage aage dekhiye,....Aapne "K" ka kya explanation diya he komal ji.. maine kabhi aise socha hi nhi.. aur uske baad bhasha or sahitya pr jo ek paragraph tha.. bohot deep.. kash mai aapki trh itna ghrai tk sochna sikh pau.. mai aapke fan se aapka student bnta ja rha hu
trying to expedite JKG, but this week a number of posts will come on this thread too.komal ji wo nanad wali storyline ka kya hua ?
Ji bilkul..yah kahani thodi alag hai, and aage aage dekhiye,....
esp. where Reet makes an entry or the talk about convergence of various technologies, sometimes it gets subsumed in eroticaJi bilkul..
एक दिन ज्यादा लेकिन loved it every word every updateआखिर खोज निकाला -
सोलवां सावन
यह वीकेंड फिनिश करने का इरादा है