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koshish rahegi ki raat rak post karun--------Writer sahab aaj ka update kab tak milega
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Mins update aane ke chans 50-50 h kyakoshish rahegi ki raat rak post karun--------
All i can say : m writing. Hope i finish in time-Mins update aane ke chans 50-50 h kya
धन्यवाद भाई --ये दोनों भाई अपनी अपनी पत्नियों के साथ कौन सा मुहुर्त में पुणे जाने के लिए निकले थे ? उनके उपर से दुश्वारियां खतम न होने का नाम ही नहीं ले रही है ।
उन्होंने घर से निकलने से पहले दही या प्रसाद नहीं खाया था क्या ? या घर से निकलते ही काली बिल्ली ने रास्ता काट दिया था ? या किसी ने घर से निकलने के दौरान छींक दिया था ?
ये तो गजब का गोरखधंधा चल रहा है उन लोगों के साथ ।
खैर , बहुत ही मजा आ रहा है आप की कहानी पढ़कर । कहानी में सस्पेंस और थ्रिल तो है ही , रोमांच भी बहुत अधिक है । कहानी में जब भी इरोटिका डालने का प्रयास किया है वह बिल्कुल ही परफेक्ट तरीके से किया है । और लेखनी के लिए तो कहना ही क्या ! ब्रिलियंट ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग राकेश बक्सी भाई ।
चांदनी का पास्ट बहुत ही दुखदायक था और शायद उसी के कारण वो ऐसी जटिल स्तिथियों में तुरंत ही समर्पण कर देती है बजाय उनसे लड़ने के।२७ – ये तो सोचा न था…
[(२६ – ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :
चांदनी भी इस वक्त बिलकुल नग्न अवस्था में थी …
पूना से मुंबई की सफर में लाइट ड्रेसिंग ठीक रहेगा इस ख़याल से उसने एक क्रीम कलर का टीशर्ट और जींस की पेंट पहने थे.
जो अब अजिंक्य के सोफे पर पड़े थे. बगल में उसकी ब्रा और पेंटी भी….
और अजिंक्य के आदेश पर वो मूड कर अपने नितंब उसे दिखा रही थी.
अजिंक्य अपने पेंट की ज़िप खोलकर अपना लिंग सहलाते हुए चांदनी के नितंब देख कर उत्तेजना से बोला.
‘यस…यस…यस…!! चांदनी —--उफ्फ्फ क्या नजारा है! उफ्फ्फ उफ्फ्फ्फ़ उफ्फ्फ… ऐसे ही मैंने तुम्हारा नाम ‘गांड सुंदरी’ नहीं रखा…!’
***
जहां दो कन्या निर्वस्त्र हो चुकी है. - दोनों की नग्न हो जाने की वजह भिन्न भिन्न किस्म की खुजली है…
वहां -क्या जुगल सही वक्त पर इस बंगले पर पहुंच पाएगा ]
चांदनी को अजिंक्य ने निर्वस्त्र कर दिया था. और अजिंक्य ने उसे अपनी कमर झुकाते हुए नितंब उभार कर खड़े होने कहा था. चांदनी सोफे को थाम कर अजिंक्य के कहे अनुसार झुक कर कर खड़ी थी.
अजिंक्य अपने लिंग को तेजी से हिलाते हुए चांदनी के नितंबों को नजरो से चूसते हुए कह रहा था :
‘आ…. ह्ह्ह्हह छिनाल…. कॉलेज में जब तुझे चलते हुए देखता था तब ये लोडा घोड़े की तरह हिनहिनाकर तेरी गांड पर घुड़दौड़ करने को तरस जाता था पर तब तू एक ख़्वाब थी…. थियेटर के परदे पर लोअर स्टॉल की ऑडियंस आइटम डांस करनेवाली के ठुमके पर जिस तरह आंहें भर कर अपना सामान सहलाती रह जाती है वैसे मैं भी अपने लोडे को सहला कर तड़प जाता था. किसी तरह समझाता था खुद को की चांदनी तो एक परी है - अमावस के अंधेरे उसे कभी पा नहीं सकते….
पर आज तो चमत्कार हो गया! ‘
और वो गाने लगा…
तू मेरे सामने है…
तेरी गांड है खुली
तेरा बदन है नंगा….
मैं भला होश में कैसे रहूं !
उफ्फ्फ्फफ्फ्फ्फ़ चांदनी चांदनी चांदनी….’ बोलते हुए अजिंक्य ने इतनी तेज गति से अपने लिंग को हिलाने लगा की इस विचित्र परिस्थिति को एक पल बिसर कर चांदनी को यह टेंशन हो गया की अजिंक्य का लिंग ऐसी पगलाई हुई जोशीली हरकत से कहीं टूट न जाए!
‘मादरचोद…. बहुत तड़पाया है तेरी इस गदराई गांड ने…. आज तो इसे काट काट के नोच डालूंगा….’
चांदनी एक बेबस अबला की तरह अजिंक्य के रहमो करम पर थी.
अजिंक्य अपनी इस चाल पर इस तरह कामुक ख़ुशी से इतरा रहा था जैसे ऊंची हरी हरी घांस के मैदान की बाड तोड़ कर घुस जाने में किसी सांढ़ को विजयानंद हो सकता है.
इस क्षण निसंदेह रूप से अजिंक्य खलनायक और चांदनी पीड़िता थी.
पर सत्य क्या क्षणों के टुकड़ो में होता है?
जब अजिंक्य अपना लिंग हिलाते हुए चांदनी को गंदी गंदी गालियां दे रहा था तब चांदनी की योनि में उन गंदे शब्दों से सनसनी हो रही थी. ‘मादरचोद, रंडी, छिनाल, कुतिया… यह सारे शब्द, यह अपमान बोध उसे अतीत के उस दायरे में ले जा रहे थे जब चांदनी की मां ने चांदनी के पिता की मौत के बाद दूसरी शादी की थी और वो सौतेला बाप इतना विकृत था की जब तक वो चांदनी की मां को जलील न करता, गाली देते हुए ,पीटते हुए संभोग नहीं करता था तब तक उसे सुकून नहीं मिलता था. चांदनी इस गाली गलोच और जुल्म की हवा में बड़ी हुई थी. जब तक चांदनी की मां के साथ दुर्व्यवहार नहीं होता था, रात का खाना नहीं नसीब होता था.
खाना एक जरूरत थी, और एक मात्र आनंद था उस स्थिति में.
पहले मां का अपमान, पिटाई, गाली गलोच, फिर खाना और खाने से मिलता संतोष - यह क्रम चांदनी ने जिया था.सालोसाल-
उसके संप्रज्ञात मन ( सबकॉन्शियस) में यह क्रम एक सिद्धांत की तरह अंकित हो गया था, इतनी दृढ़ता से की फिर एक मकाम वो आ गया की अपमानबोध के आलावा मिलता खाना उसे आनंद नहीं दे सकता था…
किसी पिंजरे में कैद चूहे को अगर आप रोजाना तबले की थाप के साथ खाना दो तो उसके दिमाग में यह सिस्टम बन जाती है की तबले की थाप यानी खाना मिलना.
यह सिस्टम जब चूहे के दिमाग में रूढ़ हो जाए तब उसे अगर तबले की थाप के बगैर खाना दिया जाय तो उसे कभी तृप्ति नहीं होती - चाहे खाना रोज की तुलना में अधिक क्यों न परोसा जाए…
सत्य की छवि बहुत विशाल होती है. जिस तरह डायनोसोर की प्रोफ़ाइल पिक पासपोर्ट साइज़ में समा नहीं सकती उसी तरह सत्य को भी एक लम्हे में परखा नहीं जा सकता….
अगर आप से यह कहा जाय की इस क्षण चांदनी भाग्यशाली थी और अजिंक्य केवल एक निमित्त तो?
अगर आप को यह पता हो की चांदनी मास्किस्ट (स्वपीड़न धारी) है तो शायद आप मेरी बात समझेंगे.
पर यह बात अत्यंत संकुल है, अत्यंत उलझी हुई, और ज्यादा पेचीदी इसलिए क्योंकि खुद चांदनी को भी अपने बारे में इस हकीकत का अंदाजा नहीं की वो मास्किस्ट (स्वपीड़न धारी)है…
यह ऐसी विडंबना है
की जो भोगी है वो वास्तव में अन्य के आनंद का निमित्त मात्र है इस मुगालते में की वो कुछ भोग रहा है.
और जो पीड़ित है वो उतना बेहतर भोगी है जितनी पीड़ा उसे पहुंचती है…
इसलिए प्रिय पाठक
चांदनी को सहानुभूति की आवश्यकता निस्संदेह रूप से है किन्तु इस बात की के उसे अपने सुख की चाबी कब मिलेगी!
यही वजह थी की जगदीश जैसा सर्व गुण संपन्न पति चांदनी को आवश्यक कामसुख कभी नहीं दे पाया… क्योंकि जगदीश एक भद्र पुरुष है. और चांदनी को आनंद हमेशा अभद्र केप्स्युल में मिला था…
काश उसे पता होता की अजिंक्य उसकी फेवर कर रहा है उसे प्रताड़ित करके—
पर
चांदनी को यह पता नहीं था और वो इस तरह एक अनजान पुरुष के सामने खुद को नुमाइश की चीज बनाते हुए देख कुंठित मनोदशा में धंसी जा रही थी, उसे लग रहा था जैसे वो वेश्या बन गई है… अपना जीवन उसे श्राप लगने लगा था…
अजिंक्य की हरकतें देख वो शर्म और हीनता के भाव से सिकुड़ी जा रही थी - समांतर रूपसे कामोत्तजना महसूस करते हुए…
‘बोल ओ चूतड़ों की महारानी - तेरी इस हरभरी गांड के साथ क्या करना चाहिए?’ अजिंक्य ने अपने लिंग को तेजी से हिलाते हुए आंखें मूंद कर पूछा. चांदनी के पास न तो इस सवाल का जवाब था न तो उसे समझ में आया की यह सवाल उसे पूछा गया है या अजिंक्य अपने आप में पागलो की तरह बड़बड़ा रहा है. अजिंक्य की गालियों से उसे बहुत बुरा लग रहा था. यह वो सारे शब्द थे जो वो भुलाना चाहती थी, हर गाली चांदनी के दफनाये गए अतीत की कब्र की मिटटी उधेड़ रही थी जिस कब्र में चांदनी का बिता हुआ कल दबा हुआ था……पुराना जख्म ताजा हो कर पुराने दर्द को नई पीड़ा के साथ देने लगा.
‘रंडी अब ये बता की तेरे चूतड़ इतने मटकते क्यों है? साली तू चीज क्या है ?’ अजिंक्य इस तरह सवाल पूछ रहा था जैसे चांदनी के नितंब ने अपनी डोलन शैली से हॉस्टल का कोई कानून तोडा हो और अजिंक्य उस हॉस्टल वार्डन हो!
‘जवाब दे बाप चोदी..... !’ अजिंक्य लिंग को हिलाते हुए जोरों से दहाड़ा…
अजिंक्य की हर गाली चांदनी की योनि में एक रस का नया स्रोत खोले जा रही थी…
***
जुगल उस विस्तार की गलियों में उलझ कर वो घर ढूंढ रहा था जिसके कम्पाउंड में उसने कुत्तो को भौंकते हुए देखा था पर जो उसने देखा था वो घर का पिछ्ला हिस्सा था और इस तरह गलियों में भटकते हुए उसे जो भी घर दिख रहे थे वो उनके आगे के हिस्से थे… इसके आलावा रात हो चुकी थी. फिर यह विस्तार जुगल के लिए कतई परिचित नहीं था.
जुगल को लगा एक बार फिर वो मूर्खों की तरह भटक रहा है…
इतने में स्ट्रीट लाइट की रोशनी में उसे एक कम्पाउंड में कोई चीज चमकती हुई दिखी. कुतूहल से अपनी कार रोक कर वो बाहर आया. कम्पाउंड के गेट को पार कर के वो चमकती हुई चीज क्या है यह देखने झुका तो वो अपनी भाभी की पायल को पहचान गया…
ओह तो क्या चांदनी भाभी इस घर में है!
भाभी उस खिड़की में होगी जहां देख कर कुत्ते भौक रहे थे?
पर वो खिड़की? कहां होगी?
फिर उसे कुत्तों के भौंकने की आवाज आई. आवाज का पीछा करते हुए जुगल घर के पिछले हिस्से की ओर पहुंचा, जहां उसे वो खिड़की दिखी.
झनक की लकड़ी का टुकड़ा सलाखों में फंसाने की जद्दोजहद अभी भी जारी थी. यह देख जुगल ने खिड़की में झांका और पूछा. ‘कौन है?’
जुगल की आवाज सुन कर झनक खुश हो गई. ‘जुगल?’ उसने पूछा.
‘हां, पर आप कौन?’ जुगल उलझ गया - यह आवाज तो चांदनी भाभी की नहीं थी. फिर ?
‘घोंचू, मैं हूं, -झनक… ले पकड़ ये लकड़ी का टुकड़ा… ‘ कहते हुए उसने फिर एक बार लकड़ी का टुकड़ा ऊपर की ओर फेंका. जुगल ने वो लकड़ी का टुकड़ा थाम लिया.
‘शाब्बाश, अब खींच मुझे ऊपर….’ झनक ने कपड़ो की डोर को थामते हुए कहा. जुगल को काफी जोर लगाना पड़ा. झनक उस दीवार में लगे कील, गढ्ढे, उखड़ा हुआ प्लास्टर इत्यादि में अपने हाथ पैर फंसा कर खुद को ऊपर की ओर धकेलने की कोशिश करने लगी और जुगल ने अपनी एडी चोटी का जोर लगा दिया…बड़ी मशक्क्त के बाद झनक को उसने ऊपर खिड़की तक खिंचा. खड़की के सलाखों में नंगी झनक को देख वो स्तब्ध रह गया.
‘तुम्हारे कपड़े कहां गये !’ उसने हैरत से पूछा.
‘तुम्हारे हाथों में है…’ जुगल ने हैरान हो कर खुद थामी हुई कपड़ो की डोर देखी.
‘अब इस खिड़की की फ्रेम को खींचों -’ झनकने खिड़की की फ्रेम में दोनों हाथों से लटकते हुए कहा.
इस तरह लटकने से झनक के दोनों स्तन सलाखों के बीच फंस से गये. दोनों स्तन के निपल सलाखों के पार आ कर बाहर झांकने लगे, सलाखों का गेप इतना कम था की पुरे स्तन बाहर नहीं आ पा रहे थे. सलाखों में झनक के दोनों स्तन दब कर इस कदर से फैल कर चपटे हो गए थे मसलन दो फुले हुए बड़े भटूरे किसी ने सलाखों में चिपका दिए हो. वो यहां किस हालात में आया, क्यों आया और सामने कौन है - यह सब बिसरा कर जुगल एक पल के लिए झनक के दोनों स्तनों की इस अजीब झांकी निहारता रह गया. जुगल को इस तरह देखते हुए देख कर झनक गुस्से से कहा. ‘ओ हीरो, बाद में देखना मेरे मम्मे, पहले इस खिड़की की फ्रेम को खींच वर्ना मेरा हाथ छूट जाएगा…’
झनक की बात सुन कर जैसे जुगल होश में आया. उसने उस खिडकी के फ्रेम को उखाड़ने की जी जान लगा कर कोशिश की पर खिड़की की फ्रेम टस से मस नहीं हुई. जुगल ने पसीना पोंछते हुए झनक से कहा.
‘बस एक मिनिट और सब्र -’
और झनक कुछ बोले उससे पहले वो तेजी से घर के आगे की और भागा। झनक ने मुश्किल से अपने आप को सलाखों के सहारे लटकाने का प्रयास जारी रखा. दिक्कत यह थी की उसकी हथेलियां अब दर्द करने लगी थी. ये जुगल क्यों चला गया - कहां चला गया… ऐसा वो सोच रही थी उतने में जुगल अपनी कार वहां ड्राइव करते हुए ले आया… फिर कार से निकल कर दौड़ कर उसने उस कपड़ो की डोर के लकड़ी के टुकड़े वाले छोर को अपनी कार के सेफगार्ड के हिस्से के साथ बांधा और कार में बैठ कर कार को रिवर्स में लिया…. कार की ताकत से अब खिड़की की फ्रेम डगमगाई और आखिरकार उखड कर कार की दिशा में खींचती हुई बाहर निकल आई, साथ में झनक भी… जैसे ही झनक ने बाहर अपना एक पैर टिकाया, जुगल कार रोक कर बाहर दौड़ा आया और झनक को सम्हाल कर बाहर निकाला…
झनक अपने नंगे बदन को हाथों से झाड़ने लगी, जुगल फिर झनक के समप्रमाण शरीर को सम्मोहित हो कर देखता रह गया.
‘क्या तक़दीर है तुम्हारा साला !’ झनक ने कहा. ‘मेरा फ्री शो मिल ही जाता है तुम को देखने!’
यह सुन जुगल झेंप गया और कपड़ो की डोर की गांठे खोलने लगा.
‘क्या कर रहे हो तुम?’
‘कपड़े नहीं पहनोगी? गांठ छोड़ रहा हूं कपड़ो की.’ जुगल ने कहा.
‘ये कपड़े अब नहीं पहन सकती, इनमे खुजली का चुरा फैला हुआ है…फेंक दो, तुम्हे भी खुजली चिपक जायेगी…. मेरा तो अभी भी सारा बदन खुजला रहा है….’ कहते हुए झनक ने चाहते हुए भी अपनी योनि को जुगल से सामने ही खुजलाना पड़ा. जुगल झनक की इस अनचाही शृंगारिक मुद्रा को देखते हुए बोला. ‘झनक ! कितनी सुंदर हो तुम?’
‘फिलहाल सुंदर नहीं बंदर बन गई जो अपना बदन खुजलाते रहते है…’ झनक ने चिढ कर अपनी दोनों कांख बारी बारी खुजलाते हुए कहा. झनक की कांख में बाल के गुच्छे थे, और यूं झनक को अपनी कांख खुजलाते हुए देख जुगल को अजीब उत्तेजना हुई…पर तुरंत उसने अपना होश संभालते हुए अपना शर्ट उतार कर झनक को दिया और कहा.
‘इसे पहन लो.’
झनक ने शर्ट पहना तब तक जुगल ने अपना पेंट उतार दिया और झनक को थमाया.
‘और तुम? ‘
बनियान और अंडरवियर पहने हुए जुगल को निहार कर झनक ने पूछा.
‘कुस्ती लड़ने वाले पहलवान की तरह ऐसे ही रहोगे?’
‘पुरुष कम कपड़ों में हो तो चलता है झनक…’
‘सो स्वीट ऑफ़ यु भैया !’
‘क्या भैया! हम दोस्त है - तुम रिश्ते को नाम देने पर क्यों तुली हो?’
‘जुगल, तुम्हारी मेरे लिए की फ़िक्र एक भाई जैसी लगी इस लिए…. ‘
‘खेर, झनक ,मुझे लग रहा था यहां मेरी भाभी होगी पर तुम मिली! ये देखो भाभी की पायल इस घर के कम्पाउंड में पड़ी मिली.’
पेंट पहनते हुए झनक ने जुगल के हाथ में पायल देखी और कहा. ‘हो सकता है अजिंक्य ने तुम्हारी भाभी को अंदर पकड़ रखा हो, कैद किया हो…’
‘कौन अजिंक्य?’
‘इस घर का मालिक…’
‘तुम जानती हो उसे?’
‘उसी को पकड़ने आई थी…’
‘पकड़ने! -मतलब?’ जुगल को कुछ समझ में नहीं आया.
‘मतलब गया गधे की गांड में, अभी हमें ये पता करना चाहिए की तुम्हारी भाभी कहीं अंदर फंसी हुई है ऐसा तो नहीं!’
‘तो चलो देखते है-’
जुगल घर के आगे के हिस्से की ओर जाने बढ़ा.
‘नहीं जुगल. हम सीधे घर में नहीं जा सकते. अजिंक्य बहुत शातिर है. मैं इज्जत से घर में दाखिल हुई तो इस तहखाने में पहुंच गई… हमें चोरों की तरह इस घर में घुसना पड़ेगा….’
***
झनक और जुगल उस बंगले जैसे घर के पिछले हिस्से की गैलरी में ड्रेनेज पाइप की सहायता से चढ़ कर पहुंचे. गेलेरी में कम्पाउंड के पिछले हिस्से में लहराते बड़े बड़े पीपल और बरगद के पेड़ो की शाखाए झुकी हुई थी. किसी तरह झनक और जुगल ने एक खिड़की को खोला. वो शायद किचन की खिड़की थी. उस खिड़की में दोनों ने झांका तो किचन से लगे हुए हॉल का थोड़ा हिस्सा दिख रहा था. दोनों को झांकने में पेड़ की डालियां आड़े आ रही थी. झुंझला कर जुगल ने पहले पीपल और बरगद की उन डालियों हटाया, पत्ते भी तोड़ कर फेंके तब कहीं जाकर कुछ दिखने लगा.
जुगल और झनक को हॉल का जितना भी हिस्सा दिखा वहां एक आघात जनक दृश्य चल रहा था.
उन्हों ने देखा की एक स्त्री नग्न शरीर के साथ हॉल के सोफे को हाथों से थामे औंधी, अपना सिर नीचे झुका कर खड़ी थी….
उस स्त्री के अदभुत नितंब स्पष्ट दिख रहे थे. जुगल और झनक उन नितंबो के दर्शन से मंत्रमुग्ध हो गये… अत्यंत सुंदर, गदराये, संतुलित गोलाकार, विशाल किंतु आंखों को अखरे उतने बड़े नहीं पर रमणीय लगे उतने फैलावे में व्याप्त थे.
झनक और जुगल ने एक साथ सोचा : इस स्त्री का चेहरा कितना सुंदर होगा?
क्षण भर में जुगल के लिंग में तनाव फ़ैल गया…
झनक ने जुगल के कान में पूछा ; ‘ये हे क्या तुम्हारी भाभी?
और जुगल को करंट लगा… क्या यह चांदनी भाभी हो सकती है? पर कैसे पता चलेगा? उस स्त्री का सिर झुका हुआ था…
इतने में उनको एक पुरुष की आवाज सुनाई दी - जो शायद हॉल में होगा पर दिख नहीं रहा था..
***
‘और नीचे झुक थोड़ा और नीचे…’ अपने लिंग को हिलाते हुए अजिंक्य चिल्लाया.
चांदनी ने खुद को सोफे पर और झुकाया….
‘और और, बहन की लोडी -और झुक तेरी चुत नहीं दिख रही ठीक से… और झुक-’
और एक गंदी गाली सुन कर चांदनी को अपनी गैरत और टूटती महसूस हुई, उसकी योनि में और कामरस उभरा…अपने दोनों पैरो को उसने ज्यादा चौड़े किये ताकि झुकने में आसानी हो, फिर अधिक झुक कर अपनी योनि दिखाने की कोशिश करते हुए चांदनी ने पूछा. ‘अब ? ठीक से दिख रहा है…?’
***
गेलेरी में किचन की खिड़की से झांक कर देखते सुनते जुगल और झनक भी इस दृश्य और संवाद से कामोत्तेजित होने लगे. पर उस स्त्री की आवाज सुन कर जुगल को लगा की यह आवाज चांदनी भाभी जैसी है… उसने परखने के लिए और गौर से देखा -
***
दूसरी ओर जब अधिक झुक कर अपनी योनि दिखाने की कोशिश करते हुए चांदनी ने पूछा. ‘अब ? ठीक से दिख रहा है…?’
तब चांदनी के इस प्रश्न से अजिंक्य अति उत्तेजित हो कर, उठ कर तेजी से चांदनी के पास गया और चांदनी के दोनों नितंबो को पकड़ कर बेदर्दी से मसलते हुए कहा. ‘कितनी शरीफजादी थी कॉलेज के दिनों में तू ! ..... और अब नंगी हो कर यूं झुक झुक कर अपनी चूत दिखाती है और पूछती भी है की - ठीक से दिख रहा है? वाह रे मेरी संस्कारी रंडी!’
अपमान बोध के इस झटके से चांदनी की योनि से रस टपक कर जमीं पर गिरने लगा…
***
उन अदभुत नितंबों का कामुक मर्दन और उस स्त्री की योनि से टपकते हुए रस को देख जुगल ने भयंकर उत्तेजित होते हुए सोचा : नहीं चांदनी भाभी किसी अन्य पुरुष के साथ इस स्थिति में नहीं हो सकती. यह तो मजे ले रही है. भाभी इस तरह गालियां खाते हुए किसी पराये मर्द के साथ आनंद ले यह संभव ही नहीं.....
तभी अजिंक्य ने चांदनी के बाल पकड़ कर उसका चहेरा घुमाते हुए कहा -
‘आ...ह - क्या चीज है यार तू भी! ‘
जुगल को झटका लगा : अजिंक्य ने उस स्त्री के बाल थाम क्र मोड़ा हुआ चहेरा दिखा वो चांदनी भाभी का था…
उसने न आव देखा न ताव और—
(२७ -ये तो सोचा न था…विराम, क्रमश
TqAll i can say : m writing. Hope i finish in time-
Waiting......All i can say : m writing. Hope i finish in time-