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Incest राजकुमार देव और रानी माँ रत्ना देवी

Ajay

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Update 6
आज सुबह से ही राजमाता ,राजकुमारी और राजा विक्रम सेन सुबह से जगे होने के कारण काफी थके हुए थे और अभी तो संध्या का कार्यक्रम भी बचा हुआ था। तीनों थोड़ी देर अपने कक्ष में आराम करते हैं और फिर शाम के महाभोज के लिए तैयार होने लगते हैं । आज पूरा राजमहल दीपक की रोशनी से जगमगाया हुआ था ऐसा लग रहा था मानो राजा के जन्मदिन की खुशी में पूरी सृष्टि भी खुशी मना रही हो। शाम का वक्त था और हल्की हल्की धीमी धीमी हवा चल रही थी जो माहौल को और भी खूबसूरत बना रही थी आज शाम सभी अतिथि राजा अपनी रानियों और परिवार के साथ महा भोज पर आमंत्रित थे राजकुमारी नंदिनी स्वयं कार्यक्रम की सारी व्यवस्था देख रही थी आखिरकार वह राजा की बड़ी बहन जो ठहरी

धीरे-धीरे सभी अतिथियों का आगमन शुरू होता है तथा सभी मंत्री गण द्वार पर ही सभी अतिथियों का स्वागत करने के लिए खड़े रहते हैं राजमहल में राजा के कक्ष के बाहर एक बहुत बड़ा खुला स्थान था जिसपर राज्य के बड़े कार्यक्रम हुआ करते थे इसी बीच तूरहरी बजने लगती है तथा द्वारपाल टीकमगढ़ के राजा माधव सिंह के आगमन की घोषणा करता है राजा माधव सिंह अपनी सुंदर रानी तथा अत्यंत ही नाजुक राजकुमारी रत्ना के साथ राजमहल में प्रवेश करते हैं । राजकुमारी रत्ना राजा माधव सिंह की इकलौती संतान है जो देखने में किसी अप्सरा से कम नहीं है शायद अप्सरा भी इतनी खूबसूरत नहीं होगी जितनी खूबसूरत राजकुमारी रत्ना थी। महामंत्री राजा को द्वार से स्वागत के साथ आंगन में उनके बैठने हेतु निश्चित स्थान पर ले जाते हैं और उन्हें आदरपूर्वक बैठाते हैं तथा राज्य कर्मियों को उनके उनके लिए जलपान की व्यवस्था करने का आदेश देते हैं

राजकुमारी नंदिनी को भी राजा माधव सिंह की आगमन की सूचना मिलती है तो वह दौड़े-दौड़े राजा के पास पहुंचती है और कहती है कि उसे बहुत खुशी है कि राजा इस कार्यक्रम में पधारें। राजा माधव सिंह उसे बताते हैं कि उसके पिता बड़े अच्छे दोस्त थे और उनकी मृत्यु के बाद उनका यह दायित्व है कि वह उनके सारे कार्यक्रम में उपस्थित हो और यथासंभव सहायता करें यह सुनकर राजकुमारी नंदिनी गदगद हो जाती है

आज राजकुमारी नंदिनी भी सुबह से ही कहर ढा रही थी राजा माधव सिंह की पत्नी राजकुमारी नंदिनी की चपलता देखकर आश्चर्यचकित रह जाती है तथा उसके उन्नत वक्ष स्थल तथा उन्नत नितंबों को देखकर सोच में डूब जाती है की क्या किसी कुवारी राजकुमारी के वक्ष तथा नितंब बिना चुदाने के इतनी उठी हो सकती है। रत्ना अपनी माता को सोचमे डुबा देख कहती है
मातें आप किस सोच में डूबी हैं
तब रानी अपनी सोच से बाहर आती है और कहती है कि और कुछ भी तो नहीं सोच रही थी

तभी राजा विक्रम सेन अपने एक कक्ष से बाहर निकल कर कार्यक्रम स्थल पर पहुंचते हैं संतरी उन्हें सूचित करता है कि राजा माधव सिंह कार्यक्रम स्थल पर पहुंच चुके हैं राजा सम्मान पूर्वक राजा माधव सिंह के पास पहुंचता है तथा उनके चरण स्पर्श करता है तथा उनके आने पर उनके प्रति आभार व्यक्त करता है तभी राजा विक्रम सिंह की नजर राजकुमारी रत्ना पर पड़ती है जिसके सामने आज अप्सराएं भी पानी मांग रही थी राजा विक्रम सिंह की नजर रत्ना से मिलती है तो राजकुमारी भी नजरें नीची कर सोचती है की क्या मै इतनी सुंदर हो कि राजा मुझसे नजरें नहीं हटा पा रहे हैं उसका मन भी राजा को देखने को व्याकुल हुआ जा रहा था राजा विक्रम सिंह के शारीरिक शक्ति और गठीले शरीर की चर्चा दूर-दूर तक थी । राजकुमारी रत्ना को नहीं रहा गया उन्होंने धीरे से अपनी आंखें उठाकर राजा विक्रम सिंह को देखा जिन को देखते ही उनके तन बदन में झुनझुनी सी दौड़ गई । राजा विक्रम सेन अभी अपने राजा के पूरे परिधान में थे । उन्होंने लाल रंग की धोती पीले रंग का अचकन बाजू मे बाजू बंद सोने का कवच जो उनकी चौड़ी छाती पर लगा था तथा सोने का मुकुट पहना था ऐसा लग रहा था मानो देवता स्वयं धरती पर अवतरित हो गये हो । रत्ना की नजर भी राजा विक्रम सिंह से हटती ही नहीं थी । इधर आज राजा विक्रम द्वारा लगातार राजकुमारी रत्ना को देखता देख कर राजा विक्रम माधव सिंह और उनकी पत्नी मन ही मन बड़े खुश होते हैं

लेकिन राजकुमारी नंदिनी को थोड़ा सा अटपटा लगा था । वह धीरे से खांसती है और अपने छोटे भाई राजा विक्रम सेन को कहती है की अभी कई सारे काम बचे हुए हैं । इस पर राजा विक्रम सेन की तंद्रा टूटती है और कहते हैं कि
हां हां जल्दी चलो और भी कार्यक्रम की व्यवस्था देखनी है की नहीं
यह कहते हुए राजा चला जाता है लेकिन मन को काबू नहीं कर पाते हैं । उनकी नजरें राजकुमारी रत्ना को खोजती रहती हैं और इस दौरान उनकी नजर राजकुमार रत्ना से एक हो जाती है जिससे राजकुमारी देवकी शरमा जाती है और शर्म से नजरें नीची कर लेती हैं।
तभी राजमाता देवकी भी तैयार होकर इन लोगों के पास पहुंचती है राजमाता भी राजकुमारी रत्ना की सुंदरता देखकर मंत्रमुग्ध हो जाती है। राजमाता आज स्वयं परी लग रही थी जिन्होंने आज सुबह-सुबह राजा विक्रम सेन का लंड हाथ में पकड़ा था तथा अपनी दोनों चूचियों को अपने पुत्र राजा विक्रम सिंह के ऊपर भी रगड़ा था । राजकुमारी रत्ना की सुंदरता देखकर राजमाता भी मंत्रमुग्ध हो जाती हैं तथा वह राजा माधव सिंह को कहती हैं की उनकी पुत्री राजकुमारी रत्ना अब यौवनावस्था में प्रवेश कर चुकी है तथा उनसे राजकुमारी रत्ना के लिए एक अच्छा सा वर ढूंढ कर उसके हाथ पीले करने को कहती है । इधर राजा विक्रम सेन कार्यक्रम की सारी व्यवस्था भी देख रहे थे लेकिन उनकी नजर केवल और केवल राजकुमारी रत्ना पर ही थी। वह जिधर भी जाते उनकी नजर राजकुमारी रत्ना पर ही हुआ करते थे । इस बात को राजकुमारी नंदिनी तो देख ही रही थी राजकुमारी रत्ना को भी इसका पूरा ध्यान था ।
राजकुमारी नंदिनी बार-बार अपने भ्राता राजा विक्रम सेन द्वारा रत्ना को देखे जाने दे उकता कर कहती है

अब अगर देख लिया हो तो और भी काम कर लो

ये सुनकर राजा विक्रम सेन शरमा जाते हैं लेकिन राजा विक्रम सिंह की तो पांच उंगली घी ही में थीं क्योंकि उनकी माता राजमाता तथा बड़ी बहन राजकुमारी नंदिनी भी सुबह से ही कहर बरपा रही थी । राजकुमारी नंदिनी मन ही मन सोचती है कि आज राजमाता से अपने छोटे भाई राजा विक्रम सिंह की शादी राजकुमारी रत्ना से कराने का प्रस्ताव अवश्य रखेगी।
इसी बीच राजमाता देवकी को जोर से मूत्र त्याग की इच्छा होती है और वह अपनी सेविका रांझा को इशारे से बुला कर कहती है की उसे तुरंत ही मूत्र त्याग इच्छा हो रही है और वह यहां उसके मूत्र त्याग की व्यवस्था करें । इस पर रंझा बोलती है कि राजमाता आपका कक्ष यहां से काफी दूर है और वहां तक पहुंचते-पहुंचते हो सकता है कि आप अपने घागरे में ही मूत्र त्याग कर दें। इससे अच्छा होगा कि आप किसी नजदीक के कक्ष में ही जाकर मूत्र त्याग करें । वह कहती है की राजा विक्रम सेन का कक्ष भी पास में ही है । राजमाता उसे यह देखने भेजती है कि राजा विक्रम सेन का स्नानागार खाली है और कोई वहां है तो नहीं। रांझा जाकर देख आती है कि राजा के कक्ष में कोई नहीं है और राजमाता को सूचित करती है कि राजा विक्रम सिंह का स्नानागार बिल्कुल खाली है ।राजमाता को जोर से मूत्र त्याग की इच्छा हो रही थी ।अतः बिना कुछ ध्यान दिए हुए वह राजा विक्रम सिंह के कक्ष में घुस जाती है।

इधर राजा विक्रम सेन को भी बहुत जोरों से पेशाब आई हुई थी क्योंकि उन्होंने तो सुबह से ही मूत्र त्याग नहीं किया था । तो वह भी मूत्र त्याग के लिए स्नानागार की ओर निकल पड़ते हैं । इधर राजमाता राजा विक्रम सेन के स्नानागार में पहुंचकर अपने घागरे को ऊपर उठा कर नीचे बैठ जाती है और अपनी बुर को फैला कर जोर से पेशाब करने लगती है । इधर राजा विक्रम सेन भी दौड़ते हुए अपने हाथ से लंड को दबाए हुए स्नानघर का परदा हटाकर दाखिल होते हैं। और दाखिल होते ही वहां का नजारा देखकर उनका मुंह खुला का खुला राज आता है । थोड़ी ही दूर पर उनकी माता अपना घाघरा उठा हुए चूत खोल कर मूत्र त्याग कर रही हैं । इधर राजा विक्रम सेन भी जोर से पेशाब लगने के कारण अपना पेशाब रोक नहीं पाते हैं और अपना लंड निकाल कर अपनी माता को देखते हुए पेशाब करने लगते हैं जिसकी छीटें राजमाता तक चली जाती है। अभी दोनों मां-बेटे एक दूसरे के सामने अपने यौनांगों को दिखाते हुए खड़े थे ।यह देख कर राजा विक्रम सेन को अलग ही अनुभूति हो रही थी की उन्होंने अपनी ही माता के योनि के दर्शन कर लिए और सुबह अपना लन्ड अपनी माता को दिखा चुका है।

राजा पीछे घूमते हैं और तेजी से अपने कक्ष से बाहर निकल जाते हैं इधर राजमाता भी इस घटना से हक्का-बक्का रह जाती हैं और अपना घाघरा नीचे करके जल्दी से बाहर निकल जाती है तथा कार्यक्रम में शरीक होने चली जाती हैं । कार्यक्रम में तो दोनों ही मां बेटे ऐसे व्यवहार कर रहे थे जैसे अभी उनके बीच कुछ हुआ ही न हो जबकि इन्होंने अभी - अभी एक दूसरे के योनांगों के दर्शन किए थे । इधर महाभोज का कार्यक्रम शुरू होता है । एक बड़े टेबल के सामने राजा माधव सिंह उनकी पत्नी और उनकी बेटी राजकुमारी रत्ना बैठी हैं तो दूसरी तरफ राजा विक्रम सिंह राजमाता देवकी और राजकुमारी नंदिनी बैठे हुए हैं । सेवक भांति भांति के पकवान इन लोगों के सामने परोस रहे थे । इसी बीच राजमाता राजा माधव सिंह से कहती है कि राजकुमारी रत्ना अब यौवनावस्था को प्राप्त कर चुकी है तो क्यों ना इसकी शादी संपन्न करा दी जाए ।इस पर राजा माधव सिंह राजमाता को बताते हैं कि कोई अगर योग्य वर हो तो वे अपनी पुत्री रत्ना का विवाह संपन्न कराने को तैयार हैं । छूटते ही राजमाता ने कहा कि क्यों ना राजकुमारी रत्ना की शादी विक्रम सेन से करा दी जाए ।

सभी हतप्रभ रह जाते हैं कि क्या राजा माधव सिंह अपनी पुत्री का विवाह राजा विक्रम सिंह से करेंगे ।राजा माधव सिंह इस पर अत्यंत के प्रसन्न हुए तथा उन्होंने कहा

राजमाता आपने तो हमारे मुंह की बात छीन ली हम तो यह चाहते ही थी की राजकुमारी रत्ना का विवाह राजा विक्रम सिंह से संपन्न हो जाए किंतु हम सभी आपके सामने विवाह का प्रस्ताव रखने में हिचकीचा रहे थे क्योंकि आप इतने बड़े राज्य के राजा हैं और मैं एक छोटे से राज्य का राजा हूं शायद आप हमारे घर विवाह करना पसंद नहीं करते ।

राजकुमारी रत्ना से विवाह का प्रस्ताव तो मैंने स्वयं दिया है तो इसमें छोटे बड़े होने की क्या बात है, राजमाता ने कहा ।

विवाह की बात सुनकर राजकुमारी रत्ना भी मन ही मन बहुत खुश होती है और वह सोचती है की उसके बुर् का वनवास भी अब खत्म होगा तथा जल्दी ही उसकी बुर को एक मोटा तगड़ा लंड मिलेगा जो उसकी बुर को चोद कर उसकी बुर् की गर्मी को ठंडा करेगा और वह मन ही मन अपनी चुदाई के सपने देखने लगती है ।अपनी शादी की बात होती सुन राजकुमारी रत्ना शरमा कर प्रांगण के दूसरी ओर चली जाती है और दीवार की ओट में खड़े होकर इनकी बात सुनने लगती है। राजा माधव सिंह राजमाता को कहते हैं कि एक बार राजा विक्रम सिंह जी की भी इच्छा जान ली जाए और राजकुमारी रत्ना से वह इस बारे में बात कर लेंगे ।राजमाता ने इन दोनों की राय जानने में अपनी कोई आपत्ति व्यक्त नहीं की। बल्कि उन्होंने तो यहां तक कहा कि इन दोनों को अपना जीवन गुजारना है इसलिए दोनों की राय लेना सर्वथा उचित है ।

राजमाता राजा विक्रम सिंह से उनकी राय जानना चाहती है जिस पर राजा विक्रम सिंह ने तुरंत ही अपनी सहमति अपना सिर हिला कर दे दी। राजा विक्रम सिंह तो सपने में भी नहीं सोच सकते थे कि वे राजकुमारी रत्ना से विवाह करने में विलंब करें । फिर राजा माधव सिंह अपनी पत्नी को राजकुमारी दिल की बात जानने को भेजते हैं । राजकुमारी रत्ना दीवाल की ओट में खड़े होकर यह सारी बातें सुन रही थी ।जैसे ही राजकुमारी सुनती है उसकी मां उसकी राय जानने के लिए आ रही है तो वह और आश्चर्य में पड़ जाती है । इधर रानी सोचती है कि राजा विक्रम सिंह को देखकर उसकी खुद की बुर में खलबली मची हुई है तो उसको देख कर मेरी पुत्री क्यों नहीं विवाह करना चाहेगी। जब रत्ना से उसकी मां पूछती है कि क्या वह राजा विक्रम सिंह के साथ शादी करना चाहती है । इस पर वह चुप रहती है और कोई जवाब नहीं देती है । रानी सोचती है कि शायद मेरी पुत्री को यह विवाह पसंद नहीं है और आश्चर्यचकित होती है कि जिस राजा विक्रम सेन के बारे में सोच कर उसकी बुर सुबह से पनियाई हुई है , उससे शादी करने को उसकी पुत्री हां क्यों नहीं कह रही है ,,,लगता है कि मेरी पुत्री को यह विवाह पसंद नहीं है और मुड़कर वापस जाने लगती है।

अपनी माता को जाता देख राजकुमारी रत्ना जल्दी से बोलती है कि हां हां हां मुझे मुझे यह विवाह मंजूर है । अपनी पुत्री की सहमति लेकर राजा माधव सिंह के पास पहुंचती है तथा उन्हें राजकुमारी की सहमति की सूचना देती है। इस पर राजा माधव सिंह जी बड़े प्रसन्न होते हैं और राजमाता को विवाह तय होने की बधाई देते हैं । राजमाता मिठाई मंगाती है और मिठाई से राजा माधव सिंह का मुंह मीठा कराती हैं । राजमाता राजज्योतिषी को बुलावा भेजती हैं जो कि उस वक्त राजमहल में उपस्थित थे । राज ज्योतिषी के आते ही राजमाता राजा विक्रम सिंह की शादी तय होने की सूचना देती हैं तथा उनसे शादी का शुभ मुहूर्त बताने का आग्रह करते हैं। राजपुरोहित चार माह पश्चात् की तिथि शादी के लिए निश्चित करते हैं जिस पर दोनों पक्ष खुशी-खुशी राजी हो जाते हैं। राजकुमारी रत्ना शादी तय हो जाने के बाद ख्वाबों में डूब जाती है कि राजा विक्रम सिंह का लौंडा कैसा होगा और वह कैसे मेरी बुर को चोदगा।
Nice update bhai
 

Ajay

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Update 7

आज रात के महाभोज के आयोजन के पश्चात सभी अतिथिगण राजमहल से जा चुके थे। जन्मदिवस का कार्यक्रम समाप्त होते होते रात काफी बीत चुकी थी। रात्रि का तीसरा पहर चल रहा था। सभी लोग सो चुके थे , लेकिन कुछ लोगों की आंखों में नींद नहीं थी। राजा माधव सिंह उनकी रानी सुभद्रा देवी तथा राजकुमारी रत्ना राजकीय अतिथिशाला में विश्राम हेतु पहुंच जाते हैं। आज माधव सिंह और सुभद्रा दोनों अत्यंत ही प्रशन्न थे कि आज उनके मन की मुराद पूरी हो गई। वे दोनो अपनी पुत्री राजकुमारी रत्ना का विवाह राजा विक्रम सेन के साथ करना तो चाहते थे। किन्तु संकोचवश वे राजकुमारी के रिश्ते की बात राजमाता देवकी से नहीं कर पाते थे। और आज ऐसा सुखद संयोग हुआ की राजमाता देवकी ने ही अपने पुत्र राजा विक्रम सेन का विवाह राजकुमारी रत्ना से कराने का प्रस्ताव दे दिया।
अतिथगृह पहुंचकर राजा माधव सिंह रानी सुभद्रा से कहते हैं :

आज का दिन हमारे लिए खुशी का दिन है की राजमाता देवकी ने स्वयं हमारी पुत्री से अपने पुत्र का विवाह कराने का प्रस्ताव दे दिया,नहीं तो हम तो इस राजघराने में शादी का प्रस्ताव देने का सोच ही नहीं सकते थे।
राजन मै ना कहती थी आपसे की एक बार राजकुमारी रत्ना की शादी का प्रस्ताव ले तो जाइए। लेकिन आप ही यहां आने से हिचकिचाते थे। आखिर हमारी रत्ना भी सुंदरता में किसी अप्सरा से कम थोड़े ही है। देखा नहीं राजा विक्रम की नजरें रत्ना के मुख से हटती ही नहीं थी। लेकिन मै डरती थी की राजा विक्रम सेन का व्यक्तित्व इतना आकर्षक है कि रत्ना की सुंदरता इनके सामने फीकी पड़ जा रही थी और कहीं राजा विक्रम रत्ना से विवाह से इंकार ना कर दे।... रानी सुभद्रा ने कहा।
राजा विक्रम की बात कर रानी सुभद्रा का चेहरा बिल्कुल सुर्ख हो जाता है जिसे देख कर माधव सिंह सुभद्रा की छेड़ते हुए कहते हैं
क्या आपको भी राजा विक्रम भा गए हैं जो आप उनकी सुंदरता के पुल बांध रही है।
आप कुछ भी बोलते हैं, राजा विक्रम मेरी पुत्री के होनेवाले दूल्हे है, भला मै ऐसा कैसे सोच सकती हैं।और ऐसा कहकर वह मुंह घुमाकर बैठ जाती है।
मैं तो मजाक के रहा था मेरी रानी। ऐसा कह कर राजा माधव सिंह रानी सुभद्रा की ठुद्दी पकड़कर उनका चेहरा अपनी ओर घुमाते हैं।

छोड़िए राजन आप मुझसे बात मत करिए।

राजा माधव सिंह कहते हैं लो मैंने अपने कान पकड़ लिए।अब तो मान जाओ।

माधव सिंह के ऐसा कहने से सुभद्रा हल्के से मुस्कुरा देती है।

ऐसा ना करे राजन, मुझसे माफ़ी मांग कर नरक का भागी ना बनाए। लेकिन आगे से ऐसा मत बोलिएगा।राजा विक्रम सेन मेरी पुत्री के होने वाले पति हैं, उनको लेकर ऐसा मजाक मुझसे बिल्कुल मत कीजिएगा।

वो कहते हैं ना नारी त्रिया चरित्र की होती है, वो क्या सोचती है ,ये जानना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। यही रानी सुभद्रा आज सुबह के कार्यक्रम में राजा विक्रम सेन को देखकर उनके प्रति आसक्त हो गई थी और अपनी बुर को सहलाया था , उनसे चुदवाने का सपना देख रही थी और अभी पति द्वारा थोड़ा मजाक करने से नाराज़ ही गई थी। खैर माधव सिंह के निवेदन पर वह मान जाती है और मन ही मन एक कुटिल मुस्कान लेते हुए माधव सिंह के हाथ पर अपना हाथ रख देती है।

इधर राजकुमारी रत्ना अपने कमरे में लेटी हुई राजा विक्रम सेन के ख्यालों में डूबी रहती है , वह विक्रम सेन की नजरों को भुला ही नहीं पा रही थी जिन नजरों से वे रत्ना को देख रहे थे, उनकी नजरों में हवस नहीं था ,बल्कि एक अलग सा आकर्षण था जिसके मोह पास में रत्ना बांधती जा रही थी। रत्ना ख्यालों में डूबे डूबे राजा विक्रम सेन के लिंग की कल्पना करने लगती है ।

रत्ना मन में- हाय उनका लिंग कितना बड़ा होगा जब शरीर इतना गठीला है, कंधे इतने मजबूत और छाती इतनी चौड़ी है। अपने मोटे लिंग से वो मेरी नाजुक योनि चोदेंगे तो मेरी कोमल नाजुक योनि का क्या हाल होगा।

यही सोचते सोचते रत्ना कि सांसे तेज चलने लगती है और उसकी कामभावना भड़कने लगती है। वह अपना एक हाथ अपनी चूची के ऊपर ले जाती है और चोली के ऊपर से ही अपने चूचक रगड़ने लगती है और सोचती है कि राजा विक्रम अपने कड़क हाथों से मेरे इन्हीं स्तनों का मर्दन करेंगे। स्तन दबाने से उसकी उत्तेजना और बढ़ जाती है और सांसे और तेज चलने लगती हैं।उत्तेजना के वसीभूत होकर रत्ना अपना एक हाथ घाघरे के अंदर डाल देती है और अपनी योनि को स्पर्श करती है, फिर हथेली से अपनी योनि को दबोच लेती है और उत्तेजना में आंखे बंद कर कहती है

राजन मेरी योनि को रगड़ों,,,,इसे प्यार करो,,, इसे अपनी उंगलियों से रगडों,,,,इसमें अपनी उंगली डाल कर खूब जोर जोर से आगे पीछे कर के चोदो,,,,, मेरी योनि को अपने जीभ से चाटो,,,, मेरी योनि की फैलाकर इसमें अपना मोटा लन्ड डाल दो,,, मेरी योनि को खूब चोदो,,, मेरी चूचियों का मर्दन करो,,,,,इनका दूध पी लो,,,,,

रत्ना बड़बड़ाते जा रही थी और अपनी योनि की रगड़े जा रही थी। उत्तेजनावश वह अपनी चोली उतार फेकती है और अपने घाघरे का नाड़ा खोलकर घाघरे को भी पैरों के नीचे से निकाल देती है। अब वह मादरजात नंगी अपनी शैया पर लेटी हुई अपनी नंगी चूची को हाथ से मसले जा रही थी और कामुक आहें निकाल रही थी। दूसरे हाथ से अपनी योनि को फैलाकर रगड़ रही थी। उसकी योनि , योनि रस से गीली और चिकनी ही जाती है और उसकी अनामिका उंगली उसकी योनि में सरसराते हुए योनि की गहराइयों में चली जाती है।ये पहली बार था जब राजकुमारी रत्ना ने अपनी कुंवारी अनचूदी योनि में अपनी उंगली डाली थी। उसकी सांसे रुक जाती हैं। उसके योनिद्वार अभी ठीक से खुले भी नहीं थे। लेकिन योनि में ऊंगली की उपस्थिति अब उसे अच्छी लगने लगती है,,,धीरे धीरे वह अब सामान्य होती है। यह हस्तमैथुन का पहला अनुभव था। वह अपनी योनि में उंगली को तेजी से अंदर बाहर करने लगती है और बड़बड़ाने लगती है,,,,

चोदिये राजन चोदिए अपनी इस रानी को,,,,अपने मोटे लिंग से,,,,मेरी योनि बहुत प्यासी है जिसकी प्यास आपका मोटा लिंग ही बुझा सकता है। राजन मेरे स्तन चूसते हुए मेरी योनि की चोदिए। इसे फाड़ दीजिए। ऐसे चोदिए की आपका लिंग मेरी बच्चेदानी तक पहुंच जाए,,,, इस संसार में आपके लिंग से ही इस दिव्य योनि की प्यास बुझ सकती है,,,
ऐसे ही बड़बड़ाते हुए राजकुमारी रत्ना अपनी योनि में अपनी उंगली खूब तेजी से अंदर बाहर करने लगती है और करीब आधे घंटे के बाद चरमसुख को प्राप्त कर झड़ जाती है और उसकी योनि से भालभालाकर योनि रस की धार बहने लगती है। उसके हाथ योनि रस से भीग जाते हैं। वह योनि रस से भीगे हाथ अपने नक के पास लाती है और उसकी मादक सुगंध से मदहोश होने लगती है।

चुकी राजकुमारी रत्ना का हस्तमैथुन का ये पहला अनुभव था।अतः उन्हें यह अनुभव अदभुत लगता है। लगा जैसे शरीर हल्का होकर स्वर्ग की सैर कर रहा है। अपने पहले अनुभव के कारण राजकुमारी रत्ना यू ही बिल्कुल नग्न अवस्था में थक कर शैय्या पर सो जाती है और नींद में राजा विक्रम सेन के सपने देखने लगती है...........
Mast update bhai
 

Ajay

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Update 8

इधर राजमहल में भी शान्ति छाई हुई थी। सभी अतथियों के जाने के बाद राजपरिवार के सभी सदस्य अपने अपने कक्ष में आराम करने के लिए जा चुके थे। रात्रि का तीसरा पहर था। राजमहल में चारों ओर मसालें जल रही थी। रांझा कोई गीत गुनगनाते हुए घूम रही थी कि सेवकों ने सभी सामान वापस जगह पर रखा है कि नहीं। आखिर वो भी राजमाता की मुंहबोली सेविका जो थी और इस राजपरिवार के लिए परिवार के सदस्य से कम नहीं थी, राजा विक्रम सेन और राजकुमारी नंदिनी उसे धाईं मां बुलाते थे, ,,,बचपन में
उन्होंने रांझा का दूध जो पिया है। रांझा केवल कहने को दासी थी ,,,,,लेकिन उसकी हैसियत राजपरिवार के किसी सदस्य से कम ना थी। उसका पुत्र कालू राजा विक्रम के उम्र का ही था,,,तभी तो वह राजा विक्रम को बचपन में दूध पिला पाती थी क्युकी उस समय उसके स्तनों में दूध आता था और जब राजमाता देवकी रात में महाराज सुर सेन की बाहों में नंगी होकर सम्भोग में लीन रहती,,,,उस समय रांझा ही देवकी के पुत्र पुत्री को अपने पुत्र के साथ संभालती और उन्हें अपने स्तनों से दूध पिलाती। महाराज सुर सेन देवकी की शारीरिक सुंदरता के इतने दीवाने थे कि हर रात देवकी को बिना चोदे नहीं मानते थे,,,,तभी तो देवकी को भी संभोग की लत लग गई थी,,,,यहां तक की देवकी को जब माहवारी आई होती तब भी महाराज उसे चोदे बिना नहीं छोड़ते थे।

इधर रंझा सारी व्यवस्था देखकर राजमाता देवकी के कक्ष की ओर चल देती है जहां देवकी अब सोने की तैयारी कर रही थी। देवकी ने भी राजकीय वस्त्र निकाल कर पतले कपड़े की चोली और घाघरा पहन लिया था जो वह सोते समय पहना करती थी । रं झा देवकी के कक्ष के बाहर पहुंच कर द्वार से ही प्रवेश की अनुमति मांगती है...

राजमाता क्या मै अंदर आ सकती हूं ,,,

कौन है,,, रांझा,,,, आजा तुझे किसने रोका है कमिनी,,,

जो आज्ञा राजमाता,,,,ऐसा कहकर वह कक्ष में प्रवेश कर जाती है और देखती है की देवकी सोने की तैयारी कर रही थी,,,,

मैंने आपको परेशान तो नहीं किया देवकी इतनी रात को

अरे नहीं ,,,, कौन सा मै सुहागन हूं जो पति के साथ बिस्तर गर्म करने के लिए रात का इंतजार करती हूं। और तू मुई मेरे जले पर नमक छिड़कती है। ,,,, ऐसा बोलकर देवकी मुस्कुरा देती है

राजमाता मुझे माफ़ करना,,,मेरा कहने का ये मतलब नहीं था,,,,

तू तो वास्तव में डर गई पगली,,,मै तो मजाक कर रही थी

हे हे हे,,, मैं भी तो मजाक ही कर रही थी,,, मैं क्यों डरूं तुमसे,,,तुम्हारे कई राज जानती हूं मै,,,,ऐसा बोलकर रांझा दांत निकाल कर वह हस देती है।

आजा रांझा,,,,क्या बताऊं ,,,,आज बहुत थकावट सी हो गई है,,,दिन भर दौड़ते ही रहे,,,और फिर रात में महाभोज,,,,पूरा शरीर टूट रहा है,,,, और कमर में बहुत दर्द हो रहा है,,,लगता है अब मै बूढ़ी हो गई हूं,,,

अरे तो मै तो हूं ना,,तुम्हारी दासी,,,आओ लेट जाओ बिस्तर पर,,,मै तुम्हारे शरीर की मालिश कर देती हूं,, और तू बूढ़ी कहां हुई है,,,अभी भी तुझे देखकर बुड्ढों के लिंग तुम्हहारी योनि को सलामी देने के लिए खड़े हो जाएं,,,,

अब बस कर,,, ये ठीक रहेगा,, आ जा थोड़ी मालिश कर दे और हां ,,, थोड़ा तेल भी ले ले,,,तेल से मालिश कर देगी तो सारा दर्द दूर हो जाएगा,,

अभी लाती हूं देवकी,,,तू तब तक बिस्तर पे लेट जा

रांझा फटाफट जाती है और औषधीय तेल की शीशी ले आती है जो राज वैद्य ने खास तैयार किया था। तब तक देवकी बिस्तर पे पेट के बल लेट जाती है,,,

रांझा देवकी के पीठ पर तेल गिर।कर तेल मालिश करने लगती है और उसके कंधे से लेकर कमर तक मालिश करने लगती है। लेकिन बीच में देवकी की चोली मालिश करने में दिक्कत कर रही थी। तो रांझा बोलती है

देवकी तेरी चोली परेशान के रही है मालिश करने में,,,निकाल दे इसे तो मै अच्छे से तेरी मालिश कर दू,,,

ठीक है,,,तू रुक जरा,, मेरी चोली की डोर तो खोल दे पीछे से।

देवकी के कहने पर रांझा उसकी चोली की डोर खोल देती है और चोली के दोनो भागो को अलग कर देती है जिससे देवकी की पूरी पीठ नंगी हो जाती है। रांझा अब पूरे पीठ पे अच्छे से मालिश करने लगती है और हाथ उसकी कमर तक ले जाती है जहां से देवकी का घाघरा शुरु होता था और देवकी से कहती है

देवकी तेरी नंगी पीठ कितनी चिकनी है,, मन करता है इसकी सहलाती ही रहूं

चुप छीनाल,,,तू बड़ी वैश्या है रे,,,औरत होकर औरत की नंगी पीठ तुझे अच्छी लगती है,,,

अब तेरा शरीर है ही संगमरमर की तरह तो क्यों ना अच्छा लगे मुझे,,,,रांझा ने कहा

अच्छा ठीक है चुप कर,,, अब मालिश पे ध्यान दे,,,देवकी ने जवाब दिया लेकिन मन ही मन अपनी
जवानी की प्रशंसा सुनकर वह रोमांचित ही रही थी,,,

फिर रांझा बात छेड़ते हुए कहती है,,,देवकी आज तो तु गजब की सुन्दर लग रही थी,,,राजकुमारी नंदिनी तुम्हारे सामने फीकी पड़ गई थी,,,तुम तो नंदिनी की बहन लग रही थी,,

तू कुछ भी बोलती रहती है रांझा,,,कहा राजकुमारी नंदिनी का कोमल यौवन और कहां मेरा बूढ़ा बदन,,,कोई तुलना ही नहीं है,,,तू केवल मेरा मन रखने को बोलती है,,,

नहीं देवकी, मै सच बोल रही हूं,,,,देखा नहीं सभी तुम्हे कैसे घुर रहे थे,,,और तो और तुम्हारा प्रिय पुत्र विक्रम भी तुम्हारे यौवन का रस पिये जा रहा था,,,और ऐसा बोलकर रांझा एक कुटिल मुस्कान मुस्कुराती है,,,

ये सुनकर देवकी शरमा जाती है और तकिए में अपना मुंह छिपा लेती है।

अब जरा सीधी लेट जा देवकी ,,आगे भी मालिश कर दूं,,,

ऐसा कहने पर देवकी सीधी लेट जाती है जिसके स्तन अभी चोली से ढके होते है,,,रांझा देवकी के कंधे ,गर्दन से होते हुए चोली के खुले भाग तक मालिश करने लगती है, लेकिन चोली के कारण वह ठीक से मालिश नहीं कर पाती है और कहती है,,,

ये चोली तो हटा देवकी,,,कितनी परेशानी हो रही है मालिश करने में और तेरी चुची की भी मालिश नहीं हो पा रही है,,,

नहीं नहीं ,,,रहने दे,,,ऐसे ही मालिश कर दे

तू आज शरमा क्यों रही है,,तू तो ऐसे शर्मा रही है जैसे मैंने तुम्हारी चूचियों को नंगा देखा ही नहीं है,,,ले हटा ,,,मै ही इसे हटा देती हूं और ऐसा बोलकर देवकी के स्तन पर से चोली हटा देती है,,,,और अब देवकी की चूची पूरी नंगी होकर बाहर निकाल जाती है जिसे देखकर रांझा आश्चर्य से बोलती है,,

ये क्या देवकी तुम्हारे स्तन तो पूरे खड़े है,,,,क्या बात है महाराज की याद आ रही है या फिर ------

अब तू नंगी करके मालिश करेगी तो चूची तो कड़क होगी ही ना,,,चल तू मालिश कर

रांझा फिर मालिश करने लगती है और इस बार हाथो में तेल लेकर उसकी चूची पे लगने लगती है और जोर जोर से मालिश करने लगती है। देवकी के बड़े बड़े स्तन को हाथों ने भरकर उसे मसलने लगती है और शरारत करती हुई उसके चूचुकों की अपनी उंगलियों से मसल देती है जिससे देवकी की आह निकल जाती है,,,और उसकी काम भावना उमंगे मारने लगती है,,,,वह रांझा से बोलती है,,,,

ये क्या कर रही है छीनल,, देख नहीं रही मुझे दर्द हो था है,,,,

देवकी ये दर्द की सिसकारी नहीं,ये तो मजा की सिसकारी है और ऐसा बोलकर उसकी एक चूची को अपने मुंह में लेकर चूस लेती है,, जिस पर देवकी उसके सर पर एक चपत लगती है और कहती है

अब हो गया रण्डी साली,,,तू मालिश कर और एक हल्दी सी कामुक मुस्कान देती है

रांझा देवकी की छाती और पेट की मालिश करती है और फिर पैर की मालिश करने देवकी के पैरो के तरफ जाकर बैठ जाती है,,,और उसके पैरो के तलवे और पिंडली की मालिश करने लगती है,,,और देवकी से कहती हैi----

अपना घाघरा थोड़ा ऊपर उठा लो तो मै अच्छे से तुम्हारे पैरों की मालिश कर दूं

इस पर देवकी अपना घाघरा घुटनों तक के लेती है और रांझा उसके पैरो पर घटनो तक मालिश करने लगती है

तू बहुत अचछा मालिश करती है रांझा,,,मेरे पैरो का दर्द बहुत कम हो गया है,,,देवकी ने कहा

अभी कहा मालिश हुई है ठीक से,,,अभी मै तुम्हारे जांघों की मालिश करूंगी तब देखना तुम्हारे शरीर का दर्द कैसे खत्म होता है और ऐसा कहते हुए देवकी के घाघरे को उसके घुटनो से ऊपर सरकाकर जांघों के ऊपर चढ़ा देती है,,,जिससे देवकी की दोनो टांगे जांघों तक नंगी हो जाती है,,,वह उपर से तो नंगी थी ही अब नीचे भी उसके पैर नंगे हो जाते हैं,,,,वह देवकी के पैरों की अच्छे से मालिश करने लगती है और हाथो को नीचे से ले जाकर उसके जांघों की जड़ों तक घाघरे के अंदर से हाथ ले जाती है,,,फिर वह देवकी से कहती है,,,

देवकी अपना घाघरा भी निकाल दे, नहीं तो तेल से तेरा घाघरा गंदा हो जाएगा और ये तेल तो और दाग छोड़ता है ,एक बार लग गया तो छूटता ही नहीं है,,,लेकिन देवकी घाघरा खोलने में आना काना करती है और कहती है,,,,,

मुझे शरम आ रही है रांझा,,,आज मै पूरी नंगी नहीं होऊंगी

अगर घाघरा नहीं उतरोगी तो एक तो घाघरा गंदा होगा,,, दूसरे तुम्हारी मालिश ठीक से नहीं हो पाएगी

ठीक है,,,तो एक शर्त है,,,तू क्यों कपड़े पहने है,,,चल तू भी निकाल कपड़े,,,

ये कौनसी बड़ी बात है ,,,ये लो मैं निकाल देती हूं अपने कपड़े और एक ही झटके में अपनी चोली निकाल कर फेंक देती है,,,,

घाघरा भी तो निकाल दे,,,देवकी ने कहा

इस पर रांझा कुछ सोचती है,,,तब तक देवकी उसके घाघरे का नाड़ा खोल देती है जिससे रांझा का घाघरा सरसराता हुआ उसके पैरों में गिर जाता है और वह पूरी मादरजात नंगी हो जाती है,,,उसकी बुर आज पहली बार देवकी की सामने थी जिसे देखकर देवकी मुस्कुरा देती है और कहती है

तेरी बुर पर तो बहुत घने जंगल है रांझा ,,, इस जंगल को पार कर गुफा तक पहुंचना बहुत मुश्किल होता होगा और ये कहकर देवकी उसके बुर को अपने हाथ से सहला देती है जिससे रांझा की आह निकल जाती है,,,,और देवकी मुस्कुराने लगती है,,,,तब देवकी कहती है,,,

अब तो खुश राजमाता ,,,, जो मुझे पूरी नंगी कर दिया,,,,आओ अब मै तुम्हारी मालिश कर दूं और ऐसा बोलकर उसके घाघरे को उसके पैरो से निकालने लगती है जिसे देवकी के उन्नत नितंब रोक रहे थे,,,देवकी समझ जाती है और अपने गान्ड थोड़ी सी ऊपर उठती है जिससे देवकी का घाघरा आराम से उसके पैरो से निकल जाता है और वह पूरी नंगी अपने बिस्तर पर लेटी रहती है ,,,रांझा हाथों में तेल लेकर देवकी के पैरों की मालिश करने लगती है और अब अपने हाथ से उसके जांघ की मालिश करने लगती है,,,वह मालिश करते हुए जैसे हाथ उपर ले जाती उसकी उंगलियां देवकी की योनि के बालों से छू जाती,,,रांझा मालिश करते हुए कहती है,,,,

एक बात कहूं,,,, तुम्हारी योनि में आज अलौकिक चमक दिख रही है,,,क्या किसी ने दर्शन कर लिए आपकी योनि के,,,,

चुप कर बेशरम ,,,ऐसा क्या है इस योनि में जो आज ये अलौकिक हो गई,,,

रांझा मालिश करते करते अपने हाथ में तेल लेकर देवकी की बुर पे हाथ रख देती है जिससे देवकी गन गना जाती है,,,रांझा बड़े प्यार से देवकी की योनि की मालिश करने लगती है और उसको निहारने लगती है,,,,

रांझा देवकी की बुर को मालिश करते हुए कहती है

एक बात पूछूं,,, बुरा तो नहीं मानोगी,,,

नहीं , पूछ क्या पूछना है,,आज तू बड़ी पूछ पूछ कर बातें कर रही है

रांझा उसकी बुर को सहलाते हुए कहती है,,,

देवकी ,,,तुम्हे तुम्हारे बेटे का लंड आज सुबह देख कर कैसा लगा,,,

देवकी ने इस प्रश्न की आशा नहीं की थी, क्यों की उसने सोचा की ये बात रांझा संकोचवश कहीं ये बात नहीं बोलेगी,,,लेकिन यहां रांझा ने तो प्रश्न कर दिया था,,,
राजमाता के कक्ष में सन्नाटा छा गया था ,,,केवल दो सांसे बहुत तेज चल रही थी,,,एक तो देवकी की ओर दूसरे रांझा की,,,लेकिन रांझा कहा रुकनेवाला थी,,,उसने फिर कहा,,,,

बताओ ना देवकी ,,कैसा लगा तुम्हे अपने प्यारे बेटे का लंड

और ऐसा कहते हुए उसकी कामुक सिसकियां भी निकल रही थी और वह देवकी की बुर को भी हौले हौले सहलाए जा रही थी।

ये तू क्या पूछ रही है रांझा ,,,तू नहीं जानती वो मेरा पुत्र है और एक मा अपने पुत्र के बारे में ऐसा नहीं सोच सकती,,, (अब देवकी क्या बताएं की वह अपने पुत्र का लंड देखकर खुद पागल हो गई है )

देवकी मैंने खुद देखा है तुम्हे उसका खड़ा लंड अपने हाथ में पकड़े हुए,,,मुझसे ना छुपाओ,,,,योनि बेटा या पति नहीं देखती,,उसे तो बस मोटा लौड़ा चाहिए होता भले ही वह उसके बेटे का ही क्यों ना हो।

रांझा की बातो से देवकी गरम हो जाती है और उसकी बुर पनिया जाती है जिसे रांझा महसूस करती है और यह देख कर वह एक हाथ ऊपर ले जाकर उसकी चूचियों को मसलने लगती है और उसके चुचुकों को अपनी उंगली के बीच फसाकर मसलने लगती है जिससे देवकी पूरी गरम हो जाती है। ऐसा देख कर रांझा देवकी की योनि के भग्नासे ( clutorics ) को अपनी उंगली से रगड़ने लगती है जिससे देवकी ओर गरम हो जाती है और मचलने लगती है। रांझा समझ जाती है कि देवकी गरम हो गई है,,,,, और फिर वह बात आगे बढ़ती है,,,,

बताओ ना देवकी चुप क्यों हो,,,मैंने अपनी आंखो से देखा था कि तुमने अपने पुत्र का लौड़ा हाथ में पकड़ा हुआ था और तुम उसके लन्ड को छोड़ ही नहीं रही थी और उधर विक्रम भी तुम्हारी चूची को पकड़े हुआ था,,,मुझे तो बहुत दमदार लंड लगा तेरे पुत्र का,,, अगर वो मेरा बेटा होता तो मै आज ही उससे चुदवा ली होती,,,

ऐसा बोलते बोलते रांझा अपनी एक उंगली देवकी की बुर में डाल देती है और जोर जोर से रगड़ने लगती है।।। वह अपनी ऊंगली देवकी की बुर में खूब अंदर बाहर करने लगती है जिससे देवकी सिसकने लगती है और पूरी मस्ती में आ जाती है,,
रांझा फिर कहती है,,,
देवकी मैंने देखा था तुम कैसी ललचाई नजरों से अपने बेटे के लंड को देख रही थी,,,मेरी भी आंखे उसके लौड़े से हट ही नहीं रहीं थीं,,,

इस पर देवकी सिसकियां लेते हुए मस्ती मे कहती है,,,,,

हां मैंने अपने पुत्र का लंड देखा है,,बहुत प्यारा लंड है उसका ,,, उसके लन्ड की गोरी चमड़ी और गुलाबी सुपाड़ा,,, हाय क्या गजब ढा रहा था,,, और उस पर उसकी फूली हुई नसें मुझे पागल बना रही थी,,,मेरी नज़रे तो उसके लौड़े से हट ही नहीं रहीं थी रांझा,,,मै आज दिन भर उसी की यादों में खोई रही,,,रांझा जरा जल्दी जल्दी मेरी योनि में उंगली कर,,,सहा नहीं जा रहा,,,,आज उसका मोटा लौड़ा हाथ में लेकर छोड़ने का मन ही नहीं कर रहा था,,,वो तो अच्छा हुआ की तू आ गई ,,,नहीं तो आज पता नहीं क्या हो जाता,,,विक्रम के लौड़े में इतनी जान है की अगर कोई स्त्री एक बार देख ले तो बिना सम्भोग किए नहीं मानेगी,,,,

देवकी ऐसे ही बड़बड़ाए जा रही थी मस्ती में और रांझा उसके बुर में उंगली किए का रही थी,,,कमरे में देवकी की योनि की खुशबू फैल गई थी,,,जिस पर रांझा कहती हा

देवकी तुम्हारे योनि की मदमस्त गंध पूरे कक्ष में फ़ैल गई है,,,, मै ना कहती थी कि आज तुम्हारी योनि में आज अलौकिक सुंदरता दिख रही है मुझे,,,

अरे ये मेरी योनि की अलौकिक सुंदरता तो मेरे पुत्र के लिंग के दर्शन का कमाल है,,,जबसे उसका लन्ड देखा है,,,,या यों कहें कि जबसे उसके लिंग को हाथ में लेकर पकड़ा है तबसे मेरी बुर में भूचाल मचा हुआ है,,,सुबह से ही मेरी बुर पानी छोड़ रही है,,,क्या बताऊं महाराज के जाने के बाद आज पहली बार लंड पकड़ा था और वह भी इतना शानदार लंड,,,,देवकी ने कहा,,,

देवकी अगर अपने पुत्र का लंड देख कर तेरी योनि का यह हाल है तो तू अपने पुत्र के साथ संभोग क्यों नहीं कर लेती,,,आखिर उसी ने ना तुम्हारे हाथ में अपना लन्ड दिया होगा ,,,और तो और उसने तो तुम्हारी चूचियों को भी पकड़ रखा था,,,और दबा भी रहा था,, आखिर उसे भी तुम्हारे साथ यौन संबंध बनाने की इच्छा रही होगी,,,

ऐसा कैसे हो सकता है रांझा,,,आखिर वो मेरा पुत्र है,,,मेरी कोख से जन्मा है,,,और उसी कोख में उसके लंड से चुदवा कर मै उसका वीर्य कैसे गिरवा सकती हूं,,तेरे में बड़ी आग लगी है तो तू ही अपने पुत्र के साथ क्यों नहीं सम्भोग करती ,,,,जो तू मुझे समझा रही है,,,,

राजा विक्रम यदि मेरे पुत्र होते तो मै तो कब का उनसे चुदवा ली होती देवकी,,,,उनका खड़ा लंड तो मुझे भूल ही नहीं रहा है,,

रांझा और देवकी के बीच कामुक वार्ता लप चल रही थी और रांझा देवकी की बुर में अपनी दो उंगलियां घुसेड़ कर चोदन करने लगती जिससे देवकी को और भी मस्ती च ढ़ जाती है और वह कामुक सिसकियां निकालने लगती है,,, और वह कहती हैं

इतनी ही गर्मी अगर तेरे बुर में लगी है तो चुदवा ले ना अपने बेटे से ,,, वह भी तो विक्रम का हमउम्र ही है और लंबा चौड़ा भी है,,, उसका लन्ड भी तो मोटा ही होगा,,,,क्यों री रांझा,,

ऐसा ना बोल देवकी वो मेरा बेटा है,,,

तो ऐसे ही विक्रम भी तेरा पुत्र है छिनाल जिससे चुदवाने की तू मुझे बोल रही है,,,मा और पुत्र के बीच यौन संबंध अवैध होता है जिसकी इजाजत समाज कभी नहीं देता है,,,

तो मै कौन सा समाज के सामने चुदवाने को बोल रही हूं,,, अकेले में छुप कर चुदवा ले ,,,किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगा,,,,

रांझा की कामुक बातों से राजमाता देवकी की यौन भावनाएं एकदम बढ़ गई थीं जिसमें देवकी को खूब मजा आ रहा था ,,, क्यों कि कामुक बातों के साथ रांझा देवकी की बुर भी अपनी उंगलियों से चोद रही थी,,,,

और तेज चोद रांझा,,,और तेज,,,और तेज,,,,मै झड़ने वाली हूं,,,और ऐसा बोलते बोलते देवकी चरमोत्कर्ष पा लेती है और वह झड़ जाती है ,,,,उसका बदन अचानक अकड़ जाता है,,,उसकी बुर से योनि रस की धार बह निकलती है जिससे रांझा की पूरी हथेली गीली हो जाती है जिसे रांझा अपने नाक के पास लाकर सुंग्घटी है और कहती है,,

अदभुत,,अत्यंत मादक सुंगध है देवकी,,तुम्हारे बुर से निकले हुए अमृत का,,,

और ऐसा बोलकर वह देवकी के बुर से निकले पानी की वह चाट लेती है,,,,

छी तू बड़ी गन्दी है रांझा,,कोई बुर का पानी चाटता है क्या,,,देवकी ने कहा,,,अब झड़ने के बाद देवकी को थोड़ी आत्मग्लानि होती है कि अभी थोड़ी देर पहले वह कैसे बातें कर रही थी,,,, और उसके चेहरे पर शर्म का भाव आ जाता है,,,,

आज के लिए बस इस अपडेट में इतना ही,,,,आगे देखते है और क्या होता है,,,
Nice update bhai
 

Ajay

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Update 9
देवकी के कक्ष में दो सांसे खूब तेज चल रही थी। कमरे में देवकी और रांझा पूर्ण नग्न अवस्था में थी। अभी अभी देवकी झड़ी है और वह आंखे बंद कर अभी योनि में हुए घर्षण को याद कर आनंदित हो रही थी। वहीं रांझा भी पूरी नंगी देवकी के बगल में बैठकर उसके नंगे बदन को सहला रही थीं ताकि राजमाता थोड़ी सामान्य हो सके। फिर रांझा बोलती है ,,

देवकी तुम्हारा नंगा शरीर कितना सुन्दर है,,बिल्कुल तराशा हुआ,,,, संगमरमर की तरह स्वच्छ और सुन्दर है और उस पर तुम्हारी योनि पे हल्के बाल , उसकी खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं। काश मै पुरुष होती,, तो मै अभी तुम्हरी योनि में अपना लिंग डालकर चोद देती तुम्हें। लेकिन अफसोस, ,,,,

तब देवकी कहती है,,, अब चुप कर रांझा ,,,मै सब जानती हूं,,,तू मेरी झूठी तारीफ करती है,,,,कहां मै अब बूढ़ी हो है हूं और तू कहती है की मेरा शरीर संगमरमर सा सुन्दर है,,,झूठी कहीं की,,,

नहीं राजमाता,,ऐसी बात नहीं है,,,आज तुम्हारा शरीर और खिला हुआ दिख रहा है,,,बिल्कुल नव यौवना की तरह,,,,और आज तो एक और खास बात हो गई है,,,और ऐसा कहकर वह एक कुटिल मुस्कान मुस्कुरा देती है,,,जिसे देवकी देख लेती है।

अच्छा,,अब मुंह बन्द कर अपना,,,साली छिनार,,देवकी ने कहा,,,,हालाकि रांझा की बातों से देवकी के मन में गुदगुदी सी हो रही थी।

अच्छा जी,,,मै चुप रहूं ,,,अपने पुत्र के लिंग के बारे में सोचकर पानी तो तू ही छोड़ रही थी ना ,,,,, अब तो भलाई का जमाना ही नहीं रह गया,,,एक तो बुर की मालिश करो,,,बुर में उंगली करो और फिर गालियां भी सुनो,,,,,रांझा ने कहा

अच्छा चल तू बुरा मत मान,,, मै मानती हूं कि मुझे आज बहुत अच्छा लगा ,,,महाराज के जाने के बाद पहली बार किसी ने मेरी योनि को सहलाया था और उसमें उंगली की थी और आज मै कई सालों के बाद झड़ी हूं,,,, हां ये सच है की इस दौरान मेरे पुत्र विक्रम के लिंग की बाते मुझे और उत्तजित कर रही थी । आज विक्रम के साथ हुई घटनाओं ने मुझे उद्वेलित कर दिया था। खैर छोड़ इन बातों को,,,,एक बात आज पता चली मुझे की तू भी बुर में उंगली अच्छे से करना जानती है।

देवकी आज सुबह ही मैंने तेरी नज़रों को पढ़ लिया था,,,जैसे तू विक्रम के लंड को देख रही थी और उसे अपने हाथों से पकड़ा हुआ था,,,तू तो अपने बेटे का लंड छोड़ना ही नहीं चाह रही थी,,,

ये तू सच कह रही है रांझा,,,,मेरा मन तो अपने पुत्र के लंबे मोटे खड़े को छोड़ने का मन ही नहीं कर रहा था,,,कितना मनमोहक है मेरे बेटे का लन्ड,,,, वाह महाराज की याद आ गई,,,बिल्कुल अपने पिताश्री पर गया है विक्रम,,,,बिल्कुल हूबहू अपने पिता जैसा ही लौड़ा है उसका,,,,

इन कामुक बातों से दोनो उत्तेजित होने लगती हैं और उनकी सांसे तेज चलने लगती हैं,,,रांझा उत्तेजनावश अपना एक हाथ देवकी की चूची पर लेजाकर उसे दबाने लगत है और अपनी एक उंगली से उसके चूचूकों को रगड़ने लगती है जिससे देवकी ओर उत्तेजित और हो जाती है,,,देवकी खुद रांझा का दूसरा हाथ पकड़कर अपनी बुर पे रख कर रगड़ने लगती है,,,रांझा उसके भाग्नासे को अपनी उंगली से छेड़ने लगती है जिससे देवकी की उत्तेजना की कोई सीमा नहीं रहती है,,,,देवकी आहें भरने लगती है और अचानक फुर्ती से रांझा को अपनी ओर खींच कर उससे चिपक जाती है,,,उसे एक मानव शरीर की जरूरत महसूस होती है चाहे वो किसी का भी हो,,,,पुरुष का या स्त्री का,,,,देवकी रांझा को गले लगा कर अपने स्तन से उसके स्तन को रगड़ने लगती है जिसमें उसे असीम आनन्द की अनुभति होती है,,,, रांझा भी देवकी का साथ देने लगती है,,,दोनो का एक स्त्री के साथ सहवास का यह पहला अनुभव था,,,लेकिन देह की गर्मी उन्हें ऐसा करने को मजबुर कर रही थी,,, दोनों एक दूसरे से आलिंगनबद्ध होकर कााम सुख का आनंद ले रही थी। रांझा बोलती है --

देवकी, तू बहुत खूबसूरत है और तुम्हारे पुत्र और पुत्री भी तुम्हारी तरह ही अदभुत सुंदरता के मालिक है। राजा विक्रम को देख कर तो बुर में खुजली होने लगती है और राजकुमारी नंदिनी को देखकर तो अच्छों अच्छों का मन डोल जाए

कामवासना में लीन देवकी बोलती है,,,,तू सही कह रही है रांझा,,,मेरे पुत्र का लंड देखकर तो उससे नज़रे ही नहीं हटती है,,,,और आज तो ब्रह्म मुहूर्त में ही मुझे मेरे पुत्र के मोटे लंबे और तगड़े लंड का दर्शन हो गए,,,क्या शुभ दिन रहा आज,,,और एक बात बताऊं तुम्हें,,,आज रात में ही महाभोज के समय उसके स्नानागार में उसने भी मेरी योनि के दर्शन कर लिए, जब मै उसके स्नानागार में मूत्र त्याग करने गई थी,,,उसका तो मुंह खुला का खुला रह गया था,,,

सच देवकी,,,,क्या तुम्हारे पुत्र ने आज तुम्हारी बुर देख ली,,,अब तो वह भी तुम्हे चोदे बिना नहीं मानेगा,,,,लगता है आग दोनो तरफ लगी हुई है,,,,
रांझा ने कहा

हा रांझा ,,,,, स्नानागार में हम दोनों अपने अपने जननांगों को नंगे किए हुए एक दूसरे के सामने थे और मै अपने बेटे के लंड को और मेरा बेटा मेरी योनि को लगातार देखे जा रहा था,,, मैं तो अपने पुत्र के लंबे मोटे लिंग की दिवानी हो गईं हूं,,,मन करता है उसकी मालिश कर दूं,,, लेकिन क्या करूं वो मेरा बेटा है रांझा,,,

बेटा हुआ तो क्या हुआ देवकी ,,, लिंग और योनि मां और बेटा नहीं पहचानते,,, लंड को केवल बुर और बुर को केवल लंड चाहिए,,,बोल देवकी , चुदवाएगी ना तू अपने बेटे के लौड़े से,,,,

हा रांझा हा, मै अपने पुत्र के लौड़े से चुद्वाऊंगी,,,उसे मन ही मन मैंने सब कुछ सौंप दिया है,,,मै उसके लंड से अपनी बुर को चुदवा कर अपनी बुर की प्यास बुझाउंगी

और इस तरह दोनो कामुक बारे करते करते झड़ जाती है,,,

अब देखते है अगले अपडेट में क्या होता है,,,,
Nice update bhai
 

Ajay

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अपडेट 10

इधर देवकी और रांझा दोनो कामुक क्रिया के बाद झड़ जाती हैं और राजमाता देवकी को अब गजब की शांति मिलती हैं और राजमाता की नींद आने लगती है। रांझा देवकी के शरीर की मालिश करती है और फिर उसके नंगे शरीर पर रेशम की एक चादर डाल कर कक्ष के बाहर निकल जाती है। वह भी सुबह की ही जगी थी और अभी के काम क्रीड़ा के बाद वह भी आराम करना चाह रही थीं । लेकिन एक स्त्री के साथ कामक्रीड़ा की अनुभति उसे भी मदहोश किए जा रही थी और उसका उसका अंग अंग प्रफुल्लित हो गया था। वह एक मदभरी गीत गुनगनाते हुए फुदकते हुए अपने झोपड़े कि ओर जाने लगती है जो राजमहल के एक किनारे पर स्थित था।

रांझा जैसे ही राजा विक्रम और राजकुमारी नंदिनी के कक्ष के बीच में पहुंचती है वैसे ही वह गुप्त रास्ते पर राजा विक्रम के कक्ष से एक परछाई को निकलते हुए देखती है ( यह गुप्त मार्ग एक ऐसा रास्ता है जो राजपरिवार के सदस्यों के कक्षों को जोड़ता है और जिसकी जानकारी राजमहल के राजदारों को ही पता है तथा यह मार्ग एक सुरंग से जाकर मिल जाता है जिससे जमीन के अंदर अंदर ही जंगल में पहुंचा जा सकता है )

परछाई देख कर वह सोच में पड़ जाती है कि इतनी रात को कौन राजा विक्रम के कक्ष से निकल सकता है। कहीं राजा किसी विपत्ति में तो नहीं। वह उसी उधेड़बुन में रहती है और फिर उस परछाई का पीछा करने का निर्णय लेती है। वह भी उस परछाई का पीछा करने लगती है और देखती है कि कोई मजबूत कद काठी का आदमी है जो कम्बल से खुद को ढके हुए है और वह राजकुमारी नंदिनी के कक्ष के बाहर आकर रुक जाता है और पीछे मूड कर देखता है की कोई उसे देख तो नहीं रहा। वह जैसे ही पिछे मुड़ता है रांझा खंभे की ओट में छिप जाती है। जब वो परछाई निश्चिंत हो जाती है कि किसी ने उसे नहीं देखा है तब वह राजकुमारी के कक्ष में प्रवेश कर जाता है। रांझा यह देख कर जोर से चिल्लाना चाहती है लेकिन फिर उसके मन में आता है की वो देख ले की कौन है जो इतनी रात को राजकुमारी नंदिनी के कक्ष में जाता है। उसके दिमाग में आज सुबह वाली घटना कौंध जाती है जब उसने राजकुमारी नंदिनी के स्तन पर दांत गड़ाने का निशान देखा था और उसकी योनि पे लालिमा देखी थी। वह सोचती है कि हो ना हो यह वही आदमी होगा जिससे नंदिनी के शारीरिक संबंध बने होंगे। वह भी धीरे धीरे बिना कोई आवाज किए हुए नंदिनी के कक्ष के बाहर खड़ी हो जाती है और परदे के ओट से कक्ष के अन्दर देखने लगती है। यह मार्ग चुकी गुप्त मार्ग था इसलिए इस रास्ते पर कोई प्रहरी या संतरी नहीं था जिससे पकड़े जाने का खतरा भी नहीं था और जैसा पहले बताया गया है उस समय राजमहल के कक्ष के द्वार पर दरवाजे नहीं हुआ करते थी , बल्कि मोटे परदे लगे होते थे। रांझा इन्हीं परदे के ओट से कमरे में झकने लगती है और देखती है की,,,,,,,,

नंदिनी के कमरे में नंदिनी बड़े से आइने के सामने बैठ कर अपने बाल संवार रही है और उसकी पीठ कक्ष के द्वार की ओर थी जिससे रांझा केवल नंदिनी की पीठ देख पा रही थी। राजकुमारी नंदिनी के कक्ष में दीप जल रहे थे जिससे पूरा कमरा रौशनी से नहाया हुआ था। कमरे के हरेक कोने में गुलाब के गुलदस्ते रखे हुए थे तो बीचोबीच रजनीगंधा के फूलों का गुलदस्ता रखा हुआ था जिसकी भीनी भीनी खुशबू पूरे कमरे में फ़ैल रही थी और पूरे कमरे के माहौल को रोमांटिक बनाए हुई थी नंदिनी के कक्ष का पूरा माहौल कामुक बना हुआ था,,ऐसा लगता था उसका कमरा किसी कुंवारी राजकुमारी का न होकर विवाहिता स्त्री का हो।

वह साया भी नंदिनी के पीछे जाकर खड़ा हो गया और उसके कंधों पर अपना हाथ रख देता है जिससे नंदिनी सिहर जाती है और वह साया कहता है,,,लो मै आ गया,,,तुम मेरा ही इंतजार कर रही थी ना,,,,

नंदिनी ऐसा सुनकर तुरंत ही पीछे मुड़ती है और मुस्कुराते हुए उस साए के चेहरे को देखती है तब तक उस साए ने भी अपना कम्बल गिरा दिया जिससे पता चलता है कि वह साया एक पुरुष है। नंदिनी उसके चेहरे को देखती है और तुरंत ही उस साए को गले से लगा कर चिपक जाती है। दोनो के शरीर एक दूसरे से चिपक जाती है।नंदिनी के स्तन उस पुरुष की छाती में दब जाते हैं। और नंदिनी कहती है,,,

मैं कबसे तुम्हारा इंतजार कर रही थी,,,कितनी देर कर दी तुमने आने में,,,,मुझे लगा आज तुम आओगे ही नहीं और मुझे आज की रात तड़प कर है बितानी होगी,,,,

अभी तक रांझा को उस साए का चेहरा नहीं दिखा था जिससे अभी वह इसी उधेड़बन में थी कि आखिर इस राजमहल में ऐसा है कौन ,,जो राजकुमारी के जिस्म से चिपका हुआ है,,,ऐसी हिमाकत करने की कौन हिम्मत कर सकता है,,,
इधर नंदिनी उस साए से चिपकी खड़ी रहती है और दोनो कुछ नहीं बोलते,,,,सिर्फ आलिंगनबद्ध होकर एक दूसरे के शरीर की गर्मी को महसूस कर रहे थे। नंदिनी कहती है,,,,

आए हो तो पहले ,,आओ औषधि वाली दूध पी लो जो मैंने खासकर तुम्हारे लिए बनवाई है

और ऐसा कह कर उस साए से अलग होती है और कमर में हाथ डालकर सिंघासन के तरफ ले जाने के लिए आगे बढ़ती है और वह साया भी आगे बढ़ने के लिए जैसे ही घूमता है उसका चेहरा दरवाजे के तरफ हो जाता है,,,जिसे देखकर रांझा आवाक रह जाती है,,,उसका मुंह खुला का खुला रह जाता है,,,उसका सिर घूमने लगता है,,,उसे लगता है मानो अभी धरती फट जायेगी,,,वह देख कर दंग रह जाती है कि वह साया और कोई नहीं राजा विक्रम थे जो इतनी रात में मिलने के लिए अपनी बहन के कक्ष में पधारे थे वो भी छिप कर,,,उसे दाल में काला नजर आता है और वह वहीं छिप कर अंदर का नजारा देखने लगती है,,,,

अंदर कमरे में नंदिनी अपने भाई विक्रम को आसन पर बैठाती है और ग्लास में रखा दूध उसे पीने को देती है और कहती है

कहा जाता है कि पुरुष को रात में स्त्री से मिलने के पूर्व दूध अवश्य पीना चाहिए और इस दूध में तो राज वैद्य द्वारा दी गई औषधि मिली है जो पुरुषत्व को मजबूत करती है,,,

लेकिन तुम्हारा अनुज तो पहले से ही मजबूत है बहन,,क्या आपको इसका भान नहीं है,,,,

ऐसा ना कहे भ्राता मेरा कहने का ऐसा मतलब नहीं था,,,आपकी मर्दानगी पे तो राज्य की हरेक स्त्री आहें भरती है,,, आपकी इसी मर्दानगी की तो मै दीवानी हो गई हूं,,,

राजा विक्रम आधा ग्लास दूध पीकर आधा नंदिनी को पीने को देते है जिसे नंदिनी सहर्ष पी लेती है और उसके होठों पर दूध की एक परत लग जाती है जिसे देख कर राजा विक्रम अपनी बहन नंदिनी के होठों पर लगे दूध को अपने जीभ से साफ कर देते हैं जिसपर नंदिनी उसे घुर कर देखती है,,,इसपर विक्रम मुस्कुरा देते है और अगले ही पल अपने होंठ अपनी बहन नंदिनी के होठों पर रख कर चूसने लगते हैं,,,नंदिनी भी अपने भाई के साथ चुम्बन में पूरा साथ देने लगती है और दोनो एक दूसरे में खो जाते हैं। इधर रांझा अंदर का ये दृश्य देख कर आवाक रह जाती है और सोचती है कि क्या राजपरिवार में भी भाई और बहन ऐसे संबंध बना सकते हैं,,,

इधर दोनो भाई बहन चुम्बन का आनंद ले रहे थे और दोनों एक दूसरे को छोड़ना ही नहीं चाह रहे थे,,,केवल उम्म्महह उम्म्मह की आवाज कमरे में गूंज रही थी,,,काफी देर बाद दोनों एक दूसरे से अलग होते है और दोनो के होठ बिल्कुल लाल हो जाते है,,,राजा विक्रम कहते हैं,,,

तुम्हारे होंठ कितने मुलायम है बहन ,,इन्हे छोड़ने को जी नहीं करता,,,
इस पर नंदिनी शरमा जाती है और बोलती है,,,

तुम्हारे होठ भी कम कामुक नहीं है भ्राता,,,तुम्हारे होंठ छोड़ने को जी नहीं करता ,,, तभी तो तुम पर सभी स्त्रियां मरती है,,,देखा था आज कितनी रानियां तुम्हे ही देखे जा रही थीं,,,

लेकिन मै तो केवल अपनी इस प्यारी बहन को ही देख रहा था,,,,आज बहुत खूबसूरत दिख रहीं थीं आप,,,लग रहा था कोई अप्सरा धरती पर उतर आई है,,,,

हां तो क्यों नहीं लगती मै सुन्दर,,,आज मेरे प्यारे भाई का जन्मदिवस जो था,,,और ऐसा कह कर वह राजा विक्रम के गालों पर एक चुम्बन के लेती है और फिर कहती है,,,

अब तो तुम्हारी शादी भी तय हो गई राजकुमारी रत्ना से ,,,वह भी बेहद खूबसूरत है,,,

एक भाई के लिए सबसे सुन्दर उसकी बहन ही होती है,,,उसके बाद ही कोई होती है,,,अगर तुम मेरी बहन नहीं होती तो मै तुमसे ही विवाह करता,,,लेकिन कमबख्त ये रिवाज हमें ऐसा करने से रोक रहे है,,,

और ऐसा कहकर राजा विक्रम अपनी बहन नंदिनी को गले लगा लेते है और गले लगे लगे एक हाथ नंदिनी की पीठ पे लेजाकर सहलाने लगते हैं जिससे नंदिनी कामुक आवाज निकालती है,,,,फिर वह अपनी बहन की चुन्नी को हटा देते है और अपना एक हाथ अपनी बहन की चोली पर ले जाकर रख देते है और चोली के ऊपर से ही अपनी बहन के स्तन को दबाने लगते हैं,,,

जिस पर नंदिनी कहती है,,, मत करो,,,लेकिन वह अपने भाई का हाथ अपने स्तन पर से नहीं हटाती है,,,राजा विक्रम अपने हाथ पीछे ले जाकर नंदिनी की चोली की डोर खींच देते है जिससे उसकी चोली खुल जाती है और नंदिनी खुद अपने हाथ से चोली बाहर निकाल देती है जिससे उसके स्तन पूरे नंगे होकर उसके भाई के आंखों के सामने आ जाते हैं जिसे देखकर राजा विक्रम पागल हो जाते हैं और अपना मुंह नीचे लें जाकर अपनी बहन के एक स्तन को चूसने लगते है और दूसरे हाथ से दूसरी चुची को दबाने लगतए है जिससे नंदिनी की उत्तेजना बढ़ जाती है और वह भी अपने भाई के छाती पे हाथ फेरने लगती है और उसके निपल्स को कुरेदने लगती है जो राजा विक्रम को भी आनंद डे रहा था,,, और वे भी अपने दांत से नंदिनी के चुचूक को कांट लेते हैं जिससे उसके मुंह से आह निकल जाती है,,, राजा विक्रम अपना चेहरा उठा कर नंदिनी की आंखों में देखते हुए कहते हैं,,,

बहन ,तुम्हारे स्तन बहुत सुंदर है,,,ये जितने सुन्दर चोली में दिखते है उससे कहीं ज्यादा सुन्दर ये नंगे दिखते हैं,,,बिल्कुल संगमरमर की तरह चमक रहे है ये,,, मन करता है इन्हे चूसता ही रहूं,,,,बहुत भाग्यशाली होगा वह पुरुष जिसके साथ तुम्हारा विवाह होगा,,,

ऐसा ना कहो भाई,,,मै तो तुम्हारे साथ ही विवाह करना चाहती हूं,,,अपने भाई की पत्नी बनना चाहती हूं,,,,लेकिन मै भी समझती हूं ये मर्यादा की दीवार हम भाई बहन की एक नहीं होने देगी,,,लेकिन एक बात मै बता दूं मै भले ही कहीं और ब्याही जाऊं लेकिन मेरा पहला प्यार तुम है रहोगे,,,

ऐसी बात चीत से दोनो भाई बहन भावुक हो जाते हैं और दोनो एक दूसरे की गले लगा लेते हैं,,,दोनो ऊपर से बिल्कुल नंगे रहते है और नंदिनी के नंगे स्तन राजा विक्रम की छाती में धसें रहते है और नंदिनी अपने स्तन अपने भाई की छाती से रगड़ रही थी,,,दोनो ऊपर से तो नंगे थे ,,,लेकिन नीचे नंदिनी ने घाघरा तो राजा विक्रम ने रेशमी धोती पहन रखा था,,,,राजा विक्रम अपने हाथ को अपनी बहन की नंगी पीठ पर घुमाते हुए नीचे ले जाते है और घाघरे के ऊपर से ही नंदिनी की गांड़ को सहलाते हुए दबोचने लगते हैं जिससे नंदिनी आहें भरने लगती है,,,इधर नंदिनी भी अपने भाई के नंगे पीठ पे हाथ फेरते हुए हाथ नीचे ले जाती है और उसके गान्ड को दबाने लगी है,,फिर राजा विक्रम अपने हाथ आगे लाकर नंदिनी के घाघरे के ऊपर से ही उसकी बुर सहलाने लगते है,,इधर नंदिनी भी अपना हाथ आगे लाकर अपने भाई के खड़े लंड को धोती के उपर से ही पकड़ लेती है और उसे मुट्ठी में बांध कर सहलाने लगत है,,,फिर राजा विक्रम बोलते हैं,,,,

बहन मुझे तुम्हारी नंगी गान्ड और चूत देखनी है,,,

तो रोका किसने है भाई,,, खोल दो मेरा घाघरा और कर दो मुझे पूरी नंगी,,,
इतना सुनना था कि राजा विक्रम थोड़ा पीछे हटते हैं और अपने हाथ से अपनी बहन के घाघरे का नाड़ा खोल देते हैं जिससे घाघरा सरसराकर नंदिनी के पैरों में गिर जाता है और वह पूरी नंगी होकर अपने भाई के सामने खड़ी रहती है,,,नंदिनी भी अपने भाई की धोती की गांठ खोल देती है जिससे राजा विक्रम भी पूरे नंगे ही जाते हैं,,,अब दोनो भाई बहन एक दूसरे के सामने पूरे नंगे खड़े होते है,,,अब स्थिति ये थी की दोनो भाई बहन आमने सामने नंगे खड़े रहते हैं और राजा विक्रम का लंड जिसपर हल्के हल्के बाल थे, वो अपनी बहन की बुर की सलामी देते हुए खड़ा था,,,,नंदिनी के भी स्तन उत्तेजना में तने थे और उसकी बुर पानिया रही थी,,, दोनों भाई बहन ने से कोई कुछ नहीं बोल रहा था,,,केवल दो सांसे खूब तेज चल रही थी,,,
राजा विक्रम अपना हाथ नीचे ले जाते है और अपनी बहन की नंगी बुर पे रखकर सहलाने लगते है और दूसरे हाथ से नंदिनी का हाथ पकड़कर अपने खड़े लौड़े पे रख देते हैं जिसे हाथ में लेकर नंदिनी रगड़ने लगती है,,, अब राजा विक्रम अपनी बहन की नंगी बुर सहला रहे थे तो नंदिनी अपने भाई के मोटे लौड़े को हाथ ले लेकर आगे पीछे कर रही थी,,,राजा विक्रम कहते हैं,,,,

आपकी बुर बहुत चिकनी है बहन,,, मन करता है इसे सहलाता है रहूं,,,

मेरा भी यही हाल है भाई,,,मै तो तुम्हारे लंड की दीवानी हो गई हूं,,जी करता है इसे खा ही जाऊं,,, और ऐसा कहकर नंदिनी नीचे बैठ जाती है और अपने भाई के लंड को मुंह में लेकर चूसने लगती है जिससे राजा विक्रम के मुंह से आह निकल जाती है,,,थोड़ी देर बाद राजा विक्रम नंदिनी को उपर उठाते हैं और उसे गोद में उठाकर शय्या पर के जाते हैं,,,इस तरह नंगी होकर अपने भाई की गोदी में देख कर नंदिनी शरमा जाती है और अपना मुंह अपने भाई की छाती में छुपा लेती है,,,राजा विक्रम अपनी बहन की नंगे ही बिस्तर पर लिटा देते हैं और फिर अपनी नंगी बहन के नंगे स्तन की छोटे बच्चे की तरह चूसने लगते है और एक हाथ नीचे ले जाकर उसकी बुर सहलाने लगते हैं,,,,और फिर उसके शरीर पे नीचे जाकर उसकी दोनो टांगे फैला देते हैं और उसके दोनों पैरों के बीच में मुंह लगाकर उसकी बुर पे अपने होंठ रख देते है,,,,और अपनी जीभ से अपनी बहन की बुर चाटने लगते हैं,,,नंदिनी अपने भाई के सिर की अपने हाथ से पकड़कर अपने बुर पे दबाने लगती है,,,राजा विक्रम भी अपनी बहन की बुर की खुशबू से मदहोश हुए जा रहे थे,,,,कुछ देर बुर चटवाने के बाद नंदिनी अपने भाई को ऊपर खींचती है और अपने ऊपर गिरा कर जकड़ लेती है और फिर बहुत ही कामुक आवाज में कहती है,,,

केवल चूत ही चटोगे अपनी बहन की या कुछ और भी करोगे भाई,,,और ऐसा कह कर अपने भाई का लंड अपने हाथ में लेकर रगड़ने लगती है,,,

अगर आपकी अनुमति हो दीदी तो मै अपना लन्ड आपकी योनि में डालकर चोदना चाहता हूं तुम्हे,,,

तो तुम्हे रोका किसने है भाई,,,आओ अपनी बहन की बुर को अपने लौड़े से चोदो,,,उसकी चोद चोद कर उसका भोसड़ा बना दो मेरे भाई,,,मेरी चूत तुम्हारे लंड की प्यासी है ,,, देखो कैसे आंसू बहा रही है और ऐसा कहकर अपने दोनो हाथों से अपने बुर को फैला कर दिखती है जिससे राजा विक्रम अपने हाथो से पकड़ लेते है,,,और अपना खड़ा लंड अपनी बहन की नंगी बुर में डाल देते हैं,,,जैसे ही राजा विक्रम का बड़ा लौड़ा नंदिनी की बुर में जाता है उसकी चीख निकल जाती है,,,फिर उसे भी मजा आने लगता है और वह अपने भाई को जोश दिलाते हुए कहने लगी,,,

और जोर से चोदो भाई,,और जोर से चोदो अपनी बहन की बुर को,,,ये तुम्हारे लंड की दीवानी है,,,इसे हर रात तुम्हारा लौड़ा चाहिए और वह ऐसे ही बड़बड़ाते रहती है,,,

फिर करीब आधे घंटे की चुदाई के बाद दोनो भाई बहन पसीने से लथ पथ एक दूसरे से चिपके चुदाई ने मगन रहते है,,,फिर नंदिनी कहती है,,,

मै झड़ने वाली हूं भाई,,,
मै भी झड़ने वाला हूं बहन,,,

लेकिन तू अपना लंड बाहर निकाल भाई और माल भी बाहर निकाल,,,नहीं तो गर्भ ठहर जाएगा,,,

चुदाई से नंदिनी झड़ जाती है और राजा विक्रम अपना लन्ड अपनी बहन की योनि से बाहर निकाल कर उसके स्तन पर अपना वीर्य गिरा देता है जिसे नंदिनी अपनी उंगलियों पर लेकर चाटने लग जाती है,,
Nice update bhai
 

Ajay

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Update 11

इधर रांझा परदे के ओट से भाई बहन की चुदाई देख कर गरम हो रही थी और अपना एक हाथ नीचे ले जाकर अपने घाघरे को उठा कर अपनी योनि को सहला रही थी और अपनी एक उंगली अपनी बुर में डाल कर चोद रही थी और वह भाई बहन की चुदाई देख कर इतनी गर्म हो जाती है कि जल्दी ही वह झड़ जाती है और उसे तब होश आता है की अभी क्या हो रहा था। वह इतनी बड़ी घटना राजमाता को इसी समय बताने का निर्णय लेती है और भागते हुए राजमाता देवकी के कक्ष की ओर जाती है।
उधर देवकी अपने कक्ष में सोने का प्रयास कर ही रही थी कि रांझा भागती हुई उसके कमरे में दाखिल हो जाती है और देवकी को जगाते हुए कहती है--

उठो देवकी उठो,,,देखो आज अनर्थ ही गया,,,

देवकी धीरे से आंखे खोलती है और बोलती है ---

क्या हो गया,,,इतनी परेशान क्यों है तू,,पहले आराम से बैठ और बता क्या हुआ है,,,,

बैठने का समय नहीं है देवकी,,,आज जो हुआ वह कभी नहीं हुआ,,,तू भी देखेगी तो मेरी तरह ही परेशान हो जाएगी,,,

अच्छा तू बता,,,बात क्या है ,,, पहेलियां मत बुझा,,,

ऐसा कहते हुए देवकी उठ कर बैठ जाती है जिससे उसके शरीर के ऊपरी हिस्से से रेशमी चादर सरक कर नीचे जांघों पर आ जाती है और देवकी ऊपर से पुनः पूरी नंगी हो जाती है,,जिसे देखकर रांझा कहती है----

जल्दी से अपनी चोली और घाघरा पहन कर अपने स्तन और योनि को ढक देवकी और मेरे साथ चल,,,

इतनी रात्रि को मै कहा चलूं,,कुछ बताएगी भी तू मुझे रांझा,,,

बताने का समय नहीं है देवकी,,, तू पहले घाघरा चोली पहन और मेरे साथ चल,,,,

रांझा के कहने पर देवकी बिस्तर से नंगी ही उठती है और देवकी उसके पैरो में घाघरा पहनाने लगती है और उसके घाघरे का नाड़ा बांधने के लिए नीचे बैठ जाती है,,,बैठते ही उसके सामने देवकी की योनि सामने आ जाती है जिसे रांझा देख कर फिर कामुक ही जाती है और कामुकता वश उसकी योनि फैलाकर चूसने लगती है जिससे देवकी की आह निकल जाती है। देवकी की योनि को चाटते हुए कहती है,,,

तुम्हारी योनि कितनी प्यारी है देवकी,,,देख लेने पर उसे चूमे बिना मन ही नहीं मानता है,,,तुम रानियों की बात ही कुछ और होती है न,,,बिल्कुल अप्सरा लगती हो तुम राजघराने की स्त्रियां,,,अब समझ में आया कि महाराज तुम्हारी योनि के इतने दीवाने क्यों थे और क्यों तुम्हे रोज चोदे बिना नहीं मानते थे,,,

अरे नहीं रांझा ऐसी बात नहीं है,,,तू भी बहुत सुंदर है और तेरी योनि भी बहुत सुंदर और प्यारी है,,,मुझे तो तुम्हारी योनि बहुत पसन्द आई और योनि तो सभी औरतों की एक ही तरह की होती है,,,चाहे मेरा हो या तेरा,,,

और ऐसा कहकर देवकी रांझा को उपर उठाती है और उसके घाघरे को उठाकर उसकी योनि को सहलाने लगती है और उसकी आंखों में देखते हुए कहती है

मुझे तेरी योनि बहुत पसन्द है,,तभी तो मैंने तुम्हारे साथ सहवास किया है,,, और तू अपने मन से ये ख्याल निकाल दे की तू सुन्दर नहीं है,,, तू तो मेरी बड़ी बहन,दोस्त , राजदार सबकुछ है,,,,

और ऐसा कहकर देवकी रांझा को गले लगा लेती है और जोर से भींच कर अपने नंगे स्तन उसके स्तन से दबा देती है जिससे रांझा की सिसकी निकाल जाती है,,,फिर देवकी बोलती है

अब बोल इतनी रात को क्या आफत आ गई थी

देवकी के कहने पर रांझा को जैसे कुछ याद आता है और वह कहती है,,,

जल्दी से अपनी चोली पहन और चल मेरे साथ

और ऐसा कहकर वह फटाफट देवकी को चोली पहनाती है और उसके हाथ पकड़ कर लगभग खींचते हुए कक्ष के बाहर ले जाती है,,,जिस पर देवकी कहती है,,,

कुछ बताएगी भी की आखिर माजरा क्या है और तू मुझे कहा लिए जा रही है,,,,

कुछ बताने का समय नहीं है देवकी,,,तू चल मेरे साथ और अपनी आंखों से ही सब देख ले,,,

और ऐसा कहते हुए रांझा खींचते हुए देवकी को लेकर राजकुमारी नंदिनी के कक्ष के बाहर पहुंच कर रुक जाती है और कहती है,,,

खुद ही देख ले

क्या देखूं रांझा,,,तू बता तो सही,,,

नहीं, मैं बता तो नहीं सकती,,,तू खुद ही देख ले

और ऐसा बोलकर धीरे से नंदिनी के द्वार का पर्दा हल्का सा हटा देती है और कहती है

अंदर का नजारा देख ले देवकी,,,

देवकी झल्ला कर अंदर का नजारा देखती है तो वह एकदम सन्न रह जाती है
उस समय अंदर नंदिनी के कक्ष में राजा विक्रम नंदिनी की चुदाई कर अपना लन्ड उसकी योनि से निकाल रहे थे
देवकी उस समय अपने पुत्र राजा विक्रम को अपनी बहन नंदिनी की योनि से लंड निकालते हुए देखती है और राजा विक्रम नंदिनी के स्तनों पर अपना वीर्य गिरा रहे थे जिसे नंदिनी अपनी उंगलियों पर लेकर चाट रही थी,,

राजमाता देवकी अपने पुत्र पुत्री को ऐसा नीच कर्म करता देख कर आवाक रह जाती है,,,कुछ देर के लिए उसका दिमाग काम करना बंद कर देता है,,,वह सोचती है की क्या कमी रह गई हमारे लालन पालन में जो मैं अपने पुत्र पुत्री को अच्छा संस्कार ना दे सकी,,,,वह कुछ सोच नहीं पा रही थी,,,उसे लग रहा था कि अभी जमीन फट जाए और वह उसमे समा जाए,,,

लेकिन थोड़ी देर में उसे होश आता है और गुस्से से उसका चेहरा तमतमा जाता है,,उस वक्त उसके क्रोध की कोई सीमा नहीं रहती है,,, और इसी क्रोध में वह राजकुमारी नंदिनी के कक्ष में प्रवेश कर जाती है और क्रोध में चिल्लाती है,,,

नंदिनी,,,,,,,

ऐसे अचानक अपनी मा की आवाज सुनने से राजा विक्रम और नंदिनी दोनो चौंक जाते है और घबराहट में कक्ष के द्वार की ओर देखते हैं तो अपनी माता को वहां खड़ा पाते हैं जो उस समय गुस्से में आग बबूला कक्ष के द्वार पर खड़ी थी,,,और गुस्से में कहती है,,,

कुत्तों,,ये क्या पाप कर रहे हो तुम दोनों,,, तुमदोनो को शर्म नहीं आती,,,भाई बहन होकर तुम दोनों यौन संबंध बना रहे हो,,,,भाई बहन के बीच यौन संबंध वर्जित है,,तुम दोनों की मती मारी गई है क्या,,,,,,, मै तुम दोनों की खाल खींच लूंगी,

और ऐसा कहकर वह अपने पुत्र राजा विक्रम को धक्का देकर अपनी पुत्री नंदिनी से अलग करती है,,,अभी राजमाता देवकी भूल जाती है कि अभी वह खुद मा होकर अपने पुत्र से यौन संबध बनाने का सोच कर झड़ी है और अभी भाषण चोद रही है,,, हो सकता है देवकी के अंदर नंदिनी से ईर्ष्या का भाव आ गया हो और वह अपने पुत्र के लंबे मोटे लौड़े का उदघाटन खुद करना चाह रही हो,,जिसके कारण वह और आग बबूला हो रही हो,,, खैर देवकी के इतना गुस्सा होने दोनो डर जाते है,,,और देवकी गुस्से में नंदिनी को एक थप्पड़ जड़ देती है और राजा विक्रम के पीठ पर एक मुक्का जड़ देती है,,,राजा विक्रम नंगे ही अपनी माता देवकी की संभालने का प्रयास करते है,,,लेकिन वो गुस्से में उसे झटक देती है,,,उसे इस बात का खयाल नहीं रहता है कि उसके दोनों जवान बच्चे पूरे नंगे है,,,इस दौरान रांझा कक्ष के बाहर ही रहती है,,,,

देवकी गुस्से में कहती है ,,,तुम दोनों को जीने का कोई हक नहीं है ,,,तुम दोनों ने घोर पाप किया है ,,,,,
और ये कहते हुए कक्ष में रखे तलवार को अपने हाथ में लेकर राजकुमारी नंदिनी की ओर टूट पड़ती है और कहती है की मै तुम दोनों को खत्म कर दूंगी,,मै एक क्षत्रानी है और मै ये पाप बर्दास्त नहीं कर सकती,,,

राजा विक्रम राजमाता कें गुस्से को देख कर कांप जाते है और उन्होंने सोचा की अगर जल्दी कुछ नहीं किया तो अनर्थ हो जायेगा,,,और वे जल्दी से राजमाता देवकी के सामने आकर घुटने टेक कर बैठ जाते हैं और सिर झुका कर कहते है,,,

माते,,यदि आपको लगता है की हमने इतना बड़ा पाप किया है तो ये लो मैं आपके सामने गर्दन झुकाएं बैठा हूं ,,,आप काट दो मेरी गर्दन,,,

राजमाता गुस्से में तलवार लिए बढ़ती है और राजा विक्रम के सामने आकर गुस्से में तलवार चलाने के लिए ऊपर हवा में उपर उठाती है और जब नीचे गर्दन झुका कर देखती है तो अपने प्यारे लाडले पुत्र को सिर झुकाए हुए घुटनों पे बल बैठा पाती है तो,,,
अचानक से उसका गुस्सा गायब हो जाता है और उसकी आंखो में आंसू आ जाते है और उसके हाथ से तलवार छूट कर नीचे जमीन पर गिर जाती है,,,वह फुट फुट कर रोते हुए अपने लाडले पुत्र के सामने सामने बैठ जाती है और रोते हुए कहती है,,,

क्यों किया पुत्र तुमने ऐसा पुत्र,,,,क्यों किया ,,, कोई इस रिश्ते के बारे में जान जाएगा तो हम कहीं के नहीं रहेंगे,,,और ये कहते हुए वह अपने पुत्र को नंगे ही गले लगा लेती है और कहती है,,,

ये ग़लत है बेटे,, और ऐसा कह कर वह फिर खुद को कोसने लगती है,,,
मैंने भी गलत किया पुत्र,,,मै अपने ही लाडले और लाडली को गुस्से में मारने चली थी,,,ये वही हाथ हैं ना जिनके हाथ में तलवार थी,,,इन्हे इसकी सजा मिलनी ही चाहिए और ऐसा कह कर वह अपने हाथ दीवार पर मारने लगती है,,, और कहती है,,,
मुझसे आज बड़ा पाप होने जा रहा था,,, मुझे माफ़ कर दो मेरे प्यारे बच्चों,,,तब तक नंदिनी भी उनके पास आ चुकी थी और अपनी मां के इस व्यवहार से आश्चर्य चकित थी,,,वह भी वही अपनी मा और भाई के सामने नंगे ही बैठ जाती है,,,
राजमाता देवकी फिर रोते हुए अपने लाडले बच्चों को गले लगाकर पूछती है,,,,

क्यों किया तुम दोनों ने ऐसा ,,क्यों किया ,,बताओ अगर कोई जान गया तो क्या हो जाता,,,,
और वह अपने दोनो बच्चों को बैठे बैठे ही गले लगा कर रोने लगती है,,,,
Mast update bhai
 

Ajay

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Update 12

तो अभी नंदिनी के कक्ष में राजमाता देवकी अपने बेटे और बेटी को गले से लगाए बैठी थी। अब देवकी का गुस्सा तो शांत हो ही गया था , सुबकना भी कम हो गया था, लेकिन वो अंदर से हिल गई थी अपने बेटे और बेटी की चुदाई देख कर। राजा विक्रम अब स्थिति सामान्य होता देख बोलते हैं
आइए माते, आप आसन पर बैठिए।

राजा विक्रम के ऐसा कहने से देवकी की तंद्रा टूटती है और वह खड़ी हो जाती है और अपने पुत्र और पुत्री का हाथ पकड़कर अपने साथ आसन की ओर ले जाती है।अभी तक राजा विक्रम और राजकुमारी नंदिनी दोनो पूरे मादरजात नंगे ही थे। आसन ग्रहण कर राजमाता इन दोनो को नंगा देख कर कहती है

अरे कमबख्तों अब तो कम से कम अपने नंगे शरीर को चादर से ही ढक लो,,, तुमदोनो को अपनी मां के सामने नंगा खड़ा होने में शर्म नही आती और ऐसा कह कर वह हल्के से मुस्कुरा देती हैं।

राजमाता देवकी की बात सुन नंदिनी रेशम के चादर से खुद को ढक लेती है और एक चादर अपने भाई राजा विक्रम को दे देती है। देवकी के कहने पर दोनो आसन ग्रहण कर लेते हैं, फिर देवकी राजा विक्रम से पूछती है

पुत्र आपने ऐसा क्यों किया, मालूम है न ये आपकी बहन है और बहन के साथ कोई यौन संबंध नहीं बनाता। इस पर राजा विक्रम कहते हैं

राजमाता, मै नंदिनी से प्यार करता हूं और वो भी मुझसे उतना ही प्यार करती है, मै इसके बिना जीवित नहीं रह सकता।

प्रेम करते हो तो इसका मतलब ये तो नहीं है कि तुम अपनी बहन के साथ ही यौन संबंध स्थापित कर लोगे,,,, हरेक भाई अपनी बहन को प्यार करता है,,,तो इसका मतलब ये तो नहीं की हरेक भाई अपनी बहन को चोद ही दे।

लेकिन मै नंदिनी से सच्चा प्यार करता हूं मां और एक स्त्री और पुरुष के बीच यौन संबंध उसी प्रेम की पराकाष्ठा है,,,उसी प्रेम की स्वाभाविक परिणति है और मै तो मानता हूं कि स्त्री पुरुष का प्रेम यौन संबंध बना कर ही प्रकट किया जा सकता है भले ही रिश्ता कोई भी हो,,,,

मै भी भाई विक्रम की बातों से पूरी तरह सहमत हूं मां,,,नंदिनी ने कहा

अच्छा तो ये बात है,,तुम दोनों के बीच स्त्री पुरुष वाला प्रेम हो गया है,,,,लेकिन मै ये नहीं समझ पा रही हूं की तुम दोनों एक दूसरे के प्रति आकर्षित कैसे हो गए,,,

ये बहुत लंबी कहानी है मां और इसके लिए हमारे हालात भी जिम्मेवार है की हम दोनों एक दूसरे के करीब आते गए,,,राजा विक्रम ने कहा

फिर नंदिनी कहती है,,,पिता जी का गुजर जाना ,,विक्रम का राजा बनना हमारे नजदीक आने की परिस्थितियां बनाने लगा,,,हमे नजदीक आने का मौका ही मिलता चला गया,,,

क्या परिस्थितियां रहीं मेरे बच्चो की तुम दोनो एक दूसरे के साथ सहवास करने की सीमा तक पहुंच गए ,,,जब कि तुम्हे पता है कि भाई बहन के बीच सम्भोग तो शास्त्रों में भी वर्जित है,,,

राजा विक्रम __ माते आपको तो मालूम ही है हम दोनो बचपन में एक साथ नंगे नहाया करते थे,,,बल्कि आप ही तो हम दोनो को नंगा करके नहलाती थी,,,नंदिनी भले ही बड़ी बहन है, लेकिन मैं उसके नंगे शरीर के प्रति आकर्षित हो जाता था और शायद नंदिनी को भी मेरा नंगा बदन अच्छा लगता रहा होगा,,,और आप शायद सोचती रही होंगी की ये तो बच्चे हैं, ये नर और मादा के बारे में क्या समझते होंगे,,,ऐसा ही था ना मां

देवकी ___हां यही बात है,,मै तो तुम दोनों को नासमझ समझ कर नंगा नहलाया करती थी

लेकिन यहीं से तो हमारे बीच शारीरिक आकर्षण की शुरुआत हो गई,,,मुझे अपने भाई विक्रम को नंगा देखना अच्छा लगने लगा,,,मुझे उसके साथ रहना उसके साथ खेलना अच्छा लगने लगा,,,नहाते समय मैं इसका लन्ड ही देखा करती थी जो उसी समय बड़ा था और तो और जब विक्रम की नुन्नी पेशाब लगने पर थोड़ी कड़ी हो जाती तो मुझे बड़ा आश्चर्य होता था कि इतनी छोटी नुन्नि बड़ी कैसी हो जाती है,,,मै बड़ी बहन थी तो मुझमें समझ भी ज्यादा थी और यही समझ मुझे अपने छोटे भाई विक्रम के तरफ आकर्षित कर रही थी या यों कहें की मै ही विक्रम के प्रति ज्यादा आकर्षित हो गई थी,,, और आप जब कभी स्नानागार में हमें नंगे छोड़ कर जाती,,,मै ही आगे बढ़कर विक्रम को पकड़ लेती और उसके नंगे शरीर को अपने नंगे शरीर से चिपका लेती और मुझे असीम आनन्द की अनुभूति होती,,शायद विक्रम को भी आनंद मिलता रहा होगा,,,नंदिनी ने बीच में कहा।

हां ये सही है कि जब दीदी मुझे अपने नंगे बदन से चिपकाती तो मुझे भी अच्छा लगता,,,लेकिन क्या अच्छा लगता और क्यों अच्छा लगता था,, ये मुझे समझ नहीं आता था,,,मैं भी नहाते समय दीदी की बुर को ही देखा करता था,,,सोचता इसे नून्नी क्यों नहीं है,,,इसका नुन्नी के जगह पे सपाट क्यो है,,,लेकिन वो सपाट जगह मुझे बड़ी अच्छी लगती,,अब क्यों अच्छी लगती ये मेरी समझ से बाहर था,,,,मै सोचा करता था मैं तो नुन्नी से पेशाब कर लेता हूं लेकिन दीदी कहां से करती होगी,,,,तो एक दिन जब आप हमे छोड़ कर गई और दीदी ने मुझे अपने नग्न शरीर से चिपका लिया तो मैने दीदी से पूछा,,,,
दीदी एक बात पूछनी थी,,,
हां पूछ विक्रम
गुस्सा तो नहीं हो जाएगी
नहीं पगले मैं तुझसे कभी गुस्सा हो सकती हूं क्या,,तू तो मेरा प्यारा सा छोटा सा लाडला भाई है,,,मै क्यों तुझसे गुस्सा होने लगी भला,,,पूछो क्या पूछना है,,,
दीदी, मेरी तो नुन्नी है जहां से मैं पेशाब करता हूं,, लेकिन तुम्हारे तो नुन्नी है ही नही, तो तुम पेशाब कहां से करती होगी और तुम्हारे पास यहां पे नुन्नी क्यों नहीं है,,,मैंने अपना हाथ दीदी के बुर पर रख कर पूछा,,,

इस पर दीदी हसने लगी और कहा,,, अरे पगले पुरुष के पास नुन्नी होता है और स्त्रियों के पास नुन्नी पुरुषों की तरह नहीं होती,,,स्त्रियों के पास ऐसी ही नुन्नी होती है,,,और अपनी उंगली से अपनी बुर की और इशारा कर के बताया,,,
तो क्या हरेक स्त्री की नुन्नी ऐसी ही होती है,,,
हां, स्त्रियों की नुन्नी ऐसी ही होती है,,
तब तो मां की और धाय मां रांझा की भी नुन्नी ऐसी ही होगी,,,
हम्म्म,,मैने देखा तो नहीं है उनकी नुन्नी,,,लेकिन वो भी तो स्त्रियां है तो उनकी नूनी भी ऐसी ही होनी चाहिए,,,
ओह तो ये बात है,,,लेकिन एक बात बताऊं आपको,,,मुझे आपकी नुन्नी बड़ी ही सुंदर लगती है,,जब भी हम नहाने आते है,,मै आपकी नुन्नी ही देखता रहता हूं,,,
मुझे भी तुम्हारी नुन्नी बहुत प्यारी लगती है भाई,,,जब तू छोटा था और तेरी मालिश हो रही होती तो मै तुम्हारी नुन्नी अपने हाथों से पकड़ लिया करती थी,,,

अच्छा दीदी,, लेकिन तुम पेशाब कैसे करतीं हो दीदी,,,

मै यही से करती हूं पेशाब और नंदिनी ने अपनी बुर की ओर उंगली से इशारा करते हुए विक्रम को बताया,,

मुझे देखना है तुम्हे पेशाब करते हुए,,दिखाओगी मुझे पेशाब करके दीदी,,,,,

अच्छा तो मेले बाबू को देखना अपनी बहन को सुसु करते हुए,,
हां दीदी मुझे देखना है तुम पेशाब कैसे करती हो,,,

ठीक है मैं दिखाती हूं अपने बाबू को की मै सुसु कैसे करती हूं,,,

ऐसा कहकर नंदिनी नीचे जमीन पे पेशाब करने की मुद्रा में बैठ जाती है और बोलती है

विक्रम तू भी मेरे सामने आकर मेरी तरह बैठ जा तभी तो तू देखेगा की मै पेशाब कहां से करती हूं,,,

इस पर विक्रम भी नंदिनी के सामने आकर बैठ जाता है और नंदिनी उसके सामने पेशाब करने लगती है तथा उसकी चूत से सिटी की आवाज आने लगती है,,,अपनी बहन को पेशाब करता देख विक्रम को भी पेशाब आने लगती है और वो भी नंदिनी के सामने बैठे हुए पेशाब करने लगता है,,,दोनो भाई बहनों की पेशाब की छीटें भी एक दूसरे पर पड़ रही थी,,, लेकिन फिर भी दोनो एक दूसरे के सामने बैठ कर पेशाब कर रहे थे और एक दूसरे को पेशाब करते हुए देख रहे थे,

तो इस तरह मां हमदोनो एक दूसरे के प्रति आकर्षित होने लगे और दिन पर दिन हमारा ये एक दूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ता ही गया,,,, लेकिन शुरुआत तो यहीं से हुई थी,,,नंदिनी ने कहा

हम्मम, अच्छा तो ये बात है,,,इसका मतलब गलती मेरी ही है इसमें,,,ना मां तुमदोनो को साथ में नंगा नहलाती ,,ना ये सब तुम दोनो के बीच होता,,,देवकी ने कहा

नहीं मां,, इसमें तुम्हारा दोष नहीं है,,शायद परिस्थितियां ही ऐसी बन गईं थीं की हम दोनो भाई बहन होते हुए भी एक दूसरे के नजदीक आ गए थे,,, क्यों कि अगर आपका दोष होता तो हम दोनो थोड़ी समझदारी आने पर एक दूसरे के करीब नही आते,,,,बल्कि एक दूसरे से दूरी बना लेते,,,मगर ऐसा नहीं हुआ मां,,,शायद प्रकृति भी यही चाहती थी हम दोनो भाई बहन एकाकार हो जाएं,,,,नंदिनी ने कहा
क्योंकि जब हम थोड़े बड़े हुए तो हालांकि आपने हमे नंगा कर के नहलाना बंद कर दिया,,, लेकिन हमारे बीच आपसी आकर्षण बरकरार रहा,,,अब हम राजकुमार और राजकुमारी थे तो हमारा कोई दोस्त भी नही हो सकता था,,,केवल धाय मां का बेटा कालू ही था जो कभी कभार हमारे साथ खेला करता था,, नहीं तो केवल हम दोनों भाई बहन ही हमेशा साथ रहते,,,, तो इसलिए खेलते खेलते जब हम देखते की कक्ष में कोई नहीं है और हम दोनों बिल्कुल अकेले है ,,, तो मै बड़ी बहन होने के नाते पहल करती और विक्रम को पकड़ कर कक्ष के ऐसे कोने में ले जाती जहां हम दोनो छुप कर बैठ सकते थे,,,वहां नीचे जमीन पर उकडू बैठ जाती और विक्रम को भी अपने सामने बैठा लेती और मै अपना घाघरा उठा कर विक्रम को अपनी नंगी बुर दिखाती और विक्रम को भी धोती खोलने को बोलती तब विक्रम भी अपनी धोती खोलकर नंगा ही मेरे सामने बैठ जाता और अपना लंड मुझे दिखाता,, फिर हम दोनो काफी देर तक एक दूसरे के यौनांगों को निहारते रहते ,,,,फिर कुछ महीनों तक हम कुछ नहीं करते ,,,,
फिर मेरी माहवारी शुरू हो गई तो मेरी बुर पर झांटें भी उग आई,,,मुझे उत्सुकता हुई की क्या विक्रम के लंड पर भी झांट आए होंगे !!!
इसी बीच आप और पिताश्री आखेट के लिए कुछ दिनों के लिए जंगल गए,,,तो हमे फिर मौका मिल गया,,,जिस दिन आप दोनो आखेट के लिए राजकीय यात्रा पर गए उसी दिन मै आपके कक्ष में विक्रम का हाथ पकड़ कर उसी कोने में ले गई और नीचे बैठ गई,,,
और नीचे बैठ कर अपना घाघरा उठा लिया,,,विक्रम भी जानता ही था की उसे क्या करना है,,,तो वो भी अपनी धोती खोल कर फेंक दिया अपना लंड लटकाए हुए मेरे सामने बैठ गया और मेरी बुर देखंकर उसका मुंह आश्चर्य से खुला रह गया क्योंकि उसने मेरी बुर पे झांटे देख ली थी,,,हालाकि विक्रम की नुन्नी भी अब लंड बनने लगी थी और मेरी बुर देख कर उसका लंड अब खड़ा होने लगा था जो मुझे बहुत आकर्षित कर रहा था,,, हालांकि विक्रम के लंड पर अभी झांटे नहीं आई थी,,,हम दोनो फिर काफी देर तक एक दूसरे के यौनांगों को देखते रहे,,,फिर हमे कदमों की आहट सुनाई पड़ी तो हम दोनो खड़े हो गए और मैंने अपना घाघरा नीचे कर दिया और विक्रम ने धोती पहन ली,,,
लेकिन विक्रम के प्यारे लंड को देख मेरे शरीर में गर्मी बढ़ गई थी,,,,लेकिन हम दोनो इसके आगे कुछ नहीं कर पा रहे थे और न ही इससे आगे बढ़ ही पा रहे थे,,,आप और पिताश्री अब आखेट से भी आ चुके थे तो अब हमें कोई मौका नहीं मिल पा रहा था,,,

इधर हमे आप अपने कक्ष में ही एक ही शैय्या पर सुलाने लगी हीं थी,,,हम दोनों के अंदर पहले से आकर्षण तो था ही,,लेकिन अब हमारे बीच एक संकोच की दीवार भी थी,,,लेकिन परिस्थिति ने फिर हमारा साथ देना शुरू कर दिया,,,
मुझे अब महावारी आना शुरू हो गया था ,,,,मेरी आवाज और भी पतली हो गई थी और अब मेरी काम भावनाएं भी बढ़ने लगी थी,,,मेरे अंदर अब लंड की प्यास बढ़ने लगीं थी,,,लेकिन वो कहते हैं ना कि स्त्री अपनी भावनाओं को काबू करना सीख जाती है और समाज और रीति रिवाजों के बंधन में अपनी भावनाओं को दबा कर रखती है,,, तो मै भी स्त्री के स्वाभाविक व्यवहार के कारण अपनी भावनाओं को दबा कर रख रही थी,,,,
लेकिन आपको तो याद होगा मां की आप हमे अपने कक्ष में शैय्या पर सोता जानकर रात्रि में धीरे से उठकर पिता श्री के कक्ष में चली जाती थी,,,लेकिन हम दोनो की नींद तो रात में कई बार खुल ही जाती थी और हम लोग आपको आपके शय्या पर नहीं पाते थे,,,जिसकी जानकारी आपको कभी नहीं हो पाती,,,

हां ये तो है, मै तो तुम दोनों को सोता जान कर ही जाया करती थी और तुम दोनो कमबख्त जगे रहते थे,,, हाय राम ,,बड़े कमीने थे तुम दोनो बचपन से ही,,, हहाहा,,,,ऐसा कह कर देवकी हसने लगती है,,,

अपनी बातों को जारी रखते हुए नंदिनी ने कहा,,,
ऐसे ही एक रात्रि को जब मै और विक्रम सोए हुए थे तो मैं काफी कामुक हो रही थी और स्वप्न में एक बहुत ही कामुक दृश्य देख रही थी की एक पुरुष अपना लिंग मेरी झांटदार चूत से लड़ा रहा था तो मैं काफी कामुक हो गई और मुझे पसीने छूटने लगे और बुर पूरी पनिया गई थी ,,, मै इतनी कामुक हो गई थी की मैंने सपने में ही हाथ विक्रम के तरफ फेका तो मेरे हाथ में विक्रम का हाथ आ गया,,,मैंने जोश में विक्रम का हाथ अपनी जांघों के बीच ले जाकर बुर पर रख दिया और अपने दोनो पैरों से विक्रम के हाथ को जकड़ लिया और कामुक आवाज निकालते हुई विक्रम के हाथ को अपने बुर पे रगड़ने लगी,,,अब विक्रम की भी आंखे खुल गई थी और भी अपने हाथ से मेरी बुर जोर जोर से रगड़ने लगा था,,,,विक्रम का भी जवान बहन का जवान बुर सहलाने और रगड़ने का पहला अनुभव था और मेरा भी बुर रगड़वाने का पहला अनुभव था जिससे हम दोनों काफी उत्तेजित हो गए थे हालाकि ये बुर रगड़ाई घाघरे के ऊपर से ही हो रही थी,,,,,,लेकिन फिर भी बुर की रगड़ाई से मैं बहुत जल्दी झड़ गई और फिर मुझे होश आया कि मैंने विक्रम का हाथ अपनी बुर के ऊपर दबाया हुआ है,, मै शर्म से पानी पानी हो गई,,,,
लेकिन मुझे अब पेशाब लगी थी तो मैं उठ कर स्नानघर में चली गई,,,,तथा पेशाब कर के वापस आकर फिर शैय्या पर लेट गई,,लेकिन अब विक्रम जगा हुआ था और उसकी आंखों में नींद नहीं थी तो मेरी आंखों से भी नींद गायब थी,,,कुछ देर के बाद विक्रम ने मेरी तरफ करवट ली और अपना एक हाथ सीधे ले जाकर घाघरे के ऊपर से मेरी बुर पर रख दिया जिससे मेरी सिसकी निकल गई और वह मेरी बुर को सहलाते हुए मेरी आंखों में देख रहा था,,,मै भी उसकी आँखों में देखे जा रही थी,,, मै उसे अब मना भी नहीं कर सकती थी क्योंकि अभी थोड़ी देर पहले मैं खुद उससे अपनी बुर रगड़वा रही थी,,तो अब मना भी करती तो किस मुंह से करती और हम दोनो बिल्कुल खामोश होकर आंखो में आंखे डाले एक दूसरे को देखे जा रहे थे,,,,, फिर विक्रम ने अपनी धोती की गांठे खोलकर अलग कर दिया तो उसका लौड़ा खड़ा होकर मेरी आंखों के सामने आकर मुझे सलामी देने लगा,,,फिर उसने अपने हाथ से मेरा एक हाथ पकड़ कर अपने लंड के पास ले गया और मेरा हाथ अपने लंड पर रख दिया जिससे मै पूरी तरह गनगाना गई और उसके मोटे लंबे लौड़े को हाथ में पकड़ कर सहलाने लगी और उसके लंड पर से उसकी खोली हटा कर उसके गुलाबी सुपाड़े को बाहर निकाल लिया ,,,उसका सुपाड़ा भी कड़ा होकर एकदम चिकना हो गया था जिसे मैं अपने अंगूठे से सहलाए जा रही थी,,, और मुझे बहुत मजा आ रहा था,,,मेरी काम भावनाएं एकदम भड़क गई थी और मैं विक्रम के लंड को खा जाना चाहती थी,,,उसके गुलाबी सुपाड़े की चिकनाहट मुझे मदहोश किए जा रही थी ,,,मन कर रहा था कि अभी घाघरा खोलकर अपनी नंगी बुर अपने प्यारे भाई को दिखा दूँ और उसके प्यारे से मूसल लण्ड को अपनी प्यासी योनि में डालकर सो जाऊँ,,,लेकिन वो कहते हैं ना कि मर्यादा हमने बहुत कुछ करने से रोकती है भले ही हमारा मन वो करने को कर रहा हो,,,तो यही मर्यादा कि दिवार ही मुझे आगे बढ़ने से रोक रही थी

और मै ये सोचकर आगे नहीं बढ़ रहा था कि कहीं दीदी को बुरा ना लग जाए और कहीं उसने मना कर दिया तो मै वो भी नहीं कर पाऊँगा जो अभी कर रहा हूँ,,,,इसलिए जितना मिल रहा है उतने में ही ख़ुश रहना है,,मज़ा तो मुझे भी बहुत आ रहा था ,,समझ बढ़ने के बाद पहली बार मै और दीदी इस तरह का यौन सुख का आनन्द पहली बार ले रहे थे और आपको तो पता ही है की पहला प्यार और पहला यौन सुख का अहसास अलग तरह का ही होता है,,,मेरा भी लिंग अब मुस्तंड लौड़ा बन चुका था और मेरी जवानी भी अब हिलोरे मर रही थी ,,,मै खुद चाह रहा था की दीदी को नंगा कर के अभी के अभी अपना लिंग उसकी योनि में डाल दूँ,,,और जिस तरह से दीदी अपनी उँगलियों से मेरे सुपाड़े को छू रही थी, सहला रही थी मेरी उत्तेजना और बढ़ती जा रही थी,,,,,लेकिन एक तो डर और ऊपर से मर्यादा की दिवार मुझे भी ये करने से रोक रही थी,,,,राजा विक्रम ने कहा

नन्दिनी फिर बात को आगे बढ़ाते हुए बोलती है ,,,,फिर पता नहीं कब भाई का लिंग सहलाते सहलाते आँख लग गई पता ही नहीं चला और भाई भी मेरी बुर सहलाते सहलाते सो गया,,,वो तो अच्छा हुआ की आपके आने के पूर्व मेरी आँख खुल गई और अगर मेरी आँख नहीं खुलती तो शायद हमदोनो भाई बहन रंगे हाथ रंगरलियाँ मनाते हुए पकड़े जाते,,,जैसे ही मेरी आँख खुली मैंने भाई का हाथ घाघरे के ऊपर से अपनी योनि पर से हटाया और उसे जगाकर उसे धोती लपेटने को बोला,,,जिससे भाई ने भी तुरन्त ही धोती लपेटकर सो गया,,,वो तो अच्छा हुआ उस दिन की मेरी नींद खुल गई ,,नहीं तो अनर्थ ही हो जाना था उस दिन ,,,ये कहकर नन्दिनी मुस्कुराने लगती है,,,,

तब देवकी ने कहा,,,,तू तो बड़ी रण्डी निकली छिनाल,,,डायन भी सात घर छोड़कर वार करती है और तू अपने छोटे भई पर ही डोरे डाल रही थी ,,,अरे कुछ तो शरम कर लिया होता,,,मेरे प्यारे मासूम बेटे को अपने प्यार में फँसा लिया और ये कहते हुए देवकी मुस्कुराकर एक हल्की सी चपत नन्दिनी के सिर पर लगाती है,,,

उफ़्फ़ माँ,,,चोट लगती है,,,क्या करती हो तुम,,,बड़ा आया आपका मासूम बेटा ,,,आगे तो कहानी इसी ने बढ़ाई ना,,,,,, फिर नंदिनी ने आगे बोलना शुरू किया,,,

उस रात के बाद से हमने कई दिनों तक कुछ नहीं किया और बाहर हम दोनो भाई बहन ऐसे व्यवहार करते रहे की हमारे बीच कुछ हुआ ही न हो,,,लेकिन करीब 6 महीने बाद फिर एक घटना घटी,,, उस रात भी हम आपके कक्ष में सोए थे और प्रत्येक रात्रि की भांति आप पिताश्री के साथ सोने चली गई थीं और हमंदोनो भाई बहन अपने कक्ष में अकेले थे,,,मध्य रात्रि में अचानक मुझे लंड की जरूरत महसूस होने लगी और मैं काफी उत्तेजित हो गई जिससे मेरी नींद खुल गई,,मेरी आंख खुली तो मैंने देखा की आप कमरे में नहीं है और विक्रम मेरी तरफ पैर कर के सोया था,,मुझे अपने भाई पर खूब प्यार आ रहा था और मैने उत्तेजनावश विक्रम का पैर अपने बुर पर घाघरे के ऊपर से ही रख दिया और उसे अपने बुर पर दबा दिया,,,और अपने दोनो पैरों से उसके पैर को दबोच लिया और अपनी बुर उसके पैर पर रगड़ने लगी और यौन आनंद लेने लगी,,,मेरे द्वारा विक्रम के पैर पर बुर रगड़ने से विक्रमंकी भी आंख धीरे धीरे खुल गई और जब उसकी नींद खुली तो उसने मुझे अपनी बुर अपने पैर पर रगड़ता पाया,,,कुछ देर देखने के बाद उसने अपना पैर मेरी बुर पर से हटाने की कोशिश करने लगा और अपने पैर को छुड़ाने के इन्हें हिलाने लगा,,,
मै बहुत डर गई थी की लगता है की विक्रम को अब ये पसंद नहीं आ रहा है और मै मन ही मन ऊपर वाले से माफी मांगने लगी की अब नही करूंगी ये सब भाई के साथ,, हे ऊपरवाले आज के लिए संभाल लो मामला,,,फिर आगे से कभी ये गलती नहीं करूंगी,,,
लेकिन माते पुरुष तो पुरुष होता है ,, बस उसे योनि दिखनी चाहिए वो खुश हो जाता है,,,वैसे ही ये महाशय हैं,,,जब इन्होंने मेरे बुर के ऊपर से अपने पैर हटा लिए तो जनाब मेरे बगल में आकर लेट गए,,,मै द्वंद में थीं, कि क्या होने वाला है,,,ये जनाब मुझे डांटेंगे या पता नहीं क्या करेंगे,,, डर भी रही थी और कुछ अनहोनी की संभावना भी लग रही थी,,,
लेकिन विक्रम मेरे बगल में लेटकर मेरा मुंह देखता रहा ,,फिर उसने जो किया उसकी मैने कल्पना भी नहीं की थी,,,उसने अचानक से अपने होठ मेरे होठों पर रख दिया और उन्हें बेदर्दी से चूसने लगा,,,ये होंठो को चूसने का मेरा पहला अनुभव था इसलिए मैं आनंद के सागर में गोते लगाने लगी,,,और दूसरी बात ये की मैंने राहत की सांस ली की विक्रम को बुरा नही लगा है बल्कि वो तो हमारे बीच के संबंधों को एक ऊंचे स्तर पर ले जा रहा है,,,, अभी थोड़ी देर पहले ही मैं जो ऊपर वाले से माफी मांग रही थी की आगे से ये गलती नहीं करूंगी ,,वो मै भूल गई,, और मैं फिर से अपने भाई के साथ अवैध संबंधों को आगे बढ़ाने लगी,,,मनुष्य बहुत ही स्वार्थी प्राणी है,,उसके लिए उचित या अनुचित कुछ भी नही है,,,बस उसकी भूख शांत होती रहनी चाहिए ,,भले ही वह भूख पेट की हो या जिस्म की,,,
भाई द्वारा मेरे होंठों को अपने होठों के बीच दबाकर चूसा जाने लगा जिससे मेरी उत्तेजना और बढ़ गई,,,और मै भी अपने भाई का चुम्बन में साथ देने लगी,,,हम दोनो करीब 15 मिनट तक एक दूसरे के होठ चूसते रहे,,,कभी वो मेरी जीभ अपने मुंह में लेकर चूसता तो कभी मैं उसकी जीभ को अपने मुंह में लेकर चूसती,,,, कभी होठों को चबाती ,,,इस चुम्बन से हम दोनों की सांसे खूब तेज चलने लगी,,,फिर 15 मिनट बाद हम दोनो अलग हुए और ,,,,
विक्रम मेरी आंखों में आंखे डालकर एक टक से मुझे देखे जा रहा था और मैं उसकी आंखों में,,,ऐसे ही देखते हुए विक्रम बोल पड़ा,,,
आप बहुत सुंदर हो दीदी,,, बिल्कुल अप्सरा की तरह ,,,, मै कई सालों से ये तुम्हे कहना चाह रहा था लेकिन हिम्मत नहीं हो रही थी,,,सच में तुम्हारे ये गुलाबी होठ कितने मुलायम हैं,,,लगता है अभी इनसे खून निकल जाएगा,,,
और ऐसा बोलकर विक्रम ने मेरे माथे को प्यार से चूम लिया जिससे मैं शर्मा गई और शर्म से अपनी आंखे नीची कर ली,,,आज इतने वर्षों में पहली बार विक्रम ने मेरी सुंदरता की प्रशंसा की थी,,,इसके पूर्व वह केवल एक छोटे भाई की तरह मेरा कहना मान लिया करता था,,, लेकिन आज उसने एक पुरुष की भांति मेरे साथ व्यवहार किया था और मुझे नारी होने का अहसास दिलाया था,,,आज के पूर्व वह केवल एक छोटे भाई के रूप में मेरे साथ यौन क्रीड़ा में भाग लिया करता था ,,,लेकिन आज वह एक भाई होने के अलावे एक मर्द के रूप में पेश आया था और आज पहली बार उसने स्वयं कदम आगे बढ़ाते हुए मेरे करीब आकर मेरा चुम्बन लिया था,,,अभी तक हम दोनों केवल काम भावना के वशीभूत होकर एक दूसरे के साथ काम क्रीड़ा किया करते थे,,,लेकिन अभी विक्रम द्वारा बोले गए शब्दो में वासना नहीं ,,बल्कि एक पुरुष का एक स्त्री के प्रति प्रेम नजर आ रहा था,,,जिससे मुझे अलग ही प्रेम वाली अनुभूति हो रही थी,,,अब विक्रम के साथ प्रेम की मेरी तीन भावनाएं थी,,,पहला तो जग जाहिर है बड़ी बहन का छोटे भाई के प्रति प्यार ,लगाव जो उसकी रक्षा भी करती है,,,,दूसरी भावना काम भावना थी जिसके वशीभूत हम दोनों एक दूसरे के यौनांगों के साथ खेला करते थे,,,,और आज एक तीसरी भावना ने भी जन्म ले लिया और वो है एक नर का एक मादा के प्रति शास्वत पवित्र प्रेम,,,जिसमे मादा हमें नर के प्रेम में वशीभूत हो जाती है और उसकी ही बन कर रह जाती है और आज यही प्रेम मै विक्रम के अंदर अपने लिए देख रही थी और मैं स्वयं विक्रम के प्रति ये प्रेम महसूस कर रही थी,,,अब सोचो मां,, जब कोई किसी से इतने तरह का प्रेम करेगा तो उसका प्रेम कितना ऊंचा होगा,,,
इसके बाद विक्रम मेरे आंखों में देखते हुए अपना हाथ मेरे घाघरे के ऊपर से मेरी बुर पर रख दिया,,,और मेरी बुर को घाघरे के ऊपर से ही सहलाने लगा,,, चूकि रात में हम पतले कपड़े का घाघरा पहन कर सोते हैं इसलिए कपड़े होने के बावजूद विक्रम का हाथ मै अपनी बुर पर अच्छे से महसूस कर रही थी,,,फिर उसने अपनी धोती हटा दी तो उसका मोटा लंड मेरी आंखों के सामने आ गया जो पूरी तरह से खड़ा था और इतना टाइट था की उसका सुपाड़ा बिना खोल हटाए ही बाहर लंड से बाहर झांक रहा था और मेरी तरफ ऐसे खड़ा था मानों मुझे प्यार से निहार रहा हो,,,फिर विक्रम ने मेरा हाथ पकड़ कर अपने लौड़े पर रख दिया जिससे मैं पूरी तरह गनगना गई,,,मैने उसे कामुक आवाज में कहा मत कर विक्रम,,,लेकिन मौका रहते हुए भी मैने अपना हाथ उसके लंड पर से नहीं हटाया,,,उसे छोड़ने का जी ही नहीं कर रहा था,,, मै स्वय उसके लिंग को आगे पीछे करने लगी और विक्रम मेरी बुर को सहलाए जा रहा था जिससे मैं पूरी तरह गर्म हो गई थी।
इसी बीच विक्रम ने ऐसा काम किया था जिसकी मै कल्पना भी नही कर सकती थी,,,उसने अपना एक हाथ मेरी चोली के ऊपर रख कर मेरे स्तन दबाने लगा,,,स्तन दबवाने का ये मेरा पहला अनुभव था,,,मेरी उत्तेजना बढ़ती हिब्जा रही थी,,लेकिन मै विक्रम को ऊपरी मन से ऐसा नहीं करने को बोल रहीं थी,,,फिर अचानक विक्रम ने मेरी चोली ऊपर कर दी जिसकी मैने कल्पना भी नहीं की थी की विक्रम ऐसा कर सकता है,,,मेरी चोली उठा देने से मेरे दोनो स्तन नंगे होकर विक्रम की आंखों के सामने आ गए,,,मै उत्तेजित तो थी ही और उसी उत्तेजना के कारण मेरे दोनो स्तन इस तरह पूरे टाइट थे कि ऐसा लग रहा था दोनो विक्रम को निहार रहे हों,,,,मेरे नंगे स्तन देखकर विक्रम की आहें निकल गई और उसने बोला,,,
बहुत ही सुंदर स्तन हैं तुम्हारे दीदी,,,कितने गोरे हैं ये,,मै तो सपने में भी नहीं सोच सकता था की आपके स्तन इतने सुंदर होंगे,,, बिल्कुल संगमरमर की तरह चमक रहे हैं,,,और इस गोरे स्तन पे ये हल्की सी हरी नसें इसकी खुबसूरती में चार चांद लगा रहे है,,,मै बहुत सौभाग्यशाली हूं की मुझे आपके इतने सुंदर स्तन के दर्शन हो गए,,,मै धन्य हो गया बहन ,,,, और आपके स्तन के ये हल्के भूरे रंग के स्तनाग्र अर्थात चुचूक मुझे कितने प्यार से देख रहे है ,,
और ऐसा कह कर विक्रम ने अपनी दो उंगलियों से मेरी चुचूक को पकड़ कर मसल दिया जिससे मेरी आह् निकल गई क्योंकि मेरे चुचूक को पहली बार किसी मर्द ने अपनी उंगलियों से मसला था,,,मेरा पूरा शरीर अकड़ गया और जोश में मैने अपनी कमर उठाकर बुर को विक्रम के दूसरे हाथ पर दबा दिया,, जिससे विक्रम का हाथ मैं अपनी बुर पर पूरी तरीके से महसूस करने लगी,,,और मै उत्तेजना वश बोल पड़ी,,,
और जोर से रगड़ों विक्रम मेरी योनि को,,
और उसके हाथ पे अपना बुर रगड़ने लगी,,,और मै विक्रम के लंड को भी खूब तेजी से दबा दबा कर सहला रही थी जिससे विक्रम की भी आहें निकल रही थी,,,
आज विक्रम भी पूरे मूड में था,,,वह कभी उंगलियों से मेरे चुचको को कुरेदता तो कभी अपने हाथ से मेरी चूची को दबा देता ,,,जिससे मैं अत्यंत उत्तेजित होती जा रही थी,,
फिर अचानक विक्रम ने अपना मुंह मेरे स्तनों पर रख दिया और उसको प्यार से चूमने के बाद एक स्तन को मुह में लेकर चूसने लगा जैसे बच्चे अपनी मां का दूध उसके स्तन से चूसकर पीते हैं,,विक्रम द्वारा मेरे स्तन चूसे जाने से मैं और उत्तेजित हो गई और बड़बड़ाने लगी क्युकी मेरी जिंदगी में पहली बार कोई मेरे स्तन चूस रहा था,,,
चूसो भाई चूसो ,,अपनी बहन के स्तनों के दूध को चूसकर खाली कर दो ,,, इसका जहर निकल दो मेरे भाई,,, दूसरे वाले स्तन को चूसो ना भाई,,, वो भी तुम्हारे प्यार को तरस रही है विक्रम और ऐसा कहते हुए मै दूसरे स्तन के स्तनग्र को अपनी उंगलियों से मसल रही थी,,,
मेरा आदेश पाकर मेरा प्यारा भाई मेरी दूसरी चुची को चूसने लगा,,,जब वह दूसरे स्तन को चूसता तो मै पहले स्तन के चुचूक को उंगलियों से मसलती,,,और मै अपनी कमर उठा कर बार बार अपनी बुर विक्रम की हथेलियों पर रगड़ती,,
उसी बीच विक्रम बीच में बोल पड़ा,,
और माते , बहन का घाघरा इतना पतला था की मै उसकी योनि को साफ महसूस कर सकता था,,,बल्कि मै तो उसकी झांटों को भी महसूस कर रहा था,,,
फिर नंदिनी बोलती है,,,
हम पूरी तरह यौन संबंधों का आनंद उठा रहे थे,,,आपके कक्ष में हम भाई बहन की आहे और सिसकारियां गूंज रही थीं,,,
मै उसके लौड़े को दबोच दबोच कर सहला रही थी तो विक्रम मेरी बुर को रगड़ रगड़ कर सहला रहा था और मेरी चूची चूसे जा रहा था,,,और संयोग देखो मां,,हम दोनो भाई बहन एक साथ ही झड़ गए और मेरे हाथ पर विक्रम का पूरा वीर्य गिर गया तो विक्रम के हाथ पर मेरी योनि से निकला पानी लग गया और मेरा घाघरा भी योनि के स्थान पर हल्का सा गिला हो गया,,,

फिर हम दोनो की कामाग्नि शांत हुई तो विक्रम ने मेरी आंखों में आंखे डाल कर देखा और मेरे माथे को प्यार से चूम लिया ,,ऐसा लगा कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका को प्यार से चूम रहा हो ,,,फिर उसने मुझे अपनी बाहों में भर लिया और मेरी चूचियां उसकी छाती में धंस गई,,,मैने भी उसे अपनी बाहों में जकड़ लिया और आंखे बंद कर उसके आलिंगन का आनंद उठाने लगी।

हालाकि जो होता है अच्छे के लिए होता है,,,अगर उस दिन हम दोनो भाई बहन नहीं झड़े होते तो पता नहीं हम दोनों क्या कर बैठते,,,
और इस तरह हमंदोनो भाई बहन एक दूसरे की बाहों में सो गए,,,,

उम्मीद है आप लोगो को अपडेट पसंद आएगा
Mast update bhai
 

Ravi2019

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अपडेट की प्रतिक्षा है
Nice update
Waiting sir ...............
अपडेट की प्रतीक्षा
Waiting for your update
Bhai Story bohot achi ja rahi hai.
Waiting For Next Update
Ye Bhai to gayab hi ho gye
Erotic update bhai
Nice update bhai
Mast update bhai
Nice update bhai
Nice update bhai
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Mast update bhai
Mast update bhai
Super and hot updates
Thanks a lot
 
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