Will try to share one more romantic episode of Phagun ke din chaar soon,
Karan Reet
वो दोनों लान में थे और पीछे-पीछे गुड्डी। करन ने अपने लान में कुछ पीले गुलाब के पौधे खुद अपने हाथ से लगाये थे। जिसे वो किसी को छूने भी नहीं देता था। उसने एक टटका खिला पीला गुलाब रीत की चोटी में टांक दिया। लेकिन करन के हाथ में, एक काँटा चुभ गया और खून की एक बूँद छलछला उठी। बिना देर किये रीत ने वो उंगली अपने मुँह में लेकर खून चूस लिया। और अपना रुमाल निकालकर बाँध दिया। करन ने रुमाल देखा, उसके कोने में ‘के’ काढ़ा हुआ था।
गुड्डी बोली, रीत घर आई लेकिन अपना बहुत कुछ छोड़ आई। घर पहुँचकर गुड्डी ने फिर रीत को छेड़ा। क्यों रीत दीदी, हो गया।
रीत की आँखें मुश्कुरायीं, लजाई। फिर उसने गुड्डी के पीठ पे जोर का धौल मारा और बोली- जब तेरा होगा ना तो बताऊँगी।
गुड्डी भी अपनी शरारती आँखें नचा कर बोली- “वाह चोरी किसी ने की आपके दिल की और मार मुझे पड़ रही है। रीत ने प्यार से गुड्डी को जोर से भींच लिया और बोली- “पिटेगी तो तू कसकर। अगर किसी को कुछ भी।
“क्या दीदी? मैंने तो ना कुछ देखा ना सुना…” और दौड़ती हुई अपने घर चली गई।
रीत बार-बार चोटी झुलाती हुई, उसमें लगे पीले गुलाब के देखती। उसकी एक पंखुड़ी में खून की एक बूँद लग गई थी। रीत ने उसे वहीं चूम लिया। और फिर बाहर खिले पीले चाँद को देखती रही और चाँद को देखकर फिर उसने चोटी में लगे पीले गुलाब को देखा। उसे लगा जैसे करन ने आसमान से पीला चाँद तोड़कर उसकी चोटी में लगा दिया हो। वो वैसे ही शीशे के सामने गई और चोटी नचा कर उसने अपने उभारों पर रख दिया। और अपने को निहारती रही।
अब उसे लगा वो में सच में बड़ी हो गई। फिर सम्हाल कर उसने गुलाब निकालकर वास में लगा दिया। अगले दिन रीत चोटी में वो गुलाब लगाकर स्कूल गई। बहुत छेड़ा सहेलियों ने उसे। और उसका नाम पीला गुलाब पड़ गया।
लौटते हुए गुड्डी ने पूछा- बात कुछ आगे बढ़ी। तो रीत ने जोर का धौल जमा दिया और बोली- “सबसे पहले तुझे मालूम पड़ेगा मेरी नानी। ये वो जमाना था जब अभी फेसबुक और चैटिंग बनारस ऐसे शहरों में नहीं पहुँची थी। लेकिन दिल थे और उनमें बातचीत भी होती थी।
तो जैसा गुलजार साहेब ने कहा है-
जो किताबों में मिला करते थे सूखे फूल
और महके हुए रुक्के
किताबें मँगाने, गिरने उठाने के बहाने रिश्ते बनते थे।
रीत को अपनी जिंदगी का पहला प्रेमपत्र। तीन दिन बाद मिला।
सुना है दिन को उसे तितलियां सताती हैं
सुना है रात को जुगनू ठहर के देखते हैं।
लाने वाली वही गुड्डी। गुड्डी ट्यूशन से लौट रही थी की करन अपने घर के बाहर मिला और गुड्डी को मैथ्स की किताब देकर बोला, ये लेजाकर अपनी दी को देना। लेकिन जब सिर्फ वही हों।
गुड्डी को रीत से कम खुशी नहीं हो रही थी वो धड़धड़ाते हुए ऊपर रीत के कमरे में पहुँच गई। रीत किसी टेस्ट की तैयारी कर रही थी। और आज गुड्डी ने उसे खींचकर अपनी बांहों में भर लिया और बोली- “मेरी ट्रीट। रीत ने उसे और जोर से भींच लिया और बोली- “कुछ है क्या?
गुड्डी धम्म से कुर्सी पे बैठ गई और बोली- “नहीं क्यों कुछ आना था क्या। फिर अपने बैग से उसने जो किताब करन ने दी थी वो निकाली। रीत ने छीनने की कोशिश की। तो गुड्डी ने हाथ ऊपर कर लिए। और बोली पहले ट्रीट।
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मुझे लगता है की रोमांस लिखना इतना आसान नहीं है कम से कम मेरे लिए,
वो कैशोर्य की अनभूति लाना, उस शिद्द्त से दिल की धड़कन को महसूस करना,... और फिर शब्दों में ढालकर पढ़नेवालों तक पहुंचाना
और सबसे बढ़कर पढ़ने वाले भी उसी भावना से,... ये न हो की वो एडल्ट फोरम में हैं तो उनकी अपेक्षा भी वही हो, शायद किसी और जगह वो कहानी उन्हें अलग ढंग से प्रभावित करती
लेकिन सबसे कठिन होता है शब्दों का और भावों का अनुशासन,
लेकिन करन और रीत का यह किस्सा, कम से कम मुझे बहुत भाता है जैसे मोहे रंग दे के शुरू के प्रंसग या लला फिर अइयो खेलन होरी का अंतिम हिस्सा,...