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Incest राजकुमार देव और रानी माँ रत्ना देवी

Lib am

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Update 7

आज रात के महाभोज के आयोजन के पश्चात सभी अतिथिगण राजमहल से जा चुके थे। जन्मदिवस का कार्यक्रम समाप्त होते होते रात काफी बीत चुकी थी। रात्रि का तीसरा पहर चल रहा था। सभी लोग सो चुके थे , लेकिन कुछ लोगों की आंखों में नींद नहीं थी। राजा माधव सिंह उनकी रानी सुभद्रा देवी तथा राजकुमारी रत्ना राजकीय अतिथिशाला में विश्राम हेतु पहुंच जाते हैं। आज माधव सिंह और सुभद्रा दोनों अत्यंत ही प्रशन्न थे कि आज उनके मन की मुराद पूरी हो गई। वे दोनो अपनी पुत्री राजकुमारी रत्ना का विवाह राजा विक्रम सेन के साथ करना तो चाहते थे। किन्तु संकोचवश वे राजकुमारी के रिश्ते की बात राजमाता देवकी से नहीं कर पाते थे। और आज ऐसा सुखद संयोग हुआ की राजमाता देवकी ने ही अपने पुत्र राजा विक्रम सेन का विवाह राजकुमारी रत्ना से कराने का प्रस्ताव दे दिया।
अतिथगृह पहुंचकर राजा माधव सिंह रानी सुभद्रा से कहते हैं :

आज का दिन हमारे लिए खुशी का दिन है की राजमाता देवकी ने स्वयं हमारी पुत्री से अपने पुत्र का विवाह कराने का प्रस्ताव दे दिया,नहीं तो हम तो इस राजघराने में शादी का प्रस्ताव देने का सोच ही नहीं सकते थे।
राजन मै ना कहती थी आपसे की एक बार राजकुमारी रत्ना की शादी का प्रस्ताव ले तो जाइए। लेकिन आप ही यहां आने से हिचकिचाते थे। आखिर हमारी रत्ना भी सुंदरता में किसी अप्सरा से कम थोड़े ही है। देखा नहीं राजा विक्रम की नजरें रत्ना के मुख से हटती ही नहीं थी। लेकिन मै डरती थी की राजा विक्रम सेन का व्यक्तित्व इतना आकर्षक है कि रत्ना की सुंदरता इनके सामने फीकी पड़ जा रही थी और कहीं राजा विक्रम रत्ना से विवाह से इंकार ना कर दे।... रानी सुभद्रा ने कहा।
राजा विक्रम की बात कर रानी सुभद्रा का चेहरा बिल्कुल सुर्ख हो जाता है जिसे देख कर माधव सिंह सुभद्रा की छेड़ते हुए कहते हैं
क्या आपको भी राजा विक्रम भा गए हैं जो आप उनकी सुंदरता के पुल बांध रही है।
आप कुछ भी बोलते हैं, राजा विक्रम मेरी पुत्री के होनेवाले दूल्हे है, भला मै ऐसा कैसे सोच सकती हैं।और ऐसा कहकर वह मुंह घुमाकर बैठ जाती है।
मैं तो मजाक के रहा था मेरी रानी। ऐसा कह कर राजा माधव सिंह रानी सुभद्रा की ठुद्दी पकड़कर उनका चेहरा अपनी ओर घुमाते हैं।

छोड़िए राजन आप मुझसे बात मत करिए।

राजा माधव सिंह कहते हैं लो मैंने अपने कान पकड़ लिए।अब तो मान जाओ।

माधव सिंह के ऐसा कहने से सुभद्रा हल्के से मुस्कुरा देती है।

ऐसा ना करे राजन, मुझसे माफ़ी मांग कर नरक का भागी ना बनाए। लेकिन आगे से ऐसा मत बोलिएगा।राजा विक्रम सेन मेरी पुत्री के होने वाले पति हैं, उनको लेकर ऐसा मजाक मुझसे बिल्कुल मत कीजिएगा।

वो कहते हैं ना नारी त्रिया चरित्र की होती है, वो क्या सोचती है ,ये जानना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। यही रानी सुभद्रा आज सुबह के कार्यक्रम में राजा विक्रम सेन को देखकर उनके प्रति आसक्त हो गई थी और अपनी बुर को सहलाया था , उनसे चुदवाने का सपना देख रही थी और अभी पति द्वारा थोड़ा मजाक करने से नाराज़ ही गई थी। खैर माधव सिंह के निवेदन पर वह मान जाती है और मन ही मन एक कुटिल मुस्कान लेते हुए माधव सिंह के हाथ पर अपना हाथ रख देती है।

इधर राजकुमारी रत्ना अपने कमरे में लेटी हुई राजा विक्रम सेन के ख्यालों में डूबी रहती है , वह विक्रम सेन की नजरों को भुला ही नहीं पा रही थी जिन नजरों से वे रत्ना को देख रहे थे, उनकी नजरों में हवस नहीं था ,बल्कि एक अलग सा आकर्षण था जिसके मोह पास में रत्ना बांधती जा रही थी। रत्ना ख्यालों में डूबे डूबे राजा विक्रम सेन के लिंग की कल्पना करने लगती है ।

रत्ना मन में- हाय उनका लिंग कितना बड़ा होगा जब शरीर इतना गठीला है, कंधे इतने मजबूत और छाती इतनी चौड़ी है। अपने मोटे लिंग से वो मेरी नाजुक योनि चोदेंगे तो मेरी कोमल नाजुक योनि का क्या हाल होगा।

यही सोचते सोचते रत्ना कि सांसे तेज चलने लगती है और उसकी कामभावना भड़कने लगती है। वह अपना एक हाथ अपनी चूची के ऊपर ले जाती है और चोली के ऊपर से ही अपने चूचक रगड़ने लगती है और सोचती है कि राजा विक्रम अपने कड़क हाथों से मेरे इन्हीं स्तनों का मर्दन करेंगे। स्तन दबाने से उसकी उत्तेजना और बढ़ जाती है और सांसे और तेज चलने लगती हैं।उत्तेजना के वसीभूत होकर रत्ना अपना एक हाथ घाघरे के अंदर डाल देती है और अपनी योनि को स्पर्श करती है, फिर हथेली से अपनी योनि को दबोच लेती है और उत्तेजना में आंखे बंद कर कहती है

राजन मेरी योनि को रगड़ों,,,,इसे प्यार करो,,, इसे अपनी उंगलियों से रगडों,,,,इसमें अपनी उंगली डाल कर खूब जोर जोर से आगे पीछे कर के चोदो,,,,, मेरी योनि को अपने जीभ से चाटो,,,, मेरी योनि की फैलाकर इसमें अपना मोटा लन्ड डाल दो,,, मेरी योनि को खूब चोदो,,, मेरी चूचियों का मर्दन करो,,,,,इनका दूध पी लो,,,,,

रत्ना बड़बड़ाते जा रही थी और अपनी योनि की रगड़े जा रही थी। उत्तेजनावश वह अपनी चोली उतार फेकती है और अपने घाघरे का नाड़ा खोलकर घाघरे को भी पैरों के नीचे से निकाल देती है। अब वह मादरजात नंगी अपनी शैया पर लेटी हुई अपनी नंगी चूची को हाथ से मसले जा रही थी और कामुक आहें निकाल रही थी। दूसरे हाथ से अपनी योनि को फैलाकर रगड़ रही थी। उसकी योनि , योनि रस से गीली और चिकनी ही जाती है और उसकी अनामिका उंगली उसकी योनि में सरसराते हुए योनि की गहराइयों में चली जाती है।ये पहली बार था जब राजकुमारी रत्ना ने अपनी कुंवारी अनचूदी योनि में अपनी उंगली डाली थी। उसकी सांसे रुक जाती हैं। उसके योनिद्वार अभी ठीक से खुले भी नहीं थे। लेकिन योनि में ऊंगली की उपस्थिति अब उसे अच्छी लगने लगती है,,,धीरे धीरे वह अब सामान्य होती है। यह हस्तमैथुन का पहला अनुभव था। वह अपनी योनि में उंगली को तेजी से अंदर बाहर करने लगती है और बड़बड़ाने लगती है,,,,

चोदिये राजन चोदिए अपनी इस रानी को,,,,अपने मोटे लिंग से,,,,मेरी योनि बहुत प्यासी है जिसकी प्यास आपका मोटा लिंग ही बुझा सकता है। राजन मेरे स्तन चूसते हुए मेरी योनि की चोदिए। इसे फाड़ दीजिए। ऐसे चोदिए की आपका लिंग मेरी बच्चेदानी तक पहुंच जाए,,,, इस संसार में आपके लिंग से ही इस दिव्य योनि की प्यास बुझ सकती है,,,
ऐसे ही बड़बड़ाते हुए राजकुमारी रत्ना अपनी योनि में अपनी उंगली खूब तेजी से अंदर बाहर करने लगती है और करीब आधे घंटे के बाद चरमसुख को प्राप्त कर झड़ जाती है और उसकी योनि से भालभालाकर योनि रस की धार बहने लगती है। उसके हाथ योनि रस से भीग जाते हैं। वह योनि रस से भीगे हाथ अपने नक के पास लाती है और उसकी मादक सुगंध से मदहोश होने लगती है।

चुकी राजकुमारी रत्ना का हस्तमैथुन का ये पहला अनुभव था।अतः उन्हें यह अनुभव अदभुत लगता है। लगा जैसे शरीर हल्का होकर स्वर्ग की सैर कर रहा है। अपने पहले अनुभव के कारण राजकुमारी रत्ना यू ही बिल्कुल नग्न अवस्था में थक कर शैय्या पर सो जाती है और नींद में राजा विक्रम सेन के सपने देखने लगती है...........
बहुत ही बेहतरीन अपडेट
 

Ajay

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Update 1
प्राचीन काल में जब राजा,-महाराजो का जमाना था, उस काल में विजयनगर राज्य के राजा विक्रम सेन हुआ करते थे जो बहुत ही दयालु और प्रजा को अपनी संतान मानने वाले थे. उनके राज्य की समृद्धि दूर दूर तक फैली हुई थी जिससे उसके पड़ोसी राज्य बहुत इर्श्या करते थे. राजा विक्रम सेन काफी अच्छी कद काठी के थे. उनकी लंबाई 5 फीट 8 इंच थी. चौड़े सुदृढ़ कंधे. और छाती 54 इंच चौडी थी. हल्का गेहुवा रंग था उनका. कड़क मूछें और उपर सिर पर सोने का मुकुट जो उनके व्यक्तित्व मे चार चाँद लगा देता था. उनके व्यक्तित्व की ख्याति इतनी थी कि कुवारी राजकुमारियों को तो छोड़िये दूसरे राजाओं की रानियाँ भी आहें भरती थी और उनके साथ सम्भोग करने के सपने देखती थी.​
राजा विक्रम सेन का जीवन भी उथल पथल भरा रहा. जब वे छोटे थे तभी उनके पिता महाराज सुर सेन की मृत्यु हो गई थी. उनकी मृत्यु के बाद राजकुमार विक्रम सेन को छोटी उम्र में ही राजा की गद्दी संभालनी पड़ी. उस समय उनकी माता देवकी अभी जवान ही थी जिनकी उम्र उस समय कम ही थी. ऐसी घड़ी आ गई थी कि जिस राजकुमार को रानी देवकी अभी नहलाती थी और उसके लिंग का नाप लेती थी उसे राजा बनाना पड़ा. रानी देवकी अब राजमाता देवकी बन चुकी थी जिन्हे अब अपने पुत्र से मिलने के लिये अब दूर राजा के कक्ष में जाना होता था.​
Nice start
 

Ajay

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Update - 2
आज राज्य में बहुत ही खुशी का दिन था. आज राजा विक्रम सेन का जन्मदिन जो था और वो आज 18 साल के हो गये थे. आज जन्मदिन के मौके पर सुबह सुबह राज परिवार अपने कुल देवता के दर्शन करने और आशीर्वाद लेने मन्दिर जाता था. आज राजमाता देवकी के कदम जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. वो आज ब्रह्म मुहूर्त मे ही जग गई और नहाने के लिए सुबह सुबह स्नानागर मे घुस गई. उसे जल्दी तैयार होना था क्यों कि आज कई राज्यों के राजा सपरिवार आयोजन में सामिल होने के लिए आमंत्रित थे. देवकी स्नानागर मे घुसकर अपने चोली उतारती है जिससे उसके बड़े स्तन कैद से बाहर निकल जाते हैं. इन्हें देखकर देवकी खुद शर्मा जाती है और मन में सोचती है कि ये मुये इस उम्र में कितने बड़े हो गये हैं. ( जबकि उसकी उम्र अभी 36 वर्ष ही थी) वह आदमकद आईने के सामने खड़ी होकर खुद अपने को ही निहार रही थी. वह अपना दाहिना हाथ उठाकर अपने स्तन पर रखकर हौले से दबाती है और अपनी एक उँगली से चुचक को हल्के हल्के कुरेदने लगती है और सहलाने लगती है. चुचक सहलाने से वह उत्तेजित हो जाती है और अपना एक हाथ घाघरे के अंदर डाल कर अपनी योनि को सहलाने लगती है. कई दिनों बाद आज वह अपने बदन से खेल रही थी. घाघरा योनि को सहलाने मे अड़चन डाल रहा था सो उसने अपने घाघरे का नाडा खोल दिया. नाडा खोलते ही घाघरा सरसराते हुए उसके पैरों में गिर जाता है जिससे वह पुरी नंगी हो जाती है. अपने आप को शीशे मे पुरी नंगी देखकर वह फिर शर्मा जाती है. उसकी योनि पे घुंघराले झांटे उसकी खूबसूरती और बढ़ा रहे थे. उसकी योनि पे झांटे ना तो कम थी ना ही बहुत घनी जो उसकी योनि को सबसे अलग बनाती थी. तभी तो महाराज उनकी योनि के दिवाने थे और हर रात इनकी चुदाई करके ही सोते थे. देवकी अपनी ही योनि को देखकर गरम हो जाती है और अपने पुराने दिनों के बारे में सोचने लगती है जब उसकी योनि को महाराज रोज अपनी जीभ से चाटते और अपने मोटे लंड से जबरदस्त चुदाई करते. यही सोचते सोचते देवकी का हाथ अपनी योनि पे चला जाता है और वह अपनी योनि को रगड़ते हुए हस्तमैथुन करने लगती है. एक हाथ से वह अपने स्तन का मर्दन कर रही थी और दूसरे हाथ से योनि को तेजी से रगड़ रही थी. योनि रगड़ते रगड़ते देवकी को अपने पुत्र राजा विक्रम के लिंग की याद आती है जिसे देखे उसे 6 साल बीत गये थे. वह सोचने लगती है कि उसका लिंग कितना बड़ा हो गया होगा. उसी समय उसका लण्ड 8 इंच का था, बिल्कुल अपने ननिहाल के पुरुषों की तरह. इन खयालों से उसकी बुर एकदम गीली हो गई और योनि रस छोड़ने लगी. अब उसका योनि मार्ग एकदम चिकना हो गया और उसकी एक उँगली सटाक से अंदर चली गई जिससे उसकी आह निकल गई. अब वह अपनी उँगली अंदर बाहर करने लगती है और साथ ही अपने चुचुको को भी मसलने लगती है और अपने पुत्र के लिंग के ख्याल से मदहोस हो जाती है. अपनी बुर रगड़ते रगड़ते वह मन में बुद्बुदाने लगती है कि हाँ मुझे अपने पुत्र का मोटा लंड देखना है उसे अपने हाथ में लेकर प्यार करना है. यह सोचते हुए वह अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच जाती है और उसकी योनि भलभलकर् पानी छोड़ देती है. उसका हाथ योनिरस से भीग जाता है. वह हस्तमैथुन से सत्तुष्ट होकर अपने को ही कोसने लगती है कि मै ये क्या पाप सोच रही थी. उसे ध्यान आता है कि काफी विलंब हो गया है और आज हमे सुबह ही कुल देवता के मंदिर जाना है. अब वह फटाफट स्नान के लिये दूध से भरे बड़े टब् मे घुस जाती है जिसमें गुलाब की पंखुडियाँ भी पड़ी थी. दुध से स्नान कर वह फटाफट अपने वस्त्र कक्ष में एक बड़ा तौलिया लपेटकर चली जाती है जहाँ उसकी मुहबोली दासी रन्झा उसका इंतजार कर रही थी. रन्झा उसके शरीर को कोमल वस्त्र से पोछती है और देवकी के शरीर पर डाला हुआ कपड़ा हटा देती है जिससे वह फिर से पुरी नंगी हो जाती है. रन्झा अच्छे से उसके शरीर को पोछती है, पहले स्तनों को पोछती है और फिर थोड़ा नीचे बैठकर उसकी योनि को पोछने लगती है जिससे योनि की मादक गंध उसके नाक तक पहुँच जाती है. वह तो देवकी की मूहबोलि दासी थी सो उससे मजाक मे पुछा कि रानी एक बात पुछू बुरा तो नहीं मानोगी.
देवकी- नहीं, पुछ, मै तेरी बात का बुरा मानती हूँ भला.

रन्झा, लेकिन गुस्सा किया तो.
देवकी - नहीं करूँगी गुस्सा तु पुछ जो पुछना है.
रन्झा - मै तो तुम्हें रोज नंगी देखती हूँ लेकिन आज तेरी चूची सुबह सुबह इतनी कसी हुई क्यो है और तो और तेरी योनि से भी जबरदस्त गंध आ रही है. किसकी याद मे सुबह सुबह योनि रगड़ा है बता तो दो.
देवकी- चल हट, बदमाश. हमेशा तेरे दिमाग में यही चलता रहता है. तु जानती नहीं है तु किससे बात कर रही है. राजमाता हू मैं. गर्दन उड़वा दूंगी तुम्हारी.
रन्झा - हे हे हे, अब बता भी दो रानी. क्यों नखरे दिखा रही हो. मै तो तुम्हारे साथ आई थी शादी मे तुम्हारे. तबसे तुम्हारी सेवा में हूँ. याद है जब तुम्हारी पहली माहवारी आई तो मैने ही तुम्हारी बुर पे कपड़ा लगाया था और तुम्हे सब सिखाया था.
( ये सुनकर देवकी मंद मंद मुस्कुराने लगती है)
देवकी - तु नहीं मानेगी. रंडी शाली छिनाल. सब जानती हूँ तेरे बारे मे कि तु राजमहल मे किसके साथ गुलछर्रे उड़ा रही है और दरबार के किन मंत्रियों से अपनी बुर चोदवा रही है.
रन्झा - हे हे हे, तु भी तो मुझे शुरू से जानती है कि कितनी गर्मी है मेरे अंदर. अच्छा ये सब छोड़िये राजमाता और ये बताइये कि किस युगपुरुष को सोचकर अपनी बुर रगड़ी हो और अपनी चुचियों को मसला है.
देवकी - धत् तु नही मानेगी. तो सुन आज अपने नंगे बदन को देखकर महाराज की याद आ गई की कैसे मुझे वो रगड़ रगड़ के रोज चोदा करते थे. और फिर मै गरम हो गई और बुर मतलब योनि मे उँगली करना पड़ा. ( ये कहकर देवकी इस बात को छुपा गई कि वह अपने पुत्र के बारे मे सोचकर भी गरम हो गई थी)
रन्झा - आहें भरते हुए, मै तुम्हारी तड़प समझ सकती हूँ राजमाता. मै भी तो अपने पति से दूर रहती हूँ. ये तो कहो की मेरा बेटा मेरा साथ रहता है. नहीं तो मै भी.... ( इतना कहकर वह कुछ बोलते बोलते चुप हो जाती है)
देवकी - हाँ हाँ बोल क्या ' नहीं तो मै भी'
रन्झा - हड़बड़ाहट मे, अब जल्दी तैयार हो जाओ सूर्योदय होने वाला है. आओ आईने के सामने बैठो की मै तुम्हे तैयार कर दूँ.
अब राजमाता देवकी तैयार होने के लिए बड़े से शीशे के सामने बैठ जाती है और रन्झा उसे तैयार करने लगती है.
Nice update bhai
 

Ajay

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Update 3
राजमाता देवकी आईने के सामने बैठी रहती है और रन्झा उसे तैयार कर रही होती है, देवकी राजपरिवार की जो ठहरी. रन्झा चंदन की लकड़ी से बने कंघे से देवकी के बाल सवारति है. फिर मलाई और गुलाब से बने क्रीम उसके चेहरे पे लगाती है. फिर थोड़ी सी क्रीम लेकर उसके स्तनों पे मलती है और अपनी उँगलियों से उसके चुचुक को मसल देती है जिससे देवकी सिसक जाती है और एक हल्की सी चपत रन्झा के हाथ पे लगाती है जिस पे रन्झा मुस्कुरा देती है. थोड़ी सी क्रीम लेकर अब रन्झा नीचे बैठ जाती है और अपने हथेलियों मे फैलाकर देवकी की योनि पर अच्छे से लगा देती है.
देवकी गुस्सा दिखाते हुए - ये क्या कर रही है रण्डी
रन्झा - हे हे हे, तुमने आज अपनी बुर को सुबह सुबह कष्ट दिया है ना. इसलिए मै थोड़ा मलहम लगा देती हूँ , , आखिर आपकी योनि का भी तो ख्याल रखना है मुझे और दांत निपोरने लगती है.
देवकी - मुस्कुराते हुए, मेरी योनि है, मै इसके साथ जो करूँ, तुझे इससे क्या. तु अपनी योनि देख और उसे संभाल. और बातें कम कर और जल्दी तैयार कर मुझे, खुद तो तैयार हो कर आ गई गई है बरचोदि और मुझे तंग करती है.
अब रन्झा देवकी को तैयार करने लगती है. उसके स्तन पर पहले कपड़े का पट्टा बांधती है. फिर उसे एक हीरे जवाहरात से जड़ी एक लाल रंग की चोली पहनाती है. अब देवकी खड़ी हो जाती है जिसे रन्झा एक हीरे का कमरबंध पहनाती है. फिर एक मलमल के कपड़े का बना लंगोट जैसा अंतःवस्त्र उसकी योनि पे पहनाती है जो उस समय की औरत पहनती थी. फिर लाल रंग का रत्न जडित घाघरा पहनाती है क्यों कि आज राजकुमार के जन्मदिन का अवसर जो था. इसके उपर राजमाता को एक हरे रंग की चुन्नी ओढा देती है. आँखों पे काजल और होंठो पे लाली लगाकर रन्झा राजमाता देवकी को कहती है
रन्झा- अब अपने को शीशे मे देख लो राजमाता. बिल्कुल दुल्हन लग रही हो.
देवकी - धत्त, कुछ भी बोलती हो. मै विधवा हूँ. मैं कहाँ से दुल्हन लग सकती हूँ.
रन्झा - चलो बातें मत बनाओ. अभी तो इतनी जवान हो कि कोई भी तुम्हें देखकर पागल हो जाए. और हाँ इस चुन्नी से अपनी जवानी को ढके रहना नहीं तो आयोजन में ही लोग अपना लंड निकाल कर हिलाने लगेंगे.
और ऐसा कह कर वह जोर से देवकी की चूची को दबा देती है जिससे उसकी आह निकल जाती है और रन्झा को बनावटी गुस्सा दिखाती है.
फिर देवकी को जैसे कुछ याद आता है और कहती है देख कितनी देर हो गई छिनाल. सूर्योदय होने वाला है. जल्दी कर. अभी देख राजकुमारी नंदिनी जगी है कि नहीं.
( राजकुमारी नंदिनी राजा विक्रम सेन की बडी बहन है जो उससे 2 साल बड़ी है और अपनी माँ और भाई की तरह बला की खूबसूरत है. अपनी माँ की तरह ही गोरी, तीखे नैन नखस् और लंबाई 5 फीट 3 इंच, उन्नत वक्ष, चौडी कमर और छरहरा बदन. उसकी नीली आँखे लगता था अभी बोल पड़ेंगी. उसके उन्नत नितंब देखकर सभी आहें भरते थे)
राजमाता देवकी फटाफट तैयार हो कर अपने कक्ष से निकल कर नंदिनी के कक्ष की ओर जाने लगती है. जैसे ही वह बाहर निकलती है सभी संतरी सावधान की मुद्रा में खड़े हो जाते हैं. पीछे से रन्झा भागे भागे आती है. देवकी अब नंदिनी के कक्ष के बाहर पहुँचती है और सेविकावों से पुछती है.
देवकी - राजकुमारी तैयार हो गई है क्या?
सेविका - हकलाते हुए, नहीं राजमाता, अभी राजकुमारी सो रही हैं.
देवकी - ( बड़बड़ाते हुए कमरे में घुस जाती है और राजकुमारी को सोया हुआ देखकर जगाती है) उठ जाओ राजकुमारी.
नंदिनी आँखे मलते हुए उठती है.
देवकी - मेरी लाडो राजकुमारी, जल्दी से तैयार हो जा, आज तेरे भ्राता का जन्मदिन है. और लाडो ये क्या तु ठीक से सोया कर. देख तेरी सलवार घुटने तक सरकी हुई है. कोई आता तो देखकर क्या बोलता. वैसे भी तेरी शादी की उम्र हो गई है.
अब राजकुमारी क्या बताये की वो अंदर से पुरी नंगी है. ( राजकुमारी नंगी क्यों है ये राज बाद में खुलेगा.)
नंदिनी - माते आप मेरे अतिथि कक्ष में बैठे, मै तुरंत स्नान कर के आती हूँ. ठीक है पुत्री मै तुम्हारे अतिथि कक्ष में इंतजार करती हूँ तब तक तुम जल्दी से तैयार हो जाओ. और इतना कहकर देवकी दूसरे कक्ष में चली जाती है. देवकी के जाते ही राजकुमारी नंदिनी अपनी सलवार निकाल कर फेकती है और चादर ओढ़ कर सनानागर् मे भाग जाती है और अंदर पहुँच कर राहत की साँस लेती है. पहले राजमहल मे कमरो मे दरवाजे नहीं होते थे, बल्कि बड़े बड़े परदे लगे होते थे. राजकुमारी नंदिनी अपना चादर हटाती है जिससे वह पुरी मदरजात नंगी हो जाती है. सबसे पहले वह जल्दी से अपनी योनि को पानी से साफ करती है. इधर रन्झा भी अतिथि कक्ष में पहुँच जाती है और देवकी से पुछती है कि राजकुमारी नंदिनी तैयार हुई की नहीं.
देवकी - अरे वो लाडो को जानती नहीं हो, कभी समय से तैयार होती है क्या.
रन्झा - राजमाता, अब नंदिनी भी जवान हो गई है. अब अपनी लाडो को लण्ड दिला दो उसकी बुर चोदने के लिये, नहीं तो कहीं किसी से बुर ना चुदवा ले.
देवकी - चुप कर बुरचोदि, तुम्हारे मन मे केवल लंड, बुर की चुदाई की बात ही चलती रहती है. जा, जाकर देख नंदिनी तैयार हो गई क्या. और अगर वो तैयार ना तो उसे तैयार कर दे.
ये सुनकर रन्झा नंदिनी के कक्ष में जाती है. उसे स्नानागार से पानी गिरने की आवाज आती है और वह ये देखने के लिये की नंदिनी क्या कर रही है चुपचाप स्नानागार मे परदा हटा कर घुस जाती है और राजकुमारी को अपनी बुर साफ करते हुए देखती है. रन्झा की अनुभवी आँखे कुछ गड़बड़ महसुस करती है और तब आवाज देती है राजकुमारी. रन्झा की आवाज सुनकर नंदिनी अचानक से पीछे मुड़ती है जिसे नंगा देखकर रन्झा का मुह खुला रह जाता है.
रन्झा - राजकुमारी आप क्या कर रही हैं.
नंदिनी - आप अंदर कैसे आई धाई माँ. रन्झा को राजकुमारी और राजकुमार धाई माँ बुलाया करते थे.
रन्झा - मै तो तुम्हें खोजते हुए आई हूँ. राजमाता ने मुझे आपको तैयार करने के लिए भेजा है.
नंदिनी - मै कोई दुध पीती बच्ची थोड़े ही हूँ की मुझे तैयार करवाना पड़ेगा.
रन्झा - वो तो मै भी देख रही हूँ कि आप दुध पीती बच्ची नहीं हैं. बल्कि आप किसी को दुध पिला दीजियेगा. ऐसा कहते हुए रन्झा नंदिनी के पास पहुँच कर उसकी दोनों चूची को अपने हाथ मे ले कर मसल देती है. नजदीक आने से रन्झा को नंदिनी के शरीर पर दाँत काटने के निशान देखती है. साथ ही नंदिनी की योनि की लालिमा रन्झा के मन मे शंका पैदा करती है. रन्झा बोलती है कि आप भी अपनी माँ की तरह बला की खूबसूरत हैं. वैसे ही स्तन, नयन नखस् और वैसी ही सुन्दर योनि. जो भी ईस बुर को देख ले, वो तो हस्तमैथुन करते करते मर जाए.
नंदिनी - ( मन ही मन खुश होती है और कहती है) धत् धाई माँ, आप कैसी बातें करती हैं. आपने माँ की बुर देखीं है क्या? और आपके पास भी तो बुर है. सबकी योनि तो एक ही तरह की होती है.
रन्झा - (मन में, अब आई ये लाईन पर.) राजकुमारी मैंने आपकी माँ को बचपन से देखा है और उन्हें रोज तैयार करती हूँ. तो इसके लिए वो मेरे सामने नंगी होती हैं. और हाँ सबकी बुर एक जैसी नहीं होती. मेरी बुर पे घनी झांटे है. आपदोनों की बुर कोई देख ले तो बिना चोदे नहीं मानेगा. आप तो अभी चुदवा लें तो बच्चा पैदा हो जाये. वैसे एक बात पूछूँ. नंदिनी ने कहा पुछो.

रन्झा - आपने रात्रि मे किसी पुरुष के साथ सम्भोग किया है क्या?
ये सुनकर नंदिनी के होश उड़ गये. उसने कहा आप ये क्या कह रही है. रन्झा कहती है की मै सही कह रही हूँ. मेरी अनुभवी आँखे कह रही हैं की रात में आपने मस्त चुदाई का मजा लिया है. आपकी लाल योनि और स्तन पे दाँत के निशान इसकी गवाही दे रहे हैं. नंदिनी समझ जाती है कि छुपाने से अब कोई फायदा नहीं है, उसकी चोरी पकड़ी गयी है.
नंदिनी- आप सत्य कह रही हैं धाई माँ. रात में मैने सम्भोग किया है. क्या करूँ इस जवानी की गर्मी सही ही नहीं जा रही. अब आप ही बताओ इस 20 साल के उम्र में मै लण्ड के बिना कैसे जियूँ.
रन्झा - मै समझती हूँ राजकुमारी. तभी तो मैने राजमाता को अभी कहा है कि लाडो को अब एक लण्ड दिला दो.
नंदिनी - धत्त, सच मे आपने राजमाता से ऐसा कहा. उन्होंने क्या कहा.
रन्झा - राजमाता भी समझती हैं. मै समझती हूँ की बुर की आग क्या होती है. मै राजमाता को कुछ नहीं बताऊंगी, नहीं तो वो तुम्हारी चुदाई बन्द करा देंगी. लेकिन लाडो मै भी तुम्हारी धाई माँ हूँ, तुम्हारा भला चाहती हूँ. इसलिए एक सलाह देती हूँ की चुदाई के बाद पुरुष का वीर्य अपनी योनि मे मत गिरने देना, नहीं तो तुम गर्भवती हो जाओगी. और हाँ सम्भोग किसी अपने नजदीकी से ही करना जिस पर तुम्हें विश्वास हो, नहीं तो बाहर वाले से चुदवाओगी तो काफी बदनामी होगी.
नंदिनी - जैसा आप कहे धाई माँ और ऐसा कहकर वह रन्झा को अपने आलिंगन मे भर लेती है जिसे रन्झा दूर हटाती है और कहती है जल्दी तैयार हो जाओ. वैसे धाई माँ आप इतना कैसे जानती हैं. किसी नजदीकी से अपनी बुर चुदवा रही हैं क्या और ऐसा कहकर चोली के ऊपर से ही रन्झा की चूची दबा देती है और घाघरे के उपर से ही उसकी बुर दबोच लेती है. रन्झा भी मुस्कुरा देती है और नंदिनी की नंगी बुर को सहला देती है. तब तक बाहर से देवकी आवाज देते हुए अंदर आ जाती है की नंदिनी तैयार हुई की नहीं. आवाज सुनते ही दोनों अलग हो जाती हैं और नंदिनी जल्दी टब मे घुसकर नहाने लगती है. लेकिन तब तक देवकी नंदिनी की नंगी बुर और नंगा बदन देख चुकी थी. और वह रन्झा के कान में धीरे से बोलती है की तू सही कह रही थी. लाडो को अब लंड चाहिए. ये बात नंदिनी सुन लेती है और उसके तन बदन मे सुरसुरी दौड़ जाती हैं और वह मन में कहती है कि मै कैसे बताऊँ माँ की मैने अपनी योनि मे लण्ड ले लिया है लेकिन किसका लिया है ये समय आने पर बताऊंगी. फिर देवकी उसको जल्दी तैयार होने को बोल कर बाहर आ जाती है. फिर नंदिनी फटाफट तैयार होकर अपने वस्त्र कक्ष में जाकर गुलाबी रंग की घाघरा चोली पहन कर बाहर आ जाती है. जिसकी सुंदरता देखकर देवकी दंग रह जाती है. वह क्या जानती है की ये बदलाव रात की चुदाई का कमाल है. नंदिनी फिर कहती है कि ये चुन्नी तो ले ले लाडो, सबको अपना बड़ा दूध दिखाती रहेगी क्या. और तु जल्दी जाकर पूजा कक्ष मे पूजा की सामग्री देख लो तब तक मै अपने लाड़ले पुत्र को देखकर आती हूँ कि वह तैयार हुआ की नहीं और ऐसा कहकर राजमाता देवकी अपने लाड़ले पुत्र राजा विक्रम सेन के कक्ष की ओर चल देती है. पीछे पीछे रन्झा भी दौड़ते हुए आती है.

अगले update मे आप देखेंगे की राजा विक्रम सेन के कक्ष में क्या क्या होता है....
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Ajay

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Update 4
आज राजमाता देवकी इसलिए सबको सुबह सुबह जगाने जा रही है क्यों कि आज राजा विक्रम सेन के जन्मदिन के अवसर पर सूर्योदय के समय ही कुल देवता के मंदिर में पूजा अर्चना करनी थी, आखिर राजज्योतिषी ने मुहूर्त जो निकाला था. देवकी के तो पैर ही जमीन पे नहीं पड़ रहे थे और वो तो मानो हवा में उड़ रही थी. वह राजा के कक्ष में कभी नहीं जाती है. लेकिन आज की तो बात ही कुछ और थी. अपनी ही धुन मे वह अपने पुत्र राजा विक्रम सेन के कक्ष के सामने पहुँचती है. देवकी को देखकर द्वारपाल भी चौंक जाता है. उसे उम्मीद नहीं थी की राजमाता राजा के कक्ष में पधारेंगी. देवकी द्वारपाल से पुछती है की क्या राजा अपने कक्ष में है. द्वारपाल हाँ मे अपना सर हिलाता है और राजमाता को आदर पूर्वक राजा के कक्ष मे अंदर ले जाता है. राजा के कक्ष में जाने के लिये एक लम्बा गलियारा था और द्वारपाल को उस गलियारा के बाद आगे जाने की अनुमति नहीं थी. सो द्वारपाल देवकी को गलियारा पार कराकर राजा के कक्ष के सामने छोड़कर अनुमति ले लेता है तथा पुनः राजा के कक्ष के मुख्य द्वार पे चला जाता है.
इधर अपने कक्ष मे राजा विक्रम सेन सुबह सुबह निश्चिंत उठता है और नंगा ही अपने कक्ष में टहलने लगता है. राजा अपने कक्ष में पूर्ण नग्न ही सोता था . उसके कक्ष मे उसकी अनुमति के बिना कोई नहीं आता था. ये बात तो द्वारपाल भी जानता था की राजा के कक्ष में कोई नहीं जाता है. लेकिन उस बेचारे की क्या बिसात थी राजमाता को अपने ही पुत्र के कक्ष में जाने से रोक सके. इधर कक्ष में राजा भी निश्चिन्त था की कोई उसके कक्ष मे कोई नहीं आयेगा और राजमाता के आने की तो वह कल्पना भी नहीं कर सकता था क्योंकि राजकीय नियम के अनुसार यदि राजमाता को राजा से मिलना हो तो राजा ही राजमाता के कक्ष में जाता था ना कि राजमाता राजा के कक्ष में जाती थी. लेकिन आज राजमाता देवकी तो अलग ही धुन मे थी. वह सारे राजकीय नियम ताक पे रख कर राजा के कक्ष के द्वार पर पहुँच गई थी. इधर राजा अपने कक्ष से अपना लण्ड लटकाये हुए स्नानागर मे दैनिक क्रिया के लिए घुस जाता है और अपने लिंग को अपने हाथ मे लेकर पेशाब पात्र में पेशाब करने लगता है. सुबह के समय ढेर सारा पेशाब निकलता है और वह अपने लिंग के सुपाडे पर लगे पेशाब की अंतिम बूँद को अपनी उँगली पर लेकर उसे सूंघता है और मदहोस होने लगता है. राजा विक्रम की शुरु की ही ये आदत थी की वह सुबह सुबह अपने पेशाब की बूँद को सूंघता था और फिर अपने लण्ड की चमड़ी को उल्टा करके सुपाड़े पर लगे सफेद परत को अपनी उँगली पर लगा कर सूंघता था. आज भी उसने ऐसा ही किया और फिर आँखे बन्द कर अपने लण्ड और अंडकोष से खेलने लगा. फिर उसे याद आया की आज तो उसे जल्दी तैयार होना है मंदिर जो जाना है. वह स्नानागर के आदमकद आईने के सामने खड़ा हो कर खुद को निहारने लगता और अपनी मर्दानगी पर गर्व करते हुए सोचने लगता है की आज तो पड़ोसी राज्यों के राजा अपनी रानियों और राजकुमारियों के साथ पधारेंगे, आज तो लण्ड महाराज दिन भर अपना सिर ही उठाते रहेंगे. यही सोच कर वह अपने हाथ नीचे ले जाकर लण्ड को सहला देते हैं जिससे लण्ड मे कडापन आ जाता है.

इधर राजा के कक्ष मे राजमाता देवकी पहुँच कर उसे खोजने लगती है. शयन कक्ष, भोजन कक्ष, अतिथि कक्ष सभी जगह अपने लाड़ले पुत्र को खोजती है लेकिन उसे वह कही नहीं मिलता है. वह गुस्से मे बोलती है किसी को कोई फिकर नहीं है. आज सुबह मंदिर जाना है और सहेबजादे की कोई खबर ही नहीं. अंत मे वह थक कर सोचती है एक बार स्नानागर मे देख लेती हूँ. फिर उसके कदम राजा के स्नानागर के तरफ बढ़ चलते हैं. उसे जरा भी अहसास नहीं था की आज वह अपनी जिन्दगी की सबसे खूबसूरत चीज देखने जा रही है. वह परदा हटाकर जैसे ही अंदर दाखिल होती है उसका मुह खुला का खुला रह जाता है. देखती है की उसका लाडला पुत्र पूर्ण नग्न अवस्था में शीशे के सामने खड़ा है. राजा विक्रम देवकी की ओर पीठ करके खड़ा था सो वह देवकी को नहीं देख पा रहा था और देवकी भी ये नहीं देख पा रही थी की उसका लाडला पुत्र अपने लाड़ से खेल रहा है. देवकी अपने पुत्र को पीछे से उसकी पीठ और सुडोल नितंब देख कर मंत्र मुग्ध हो रही थी. उसे कुछ नहीं सूझ रहा था. राजा विक्रम सेन लम्बे तो थे ही उनका बदन भी छरहरा था. उनके कंधे तक बाल और चौड़े कंधे उन्हें और आकर्षक बनाते थे और उनके हल्के उठे हुए चुतड राजमाता देवकी को और पागल बना रहे थे. अचानक वह मंत्र मुग्ध हो कर मन में बोलती है, ये तो हुबहु अपने पिता श्री पे गया है. पीछे से देखने पर लगता है महाराज ही बिल्कुल नंगे खड़े हैं. लेकिन मेरे पुत्र के नितंब महाराज से ज्यादा सुडोल और कामुक है. ऐसा सोचते सोचते वह अपना एक हाथ नीचे ले जाकर घाघरे के उपर से ही अपनी बुर रगड़ देती है और दूसरे हाथ से अपनी चूची को दबाने लगती है और वह ये भुल जाती है की वो यहाँ अपने पुत्र को लेने आई थी. उसे याद आने लगता है की कैसे महाराज भी रोज नंगे हो जाते, उसे भी नंगी करते और रात भर उसकी बुर मे लण्ड डालकर घमासान चुदाई करते. वे भी क्या दिन थे.उधर राजा विक्रम अपने लाड़ से खेल रहा था इधर उसके पीछे उसकी प्यारी माँ देवकी घाघरे के उपर से अपनी बुर सहला रही थी और अपनी चुच्ची दबा रही थी. दोनों अपने मे मगन थे. इसीबीच पंछियों की चहचाहट से दोनों का ध्यान भंग होता है. देवकी को याद आता है की वो यहाँ अपने पुत्र को लेने आई है. वह झट से अपना हाथ अपनी योनि और अपनी चुच्ची पर से हटाती है. लेकिन जल्दबाजी में वह इस स्थिति में स्नानागर से बहार जाने के बजाय अपने पुत्र राजा विक्रम को आवाज देती है. पुत्र.... आवाज सुनकर राजा विक्रम चौक जाते हैं. उन्होंने कभी नहीं सोचा था की उनके स्नानागर मे उनकी अनुमति के बिना कोई आ जायेगा और राजमाता के आने का तो प्रशन ही नहीं उठता है. लेकिन वास्तविक्ता ये थी कि राजमाता राजा के स्नानागर मे खड़ी थी. राजा भी अपनी माँ की आवाज सुनकर उसी स्थिति मे अपनी माँ की ओर घूमता है और अब अपनी माँ की तरफ मुह कर के खड़ा हो जाता है. इस स्थिति में अपने पुत्र को देखकर राजमाता का मुह खुला रह जाता है. उसके पुत्र का 9 इंच लम्बा और 3.5 इंच मोटा लण्ड सामने लटक रहा था जिसमे कडापन आ रहा था. साथ ही राजा की चौडी छाती और कंधे उसकी मर्दांगी दिखा रहे थे. राजमाता अपने ही पुत्र पर मोहित हो रही थी. वहीं दूसरी तरफ राजा का मुह भी अपनी प्यारी माँ की सुंदरता देखकर खुला रह गया. आज वह बिल्कुल परी लग रही थी. अपनी माँ की सुंदरता देखकर राजा के लिंग मे धीरे धीरे तनाव आने लगा और अब उसका लंड पूरा कड़क होकर खड़ा हो गया और अपनी माँ को सलामी देने लगा. देवकी अपने पुत्र का लौड़ा देखकर मुग्ध हो गई. उसके सामने उसके पुत्र का गोरा लण्ड खड़ा था जिसका गुलाबी सुपाड़ा अपनी माँ को प्यार से देख रहा था. लंड के आगे की चमड़ी पीछे खीची हुई थी. देवकी लगातार अपने पुत्र के खड़े लण्ड को प्यार से देखे जा रही थी. देखती भी क्यों नहीं, कितने सालों के बाद तो उसने लण्ड जो देखा था. माँ और बेटे मे से कोई कुछ नहीं बोल रहा था. तभी राजा विक्रम राजमाता से पूछते हैं.... मैया आप यहाँ कैसे.
लेकिन देवकी के मुह से कोई शब्द नहीं निकल पा रहे थे. राजा विक्रम तब धीरे धीरे अपनी माँ की ओर आगे बढ़ते हैं जिनकी नजर अपने लल्ला के लण्ड से हट ही नहीं पा रही थी. बिक्रम अपनी माता के सामने पहुँच कर खड़े हो जाते हैं और देखते हैं की उनकी माँ की नजर उनके लौड़े से हट ही नहीं रही है. उन्हें अपने उपर फक्र महसुस होता है और अपनी माँ को कहते हैं.... ये वही लण्ड है माते जिसे आप मुझे नहलाते समय रगड़ रगड़ धोया करती थी और मुट्ठी में भर कर नाप लेती थी. याद है ना आपको. ये आपकी मालिश का ही नतीजा है माते की आपके लल्ला का ये लण्ड इतना लम्बा और मोटा हो गया है...इस लण्ड पर आपका ही अधिकार है माते...और इतना कह कर वे अपनी माँ का हाथ पकड़ कर अपने लौड़े पर रख देते हैं जिसकी गर्मी देवकी को महसुस होती है. वह कहती है... ये क्या कर रहे हो पुत्र. लेकिन वह अपना हाथ अपने पुत्र के खड़े लौड़े से नहीं हटाती है, बल्कि मुट्ठी में पकडे रहती है. राजा विक्रम यह देखकर मंद मंद मुस्कुराते हैं और बोलते हैं...मां आज आप कितनी सुंदर लग रही है... लगता है आज स्वर्ग से अप्सरा धरती पर अवतरित हो गई है बिल्कुल नई नवेली दुल्हन लग रही है आप यह आपकी उन्नत चूचियां मुझे पागल कर रही है आपके सुंदर चेहरे से मैं नजर नहीं हटा पा रहा हूं.... इतना कहकर राजा अपने हाथ से अपनी माता की चुचियों को सहला देता है और अपने एक हाथ से उसके गालों को प्यार से सहलाने लगता है... अब राजा के स्नानागार में स्थिति यह थी कि राजमाता अपने पुत्र राजा विक्रम के लण्ड अपने को हाथ में पकड़ी हुई थी और राजा विक्रम अपनी माता देवकी की चुच्चियों को पकड़े हुआ था और एक हाथ से धीरे-धीरे गालो को प्यार से सहला रहा था..., राजा विक्रम बोलते हैं माते अब मुझसे रहा नहीं जाता .. मैं आप का दीवाना हो गया हूं ...मैं आपसे प्यार करना चाहता हूं क्या मैं आपकी गालों को चूम सकता हूं...मैं आप के गालों को चूमना चाहता हूं..राज माता कुछ भी बोलने की स्थिति मे नहीं थी...इसे मौन सहमति मान कर राजा अपनी माता के गालों पर चुंबन लेने लगता है ....इधर रन्झा भी राजा के कक्ष के बाहर राजमाता का इंतजार कर रही थी .... जब काफी देर हो गई तब वह राजमाता खोजते खोजते राजा के कक्ष के अंदर घुस आई... राजमाता को वहां ना पाकर है वह राजा के दूसरे कक्षों में ढूंढने लगी...जब वह दोनों कहीं नहीं दिखे तब अंततः रांझा राजा के स्नानागार की ओर बढ़ चली और वहां पहुंचकर जैसे ही उसने स्नानागार का पर्दा हटाया उसका मुंह खुला का खुला रहता है ..वह राजमाता राजमाता आवाज लगते हुए अंदर दाखिल होती है और सामने देखती है की राजमाता अपने पुत्र राजा विक्रम का लंड अपने हाथ में लिए हुए हैं... रन्झा की आवाज सुनकर दोनों मां बेटे अपने अलग होते हैं ...राजमाता अपने पुत्र का लंड से अपने हाथ हटाती हैं राजा भी अपना हाथ अपनी मां की वक्ष् से हटाता है और अपनी मां के गालों से चुंबन लेना बंद करके पीछे हट जाता है.. रांझा का मुह मां बेटे को इस स्थिति में देखकर खुला खुला रह जाता है ...वह सोचती है कि क्या राजघराने में भी एक मां और बेटे के बीच ऐसा खुला संबंध हो सकते हैं... रांझा की आवाज सुनकर दोनों मां-बेटे चौक जाते हैं और अलग हो जाते हैं राजमाता के मुख से अभी भी कोई शब्द नहीं निकल पा रहे थे तब तक रांझा की नजर राजा विक्रम की लंड पर पड़ती है जिसे देखकर मंत्रमुग्ध हो जाती हो और मन ही मन सोचती है कि काश इस लंड से मुझे चुदने का मौका मिल जाता.... वह फिर राजमाता को याद दिलाती है की सूर्योदय होने को है पूजा का समय होने जा रहा है.. तब राजमाता के मुख से आवाज निकलती है और वह अपने पुत्र को कहती हैं कि तुम जल्दी से तैयार हो जाओ हमें जल्दी ही पूजा में चलना होगा ..इतना कहकर है वह राजा के स्नानागर से बाहर निकल जाती है तथा पूजा की तैयारियां देखने चली जाती है.... उसके पीछे रन्झा भी भागी चली आती है....
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Update 5
राजमाता देवकी झटके से राजा के स्नानागार से बाहर निकलती है और बाहर निकलते समय रांझा का हाथ पकड़कर पूजा के कक्ष की ओर चल जाती है अभी उसे होश नहीं था. उसके मन में पश्चाताप की और पाप की भावना घर करने लगती है. वह मन ही मन अपने को कोसने लगती है कि उसने आज यह क्या कर दिया उसे आत्मग्लानि होने लगती हैं कि कैसे उसने अपने पुत्र का लंड अपने हाथ में ले लिया था और सबसे बड़ी बात यह कि अपने पुत्र का लंड अपने हाथ में पकड़े हुए रंझा ने उसे देख लिया। शायद रंझा ने अगर राजमाता को इस स्थिति में नहीं देखा होता तो शायद देवकी को आत्मग्लानि भी ना हो रही होती। वाकई वह खुद ही नहीं समझ पा रही थी कि वह खुश है या उसे पश्चाताप का अनुभव हो रहा है

राजा के कक्ष से पूजा के कक्ष तक पहुंचने में उसे ऐसा लग रहा था मानो यह दूरी खत्म ही नहीं हो रही थी कभी वाह यह सोचकर शर्मा रही थी की क्या वह अभी भी इतनी जवान और सुंदर है कि उसके पुत्र का लंड उसे देख कर खड़ा हो गया है । उसे क्या पता था की हर एक पुत्र अपनी मां को पाने की , उसे चोदने की आकांक्षा रखता है और जो पुत्र अपने माता के प्रति ऐसा प्रेम आकर्षण नहीं रखता है उसके तो पुरुष होने पर ही संदेह है देवकी फिर अपने पुत्र के लंड के स्पर्श के अनुभव को याद कर पुनः उत्तेजना महसूस करनी लगती है और सोचने लगती है कि कितना कड़क और गर्म लौड़ा है मेरे पुत्र का. अपने पुत्र के लंड के गुलाबी सुपारी को याद कर वह मंत्र मुग्ध हो जाती है ।

यही सोचते सोचते देवकी पूजा कक्ष के पहुंच जाती है जहां पूर्व से ही नंदिनी पूजा के सामानों की व्यवस्था में लगी हुई है नंदिनी ने यहां पर पूजा की थाली तैयार कर ली थी जिसमें चंदन रोली अक्षत और पूजा के सभी सामान रखे हुए थे तथा एक दूसरे वाले पात्र में रंग बिरंगे फूल रखे हुए थे राजमाता पूजा कक्ष में पहुंचकर नंदिनी से पूछती है क्या पूजा की सारी तैयारी हो चुकी है आपने पूजा के लिए सभी आवश्यक वस्तुएं एकत्रित कर ली है । नंदनी हां में जवाब देती है और बोलती है कि भ्राता यदि तैयार हो गए हो तो हम सभी चलने को तैयार हैं । देवकी इस पर क्या बोलती है नंदनी के ऐसा पूछने से उसे अभी कुछ समय पहले का घटनाक्रम उसकी आंखों के सामने से गुजर जाता है। वह कैसे बताए कि वह गई तो थी अपने पुत्र को जल्दी तैयार करने के लिए लेकिन वहां उसने खुद ही अपने पूत्रके मोटे लिंग का दर्शन कर लिया है दर्शन तो छोड़िए उसने लिंग को स्पर्श करके उसे मुट्ठी में बांध लिया था फिर भी वह नंदनी को बोलती है कि बेटा आपके भ्राता जल्दी तैयार होकर पर आ रहे हैं।

इधर राजा स्नानागार में इस घटना के बाद तुरंत स्नान करने के लिए दूध से भरे मिट्टी के बड़े टब में घुस जाता है तथा अपने पूरे शरीर को रगड़ करके, अपने मोटे लोड़े को दूध से रगड़ रगड़ कर साफ़ करने लगता है उसे अभी की घटी घटना का कोई पश्चाताप नहीं था बल्कि उसकी तो मनोकामना आज पूर्ण हुई है कि उसने अपनी प्रिय माता को अपना लंड दिखाया ही नहीं है बल्कि उसके हाथ में में अपना लन्ड भी दिया था। वह आज की घटना के एक बात से बहुत खुश था की उसकी माता देवकी ने अपने लल्ला का लंड हाथ में तो पकड़ा था लेकिन वह उसे छोड़ने का नाम नहीं ले रही थी जबकि अगर चाहती तो उसे लंड पर से हाथ हटाने का पूरा अवसर था

यह सोच कर राजा मंद मंद मुस्कुराए लगता है और सोचने लगता है की एक दूसरे के यौन अंगों और जननांगों को देखने की लालसा दोनों माता और पुत्र में लगी हुई है वह सोचने लगता है की मेरी माता की योनि कैसी होगी मेरी जन्मस्थली कैसी होगी क्या मैं कभी अपनी जन्मस्थली के दर्शन पाकर धन्य हो पाऊंगा और वह मन में सोचता है कि आज मैं अपने कुलदेवता से ही यही आशीर्वाद मांगुंगा की मुझे अपनी माता के घाघरे के नीचे स्थित योनि जोकि मेरी जन्म स्थली है मेरा जन्म स्थान है , उसके दर्शन का और उसे स्पर्श करने का आशीर्वाद प्रदान करें ।

राजा को इस बात की थोड़ी भी भनक नहीं थी कि उसकी माता राजमाता देवकी ने चंद घंटे पहले ही उसके लंड की कल्पना करते हुए अपनी योनि में उंगली किया था । उसने अपनी बुर को रगड़ रगड़ के पानी निकाला था उसे क्या पता था कि उसकी माता श्री उसके लंड के प्रति आकर्षित है

तभी राजा को याद आता है कि आज उसे कुलदेवता की पूजा के लिए जल्दी तैयार होना है ऐसा याद आते ही वह तुरंत दूध के टब से बाहर निकलता है और मुलायम कपड़े से जाकर वस्त्र कक्ष में अपने गीले शरीर को पूछता है तथा वह पूजा के लिए पीले रंग का मलमल का कुर्ता और उसके साथ लाल रंग की मलमल की धोती पहनता है उसके ऊपर कधे पर भूरे रंग का उत्तराईया रखता है तथा इसके बाद अपने सिर को रत्नों से चरित्र सोने का मुकुट पहन कर तैयार हो जाता है राजा को भी पूजा के लिए जाना था इसलिए वह नंगे पैर अपने कक्ष से बाहर निकलता है बाहर निकलकर वह आभूषणों से भरे कास्ट अलमारी में से हीरे और मोती से चढ़े माला पहनता है तथा बाजू में बाजू बंद पहनता है और अपने शरीर पर सोने का छत्र पहन कर तैयार हो जाता है

आज राजा खुद ही देवता के समान दिख रहा था उसके कक्ष से बाहर निकलते ही सभी संत्ररी सावधान की मुद्रा में खड़े हो जाते हैं तथा वह पूजा कक्ष की ओर निकल चलता है उसके साथ 11 सैनिकों की एक टुकड़ी उसकी सुरक्षा देते हुए साथ में चल लेती है ।

राजा पूजा कक्ष में पहुंचकर सबसे पहले देवी देवताओं को प्रणाम करता है फिर वह अपनी माता देवकी के पैर छूता है और आशीर्वाद मांगता है देवकी उसे यशस्वी भव और विश्वविजय होने का आशीर्वाद देती है फिर राजा अपनी बड़ी बहन नंदिनी के पैर छूकर आशीर्वाद मांगता है नंदनी उसको कंधे से पकड़ कर उठाती है और सबसे पहले उसे उसके जन्मदिन की ढेरों बधाइयां देती है और उसे अपने गले से लगा लेती है तथा उसे दीर्घायु होने का आशीर्वाद देती है

राजा देवकी से पूछता है मां चले, क्या पूजा की सारी तैयारियां हो चुकी हैं और क्या हमें अब कुल देवता के मंदिर की ओर प्रस्थान करना चाहिए इस पर देवकी बोलती है की सारी तैयारियां तो हमारी पुत्री नंदिनी ने ही पूरी कर ली थी सारी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं इसलिए अब हम मंदिर की ओर प्रस्थान कर सकते हैं राजा अपनी माता देवकी और अपनी बड़ी बहन नंदिनी के साथ राजमहल के द्वार पर पहुंचता है जहां पहले से ही उन्हें ले जाने के लिए सेना की एक टुकड़ी हाथी के साथ खड़ी थी

राजमहल के द्वार पर खड़े हाथी पर राजा अपनी माता और प्रिय बहन के साथ बैठ जाता है । इस राजपरिवार का रिवाज रहा है कि जब भी कुलदेवता के मंदिर में दर्शन करने जाते थे तो हाथी पर ही बैठ कर जाते थे तथा पूरा परिवार एक ही हाथी पर बैठकर जाता था अब स्थिति यह थी कि हाथी के ऊपर बैठने के लिए एक मचान बना हुआ था जिस पर सबसे आगे राजा बैठा था तथा उनके पीछे एक तरफ राजमाता देवकी बैठी थी दूसरी तरफ उनकी बहन नंदिनी बैठी थी। परम्परा के अनुसार पूरा परिवार खुले हाथी पर बैठकर प्रजा का अभिवादन स्वीकार करके जाता था राजमहल से लेकर कुल देवता के मंदिर तक दोनों तरफ प्रजा थी तथा राजा की सेना उन्हें लेकर मंदिर की ओर जा थी । इसके आगे ढोल नगाड़े बजाते हुए सेना की टुकड़ी चल रही थी

प्रजा महाराज विक्रम की जय के नारे लगा रही थी साथ ही प्रजा महाराज विक्रम की जन्मदिन की ढेरों बधाइयां दे रहे थे । राज परिवार पर प्रजा अपने घर की छतों से पुष्प वर्षा कर रही थी पुष्पवर्षा ऐसी लग रही थी मानो पूरी सृष्टि राज परिवार के सदस्यों को पुष्प वर्षा कर आशीर्वाद दे रही थी। हाथी के ऊपर बैठे राजा , उनकी माता और बहन हाथी के चलने से कभी एक तरफ तो कभी दूसरी तरफ झुक जा रहे थे राजा आगे बैठे हुए थे तथा उन्होंने अपने हाथ अपनी जांघों पर रखे हुए थे जिससे उनके कुहुनी मुड़ी हुई थी ।

हाथी के चलने से राजा जैसे दाहिने झुकते हैं उनकी दाहिनी हाथ उनके पीछे बैठी माता की चूच्ची से को छू जा रही थी जिससे राजमाता को उत्तेजना का एहसास हो जाता है इसी तरह जब राजा बाईं तरफ झुकते हैं तब उनका बायां केहुनी नंदिनी के दाहिने चूची को छू जाता था इस तरह राजा की मां और बहन की चूची केबार-बार स्पर्श होने से उनमें उत्तेजना आने लगी थी क्योंकि हाथी के ऊपर बैठने के लिए जगह काफी नहीं था इसीलिए तीनों को सटकर ही बैठना पड़ रहा था । इसके अलावा उत्तेजना का अनुभव होने के कारण राजमाता जानबूझकर अपनी दाईं चूची को राजा केहुनि पर रगड़ती है।राजकुमारी नंदिनी भी अपने दाहिने चुची राजा के हाथ पर रगड़ कर उत्तेजना का मजा ले रही थी । राजमाता देवकि चुन्नी के अं द र से ले जाकर अपना एक हाथ अपनी दाहिनी चूची पर रख कर उसे दबाने लगी है और बाईं चूची को राजा के दाहिने केहूनी पर रगड़ती है ।

इसी तरह राजकुमारी नंदिनी अपनी दाहिनी चूची को राजा के हाथ से रगड़ती है । दूसरी तरफ अपना दाहिने हाथ से अपनी चूचीको रगड़ रहे थे साथ ही वह बीच-बीच में घाघरे के ऊपर से ही योनि को भी सहला देती हैं । राजा का काफिला आगे बढ़ते हुए जैसे ही मंदिर के दरवाजे पर पहुंचता है वहां पर 151 पंडित एक साथ शंख की ध्वनि करने लगते हैं जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि पूरी सृष्टि इस राज परिवार पर अपना खुशी दर्शा रही है।

इधर मंदिर के बड़े प्रांगणमें सभी राज्यों से आए हुए राजा अपनी सुंदर और कामुक रानी और राजकुमारियों तथा राजकुमारों के साथ अपना बैठने की निर्धारित स्थान को ग्रहण कर चुके थे ।राजा मंदिर के मुख्य द्वार पर हाथी से अपने माता तथा बहन के साथ उतरते हैं । राजपुरोहित उन्हें मंदिर के मुख्य द्वार पर आकर राजा का अभिनंदन करते हैं राजा के साथ उनकी बहन नंदनी तथा राजमाता देवकी भी खड़ी थी राजा राजपुरोहित का आशीर्वाद लेने के लिए उनके पैर छूते हैं उनके साथी नंदिनी और राज माता भी राजपुरोहित का आशीर्वाद लेने के लिए उनके चरण स्पर्श करती हैं राजपुरोहित का आशीर्वाद लेने के लिए तीनों एक साथ ही झुक जाते हैं और राजपुरोहित एक साथ ही तीनों को यशस्वी भव तथा सौभाग्यवती भव का आशीर्वाद देते हैं राजा अब मंदिर के गर्भ गृह की तरफ बढ़ने के लिए आगे बढ़ते हैं

इसके पहले वह पड़ोसी राज्यों के आए राजा से मिलने के लिए चल चलते हैं सबसे पहले वह टीकमगढ़ के राजा माधव सिंह से मिलते हैं माधव सिंह राजा के पिता के काफी घनिष्ठ मित्र थे दोनों एक ही गुरु के शिष्य थे राजा आगे बढ़कर उनके चरण स्पर्श करता है जिन्हें माधव सिंह ढेर सारा आशीर्वाद देते हैं राजा आगे बढ़ते हैं तथा रानी से आशीर्वाद लेते हैं रानी से आशीर्वाद लेकर राजा जैसे ही अपना सर ऊपर उठाते हैं उन्हें रानी के बगल में एक अप्सरा दिखाई देती है जिन्हें देखकर राजा का मुंह खुला रह जाता है यह और कोई नहीं टीकमगढ़ के राजा माधव सिंह के पुत्री राजकुमारी रत्ना थी । राजकुमारी रत्ना जो राजा विक्रम सिंह को देखने के लिए काफी उत्सुक थी क्योंकि राजा विक्रम सिंह के गठीला शरीर , चपलता और सुंदरता की दूर-दूर तक ख्याति थी, जिस राजकुमार को देखेने दूर दूर से रानी आई थी वह राजकुमार एक राजकुमारी के सामने प्रणय निवेदन की सोच रहा था उसकी नजरें राजकुमारी के चेहरे से हट ही नहीं रही थी , वह तो स्वर्ग से उतरी साक्षात अप्सरा दिख रही थी । राजकुमारी रत्ना 5 फीट 4 इंच लम्बी थी , संगमरमर जैसा गोरा बदन जिस पर ऐसा लगता था की उंगली रख दो तो चमड़ी फट जाएगी, उसकी खड़ी नाक, झील सी कजरारी आंखें, सुंदर होंठ , सुराही दार गर्दन उसकी सुंदरता में चार चांद लगा रहे थे । उसके उन्नत वक्ष राजा विक्रम को आकर्षित कर रहे थे । सुडौल नितंब राजा के लिंग में तनाव पैदा कर रहा था ।

राजा लगातार राजकुमारी रत्ना को देखे जा रहा था जिससे शरमा कर राजकुमारी रत्ना थोड़ा सा घुंघट कर लेती है लेकिन उसे यह क्या पता था कि भविष्य में यही राजा विक्रम सिंह उसके घूंघट को तो उठाएगा ही साथ ही साथ उसकी योनि के घुंघट को भी वही उठाएगा । लेकिन यह बातें तो भविष्य के गर्त में छुपी हुई थी

राजा को इस तरह बुत बना खड़ा देख राजकुमारी नंदिनी राजा के पास आती है जिससे राजा विक्रम की तन्द्रा टूटती है । अभी राजमाता देवकी विक्रम को छेड़ते हुए कहती है पुत्र अगर आपका हो गया हो तो पुत्र मन्दिर के गर्भ गृह में चलें । मंदिर के गर्भ गृह में पहुंचते ही राजपुरोहित राजा का तिलक करते हैं उनको अक्षत लगाते हैं तथा पूजा आरम्भ करते हैं । मंत्रों का उच्चारण कर कुल देवता का आह्वान करते हैं। राजा, राजमाता और राजकुमारी तीनों पूजा करते हैं

इस दौरान राजा के दाहिनी ओर राजमाता और बाई ओर राजकुमारी नंदिनी थी । राजा की माता और बहन दोनों भी बला की खूबसूरत थी ऐसा लग रहा था मानो दोनों राजा की मां और बहन ना होकर राजा की प्रेमिका , उनकी पत्नियां हैं तीनों साथ में ही जल अर्पण करते हैं ऐसा लगता है तीनों जन्म जनता जन्मांतर से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं ।

पूजा समाप्त होने पर राजपुरोहित राजा को लंबी आयु का आशीर्वाद देते हैं इस पर राजा राजपुरोहित के पैर छू का आशीर्वाद लेते हैं। फिर राजपुरोहित राजा को अपनी माता से आशीर्वाद लेने को बोलते हैं जिस पर राजा अपनी माता देवकी के पैर छूने के लिए के लिए झुकता है। राजमाता देवकी अपने दोनों हाथ राजा के सर पर रखकर राजा को दीर्घायु होने का आशीर्वाद देती है । राजा आशीर्वाद लेते समय थोड़ा रानी के नजदीक जाकर झुक गया था जिसके कारण उठते समय राजा का चेहरा राजमाता के घाघरे के उस जगह से छू जाती है जिसके नीचे राजमाता का खजाना उसकी योनि थी।

राजमाता की योनि से भीनी भीनी खुशबू आ रही होती है जो राजा को मदहोश कर देती है। राजमाता को इतने लोगों के सामने राजा का मुंह घागरे से छू जाने के कारण वह थोड़ी असहज हो जाती है। राजा के मुंह और राजमाता की योनि के बीच केवल घाघरे का एक कपड़ा था जो अगर इस वक्त नहीं होता तो राजा के सामने राजमाता की योनि, राजा की जन्मस्थली सामने दिख रही होती ।

राजा फिर अपनी बहन राजकुमारी नंदिनी का आशीर्वाद लेने के लिए झुकता है राजकुमारी उसे उठाकर अपने गले लगा लेती है राजकुमारी की दोनों चूचियां राजा की चौड़ी छाती में छिप जाती है जिससे राजा को मजा आता है, पहले से गरम नंदिनी को भी मस्ती चढ़ जाती है और वह राजकुमारी को सबके सामने भीच लेता है और उसकी नरम चूच्चियों को अपने सीने में दबा लेता है राजपुरोहित ने तीनों को हाथ जोड़कर कुलदेवता से आंख बंद करके कुछ मांगने को कहते हैं । इस तरह पूजा समाप्त होती है और राजा अपनी माता और बहन के साथ राजमहल की ओर लौट चलते हैं । आज रात राजमहल में राजा के जन्मदिन के अवसर पर एक बड़े भोज का आयोजन किया है । राजा सभी राजाओं को महाभोज में आने का निमंत्रण देकर वापस राजमहल की ओर अपनी माता और बहन के साथ चल देता हैं ।

रास्ते में राजकुमारी नंदिनी राजा को छेड़ते हुए कहती है भ्राता क्या आपको राजकुमारी रत्ना भा गई थी इस पर राजकुमार जवाब नहीं देते हैं और कहते हैं नहीं ऐसी कोई बात नहीं है लेकिन राज माता देवकी ने कहा कि राजकुमारी रत्ना बला की खूबसूरत है तथा वह हमारे लल्ला की छल्ला बनने की पूरी योग्यता रखती है जिस पर राजकुमारी नंदिनी भी मंद मंद मुस्कुराती हुई राजमहल की ओर निकल पड़ते हैं।

अब आगे देखेंगे की भोज में क्या होता है
Nice update bhai
 

Ravi2019

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Update 12

तो अभी नंदिनी के कक्ष में राजमाता देवकी अपने बेटे और बेटी को गले से लगाए बैठी थी। अब देवकी का गुस्सा तो शांत हो ही गया था , सुबकना भी कम हो गया था, लेकिन वो अंदर से हिल गई थी अपने बेटे और बेटी की चुदाई देख कर। राजा विक्रम अब स्थिति सामान्य होता देख बोलते हैं
आइए माते, आप आसन पर बैठिए।

राजा विक्रम के ऐसा कहने से देवकी की तंद्रा टूटती है और वह खड़ी हो जाती है और अपने पुत्र और पुत्री का हाथ पकड़कर अपने साथ आसन की ओर ले जाती है।अभी तक राजा विक्रम और राजकुमारी नंदिनी दोनो पूरे मादरजात नंगे ही थे। आसन ग्रहण कर राजमाता इन दोनो को नंगा देख कर कहती है

अरे कमबख्तों अब तो कम से कम अपने नंगे शरीर को चादर से ही ढक लो,,, तुमदोनो को अपनी मां के सामने नंगा खड़ा होने में शर्म नही आती और ऐसा कह कर वह हल्के से मुस्कुरा देती हैं।

राजमाता देवकी की बात सुन नंदिनी रेशम के चादर से खुद को ढक लेती है और एक चादर अपने भाई राजा विक्रम को दे देती है। देवकी के कहने पर दोनो आसन ग्रहण कर लेते हैं, फिर देवकी राजा विक्रम से पूछती है

पुत्र आपने ऐसा क्यों किया, मालूम है न ये आपकी बहन है और बहन के साथ कोई यौन संबंध नहीं बनाता। इस पर राजा विक्रम कहते हैं

राजमाता, मै नंदिनी से प्यार करता हूं और वो भी मुझसे उतना ही प्यार करती है, मै इसके बिना जीवित नहीं रह सकता।

प्रेम करते हो तो इसका मतलब ये तो नहीं है कि तुम अपनी बहन के साथ ही यौन संबंध स्थापित कर लोगे,,,, हरेक भाई अपनी बहन को प्यार करता है,,,तो इसका मतलब ये तो नहीं की हरेक भाई अपनी बहन को चोद ही दे।

लेकिन मै नंदिनी से सच्चा प्यार करता हूं मां और एक स्त्री और पुरुष के बीच यौन संबंध उसी प्रेम की पराकाष्ठा है,,,उसी प्रेम की स्वाभाविक परिणति है और मै तो मानता हूं कि स्त्री पुरुष का प्रेम यौन संबंध बना कर ही प्रकट किया जा सकता है भले ही रिश्ता कोई भी हो,,,,

मै भी भाई विक्रम की बातों से पूरी तरह सहमत हूं मां,,,नंदिनी ने कहा

अच्छा तो ये बात है,,तुम दोनों के बीच स्त्री पुरुष वाला प्रेम हो गया है,,,,लेकिन मै ये नहीं समझ पा रही हूं की तुम दोनों एक दूसरे के प्रति आकर्षित कैसे हो गए,,,

ये बहुत लंबी कहानी है मां और इसके लिए हमारे हालात भी जिम्मेवार है की हम दोनों एक दूसरे के करीब आते गए,,,राजा विक्रम ने कहा

फिर नंदिनी कहती है,,,पिता जी का गुजर जाना ,,विक्रम का राजा बनना हमारे नजदीक आने की परिस्थितियां बनाने लगा,,,हमे नजदीक आने का मौका ही मिलता चला गया,,,

क्या परिस्थितियां रहीं मेरे बच्चो की तुम दोनो एक दूसरे के साथ सहवास करने की सीमा तक पहुंच गए ,,,जब कि तुम्हे पता है कि भाई बहन के बीच सम्भोग तो शास्त्रों में भी वर्जित है,,,

राजा विक्रम __ माते आपको तो मालूम ही है हम दोनो एक साथ नहाते हैं,,,,,,नंदिनी भले ही बड़ी बहन है, लेकिन मैं उसके नंगे शरीर के प्रति आकर्षित हो जाता था और शायद नंदिनी को भी मेरा नंगा बदन अच्छा लगता रहा होगा,,,और आप शायद सोचती रही होंगी की, ये मेरे बच्चे नर और मादा के बारे में क्या समझते होंगे,,,ऐसा ही था ना मां

देवकी ___हां यही बात है,,मै तो तुम दोनों को नासमझ समझती थी

लेकिन यहीं से तो हमारे बीच शारीरिक आकर्षण की शुरुआत हो गई,,,मुझे अपने भाई विक्रम को नंगा देखना अच्छा लगने लगा,,,मुझे उसके साथ रहना उसके साथ खेलना अच्छा लगने लगा,,,नहाते समय मैं इसका लन्ड ही देखा करती थी जो बड़ा था और तो और जब विक्रम की नुन्नी पेशाब लगने पर थोड़ी कड़ी हो जाती तो मुझे बड़ा आश्चर्य होता था कि इतनी छोटी नुन्नि बड़ी कैसी हो जाती है,,,मै बड़ी बहन थी तो मुझमें समझ भी ज्यादा थी और यही समझ मुझे अपने छोटे भाई विक्रम के तरफ आकर्षित कर रही थी या यों कहें की मै ही विक्रम के प्रति ज्यादा आकर्षित हो गई थी,,, और जब कभी स्नानागार में हमें नंगे रहते,,,मै ही आगे बढ़कर विक्रम को पकड़ लेती और उसके नंगे शरीर को अपने नंगे शरीर से चिपका लेती और मुझे असीम आनन्द की अनुभूति होती,,शायद विक्रम को भी आनंद मिलता रहा होगा,,,नंदिनी ने बीच में कहा।

हां ये सही है कि जब दीदी मुझे अपने नंगे बदन से चिपकाती तो मुझे भी अच्छा लगता,,,,,,मैं भी नहाते समय दीदी की बुर को ही देखा करता था,,,सोचता इसे नून्नी क्यों नहीं है,,,इसका नुन्नी के जगह पे सपाट क्यो है,,,लेकिन वो सपाट जगह मुझे बड़ी अच्छी लगती,,,मै सोचा करता था मैं तो नुन्नी से पेशाब कर लेता हूं लेकिन दीदी कहां से करती होगी,,,,तो एक दिन जब आप हमे छोड़ कर गई और दीदी ने मुझे अपने नग्न शरीर से चिपका लिया तो मैने दीदी से पूछा,,,, उस समय मेरी उम्र 20 वर्ष रही होगी,,
दीदी एक बात पूछनी थी,,,
हां पूछ विक्रम
गुस्सा तो नहीं हो जाएगी
नहीं पगले मैं तुझसे कभी गुस्सा हो सकती हूं क्या,,तू तो मेरा प्यारा सा छोटा सा लाडला भाई है,,,मै क्यों तुझसे गुस्सा होने लगी भला,,,पूछो क्या पूछना है,,,

दीदी, मेरी तो नुन्नी है जहां से मैं पेशाब करता हूं,, लेकिन तुम्हारे तो नुन्नी है ही नही, तो तुम पेशाब कहां से करती होगी और तुम्हारे पास यहां पे नुन्नी क्यों नहीं है,,,मैंने अपना हाथ दीदी के बुर पर रख कर पूछा,,,

इस पर दीदी हसने लगी और कहा,,, अरे पगले पुरुष के पास नुन्नी होता है और स्त्रियों के पास नुन्नी पुरुषों की तरह नहीं होती,,,स्त्रियों के पास ऐसी ही नुन्नी होती है,,,और अपनी उंगली से अपनी बुर की और इशारा कर के बताया,,,
तो क्या हरेक स्त्री की नुन्नी ऐसी ही होती है,,,
हां, स्त्रियों की नुन्नी ऐसी ही होती है,,
तब तो मां की और धाय मां रांझा की भी नुन्नी ऐसी ही होगी,,,
हम्म्म,,मैने देखा तो नहीं है उनकी नुन्नी,,,लेकिन वो भी तो स्त्रियां है तो उनकी नूनी भी ऐसी ही होनी चाहिए,,,
ओह तो ये बात है,,,लेकिन एक बात बताऊं आपको,,,मुझे आपकी नुन्नी बड़ी ही सुंदर लगती है,,जब भी हम नहाने आते है,,मै आपकी नुन्नी ही देखता रहता हूं,,,
मुझे भी तुम्हारी नुन्नी बहुत प्यारी लगती है भाई,,,

अच्छा दीदी,, लेकिन तुम पेशाब कैसे करतीं हो दीदी,,,

मै यही से करती हूं पेशाब और नंदिनी ने अपनी बुर की ओर उंगली से इशारा करते हुए विक्रम को बताया,,

मुझे देखना है तुम्हे पेशाब करते हुए,,दिखाओगी मुझे पेशाब करके दीदी,,,,,

अच्छा तो मेले बाबू को देखना अपनी बहन को सुसु करते हुए,,
हां दीदी मुझे देखना है तुम पेशाब कैसे करती हो,,,

ठीक है मैं दिखाती हूं अपने बाबू को की मै सुसु कैसे करती हूं,,,

ऐसा कहकर नंदिनी नीचे जमीन पे पेशाब करने की मुद्रा में बैठ जाती है और बोलती है

विक्रम तू भी मेरे सामने आकर मेरी तरह बैठ जा तभी तो तू देखेगा की मै पेशाब कहां से करती हूं,,,

इस पर विक्रम भी नंदिनी के सामने आकर बैठ जाता है और नंदिनी उसके सामने पेशाब करने लगती है तथा उसकी चूत से सिटी की आवाज आने लगती है,,,अपनी बहन को पेशाब करता देख विक्रम को भी पेशाब आने लगती है और वो भी नंदिनी के सामने बैठे हुए पेशाब करने लगता है,,,दोनो भाई बहनों की पेशाब की छीटें भी एक दूसरे पर पड़ रही थी,,, लेकिन फिर भी दोनो एक दूसरे के सामने बैठ कर पेशाब कर रहे थे और एक दूसरे को पेशाब करते हुए देख रहे थे,

तो इस तरह मां हमदोनो एक दूसरे के प्रति आकर्षित होने लगे और दिन पर दिन हमारा ये एक दूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ता ही गया,,,, लेकिन शुरुआत तो यहीं से हुई थी,,,नंदिनी ने कहा

हम्मम, अच्छा तो ये बात है,,,इसका मतलब गलती मेरी ही है इसमें,,,ना मैं तुमदोनो को साथ छोड़ती,ना ये सब तुम दोनो के बीच होता,,,देवकी ने कह।

नहीं मां,, इसमें तुम्हारा दोष नहीं है,,शायद परिस्थितियां ही ऐसी बन गईं थीं की हम दोनो भाई बहन होते हुए भी एक दूसरे के नजदीक आ गए थे,,, क्यों कि अगर आपका दोष होता तो एक दूसरे के करीब नही आते,,,,बल्कि एक दूसरे से दूरी बना लेते,,,मगर ऐसा नहीं हुआ मां,,,शायद प्रकृति भी यही चाहती थी हम दोनो भाई बहन एकाकार हो जाएं,,,,नंदिनी ने कहा
क्योंकि जब हमदोनो ने नंगा नहाना बंद कर दिया,,, लेकिन हमारे बीच आपसी आकर्षण बरकरार रहा,,,अब हम राजकुमार और राजकुमारी थे तो हमारा कोई दोस्त भी नही हो सकता था,,,केवल धाय मां का बेटा कालू ही था जो कभी कभार हमारे साथ खेला करता था,, नहीं तो केवल हम दोनों भाई बहन ही हमेशा साथ रहते,,,, तो इसलिए खेलते खेलते जब हम देखते की कक्ष में कोई नहीं है और हम दोनों बिल्कुल अकेले है ,,, तो मै बड़ी बहन होने के नाते पहल करती और विक्रम को पकड़ कर कक्ष के ऐसे कोने में ले जाती जहां हम दोनो छुप कर बैठ सकते थे,,,वहां नीचे जमीन पर उकडू बैठ जाती और विक्रम को भी अपने सामने बैठा लेती और मै अपना घाघरा उठा कर विक्रम को अपनी नंगी बुर दिखाती और विक्रम को भी धोती खोलने को बोलती तब विक्रम भी अपनी धोती खोलकर नंगा ही मेरे सामने बैठ जाता और अपना लंड मुझे दिखाता,, फिर हम दोनो काफी देर तक एक दूसरे के यौनांगों को निहारते रहते ,,,,फिर कुछ महीनों तक हम कुछ नहीं करते ,,,,

इसी बीच आप और पिताश्री आखेट के लिए कुछ दिनों के लिए जंगल गए,,,तो हमे फिर मौका मिल गया,,,जिस दिन आप दोनो आखेट के लिए राजकीय यात्रा पर गए उसी दिन मै आपके कक्ष में विक्रम का हाथ पकड़ कर उसी कोने में ले गई और नीचे बैठ गई,,,
और नीचे बैठ कर अपना घाघरा उठा लिया,,,विक्रम भी जानता ही था की उसे क्या करना है,,,तो वो भी अपनी धोती खोल कर फेंक दिया अपना लंड लटकाए हुए मेरे सामने बैठ गया और मेरी बुर देखंकर उसका मुंह आश्चर्य से खुला रह गया क्योंकि उसने मेरी बुर पे झांटे नही देखी थी,,,हालाकि विक्रम का लंड मेरी बुर देख कर अब खड़ा होने लगा था जो मुझे बहुत आकर्षित कर रहा था,,,,,,हम दोनो फिर काफी देर तक एक दूसरे के यौनांगों को देखते रहे,,,फिर हमे कदमों की आहट सुनाई पड़ी तो हम दोनो खड़े हो गए और मैंने अपना घाघरा नीचे कर दिया और विक्रम ने धोती पहन ली,,,
लेकिन विक्रम के प्यारे लंड को देख मेरे शरीर में गर्मी बढ़ गई थी,,,,लेकिन हम दोनो इसके आगे कुछ नहीं कर पा रहे थे और न ही इससे आगे बढ़ ही पा रहे थे,,,आप और पिताश्री अब आखेट से भी आ चुके थे तो अब हमें कोई मौका नहीं मिल पा रहा था,,,

इधर हमे आप अपने कक्ष में ही एक ही शैय्या पर सुलाने लगी हीं थी, क्योंकि हमे बुखार आ रहा था,,हम दोनों के अंदर पहले से आकर्षण तो था ही,,लेकिन अब हमारे बीच एक संकोच की दीवार भी थी,,,लेकिन परिस्थिति ने फिर हमारा साथ देना शुरू कर दिया,,,
मेरी काम भावनाएं भी बढ़ने लगी थी,,,मेरे अंदर अब लंड की प्यास बढ़ने लगीं थी,,,लेकिन वो कहते हैं ना कि स्त्री अपनी भावनाओं को काबू करना सीख जाती है और समाज और रीति रिवाजों के बंधन में अपनी भावनाओं को दबा कर रखती है,,, तो मै भी स्त्री के स्वाभाविक व्यवहार के कारण अपनी भावनाओं को दबा कर रख रही थी,,,,
लेकिन आपको तो याद होगा मां की आप हमे अपने कक्ष में शैय्या पर सोता जानकर रात्रि में धीरे से उठकर पिता श्री के कक्ष में चली जाती थी,,,लेकिन हम दोनो की नींद तो रात में कई बार खुल ही जाती थी और हम लोग आपको आपके शय्या पर नहीं पाते थे,,,जिसकी जानकारी आपको कभी नहीं हो पाती,,,

हां ये तो है, मै तो तुम दोनों को सोता जान कर ही जाया करती थी और तुम दोनो कमबख्त जगे रहते थे,,, हाय राम ,,बड़े कमीने थे तुम दोनो,,, हहाहा,,,,ऐसा कह कर देवकी हसने लगती है,,,

अपनी बातों को जारी रखते हुए नंदिनी ने कहा,,,
ऐसे ही एक रात्रि को जब मै और विक्रम सोए हुए थे तो मैं काफी कामुक हो रही थी और स्वप्न में एक बहुत ही कामुक दृश्य देख रही थी की एक पुरुष अपना लिंग मेरी झांटदार चूत से लड़ा रहा था तो मैं काफी कामुक हो गई और मुझे पसीने छूटने लगे और बुर पूरी पनिया गई थी ,,, मै इतनी कामुक हो गई थी की मैंने सपने में ही हाथ विक्रम के तरफ फेका तो मेरे हाथ में विक्रम का हाथ आ गया,,,मैंने जोश में विक्रम का हाथ अपनी जांघों के बीच ले जाकर बुर पर रख दिया और अपने दोनो पैरों से विक्रम के हाथ को जकड़ लिया और कामुक आवाज निकालते हुई विक्रम के हाथ को अपने बुर पे रगड़ने लगी,,,अब विक्रम की भी आंखे खुल गई थी और वह भी अपने हाथ से मेरी बुर जोर जोर से रगड़ने लगा था,,,,विक्रम का भी जवान बहन का जवान बुर सहलाने और रगड़ने का पहला अनुभव था और मेरा भी बुर रगड़वाने का पहला अनुभव था जिससे हम दोनों काफी उत्तेजित हो गए थे हालाकि ये बुर रगड़ाई घाघरे के ऊपर से ही हो रही थी,,,,,,लेकिन फिर भी बुर की रगड़ाई से मैं बहुत जल्दी झड़ गई और फिर मुझे होश आया कि मैंने विक्रम का हाथ अपनी बुर के ऊपर दबाया हुआ है,, मै शर्म से पानी पानी हो गई,,,,
लेकिन मुझे अब पेशाब लगी थी तो मैं उठ कर स्नानघर में चली गई,,,,तथा पेशाब कर के वापस आकर फिर शैय्या पर लेट गई,,लेकिन अब विक्रम जगा हुआ था और उसकी आंखों में नींद नहीं थी तो मेरी आंखों से भी नींद गायब थी,,,कुछ देर के बाद विक्रम ने मेरी तरफ करवट ली और अपना एक हाथ सीधे ले जाकर घाघरे के ऊपर से मेरी बुर पर रख दिया जिससे मेरी सिसकी निकल गई और वह मेरी बुर को सहलाते हुए मेरी आंखों में देख रहा था,,,मै भी उसकी आँखों में देखे जा रही थी,,, मै उसे अब मना भी नहीं कर सकती थी क्योंकि अभी थोड़ी देर पहले मैं खुद उससे अपनी बुर रगड़वा रही थी,,तो अब मना भी करती तो किस मुंह से करती और हम दोनो बिल्कुल खामोश होकर आंखो में आंखे डाले एक दूसरे को देखे जा रहे थे,,,,, फिर विक्रम ने अपनी धोती की गांठे खोलकर अलग कर दिया तो उसका लौड़ा खड़ा होकर मेरी आंखों के सामने आकर मुझे सलामी देने लगा,,,फिर उसने अपने हाथ से मेरा एक हाथ पकड़ कर अपने लंड के पास ले गया और मेरा हाथ अपने लंड पर रख दिया जिससे मै पूरी तरह गनगाना गई और उसके मोटे लंबे लौड़े को हाथ में पकड़ कर सहलाने लगी और उसके लंड पर से उसकी खोली हटा कर उसके गुलाबी सुपाड़े को बाहर निकाल लिया ,,,उसका सुपाड़ा भी कड़ा होकर एकदम चिकना हो गया था जिसे मैं अपने अंगूठे से सहलाए जा रही थी,,, और मुझे बहुत मजा आ रहा था,,,मेरी काम भावनाएं एकदम भड़क गई थी और मैं विक्रम के लंड को खा जाना चाहती थी,,,उसके गुलाबी सुपाड़े की चिकनाहट मुझे मदहोश किए जा रही थी ,,,मन कर रहा था कि अभी घाघरा खोलकर अपनी नंगी बुर अपने प्यारे भाई को दिखा दूँ और उसके प्यारे से मूसल लण्ड को अपनी प्यासी योनि में डालकर सो जाऊँ,,,लेकिन वो कहते हैं ना कि मर्यादा हमने बहुत कुछ करने से रोकती है भले ही हमारा मन वो करने को कर रहा हो,,,तो यही मर्यादा कि दिवार ही मुझे आगे बढ़ने से रोक रही थी

और मै ये सोचकर आगे नहीं बढ़ रहा था कि कहीं दीदी को बुरा ना लग जाए और कहीं उसने मना कर दिया तो मै वो भी नहीं कर पाऊँगा जो अभी कर रहा हूँ,,,,इसलिए जितना मिल रहा है उतने में ही ख़ुश रहना है,,मज़ा तो मुझे भी बहुत आ रहा था ,, पहली बार मै और दीदी इस तरह का यौन सुख का आनन्द पहली बार ले रहे थे और आपको तो पता ही है की पहला प्यार और पहला यौन सुख का अहसास अलग तरह का ही होता है,,,मेरा भी लिंग अब मुस्तंड लौड़ा बन चुका था और मेरी जवानी भी अब हिलोरे मर रही थी ,,,मै खुद चाह रहा था की दीदी को नंगा कर के अभी के अभी अपना लिंग उसकी योनि में डाल दूँ,,,और जिस तरह से दीदी अपनी उँगलियों से मेरे सुपाड़े को छू रही थी, सहला रही थी मेरी उत्तेजना और बढ़ती जा रही थी,,,,,लेकिन एक तो डर और ऊपर से मर्यादा की दिवार मुझे भी ये करने से रोक रही थी,,,,राजा विक्रम ने कहा

नन्दिनी फिर बात को आगे बढ़ाते हुए बोलती है ,,,,फिर पता नहीं कब भाई का लिंग सहलाते सहलाते आँख लग गई पता ही नहीं चला और भाई भी मेरी बुर सहलाते सहलाते सो गया,,,वो तो अच्छा हुआ की आपके आने के पूर्व मेरी आँख खुल गई और अगर मेरी आँख नहीं खुलती तो शायद हमदोनो भाई बहन रंगे हाथ रंगरलियाँ मनाते हुए पकड़े जाते,,,जैसे ही मेरी आँख खुली मैंने भाई का हाथ घाघरे के ऊपर से अपनी योनि पर से हटाया और उसे जगाकर उसे धोती लपेटने को बोला,,,जिससे भाई ने भी तुरन्त ही धोती लपेटकर सो गया,,,वो तो अच्छा हुआ उस दिन की मेरी नींद खुल गई ,,नहीं तो अनर्थ ही हो जाना था उस दिन ,,,ये कहकर नन्दिनी मुस्कुराने लगती है,,,,

तब देवकी ने कहा,,,,तू तो बड़ी रण्डी निकली छिनाल,,,डायन भी सात घर छोड़कर वार करती है और तू अपने छोटे भई पर ही डोरे डाल रही थी ,,,अरे कुछ तो शरम कर लिया होता,,,मेरे प्यारे मासूम बेटे को अपने प्यार में फँसा लिया और ये कहते हुए देवकी मुस्कुराकर एक हल्की सी चपत नन्दिनी के सिर पर लगाती है,,,

उफ़्फ़ माँ,,,चोट लगती है,,,क्या करती हो तुम,,,बड़ा आया आपका मासूम बेटा ,,,आगे तो कहानी इसी ने बढ़ाई ना,,,,,, फिर नंदिनी ने आगे बोलना शुरू किया,,,

उस रात के बाद से हमने कई दिनों तक कुछ नहीं किया और बाहर हम दोनो भाई बहन ऐसे व्यवहार करते रहे की हमारे बीच कुछ हुआ ही न हो,,,लेकिन करीब 6 महीने बाद फिर एक घटना घटी,,,हमे फिर बुखार आया हुआ था,, उस रात भी हम आपके कक्ष में सोए थे और प्रत्येक रात्रि की भांति आप पिताश्री के साथ सोने चली गई थीं और हमंदोनो भाई बहन अपने कक्ष में अकेले थे,,,मध्य रात्रि में अचानक मुझे लंड की जरूरत महसूस होने लगी और मैं काफी उत्तेजित हो गई जिससे मेरी नींद खुल गई,,मेरी आंख खुली तो मैंने देखा की आप कमरे में नहीं है और विक्रम मेरी तरफ पैर कर के सोया था,,मुझे अपने भाई पर खूब प्यार आ रहा था और मैने उत्तेजनावश विक्रम का पैर अपने बुर पर घाघरे के ऊपर से ही रख दिया और उसे अपने बुर पर दबा दिया,,,और अपने दोनो पैरों से उसके पैर को दबोच लिया और अपनी बुर उसके पैर पर रगड़ने लगी और यौन आनंद लेने लगी,,,मेरे द्वारा विक्रम के पैर पर बुर रगड़ने से विक्रमंकी भी आंख धीरे धीरे खुल गई और जब उसकी नींद खुली तो उसने मुझे अपनी बुर अपने पैर पर रगड़ता पाया,,,कुछ देर देखने के बाद उसने अपना पैर मेरी बुर पर से हटाने की कोशिश करने लगा और अपने पैर को छुड़ाने के इन्हें हिलाने लगा,,,
मै बहुत डर गई थी की लगता है की विक्रम को अब ये पसंद नहीं आ रहा है और मै मन ही मन ऊपर वाले से माफी मांगने लगी की अब नही करूंगी ये सब भाई के साथ,, हे ऊपरवाले आज के लिए संभाल लो मामला,,,फिर आगे से कभी ये गलती नहीं करूंगी,,,
लेकिन माते पुरुष तो पुरुष होता है ,, बस उसे योनि दिखनी चाहिए वो खुश हो जाता है,,,वैसे ही ये महाशय हैं,,,जब इन्होंने मेरे बुर के ऊपर से अपने पैर हटा लिए तो जनाब मेरे बगल में आकर लेट गए,,,मै द्वंद में थीं, कि क्या होने वाला है,,,ये जनाब मुझे डांटेंगे या पता नहीं क्या करेंगे,,, डर भी रही थी और कुछ अनहोनी की संभावना भी लग रही थी,,,
लेकिन विक्रम मेरे बगल में लेटकर मेरा मुंह देखता रहा ,,फिर उसने जो किया उसकी मैने कल्पना भी नहीं की थी,,,उसने अचानक से अपने होठ मेरे होठों पर रख दिया और उन्हें बेदर्दी से चूसने लगा,,,ये होंठो को चूसने का मेरा पहला अनुभव था इसलिए मैं आनंद के सागर में गोते लगाने लगी,,,और दूसरी बात ये की मैंने राहत की सांस ली की विक्रम को बुरा नही लगा है बल्कि वो तो हमारे बीच के संबंधों को एक ऊंचे स्तर पर ले जा रहा है,,,, अभी थोड़ी देर पहले ही मैं जो ऊपर वाले से माफी मांग रही थी की आगे से ये गलती नहीं करूंगी ,,वो मै भूल गई,, और मैं फिर से अपने भाई के साथ अवैध संबंधों को आगे बढ़ाने लगी,,,मनुष्य बहुत ही स्वार्थी प्राणी है,,उसके लिए उचित या अनुचित कुछ भी नही है,,,बस उसकी भूख शांत होती रहनी चाहिए ,,भले ही वह भूख पेट की हो या जिस्म की,,,
भाई द्वारा मेरे होंठों को अपने होठों के बीच दबाकर चूसा जाने लगा जिससे मेरी उत्तेजना और बढ़ गई,,,और मै भी अपने भाई का चुम्बन में साथ देने लगी,,,हम दोनो करीब 15 मिनट तक एक दूसरे के होठ चूसते रहे,,,कभी वो मेरी जीभ अपने मुंह में लेकर चूसता तो कभी मैं उसकी जीभ को अपने मुंह में लेकर चूसती,,,, कभी होठों को चबाती ,,,इस चुम्बन से हम दोनों की सांसे खूब तेज चलने लगी,,,फिर 15 मिनट बाद हम दोनो अलग हुए और ,,,,
विक्रम मेरी आंखों में आंखे डालकर एक टक से मुझे देखे जा रहा था और मैं उसकी आंखों में,,,ऐसे ही देखते हुए विक्रम बोल पड़ा,,,
आप बहुत सुंदर हो दीदी,,, बिल्कुल अप्सरा की तरह ,,,, मै कई सालों से ये तुम्हे कहना चाह रहा था लेकिन हिम्मत नहीं हो रही थी,,,सच में तुम्हारे ये गुलाबी होठ कितने मुलायम हैं,,,लगता है अभी इनसे खून निकल जाएगा,,,
और ऐसा बोलकर विक्रम ने मेरे माथे को प्यार से चूम लिया जिससे मैं शर्मा गई और शर्म से अपनी आंखे नीची कर ली,,,आज इतने वर्षों में पहली बार विक्रम ने मेरी सुंदरता की प्रशंसा की थी,,,इसके पूर्व वह केवल एक छोटे भाई की तरह मेरा कहना मान लिया करता था,,, लेकिन आज उसने एक पुरुष की भांति मेरे साथ व्यवहार किया था और मुझे नारी होने का अहसास दिलाया था,,,आज के पूर्व वह केवल एक छोटे भाई के रूप में मेरे साथ यौन क्रीड़ा में भाग लिया करता था ,,,लेकिन आज वह एक भाई होने के अलावे एक मर्द के रूप में पेश आया था और आज पहली बार उसने स्वयं कदम आगे बढ़ाते हुए मेरे करीब आकर मेरा चुम्बन लिया था,,,अभी तक हम दोनों केवल काम भावना के वशीभूत होकर एक दूसरे के साथ काम क्रीड़ा किया करते थे,,,लेकिन अभी विक्रम द्वारा बोले गए शब्दो में वासना नहीं ,,बल्कि एक पुरुष का एक स्त्री के प्रति प्रेम नजर आ रहा था,,,जिससे मुझे अलग ही प्रेम वाली अनुभूति हो रही थी,,,अब विक्रम के साथ प्रेम की मेरी तीन भावनाएं थी,,,पहला तो जग जाहिर है बड़ी बहन का छोटे भाई के प्रति प्यार ,लगाव जो उसकी रक्षा भी करती है,,,,दूसरी भावना काम भावना थी जिसके वशीभूत हम दोनों एक दूसरे के यौनांगों के साथ खेला करते थे,,,,और आज एक तीसरी भावना ने भी जन्म ले लिया और वो है एक नर का एक मादा के प्रति शास्वत पवित्र प्रेम,,,जिसमे मादा हमें नर के प्रेम में वशीभूत हो जाती है और उसकी ही बन कर रह जाती है और आज यही प्रेम मै विक्रम के अंदर अपने लिए देख रही थी और मैं स्वयं विक्रम के प्रति ये प्रेम महसूस कर रही थी,,,अब सोचो मां,, जब कोई किसी से इतने तरह का प्रेम करेगा तो उसका प्रेम कितना ऊंचा होगा,,,
इसके बाद विक्रम मेरे आंखों में देखते हुए अपना हाथ मेरे घाघरे के ऊपर से मेरी बुर पर रख दिया,,,और मेरी बुर को घाघरे के ऊपर से ही सहलाने लगा,,, चूकि रात में हम पतले कपड़े का घाघरा पहन कर सोते हैं इसलिए कपड़े होने के बावजूद विक्रम का हाथ मै अपनी बुर पर अच्छे से महसूस कर रही थी,,,फिर उसने अपनी धोती हटा दी तो उसका मोटा लंड मेरी आंखों के सामने आ गया जो पूरी तरह से खड़ा था और इतना टाइट था की उसका सुपाड़ा बिना खोल हटाए ही बाहर लंड से बाहर झांक रहा था और मेरी तरफ ऐसे खड़ा था मानों मुझे प्यार से निहार रहा हो,,,फिर विक्रम ने मेरा हाथ पकड़ कर अपने लौड़े पर रख दिया जिससे मैं पूरी तरह गनगना गई,,,मैने उसे कामुक आवाज में कहा मत कर विक्रम,,,लेकिन मौका रहते हुए भी मैने अपना हाथ उसके लंड पर से नहीं हटाया,,,उसे छोड़ने का जी ही नहीं कर रहा था,,, मै स्वय उसके लिंग को आगे पीछे करने लगी और विक्रम मेरी बुर को सहलाए जा रहा था जिससे मैं पूरी तरह गर्म हो गई थी।
इसी बीच विक्रम ने ऐसा काम किया था जिसकी मै कल्पना भी नही कर सकती थी,,,उसने अपना एक हाथ मेरी चोली के ऊपर रख कर मेरे स्तन दबाने लगा,,,स्तन दबवाने का ये मेरा पहला अनुभव था,,,मेरी उत्तेजना बढ़ती ही जा रही थी,,लेकिन मै विक्रम को ऊपरी मन से ऐसा नहीं करने को बोल रहीं थी,,,फिर अचानक विक्रम ने मेरी चोली ऊपर कर दी जिसकी मैने कल्पना भी नहीं की थी की विक्रम ऐसा कर सकता है,,,मेरी चोली उठा देने से मेरे दोनो स्तन नंगे होकर विक्रम की आंखों के सामने आ गए,,,मै उत्तेजित तो थी ही और उसी उत्तेजना के कारण मेरे दोनो स्तन इस तरह पूरे टाइट थे कि ऐसा लग रहा था दोनो विक्रम को निहार रहे हों,,,,मेरे नंगे स्तन देखकर विक्रम की आहें निकल गई और उसने बोला,,,
बहुत ही सुंदर स्तन हैं तुम्हारे दीदी,,,कितने गोरे हैं ये,,मै तो सपने में भी नहीं सोच सकता था की आपके स्तन इतने सुंदर होंगे,,, बिल्कुल संगमरमर की तरह चमक रहे हैं,,,और इस गोरे स्तन पे ये हल्की सी हरी नसें इसकी खुबसूरती में चार चांद लगा रहे है,,,मै बहुत सौभाग्यशाली हूं की मुझे आपके इतने सुंदर स्तन के दर्शन हो गए,,,मै धन्य हो गया बहन ,,,, और आपके स्तन के ये हल्के भूरे रंग के स्तनाग्र अर्थात चुचूक मुझे कितने प्यार से देख रहे है ,,
और ऐसा कह कर विक्रम ने अपनी दो उंगलियों से मेरी चुचूक को पकड़ कर मसल दिया जिससे मेरी आह् निकल गई क्योंकि मेरे चुचूक को पहली बार किसी मर्द ने अपनी उंगलियों से मसला था,,,मेरा पूरा शरीर अकड़ गया और जोश में मैने अपनी कमर उठाकर बुर को विक्रम के दूसरे हाथ पर दबा दिया,, जिससे विक्रम का हाथ मैं अपनी बुर पर पूरी तरीके से महसूस करने लगी,,,और मै उत्तेजना वश बोल पड़ी,,,
और जोर से रगड़ों विक्रम मेरी योनि को,,
और उसके हाथ पे अपना बुर रगड़ने लगी,,,और मै विक्रम के लंड को भी खूब तेजी से दबा दबा कर सहला रही थी जिससे विक्रम की भी आहें निकल रही थी,,,
आज विक्रम भी पूरे मूड में था,,,वह कभी उंगलियों से मेरे चुचको को कुरेदता तो कभी अपने हाथ से मेरी चूची को दबा देता ,,,जिससे मैं अत्यंत उत्तेजित होती जा रही थी,,
फिर अचानक विक्रम ने अपना मुंह मेरे स्तनों पर रख दिया और उसको प्यार से चूमने के बाद एक स्तन को मुह में लेकर चूसने लगा जैसे बच्चे अपनी मां का दूध उसके स्तन से चूसकर पीते हैं,,विक्रम द्वारा मेरे स्तन चूसे जाने से मैं और उत्तेजित हो गई और बड़बड़ाने लगी क्युकी मेरी जिंदगी में पहली बार कोई मेरे स्तन चूस रहा था,,,
चूसो भाई चूसो ,,अपनी बहन के स्तनों के दूध को चूसकर खाली कर दो ,,, इसका जहर निकल दो मेरे भाई,,, दूसरे वाले स्तन को चूसो ना भाई,,, वो भी तुम्हारे प्यार को तरस रही है विक्रम और ऐसा कहते हुए मै दूसरे स्तन के स्तनग्र को अपनी उंगलियों से मसल रही थी,,,
मेरा आदेश पाकर मेरा प्यारा भाई मेरी दूसरी चुची को चूसने लगा,,,जब वह दूसरे स्तन को चूसता तो मै पहले स्तन के चुचूक को उंगलियों से मसलती,,,और मै अपनी कमर उठा कर बार बार अपनी बुर विक्रम की हथेलियों पर रगड़ती,,
उसी बीच विक्रम बीच में बोल पड़ा,,
और माते , बहन का घाघरा इतना पतला था की मै उसकी योनि को साफ महसूस कर सकता था,,,बल्कि मै तो उसकी झांटों को भी महसूस कर रहा था,,,
फिर नंदिनी बोलती है,,,
हम पूरी तरह यौन संबंधों का आनंद उठा रहे थे,,,आपके कक्ष में हम भाई बहन की आहे और सिसकारियां गूंज रही थीं,,,
मै उसके लौड़े को दबोच दबोच कर सहला रही थी तो विक्रम मेरी बुर को रगड़ रगड़ कर सहला रहा था और मेरी चूची चूसे जा रहा था,,,और संयोग देखो मां,,हम दोनो भाई बहन एक साथ ही झड़ गए और मेरे हाथ पर विक्रम का पूरा वीर्य गिर गया तो विक्रम के हाथ पर मेरी योनि से निकला पानी लग गया और मेरा घाघरा भी योनि के स्थान पर हल्का सा गिला हो गया,,,

फिर हम दोनो की कामाग्नि शांत हुई तो विक्रम ने मेरी आंखों में आंखे डाल कर देखा और मेरे माथे को प्यार से चूम लिया ,,ऐसा लगा कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका को प्यार से चूम रहा हो ,,,फिर उसने मुझे अपनी बाहों में भर लिया और मेरी चूचियां उसकी छाती में धंस गई,,,मैने भी उसे अपनी बाहों में जकड़ लिया और आंखे बंद कर उसके आलिंगन का आनंद उठाने लगी।

हालाकि जो होता है अच्छे के लिए होता है,,,अगर उस दिन हम दोनो भाई बहन नहीं झड़े होते तो पता नहीं हम दोनों क्या कर बैठते,,,
और इस तरह हमंदोनो भाई बहन एक दूसरे की बाहों में सो गए,,,,

उम्मीद है आप लोगो को अपडेट पसंद आएगा
 
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