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( १२ - ये तो सोचा न था…)
[(११ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :
शालिनी कुछ समझे की पानी कहां से आ रहा है तब तक उसके बदन का ऊपरी हिस्सा भीग गया. गलती से शावर ओन कर दिया था यह समझ में आने पर उसने तेजी से उस नोब को बंद कर दिया पर तब तक उस की पूरी कमीज़ भीग कर ट्रांसपैरंट हो चुकी थी. दुपट्टा भी भीग गया था. और उस के बड़े बड़े स्तन को किसी तह सम्हालती हुई उस की काली ब्रा भी पूरी भीग चुकी थी. शालिनी की हालत खराब हो गई. ऐसी आधी नंगी हालत में वो बाहर अपने जेठ के सामने कैसे जायेगी? अपनी तक़दीर को कोसती हुई वो अपने भीगे बाल झटकने गई तब गीली फर्श पर उस का पैर फिसला और वो एक चीख के साथ बाथरूम की भीगी फर्श पर गिर पड़ी. फर्श पर गिर कर वो कराहने लगी और उस की चीख सुन कर जगदीश दौड़ कर बायथरम में आ गया. बाथरूम में शालिनी को देख वो ठगा सा रह गया. शालिनी का दुपट्टा गले में अटक कर एक और झूल रहा था. उस की कमीज़ भीग कर पारदर्शी हो कर काली ब्रा में स्तन कितने बड़े है यह नुमाइश कर रही थी और उस की सलवार भी फर्श के पानी से भीग कर उसकी जांघो पर चिपक गई थी....]
शालिनी जगदीश के सामने एक छप्पन भोग के रस से सराबोर निमंत्रण की तरह प्रस्तुत थी…
शालिनी के भीगे हुए कामोद्दीपक अर्ध नग्न यौवन की एकाधिक धजाओ से लहराता चुनौतीपूर्ण शरीर देख कर जगदीश के बदन में बरबस उत्तेजना का एक लावा फव्वारा की तरह उठा. उस फव्वारे की ताकत इतनी तादाद में थी की कोई भी साधना, तपस्या या मनोबल टूट कर चकनाचूर हो जाए…यह फव्वारा अगर पहाड़ से टकराय तो उसके दो टुकड़े कर दें. यह फव्वारा अगर समंदर में पड़े तो समंदर में रास्ता बन जाए. यह फव्वारा अगर आसमान को छू ले तो उसमें सुराख कर दें…
ऐसे प्रबल फव्वारे के सामने एक औसत इंसान की क्या बिसात?
जगदीश उस फव्वारे के संवेग में पिघल कर अपने लिंग की उत्तुंग अवस्था में एक ही समय कामेच्छा का स्वामी और दास बन कर अतिक्रमण की कगार पर था की अचानक…
अचानक जगदीश की नजर बाथरूम में टंगे आईने पर गई.
यह देख वो आतंकित हो गया की आईने में उसने जो प्रतिबिम्ब देखा वो स्वयं का नहीं था….
कौन था आईने में?
***
जगदीश ने झुक कर शालनी को फर्श पर से खड़ा किया.
शालिनी को कमर में चोट लगी थी. कमर को सहला कर कराहते हुए वो किसी तरह खड़ी हुई.
‘शालिनी, तुम तो पूरी भीग गई हो…रुको कमरे में कुछ कपड़े हो तो देखता हूँ, यह भीगे कपडे बदलने होंगे.’
कह कर जगदीश बाथरूम के बाहर गया और कमरे में कोई कपड़ा है क्या वो देखने लगा. कहीं कुछ नहीं मिला. आखिरकार तकिये के नीचे उसे एक बड़ा वाला जेंट्स कुरता दिखा. वो ले कर उसने बाथरूम में जा कर शालिनी को दिया और कहा. ‘यही है और कुछ नहीं शालिनी, इसे बदल लो, और कमीज़ सलवार निकाल दो वरना भीगे कपड़ो से तुम बीमार पड जाओगी.
कमर के दर्द की वजह से शालिनी परेशान थी. जैसे तैसे उसने कमीज़ निकाल दी. ब्रा भी बहुत भीग गई थी. उसने ब्रा भी हटा कर बाजू में रखी और कुर्ता पहन लिया. बाहर से जगदीश ने फिर कहा ‘शालिनी, कुर्ता काफी लंबा है, सलवार भी बहुत भीग गई है,उसे भी निकाल देना.’
शालिनी ने देखा. कुर्ता घुटनों तक आ रहा था. उसने सलवार भी निकाल दी.
पर
कुर्ता पहन लेने के बाद उसे इस बात का अहसास हुआ की कुर्ता एकदम ट्रांसपेरेंट है…
उसे बाहर निकलने में शर्म आने लगी. और उसी वक्त दरवाजे पर दस्तक हुई.
शालिनी सहम गई. कौन होगा?
***
जगदीश ने दरवाजा खोला तो बाहर एक हवालदार टिफिन लिए खड़ा था. ‘मोहिते साहब ने खाना भेजा है.’ कह कर उसने टिफिन दिया. जगदीश ने उसे शुक्रिया कह कर दरवाजा बंद किया और बाथरूम की और देख कर कहा. ‘चलो अब तो खाना भी आ गया. आ जाओ शालिनी.’
शालिनी बोली ‘आई भैया…’ पर उसे बाहर निकलने में संकोच हो रहा था. और कमर में दर्द हो रहा था. अपनी इस हालत पर उसे फिर रोना आ गया. वो सुबक सुबक कर दीवार के सहारे खड़ी हो कर रोने लगी. उस के रोने की आवाज सुन कर जगदीश होले से बाथरूम में गया. शालिनी को दीवार में सर छिपा कर रोते हुए देख उसने पूछा. ‘क्या बात है? कमर में बहुत लगी क्या ?’
यह सुन कर शालिनी और रोने लगी. कमर के दर्द के आलावा ऐसी आधी नंगी वो जेठ के सामने खड़ी है इस बात का भी उसे बहुत बुरा लग रहा था. जगदीश को लगा की शालिनी दर्द के मारे चल नहीं पा रही. उसने तुरंत शालिनी को गोद में उठा लिया. शालिनी कुछ समझे उससे पहले जगदीश ने उसे बाहर बिस्तर पर लिटा दिया और बिस्तर पर उसे लिटाते हुए जगदीश ने देखा की शालिनी कमोबेश नंगी है. शालिनी शर्म के मारे बैठ कर अपना बदन छिपाने की कोशिश करने लगी पर कमर में दर्द उभर आने पर वो फिर कमर सहलाते कराहने लगी. उस की यह हालत देख जगदीश उसके करीब बैठ उसकी कमर सहलाते हुए बोला। ‘कमर में बहुत दर्द हो रहा है क्या?’
शालिनी बेबसी से रो पड़ी. रोते हुए बोली. ‘हर जगह दर्द हो रहा है. क्या हालत हो गई है मेरी. यह कोई कपड़े है? उन मवालीओ ने कहा वो ही सच हो गया. अपने जेठ जी के सामने देखो रांड की तरह बिना कपड़ो के बैठी हूँ…' कह कर फिर वो फफक फफक कर रोने लगी.
जगदीश को उसके हाल पर तरस आ गया. ‘ ना ना… बेटा….ऐसा नहीं बोलते…. तू रांड नहीं है.’ कहते हुए उसे बांहों में खींच कर उस की पीठ सहलाते हुए आगे कहा. ‘तू तो मेरी बेटी है. नाजुक सी प्यारी सी मासूम बेटी...’ कह कर जगदीश ने उसके माथे पर चुम्बन किया.
उस चुम्बन के बाद दोनों उसी स्थिति में जैसे स्थिर हो गए किसी बूत की तरह.
फिर जगदीश ने स्नेह से शालिनी की चिबुक अपनी उंगलियों से थाम कर चहेरा ऊपर उठाया. . शालिनी ने लज्जा पूर्ण नजरो से जगदीश को देख कर अपनी पलके नीचे झुका दी.
‘बेटा…’ कह कर जगदीश ने शालिनी को अपनी बांहो से मुक्त किया, खुद थोड़ा पीछे हटा.
जगदीश की इस हरकत से शालिनी का बदन ‘खुले’ में आ गया. अब तक उसका भीगा अधनंगा जिस्म जगदीश की बांहों में ‘ढका’ हुआ था. पर अब एक पारदर्शी कुर्ते में शालिनी जगदीश के सामने मानो महाभोज की तरह प्रदर्शन में आन पड़ी. शर्मशार हो कर त्वरा से शालिनी ने अपनी विशाल स्तन राशि को हाथों की आड़ में छिपाने की बेअसर कोशिश की. जगदीश को शालिनी की स्थिति बराबर समझ में आ रही थी. अचानक उसने बिस्तर पर बिछी चद्दर को खींच लिया. शालिनी को एक झटका लगा पर वो कुछ समझे इससे पहले चद्दर बिस्तर से निकल कर जगदीश के हाथ में पहुंच गई थी. जगदीश ने उस चद्दर को शालिनी के बदन पर डालते हुए कहा. ‘बेटा, अपने शरीर को ठीक से ढक लो, तुम कैसी बेबसी महसूस कर रही हो यह मैं समझता हूँ..’
शालिनी ने तुरंत उस चद्दर से शरीर को ठीक से कवर कर लिया।
पर निगोड़े स्तन!
शालिनी को डूब मरने को जी होने लगा. उस की अर्ध नग्न अवस्था पर तरस खाकर जगदीश ने चद्दर ओढ़ने का उपाय ढूंढ निकाला पर शालिनी के स्तन इतने उफान पर थे गोया चद्दर फाड़ कर बाहर आ जाएंगे, जैसे चीख चीख कर नारे लगा रहे हो : हम है, हम शान से तने है, हमे देखो, हमें सहलाओ, हमें प्यार करो, हमें न्याय दो…
शालिनी अपने जिस्म के हिस्सों की यह बेहयाई देख असहायता के अंतिम पर पहुंच गई. और उस की आंखे फिर भीग गई. जगदीश ने कमरे के एक कोने में मटका देखा, उसमें से पानी का एक प्याला भर कर वो शालिनी को दे रहा था तब फिर उस की आँखे नम देख कर उसने पूछा. ‘क्या हुआ शालिनी? तुम फिर क्यों रो रही हो?’
अपने आंसू पोंछ कर शालिनी ने गोया कोई कड़ा फैसला लिया हो, दृढ चहेरे के साथ कहा, ‘भैय्या, आप को एक काम करना होगा.’
‘क्या हुआ बताओ?’
‘यह पुलिस इंस्पेक्टर का घर है, शायद घर में कहीं पर रिवाल्वर भी होगी!’
जगदीश चौंका, पर चेहरा सहज रख कर बोला.‘रिवाल्वर का क्या काम पड़ गया अब?’
‘कम से कम चाक़ू तो होगा ही घर में!’
‘बेटा! मुझे बताओगी कि तुम्हारे दिमाग में क्या चल रहा है?’
‘भैया आपने जब साजन भाई को मार दिया तब ही मुझे भी मार देना चाहिए था…’
इतना बोलते बोलते शालिनी की दृढ़ता पिघल गई और वो फिर फफक कर रो पड़ी.
इस बार जगदीश ने उसे रोने से रोका नहीं, रोने दिया. उसे लग रहा था की यह आंसू भी शालिनी की उस बात का हिस्सा है जो वो बताना चाहती है, वो बात जो बड़ी उधेड़बुन के बाद वो कहने की कोशिश कर रही है, उसे बोलने देना चाहिए- बिना किसी व्यवधान के.
जब शालिनी का रोना थोड़ा मंद हुआ तब बड़ी नरम आवाज में जगदीश में पूछा. ‘तुम को क्यों मार देना चाहिए बेटा ?’
‘मत पुकारो मुझे बेटा…!’ शालिनी ने चीखनुमा आवाज में कहा. जगदीश सहम गया. शालिनी अपनी आंखे पोंछते हुए आगे बोली. ‘न मैं आप की बेटी कहलाने लायक हूँ न बहु, अरे मैं तो आप के रस्तोगी परिवार का कुछ भी कहलाने योग्य नहीं हूँ. पता है जब वो कमीना साजन भाई बोला था की - देखो तुम्हारे जेठ का औजार और बताओ की साइज़ क्या है तब -’
शालिनी रुक गई.
जगदीश ने कुछ पल राह देखि फिर पूछा. ‘बोलो शालिनी तब क्या?’
‘...तब मेरे मन में आप के बारे में कामुक ख़याल आये थे भैय्या..’ बोलते हुए वो फिर रो पड़ी.
जगदीश चुप रहा. फिर बोला. ‘उस वक्त तुमने देखा था ना कि मेरे लिंग में भी तनाव था?’
‘आप पुरुष हो भैया, पुरुष जब कामोत्तेजित होता है तब बाहरी तौर पर पता चल जाता है सो इल्जाम लगाना आसान हो जाता है. औरत के अंदर कामवासना क्या असर रचती है यह बाहर किसी को पता नहीं चलता. आप को भी पता नहीं चला की मेरे मन में क्या चल रहा था. लेकिन मैं खुद बता रही हूँ. आप जैसे सज्जन इंसान के साथ मैं धोखा नहीं कर सकती….’
‘शालिनी, इतना आवेश में मत आ जाओ, सज्जन, इंसान और धोखा - ऐसे सब भारी भारी शब्द क्यों बोल रही हो? आराम से बात करो-’
‘भैया. मुझे बोलने दें. प्लीज़.’
जगदीश ने शालिनी की और देखा. वो आगे बोली.
‘मैं आप को यह बताना चाहती हूँ की उस गोडाउन में साजन भाई ने जो कुछ भी हरकतें की वो इतनी शर्मनाक और गीरी हुई थी की आपने उसे खत्म कर दिया. भैया, आपने सही किया पर आप ने मुझ पर भी गोली चला देनी चाहिए थी. क्योंकि उस साजन भाई की नीच हरकतों को मैं भी कोस रही थी, लजा रही थी पर साथ साथ मैं कामुक भी हो रही थी. बताने में कोई गर्व नहीं बल्कि शर्मिंदगी ही हो रही है पर यह मेरा इकबाले जुर्म है भैया की उस वक्त मेरी योनि गीली हो चुकी थी. कहीं न कहीं मैं भी पाप की हिस्सेदार हूँ.सो आप मुझे भी मार दें. ’
जगदीश को शालिनी पर स्नेह उभर आया : क्या कोई इतना मासूम हो सकता है?
वो शालिनी के करीब गया और उसकी नम आंखों वाला चेहरा दोनों हाथों से उठा कर उसकी आंखों में देखा. शालिनी ने तुरंत दोष भावना के चलते अपनी आंखें झुका दी. जगदीश मुस्कुराया और उसके माथे पर एक चुम्बन किया. और उससे थोड़ी दुरी पर बैठा.
शालिनी ने कहा. ‘आप क्या मुझे छोटी बच्ची समझ कर लाड कर रहे हो? मैं आप को सजा देने कह रही हूँ और आप है कि माथे पर पप्पी दे रहे हो?
जगदीश ने अचानक कहा. ‘अपने बदन से चद्दर हटाओ.’
शालिनी ने चौंक कर जगदीश की और देखा.
‘तुमने सही सुना. मैंने तुम्हें अपनी छाती पर से चद्दर हटाने कहा. मुझे अपने स्तन बताओ.’
शालिनी को यकीन नहीं हो रहा था की उसके जेठ उसे स्तन बताने कह रहे है.
‘शालिनी.’ शालिनी के चकित चेहरे को देखते हुए जगदीश ने कहा. ‘कोई जबरदस्ती नहीं. कोई रिवाल्वर की नोक पर तुम्हे स्तन बताने नहीं कह रहा. बोलो चद्दर हटाओगी?’
शालिनी ने हिचकिचाहट के साथ अपनी छाती से चद्दर हटाई.
पारदर्शी कुर्ते में उसकी अदभुत स्तन राशि दृश्यमान हुई.
जगदीश ने अपने पेंट पर से शर्ट ऊपर करते हुए शालिनी से कहा. ‘मेरे लिंग की और देखो.’
शालिनी को अजीब लगा. पर उसने देखा.
‘क्या मेरे लिंग में तनाव दिख रहा है?
शालिनी ने देखा की नहीं था तनाव. उसने कहा. ‘नहीं.’
जगदीश ने अपना शर्ट ठीक किया और शालिनी से कहा. ‘अब चद्दर ढक लो अपनी छाती पर.’
शालिनी ने अपनी छाती पर चद्दर ढक लिया. जगदीश ने कहा. ‘मुझे बताओ. क्यों नहीं मेरे लिंग में तनाव?’
शालिनी जगदीश की ओर उलझ कर देखने लगी.
जगदीश ने कहा. ‘क्या तुम सुंदर नहीं ? आकर्षक नहीं? क्या तुम्हारे स्तन कामोत्तेजक नहीं लगते? इतने पारदर्शी कपड़ो में क्या वो लुभावने नहीं लगते?’
शालिनी को समझ में नहीं आया की क्या जवाब दें.
जगदीश ने कहा. ‘गोडाउन में तुम्हारी योनि गीली हुई उससे तुम शर्मिंदा हो पर मैंने तो अभी कुछ पल पहले जब तुम्हे बाथरूम में करीब करीब नग्नावस्था में देखा तब अपने लिंग में एक तूफ़ान महसूस किया, मैं कामांध हो कर तुम्हे भोगने की कगार पर था. मेरे अंदर एक जबरदस्त आवेग आया की मैं तुम्हारे बदन को आगोश में ले कर तुम्हारा रसपान करूं. तुम्हारे बदन के हर अंग को चुसू, चाटु....’
शालिनी अवाक हो कर सुनती रही.
जगदीश ने कहा, ‘तभी मुझे साजन भाई दिखा.’
शालिनी डर कर बोली.’भैया ! क्या कह रहे हो?’
जगदीश ने कहा, ‘हां शालिनी. मैंने आईने में अपना चेहरा देखा तो लगा की मैं मैं नहीं रहा बल्कि साजन भाई में तब्दील हो गया हूँ. कोई फर्क नहीं रहा था मुझमे और साजन भाई में उस वक्त. पराई स्त्री या बेबस हाथ लगी स्त्री को भोगना, उस के बदन को घूरना उससे मनमानी करना… यह क्या है ? साजन भाई होना ही तो है? तुम और मैं इस छोटे से कमरे में क्यों एक साथ है? हम न कोई प्रेमी है न एक दूसरे से शारीरिक संबंध बनाना चाहते है. हम हालत के हाथो बेबस एक छोटे से कमरे में एक साथ मौजूद है. एक पुलिसवाला हमें हेल्प कर रहा है, उसको यह कह कर की हम पति पत्नी नहीं है मैं उसका टेंशन बढ़ाना नहीं चाहता था. इसलिए हम एक कपल की तरह यहाँ पर इस वक्त उपस्थित है. यह कोई तुम्हारी चॉइस नहीं की तुम मेरे साथ कमरा शेर करो. तुम अपना बदन दिखा कर मुझे सेक्स करने सिड्यूस नहीं कर रही थी. तुम और मैं हालत के हाथों इस अजीब स्थिति में फंसे हुए है. और मैं ऐसे में अगर तुम्हारी मजबूरी का फायदा उठाऊं तो मुझमे और साजन भाई में क्या फर्क है?’
शालिनी जगदीश की बातों को मंत्रमुग्ध होकर सुनती रही.
जगदीश ने कहा. ‘शालिनी, जो सहज नहीं वो पाप है. मैं कुछ ऐसा सोच रहा था जो असहज था. गोडाउन में तुम्हारी योनि का गीला होना या मेरे लिंग में तनाव आना मैं गलत नहीं समझता. क्यों की कोई हमें अपने विकृत षड्यंत्र के चलते ऐसी स्थिति में धकेल रहा था. बिना किसी मानसिक तैयारी के हमारा कब्ज़ा किसी और ने कर लिया और एक दूसरे के अधनंगे शरीर तथा शरीर संबंधित न सोची हुई बातें सुनकर -कह कर हम उत्तेजित हो गए थे सो हमारे शरीर पर उसका प्र्रभाव होना लाजिमी था. क्योंकि अंतत: हम एक स्त्री और पुरुष है. और कामेच्छा कुदरती है. पूरे मामले में गैर कुदरती बात थी वो यह कि जिस तरह हम उस मुकाम पर पहुंचे थे. हम अपनी मर्जी से नहीं गए थे उस स्थिति में. किसी की विकृति हमे एक दूजे के प्रति उत्तेजित कर रही थी - शालिनी, यह कुदरती नहीं था. और कुदरती नहीं था इसलिए सहज नहीं था.’
जगदीश इतना बोल कर रुका. शालिनी की और देखा. वो ध्यान से सुन रही थी. जगदीश ने आगे कहा.
‘उस असहज स्थिति से तो हम बाहर आ गए. पर इस कमरे में फिर एकबार विचित्र स्थिति खड़ी हुई. पर क्या यह सहज था ? नहीं. जिस तरह गोडाउन में हमारी मर्जी नहीं थी उस तरह इस कमरे में तुम्हारी मरजी या इच्छा के बगैर तुम अनजाने में, संयोग से कामोत्तेजक अवस्था में मेरे सामने थी. मुझे संभोग का मोह हो गया. पर अगर मैं अपने शरीर की इच्छा पूर्ण करता तो क्या वो संभोग होता? नहीं. संभोग का मतलब है सम+भोग. दोनों पात्र की समान भोग की इच्छा का होना जरूरी है. तभी वो संभोग होगा. यहां तो मैं कामुकता के बहाव में था. और तुम ? तुम तो बेचारी कपडे भीग जाने पर शर्मसार हो गई थी की इस हालत में बाहर जेठ के सामने कैसे जाऊं…! और मैं उस स्थिति में तुम्हे भोगु?’
कह कर जगदीश ने शालिनी और देखा तो वो रो रही थी. उसकी आंखों में जैसे नदी बह रही थी. जगदीश हैरान हो गया की शालिनी रो क्यों रही है!
‘शालिनी!’
शालिनी ने अपनी आंखों को पोंछने का प्रयास किये बिना कहा. ‘भैया.’
‘बोलो शालिनी.’
‘भैया, आई लव यू.’
और वो जगदीश से लिपट गई.....
(१२ - ये तो सोचा न था…समाप्त, क्रमश![Smile :) :)](data:image/gif;base64,R0lGODlhAQABAIAAAAAAAP///yH5BAEAAAAALAAAAAABAAEAAAIBRAA7)
[(११ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :
शालिनी कुछ समझे की पानी कहां से आ रहा है तब तक उसके बदन का ऊपरी हिस्सा भीग गया. गलती से शावर ओन कर दिया था यह समझ में आने पर उसने तेजी से उस नोब को बंद कर दिया पर तब तक उस की पूरी कमीज़ भीग कर ट्रांसपैरंट हो चुकी थी. दुपट्टा भी भीग गया था. और उस के बड़े बड़े स्तन को किसी तह सम्हालती हुई उस की काली ब्रा भी पूरी भीग चुकी थी. शालिनी की हालत खराब हो गई. ऐसी आधी नंगी हालत में वो बाहर अपने जेठ के सामने कैसे जायेगी? अपनी तक़दीर को कोसती हुई वो अपने भीगे बाल झटकने गई तब गीली फर्श पर उस का पैर फिसला और वो एक चीख के साथ बाथरूम की भीगी फर्श पर गिर पड़ी. फर्श पर गिर कर वो कराहने लगी और उस की चीख सुन कर जगदीश दौड़ कर बायथरम में आ गया. बाथरूम में शालिनी को देख वो ठगा सा रह गया. शालिनी का दुपट्टा गले में अटक कर एक और झूल रहा था. उस की कमीज़ भीग कर पारदर्शी हो कर काली ब्रा में स्तन कितने बड़े है यह नुमाइश कर रही थी और उस की सलवार भी फर्श के पानी से भीग कर उसकी जांघो पर चिपक गई थी....]
शालिनी जगदीश के सामने एक छप्पन भोग के रस से सराबोर निमंत्रण की तरह प्रस्तुत थी…
शालिनी के भीगे हुए कामोद्दीपक अर्ध नग्न यौवन की एकाधिक धजाओ से लहराता चुनौतीपूर्ण शरीर देख कर जगदीश के बदन में बरबस उत्तेजना का एक लावा फव्वारा की तरह उठा. उस फव्वारे की ताकत इतनी तादाद में थी की कोई भी साधना, तपस्या या मनोबल टूट कर चकनाचूर हो जाए…यह फव्वारा अगर पहाड़ से टकराय तो उसके दो टुकड़े कर दें. यह फव्वारा अगर समंदर में पड़े तो समंदर में रास्ता बन जाए. यह फव्वारा अगर आसमान को छू ले तो उसमें सुराख कर दें…
ऐसे प्रबल फव्वारे के सामने एक औसत इंसान की क्या बिसात?
जगदीश उस फव्वारे के संवेग में पिघल कर अपने लिंग की उत्तुंग अवस्था में एक ही समय कामेच्छा का स्वामी और दास बन कर अतिक्रमण की कगार पर था की अचानक…
अचानक जगदीश की नजर बाथरूम में टंगे आईने पर गई.
यह देख वो आतंकित हो गया की आईने में उसने जो प्रतिबिम्ब देखा वो स्वयं का नहीं था….
कौन था आईने में?
***
जगदीश ने झुक कर शालनी को फर्श पर से खड़ा किया.
शालिनी को कमर में चोट लगी थी. कमर को सहला कर कराहते हुए वो किसी तरह खड़ी हुई.
‘शालिनी, तुम तो पूरी भीग गई हो…रुको कमरे में कुछ कपड़े हो तो देखता हूँ, यह भीगे कपडे बदलने होंगे.’
कह कर जगदीश बाथरूम के बाहर गया और कमरे में कोई कपड़ा है क्या वो देखने लगा. कहीं कुछ नहीं मिला. आखिरकार तकिये के नीचे उसे एक बड़ा वाला जेंट्स कुरता दिखा. वो ले कर उसने बाथरूम में जा कर शालिनी को दिया और कहा. ‘यही है और कुछ नहीं शालिनी, इसे बदल लो, और कमीज़ सलवार निकाल दो वरना भीगे कपड़ो से तुम बीमार पड जाओगी.
कमर के दर्द की वजह से शालिनी परेशान थी. जैसे तैसे उसने कमीज़ निकाल दी. ब्रा भी बहुत भीग गई थी. उसने ब्रा भी हटा कर बाजू में रखी और कुर्ता पहन लिया. बाहर से जगदीश ने फिर कहा ‘शालिनी, कुर्ता काफी लंबा है, सलवार भी बहुत भीग गई है,उसे भी निकाल देना.’
शालिनी ने देखा. कुर्ता घुटनों तक आ रहा था. उसने सलवार भी निकाल दी.
पर
कुर्ता पहन लेने के बाद उसे इस बात का अहसास हुआ की कुर्ता एकदम ट्रांसपेरेंट है…
उसे बाहर निकलने में शर्म आने लगी. और उसी वक्त दरवाजे पर दस्तक हुई.
शालिनी सहम गई. कौन होगा?
***
जगदीश ने दरवाजा खोला तो बाहर एक हवालदार टिफिन लिए खड़ा था. ‘मोहिते साहब ने खाना भेजा है.’ कह कर उसने टिफिन दिया. जगदीश ने उसे शुक्रिया कह कर दरवाजा बंद किया और बाथरूम की और देख कर कहा. ‘चलो अब तो खाना भी आ गया. आ जाओ शालिनी.’
शालिनी बोली ‘आई भैया…’ पर उसे बाहर निकलने में संकोच हो रहा था. और कमर में दर्द हो रहा था. अपनी इस हालत पर उसे फिर रोना आ गया. वो सुबक सुबक कर दीवार के सहारे खड़ी हो कर रोने लगी. उस के रोने की आवाज सुन कर जगदीश होले से बाथरूम में गया. शालिनी को दीवार में सर छिपा कर रोते हुए देख उसने पूछा. ‘क्या बात है? कमर में बहुत लगी क्या ?’
यह सुन कर शालिनी और रोने लगी. कमर के दर्द के आलावा ऐसी आधी नंगी वो जेठ के सामने खड़ी है इस बात का भी उसे बहुत बुरा लग रहा था. जगदीश को लगा की शालिनी दर्द के मारे चल नहीं पा रही. उसने तुरंत शालिनी को गोद में उठा लिया. शालिनी कुछ समझे उससे पहले जगदीश ने उसे बाहर बिस्तर पर लिटा दिया और बिस्तर पर उसे लिटाते हुए जगदीश ने देखा की शालिनी कमोबेश नंगी है. शालिनी शर्म के मारे बैठ कर अपना बदन छिपाने की कोशिश करने लगी पर कमर में दर्द उभर आने पर वो फिर कमर सहलाते कराहने लगी. उस की यह हालत देख जगदीश उसके करीब बैठ उसकी कमर सहलाते हुए बोला। ‘कमर में बहुत दर्द हो रहा है क्या?’
शालिनी बेबसी से रो पड़ी. रोते हुए बोली. ‘हर जगह दर्द हो रहा है. क्या हालत हो गई है मेरी. यह कोई कपड़े है? उन मवालीओ ने कहा वो ही सच हो गया. अपने जेठ जी के सामने देखो रांड की तरह बिना कपड़ो के बैठी हूँ…' कह कर फिर वो फफक फफक कर रोने लगी.
जगदीश को उसके हाल पर तरस आ गया. ‘ ना ना… बेटा….ऐसा नहीं बोलते…. तू रांड नहीं है.’ कहते हुए उसे बांहों में खींच कर उस की पीठ सहलाते हुए आगे कहा. ‘तू तो मेरी बेटी है. नाजुक सी प्यारी सी मासूम बेटी...’ कह कर जगदीश ने उसके माथे पर चुम्बन किया.
उस चुम्बन के बाद दोनों उसी स्थिति में जैसे स्थिर हो गए किसी बूत की तरह.
फिर जगदीश ने स्नेह से शालिनी की चिबुक अपनी उंगलियों से थाम कर चहेरा ऊपर उठाया. . शालिनी ने लज्जा पूर्ण नजरो से जगदीश को देख कर अपनी पलके नीचे झुका दी.
‘बेटा…’ कह कर जगदीश ने शालिनी को अपनी बांहो से मुक्त किया, खुद थोड़ा पीछे हटा.
जगदीश की इस हरकत से शालिनी का बदन ‘खुले’ में आ गया. अब तक उसका भीगा अधनंगा जिस्म जगदीश की बांहों में ‘ढका’ हुआ था. पर अब एक पारदर्शी कुर्ते में शालिनी जगदीश के सामने मानो महाभोज की तरह प्रदर्शन में आन पड़ी. शर्मशार हो कर त्वरा से शालिनी ने अपनी विशाल स्तन राशि को हाथों की आड़ में छिपाने की बेअसर कोशिश की. जगदीश को शालिनी की स्थिति बराबर समझ में आ रही थी. अचानक उसने बिस्तर पर बिछी चद्दर को खींच लिया. शालिनी को एक झटका लगा पर वो कुछ समझे इससे पहले चद्दर बिस्तर से निकल कर जगदीश के हाथ में पहुंच गई थी. जगदीश ने उस चद्दर को शालिनी के बदन पर डालते हुए कहा. ‘बेटा, अपने शरीर को ठीक से ढक लो, तुम कैसी बेबसी महसूस कर रही हो यह मैं समझता हूँ..’
शालिनी ने तुरंत उस चद्दर से शरीर को ठीक से कवर कर लिया।
पर निगोड़े स्तन!
शालिनी को डूब मरने को जी होने लगा. उस की अर्ध नग्न अवस्था पर तरस खाकर जगदीश ने चद्दर ओढ़ने का उपाय ढूंढ निकाला पर शालिनी के स्तन इतने उफान पर थे गोया चद्दर फाड़ कर बाहर आ जाएंगे, जैसे चीख चीख कर नारे लगा रहे हो : हम है, हम शान से तने है, हमे देखो, हमें सहलाओ, हमें प्यार करो, हमें न्याय दो…
शालिनी अपने जिस्म के हिस्सों की यह बेहयाई देख असहायता के अंतिम पर पहुंच गई. और उस की आंखे फिर भीग गई. जगदीश ने कमरे के एक कोने में मटका देखा, उसमें से पानी का एक प्याला भर कर वो शालिनी को दे रहा था तब फिर उस की आँखे नम देख कर उसने पूछा. ‘क्या हुआ शालिनी? तुम फिर क्यों रो रही हो?’
अपने आंसू पोंछ कर शालिनी ने गोया कोई कड़ा फैसला लिया हो, दृढ चहेरे के साथ कहा, ‘भैय्या, आप को एक काम करना होगा.’
‘क्या हुआ बताओ?’
‘यह पुलिस इंस्पेक्टर का घर है, शायद घर में कहीं पर रिवाल्वर भी होगी!’
जगदीश चौंका, पर चेहरा सहज रख कर बोला.‘रिवाल्वर का क्या काम पड़ गया अब?’
‘कम से कम चाक़ू तो होगा ही घर में!’
‘बेटा! मुझे बताओगी कि तुम्हारे दिमाग में क्या चल रहा है?’
‘भैया आपने जब साजन भाई को मार दिया तब ही मुझे भी मार देना चाहिए था…’
इतना बोलते बोलते शालिनी की दृढ़ता पिघल गई और वो फिर फफक कर रो पड़ी.
इस बार जगदीश ने उसे रोने से रोका नहीं, रोने दिया. उसे लग रहा था की यह आंसू भी शालिनी की उस बात का हिस्सा है जो वो बताना चाहती है, वो बात जो बड़ी उधेड़बुन के बाद वो कहने की कोशिश कर रही है, उसे बोलने देना चाहिए- बिना किसी व्यवधान के.
जब शालिनी का रोना थोड़ा मंद हुआ तब बड़ी नरम आवाज में जगदीश में पूछा. ‘तुम को क्यों मार देना चाहिए बेटा ?’
‘मत पुकारो मुझे बेटा…!’ शालिनी ने चीखनुमा आवाज में कहा. जगदीश सहम गया. शालिनी अपनी आंखे पोंछते हुए आगे बोली. ‘न मैं आप की बेटी कहलाने लायक हूँ न बहु, अरे मैं तो आप के रस्तोगी परिवार का कुछ भी कहलाने योग्य नहीं हूँ. पता है जब वो कमीना साजन भाई बोला था की - देखो तुम्हारे जेठ का औजार और बताओ की साइज़ क्या है तब -’
शालिनी रुक गई.
जगदीश ने कुछ पल राह देखि फिर पूछा. ‘बोलो शालिनी तब क्या?’
‘...तब मेरे मन में आप के बारे में कामुक ख़याल आये थे भैय्या..’ बोलते हुए वो फिर रो पड़ी.
जगदीश चुप रहा. फिर बोला. ‘उस वक्त तुमने देखा था ना कि मेरे लिंग में भी तनाव था?’
‘आप पुरुष हो भैया, पुरुष जब कामोत्तेजित होता है तब बाहरी तौर पर पता चल जाता है सो इल्जाम लगाना आसान हो जाता है. औरत के अंदर कामवासना क्या असर रचती है यह बाहर किसी को पता नहीं चलता. आप को भी पता नहीं चला की मेरे मन में क्या चल रहा था. लेकिन मैं खुद बता रही हूँ. आप जैसे सज्जन इंसान के साथ मैं धोखा नहीं कर सकती….’
‘शालिनी, इतना आवेश में मत आ जाओ, सज्जन, इंसान और धोखा - ऐसे सब भारी भारी शब्द क्यों बोल रही हो? आराम से बात करो-’
‘भैया. मुझे बोलने दें. प्लीज़.’
जगदीश ने शालिनी की और देखा. वो आगे बोली.
‘मैं आप को यह बताना चाहती हूँ की उस गोडाउन में साजन भाई ने जो कुछ भी हरकतें की वो इतनी शर्मनाक और गीरी हुई थी की आपने उसे खत्म कर दिया. भैया, आपने सही किया पर आप ने मुझ पर भी गोली चला देनी चाहिए थी. क्योंकि उस साजन भाई की नीच हरकतों को मैं भी कोस रही थी, लजा रही थी पर साथ साथ मैं कामुक भी हो रही थी. बताने में कोई गर्व नहीं बल्कि शर्मिंदगी ही हो रही है पर यह मेरा इकबाले जुर्म है भैया की उस वक्त मेरी योनि गीली हो चुकी थी. कहीं न कहीं मैं भी पाप की हिस्सेदार हूँ.सो आप मुझे भी मार दें. ’
जगदीश को शालिनी पर स्नेह उभर आया : क्या कोई इतना मासूम हो सकता है?
वो शालिनी के करीब गया और उसकी नम आंखों वाला चेहरा दोनों हाथों से उठा कर उसकी आंखों में देखा. शालिनी ने तुरंत दोष भावना के चलते अपनी आंखें झुका दी. जगदीश मुस्कुराया और उसके माथे पर एक चुम्बन किया. और उससे थोड़ी दुरी पर बैठा.
शालिनी ने कहा. ‘आप क्या मुझे छोटी बच्ची समझ कर लाड कर रहे हो? मैं आप को सजा देने कह रही हूँ और आप है कि माथे पर पप्पी दे रहे हो?
जगदीश ने अचानक कहा. ‘अपने बदन से चद्दर हटाओ.’
शालिनी ने चौंक कर जगदीश की और देखा.
‘तुमने सही सुना. मैंने तुम्हें अपनी छाती पर से चद्दर हटाने कहा. मुझे अपने स्तन बताओ.’
शालिनी को यकीन नहीं हो रहा था की उसके जेठ उसे स्तन बताने कह रहे है.
‘शालिनी.’ शालिनी के चकित चेहरे को देखते हुए जगदीश ने कहा. ‘कोई जबरदस्ती नहीं. कोई रिवाल्वर की नोक पर तुम्हे स्तन बताने नहीं कह रहा. बोलो चद्दर हटाओगी?’
शालिनी ने हिचकिचाहट के साथ अपनी छाती से चद्दर हटाई.
पारदर्शी कुर्ते में उसकी अदभुत स्तन राशि दृश्यमान हुई.
जगदीश ने अपने पेंट पर से शर्ट ऊपर करते हुए शालिनी से कहा. ‘मेरे लिंग की और देखो.’
शालिनी को अजीब लगा. पर उसने देखा.
‘क्या मेरे लिंग में तनाव दिख रहा है?
शालिनी ने देखा की नहीं था तनाव. उसने कहा. ‘नहीं.’
जगदीश ने अपना शर्ट ठीक किया और शालिनी से कहा. ‘अब चद्दर ढक लो अपनी छाती पर.’
शालिनी ने अपनी छाती पर चद्दर ढक लिया. जगदीश ने कहा. ‘मुझे बताओ. क्यों नहीं मेरे लिंग में तनाव?’
शालिनी जगदीश की ओर उलझ कर देखने लगी.
जगदीश ने कहा. ‘क्या तुम सुंदर नहीं ? आकर्षक नहीं? क्या तुम्हारे स्तन कामोत्तेजक नहीं लगते? इतने पारदर्शी कपड़ो में क्या वो लुभावने नहीं लगते?’
शालिनी को समझ में नहीं आया की क्या जवाब दें.
जगदीश ने कहा. ‘गोडाउन में तुम्हारी योनि गीली हुई उससे तुम शर्मिंदा हो पर मैंने तो अभी कुछ पल पहले जब तुम्हे बाथरूम में करीब करीब नग्नावस्था में देखा तब अपने लिंग में एक तूफ़ान महसूस किया, मैं कामांध हो कर तुम्हे भोगने की कगार पर था. मेरे अंदर एक जबरदस्त आवेग आया की मैं तुम्हारे बदन को आगोश में ले कर तुम्हारा रसपान करूं. तुम्हारे बदन के हर अंग को चुसू, चाटु....’
शालिनी अवाक हो कर सुनती रही.
जगदीश ने कहा, ‘तभी मुझे साजन भाई दिखा.’
शालिनी डर कर बोली.’भैया ! क्या कह रहे हो?’
जगदीश ने कहा, ‘हां शालिनी. मैंने आईने में अपना चेहरा देखा तो लगा की मैं मैं नहीं रहा बल्कि साजन भाई में तब्दील हो गया हूँ. कोई फर्क नहीं रहा था मुझमे और साजन भाई में उस वक्त. पराई स्त्री या बेबस हाथ लगी स्त्री को भोगना, उस के बदन को घूरना उससे मनमानी करना… यह क्या है ? साजन भाई होना ही तो है? तुम और मैं इस छोटे से कमरे में क्यों एक साथ है? हम न कोई प्रेमी है न एक दूसरे से शारीरिक संबंध बनाना चाहते है. हम हालत के हाथो बेबस एक छोटे से कमरे में एक साथ मौजूद है. एक पुलिसवाला हमें हेल्प कर रहा है, उसको यह कह कर की हम पति पत्नी नहीं है मैं उसका टेंशन बढ़ाना नहीं चाहता था. इसलिए हम एक कपल की तरह यहाँ पर इस वक्त उपस्थित है. यह कोई तुम्हारी चॉइस नहीं की तुम मेरे साथ कमरा शेर करो. तुम अपना बदन दिखा कर मुझे सेक्स करने सिड्यूस नहीं कर रही थी. तुम और मैं हालत के हाथों इस अजीब स्थिति में फंसे हुए है. और मैं ऐसे में अगर तुम्हारी मजबूरी का फायदा उठाऊं तो मुझमे और साजन भाई में क्या फर्क है?’
शालिनी जगदीश की बातों को मंत्रमुग्ध होकर सुनती रही.
जगदीश ने कहा. ‘शालिनी, जो सहज नहीं वो पाप है. मैं कुछ ऐसा सोच रहा था जो असहज था. गोडाउन में तुम्हारी योनि का गीला होना या मेरे लिंग में तनाव आना मैं गलत नहीं समझता. क्यों की कोई हमें अपने विकृत षड्यंत्र के चलते ऐसी स्थिति में धकेल रहा था. बिना किसी मानसिक तैयारी के हमारा कब्ज़ा किसी और ने कर लिया और एक दूसरे के अधनंगे शरीर तथा शरीर संबंधित न सोची हुई बातें सुनकर -कह कर हम उत्तेजित हो गए थे सो हमारे शरीर पर उसका प्र्रभाव होना लाजिमी था. क्योंकि अंतत: हम एक स्त्री और पुरुष है. और कामेच्छा कुदरती है. पूरे मामले में गैर कुदरती बात थी वो यह कि जिस तरह हम उस मुकाम पर पहुंचे थे. हम अपनी मर्जी से नहीं गए थे उस स्थिति में. किसी की विकृति हमे एक दूजे के प्रति उत्तेजित कर रही थी - शालिनी, यह कुदरती नहीं था. और कुदरती नहीं था इसलिए सहज नहीं था.’
जगदीश इतना बोल कर रुका. शालिनी की और देखा. वो ध्यान से सुन रही थी. जगदीश ने आगे कहा.
‘उस असहज स्थिति से तो हम बाहर आ गए. पर इस कमरे में फिर एकबार विचित्र स्थिति खड़ी हुई. पर क्या यह सहज था ? नहीं. जिस तरह गोडाउन में हमारी मर्जी नहीं थी उस तरह इस कमरे में तुम्हारी मरजी या इच्छा के बगैर तुम अनजाने में, संयोग से कामोत्तेजक अवस्था में मेरे सामने थी. मुझे संभोग का मोह हो गया. पर अगर मैं अपने शरीर की इच्छा पूर्ण करता तो क्या वो संभोग होता? नहीं. संभोग का मतलब है सम+भोग. दोनों पात्र की समान भोग की इच्छा का होना जरूरी है. तभी वो संभोग होगा. यहां तो मैं कामुकता के बहाव में था. और तुम ? तुम तो बेचारी कपडे भीग जाने पर शर्मसार हो गई थी की इस हालत में बाहर जेठ के सामने कैसे जाऊं…! और मैं उस स्थिति में तुम्हे भोगु?’
कह कर जगदीश ने शालिनी और देखा तो वो रो रही थी. उसकी आंखों में जैसे नदी बह रही थी. जगदीश हैरान हो गया की शालिनी रो क्यों रही है!
‘शालिनी!’
शालिनी ने अपनी आंखों को पोंछने का प्रयास किये बिना कहा. ‘भैया.’
‘बोलो शालिनी.’
‘भैया, आई लव यू.’
और वो जगदीश से लिपट गई.....
(१२ - ये तो सोचा न था…समाप्त, क्रमश
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