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Incest ये तो सोचा न था…

rakeshhbakshi

I respect you.
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२६ – ये तो सोचा न था…

[(२५ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :
‘तुम्हारी कॉलेज तो नहीं आता था पर तुम्हारी कॉलेज के बाहर कुछ मनचले नौ जवान खड़े हो कर कॉलेज की लड़कीओ को सताते थे वो याद है?

‘मतलब?’ चांदनी और टेन्स हो गई.

‘मैं उन मनचले लड़को में से एक था.’

‘फ़ालतू बातें जाने दो अजिंक्य, तुम मुझे यहां क्यों ले आये हो?’

‘डिटेल में बताऊं या शॉर्ट में?’

‘एक वाक्य में बताओ.’

‘तुम्हारी गांड की वजह से. चांदनी, यहां मैं तुम्हे तुम्हारी गांड की वजह से ले आया हूं.’

यह सुन चांदनी भौचक्की रह गई… ]



जुगल

अन्ना के घर के आसपास लगे हुए रास्तों पर कार घुमा घुमा कर जुगल थक गया. उसे लगा यह तो कोई तरीका नहीं हुआ किसी को ढूंढ़ने का !

पर क्या करना चाहिए? भाभी का फोन भी तो नहीं लग रहा था?

उसने झनक को फोन लगाया. वो भी आउट ऑफ़ कवरेज!

जुगल फ्रस्ट्रेट हो गया. कार के स्टीयरिंग पर सर झुका कर बैठ गया…

***


जगदीश

चाय पीने के बाद शालिनी ने जगदीश को धीमी आवाज में पूछा. ‘अब ठीक है आपको? या दर्द हो रहा है अब भी?’

‘अब दर्द नहीं, और मालिश की फिलहाल जरूरत नहीं.’

‘पक्का?’

‘मैं एक बार सूझन कम हुई कि नहीं वह चेक कर लेता हूं.’ कह कर जगदीश वॉशरूम जाने के लिए उठा. सुभाष ने बिल चुका दिया और सेलफोन पर बात करने लगा.

वॉशरूम में जगदीश ने अपने अंडकोष का मुआयना किया. शालिनी की मेहनत ने असर दिखाया था. सूझन नहीं के बराबर थी. न ही दर्द रहा था. वो मुतमइन हो कर वॉशरूम के बाहर निकला.

वॉशरूम के बाहर का पैसेज बहुत संकरी गली जैसा था. होटल से उस गली में आते पहले लेडीज़ वॉशरूम था फिर कोने में जेंट्स वॉशरूम. उस गली में एक वक्त एक ही आदमी गुजर सकता था. जगदीश उस गली के बीच पहुंचा तभी तूलिका उस गली में सामने से दाखिल हुई. जगदीश ने तेजी से गली के बाहर निकलने की कोशिश की पर वो और तूलिका आमने सामने हो ही गए. जगदीश ने अपने आपको गली की दीवार के साथ बिलकुल सटा कर तूलिका को जाने का रास्ता दिया पर तूलिका जगदीश के शरीर से खुद के शरीर को रगड़ कर आगे जाने के बजाय रुक गई. जगदीश फंस कर रुक गया. दोनों के चेहरे मुश्किल से आधे फुट की दूरी पर थे…जगदीश ने ऑक्वर्ड फील करते हुए कहा. ‘प्लीज़ आगे बढ़िए तूलिका दीदी…’

‘दीदी?’ तूलिका ने आंखें नचा कर मुस्कुरा के पूछा.

‘आप मोहिते की दीदी हो तो मेरी भी दीदी हुई.’

‘और सुभाष की बीवी हूं तो तुम्हारी क्या हुई?’ तूलिका ने हंस कर पूछा.

दोनों संकरी गली में लगभग चिपके से खड़े थे. तूलिका यह स्थिति एन्जॉय कर रही थी और जगदीश अनकम्फर्टेबल महसूस कर रहा था.

‘आप तब भी मेरे लिए दीदी ही रहोगी...अब प्लीज़ जाइए, मुझे भी जाने दीजिये.’

अचानक तूलिका ने अपना चहेरा जगदीश के चहेरे की और बढ़ाया और जगदीश को कुछ समझ में आये उससे पहले तूलिका ने अपनी जीभ से जगदीश के होठ चाटना शुरू कर दिया…

‘आप…’ ऐसा जगदीश बोलने गया तब तूलिका ने अपनी जीभ जगदीश के बोलने के लिए खुले होठों के बीच डाल दी, जगदीश बोल नहीं पाया और एक अप्रत्याशित जीभ युक्त चुंबन हो गया. जगदीश अपसेट हो गया. तूलिका हंस कर आगे खिसकी. जगदीश बाहर निकलने फ्री हुआ. अपने होंठों को पोंछते हुए उसने नाराजगी से कहा.



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‘ये क्या हरकत हुई! मैं आपको दीदी कह रहा हूं और आप-’

तूलिका ने हंस कर कहा, ‘बड़ी दीदी हूं तुम्हारी, लाड तो करूंगी ना अपने भाई से?’

जगदीश कोई जवाब दिए बिना वहां से निकल कर शालिनी बैठी थी वहां चला गया.

***


झनक


वो जहां गिर पड़ी थी उस तहखाने जैसी जगह में झनक को शुरू में तो कुछ समझ में नहीं आया की वो कहां आन पड़ी है… धीरे धीरे अंधेरे से उसकी आंखें अभ्यस्त हुई. उसने अपने मोबाइल की टॉर्च से उस जगह के अंधेरे को चीरते हुए मुआयना किया. वो एक स्टोर रूम जैसी जगह थी छोटे मोठे बक्से और भंगार सामान बिखरा पड़ा था. एक दीवार के बहुत उपरके हिस्से में -उस तहखाने की छत को लग कर एक छोटी सी खिड़की दिख रही थी. पर उस खिड़की तक की ऊंचाई कमसे कम आठ फुट थी. और इस आठ फुट को तय करने का कोई तरीका नहीं था…

***


चांदनी

चांदनी भौचक्की रह गई क्योंकि उसने ऐसी भाषा कभी बोली या सुनी नहीं थी. और किसी ने उससे ऐसी भाषा में कभी बात नहीं की थी.

‘अजिंक्य, बोलने की तमीज रखो.’

‘सॉरी चांदनी, मुझे नहीं पता की गांड को गांड नहीं कहते तो क्या कहते है! क्यों तुम लोग क्या कहते हो?’

‘बेकार बहस नहीं करनी मुझे, मैं यहां से जा रही हूं.’ चांदनी ने सोफे पर से उठते हुए कहा.

‘अरे वाह ! तुम चली जाओगी तो मैं क्या जुगल की गांड मारूंगा ?’

चांदनी सहम गई.

‘बैठ जाओ चांदनी. अगर जुगल की खैर चाहती हो तो…’

चांदनी विवश हो कर बैठ पड़ी…

***


जुगल

रास्ते के किनारे कार रोक कर ‘अब क्या करें?’ की मानसिकता में बैठे हुए जुगल ने देखा की रास्ते के बगल की झाड़ी में कोई भागता हुआ गया. — कौन होगा? क्या चांदनी भाभी हो सकती है? - जुगल एकदम सावध हो गया. उसे लगा की भाभी हो यह संभावना बिलकुल है क्योंकि भाभी चल कर गई होगी, हो सकता है अंधेरे का लाभ उठा कर भाग गई हो और वो ही हो?जिसे मैंने देखा!

जुगल कार से बाहर निकल कर झाडी में तेजी से गया….

***


झनक

उस तहखाने में हवा की कोई व्यवस्था नहीं थी. कुछ ही देर में झनक पसीना पसीना हो गई… इतने में अंधेरे में वो बक्सों के ढेर से टकरा गई और एक बक्सा उस के सिर पर गिर पड़ा. उस बक्से में कुछ पावडर जैसा था जो झनक के कपड़ो और शरीर पर बिखर गया. ‘यह कौन सा पाउडर है?’ सोचते हुए झनक ने उस हाथ पर लगे पाउडर को सूंघ कर देखा, गंध से कुछ समझ में नहीं आया पर—-

— पर कुछ ही पलों में झनक को समझ में आ गया की वो पाउडर नहीं था बल्कि खुजली का चुरा था… क्योंकि झनक का सारा बदन खुजलाना शुरू हो गया…

***


चांदनी

‘चांदनी, मैं तुम पर कोई जबरदस्ती नहीं करूंगा. एक सरल सौदा है. - तुम मेरी बात मानो, मैं जुगल की जान नहीं लूंगा. तुम मेरी बात मानने से मना कर दो. मैं जुगल की जान ले लूंगा.मैंने कुछ करना नहीं सिर्फ अन्ना को एक कॉल करना है… ’

‘जुगल है कहां ?’

‘सलामत जगह पर. वो कहां है, यह मुझे बस अन्ना को बताने की देर है. दूसरे ही पल अन्ना के आदमी उसकी जान लेने पहुंच जाएंगे.’

चांदनी उलझ गई.

‘बात करोगी जुगल से?’ अजिंक्य ने पूछा.

-क्या बात करूं !- चांदनी ने सोचा.

अजिंक्य ने फोन लगा कर कहा. ‘जुगल से बात कराओ…’

चांदनी ने आतंकित हो कर अजिंक्य की ओर देखा…

अजिंक्य फोन कान पर लगाए हुए था. अचानक बोला. ‘ओह, नहीं नहीं उसे मारो मत…’ फिर एकदम गरज कर बोला. ‘मैंने बोला क्या हाथ उठाने? इडियट्स ! मुझे बात करनी थी उससे और वो कराह रहा है…! अब खबरदार उसे एक उंगली भी लगाईं तो -’ कह कर अजिंक्य ने गुस्से से फोन काट कर पटक दिया.

चांदनी सहम गई- जुगल को पीटा जा रहा है! पर क्यों! कौन है ये अजिंक्य, ये अन्ना जैसे लोग और क्यों ऐसा वहशीपन है इनमे?

इतने में अजिंक्य चांदनी की ओर देख कर बोला. ‘आई एम सॉरी, इस लाइन के लोग बहुत जाहिल होते है.. पर मैंने बता दिया है -अब वो जुगल पर हाथ नहीं उठाएंगे - कुछ देर में मैं तुम्हारी बात करता हूं -’

चांदनी आघात से दिग्मूढ हो गई थी.

‘पर आप लोग जुगल को मार क्यों रहे हो?’ चांदनी जो बात गुस्से में पूछना चाहती थी वो पूछते पूछते रुआंसी हो गई… उसकी कल्पना में मार खाता हुआ जुगल आ रहा था - उसकी आंखें भर आई…

‘जुगल ने कोई हरकत की होगी उनसे भाग निकलने की या सामने अपनी ताकत दिखाने की - खेर, मैंने कह दिया है तुम्हारे सामने अब कोई नहीं छुएगा उसे- वादा.’

चांदनी ने अपनी आंखें पोंछते हुए अपने हाल को कोसा….

‘अब मैंने बोला उस बारे में बताओ.’ अजिंक्य ने पानी की बोतल से पानी पीते हुए कहा.

चांदनी ने चौंक कर अजिंक्य के सामने देखा.

‘बोलो, टाइम वेस्ट मत करो. मैं कॉल करूं अन्ना को या मेरे सौदे की ऑफर से तुम जुगल को बचाने में इंटरेस्टेड हो?

चांदनी को समझ में आ गया की उसके पास ज्यादा चॉइस है नहीं.

‘मुझे क्या करना होगा?’ चांदनी ने धड़कते हृदय के साथ पूछा.

‘शुरुआत कपडे निकालने से करो.’ अजिंक्य ने कहा.

चांदनी को आघात लगा. वो अजिंक्य को ताकती रह गई.

अजिंक्य ने कुछ पल चांदनी को निहारा फिर अपना फोन हाथ में लेते हुए कहा.

‘इट’ स ओके चांदनी, आई केन अंडरस्टेंड…’ और फोन डायल करने लगा.

‘एक मिनिट…’ चांदनी ने टेन्स हो कर कहा.

अजिंक्य ने चांदनी की ओर देखा.

चांदनी ने कहा. ‘मैं कपड़े निकालती हूं…’

अजिंक्य के चेहरे पर मुस्कान आई…

***


जुगल

झाडी में दिशाहीन सा एक अंदाजे से कुछ देर दौड़ने के बाद जुगल एक डेड एन्ड जैसी जगह पहुंच गया.

सामने खाई जैसा लंबा गड्ढा था. आगे जाने का कोई रास्ता नहीं था…

जुगल को लगा वो क्या मूर्खों की तरह हवा में हाथ पैर मार रहा है!

उसे मुंबई में चिलम बाबा के साथ की मुलाकात याद आ गई…


पूना निकलने के आठ दस रोज पहले जुगल चिलम बाबा से मिला था और बताया था की वो पूना जाने वाला है. तब बाबा ने हँसकर कहा था. ‘जाओ जाओ जरूर जाओ. एक नया सबक सीखोगे पूना की मुलाकात से..’

‘कौन सा सबक?’ जुगल ने पूछा था तब बाबा ने कहा था : ‘हवा पर कोई पहरा नहीं होता और गांड पर कोई पर्दा नहीं होता.’

जुगल यह सुन कर भौचक्का रह गया था और बाबा ने हंसते हुए समझाया था : शून्य बुद्धि ! इस के माने है की हवा को लाख कोशिशों के बावजूद आप बांध नहीं सकते वो आखिर बह निकलती है और अपनी गांड को लाख कोशिशों के बावजूद आप बचा नहीं सकते, वो मार दी जाती है…’


जुगल को लगा इस वक्त उसके साथ जो हो रहा है उसी के बारे में शायद चिलम बाबा उसे आगाह कर रहे थे! पता नहीं चांदनी भाभी कहां किस हाल में होगी और मैं चाह कर भी कुछ कर नहीं पा रहा - चिलम बाबा की बात इस स्थिति के साथ बिल्कुल फिट बैठ रही है!

इतने में उसका ध्यान खाई के उस पार के छोटे से बंगले के कंपाउंड में भोंकते हुए कुत्तो की आवाज पर गया.

वो कुत्ते एक छोटी सी खिड़की की ओर देख कर भौंक रहे थे…

क्या होगा उस खिड़की में जो कुत्ते भौंक रहे है?

कहीं कुदरत उसे कोई इशारा तो नहीं दे रही ?


जब चिलम बाबा की बातें सुनकर जुगल को पूना की मुलाकात को ले कर एक भय लगने लगा था. तब बाबा ने कहा था - ‘चिंता मत कर, खिड़कियां खुल जायेगी…’

उन कुत्तो को उस खिड़की की और देख भौंकते देख जुगल को लगा : शायद मुझे वहां जाना चाहिए…

वो उलटे पैर रास्ते की और दौड़ा - जहां उसने अपनी कार छोड़ी थी…

***


झनक

जी हां, जुगल ने अभी देखे हुए भौंकते हुए कुत्ते उसी खिड़की को देख रहे थे जिस खड़की को तहखाने से झनक ने देखा था.

पर कुत्ते भौंक क्यों रहे थे?

क्योंकि झनक ने एक लकड़ी का टुकड़ा फेंक कर उस खड़की के सलाखों में फ़साने की कोशिश की थी…

कैसे?

यह जानने हमें पांच मिनिट पीछे जाना पड़ेगा जब खुजली वाला चूर्ण झनक के शरीर पर बिखर गया था….

कुछ ही देर में झनक खुजली से परेशान हो गई और उसे अपने कपडे निकालने पड़े… वो जुगल को बचाने के लिए अन्ना के घर में देहाती कपड़ो में घुसी थी - चोली, घाघरा और ओढ़नी… इन सारो कपड़ो में खुजली का पाउडर जैसा चूर्ण पसर गया था… मजबुरन उसे सब निकाल देना पड़ा. इस कपडे निकालने की हरकत में उसकी ब्रा में भी खुजली का पाउडर चला गया. सो ब्रा भी निकाल दी.. अब पेंटी में भी जलन होने लगी थी… झनक ने झल्ला कार पेंटी भी निकाल दी और पूर्ण नग्न हो कर अपने कपडे झटकने शुरू किये…. कुछ देर सारे कपड़े झटकने के बाद वो अपनी इस स्थिति को कोसते हुए क कर नंगी ही फर्श पर बैठ पड़ी. तब उसकी नजर एक लकड़ी के टुकड़े पर पड़ी.

झनक स्मार्ट लड़की थी. उसने लकड़ी का टुकड़ा देखा, तहखाने की छत से सटी खिड़की देखि और अपने कपड़ो का ढेर देखा…

और तुरंत अपने सारे कपड़े एक दूसरे से बाँध कर उसने एक डोर बना दी. उस डोर के एक छोर पर उस लकड़ी के टुकड़े को बराबर बीच के हिस्से में बांधा और फिर जोर लगा कर फेंका उस खिड़की की ओर - इस उम्मीद में की वो लकड़ी का टुकड़ा खिड़की की सलाखों में फंस जाए..

लकड़ी का टुकड़ा सलाखों से टकरा कर फिर झनक के पास आ गया…

झनक ने उम्मीद नहीं छोड़ी. उसने दुबारा कोशिश की….

इस तरह उसने कोशिश जारी रखी.

बार बार लकड़ी का टुकड़ा सलाखों से टकरा कर आवाज पैदा करता था.

सो लकड़ी का टुकड़ा सलाखों में फंसा नहीं पर उस आवाज से एक कुत्ता आकर्षित हो कर खिड़की के पास आ कर देखने लगा. और इस तरह लकड़ी के टुकड़े को बारबार आ कर सलाखों से टकराता देख वो भौंकने लगा.

उसे भौंकते देख और तीन चार कुत्ते आ गए और सभी लकड़ी के टुकड़े को देख भौंकने लगे…

इस तरह कुत्तो की सामूहिक भौंक काफी दूर, गढ्ढे के दूसरी और खड़े जुगल तक पहुंच पाई…

खेर.

क्या लकड़ी के उस टुकड़े को खिड़की के सलाखों में फ़साने में झनक कामियाब होगी?

जो इस वक्त अपने बदन के सारे वस्त्र - ब्रा पेंटी तक को दूसरे कपड़ों के साथ जोड़ जोड़ कर डोर बना कर यह कोशिश कर रही है?

बिल्कुल नग्न अवस्था में!

***


चांदनी

चांदनी भी इस वक्त बिलकुल नग्न अवस्था में थी …

पूना से मुंबई की सफर में लाइट ड्रेसिंग ठीक रहेगा इस ख़याल से उसने एक क्रीम कलर का टीशर्ट और जींस की पेंट पहने थे.

जो अब अजिंक्य के सोफे पर पड़े थे. बगल में उसकी ब्रा और पेंटी भी….

और अजिंक्य के आदेश पर वो मूड कर अपने नितंब उसे दिखा रही थी.

अजिंक्य अपने पेंट की ज़िप खोलकर अपना लिंग सहलाते हुए चांदनी के नितंब देख कर उत्तेजना से बोला.

‘यस…यस…यस…!! चांदनी —--उफ्फ्फ क्या नजारा है! उफ्फ्फ उफ्फ्फ्फ़ उफ्फ्फ… ऐसे ही मैंने तुम्हारा नाम ‘गांड सुंदरी’ नहीं रखा…!’

***


जहां दो कन्या निर्वस्त्र हो चुकी है. - दोनों की नग्न हो जाने की वजह भिन्न भिन्न किस्म की खुजली है…


वहां -क्या जुगल सही वक्त पर इस बंगले पर पहुंच पाएगा ?

(२ -ये तो सोचा न था…विराम, क्रमश:)
 
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२६ – ये तो सोचा न था…

[(२५ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :
‘तुम्हारी कॉलेज तो नहीं आता था पर तुम्हारी कॉलेज के बाहर कुछ मनचले नौ जवान खड़े हो कर कॉलेज की लड़कीओ को सताते थे वो याद है?

‘मतलब?’ चांदनी और टेन्स हो गई.

‘मैं उन मनचले लड़को में से एक था.’

‘फ़ालतू बातें जाने दो अजिंक्य, तुम मुझे यहां क्यों ले आये हो?’

‘डिटेल में बताऊं या शॉर्ट में?’

‘एक वाक्य में बताओ.’

‘तुम्हारी गांड की वजह से. चांदनी, यहां मैं तुम्हे तुम्हारी गांड की वजह से ले आया हूं.’

यह सुन चांदनी भौचक्की रह गई… ]



जुगल

अन्ना के घर के आसपास लगे हुए रास्तों पर कार घुमा घुमा कर जुगल थक गया. उसे लगा यह तो कोई तरीका नहीं हुआ किसी को ढूंढ़ने का !

पर क्या करना चाहिए? भाभी का फोन भी तो नहीं लग रहा था?

उसने झनक को फोन लगाया. वो भी आउट ऑफ़ कवरेज!

जुगल फ्रस्ट्रेट हो गया. कार के स्टीयरिंग पर सर झुका कर बैठ गया…

***


जगदीश

चाय पीने के बाद शालिनी ने जगदीश को धीमी आवाज में पूछा. ‘अब ठीक है आपको? या दर्द हो रहा है अब भी?’

‘अब दर्द नहीं, और मालिश की फिलहाल जरूरत नहीं.’

‘पक्का?’

‘मैं एक बार सूझन कम हुई कि नहीं वह चेक कर लेता हूं.’ कह कर जगदीश वॉशरूम जाने के लिए उठा. सुभाष ने बिल चुका दिया और सेलफोन पर बात करने लगा.

वॉशरूम में जगदीश ने अपने अंडकोष का मुआयना किया. शालिनी की मेहनत ने असर दिखाया था. सूझन नहीं के बराबर थी. न ही दर्द रहा था. वो मुतमइन हो कर वॉशरूम के बाहर निकला.

वॉशरूम के बाहर का पैसेज बहुत संकरी गली जैसा था. होटल से उस गली में आते पहले लेडीज़ वॉशरूम था फिर कोने में जेंट्स वॉशरूम. उस गली में एक वक्त एक ही आदमी गुजर सकता था. जगदीश उस गली के बीच पहुंचा तभी तूलिका उस गली में सामने से दाखिल हुई. जगदीश ने तेजी से गली के बाहर निकलने की कोशिश की पर वो और तूलिका आमने सामने हो ही गए. जगदीश ने अपने आपको गली की दीवार के साथ बिलकुल सटा कर तूलिका को जाने का रास्ता दिया पर तूलिका जगदीश के शरीर से खुद के शरीर को रगड़ कर आगे जाने के बजाय रुक गई. जगदीश फंस कर रुक गया. दोनों के चेहरे मुश्किल से आधे फुट की दूरी पर थे…जगदीश ने ऑक्वर्ड फील करते हुए कहा. ‘प्लीज़ आगे बढ़िए तूलिका दीदी…’

‘दीदी?’ तूलिका ने आंखें नचा कर मुस्कुरा के पूछा.

‘आप मोहिते की दीदी हो तो मेरी भी दीदी हुई.’

‘और सुभाष की बीवी हूं तो तुम्हारी क्या हुई?’ तूलिका ने हंस कर पूछा.

दोनों संकरी गली में लगभग चिपके से खड़े थे. तूलिका यह स्थिति एन्जॉय कर रही थी और जगदीश अनकम्फर्टेबल महसूस कर रहा था.

‘आप तब भी मेरे लिए दीदी ही रहोगी...अब प्लीज़ जाइए, मुझे भी जाने दीजिये.’

अचानक तूलिका ने अपना चहेरा जगदीश के चहेरे की और बढ़ाया और जगदीश को कुछ समझ में आये उससे पहले तूलिका ने अपनी जीभ से जगदीश के होठ चाटना शुरू कर दिया…

‘आप…’ ऐसा जगदीश बोलने गया तब तूलिका ने अपनी जीभ जगदीश के बोलने के लिए खुले होठों के बीच डाल दी, जगदीश बोल नहीं पाया और एक अप्रत्याशित जीभ युक्त चुंबन हो गया. जगदीश अपसेट हो गया. तूलिका हंस कर आगे खिसकी. जगदीश बाहर निकलने फ्री हुआ. अपने होंठों को पोंछते हुए उसने नाराजगी से कहा.



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‘ये क्या हरकत हुई! मैं आपको दीदी कह रहा हूं और आप-’

तूलिका ने हंस कर कहा, ‘बड़ी दीदी हूं तुम्हारी, लाड तो करूंगी ना अपने भाई से?’

जगदीश कोई जवाब दिए बिना वहां से निकल कर शालिनी बैठी थी वहां चला गया.

***


झनक


वो जहां गिर पड़ी थी उस तहखाने जैसी जगह में झनक को शुरू में तो कुछ समझ में नहीं आया की वो कहां आन पड़ी है… धीरे धीरे अंधेरे से उसकी आंखें अभ्यस्त हुई. उसने अपने मोबाइल की टॉर्च से उस जगह के अंधेरे को चीरते हुए मुआयना किया. वो एक स्टोर रूम जैसी जगह थी छोटे मोठे बक्से और भंगार सामान बिखरा पड़ा था. एक दीवार के बहुत उपरके हिस्से में -उस तहखाने की छत को लग कर एक छोटी सी खिड़की दिख रही थी. पर उस खिड़की तक की ऊंचाई कमसे कम आठ फुट थी. और इस आठ फुट को तय करने का कोई तरीका नहीं था…

***


चांदनी

चांदनी भौचक्की रह गई क्योंकि उसने ऐसी भाषा कभी बोली या सुनी नहीं थी. और किसी ने उससे ऐसी भाषा में कभी बात नहीं की थी.

‘अजिंक्य, बोलने की तमीज रखो.’

‘सॉरी चांदनी, मुझे नहीं पता की गांड को गांड नहीं कहते तो क्या कहते है! क्यों तुम लोग क्या कहते हो?’

‘बेकार बहस नहीं करनी मुझे, मैं यहां से जा रही हूं.’ चांदनी ने सोफे पर से उठते हुए कहा.

‘अरे वाह ! तुम चली जाओगी तो मैं क्या जुगल की गांड मारूंगा ?’

चांदनी सहम गई.

‘बैठ जाओ चांदनी. अगर जुगल की खैर चाहती हो तो…’

चांदनी विवश हो कर बैठ पड़ी…

***


जुगल

रास्ते के किनारे कार रोक कर ‘अब क्या करें?’ की मानसिकता में बैठे हुए जुगल ने देखा की रास्ते के बगल की झाड़ी में कोई भागता हुआ गया. — कौन होगा? क्या चांदनी भाभी हो सकती है? - जुगल एकदम सावध हो गया. उसे लगा की भाभी हो यह संभावना बिलकुल है क्योंकि भाभी चल कर गई होगी, हो सकता है अंधेरे का लाभ उठा कर भाग गई हो और वो ही हो?जिसे मैंने देखा!

जुगल कार से बाहर निकल कर झाडी में तेजी से गया….

***


झनक

उस तहखाने में हवा की कोई व्यवस्था नहीं थी. कुछ ही देर में झनक पसीना पसीना हो गई… इतने में अंधेरे में वो बक्सों के ढेर से टकरा गई और एक बक्सा उस के सिर पर गिर पड़ा. उस बक्से में कुछ पावडर जैसा था जो झनक के कपड़ो और शरीर पर बिखर गया. ‘यह कौन सा पाउडर है?’ सोचते हुए झनक ने उस हाथ पर लगे पाउडर को सूंघ कर देखा, गंध से कुछ समझ में नहीं आया पर—-

— पर कुछ ही पलों में झनक को समझ में आ गया की वो पाउडर नहीं था बल्कि खुजली का चुरा था… क्योंकि झनक का सारा बदन खुजलाना शुरू हो गया…

***


चांदनी

‘चांदनी, मैं तुम पर कोई जबरदस्ती नहीं करूंगा. एक सरल सौदा है. - तुम मेरी बात मानो, मैं जुगल की जान नहीं लूंगा. तुम मेरी बात मानने से मना कर दो. मैं जुगल की जान ले लूंगा.मैंने कुछ करना नहीं सिर्फ अन्ना को एक कॉल करना है… ’

‘जुगल है कहां ?’

‘सलामत जगह पर. वो कहां है, यह मुझे बस अन्ना को बताने की देर है. दूसरे ही पल अन्ना के आदमी उसकी जान लेने पहुंच जाएंगे.’

चांदनी उलझ गई.

‘बात करोगी जुगल से?’ अजिंक्य ने पूछा.

-क्या बात करूं !- चांदनी ने सोचा.

अजिंक्य ने फोन लगा कर कहा. ‘जुगल से बात कराओ…’

चांदनी ने आतंकित हो कर अजिंक्य की ओर देखा…

अजिंक्य फोन कान पर लगाए हुए था. अचानक बोला. ‘ओह, नहीं नहीं उसे मारो मत…’ फिर एकदम गरज कर बोला. ‘मैंने बोला क्या हाथ उठाने? इडियट्स ! मुझे बात करनी थी उससे और वो कराह रहा है…! अब खबरदार उसे एक उंगली भी लगाईं तो -’ कह कर अजिंक्य ने गुस्से से फोन काट कर पटक दिया.

चांदनी सहम गई- जुगल को पीटा जा रहा है! पर क्यों! कौन है ये अजिंक्य, ये अन्ना जैसे लोग और क्यों ऐसा वहशीपन है इनमे?

इतने में अजिंक्य चांदनी की ओर देख कर बोला. ‘आई एम सॉरी, इस लाइन के लोग बहुत जाहिल होते है.. पर मैंने बता दिया है -अब वो जुगल पर हाथ नहीं उठाएंगे - कुछ देर में मैं तुम्हारी बात करता हूं -’

चांदनी आघात से दिग्मूढ हो गई थी.

‘पर आप लोग जुगल को मार क्यों रहे हो?’ चांदनी जो बात गुस्से में पूछना चाहती थी वो पूछते पूछते रुआंसी हो गई… उसकी कल्पना में मार खाता हुआ जुगल आ रहा था - उसकी आंखें भर आई…

‘जुगल ने कोई हरकत की होगी उनसे भाग निकलने की या सामने अपनी ताकत दिखाने की - खेर, मैंने कह दिया है तुम्हारे सामने अब कोई नहीं छुएगा उसे- वादा.’

चांदनी ने अपनी आंखें पोंछते हुए अपने हाल को कोसा….

‘अब मैंने बोला उस बारे में बताओ.’ अजिंक्य ने पानी की बोतल से पानी पीते हुए कहा.

चांदनी ने चौंक कर अजिंक्य के सामने देखा.

‘बोलो, टाइम वेस्ट मत करो. मैं कॉल करूं अन्ना को या मेरे सौदे की ऑफर से तुम जुगल को बचाने में इंटरेस्टेड हो?

चांदनी को समझ में आ गया की उसके पास ज्यादा चॉइस है नहीं.

‘मुझे क्या करना होगा?’ चांदनी ने धड़कते हृदय के साथ पूछा.

‘शुरुआत कपडे निकालने से करो.’ अजिंक्य ने कहा.

चांदनी को आघात लगा. वो अजिंक्य को ताकती रह गई.

अजिंक्य ने कुछ पल चांदनी को निहारा फिर अपना फोन हाथ में लेते हुए कहा.

‘इट’ स ओके चांदनी, आई केन अंडरस्टेंड…’ और फोन डायल करने लगा.

‘एक मिनिट…’ चांदनी ने टेन्स हो कर कहा.

अजिंक्य ने चांदनी की ओर देखा.

चांदनी ने कहा. ‘मैं कपड़े निकालती हूं…’

अजिंक्य के चेहरे पर मुस्कान आई…

***


जुगल

झाडी में दिशाहीन सा एक अंदाजे से कुछ देर दौड़ने के बाद जुगल एक डेड एन्ड जैसी जगह पहुंच गया.

सामने खाई जैसा लंबा गड्ढा था. आगे जाने का कोई रास्ता नहीं था…

जुगल को लगा वो क्या मूर्खों की तरह हवा में हाथ पैर मार रहा है!

उसे मुंबई में चिलम बाबा के साथ की मुलाकात याद आ गई…


पूना निकलने के आठ दस रोज पहले जुगल चिलम बाबा से मिला था और बताया था की वो पूना जाने वाला है. तब बाबा ने हँसकर कहा था. ‘जाओ जाओ जरूर जाओ. एक नया सबक सीखोगे पूना की मुलाकात से..’

‘कौन सा सबक?’ जुगल ने पूछा था तब बाबा ने कहा था : ‘हवा पर कोई पहरा नहीं होता और गांड पर कोई पर्दा नहीं होता.’

जुगल यह सुन कर भौचक्का रह गया था और बाबा ने हंसते हुए समझाया था : शून्य बुद्धि ! इस के माने है की हवा को लाख कोशिशों के बावजूद आप बांध नहीं सकते वो आखिर बह निकलती है और अपनी गांड को लाख कोशिशों के बावजूद आप बचा नहीं सकते, वो मार दी जाती है…’


जुगल को लगा इस वक्त उसके साथ जो हो रहा है उसी के बारे में शायद चिलम बाबा उसे आगाह कर रहे थे! पता नहीं चांदनी भाभी कहां किस हाल में होगी और मैं चाह कर भी कुछ कर नहीं पा रहा - चिलम बाबा की बात इस स्थिति के साथ बिल्कुल फिट बैठ रही है!

इतने में उसका ध्यान खाई के उस पार के छोटे से बंगले के कंपाउंड में भोंकते हुए कुत्तो की आवाज पर गया.

वो कुत्ते एक छोटी सी खिड़की की ओर देख कर भौंक रहे थे…

क्या होगा उस खिड़की में जो कुत्ते भौंक रहे है?

कहीं कुदरत उसे कोई इशारा तो नहीं दे रही ?


जब चिलम बाबा की बातें सुनकर जुगल को पूना की मुलाकात को ले कर एक भय लगने लगा था. तब बाबा ने कहा था - ‘चिंता मत कर, खिड़कियां खुल जायेगी…’

उन कुत्तो को उस खिड़की की और देख भौंकते देख जुगल को लगा : शायद मुझे वहां जाना चाहिए…

वो उलटे पैर रास्ते की और दौड़ा - जहां उसने अपनी कार छोड़ी थी…

***


झनक

जी हां, जुगल ने अभी देखे हुए भौंकते हुए कुत्ते उसी खिड़की को देख रहे थे जिस खड़की को तहखाने से झनक ने देखा था.

पर कुत्ते भौंक क्यों रहे थे?

क्योंकि झनक ने एक लकड़ी का टुकड़ा फेंक कर उस खड़की के सलाखों में फ़साने की कोशिश की थी…

कैसे?

यह जानने हमें पांच मिनिट पीछे जाना पड़ेगा जब खुजली वाला चूर्ण झनक के शरीर पर बिखर गया था….

कुछ ही देर में झनक खुजली से परेशान हो गई और उसे अपने कपडे निकालने पड़े… वो जुगल को बचाने के लिए अन्ना के घर में देहाती कपड़ो में घुसी थी - चोली, घाघरा और ओढ़नी… इन सारो कपड़ो में खुजली का पाउडर जैसा चूर्ण पसर गया था… मजबुरन उसे सब निकाल देना पड़ा. इस कपडे निकालने की हरकत में उसकी ब्रा में भी खुजली का पाउडर चला गया. सो ब्रा भी निकाल दी.. अब पेंटी में भी जलन होने लगी थी… झनक ने झल्ला कार पेंटी भी निकाल दी और पूर्ण नग्न हो कर अपने कपडे झटकने शुरू किये…. कुछ देर सारे कपड़े झटकने के बाद वो अपनी इस स्थिति को कोसते हुए क कर नंगी ही फर्श पर बैठ पड़ी. तब उसकी नजर एक लकड़ी के टुकड़े पर पड़ी.

झनक स्मार्ट लड़की थी. उसने लकड़ी का टुकड़ा देखा, तहखाने की छत से सटी खिड़की देखि और अपने कपड़ो का ढेर देखा…

और तुरंत अपने सारे कपड़े एक दूसरे से बाँध कर उसने एक डोर बना दी. उस डोर के एक छोर पर उस लकड़ी के टुकड़े को बराबर बीच के हिस्से में बांधा और फिर जोर लगा कर फेंका उस खिड़की की ओर - इस उम्मीद में की वो लकड़ी का टुकड़ा खिड़की की सलाखों में फंस जाए..

लकड़ी का टुकड़ा सलाखों से टकरा कर फिर झनक के पास आ गया…

झनक ने उम्मीद नहीं छोड़ी. उसने दुबारा कोशिश की….

इस तरह उसने कोशिश जारी रखी.

बार बार लकड़ी का टुकड़ा सलाखों से टकरा कर आवाज पैदा करता था.

सो लकड़ी का टुकड़ा सलाखों में फंसा नहीं पर उस आवाज से एक कुत्ता आकर्षित हो कर खिड़की के पास आ कर देखने लगा. और इस तरह लकड़ी के टुकड़े को बारबार आ कर सलाखों से टकराता देख वो भौंकने लगा.

उसे भौंकते देख और तीन चार कुत्ते आ गए और सभी लकड़ी के टुकड़े को देख भौंकने लगे…

इस तरह कुत्तो की सामूहिक भौंक काफी दूर, गढ्ढे के दूसरी और खड़े जुगल तक पहुंच पाई…

खेर.

क्या लकड़ी के उस टुकड़े को खिड़की के सलाखों में फ़साने में झनक कामियाब होगी?

जो इस वक्त अपने बदन के सारे वस्त्र - ब्रा पेंटी तक को दूसरे कपड़ों के साथ जोड़ जोड़ कर डोर बना कर यह कोशिश कर रही है?

बिल्कुल नग्न अवस्था में!

***


चांदनी

चांदनी भी इस वक्त बिलकुल नग्न अवस्था में थी …

पूना से मुंबई की सफर में लाइट ड्रेसिंग ठीक रहेगा इस ख़याल से उसने एक क्रीम कलर का टीशर्ट और जींस की पेंट पहने थे.

जो अब अजिंक्य के सोफे पर पड़े थे. बगल में उसकी ब्रा और पेंटी भी….

और अजिंक्य के आदेश पर वो मूड कर अपने नितंब उसे दिखा रही थी.

अजिंक्य अपने पेंट की ज़िप खोलकर अपना लिंग सहलाते हुए चांदनी के नितंब देख कर उत्तेजना से बोला.

‘यस…यस…यस…!! चांदनी —--उफ्फ्फ क्या नजारा है! उफ्फ्फ उफ्फ्फ्फ़ उफ्फ्फ… ऐसे ही मैंने तुम्हारा नाम ‘गांड सुंदरी’ नहीं रखा…!’

***


जहां दो कन्या निर्वस्त्र हो चुकी है. - दोनों की नग्न हो जाने की वजह भिन्न भिन्न किस्म की खुजली है…


वहां -क्या जुगल सही वक्त पर इस बंगले पर पहुंच पाएगा ?

(२ -ये तो सोचा न था…विराम, क्रमश:)
Jugal pahuch ke bachayga tbhi to mza aayga story me aage
 
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malikarman

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२६ – ये तो सोचा न था…

[(२५ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :
‘तुम्हारी कॉलेज तो नहीं आता था पर तुम्हारी कॉलेज के बाहर कुछ मनचले नौ जवान खड़े हो कर कॉलेज की लड़कीओ को सताते थे वो याद है?

‘मतलब?’ चांदनी और टेन्स हो गई.

‘मैं उन मनचले लड़को में से एक था.’

‘फ़ालतू बातें जाने दो अजिंक्य, तुम मुझे यहां क्यों ले आये हो?’

‘डिटेल में बताऊं या शॉर्ट में?’

‘एक वाक्य में बताओ.’

‘तुम्हारी गांड की वजह से. चांदनी, यहां मैं तुम्हे तुम्हारी गांड की वजह से ले आया हूं.’

यह सुन चांदनी भौचक्की रह गई… ]



जुगल

अन्ना के घर के आसपास लगे हुए रास्तों पर कार घुमा घुमा कर जुगल थक गया. उसे लगा यह तो कोई तरीका नहीं हुआ किसी को ढूंढ़ने का !

पर क्या करना चाहिए? भाभी का फोन भी तो नहीं लग रहा था?

उसने झनक को फोन लगाया. वो भी आउट ऑफ़ कवरेज!

जुगल फ्रस्ट्रेट हो गया. कार के स्टीयरिंग पर सर झुका कर बैठ गया…

***


जगदीश

चाय पीने के बाद शालिनी ने जगदीश को धीमी आवाज में पूछा. ‘अब ठीक है आपको? या दर्द हो रहा है अब भी?’

‘अब दर्द नहीं, और मालिश की फिलहाल जरूरत नहीं.’

‘पक्का?’

‘मैं एक बार सूझन कम हुई कि नहीं वह चेक कर लेता हूं.’ कह कर जगदीश वॉशरूम जाने के लिए उठा. सुभाष ने बिल चुका दिया और सेलफोन पर बात करने लगा.

वॉशरूम में जगदीश ने अपने अंडकोष का मुआयना किया. शालिनी की मेहनत ने असर दिखाया था. सूझन नहीं के बराबर थी. न ही दर्द रहा था. वो मुतमइन हो कर वॉशरूम के बाहर निकला.

वॉशरूम के बाहर का पैसेज बहुत संकरी गली जैसा था. होटल से उस गली में आते पहले लेडीज़ वॉशरूम था फिर कोने में जेंट्स वॉशरूम. उस गली में एक वक्त एक ही आदमी गुजर सकता था. जगदीश उस गली के बीच पहुंचा तभी तूलिका उस गली में सामने से दाखिल हुई. जगदीश ने तेजी से गली के बाहर निकलने की कोशिश की पर वो और तूलिका आमने सामने हो ही गए. जगदीश ने अपने आपको गली की दीवार के साथ बिलकुल सटा कर तूलिका को जाने का रास्ता दिया पर तूलिका जगदीश के शरीर से खुद के शरीर को रगड़ कर आगे जाने के बजाय रुक गई. जगदीश फंस कर रुक गया. दोनों के चेहरे मुश्किल से आधे फुट की दूरी पर थे…जगदीश ने ऑक्वर्ड फील करते हुए कहा. ‘प्लीज़ आगे बढ़िए तूलिका दीदी…’

‘दीदी?’ तूलिका ने आंखें नचा कर मुस्कुरा के पूछा.

‘आप मोहिते की दीदी हो तो मेरी भी दीदी हुई.’

‘और सुभाष की बीवी हूं तो तुम्हारी क्या हुई?’ तूलिका ने हंस कर पूछा.

दोनों संकरी गली में लगभग चिपके से खड़े थे. तूलिका यह स्थिति एन्जॉय कर रही थी और जगदीश अनकम्फर्टेबल महसूस कर रहा था.

‘आप तब भी मेरे लिए दीदी ही रहोगी...अब प्लीज़ जाइए, मुझे भी जाने दीजिये.’

अचानक तूलिका ने अपना चहेरा जगदीश के चहेरे की और बढ़ाया और जगदीश को कुछ समझ में आये उससे पहले तूलिका ने अपनी जीभ से जगदीश के होठ चाटना शुरू कर दिया…

‘आप…’ ऐसा जगदीश बोलने गया तब तूलिका ने अपनी जीभ जगदीश के बोलने के लिए खुले होठों के बीच डाल दी, जगदीश बोल नहीं पाया और एक अप्रत्याशित जीभ युक्त चुंबन हो गया. जगदीश अपसेट हो गया. तूलिका हंस कर आगे खिसकी. जगदीश बाहर निकलने फ्री हुआ. अपने होंठों को पोंछते हुए उसने नाराजगी से कहा.



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‘ये क्या हरकत हुई! मैं आपको दीदी कह रहा हूं और आप-’

तूलिका ने हंस कर कहा, ‘बड़ी दीदी हूं तुम्हारी, लाड तो करूंगी ना अपने भाई से?’

जगदीश कोई जवाब दिए बिना वहां से निकल कर शालिनी बैठी थी वहां चला गया.

***


झनक


वो जहां गिर पड़ी थी उस तहखाने जैसी जगह में झनक को शुरू में तो कुछ समझ में नहीं आया की वो कहां आन पड़ी है… धीरे धीरे अंधेरे से उसकी आंखें अभ्यस्त हुई. उसने अपने मोबाइल की टॉर्च से उस जगह के अंधेरे को चीरते हुए मुआयना किया. वो एक स्टोर रूम जैसी जगह थी छोटे मोठे बक्से और भंगार सामान बिखरा पड़ा था. एक दीवार के बहुत उपरके हिस्से में -उस तहखाने की छत को लग कर एक छोटी सी खिड़की दिख रही थी. पर उस खिड़की तक की ऊंचाई कमसे कम आठ फुट थी. और इस आठ फुट को तय करने का कोई तरीका नहीं था…

***


चांदनी

चांदनी भौचक्की रह गई क्योंकि उसने ऐसी भाषा कभी बोली या सुनी नहीं थी. और किसी ने उससे ऐसी भाषा में कभी बात नहीं की थी.

‘अजिंक्य, बोलने की तमीज रखो.’

‘सॉरी चांदनी, मुझे नहीं पता की गांड को गांड नहीं कहते तो क्या कहते है! क्यों तुम लोग क्या कहते हो?’

‘बेकार बहस नहीं करनी मुझे, मैं यहां से जा रही हूं.’ चांदनी ने सोफे पर से उठते हुए कहा.

‘अरे वाह ! तुम चली जाओगी तो मैं क्या जुगल की गांड मारूंगा ?’

चांदनी सहम गई.

‘बैठ जाओ चांदनी. अगर जुगल की खैर चाहती हो तो…’

चांदनी विवश हो कर बैठ पड़ी…

***


जुगल

रास्ते के किनारे कार रोक कर ‘अब क्या करें?’ की मानसिकता में बैठे हुए जुगल ने देखा की रास्ते के बगल की झाड़ी में कोई भागता हुआ गया. — कौन होगा? क्या चांदनी भाभी हो सकती है? - जुगल एकदम सावध हो गया. उसे लगा की भाभी हो यह संभावना बिलकुल है क्योंकि भाभी चल कर गई होगी, हो सकता है अंधेरे का लाभ उठा कर भाग गई हो और वो ही हो?जिसे मैंने देखा!

जुगल कार से बाहर निकल कर झाडी में तेजी से गया….

***


झनक

उस तहखाने में हवा की कोई व्यवस्था नहीं थी. कुछ ही देर में झनक पसीना पसीना हो गई… इतने में अंधेरे में वो बक्सों के ढेर से टकरा गई और एक बक्सा उस के सिर पर गिर पड़ा. उस बक्से में कुछ पावडर जैसा था जो झनक के कपड़ो और शरीर पर बिखर गया. ‘यह कौन सा पाउडर है?’ सोचते हुए झनक ने उस हाथ पर लगे पाउडर को सूंघ कर देखा, गंध से कुछ समझ में नहीं आया पर—-

— पर कुछ ही पलों में झनक को समझ में आ गया की वो पाउडर नहीं था बल्कि खुजली का चुरा था… क्योंकि झनक का सारा बदन खुजलाना शुरू हो गया…

***


चांदनी

‘चांदनी, मैं तुम पर कोई जबरदस्ती नहीं करूंगा. एक सरल सौदा है. - तुम मेरी बात मानो, मैं जुगल की जान नहीं लूंगा. तुम मेरी बात मानने से मना कर दो. मैं जुगल की जान ले लूंगा.मैंने कुछ करना नहीं सिर्फ अन्ना को एक कॉल करना है… ’

‘जुगल है कहां ?’

‘सलामत जगह पर. वो कहां है, यह मुझे बस अन्ना को बताने की देर है. दूसरे ही पल अन्ना के आदमी उसकी जान लेने पहुंच जाएंगे.’

चांदनी उलझ गई.

‘बात करोगी जुगल से?’ अजिंक्य ने पूछा.

-क्या बात करूं !- चांदनी ने सोचा.

अजिंक्य ने फोन लगा कर कहा. ‘जुगल से बात कराओ…’

चांदनी ने आतंकित हो कर अजिंक्य की ओर देखा…

अजिंक्य फोन कान पर लगाए हुए था. अचानक बोला. ‘ओह, नहीं नहीं उसे मारो मत…’ फिर एकदम गरज कर बोला. ‘मैंने बोला क्या हाथ उठाने? इडियट्स ! मुझे बात करनी थी उससे और वो कराह रहा है…! अब खबरदार उसे एक उंगली भी लगाईं तो -’ कह कर अजिंक्य ने गुस्से से फोन काट कर पटक दिया.

चांदनी सहम गई- जुगल को पीटा जा रहा है! पर क्यों! कौन है ये अजिंक्य, ये अन्ना जैसे लोग और क्यों ऐसा वहशीपन है इनमे?

इतने में अजिंक्य चांदनी की ओर देख कर बोला. ‘आई एम सॉरी, इस लाइन के लोग बहुत जाहिल होते है.. पर मैंने बता दिया है -अब वो जुगल पर हाथ नहीं उठाएंगे - कुछ देर में मैं तुम्हारी बात करता हूं -’

चांदनी आघात से दिग्मूढ हो गई थी.

‘पर आप लोग जुगल को मार क्यों रहे हो?’ चांदनी जो बात गुस्से में पूछना चाहती थी वो पूछते पूछते रुआंसी हो गई… उसकी कल्पना में मार खाता हुआ जुगल आ रहा था - उसकी आंखें भर आई…

‘जुगल ने कोई हरकत की होगी उनसे भाग निकलने की या सामने अपनी ताकत दिखाने की - खेर, मैंने कह दिया है तुम्हारे सामने अब कोई नहीं छुएगा उसे- वादा.’

चांदनी ने अपनी आंखें पोंछते हुए अपने हाल को कोसा….

‘अब मैंने बोला उस बारे में बताओ.’ अजिंक्य ने पानी की बोतल से पानी पीते हुए कहा.

चांदनी ने चौंक कर अजिंक्य के सामने देखा.

‘बोलो, टाइम वेस्ट मत करो. मैं कॉल करूं अन्ना को या मेरे सौदे की ऑफर से तुम जुगल को बचाने में इंटरेस्टेड हो?

चांदनी को समझ में आ गया की उसके पास ज्यादा चॉइस है नहीं.

‘मुझे क्या करना होगा?’ चांदनी ने धड़कते हृदय के साथ पूछा.

‘शुरुआत कपडे निकालने से करो.’ अजिंक्य ने कहा.

चांदनी को आघात लगा. वो अजिंक्य को ताकती रह गई.

अजिंक्य ने कुछ पल चांदनी को निहारा फिर अपना फोन हाथ में लेते हुए कहा.

‘इट’ स ओके चांदनी, आई केन अंडरस्टेंड…’ और फोन डायल करने लगा.

‘एक मिनिट…’ चांदनी ने टेन्स हो कर कहा.

अजिंक्य ने चांदनी की ओर देखा.

चांदनी ने कहा. ‘मैं कपड़े निकालती हूं…’

अजिंक्य के चेहरे पर मुस्कान आई…

***


जुगल

झाडी में दिशाहीन सा एक अंदाजे से कुछ देर दौड़ने के बाद जुगल एक डेड एन्ड जैसी जगह पहुंच गया.

सामने खाई जैसा लंबा गड्ढा था. आगे जाने का कोई रास्ता नहीं था…

जुगल को लगा वो क्या मूर्खों की तरह हवा में हाथ पैर मार रहा है!

उसे मुंबई में चिलम बाबा के साथ की मुलाकात याद आ गई…


पूना निकलने के आठ दस रोज पहले जुगल चिलम बाबा से मिला था और बताया था की वो पूना जाने वाला है. तब बाबा ने हँसकर कहा था. ‘जाओ जाओ जरूर जाओ. एक नया सबक सीखोगे पूना की मुलाकात से..’

‘कौन सा सबक?’ जुगल ने पूछा था तब बाबा ने कहा था : ‘हवा पर कोई पहरा नहीं होता और गांड पर कोई पर्दा नहीं होता.’

जुगल यह सुन कर भौचक्का रह गया था और बाबा ने हंसते हुए समझाया था : शून्य बुद्धि ! इस के माने है की हवा को लाख कोशिशों के बावजूद आप बांध नहीं सकते वो आखिर बह निकलती है और अपनी गांड को लाख कोशिशों के बावजूद आप बचा नहीं सकते, वो मार दी जाती है…’


जुगल को लगा इस वक्त उसके साथ जो हो रहा है उसी के बारे में शायद चिलम बाबा उसे आगाह कर रहे थे! पता नहीं चांदनी भाभी कहां किस हाल में होगी और मैं चाह कर भी कुछ कर नहीं पा रहा - चिलम बाबा की बात इस स्थिति के साथ बिल्कुल फिट बैठ रही है!

इतने में उसका ध्यान खाई के उस पार के छोटे से बंगले के कंपाउंड में भोंकते हुए कुत्तो की आवाज पर गया.

वो कुत्ते एक छोटी सी खिड़की की ओर देख कर भौंक रहे थे…

क्या होगा उस खिड़की में जो कुत्ते भौंक रहे है?

कहीं कुदरत उसे कोई इशारा तो नहीं दे रही ?


जब चिलम बाबा की बातें सुनकर जुगल को पूना की मुलाकात को ले कर एक भय लगने लगा था. तब बाबा ने कहा था - ‘चिंता मत कर, खिड़कियां खुल जायेगी…’

उन कुत्तो को उस खिड़की की और देख भौंकते देख जुगल को लगा : शायद मुझे वहां जाना चाहिए…

वो उलटे पैर रास्ते की और दौड़ा - जहां उसने अपनी कार छोड़ी थी…

***


झनक

जी हां, जुगल ने अभी देखे हुए भौंकते हुए कुत्ते उसी खिड़की को देख रहे थे जिस खड़की को तहखाने से झनक ने देखा था.

पर कुत्ते भौंक क्यों रहे थे?

क्योंकि झनक ने एक लकड़ी का टुकड़ा फेंक कर उस खड़की के सलाखों में फ़साने की कोशिश की थी…

कैसे?

यह जानने हमें पांच मिनिट पीछे जाना पड़ेगा जब खुजली वाला चूर्ण झनक के शरीर पर बिखर गया था….

कुछ ही देर में झनक खुजली से परेशान हो गई और उसे अपने कपडे निकालने पड़े… वो जुगल को बचाने के लिए अन्ना के घर में देहाती कपड़ो में घुसी थी - चोली, घाघरा और ओढ़नी… इन सारो कपड़ो में खुजली का पाउडर जैसा चूर्ण पसर गया था… मजबुरन उसे सब निकाल देना पड़ा. इस कपडे निकालने की हरकत में उसकी ब्रा में भी खुजली का पाउडर चला गया. सो ब्रा भी निकाल दी.. अब पेंटी में भी जलन होने लगी थी… झनक ने झल्ला कार पेंटी भी निकाल दी और पूर्ण नग्न हो कर अपने कपडे झटकने शुरू किये…. कुछ देर सारे कपड़े झटकने के बाद वो अपनी इस स्थिति को कोसते हुए क कर नंगी ही फर्श पर बैठ पड़ी. तब उसकी नजर एक लकड़ी के टुकड़े पर पड़ी.

झनक स्मार्ट लड़की थी. उसने लकड़ी का टुकड़ा देखा, तहखाने की छत से सटी खिड़की देखि और अपने कपड़ो का ढेर देखा…

और तुरंत अपने सारे कपड़े एक दूसरे से बाँध कर उसने एक डोर बना दी. उस डोर के एक छोर पर उस लकड़ी के टुकड़े को बराबर बीच के हिस्से में बांधा और फिर जोर लगा कर फेंका उस खिड़की की ओर - इस उम्मीद में की वो लकड़ी का टुकड़ा खिड़की की सलाखों में फंस जाए..

लकड़ी का टुकड़ा सलाखों से टकरा कर फिर झनक के पास आ गया…

झनक ने उम्मीद नहीं छोड़ी. उसने दुबारा कोशिश की….

इस तरह उसने कोशिश जारी रखी.

बार बार लकड़ी का टुकड़ा सलाखों से टकरा कर आवाज पैदा करता था.

सो लकड़ी का टुकड़ा सलाखों में फंसा नहीं पर उस आवाज से एक कुत्ता आकर्षित हो कर खिड़की के पास आ कर देखने लगा. और इस तरह लकड़ी के टुकड़े को बारबार आ कर सलाखों से टकराता देख वो भौंकने लगा.

उसे भौंकते देख और तीन चार कुत्ते आ गए और सभी लकड़ी के टुकड़े को देख भौंकने लगे…

इस तरह कुत्तो की सामूहिक भौंक काफी दूर, गढ्ढे के दूसरी और खड़े जुगल तक पहुंच पाई…

खेर.

क्या लकड़ी के उस टुकड़े को खिड़की के सलाखों में फ़साने में झनक कामियाब होगी?

जो इस वक्त अपने बदन के सारे वस्त्र - ब्रा पेंटी तक को दूसरे कपड़ों के साथ जोड़ जोड़ कर डोर बना कर यह कोशिश कर रही है?

बिल्कुल नग्न अवस्था में!

***


चांदनी

चांदनी भी इस वक्त बिलकुल नग्न अवस्था में थी …

पूना से मुंबई की सफर में लाइट ड्रेसिंग ठीक रहेगा इस ख़याल से उसने एक क्रीम कलर का टीशर्ट और जींस की पेंट पहने थे.

जो अब अजिंक्य के सोफे पर पड़े थे. बगल में उसकी ब्रा और पेंटी भी….

और अजिंक्य के आदेश पर वो मूड कर अपने नितंब उसे दिखा रही थी.

अजिंक्य अपने पेंट की ज़िप खोलकर अपना लिंग सहलाते हुए चांदनी के नितंब देख कर उत्तेजना से बोला.

‘यस…यस…यस…!! चांदनी —--उफ्फ्फ क्या नजारा है! उफ्फ्फ उफ्फ्फ्फ़ उफ्फ्फ… ऐसे ही मैंने तुम्हारा नाम ‘गांड सुंदरी’ नहीं रखा…!’

***


जहां दो कन्या निर्वस्त्र हो चुकी है. - दोनों की नग्न हो जाने की वजह भिन्न भिन्न किस्म की खुजली है…


वहां -क्या जुगल सही वक्त पर इस बंगले पर पहुंच पाएगा ?

(२ -ये तो सोचा न था…विराम, क्रमश:)
Nice bro....ek pic use ki aapne
Aur ho sakti hain
 

Alka Sharma

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२६ – ये तो सोचा न था…

[(२५ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :
‘तुम्हारी कॉलेज तो नहीं आता था पर तुम्हारी कॉलेज के बाहर कुछ मनचले नौ जवान खड़े हो कर कॉलेज की लड़कीओ को सताते थे वो याद है?

‘मतलब?’ चांदनी और टेन्स हो गई.

‘मैं उन मनचले लड़को में से एक था.’

‘फ़ालतू बातें जाने दो अजिंक्य, तुम मुझे यहां क्यों ले आये हो?’

‘डिटेल में बताऊं या शॉर्ट में?’

‘एक वाक्य में बताओ.’

‘तुम्हारी गांड की वजह से. चांदनी, यहां मैं तुम्हे तुम्हारी गांड की वजह से ले आया हूं.’

यह सुन चांदनी भौचक्की रह गई… ]



जुगल

अन्ना के घर के आसपास लगे हुए रास्तों पर कार घुमा घुमा कर जुगल थक गया. उसे लगा यह तो कोई तरीका नहीं हुआ किसी को ढूंढ़ने का !

पर क्या करना चाहिए? भाभी का फोन भी तो नहीं लग रहा था?

उसने झनक को फोन लगाया. वो भी आउट ऑफ़ कवरेज!

जुगल फ्रस्ट्रेट हो गया. कार के स्टीयरिंग पर सर झुका कर बैठ गया…

***


जगदीश

चाय पीने के बाद शालिनी ने जगदीश को धीमी आवाज में पूछा. ‘अब ठीक है आपको? या दर्द हो रहा है अब भी?’

‘अब दर्द नहीं, और मालिश की फिलहाल जरूरत नहीं.’

‘पक्का?’

‘मैं एक बार सूझन कम हुई कि नहीं वह चेक कर लेता हूं.’ कह कर जगदीश वॉशरूम जाने के लिए उठा. सुभाष ने बिल चुका दिया और सेलफोन पर बात करने लगा.

वॉशरूम में जगदीश ने अपने अंडकोष का मुआयना किया. शालिनी की मेहनत ने असर दिखाया था. सूझन नहीं के बराबर थी. न ही दर्द रहा था. वो मुतमइन हो कर वॉशरूम के बाहर निकला.

वॉशरूम के बाहर का पैसेज बहुत संकरी गली जैसा था. होटल से उस गली में आते पहले लेडीज़ वॉशरूम था फिर कोने में जेंट्स वॉशरूम. उस गली में एक वक्त एक ही आदमी गुजर सकता था. जगदीश उस गली के बीच पहुंचा तभी तूलिका उस गली में सामने से दाखिल हुई. जगदीश ने तेजी से गली के बाहर निकलने की कोशिश की पर वो और तूलिका आमने सामने हो ही गए. जगदीश ने अपने आपको गली की दीवार के साथ बिलकुल सटा कर तूलिका को जाने का रास्ता दिया पर तूलिका जगदीश के शरीर से खुद के शरीर को रगड़ कर आगे जाने के बजाय रुक गई. जगदीश फंस कर रुक गया. दोनों के चेहरे मुश्किल से आधे फुट की दूरी पर थे…जगदीश ने ऑक्वर्ड फील करते हुए कहा. ‘प्लीज़ आगे बढ़िए तूलिका दीदी…’

‘दीदी?’ तूलिका ने आंखें नचा कर मुस्कुरा के पूछा.

‘आप मोहिते की दीदी हो तो मेरी भी दीदी हुई.’

‘और सुभाष की बीवी हूं तो तुम्हारी क्या हुई?’ तूलिका ने हंस कर पूछा.

दोनों संकरी गली में लगभग चिपके से खड़े थे. तूलिका यह स्थिति एन्जॉय कर रही थी और जगदीश अनकम्फर्टेबल महसूस कर रहा था.

‘आप तब भी मेरे लिए दीदी ही रहोगी...अब प्लीज़ जाइए, मुझे भी जाने दीजिये.’

अचानक तूलिका ने अपना चहेरा जगदीश के चहेरे की और बढ़ाया और जगदीश को कुछ समझ में आये उससे पहले तूलिका ने अपनी जीभ से जगदीश के होठ चाटना शुरू कर दिया…

‘आप…’ ऐसा जगदीश बोलने गया तब तूलिका ने अपनी जीभ जगदीश के बोलने के लिए खुले होठों के बीच डाल दी, जगदीश बोल नहीं पाया और एक अप्रत्याशित जीभ युक्त चुंबन हो गया. जगदीश अपसेट हो गया. तूलिका हंस कर आगे खिसकी. जगदीश बाहर निकलने फ्री हुआ. अपने होंठों को पोंछते हुए उसने नाराजगी से कहा.



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‘ये क्या हरकत हुई! मैं आपको दीदी कह रहा हूं और आप-’

तूलिका ने हंस कर कहा, ‘बड़ी दीदी हूं तुम्हारी, लाड तो करूंगी ना अपने भाई से?’

जगदीश कोई जवाब दिए बिना वहां से निकल कर शालिनी बैठी थी वहां चला गया.

***


झनक


वो जहां गिर पड़ी थी उस तहखाने जैसी जगह में झनक को शुरू में तो कुछ समझ में नहीं आया की वो कहां आन पड़ी है… धीरे धीरे अंधेरे से उसकी आंखें अभ्यस्त हुई. उसने अपने मोबाइल की टॉर्च से उस जगह के अंधेरे को चीरते हुए मुआयना किया. वो एक स्टोर रूम जैसी जगह थी छोटे मोठे बक्से और भंगार सामान बिखरा पड़ा था. एक दीवार के बहुत उपरके हिस्से में -उस तहखाने की छत को लग कर एक छोटी सी खिड़की दिख रही थी. पर उस खिड़की तक की ऊंचाई कमसे कम आठ फुट थी. और इस आठ फुट को तय करने का कोई तरीका नहीं था…

***


चांदनी

चांदनी भौचक्की रह गई क्योंकि उसने ऐसी भाषा कभी बोली या सुनी नहीं थी. और किसी ने उससे ऐसी भाषा में कभी बात नहीं की थी.

‘अजिंक्य, बोलने की तमीज रखो.’

‘सॉरी चांदनी, मुझे नहीं पता की गांड को गांड नहीं कहते तो क्या कहते है! क्यों तुम लोग क्या कहते हो?’

‘बेकार बहस नहीं करनी मुझे, मैं यहां से जा रही हूं.’ चांदनी ने सोफे पर से उठते हुए कहा.

‘अरे वाह ! तुम चली जाओगी तो मैं क्या जुगल की गांड मारूंगा ?’

चांदनी सहम गई.

‘बैठ जाओ चांदनी. अगर जुगल की खैर चाहती हो तो…’

चांदनी विवश हो कर बैठ पड़ी…

***


जुगल

रास्ते के किनारे कार रोक कर ‘अब क्या करें?’ की मानसिकता में बैठे हुए जुगल ने देखा की रास्ते के बगल की झाड़ी में कोई भागता हुआ गया. — कौन होगा? क्या चांदनी भाभी हो सकती है? - जुगल एकदम सावध हो गया. उसे लगा की भाभी हो यह संभावना बिलकुल है क्योंकि भाभी चल कर गई होगी, हो सकता है अंधेरे का लाभ उठा कर भाग गई हो और वो ही हो?जिसे मैंने देखा!

जुगल कार से बाहर निकल कर झाडी में तेजी से गया….

***


झनक

उस तहखाने में हवा की कोई व्यवस्था नहीं थी. कुछ ही देर में झनक पसीना पसीना हो गई… इतने में अंधेरे में वो बक्सों के ढेर से टकरा गई और एक बक्सा उस के सिर पर गिर पड़ा. उस बक्से में कुछ पावडर जैसा था जो झनक के कपड़ो और शरीर पर बिखर गया. ‘यह कौन सा पाउडर है?’ सोचते हुए झनक ने उस हाथ पर लगे पाउडर को सूंघ कर देखा, गंध से कुछ समझ में नहीं आया पर—-

— पर कुछ ही पलों में झनक को समझ में आ गया की वो पाउडर नहीं था बल्कि खुजली का चुरा था… क्योंकि झनक का सारा बदन खुजलाना शुरू हो गया…

***


चांदनी

‘चांदनी, मैं तुम पर कोई जबरदस्ती नहीं करूंगा. एक सरल सौदा है. - तुम मेरी बात मानो, मैं जुगल की जान नहीं लूंगा. तुम मेरी बात मानने से मना कर दो. मैं जुगल की जान ले लूंगा.मैंने कुछ करना नहीं सिर्फ अन्ना को एक कॉल करना है… ’

‘जुगल है कहां ?’

‘सलामत जगह पर. वो कहां है, यह मुझे बस अन्ना को बताने की देर है. दूसरे ही पल अन्ना के आदमी उसकी जान लेने पहुंच जाएंगे.’

चांदनी उलझ गई.

‘बात करोगी जुगल से?’ अजिंक्य ने पूछा.

-क्या बात करूं !- चांदनी ने सोचा.

अजिंक्य ने फोन लगा कर कहा. ‘जुगल से बात कराओ…’

चांदनी ने आतंकित हो कर अजिंक्य की ओर देखा…

अजिंक्य फोन कान पर लगाए हुए था. अचानक बोला. ‘ओह, नहीं नहीं उसे मारो मत…’ फिर एकदम गरज कर बोला. ‘मैंने बोला क्या हाथ उठाने? इडियट्स ! मुझे बात करनी थी उससे और वो कराह रहा है…! अब खबरदार उसे एक उंगली भी लगाईं तो -’ कह कर अजिंक्य ने गुस्से से फोन काट कर पटक दिया.

चांदनी सहम गई- जुगल को पीटा जा रहा है! पर क्यों! कौन है ये अजिंक्य, ये अन्ना जैसे लोग और क्यों ऐसा वहशीपन है इनमे?

इतने में अजिंक्य चांदनी की ओर देख कर बोला. ‘आई एम सॉरी, इस लाइन के लोग बहुत जाहिल होते है.. पर मैंने बता दिया है -अब वो जुगल पर हाथ नहीं उठाएंगे - कुछ देर में मैं तुम्हारी बात करता हूं -’

चांदनी आघात से दिग्मूढ हो गई थी.

‘पर आप लोग जुगल को मार क्यों रहे हो?’ चांदनी जो बात गुस्से में पूछना चाहती थी वो पूछते पूछते रुआंसी हो गई… उसकी कल्पना में मार खाता हुआ जुगल आ रहा था - उसकी आंखें भर आई…

‘जुगल ने कोई हरकत की होगी उनसे भाग निकलने की या सामने अपनी ताकत दिखाने की - खेर, मैंने कह दिया है तुम्हारे सामने अब कोई नहीं छुएगा उसे- वादा.’

चांदनी ने अपनी आंखें पोंछते हुए अपने हाल को कोसा….

‘अब मैंने बोला उस बारे में बताओ.’ अजिंक्य ने पानी की बोतल से पानी पीते हुए कहा.

चांदनी ने चौंक कर अजिंक्य के सामने देखा.

‘बोलो, टाइम वेस्ट मत करो. मैं कॉल करूं अन्ना को या मेरे सौदे की ऑफर से तुम जुगल को बचाने में इंटरेस्टेड हो?

चांदनी को समझ में आ गया की उसके पास ज्यादा चॉइस है नहीं.

‘मुझे क्या करना होगा?’ चांदनी ने धड़कते हृदय के साथ पूछा.

‘शुरुआत कपडे निकालने से करो.’ अजिंक्य ने कहा.

चांदनी को आघात लगा. वो अजिंक्य को ताकती रह गई.

अजिंक्य ने कुछ पल चांदनी को निहारा फिर अपना फोन हाथ में लेते हुए कहा.

‘इट’ स ओके चांदनी, आई केन अंडरस्टेंड…’ और फोन डायल करने लगा.

‘एक मिनिट…’ चांदनी ने टेन्स हो कर कहा.

अजिंक्य ने चांदनी की ओर देखा.

चांदनी ने कहा. ‘मैं कपड़े निकालती हूं…’

अजिंक्य के चेहरे पर मुस्कान आई…

***


जुगल

झाडी में दिशाहीन सा एक अंदाजे से कुछ देर दौड़ने के बाद जुगल एक डेड एन्ड जैसी जगह पहुंच गया.

सामने खाई जैसा लंबा गड्ढा था. आगे जाने का कोई रास्ता नहीं था…

जुगल को लगा वो क्या मूर्खों की तरह हवा में हाथ पैर मार रहा है!

उसे मुंबई में चिलम बाबा के साथ की मुलाकात याद आ गई…


पूना निकलने के आठ दस रोज पहले जुगल चिलम बाबा से मिला था और बताया था की वो पूना जाने वाला है. तब बाबा ने हँसकर कहा था. ‘जाओ जाओ जरूर जाओ. एक नया सबक सीखोगे पूना की मुलाकात से..’

‘कौन सा सबक?’ जुगल ने पूछा था तब बाबा ने कहा था : ‘हवा पर कोई पहरा नहीं होता और गांड पर कोई पर्दा नहीं होता.’

जुगल यह सुन कर भौचक्का रह गया था और बाबा ने हंसते हुए समझाया था : शून्य बुद्धि ! इस के माने है की हवा को लाख कोशिशों के बावजूद आप बांध नहीं सकते वो आखिर बह निकलती है और अपनी गांड को लाख कोशिशों के बावजूद आप बचा नहीं सकते, वो मार दी जाती है…’


जुगल को लगा इस वक्त उसके साथ जो हो रहा है उसी के बारे में शायद चिलम बाबा उसे आगाह कर रहे थे! पता नहीं चांदनी भाभी कहां किस हाल में होगी और मैं चाह कर भी कुछ कर नहीं पा रहा - चिलम बाबा की बात इस स्थिति के साथ बिल्कुल फिट बैठ रही है!

इतने में उसका ध्यान खाई के उस पार के छोटे से बंगले के कंपाउंड में भोंकते हुए कुत्तो की आवाज पर गया.

वो कुत्ते एक छोटी सी खिड़की की ओर देख कर भौंक रहे थे…

क्या होगा उस खिड़की में जो कुत्ते भौंक रहे है?

कहीं कुदरत उसे कोई इशारा तो नहीं दे रही ?


जब चिलम बाबा की बातें सुनकर जुगल को पूना की मुलाकात को ले कर एक भय लगने लगा था. तब बाबा ने कहा था - ‘चिंता मत कर, खिड़कियां खुल जायेगी…’

उन कुत्तो को उस खिड़की की और देख भौंकते देख जुगल को लगा : शायद मुझे वहां जाना चाहिए…

वो उलटे पैर रास्ते की और दौड़ा - जहां उसने अपनी कार छोड़ी थी…

***


झनक

जी हां, जुगल ने अभी देखे हुए भौंकते हुए कुत्ते उसी खिड़की को देख रहे थे जिस खड़की को तहखाने से झनक ने देखा था.

पर कुत्ते भौंक क्यों रहे थे?

क्योंकि झनक ने एक लकड़ी का टुकड़ा फेंक कर उस खड़की के सलाखों में फ़साने की कोशिश की थी…

कैसे?

यह जानने हमें पांच मिनिट पीछे जाना पड़ेगा जब खुजली वाला चूर्ण झनक के शरीर पर बिखर गया था….

कुछ ही देर में झनक खुजली से परेशान हो गई और उसे अपने कपडे निकालने पड़े… वो जुगल को बचाने के लिए अन्ना के घर में देहाती कपड़ो में घुसी थी - चोली, घाघरा और ओढ़नी… इन सारो कपड़ो में खुजली का पाउडर जैसा चूर्ण पसर गया था… मजबुरन उसे सब निकाल देना पड़ा. इस कपडे निकालने की हरकत में उसकी ब्रा में भी खुजली का पाउडर चला गया. सो ब्रा भी निकाल दी.. अब पेंटी में भी जलन होने लगी थी… झनक ने झल्ला कार पेंटी भी निकाल दी और पूर्ण नग्न हो कर अपने कपडे झटकने शुरू किये…. कुछ देर सारे कपड़े झटकने के बाद वो अपनी इस स्थिति को कोसते हुए क कर नंगी ही फर्श पर बैठ पड़ी. तब उसकी नजर एक लकड़ी के टुकड़े पर पड़ी.

झनक स्मार्ट लड़की थी. उसने लकड़ी का टुकड़ा देखा, तहखाने की छत से सटी खिड़की देखि और अपने कपड़ो का ढेर देखा…

और तुरंत अपने सारे कपड़े एक दूसरे से बाँध कर उसने एक डोर बना दी. उस डोर के एक छोर पर उस लकड़ी के टुकड़े को बराबर बीच के हिस्से में बांधा और फिर जोर लगा कर फेंका उस खिड़की की ओर - इस उम्मीद में की वो लकड़ी का टुकड़ा खिड़की की सलाखों में फंस जाए..

लकड़ी का टुकड़ा सलाखों से टकरा कर फिर झनक के पास आ गया…

झनक ने उम्मीद नहीं छोड़ी. उसने दुबारा कोशिश की….

इस तरह उसने कोशिश जारी रखी.

बार बार लकड़ी का टुकड़ा सलाखों से टकरा कर आवाज पैदा करता था.

सो लकड़ी का टुकड़ा सलाखों में फंसा नहीं पर उस आवाज से एक कुत्ता आकर्षित हो कर खिड़की के पास आ कर देखने लगा. और इस तरह लकड़ी के टुकड़े को बारबार आ कर सलाखों से टकराता देख वो भौंकने लगा.

उसे भौंकते देख और तीन चार कुत्ते आ गए और सभी लकड़ी के टुकड़े को देख भौंकने लगे…

इस तरह कुत्तो की सामूहिक भौंक काफी दूर, गढ्ढे के दूसरी और खड़े जुगल तक पहुंच पाई…

खेर.

क्या लकड़ी के उस टुकड़े को खिड़की के सलाखों में फ़साने में झनक कामियाब होगी?

जो इस वक्त अपने बदन के सारे वस्त्र - ब्रा पेंटी तक को दूसरे कपड़ों के साथ जोड़ जोड़ कर डोर बना कर यह कोशिश कर रही है?

बिल्कुल नग्न अवस्था में!

***


चांदनी

चांदनी भी इस वक्त बिलकुल नग्न अवस्था में थी …

पूना से मुंबई की सफर में लाइट ड्रेसिंग ठीक रहेगा इस ख़याल से उसने एक क्रीम कलर का टीशर्ट और जींस की पेंट पहने थे.

जो अब अजिंक्य के सोफे पर पड़े थे. बगल में उसकी ब्रा और पेंटी भी….

और अजिंक्य के आदेश पर वो मूड कर अपने नितंब उसे दिखा रही थी.

अजिंक्य अपने पेंट की ज़िप खोलकर अपना लिंग सहलाते हुए चांदनी के नितंब देख कर उत्तेजना से बोला.

‘यस…यस…यस…!! चांदनी —--उफ्फ्फ क्या नजारा है! उफ्फ्फ उफ्फ्फ्फ़ उफ्फ्फ… ऐसे ही मैंने तुम्हारा नाम ‘गांड सुंदरी’ नहीं रखा…!’

***


जहां दो कन्या निर्वस्त्र हो चुकी है. - दोनों की नग्न हो जाने की वजह भिन्न भिन्न किस्म की खुजली है…


वहां -क्या जुगल सही वक्त पर इस बंगले पर पहुंच पाएगा ?

(२ -ये तो सोचा न था…विराम, क्रमश:)
Nice update 😊
 

AssNova

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२४ – ये तो सोचा न था…( यह प्रकरण पुनः लिखा गया है)
Dhyanyawaad sir, aab thodha shi laga !! Anna wali baat pe bhi santushti mili.
२५ – ये तो सोचा न था…
Waah , badhi badhi jaldi khatarnaak updates de rhe hain aap to.
Aur tulika to badhi mahir khiladhi lagti hai , pata nhi kyu aisa lag rha hai jaise tulika bhi kuch ulta sidha karegi pakka


ओके. शादीशुदा हो तो प्यार के लिए अवेलेबल नहीं...सिर्फ सेक्स कर सकते हो?
ye Jhanak ko kis kisse pyaar hai bhai , baap se bhi , jugal se bhi
aur iska baap hai kaisa jo apni beti se aise khatarnaak kaam karwata hai

aur ek ye chandini hai bechari , khud masubato me ghusti ja rhi hai
sach me badhi murkh stri hai .... bas kuch galat na ho hamari heroine ke saath
अजिंक्य के आदेश पर

>:(>:(💢 is Ajinkya ka to L*** katwa do,

vaise writer sahab aap ki bhi alag hi fetish hai ghar ki aurton ko bahar ke gundo ke samne nagna karne ki :rolleyes: , pahle shalini ko aur aab bechari chandini
khair is update ko padhne ke baad aab raha nhi ja rha , jitna late hoga update me utna hi gussa ubalta jayega ajinkya ke liye



!!!!!!!!!!!!!!!!! KEEP UP THE GOOD WORK & KEEP UPDATING !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
 

aman rathore

Enigma ke pankhe
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२६ – ये तो सोचा न था…

[(२५ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :
‘तुम्हारी कॉलेज तो नहीं आता था पर तुम्हारी कॉलेज के बाहर कुछ मनचले नौ जवान खड़े हो कर कॉलेज की लड़कीओ को सताते थे वो याद है?

‘मतलब?’ चांदनी और टेन्स हो गई.

‘मैं उन मनचले लड़को में से एक था.’

‘फ़ालतू बातें जाने दो अजिंक्य, तुम मुझे यहां क्यों ले आये हो?’

‘डिटेल में बताऊं या शॉर्ट में?’

‘एक वाक्य में बताओ.’

‘तुम्हारी गांड की वजह से. चांदनी, यहां मैं तुम्हे तुम्हारी गांड की वजह से ले आया हूं.’

यह सुन चांदनी भौचक्की रह गई… ]



जुगल

अन्ना के घर के आसपास लगे हुए रास्तों पर कार घुमा घुमा कर जुगल थक गया. उसे लगा यह तो कोई तरीका नहीं हुआ किसी को ढूंढ़ने का !

पर क्या करना चाहिए? भाभी का फोन भी तो नहीं लग रहा था?

उसने झनक को फोन लगाया. वो भी आउट ऑफ़ कवरेज!

जुगल फ्रस्ट्रेट हो गया. कार के स्टीयरिंग पर सर झुका कर बैठ गया…

***


जगदीश

चाय पीने के बाद शालिनी ने जगदीश को धीमी आवाज में पूछा. ‘अब ठीक है आपको? या दर्द हो रहा है अब भी?’

‘अब दर्द नहीं, और मालिश की फिलहाल जरूरत नहीं.’

‘पक्का?’

‘मैं एक बार सूझन कम हुई कि नहीं वह चेक कर लेता हूं.’ कह कर जगदीश वॉशरूम जाने के लिए उठा. सुभाष ने बिल चुका दिया और सेलफोन पर बात करने लगा.

वॉशरूम में जगदीश ने अपने अंडकोष का मुआयना किया. शालिनी की मेहनत ने असर दिखाया था. सूझन नहीं के बराबर थी. न ही दर्द रहा था. वो मुतमइन हो कर वॉशरूम के बाहर निकला.

वॉशरूम के बाहर का पैसेज बहुत संकरी गली जैसा था. होटल से उस गली में आते पहले लेडीज़ वॉशरूम था फिर कोने में जेंट्स वॉशरूम. उस गली में एक वक्त एक ही आदमी गुजर सकता था. जगदीश उस गली के बीच पहुंचा तभी तूलिका उस गली में सामने से दाखिल हुई. जगदीश ने तेजी से गली के बाहर निकलने की कोशिश की पर वो और तूलिका आमने सामने हो ही गए. जगदीश ने अपने आपको गली की दीवार के साथ बिलकुल सटा कर तूलिका को जाने का रास्ता दिया पर तूलिका जगदीश के शरीर से खुद के शरीर को रगड़ कर आगे जाने के बजाय रुक गई. जगदीश फंस कर रुक गया. दोनों के चेहरे मुश्किल से आधे फुट की दूरी पर थे…जगदीश ने ऑक्वर्ड फील करते हुए कहा. ‘प्लीज़ आगे बढ़िए तूलिका दीदी…’

‘दीदी?’ तूलिका ने आंखें नचा कर मुस्कुरा के पूछा.

‘आप मोहिते की दीदी हो तो मेरी भी दीदी हुई.’

‘और सुभाष की बीवी हूं तो तुम्हारी क्या हुई?’ तूलिका ने हंस कर पूछा.

दोनों संकरी गली में लगभग चिपके से खड़े थे. तूलिका यह स्थिति एन्जॉय कर रही थी और जगदीश अनकम्फर्टेबल महसूस कर रहा था.

‘आप तब भी मेरे लिए दीदी ही रहोगी...अब प्लीज़ जाइए, मुझे भी जाने दीजिये.’

अचानक तूलिका ने अपना चहेरा जगदीश के चहेरे की और बढ़ाया और जगदीश को कुछ समझ में आये उससे पहले तूलिका ने अपनी जीभ से जगदीश के होठ चाटना शुरू कर दिया…

‘आप…’ ऐसा जगदीश बोलने गया तब तूलिका ने अपनी जीभ जगदीश के बोलने के लिए खुले होठों के बीच डाल दी, जगदीश बोल नहीं पाया और एक अप्रत्याशित जीभ युक्त चुंबन हो गया. जगदीश अपसेट हो गया. तूलिका हंस कर आगे खिसकी. जगदीश बाहर निकलने फ्री हुआ. अपने होंठों को पोंछते हुए उसने नाराजगी से कहा.



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‘ये क्या हरकत हुई! मैं आपको दीदी कह रहा हूं और आप-’

तूलिका ने हंस कर कहा, ‘बड़ी दीदी हूं तुम्हारी, लाड तो करूंगी ना अपने भाई से?’

जगदीश कोई जवाब दिए बिना वहां से निकल कर शालिनी बैठी थी वहां चला गया.

***


झनक


वो जहां गिर पड़ी थी उस तहखाने जैसी जगह में झनक को शुरू में तो कुछ समझ में नहीं आया की वो कहां आन पड़ी है… धीरे धीरे अंधेरे से उसकी आंखें अभ्यस्त हुई. उसने अपने मोबाइल की टॉर्च से उस जगह के अंधेरे को चीरते हुए मुआयना किया. वो एक स्टोर रूम जैसी जगह थी छोटे मोठे बक्से और भंगार सामान बिखरा पड़ा था. एक दीवार के बहुत उपरके हिस्से में -उस तहखाने की छत को लग कर एक छोटी सी खिड़की दिख रही थी. पर उस खिड़की तक की ऊंचाई कमसे कम आठ फुट थी. और इस आठ फुट को तय करने का कोई तरीका नहीं था…

***


चांदनी

चांदनी भौचक्की रह गई क्योंकि उसने ऐसी भाषा कभी बोली या सुनी नहीं थी. और किसी ने उससे ऐसी भाषा में कभी बात नहीं की थी.

‘अजिंक्य, बोलने की तमीज रखो.’

‘सॉरी चांदनी, मुझे नहीं पता की गांड को गांड नहीं कहते तो क्या कहते है! क्यों तुम लोग क्या कहते हो?’

‘बेकार बहस नहीं करनी मुझे, मैं यहां से जा रही हूं.’ चांदनी ने सोफे पर से उठते हुए कहा.

‘अरे वाह ! तुम चली जाओगी तो मैं क्या जुगल की गांड मारूंगा ?’

चांदनी सहम गई.

‘बैठ जाओ चांदनी. अगर जुगल की खैर चाहती हो तो…’

चांदनी विवश हो कर बैठ पड़ी…

***


जुगल

रास्ते के किनारे कार रोक कर ‘अब क्या करें?’ की मानसिकता में बैठे हुए जुगल ने देखा की रास्ते के बगल की झाड़ी में कोई भागता हुआ गया. — कौन होगा? क्या चांदनी भाभी हो सकती है? - जुगल एकदम सावध हो गया. उसे लगा की भाभी हो यह संभावना बिलकुल है क्योंकि भाभी चल कर गई होगी, हो सकता है अंधेरे का लाभ उठा कर भाग गई हो और वो ही हो?जिसे मैंने देखा!

जुगल कार से बाहर निकल कर झाडी में तेजी से गया….

***


झनक

उस तहखाने में हवा की कोई व्यवस्था नहीं थी. कुछ ही देर में झनक पसीना पसीना हो गई… इतने में अंधेरे में वो बक्सों के ढेर से टकरा गई और एक बक्सा उस के सिर पर गिर पड़ा. उस बक्से में कुछ पावडर जैसा था जो झनक के कपड़ो और शरीर पर बिखर गया. ‘यह कौन सा पाउडर है?’ सोचते हुए झनक ने उस हाथ पर लगे पाउडर को सूंघ कर देखा, गंध से कुछ समझ में नहीं आया पर—-

— पर कुछ ही पलों में झनक को समझ में आ गया की वो पाउडर नहीं था बल्कि खुजली का चुरा था… क्योंकि झनक का सारा बदन खुजलाना शुरू हो गया…

***


चांदनी

‘चांदनी, मैं तुम पर कोई जबरदस्ती नहीं करूंगा. एक सरल सौदा है. - तुम मेरी बात मानो, मैं जुगल की जान नहीं लूंगा. तुम मेरी बात मानने से मना कर दो. मैं जुगल की जान ले लूंगा.मैंने कुछ करना नहीं सिर्फ अन्ना को एक कॉल करना है… ’

‘जुगल है कहां ?’

‘सलामत जगह पर. वो कहां है, यह मुझे बस अन्ना को बताने की देर है. दूसरे ही पल अन्ना के आदमी उसकी जान लेने पहुंच जाएंगे.’

चांदनी उलझ गई.

‘बात करोगी जुगल से?’ अजिंक्य ने पूछा.

-क्या बात करूं !- चांदनी ने सोचा.

अजिंक्य ने फोन लगा कर कहा. ‘जुगल से बात कराओ…’

चांदनी ने आतंकित हो कर अजिंक्य की ओर देखा…

अजिंक्य फोन कान पर लगाए हुए था. अचानक बोला. ‘ओह, नहीं नहीं उसे मारो मत…’ फिर एकदम गरज कर बोला. ‘मैंने बोला क्या हाथ उठाने? इडियट्स ! मुझे बात करनी थी उससे और वो कराह रहा है…! अब खबरदार उसे एक उंगली भी लगाईं तो -’ कह कर अजिंक्य ने गुस्से से फोन काट कर पटक दिया.

चांदनी सहम गई- जुगल को पीटा जा रहा है! पर क्यों! कौन है ये अजिंक्य, ये अन्ना जैसे लोग और क्यों ऐसा वहशीपन है इनमे?

इतने में अजिंक्य चांदनी की ओर देख कर बोला. ‘आई एम सॉरी, इस लाइन के लोग बहुत जाहिल होते है.. पर मैंने बता दिया है -अब वो जुगल पर हाथ नहीं उठाएंगे - कुछ देर में मैं तुम्हारी बात करता हूं -’

चांदनी आघात से दिग्मूढ हो गई थी.

‘पर आप लोग जुगल को मार क्यों रहे हो?’ चांदनी जो बात गुस्से में पूछना चाहती थी वो पूछते पूछते रुआंसी हो गई… उसकी कल्पना में मार खाता हुआ जुगल आ रहा था - उसकी आंखें भर आई…

‘जुगल ने कोई हरकत की होगी उनसे भाग निकलने की या सामने अपनी ताकत दिखाने की - खेर, मैंने कह दिया है तुम्हारे सामने अब कोई नहीं छुएगा उसे- वादा.’

चांदनी ने अपनी आंखें पोंछते हुए अपने हाल को कोसा….

‘अब मैंने बोला उस बारे में बताओ.’ अजिंक्य ने पानी की बोतल से पानी पीते हुए कहा.

चांदनी ने चौंक कर अजिंक्य के सामने देखा.

‘बोलो, टाइम वेस्ट मत करो. मैं कॉल करूं अन्ना को या मेरे सौदे की ऑफर से तुम जुगल को बचाने में इंटरेस्टेड हो?

चांदनी को समझ में आ गया की उसके पास ज्यादा चॉइस है नहीं.

‘मुझे क्या करना होगा?’ चांदनी ने धड़कते हृदय के साथ पूछा.

‘शुरुआत कपडे निकालने से करो.’ अजिंक्य ने कहा.

चांदनी को आघात लगा. वो अजिंक्य को ताकती रह गई.

अजिंक्य ने कुछ पल चांदनी को निहारा फिर अपना फोन हाथ में लेते हुए कहा.

‘इट’ स ओके चांदनी, आई केन अंडरस्टेंड…’ और फोन डायल करने लगा.

‘एक मिनिट…’ चांदनी ने टेन्स हो कर कहा.

अजिंक्य ने चांदनी की ओर देखा.

चांदनी ने कहा. ‘मैं कपड़े निकालती हूं…’

अजिंक्य के चेहरे पर मुस्कान आई…

***


जुगल

झाडी में दिशाहीन सा एक अंदाजे से कुछ देर दौड़ने के बाद जुगल एक डेड एन्ड जैसी जगह पहुंच गया.

सामने खाई जैसा लंबा गड्ढा था. आगे जाने का कोई रास्ता नहीं था…

जुगल को लगा वो क्या मूर्खों की तरह हवा में हाथ पैर मार रहा है!

उसे मुंबई में चिलम बाबा के साथ की मुलाकात याद आ गई…


पूना निकलने के आठ दस रोज पहले जुगल चिलम बाबा से मिला था और बताया था की वो पूना जाने वाला है. तब बाबा ने हँसकर कहा था. ‘जाओ जाओ जरूर जाओ. एक नया सबक सीखोगे पूना की मुलाकात से..’

‘कौन सा सबक?’ जुगल ने पूछा था तब बाबा ने कहा था : ‘हवा पर कोई पहरा नहीं होता और गांड पर कोई पर्दा नहीं होता.’

जुगल यह सुन कर भौचक्का रह गया था और बाबा ने हंसते हुए समझाया था : शून्य बुद्धि ! इस के माने है की हवा को लाख कोशिशों के बावजूद आप बांध नहीं सकते वो आखिर बह निकलती है और अपनी गांड को लाख कोशिशों के बावजूद आप बचा नहीं सकते, वो मार दी जाती है…’


जुगल को लगा इस वक्त उसके साथ जो हो रहा है उसी के बारे में शायद चिलम बाबा उसे आगाह कर रहे थे! पता नहीं चांदनी भाभी कहां किस हाल में होगी और मैं चाह कर भी कुछ कर नहीं पा रहा - चिलम बाबा की बात इस स्थिति के साथ बिल्कुल फिट बैठ रही है!

इतने में उसका ध्यान खाई के उस पार के छोटे से बंगले के कंपाउंड में भोंकते हुए कुत्तो की आवाज पर गया.

वो कुत्ते एक छोटी सी खिड़की की ओर देख कर भौंक रहे थे…

क्या होगा उस खिड़की में जो कुत्ते भौंक रहे है?

कहीं कुदरत उसे कोई इशारा तो नहीं दे रही ?


जब चिलम बाबा की बातें सुनकर जुगल को पूना की मुलाकात को ले कर एक भय लगने लगा था. तब बाबा ने कहा था - ‘चिंता मत कर, खिड़कियां खुल जायेगी…’

उन कुत्तो को उस खिड़की की और देख भौंकते देख जुगल को लगा : शायद मुझे वहां जाना चाहिए…

वो उलटे पैर रास्ते की और दौड़ा - जहां उसने अपनी कार छोड़ी थी…

***


झनक

जी हां, जुगल ने अभी देखे हुए भौंकते हुए कुत्ते उसी खिड़की को देख रहे थे जिस खड़की को तहखाने से झनक ने देखा था.

पर कुत्ते भौंक क्यों रहे थे?

क्योंकि झनक ने एक लकड़ी का टुकड़ा फेंक कर उस खड़की के सलाखों में फ़साने की कोशिश की थी…

कैसे?

यह जानने हमें पांच मिनिट पीछे जाना पड़ेगा जब खुजली वाला चूर्ण झनक के शरीर पर बिखर गया था….

कुछ ही देर में झनक खुजली से परेशान हो गई और उसे अपने कपडे निकालने पड़े… वो जुगल को बचाने के लिए अन्ना के घर में देहाती कपड़ो में घुसी थी - चोली, घाघरा और ओढ़नी… इन सारो कपड़ो में खुजली का पाउडर जैसा चूर्ण पसर गया था… मजबुरन उसे सब निकाल देना पड़ा. इस कपडे निकालने की हरकत में उसकी ब्रा में भी खुजली का पाउडर चला गया. सो ब्रा भी निकाल दी.. अब पेंटी में भी जलन होने लगी थी… झनक ने झल्ला कार पेंटी भी निकाल दी और पूर्ण नग्न हो कर अपने कपडे झटकने शुरू किये…. कुछ देर सारे कपड़े झटकने के बाद वो अपनी इस स्थिति को कोसते हुए क कर नंगी ही फर्श पर बैठ पड़ी. तब उसकी नजर एक लकड़ी के टुकड़े पर पड़ी.

झनक स्मार्ट लड़की थी. उसने लकड़ी का टुकड़ा देखा, तहखाने की छत से सटी खिड़की देखि और अपने कपड़ो का ढेर देखा…

और तुरंत अपने सारे कपड़े एक दूसरे से बाँध कर उसने एक डोर बना दी. उस डोर के एक छोर पर उस लकड़ी के टुकड़े को बराबर बीच के हिस्से में बांधा और फिर जोर लगा कर फेंका उस खिड़की की ओर - इस उम्मीद में की वो लकड़ी का टुकड़ा खिड़की की सलाखों में फंस जाए..

लकड़ी का टुकड़ा सलाखों से टकरा कर फिर झनक के पास आ गया…

झनक ने उम्मीद नहीं छोड़ी. उसने दुबारा कोशिश की….

इस तरह उसने कोशिश जारी रखी.

बार बार लकड़ी का टुकड़ा सलाखों से टकरा कर आवाज पैदा करता था.

सो लकड़ी का टुकड़ा सलाखों में फंसा नहीं पर उस आवाज से एक कुत्ता आकर्षित हो कर खिड़की के पास आ कर देखने लगा. और इस तरह लकड़ी के टुकड़े को बारबार आ कर सलाखों से टकराता देख वो भौंकने लगा.

उसे भौंकते देख और तीन चार कुत्ते आ गए और सभी लकड़ी के टुकड़े को देख भौंकने लगे…

इस तरह कुत्तो की सामूहिक भौंक काफी दूर, गढ्ढे के दूसरी और खड़े जुगल तक पहुंच पाई…

खेर.

क्या लकड़ी के उस टुकड़े को खिड़की के सलाखों में फ़साने में झनक कामियाब होगी?

जो इस वक्त अपने बदन के सारे वस्त्र - ब्रा पेंटी तक को दूसरे कपड़ों के साथ जोड़ जोड़ कर डोर बना कर यह कोशिश कर रही है?

बिल्कुल नग्न अवस्था में!

***


चांदनी

चांदनी भी इस वक्त बिलकुल नग्न अवस्था में थी …

पूना से मुंबई की सफर में लाइट ड्रेसिंग ठीक रहेगा इस ख़याल से उसने एक क्रीम कलर का टीशर्ट और जींस की पेंट पहने थे.

जो अब अजिंक्य के सोफे पर पड़े थे. बगल में उसकी ब्रा और पेंटी भी….

और अजिंक्य के आदेश पर वो मूड कर अपने नितंब उसे दिखा रही थी.

अजिंक्य अपने पेंट की ज़िप खोलकर अपना लिंग सहलाते हुए चांदनी के नितंब देख कर उत्तेजना से बोला.

‘यस…यस…यस…!! चांदनी —--उफ्फ्फ क्या नजारा है! उफ्फ्फ उफ्फ्फ्फ़ उफ्फ्फ… ऐसे ही मैंने तुम्हारा नाम ‘गांड सुंदरी’ नहीं रखा…!’

***


जहां दो कन्या निर्वस्त्र हो चुकी है. - दोनों की नग्न हो जाने की वजह भिन्न भिन्न किस्म की खुजली है…


वहां -क्या जुगल सही वक्त पर इस बंगले पर पहुंच पाएगा ?

(२ -ये तो सोचा न था…विराम, क्रमश:)
:superb: :good: awesome update hai rakeshhbakshi bhai,
Behad hi shandaar aur lajawab update hai,
wow tulika to bilkul kamal hi hai kya mast tarika hai uska apne bhai ko laad karne ka :lol: ,
vahin idhar bechari jhanak aur chandani dono hi musibat mein fans gayi hai,
Ab dekhte hain ki jugal samay par pahunch pata hai ya nahin
 

Game888

Hum hai rahi pyar ke
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Superb update
 
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