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Incest ये तो सोचा न था…

Ek number

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४१ – ये तो सोचा न था…

[(४० में आपने पढ़ा : जुगल ने झनक को अपनी ओर खिंच कर पूछा. ‘मेरी पप्पी?’
झनक ने जुगल के होठ चुसना शुरू कर दिया... चांदनी के नितंब सहलाते हुए जगल ने झनक का चुम्मा लिया. तब झनक ने जुगल के लिंग को सहला कर जुगल के कान में कहा. ‘मैंने कहा था ना? देखो ये तुम्हारा सामान कैसे तन गया है अब!’

जुगल ने चांदनी से कहा. ‘अब बेटा आप बाहर जाओ, मम्मी ओर पापा आते है...’

चांदनी अपना पेटीकोट ठीक करते हुए बाहर जाने लगी और जुगल ने झनक को बांहों में खींचा.]


जगदीश

कार चलाते वक्त जगदीश के जहेन में बार बार शालिनी का मासूम चेहरा तैरता था. इतने दिनों के अजीब हादसों के दौर के बाद अभी पहली बार वो दोनों करीब आए थे,इस नई करीबी में दोनों एक दूजे से कुछ कहे- सुने इससे पहले यह अचानक कहां गुम हो गई?

मुद्दा सिर्फ शालिनी से नजदीकियां का नहीं था, शालिनी एक जिम्मेदारी भी तो थी! छोटे भाई जुगल को और शालिनी के माता - पिता को क्या जवाब दें? शालिनी गायब हो गई! क्यों !

जगदीश बहुत अस्वस्थ हो रहा था.

शालिनी गई कहां और क्यों ?

***


जुगल


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झनक अपने दोनों पैर चौड़े कर के अपने दोनों हाथों से अपनी दोनों जांघ सहलाते हुए आलसाई. बगल में जुगल उकडू लेटे हुए पड़ा था.

‘मज़ा आ गया जुगल, आखिर हल्ला बोल ही दिया तुमने !’ झनक ने जुगल के सर को प्यार से सहलाते हुए कहा.

जुगल मुस्कुराया और बोला. ‘मैंने तुम जैसी लड़की आज तक नहीं देखि झनक.’

‘मुझ जैसी यानी कैसी? सेक्सी? गरम ? टाइट ? खूबसूरत ? प्यारी ? —कैसी?’

‘बोल्ड. तुम चाहती थी की मैं तुम्हारे साथ सेक्स करू और तुमने करवाया. अक्सर लड़के ऐसा करते है.’

‘जमाना बदल रहा है.’

जुगल झनक की और अपना चेहरा करते हुए बोला. ‘आई लव यू झनक.’

झनक ने अपना चेहरा उठा कर जुगल को एक लिप किस की और कहा. ‘लव यु टू बेबी…’

‘झनक…’ जुगल ने नग्न झनक के नुकीले स्तन सहलाते हुए पूछा.’अपने बारे में कुछ बताओगी?’

‘अभी नहीं जुगल.’

जुगल ने कुछ नहीं कहा.

‘मम्मी, पापा…’ आवाज देते हुए चांदनी कमरे में आई.

‘आजा मेरा बच्चा…’ जुगल ने लेटे लेटे अपने हाथ फैलाये. चांदनी पलंग पर चढ़ कर दोनों के बीच सो गई. झनक और जुगल दोनों अगल बगल से चांदनी को लाड करने लगे…

***


जगदीश

जब जगदीश रिसोर्ट पर पहुंचा तब उसे मोहिते राह देखता हुआ मिला.

‘तूलिका शालिनी को ढूंढने गई है…’

जगदीश ने मोहिते को आश्चर्य से देखा और पूछा. ‘तूलिका!’

‘चिठ्ठी देख कर मैं परेशान हो गया और शालिनी को ढूंढने लगा तब तूलिका ने कहा की वो जा कर देखती है. उसे जा कर भी काफी वक्त हो गया है.’

‘चलो हम भी ढूंढते है.’

‘चलें, पर कहां ?’ मोहिते ने पूछा.

जगदीश क्या जवाब दें !

इतने में बाइक पर एक आदमी आया और उसने पूछा. ‘बंड्या?’

मोहिते ने कहा. ‘बोलो?’

‘बाई मिळाली आहे असा निरोप तुमची बहिण ने पाठवला. थोडक्यात इथं येईल दोघीं.’

‘ओह! थैंक्स भाउ, आता कुठे आहे ते लोक?’

‘फार नाही इथून. नांदी पाड़ा नावाच्या एरिया आहे…’

‘बरं, पुन्हा आभार तुमच्या!’

वो आदमी चला गया. मोहिते ने जगदीश को बताया की शालिनी को तूलिका ने ढूंढ लिया है, नंदी पाड़ा नाम की जगह पर दोनों है और कुछ देर में आ जाएंगे.

जगदीश ने सुकून की सांस ली.

***


तूलिका

तूलिका ने पलंग पर पड़ी बेहोश शालिनी को निहारा. और सोचा : इतनी सुंदर है, साली का घरवाला भी सही है, अमीर है… इसे ऐसा का दुःख आन पड़ा जो पानी में कूद कर जान दे रही थी!


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जब वो शालिनी को ढूंढने निकली तब लोगों को शालिनी का ब्यौरा दे कर पूछते पूछते वो नांदी पाड़ा नाम के एरिये में पहुंच गई. इस एरिया में नहर थी. जब तूलिका को ये पता चला तब उसे सिक्स्थ सेन्स हुई की कहीं शालिनी नहर में कूदने के लिए तो यहां नहीं आई! और तुरंत वो नहर की और दौड़ी, उसका शक सही था. शालिनी नहर में कूदने की फिराक में थी. तूलिका ने आवाज दे कर उसे रोका. तूलिका की आवाज़ सुन कर शालिनी चौंकी और उसने तुरंत पानी में छलांग लगा दी. तूलिका भी शालिनी के पीछे कुछ पड़ी. पानी शालिनी को तूलिका ने थामना चाहा पर शालिनी तूलिका से दूर जाने की कोशिश कर रही थी. पानी के अंदर दोनों में अजीब खींचातानी होने लगी. इस कश्मकश में तूलिका के हाथ में शालिनी की सलवार आ गई, तूलिका ने शालिनी की सलवार थाम कर उसे खींचा पर शालिनी तूलिका को धक्का मार कर दूर जाने की कोशिश में थी सो उस की सलवार सरक कर तूलिका के हाथ में रह गई. सलवार फेंक कर तूलिका नये जोश के साथ शालिनी की ओर लपकी. शालिनी तूलिका के हाथों को अपने बदन पर टिकने ही नहीं देती थी तुरंत छुड़ा लेती थी. आखिरकार तूलिका ने शालिनी के बड़े बड़े स्तन ही दबोच कर उसे थाम लिया. शालिनी के लिए यह अनपेक्षित भी था और पीड़ा दायक भी, उसने अपने स्तन छुड़ाने की कोशिश की पर तूलिका ने स्तन इतने जोरों से दबोचे हुए थे की शालिनी की ताकत पीड़ा के कारण आधी हो गई थी. अंत: शालिनी ने हार मान कर विरोध बंध किया और खुद को तूलिका के हवाले कर दिया. तूलिका उसे खींच कर पानी के बाहर ले आई. बाहर आ कर दोनों तेजी से सांस लेने लगे. कुछ क्षण के बाद जब दोनों नार्मल हुए और इससे पहले कि शालिनी तूलिका से पूछे कि उसने उसे डूबने से क्यों बचाया- मरने क्यों नहीं दिया, तूलिका ने अचानक शालिनी के होठों पर अपने होठ गड दिए और एक दीर्घ चुंबन लेने लगी… शालिनी इस के लिए बिलकुल तैयार नहीं थी. उसके लिए यह एक आघात था. जब तूलिका ने चुंबन समाप्त किया तब शालिनी उसे पूछना चाहती थी की यह वो क्या कर रही है - पर अनेक जज्बे, गुस्सा, क्षोभ और सेक्सुअल अवेकनिंग के मिले झूले दबाव और ऊपर से पानी में की गई शारीरिक मशक्कत के कारण शालिनी कुछ बोल नहीं पाई और बेहोश हो गई…

***


जुगल

जुगल और सरदार जी चाय पी रहे थे.

‘झनक कहीं गई है ?’

‘मुझे नहीं पता.’ सरदार जी ने कहा.

‘आप कैसे बाप हो सरदार जी ? आप को आपकी बेटी के बारे में कुछ नहीं पता होता. वो किसके साथ है, क्या कर रही है? चाय पी रही है या शराब? लड़के के साथ है या लड़की के साथ? कोई उसके कपडे निकाल रहा है या पहना रहा है ? आप को कुछ नहीं पता होता.’

‘झनक अठराह से अधिक उम्र की है जुगल. मैं उसका बाप हूँ चौकीदार नहीं. और तीसरी महत्वपूर्ण बात- मुझे झनक पर पूरा भरोसा है.’

‘लेकिन-’ जुगल कुछ बोले उससे पहले झनक टेरेस पर आई और सरदार जी से पूछने लगी. ‘कबूतर की जगह बदल दी है?’

‘तो तुम पिंजर देखने गई थी? अब क्या हुआ?’

‘मुझे कबूतर की जरूरत है.’

‘वो तुम्हारे खेलने के लिए नहीं झनक. सोरी.’

‘मुझे खेलना नहीं, चांदनी की ट्रीटमेंट के लिए चाहिए.’

‘ओह…’

सरदार जी सोच में पड़ गए. फिर बोले. ‘कल -’

‘कल नहीं पापा, आज, हो सके तो अभी….’

सरदार जी ने चौंक कर झनक के सामने देखा.

‘हम ऑलरेडी बहुत समय गंवा चुके है पापा. चांदनी अब कहीं जा कर को-ऑपरेट कर रही है…’

‘ठीक है.’ खड़े होते हुए सरदार जी ने कहा. ‘एक घंटे में ले आता हूं.’ और जाते हुए रुक कर जुगल के सामने देख कर झनक से कहा. ‘इसे शायद तुम से प्यार हो गया है.’

‘आज सुबह हम दोनों ने बहुत प्यार किया.’

‘गुड.’ कह कर मुस्कुराकर सरदार जी चले गए. जुगल यह सब सुन कर भौचक्का रह गया.

‘क्या हुआ? तुम्हारे चेहरे पर बारह क्यों बजे है?’

‘हम ने सुबह सेक्स किया यह भी तुम अपने पापा से बता दोगी ?’

‘क्यों नहीं? उनको भी तो पता चले की वो नहीं देंगे तो बेटी प्यासी नहीं रह जायेगी…’

जुगल यह सुन आघात से विमूढ़ हो गया, कुछ नहीं बोलना उसे समझदारी लगी. चांदनी भाभी को कबूतर की क्या ट्रीटमेंट देनी है यह उसे पूछना था पर उसने सोचा बाद में पूछ लूंगा.

***


शालिनी

शालिनी ने अपने होठों पर होठों की गर्मी महसूस की, उसने आंखें खोल देखा तो जगदीश उसे बेतहाशा चुम रहा था.

शालिनी को लाज भी आ रही थी और गर्व भी और भय भी.

लाज क्योंकि आखिर जगदीश उसका जेठ था.

गर्व क्योंकि जेठ हो कर भी वो उसके प्यार में झुक ही गया था वरना उसका कैरेक्टर कितना मजबूत था यह शालिनी से बेहतर कौन जानता है !

और भय इसलिए क्योंकि अगर जगदीश ने उसे पूछा की अपनी जान लेने की कोशिश क्यों की थी तो वो क्या जवाब देगी!



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लेकिन जगदीश की हरकतों से शालिनी को लगा की उसे शालिनी से सवालों के जवाब से अधिक अपनी शारीरिक तड़प बुझाने की जल्दी है क्योंकि चूमते चूमते उसने शालिनी के टॉप को ऊपर सरका कर उसके बड़े बाड़े दोनों स्तन नग्न कर दिए और एक को नजाकत से मसलते हुए दूसरे स्तन के निप्पल को बड़ी तरतीब से चूसने लगा. उसके स्तन को जगदीश जिस ललक से चूस रहा था वो देख शालिनी के मन में आया की वो बता दे के ‘भैया, उसमे दूध नहीं है जो इतनी शिद्दत से चूस रहे हो !’ पर अपनी निप्पल पर वो हलके से दांतों के दबाव के साथ स्तन को चूसे जाना शालिनी को खुद को भी तो बेहद उत्तेजित कर रहा था इसलिए उसने जगदीश को टोंका नहीं और फिर अपनी आंखें मूंद कर वो स्तन शोषण का अनन्य आनंद भोगती रही…. दूसरे स्तन की निप्पल को भी जगदीश कामुकता से अपनी उंगली और अंगूठे के बीच होले होले मसल रहा था. यह सब शालिनी को इतना कामुक बना रहा था की उसे लगा रहा था उसके दोनों स्तन स्तन नहीं बल्कि रस से उभरते दो तंग गुब्बारे है जिस में जगदीश की उंगलियां, अंगूठा, होठ, जीभ, दांत - यह पांचो मिल कर छेद कर के सारा रस सोख लेने की फिराक में है पर उसके गुब्बारे इतने हठीले है की कोई छेद होने ही नहीं देते…और मजे की बात यह थी की गुब्बारों में छेद नहीं हुआ था तब भी रस बराबर से सोखा जा रहा था. शालिनी को लगा रहा था जैसे उसके स्तन दो ऐसे उछलते फवारे है जिसमे जगदीश का प्यासा मुंह और भूखे हाथ लगातार भीग कर सराबोर हुए जा रहे है….

शालिनी को लग रहा था जैसे वो उन दोनों फवारो की नोक पर अपने शरीर को तैरता हुआ महसूस कर रही है.



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***

जुगल

झनक भी अपने लिए चाय ले कर टेरेस पर लौटी और जुगल के साथ बैठ कर चाय पीने लगी.

जुगल कबूतर वाली क्या ट्रीटमेंट है यह पूछने ही वाला था की चांदनी टेरेस पर उन दोनों को ढूंढते हुए आ गई.

चांदनी ने मिनी स्कर्ट और स्लीवलेस टॉप पहना था. स्कर्ट इतना छोटा था की उसके विशाल नितंब मुश्किल से एक चौथाई ही ढंक रहे थे. जुगल को चांदनी की यह अवस्था देख बड़ा अजीब लगा. जिसे वो भाभी मां कहता था वो आज मानसिक तौर पर उसकी बेटी बन कर अधनंगी हालत में उसके सामने थी.

‘हैल्लो बेटा...’ जुगल ने चांदनी को देख मुस्कुराकर कहा.

चांदनी ने थोड़ा सहम कर अगल बगल देखा. झनक ने कहा. ‘पापा को गुड़ मॉर्निंग किसी करो, जाओ उनकी गोद में बैठो…’



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जुगल यह सुन कर थोड़ा चौंका पर कुछ बोला नहीं. चांदनी धीमी चाल से जुगल के पास पहुंची. जुगल ने उसे गोद में बिठाया. अब चांदनी के पेंटी हीन नितंब सर्वथा नग्न हो कर जुगल की जांघो पर फ़ैल गए. जुगल चांदनी को बांहों में कस कर लाड कर रहा था इतने में झनक उनके करीब आई और जुगल के दोनों हाथों को चांदनी की पीठ पर से हटा कर चांदनी के नग्न नितंबों पर रख कर बोली. ‘हर एक पल कीमती है…’ फिर चांदनी से कहा. ‘पापा को गुड़ मॉर्निंग किसी करो बेटा…’ चांदनी ने अपना चहेरा जुगल के चहेरे की ओर किया. जुगल चांदनी के दोनों नितंब सहलाते हुए चांदनी के होठों पर अपने होठ रगड़ने लगा. तभी उसे लगा की उसके पेंट में कुछ हरकत हो रही है. उसने देखा तो झनक ने उसके पेंट की ज़िप खोल दी थी और उसका लिंग बाहर कर के हिला रही थी. जुगल को बहुत ओड लगा, उसने झनक को आंखों के इशारे से पूछा की वो क्या कर रही है? झनक ने कोई जवाब न देते हुए जुगल के तंग लिंग को चांदनी के नरम नरम नितम्बो पर रगड़ा…

***


शालिनी

अपने आप को दो फवारो की शिखा पर तैरता - मचलता महसूस कर रही शालिनी ने यकायक खुद जैसे रस के ज्वार भाटे में लहराता पाया जब उसकी योनि में जगदीश की उंगलियों ने छेदन किया. एक मीठी कसक के साथ शालिनी ने सहज ही अपना हाथ जगदीश के दो पैरों के दौरान बढ़ाया और वो व्याकुल हो कर जगदीश का लिंग खोजने लगी. सहसा उसका हाथ शर्मिंदा सा हो गया क्योंकि बजाय लिंग के उसके हाथों ने योनि के समान नरम नरम खाई को छू लिया. यह कैसे हो सकता है ! उसने चौंक कर अपनी आँखें खोली तो उसके आंखें फटी की फटी रह गई, उसने देखा की वो जगदीश नहीं बल्कि तूलिका की बांहों में है…


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जुगल

टेरेस की दीवार पर चांदनी झुकी हुई थी और पीछे से जुगल अपने तंग लिंग से चांदनी को पीछे से थामे हुए संवनन कर रहा था, चांदनी का चेहरा नीचे झुका हुआ था और जुगल टेरेस से नीचे की ओर जमीन पर देख रहा था.


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अपना लिंग अंदर बाहर करते हुए उसकी नजर एक कार पर पड़ी जो बंगले में दाखिल हुई. कार में से सरदार जी उतरे और कार की दूसरी ओर से अजिंक्य को उतरते हुए देख जुगल शॉक्ड हो गया. उसने कुछ दुरी पर खड़ी झनक की ओर देखा. झनक ने जुगल की नजर को फॉलो करते हुए देखा और अजिंक्य को देख उत्साह से बोली : ‘ आ गया कबूतर !’

जुगल अचरज से झनक को देखता रह गया….


(४१ -ये तो सोचा न था…विराम, क्रमश:)
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गई भैंस पानी में.........
 
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