romeo35309
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Hot , mast hai bhai(८ - ये तो सोचा न था…)
[(७ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :साजन भाई की लाश को निहारते हुए जगदीश ने चुपचाप शालिनी की पीठ सहलाई.
और तभी दरवाजे पर दस्तक हुई.
जगदीश हुए शालिनी दोनों चौंक पड़े : कौन होगा?
जगदीश ने अपने पंजे पर से शालिनी का दुपट्टा निकाल कर शालिनी को दिया. और शालिनी को चुप रहने का इशारा करते हुए वो रिवाल्वर हाथ में थामे दरवाजे की और बढ़ा. सावधानी के साथ दरवाजा खोला. बाहर पुलिस थी.]
जुगल को अब शराब चढ़ने लगी थी. चार पेग हो चुके थे. जुए में भी वो हार रहा था.
पेशाब करने के बहाने वो उठा और गेस्ट रूम की और जाने लगा. बहाना बना कर इस लिए आया क्योंकि अक्सर जुआ खेलने वाले लोग किसी को आसानी से खेल छोड़ कर जाने नहीं देते.
जुगल डर रहा था की कहीं बड़े भैय्या जगदीश यहां पहुँच तो नहीं गए होंगे! इतनी शराब पी ली है की वो देखते ही भांप लेंगे.
बड़े भैय्या डाटेंगे यह डर नहीं था जुगल को क्योंकि जगदीश डांटता कभी नहीं था. अगर जुगल से कोई गलती हो जाए तो जगदीश के चेहरे पर दुःख की छाया घिर आती थी.
और जुगल से अपने भाई के चेहरे पर यह छाया देखी नहीं जाती थी….
***
मां से बात कर के चांदनी हाथ ऊपर उठा कर थोड़ा अलसाने वाली थी की इतने में उसने दीक्षित परिवार के एक बेटे सुधींद्र को गेस्ट हाउस में पीछे के दरवाजे से तेजी से जाते हुए देखा. ..
सुधींद्र गेस्ट हाउस में क्यों आया होगा? दीक्षित परिवार का तो अलग से बंगला है!
चांदनी को याद आया की कुछ देर पहले एक लड़की भी गेस्ट हाउस में गई थी!
चक्कर क्या है?
चांदनी को कुछ शक हुआ. वो गेस्ट हाउस में पीछे से एंटर हुई.
***
जुगल अब तक गेस्ट हाउस की पहली मंजिल पर पहुँच चुका था. शराब के नशे में वो अपना कमरा भूल गया था. सो उस मंज़िल के हर कमरे को धक्का दे कार खोलने की कोशिश करता था. जो कमरा खुल जाता उस में अपनी बेग है क्या वो चेक कर रहा था.
ऐसे एक कमरे में उसे लगा की उसकी बेग है पर करीब जा कर देखा तो कोई और बेग थी. लड़खड़ाते कदमो से वो कमरे के बाहर जा रहा था की इतने में उसे चूड़ियों की खनखनाट की आवाज आई. वो रुक गया. कमरे में देखा.कोई नहीं था. फिर उसे समझ में आया की कमरे में एक दरवाजा बगल के कमरे में खुलने वाला भी था. आवाज वहां से आ रही थी. वो दरवाजे के पास गया और थोड़ा सा खोल कर बगल के कमरे में देखने लगा तो बगल के कमरे में पलंग पर एक लड़की बैठी थी और सामने दुल्हन का बड़ा भाई सुधींद्र खड़ा था. क्या चल रहा होगा ऐसा जुगल सोच रहा था इतने में बात करने उस लड़की का मुंह ऊपर उठते जुगल को शोक लगा. वो लड़की तो पियाली थी. पियाली दीक्षित जिसकी शादी थी कल- दुल्हन!
और यही झटका चांदनी को भी लगा जो इसी तरह इस कमरे की दूसरी और के बगल के कमरे में थी और दो कमरे के बीच के दरवाजे से पियाली और सुधींद्र को देख रही थी.
शादी के अगले दिन दुल्हन यहाँ गेस्ट हाउस में ? क्या बात होगी?
अपना बंगला छोड़ कर यह भाई बहन यहां क्यों आये होंगे?
चांदनी ने दोनों की बातें सुनने की कोशिश की.
उस कमरे में :
सुधींद्र बोला : गुड़ यार तूने किसी तरह मैनेज किया और आ गई...
पियाली बोली. ‘तू क्या पागल है? लास्ट मोमेंट पर कितना मुश्किल होता है यूँ निकल पाना. ?’
‘देख, सोनू, कुछ जरूरी होगा तभी बुलाया ना ? पर तू आई कैसे?’
‘माही है न मेरी सहेली उसे बोला की पन्द्र बिस मिनिट मैनेज कर लेना कोई आये तो, वो स्मार्ट है, कोई आया तो मेरा पेट खराब है या और कुछ तिकड़म लगा कर सम्हाल लेगी…’
‘माही ! तू उसे ये बोल कर आई कि तू मुझे मिलने आई है?’
‘आर यु मेड -ऐसा बोल कर आउंगी? उसे बोला मेरे बॉयफ्रेंड से विडिओ कॉल करनी है, फिर मौका नहीं मिलेगा.’
‘ओह, तब ठीक है... ‘ सुधींद्र राहत महसूस करते हुए बोला.
‘माही का नाम सुन कर क्यों तेरी इतनी फट गई? दाने डाल रहा है क्या उस को?’
‘मुझे क्या जरूरत वो सब की, मेरा तो सब कुछ तू है… प्यारी बहना…मेरी सेक्सी सोनु‘ कह कर सुधींद्र ने पियाली को बांहों में खींचा और उसके होठ चूमने लगा…
चांदनी और जुगल दोनों यह देख शॉक्ड हो गए.
***
इन्स्पेक्टर मोहिते और एक सब इंस्पेक्टर दरवाजे से दाखिल हुए. पीछे चार हवालदार भी आये.
‘क्या हो रहा है यहां ?’ इन्स्पेक्टर मोहिते ने एक सरसरी निगाह से गोडाउन देखते हुए पूछा.
जगदीश शालिनी को थामे एक और हो गया. इंस्पेक्टर मोहिते और बाकी पुलिस वाले साजन भाई की लाश के पास गए और क्या हुआ होगा यह समझने की कोशिश करने लगो. इंस्पेक्टर मोहिते जगदीश के पास गए.
‘तुम कौन हो?’
‘जगदीश रस्तोगी.’
‘यहां क्या हुआ है? यह आदमी कैसे मरा ?’
‘यह एक गुंडा है. इसका नाम साजन भाई है और मैंने उसे मार दिया.’
इन्स्पेक्टर मोहिते ने जगदीश को चौंक कर देखा. फिर अगल बगल देखा की किसी और ने तो नहीं सुना. जगदीश का हाथ थाम कर तेजी से एक और ले जाने लगा.
जगदीश ने शालिनी का हाथ थाम उसे भी अपने साथ लिया. इंस्पेक्टर मोहिते ने यह देखा. और शालिनी को निहारा.
तीनो एक कोने में गए.
‘तुम क्या बोल रहे हो यह समझ रहे हो?’
‘मैं बिलकुल अपने होश हवास में हूँ. यह साजन भाई एक वहशी दरिंदा था. ये शालिनी है, मेरे घर की इज्जत. यह बदमाश इस से खिलवाड़ करना चाहता था. पागल और विकृत आदमी था. मुझे इसे मारने का कोई अफ़सोस नहीं.’
इन्स्पेक्टर मोहिते जगदीश के द्रढ़ चहेरे को देखता रहा. फिर पूछा.
‘कैसे मारा तुमने साजन भाई को?’
‘झूमर के नीचे उसे बैठाया. झूमर पर गोली चलाई. नतीजा आपके सामने है.’
साजन भाई की लाश को देखते हुए इन्स्पेक्टर मोहिते ने पूछा. ‘सीधा गोली क्यों नहीं मारी?’
‘मैं हो सके उतनी दर्दनाक मौत से इसे मारना चाहता था.’ शालिनी ने इस बात पर जगदीश की बांह जो थामी थी उसे जोरों से कसा… - इंस्पेक्टर मोहिते ने यह नोटिस किया. फिर जगदीश को ताकते हुए पूछा.
‘इस गुनाह की तुम्हे क्या सजा हो सकती है तुम जानते हो?’
यह सुन कर शालिनी ने जगदीश के हाथ पर की अपनी पकड़ और कसी. जगदीश ने तुरंत कोई जवाब नहीं दिया. एक पल रुक कर बोला. ‘मुझे परवाह नहीं.’
इन्स्पेक्टर मोहिते ने कुछ सोचा फिर कहा. ‘ठीक है. मेरे साथ थाने चलो.’
शालिनी ने जगदीश को देखा. जगदीश उसे हौंसला देने मुस्कुराया. शालिनी की आँखों में आंसू उमड़ आये. जगदीश ने उसके आंसू पोंछे और कहा. ‘मैंने कुछ गलत नहीं किया शालिनी. कुछ पल के लिए बहका जरूर था पर आखिर सब ठीक कर दिया.’
शालिनी कुछ बोल नहीं पाई.
जगदीश और शालिनी इन्स्पेक्टर मोहिते के साथ पुलिस जीप में बैठ गए.
***
अलग अलग कमरे से चांदनी और जुगल भाई बहन को अजीब स्थिति में देख रहे थे.
सुधींद्र को धक्का मार कर पियाली ने कहा. ‘चल झूठे , मुझे पता है तू बड़ा ठरकी है.’
‘तेरी कसम सोनू, किसी से भी पूछ ले मेरे बारे में…’
‘किसी से क्या पूछना? मेरी आँखे नहीं क्या ? जब वो समंदर भाभी मुझे मेहंदी लगा रही थी तब तू कैसे नए नए बहाने खोज कर मेरे कमरे में झाँक रहा था - सब समझ रही थी मैं.’
चांदनी को आश्चर्य हुआ की यह समंदर भाभी कौन है? इसे मेहंदी तो मैंने लगाई थी!
‘अरे यार काम से ही झाँक रहा था, कोई बहाना नहीं था पर उस भाभी का नाम समंदर है क्या! और भी कोई इसी नाम से उसकी बात कर रहा था. ऐसा कैसा नाम!’
‘नहीं रे उसका असली नाम तो शायद चांदनी है… पर तूने देखा नहीं अपने पिछवाड़े कैसा समंदर ले कर डोलती हुई चलती है ! इसलिए सब उसको समंदर भाभी बोलते है.’
चांदनी अपने नितंबों का जिक्र यूँ होता सुन लजा गई.
‘हां वो तो मैंने भी नोटिस किया, सही है - उसकी गांड में जैसे समंदर की लहर उठती है… ‘
जुगल की जैसे पी हुई शराब उतर गई. अपनी भाभी मां के लिए जो वो सोचने की जुर्रत नहीं करता था वो अभी अभी उसने किसी और की जुबान से सुन लिया ! इतने में पियाली ने पलंग से खड़े हो कर गुस्से से सुधींद्र को कहा. ‘तो जा ना, डूब मर उस समंदर में…मुझे क्यों बुलाया ?’
सुधींद्र ने तपाक से पियाली का घाघरा ऊपर उठा के उस के पिछवाड़े को नंगा कर के उसके दोनों नितंब जोरों से दबाते हुए पियाली से बोला. ‘अपना ये घर का दरिया ही मुझे तो प्यारा है..’
चांदनी स्तब्ध हो कर देखती रह गई- पियाली ने पेंटी नहीं पहनी थी !
उधर जुगल भी आँखे फाड़े भाई बहन का ये प्यार देखता रह गया..
पियाली ने मेहंदी वाले अपने दोनों हाथ हवा में ऊपर उठा कर कहा. ‘बाबू, मेरी मेहंदी को कुछ नहीं होना चाहिए बोल देती हूँ…’
‘आह… !! मज़ा आ गया-मेरी सोनू ने आज पेंटी नहीं पहनी?’ सुधींद्र ने पियाली के घाघरे को एक हाथ से ऊँचा उठा कर उसकी योनि सहलाते हुए पूछा.
‘दोनों का टाइम बचाने. मुझे पता था, मेरी लेने के लिए ही मेरे बाबू ने अभी मुझे यहां बुलाया है…’ पियाली हंस कर बोली और उसका गाल चूम कर बोली ‘जल्दी निपटा ना ? टाइम नहीं है…’
तुरंत सुधींद्र ने अपने पेंट की ज़ीप खोल कर अपना लिंग निकाला..
और एक तरफ चांदनी दूसरी तरफ जुगल, दोनों ने अपना मुंह फेर लिया.
दोनों के लिए यह एक भयंकर सांस्कृतिक आघात था.
भाई बहन ? शादी के अगले दिन ?
चांदनी और जुगल धीरे धीरे जो देखा - सुना उसके आघात की असर में बाहर निकले.
एक ही कॉरिडोर में दोनों निकले पर इतने शॉक्ड थे की एक दूसरे को देखे बिना, एक दूसरे की और अपनी पीठ किये हुए अलग अलग दिशा से नीचे उतरने बढ़ गए.
***
थाने में जेल तो नहीं पर एक छोटे से कमरे में जगदीश और शालिनी को बैठाया गया. जब दोनों अकेले पड़े तब शालिनी से रहा न गया, इन सभी विचित्र घटनाओ के आघात से वो फफक फफक कर रो पड़ी. जगदीश शालिनी को इस तरह रोते हुए देख डर गया. कैसे शालिनी को हौसला दे यह उसे समझ में नहीं आया. वो सिर्फ शालिनी की पीठ पर हाथ फेरते हुए इतना ही कह पाया ‘बेटा शालिनी…’
शालिनी जगदीश के कंधे पर सर रख कर रोने लगी. उसकी आँखों के सामने पूरी दुर्घटना रिवाइंड हो रही थी : मवालीओ का उसे रांड कह कर बुलाना से ले कर साजन भाई को जेठ का मार देना… और फिर पुलिस का पूछना : क्या सजा होगी यह अंदाजा है?
सीधी सादी निश्छल शालिनी के लिए यह सब बहुत बड़े आघात थे.
हे भगवान ये सब क्या हो गया? - सोच कर शालिनी की आँखों में आँसू रुक नहीं रहे थे.
जगदीश का हाथ यंत्रवत शालिनी को सांत्वना देने उसकी की पीठ पर फिरता रहा, शालिनी की कमीज़ में उभरे ब्रा के हुक को महसूस करता रहा और दिमाग में बीते हुए यह अजीब मंजर के नजारो का कोलाज कैलिडोस्कोप की डिज़ाइन की तरह चकराता रहा.
(८ - ये तो सोचा न था…समाप्त, क्रमश![]()