वेदांत रेलवे स्टेशन पर लकड़ी की एक बेंच पर बैठा हुवा था। वह सरपंच के घर से सीधे आया था। राहुल और आदित्य के आने का इंतजार कर रहा था। रेलवे स्टेशन पर वेदांत बिल्कुल अकेला था। स्थान प्रबंधक अपने कार्यालय में थे।
स्टेशन के ऊपरी बत्तियों की हल्की चमक से चमक रहा था। प्लेटफार्म हलके धुंधले में था, और लकड़ी की बेंचों और लैम्पपोस्ट्स से लम्बी छायाएँ फैल गई थीं।
रात के अंधेरे से इस स्थान की शांति को और भी प्रमुख बना दिया था। दिन मे अधिकांश यात्री आ गए और चले गए थे, जिसके परिणामस्वरूप वेदांत को ही इस ट्रेन की आगमन की प्रतीक्षा में एकमात्र यात्री बना दिया था। रात की हवा शीतल थी, और वह पास के पेड़ों के पत्तों की सरल हलचल को महसूस कर सकता था।
वेदांत ने अपनी घड़ी की ओर देखा, घड़ी की सुई रात के 9 बजे को दिखा रही थी। उसे पता था कि राहुल और आदित्य जल्द ही उसके पास आने वाले हे। ट्रेन को आने मे अभी एक धंटा और बचा था।
वेदांत अपने दोस्तों का इंतजार करते-करते उब गया था। स्टेशन के ऊपरी बत्तियां आसमान में हलकी सी चमक पैदा कर रही थीं।
तभी वेदांत का ध्यान उस पार के रेलवे ट्रैक्स की ओर खिच गया। अंधकार में, एक छाया खड़ी थी, अंधकार कि वजह से अपूर्ण दिख रही थी। वेदांत ने धीरे से देखने पर महसूस किया कि वहाँ एक महिला है।
वह काली साड़ी पहनी थी, जिसमें ब्लाउज नहीं था, और वह साड़ी उसके शरीर से संघात से जुड़ी थी, जो उसके रूप को एक सुंदरता से भर देती थी। उसके लम्बे, शानदार बाल उसकी पीठ से लेकर कमर तक बिखेरे हुए थे। वह केवल मिनिमल आभूषण पहने थे, जिनसे उसकी सादगी की खूबसूरती प्रकट हो रही थी। उसके कूल्हों की खासियत उनकी खूबसूरती को और भी कामुक बना रही थी।
वेदांत केवल उसकी पीठ को देख पा रहा था, उसके चेहरे को नहीं। उसकी आंखें और मन उसकी ओर जमे हुए थे, तभी अचानक उसकी कंधे पर किसी का हाथ महसूस हुआ, और वह डर से कांप उठा।
राहुल: अरे, क्या हुआ? तुम अंधेरे की ओर क्या देख रहे थे?
वेदांत: देखो उसे, कितनी खूबसूरत है!
राहुल: कौन? मुझे वहाँ कोई नहीं दिखाई दे रहा है।
वेदांत वापस मुड़ कर देखता है, लेकिन अब वहाँ सिर्फ अंधकार है, कुछ भी नहीं है, और वह महसूस करता है कि वही औरत जिसने उसका ध्यान केंद्रित किया था, अचानक गायब हो गई है।
राहुल: कोई वहाँ नहीं है।
वेदांत अपने दोस्तों की और अपना ध्यान खींचता हैं और उनके साथ बात करने लगते हैं। एक घंटे बाद ट्रेन आवाज करती हुई आई।
वे ट्रेन में चढ़ते हैं और खुद के लिए सीट ढ़ूंढ़ने लगते हैं। स्टेशन से ट्रेन प्रस्थान होते ही, वेदांत और उनके दोस्त अपनी सीटों पर आराम से बैठ जाते हैं। उन्हें राजकोट पहुंचने में बहुत समय है, इसलिए वे आपसी बातचीत करने लगते हैं, पुरानी यादों को ताजा करते हैं।
रात की ठंडी हवा खिड़कियों और दरवाजों के माध्यम से आ रही हैं, एक हलकी भींभूभू सी ठंडी हवा, उन्हें दिन की गर्मी से आराम मिलती है। यह हवा ट्रेन के पटरियों पर सुखद गंध लेकर आती है, जब ट्रेन स्थिरता से पटरियों पर बढ़ती रहती है।
लगभग डेढ घंटे की बातचीत और हंसी मजाक में, उनके सफर की थकान उन्हें धीरे-धीरे पकड़ने लगती है। वे जानते हैं कि उन्हें अच्छी तरह से आराम की आवश्यकता है, खासकर क्योंकि कल का काम है कि वे एक प्रकाशक को ढूंढ़ना है जिसने बहुत समय से बंद हो गया है। धीरे-धीरे, उनकी आवाज़ें कम हो जाती हैं, और उनकी पलकें भारी हो जाती हैं।
एक के बाद एक, वेदांत, राहुल, और आदित्य खुद को ट्रेन की सीटों पर बैठे हुए पाते हैं। पटरियों पर पहियों की बितड़ती धड़कन और ट्रेन की प्रशांत चाल के साथ, उन्हें एक शांत सम्भावना में ले जाते हैं। बाहर, दुनिया बत्ती और छायाओं की एक ब्लर के रूप में गुजरती है, जैसे ही ट्रेन अपनी यात्रा जारी रखती है, अपनी मार्ग पर विभिन्न स्टेशनों पर ठहरती है।
सुबह के लगभग 5 बजे, ट्रेन राजकोट पहुंची, इस समय स्टेशन भीड़ से भरा हुआ था क्योंकि कई लोग अपनी ट्रेनों के इंतजार में थे। विभिन्न ट्रेनों के लिए एक-एक करके घोषणा की जा रही थी, कुछ देर से आ रही थीं, तो कुछ समय पर थीं।
एक ऐलान सुनने के बाद, वेदांत जाग जाता हैं, उसने दूसरों को जगाया और वे ट्रेन से नीचे उतर आए। क्योंकि राजकोट ट्रेन का आखिरी स्टेशन था, इसलिए यहाँ ट्रेन कुछ समय के लिए रुकी रही।
ट्रेन प्लेटफार्म नंबर दो पर आई, इसलिए उन्हें दूसरी ओर जाने के लिए पुल का उपयोग करना पडता है। आदित्य को बहुत आक्रोश आया क्योंकि इस सुबह उसको सीढ़ियों से जाना पड़ा।
आदित्य: क्या वे प्लेटफार्म एक पर नहीं ला सकते थे?
वेदांत और राहुल को उस पर हंसी आयी। तीनों स्टेशन से बाहर निकले। स्टेशन के बाहर, ऑटो चालक ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए शोर मचा रहे थे।
तीनों ने उन्हें नजरअंदाज किया और चाय की दुकान पर गए, अपना चेहरा धोया और वेदांत ने सभी के लिए चाय लाई। वे प्लास्टिक की मेज़ पर बैठे बैठे चाय पी रहे थे और प्रकाशक को कैसे ढूंढ सकते हैं, इस पर चर्चा कर रहे थे।