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Incest ये तो सोचा न था…

sunoanuj

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(९ - ये तो सोचा न था…)

[(८ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :

शालिनी जगदीश के कंधे पर सर रख कर रोने लगी. उसकी आँखों के सामने पूरी दुर्घटना रिवाइंड हो रही थी : मवालीओ का उसे रांड कह कर बुलाना से ले कर साजन भाई को जेठ का मार देना… और फिर पुलिस का पूछना : क्या सजा होगी यह अंदाजा है?

सीधी सादी निश्छल शालिनी के लिए यह सब बहुत बड़े आघात थे.

हे भगवान ये सब क्या हो गया? - सोच कर शालिनी की आँखों में आँसू रुक नहीं रहे थे.

जगदीश का हाथ यंत्रवत शालिनी को सांत्वना देने उसकी की पीठ पर फिरता रहा, शालिनी की कमीज़ में उभरे ब्रा के हुक को महसूस करता रहा और दिमाग में बीते हुए यह अजीब मंजर के नजारो का कोलाज कैलिडोस्कोप की डिज़ाइन की तरह चकराता रहा.]


पूना के दीक्षित परिवार के शादी वाले फ़ार्म हॉउस में चांदनी और जुगल की हालत सदमे में गर्क थी.

चांदनी सोच रही थी : इतने अमीर और पढ़े लिखे लोग है फिर यह क्या जाहिल पन ? की भाई और बहन ही शुरू हो गए? और दोनों की जुबान कितनी सस्ती - किसी बाजारू मवाली लोगों जैसी थी? ‘तेरी क्यों फट गई?’ और ‘मुझे पता था, मेरी लेने के लिए ही मेरे बाबू ने अभी मुझे यहां बुलाया है…’

कैसे बात करते है यह लोग? - मेरी लेने के लिए!

चांदनी का मन खट्टा हो गया.

उसे अपने बड़े भैया नितीश की याद आई. क्या नितीश कभी उसके साथ ऐसा कर सकता है? अरे नितीश छोडो क्या दुनिया में कोई भी भाई अपनी सगी बहन का घाघरा यूँ उठा सकता है?

उसे याद आया की उसका भैया नितीश उसकी शादी के समय कितना उदास रहता था - बहना की विदाई होगी इस गम में.

और यहां तो भाई अपनी पैंट की झीप खोल कर बहन के साथ शुरू हो गया!

चांदनी ने अपना सर थाम लिया.

***

इंस्पेक्टर मोहिते जगदीश और शालिनी के कमरे में दाखिल हुआ.
‘बताओ क्या हुआ था?’ उसने पूछा. जगदीश बताने लगा कैसे वो लोग गोडाउन जबरदस्ती ले जाए गए. कैसे साजन भाई ने कहा की ‘ऐसे बोबले वाली को रांड ही बोलते है…. ‘ और अचानक बात करते हुए जगदीश उठ के वॉशरूम चला गया. जगदीश के जाते ही इंस्पेक्टर मोहिते शालिनी की छाती को बेशर्मी से घूरने लगा. शालिनी एकदम अनकम्फर्टेबल हो गई. इन्स्पेक्टर मोहिते ने उसे कहा. ‘सच पूछो तो तुम मुझे भी रांड ही लगती हो…’

‘आप को बात करने की तमीज़ नहीं है?’ अपने स्तनों पर दुपट्टा ठीक से ढांकते हुए शालिनी ने क्रोध और अपमान से कांपती हुई आवाज में कहा.

इतने में कमरे में साजन भाई आया…उसके चेहरे पर झूमर के कांच अभी भी धंसे हुए थे. ऐसी हालत में भी वो ठीक से चल के आ गया और इंस्पेक्टर से कहने लगा. ‘अरे सर, साली का दुपट्टा हटा कर देखो तब यकीन होगा…पक्की रांड है एकसो एक टका!’

मोहिते ने हंस कर पूछा. ‘ऐसा?’ और तपाक से उसने शालिनी का दुपट्टा खींच लिया. डर कर शालिनी ने अपने हाथो से अपनी छाती ढांक ली. यह देख साजन भाई गुर्रा कर बोलै. ‘सर, इस रांड को बोलो कमीज़ खोलने…’

मोहिते ने कहा. ‘अपनी कमीज़ के हुक खोलो.’

‘नहीं.’ शालिनी अपने हाथ छाती पर जोरों से दबा कर चीखी.

‘ये छिनाल ऐसे नहीं मानेगी…’ कह कर साजन भाई ने रिवॉल्वर निकाल कर उसकी और ताकी और कहा. ‘बोलाना खोल कमीज़ के हुक ? चल निकाल तेरा बड़ा बड़ा बोबा. दिखा सर को!’

शालिनी के पसीने छूट गए. घबराते हुए उसने सोचा- ये जेठ जी भी एन मौके पर गायब हो गए!

साजन भाई ने चिढ़ते हुए कहा. ‘क्यों शर्माती है? अभी तो मेरे गोडाउन में निकाला था न अपना मक्खन का गोला? फिर क्यों शरीफाई ठोकती है? चल चल… खोल फटाफट-’

बेबस शालिनी ने नजरें झुका कर कांपते हाथो से अपनी कमीज के हुक खोले… और ब्रा हटा कर अपना एक स्तन बाहर किया.

‘देखा सर? है न टनाटन!’ साजन भाई ने यूँ कहा जैसे कोई व्यापारी अपना माल ग्राहक को दिखा रहा हो!. फिर शालिनी से गुर्रा कर कहा. ‘निपल दिखा निपल - कमीनी -हर बार ये बोलना पड़ेगा क्या?’

अचानक तभी जगदीश आ गया और दहाड़ कर बोला. ‘क्या हो रहा है यह सब? ये कोई रांड नहीं समझे?’ और धड़ धड़ उसने साजन भाई और इंस्पेक्टर मोहित को गोली मार दी. दोनों लुढ़क पड़े. शालिनी अपना नंगा स्तन हिलाते हुए दौड़ कर जगदीश को चिपक गई. जगदीश ने कहा. ‘बहु बेटा, अपनी छाती ठीक करो.’ तब उसे याद आया की स्तन अभी बाहर है. पर वो इतनी डर गई थी की स्तन कमीज़ में डालने के बजाय जगदीश को और कस के चिपक गई. जगदीश ने उसकी पीठ सहलाते हुए पूछा. ‘क्या हुआ शालिनी?

शालिनी ने जगदीश की और देखा. वो आश्चर्य से पूछ रहा था. ‘इतना पसीना पसीना क्यों हो गई हो?’

शालिनी को अपना स्तन बाहर है यह याद आया. उसने जगदीश के हाथ को छोड़ अपना स्तन अंदर करना चाहा पर उसका स्तन बाहर नहीं था. उसने कमरे में देखा तो किसी की लाश पड़ी हुई नहीं थी.

ओह क्या यह सपना था ?

कुछ पलों में साजन भाई ने शालिनी के नाजुक दिमाग पर ऐसा आतंक मचाया था की वो मर गया पर उसका खौफ अभी तक शालिनी के दिलो दिमाग पर हावी था. कब जगदीश के कांधे पर सर रखे हुए उसकी आंख लग गई उसे याद नहीं.

उसने दुपट्टे से अपना मुंह पोछा. करीब पड़े एक टेबल पर से जगदीश ने पानी की बोतल उठा कर उसका ढक्क्न खोल कर शालिनी को कहा. ‘लो, थोड़ा पानी पीओ. तुमने शायद कोई बुरा सपना देखा.’

शालिनी बोली. ‘जी, मैं बहुत डर गई थी भैया.’

‘हां, नींद में तुमने मेरा हाथ इतना जोर से कसा की मुझे शक हुआ कुछ भयानक देख लिया है तुमने…’

अब बेचारी बोले तो क्या बोले की उसने क्या देखा!

और तब इंस्पेक्टर मोहिते जगदीश और शालिनी के कमरे में दाखिल हुआ.

‘सोरी, आप लोगो को वेइट करना पड़ा. बताइये क्या हुआ था?’ उसने एक कुर्सी पर बैठते हुए पूछा.

जगदीश ने कम शब्दों में जो कुछ हुआ था यह बताना शुरू किया. अपने सपने को दोहराता देख शालिनी को फिर टेंशन हो गया अलबत्ता जगदीश ने उनके साथ की गई बदतमीजी के बारे में पूरी डिटेल नहीं बताई की किस तरह दोनों को अधनंगा करके एक दूसरे के अंगो की साइज़ पूछी गई थी. जगदीश ने केवल इतना बताया कि ‘हम लोग पूना जा रहे थे…’

और शालिनी की आंखों के सामने सारा फलेश बैक आने लगा.

‘आप दोनों के नाम ?’ इन्स्पेक्टर मोहिते ने रजिस्टर खोलते हुए पूछा.

‘मेरा नाम जगदीश रस्तोगी है. मेरा अपना बिज़नेस है. स्टील मैटेरियल सप्लाई का.’ जगदीश ने अपना कार्ड देते हुए कहा.

‘और आप?’ इन्स्पेक्टर मोहिते ने शालिनी से पूछा.

‘शालिनी जे. रस्तोगी…’ शालिनी ने कहा.

‘ओके, तो आप पति- पत्नी हो…?’ इन्स्पेक्टर ने कहा. शालिनी हिचकिचाई, जगदीश बोलने गया की यह मेरे छोटे भाई की पत्नी है इतने में इंस्पेक्टर का फोन बजा. वो फोन पर बात करने लगा. फोन निपटा कर उसने पूछा. ‘अब बताइए आप उस अड्डे पर कैसे पहुंचे?’

‘हम लोग पूना जा रहे थे, रास्ते में टायर बदलने रुके तब पहले साजन के गुंडों ने शालिनी के साथ बुरा व्यवहार किया. मैंने उन्हें टोका तो हमें जबरन साजन भाई के अड्डे पर ले गए. वहां पर साजन भाई और उसके गुंडे हमारे साथ बदतमीज़ी करने वाले थे इतने में कोई पक्या नामका गुंडा उनके इलाके में आया है ऐसा उन को पता चला सो सारे गुंडे उस किसी पक्या के साथ लड़ने निकल गये. और साजन भाई अड्डे पर ही रुका था. वो हम दोनों से उलटी सीधी बातें करने लगा. एक हद के बाद उस शैतान की हरकतें नाकाबिले बर्दाश्त हो गई. अगर मैं उसको मार नहीं देता तो मैं पागल हो जाता.’

इन्स्पेक्टर मोहिते ने पूछा. ‘आपने इस से पहले कभी मार पीट की है? या और कोई जुर्म किया है?’

जगदीश ने कहा. ‘सर. मैं एक बिज़नेस मेन हूँ. सरकार को टैक्स भरने वाला और सभी कानूनों का पालन करने वाला एक सीधा सादा नागरिक. न आज के पहले मैंने कोई जुर्म किया है न आज. कानून की किताब के मुताबिक मैं एक हत्यारा हूँ पर न्याय की किताब में मेरी हरकत गुनाह नहीं यह मुझे यकीन है.’

‘आप भावुक हो कर बोल रहे हो मि. रस्तोगी. कानून भावुकता से नहीं चलता.’

‘चलना चाहिए भी नहीं. मैं सिर्फ अपना पक्ष बता रहा हु. आप को यह नहीं कह रहा की मुझे अपराधी न माने. सिर्फ यह कह रहा हूँ की जिस तरह सारे अपराधी पकड़े नहीं जाते उसी तरह जो पकडे जाते है वो सारे अपराधी नहीं होते. आप बेशक मुझे अपराधी माने बल्कि इकबाल -ऐ जुर्म तो मैंने ही किया है.मैं आप से कोई रियायत नहीं मांग रहा. आप अपनी कार्रवाई जरूर कीजिये.’

इन्स्पेक्टर मोहिते जगदीश को निहारते रहे. फिर बोले.

‘आप की सारी बात मैंने सुन ली. अब आप मेरी बात सुनिए.’

शालिनी ने डर कर जगदीश का हाथ कस कर पकड़ लिया. इन्स्पेक्टर मोहिते ने यह नोटिस किया. जगदीश ने शालिनी को नजरों से हौसला दिया. और इन्स्पेक्टर मोहिते की बात सुनने लगा.

‘उस गोडाउन में साजन भाई आप दोनों के साथ बदतमीजी कर रहा था. आप को मौका मिलते ही आपने साजन भाई की रिवाल्वर छीन ली और उसे मारने नहीं बल्कि केवल डराने के उद्देश्य से आपने हवा में गोली चलाई. संयोग से गोली झूमर को लगी और झूमर टूट कर साजन भाई पर गिर पड़ा जिससे उसकी मौत हो गई. यह एक दुर्घटना थी और आपका साजन भाई को कोई हानि पहुंचाने का इरादा नहीं था.’

शालिनी और जगदीश यह सुनकर आश्चर्यचकित हो गए.

जगदीश ने पूछा. ‘ये आप क्या बता रहे हो?’

इन्स्पेक्टर मोहिते ने मुस्कुराकर कहा. ‘आपका बयान.’

जगदीश और शालिनी ने एक दूसरे को देखा. फिर जगदीश ने कहा. ‘पर मैंने कुछ और कहा!’

‘उसे भूल जाओ और मैंने जो कहा वैसा कहो.’

शालिनी यह सुन कर खुश होने ही वाली थी की जगदीश ने कहा. ‘बिलकुल नहीं. मैं ऐसा बयान नहीं दे सकता.’

अब चौंकने की बारी शालिनी और इन्स्पेक्टर मोहित की थी.

शालिनी ने जगदीश को कहा ‘इंस्पेक्टर साहब खुद कह रहे है फिर आप क्यों?... ‘

जगदीश ने शालिनी की बात काट कर कह. ‘एक मिनिट.’ फिर इंस्पेक्टर मोहिते से कहा. ‘मैं यह कैसे कहूं कि मेरा साजन भाई को हानि पहुंचाने का इरादा नहीं था ? जब की मैं तो उसकी जान दर्दनाक तरीके से लेना चाहता था और ली. यह कोई दुर्घटना नहीं थी. और आप का शुक्रिया पर आप मुझे बचाना क्यों चाहते है?’

‘आप जैसा अजीब आदमी मैंने अब तक देखा नहीं.’ इंस्पेक्टर मोहिते ने कहा. ‘एक बात बताओ. अगर मैं वहां उस गोडाउन में नहीं पहुँचता तब तुम क्या करते? गोडाउन से निकल कर पुलिस स्टेशन आ कर खुद को कानून के हवाले कर देते?’

‘नहीं.’ जगदीश ने कहा. शालिनी और इंस्पेक्टर मोहिते दोनों को जगदीश के जवाब से आश्चर्य हुआ.जगदीश ने आगे कहा. ‘न मैं कानून में फसना चाहता हूँ, न कानून से बचना चाहता हूँ. मै ने क्या सोचा था यह बताता हूँ. मैं रिवाल्वर वहीं पर फेंक कर शालिनी के साथ वहां से भाग निकलता…’

‘और रिवाल्वर पर की आपकी फिंगरप्रिंट की वजह से पुलिस आज नहीं तो कल आप तक पहुँच ही जाती. तब?’

‘मैंने अपने हाथ पर यह दुपट्टा लपेट लिया था. मेरी फिंगरप्रिंट रिवाल्वर पर नहीं मिलती.’

‘ओह. ठीक. पर आप खुद भाग निकलना चाहते थे तो फिर मुझसे अपने गुनाह का इकरार क्यों किया? आप बहुत उलझा रहे हो.’ इंस्पेक्टर मोहिते ने पूछा.

‘मुझे निकलने का मौका मिले उससे पहले दरवाजे पर दस्तक हुई और मुझे नहीं पता था कि दरवाजे पर कौन है सो दुपट्टा वापस शालिनी को दे कर मुझे नंगे हाथ रिवाल्वर थामनी पड़ी. रिवाल्वर पर मेरे फिंगर प्रिंट आ गए. दरवाजा खोला तो आप थे.’

‘फिर? इकबाल- ऐ -जुर्म करना जरूरी था?

‘मैं आपसे झूठ कैसे बोलता?’

इंस्पेक्टर मोहिते फिर कन्फ्यूज़ हो गया. उसने पूछा. ‘क्यों नहीं बोल सकते? मैंने जो जूठा बयान बनाया वो ही बात आप मुझे कह सकते थे! या यह कह देते कि किसी गुंडे ने झूमर पर गोली मार दी!’

‘आप पुलिस हो सर.’ जगदीश ने कहा. ‘आप जनता की रक्षा के लिए दिन रात खुद को खतरे में डालते हो. आप से मैं कैसे झूठ बोलूं?’

इंस्पेक्टर मोहिते यह सुन कर दंग रह गया. उसकी आंखे भीग गई.

:)
(९ - ये तो सोचा न था…समाप्त, क्रमश:)
 
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शालिनी जगदीश के कंधे पर सर रख कर रोने लगी. उसकी आँखों के सामने पूरी दुर्घटना रिवाइंड हो रही थी : मवालीओ का उसे रांड कह कर बुलाना से ले कर साजन भाई को जेठ का मार देना… और फिर पुलिस का पूछना : क्या सजा होगी यह अंदाजा है?

सीधी सादी निश्छल शालिनी के लिए यह सब बहुत बड़े आघात थे.

हे भगवान ये सब क्या हो गया? - सोच कर शालिनी की आँखों में आँसू रुक नहीं रहे थे.

जगदीश का हाथ यंत्रवत शालिनी को सांत्वना देने उसकी की पीठ पर फिरता रहा, शालिनी की कमीज़ में उभरे ब्रा के हुक को महसूस करता रहा और दिमाग में बीते हुए यह अजीब मंजर के नजारो का कोलाज कैलिडोस्कोप की डिज़ाइन की तरह चकराता रहा.]


पूना के दीक्षित परिवार के शादी वाले फ़ार्म हॉउस में चांदनी और जुगल की हालत सदमे में गर्क थी.

चांदनी सोच रही थी : इतने अमीर और पढ़े लिखे लोग है फिर यह क्या जाहिल पन ? की भाई और बहन ही शुरू हो गए? और दोनों की जुबान कितनी सस्ती - किसी बाजारू मवाली लोगों जैसी थी? ‘तेरी क्यों फट गई?’ और ‘मुझे पता था, मेरी लेने के लिए ही मेरे बाबू ने अभी मुझे यहां बुलाया है…’

कैसे बात करते है यह लोग? - मेरी लेने के लिए!

चांदनी का मन खट्टा हो गया.

उसे अपने बड़े भैया नितीश की याद आई. क्या नितीश कभी उसके साथ ऐसा कर सकता है? अरे नितीश छोडो क्या दुनिया में कोई भी भाई अपनी सगी बहन का घाघरा यूँ उठा सकता है?

उसे याद आया की उसका भैया नितीश उसकी शादी के समय कितना उदास रहता था - बहना की विदाई होगी इस गम में.

और यहां तो भाई अपनी पैंट की झीप खोल कर बहन के साथ शुरू हो गया!

चांदनी ने अपना सर थाम लिया.

***

इंस्पेक्टर मोहिते जगदीश और शालिनी के कमरे में दाखिल हुआ.
‘बताओ क्या हुआ था?’ उसने पूछा. जगदीश बताने लगा कैसे वो लोग गोडाउन जबरदस्ती ले जाए गए. कैसे साजन भाई ने कहा की ‘ऐसे बोबले वाली को रांड ही बोलते है…. ‘ और अचानक बात करते हुए जगदीश उठ के वॉशरूम चला गया. जगदीश के जाते ही इंस्पेक्टर मोहिते शालिनी की छाती को बेशर्मी से घूरने लगा. शालिनी एकदम अनकम्फर्टेबल हो गई. इन्स्पेक्टर मोहिते ने उसे कहा. ‘सच पूछो तो तुम मुझे भी रांड ही लगती हो…’

‘आप को बात करने की तमीज़ नहीं है?’ अपने स्तनों पर दुपट्टा ठीक से ढांकते हुए शालिनी ने क्रोध और अपमान से कांपती हुई आवाज में कहा.

इतने में कमरे में साजन भाई आया…उसके चेहरे पर झूमर के कांच अभी भी धंसे हुए थे. ऐसी हालत में भी वो ठीक से चल के आ गया और इंस्पेक्टर से कहने लगा. ‘अरे सर, साली का दुपट्टा हटा कर देखो तब यकीन होगा…पक्की रांड है एकसो एक टका!’

मोहिते ने हंस कर पूछा. ‘ऐसा?’ और तपाक से उसने शालिनी का दुपट्टा खींच लिया. डर कर शालिनी ने अपने हाथो से अपनी छाती ढांक ली. यह देख साजन भाई गुर्रा कर बोलै. ‘सर, इस रांड को बोलो कमीज़ खोलने…’

मोहिते ने कहा. ‘अपनी कमीज़ के हुक खोलो.’

‘नहीं.’ शालिनी अपने हाथ छाती पर जोरों से दबा कर चीखी.

‘ये छिनाल ऐसे नहीं मानेगी…’ कह कर साजन भाई ने रिवॉल्वर निकाल कर उसकी और ताकी और कहा. ‘बोलाना खोल कमीज़ के हुक ? चल निकाल तेरा बड़ा बड़ा बोबा. दिखा सर को!’

शालिनी के पसीने छूट गए. घबराते हुए उसने सोचा- ये जेठ जी भी एन मौके पर गायब हो गए!

साजन भाई ने चिढ़ते हुए कहा. ‘क्यों शर्माती है? अभी तो मेरे गोडाउन में निकाला था न अपना मक्खन का गोला? फिर क्यों शरीफाई ठोकती है? चल चल… खोल फटाफट-’

बेबस शालिनी ने नजरें झुका कर कांपते हाथो से अपनी कमीज के हुक खोले… और ब्रा हटा कर अपना एक स्तन बाहर किया.

‘देखा सर? है न टनाटन!’ साजन भाई ने यूँ कहा जैसे कोई व्यापारी अपना माल ग्राहक को दिखा रहा हो!. फिर शालिनी से गुर्रा कर कहा. ‘निपल दिखा निपल - कमीनी -हर बार ये बोलना पड़ेगा क्या?’

अचानक तभी जगदीश आ गया और दहाड़ कर बोला. ‘क्या हो रहा है यह सब? ये कोई रांड नहीं समझे?’ और धड़ धड़ उसने साजन भाई और इंस्पेक्टर मोहित को गोली मार दी. दोनों लुढ़क पड़े. शालिनी अपना नंगा स्तन हिलाते हुए दौड़ कर जगदीश को चिपक गई. जगदीश ने कहा. ‘बहु बेटा, अपनी छाती ठीक करो.’ तब उसे याद आया की स्तन अभी बाहर है. पर वो इतनी डर गई थी की स्तन कमीज़ में डालने के बजाय जगदीश को और कस के चिपक गई. जगदीश ने उसकी पीठ सहलाते हुए पूछा. ‘क्या हुआ शालिनी?

शालिनी ने जगदीश की और देखा. वो आश्चर्य से पूछ रहा था. ‘इतना पसीना पसीना क्यों हो गई हो?’

शालिनी को अपना स्तन बाहर है यह याद आया. उसने जगदीश के हाथ को छोड़ अपना स्तन अंदर करना चाहा पर उसका स्तन बाहर नहीं था. उसने कमरे में देखा तो किसी की लाश पड़ी हुई नहीं थी.

ओह क्या यह सपना था ?

कुछ पलों में साजन भाई ने शालिनी के नाजुक दिमाग पर ऐसा आतंक मचाया था की वो मर गया पर उसका खौफ अभी तक शालिनी के दिलो दिमाग पर हावी था. कब जगदीश के कांधे पर सर रखे हुए उसकी आंख लग गई उसे याद नहीं.

उसने दुपट्टे से अपना मुंह पोछा. करीब पड़े एक टेबल पर से जगदीश ने पानी की बोतल उठा कर उसका ढक्क्न खोल कर शालिनी को कहा. ‘लो, थोड़ा पानी पीओ. तुमने शायद कोई बुरा सपना देखा.’

शालिनी बोली. ‘जी, मैं बहुत डर गई थी भैया.’

‘हां, नींद में तुमने मेरा हाथ इतना जोर से कसा की मुझे शक हुआ कुछ भयानक देख लिया है तुमने…’

अब बेचारी बोले तो क्या बोले की उसने क्या देखा!

और तब इंस्पेक्टर मोहिते जगदीश और शालिनी के कमरे में दाखिल हुआ.

‘सोरी, आप लोगो को वेइट करना पड़ा. बताइये क्या हुआ था?’ उसने एक कुर्सी पर बैठते हुए पूछा.

जगदीश ने कम शब्दों में जो कुछ हुआ था यह बताना शुरू किया. अपने सपने को दोहराता देख शालिनी को फिर टेंशन हो गया अलबत्ता जगदीश ने उनके साथ की गई बदतमीजी के बारे में पूरी डिटेल नहीं बताई की किस तरह दोनों को अधनंगा करके एक दूसरे के अंगो की साइज़ पूछी गई थी. जगदीश ने केवल इतना बताया कि ‘हम लोग पूना जा रहे थे…’

और शालिनी की आंखों के सामने सारा फलेश बैक आने लगा.

‘आप दोनों के नाम ?’ इन्स्पेक्टर मोहिते ने रजिस्टर खोलते हुए पूछा.

‘मेरा नाम जगदीश रस्तोगी है. मेरा अपना बिज़नेस है. स्टील मैटेरियल सप्लाई का.’ जगदीश ने अपना कार्ड देते हुए कहा.

‘और आप?’ इन्स्पेक्टर मोहिते ने शालिनी से पूछा.

‘शालिनी जे. रस्तोगी…’ शालिनी ने कहा.

‘ओके, तो आप पति- पत्नी हो…?’ इन्स्पेक्टर ने कहा. शालिनी हिचकिचाई, जगदीश बोलने गया की यह मेरे छोटे भाई की पत्नी है इतने में इंस्पेक्टर का फोन बजा. वो फोन पर बात करने लगा. फोन निपटा कर उसने पूछा. ‘अब बताइए आप उस अड्डे पर कैसे पहुंचे?’

‘हम लोग पूना जा रहे थे, रास्ते में टायर बदलने रुके तब पहले साजन के गुंडों ने शालिनी के साथ बुरा व्यवहार किया. मैंने उन्हें टोका तो हमें जबरन साजन भाई के अड्डे पर ले गए. वहां पर साजन भाई और उसके गुंडे हमारे साथ बदतमीज़ी करने वाले थे इतने में कोई पक्या नामका गुंडा उनके इलाके में आया है ऐसा उन को पता चला सो सारे गुंडे उस किसी पक्या के साथ लड़ने निकल गये. और साजन भाई अड्डे पर ही रुका था. वो हम दोनों से उलटी सीधी बातें करने लगा. एक हद के बाद उस शैतान की हरकतें नाकाबिले बर्दाश्त हो गई. अगर मैं उसको मार नहीं देता तो मैं पागल हो जाता.’

इन्स्पेक्टर मोहिते ने पूछा. ‘आपने इस से पहले कभी मार पीट की है? या और कोई जुर्म किया है?’

जगदीश ने कहा. ‘सर. मैं एक बिज़नेस मेन हूँ. सरकार को टैक्स भरने वाला और सभी कानूनों का पालन करने वाला एक सीधा सादा नागरिक. न आज के पहले मैंने कोई जुर्म किया है न आज. कानून की किताब के मुताबिक मैं एक हत्यारा हूँ पर न्याय की किताब में मेरी हरकत गुनाह नहीं यह मुझे यकीन है.’

‘आप भावुक हो कर बोल रहे हो मि. रस्तोगी. कानून भावुकता से नहीं चलता.’

‘चलना चाहिए भी नहीं. मैं सिर्फ अपना पक्ष बता रहा हु. आप को यह नहीं कह रहा की मुझे अपराधी न माने. सिर्फ यह कह रहा हूँ की जिस तरह सारे अपराधी पकड़े नहीं जाते उसी तरह जो पकडे जाते है वो सारे अपराधी नहीं होते. आप बेशक मुझे अपराधी माने बल्कि इकबाल -ऐ जुर्म तो मैंने ही किया है.मैं आप से कोई रियायत नहीं मांग रहा. आप अपनी कार्रवाई जरूर कीजिये.’

इन्स्पेक्टर मोहिते जगदीश को निहारते रहे. फिर बोले.

‘आप की सारी बात मैंने सुन ली. अब आप मेरी बात सुनिए.’

शालिनी ने डर कर जगदीश का हाथ कस कर पकड़ लिया. इन्स्पेक्टर मोहिते ने यह नोटिस किया. जगदीश ने शालिनी को नजरों से हौसला दिया. और इन्स्पेक्टर मोहिते की बात सुनने लगा.

‘उस गोडाउन में साजन भाई आप दोनों के साथ बदतमीजी कर रहा था. आप को मौका मिलते ही आपने साजन भाई की रिवाल्वर छीन ली और उसे मारने नहीं बल्कि केवल डराने के उद्देश्य से आपने हवा में गोली चलाई. संयोग से गोली झूमर को लगी और झूमर टूट कर साजन भाई पर गिर पड़ा जिससे उसकी मौत हो गई. यह एक दुर्घटना थी और आपका साजन भाई को कोई हानि पहुंचाने का इरादा नहीं था.’

शालिनी और जगदीश यह सुनकर आश्चर्यचकित हो गए.

जगदीश ने पूछा. ‘ये आप क्या बता रहे हो?’

इन्स्पेक्टर मोहिते ने मुस्कुराकर कहा. ‘आपका बयान.’

जगदीश और शालिनी ने एक दूसरे को देखा. फिर जगदीश ने कहा. ‘पर मैंने कुछ और कहा!’

‘उसे भूल जाओ और मैंने जो कहा वैसा कहो.’

शालिनी यह सुन कर खुश होने ही वाली थी की जगदीश ने कहा. ‘बिलकुल नहीं. मैं ऐसा बयान नहीं दे सकता.’

अब चौंकने की बारी शालिनी और इन्स्पेक्टर मोहित की थी.

शालिनी ने जगदीश को कहा ‘इंस्पेक्टर साहब खुद कह रहे है फिर आप क्यों?... ‘

जगदीश ने शालिनी की बात काट कर कह. ‘एक मिनिट.’ फिर इंस्पेक्टर मोहिते से कहा. ‘मैं यह कैसे कहूं कि मेरा साजन भाई को हानि पहुंचाने का इरादा नहीं था ? जब की मैं तो उसकी जान दर्दनाक तरीके से लेना चाहता था और ली. यह कोई दुर्घटना नहीं थी. और आप का शुक्रिया पर आप मुझे बचाना क्यों चाहते है?’

‘आप जैसा अजीब आदमी मैंने अब तक देखा नहीं.’ इंस्पेक्टर मोहिते ने कहा. ‘एक बात बताओ. अगर मैं वहां उस गोडाउन में नहीं पहुँचता तब तुम क्या करते? गोडाउन से निकल कर पुलिस स्टेशन आ कर खुद को कानून के हवाले कर देते?’

‘नहीं.’ जगदीश ने कहा. शालिनी और इंस्पेक्टर मोहिते दोनों को जगदीश के जवाब से आश्चर्य हुआ.जगदीश ने आगे कहा. ‘न मैं कानून में फसना चाहता हूँ, न कानून से बचना चाहता हूँ. मै ने क्या सोचा था यह बताता हूँ. मैं रिवाल्वर वहीं पर फेंक कर शालिनी के साथ वहां से भाग निकलता…’

‘और रिवाल्वर पर की आपकी फिंगरप्रिंट की वजह से पुलिस आज नहीं तो कल आप तक पहुँच ही जाती. तब?’

‘मैंने अपने हाथ पर यह दुपट्टा लपेट लिया था. मेरी फिंगरप्रिंट रिवाल्वर पर नहीं मिलती.’

‘ओह. ठीक. पर आप खुद भाग निकलना चाहते थे तो फिर मुझसे अपने गुनाह का इकरार क्यों किया? आप बहुत उलझा रहे हो.’ इंस्पेक्टर मोहिते ने पूछा.

‘मुझे निकलने का मौका मिले उससे पहले दरवाजे पर दस्तक हुई और मुझे नहीं पता था कि दरवाजे पर कौन है सो दुपट्टा वापस शालिनी को दे कर मुझे नंगे हाथ रिवाल्वर थामनी पड़ी. रिवाल्वर पर मेरे फिंगर प्रिंट आ गए. दरवाजा खोला तो आप थे.’

‘फिर? इकबाल- ऐ -जुर्म करना जरूरी था?

‘मैं आपसे झूठ कैसे बोलता?’

इंस्पेक्टर मोहिते फिर कन्फ्यूज़ हो गया. उसने पूछा. ‘क्यों नहीं बोल सकते? मैंने जो जूठा बयान बनाया वो ही बात आप मुझे कह सकते थे! या यह कह देते कि किसी गुंडे ने झूमर पर गोली मार दी!’

‘आप पुलिस हो सर.’ जगदीश ने कहा. ‘आप जनता की रक्षा के लिए दिन रात खुद को खतरे में डालते हो. आप से मैं कैसे झूठ बोलूं?’

इंस्पेक्टर मोहिते यह सुन कर दंग रह गया. उसकी आंखे भीग गई.

:)
(९ - ये तो सोचा न था…समाप्त, क्रमश:)

Bahut behtarin update …
 
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(९ - ये तो सोचा न था…)

[(८ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :

शालिनी जगदीश के कंधे पर सर रख कर रोने लगी. उसकी आँखों के सामने पूरी दुर्घटना रिवाइंड हो रही थी : मवालीओ का उसे रांड कह कर बुलाना से ले कर साजन भाई को जेठ का मार देना… और फिर पुलिस का पूछना : क्या सजा होगी यह अंदाजा है?

सीधी सादी निश्छल शालिनी के लिए यह सब बहुत बड़े आघात थे.

हे भगवान ये सब क्या हो गया? - सोच कर शालिनी की आँखों में आँसू रुक नहीं रहे थे.

जगदीश का हाथ यंत्रवत शालिनी को सांत्वना देने उसकी की पीठ पर फिरता रहा, शालिनी की कमीज़ में उभरे ब्रा के हुक को महसूस करता रहा और दिमाग में बीते हुए यह अजीब मंजर के नजारो का कोलाज कैलिडोस्कोप की डिज़ाइन की तरह चकराता रहा.]


पूना के दीक्षित परिवार के शादी वाले फ़ार्म हॉउस में चांदनी और जुगल की हालत सदमे में गर्क थी.

चांदनी सोच रही थी : इतने अमीर और पढ़े लिखे लोग है फिर यह क्या जाहिल पन ? की भाई और बहन ही शुरू हो गए? और दोनों की जुबान कितनी सस्ती - किसी बाजारू मवाली लोगों जैसी थी? ‘तेरी क्यों फट गई?’ और ‘मुझे पता था, मेरी लेने के लिए ही मेरे बाबू ने अभी मुझे यहां बुलाया है…’

कैसे बात करते है यह लोग? - मेरी लेने के लिए!

चांदनी का मन खट्टा हो गया.

उसे अपने बड़े भैया नितीश की याद आई. क्या नितीश कभी उसके साथ ऐसा कर सकता है? अरे नितीश छोडो क्या दुनिया में कोई भी भाई अपनी सगी बहन का घाघरा यूँ उठा सकता है?

उसे याद आया की उसका भैया नितीश उसकी शादी के समय कितना उदास रहता था - बहना की विदाई होगी इस गम में.

और यहां तो भाई अपनी पैंट की झीप खोल कर बहन के साथ शुरू हो गया!

चांदनी ने अपना सर थाम लिया.

***

इंस्पेक्टर मोहिते जगदीश और शालिनी के कमरे में दाखिल हुआ.
‘बताओ क्या हुआ था?’ उसने पूछा. जगदीश बताने लगा कैसे वो लोग गोडाउन जबरदस्ती ले जाए गए. कैसे साजन भाई ने कहा की ‘ऐसे बोबले वाली को रांड ही बोलते है…. ‘ और अचानक बात करते हुए जगदीश उठ के वॉशरूम चला गया. जगदीश के जाते ही इंस्पेक्टर मोहिते शालिनी की छाती को बेशर्मी से घूरने लगा. शालिनी एकदम अनकम्फर्टेबल हो गई. इन्स्पेक्टर मोहिते ने उसे कहा. ‘सच पूछो तो तुम मुझे भी रांड ही लगती हो…’

‘आप को बात करने की तमीज़ नहीं है?’ अपने स्तनों पर दुपट्टा ठीक से ढांकते हुए शालिनी ने क्रोध और अपमान से कांपती हुई आवाज में कहा.

इतने में कमरे में साजन भाई आया…उसके चेहरे पर झूमर के कांच अभी भी धंसे हुए थे. ऐसी हालत में भी वो ठीक से चल के आ गया और इंस्पेक्टर से कहने लगा. ‘अरे सर, साली का दुपट्टा हटा कर देखो तब यकीन होगा…पक्की रांड है एकसो एक टका!’

मोहिते ने हंस कर पूछा. ‘ऐसा?’ और तपाक से उसने शालिनी का दुपट्टा खींच लिया. डर कर शालिनी ने अपने हाथो से अपनी छाती ढांक ली. यह देख साजन भाई गुर्रा कर बोलै. ‘सर, इस रांड को बोलो कमीज़ खोलने…’

मोहिते ने कहा. ‘अपनी कमीज़ के हुक खोलो.’

‘नहीं.’ शालिनी अपने हाथ छाती पर जोरों से दबा कर चीखी.

‘ये छिनाल ऐसे नहीं मानेगी…’ कह कर साजन भाई ने रिवॉल्वर निकाल कर उसकी और ताकी और कहा. ‘बोलाना खोल कमीज़ के हुक ? चल निकाल तेरा बड़ा बड़ा बोबा. दिखा सर को!’

शालिनी के पसीने छूट गए. घबराते हुए उसने सोचा- ये जेठ जी भी एन मौके पर गायब हो गए!

साजन भाई ने चिढ़ते हुए कहा. ‘क्यों शर्माती है? अभी तो मेरे गोडाउन में निकाला था न अपना मक्खन का गोला? फिर क्यों शरीफाई ठोकती है? चल चल… खोल फटाफट-’

बेबस शालिनी ने नजरें झुका कर कांपते हाथो से अपनी कमीज के हुक खोले… और ब्रा हटा कर अपना एक स्तन बाहर किया.

‘देखा सर? है न टनाटन!’ साजन भाई ने यूँ कहा जैसे कोई व्यापारी अपना माल ग्राहक को दिखा रहा हो!. फिर शालिनी से गुर्रा कर कहा. ‘निपल दिखा निपल - कमीनी -हर बार ये बोलना पड़ेगा क्या?’

अचानक तभी जगदीश आ गया और दहाड़ कर बोला. ‘क्या हो रहा है यह सब? ये कोई रांड नहीं समझे?’ और धड़ धड़ उसने साजन भाई और इंस्पेक्टर मोहित को गोली मार दी. दोनों लुढ़क पड़े. शालिनी अपना नंगा स्तन हिलाते हुए दौड़ कर जगदीश को चिपक गई. जगदीश ने कहा. ‘बहु बेटा, अपनी छाती ठीक करो.’ तब उसे याद आया की स्तन अभी बाहर है. पर वो इतनी डर गई थी की स्तन कमीज़ में डालने के बजाय जगदीश को और कस के चिपक गई. जगदीश ने उसकी पीठ सहलाते हुए पूछा. ‘क्या हुआ शालिनी?

शालिनी ने जगदीश की और देखा. वो आश्चर्य से पूछ रहा था. ‘इतना पसीना पसीना क्यों हो गई हो?’

शालिनी को अपना स्तन बाहर है यह याद आया. उसने जगदीश के हाथ को छोड़ अपना स्तन अंदर करना चाहा पर उसका स्तन बाहर नहीं था. उसने कमरे में देखा तो किसी की लाश पड़ी हुई नहीं थी.

ओह क्या यह सपना था ?

कुछ पलों में साजन भाई ने शालिनी के नाजुक दिमाग पर ऐसा आतंक मचाया था की वो मर गया पर उसका खौफ अभी तक शालिनी के दिलो दिमाग पर हावी था. कब जगदीश के कांधे पर सर रखे हुए उसकी आंख लग गई उसे याद नहीं.

उसने दुपट्टे से अपना मुंह पोछा. करीब पड़े एक टेबल पर से जगदीश ने पानी की बोतल उठा कर उसका ढक्क्न खोल कर शालिनी को कहा. ‘लो, थोड़ा पानी पीओ. तुमने शायद कोई बुरा सपना देखा.’

शालिनी बोली. ‘जी, मैं बहुत डर गई थी भैया.’

‘हां, नींद में तुमने मेरा हाथ इतना जोर से कसा की मुझे शक हुआ कुछ भयानक देख लिया है तुमने…’

अब बेचारी बोले तो क्या बोले की उसने क्या देखा!

और तब इंस्पेक्टर मोहिते जगदीश और शालिनी के कमरे में दाखिल हुआ.

‘सोरी, आप लोगो को वेइट करना पड़ा. बताइये क्या हुआ था?’ उसने एक कुर्सी पर बैठते हुए पूछा.

जगदीश ने कम शब्दों में जो कुछ हुआ था यह बताना शुरू किया. अपने सपने को दोहराता देख शालिनी को फिर टेंशन हो गया अलबत्ता जगदीश ने उनके साथ की गई बदतमीजी के बारे में पूरी डिटेल नहीं बताई की किस तरह दोनों को अधनंगा करके एक दूसरे के अंगो की साइज़ पूछी गई थी. जगदीश ने केवल इतना बताया कि ‘हम लोग पूना जा रहे थे…’

और शालिनी की आंखों के सामने सारा फलेश बैक आने लगा.

‘आप दोनों के नाम ?’ इन्स्पेक्टर मोहिते ने रजिस्टर खोलते हुए पूछा.

‘मेरा नाम जगदीश रस्तोगी है. मेरा अपना बिज़नेस है. स्टील मैटेरियल सप्लाई का.’ जगदीश ने अपना कार्ड देते हुए कहा.

‘और आप?’ इन्स्पेक्टर मोहिते ने शालिनी से पूछा.

‘शालिनी जे. रस्तोगी…’ शालिनी ने कहा.

‘ओके, तो आप पति- पत्नी हो…?’ इन्स्पेक्टर ने कहा. शालिनी हिचकिचाई, जगदीश बोलने गया की यह मेरे छोटे भाई की पत्नी है इतने में इंस्पेक्टर का फोन बजा. वो फोन पर बात करने लगा. फोन निपटा कर उसने पूछा. ‘अब बताइए आप उस अड्डे पर कैसे पहुंचे?’

‘हम लोग पूना जा रहे थे, रास्ते में टायर बदलने रुके तब पहले साजन के गुंडों ने शालिनी के साथ बुरा व्यवहार किया. मैंने उन्हें टोका तो हमें जबरन साजन भाई के अड्डे पर ले गए. वहां पर साजन भाई और उसके गुंडे हमारे साथ बदतमीज़ी करने वाले थे इतने में कोई पक्या नामका गुंडा उनके इलाके में आया है ऐसा उन को पता चला सो सारे गुंडे उस किसी पक्या के साथ लड़ने निकल गये. और साजन भाई अड्डे पर ही रुका था. वो हम दोनों से उलटी सीधी बातें करने लगा. एक हद के बाद उस शैतान की हरकतें नाकाबिले बर्दाश्त हो गई. अगर मैं उसको मार नहीं देता तो मैं पागल हो जाता.’

इन्स्पेक्टर मोहिते ने पूछा. ‘आपने इस से पहले कभी मार पीट की है? या और कोई जुर्म किया है?’

जगदीश ने कहा. ‘सर. मैं एक बिज़नेस मेन हूँ. सरकार को टैक्स भरने वाला और सभी कानूनों का पालन करने वाला एक सीधा सादा नागरिक. न आज के पहले मैंने कोई जुर्म किया है न आज. कानून की किताब के मुताबिक मैं एक हत्यारा हूँ पर न्याय की किताब में मेरी हरकत गुनाह नहीं यह मुझे यकीन है.’

‘आप भावुक हो कर बोल रहे हो मि. रस्तोगी. कानून भावुकता से नहीं चलता.’

‘चलना चाहिए भी नहीं. मैं सिर्फ अपना पक्ष बता रहा हु. आप को यह नहीं कह रहा की मुझे अपराधी न माने. सिर्फ यह कह रहा हूँ की जिस तरह सारे अपराधी पकड़े नहीं जाते उसी तरह जो पकडे जाते है वो सारे अपराधी नहीं होते. आप बेशक मुझे अपराधी माने बल्कि इकबाल -ऐ जुर्म तो मैंने ही किया है.मैं आप से कोई रियायत नहीं मांग रहा. आप अपनी कार्रवाई जरूर कीजिये.’

इन्स्पेक्टर मोहिते जगदीश को निहारते रहे. फिर बोले.

‘आप की सारी बात मैंने सुन ली. अब आप मेरी बात सुनिए.’

शालिनी ने डर कर जगदीश का हाथ कस कर पकड़ लिया. इन्स्पेक्टर मोहिते ने यह नोटिस किया. जगदीश ने शालिनी को नजरों से हौसला दिया. और इन्स्पेक्टर मोहिते की बात सुनने लगा.

‘उस गोडाउन में साजन भाई आप दोनों के साथ बदतमीजी कर रहा था. आप को मौका मिलते ही आपने साजन भाई की रिवाल्वर छीन ली और उसे मारने नहीं बल्कि केवल डराने के उद्देश्य से आपने हवा में गोली चलाई. संयोग से गोली झूमर को लगी और झूमर टूट कर साजन भाई पर गिर पड़ा जिससे उसकी मौत हो गई. यह एक दुर्घटना थी और आपका साजन भाई को कोई हानि पहुंचाने का इरादा नहीं था.’

शालिनी और जगदीश यह सुनकर आश्चर्यचकित हो गए.

जगदीश ने पूछा. ‘ये आप क्या बता रहे हो?’

इन्स्पेक्टर मोहिते ने मुस्कुराकर कहा. ‘आपका बयान.’

जगदीश और शालिनी ने एक दूसरे को देखा. फिर जगदीश ने कहा. ‘पर मैंने कुछ और कहा!’

‘उसे भूल जाओ और मैंने जो कहा वैसा कहो.’

शालिनी यह सुन कर खुश होने ही वाली थी की जगदीश ने कहा. ‘बिलकुल नहीं. मैं ऐसा बयान नहीं दे सकता.’

अब चौंकने की बारी शालिनी और इन्स्पेक्टर मोहित की थी.

शालिनी ने जगदीश को कहा ‘इंस्पेक्टर साहब खुद कह रहे है फिर आप क्यों?... ‘

जगदीश ने शालिनी की बात काट कर कह. ‘एक मिनिट.’ फिर इंस्पेक्टर मोहिते से कहा. ‘मैं यह कैसे कहूं कि मेरा साजन भाई को हानि पहुंचाने का इरादा नहीं था ? जब की मैं तो उसकी जान दर्दनाक तरीके से लेना चाहता था और ली. यह कोई दुर्घटना नहीं थी. और आप का शुक्रिया पर आप मुझे बचाना क्यों चाहते है?’

‘आप जैसा अजीब आदमी मैंने अब तक देखा नहीं.’ इंस्पेक्टर मोहिते ने कहा. ‘एक बात बताओ. अगर मैं वहां उस गोडाउन में नहीं पहुँचता तब तुम क्या करते? गोडाउन से निकल कर पुलिस स्टेशन आ कर खुद को कानून के हवाले कर देते?’

‘नहीं.’ जगदीश ने कहा. शालिनी और इंस्पेक्टर मोहिते दोनों को जगदीश के जवाब से आश्चर्य हुआ.जगदीश ने आगे कहा. ‘न मैं कानून में फसना चाहता हूँ, न कानून से बचना चाहता हूँ. मै ने क्या सोचा था यह बताता हूँ. मैं रिवाल्वर वहीं पर फेंक कर शालिनी के साथ वहां से भाग निकलता…’

‘और रिवाल्वर पर की आपकी फिंगरप्रिंट की वजह से पुलिस आज नहीं तो कल आप तक पहुँच ही जाती. तब?’

‘मैंने अपने हाथ पर यह दुपट्टा लपेट लिया था. मेरी फिंगरप्रिंट रिवाल्वर पर नहीं मिलती.’

‘ओह. ठीक. पर आप खुद भाग निकलना चाहते थे तो फिर मुझसे अपने गुनाह का इकरार क्यों किया? आप बहुत उलझा रहे हो.’ इंस्पेक्टर मोहिते ने पूछा.

‘मुझे निकलने का मौका मिले उससे पहले दरवाजे पर दस्तक हुई और मुझे नहीं पता था कि दरवाजे पर कौन है सो दुपट्टा वापस शालिनी को दे कर मुझे नंगे हाथ रिवाल्वर थामनी पड़ी. रिवाल्वर पर मेरे फिंगर प्रिंट आ गए. दरवाजा खोला तो आप थे.’

‘फिर? इकबाल- ऐ -जुर्म करना जरूरी था?

‘मैं आपसे झूठ कैसे बोलता?’

इंस्पेक्टर मोहिते फिर कन्फ्यूज़ हो गया. उसने पूछा. ‘क्यों नहीं बोल सकते? मैंने जो जूठा बयान बनाया वो ही बात आप मुझे कह सकते थे! या यह कह देते कि किसी गुंडे ने झूमर पर गोली मार दी!’

‘आप पुलिस हो सर.’ जगदीश ने कहा. ‘आप जनता की रक्षा के लिए दिन रात खुद को खतरे में डालते हो. आप से मैं कैसे झूठ बोलूं?’

इंस्पेक्टर मोहिते यह सुन कर दंग रह गया. उसकी आंखे भीग गई.

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Woow, chandini ko bhi nitish bhaiya yaad aa gaye😅
 
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