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Incest यह क्या हुआ

Iron Man

Try and fail. But never give up trying
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rajesh bhagat

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Bahut hi umda update he rajesh bhagat Bhai,

Padma Tai ba batayegi rajesh ko thakur aur gaanv valo ki dushmani ki asli vajah...............

Shayad is dushmani ke taar rajesh ke maa baap se jude ho...........

Keep rocking Bro
शुक्रिया
 

rajesh bhagat

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पदमा ने गांव में बीती घटना के बारे में राजेश को बताने लगी।
पदमा _बेटा तुम्हारे दादा मानव प्रसाद और ठाकुर के पिता, महेंद्र सिंह बहुत अच्छे दोस्त थे।
ठाकुर महेंद्र सिंह एक भले इन्सान थे।
ठाकुर महेंद्र सिंह तुम्हारे दादा को बहुत मानते थे।
तुम्हारे दादा का आस पास के गांव में बहुत मान सम्मान था।
ठाकुर महेंद्र सिंह, हर छोटे बड़े कार्यों में तुम्हारे दादा जी से सलाह लिया करते थे।
दोनो के घर में एक दूसरे का आना जाना लगा रहता था।
बात आज से तुम्हारे जन्म के पहले की है।
तुम्हारे पापा, शेखर पढ़ाई में बहुत तेज़ था। हमेशा क्लास में अव्वल आता था।
कालेज की पढ़ाई के बाद शेखर की बैंक में नौकरी लग गई।
नौकरी लगने के बाद तुम्हारे दादा जी शेखर के लिए एक अच्छी लडकी की तलाश करने लगे।
एक दिन ठाकुर महेंद्र सिंह के साथ तुम्हारे दादा जी दूर किसी कार्यक्रम में गए हुए थे।
वहा पर सुनीता तुम्हारी मां अपनें पिता जी के साथ आए हुवे थे। जब तुम्हारे दादा जी की नजर सुनीता पर पड़ी तो उसे शेखर के लिए सुनीता पसन्द आया।
वह उसके पिता जी से मिला और सुनीता के पिता को अपना इरादा बताया।
उस समय तुम्हारे दादा का बड़ा मान सम्मान था। सुनीता के पिता जी ने रिश्ता के लिए हामी भर दी।
इस प्रकार तुम्हारी मां इस घर में बिहा के आई।
नई बहु को आशीर्वाद देने ठाकुर महेंद्र सिंह घर आए। साथ में अपनें बेटे बलेंद्र सिंह को भी लेकर आए थे।
ठाकुर बालेंद्र सिंह एक नंबर का अय्याश था। उसकी शादी हो चुकी थी, वह दो लडकियों के पिता भी बन चूके थे।
लेकिन गांव के खुबसूरत बहु बेटियो पर वह बुरी नजर रखता था।
ठाकुर बालेंद्र सिंह की नजर जब तुम्हारी मां पर पड़ी टू वह सुनीता की खूबसूरती का दीवाना हो गया।

उस दिन के बाद बालेंद्र सिंह सुनीता को पाने के लिए बेचैन रहने लगा।

उसने गांव में एक जासूस लगा रखा था।
शेखर को ड्यूटी के लिए धरमपुर जाना पड़ता था। वह रोज घर से आना जाना नही कर सकता था। क्यू की साधन नही था अतः वह सप्ताह में एक दिन घर आता था।
तुम्हारे चाचा भी कालेज की पढ़ाई धरमपुर कालेज से कर रहे थे वह भी शेखर के साथ ही आना जाना कर रहा था।
तुम्हारे ताऊ और मैं खेत चले जाते थे।
ज्योति उस समय 4वर्ष की और भुवन 2वर्ष का था, मैं उन दोनो को घर में सुनीता के पास ही छोड़ देती थी।
तुम्हारे दादा जी, ठाकुर महेंद्र सिंह के साथ इधर उधर के कार्यक्रमों में चले जाते थे। सुनीता और बच्चे ही घर में रह जाते थे।
जब सुनीता घर में अकेली होती इस बात की जानकारी बालेंद्र सिंह को उसके जासूस से हो जाता था।
बालेंद्र सिंह सुनीता को रिझाने के लिए घर आ जाता था।
बालेंद्र सिंह दरवाजा खटखटाया,,
सुनीता इस वक्त कौन हो सकता है?
सुनीता दरवाजा खोली,,,
सामने बालेंद्र सिंह था।
सुनीता _अरे छोटे ठाकुर जी, आप।
बालेंद्र _ यहां से गुजर रहा था, प्यास लगी थी, सोंचा पानी पी लेता हूं।सुनीता, अंदर आने के लिए नही कहोगी।

सुनीता _माफ करना, छोटे ठाकुर अभी घर में कोइ नही है।
बालेंद्र _सुनीता, हम पराय थोड़े ही है, हमारे और आपके घर में तो एक दूसरे परिवारों का आना जाना लगा रहता है। हमारे पिता जी और तुम्हारे ससुर जिगरी दोस्त है। इस नाते
हम तुम्हारे जेठ है।
पानी पिला दो,,
सुनीता _आइए बैठिये, मैं अभी पानी लेकर आई।
सुनीता गिलास में पानी लेकर आई,,
बालेंद्र सिंह की ओर गिलास आगे बढ़ाई,,
बालेंद्र सिंह ने गिलास के साथ सुनीता का हाथ भी पकड़ लिया।
सुनीता अपना हाथ छुड़ाई,,
सुनीता_छोटे ठाकुर, ये आप क्या कर रहे हैं?
बालेंद्र सिंह _सुनीता तुम बहुत सुन्दर हो, सच में जब से तुम्हे देखा है, मैं ठीक से सो नहीं पा रहा हूं।
सुनीता _छोटे ठाकुर, ये आप क्या कह रहे हैं। में किसी और की अमानत हूं। आपको ऐसा नहीं सोचना चाहिए।
बालेंद्र सिंह _सुनीता, जब से तुम्हे देखा है तुम मेरे दिल में उतर गई हो। मुझे तुमसे प्यार हो गया है?
सुनीता _छोटे ठाकुर, आप यहां से चले जाइए।
मै किसी और की अमानत हूं। आपको मेरे बारे में ऐसा नहीं सोचना चाहिए।
बालेंद्र सिंह _मैं तो अपनी दिल की बात बताने आया था। अभी मैं जा रहा हूं। तुम मेरे बारे मे सोचना।
बालेंद्र सिंह चला गया।
सुनीता डर गई थी।
दो दिन बाद ठाकुर सुनीता को घर में अकेली पाकर फिर आ गया।
सुनीता _छोटे ठाकुर आप फिर आ गए।
बालेंद्र सिंह _क्या करू सुनीता, दिल मानता नहीं है? देखो मैं तुम्हारे लिए क्या लाया हूं?
ठाकुर सोने की कंगन लेके आया था।
देखो येतकंगन लाखो की है तुम्हारे हाथो में खुब जचेगी।
आओ मैं अपनें हाथो से पहना दू।
सुनीता _छोटे ठाकुर, कृपया आप यहां से चले जाइए।मैने कहा न मैं किसी और की पत्नि हूं। आपको ये सब शोभा नहीं देता।
घर में आपके बीवी और बच्चे हैं उनका तो ख्याल करो।
बालेंद्र सिंह _घर में बीवी है तो क्या हुआ? तुम एक बार मेरी बन जाओ, मै तुम्हे रानी बना कर रखूंगा।
शेखर तुम्हे क्या दे पायेगा।
मेरी बनकर रहोगी, तो यहां की रानी कहलाओगी । मैं तो कहता हूं तुम शेखर को छोड़ दो।
सुनीता _छोटे ठाकुर, मुझे नहीं बनना है, रानी, मै अपनें पति के साथ बहुत खुश हूं।
और कृपया करके आप यहां से चले जाइए।
बालेंद्र सिंह _ठीक है, सुनीता मैं अभी जा रहा हूं, फिर आऊंगा। कोइ जल्दी नही है, अच्छे से सोच लो।
बालेंद्र सिंह वहा से चला गया।
सुनीता ने जब, शेखर घर आया तो इस बात की जानकारी उसको दी की छोटे ठाकुर उस पर बुरी नियत रखता है। और अकेली पाकर घर आकार मुझे रिझाने की कोशिश करता है।
शेखर _देखो सुनीता, तुम हो ही इतनी खुबसूरत, गांव के सारे मर्द देखकर तुम्हे आहे भरते हैं।

छोटे ठाकुर भी, तुम्हारा दीवाना हो गया है, यह सुनकर मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो गया है। इतनी सुन्दर जो बीवी पाया है।
वैसे तुम समझदार हो मुझे तुम पर पूरा भरोसा है।
थोडा समझदारी से काम लो, ठाकुर परिवार और हमारे परिवार के बीच अच्छे संबंध है, गलत कदम से रिश्ते खराब न हो जाए।
सुनीता _यहीं सोंचकर तो अब तक सह रही हूं जी, नही तो उसका प्यार का भूत कब का उतार चुकी होती।
पदमा _इस तरह बेटा, ठाकुर बालेंद्र सिंह, घर में जब सुनीता अकेली होती, वह सुनीता को रिझाने का प्रयास करता।
और एक दिन तो हद हो गई।
बालेंद्र सिंह ने सुनीता को अपनी बाहों में जकड़ लिया।
सुनीता गुस्से में आकर बालेंद्र सिंह के गालों पर कई थप्पड़ जड़ दिया।
सुनीता _छोटे ठाकुर, बर्दास्त की भी एक सीमा होती हैं। मैने कहा न मैं अपनें पति के अलावा किसी और के बारे में सोंच नही सकती।
तुम यहां से चले जाओ, और आज के बाद तुम इस घर में कभी मत आना।
छोटे ठाकुर _सुनीता, ये तुमने अच्छा नही किया? मैं जिसे चाहता हूं उसे पाकर रहता हूं।
ये थप्पड़ मैं याद रखूंगा।
मैं तुम्हे प्यार से पाना चाहता था। लेकिन तुम नही मानी।
मैं इस अपमान का बदला जरूर लूंगा।
पदमा _बेटा इस घटना के बाद, ठाकुर ख़ुद को अपमानित महसूस करने लगा, वह अपनें अपमान का बदला लेने मौके के तलाश में रहने लगा।
एक दिन घर में कोइ नही था सिर्फ सुनीता अकेली थी।
बालेंद्र सिंह अपनें साथियों के साथ, घर आ पहुंचा।
सुनीता _छोटे ठाकुर, उस दिन थप्पड़ खाने के बाद भी तुम नही सुधरे।
बालेंद्र सिंह _साली, उसी अपमान का बदला लेने ही तो आया हूं। बहुत गुमान है न तुम्हे अपनी खूबसूरती पर।
आज मैं तुम्हे किसी को अपना मूंह दिखाने लायक नही छोडूंगा।
उठा लो साली को।
पदमा _बेटा तुम्हारी मां को बालेंद्र सिंह के साथी, उसका मूंह बंद कर, घर से दूर खेत में बने झोपड़े की ओर ले जाने लगा,,
तभी, शेखर का दोस्त सुनीता को बचाने आ गया। बालेंद्र सिंह के साथी और शेखर के दोस्त के बीच लड़ाई huwa,
बालेंद्र सिंह के साथी अधिक थे। उनके सामने ज्यादा देर तक टिक न सका। वह बुरी तरह घायल हो गया।
बालेंद्र सिंह के साथी सुनीता को झोपड़े में ले गए।
वहा झोपड़े में ले जाकर बंद कर दिया।
कुछ देर बाद झोपड़े में बालेंद्र सिंह पहुंचा।
सुनीता _छोटे ठाकुर ये तुम ठिक नही कर रहे हो। कृपया मुझे जाने दो, मैं किसी और की पत्नि हूं।
बालेंद्र _साली, मैने तुम्हे प्यार से समझाया, मनाया, तुम नही मानी।
ठाकुर बालेंद्र सिंह जिसे चाहता है उसे पाकर रहता है। साली दो टके की औरत मुझे थप्पड़ मारा।
आज मैं तुम्हे किसी को मुंह दिखाने लायक नही छोडूंगा।
बालेंद्र सिंह ने सुनीता की साड़ी खींचने लगा, सुनीता उसे रोकने की बहुत कोशिश की पर वह ठाकुर को रोक न सकी।
बालेंद्र सिंह ने साड़ी खींचकर अलग कर दिया।
बालनेद्र सिंह _बांध दो साली की हाथ पैर खाट पे।
बालेंद्र सिंह के साथियों ने सुनीता को खाट पे लेटा कर उसकी हाथ पैर खाट से बांध दिया।
सुनीता चीखने चिल्लाने लगी।
बालेंद्र सिंह _साली और चीख यहां कोइ नही आने वाला तुम्हे बचाने।
इधर शेखर का दोस्त लखन, किसी तरह तुम्हारे दादा जी के पास पहुंचा जो पास के गांव में ठाकुर महेंद्र सिंह के साथ किसी कार्यक्रम में गया।
तुम्हारे दादा ने यह बात ठाकुर को बताया , दोनो जीप से लखन और अपने साथी को लेकर उस झोपड़े की ओर पहुंचे ।
इधर इस बात से बेखबर, ठाकुर सुनीता की आबरू लूटने के लिए उसकी ब्लाउज को फाड़ने ही वाला था की ठाकुर और तुम्हारे दादा वहा पहुंच गए।
बालेंद्र सिंह को गंदी हरकत करता देखकर ठाकुर बहुत क्रोधित हो गया।
इधर तुम्हारे दादा ने सुनीता की हाथ पैर जो खाट पे बंधा था को खोला।
सुनीता अपनी साड़ी पकड़ कर ख़ुद को छिपाते हुवे रोने लगी।
इधर ठाकुर ने अपने बेटे के गालों पे कई थप्पड़ जड़े।
ठाकुर _नालायक, तुमने मुझे किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा। ऐसी गंदी हरकत करते हुवे तुम्हे शर्म नही आई। तुमने खानदान की इज्जत मिट्टी में मिला दिया। दूर हो जा मेरी नजरो से।
ठाकुर _मानव, ये तुम्हारा गुनाह गार है इसे कड़ी से कड़ी सजा दो।
पदमा _गांव वाले भी इकट्ठा हो चूके थे।
कुछ लोगो ने कहा की इसे कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए। गांव के नियम के अनुसार किसी औरत की इज़्ज़त पर हाथ डालने वाले को सर मुड़वाकर गधे में बिठाकर प्यार गांव में घुमाया जाता है, इसे भी यहीं सजा मिलनी चाहिए।
सभी गांव वालो ने कहा की इनको भी यहीं सजा मिलनी चाहिए।
बालेंद्र सिंह का सिर मुड़वा दिया गया और उसे गधे में बिठाकर पूरे गांव में घुमाया गया।
इस घटना के कुछ दिन बाद तुम्हारे दादा और ठाकुर मंदिर के स्थापना कार्यक्रम में गए हुवे थे, कुछ नकाब पोशो ने बंदूक से गोली मारकर दोनो की हत्या कर दिया।
कुछ लोगो ने कहा की वे नकाब पोश नक्सली थे।
तुम्हारे दादा और ठाकुर लोगो को नक्सली बनने से रोकते थे, इससे नाराज होकर नक्सलियों ने दोनो की हत्या कर दी।
कुछ लोग इसमें बालेंद्र सिंह का आदमियों का हाथ मानते है ।
ठाकुर के चले जाने के बाद।
बालेंद्र सिंह _लोगो पर जुर्म करने लगा।
पदमा _बेटा, तुम्हारे दादा जी के चले जाने के बाद, सुनीता बहुत डर गई, वह शेखर से कहा की अपना ट्रांसफर कहीं दूर सहर में करवाले।
तुम्हारे पापा ने अपना ट्रांसफर दूर करवा लिया।
सुनीता और शेखर गांव को छोडकर हमेशा के लिए चले गए।
इधर बालेंद्र सिंह गांव के लोगो को अपना दुश्मन मानता है और यहां के लोगो को मौका मिलने पर प्रताड़ित करता है।
बेटा जब ठाकुर को पता चलेगा तुम सुनीता के बेटे हो, वो तुम्हे नुकसान पहुंचा सकता है।
इसलिए तुम उसके हवेली में मत जाना।
राजेश को गांव की घटना के बारे में पता चलने के बाद, उसका शरीर अत्यंत गुस्से से भर गया। वाह दांत भींचते हुए कहा,,
राजेश _अब तो मैं हवेली जरूर जाऊंगा ताई, मेरी मां का अपमान करने वाले को हिसाब तो चुकाना पड़ेगा।
मेरे मां की आंसुओ का हिसाब उससे ले के रहुंगा।

 
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