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Horror यक्षिणी

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ठीक है भाई, व्यूज/लाइक/कमेंट नहीं मिलने से, मैं अच्छा महसूस नही कर रहा था। अगर कोई नहीं पढ़ रहा तो मैं यह कहानी क्यों लिखु।

पर साम होते ही लिखने बैठ जाता हुए।
आप की मनोदशा से बिल्कुल वाकिफ हूं मै । आप की निराशा भी बिल्कुल वाजिब है ।
लेकिन ऐसा सिर्फ आपके साथ नही , इस फोरम पर मौजूद कई राइटर्स के साथ है । कुछ राइटर तो ऐसे है जहां सिर्फ एक ही रीडर है और वो मै खुद हूं । यहां बहुत सारी कहानियाँ ऐसी है जिसे मात्र चार पांच लोग ही पढ़ते हैं ।
लेकिन ऐसे भी इस फोरम पर राइटर्स है जो इस चीज को सीरियस नही लेते । उनके अंदर मैच्योरिटी है , पेशेंस है और जज्बा है ।
कुछ ऐसे भी राइटर्स है जिन्हने रीडर्स की कमी पर कभी भी निराशा जाहिर नही की । क्योंकि वो खुद के लिए लिखते है , अपनी फैंटेसी के लिए लिखते है , अपनी जुनून की लिए लिखते है , अपनी कला स्वयं परखना चाहते है ।
ये लोग अपने स्क्रिप्ट के साथ फेर बदल नही करते । आपको मैकडोनाल्ड की सच्ची स्टोरी बताता हूं । इस कम्पनी के मालिक ने जीरो से शुरुआत की थी । करीब सौ घर भटकने के बाद इन्होने पहला पीजा बेचा था । अब की स्थिति इस कम्पनी की क्या है , यह किसी से छुपा नही है ।
आप निराश न हो । आप अपना कर्म करते रहिए ।
 
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और जहां अपडेट की बात है , हमेशा की तरह बेहतरीन और खुबसूरत ।
एक वक्त हुआ करता था जब मेरठ और गाजियाबाद बुक्स के प्रकाशन का प्रमुख केंद्र हुआ करता था । बहुत सारी प्रकाशन संस्थान थी और उनमे एक इस स्टोरी के नाम की तरह ही राज पाकेट बुक्स हुआ करता था ।
 

vicky4289

Full time web developer.
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आप की मनोदशा से बिल्कुल वाकिफ हूं मै । आप की निराशा भी बिल्कुल वाजिब है ।
लेकिन ऐसा सिर्फ आपके साथ नही , इस फोरम पर मौजूद कई राइटर्स के साथ है । कुछ राइटर तो ऐसे है जहां सिर्फ एक ही रीडर है और वो मै खुद हूं । यहां बहुत सारी कहानियाँ ऐसी है जिसे मात्र चार पांच लोग ही पढ़ते हैं ।
लेकिन ऐसे भी इस फोरम पर राइटर्स है जो इस चीज को सीरियस नही लेते । उनके अंदर मैच्योरिटी है , पेशेंस है और जज्बा है ।
कुछ ऐसे भी राइटर्स है जिन्हने रीडर्स की कमी पर कभी भी निराशा जाहिर नही की । क्योंकि वो खुद के लिए लिखते है , अपनी फैंटेसी के लिए लिखते है , अपनी जुनून की लिए लिखते है , अपनी कला स्वयं परखना चाहते है ।
ये लोग अपने स्क्रिप्ट के साथ फेर बदल नही करते । आपको मैकडोनाल्ड की सच्ची स्टोरी बताता हूं । इस कम्पनी के मालिक ने जीरो से शुरुआत की थी । करीब सौ घर भटकने के बाद इन्होने पहला पीजा बेचा था । अब की स्थिति इस कम्पनी की क्या है , यह किसी से छुपा नही है ।
आप निराश न हो । आप अपना कर्म करते रहिए ।
Aap ne jo bhi kaha wo me sab samaj gaya. Aur Ab ye kahani me khatam karke hi rahunga. Chahe view/like mile ya na mile. Ab jitne bhi 5-7 log padh rahe he uske liye ye story likhunga.

Thank you, samjane ke liye.
 
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vicky4289

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और जहां अपडेट की बात है , हमेशा की तरह बेहतरीन और खुबसूरत ।
एक वक्त हुआ करता था जब मेरठ और गाजियाबाद बुक्स के प्रकाशन का प्रमुख केंद्र हुआ करता था । बहुत सारी प्रकाशन संस्थान थी और उनमे एक इस स्टोरी के नाम की तरह ही राज पाकेट बुक्स हुआ करता था ।
Thank you. Aap har comment detail ke sathe dete ho. Thank you for all support bhai.
 
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vicky4289

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आप की मनोदशा से बिल्कुल वाकिफ हूं मै । आप की निराशा भी बिल्कुल वाजिब है ।
लेकिन ऐसा सिर्फ आपके साथ नही , इस फोरम पर मौजूद कई राइटर्स के साथ है । कुछ राइटर तो ऐसे है जहां सिर्फ एक ही रीडर है और वो मै खुद हूं । यहां बहुत सारी कहानियाँ ऐसी है जिसे मात्र चार पांच लोग ही पढ़ते हैं ।
लेकिन ऐसे भी इस फोरम पर राइटर्स है जो इस चीज को सीरियस नही लेते । उनके अंदर मैच्योरिटी है , पेशेंस है और जज्बा है ।
कुछ ऐसे भी राइटर्स है जिन्हने रीडर्स की कमी पर कभी भी निराशा जाहिर नही की । क्योंकि वो खुद के लिए लिखते है , अपनी फैंटेसी के लिए लिखते है , अपनी जुनून की लिए लिखते है , अपनी कला स्वयं परखना चाहते है ।
ये लोग अपने स्क्रिप्ट के साथ फेर बदल नही करते । आपको मैकडोनाल्ड की सच्ची स्टोरी बताता हूं । इस कम्पनी के मालिक ने जीरो से शुरुआत की थी । करीब सौ घर भटकने के बाद इन्होने पहला पीजा बेचा था । अब की स्थिति इस कम्पनी की क्या है , यह किसी से छुपा नही है ।
आप निराश न हो । आप अपना कर्म करते रहिए ।
Rat ko milte he naye update ke sath
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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ठीक है भाई, व्यूज/लाइक/कमेंट नहीं मिलने से, मैं अच्छा महसूस नही कर रहा था। अगर कोई नहीं पढ़ रहा तो मैं यह कहानी क्यों लिखु।

पर साम होते ही लिखने बैठ जाता हुए।

भाई साहब - इस बात तो मैं भी दोषी हूँ कि यह कहानी रुचिकर होने के बावज़ूद पढ़ नहीं पा रहा हूँ।
क्या करूँ - व्यस्तता ही कुछ ऐसी हो गई है। या तो अपनी कहानी पर अपडेट देने आता हूँ, या एक दो कहानियाँ पढ़ने। बस।

आपकी बात से मैं सहमत हूँ - एक समय था जब मुझे भी गुस्सा आता, फ़्रस्ट्रेशन होता। सोचा कि माँ चु** लोग! अगर पढ़ ही नहीं रहे हैं, तो फिर लिखना क्यों!
फिर याद आया कि लिख क्यों रहा था - पता चला, कि स्वयं के अच्छा लगने के लिए लिख रहा था। संजू भाई मेरे सबसे ख़ास पाठकों में से रहे हैं, और उन्होंने और उनके जैसे चुनिंदा पाठकों ने हमेशा ही मेरा मनोबल बढ़ाया।

इसलिए, यदि आप इस आशा में हैं कि यहाँ लोग आपकी कहानी को हाथोंहाथ ले लेंगे, तो भाई, आपकी कहानी (1) इन्सेस्ट होनी चाहिए, और (2) माँ बेटे पर आधारित होनी चाहिए। अब ये कर के आप जो भी गोबर परोस देंगे, यहाँ अधिकतर लोग चाव से चट कर लेंगे। लेकिन छोटे छोटे पाठक वर्ग हैं, जो आपकी केटेगरी की कहानी पढ़ना चाहते हैं। लाइक इत्यादि करने के लिए यह फोरम इतनी मुश्किल कर देता है (ads) कि लोग तंग आ कर केवल पढ़ कर चले जाते हैं।
 
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Delta101

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Episode 20

तीनों चाय की दुकान पर बैठे थे, चाय पीते समय चर्चा करते है कि वे प्रकाशक को कैसे ढूंढ़ सकते हैं।


वेदांत: हम इतने दरू आए हैं, लेकिन हमारे पास पता या कोई संपर्क करने का तरीका नहींहै। इस बड़े शहर में उन्हें ढूंढ़ना कठिन काम होगा।

राहुल: हा, लेकिन हमें उन्हें ढूंढ़ना होगा।

वेदांत: ठीक है, क्या आपको और कुछ चाहिए नास्ते मे?

राहुल और आदित्य ने सिर ना मे हिला दिया।

वेदांत दुकानदार के पास गया और चाय के लिए पैसे दिए।

वेदांत: चाचा, क्या आपको राझ पब्लिकेशन के बारेमेंकुछ पता है?

दुकानदार: क्या मतलब?

वेदांत: राझ पब्लिकेशन? वेहॉरर और थ्रिलर किताबें प्रकाशित करते हैं?

दुकानदार: नहीं, बेटा, मुझे नहीं पता।

वेदांत राहुल के पास वापस आया और एक सीट पर बठै गया।

राहुल: तमु उससेक्या बात कर रहेथे?

वेदांत: बस जानकारी पछू रहा था, कुछ जानकारी प्राप्त हो सकती है क्या।

राहुल: चाय दुकानदार को कैसे पता होगा?

वेदांत: मैं तो बस सोच रहा था, शायद हम कुछ जानकारी प्राप्त कर सकें। ठीक है, अब हम क्या कर सकते हैं?

राहुल: हमें ऑटो ड्राइवर से पुछना चाहिए। वे परूे दिन शहर में घूमते रहते हैं, उन्हें कुछ पता हो सकता है।

वेदांत: चलो ऐसा ही करते हैं।

राहुल:प्रकाशन हाउस आम तौर पर सुबह 9 या 10 बजे के आसपास खुलते हैं। हमें थोड़ी देर इंतजार करना पड़ेगा।

वेदांत: अच्छा, तो हमें यहाँ2-3 घंटेबितानेहोंगे?

राहुल: हां।

वे बातचीत कर रहे थे और समय बिता रहे थे। लगभग 2 घंटे बाद, सबहु 7:30 बजे, वेदांत और इंतजार नहीं कर सका।

वेदांत: अब हम चल सकते हैं?

वे उठे और एक ऑटो ड्राइवर की ओर बढ़े।

राहुल: भैया, कहां पर सबसे अधिक किताबें प्रिंट होती हैं?

ड्राइवर ने स्पष्ट रूप से समझा नहीं, उन्होंने सिर्फ "किताब" सुना और उसके आधार पर जवाब दिया।

ऑटो ड्राइवर: आप त्रिकोन बाग जा सकते हैं, वहां से आपको इसके बारे में अधिक पता चल सकता है। वहां बहुत सारी पुस्तक दुकानें हैं।"

राहुल: नहीं, नहीं, मुझे किताबें खरीदनी नहीं हैं, मुझे उन्हें प्रकाशित करना है।

ऑटो ड्राइवर: ठीक है, वहां चलें, और वहां बुक स्टोर में पूछेंगे, उन्हे अधिक पता हो सकता है।

वे तीनों दोस्त ऑटो में बैठे, जब ड्राइवर ने ऑटो को शुरू किया और धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे। यह शहर की चिराग बुझी सड़कों पर आधारित था, और छवि से नवाचारित हो रहा था। लगभग 15 मिनटों में, वे त्रिकोन बाग के पास पहुँच गए, और लाल ट्रैफिक लाइट ने उन्हें रोक दिया।

त्रिकोन बाग शहर का केंद्र है, यहाँ से आप शहर के किसी भी हिस्से में जा सकते हैं। यहाँ पर सिटी बस का मुख्य स्टेशन है, तो इसीलिए यहाँ से पहली सुबह की पहली यात्रा के लिए बहुत सारी सिटी बसें उपलब्ध होती हैं। सड़क पर गुजरते समय, वे कई बाइक और ऑटो को देखते हैं जो अपने काम की ओर बढ़ रहे हैं। यह बहुत ट्रैफिक वाला क्षेत्र है, क्योंकि बहुत से लोग अपने काम के लिए यहाँ से गुजरते हैं।

राहुल: किताब की दुकान कहाँ है? मुझे तो कोई दुकान नहीं दिख रही.

ड्राइवर: रुको, हमें उस गली में जाना है। उस गली में आपको दुकानें मिल जाएंगी।

जैसे ही ट्रैफिक लाइट हरी हो जाती है, ऑटो चालक ने उस सड़क की ओर मोड़ दिया।

वहां पहुंचने पर ड्राइवर ने कहा, देखो वहां बहुत सारी किताबों की दुकानें हैं। छात्र किताबें और स्कूल स्टेशनरी खरीदने के लिए वहां मौजूद हैं।

राहुल एक किताब की दुकान पर जाता है, जिसमें 1 2 ग्राहक हैं।

राहुल: नमस्ते, मुझे राज़ प्रकाशन कहां मिल सकता है?

दुकानदार: मुझे नहीं पता? आप क्या प्रकाशित करना चाहते हैं?

राहुल: मैंने एक किताब लिखी है, जिसे प्रकाशित करना है। इसलिए मैं इस प्रकाशक की तलाश कर रहा हूं।

दुकानदार: आप अकीला चौक जा सकते हैं, एक समय था जब बहुत सारे प्रकाशन होते थे वहा, लेकिन अब अधिक नहीं हैं, शायद एक दो प्रकाशक होंगे,लेकिन आप वहां देख सकते हैं।

राहुल ने दुकानदार का धन्यवाद किया और फिर वे ऑटो में चले जाते हैं।

राहुल: भैया, चलो अकीला चौक चलते हैं, उन्होंने मुझे वहां जाने के लिए सलाह दी।

वे तीनों दोस्त अकीला चौक पहुँचते हैं, और ऑटो चालक को उसका भुगतान करके उससे छुटकारा पा लेते हैं।

ऑटो ड्राइवर: अगर तुम चाहो तो मैं यहीं इंतजार कर सकता हूँ।

राहुल: नहीं भैया, हमें देर हो सकती है. आप जा सकते हैं। धन्यवाद।

अकीला चौक पर आकर, वे देखते हैं कि कई प्रकार की दुकानें हैं। मोबाइल दुकान, पालतू जानवरों की दुकान, मौसमी सामग्री की दुकानें, और बहुत कुछ। वे प्रकाशन हाउस की तलाश में हैं, लेकिन यहां वे केवल यहीं दिखते हैं, कि यह समाचार पत्रिका का प्रकाशन हाउस है - अकीला खबर। इसके कारण यह चौक 'अकीला चौक' के नाम से जाना जाता है।

राहुल: यार, हमें यहां राज़ प्रकाशन नहीं मिला। चलो, कहीं और चलते हैं। हम यहां अपना समय बर्बाद कर रहे हैं।

आदित्य(थकी हुवी आवाज मे): यहां कोई प्रकाशक है नहीं, लेकिन राझ मोबाइल गैलरी है। मोबाइल शॉप का नाम 'राझ मोबाइल' कोन रखता है।

राहुल: कहाँ?

आदित्य: पीछे, 5-10 मिनट की दूरी पर।

राहुल: तुमने हमें इसके बारे में क्यों नहीं बताया?

आदित्य: क्योंकि वो मोबाइल की दुकान थी, न कि प्रकाशक।

राहुल: चलो, वहां चलते हैं, और पूछते हैं।

वे उस दुकान की ओर बढ़ते हैं और दुकान के काउंटर पर एक आदमी बैठा होता है, जिसकी उम्र लगभग 55-56 वर्ष की होती है।

राहुल: हेलो सर, हमें राझ प्रकाशन कहां मिल सकता है?

आदमी हैरान हो जाता है, इतने सालों बाद किसी ने उसकी तलाश की है। उसने कहा,

आदमी: तुम लोग उसी पर खड़े हों।
बढ़िया अपडेट है भाई..........ऐसा लगता है की अब वेदांत की खोज ख़त्म होने वाली है.

प्रतीक्षा है अगले अपडेट की
 

vicky4289

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भाई साहब - इस बात तो मैं भी दोषी हूँ कि यह कहानी रुचिकर होने के बावज़ूद पढ़ नहीं पा रहा हूँ।
क्या करूँ - व्यस्तता ही कुछ ऐसी हो गई है। या तो अपनी कहानी पर अपडेट देने आता हूँ, या एक दो कहानियाँ पढ़ने। बस।

आपकी बात से मैं सहमत हूँ - एक समय था जब मुझे भी गुस्सा आता, फ़्रस्ट्रेशन होता। सोचा कि माँ चु** लोग! अगर पढ़ ही नहीं रहे हैं, तो फिर लिखना क्यों!
फिर याद आया कि लिख क्यों रहा था - पता चला, कि स्वयं के अच्छा लगने के लिए लिख रहा था। संजू भाई मेरे सबसे ख़ास पाठकों में से रहे हैं, और उन्होंने और उनके जैसे चुनिंदा पाठकों ने हमेशा ही मेरा मनोबल बढ़ाया।

इसलिए, यदि आप इस आशा में हैं कि यहाँ लोग आपकी कहानी को हाथोंहाथ ले लेंगे, तो भाई, आपकी कहानी (1) इन्सेस्ट होनी चाहिए, और (2) माँ बेटे पर आधारित होनी चाहिए। अब ये कर के आप जो भी गोबर परोस देंगे, यहाँ अधिकतर लोग चाव से चट कर लेंगे। लेकिन छोटे छोटे पाठक वर्ग हैं, जो आपकी केटेगरी की कहानी पढ़ना चाहते हैं। लाइक इत्यादि करने के लिए यह फोरम इतनी मुश्किल कर देता है (ads) कि लोग तंग आ कर केवल पढ़ कर चले जाते हैं।
Thank you bhai.
 
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