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Incest ये तो सोचा न था…

Siraj Patel

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Hello everyone.

We are Happy to present to you The annual story contest of XForum


"The Ultimate Story Contest" (USC).


"Chance to win cash prize up to Rs 8000"
Jaisa ki aap sabko maloom hai abhi pichhle hafte hi humne USC ki announcement ki hai or abhi kuch time pehle Rules and Queries thread bhi open kiya hai or Chit Chat thread toh pehle se hi Hindi section mein khula hai.

Well iske baare mein thoda aapko bata dun ye ek short story contest hai jisme aap kisi bhi prefix ki short story post kar sakte ho, jo minimum 700 words and maximum 7000 words ke bich honi chahiye (Story ke words count karne ke liye is tool ka use kare — Characters Tool) . Isliye main aapko invitation deta hun ki aap is contest mein apne khayaalon ko shabdon kaa roop dekar isme apni stories daalein jisko poora XForum dekhega, Ye ek bahot accha kadam hoga aapke or aapki stories ke liye kyunki USC ki stories ko poore XForum ke readers read karte hain.. Aap XForum ke sarvashreshth lekhakon mein se ek hain. aur aapki kahani bhi bahut acchi chal rahi hai. Isliye hum aapse USC ke liye ek chhoti kahani likhne ka anurodh karte hain. hum jaante hain ki aapke paas samay ki kami hai lekin iske bawajood hum ye bhi jaante hain ki aapke liye kuch bhi asambhav nahi hai.

Aur jo readers likhna nahi chahte woh bhi is contest mein participate kar sakte hain "Best Readers Award" ke liye. Aapko bas karna ye hoga ki contest mein posted stories ko read karke unke upar apne views dene honge.

Winning Writer's ko well deserved Cash Awards milenge, uske alawa aapko apna thread apne section mein sticky karne ka mouka bhi milega taaki aapka thread top par rahe uss dauraan. Isliye aapsab ke liye ye ek behtareen mouka hai XForum ke sabhi readers ke upar apni chhaap chhodne ka or apni reach badhaane kaa.. Ye aap sabhi ke liye ek bahut hi sunehra avsar hai apni kalpanao ko shabdon ka raasta dikha ke yahan pesh karne ka. Isliye aage badhe aur apni kalpanao ko shabdon mein likhkar duniya ko dikha de.

Entry thread 15th February ko open ho chuka matlab aap apni story daalna shuru kar sakte hain or woh thread 5th March 2024 tak open rahega is dauraan aap apni story post kar sakte hain. Isliye aap abhi se apni Kahaani likhna shuru kardein toh aapke liye better rahega.

Aur haan! Kahani ko sirf ek hi post mein post kiya jaana chahiye. Kyunki ye ek short story contest hai jiska matlab hai ki hum kewal chhoti kahaniyon ki ummeed kar rahe hain. Isliye apni kahani ko kayi post / bhaagon mein post karne ki anumati nahi hai. Agar koi bhi issue ho toh aap kisi bhi staff member ko Message kar sakte hain.



Story se related koi doubt hai to iske liye is thread ka use kare — Chit Chat Thread

Kisi bhi story par apna review post karne ke liye is thread ka use kare — Review Thread

Rules check karne ke liye is thread ko dekho — Rules & Queries Thread

Apni story post karne ke liye is thread ka use kare — Entry Thread

Prizes
Position Benifits
Winner 4000 Rupees + Award + 5000 Likes + 30 days sticky Thread (Stories)
1st Runner-Up 1500 Rupees + Award + 3500 Likes + 15 day Sticky thread (Stories)
2nd Runner-UP 1000 Rupees + 2000 Likes + 7 Days Sticky Thread (Stories)
3rd Runner-UP 750 Rupees + 1000 Likes
Best Supporting Reader 750 Rupees + Award + 1000 Likes
Members reporting CnP Stories with Valid Proof 200 Likes for each report



Regards :- XForum Staff
 

Tri2010

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ये तो सोचा न था


(दोस्तों,
यह मेरी पहली इरोटिक कहानी है.
अपनी प्रतिक्रिया दीजिये. ताकि मुझे मार्गदर्शन मिले और मैं बेहतर कहानी लिख सकूं.

-राकेश बक्षी)


ये तो सोचा न था…अनुक्रमणिका



प्रकरण - ४१प्रकरण - ४२प्रकरण - ४३प्रकरण - ४४
प्रकरण - ४५
















१ – ये तो सोचा था

शालिनी और जगदीश दोनों के लिए यह एक ऑक्वर्ड परिस्थिति थी. शायद शालिनी के लिए अधिक. क्योंकि जगदीश शालिनी का जेठ था. और मुंबई से पूना तक उन दोनों को एक ही कार में जाना पड़े ऐसा संजोग खड़ा हुआ था.
वैसे तो दो कार मुंबई से पूना जाने वाली थी. दोनों भाई अपनी अपनी कार में अपनी पत्नियों के साथ पूना उनके फैमिली फ्रेंड के घर शादी में पहुँच रहे थे. शनि वार शाम को दोनों भाई पूना के लिए निकलने वाले थे और रात नौ-दस बजे तक पहुँच जाने वाले थे. जगदीश शाम को चार बजे तक घर पहुंचेगा और पांच बजे दोनों कार पूना के लिए रवाना होगी यह प्लान था.
शनिवार को जगदीश के छोटे भाई जुगल को छुट्टी होती थी. सो वो घर पर ही था. और जगदीश की पत्नी चांदनी अपनी देवरानी शालिनी को मेहंदी लगाने की तैयारी कर रही थी क्योंकि चांदनी मेहंदी लगाने में एक्सपर्ट थी.
पर शालिनी को लगा की सुबह से उसकी जेठानी चांदनी कुछ उदास है. पर क्या वजह हो सकती है उदासी की? शालिनी ने बहुत सोचा पर वो ताड़ नहीं पाई. पूना में जिस फेमिली फ्रेंड के यहाँ शादी थी वो लोग करीबी थे. उनके यहां शादी में जाने का उन चारों लोगों को उत्साह था. और कैसे कब जाना यह भी कई दिनों से तय था फिर अब जाने के दिन अचानक चांदनी को क्या हुआ?

सरल और निश्छल स्वभाव की शालिनी ने हार कर चांदनी से पूछ लेना ही तय किया. जब चांदनी शालिनी के हाथों में मेहंदी लगाने आई तब शालिनी ने कहा ‘दीदी, मैं मेहंदी तभी लगवाउंगी जब तुम अपनी उदासी की वजह बताओ. सुबह से तुम्हारा चेहरा कितना फीका लग रहा है!’
चांदनी ने तुरंत जवाब दिया ‘कोई बड़ी बात नहीं पर मुझे मेरे पिताजी की फ़िक्र हो रही है. रात को माँ का फोन आया था की उन की तबीयत कुछ ठीक नहीं.’
शालिनी यह सुन चिंता करने लगी. चांदनी के माँ- पिताजी न्यू बॉम्बे रहते थे. जो की मुंबई से पूना जाते वक्त रास्ते में पड़ता था. शालिनी ने कहा ‘अरे दी, इतना क्या मन भारी कर रही हो ? पूना जाते जाते हम सब आप के पिताजी को मिलते हुए जाएंगे, रास्ते में ही तो घर है!’
चांदनी ने फीकी मुस्कान के साथ कहा की ‘तुम्हारे जेठ ने भी यही कहा है और शाम को उनसे मिलते हुए ही जाना है यह पता है पर दिल तो आखिर दिल है- पिताजी के बारे में सोच कर आँखे भर आती है - पर कोई बात नहीं, शाम तक की ही तो बात है!’
शालिनी ने कुछ सोचा और खड़ी हो कर बोली ‘मैं आई एक मिनिट.’
‘अरे पर मेहंदी लगानी है न ?’
‘बस एक मिनिट… ‘ कह कर शालिनी तेजी से गई. चांदनी महेंदी लिए राह देखती रही और बजाय एक मिनिट के पांच मिनिट के बाद शालिनी आई अपने पति जुगल के साथ. शालिनी को देख कर चांदनी ने कहा ‘चल अब कोई टाइम पास नहीं, बैठ भी जा… मैं मेहंदी लगाऊंगी कब और वो सूखेगी कब! ‘

‘आप मेहंदी नहीं लगाओगी दी, आप जुगल के साथ नवी मुंबई के लिए निकल जाओ… ‘
‘क्या !’ चांदनी ने आश्चर्य से पूछा.
जुगल ने कहा ‘हाँ भाभी मेरी कार में नवी मुंबई चलते है. अभी दोपहर के दो बजे है. भैया को आते आते चार बज जाएंगे, फिर हम सब पांच बजे निकलेंगे और नवी मुंबई तक पहुंचने में साढ़े छे - सात बज जाएंगे, फिर हमें पूना पहुँचने की जल्दी होगी तो आप के पिताजी के पास आप सुकून से दो पल बैठ भी नहीं पाओगो…’
यह सुन कर चांदनी सोच में पड़ गई. शालिनी ने आगे कहा ‘बजाय इस के आप अभी जुगल के साथ नवी मुंबई पहुंचो और जेठ जी आएंगे तब मैं उन के साथ आ जाउंगी… आप को मा - पिताजी के साथ रुकने को कम से कम तीन घंटे मिल जाएंगे.’

‘अरे पर निकलने से पहले यहां कितने काम बाकी है, ऐसे कैसे निकल जाऊं !’ चांदनी ने कहना चाहा पर उस की बात को आधे से काट कर शालिनी ने कहा ‘पता है क्या क्या काम है- हम दोनों की साडी का बॉर्डर लगवाना है, साढ़े तीन बजे पूना के लिए शादी में जो गिफ्ट ले जानी है उसकी डिलीवरी घर पर होगी और चार बजे इलेक्ट्रीशियन आएगा उस से हॉल का फेन चेंज करवाना है पर ये सभी काम तो मैं भी निपटा सकती हूँ न ? इसी लिए तो मैं रुक जाती हूँ और जेठ जी के साथ आ जाउंगी, आप तो अपने माँ - पिताजी से मिलने निकल जाइए!’
‘और तेरी मेहंदी? शादी में तू की बिना मेहंदी के आएगी?’
‘बीसियों ब्यूटी पार्लर है दी अपने शहर में, मेहंदी कोई इस्यु नहीं पर पिताजी से मिलना ज्यादा जरूरी है.’
बात सही थी. चांदनी ने फोन पर अपने पति जगदीश की राय ली. उसे भी यह बात ठीक लगी. उसने कहा ‘एकदम प्रेक्टिकल बात है. तुम लोग चलो, मैं बहु को ले कर पहुंचता हूँ, नवी मुंबई से फिर चारों साथ में निकल कर पूना जाएंगे.’
और चांदनी जुगल के साथ अपने माँ - पिताजी को मिलने निकल गई.

शाम को शालिनी ने अपने सारे काम निपटा दिए. साडी - हॉल में फेन - गिफ्ट की डिलीवरी - हाथों में महेंदी…. सब काम ठीक से किये. और सफर के लिए एक अच्छा सा पंजाबी सूट पहन कर तैयार हो गई.
जगदीश भी चार बजे पहुंच गया. और साढ़े चार बजे तो शालिनी और जगदीश घर से निकल कर कार की और बढ़ने लगे.

पर-

शालिनी ने बोल तो दिया था की वो जेठजी के साथ नवी मुंबई आ जायेगी और जगदीश ने भी चांदनी से कह दिया था की वो बहु को ले के नवी मुंबई पहुँच जाएगा पर पर जब कार में बैठने की बारी आई तब शालिनी और जगदीश दोनों की हालत अजीब हो गई.

हालत अजीब होने की वजह थी जगदीश - जुगल के घर का माहौल.

शालिनी इस घर में ब्याह कर चार साल पहले आई थी. पर इन चार सालों में उसका और जगदीश का कभी भी कोई बातचीत का व्यवहार भी अकेले में नहीं हुआ था. बड़ो को आदर सम्मान देते है इस परंपरा के चलते शालिनी अपने जेठ को बड़ा भाई मानती थी और उन की इज्जत करती थी पर जगदीश को और शालिनी को एक दूजे से कोई काम कभी पड़ा ही नहीं था. कोई सूरत ही नहीं थी की उनको एक दूसरे से कोई बात अलग से करनी पड़े. बड़ी बहु होने के नाते चांदनी के सर घर का सारा जिम्मा था और छोटा होने के नाते जुगल घर के बाकी काम की खाना पूर्ति कर लेता था. और शालिनी बहु होने के नाते हमेंशा अपने जेठ से एक सोशियल डिस्टंस में ही रही थी.

जगदीश भी एक संस्कारी और संयम शील इंसान था. उसे शालिनी का कोई काम कभी पड़ा ही नहीं था.

ऐसा नहीं की जगदीश ने शालिनी को कभी नोटिस ही नहीं किया हो. कई बार अनजाने में जगदीश नई नजर शालिनी के स्तन पर चली जाती. हालांकि वो तुरंत अपनी नजरे फेर लेता इस ख़याल के साथ के शालिनी के स्तन बड़े है. कम से कम अपनी पत्नी चांदनी से तो बड़े. पर इस दिशा में वो आगे नहीं सोचता. बहु के बारे में ऐसा नहीं सोचना चाहिए यह वो समझता था.

ऐसा भी नहीं की दोनों में आपस में कभी बात नहीं होती थी पर हमेशा या चांदनी मौजूद होती थी या जुगल. अकेले में कभी नहीं.

घर से निकल कर कार तक जाते हुए जगदीश को लगा की सोसायटी का वॉचमेन शालिनी को अजीब तरह से घूर रहा है. उसने वॉचमेन की नजरो का पीछा किया तो वो शालिनी की छाती को घूर रहा था. शालिनी ने सफर के लिए एक घरेलु किसम का पीला सलवार सूट पहना था और दुपट्टा था पर वो उसने गले के इतने करीब से पीठ की और मोड़ा हुआ था की उसके स्तन ढंक नहीं रहे थे. जगदीश को लगा की शालिनी ने इस बात का ख़याल रखना चाहिए. पर इस पर क्या हो सकता है? शालिनी को यह कहना की दुपट्टा ठीक से ओढो तो बड़ा अजीब लगेगा. और देखनेवालों को भी कुछ कहा नहीं जा सकता. जगदीश ने सर को एक झटका दे कर ऐसे ख्यालो को हटाने की जैसे कोशिश की. जब दोनों कार तक पहुंचे तब तक दोनों के मन में एक ही सवाल था : शालिनी ने पीछे की सीट पर बैठना चाहिए या आगे जगदीश के बगल में?

अगर शालिनी पीछे बैठेगी तो न चाहते हुए भी जगदीश ड्राइवर हो और शालिनी कार मालकिन ऐसा चित्र बनेगा.
अगर शालिनी आगे जगदीश के बगल में बैठेगी तो क्या जेठ और बहु साथ साथ बैठ कर कार में जाएंगे?

अब ?

न तो जगदीश को सूझ रहा था की शालिनी ने कहाँ बैठना चाहिए न तो उसे शालिनी से इस बारे में बात करने का साहस हो रहा था.
यही हाल शालिनी का था !


(१ – ये
तो सोचा थासमाप्त, क्रमश:)
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(२ - ये तो सोचा था)

[(१ – ये तो सोचा थामें आपने पढ़ा :जब दोनों कार तक पहुंचे तब तक दोनों के मन में एक ही सवाल था : शालिनी ने पीछे की सीट पर बैठना चाहिए या आगे जगदीश के बगल में?
अगर शालिनी पीछे बैठेगी तो न चाहते हुए भी जगदीश ड्राइवर हो और शालिनी कार मालकिन ऐसा चित्र बनेगा.
अगर शालिनी आगे जगदीश के बगल में बैठेगी तो क्या जेठ और बहु साथ साथ बैठ कर कार में जाएंगे?
अब ?
न तो जगदीश को सूझ रहा था की शालिनी ने कहाँ बैठना चाहिए न तो उसे शालिनी से इस बारे में बात करने का साहस हो रहा था.
यही हाल शालिनी का था !
]


पर उन दोनों की उलझन का तोड़ अपने आप आ गया जब पूना, शादी में ले जाने का गिफ्ट का पैकेट इतना बड़ा साबित हुआ की वो डिकी में जा नहीं पाया और मजबूरन उसे कार की पीछे की सीट पर रखना पड़ा! अब शालिनी चाहे तब भी पीछे नहीं बैठ सकती थी!

इस गिफ्ट पैकेट की वजह से जब कोई चॉइस ही नहीं रही और शालिनी को आगे, जगदीश के बगल में बैठना पड़ा तब दोनों ने ही अपने मन में सुकून की सांस ली. इस लिए नहीं की दोनों बगल में बैठना चाहते थे पर इस लिए क्योंकि दोनों यह कभी तय नहीं कर पाते की शालिनी को कहाँ बैठना चाहिए. यह फैसला लेना इस लिए कठिन था क्योंकि की दोनों ही विकल्प दोनों ही व्यक्ति के लिए असहज थे.

वैसे तो यह बहुत छोटी बात है पर गौरतलब बात यही है की जगदीश और शालिनी एक दूसरे की बहुत इज्जत करते है और एक दूसरे को अनकम्फर्टेबल सिच्युएशन में देख नहीं सकते थे.

खेर, कार चालु करते वक्त जगदीश ने सोचा : बस नवी मुंबई तक की बात है. यह सफर किसी तरह कट जाए, फिर शालिनी जुगल की कार में चली जायेगी और चांदनी इस कार में आ जाएगी…

शालिनी भी ऐसा ही कुछ सोच रही थी की नवी मुंबई तक लाज और परंपरा के लिहाज में चुपचाप बूत की तरह रहना होगा. फिर जुगल के साथ होने पर नॉर्मली सफर हो पाएगी.

यहाँ तक सब बिल्कुल ठीक था.

लेकिन…

***

कार मुंबई के ट्राफिक को चीरते हुए हाइवे की और जाने लगी. पर हाइवे पर पहुँचते ही दोनों हाइवे की स्थिति देख दांग रह गए. मेट्रो ट्रेन का काम चल रहा था सो कई जगह पर हाइवे पर खुदाई हो रही थी सो ट्राफिक बहुत जाम था.

‘ऐसे ट्राफिक में तो हमें नवी मुंबई पहुंचने में ही तीन घंटे लग जाएंगे!’ जगदीश ने मायूसी से कहा.

‘जी, मैं जुगल को बता देती हूँ की ट्रैफिक बहुत है… वो लोग राह देख रहे होंगे.’

कहते हुए शालिनी ने अपना मोबाइल डायल किया. पर जुगल का फोन बिज़ी आ रहा था.

काफी ट्राई करने के बाद भी जब जुगल का फोन नहीं लगा तब शालिनी ने चांदनी को फोन लगाने की सोची पर तभी जगदीश का फोन बजा. जगदीश ने देखा तो चांदनी का फोन था. जगदीश ड्राइव कर रहा था इस लिए उसने शालिनी को फोन उठाने कहा.

शालिनी ने फोन उठाया तब चांदनी ने कहा ‘आप लोग कब तक पहुंचोगे यहां मेरे मायके?’

शालिनी ने कहा ‘दी, यहां पर बहुत ट्रैफिक है, कुछ कह नहीं सकते.’

चांदनी ने कहा ‘एक प्रॉब्लम हुई है.’

‘आपके बाबूजी ठीक तो है?’ शालिनी ने चिंतित हो फोन स्पीकर पर रखते हुए पूछा.

‘बाबूजी एकदम ठीक है, प्रॉब्लम पूना में हुई है. दुल्हन को मेहंदी लगाने वाली का पता नहीं और आखिरी मौके पर उनको कोई दुल्हन की मेहंदी लगाने वाली एक्सपर्ट मिल नहीं रही.’

‘तो अब?’ शालिनी ने पूछा.

‘तो हम लोग तुम्हारी राह देख रहे है, मुझे अब दुल्हन की मेहंदी लगानी है…पूना जल्द पहुंचना होगा.’

‘पर यहाँ तो ट्रैफिक का सैलाब है चांदनी, हम को काफी समय लगेगा.’ जगदीश ने ड्राइव करते हुए कहा.

‘तो मैं और जुगल निकल जाये पूना ? आप लोग आइए पीछे ?’ चांदनी ने पूछा.

जगदीश और शालिनी ने एक दूसरे को देखा. कोई कुछ बोल नहीं पाया.

‘हैल्लो? जगदीश ? हैल्लो...'

‘हाँ चांदनी…’

‘मैं कह रही हूँ पूना पहुंचना होगा जितना हो सके उतना जल्दी…’

‘तो क्या करें अब?’ उलझन के साथ शालिनी की और देखते हुए जगदीश ने कहा. शालिनी भी इस स्थिति से हैरान हो गई थी.

‘ठीक है चांदनी तुम और जुगल पूना के लिए निकल जाओ.’

शालिनी ने चौंक कर जगदीश की और देखा. चांदनी ने कहा ‘ हैलो शालिनी?’

‘हाँ दी?’

‘तुम जगदीश के साथ आ जाओ पूना, मुझे निकलना होगा - ठीक है?’

‘जी दी, मैंने सुना सब.प्लीज़ जुगल को दीजिये बात करनी है.’

‘हाँ शालिनी?’ जुगल लाइन पर आया.

‘क्या बोलूं मैं अब !’ शालिनी को कुछ सुझा नहीं.

‘परेशानी की कोई बात नहीं, भैया अच्छे ड्राइवर है. आप लोग आइए मैं भाभी को ले कर निकल जाता हूँ. ओके?’

‘जी.…’ शालिनी ने कहा.

फोन कट गया. शालिनी ने आँखे मूंद ली. इस तरह की सफर के लिए मानसिक रूप से बिल्कुल तैयार नहीं थी.

पेशोपेश में तो जगदीश भी था.

पर किसी के पास कहाँ कोई चॉइस थी?

वो चुपचाप गाडी ड्राइव करता रहा. शालिनी गुमसुम हो कर बेमतलब बाहर देखती रही.

करीब दस मिनिट के बाद जगदीश को ख़याल आया की शालिनी कितना अजीब महसूस करती होगी. उसने कहा ‘ बहु…’

शालिनी ने जगदीश की और देखा. जगदीश ने कहा.

‘हम हालत के हाथो फंस गए है. पर तुम जी छोटा न करो. यह ट्रैफिक हल्का होते मैं फटाफट ड्राइव कर के गाड़ी पूना पहुंचा दूंगा.’

अपने जेठ को यूँ तसल्ली देते देख शालिनी को परेशानी में भी हंसी आ गई. वो बोली ‘जी भैया, कोई बात नहीं यह सब अचानक हो गया इस लिए मैं परेशान हो गई.’

‘परेशान तो मैं भी हूँ. हम लोग इतना समय कभी अकेले नहीं रहे और अब अचानक इतना लम्बा सफर! पर तुम फ़िक्र मत करो. आँखे मूंद कर सो जाओ. तुम मेरी.. मतलब एक तरह से मेरी बेटी हो…’ जगदीश को सूझ नहीं रहा था की शालिनी को सहज महसूस कराने वो क्या कहे.

जगदीश की बात से शालिनी भावुक हो गई. ‘थेंक्स भैय्या.’ इतना ही कह पाई.

जगदीश मन ही मन ट्रैफिक को कोसते हुए गाड़ी चलाता रहा.

कुछ देर में शालिनी ने आँखे मूंद ली. जगदीश ने सोचा अब शालिनी की आँख खुले इससे पहले पूना आ जाए तो कितना अच्छा !’

हाई वे पर कार चलाते हुए बगल की कार वाले ने जगदीश को उसकी कार का साइड मिरर टेढ़ा हो गया है यह इशारा किया. जगदीश साइड मिरर सीधा करने लगा. तब उसे मिरर में सोइ हुई शालिनी दिखी. सहसा उसकी बड़ी छाती दिखाई दी. शालिनी का दुपट्टा अभी भी स्तनों को ढांक नहीं रहा था. ऊपर की और मुड़ा हुआ था.

जगदीश को अजीब लगा. उसने ड्राइविंग पर तवज्जो दिया. पर खयालो को कैसे रोके? शालिनी की छाती को एक बार फिर उसने साइड मिरर से निहारा. फिर तुरंत खुद को कोसा : अभी अभी उसे बेटी कहा और अब यूँ छाती देखना क्या अच्छी बात है?

उसने शालिनी के सारे ख़याल हटा कर ड्राइविंग में खुद को जोत दिया.

***

(२ - ये तो सोचा न था… समाप्त, क्रमश:)

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- ये तो सोचा था

[(- ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :जगदीश साइड मिरर सीधा करने लगा. तब उसे मिरर में सोइ हुई शालिनी दिखी. सहसा उसकी बड़ी छाती दिखाई दी. शालिनी का दुपट्टा अभी भी स्तनों को ढाक नहीं रहा था. ऊपर की और मुड़ा हुआ था.

जगदीश को अजीब लगा. उसने ड्राइविंग पर तवज्जो दिया. पर खयालो को कैसे रोके? शालिनी की छाती को एक बार फिर उसने साइड मिरर से निहारा. फिर तुरंत खुद को कोसा : अभी अभी उसे बेटी कहा और अब यूँ छाती देखना क्या अच्छी बात है?

उसने शालिनी के सारे ख़याल हटा कर ड्राइविंग में खुद को जोत दिया.]



कार दौड़े जा रही थी. मुंबई पीछे छूट गया था. ट्राफिक भी अब नॉर्मल हो गया था. सूरज अभी पूरा डूबा नहीं था. शालिनी की आँख लग गई थी.

-अचानक.

अचानक एक धमाका हुआ. जगदीश ने कार रोक दी. शालिनी चौंक कर उठ गई.

‘क्या हुआ भैय्या?’ उसने गभराते हुए पूछा.

‘देखता हूँ.’ कहते हुए जगदीश कार के बाहर निकला.

देखा तो टायर ब्रस्ट हो गया था. जगदीश ने किसी तरह कार साइड में ली. शालिनी भी कार के बाहर आ गई.

‘किस्मत!’ जगदीश ने फीकी मुस्कान के साथ कहा. और स्टेपनी टायर बदलने की शुरुआत कर दी. शालिनी बगल में खड़े है वे के ट्राफिक को निहारने लगी.

जगदीश ने नोटिस किया की शालिनी ने एकदम मामूली किस्म के कपडे पहने थे. शायद सफर के कपडे थे. पर जगदीश ठीक से तैयार हुआ था. सो उसे शालिनी को मामूली कपड़ो में देख बड़ा अजीब लग रहा था. पर वो कुछ बोला नहीं.

इतने में उन के करीब एक बाइक रुकी. बाइक पर दो नौजवान बैठे थे. वो शालिनी को देख कर मुस्कुराये. शालिनी ने नजरें फेर दी. जगदीश देखने लगा की बात क्या है?

बाइक पर से एक जन ने शालिनी से पूछा ‘चलती है क्या?’

शालिनी दंग रह गई और जगदीश का माथा फिर गया. वो खड़ा हुआ. और उसने गुस्से में बाइक वाले से पूछा ‘क्या बोला ?’

दोनों बाइकवालो ने अब जगदीश को देखा. दूसरे ने जगदीश को पूछा ‘ये तेरे साथ है क्या?’

‘किस किस्म की भाषा है यह?’ जगदीश के सर पर खून सवार हो गया.

‘अबे तेरे को पूछा ये रांड तेरे साथ है क्या?’ बाइकवाले ने कहा.

फिर कब कैसे क्या हुआ यह किसी को समझ में नहीं आया. पर दो पल के बाद दोनों बाइकवाले जमीं पर गिर पड़े थे. बाइक भी जमीन पर गिर गई थी. और जगदीश गुस्से से काँप रहा था. शालिनी ने डरते हुए जगदीश को देखा. वो गुस्से से शालिनी से बोला. ‘बैठ जाओ कार में’

शालिनी तुरंत कार में बैठ गई.

दोनों बाइकवाले बाइक के साथ गिर पड़े थे. कराहते हुए खड़े हुए. जगदीश को घूरते हुए अपनी बाइक सम्हाली और चले गए.

जगदीश का सर भन्ना रहा था वो फिर टायर लगाने लगा और शालिनी सहम कर कार में बैठी रही. उसे यह समझ में नहीं आ रहा था की कोई उसे रांड कैसे समझ सकता है! और अपने जेठ के सामने उसे रांड कैसे बुला सकता है!

जगदीश को टायर बदलते हुए ख़याल आ रहा था की शालिनी ने कपडे मामूली पहने है और फिर उस की छाती…

उसने अपने आप को आगे सोचने से रोक दिया.

पंद्रह मिनिट के बाद टायर लग चूका. जगदीश कार में दाखिल हो उससे पहले चार बाइक पर गुंडे जैसे लोग कार को घेर खड़े हुए. उन में से दो जन अभी जगदीश के हाथो मार खा कार गए थे वो भी थे.

एक आदमी ने बड़ा छुरा दिखाते हुए कहा ‘ओ हीरो, चल.’

‘कहाँ ?’ जगदीश ने हैरान होकर पूछा.

‘तेरी माँ की शादी में. चल रे छमक छल्लो बाहर निकल.’ दूसरे ने कार का दरवाजा खोल कर शालिनी को बाहर खींचते हुए कहा.’

‘अरे अरे उसे कुछ मत…’ ऐसा जगदीश बोलने गया पर पहले आदमी ने जगदीश के पेट पर छुरा लगाते हुए कहा. ‘चल बोला ना?’

जगदीश और शालिनी को कार छोड़ कर उनके साथ जबरन जाना पड़ा.

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(३ - ये तो सोचा थासमाप्त, क्रमश:)

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(४- ये तो सोचा न था…)

[३ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :एक आदमी ने बड़ा छुरा दिखाते हुए कहा ‘ओ हीरो, चल.’

‘कहाँ ?’ जगदीश ने हैरान होकर पूछा.

‘तेरी माँ की शादी में. चल रे छमक छल्लो बाहर निकल.’ दूसरे ने कार का दरवाजा खोल कर शालिनी को बाहर खींचते हुए कहा.’

‘अरे अरे उसे कुछ मत…’ ऐसा जगदीश बोलने गया पर पहले आदमी ने जगदीश के पेट पर छुरा लगाते हुए कहा. ‘चल बोला ना?’

जगदीश और शालिनी को कार छोड़ कर उनके साथ जबरन जाना पड़ा.]



जगदीश और शालिनी एक गोडाउन जैसे बड़े कमरे में गुनहगार की तरह खड़े किये गए थे.

उस कमरे में सात आठ गुंडे और खड़े थे. गोडाउन काफी बड़ा था. छत पर काच का एक बड़ा झुमर लगा हुआ था. उस झुमर के बराबर नीचे एक सिंहासन जैसा भव्य आसन था. उस आसन पर उनका सरदार जैसा दिखने वाला एक हट्टा कट्टा आदमी रुआब से बैठा हुआ था. और जगदीश के हाथों मार खाया था वो दोनों गुंडे उस सरदार को क्या हुआ यह बता रहे हे.

सरदार के आसन के सामने एक टेबल था उस पर अपना हाथ मारते हुए सरदार ध्यान से उन की बात सुन रहा था. बात ख़त्म होने के बाद उस सरदार ने जगदीश से पूछा ‘क्यों भाई ? तुम कहाँ के दादा हो जो साजन भाई के एरिये में मारपीट करने आ गए?’

‘मैंने कोई मारपीट नहीं की. बदतमीजी से बात कर रहे थे ये दोनों.’

‘कोई बदतमीजी नहीं की हमने भाई, सिर्फ इतना पूछा इस से की यह रांड तेरे साथ है क्या? तो इसने कब कैसे मारा पता ही नहीं चला!’ बाइक वाले ने अपने सरदार साजन भाई को सफाई दी.

साजन भाई ने शालिनी को निहारा फिर जगदीश को पूछा. ‘रांड को रांड नहीं बोलेंगे तो क्या बोलेंगे?’

जगदीश का माथा फिर ठनका. वो चीख कर बोला ‘ये क्या रांड रांड लगा रखा है? ये कोई रांड नहीं है…’

जगदीश के इस तरह चिल्लाने से सभी चौंक पड़े, सारे गुंडे, साजन भाई और यहाँ तक की शालिनी भी. क्योंकि वो गोडाउन गुंडों से भरा पड़ा था और यहाँ पर इस तरह से चीख कर ललकारना याने मौत को दावत देना.

शालिनी जगदीश के क्रोध से अचंभित थी और सभी गुंडे जगदीश की हिम्मत से.

क्या जगदीश को किसी का डर नहीं था ?

बिल्कुल था. जगदीश को भली भांति समझ में आ रहा था की वो दोनों बुरी तरह फंस चुके है और किसी भी वक्त उन को मारा जा सकता है. जगदीश को गुंडों का डर था भी और नहीं भी. नहीं इसलिए क्योंकि उसे पता था जो डरता है उसे लोग और डराते है. डरा डरा कर मार डालते है. इस लिए वो ऐसे मौके पर डरता कभी नहीं था बल्कि डट कर सामना करता था.

पर आज वो डर भी रहा था. क्योंकि इस वक्त वो अकेला नहीं था. साथ में शालिनी थी. यह लोग शालिनी के साथ कुछ बुरा कर सकते है यह बात उसे अब तक बांधे हुई थी. पर जब शालिनी को इस तरह जलील किया जाने लगा तब उसने न आव देखा न ताव और जवालामुखी की तरह उसका दबाया हुआ गुस्सा फुट पड़ा.

साजन भाई ने जगदीश को कुछ कहना चाहा पर तभी उसका फोन बजा. उसने फोन पर बात की तो उसकी मुट्ठी गुस्से से भींच गई. ‘तुम वही रहो, मैं अभी आता हूँ.’ कह कर साजन भाई ने फोन काटा. फिर अपने गुंडों से कहा ‘पक्या और उस के आदमी दिखे है. मंदिर वाली गली में…’

साजन भाई का इतना कहने पर सारे गुंडे एकदम एलर्ट हो गए. साजन भाई ने उठते हुए कहा ‘चलो आज साले का किस्सा ही ख़त्म कर देते है.’

‘भाई आप को आने की जरूरत नहीं.’ एक गुंडे ने साजन भाई से कहा. तुरंत बाकी सब बोले. ‘भाई टेंशन मत लो हम सम्हाल लेंगे.’

साजन भाई ने सब की और देख कर पूछा. ‘पक्का ?’

‘पक्का.’ ‘पक्का.’ ‘पक्का’ सात आठ आवाज आई.

साजन भाई फिर अपने आसन पर बैठते हुए बोला. ‘ठीक. तुम सब पहुंचो और देखना पक्या का एक भी पिल्ला बचने न पाए.’

सारे गुंडे फटाफट चले गए. साजन भाई फोन लगा कर किसी को कुछ सूचना देने लगे.

जगदीश और शालिनी ने एक दूसरे को देखा. जगदीश ने आँखों से शालिनी को हौसला दिया.

साजन भाई ने अपना फोन करीब के टेबल पर रखा और जगदीश से कहा

‘वाव्वा..वाव्वा…. क्या दहाड़ा रे तू?’ फिर जगदीश की नकल करते हुए बोला ‘यह कोई रांड नहीं है !’

‘अबे साले!’ साजन भाईने जगदीश से कहा ‘इसके बोब्बे देख. कितने बड़े बड़े है! फिर इस के कपडे देख और तेरे कपड़े देख -ये क्या तेरी घरवाली है? घरवाली को कोई ऐसे रखता है?’

जगदीश सहम गया. शालिनी को भी अपने स्तन की साइज़ को ले कर कॉम्प्लेक्स हो गया.

जगदीश करारा जवाब देने ही वाला था की साजन भाई ने टेबल के ड्रॉअर से एक रिवाल्वर निकाल कर टेबल पर रखते हुए आगे कहा.

‘ये साजन भाई का अड्डा है. यहाँ साजन भाई से ऊँची आवाज में कोई बात नहीं कर सकता. तूने की. ठीक है. तेरी बात शायद सही है सो तू आपा खो बैठा. मैं यह भी मानता हूँ कि यह कोई रांड नहीं होगी. मैं सॉरी बोलता हूँ.’

शालिनी और जगदीश दोनों यह सुन कर दंग रह गए. साजन भाई का ऐसी नर्मी से बोलना दोनों के लिए आश्चर्य की बात थी. जगदीश चुप रहा. साजन भाई ने कहा.

‘पर मेरे कुछ सवाल है. मुझे उस के जवाब चाहिए.’

जगदीश और शालिनी ने एक दूसरे को देखा.

(४ - ये तो सोचा न था…समाप्त, क्रमश:)

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(५ - ये तो सोचा न था…)

[(४– ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा : जगदीश करारा जवाब देने ही वाला था की साजन भाई ने टेबल के ड्रॉअर से एक रिवाल्वर निकाल कर टेबल पर रखते हुए आगे कहा.
‘ये साजन भाई का अड्डा है. यहाँ साजन भाई से ऊँची आवाज में कोई बात नहीं कर सकता. तूने की. ठीक है. तेरी बात शायद सही है सो तू आपा खो बैठा.मैं यह भी मानता हूँ की यह कोई रांड नहीं होगी. मैं सॉरी बोलता हूँ.’

शालिनी और जगदीश दोनों यह सुन कर दंग रह गए. साजन भाई का ऐसी नर्मी से बोलना दोनों के लिए आश्चर्य की बात थी. जगदीश चुप रहा. साजन भाई ने कहा. ‘पर मेरे कुछ सवाल है. मुझे उस के जवाब चाहिए.’

जगदीश और शालिनी ने एक दूसरे को देखा.]


जगदीश और शालिनी ने एक दूसरे को देखा. साजन भाई ने आगे कहा.

‘अगर मैंने कहा वैसा तुम दोनों करोगे तो तुम्हें कोई छुएगा भी नहीं. न मैं, न मेरा कोई आदमी. पर अगर मेरी बात नहीं मानी तो तुम दोनों को बचाने वाला यहां कोई नहीं.’

-कोई छुएगा नहीं - यह तसल्ली इस मौके ओर जगदीश के लिए बहुत बड़ी रियायत थी. उसे बार बार यही सवाल सता रहा था कि शालिनी के साथ क्या होगा ? भले उस की जान चली जाए पर बहु के साथ कोई दुर्व्यवहार नहीं होना चाहिए…

उसने यह बात कन्फर्म की : ‘कोई हम दोनों को छुएगा भी नहीं यह वादा है?’

‘एकदम पक्की बात. वादा.’

जगदीश और शालिनी ने एक दूसरे को फिर देखा. इस आदमी का क्या भरोसा? लेकिन और कोई चारा भी दिख नहीं रहा था… जगदीश ने साजन भाई से कहा. ‘ठीक है. आप कहेंगे वह हम करेंगे.’

साजन भाई ने कहा ‘पहले कुछ सवालों का जवाब दो फिर मैं बताऊंगा क्या करना है.’

‘पूछो’

साजन भाई ने टेबल पर से रिवॉल्वर उठाई और उसे सहलाते हुए पूछा.

‘ये बाजारू लड़की नहिं तो फिर कौन है?’

‘यह मेरी बहु है, मेरे छोटे भाई की पत्नी.’

‘ओहो… ! छोटे भाई की पत्नी! बहु !’ मुस्कुराकर शालिनी को अजीब तरह से निहारते हुए साजन भाई ने जगदीश का जवाब दोहराया. फिर अपना चेहरा सख्त बना कर उस ने जगदीश से पूछा :

‘अगर यह तुम्हारे परिवार की है तो इस के कपड़े इतने मामूली क्यों है?’

जगदीश क्या बोलता?

शालिनी ने कहा ‘हम लोग पूना जा रहे है. यह मैंने सफर के लिए ऐसे कपडे पहने है.’

साजन भाई ने कुछ देर सोचा फिर शालिनी से पूछा. ‘तुम्हारे बोबले इतने बड़े क्यों है?’

यह सुन जगदीश की आँखों में खून उतर आया पर उसी वक्त उसने महसूस किया की शालिनी के स्तनों का इस तरह किसी का जीकर करना उसे उत्तेजित भी कर रहा है. अपने लिंग में एक सरसराहट का अहसास पा कर वो हैरान भी हुआ और शर्म भी आने लगी. इस मिश्र भाव के कारण उसका क्रोध मंद हो गया. उसने अपनी आवाज को सख्त बनाने की कोशिश के साथ पूछा ‘ये क्या बदतमीज़ी है? ये कोई सवाल है?’

‘फ़ालतू की बात का मेरे पास टाइम नहीं. सारी बदतमीज़ी की जड़ यह बड़े बड़े बोबले है.’ साजन भाई ने कुछ चिढ के साथ कहा. ‘मेरे आदमी जिन्हें तुमने मार गिराया, पता है उन्होंने क्या बताया ? वो लोगो ने इसे रांड समझा. क्यों समझा ? ऐसे सस्ते कपडे और बड़े बोबले ले कर यह हाइवे पर यूँ खड़ी थी जैसे कोई रंडी ग्राहक की राह देख रही हो.’

इस दलील का जगदीश या शालिनी क्या जवाब दें ?

‘बोल?’ साजन भाई ने शालिनी से पूछा. ‘बता, तेरे बोबले बड़े है की नहीं ?’

शालिनी ने शर्म से आँखे झुका दी. साजन भाई ने अचानक तेजी से रिवॉल्वर उठा कर जगदीश और शालिनी के बीच में निशान ले कर फायर किया. दोनों ने चौंक कर मुड़ कर पीछे देखा तो पीछे की दीवार पर गोली लगी थी. साजन भाई ने फिर से रिवाल्वर सहलाते हुए कहा. ‘एक सवाल मैं दो बार नहीं पूछता. दूसरी बार मेरा यह घोडा पूछता है. यह सिर्फ नमूना था. अगली बार जवाब नहीं आएगा तो निशाना बन जाओगे. मुझे जवाब चाहिए. तुम दोनों में से कोई भी बोले - चलेगा पर जवाब दो.’

शालिनी और जगदीश यह सुन कर कांप उठे. साजन भाई ने फिर से रिवाल्वर दागनी चाही. यह देख मारे डर के शालिनी बोल पड़ी. ‘जी…जी. दे रही हूँ जवाब…’

साजन भाई मुस्कुराया. ‘शाब्बाश! बताओ.’

जगदीश शर्म से अपनी आँखे मींच गया और सोचने लगा- अपने स्तन बड़े क्यों है - ऐसे सवाल का शालिनी क्या जवाब देगी?

शालिनी ने मुश्किल से कहा. ‘माफ़ी चाहती हूँ, यह बचपन से ही थोड़े बड़े है…और मुझे पता नहीं था की खुली सड़क पर बाजारू औरतें ऐसे खड़ी होती है. सोरी. आइंदा मैं ऐसे खड़ी नहीं रहूंगी.’

साजन भाई ने गहरी सांस लेते हुए ‘हम्म…’ कहा.

जगदीश इस पगलाई हुई हालात से ऊब गया था.ये क्या एब्सर्ड बातें चल रही थी !

साजन भाई के आसन के ऊपर छत पर टंगे झूमर को बेमतलब देखते हुए उसने सोचा : कब यहाँ से जान छूटे और कब वो शालिनी के साथ पूना पहुंचे - तभी साजन भाई ने कहा.

‘ओ हीरो, यह सवाल सिर्फ तेरे लिए है… तू ही जवाब देगा, खबरदार अगर ये लड़की कुछ बोली.’

दोनों ठगे से साजन भाई को देखने लगे.

‘इस के बोबले की साइज़ बताओ.’

जगदीश सन्न रह गया. पर उसी पल उस के लिंग ने इस सवाल से एक झटका खाया. फलेश में उसे कार की साइड मिरर से देखे हुए शालिनी के स्तन की झलक याद आ गई….

शालिनी की तो हालत शर्म से पतली हो गई.

जगदीश ने नरम आवाज में कहा.

‘देखिए मैं उस टाइप का आदमी नहीं हूँ, मुझे इस सवाल का जवाब नहीं पता.’

‘अंदाज से बता. ‘

‘प्लीज़, ऐसी बातें न करें.’ जगदीश ने विनती की. उसे खुद समझ नहीं आ रहा था की शालिनी के बारे में ऐसी बातें सुन कर उसे गुदगुदी हो रही थी या गुस्सा आ रहा था या दोनों ?

‘पर तुझे तो अंदाजा भी नहीं होगा ना साइज़ का! एक काम करो बहु रानी, कमीज़ के हुक खोलो…’

साजन भाई ने बहुत सहजता से कहा पर जगदीश के लिए यह पानी सर के ऊपर चढ़ गया था.

‘यह आप कैसी गिरी हुई बात कर रहे हो?’ जगदीश ने क्रोध से कांपती आवाज़ में पूछा.

‘अरे?’ साजन भाई को जैसे आश्चर्य हुआ की जगदीश क्यों विरोध कर रहा है! उसने जगदीश से समझा- बुझाने के स्वर में कहा, ‘अच्छा, अपनी आँखे बंद कर और तेरी बहु के बोबले बंद आँखों के सामने ला.’

जगदीश देखता रह गया - क्या यह आदमी पागल है?

‘अबे बोला ना बंद कर अपनी आँखे!’ साजन भाई गुर्राया.

जगदीश ने अपनी आँखे बंद की.

‘अब इन बोबलो का ध्यान धर.’ जगदीश को साजन भाई की आवाज सुनाई दी. न चाहते हुए भी जगदीश की कल्पना में शालिनी के विशाल वक्ष लहराने लगे… उसने लिंग में एक गर्माहट महसूस की…

उधर शालिनी शर्म से जमीं में गड़ी जा रही थी… क्या सच में जेठ जी मेरे स्तनों को अपनी कल्पना में देख रहे होंगे! उसने सोचा और उसने अपनी योनि में रस झरता महसूस किया. अपने शरीर की इस हरकत से वो परेशान हो गई….

‘अब खोल आँखे.’

जगदीश ने आँखें खोल दी.

‘कुछ समझ में आया कितनी साइज़ होगी?’

जगदीश ने कहा. ‘प्लीज़ ऐसी अश्लील बातें न करें…’

‘अरे अश्लील की अभी बोलू वो. तुम साइज़ क्यों नहीं बता पाते वो समझ में नहीं आया क्या? तूने ढंग से इन बोबलो को अभी देखा ही नहीं ! इस लिए मैंने इसे कहा की कमीज़ का हुक खोल और दिखा अपने जेठ को एक बोबला, फिर उसे साइज़ कितनी है यह सूझेगा…’

शालिनी अपने स्तन उसे दिखा रही है इस कल्पना से जगदीश का गला सुख गया और लिंग तन गया. क्षोभ और उत्तेजना की इस अजीब मिलावट ने उसकी आवाज को भी असामान्य कर दिया. बिना आत्मविश्वास की उस आवाज को असरदार बनाने उसने ऊँचे स्वर में कहा. ‘आप के हाथ में रिवाल्वर है तो क्या कुछ भी करोगे?’

‘अबे इस घोड़े की माँ की तो!’ ऐसा दहाड़ कर साजन भाई ने अपनी रिवोल्वर आसन के सामने पड़े टेबल पर रख दी और कहा.

‘ये लो हटा दिया घोडा !’

दोनों ने चैन की सांस ली.

‘अब तुम कमीज़ के हुक मत खोलो. ’ साजन भाई ने शालिनी से कहा.

दोनों चौंके पर दोनोंने और राहत महसूस की.

पर दूसरे ही पल साजन भाई ने जगदीश से कहा. ‘इस की कमीज़ के बदले तुम अपनी पैंट उतारो.’

फिर शालिनी और जगदीश को झटका लगा.

‘जल्दी बोलो. पेंट उतरेगी या कमीज़?’

जगदीश चुपचाप अपना बेल्ट खोलने लगा. शालिनी ने लजा कर मुंह फेर लिया. जगदीश ने पेंट घुटनों तक उतार दिया. उसके लिंग के हिस्से पर शर्ट का छोर लटक रहा था. साजन भाई ने जगदीश को बेरुखी से कहा. ‘अपनी शर्ट हटा बे.’

जगदीश को बहुत शर्म आ रही थी क्योंकि पिछले कुछ मिनट में जो कुछ हुआ उससे उसका लिंग एकदम उत्तेजित अवस्था में आ गया था. उसने हिचकिचाते हुए अपनी शर्ट को ऊपर किया. साजन भाईने जगदीश की अंडरवियर में तने हुए लिंग को देख कर ठहाका मार कर कहा. ‘अबे ये तो तना हुआ है!’

जगदीश क्या जवाब देता?

‘बहुरानी? देखो तुम्हारे जेठ जी का लोडा तना हुआ है कि नहीं?’

शालिनी ने शर्माते हुए तिरछी नजर से देखा और हाँ में सर हिलाया.

‘जबान से बोलो, सर मत हिलाओ.’ साजन भाईने कड़क आवाज में कहा.

‘जी हाँ, तना हुआ है.’

यह सुन जगदीश का लिंग और तन गया. साजन भाई ने कहा ‘क्या तना हुआ है? साफ़ साफ़ बताओ, शर्माओ मत. -’

‘जी… वो जेठ जी का …’

शालिनी वाक्य पूरा नहीं कर पाई.

‘शाबाश …शाबाश…, आगे बोलो?’

‘उनका… लिंग तना हुआ है…’ किसी तरह शालिनी ने बोल दिया. शालिनी की यह बात सुन कर जगदीश का लिंग अब अपने तूफ़ान पर पहुंचा.

‘हा… हा….हा…. ‘ ठहाके के साथ हंसते हुए साजन भाई ने कहा. ‘खुद खड़ा भी करवाती है और फिर जब खड़ा हो जाए तो शरमाती भी है!’

शालिनी और जगदीश भयंकर दोष भावना में धंस गए…

‘सुन बहु के जेठ!.’ साजन भाई ने गरज कर डांट ने के सुर में कहा. ‘जो शरीफाई तुम चोद रहे थे वो सच होता तो अपनी बहु के बोबले की साइज़ की बातोसे तुम्हारा सामान यूँ परवान पर नहीं होता. अगर तुम्हारे लोडे में कोई हरकत नहीं हुई होती तो मैं तुम दोनों को इसी वक्त यहां से चले जाने देता.इसी वक्त! पर तुम खुद अपना हाल देख सकते हो की तुम कितने साफ़ दिल इंसान हो. इसलिए नाटक बंद करो. समझ में आया? ये जो हो रहा है वो मेरे घोड़े की वजह से नहीं बल्कि ये सब तेरे लोडे की डिमांड है. खुद चेक कर ले.’

जगदीश के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था.जैसे कोई चोरी करते हुए वो रंगे हाथ पकड़ा गया हो...उसकी हालत इतनी खस्ता थी की उसे अपना पेंट फिर ऊपर चढाने का भी होश नहीं बचा था.

( प्रिय पाठकों, साजन भाई के तर्क में दम है? प्लीज़ बताइयेगा। )

(५ - ये तो सोचा न था…समाप्त, क्रमश:)

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