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Incest ये तो सोचा न था…

Tri2010

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(६- ये तो सोचा न था…)

[(५ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा : ‘सुन बहु के जेठ!.’ साजन भाई ने गरज कर डांट ने के सुर में कहा. ‘जो शरीफाई तुम चोद रहे थे वो सच होता तो अपनी बहु के बोबले की साइज़ की बातोसे तुम्हारा सामान यूँ परवान पर नहीं होता. अगर तुम्हारे लोडे में कोई हरकत नहीं हुई होती तो मैं तुम दोनों को इसी वक्त यहां से चले जाने देता.इसी वक्त! पर तुम खुद अपना हाल देख सकते हो की तुम कितने साफ़ दिल इंसान हो. इसलिए नाटक बंद करो. समझ में आया? ये जो हो रहा है वो मेरे घोड़े की वजह से नहीं बल्कि ये सब तेरे लोडे की डिमांड है. खुद चेक कर ले.’

जगदीश के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था.जैसे कोई चोरी करते हुए वो रंगे हाथ पकड़ा गया हो...उसकी हालत इतनी खस्ता थी की उसे अपना पेंट फिर ऊपर चढाने का भी होश नहीं बचा था. ]


साजन भाई ने कहा. ‘हाँ तो बहुरानी हम कहाँ थे?’

शालिनी ने सहम कर साजन भाई की और देखा.

‘फिर से बताना होगा तुम्हें अपने जेठ जी को क्या दिखाना है वो?’ साजन भाई ने शालिनी से पूछा.

अब तो साजन भाई ने रिवॉल्वर भी हटा दी थी पर उसकी आवाज में वो प्रभाव था और उसकी बातों ने शालिनी और जगदीश के मनो मष्तिष्क में वो बवाल खड़ा कर दिया था की अब वो साजन भाई के आदेशों का पालन यूँ कर रहे थे जैसे सम्मोहित हो गए हो. अचानक शालिनी और जगदीश को अपने अंदर उठ रही कामवासना की लहरों के कारण ऐसी शर्मिंदगी होने लगी थी की अपने आप को गुनहगार समझ कर वो जैसे कोई सजा भुगत रहे थे!

शालिनी ने शरमाते हुए अपनी कमीज़ के हुक खोलने शुरू किये. साजन भाई ने एकदम सहजता से - बिना किसी उत्तेजना के कहा. ‘सारे हुक मत खोलना. तुम्हे कमीज़ नहीं उतारना . अपने जेठ जी को दर्शन करवाने सिर्फ एक बोबा बाहर करना है…ठीक से निपल दिखना चाहिए ’

शालिनी लज्जित होते हुए अपना कमीज़ ढीला कर के ब्रा खिसका कर अपना एक स्तन बाहर निकालने की कोशिश करने लगी…

जगदीश शालिनी की यह हरकत देखकर बौखला भी रहा था, उसे गुस्सा भी आ रहा था और अजीब सनसनी भी महसूस कर रहा था…

अंतत: शालिनी ने शरमाते शरमाते अपना एक स्तन नग्न कर के जगदीश के सामने नुमाइश की…

‘देख हीरो इसे और बता साइज़… जल्दी मत कर… पहले ध्यान से देख ले…’

शालिनी को भयंकर लाज आ रही थी. अपना स्तन खुद वो अपने जेठ जी को बता रही थी! इस से गंदी बात और क्या हो सकती है? उसे मर जाने का मन हो रहा था.और उसकी योनी फिर गीली गीली होने लगी थी.

क्या पता इस त्रासदी को कितने पल बीते या मिनिट! जगदीश और शालिनी का समय के साथ नाता टूट चुका था. वासना, दोष भावना और डर के रहस्यमय भंवर में वो डूबे जा रहे थे जहां एक बहू अपने जेठ को अपना स्तन दिखा रही थी और जेठ उस स्तन को आँखे फाड़ कर बेतहाशा घूरे जा रहा था…

‘बहुत हो चुका! अब शो बंद !’ साजन भाई ने ऊँची आवाज़ में कहा.

शालिनी ने तेजी से स्तन को कमीज़ के अंदर किया और हुक लगाने लगी. जगदीश किसी सपने से जगा हो उस तरह साजन भाई की ओर देखने लगा.

‘अब बोल क्या साइज़ होगी बहु के बोबे की?’

जगदीश को कुछ सूझ नहीं रहा था.

‘अगर ईमानदारी से साइज़ नहीं ताड़ पाया तो उसकी सजा मिलेगी…’

जगदीश डर गया : सजा क्या होगी?

सजा की बात से शालिनी भी डर गई. उसने मुंह से पसीना पोंछने के बहाने अपने होठ ढंकते हुए जगदीश को फुसफुसाहट की आवाज में कहा. ‘३८ बोलिए.’

शालिनी के मुंह से उसके स्तन की साइज़ सुन कर जगदीश का लिंग झटका खा कर स्प्रिंग की तरह उछला. उसने अजीब आवाज में साजन भाई से कहा. ‘शायद ३८.’

साजन भाई ने मुस्कुराकर शालिनी से पूछा. ‘क्यों रे बहुरानी, जेठ जी का अंदाजा सही है क्या?’

शालिनी ने शरमाते हुए कहा. ‘जी बिल्कुल सही साईज कहा इन्हों ने.’

साजन भाई ठहाका मारकर हसते हुए बोला. ‘साला बोलता है की मैं वैसा आदमी नहीं - फिर भी एकदम सही साईज बताया! मतलब चोरी चोरी तेरी बहु के बोबले ताड़ता रहता है - क्यों?’

जगदीश ने शर्म से सर झुका दिया.

साजन भाई ने कहा. ‘बहुरानी अब थोड़ा मुड कर खड़ी हो जाओ, जेठ जी को अपना पिछवाड़ा दिखाओ.

दोनों फिर चौंके पर क्या करते? शालिनी अपनी बेक जगदीश की और करके खड़ी रही.

‘उफ्फ यह लंबी कमीज़! ऊपर उठाओ, कुछ दिखाई नहीं दे रहा.’

जगदीश को बुरा लगा पर वो चुप रहा. शालिनी ने लजाते हुए अपनी कमीज़ ऊपर उठाई. शालिनी के दोनों घडे सलवार में लिपटे हुए थे. फिर से न चाह कर भी जगदीश उसे देख उत्तेजित होने लगा.

‘ओफ्फो, कुछ नहीं दिख रहा, सलवार सरकाओ.’

शालिनी सहम गई. जगदीश भी मायूस हो कर साजन भाई की और देख कर बोला. ‘अब जाने दो बहुत हो गया…’

‘यार तुम लोग पढ़े लिखे समझदार लोग हो. क्यों मुझ जैसे आदमी से पंगा लेते हो?’ कुछ नाराजगी से साजन भाई ने कहा.

यह सुन कर शालिनी को बहुत डर लगा, पता नहीं यह पागल आदमी क्या कर दें !

‘जी.. जी, मैं सलवार सरका रही हूँ…’ कह कर तुरंत शालिनी ने तेजी से नाडा खोल कर अपनी सलवार सरका दी. जगदीश देखता रह गया. शालिनी ने बिना किसी के कहे खुद फिरसे अपनी कमीज़ ऊँची उठाई. जगदीश शालिनी की इस हरकत से बेहद उत्तेजना महसूस कर रहा था… उसने देखा की काले रंग की पेन्टी में दो गागर जैसे गोले ऐसी तंग हालत में उभरे हुए थे जैसे दो बड़े गुब्बारों को किसीने बेरहमी से दबा रखा हो!

‘देख और बता इन कलिंगरो की साइज़’ साजन भाईने कहा.

जगदीश ने साजन भाई को देखा.

‘बहु का खजाना छोड़ कर मुझे क्या देखता है? चल चल साइज़ बता!’

जगदीश अब जेन्युइन्ली शालिनी के नितंब की साइज़ सोचने लगा. भय, दोष भावना, वासना और त्रास से सोच के दम घुटा देने वाले दबाव में भी जगदीश शालिनी के नितंब की तुलना अपनी पत्नी चाँदनी के नितंब के साथ किये बिन न रह सका : शालिनी के नितंब चांदनी से थोड़े छोटे है…

तब शालिनी ने फिर फुसफुसाकर कहा. ‘३६ बोलो.’

जगदीश शालिनी को इस तरह अपने नितंब की साइज़ बताते हुए सुन फिर बहुत उत्तेजित हो गया. उसने साजन भाई की और देख कर कहा. ‘मेरे ख्याल से ३६…’

साजन भाई ने शालिनी से पूछा. ‘जेठ जी इम्तिहान में पास की फेइल बहुरानी?’

‘जी, सही बोले है जेठ जी.’ शर्म से पानी पानी हो कर शालिनी ने कहा. इन सब से उसकी पेंटी में भी पानी पीच पीच होने लगा था. इस बात से वो और प्रताड़ित हो रही थी.

‘चलो बहु अब इस तरफ मुड कर जेठजी के औजार का मुआयना करो और मुझे साइज़ बताओ.’

शालिनी मुड़ी और जगदीश की और लजा कर देखने लगी. जगदीश बूत की तरह खड़ा था.

‘ओ खुदगर्ज कमीने! बहु का माल ताड़ेगा और अपना नहीं दिखायेगा? दिखा ठीक से बेचारी को कुछ दिख नहीं रहा.’

बौखला कर जगदीश ने अपनी शर्ट के छोर को अपने अंडरवियर पर से उठाया और फुसफुसाहट की आवाज में बोला.

‘सात इंच.’

यह बोलते हुए उसे लगा कि उस का लिंग अंडरवियर फाड़ कर बाहर आ जाएगा…

‘जी, यह सात इंच का होगा.’ शालिनी ने तुरंत नजरे हटा कर शर्म से टपकती हुई आवाज में साजन भाई से कहा.

‘वाह रे मेरी संस्कारी बहुरानी, बिना पूछे जेठ जी का लोडा नाप के जवाब दे दिया?’

शालिनी क्या बोलती!

इतने में साजन भाई का फोन बजा. किसका फोन है यह देख कर साजन भाई ने तुरंत फोन उठाया.

‘अबे फोन पर टाइम वेस्ट मत कर, पहले पक्या के सारे लोगों को खत्म कर…’

साजन भाई ने गुस्से में कहा और अगला क्या जवाब दे रहा है उसे सुनने में उलझ गया.फोन पर की बात शायद बहुत परेशान करने वाली होगी क्योंकि साजन भाई विचलित हो कर अपने आसन से उठ कर चक्कर काटने लगा था.

तभी अचानक रोने की आवाज सुन कर जगदीश ने शालिनी की और देखा. वो सुबक सुबक कर रो रही थी.. शालिनी को यूँ रोते हुए देख कर जगदीश जैसे होश में आया. उसके दिलो दिमाग पर फ़ैल रहे वासना का जाल जैसे पिघलने लगा. गोया वो सम्मोहन से बाहर आया! उसने अपने आप को देखा : पेंट घुटनों तक उतार कर वो शालिनी के सामने क्या कर रहा है?


( - ये तो सोचा न था…समाप्त, क्रमश:)

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(७ - ये तो सोचा न था…)

[ (६ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा : ‘अबे फोन पर टाइम वेस्ट मत कर, पहले पक्या के सारे लोगों को खत्म कर…’

साजन भाई ने गुस्से में कहा और अगला क्या जवाब दे रहा है उसे सुनने में उलझ गया.फोन पर की बात शायद बहुत परेशान करने वाली होगी क्योंकि साजन भाई विचलित हो कर अपने आसन से उठ कर चक्कर काटने लगा था.

तभी अचानक रोने की आवाज सुन कर जगदीश ने शालिनी की और देखा. वो सुबक सुबक कर रो रही थी.. शालिनी को यूँ रोते हुए देख कर जगदीश जैसे होश में आया. उसके दिलो दिमाग पर फ़ैल रहे वासना का जाल जैसे पिघलने लगा. गोया वो सम्मोहन से बाहर आया! उसने अपने आप को देखा : पेंट घुटनों तक उतार कर वो शालिनी के सामने क्या कर रहा है? ]


फोन पर दहाड़े मार कर किसी पर आग बबूला होते हुए साजन भाई को देख जगदीश ने सोचा : कौन है यह आदमी जो मेरे सामने मेरे घर की इज्जत के चिथड़े उडा रहा है? और मैं क्या बेवकूफों की तरह इस की कठपुतली बन कर नाच रहा हूँ ?

जगदीश को आपे में आने के लिए दो बात असरदार बनी :

एक तो साजन भाई का फोन पर व्यस्त हो जाना. इस से हुआ यह की साजन भाई जो वासना का खेल शुरू किये थे और जिस में जाने अनजाने लिप्त हो कर जगदीश खुद को खो रहा था उस में रुकावट आई. साजन भाई की लगातार चल रही बातें थमी, जिससे जगदीश का दिमाग पोज़ मोल्ड पर गया और क्या हो रहा है यह सोचने समझने काबिल हुआ.

दूसरी बात थी शालिनी का सुबक कर रोना. शालिनी का रोना इस बात की निशानी थी की जो हो रहा है वो बहुत हद तक न गँवारा है.

जगदीश के सर पर खुन्नस चढ़ गया. उसने अपना पेंट ठीक किया.बेल्ट लगाया. शालिनी के पास गया. शालिनी कुछ समझे उससे पहले उसने शालिनी के गले से दुपट्टा खींचा. शालिनी ने डर कर अपने हाथ अपनी छाती पर ढांक दिए. पर जगदीश ने शालिनी की ओर नजर भी नहीं डाली. उसने तेजी से दुपट्टे को अपने पंजे पर लपेटा और साजन भाई ने टेबल पर रखी हुई रिवाल्वर उठाई.

साजन भाई ने यह देखा और फोन छोड़ कर सकपका कर जगदीश को देखने लगा. शालिनी डर के मारे कांपने लगी.


‘रिवाल्वर मुझे देदो…’ साजन भाई ने गुर्रा कर कहा. जवाब में जगदीश ने गोली चला दी. साजन भाई और शालिनी दोनो चौंक कर देखते रह गए. गोली साजन भाई के पीछे की दीवार पर लगी थी. जिस तरह साजन भाई ने जगदीश और शालिनी को डराया था उसी तरह जगदीश ने साजन को दीवार पर गोली मार कर डराया.

साजन भाई अब ढीला पड़ गया. ‘मुझ पर गोली मत चलाना…’ साजन भाई ने मिन्नत वाली आवाज में कहा.

जगदीश ने साजन भाई को इशारे से बैठ जाने कहा.

साजन भाई डर कर अपने आसन पर बैठ गया.

‘निकल गई हेकड़ी ?’ जगदीश ने साजन भाई को ताकते हुए कहा.

साजन भाई ने सर झुका दिया और बोला. ‘सोरी भाई, गोली मत चलाना…प्लीज़.’

जगदीश ने साजन भाई को निहारा और उसे याद आया की कैसी दरिंदगी से यह आदमी पेश आया था. उसका क्रोध काबू में नहीं रहा. उस ने रिवाल्वर उठाई. साजन भाई ने यह देखा और वो बौखला गया. जगदीश के चेहरे पर जुनून देख शालिनी भी सहम गई. वो अपने जेठ को हत्यारा बनते हुए नहीं देख सकती थी. वो जगदीश को रोकना चाहती थी पर उस की हिम्मत नहीं हो रही थी.

इतने में जगदीश ने गोली चला दी.

पर साजन भाई और शालिनी दोनों यह देख कर हैरान हो गए की जगदीश ने गोली साजन भाई पर नहीं चलाई!

जगदीश ने गोली कहां चलाई? और क्यों !

उसने साजन भाई पर गोली क्यों नहीं चलाई?

***

पूना में शादी वाले गेस्ट हाउस में चांदनी शालिनी और जगदीश को फोन लगा लगा कर परेशान गई.

दोनों का फोन लग नहीं रहा था.

कहां तक पहुंचे होंगे? कब यहां आएंगे? - चांदनी को फ़िक्र हो रही थी.

शायद उनकी जुगल से कोई बात हुई हो? चांदनी ने जुगल को ढूंढा.

जुगल ने शादी वाले यजमान परिवार दीक्षित परिवार के एक रिलेटिव ग्रुप से बैठक जमा दी थी और वो लोग जुआ खेल रहे थे. करीब के सोफे के नीचे सब के शराब के प्याले छिपे हुए थे. चोरी चोरी वो सभी ड्रिंक भी ले रहे थे.

दुल्हन के बड़े भाई सुधींद्र ने प्रसनली सारे महेमानो के लिए शराब का इंतझाम किया था. जुगल से सुधींद्र ने पूछा था की वो कौन सी शराब पसंद करेगा? तब जुगल ने कहा था : वोडका. क्योंकि वो ही एक शराब है जो जितना चढ़ती है उतना स्मेल नहीं मारती.’

सुधींद्र ने हंस कर कहा. ‘स्मेल की चिंता छोड़ कर आराम से पीओ जुगल भाई, शादी में आये हो कोई कॉलेज फंक्शन में नहीं.’

जुगल को जुए से ज्यादा ड्रिंक में मज़ा आता था. इसी लिए वो भी उनमे जुड़ गया था. वर्ना पहचानता किसी को नहीं था. पर हमारे यहाँ शादी ब्याह में ऐसे ही अनजान लोगों में परिचय बनता और संवरता है.

खेर, जब चांदनी जुगल को ढूंढती हुई वहां आई तब सब के दो दो पेग हो चुके थे.

‘जुगल, तेरे बड़े भैया से या शालू से कुछ बात हुई क्या ?’ चांदनी ने पूछा.

‘भाभी मां.’ चौंक कर जुगल बोला.’ फिर खुद को सम्हाल कर जवाब दिया. ‘नहीं तो. क्यों?’

‘तू शराब पी रहा है ?’ चांदनी ने नया सवाल किया.

‘शराब!’ जुगल ने हड़बड़ा कर कहा. ‘नहीं नहीं भाभी मां.’

चांदनी ने बाकी सब को देखा, वो सब भी ताश खेलना रोक कर चांदनी को निहार रहे थे.

वास्तव में सभी चांदनी के कमर तले फैले नितंब के घेरे से मोहित थे. चांदनी के नितंब ध्यानाकर्षक स्तर के पुष्ट थे.

चांदनी जब से दीक्षित परिवार के पूना के इस गेस्ट हाउस में पहुंची तब से अब तक सारे गेस्ट चांदनी के नितंब को अपनी नजरो से चाटे जा रहे थे. औरतो की नजर में जलन और मर्दों की नजर में ललक थी.

जब वो दुल्हन पियाली को मेहंदी लगा रही थी तब तो खुद यजमान, मिस्टर सोहनलाल दीक्षित, यानी दुल्हन के पिता तक चांदनी के नितंब वैभव से चकित हो गए थे. और ठगे से हो कर उसे देखते रह गए थे - अपना स्टेटस और मौके की नजाकत तक को बिसरा कर…

चांदनी के नितंब की गोलाई आदर्श आकार में थी ही , इस के अलावा जब वो चलती थी तब उसका डोलन अन्य स्त्रीओ की तुलना में थोड़ा अलग होता था. सामान्य तौर पर कोई भी स्त्री जब चलती है तब उसके नितंब डोलते है, मटकते है. यह सहज है.

पर चांदनी के नितम्बों में एक विशेष बात थी. उसके नितंब डोलने के साथ साथ एक हलकी सी कंपन के थरथराते थे. यह थरथराहट कमोबेश पानी के जहाज में ऊंचाई पर कस के बांधे गए पतवार पर ज हवा की लहर का दबाव आता है तब वो जिस तरीके से फड़फड़ाती है -वैसी होती थी. ऐसी फड़फड़ाहट जो उग्र भी नहीं होती पर आप उपेक्षा कर सको उतनी महीन भी नहीं होती. चांदनी के नितम्बों का डोलन और दोनों गोलों का यह निजी कंपन आपसी जुगलबंदी से एक होशलेवा असर खड़ी कर देता था. इस डोलन और कंपन का एक मनोहर लय श्रृंगार रस का अनन्य माहौल खड़ा कर देता था.

खेर.

चांदनी ने जुगल से कहा. ‘ज्यादा देर मत करना, मैं फिर तुझे ढूंढने नहीं आउंगी.’

‘जी जी. ‘ जुगल ने नम्रता से कहा. और चांदनी के चले जाने के बाद सोफे तले से पेग निकाल कर एक सिप लिया. उसे इस बात का पता नहीं चला की चांदनी लौटी तब बाकी सभी किस तरह अपनी नजरो से लार टपकाते हुए उसकी भाभी के गुदाज़ नितंब को ताक रहे थे.

‘आप की भाभी बड़ी सख्त मिजाज की लगती है.’ उस ग्रुप में से एक ने जुगल को कहा.

‘जी.’ मुस्कुरा के जुगल बोला. और ताश खेलने लगा. मन में यह सोचते हुए की : अच्छा हुआ भाभी को पता नहीं चला की सोफे के नीचे पेग छिपा कर वो शराब पी रहा है.

पर चांदनी को छिपाया हुआ पेग देखने की जरूरत नहीं थी. जुगल का ‘भाभी मां ‘ पुकारना इस बात की निशानी था की वो नशे में है. अक्सर जुगल चांदनी को भाभी ही पुकारता था पर जब नशा कर ले तब भावुक हो कर भाभी के साथ मां जोड़ देता था.

चांदनी की फ़िक्र अभी भी वैसी ही थी : जगदीश और शालू कोई मुसीबत में तो नहीं पड़ गए होंगे!’

यह सोचते हुए वो शादी में आये मेहमानों की जमघट देखने लगी. बहुत ख़ुशी का माहौल था. कहीं पर कोई टोली म्युज़िक बजा कर नाच रही थी. कहीं पर लोग केम्प फायर में खेले जाते है वैसे विविध खेल खेल रहे थे. कहीं पर अंताक्षरी चल रही थी.

चांदनी का मन कहीं पर नहीं लगा. दुल्हन को महेंदी लगाने के चक्क्र में वो दौड़ी दौड़ी जुगल के साथ पूना आ गई और अब जगदीश और शालू का कॉन्टेक्ट नहीं हो रहा था.

उसका मन उदास हो गया.

कुछ देर लेट जाने के ख़याल से वो गेस्ट हाउस की ओर मुड़ी. दीक्षित परिवार बहुत अमीर था. पूना के एक विशाल फार्म हाउस में उन लोगो ने शादी का आयोजन किया था. यहां गेस्ट के लिए अलग से एक दो मंजिला इमारत थी. यजमान परिवार का इस गेस्ट हाउस के बगल में ही एक अलग बंगलो था.

चांदनी को याद आया की गेस्ट हाउस के पीछे के कम्पाउंड में रातरानी का पेड़ था. उसे लगा वहां जा कर कुछ देर बैठती हूँ.

चांदनी गेस्ट हाउस के कम्पाउंड के पीछे के हिस्से में अभी तो कदम रख रही थी इतने में उसने देखा की कोई लड़की यहां वहां देखते हुए गेस्टहाउस की और भाग कर गई.

चांदनी को आश्चर्य हुआ की कौन हो सकता है यूं छिप कर गेस्टहाउस की और जानेवाला?

इतने में उसका सेलफोन बजा. जगदीश या शालू का होगा यह सोच कर चांदनी ने तेजी से फोन चेक किया. पर फोन उसकी मां का था. ठीक से पहुंच तो गए पूना? -यह पूछने. चांदनी एक तुलसी के पौधे के करीब की बेंच पर बैठ कर अपनी मां से बात करने लगी.


******

जगदीश ने साजन भाई के आसन पर टंगे झूमर पर गोली चलाई थी. गोली लगने पर झूमर टूट कर सीधा साजन भाई पर पड़ा. क्या हो रहा है यह साजन भाई समझे उससे पहले उसे अपने आप पर गिरता हुआ झूमर दिखा. वो चीख भी नहीं पाया और झूमर उसके चेहरे में धंस गया. उसके बदन में झूमर के कांच टूट कर ऐसे घुसे जैसे सूखी जमीन में बारिश की बूंदों के बाण गुम हो जाते है.

जाहिर है ऐसे प्रहार से कोई बच नहीं सकता.

इतनी खतरनाक और दर्दनाक मौत किसी गुनहगार को मिली नहीं होगी.

शालिनी यह देख मारे डर के जगदीश को लिपट गई, जैसे जगदीश कोई इंसान न हो और अलमारी हो जिस में घुस कर वो खुद को छुपा लेना चाहती हो.

साजन भाई की लाश को निहारते हुए जगदीश ने चुपचाप शालिनी की पीठ सहलाई.

और तभी दरवाजे पर दस्तक हुई.

जगदीश हुए शालिनी दोनों चौंक पड़े : कौन होगा?

जगदीश ने अपने पंजे पर से शालिनी का दुपट्टा निकाल कर शालिनी को दिया. और शालिनी को चुप रहने का इशारा करते हुए वो रिवाल्वर हाथ में थामे दरवाजे की और बढ़ा. सावधानी के साथ दरवाजा खोला. बाहर पुलिस थी.

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[(७ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :साजन भाई की लाश को निहारते हुए जगदीश ने चुपचाप शालिनी की पीठ सहलाई.

और तभी दरवाजे पर दस्तक हुई.

जगदीश हुए शालिनी दोनों चौंक पड़े : कौन होगा?

जगदीश ने अपने पंजे पर से शालिनी का दुपट्टा निकाल कर शालिनी को दिया. और शालिनी को चुप रहने का इशारा करते हुए वो रिवाल्वर हाथ में थामे दरवाजे की और बढ़ा. सावधानी के साथ दरवाजा खोला. बाहर पुलिस थी.]


जुगल को अब शराब चढ़ने लगी थी. चार पेग हो चुके थे. जुए में भी वो हार रहा था.

पेशाब करने के बहाने वो उठा और गेस्ट रूम की और जाने लगा. बहाना बना कर इस लिए आया क्योंकि अक्सर जुआ खेलने वाले लोग किसी को आसानी से खेल छोड़ कर जाने नहीं देते.

जुगल डर रहा था की कहीं बड़े भैय्या जगदीश यहां पहुँच तो नहीं गए होंगे! इतनी शराब पी ली है की वो देखते ही भांप लेंगे.

बड़े भैय्या डाटेंगे यह डर नहीं था जुगल को क्योंकि जगदीश डांटता कभी नहीं था. अगर जुगल से कोई गलती हो जाए तो जगदीश के चेहरे पर दुःख की छाया घिर आती थी.

और जुगल से अपने भाई के चेहरे पर यह छाया देखी नहीं जाती थी….

***

मां से बात कर के चांदनी हाथ ऊपर उठा कर थोड़ा अलसाने वाली थी की इतने में उसने दीक्षित परिवार के एक बेटे सुधींद्र को गेस्ट हाउस में पीछे के दरवाजे से तेजी से जाते हुए देखा. ..

सुधींद्र गेस्ट हाउस में क्यों आया होगा? दीक्षित परिवार का तो अलग से बंगला है!

चांदनी को याद आया की कुछ देर पहले एक लड़की भी गेस्ट हाउस में गई थी!

चक्कर क्या है?

चांदनी को कुछ शक हुआ. वो गेस्ट हाउस में पीछे से एंटर हुई.

***

जुगल अब तक गेस्ट हाउस की पहली मंजिल पर पहुँच चुका था. शराब के नशे में वो अपना कमरा भूल गया था. सो उस मंज़िल के हर कमरे को धक्का दे कार खोलने की कोशिश करता था. जो कमरा खुल जाता उस में अपनी बेग है क्या वो चेक कर रहा था.

ऐसे एक कमरे में उसे लगा की उसकी बेग है पर करीब जा कर देखा तो कोई और बेग थी. लड़खड़ाते कदमो से वो कमरे के बाहर जा रहा था की इतने में उसे चूड़ियों की खनखनाट की आवाज आई. वो रुक गया. कमरे में देखा.कोई नहीं था. फिर उसे समझ में आया की कमरे में एक दरवाजा बगल के कमरे में खुलने वाला भी था. आवाज वहां से आ रही थी. वो दरवाजे के पास गया और थोड़ा सा खोल कर बगल के कमरे में देखने लगा तो बगल के कमरे में पलंग पर एक लड़की बैठी थी और सामने दुल्हन का बड़ा भाई सुधींद्र खड़ा था. क्या चल रहा होगा ऐसा जुगल सोच रहा था इतने में बात करने उस लड़की का मुंह ऊपर उठते जुगल को शोक लगा. वो लड़की तो पियाली थी. पियाली दीक्षित जिसकी शादी थी कल- दुल्हन!

और यही झटका चांदनी को भी लगा जो इसी तरह इस कमरे की दूसरी और के बगल के कमरे में थी और दो कमरे के बीच के दरवाजे से पियाली और सुधींद्र को देख रही थी.

शादी के अगले दिन दुल्हन यहाँ गेस्ट हाउस में ? क्या बात होगी?

अपना बंगला छोड़ कर यह भाई बहन यहां क्यों आये होंगे?

चांदनी ने दोनों की बातें सुनने की कोशिश की.

उस कमरे में :

सुधींद्र बोला : गुड़ यार तूने किसी तरह मैनेज किया और आ गई...

पियाली बोली. ‘तू क्या पागल है? लास्ट मोमेंट पर कितना मुश्किल होता है यूँ निकल पाना. ?’

‘देख, सोनू, कुछ जरूरी होगा तभी बुलाया ना ? पर तू आई कैसे?’

‘माही है न मेरी सहेली उसे बोला की पन्द्र बिस मिनिट मैनेज कर लेना कोई आये तो, वो स्मार्ट है, कोई आया तो मेरा पेट खराब है या और कुछ तिकड़म लगा कर सम्हाल लेगी…’

‘माही ! तू उसे ये बोल कर आई कि तू मुझे मिलने आई है?’

‘आर यु मेड -ऐसा बोल कर आउंगी? उसे बोला मेरे बॉयफ्रेंड से विडिओ कॉल करनी है, फिर मौका नहीं मिलेगा.’

‘ओह, तब ठीक है... ‘ सुधींद्र राहत महसूस करते हुए बोला.

‘माही का नाम सुन कर क्यों तेरी इतनी फट गई? दाने डाल रहा है क्या उस को?’

‘मुझे क्या जरूरत वो सब की, मेरा तो सब कुछ तू है… प्यारी बहना…मेरी सेक्सी सोनु‘ कह कर सुधींद्र ने पियाली को बांहों में खींचा और उसके होठ चूमने लगा…

चांदनी और जुगल दोनों यह देख शॉक्ड हो गए.

***

इन्स्पेक्टर मोहिते और एक सब इंस्पेक्टर दरवाजे से दाखिल हुए. पीछे चार हवालदार भी आये.

‘क्या हो रहा है यहां ?’ इन्स्पेक्टर मोहिते ने एक सरसरी निगाह से गोडाउन देखते हुए पूछा.

जगदीश शालिनी को थामे एक और हो गया. इंस्पेक्टर मोहिते और बाकी पुलिस वाले साजन भाई की लाश के पास गए और क्या हुआ होगा यह समझने की कोशिश करने लगो. इंस्पेक्टर मोहिते जगदीश के पास गए.

‘तुम कौन हो?’

‘जगदीश रस्तोगी.’

‘यहां क्या हुआ है? यह आदमी कैसे मरा ?’

‘यह एक गुंडा है. इसका नाम साजन भाई है और मैंने उसे मार दिया.’

इन्स्पेक्टर मोहिते ने जगदीश को चौंक कर देखा. फिर अगल बगल देखा की किसी और ने तो नहीं सुना. जगदीश का हाथ थाम कर तेजी से एक और ले जाने लगा.

जगदीश ने शालिनी का हाथ थाम उसे भी अपने साथ लिया. इंस्पेक्टर मोहिते ने यह देखा. और शालिनी को निहारा.

तीनो एक कोने में गए.

‘तुम क्या बोल रहे हो यह समझ रहे हो?’

‘मैं बिलकुल अपने होश हवास में हूँ. यह साजन भाई एक वहशी दरिंदा था. ये शालिनी है, मेरे घर की इज्जत. यह बदमाश इस से खिलवाड़ करना चाहता था. पागल और विकृत आदमी था. मुझे इसे मारने का कोई अफ़सोस नहीं.’

इन्स्पेक्टर मोहिते जगदीश के द्रढ़ चहेरे को देखता रहा. फिर पूछा.

‘कैसे मारा तुमने साजन भाई को?’

‘झूमर के नीचे उसे बैठाया. झूमर पर गोली चलाई. नतीजा आपके सामने है.’

साजन भाई की लाश को देखते हुए इन्स्पेक्टर मोहिते ने पूछा. ‘सीधा गोली क्यों नहीं मारी?’

‘मैं हो सके उतनी दर्दनाक मौत से इसे मारना चाहता था.’ शालिनी ने इस बात पर जगदीश की बांह जो थामी थी उसे जोरों से कसा… - इंस्पेक्टर मोहिते ने यह नोटिस किया. फिर जगदीश को ताकते हुए पूछा.

‘इस गुनाह की तुम्हे क्या सजा हो सकती है तुम जानते हो?’


यह सुन कर शालिनी ने जगदीश के हाथ पर की अपनी पकड़ और कसी. जगदीश ने तुरंत कोई जवाब नहीं दिया. एक पल रुक कर बोला. ‘मुझे परवाह नहीं.’

इन्स्पेक्टर मोहिते ने कुछ सोचा फिर कहा. ‘ठीक है. मेरे साथ थाने चलो.’

शालिनी ने जगदीश को देखा. जगदीश उसे हौंसला देने मुस्कुराया. शालिनी की आँखों में आंसू उमड़ आये. जगदीश ने उसके आंसू पोंछे और कहा. ‘मैंने कुछ गलत नहीं किया शालिनी. कुछ पल के लिए बहका जरूर था पर आखिर सब ठीक कर दिया.’

शालिनी कुछ बोल नहीं पाई.

जगदीश और शालिनी इन्स्पेक्टर मोहिते के साथ पुलिस जीप में बैठ गए.

***

अलग अलग कमरे से चांदनी और जुगल भाई बहन को अजीब स्थिति में देख रहे थे.

सुधींद्र को धक्का मार कर पियाली ने कहा. ‘चल झूठे , मुझे पता है तू बड़ा ठरकी है.’

‘तेरी कसम सोनू, किसी से भी पूछ ले मेरे बारे में…’

‘किसी से क्या पूछना? मेरी आँखे नहीं क्या ? जब वो समंदर भाभी मुझे मेहंदी लगा रही थी तब तू कैसे नए नए बहाने खोज कर मेरे कमरे में झाँक रहा था - सब समझ रही थी मैं.’

चांदनी को आश्चर्य हुआ की यह समंदर भाभी कौन है? इसे मेहंदी तो मैंने लगाई थी!

‘अरे यार काम से ही झाँक रहा था, कोई बहाना नहीं था पर उस भाभी का नाम समंदर है क्या! और भी कोई इसी नाम से उसकी बात कर रहा था. ऐसा कैसा नाम!’

‘नहीं रे उसका असली नाम तो शायद चांदनी है… पर तूने देखा नहीं अपने पिछवाड़े कैसा समंदर ले कर डोलती हुई चलती है ! इसलिए सब उसको समंदर भाभी बोलते है.’

चांदनी अपने नितंबों का जिक्र यूँ होता सुन लजा गई.

‘हां वो तो मैंने भी नोटिस किया, सही है - उसकी गांड में जैसे समंदर की लहर उठती है… ‘

जुगल की जैसे पी हुई शराब उतर गई. अपनी भाभी मां के लिए जो वो सोचने की जुर्रत नहीं करता था वो अभी अभी उसने किसी और की जुबान से सुन लिया ! इतने में पियाली ने पलंग से खड़े हो कर गुस्से से सुधींद्र को कहा. ‘तो जा ना, डूब मर उस समंदर में…मुझे क्यों बुलाया ?’

सुधींद्र ने तपाक से पियाली का घाघरा ऊपर उठा के उस के पिछवाड़े को नंगा कर के उसके दोनों नितंब जोरों से दबाते हुए पियाली से बोला. ‘अपना ये घर का दरिया ही मुझे तो प्यारा है..’

चांदनी स्तब्ध हो कर देखती रह गई- पियाली ने पेंटी नहीं पहनी थी !

उधर जुगल भी आँखे फाड़े भाई बहन का ये प्यार देखता रह गया..

पियाली ने मेहंदी वाले अपने दोनों हाथ हवा में ऊपर उठा कर कहा. ‘बाबू, मेरी मेहंदी को कुछ नहीं होना चाहिए बोल देती हूँ…’

‘आह… !! मज़ा आ गया-मेरी सोनू ने आज पेंटी नहीं पहनी?’ सुधींद्र ने पियाली के घाघरे को एक हाथ से ऊँचा उठा कर उसकी योनि सहलाते हुए पूछा.

‘दोनों का टाइम बचाने. मुझे पता था, मेरी लेने के लिए ही मेरे बाबू ने अभी मुझे यहां बुलाया है…’ पियाली हंस कर बोली और उसका गाल चूम कर बोली ‘जल्दी निपटा ना ? टाइम नहीं है…’

तुरंत सुधींद्र ने अपने पेंट की ज़ीप खोल कर अपना लिंग निकाला..

और एक तरफ चांदनी दूसरी तरफ जुगल, दोनों ने अपना मुंह फेर लिया.

दोनों के लिए यह एक भयंकर सांस्कृतिक आघात था.

भाई बहन ? शादी के अगले दिन ?

चांदनी और जुगल धीरे धीरे जो देखा - सुना उसके आघात की असर में बाहर निकले.

एक ही कॉरिडोर में दोनों निकले पर इतने शॉक्ड थे की एक दूसरे को देखे बिना, एक दूसरे की और अपनी पीठ किये हुए अलग अलग दिशा से नीचे उतरने बढ़ गए.

***

थाने में जेल तो नहीं पर एक छोटे से कमरे में जगदीश और शालिनी को बैठाया गया. जब दोनों अकेले पड़े तब शालिनी से रहा न गया, इन सभी विचित्र घटनाओ के आघात से वो फफक फफक कर रो पड़ी. जगदीश शालिनी को इस तरह रोते हुए देख डर गया. कैसे शालिनी को हौसला दे यह उसे समझ में नहीं आया. वो सिर्फ शालिनी की पीठ पर हाथ फेरते हुए इतना ही कह पाया ‘बेटा शालिनी…’

शालिनी जगदीश के कंधे पर सर रख कर रोने लगी. उसकी आँखों के सामने पूरी दुर्घटना रिवाइंड हो रही थी : मवालीओ का उसे रांड कह कर बुलाना से ले कर साजन भाई को जेठ का मार देना… और फिर पुलिस का पूछना : क्या सजा होगी यह अंदाजा है?

सीधी सादी निश्छल शालिनी के लिए यह सब बहुत बड़े आघात थे.

हे भगवान ये सब क्या हो गया? - सोच कर शालिनी की आँखों में आँसू रुक नहीं रहे थे.

जगदीश का हाथ यंत्रवत शालिनी को सांत्वना देने उसकी की पीठ पर फिरता रहा, शालिनी की कमीज़ में उभरे ब्रा के हुक को महसूस करता रहा और दिमाग में बीते हुए यह अजीब मंजर के नजारो का कोलाज कैलिडोस्कोप की डिज़ाइन की तरह चकराता रहा.

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(८ - ये तो सोचा न था…समाप्त, क्रमश:)
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(९ - ये तो सोचा न था…)

[(८ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :

शालिनी जगदीश के कंधे पर सर रख कर रोने लगी. उसकी आँखों के सामने पूरी दुर्घटना रिवाइंड हो रही थी : मवालीओ का उसे रांड कह कर बुलाना से ले कर साजन भाई को जेठ का मार देना… और फिर पुलिस का पूछना : क्या सजा होगी यह अंदाजा है?

सीधी सादी निश्छल शालिनी के लिए यह सब बहुत बड़े आघात थे.

हे भगवान ये सब क्या हो गया? - सोच कर शालिनी की आँखों में आँसू रुक नहीं रहे थे.

जगदीश का हाथ यंत्रवत शालिनी को सांत्वना देने उसकी की पीठ पर फिरता रहा, शालिनी की कमीज़ में उभरे ब्रा के हुक को महसूस करता रहा और दिमाग में बीते हुए यह अजीब मंजर के नजारो का कोलाज कैलिडोस्कोप की डिज़ाइन की तरह चकराता रहा.]


पूना के दीक्षित परिवार के शादी वाले फ़ार्म हॉउस में चांदनी और जुगल की हालत सदमे में गर्क थी.

चांदनी सोच रही थी : इतने अमीर और पढ़े लिखे लोग है फिर यह क्या जाहिल पन ? की भाई और बहन ही शुरू हो गए? और दोनों की जुबान कितनी सस्ती - किसी बाजारू मवाली लोगों जैसी थी? ‘तेरी क्यों फट गई?’ और ‘मुझे पता था, मेरी लेने के लिए ही मेरे बाबू ने अभी मुझे यहां बुलाया है…’

कैसे बात करते है यह लोग? - मेरी लेने के लिए!

चांदनी का मन खट्टा हो गया.

उसे अपने बड़े भैया नितीश की याद आई. क्या नितीश कभी उसके साथ ऐसा कर सकता है? अरे नितीश छोडो क्या दुनिया में कोई भी भाई अपनी सगी बहन का घाघरा यूँ उठा सकता है?

उसे याद आया की उसका भैया नितीश उसकी शादी के समय कितना उदास रहता था - बहना की विदाई होगी इस गम में.

और यहां तो भाई अपनी पैंट की झीप खोल कर बहन के साथ शुरू हो गया!

चांदनी ने अपना सर थाम लिया.

***

इंस्पेक्टर मोहिते जगदीश और शालिनी के कमरे में दाखिल हुआ.
‘बताओ क्या हुआ था?’ उसने पूछा. जगदीश बताने लगा कैसे वो लोग गोडाउन जबरदस्ती ले जाए गए. कैसे साजन भाई ने कहा की ‘ऐसे बोबले वाली को रांड ही बोलते है…. ‘ और अचानक बात करते हुए जगदीश उठ के वॉशरूम चला गया. जगदीश के जाते ही इंस्पेक्टर मोहिते शालिनी की छाती को बेशर्मी से घूरने लगा. शालिनी एकदम अनकम्फर्टेबल हो गई. इन्स्पेक्टर मोहिते ने उसे कहा. ‘सच पूछो तो तुम मुझे भी रांड ही लगती हो…’

‘आप को बात करने की तमीज़ नहीं है?’ अपने स्तनों पर दुपट्टा ठीक से ढांकते हुए शालिनी ने क्रोध और अपमान से कांपती हुई आवाज में कहा.

इतने में कमरे में साजन भाई आया…उसके चेहरे पर झूमर के कांच अभी भी धंसे हुए थे. ऐसी हालत में भी वो ठीक से चल के आ गया और इंस्पेक्टर से कहने लगा. ‘अरे सर, साली का दुपट्टा हटा कर देखो तब यकीन होगा…पक्की रांड है एकसो एक टका!’

मोहिते ने हंस कर पूछा. ‘ऐसा?’ और तपाक से उसने शालिनी का दुपट्टा खींच लिया. डर कर शालिनी ने अपने हाथो से अपनी छाती ढांक ली. यह देख साजन भाई गुर्रा कर बोलै. ‘सर, इस रांड को बोलो कमीज़ खोलने…’

मोहिते ने कहा. ‘अपनी कमीज़ के हुक खोलो.’

‘नहीं.’ शालिनी अपने हाथ छाती पर जोरों से दबा कर चीखी.

‘ये छिनाल ऐसे नहीं मानेगी…’ कह कर साजन भाई ने रिवॉल्वर निकाल कर उसकी और ताकी और कहा. ‘बोलाना खोल कमीज़ के हुक ? चल निकाल तेरा बड़ा बड़ा बोबा. दिखा सर को!’

शालिनी के पसीने छूट गए. घबराते हुए उसने सोचा- ये जेठ जी भी एन मौके पर गायब हो गए!

साजन भाई ने चिढ़ते हुए कहा. ‘क्यों शर्माती है? अभी तो मेरे गोडाउन में निकाला था न अपना मक्खन का गोला? फिर क्यों शरीफाई ठोकती है? चल चल… खोल फटाफट-’

बेबस शालिनी ने नजरें झुका कर कांपते हाथो से अपनी कमीज के हुक खोले… और ब्रा हटा कर अपना एक स्तन बाहर किया.

‘देखा सर? है न टनाटन!’ साजन भाई ने यूँ कहा जैसे कोई व्यापारी अपना माल ग्राहक को दिखा रहा हो!. फिर शालिनी से गुर्रा कर कहा. ‘निपल दिखा निपल - कमीनी -हर बार ये बोलना पड़ेगा क्या?’

अचानक तभी जगदीश आ गया और दहाड़ कर बोला. ‘क्या हो रहा है यह सब? ये कोई रांड नहीं समझे?’ और धड़ धड़ उसने साजन भाई और इंस्पेक्टर मोहित को गोली मार दी. दोनों लुढ़क पड़े. शालिनी अपना नंगा स्तन हिलाते हुए दौड़ कर जगदीश को चिपक गई. जगदीश ने कहा. ‘बहु बेटा, अपनी छाती ठीक करो.’ तब उसे याद आया की स्तन अभी बाहर है. पर वो इतनी डर गई थी की स्तन कमीज़ में डालने के बजाय जगदीश को और कस के चिपक गई. जगदीश ने उसकी पीठ सहलाते हुए पूछा. ‘क्या हुआ शालिनी?

शालिनी ने जगदीश की और देखा. वो आश्चर्य से पूछ रहा था. ‘इतना पसीना पसीना क्यों हो गई हो?’

शालिनी को अपना स्तन बाहर है यह याद आया. उसने जगदीश के हाथ को छोड़ अपना स्तन अंदर करना चाहा पर उसका स्तन बाहर नहीं था. उसने कमरे में देखा तो किसी की लाश पड़ी हुई नहीं थी.

ओह क्या यह सपना था ?

कुछ पलों में साजन भाई ने शालिनी के नाजुक दिमाग पर ऐसा आतंक मचाया था की वो मर गया पर उसका खौफ अभी तक शालिनी के दिलो दिमाग पर हावी था. कब जगदीश के कांधे पर सर रखे हुए उसकी आंख लग गई उसे याद नहीं.

उसने दुपट्टे से अपना मुंह पोछा. करीब पड़े एक टेबल पर से जगदीश ने पानी की बोतल उठा कर उसका ढक्क्न खोल कर शालिनी को कहा. ‘लो, थोड़ा पानी पीओ. तुमने शायद कोई बुरा सपना देखा.’

शालिनी बोली. ‘जी, मैं बहुत डर गई थी भैया.’

‘हां, नींद में तुमने मेरा हाथ इतना जोर से कसा की मुझे शक हुआ कुछ भयानक देख लिया है तुमने…’

अब बेचारी बोले तो क्या बोले की उसने क्या देखा!

और तब इंस्पेक्टर मोहिते जगदीश और शालिनी के कमरे में दाखिल हुआ.

‘सोरी, आप लोगो को वेइट करना पड़ा. बताइये क्या हुआ था?’ उसने एक कुर्सी पर बैठते हुए पूछा.

जगदीश ने कम शब्दों में जो कुछ हुआ था यह बताना शुरू किया. अपने सपने को दोहराता देख शालिनी को फिर टेंशन हो गया अलबत्ता जगदीश ने उनके साथ की गई बदतमीजी के बारे में पूरी डिटेल नहीं बताई की किस तरह दोनों को अधनंगा करके एक दूसरे के अंगो की साइज़ पूछी गई थी. जगदीश ने केवल इतना बताया कि ‘हम लोग पूना जा रहे थे…’

और शालिनी की आंखों के सामने सारा फलेश बैक आने लगा.

‘आप दोनों के नाम ?’ इन्स्पेक्टर मोहिते ने रजिस्टर खोलते हुए पूछा.

‘मेरा नाम जगदीश रस्तोगी है. मेरा अपना बिज़नेस है. स्टील मैटेरियल सप्लाई का.’ जगदीश ने अपना कार्ड देते हुए कहा.

‘और आप?’ इन्स्पेक्टर मोहिते ने शालिनी से पूछा.

‘शालिनी जे. रस्तोगी…’ शालिनी ने कहा.

‘ओके, तो आप पति- पत्नी हो…?’ इन्स्पेक्टर ने कहा. शालिनी हिचकिचाई, जगदीश बोलने गया की यह मेरे छोटे भाई की पत्नी है इतने में इंस्पेक्टर का फोन बजा. वो फोन पर बात करने लगा. फोन निपटा कर उसने पूछा. ‘अब बताइए आप उस अड्डे पर कैसे पहुंचे?’

‘हम लोग पूना जा रहे थे, रास्ते में टायर बदलने रुके तब पहले साजन के गुंडों ने शालिनी के साथ बुरा व्यवहार किया. मैंने उन्हें टोका तो हमें जबरन साजन भाई के अड्डे पर ले गए. वहां पर साजन भाई और उसके गुंडे हमारे साथ बदतमीज़ी करने वाले थे इतने में कोई पक्या नामका गुंडा उनके इलाके में आया है ऐसा उन को पता चला सो सारे गुंडे उस किसी पक्या के साथ लड़ने निकल गये. और साजन भाई अड्डे पर ही रुका था. वो हम दोनों से उलटी सीधी बातें करने लगा. एक हद के बाद उस शैतान की हरकतें नाकाबिले बर्दाश्त हो गई. अगर मैं उसको मार नहीं देता तो मैं पागल हो जाता.’

इन्स्पेक्टर मोहिते ने पूछा. ‘आपने इस से पहले कभी मार पीट की है? या और कोई जुर्म किया है?’

जगदीश ने कहा. ‘सर. मैं एक बिज़नेस मेन हूँ. सरकार को टैक्स भरने वाला और सभी कानूनों का पालन करने वाला एक सीधा सादा नागरिक. न आज के पहले मैंने कोई जुर्म किया है न आज. कानून की किताब के मुताबिक मैं एक हत्यारा हूँ पर न्याय की किताब में मेरी हरकत गुनाह नहीं यह मुझे यकीन है.’

‘आप भावुक हो कर बोल रहे हो मि. रस्तोगी. कानून भावुकता से नहीं चलता.’

‘चलना चाहिए भी नहीं. मैं सिर्फ अपना पक्ष बता रहा हु. आप को यह नहीं कह रहा की मुझे अपराधी न माने. सिर्फ यह कह रहा हूँ की जिस तरह सारे अपराधी पकड़े नहीं जाते उसी तरह जो पकडे जाते है वो सारे अपराधी नहीं होते. आप बेशक मुझे अपराधी माने बल्कि इकबाल -ऐ जुर्म तो मैंने ही किया है.मैं आप से कोई रियायत नहीं मांग रहा. आप अपनी कार्रवाई जरूर कीजिये.’

इन्स्पेक्टर मोहिते जगदीश को निहारते रहे. फिर बोले.

‘आप की सारी बात मैंने सुन ली. अब आप मेरी बात सुनिए.’

शालिनी ने डर कर जगदीश का हाथ कस कर पकड़ लिया. इन्स्पेक्टर मोहिते ने यह नोटिस किया. जगदीश ने शालिनी को नजरों से हौसला दिया. और इन्स्पेक्टर मोहिते की बात सुनने लगा.

‘उस गोडाउन में साजन भाई आप दोनों के साथ बदतमीजी कर रहा था. आप को मौका मिलते ही आपने साजन भाई की रिवाल्वर छीन ली और उसे मारने नहीं बल्कि केवल डराने के उद्देश्य से आपने हवा में गोली चलाई. संयोग से गोली झूमर को लगी और झूमर टूट कर साजन भाई पर गिर पड़ा जिससे उसकी मौत हो गई. यह एक दुर्घटना थी और आपका साजन भाई को कोई हानि पहुंचाने का इरादा नहीं था.’

शालिनी और जगदीश यह सुनकर आश्चर्यचकित हो गए.

जगदीश ने पूछा. ‘ये आप क्या बता रहे हो?’

इन्स्पेक्टर मोहिते ने मुस्कुराकर कहा. ‘आपका बयान.’

जगदीश और शालिनी ने एक दूसरे को देखा. फिर जगदीश ने कहा. ‘पर मैंने कुछ और कहा!’

‘उसे भूल जाओ और मैंने जो कहा वैसा कहो.’

शालिनी यह सुन कर खुश होने ही वाली थी की जगदीश ने कहा. ‘बिलकुल नहीं. मैं ऐसा बयान नहीं दे सकता.’

अब चौंकने की बारी शालिनी और इन्स्पेक्टर मोहित की थी.

शालिनी ने जगदीश को कहा ‘इंस्पेक्टर साहब खुद कह रहे है फिर आप क्यों?... ‘

जगदीश ने शालिनी की बात काट कर कह. ‘एक मिनिट.’ फिर इंस्पेक्टर मोहिते से कहा. ‘मैं यह कैसे कहूं कि मेरा साजन भाई को हानि पहुंचाने का इरादा नहीं था ? जब की मैं तो उसकी जान दर्दनाक तरीके से लेना चाहता था और ली. यह कोई दुर्घटना नहीं थी. और आप का शुक्रिया पर आप मुझे बचाना क्यों चाहते है?’

‘आप जैसा अजीब आदमी मैंने अब तक देखा नहीं.’ इंस्पेक्टर मोहिते ने कहा. ‘एक बात बताओ. अगर मैं वहां उस गोडाउन में नहीं पहुँचता तब तुम क्या करते? गोडाउन से निकल कर पुलिस स्टेशन आ कर खुद को कानून के हवाले कर देते?’

‘नहीं.’ जगदीश ने कहा. शालिनी और इंस्पेक्टर मोहिते दोनों को जगदीश के जवाब से आश्चर्य हुआ.जगदीश ने आगे कहा. ‘न मैं कानून में फसना चाहता हूँ, न कानून से बचना चाहता हूँ. मै ने क्या सोचा था यह बताता हूँ. मैं रिवाल्वर वहीं पर फेंक कर शालिनी के साथ वहां से भाग निकलता…’

‘और रिवाल्वर पर की आपकी फिंगरप्रिंट की वजह से पुलिस आज नहीं तो कल आप तक पहुँच ही जाती. तब?’

‘मैंने अपने हाथ पर यह दुपट्टा लपेट लिया था. मेरी फिंगरप्रिंट रिवाल्वर पर नहीं मिलती.’

‘ओह. ठीक. पर आप खुद भाग निकलना चाहते थे तो फिर मुझसे अपने गुनाह का इकरार क्यों किया? आप बहुत उलझा रहे हो.’ इंस्पेक्टर मोहिते ने पूछा.

‘मुझे निकलने का मौका मिले उससे पहले दरवाजे पर दस्तक हुई और मुझे नहीं पता था कि दरवाजे पर कौन है सो दुपट्टा वापस शालिनी को दे कर मुझे नंगे हाथ रिवाल्वर थामनी पड़ी. रिवाल्वर पर मेरे फिंगर प्रिंट आ गए. दरवाजा खोला तो आप थे.’

‘फिर? इकबाल- ऐ -जुर्म करना जरूरी था?

‘मैं आपसे झूठ कैसे बोलता?’

इंस्पेक्टर मोहिते फिर कन्फ्यूज़ हो गया. उसने पूछा. ‘क्यों नहीं बोल सकते? मैंने जो जूठा बयान बनाया वो ही बात आप मुझे कह सकते थे! या यह कह देते कि किसी गुंडे ने झूमर पर गोली मार दी!’

‘आप पुलिस हो सर.’ जगदीश ने कहा. ‘आप जनता की रक्षा के लिए दिन रात खुद को खतरे में डालते हो. आप से मैं कैसे झूठ बोलूं?’

इंस्पेक्टर मोहिते यह सुन कर दंग रह गया. उसकी आंखे भीग गई.

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( १० - ये तो सोचा न था…)

[(९ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा : ‘फिर? इकबाल- ऐ -जुर्म करना जरूरी था?

‘मैं आपसे झूठ कैसे बोलता?’

इंस्पेक्टर मोहिते फिर कन्फ्यूज़ हो गया. उसने पूछा. ‘क्यों नहीं बोल सकते? मैंने जो जूठा बयान बनाया वो ही बात आप मुझे कह सकते थे! या यह कह देते कि किसी गुंडे ने झूमर पर गोली मार दी!’

‘आप पुलिस हो सर.’ जगदीश ने कहा. ‘आप जनता की रक्षा के लिए दिन रात खुद को खतरे में डालते हो. आप से मैं कैसे झूठ बोलूं?’

इंस्पेक्टर मोहिते यह सुन कर दंग रह गया. उसकी आंखे भीग गई.]


आंखे पोंछते हुए इंस्पेक्टर मोहिते ने जगदीश से कहा. ‘मैं तुम्हे ठीक से समझ नहीं पा रहा.’ फिर पानी पी कर थोड़ा स्वस्थ हो कर पूछा. ‘क्या हम लोग पहले कभी मिले है?’

‘नहीं सर. मुझे नहीं लगता.’

‘किस बात से तुम मेरा इतना लिहाज रखते हो जो बिना किसी परिचय के झूठ बोल कर बचने के बजाय सच बोल गये ?’

‘सर, कुछ पेशे ऐसे है जो अवेज में दी जाती सैलरी से बहुत बेशकीमती है. मसलन फौजी, डॉक्टरी, वकालत, शिक्षक,पत्रकारिता, राजनीति और-’

‘और पुलिस?’ इंस्पेक्टर मोहिते ने चकित हो कर पूछा. फिर शालिनी से पूछा. ‘इतनी कम उम्र में ये इतनी ज्ञान की बात कैसे कर लेते है! शुरू से ऐसे है या आपने इनके जीवन में आ कर इनको इतना बदल दिया!’

इंस्पेक्टर मोहिते जगदीश और शालिनी को पति पत्नी समझ कर भारी हो चुके माहौल को हलका करने की निर्दोष कोशिश कर रहा था पर जगदीश और शालिनी की हालत यह सुन कर अजीब हो गई. दोनों ने आपस में एक ऑड लुक एक्सचेंज किया.

‘जी उम्र कम है मेरी पर वक्त ने बहुत ठोकर मार मार कर मुझे सबक सिखाये है सर, मैं पांच साल का था तब मेरे मां - पिताजी अलग हो गये. उसके बाद तुरंत मेरी मां ने आत्महत्या करली. मेरी मां के साथ पिताजी ने जो सुलूक किया उसके लिए मैं उन को कभी माफ़ नहीं कर पाया. बालिग़ होते ही खाली जेब मैंने अपने छोटे भाई के साथ बाप का महल जैसा घर छोड़ दिया. रास्ते पर आ गया. सोचिये १८ साल का एक लड़का जिसे दुनिया का कोई अनुभव नहीं वो रास्ते पर खड़ा है- न मां का स्नेह न बाप का साया, न सर पर छत, न हाथ में कोई काम ऊपर से साथ में १५ साल के छोटे भाई की जिम्मेदारी!

इन्स्पेक्टर मोहिते के साथ साथ शालिनी भी यह सुन कर दंग थी. शालिनी अपने ससुराल का फेमिली बैकग्राउंड जानती थी पर जुगल और जेठ जी कभी इतने बेसहारा थे और एकदम ज़ीरो से अपना मकाम बना कर आज शान से समाज में अमीर बने है यह वो नहीं जानती थी.

‘सर,’ जगदीश ने आगे कहा.’ जीवन का पूरा इंद्रधनुष मैंने देख लिया है और अभी भी देख रहा हूँ. इंद्रधनुष में तो केवल सात रंग होते है पर जीवन! जीवन का हर पल एक अलग रंग लिए आता है. मुझे इतना समझ में आया की हमें मिलने वाला हर इंसान एक बंद लिफाफा होता है.वो लिफाफा गुड़ न्यूज़ भी हो सकता है और बेड न्यूज़ भी. और हमें न्यूज़ कैसी होगी इसकी खबर न होते हुए उस लिफाफे को खोलना पड़ता है…’

इंस्पेक्टर मोहिते सुन रहा था, उसे समझ में नहीं आ रहा था की क्या रिएक्ट करें. उसे लगा था की एक भोला, सीधा सादा आदमी गुंडों के हाथों फस गया है, क्यों खामखां इस पर गुनहगार का ठप्पा लगाएं ! और अपने वर्क रूल को थोड़ा लचीला बना कर उसने जगदीश को इस झमेले में से निकालने की कोशिश की. अब जगदीश की बातें सुन कर उसे लग रहा था कि यह आदमी बेगुनाह हो सकता है पर भोला नहीं.

दूसरी ओर शालिनी अपने जेठ की खुल रही नई नई परतों से अवाक थी. हाईवे पर दो नौजवान गुंडों को जगदीश ने चीते की स्फूर्ति से चार सेकंड में चीत कर दिया था वो शालिनी के लिए जगदीश का नया परिचय था. रस्तोगी परिवार भावुक और स्नेह की बुनियाद पर खड़ा था. दो भाई और दोनों की पत्नी. चार लोगों में इतना मेल और आपसी सन्मान था की किसी को कभी ऊँचे आवाज में अपनी बात रखनी पड़े ऐसा भी आज तक हुआ नहीं था.

इसलिए जगदीश को हाथ उठाते हुए देखा वो एक रूप के बाद, मवालीओ के जाने के बाद उसे कार में बैठ जाने के लिए जगदीश ने जो सख्त लहजे में कहा था वो जगदीश का दूसरा परिचय था. जगदीश ने इस लहजे में कभी जुगल से भी बात नहीं की थी! और उसे - छोटे भाई की पत्नी - जिसे वो बहु और कभी बेटा कह बुलाता था -उसे डांट दिया था ! पर वजह थी जगदीश का शालिनी के प्रति का स्नेह- यह बात शालिनी समझ रही थी. उन मवालीओ ने शालिनी के बारे में गन्दी बात कही थी और जगदीश की यह हताशा की उसके छोटे भाई की पत्नी को कोई अनाप शनाप बोल गया - उसे क्रोध में ला चुकी थी.

और इसी क्रोध का विस्तारित स्वरूप था जगदीश का साजन भाई को मार डालना.

जगदीश के इन नये रूप से शालिनी अभी अभ्यस्त हो उससे पहले जगदीश के और नये नये रूप उसके सामने आ रहे थे, जिस स्पष्टता से वो अपने किए के बारे में दलील कर रहा था शालिनी को लगा की उसके जेठ ने वकील होना चाहिए था.

और इतने में यह खस्ता हाल में घर छोड़ने वाला फलेश बेक का सीन !

समझदार, बहादुर, बुद्धिमान, काबिल…. उसका जेठ क्या क्या था!

शालिनी जैसे जगदीश पर फ़िदा हो गई! स्नेह और सम्मान के बहाव में उसने जगदीश का हाथ चूम कर अपने सिर पर रख कर कहा, ‘यह हाथ सदा मेरे सर पर रहे यही मेरी ईश्वर से प्रार्थना है.’

शालिनी की इस हरकत से जगदीश और इन्स्पेक्टर मोहिते दोनों चौंक पड़े. इंस्पेक्टर मोहिते के लिए यह एक पति पत्नी के बीच का इमोशनल मोमेंट था. और जगदीश के लिए बहु की भावुकता!

खेर, शालिनी के इस इमोशनल व्यवधान से जगदीश का अतीत में खो जाना रुका, वो जैसे वर्तमान में लौटा.अपने बहाव में जाने क्या फिलोसोफी झाड़े जा रहा था. उसने गला साफ़ कर के कहा. ‘सोरी, मैं कहीं और ही चल पड़ा था…’

इंस्पेक्टर मोहिते ने कहा. ‘नहीं मि. रस्तोगी, सॉरी वाली कोई बात नहीं. पर हम लोग थोड़ा ब्रेक लेते है.’ कह कर इंस्पेक्टर मोहिते खड़ा हुआ और ‘आप लोगो के लिए चाय भेजता हुं , फिर आगे बात करते है की इस केस का क्या करें.’ कह कर बाहर चला गया.

‘जी.’ कह कर जगदीश सोच में उलझ गया. इतने में उसका फोन बजा. देखा चांदनी का कॉल था. जगदीश ने कॉल काट कर शालिनी से कहा. ‘अपना फोन स्विच ऑफ़ कर दो. तुरंत.’

शालिनी ने अपना फोन स्विच ऑफ़ किया. और जगदीश की और देखा. जगदीश ने कहा. ‘चांदनी का कॉल था. मुझे नहीं पता की उसे क्या कहु. इतना कुछ हो गया और हो रहा है कि बताने से वो टेन्स हो जायेगी. इसलिए तुम्हारा फोन भी बंद रहे वो ही अभी ठीक है.’

शालिनी ने हां में सर हिलाया.

शालिनी कुछ देर जगदीश को तकती रही. अपने में गुम जगदीश को यह सुमार नहीं था की शालिनी उसे एकटक तक रही है. अंतत: शालिनी बोली. ‘भैया!’

जगदीश ने शालिनी की ओर देखा. शालिनी कुछ कहना चाहती थी. पर बोल नहीं पाई. आखिर इतना ही बोली. ‘कुछ नहीं…’

जगदीश खुद इतने खयालो में उलझा हुआ था की उसने शालिनी से ज्यादा पूछताछ नहीं की.

***

जुगल खोया खोया सा गेस्ट हाउस के उस हिस्से में पहुंचा जहां बैठ कर कुछ देर पहले उसने जुआ खेलते हुए शराब पी थी. दीक्षित परिवार के भाई बहन को अश्लील बातें और हरकतें करते देख उसका सारा नशा उतर गया था. उसे शराब पीनी थी.

ताश खेलने वाले सभी बिखर गए थे. एक दो वहीं पर शराब पी कर लुढ़क चुके थे. जुगल को सोफे के नीचे से एक शराब की बोतल मिल गई. उसने फटाफट दो पेग पी लिए जैसे की अभी जो देखा -सुना उसे शराब की सहाय से दिमाग पर से पोंछ लेना चाहता हो.

लेकिन तीसरा पेग लेते ही उसे सुधींद्र ने चांदनी भाभी के लिए जो जुमला कसा था वो याद आया : ‘सही है - उसकी गांड में जैसे समंदर की लहरें उठती है…’

जुगल के लिए यह बहुत बड़ा झटका था. अलबत्ता उसे पता था की उसकी भाभी के नितंब औसत से अधिक आकर्षक है क्योंकि भाभी जब चलती है तब उनमे एक विशिष्ठ कंपन होती है.

-पर आखिर वो भाभी है, मां समान.

जुगल का लालन पालन गरिमा पूर्ण और घर के लोगों का सम्मान करना चाहिए ऐसी सीख के माहौल में हुआ था. अपनी भाभी के नितंब को लेकर उसने कभी कोई कामुक ख़याल अपने दिमाग में आने नहीं दिए थे.

पर आज एक पराये आदमी को भाभी के नितंबो का इस भाषा में ब्यौरा करते हुए सुन वो विचलित हो गया था.

‘हट तेरे की..’ कहते हुए उसने यह सारी बातें दिमाग से दूर करने के इरादे से अपना सर जोरों से झटका. और गेस्ट हाउस में जा कर अपना कमरा खोज कर सो जाने की ठानी.

अपना कमरे वाली मंजिल पर तो वो पहुँच गया पर फिर वो ही कमरा ढूंढ ने की मशक्कत!
जुआ खेल रहा हो उस तरह उसने एक कमरे का दरवाजा धकेल कर देखा. खुल गया. जुगल लड़खड़ाते कदमो से अंदर घुसा. अंदर नजर पड़ते ही उसके होश उड़ गये….

एक अत्यंत जवान और खूबसूरत लड़की बिलकुल नग्न उसके सामने खड़ी थी. किसी अप्सरा जैसा उसका अंग वैभव था. सुडौल कांधे और उस पर बेतरतीब से बिखरे घट्ट श्याम जुल्फें, शिल्प की भांति समप्रमाण स्तन, उस पर अंगूर के दाने समान निपल, मोहक छेद वाली कामोत्तेजक नाभी, गोया वाइन के प्याले जैसी नजाकत से तराशी गई हो वैसी लचीली कमर जो स्तन के उभार से निचे की ओर जाते हुए जानलेवा बल खाते हुए स्वस्थ और पुष्ट नितंबो की गोलाई में खुद का समर्पण सा कर रही थी. मलाई से अगर पुतला बनाया जाए तो जितनी मुलायम रची जा सके उतनी स्निग्ध जांघे, दो जांघों के मध्य में हौशलेवा त्रिकोण. आ...ह जुगल ने सोचा यह वो बरमूडा ट्रायंगल जैसा त्रिकोण है जहां लोग मौत की परवाह किये बिना गोता खाने पर उतारू हो जाए, उस त्रिकोण के ललाट पर महीन ताज़ी हरी घास जैसे तेवर वाला सुकुमार योनिकेश का दुपट्टा….

उफ़ उफ्फ उफ्फ्फ….

जुगल ने उस कन्या के चेहरे की और देखा. उसका चेहरा ऐसे स्तब्ध था जैसे उसने कोई भूत देख लिया हो. उसकी आंखे बड़ी और उत्सुकता की चमक से प्रदीप्त थी. उसके होठों पर उसने अपने नाजुक हाथ को यूं रख दिया था जैसे खुद को चीखने से रोक रही हो.

इतने में बाहर कॉरिडोर में किसी के हंसने की आवाज आई और जुगल का संमोहन टुटा.

एक अनजान वस्त्रहीन लड़की के सामने वो युं खड़े हो कर क्या देखे जा रहा था! उसे खुद पर शर्म आई और ‘सोरी’ कह कर वो तुरंत बाहर निकल गया.

***

चाय के ब्रेक के बाद इंस्पेक्टर मोहिते के साथ बात शुरू करते हुए जगदीश ने कहा. ‘इन शोर्ट सर, पुलिस सेवा की मैं बहुत इज्जत करता हूँ. आप को देख कर झूठ नहीं बोल पाया. सो खुद को आप के सुपुर्द कर दिया.’

‘आज तुमने मुझसे यह कह कर मेरे पद का, मेरे काम का जो सम्मान किया है - शायद मेरी ड्यूटी के लिए खुद राष्ट्रपति कोई अवॉर्ड देते तब भी मुझे इस स्तर के तृप्ति और गर्व का अहसास नहीं होता.’ इन्स्पेक्टर मोहित की आवाज बोलते बोलते जज्बात से भीग सी गई.

शालिनी भी जगदीश को प्रभावित हो कर निहारती रही.

जगदीश ने कुछ पल रुक कर कहा. ‘मुझे नहीं पता की आप मुझे क्यों बचाना चाहते हो. शायद आप को लगता है की एक निर्दोष आदमी हालात के हाथो फंस रहा है. पर एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते मेरे किये कराये की जिम्मेदारी ले कर मैंने पुलिस को हेल्प करना चाहिए.’

इंस्पेक्टर मोहिते ने कहा. ‘मैं आप के जज्बों की कदर करता हूँ. अब मेरी बात सुनिए. साजन भाई एक वॉन्टेड मुजरिम था. उसके लिए शूट एट साइट का ऑर्डर ले कर मैं गोडाउन पहुंचा था. न जाने कितनी औरतो को उसने अपनी विकृति का शिकार बनाया था. आपने उसके साथ जो किया वो निजी दुश्मनी से नहीं किया और ना ही निजी फायदे के लिए किया. बल्कि निजी सुरक्षा के चलते एक ऐसा कदम उठाया जिससे सामाजिक सुरक्षा का भी काम हुआ है, जो की पुलिस का जिम्मा है -यही सच है.…. ‘

फिर थोड़ा रुक कर इन्स्पेक्टर मोहिते ने आगे कहा. ‘मि. रस्तोगी, मैं कानून का सिपाही हूँ पर अंधा नहीं हूँ. एक ऐसा काम जिससे समाज को फायदा हुआ है उस के लिए मैं आप को गुनहगार का धब्बा नहीं लगने दे सकता. आप पुलिस को और हेल्प करने की कोशिश न करें आप ने ऑलरेडी हेल्प कर दी है.’

जगदीश यह सुन सोच में पड़ गया फिर बोला. ‘ठीक है मैं अपना बयान बदलने तैयार हूँ.’

‘गुड.’ इन्स्पेक्टर मोहिते ने मुस्कुराकर कहा. ‘थैंक्स, मेरी बात समझने के लिए. बोलो अब.’ कह कर उन्होंने नया बयान लिखने के लिए कलम उठाई.

‘मेरी एक शर्त है. आप बयान लिखवाने किसी और को भेजिए. आप मुझे इमोशनली कन्फ्यूज़ कर देते हो.’

इंस्पेक्टर मोहिते मुस्कुराकर खड़े हुए और बोले. ‘ओके. पर फिर कुछ उल्टा सीधा मत लिखवा देना.’
और बाहर जाते हुए शालिनी से कहा. ‘आप को गर्व होना चाहिए मैडम रस्तोगी कि आप को एक मर्द आदमी का संग नसीब हुआ है. मर्दानगी गोली चलाने में नहीं होती. मर्दानगी सही वक्त पर सही फैसला लेने की हिम्मत में होती है.आप खुश नसीब हो आप के साथ एक रियल हीरो है.’

शालिनी शर्मा कर बोली. ‘जी शुक्रिया.’

इन्स्पेक्टर मोहिते के जाने के बाद शालिनी ने जगदीश की और देखा. जगदीश ने मुस्कुराकर कहा. ‘उसकी गलती नहीं, उसे लगता है हम पति पत्नी है.’

‘पता है. पर फिर भी मैं खुशनसीब हूँ यह भी सच है, आज क्या क्या हो सकता था यह सोच कर भी मैं कांप उठती हूँ.’

जगदीश ने शालिनी के हाथ पर हाथ रख कर कहा.’नसीब तो मेरा भी अच्छा है जो मामला ज्यादा बिगड़ने से पहले सम्हाल पाया.’

तभी एक हवालदार आ कर उनके सामने बैठते हुए बोला. ‘जी बयान लिखवाइए.’

***

आज दूसरी बार जुगल का नशा हवा हो गया था. एक बार अनचाहा अश्लील देख सुन कर और दूसरी बार अनन्य सौंदर्य को निर्वस्त्र देख कर…

उसी सोफे के नीचे से फिर उसने शराब की बोतल ढूंढ निकाली. नसीब से अभी उसमे शराब बाकी बची थी. उसने तेजी से पेग बनाया. जाम होठों से लगाने से पहले उसे एक नारी स्वर सुनाई दिया : एक्सक्यूज़ मी…’

जुगल ने सर घुमा कर देखा तो वो ही लड़की जिसे कुछ पल पहले वो अजीब स्थिति में मिला था, सामने खड़ी थी…


(१० - ये तो सोचा न था…समाप्त, क्रमश:)
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( ११ - ये तो सोचा न था…)

[(१० – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :

जगदीश ने शालिनी के हाथ पर हाथ रख कर कहा.’नसीब तो मेरा भी अच्छा है जो मामला ज्यादा बिगड़ने से पहले सम्हाल पाया.’

तभी एक हवालदार आ कर उनके सामने बैठते हुए बोला. ‘जी बयान लिखवाइए.’

***

आज दूसरी बार जुगल का नशा हवा हो गया था. एक बार अनचाहा अश्लील देख सुन कर और दूसरी बार अनन्य सौंदर्य को निर्वस्त्र देख कर…

उसी सोफे के नीचे से फिर उसने शराब की बोतल ढूंढ निकाली. नसीब से अभी उसमे शराब बाकी बची थी. उसने तेजी से पेग बनाया. जाम होठों से लगाने से पहले उसे एक नारी स्वर सुनाई दिया : एक्सक्यूज़ मी…’


जुगल ने सर घुमा कर देखा तो वो ही लड़की जिसे कुछ पल पहले वो अजीब स्थिति में मिला था, सामने खड़ी थी… ]



‘हवा पर कोई पहरा नहीं होता और गांड पर कोई पर्दा नहीं होता.’

चिलम बाबा ने गांजे का कश ले क्र धुंआ छोड़ते हुए किसी फिलोसोफर की अदा में कहा था. जुगल को ऐसी भाषा बिलकुल पसंद नहीं थी पर चिलम बाबा का एक अपना तरीका था बात करने का सो वो चुप रहा.

पूना शादी के लिए जुगल अपनी भाभी के साथ मुंबई से निकला उसके आठ दस रोज पहले की यह बात है.

जोगेश्वरी पूर्व में गुफा रोड पर एक छोटा सा मंदिर है. उस मंदिर के टूटे फूटे पायदान पर जुगल एक बार कोई एड्रेस ढूंढ ढूंढ कर थका बैठ गया था.

फिर उसे उत्सुकता हुई की यह मंदिर किस भगवान का है. छोटे से अंधेरे कोने में कौनसी मूर्ति है यह देखने की वो सर झुका कर कोशिश कर रहा था तब किसी की आवाज आई थी : ‘भगवान तेरे घर पर तेरे साथ है रे बावरे यहां कहां ढूंढ रहा है?’

‘जी?’ जुगल ने कोने बैठे उस बेतरतीब से दीखते साधु से पूछा था.

-यह था जुगल का और चिलम बाबा का प्रथम संवाद. और इस बातचीत में जुगल इस कदर इस चिलम बाबा से प्रभावित हो गया की चिलम बाबा की भाषा उबड़ खाबड़ होने के बावजूद वो फिर कई बार उनसे मिलने आने लगा.

उस पहली मुलाकात में चिलम बाबाने उसे बताया था की तेरा बड़ा भाई ही तेरा भगवान है. तब जुगल ने आश्चर्य से पूछा था कि क्या वो जगदीश भैया को जानते है? साधू ने सामने प्रश्न किया था : क्या तू अपने भाई को जानता है?

धीरे धीरे जुगल को समझ में आया की चिलम बाबा से ढंग से बात नहीं हो सकती. वो आदमी अपनी दुनिया में गुम रहता है. कब बोलेगा, क्या बोलेगा और कितना बोलेगा इसका कोई ठिकाना नहीं. जब वो चिलम बाबा से तीन चार बार मिल चूका तब उस खंडहर जैसे मंदिर के आसपास के पान बीड़ी, किराने की दुकानवालों ने ताज्जुब से जुगल को पूछा था कि चिलम बाबा बात भी करता है? क्योंकि अब तक किसी से उसने बात नहीं की.. तब जुगल को एक अजीब गर्व हुआ था की चिलम बाबा उसे बात करने योग्य मानते है!

पर कैसी बातें ? कभी कोई बड़बड़ाहट, कभी कोई जुमला, कभी कोई शेर… समझ में आया तो ठीक, नहीं आया तो ठीक. चिलम बाबा अगर मूड में हो तो ‘अरे शून्य बुद्धि… कहने के माने है…’ जैसी फटकार के साथ समझा भी देते थे और कभी पूछ पूछ के आप का गला सुख जाए वो एक शब्द नहीं बताते थे!

पर जुगल को उनकी बात समझ में आये या न आये वो सुनने के लिए उत्सुक रहता. क्योंकि चील बाबा जो बोलते वो बड़े गूढ़ अर्थ में कोई सच होता. क्या चिलम बाबा में कोई अज्ञात शक्ति थी? पता नहीं. पर जुगल को उन पर एक भरोसा था.

चिलम बाबा के आसपास कुत्ते बैठे रहते. कभी कभी जुगल कुत्तो के लिए बिस्कुट ले जाता. एक बार चिलम बाबा ने जुगल से कहा था ‘अब की बार कम बिस्कुट लाना.’

कुत्तों को तो बिस्कुट भाते थे फिर चिलम बाबा ने कम लाने क्यों बोला होगा?

उस दिन जुगल चिलम बाबा से अलग हो कर जा रहा था तब उसकी आँखों के सामने चिलम बाबा के इर्द गिर्द रहते कुत्तों में से एक की कार एक्सीडेंट में मौत हो गई थी.

जुगल चौंक पड़ा था. - क्या चिलम बाबा को इस मौत की जानकारी थी इस लिए बिस्कुट कम लाने कहा होगा?

बाबाने एक बार जुगल को कहा था की तुम्हारा परिवार बहुत बड़ा है. जुगल ने जवाब दिया था की भैया भाभी और पत्नी - कुल चार ही लोग परिवार में है. तब मंद मंद मुस्कुरा के बाबा ने कहा था. ‘अरे शून्य बुद्धि ! तेरी दो मां है, दो बाप है, चार पत्नी है, दो बहनें है और कितने लोग चाहिए तुझे रे!’

जुगल सोच सोच के परेशान हो गया की बाबा के इस गूढ़ वाक्य का क्या अर्थ होगा पर उसके पल्ले कुछ नहीं पड़ा था.

खेर, चिलम बाबा का इतना विस्तृत परिचय अभी इसलिए क्योंकि पूना निकलने के आठ दस रोज पहले जुगल बाबा से मिला था और बताया था की वो पूना जाने वाला है. तब बाबा ने हँसकर कहा था. ‘जाओ जाओ जरूर जाओ. एक नया सबक सीखोगे पूना की मुलाकात से..’

‘कौन सा सबक?’ जुगल ने पूछा था तब बाबा ने कहा था : ‘हवा पर कोई पहरा नहीं होता और गांड पर कोई पर्दा नहीं होता.’

जुगल यह सुन कर भौचक्का रह गया था और बाबा ने हंसते हुए समझाया था : शून्य बुद्धि ! इस के माने है की हवा को लाख कोशिशों के बावजूद आप बाँध नहीं सकते वो आखिर बह निकलती है और अपनी गांड को लाख कोशिशों के बावजूद आप बचा नहीं सकते, वो मार दी जाती है…’

यह सुन कर जुगल को पूना की मुलाकात को ले कर एक भय लगने लगा था. पर बाबा ने कहा था - ‘चिंता मत कर, खिड़कियां खुल जायेगी…’

***

जब पूना में शादी के अगली रात में जुगल तीसरी बार शराब पी कर मदहोश होने की कोशिश कर रहा था और एक सुंदर कन्या जिसे अनजाने में उसने वस्त्र हीन दशा में देख लिया था वो कन्या उसके पास आ कर बोली ‘ एक्सक्यूज़ मी ?’ तब जुगल को चिलम बाबा की यह बात याद आ गई थी… -क्या इस लड़की से उसके जीवन में कोई नया खतरा आनेवाला होगा ? क्या बाबा इसी बारे में मुझे आगाह कर रहे होंगे?

उस लड़की को देख जुगल सकपका कर खड़ा हो गया.

‘जी?’

‘हम अभी मिले थे… ऊपर-’ लड़की ने कहा.

‘जी जी वो आप को कपडे के साथ पहचानने में देर लगी…’

लड़की ने चौंक कर पूछा ‘क्या कहा?’

बोल कर जुगल को लगा की ये क्या बोल दिया! उसने अपना शराब का पेग बगल में रख दिया और झुक कर सीधा लड़की के पैर पकड़ लिए और कहने लगा. ‘मुझे बक्श दो, माफ़ कर दो, मैं जान बुझ कर आप के कमरे में नहीं आया था. न ही आपका शरीर ताड़ने का मेरा कोई मकसद था. आप प्लीज़ मुझे माफ़ी दे दे..’

लड़की ने हिचकिचा कर कहा. ‘मेरे पैर छोड़िए भाई साहब प्लीज़…मेरी बात सुनिए. मैं एक जरूरी बात कहने आई हूँ और मैं आप पर नाराज नहीं.’

यह सुन कर जुगल की जान में जान आई. लड़की के पैर छोड़ कर वो सीधा हुआ और नजरे झुका कर लड़की को बिना देखे बोला. ‘आप नाराज नहीं? आप बहुत ही अच्छी लड़की हो.’ और अपना पेग उठाकर उसने पूछा. ‘कहिए क्या जरूरी बात थी?’

‘दो बातें आप से बतानी थी, एक तो यह की खामखां खुद को दोषी न मानिए, गलती आप की नहीं मेरी थी जो दरवाजा ठीक से बंद किये बिना कपडे बदल रही थी…’

जुगल बोला. ‘ओह!’

लड़की ने आगे कहा. ‘और दूसरी बात ये की मैं इसलिए भी आप से नाराज नहीं हूँ क्योंकि आप मेरे शरीर को जब देख रहे थे तब मुझे एक पल भी यह नहीं लगा की आप की नजरो में कामुकता है. बल्कि आप यूँ निहार रहे थे जैसे कोई खूबसूरत पेंटिंग को निहार रहा हो. इसलिए मैं चिल्ला न सकी…. आई मीन चिल्लाने जैसा फील नहीं हुआ.’

लड़की के ऐसे बोल सुन कर जुगल को लगा की उतरा हुआ नशा फिर चढ़ रहा है. दिमाग हल्का हो गया सो नशा हावी हो गया.

उसने हाथ जोड़ कर कहा. ‘देवी जी! आप सुंदर हो. तन से भी मन से भी.’

इतना बोल कर वो नशे में लुढ़क गया. लड़की और बात करना चाहती थी पर जुगल की हालत देख हल्का सा मुस्कुराकर वहां से चली गई.

***

बयान लिख कर हवालदार बाहर गया.

जगदीश और शालिनी उस कमरे से बाहर आये. इंस्पेक्टर मोहिते ने जगदीश के करीब जा कर कहा.

‘आपने अपने बयान में साजन को मारने की क्रेडिट मुझे क्यों दे दी!’

‘बजाय संयोग से साजन भाई मरे क्या यह बेहतर नहीं होगा की आप जैसे सिपाही के हाथों मरे?’

‘अरे पर-’

‘सर, या तो इस केस में सर से पैर तक डूबा हुआ हूँ या तो मुझ पर एक छींटा भी नहीं उड़ा - आप डिसाइड कीजिये.’

‘हम्म. ठीक है. समझता हूँ. डोन्ट वरी आप लोग इस केस में हो ही नहीं. ओके? अब बताओ इतनी रात को कहाँ जाओगे?’मोहिते ने जगदीश की और देखा.

जगदीश ने कहा. ‘यह कौन सा एरिया है? हमारी कार यहां से किस ओर होगी?

इंस्पेक्टर मोहिते ने कुछ सोच कर कहा.’आप लोग अभी पूना के लिए रवाना होंगे?’

जगदीश और शालिनी ने एक दूसरे को देखा.

मोहिते ने कहा. ‘रात को नौ बजने को है. मेरा मशवरा है की इतनी रात को पूना का सफर आप लोग टाले. बिच में दो तीन मोड़ रिस्की है. लूट के लिए हमला हो सकता है…’

‘ओह. पर रात कहां रुक सकते है? यहाँ कोई होटल है करीब में?’ जगदीश ने पूछा.

‘रुकने की व्यवस्था तो मुश्किल है. पर मै कुछ करता हूँ. आप की कार भी मंगवा लेता हूँ मुझे कार का नंबर दीजिए.’

कुछ देर बाद इन्स्पेक्टर मोहिते की जीप में दोनों बैठे थे. मोहिते जीप ड्राइव करते हुए बात कर रहा था. ‘आप लोग शरीफ है यह मुझे समझ आ गया था. यह साजन बहुत कमीना था. ड्रैग सप्लाय, वुमन ट्रैफिकिंग और हाइवे पर लूट… तीनो गुनाह में उसकी गिरोह का नाम बदनाम था. इस के अलावा आप जैसे सीधे सादे कपल उनके हाथ लग जाए तो उन को बहुत टॉर्चर करता था. उस की बीवी किसी गुंडे के साथ भाग गई थी तीन साल पहले. तब से वो औरत जात से नफरत करता था और जो भी औरत हाथ लगे उसे बहुत जलील करता था….’

यह सुन कर शालिनी कांप उठी, उसने डर कर जगदीश का हाथ थाम लिया. जगदीश ने उसके हाथ पर हाथ रख कर उसे सांत्वना दी.

जीप एक दो मंजिला इमारत के पास रुकी.

‘कमरा बहुत छोटा है. मैंने अपने आराम करने के लिए एक सिंगल बेड रखा है. आज की रात एडजस्ट कर लीजिये.’ कहते हुए मोहिते ने पहली मंजिल पर उनको ले जा कर एक कमरे का ताला खोला. तीनो कमरे में दाखिल हुए. कमरा वाकई बहुत छोटा था. दीवार से सट कर एक सिंगल बेड था. ‘इस वक्त आप को और कहीं कोई कमरा नहीं मिलता, मि. रस्तोगी.’ मोहिते ने कहा. ‘आप की कार मैंने मंगवा दी है. नीचे पार्क करवा दूंगा. सुबह मिलते है…’

‘थेंक यु सो मच मोहिते सर.’ जगदीश ने मोहिते से हाथ मिलाते हुए कहा.

मोहिते ने मुस्कुराकर कहा. ‘मेंशन नॉट.’और चला गया.

जगदीश ने कमरे का दरवाजा बंद किया. शालिनी बेड के एक कोने पर बैठ गई. कमरे में गर्मी हो रही थी शालिनी अपना दुपट्टा निकाल कर उससे अपना मुंह पोंछने लगी. जगदीश ने फेन ऑन किया. दुपट्टा हटने की वजह से जगदीश की नजर सहसा शालिनी की छाती पर पड़ी. शालिनी यह देख लजाई और तुरंत उसने अपनी छाती पर दुपट्टा ढांक लिया.

जगदीश ने नज़रे फेर ली.

‘हम क्या यहां रात रुकेंगे?’ शालिनी ने कमरा देखते हुए पूछा. और आगे कहा. ‘दी और जुगल क्या सोचेंगे भैया?’

जगदीश ने कोई जवाब नहीं दिया और फोन डायल करने लगा. फोन लग गया. जगदीश फोन पर कहने लगा. ‘हेलो चांदनी. कार रास्ते में बंद पड गई. मैकेनिक को ढूंढ ने में दो घंटे लग गए. अब वो कह रहा है की कार सुबह के पहले रिपेयर नहीं हो पाएगी. और यहाँ रात रुकने के लिए कोई होटल भी नहीं. हाईवे पर अजीब जगह हम फंस गए है.’

‘हे भगवान अब तुम लोग क्या रात भर गराज में ही बैठे रहोगे?’ चांदनी ने चिंतित स्वर में पूछा.

‘नहीं. चिंता की कोई बात नहीं. रात को पेट्रोलिंग करते हुए पुलिस आई थी. वो लोग हमें हेल्प कर रहे है. एक भला इंस्पेक्टर मिल गया. यहां कोई होटल नहीं इसलिए वो हमें उन के घर ले आया है. शालिनी अभी उस इंस्पेक्टर की बीवी के साथ है. और मैं बाहर के कमरे में रुका हूँ.’

‘अरे अब ये क्या मुसीबत आ गई! हाईवे पर रात में यूँ आप दोनों कहाँ अटक गए!’ चांदनी सब सुन कर दंग थी.

‘हां. पर पुलिस के घर रुकने मिला चांदनी, इस से सलामत जगह क्या होगी! अब सुबह ही हम लोग आ पाएंगे. जुगल कहाँ है? बात कराओ मेरी.’

‘जुगल तो यहाँ के लोगों के साथ पिकनिक मूड में मजे कर रहा है. शायद एक ग्रुप के साथ ड्रिंक ले रहा है…’

‘कोई बात नहीं. उसे एन्जॉय करने दो. तुम्हे शालिनी से बात करनी है? मैं उस के पास यह फोन भिजवाता हूँ, उसका फोन बैटरी डाउन होने से बंद पड गया है.’ शालिनी की और देखते हुए जगदीश ने कहा.

‘ओह तभी मैं सोचु शालिनी का फोन क्यों नहीं आया. भेजिए न उस के पास फोन…’

‘होल्ड करो भेजता हूँ…’

कह कर जगदीश ने फोन के स्पीकर पर हाथ रख कर शालिनी के सामने देखा. शालिनी कुछ नहीं बोली. दोनों चुपचाप बैठे रहे. एक मिनट के बाद जगदीश ने शालिनी को फोन दिया. शालिनी ने फोन पर जगदीश ने कही वोही बातें दोहराई. चांदनी ने पूछा. ‘खाने का क्या किया तुम लोगों ने?’

शालिनी ने जगदीश की और देखते हुए कहा. ‘खाना यहां बन रहा है, आप फ़िक्र न करे दी…आप जुगल पर नजर रखना, शादी ब्याह के मौके पर वो ज्यादा ही शराब पी लेता है.’

इस तरह की कुछ बातों के बाद शालिनी ने फोन काटा. और जगदीश से कहा. ‘इस एक शाम में हम ने कितने पाप कर लिए भैया, दी के साथ भी जूठ बोलना पड़ा.’

‘सच बताते तो उसकी जान निकल जाती.’

‘जान तो मेरी भी लगता है निकल जायेगी जब वो सब याद करती हूँ...’

‘भूल जाओ वो सब बातें और सो जाओ इस बेड पर. मैं नीचे बैठा रहूँगा.’

‘सारी रात जमीन पर बैठेंगे आप? और मैं मजे से सो जाउंगी ? मुझे पाप में डालना है क्या?’

‘पर यह बिस्तर कितना छोटा है देखो?’

‘बिस्तर भी छोटा, कमरा भी छोटा…’ कहते हुए शालिनी खड़े होते हुए बोली. ‘और गर्मी कितनी है! मुंह धो लेती हूँ जरा ठंडक लगेगी.’ कहते हुए वो कोने में बाथरूम था वहां जाने लगी. सहसा जगदीश ने बाथरूम जाती हुई शालिनी के नितंब देखें और कुछ समय पहले सलवार निकाल कर शालिनी उसे अपने कमर के तले के यह गुब्बारे दिखा रही थी वो याद आया. उसने इन खयालो से डर कर आँखे मूंद ली.

बाथरूम में शालिनी ने देखा तो वॉश बेसिन नहीं था. दीवार में एक नल था और उसके साथ दो नोब लगे हुए थे. शालिनी ने एक नोब खोल दिया और फररर से पानी उस पर टूट पड़ा. शालिनी कुछ समझे की पानी कहाँ से आ रहा है तब तक उसके बदन का ऊपरी हिस्सा भीग गया. गलती से शावर ओन कर दिया था यह समझ में आने पर उसने तेजी से उस नोब को बंद कर दिया पर तब तक उस की पूरी कमीज़ भीग कर ट्रांसपैरंट हो चुकी थी. दुपट्टा भी भीग गया था. और उस के बड़े बड़े स्तन को किसी तह सम्हालती हुई उस की काली ब्रा भी पूरी भीग चुकी थी. शालिनी की हालत खराब हो गई. ऐसी आधी नंगी हालत में वो बाहर अपने जेठ के सामने कैसे जायेगी? अपनी तक़दीर को कोसती हुई वो अपने भीगे बाल झटकने गई तब गीली फर्श पर उस का पैर फिसला और वो एक चीख के साथ बाथरूम की भीगी फर्श पर गिर पड़ी. फर्श पर गिर कर वो कराहने लगी और उस की चीख सुन कर जगदीश दौड़ कर बाथरूम में आ गया. बाथरूम में शालिनी को देख वो ठगा सा रह गया. शालिनी का दुपट्टा गले में अटक कर एक और झूल रहा था. उस की कमीज़ भीग कर पारदर्शी हो कर काली ब्रा में स्तन कितने बड़े है यह नुमाइश कर रही थी और उस की सलवार भी फर्श के पानी से भीग कर उसकी जांघो पर चिपक गई थी......



(११ - ये तो सोचा न था…समाप्त, क्रमश:)
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