chachajaani
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इन दोनों के संगम होने का तो पहले ही अंदेशा हो गया था( १३ - ये तो सोचा न था…)
[(१२ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :
जगदीश ने शालिनी और देखा तो वो रो रही थी. उसकी आंखों में जैसे नदी बह रही थी. जगदीश हैरान हो गया की शालिनी रो क्यों रही है!
‘शालिनी!’
शालिनी ने अपनी आंखों को पोंछने का प्रयास किये बिना कहा. ‘भैया.’
‘बोलो शालिनी.’
‘भैया, आई लव यू.’
और वो जगदीश से लिपट गई…]
जगदीश खड़ा था और शालिनी पलंग पर बैठी हुई. शालिनी का चेहरा जगदीश के पेट में दबा हुआ था.और हाथों से उसने जगदीश की कमर को बांध दिया था.
शालिनी के भोलेपन पर जगदीश मुस्कुरा दिया और खुद को शालिनी की गिरफ्त से अलग करना चाहा पर शालिनी ने ऐसा करने पर अपने हाथ और मजबूती से कसे,गोया कोई छोटी बच्ची किसी बड़े को ऑफिस जाने से रोकने के वक्त लिपट कर रोकने की कोशिश करती हो.
उसी अवस्था में शालिनी ने सर ऊंचा उठा कर जगदीश की ओर देखते हुए कहा. ‘मुझे आप की तरह बड़ी बड़ी बातें करनी नहीं आती. मेरा यह प्यार सहज है या असहज ये मुझे नहीं पता. दिल में आया - कह दिया बस.’
‘मैं भी तुमसे प्यार करता हूँ शालिनी…’ कहते हुए जगदीश ने उसके हाथ अपनी कमर पर से हटाए और थोड़ीदूर जा कर कहा. ‘तुमसे प्यार न करना मुमकिन नहीं. तुम इतनी मासूम हो की तुम्हे सिर्फ प्यार ही किया जा सकता है. तुम्हारा सिर्फ शरीर बड़ा हो गया है. पर तुम अभी एक बच्ची ही हो.’
‘मतलब आप मुझे बच्चों वाला प्यार करते हो?’
‘बड़ो वाला प्यार करूंगा तो मुझ पर चाइल्ड ऍब्युझिँग की कलम लागू हो जायेगी…’ कह कर जगदीश जोरों से हंस पड़ा.
शालिनी गुस्से में मुंह फेरने गई पर ऐसा करने से उसके शरीर पर ढकी चद्दर निचे सार्क गई. शालिनी ने तेजी से चद्दर उठा कर अपने कंधे पर ओढ़ ली. यह देख जगदीश ने कहा.
‘चद्दर हटाओ.’
शालिनी ने जगदीश को देखा.
जगदीश का चहेरा दृढ़ था. दृढ़ और गंभीर.
शालिनी ने चद्दर हटा दी.
‘अब अपने स्तन देखो.’
शालिनी ने ताजुब्ब हो कर जगदीश को देखा.
जगदीश ने कहा. ‘मुझे नहीं अपने स्तन को देखो.’
शालिनी ने पारदर्शी कुर्ते में झलकती अपनी स्तन राशि देखि.
जगदीश ने कहा. ‘इनको देखो, चाहो, प्यार करो, अपनाओ.’
शालिनी ने उलझ कर कहा. ‘क्या बोल रहे हो आप भैया ?’
‘इनका, इनके आकार का स्वीकार करो शालिनी. यह आकार में औसत से कुछ बड़े है. है तो है. यह कोई शर्मनाक बात नहीं. इनको लेकर तुम किसी कुंठा में मत रहा करो.’
‘पर भैया लोग इनको जिस तरह ताड़ते है…’ शालिनी को सुझा नहीं की आगे क्या कहे.
‘लोग ताडेंगे. लोग यूँ भी औरतों की छाती को ताड़ते रहते है, साइज़ का कोई लेना देना नहीं.
शालिनी ने अपने स्तनों को नए नजरिये से देखा. जगदीश ने आगे कहा.
‘अपने गीले कपड़े फैला के रख दो ताकि सुख जाए. फिर हम खाना खा लेते है.’
***
चांदनी और जुगल ने पूना के शादी वाले गेस्ट हाउस में अलग अलग कमरे लिए थे. दोनों कमरे अलग अलग मंजिल पर थे. चांदनी को शालिनी का नाइट गाउन चाहिए था. क्योंकि अपने गाउन में उसे बहुत गर्मी लग रही थी. शालिनी के पास एक कॉटन का गाउन था नीले रंग का. चांदनी के खुद के गाउन में से एक भी गाउन कॉटन का नहीं था. वो जुगल शालिनी के कमरे की और जा रही थी तभी दुल्हन की मां सीता देवी उसे मिल गई. जो गेस्ट हाउस में अपनी किसी सहेली से मिलने आई थी. चांदनी को देख सीता देवी और उसकी सहेली उसकी महेंदी की तारीफ़ करने लगी. सब गर्मी से परेशान थे. सीता देवी ने मोबाइल से अपने किचन डिपार्टमेंट में फोन करके गन्ने का ज्यूस मंगाया.
दूसरी तरफ जुगल जहां लुढ़क गया था उस के करीब के सोफे पर सोया हुआ आदमी नींद में बेलेंस खो कर जुगल पर गिरा. जुगल और वो आदमी दोनों हड़बड़ा कर उठ गए. वो आदमी जुगल की माफ़ी मांगने लगा. जुगल के बांये हाथ पर वो आदमी गिरा था. वो हाथ डाब जाने की वजह से बहुत पीड़ा देने लगा. जुगल ने पीड़ा से कराहते हुए कहा. ‘माफ़ी बाद में मांगना कोई पेईन किलर दवाई या मलम लाओ भाई ये दर्द सहन नहीं होता.’ ‘अभी लाया भाई…’ कह कर उस आदमी ने सोफे के नीचे से शराब की बोतल निकाली. ये वो ही बोतल थी जो कुछ देर पहले जुगल ने एक पेग ले कर बची हुई शराब सोफे के नीचे रखी थी. जुगल ने कहा. ‘ये तो शराब है!’
‘इससे बड़ा कोई पेईन किलर नहीं भाई.!’ उस आदमी ने कहा और जा कर कहीं से पानी की बोतल ले आया.
पीड़ा से कराहते जुगल को फिर से शराब पीनी पड़ी. जैसे जैसे शराब गले के निचे उतरती गई, सर पर चढ़ती गई, हाथ की पीड़ा को मंद करती रही…पेग ख़त्म होते होते बैठे बैठे ही जुगल की आंख लग गई.
सीता देवी की सहेली के साथ की बातों में चांदनी की मेहंदी स्किल का फिर से जिक्र आया. सीता देवी ने कहा. ‘मेरा बड़ा बेटा सुधींद्र तो आपकी महेंदी का कायल हो गया है, तारीफ़ करते उस का मुंह नहीं सुकता…
चांदनी सिर्फ मुस्कुरा दी. और मन में बोली. : - आप को क्या पता की आप का सुधींद्र मेरे किस गुण का कायल है…. - पर इतना सोचते उसे सुधींद्र अपनी दुल्हन बनी बहन के साथ क्या कर रहा था वो दृश्य और वो सारी बातें याद आ गई. वो एकदम अनकम्फर्टेबल हो गई, मन फिर से खट्टा हो गया. दुपट्टे से अपना चेहरा पोंछने लगी. तभी सीता देवी ने मंगवाया हुआ गन्ने का ज्यूस आ गया. सब ने एक एक प्याला ज्यूस ले लिया. आ रहे खयालो से अस्वस्थ चांदनी ने बेखयाली में ज्यूस का एक बड़ा प्याला ले कर तेजी से पीना शुरू किया. गोया सुधींद्र के जिक्र से जो अनचाही बातें याद आ रही थी वो ज्यूस से धूल जाने वाली हो. ज्यूस पीते वक्त चांदनी को यह भी लगा की कहीं पर कुछ चूक हो रही है… वो कुछ भूल रही है जो अति महत्वपूर्ण है पर सीता देवी की लगातार चल रही बातों में उसका ध्यान बाँट रहा था, औपचारिकता में ही सही पर हां , जरूर, सही बात है किस्म के जवाब देने में दिमाग शामिल तो करना ही पड़ता है. गर्मी थी कि घटने के आसार ही नजर नहीं आ रहे थे, ज्यूस और पीने का मन हो रहा था, चांदनी ने दुबारा ज्यूस ले ले कर पीना शुरू कर दिया…फिर वही कुछ भुलाया जा रहा है ऐसी भावना चांदनी को घेरने लगी. वो परेशान हो गई : क्या है जो बार बार मन को खटक रहा है?
चांदनी इतनी अस्वस्थ हो गई की गाउन बदलने के लिए शालिनी के कमरे में जाने का आइडिया भी उसने ड्रॉप कर दिया और अपने कमरे में जा कर सोने के इरादे से वो सीता देवी की सहेली के यहां से निकल गई. अपने कमरे में जा कर सोने की कोशिश करने लगी.
***
जब अचानक दरवाजे पर धड़ धड़ जैसी उग्र आवाज में दस्तक हुई तब जगदीश और शालिनी दोनों आतंकित हो कर नींद से जग पड़े. दोनों इंस्पेक्टर मोहिते का भेजा टिफिन खा कर थक कर सो गए थे. दोनों तन और मन से इतने निढाल हो गए थे की एक दूसरे के सर को अपना सर टिका कर ऊँघ रहे थे. पर इस धड़ धड़ की आवाज ने दोनों को हिला दिया. दरवाजा खोलने उठते हुए जगदीश ने समय देखा : रात के चार बज गए थे. वो दरवाजा खोलने बढ़ा. शालिनी ने खुद को चद्दर से ढंका. जगदीश ने दरवाजा खोला. बाहर इंस्पेक्टर मोहिते खड़ा था. दरवाजा खुलते वो अंदर आया.
‘एक टेंशन हो गई है.’ पलंग पर बैठते हुए मोहिते ने कहा. ‘साजन भाई के कुछ साथी अभी भी बाहर है, सारे पकड़े नहीं गए. उनको पता चल गया है की साजन भाई को तुमने मारा है. और वो लोग तुम्हें ढूंढ रहे है.’
यह सुन कर जगदीश और शालिनी दोनों परेशान हो गए. मोहिते ने आगे कहा. ‘ अगर उनको ये पता चला गया है की साजन भाई को तुमने मारा है तो फिर अभी तुम को मैंने यहां रुकाया है यह भी पता चल सकता है. इसलिए मुझे यह खबर मिलते ही मैं फ़ौरन यहां आ गया. मैं नीचे इंतज़ार करता हूं तुम लोग तुरंत तैयार हो कर आओ.हमें यहां से चलना होगा.’ कह कर मोहिते तेजी से बाहर निकल गया.
जगदीश और शालिनी ने एक दूसरे को देखा.
***
गर्मी के कारण चांदनी की आंख खुल गई. उसे लगा की शालिनी का गाउन लेने नहीं जा कर उसने गलती कर दी. कमरे में फेन तेजी से चल रहा था पर उसका गाउन कॉटन का नहीं होने की वजह से उसे बहुत गर्मी लग रही थी. गले में हल्का दर्द हो रहा था. चांदनी ने मोबाइल में चेक किया तो सुबह के चार बज रहे थे. चांदनी को लगा अगर गाउन बदल लूँ तो और दो तीन घंटे सो पाउंगी. उसने शालिनी के कमरे में जा कर गाउन लाना तय किया, पलंग से उठते वक्त पीठ में हल्का सा दर्द हुआ उसने ‘उई मां..’ कहना चाहा पर गले से आवाज नहीं निकली.
‘उफ्फ्फ्फ़.....’ चांदनी को याद आया की वो कब से क्या बिसर रही थी काफी देर हो गई थी। … पर तब अटक काफी देर हो गई थी.
चांदनी को बर्फ की एलर्जी थी. इसलिए वो बर्फ वाली और ठंडी कोई भी चीज खाती या पीती नहीं थी. कोल्ड ड्रिंक हो या आइसक्रीम वो ज्यादातर अवॉइड करती थी. अगर गलती से कुछ बहुत ठंडा खा पी लिया तो उसका गला बैठ जाता था. वो बोल नहीं पाती थी. सीता देवी और उस की सहेली के साथ वो बैठी थी तब अपनी बेख्याली में चांदनी ने बर्फ वाला गन्ने का ज्यूस एक नहीं बल्कि दो बार पीया. उसी वक्त उसका शरीर उसे संकेत दे रहा था पर चांदनी वो संकेत पकड़ नहीं पाई की वो क्या गड़बड़ी कर रही है. लेकिन अभी जब वो ‘उई मां’ नहीं बोल पाई तब उसे एहसास हुआ की उसका गला बैठ गया है. मन मसोसते वो चांदनी के कमरे की और जाने लगी.
***
‘आप लोग फिलहाल पूना जाना ड्राप कीजिये. ‘
जीप ड्राइव करते हुए मोहिते ने कहा. जगदीश मोहिते की बगल की सीट में था. शालिनी पीछे की सीट पर थी.
मोहिते ने आगे कहा. ‘क्योंकि साजन भाई के गोडाउन में तुमने अगर यह कहा था कि तुम लोग पूना जा रहे हो तो फिलहाल ये पूना ट्रिप रिस्की है. वो लोगों का सरदार तुमने मार डाला है, कुछ दिन तुम्हे संभलना होगा.’
‘मैं क्या अब इन मवाली ओ से छिपता फिरू?’ जगदीश ने चिढ कर पूछा.
‘मी. रस्तोगी, आप बहुत बहादुर हो पर मेरी बात समझो. यह लोग कोई उसूल वाले लड़ाकू नहीं, बल्कि जाहिल, अनपढ़ फुटपाथ छाप गुंडे है. ये सामने आ कर ललकारे ये जरूरी नहीं. पीछे से वार कर सकते है, सोते वक्त वार कर सकते है, तुम्हारी पत्नी को हानि पहुंचा सकते है… इनके निपटने साथ बहादुरी की नहीं अकल की जरूरत है. किसी तरह दो दिन कहीं शांत रहो. फिर तुम्हे मुंबई पहुंचाने का जिम्मा मेरा.’
‘पर पूना…’ जगदीश कुछ बोलने गया पर शालिनी ने तुरंत जगदीश की बात काटते हुए कहा. ‘पूना जाना इतना जरूरी नहीं. प्लीज़ इंस्पेक्टर साहब की बात ठीक लग रही है.’
जगदीश सोच में पड़ गया.
***
जुगल और शालिनी के कमरे में चांदनी दाखिल हुई. लाइट पंखा ओन किया. कमरे में दीवार में जड़ी अलमारी का दरवाजा खोल कर चांदनी ने शालिनी की बेग से नीला वाला गाउन ढूंढ निकाला. गाउन निकालते निकालते बेग में से शालिनी की नेलपॉलिश उछल कर गिरी और अलमारी के निचे के दराज में गिर पड़ी. चांदनी ने सोचा नेल पॉलिश बाद में उठाकर बेग में रखूंगी, पहले गाउन बदल दू.
फटाफट चांदनी ने गाउन बदल दिया. रात को चार से ज्यादा बज चुके थे, अब पेंटी भी न पहनी हो तो क्या फर्क पड़ेगा यह सोच कर चांदनी ने पेंटी भी निकाल दी. और एक सुकून की सांस ली. पेंटी को फोल्ड करके हाथ में थामा. लाइट, फेन बंद किया, कमरे के बाहर निकली. बाहर से कड़ी लगाईं. और तेजी से अपने कमरे की और जाने लगी तब उसे याद आया की नेल पोलिश नीचे के ड्रॉअर में गिर पड़ी वो उठानी रह गई. शालिनी बेचारी नेल पॉलिश न दिखने पर परेशान हो जाएगी यह सोच वो फिर कमरा खोल कर अंदर तेजी से गई. लाइट पंखा ऑन करने रुकी नहीं. मोबाइल की टॉर्च से अलमारी खोल कर कमर झुका कर नेल पोलिश उछल कर गिरी थी उस ड्रॉअर में हाथ दाल कर टटोलने लगी. पर नेल पॉलिश तो नहीं मिली, उसके हाथ की ऊँगली में पहनी हुई अंगूठी अंदर किसी कील में अटक गई…
***
मोहिते ने जीप एक फ़ार्म हाउस पर रुकाई. शालिनी , जगदीश और मोहिते जीप से उतरे.जीप को देख एक नौकर जैसा दिखने वाला आदमी दौड़ कर आया. मोहिते ने उसके साथ मराठी में कुछ बातें की फिर जगदीश से कहा. ‘इसे समझा दिया है, आप लोग आराम से रहो यहां , मैं आप लोगो का मुंबई जाने का इंतज़ाम करता हूँ. मैं भी यहाँ सुबह तक रुकता हूँ, सुबह मुझे करीब के एरिए में कुछ काम है.’
तीनो फ़ार्म हाउस में दाखिल हुए.
***
चांदनी फस गई थी. उसका हाथ अटक गया था. दूसरे हाथ में पेंटी और मोबाइल थे वो बाजू में रख कर वो दूसरा हाथ अलमारी के उस ड्रॉअर में डाल कर फसे हुए हाथ को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी.
अनजाने में चांदनी कमर से झुक कर अत्यंत कामुक मुद्रा बना रही थी.
अचानक उसका गाउन कमर के ऊपर तक चला गया. वो कुछ समझे उससे पहले उसका कमर के निचे का हिस्सा नंगा हो गया. और दूसरे ही पल उसने अपने योनिमार्ग में लिंग रगड़ खाता हुआ महसूस किया. वो जोरों से कुछ बोलने गयी पर उसका गला बैठ चुका था. इतने में उसने जो सुना वो उसे आघात दे गया.
उसने सुना की जुगल की आवाज है. चांदनी को जुगल के मुंह से शराब की तीव्र गंध आने लगी… वो अपना लिंग उसकी योनि द्वार पर रगड़ते हुए कह रहा था. ‘थेंक यु सो मच शालिनी, मुझे पता ही नहीं था कि तुम आ गई. कब आई ? और मेरे लिए इतने सेक्सी पोज़ में राह देख रही हो…? लव यू शालू -’ और कमर पर हाथ बांधते हुए उसने चांदनी की योनि को सहला कर कहा. ‘रेडी ? वन टू एंड थ्री….’
चांदनी की योनि में जुगल का लिंग एक जोश के साथ घुस गया…
(१३ - ये तो सोचा न था…समाप्त, क्रमश