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Incest ये तो सोचा न था…

chachajaani

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( १३ - ये तो सोचा न था…)

[(१२ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :

जगदीश ने शालिनी और देखा तो वो रो रही थी. उसकी आंखों में जैसे नदी बह रही थी. जगदीश हैरान हो गया की शालिनी रो क्यों रही है!

‘शालिनी!’

शालिनी ने अपनी आंखों को पोंछने का प्रयास किये बिना कहा. ‘भैया.’

‘बोलो शालिनी.’

‘भैया, आई लव यू.’

और वो जगदीश से लिपट गई…]


जगदीश खड़ा था और शालिनी पलंग पर बैठी हुई. शालिनी का चेहरा जगदीश के पेट में दबा हुआ था.और हाथों से उसने जगदीश की कमर को बांध दिया था.

शालिनी के भोलेपन पर जगदीश मुस्कुरा दिया और खुद को शालिनी की गिरफ्त से अलग करना चाहा पर शालिनी ने ऐसा करने पर अपने हाथ और मजबूती से कसे,गोया कोई छोटी बच्ची किसी बड़े को ऑफिस जाने से रोकने के वक्त लिपट कर रोकने की कोशिश करती हो.

उसी अवस्था में शालिनी ने सर ऊंचा उठा कर जगदीश की ओर देखते हुए कहा. ‘मुझे आप की तरह बड़ी बड़ी बातें करनी नहीं आती. मेरा यह प्यार सहज है या असहज ये मुझे नहीं पता. दिल में आया - कह दिया बस.’

‘मैं भी तुमसे प्यार करता हूँ शालिनी…’ कहते हुए जगदीश ने उसके हाथ अपनी कमर पर से हटाए और थोड़ीदूर जा कर कहा. ‘तुमसे प्यार न करना मुमकिन नहीं. तुम इतनी मासूम हो की तुम्हे सिर्फ प्यार ही किया जा सकता है. तुम्हारा सिर्फ शरीर बड़ा हो गया है. पर तुम अभी एक बच्ची ही हो.’

‘मतलब आप मुझे बच्चों वाला प्यार करते हो?’

‘बड़ो वाला प्यार करूंगा तो मुझ पर चाइल्ड ऍब्युझिँग की कलम लागू हो जायेगी…’ कह कर जगदीश जोरों से हंस पड़ा.

शालिनी गुस्से में मुंह फेरने गई पर ऐसा करने से उसके शरीर पर ढकी चद्दर निचे सार्क गई. शालिनी ने तेजी से चद्दर उठा कर अपने कंधे पर ओढ़ ली. यह देख जगदीश ने कहा.

‘चद्दर हटाओ.’

शालिनी ने जगदीश को देखा.

जगदीश का चहेरा दृढ़ था. दृढ़ और गंभीर.

शालिनी ने चद्दर हटा दी.

‘अब अपने स्तन देखो.’

शालिनी ने ताजुब्ब हो कर जगदीश को देखा.

जगदीश ने कहा. ‘मुझे नहीं अपने स्तन को देखो.’

शालिनी ने पारदर्शी कुर्ते में झलकती अपनी स्तन राशि देखि.

जगदीश ने कहा. ‘इनको देखो, चाहो, प्यार करो, अपनाओ.’

शालिनी ने उलझ कर कहा. ‘क्या बोल रहे हो आप भैया ?’

‘इनका, इनके आकार का स्वीकार करो शालिनी. यह आकार में औसत से कुछ बड़े है. है तो है. यह कोई शर्मनाक बात नहीं. इनको लेकर तुम किसी कुंठा में मत रहा करो.’

‘पर भैया लोग इनको जिस तरह ताड़ते है…’ शालिनी को सुझा नहीं की आगे क्या कहे.

‘लोग ताडेंगे. लोग यूँ भी औरतों की छाती को ताड़ते रहते है, साइज़ का कोई लेना देना नहीं.

शालिनी ने अपने स्तनों को नए नजरिये से देखा. जगदीश ने आगे कहा.

‘अपने गीले कपड़े फैला के रख दो ताकि सुख जाए. फिर हम खाना खा लेते है.’

***

चांदनी और जुगल ने पूना के शादी वाले गेस्ट हाउस में अलग अलग कमरे लिए थे. दोनों कमरे अलग अलग मंजिल पर थे. चांदनी को शालिनी का नाइट गाउन चाहिए था. क्योंकि अपने गाउन में उसे बहुत गर्मी लग रही थी. शालिनी के पास एक कॉटन का गाउन था नीले रंग का. चांदनी के खुद के गाउन में से एक भी गाउन कॉटन का नहीं था. वो जुगल शालिनी के कमरे की और जा रही थी तभी दुल्हन की मां सीता देवी उसे मिल गई. जो गेस्ट हाउस में अपनी किसी सहेली से मिलने आई थी. चांदनी को देख सीता देवी और उसकी सहेली उसकी महेंदी की तारीफ़ करने लगी. सब गर्मी से परेशान थे. सीता देवी ने मोबाइल से अपने किचन डिपार्टमेंट में फोन करके गन्ने का ज्यूस मंगाया.

दूसरी तरफ जुगल जहां लुढ़क गया था उस के करीब के सोफे पर सोया हुआ आदमी नींद में बेलेंस खो कर जुगल पर गिरा. जुगल और वो आदमी दोनों हड़बड़ा कर उठ गए. वो आदमी जुगल की माफ़ी मांगने लगा. जुगल के बांये हाथ पर वो आदमी गिरा था. वो हाथ डाब जाने की वजह से बहुत पीड़ा देने लगा. जुगल ने पीड़ा से कराहते हुए कहा. ‘माफ़ी बाद में मांगना कोई पेईन किलर दवाई या मलम लाओ भाई ये दर्द सहन नहीं होता.’ ‘अभी लाया भाई…’ कह कर उस आदमी ने सोफे के नीचे से शराब की बोतल निकाली. ये वो ही बोतल थी जो कुछ देर पहले जुगल ने एक पेग ले कर बची हुई शराब सोफे के नीचे रखी थी. जुगल ने कहा. ‘ये तो शराब है!’

‘इससे बड़ा कोई पेईन किलर नहीं भाई.!’ उस आदमी ने कहा और जा कर कहीं से पानी की बोतल ले आया.

पीड़ा से कराहते जुगल को फिर से शराब पीनी पड़ी. जैसे जैसे शराब गले के निचे उतरती गई, सर पर चढ़ती गई, हाथ की पीड़ा को मंद करती रही…पेग ख़त्म होते होते बैठे बैठे ही जुगल की आंख लग गई.

सीता देवी की सहेली के साथ की बातों में चांदनी की मेहंदी स्किल का फिर से जिक्र आया. सीता देवी ने कहा. ‘मेरा बड़ा बेटा सुधींद्र तो आपकी महेंदी का कायल हो गया है, तारीफ़ करते उस का मुंह नहीं सुकता…

चांदनी सिर्फ मुस्कुरा दी. और मन में बोली. : - आप को क्या पता की आप का सुधींद्र मेरे किस गुण का कायल है…. - पर इतना सोचते उसे सुधींद्र अपनी दुल्हन बनी बहन के साथ क्या कर रहा था वो दृश्य और वो सारी बातें याद आ गई. वो एकदम अनकम्फर्टेबल हो गई, मन फिर से खट्टा हो गया. दुपट्टे से अपना चेहरा पोंछने लगी. तभी सीता देवी ने मंगवाया हुआ गन्ने का ज्यूस आ गया. सब ने एक एक प्याला ज्यूस ले लिया. आ रहे खयालो से अस्वस्थ चांदनी ने बेखयाली में ज्यूस का एक बड़ा प्याला ले कर तेजी से पीना शुरू किया. गोया सुधींद्र के जिक्र से जो अनचाही बातें याद आ रही थी वो ज्यूस से धूल जाने वाली हो. ज्यूस पीते वक्त चांदनी को यह भी लगा की कहीं पर कुछ चूक हो रही है… वो कुछ भूल रही है जो अति महत्वपूर्ण है पर सीता देवी की लगातार चल रही बातों में उसका ध्यान बाँट रहा था, औपचारिकता में ही सही पर हां , जरूर, सही बात है किस्म के जवाब देने में दिमाग शामिल तो करना ही पड़ता है. गर्मी थी कि घटने के आसार ही नजर नहीं आ रहे थे, ज्यूस और पीने का मन हो रहा था, चांदनी ने दुबारा ज्यूस ले ले कर पीना शुरू कर दिया…फिर वही कुछ भुलाया जा रहा है ऐसी भावना चांदनी को घेरने लगी. वो परेशान हो गई : क्या है जो बार बार मन को खटक रहा है?

चांदनी इतनी अस्वस्थ हो गई की गाउन बदलने के लिए शालिनी के कमरे में जाने का आइडिया भी उसने ड्रॉप कर दिया और अपने कमरे में जा कर सोने के इरादे से वो सीता देवी की सहेली के यहां से निकल गई. अपने कमरे में जा कर सोने की कोशिश करने लगी.

***

जब अचानक दरवाजे पर धड़ धड़ जैसी उग्र आवाज में दस्तक हुई तब जगदीश और शालिनी दोनों आतंकित हो कर नींद से जग पड़े. दोनों इंस्पेक्टर मोहिते का भेजा टिफिन खा कर थक कर सो गए थे. दोनों तन और मन से इतने निढाल हो गए थे की एक दूसरे के सर को अपना सर टिका कर ऊँघ रहे थे. पर इस धड़ धड़ की आवाज ने दोनों को हिला दिया. दरवाजा खोलने उठते हुए जगदीश ने समय देखा : रात के चार बज गए थे. वो दरवाजा खोलने बढ़ा. शालिनी ने खुद को चद्दर से ढंका. जगदीश ने दरवाजा खोला. बाहर इंस्पेक्टर मोहिते खड़ा था. दरवाजा खुलते वो अंदर आया.

‘एक टेंशन हो गई है.’ पलंग पर बैठते हुए मोहिते ने कहा. ‘साजन भाई के कुछ साथी अभी भी बाहर है, सारे पकड़े नहीं गए. उनको पता चल गया है की साजन भाई को तुमने मारा है. और वो लोग तुम्हें ढूंढ रहे है.’

यह सुन कर जगदीश और शालिनी दोनों परेशान हो गए. मोहिते ने आगे कहा. ‘ अगर उनको ये पता चला गया है की साजन भाई को तुमने मारा है तो फिर अभी तुम को मैंने यहां रुकाया है यह भी पता चल सकता है. इसलिए मुझे यह खबर मिलते ही मैं फ़ौरन यहां आ गया. मैं नीचे इंतज़ार करता हूं तुम लोग तुरंत तैयार हो कर आओ.हमें यहां से चलना होगा.’ कह कर मोहिते तेजी से बाहर निकल गया.

जगदीश और शालिनी ने एक दूसरे को देखा.

***

गर्मी के कारण चांदनी की आंख खुल गई. उसे लगा की शालिनी का गाउन लेने नहीं जा कर उसने गलती कर दी. कमरे में फेन तेजी से चल रहा था पर उसका गाउन कॉटन का नहीं होने की वजह से उसे बहुत गर्मी लग रही थी. गले में हल्का दर्द हो रहा था. चांदनी ने मोबाइल में चेक किया तो सुबह के चार बज रहे थे. चांदनी को लगा अगर गाउन बदल लूँ तो और दो तीन घंटे सो पाउंगी. उसने शालिनी के कमरे में जा कर गाउन लाना तय किया, पलंग से उठते वक्त पीठ में हल्का सा दर्द हुआ उसने ‘उई मां..’ कहना चाहा पर गले से आवाज नहीं निकली.

‘उफ्फ्फ्फ़.....’ चांदनी को याद आया की वो कब से क्या बिसर रही थी काफी देर हो गई थी। … पर तब अटक काफी देर हो गई थी.

चांदनी को बर्फ की एलर्जी थी. इसलिए वो बर्फ वाली और ठंडी कोई भी चीज खाती या पीती नहीं थी. कोल्ड ड्रिंक हो या आइसक्रीम वो ज्यादातर अवॉइड करती थी. अगर गलती से कुछ बहुत ठंडा खा पी लिया तो उसका गला बैठ जाता था. वो बोल नहीं पाती थी. सीता देवी और उस की सहेली के साथ वो बैठी थी तब अपनी बेख्याली में चांदनी ने बर्फ वाला गन्ने का ज्यूस एक नहीं बल्कि दो बार पीया. उसी वक्त उसका शरीर उसे संकेत दे रहा था पर चांदनी वो संकेत पकड़ नहीं पाई की वो क्या गड़बड़ी कर रही है. लेकिन अभी जब वो ‘उई मां’ नहीं बोल पाई तब उसे एहसास हुआ की उसका गला बैठ गया है. मन मसोसते वो चांदनी के कमरे की और जाने लगी.

***

‘आप लोग फिलहाल पूना जाना ड्राप कीजिये. ‘

जीप ड्राइव करते हुए मोहिते ने कहा. जगदीश मोहिते की बगल की सीट में था. शालिनी पीछे की सीट पर थी.

मोहिते ने आगे कहा. ‘क्योंकि साजन भाई के गोडाउन में तुमने अगर यह कहा था कि तुम लोग पूना जा रहे हो तो फिलहाल ये पूना ट्रिप रिस्की है. वो लोगों का सरदार तुमने मार डाला है, कुछ दिन तुम्हे संभलना होगा.’

‘मैं क्या अब इन मवाली ओ से छिपता फिरू?’ जगदीश ने चिढ कर पूछा.

‘मी. रस्तोगी, आप बहुत बहादुर हो पर मेरी बात समझो. यह लोग कोई उसूल वाले लड़ाकू नहीं, बल्कि जाहिल, अनपढ़ फुटपाथ छाप गुंडे है. ये सामने आ कर ललकारे ये जरूरी नहीं. पीछे से वार कर सकते है, सोते वक्त वार कर सकते है, तुम्हारी पत्नी को हानि पहुंचा सकते है… इनके निपटने साथ बहादुरी की नहीं अकल की जरूरत है. किसी तरह दो दिन कहीं शांत रहो. फिर तुम्हे मुंबई पहुंचाने का जिम्मा मेरा.’

‘पर पूना…’ जगदीश कुछ बोलने गया पर शालिनी ने तुरंत जगदीश की बात काटते हुए कहा. ‘पूना जाना इतना जरूरी नहीं. प्लीज़ इंस्पेक्टर साहब की बात ठीक लग रही है.’

जगदीश सोच में पड़ गया.

***

जुगल और शालिनी के कमरे में चांदनी दाखिल हुई. लाइट पंखा ओन किया. कमरे में दीवार में जड़ी अलमारी का दरवाजा खोल कर चांदनी ने शालिनी की बेग से नीला वाला गाउन ढूंढ निकाला. गाउन निकालते निकालते बेग में से शालिनी की नेलपॉलिश उछल कर गिरी और अलमारी के निचे के दराज में गिर पड़ी. चांदनी ने सोचा नेल पॉलिश बाद में उठाकर बेग में रखूंगी, पहले गाउन बदल दू.

फटाफट चांदनी ने गाउन बदल दिया. रात को चार से ज्यादा बज चुके थे, अब पेंटी भी न पहनी हो तो क्या फर्क पड़ेगा यह सोच कर चांदनी ने पेंटी भी निकाल दी. और एक सुकून की सांस ली. पेंटी को फोल्ड करके हाथ में थामा. लाइट, फेन बंद किया, कमरे के बाहर निकली. बाहर से कड़ी लगाईं. और तेजी से अपने कमरे की और जाने लगी तब उसे याद आया की नेल पोलिश नीचे के ड्रॉअर में गिर पड़ी वो उठानी रह गई. शालिनी बेचारी नेल पॉलिश न दिखने पर परेशान हो जाएगी यह सोच वो फिर कमरा खोल कर अंदर तेजी से गई. लाइट पंखा ऑन करने रुकी नहीं. मोबाइल की टॉर्च से अलमारी खोल कर कमर झुका कर नेल पोलिश उछल कर गिरी थी उस ड्रॉअर में हाथ दाल कर टटोलने लगी. पर नेल पॉलिश तो नहीं मिली, उसके हाथ की ऊँगली में पहनी हुई अंगूठी अंदर किसी कील में अटक गई…

***

मोहिते ने जीप एक फ़ार्म हाउस पर रुकाई. शालिनी , जगदीश और मोहिते जीप से उतरे.जीप को देख एक नौकर जैसा दिखने वाला आदमी दौड़ कर आया. मोहिते ने उसके साथ मराठी में कुछ बातें की फिर जगदीश से कहा. ‘इसे समझा दिया है, आप लोग आराम से रहो यहां , मैं आप लोगो का मुंबई जाने का इंतज़ाम करता हूँ. मैं भी यहाँ सुबह तक रुकता हूँ, सुबह मुझे करीब के एरिए में कुछ काम है.’

तीनो फ़ार्म हाउस में दाखिल हुए.

***

चांदनी फस गई थी. उसका हाथ अटक गया था. दूसरे हाथ में पेंटी और मोबाइल थे वो बाजू में रख कर वो दूसरा हाथ अलमारी के उस ड्रॉअर में डाल कर फसे हुए हाथ को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी.

अनजाने में चांदनी कमर से झुक कर अत्यंत कामुक मुद्रा बना रही थी.

अचानक उसका गाउन कमर के ऊपर तक चला गया. वो कुछ समझे उससे पहले उसका कमर के निचे का हिस्सा नंगा हो गया. और दूसरे ही पल उसने अपने योनिमार्ग में लिंग रगड़ खाता हुआ महसूस किया. वो जोरों से कुछ बोलने गयी पर उसका गला बैठ चुका था. इतने में उसने जो सुना वो उसे आघात दे गया.

उसने सुना की जुगल की आवाज है. चांदनी को जुगल के मुंह से शराब की तीव्र गंध आने लगी… वो अपना लिंग उसकी योनि द्वार पर रगड़ते हुए कह रहा था. ‘थेंक यु सो मच शालिनी, मुझे पता ही नहीं था कि तुम आ गई. कब आई ? और मेरे लिए इतने सेक्सी पोज़ में राह देख रही हो…? लव यू शालू -’ और कमर पर हाथ बांधते हुए उसने चांदनी की योनि को सहला कर कहा. ‘रेडी ? वन टू एंड थ्री….’

चांदनी की योनि में जुगल का लिंग एक जोश के साथ घुस गया…


(१३ - ये तो सोचा न था…समाप्त, क्रमश:)
इन दोनों के संगम होने का तो पहले ही अंदेशा हो गया था
 
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Jhumru

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दोस्तों,

‘यह तो सोचा न था…’ को इतना स्नेह और दुलार देने के लिए आप सभी का बहुत बहुत आभार.

अपडेट की डिमांड आप जरूर करें पर आपको बता दूँ की अपडेट की उत्सुकता जितनी आपको रहती है उतनी ही मुझे भी रहती है क्योंकि मेरे सामने भी कहानी लिखते हुए खुलती है. सो आगे क्या होगा ? – यह जानने के लिए मुझे भी इसे लिखना पड़ता है.

सुझाव का न की सिर्फ स्वागत है बल्कि सुझाव को मैं अपने आप में कहानी के लिए एवॉर्ड समझता हूँ. क्योंकि सुझाव का मतलब है आप का कहानी के साथ कहानी के किरदार के साथ इस कदर जुड़ना की इनके साथ अब आगे क्या होना चाहिए इस हद तक आप शामिल हो रहे हो. दोस्तों – किसी भी लेखक के लिए यह गर्व की बात है कि औरों को यह लगे की लिखी जा रही है वो उनकी भी बात है!

कुछ स्पष्टता करना चाहूँगा.

हिन्दी मेरी भाषा नहीं सो कहीं उन्नीस बीस हो तो टोकियेगा, मैं भाषा सुधार लूँगा.

यह कहानी इन्सेस्ट है यह मुझे भली भांति पता है इसलिए सब्र रखें. इन्सेस्ट मेरे लिए एक कॉम्प्लेक्स कन्सेप्ट है. यह कहानी उसे समझने की एक कोशिश है.

इस कहानी की बहुत सारी परतें है जो शनैः शनैः खुलेगी. बात जगदीश और शालिनी से शुरू हुई है पर यह कहानी केवल जगदीश और शालिनी की नहीं है. इस कहानी में अनगिनत नायक और नायिकाए है और अपनी बारी आने पर सभी जुड़ेंगे. यह एक दीर्घकथा है.
इसलिए आप सभी से अनुरोध है की धैर्य बनाए रखें.

आप सभी का एक बार फिर तहे दिल से शुक्रिया.

राकेश बक्षी / ७ मार्च २२


***
लिखते रहिए बस तारतम्य बना रहे 💕
 
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Lib am

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( १३ - ये तो सोचा न था…)

[(१२ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :

जगदीश ने शालिनी और देखा तो वो रो रही थी. उसकी आंखों में जैसे नदी बह रही थी. जगदीश हैरान हो गया की शालिनी रो क्यों रही है!

‘शालिनी!’

शालिनी ने अपनी आंखों को पोंछने का प्रयास किये बिना कहा. ‘भैया.’

‘बोलो शालिनी.’

‘भैया, आई लव यू.’

और वो जगदीश से लिपट गई…]


जगदीश खड़ा था और शालिनी पलंग पर बैठी हुई. शालिनी का चेहरा जगदीश के पेट में दबा हुआ था.और हाथों से उसने जगदीश की कमर को बांध दिया था.

शालिनी के भोलेपन पर जगदीश मुस्कुरा दिया और खुद को शालिनी की गिरफ्त से अलग करना चाहा पर शालिनी ने ऐसा करने पर अपने हाथ और मजबूती से कसे,गोया कोई छोटी बच्ची किसी बड़े को ऑफिस जाने से रोकने के वक्त लिपट कर रोकने की कोशिश करती हो.

उसी अवस्था में शालिनी ने सर ऊंचा उठा कर जगदीश की ओर देखते हुए कहा. ‘मुझे आप की तरह बड़ी बड़ी बातें करनी नहीं आती. मेरा यह प्यार सहज है या असहज ये मुझे नहीं पता. दिल में आया - कह दिया बस.’

‘मैं भी तुमसे प्यार करता हूँ शालिनी…’ कहते हुए जगदीश ने उसके हाथ अपनी कमर पर से हटाए और थोड़ीदूर जा कर कहा. ‘तुमसे प्यार न करना मुमकिन नहीं. तुम इतनी मासूम हो की तुम्हे सिर्फ प्यार ही किया जा सकता है. तुम्हारा सिर्फ शरीर बड़ा हो गया है. पर तुम अभी एक बच्ची ही हो.’

‘मतलब आप मुझे बच्चों वाला प्यार करते हो?’

‘बड़ो वाला प्यार करूंगा तो मुझ पर चाइल्ड ऍब्युझिँग की कलम लागू हो जायेगी…’ कह कर जगदीश जोरों से हंस पड़ा.

शालिनी गुस्से में मुंह फेरने गई पर ऐसा करने से उसके शरीर पर ढकी चद्दर निचे सार्क गई. शालिनी ने तेजी से चद्दर उठा कर अपने कंधे पर ओढ़ ली. यह देख जगदीश ने कहा.

‘चद्दर हटाओ.’

शालिनी ने जगदीश को देखा.

जगदीश का चहेरा दृढ़ था. दृढ़ और गंभीर.

शालिनी ने चद्दर हटा दी.

‘अब अपने स्तन देखो.’

शालिनी ने ताजुब्ब हो कर जगदीश को देखा.

जगदीश ने कहा. ‘मुझे नहीं अपने स्तन को देखो.’

शालिनी ने पारदर्शी कुर्ते में झलकती अपनी स्तन राशि देखि.

जगदीश ने कहा. ‘इनको देखो, चाहो, प्यार करो, अपनाओ.’

शालिनी ने उलझ कर कहा. ‘क्या बोल रहे हो आप भैया ?’

‘इनका, इनके आकार का स्वीकार करो शालिनी. यह आकार में औसत से कुछ बड़े है. है तो है. यह कोई शर्मनाक बात नहीं. इनको लेकर तुम किसी कुंठा में मत रहा करो.’

‘पर भैया लोग इनको जिस तरह ताड़ते है…’ शालिनी को सुझा नहीं की आगे क्या कहे.

‘लोग ताडेंगे. लोग यूँ भी औरतों की छाती को ताड़ते रहते है, साइज़ का कोई लेना देना नहीं.

शालिनी ने अपने स्तनों को नए नजरिये से देखा. जगदीश ने आगे कहा.

‘अपने गीले कपड़े फैला के रख दो ताकि सुख जाए. फिर हम खाना खा लेते है.’

***

चांदनी और जुगल ने पूना के शादी वाले गेस्ट हाउस में अलग अलग कमरे लिए थे. दोनों कमरे अलग अलग मंजिल पर थे. चांदनी को शालिनी का नाइट गाउन चाहिए था. क्योंकि अपने गाउन में उसे बहुत गर्मी लग रही थी. शालिनी के पास एक कॉटन का गाउन था नीले रंग का. चांदनी के खुद के गाउन में से एक भी गाउन कॉटन का नहीं था. वो जुगल शालिनी के कमरे की और जा रही थी तभी दुल्हन की मां सीता देवी उसे मिल गई. जो गेस्ट हाउस में अपनी किसी सहेली से मिलने आई थी. चांदनी को देख सीता देवी और उसकी सहेली उसकी महेंदी की तारीफ़ करने लगी. सब गर्मी से परेशान थे. सीता देवी ने मोबाइल से अपने किचन डिपार्टमेंट में फोन करके गन्ने का ज्यूस मंगाया.

दूसरी तरफ जुगल जहां लुढ़क गया था उस के करीब के सोफे पर सोया हुआ आदमी नींद में बेलेंस खो कर जुगल पर गिरा. जुगल और वो आदमी दोनों हड़बड़ा कर उठ गए. वो आदमी जुगल की माफ़ी मांगने लगा. जुगल के बांये हाथ पर वो आदमी गिरा था. वो हाथ डाब जाने की वजह से बहुत पीड़ा देने लगा. जुगल ने पीड़ा से कराहते हुए कहा. ‘माफ़ी बाद में मांगना कोई पेईन किलर दवाई या मलम लाओ भाई ये दर्द सहन नहीं होता.’ ‘अभी लाया भाई…’ कह कर उस आदमी ने सोफे के नीचे से शराब की बोतल निकाली. ये वो ही बोतल थी जो कुछ देर पहले जुगल ने एक पेग ले कर बची हुई शराब सोफे के नीचे रखी थी. जुगल ने कहा. ‘ये तो शराब है!’

‘इससे बड़ा कोई पेईन किलर नहीं भाई.!’ उस आदमी ने कहा और जा कर कहीं से पानी की बोतल ले आया.

पीड़ा से कराहते जुगल को फिर से शराब पीनी पड़ी. जैसे जैसे शराब गले के निचे उतरती गई, सर पर चढ़ती गई, हाथ की पीड़ा को मंद करती रही…पेग ख़त्म होते होते बैठे बैठे ही जुगल की आंख लग गई.

सीता देवी की सहेली के साथ की बातों में चांदनी की मेहंदी स्किल का फिर से जिक्र आया. सीता देवी ने कहा. ‘मेरा बड़ा बेटा सुधींद्र तो आपकी महेंदी का कायल हो गया है, तारीफ़ करते उस का मुंह नहीं सुकता…

चांदनी सिर्फ मुस्कुरा दी. और मन में बोली. : - आप को क्या पता की आप का सुधींद्र मेरे किस गुण का कायल है…. - पर इतना सोचते उसे सुधींद्र अपनी दुल्हन बनी बहन के साथ क्या कर रहा था वो दृश्य और वो सारी बातें याद आ गई. वो एकदम अनकम्फर्टेबल हो गई, मन फिर से खट्टा हो गया. दुपट्टे से अपना चेहरा पोंछने लगी. तभी सीता देवी ने मंगवाया हुआ गन्ने का ज्यूस आ गया. सब ने एक एक प्याला ज्यूस ले लिया. आ रहे खयालो से अस्वस्थ चांदनी ने बेखयाली में ज्यूस का एक बड़ा प्याला ले कर तेजी से पीना शुरू किया. गोया सुधींद्र के जिक्र से जो अनचाही बातें याद आ रही थी वो ज्यूस से धूल जाने वाली हो. ज्यूस पीते वक्त चांदनी को यह भी लगा की कहीं पर कुछ चूक हो रही है… वो कुछ भूल रही है जो अति महत्वपूर्ण है पर सीता देवी की लगातार चल रही बातों में उसका ध्यान बाँट रहा था, औपचारिकता में ही सही पर हां , जरूर, सही बात है किस्म के जवाब देने में दिमाग शामिल तो करना ही पड़ता है. गर्मी थी कि घटने के आसार ही नजर नहीं आ रहे थे, ज्यूस और पीने का मन हो रहा था, चांदनी ने दुबारा ज्यूस ले ले कर पीना शुरू कर दिया…फिर वही कुछ भुलाया जा रहा है ऐसी भावना चांदनी को घेरने लगी. वो परेशान हो गई : क्या है जो बार बार मन को खटक रहा है?

चांदनी इतनी अस्वस्थ हो गई की गाउन बदलने के लिए शालिनी के कमरे में जाने का आइडिया भी उसने ड्रॉप कर दिया और अपने कमरे में जा कर सोने के इरादे से वो सीता देवी की सहेली के यहां से निकल गई. अपने कमरे में जा कर सोने की कोशिश करने लगी.

***

जब अचानक दरवाजे पर धड़ धड़ जैसी उग्र आवाज में दस्तक हुई तब जगदीश और शालिनी दोनों आतंकित हो कर नींद से जग पड़े. दोनों इंस्पेक्टर मोहिते का भेजा टिफिन खा कर थक कर सो गए थे. दोनों तन और मन से इतने निढाल हो गए थे की एक दूसरे के सर को अपना सर टिका कर ऊँघ रहे थे. पर इस धड़ धड़ की आवाज ने दोनों को हिला दिया. दरवाजा खोलने उठते हुए जगदीश ने समय देखा : रात के चार बज गए थे. वो दरवाजा खोलने बढ़ा. शालिनी ने खुद को चद्दर से ढंका. जगदीश ने दरवाजा खोला. बाहर इंस्पेक्टर मोहिते खड़ा था. दरवाजा खुलते वो अंदर आया.

‘एक टेंशन हो गई है.’ पलंग पर बैठते हुए मोहिते ने कहा. ‘साजन भाई के कुछ साथी अभी भी बाहर है, सारे पकड़े नहीं गए. उनको पता चल गया है की साजन भाई को तुमने मारा है. और वो लोग तुम्हें ढूंढ रहे है.’

यह सुन कर जगदीश और शालिनी दोनों परेशान हो गए. मोहिते ने आगे कहा. ‘ अगर उनको ये पता चला गया है की साजन भाई को तुमने मारा है तो फिर अभी तुम को मैंने यहां रुकाया है यह भी पता चल सकता है. इसलिए मुझे यह खबर मिलते ही मैं फ़ौरन यहां आ गया. मैं नीचे इंतज़ार करता हूं तुम लोग तुरंत तैयार हो कर आओ.हमें यहां से चलना होगा.’ कह कर मोहिते तेजी से बाहर निकल गया.

जगदीश और शालिनी ने एक दूसरे को देखा.

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गर्मी के कारण चांदनी की आंख खुल गई. उसे लगा की शालिनी का गाउन लेने नहीं जा कर उसने गलती कर दी. कमरे में फेन तेजी से चल रहा था पर उसका गाउन कॉटन का नहीं होने की वजह से उसे बहुत गर्मी लग रही थी. गले में हल्का दर्द हो रहा था. चांदनी ने मोबाइल में चेक किया तो सुबह के चार बज रहे थे. चांदनी को लगा अगर गाउन बदल लूँ तो और दो तीन घंटे सो पाउंगी. उसने शालिनी के कमरे में जा कर गाउन लाना तय किया, पलंग से उठते वक्त पीठ में हल्का सा दर्द हुआ उसने ‘उई मां..’ कहना चाहा पर गले से आवाज नहीं निकली.

‘उफ्फ्फ्फ़.....’ चांदनी को याद आया की वो कब से क्या बिसर रही थी काफी देर हो गई थी। … पर तब अटक काफी देर हो गई थी.

चांदनी को बर्फ की एलर्जी थी. इसलिए वो बर्फ वाली और ठंडी कोई भी चीज खाती या पीती नहीं थी. कोल्ड ड्रिंक हो या आइसक्रीम वो ज्यादातर अवॉइड करती थी. अगर गलती से कुछ बहुत ठंडा खा पी लिया तो उसका गला बैठ जाता था. वो बोल नहीं पाती थी. सीता देवी और उस की सहेली के साथ वो बैठी थी तब अपनी बेख्याली में चांदनी ने बर्फ वाला गन्ने का ज्यूस एक नहीं बल्कि दो बार पीया. उसी वक्त उसका शरीर उसे संकेत दे रहा था पर चांदनी वो संकेत पकड़ नहीं पाई की वो क्या गड़बड़ी कर रही है. लेकिन अभी जब वो ‘उई मां’ नहीं बोल पाई तब उसे एहसास हुआ की उसका गला बैठ गया है. मन मसोसते वो चांदनी के कमरे की और जाने लगी.

***

‘आप लोग फिलहाल पूना जाना ड्राप कीजिये. ‘

जीप ड्राइव करते हुए मोहिते ने कहा. जगदीश मोहिते की बगल की सीट में था. शालिनी पीछे की सीट पर थी.

मोहिते ने आगे कहा. ‘क्योंकि साजन भाई के गोडाउन में तुमने अगर यह कहा था कि तुम लोग पूना जा रहे हो तो फिलहाल ये पूना ट्रिप रिस्की है. वो लोगों का सरदार तुमने मार डाला है, कुछ दिन तुम्हे संभलना होगा.’

‘मैं क्या अब इन मवाली ओ से छिपता फिरू?’ जगदीश ने चिढ कर पूछा.

‘मी. रस्तोगी, आप बहुत बहादुर हो पर मेरी बात समझो. यह लोग कोई उसूल वाले लड़ाकू नहीं, बल्कि जाहिल, अनपढ़ फुटपाथ छाप गुंडे है. ये सामने आ कर ललकारे ये जरूरी नहीं. पीछे से वार कर सकते है, सोते वक्त वार कर सकते है, तुम्हारी पत्नी को हानि पहुंचा सकते है… इनके निपटने साथ बहादुरी की नहीं अकल की जरूरत है. किसी तरह दो दिन कहीं शांत रहो. फिर तुम्हे मुंबई पहुंचाने का जिम्मा मेरा.’

‘पर पूना…’ जगदीश कुछ बोलने गया पर शालिनी ने तुरंत जगदीश की बात काटते हुए कहा. ‘पूना जाना इतना जरूरी नहीं. प्लीज़ इंस्पेक्टर साहब की बात ठीक लग रही है.’

जगदीश सोच में पड़ गया.

***

जुगल और शालिनी के कमरे में चांदनी दाखिल हुई. लाइट पंखा ओन किया. कमरे में दीवार में जड़ी अलमारी का दरवाजा खोल कर चांदनी ने शालिनी की बेग से नीला वाला गाउन ढूंढ निकाला. गाउन निकालते निकालते बेग में से शालिनी की नेलपॉलिश उछल कर गिरी और अलमारी के निचे के दराज में गिर पड़ी. चांदनी ने सोचा नेल पॉलिश बाद में उठाकर बेग में रखूंगी, पहले गाउन बदल दू.

फटाफट चांदनी ने गाउन बदल दिया. रात को चार से ज्यादा बज चुके थे, अब पेंटी भी न पहनी हो तो क्या फर्क पड़ेगा यह सोच कर चांदनी ने पेंटी भी निकाल दी. और एक सुकून की सांस ली. पेंटी को फोल्ड करके हाथ में थामा. लाइट, फेन बंद किया, कमरे के बाहर निकली. बाहर से कड़ी लगाईं. और तेजी से अपने कमरे की और जाने लगी तब उसे याद आया की नेल पोलिश नीचे के ड्रॉअर में गिर पड़ी वो उठानी रह गई. शालिनी बेचारी नेल पॉलिश न दिखने पर परेशान हो जाएगी यह सोच वो फिर कमरा खोल कर अंदर तेजी से गई. लाइट पंखा ऑन करने रुकी नहीं. मोबाइल की टॉर्च से अलमारी खोल कर कमर झुका कर नेल पोलिश उछल कर गिरी थी उस ड्रॉअर में हाथ दाल कर टटोलने लगी. पर नेल पॉलिश तो नहीं मिली, उसके हाथ की ऊँगली में पहनी हुई अंगूठी अंदर किसी कील में अटक गई…

***

मोहिते ने जीप एक फ़ार्म हाउस पर रुकाई. शालिनी , जगदीश और मोहिते जीप से उतरे.जीप को देख एक नौकर जैसा दिखने वाला आदमी दौड़ कर आया. मोहिते ने उसके साथ मराठी में कुछ बातें की फिर जगदीश से कहा. ‘इसे समझा दिया है, आप लोग आराम से रहो यहां , मैं आप लोगो का मुंबई जाने का इंतज़ाम करता हूँ. मैं भी यहाँ सुबह तक रुकता हूँ, सुबह मुझे करीब के एरिए में कुछ काम है.’

तीनो फ़ार्म हाउस में दाखिल हुए.

***

चांदनी फस गई थी. उसका हाथ अटक गया था. दूसरे हाथ में पेंटी और मोबाइल थे वो बाजू में रख कर वो दूसरा हाथ अलमारी के उस ड्रॉअर में डाल कर फसे हुए हाथ को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी.

अनजाने में चांदनी कमर से झुक कर अत्यंत कामुक मुद्रा बना रही थी.

अचानक उसका गाउन कमर के ऊपर तक चला गया. वो कुछ समझे उससे पहले उसका कमर के निचे का हिस्सा नंगा हो गया. और दूसरे ही पल उसने अपने योनिमार्ग में लिंग रगड़ खाता हुआ महसूस किया. वो जोरों से कुछ बोलने गयी पर उसका गला बैठ चुका था. इतने में उसने जो सुना वो उसे आघात दे गया.

उसने सुना की जुगल की आवाज है. चांदनी को जुगल के मुंह से शराब की तीव्र गंध आने लगी… वो अपना लिंग उसकी योनि द्वार पर रगड़ते हुए कह रहा था. ‘थेंक यु सो मच शालिनी, मुझे पता ही नहीं था कि तुम आ गई. कब आई ? और मेरे लिए इतने सेक्सी पोज़ में राह देख रही हो…? लव यू शालू -’ और कमर पर हाथ बांधते हुए उसने चांदनी की योनि को सहला कर कहा. ‘रेडी ? वन टू एंड थ्री….’

चांदनी की योनि में जुगल का लिंग एक जोश के साथ घुस गया…


(१३ - ये तो सोचा न था…समाप्त, क्रमश:)
चांदनी और जुगल का मिलन तो हो गया अब देखना है की जगदीश और शालिनी का क्या होता है। सुंदर अपडेट।
 

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( १२ - ये तो सोचा न था…)

[(११ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :

शालिनी कुछ समझे की पानी कहां से आ रहा है तब तक उसके बदन का ऊपरी हिस्सा भीग गया. गलती से शावर ओन कर दिया था यह समझ में आने पर उसने तेजी से उस नोब को बंद कर दिया पर तब तक उस की पूरी कमीज़ भीग कर ट्रांसपैरंट हो चुकी थी. दुपट्टा भी भीग गया था. और उस के बड़े बड़े स्तन को किसी तह सम्हालती हुई उस की काली ब्रा भी पूरी भीग चुकी थी. शालिनी की हालत खराब हो गई. ऐसी आधी नंगी हालत में वो बाहर अपने जेठ के सामने कैसे जायेगी? अपनी तक़दीर को कोसती हुई वो अपने भीगे बाल झटकने गई तब गीली फर्श पर उस का पैर फिसला और वो एक चीख के साथ बाथरूम की भीगी फर्श पर गिर पड़ी. फर्श पर गिर कर वो कराहने लगी और उस की चीख सुन कर जगदीश दौड़ कर बायथरम में आ गया. बाथरूम में शालिनी को देख वो ठगा सा रह गया. शालिनी का दुपट्टा गले में अटक कर एक और झूल रहा था. उस की कमीज़ भीग कर पारदर्शी हो कर काली ब्रा में स्तन कितने बड़े है यह नुमाइश कर रही थी और उस की सलवार भी फर्श के पानी से भीग कर उसकी जांघो पर चिपक गई थी....]


शालिनी जगदीश के सामने एक छप्पन भोग के रस से सराबोर निमंत्रण की तरह प्रस्तुत थी…

शालिनी के भीगे हुए कामोद्दीपक अर्ध नग्न यौवन की एकाधिक धजाओ से लहराता चुनौतीपूर्ण शरीर देख कर जगदीश के बदन में बरबस उत्तेजना का एक लावा फव्वारा की तरह उठा. उस फव्वारे की ताकत इतनी तादाद में थी की कोई भी साधना, तपस्या या मनोबल टूट कर चकनाचूर हो जाए…यह फव्वारा अगर पहाड़ से टकराय तो उसके दो टुकड़े कर दें. यह फव्वारा अगर समंदर में पड़े तो समंदर में रास्ता बन जाए. यह फव्वारा अगर आसमान को छू ले तो उसमें सुराख कर दें…

ऐसे प्रबल फव्वारे के सामने एक औसत इंसान की क्या बिसात?

जगदीश उस फव्वारे के संवेग में पिघल कर अपने लिंग की उत्तुंग अवस्था में एक ही समय कामेच्छा का स्वामी और दास बन कर अतिक्रमण की कगार पर था की अचानक…

अचानक जगदीश की नजर बाथरूम में टंगे आईने पर गई.

यह देख वो आतंकित हो गया की आईने में उसने जो प्रतिबिम्ब देखा वो स्वयं का नहीं था….

कौन था आईने में?

***

जगदीश ने झुक कर शालनी को फर्श पर से खड़ा किया.


शालिनी को कमर में चोट लगी थी. कमर को सहला कर कराहते हुए वो किसी तरह खड़ी हुई.

‘शालिनी, तुम तो पूरी भीग गई हो…रुको कमरे में कुछ कपड़े हो तो देखता हूँ, यह भीगे कपडे बदलने होंगे.’

कह कर जगदीश बाथरूम के बाहर गया और कमरे में कोई कपड़ा है क्या वो देखने लगा. कहीं कुछ नहीं मिला. आखिरकार तकिये के नीचे उसे एक बड़ा वाला जेंट्स कुरता दिखा. वो ले कर उसने बाथरूम में जा कर शालिनी को दिया और कहा. ‘यही है और कुछ नहीं शालिनी, इसे बदल लो, और कमीज़ सलवार निकाल दो वरना भीगे कपड़ो से तुम बीमार पड जाओगी.

कमर के दर्द की वजह से शालिनी परेशान थी. जैसे तैसे उसने कमीज़ निकाल दी. ब्रा भी बहुत भीग गई थी. उसने ब्रा भी हटा कर बाजू में रखी और कुर्ता पहन लिया. बाहर से जगदीश ने फिर कहा ‘शालिनी, कुर्ता काफी लंबा है, सलवार भी बहुत भीग गई है,उसे भी निकाल देना.’

शालिनी ने देखा. कुर्ता घुटनों तक आ रहा था. उसने सलवार भी निकाल दी.

पर

कुर्ता पहन लेने के बाद उसे इस बात का अहसास हुआ की कुर्ता एकदम ट्रांसपेरेंट है…

उसे बाहर निकलने में शर्म आने लगी. और उसी वक्त दरवाजे पर दस्तक हुई.

शालिनी सहम गई. कौन होगा?

***

जगदीश ने दरवाजा खोला तो बाहर एक हवालदार टिफिन लिए खड़ा था. ‘मोहिते साहब ने खाना भेजा है.’ कह कर उसने टिफिन दिया. जगदीश ने उसे शुक्रिया कह कर दरवाजा बंद किया और बाथरूम की और देख कर कहा. ‘चलो अब तो खाना भी आ गया. आ जाओ शालिनी.’

शालिनी बोली ‘आई भैया…’ पर उसे बाहर निकलने में संकोच हो रहा था. और कमर में दर्द हो रहा था. अपनी इस हालत पर उसे फिर रोना आ गया. वो सुबक सुबक कर दीवार के सहारे खड़ी हो कर रोने लगी. उस के रोने की आवाज सुन कर जगदीश होले से बाथरूम में गया. शालिनी को दीवार में सर छिपा कर रोते हुए देख उसने पूछा. ‘क्या बात है? कमर में बहुत लगी क्या ?’

यह सुन कर शालिनी और रोने लगी. कमर के दर्द के आलावा ऐसी आधी नंगी वो जेठ के सामने खड़ी है इस बात का भी उसे बहुत बुरा लग रहा था. जगदीश को लगा की शालिनी दर्द के मारे चल नहीं पा रही. उसने तुरंत शालिनी को गोद में उठा लिया. शालिनी कुछ समझे उससे पहले जगदीश ने उसे बाहर बिस्तर पर लिटा दिया और बिस्तर पर उसे लिटाते हुए जगदीश ने देखा की शालिनी कमोबेश नंगी है. शालिनी शर्म के मारे बैठ कर अपना बदन छिपाने की कोशिश करने लगी पर कमर में दर्द उभर आने पर वो फिर कमर सहलाते कराहने लगी. उस की यह हालत देख जगदीश उसके करीब बैठ उसकी कमर सहलाते हुए बोला। ‘कमर में बहुत दर्द हो रहा है क्या?’

शालिनी बेबसी से रो पड़ी. रोते हुए बोली. ‘हर जगह दर्द हो रहा है. क्या हालत हो गई है मेरी. यह कोई कपड़े है? उन मवालीओ ने कहा वो ही सच हो गया. अपने जेठ जी के सामने देखो रांड की तरह बिना कपड़ो के बैठी हूँ…' कह कर फिर वो फफक फफक कर रोने लगी.
जगदीश को उसके हाल पर तरस आ गया. ‘ ना ना… बेटा….ऐसा नहीं बोलते…. तू रांड नहीं है.’ कहते हुए उसे बांहों में खींच कर उस की पीठ सहलाते हुए आगे कहा. ‘तू तो मेरी बेटी है. नाजुक सी प्यारी सी मासूम बेटी...’ कह कर जगदीश ने उसके माथे पर चुम्बन किया.

उस चुम्बन के बाद दोनों उसी स्थिति में जैसे स्थिर हो गए किसी बूत की तरह.

फिर जगदीश ने स्नेह से शालिनी की चिबुक अपनी उंगलियों से थाम कर चहेरा ऊपर उठाया. . शालिनी ने लज्जा पूर्ण नजरो से जगदीश को देख कर अपनी पलके नीचे झुका दी.

‘बेटा…’ कह कर जगदीश ने शालिनी को अपनी बांहो से मुक्त किया, खुद थोड़ा पीछे हटा.

जगदीश की इस हरकत से शालिनी का बदन ‘खुले’ में आ गया. अब तक उसका भीगा अधनंगा जिस्म जगदीश की बांहों में ‘ढका’ हुआ था. पर अब एक पारदर्शी कुर्ते में शालिनी जगदीश के सामने मानो महाभोज की तरह प्रदर्शन में आन पड़ी. शर्मशार हो कर त्वरा से शालिनी ने अपनी विशाल स्तन राशि को हाथों की आड़ में छिपाने की बेअसर कोशिश की. जगदीश को शालिनी की स्थिति बराबर समझ में आ रही थी. अचानक उसने बिस्तर पर बिछी चद्दर को खींच लिया. शालिनी को एक झटका लगा पर वो कुछ समझे इससे पहले चद्दर बिस्तर से निकल कर जगदीश के हाथ में पहुंच गई थी. जगदीश ने उस चद्दर को शालिनी के बदन पर डालते हुए कहा. ‘बेटा, अपने शरीर को ठीक से ढक लो, तुम कैसी बेबसी महसूस कर रही हो यह मैं समझता हूँ..’

शालिनी ने तुरंत उस चद्दर से शरीर को ठीक से कवर कर लिया।

पर निगोड़े स्तन!

शालिनी को डूब मरने को जी होने लगा. उस की अर्ध नग्न अवस्था पर तरस खाकर जगदीश ने चद्दर ओढ़ने का उपाय ढूंढ निकाला पर शालिनी के स्तन इतने उफान पर थे गोया चद्दर फाड़ कर बाहर आ जाएंगे, जैसे चीख चीख कर नारे लगा रहे हो : हम है, हम शान से तने है, हमे देखो, हमें सहलाओ, हमें प्यार करो, हमें न्याय दो…

शालिनी अपने जिस्म के हिस्सों की यह बेहयाई देख असहायता के अंतिम पर पहुंच गई. और उस की आंखे फिर भीग गई. जगदीश ने कमरे के एक कोने में मटका देखा, उसमें से पानी का एक प्याला भर कर वो शालिनी को दे रहा था तब फिर उस की आँखे नम देख कर उसने पूछा. ‘क्या हुआ शालिनी? तुम फिर क्यों रो रही हो?’

अपने आंसू पोंछ कर शालिनी ने गोया कोई कड़ा फैसला लिया हो, दृढ चहेरे के साथ कहा, ‘भैय्या, आप को एक काम करना होगा.’

‘क्या हुआ बताओ?’

‘यह पुलिस इंस्पेक्टर का घर है, शायद घर में कहीं पर रिवाल्वर भी होगी!’

जगदीश चौंका, पर चेहरा सहज रख कर बोला.‘रिवाल्वर का क्या काम पड़ गया अब?’

‘कम से कम चाक़ू तो होगा ही घर में!’

‘बेटा! मुझे बताओगी कि तुम्हारे दिमाग में क्या चल रहा है?’

‘भैया आपने जब साजन भाई को मार दिया तब ही मुझे भी मार देना चाहिए था…’

इतना बोलते बोलते शालिनी की दृढ़ता पिघल गई और वो फिर फफक कर रो पड़ी.

इस बार जगदीश ने उसे रोने से रोका नहीं, रोने दिया. उसे लग रहा था की यह आंसू भी शालिनी की उस बात का हिस्सा है जो वो बताना चाहती है, वो बात जो बड़ी उधेड़बुन के बाद वो कहने की कोशिश कर रही है, उसे बोलने देना चाहिए- बिना किसी व्यवधान के.

जब शालिनी का रोना थोड़ा मंद हुआ तब बड़ी नरम आवाज में जगदीश में पूछा. ‘तुम को क्यों मार देना चाहिए बेटा ?’

‘मत पुकारो मुझे बेटा…!’ शालिनी ने चीखनुमा आवाज में कहा. जगदीश सहम गया. शालिनी अपनी आंखे पोंछते हुए आगे बोली. ‘न मैं आप की बेटी कहलाने लायक हूँ न बहु, अरे मैं तो आप के रस्तोगी परिवार का कुछ भी कहलाने योग्य नहीं हूँ. पता है जब वो कमीना साजन भाई बोला था की - देखो तुम्हारे जेठ का औजार और बताओ की साइज़ क्या है तब -’

शालिनी रुक गई.

जगदीश ने कुछ पल राह देखि फिर पूछा. ‘बोलो शालिनी तब क्या?’

‘...तब मेरे मन में आप के बारे में कामुक ख़याल आये थे भैय्या..’ बोलते हुए वो फिर रो पड़ी.

जगदीश चुप रहा. फिर बोला. ‘उस वक्त तुमने देखा था ना कि मेरे लिंग में भी तनाव था?’

‘आप पुरुष हो भैया, पुरुष जब कामोत्तेजित होता है तब बाहरी तौर पर पता चल जाता है सो इल्जाम लगाना आसान हो जाता है. औरत के अंदर कामवासना क्या असर रचती है यह बाहर किसी को पता नहीं चलता. आप को भी पता नहीं चला की मेरे मन में क्या चल रहा था. लेकिन मैं खुद बता रही हूँ. आप जैसे सज्जन इंसान के साथ मैं धोखा नहीं कर सकती….’

‘शालिनी, इतना आवेश में मत आ जाओ, सज्जन, इंसान और धोखा - ऐसे सब भारी भारी शब्द क्यों बोल रही हो? आराम से बात करो-’

‘भैया. मुझे बोलने दें. प्लीज़.’

जगदीश ने शालिनी की और देखा. वो आगे बोली.

‘मैं आप को यह बताना चाहती हूँ की उस गोडाउन में साजन भाई ने जो कुछ भी हरकतें की वो इतनी शर्मनाक और गीरी हुई थी की आपने उसे खत्म कर दिया. भैया, आपने सही किया पर आप ने मुझ पर भी गोली चला देनी चाहिए थी. क्योंकि उस साजन भाई की नीच हरकतों को मैं भी कोस रही थी, लजा रही थी पर साथ साथ मैं कामुक भी हो रही थी. बताने में कोई गर्व नहीं बल्कि शर्मिंदगी ही हो रही है पर यह मेरा इकबाले जुर्म है भैया की उस वक्त मेरी योनि गीली हो चुकी थी. कहीं न कहीं मैं भी पाप की हिस्सेदार हूँ.सो आप मुझे भी मार दें. ’

जगदीश को शालिनी पर स्नेह उभर आया : क्या कोई इतना मासूम हो सकता है?

वो शालिनी के करीब गया और उसकी नम आंखों वाला चेहरा दोनों हाथों से उठा कर उसकी आंखों में देखा. शालिनी ने तुरंत दोष भावना के चलते अपनी आंखें झुका दी. जगदीश मुस्कुराया और उसके माथे पर एक चुम्बन किया. और उससे थोड़ी दुरी पर बैठा.

शालिनी ने कहा. ‘आप क्या मुझे छोटी बच्ची समझ कर लाड कर रहे हो? मैं आप को सजा देने कह रही हूँ और आप है कि माथे पर पप्पी दे रहे हो?

जगदीश ने अचानक कहा. ‘अपने बदन से चद्दर हटाओ.’

शालिनी ने चौंक कर जगदीश की और देखा.

‘तुमने सही सुना. मैंने तुम्हें अपनी छाती पर से चद्दर हटाने कहा. मुझे अपने स्तन बताओ.’

शालिनी को यकीन नहीं हो रहा था की उसके जेठ उसे स्तन बताने कह रहे है.

‘शालिनी.’ शालिनी के चकित चेहरे को देखते हुए जगदीश ने कहा. ‘कोई जबरदस्ती नहीं. कोई रिवाल्वर की नोक पर तुम्हे स्तन बताने नहीं कह रहा. बोलो चद्दर हटाओगी?’

शालिनी ने हिचकिचाहट के साथ अपनी छाती से चद्दर हटाई.

पारदर्शी कुर्ते में उसकी अदभुत स्तन राशि दृश्यमान हुई.

जगदीश ने अपने पेंट पर से शर्ट ऊपर करते हुए शालिनी से कहा. ‘मेरे लिंग की और देखो.’

शालिनी को अजीब लगा. पर उसने देखा.

‘क्या मेरे लिंग में तनाव दिख रहा है?

शालिनी ने देखा की नहीं था तनाव. उसने कहा. ‘नहीं.’

जगदीश ने अपना शर्ट ठीक किया और शालिनी से कहा. ‘अब चद्दर ढक लो अपनी छाती पर.’

शालिनी ने अपनी छाती पर चद्दर ढक लिया. जगदीश ने कहा. ‘मुझे बताओ. क्यों नहीं मेरे लिंग में तनाव?’

शालिनी जगदीश की ओर उलझ कर देखने लगी.

जगदीश ने कहा. ‘क्या तुम सुंदर नहीं ? आकर्षक नहीं? क्या तुम्हारे स्तन कामोत्तेजक नहीं लगते? इतने पारदर्शी कपड़ो में क्या वो लुभावने नहीं लगते?’

शालिनी को समझ में नहीं आया की क्या जवाब दें.

जगदीश ने कहा. ‘गोडाउन में तुम्हारी योनि गीली हुई उससे तुम शर्मिंदा हो पर मैंने तो अभी कुछ पल पहले जब तुम्हे बाथरूम में करीब करीब नग्नावस्था में देखा तब अपने लिंग में एक तूफ़ान महसूस किया, मैं कामांध हो कर तुम्हे भोगने की कगार पर था. मेरे अंदर एक जबरदस्त आवेग आया की मैं तुम्हारे बदन को आगोश में ले कर तुम्हारा रसपान करूं. तुम्हारे बदन के हर अंग को चुसू, चाटु....’

शालिनी अवाक हो कर सुनती रही.

जगदीश ने कहा, ‘तभी मुझे साजन भाई दिखा.’

शालिनी डर कर बोली.’भैया ! क्या कह रहे हो?’

जगदीश ने कहा, ‘हां शालिनी. मैंने आईने में अपना चेहरा देखा तो लगा की मैं मैं नहीं रहा बल्कि साजन भाई में तब्दील हो गया हूँ. कोई फर्क नहीं रहा था मुझमे और साजन भाई में उस वक्त. पराई स्त्री या बेबस हाथ लगी स्त्री को भोगना, उस के बदन को घूरना उससे मनमानी करना… यह क्या है ? साजन भाई होना ही तो है? तुम और मैं इस छोटे से कमरे में क्यों एक साथ है? हम न कोई प्रेमी है न एक दूसरे से शारीरिक संबंध बनाना चाहते है. हम हालत के हाथो बेबस एक छोटे से कमरे में एक साथ मौजूद है. एक पुलिसवाला हमें हेल्प कर रहा है, उसको यह कह कर की हम पति पत्नी नहीं है मैं उसका टेंशन बढ़ाना नहीं चाहता था. इसलिए हम एक कपल की तरह यहाँ पर इस वक्त उपस्थित है. यह कोई तुम्हारी चॉइस नहीं की तुम मेरे साथ कमरा शेर करो. तुम अपना बदन दिखा कर मुझे सेक्स करने सिड्यूस नहीं कर रही थी. तुम और मैं हालत के हाथों इस अजीब स्थिति में फंसे हुए है. और मैं ऐसे में अगर तुम्हारी मजबूरी का फायदा उठाऊं तो मुझमे और साजन भाई में क्या फर्क है?’

शालिनी जगदीश की बातों को मंत्रमुग्ध होकर सुनती रही.

जगदीश ने कहा. ‘शालिनी, जो सहज नहीं वो पाप है. मैं कुछ ऐसा सोच रहा था जो असहज था. गोडाउन में तुम्हारी योनि का गीला होना या मेरे लिंग में तनाव आना मैं गलत नहीं समझता. क्यों की कोई हमें अपने विकृत षड्यंत्र के चलते ऐसी स्थिति में धकेल रहा था. बिना किसी मानसिक तैयारी के हमारा कब्ज़ा किसी और ने कर लिया और एक दूसरे के अधनंगे शरीर तथा शरीर संबंधित न सोची हुई बातें सुनकर -कह कर हम उत्तेजित हो गए थे सो हमारे शरीर पर उसका प्र्रभाव होना लाजिमी था. क्योंकि अंतत: हम एक स्त्री और पुरुष है. और कामेच्छा कुदरती है. पूरे मामले में गैर कुदरती बात थी वो यह कि जिस तरह हम उस मुकाम पर पहुंचे थे. हम अपनी मर्जी से नहीं गए थे उस स्थिति में. किसी की विकृति हमे एक दूजे के प्रति उत्तेजित कर रही थी - शालिनी, यह कुदरती नहीं था. और कुदरती नहीं था इसलिए सहज नहीं था.’

जगदीश इतना बोल कर रुका. शालिनी की और देखा. वो ध्यान से सुन रही थी. जगदीश ने आगे कहा.

‘उस असहज स्थिति से तो हम बाहर आ गए. पर इस कमरे में फिर एकबार विचित्र स्थिति खड़ी हुई. पर क्या यह सहज था ? नहीं. जिस तरह गोडाउन में हमारी मर्जी नहीं थी उस तरह इस कमरे में तुम्हारी मरजी या इच्छा के बगैर तुम अनजाने में, संयोग से कामोत्तेजक अवस्था में मेरे सामने थी. मुझे संभोग का मोह हो गया. पर अगर मैं अपने शरीर की इच्छा पूर्ण करता तो क्या वो संभोग होता? नहीं. संभोग का मतलब है सम+भोग. दोनों पात्र की समान भोग की इच्छा का होना जरूरी है. तभी वो संभोग होगा. यहां तो मैं कामुकता के बहाव में था. और तुम ? तुम तो बेचारी कपडे भीग जाने पर शर्मसार हो गई थी की इस हालत में बाहर जेठ के सामने कैसे जाऊं…! और मैं उस स्थिति में तुम्हे भोगु?’

कह कर जगदीश ने शालिनी और देखा तो वो रो रही थी. उसकी आंखों में जैसे नदी बह रही थी. जगदीश हैरान हो गया की शालिनी रो क्यों रही है!

‘शालिनी!’

शालिनी ने अपनी आंखों को पोंछने का प्रयास किये बिना कहा. ‘भैया.’

‘बोलो शालिनी.’

‘भैया, आई लव यू.’

और वो जगदीश से लिपट गई.....



(१२ - ये तो सोचा न था…समाप्त, क्रमश:)
Nice update
 
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( १३ - ये तो सोचा न था…)

[(१२ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :

जगदीश ने शालिनी और देखा तो वो रो रही थी. उसकी आंखों में जैसे नदी बह रही थी. जगदीश हैरान हो गया की शालिनी रो क्यों रही है!

‘शालिनी!’

शालिनी ने अपनी आंखों को पोंछने का प्रयास किये बिना कहा. ‘भैया.’

‘बोलो शालिनी.’

‘भैया, आई लव यू.’

और वो जगदीश से लिपट गई…]


जगदीश खड़ा था और शालिनी पलंग पर बैठी हुई. शालिनी का चेहरा जगदीश के पेट में दबा हुआ था.और हाथों से उसने जगदीश की कमर को बांध दिया था.

शालिनी के भोलेपन पर जगदीश मुस्कुरा दिया और खुद को शालिनी की गिरफ्त से अलग करना चाहा पर शालिनी ने ऐसा करने पर अपने हाथ और मजबूती से कसे,गोया कोई छोटी बच्ची किसी बड़े को ऑफिस जाने से रोकने के वक्त लिपट कर रोकने की कोशिश करती हो.

उसी अवस्था में शालिनी ने सर ऊंचा उठा कर जगदीश की ओर देखते हुए कहा. ‘मुझे आप की तरह बड़ी बड़ी बातें करनी नहीं आती. मेरा यह प्यार सहज है या असहज ये मुझे नहीं पता. दिल में आया - कह दिया बस.’

‘मैं भी तुमसे प्यार करता हूँ शालिनी…’ कहते हुए जगदीश ने उसके हाथ अपनी कमर पर से हटाए और थोड़ीदूर जा कर कहा. ‘तुमसे प्यार न करना मुमकिन नहीं. तुम इतनी मासूम हो की तुम्हे सिर्फ प्यार ही किया जा सकता है. तुम्हारा सिर्फ शरीर बड़ा हो गया है. पर तुम अभी एक बच्ची ही हो.’

‘मतलब आप मुझे बच्चों वाला प्यार करते हो?’

‘बड़ो वाला प्यार करूंगा तो मुझ पर चाइल्ड ऍब्युझिँग की कलम लागू हो जायेगी…’ कह कर जगदीश जोरों से हंस पड़ा.

शालिनी गुस्से में मुंह फेरने गई पर ऐसा करने से उसके शरीर पर ढकी चद्दर निचे सार्क गई. शालिनी ने तेजी से चद्दर उठा कर अपने कंधे पर ओढ़ ली. यह देख जगदीश ने कहा.

‘चद्दर हटाओ.’

शालिनी ने जगदीश को देखा.

जगदीश का चहेरा दृढ़ था. दृढ़ और गंभीर.

शालिनी ने चद्दर हटा दी.

‘अब अपने स्तन देखो.’

शालिनी ने ताजुब्ब हो कर जगदीश को देखा.

जगदीश ने कहा. ‘मुझे नहीं अपने स्तन को देखो.’

शालिनी ने पारदर्शी कुर्ते में झलकती अपनी स्तन राशि देखि.

जगदीश ने कहा. ‘इनको देखो, चाहो, प्यार करो, अपनाओ.’

शालिनी ने उलझ कर कहा. ‘क्या बोल रहे हो आप भैया ?’

‘इनका, इनके आकार का स्वीकार करो शालिनी. यह आकार में औसत से कुछ बड़े है. है तो है. यह कोई शर्मनाक बात नहीं. इनको लेकर तुम किसी कुंठा में मत रहा करो.’

‘पर भैया लोग इनको जिस तरह ताड़ते है…’ शालिनी को सुझा नहीं की आगे क्या कहे.

‘लोग ताडेंगे. लोग यूँ भी औरतों की छाती को ताड़ते रहते है, साइज़ का कोई लेना देना नहीं.

शालिनी ने अपने स्तनों को नए नजरिये से देखा. जगदीश ने आगे कहा.

‘अपने गीले कपड़े फैला के रख दो ताकि सुख जाए. फिर हम खाना खा लेते है.’

***

चांदनी और जुगल ने पूना के शादी वाले गेस्ट हाउस में अलग अलग कमरे लिए थे. दोनों कमरे अलग अलग मंजिल पर थे. चांदनी को शालिनी का नाइट गाउन चाहिए था. क्योंकि अपने गाउन में उसे बहुत गर्मी लग रही थी. शालिनी के पास एक कॉटन का गाउन था नीले रंग का. चांदनी के खुद के गाउन में से एक भी गाउन कॉटन का नहीं था. वो जुगल शालिनी के कमरे की और जा रही थी तभी दुल्हन की मां सीता देवी उसे मिल गई. जो गेस्ट हाउस में अपनी किसी सहेली से मिलने आई थी. चांदनी को देख सीता देवी और उसकी सहेली उसकी महेंदी की तारीफ़ करने लगी. सब गर्मी से परेशान थे. सीता देवी ने मोबाइल से अपने किचन डिपार्टमेंट में फोन करके गन्ने का ज्यूस मंगाया.

दूसरी तरफ जुगल जहां लुढ़क गया था उस के करीब के सोफे पर सोया हुआ आदमी नींद में बेलेंस खो कर जुगल पर गिरा. जुगल और वो आदमी दोनों हड़बड़ा कर उठ गए. वो आदमी जुगल की माफ़ी मांगने लगा. जुगल के बांये हाथ पर वो आदमी गिरा था. वो हाथ डाब जाने की वजह से बहुत पीड़ा देने लगा. जुगल ने पीड़ा से कराहते हुए कहा. ‘माफ़ी बाद में मांगना कोई पेईन किलर दवाई या मलम लाओ भाई ये दर्द सहन नहीं होता.’ ‘अभी लाया भाई…’ कह कर उस आदमी ने सोफे के नीचे से शराब की बोतल निकाली. ये वो ही बोतल थी जो कुछ देर पहले जुगल ने एक पेग ले कर बची हुई शराब सोफे के नीचे रखी थी. जुगल ने कहा. ‘ये तो शराब है!’

‘इससे बड़ा कोई पेईन किलर नहीं भाई.!’ उस आदमी ने कहा और जा कर कहीं से पानी की बोतल ले आया.

पीड़ा से कराहते जुगल को फिर से शराब पीनी पड़ी. जैसे जैसे शराब गले के निचे उतरती गई, सर पर चढ़ती गई, हाथ की पीड़ा को मंद करती रही…पेग ख़त्म होते होते बैठे बैठे ही जुगल की आंख लग गई.

सीता देवी की सहेली के साथ की बातों में चांदनी की मेहंदी स्किल का फिर से जिक्र आया. सीता देवी ने कहा. ‘मेरा बड़ा बेटा सुधींद्र तो आपकी महेंदी का कायल हो गया है, तारीफ़ करते उस का मुंह नहीं सुकता…

चांदनी सिर्फ मुस्कुरा दी. और मन में बोली. : - आप को क्या पता की आप का सुधींद्र मेरे किस गुण का कायल है…. - पर इतना सोचते उसे सुधींद्र अपनी दुल्हन बनी बहन के साथ क्या कर रहा था वो दृश्य और वो सारी बातें याद आ गई. वो एकदम अनकम्फर्टेबल हो गई, मन फिर से खट्टा हो गया. दुपट्टे से अपना चेहरा पोंछने लगी. तभी सीता देवी ने मंगवाया हुआ गन्ने का ज्यूस आ गया. सब ने एक एक प्याला ज्यूस ले लिया. आ रहे खयालो से अस्वस्थ चांदनी ने बेखयाली में ज्यूस का एक बड़ा प्याला ले कर तेजी से पीना शुरू किया. गोया सुधींद्र के जिक्र से जो अनचाही बातें याद आ रही थी वो ज्यूस से धूल जाने वाली हो. ज्यूस पीते वक्त चांदनी को यह भी लगा की कहीं पर कुछ चूक हो रही है… वो कुछ भूल रही है जो अति महत्वपूर्ण है पर सीता देवी की लगातार चल रही बातों में उसका ध्यान बाँट रहा था, औपचारिकता में ही सही पर हां , जरूर, सही बात है किस्म के जवाब देने में दिमाग शामिल तो करना ही पड़ता है. गर्मी थी कि घटने के आसार ही नजर नहीं आ रहे थे, ज्यूस और पीने का मन हो रहा था, चांदनी ने दुबारा ज्यूस ले ले कर पीना शुरू कर दिया…फिर वही कुछ भुलाया जा रहा है ऐसी भावना चांदनी को घेरने लगी. वो परेशान हो गई : क्या है जो बार बार मन को खटक रहा है?

चांदनी इतनी अस्वस्थ हो गई की गाउन बदलने के लिए शालिनी के कमरे में जाने का आइडिया भी उसने ड्रॉप कर दिया और अपने कमरे में जा कर सोने के इरादे से वो सीता देवी की सहेली के यहां से निकल गई. अपने कमरे में जा कर सोने की कोशिश करने लगी.

***

जब अचानक दरवाजे पर धड़ धड़ जैसी उग्र आवाज में दस्तक हुई तब जगदीश और शालिनी दोनों आतंकित हो कर नींद से जग पड़े. दोनों इंस्पेक्टर मोहिते का भेजा टिफिन खा कर थक कर सो गए थे. दोनों तन और मन से इतने निढाल हो गए थे की एक दूसरे के सर को अपना सर टिका कर ऊँघ रहे थे. पर इस धड़ धड़ की आवाज ने दोनों को हिला दिया. दरवाजा खोलने उठते हुए जगदीश ने समय देखा : रात के चार बज गए थे. वो दरवाजा खोलने बढ़ा. शालिनी ने खुद को चद्दर से ढंका. जगदीश ने दरवाजा खोला. बाहर इंस्पेक्टर मोहिते खड़ा था. दरवाजा खुलते वो अंदर आया.

‘एक टेंशन हो गई है.’ पलंग पर बैठते हुए मोहिते ने कहा. ‘साजन भाई के कुछ साथी अभी भी बाहर है, सारे पकड़े नहीं गए. उनको पता चल गया है की साजन भाई को तुमने मारा है. और वो लोग तुम्हें ढूंढ रहे है.’

यह सुन कर जगदीश और शालिनी दोनों परेशान हो गए. मोहिते ने आगे कहा. ‘ अगर उनको ये पता चला गया है की साजन भाई को तुमने मारा है तो फिर अभी तुम को मैंने यहां रुकाया है यह भी पता चल सकता है. इसलिए मुझे यह खबर मिलते ही मैं फ़ौरन यहां आ गया. मैं नीचे इंतज़ार करता हूं तुम लोग तुरंत तैयार हो कर आओ.हमें यहां से चलना होगा.’ कह कर मोहिते तेजी से बाहर निकल गया.

जगदीश और शालिनी ने एक दूसरे को देखा.

***

गर्मी के कारण चांदनी की आंख खुल गई. उसे लगा की शालिनी का गाउन लेने नहीं जा कर उसने गलती कर दी. कमरे में फेन तेजी से चल रहा था पर उसका गाउन कॉटन का नहीं होने की वजह से उसे बहुत गर्मी लग रही थी. गले में हल्का दर्द हो रहा था. चांदनी ने मोबाइल में चेक किया तो सुबह के चार बज रहे थे. चांदनी को लगा अगर गाउन बदल लूँ तो और दो तीन घंटे सो पाउंगी. उसने शालिनी के कमरे में जा कर गाउन लाना तय किया, पलंग से उठते वक्त पीठ में हल्का सा दर्द हुआ उसने ‘उई मां..’ कहना चाहा पर गले से आवाज नहीं निकली.

‘उफ्फ्फ्फ़.....’ चांदनी को याद आया की वो कब से क्या बिसर रही थी काफी देर हो गई थी। … पर तब अटक काफी देर हो गई थी.

चांदनी को बर्फ की एलर्जी थी. इसलिए वो बर्फ वाली और ठंडी कोई भी चीज खाती या पीती नहीं थी. कोल्ड ड्रिंक हो या आइसक्रीम वो ज्यादातर अवॉइड करती थी. अगर गलती से कुछ बहुत ठंडा खा पी लिया तो उसका गला बैठ जाता था. वो बोल नहीं पाती थी. सीता देवी और उस की सहेली के साथ वो बैठी थी तब अपनी बेख्याली में चांदनी ने बर्फ वाला गन्ने का ज्यूस एक नहीं बल्कि दो बार पीया. उसी वक्त उसका शरीर उसे संकेत दे रहा था पर चांदनी वो संकेत पकड़ नहीं पाई की वो क्या गड़बड़ी कर रही है. लेकिन अभी जब वो ‘उई मां’ नहीं बोल पाई तब उसे एहसास हुआ की उसका गला बैठ गया है. मन मसोसते वो चांदनी के कमरे की और जाने लगी.

***

‘आप लोग फिलहाल पूना जाना ड्राप कीजिये. ‘

जीप ड्राइव करते हुए मोहिते ने कहा. जगदीश मोहिते की बगल की सीट में था. शालिनी पीछे की सीट पर थी.

मोहिते ने आगे कहा. ‘क्योंकि साजन भाई के गोडाउन में तुमने अगर यह कहा था कि तुम लोग पूना जा रहे हो तो फिलहाल ये पूना ट्रिप रिस्की है. वो लोगों का सरदार तुमने मार डाला है, कुछ दिन तुम्हे संभलना होगा.’

‘मैं क्या अब इन मवाली ओ से छिपता फिरू?’ जगदीश ने चिढ कर पूछा.

‘मी. रस्तोगी, आप बहुत बहादुर हो पर मेरी बात समझो. यह लोग कोई उसूल वाले लड़ाकू नहीं, बल्कि जाहिल, अनपढ़ फुटपाथ छाप गुंडे है. ये सामने आ कर ललकारे ये जरूरी नहीं. पीछे से वार कर सकते है, सोते वक्त वार कर सकते है, तुम्हारी पत्नी को हानि पहुंचा सकते है… इनके निपटने साथ बहादुरी की नहीं अकल की जरूरत है. किसी तरह दो दिन कहीं शांत रहो. फिर तुम्हे मुंबई पहुंचाने का जिम्मा मेरा.’

‘पर पूना…’ जगदीश कुछ बोलने गया पर शालिनी ने तुरंत जगदीश की बात काटते हुए कहा. ‘पूना जाना इतना जरूरी नहीं. प्लीज़ इंस्पेक्टर साहब की बात ठीक लग रही है.’

जगदीश सोच में पड़ गया.

***

जुगल और शालिनी के कमरे में चांदनी दाखिल हुई. लाइट पंखा ओन किया. कमरे में दीवार में जड़ी अलमारी का दरवाजा खोल कर चांदनी ने शालिनी की बेग से नीला वाला गाउन ढूंढ निकाला. गाउन निकालते निकालते बेग में से शालिनी की नेलपॉलिश उछल कर गिरी और अलमारी के निचे के दराज में गिर पड़ी. चांदनी ने सोचा नेल पॉलिश बाद में उठाकर बेग में रखूंगी, पहले गाउन बदल दू.

फटाफट चांदनी ने गाउन बदल दिया. रात को चार से ज्यादा बज चुके थे, अब पेंटी भी न पहनी हो तो क्या फर्क पड़ेगा यह सोच कर चांदनी ने पेंटी भी निकाल दी. और एक सुकून की सांस ली. पेंटी को फोल्ड करके हाथ में थामा. लाइट, फेन बंद किया, कमरे के बाहर निकली. बाहर से कड़ी लगाईं. और तेजी से अपने कमरे की और जाने लगी तब उसे याद आया की नेल पोलिश नीचे के ड्रॉअर में गिर पड़ी वो उठानी रह गई. शालिनी बेचारी नेल पॉलिश न दिखने पर परेशान हो जाएगी यह सोच वो फिर कमरा खोल कर अंदर तेजी से गई. लाइट पंखा ऑन करने रुकी नहीं. मोबाइल की टॉर्च से अलमारी खोल कर कमर झुका कर नेल पोलिश उछल कर गिरी थी उस ड्रॉअर में हाथ दाल कर टटोलने लगी. पर नेल पॉलिश तो नहीं मिली, उसके हाथ की ऊँगली में पहनी हुई अंगूठी अंदर किसी कील में अटक गई…

***

मोहिते ने जीप एक फ़ार्म हाउस पर रुकाई. शालिनी , जगदीश और मोहिते जीप से उतरे.जीप को देख एक नौकर जैसा दिखने वाला आदमी दौड़ कर आया. मोहिते ने उसके साथ मराठी में कुछ बातें की फिर जगदीश से कहा. ‘इसे समझा दिया है, आप लोग आराम से रहो यहां , मैं आप लोगो का मुंबई जाने का इंतज़ाम करता हूँ. मैं भी यहाँ सुबह तक रुकता हूँ, सुबह मुझे करीब के एरिए में कुछ काम है.’

तीनो फ़ार्म हाउस में दाखिल हुए.

***

चांदनी फस गई थी. उसका हाथ अटक गया था. दूसरे हाथ में पेंटी और मोबाइल थे वो बाजू में रख कर वो दूसरा हाथ अलमारी के उस ड्रॉअर में डाल कर फसे हुए हाथ को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी.

अनजाने में चांदनी कमर से झुक कर अत्यंत कामुक मुद्रा बना रही थी.

अचानक उसका गाउन कमर के ऊपर तक चला गया. वो कुछ समझे उससे पहले उसका कमर के निचे का हिस्सा नंगा हो गया. और दूसरे ही पल उसने अपने योनिमार्ग में लिंग रगड़ खाता हुआ महसूस किया. वो जोरों से कुछ बोलने गयी पर उसका गला बैठ चुका था. इतने में उसने जो सुना वो उसे आघात दे गया.

उसने सुना की जुगल की आवाज है. चांदनी को जुगल के मुंह से शराब की तीव्र गंध आने लगी… वो अपना लिंग उसकी योनि द्वार पर रगड़ते हुए कह रहा था. ‘थेंक यु सो मच शालिनी, मुझे पता ही नहीं था कि तुम आ गई. कब आई ? और मेरे लिए इतने सेक्सी पोज़ में राह देख रही हो…? लव यू शालू -’ और कमर पर हाथ बांधते हुए उसने चांदनी की योनि को सहला कर कहा. ‘रेडी ? वन टू एंड थ्री….’

चांदनी की योनि में जुगल का लिंग एक जोश के साथ घुस गया…


(१३ - ये तो सोचा न था…समाप्त, क्रमश:)
Mast update
 
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Apsingh
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wahi ho raha ha jo har story me hota ha ache Bhale story plot ka satyanaash pl dnt mind it's my opinion may be I am wrong shayad mostly readers aisi hi story pasand karte ha . Ma hi is site par misfit hoo pl dnt took otherwise jaisa tumne socha sahi hii hoga
 
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