अपडेट 26
रांझा और नंदिनी रत्ना को लेकर रत्ना के लिए बने नए रंग महल के कक्ष में ले जाती हैं जहां आज राजा विक्रम और नंदिनी सुहागरात मना कर जीवन की नई शुरुआत करने वाले थे। आज रत्ना के महल को खास तरीके से सजाया गया था और चारो तरफ इत्र की खुशबू बिखेरी गई थीं। दोनों रत्ना को कक्ष में ले जाकर शैय्या पर बिठाती हैं और नंदिनी रत्ना से कहती हैं
भाभी, कपड़े बदलने हो तो बदल लो ।
इस पर रत्ना ना कहते हुए सिर हिलाती है। Tan नंदिनी कहती है।
हां भई, कपड़े क्यों बदलें, आखिर अभी सारे कपड़े उतारने ही तो हैं
ऐसा कह कर नंदिनी ठहाके लगा कर हस देती है।
इस पर रत्ना शरमा जाती है, लेकिन उसे ये बात अच्छी भी लगती है की वह कुछ देर में नंगी होने वाली है।
इस पर रांझा कहती है
आप भी न राजकुमारी बहुत मजाक करती है। हां ठीक है इन्हें भी पता है की थोड़ी देर में ये नंगी होने वाली हैं, लेकिन नई नवेली दुल्हन के सामने ऐसा नहीं बोलना चाहिए।
और ये कह कर रांझा भी हस देती हैं
इस पर रत्ना और ज्यादा लजा कर सिर झुका लेती है, लेकिन ये हसी ठिठोली उसे उत्तेजित कर रही थी। तभी रत्ना कहती है
आपलोग कुछ भी कहती हैं। ऐसा कुछ नहीं होने वाला
और ऐसा कह कर मुस्कुरा देती हैं
तभी रांझा कहती है
वो तो हमलोग कल देखेंगे ही रानी
फिर नंदिनी और रांझा कक्ष से निकल पड़ती हैं
इधर राजा विक्रम वाह्य कक्ष में बैठ कर इधर कुछ दिनों से इनकी जिन्दगी में आए परिवर्तन के बारे में सोच रहे थे कि जो चीजें उन्हें असम्भव लगती थीं, वो इधर कुछ दिनों में उनकी जिंदगी में घटित हो चुका था। विक्रम मन ही मन अपनी माता देवकी को चाहता था, उसे पूरी मादरजात नंगी देखना चाहता था। वह ये जानता था कि यह असंभव है, लेकिन वो भी संभव हो चुका था । उसने ना केवल अपनी मा को पूरी नंगी देखा, बल्कि उसकी चूदाई भी की। फिर वह अपनी दीदी नंदिनी को भी याद करता है की कैसे उसने और नंदिनी ने एक दूसरे की जवानी की प्यास बुझाई है।
राजा विक्रम ये सब सोचते रहते हैं, तभी नंदिनी और रांझा वहां आकर कहती हैं
नंदिनी,,, किस सोच में डूबे हैं भ्राता
विक्रम,,,, कुछ नहीं, बस ऐसे ही
नंदिनी,,, तब चलिए महाराज, आपकी नई नवेली दुल्हन कक्ष में आपका इंतजार कर रही हैं
विक्रम उठते हैं, तो नंदिनी उनसे नेग मांगती है जिस पर राजा विक्रम कहते हैं सब कुछ तो आपका ही है दीदी।
लेकिन राजा हीरो से जड़ा हार नंदिनी को देते हैं जिस पर नंदिनी कहती है
ऐसे हाथ में कौन अपनी दीदी को हार देता है
तो राजा विक्रम कहते हैं
तब पहना दूं क्या
इस पर रांझा कहती है
और नहीं तो क्या
तब राजा विक्रम अपनी दीदी को वह हर पहना देते हैं जिस पर नंदिनी विक्रम को गले लगा लेती है
इस पर रांझा की आंखों में जाने क्यों आंसू आ जाते हैं और वह दोनों के प्रेम को देख कर अहलादित हो जाती है।
तभी नंदिनी कहती है
और धाय मां का नेग ?
इस पर राजा विक्रम एक मोतियों की माला निकलते हैं तो नंदिनी कहती हैं
इन्हें भी गले में पहनाओं
इस पर राजा विक्रम रांझा के गले में माला पहना देते हैं और उसके पैर छूने के लिए झुकते हैं जिस पर रांझा उन्हें पकड़ कर गले लगा लेती है और उन्हें जकड़ लेती है। इस पर राजा विक्रम भी रांझा को आगोश में ले लेते हैं। ये देख कर रांझा की आंखों से खुशी के आंसू निकल जाते हैं और वह कहती है
आपलोगो ने इस दासी को इतना सम्मान दिया है, इसे मैं कभी नहीं भूल पाऊंगी
इस पर नंदिनी भी आकर उन दोनों के गले लग जाती है और कहती है
ऐसा न सोचे धाय मां, आपने हमें बचपन से पाला है। आप इस सम्मान की पूरी हकदार है।
फिर तीनों अलग होते हैं और रांझा वही आसन पर बैठ जाती है और नंदिनी राजा विक्रम को पकड़ कर रत्ना के कक्ष की ओर ले जाती है और कहती है
विक्रम, तुम्हारे मन में तो लडडू फूट रहे होगे, क्यों है न। रत्ना जो इंतजार कर रही है तुम्हरा। मिलन के लिए तो तुम दोनो बेचैन हो रहे होगे। और आखिर हो भी क्यों ना। आज तुम दोनो की सुहागरात जो है, बिना किसी डर के यौन सम्बंध बनाने की रात।
इतना कहकर नंदिनी मुस्कुरा देती है और इस पर राजा विक्रम शरमा जाते हैं और कहते हैं
दीदी तुम तो जानती ही हो , मेरा पहला प्यार , पहली पत्नी तुम ही हो। भले ही समाज के कारण हमें अपना सम्बंध छुपाना पड़े। लेकिन सत्य तो यही है ना।
तब नंदिनी कहती है
भाई, तुमने अभी मेरे गले में हीरो का हर डाल ही दिया और मुझे एक तरह से पत्नी का दर्जा दे दिया । लेकिन वादा करो एक दिन मेरी मांग में सिंदूर जरूर डालोगे।
इस पर राजा विक्रम कहते है
अवश्य बहना अवश्य। वह दिन आएगा, जब मैं तुम्हारी मांग में सिंदूर भरूंगा।
इस पर नंदिनी राजा विक्रम के होंठ चूम लेती है और कहती है
विक्रम , अब तुम कक्ष में जाओ और रत्ना को जी भर कर प्यार दो और उसे पत्नी बना लो। सुहागरात को लेकर हर स्त्री का एक सपना होता है। रत्ना ने भी सपने देखे होंगे, उसे भरपूर प्यार दो मेरे भाई।
तब राजा विक्रम मुस्कुराते हुए रत्ना के कक्ष में प्रवेश करते हैं और प्रवेश करते ही उन्हें अद्भुत अहसास होता है। कक्ष में भीनी भीनी खुशबू फैली हुई थी। पूरे कक्ष में छोटे छोटे दीप जल रहे थे जिससे पूरा कक्ष हल्की रोशनी से जगमग था। भिन्न भिन्न प्रकार के पुष्प कक्ष की सुन्दरता में चार चांद लगा रहे थे। शय्या भी गुलाब और रजनीगन्धा से सजा हुआ था। कक्ष का पूरा माहौल कामुक हो गया था। साथ ही शय्या पर रत्ना लाल रंग के घाघरा चोली में घूंघट ओढ़ कर बैठी हुई थी । जिसे देख कर राजा विक्रम धीरे धीरे रत्ना के पास पहुंचते हैं और कहते हैं
मेरी रानी, अर्धांगिनी, प्रेयसी को मेरा प्रणय निवेदन, स्वैकार करें ।
और ऐसा कह कर रत्ना के सामने बैठ जाते हैं और कहते हैं
प्रिये, अपना घूंघट तो उठाइए ।
इस पर रत्ना कोई हरकत नहीं करती। तब राजा विक्रम कहते हैं
ओह, मैं भी कितना नादान हूं। आज सुहागरात है, तो पति ही पत्नी का घूंघट उठाता है
और ऐसा कह कर राजा विक्रम धीरे धीरे रत्ना का घूंघट उठाते हैं। घूंघट उठाते ही पूरा कक्ष रत्ना के चेहरे की दिव्यता से आलोकित हो जाता है। राजा विक्रम का मुंह पूरा का पूरा खुला रह जाता है। रत्ना ने अपनी आंखे बन्द की रहती है। उसका मन भी उत्तेजना को सह नहीं पा रहा था। तभी विक्रम कहते हैं
वाह, सुंदर अति सुंदर। रानी , मैं यही जानता था कि आप बहुत खूबसूरत है, लेकिन इतनी सुन्दर है, नहीं जानता था। आपके सामने तो स्वर्ग की अपसाराएं भी कुछ नहीं है।
और राजा विक्रम फिर गुनगुनाते हैं
हे प्रिये, हे प्रिये,
आपका आगमन
शुभ हो
शुभ हो
जीवन मेरा
ऋणी है आपका
है प्रिये, हे प्रिये
ये सुन कर रत्ना मन ही मन बहुत खुश होती है। तब राजा विक्रम कहते हैं
प्रिये, अपने नयन खोलो प्रिये। देखिए आपका दास आपके सामने है।
इस पर रत्ना धीरे धीरे अपनी आंखे खोलती है और अपने सामने राजा विक्रम को बैठा पाती है जिसे देख कर वह विस्मित हो जाती है। इतने आकर्षक व्यक्तित्व वाले पुरुष को देख कर मुग्ध हो जाती है। वह सोचती है जिस पुरुष की उन्होंने कल्पना की वह सामने बैठा है। जिसे सोच कर उसने अपनी योनि सहलाई थी वही पुरुष सामने बैठा है। दोनो एक दूसरे को देखे जा रहे थे। तब राजा विक्रम कहते हैं
आप बहुत खूबसूरत है रानी रत्ना
और ये कहते हुए विक्रम हीरा और माणिक्य से जड़ा हुआ हार रत्ना को उपहार देते हैं और कहते हैं
ये आपके लिए प्रीये
हार देख कर रत्ना प्रफुल्लित हो जाती है क्योंकि उसे हीरो का हार बहुत पसन्द है
रत्ना का चेहरा खुशी से और दमकने लगता है जिसे देख कर राजा विक्रम कहते हैं
आपके इन होंठो को देख कर चूमने का मन करता है
और ऐसा कह कर वो नंदिनी के होंठों को चूम लेते हैं। पहले चुम्बन से रत्ना का पूरा शरीर गनगना जाता है और उसे अलग तरह की अनुभूति होती है। अनायास ही उसके होंठ उसके काबू में नहीं रहते और वह भी राजा विक्रम के होंठों को चूसने लगती है। दोनों एक दूसरे को चूमने में लगे रहते हैं। रत्ना के जीवन में उसे पहली बार होंठों पर पुरुष के चुम्बन का अनुभव हो रहा था। वह खुद को उत्तेजित महसूस कर रही थी।
राजा बिक्रम थोड़ी देर बाद होंठों को छोड़ते हैं, तो रत्ना इतनी उत्तेजित रहती है की वह स्वयं आगे बढ़ कर विक्रम के होंठों को चूसने लगती है। इससे राजा विक्रम की भी काम भावना बढ़ जाती है और वह भी रत्ना के होंठों की चूमते हुए उसे पकड़ कर शय्या पर लेट जाते है और चूमते चूमते रत्ना की लाल ओढ़नी उसके सिर से हटा कर अलग कर देते हैं।
उत्तेजनावश, धीरे धीरे राजा विक्रम अपने हाथ नीचे ले जाते है और रत्ना के स्तनों को चोली के ऊपर से सहलाने लगते हैं जिससे रत्ना की आह निकल जाती है। धीरे धीरे राजा विक्रम रत्ना के स्तनों को दबाने लगते हैं जिससे रत्ना अत्यंत उत्तेजित हो जाती है। इसके मुंह से दबी दबी ऊंह ऊंह की आवाज निकलने लगती है ।
उसी बीच विक्रम धीरे धीरे रत्ना की चोली की डोर खोल देते हैं जिससे चोली ढीली हो जाती है और विक्रम धीरे धीरे चोली रत्ना के बदन से अलग कर देते हैं। अब रत्ना कमर के ऊपर से पूरी नंगी हो जाती है और उसके स्तन पूरे नंगे खड़े रहते हैं।
विक्रम रत्ना के नंगे स्तनों को सहलाने लगते हैं और फिर अचानक स्तनों के चुचूको को उंगलियों से मसल देते हैं जिससे रत्ना के मुंह से आह निकल जाती है। और दोनो अपने होंठ अलग कर लेते हैं। रत्ना के स्तन पूरे नंगे थे, केवल आभूषण उसके नग्न शरीर पर लक लक कर रहे थे जिन्हें देख कर राजा विक्रम कहते हैं
अति सुन्दर, अति सुन्दर। रानी रत्ना आपके स्तन अत्यंत सुंदर है। संगमरमर सा सुन्दर!!! आह, इसकी जितनी प्रशंसा करूं कम है। बिल्कुल गोरे गोरे स्तन।
और ऐसा कह कर वो रत्ना के स्तन को अपने मुंह में लेकर चूसने लगते हैं जिससे रत्ना का मुंह उत्तेजना के मारे खुला रह जाता है। इधर राजा विक्रम रत्ना के एक स्तन की मुंह में लेकर चूस रहे थे तो दूसरी तरफ दूसरे स्तन के चुचुकों को अपनी उंगलियों से मिंज रहे थे जिससे रत्ना और उत्तेजित हुए जा रही थी। उसका पूरा शरीर मानों हवा में था। राजा विक्रम रत्ना के स्तनों को चूसते जा रहे थे और अपने हाथ को रत्ना के पूरे शरीर पर फेर रहे थे । धीरे धीरे वे अपने हाथ से रत्ना के नितम्बों को सहलाने और मसलने लगते है जिससे रत्ना की कामुकता बढ़ती जा रही थी ।
राजा विक्रम धीरे धीरे अपने हाथ और नीचे ले जाकर लहंगा ऊपर उठाने लगते हैं और जांघों तक उठा कर अपने हाथ अन्दर डाल देते हैं और रत्ना की नंगी जांघों को सहलाते हुए उसके नंगे नितम्बों को सहलाने और मसलने लगते हैं। नंगे नितम्बों पर पुरुष के हाथ का स्पर्श रत्ना को अलग अनुभूति दिला रहा था। फिर राजा विक्रम अपने हाथ बाहर निकाल लेते हैं और लहंगे के ऊपर से ही ही रत्ना जी योनि को दबा देते हैं जिससे रत्ना की सिसकी निकल जाती है। फिर विक्रम लहंगे की डोरी पकड़ कर खोल देते हैं जिससे उसकी गांठ खुल जाती है और विक्रम लहंगे को नीचे सरकाने लगते हैं लेकिन रत्ना के नितम्बों से दबे रहने के कारण लहंगा निकल नहीं पाता है। तब रत्ना अपने नितम्ब को थोड़ा ऊपर कर देती है जिसके बाद विक्रम रत्ना के पैरों से लहंगा निकाल देते हैं। अब रत्ना पूरी तरह नंगी हो चुकी थीं । राजा विक्रम अब अपने हाथ सीधे रत्ना की बूर पर रख देते हैं।
विक्रम पाते हैं कि रत्ना के बूर पर एक भी बाल नहीं है और बूर बिल्कुल चिकनी है जिससे विक्रम को आश्चर्य होता है और वे अपना मुंह रत्ना की चूची पर से हटा कर उसकी बूर देखते हैं तो रत्ना की नंगी बूर की खूबसूरती देख कर मंत्र मुग्ध रह जाते हैं । उसकी बूर पर एक भी झांट नहीं था। विक्रम ने आज तक चिकनी बूर नहीं देखी थी । विक्रम ने आव देखा ना ताव, सीधे रत्ना की योनि पे अपने होंठ रख दिए। रत्ना की तो सांस ही रुक गई। उसने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि कोई उसकी बूर को चूम सकता है। लेकिन राजा विक्रम तो एक कदम आगे बढ़ कर रत्ना की बुर को चाटने लगे, उसे चुसने लगे।
इससे रत्ना की स्थिति और खराब होने लगी, उस पर हवस हावी होने लगी । वह जोर जोर से सांस लेने लगी। उसके मुंह से तरह तरह की आवाजें निकालने लगी। उसका पूरा शरीर रह रह कर ऐंठने लगा । उत्तेजना के मारे उसकी हालत खराब होने लगी। अब राजा विक्रम रत्ना को सीधे लिया कर उसकी दोनों जांघों को फैला दिया और फिर उसकी योनि को फैला कर जीभ से चाटने लगे। बीच बीच में वो योनि को चूस भी रहे थे । रत्ना अपने दोनों हाथों से विक्रम का बाल पकड़ कर उसके मुंह को योनि पे दबा रही थी। उह्न उह्न की आवाज उसके मुंह से निकल रही थी। फिर अचानक से उसका शरीर अकड़ा और वह विक्रम के मुंह में झड़ गई और राजा विक्रम को ऊपर खींच कर उनके होंठ चूसने लगी।
राजा विक्रम भी होंठ चूसते चूसते रत्ना के स्तनों को फिर से दबाने लगे। रत्ना भी राजा विक्रम के शरीर पर हाथ फेरते हुए हाथ नीचे ले गई और धोती हटा कर सीधे विक्रम के लन्ड पर हाथ रख दिया। लन्ड पर हाथ रखते ही वह आश्चर्यचकित रह गई और अपने होंठ हटा कर राजा विक्रम के लिंग को देखने लगी और सुपाड़े पर अपना अंगूठा फेरने लगी । राजा विक्रम ने ऐसा देखा तो उन्होंने अपनी धोती निकाल फेंकी। अब दोनो बिस्तर पर पूरे नंगे थे। रत्ना विक्रम के लन्ड पर हाथ फेरते हुए सहलाते रहती है और सोचती है कि क्या पुरुषों का लिंग इतना लम्बा हो जाता है ।
फिर अचानक से रत्ना नीचे की ओर आती है और विक्रम के लन्ड को मुंह में लेकर चूसने लगती है। अब राजा विक्रम की हालत खराब होने लगी। वो भी अपनी कमर हिलाने लगते हैं और रत्ना की मुंह को चोदने लगते हैं । रत्ना विक्रम के लन्ड को छोड़ने का नाम ही नहीं ले रही थी। रत्ना पूरे चाव से विक्रम के लन्ड को चूस रही थी । दोनो पूरी तरह गरम हो चुके थे। तब राजा विक्रम ने रत्ना को लिटाया और उसके स्तन को चूसने लगे और अपने लन्ड को रत्ना की बुर पर रगड़ने लगे। रत्ना डर रही थी कि इतना लिटा लन्ड उसकी बूर में कैसे जायेगा। वह धीरे से कहती हैं
ये बहुत बड़ा है, ये अंदर कैसे जायेगा। बहुत दर्द होगा।।
लेकिन राजा विक्रम तो औरतों को अच्छी तरह से समझते थे, तो उन्होंने कहा
तुम बिलकुल चिंता मत करों, कुछ नहीं होगा । मै धीरे धीरे बड़े प्यार से करूंगा।
राजा विक्रम अब रत्ना के एक स्तन को चूसने लगे और दूसरे स्तन को दबाने लगे। रत्ना के मुंह से आह आह निकलने लगी। रत्ना की बुर पूरी पनियाई हुई थी और थोड़ा सा धक्का देने से विक्रम के लन्ड का सुपाड़ा थोड़ा सा बुर के अन्दर घुस गया जिससे रत्ना बिलबिल गई । लेकिन राजा विक्रम रत्ना के स्तन को जोर जोर से चूसने लगे जिससे रत्ना को दर्द का अहसास अब मजा में तब्दील हो गया। रत्ना अब मस्ती में बोलने लगी
आह आह मजा आ रहा है मेरे राजा। और चूसो मेरे स्तन कमर हिलाओं मेरे राजा।
राजा विक्रम को बुर में लन्ड डालते हुए महसूस होने लगा की रत्ना की बुर पूरी तरह से चिकनी हो गई है और उन्होंने तुरन्त अपना लन्ड पूरा अंदर डाल दिया और लन्ड बुर को चीरते हुए बच्चेदानी तक पहुंच गया। विक्रम थोड़ी देर शांत रहे, फिर अपनी कमर हिलाना शुरू कर दिया ।रत्ना का ये पहला अनुभव था। अतः उसे अद्भुत आनद आ रहा था और वह बोले जा रही थी
आह, आह बहुत मजा आ रहा है। और जोर से चोदो राजा और जोर से चोदो आह आह
आह आपका लन्ड मेरे अन्दर तक जा रहा है। उफ्फ उफ्फ बहुत मजा आ रहा है मेरे राजा।
ऐसे ही ये चूदाई चल रही थी तो राजा विक्रम ने थोड़ा लन्ड बाहर निकाला तो रानी रत्ना be गुर्राते हुए लन्ड अपने हाथ से पकड़ कर अपनी बुर में डाल दिया और अपनी कमर हिलाते हुए बड़बड़ाने लगी
ओह राजन, मुझे ये पता ही नहीं था की चूदाई में इतना मजा आता है। आह आह आह और चोदो और चोदो मुझे।
इधर विक्रम भी लगातार चोदे जा रहे थे
इस बीच रत्ना तीन बार झड़ चुकी थी । फिर अचानक से राजा विक्रम का भी शरीर ऐंठने लगा और उनके लन्ड ने भी रत्ना की बुर में अपना पानी छोड़ दिया। और फिर दोनो ऐसे ही नंगे एक दूसरे से चिपके लेटे रहे।
रांझा और नंदिनी रत्ना को लेकर रत्ना के लिए बने नए रंग महल के कक्ष में ले जाती हैं जहां आज राजा विक्रम और नंदिनी सुहागरात मना कर जीवन की नई शुरुआत करने वाले थे। आज रत्ना के महल को खास तरीके से सजाया गया था और चारो तरफ इत्र की खुशबू बिखेरी गई थीं। दोनों रत्ना को कक्ष में ले जाकर शैय्या पर बिठाती हैं और नंदिनी रत्ना से कहती हैं
भाभी, कपड़े बदलने हो तो बदल लो ।
इस पर रत्ना ना कहते हुए सिर हिलाती है। Tan नंदिनी कहती है।
हां भई, कपड़े क्यों बदलें, आखिर अभी सारे कपड़े उतारने ही तो हैं
ऐसा कह कर नंदिनी ठहाके लगा कर हस देती है।
इस पर रत्ना शरमा जाती है, लेकिन उसे ये बात अच्छी भी लगती है की वह कुछ देर में नंगी होने वाली है।
इस पर रांझा कहती है
आप भी न राजकुमारी बहुत मजाक करती है। हां ठीक है इन्हें भी पता है की थोड़ी देर में ये नंगी होने वाली हैं, लेकिन नई नवेली दुल्हन के सामने ऐसा नहीं बोलना चाहिए।
और ये कह कर रांझा भी हस देती हैं
इस पर रत्ना और ज्यादा लजा कर सिर झुका लेती है, लेकिन ये हसी ठिठोली उसे उत्तेजित कर रही थी। तभी रत्ना कहती है
आपलोग कुछ भी कहती हैं। ऐसा कुछ नहीं होने वाला
और ऐसा कह कर मुस्कुरा देती हैं
तभी रांझा कहती है
वो तो हमलोग कल देखेंगे ही रानी
फिर नंदिनी और रांझा कक्ष से निकल पड़ती हैं
इधर राजा विक्रम वाह्य कक्ष में बैठ कर इधर कुछ दिनों से इनकी जिन्दगी में आए परिवर्तन के बारे में सोच रहे थे कि जो चीजें उन्हें असम्भव लगती थीं, वो इधर कुछ दिनों में उनकी जिंदगी में घटित हो चुका था। विक्रम मन ही मन अपनी माता देवकी को चाहता था, उसे पूरी मादरजात नंगी देखना चाहता था। वह ये जानता था कि यह असंभव है, लेकिन वो भी संभव हो चुका था । उसने ना केवल अपनी मा को पूरी नंगी देखा, बल्कि उसकी चूदाई भी की। फिर वह अपनी दीदी नंदिनी को भी याद करता है की कैसे उसने और नंदिनी ने एक दूसरे की जवानी की प्यास बुझाई है।
राजा विक्रम ये सब सोचते रहते हैं, तभी नंदिनी और रांझा वहां आकर कहती हैं
नंदिनी,,, किस सोच में डूबे हैं भ्राता
विक्रम,,,, कुछ नहीं, बस ऐसे ही
नंदिनी,,, तब चलिए महाराज, आपकी नई नवेली दुल्हन कक्ष में आपका इंतजार कर रही हैं
विक्रम उठते हैं, तो नंदिनी उनसे नेग मांगती है जिस पर राजा विक्रम कहते हैं सब कुछ तो आपका ही है दीदी।
लेकिन राजा हीरो से जड़ा हार नंदिनी को देते हैं जिस पर नंदिनी कहती है
ऐसे हाथ में कौन अपनी दीदी को हार देता है
तो राजा विक्रम कहते हैं
तब पहना दूं क्या
इस पर रांझा कहती है
और नहीं तो क्या
तब राजा विक्रम अपनी दीदी को वह हर पहना देते हैं जिस पर नंदिनी विक्रम को गले लगा लेती है
इस पर रांझा की आंखों में जाने क्यों आंसू आ जाते हैं और वह दोनों के प्रेम को देख कर अहलादित हो जाती है।
तभी नंदिनी कहती है
और धाय मां का नेग ?
इस पर राजा विक्रम एक मोतियों की माला निकलते हैं तो नंदिनी कहती हैं
इन्हें भी गले में पहनाओं
इस पर राजा विक्रम रांझा के गले में माला पहना देते हैं और उसके पैर छूने के लिए झुकते हैं जिस पर रांझा उन्हें पकड़ कर गले लगा लेती है और उन्हें जकड़ लेती है। इस पर राजा विक्रम भी रांझा को आगोश में ले लेते हैं। ये देख कर रांझा की आंखों से खुशी के आंसू निकल जाते हैं और वह कहती है
आपलोगो ने इस दासी को इतना सम्मान दिया है, इसे मैं कभी नहीं भूल पाऊंगी
इस पर नंदिनी भी आकर उन दोनों के गले लग जाती है और कहती है
ऐसा न सोचे धाय मां, आपने हमें बचपन से पाला है। आप इस सम्मान की पूरी हकदार है।
फिर तीनों अलग होते हैं और रांझा वही आसन पर बैठ जाती है और नंदिनी राजा विक्रम को पकड़ कर रत्ना के कक्ष की ओर ले जाती है और कहती है
विक्रम, तुम्हारे मन में तो लडडू फूट रहे होगे, क्यों है न। रत्ना जो इंतजार कर रही है तुम्हरा। मिलन के लिए तो तुम दोनो बेचैन हो रहे होगे। और आखिर हो भी क्यों ना। आज तुम दोनो की सुहागरात जो है, बिना किसी डर के यौन सम्बंध बनाने की रात।
इतना कहकर नंदिनी मुस्कुरा देती है और इस पर राजा विक्रम शरमा जाते हैं और कहते हैं
दीदी तुम तो जानती ही हो , मेरा पहला प्यार , पहली पत्नी तुम ही हो। भले ही समाज के कारण हमें अपना सम्बंध छुपाना पड़े। लेकिन सत्य तो यही है ना।
तब नंदिनी कहती है
भाई, तुमने अभी मेरे गले में हीरो का हर डाल ही दिया और मुझे एक तरह से पत्नी का दर्जा दे दिया । लेकिन वादा करो एक दिन मेरी मांग में सिंदूर जरूर डालोगे।
इस पर राजा विक्रम कहते है
अवश्य बहना अवश्य। वह दिन आएगा, जब मैं तुम्हारी मांग में सिंदूर भरूंगा।
इस पर नंदिनी राजा विक्रम के होंठ चूम लेती है और कहती है
विक्रम , अब तुम कक्ष में जाओ और रत्ना को जी भर कर प्यार दो और उसे पत्नी बना लो। सुहागरात को लेकर हर स्त्री का एक सपना होता है। रत्ना ने भी सपने देखे होंगे, उसे भरपूर प्यार दो मेरे भाई।
तब राजा विक्रम मुस्कुराते हुए रत्ना के कक्ष में प्रवेश करते हैं और प्रवेश करते ही उन्हें अद्भुत अहसास होता है। कक्ष में भीनी भीनी खुशबू फैली हुई थी। पूरे कक्ष में छोटे छोटे दीप जल रहे थे जिससे पूरा कक्ष हल्की रोशनी से जगमग था। भिन्न भिन्न प्रकार के पुष्प कक्ष की सुन्दरता में चार चांद लगा रहे थे। शय्या भी गुलाब और रजनीगन्धा से सजा हुआ था। कक्ष का पूरा माहौल कामुक हो गया था। साथ ही शय्या पर रत्ना लाल रंग के घाघरा चोली में घूंघट ओढ़ कर बैठी हुई थी । जिसे देख कर राजा विक्रम धीरे धीरे रत्ना के पास पहुंचते हैं और कहते हैं
मेरी रानी, अर्धांगिनी, प्रेयसी को मेरा प्रणय निवेदन, स्वैकार करें ।
और ऐसा कह कर रत्ना के सामने बैठ जाते हैं और कहते हैं
प्रिये, अपना घूंघट तो उठाइए ।
इस पर रत्ना कोई हरकत नहीं करती। तब राजा विक्रम कहते हैं
ओह, मैं भी कितना नादान हूं। आज सुहागरात है, तो पति ही पत्नी का घूंघट उठाता है
और ऐसा कह कर राजा विक्रम धीरे धीरे रत्ना का घूंघट उठाते हैं। घूंघट उठाते ही पूरा कक्ष रत्ना के चेहरे की दिव्यता से आलोकित हो जाता है। राजा विक्रम का मुंह पूरा का पूरा खुला रह जाता है। रत्ना ने अपनी आंखे बन्द की रहती है। उसका मन भी उत्तेजना को सह नहीं पा रहा था। तभी विक्रम कहते हैं
वाह, सुंदर अति सुंदर। रानी , मैं यही जानता था कि आप बहुत खूबसूरत है, लेकिन इतनी सुन्दर है, नहीं जानता था। आपके सामने तो स्वर्ग की अपसाराएं भी कुछ नहीं है।
और राजा विक्रम फिर गुनगुनाते हैं
हे प्रिये, हे प्रिये,
आपका आगमन
शुभ हो
शुभ हो
जीवन मेरा
ऋणी है आपका
है प्रिये, हे प्रिये
ये सुन कर रत्ना मन ही मन बहुत खुश होती है। तब राजा विक्रम कहते हैं
प्रिये, अपने नयन खोलो प्रिये। देखिए आपका दास आपके सामने है।
इस पर रत्ना धीरे धीरे अपनी आंखे खोलती है और अपने सामने राजा विक्रम को बैठा पाती है जिसे देख कर वह विस्मित हो जाती है। इतने आकर्षक व्यक्तित्व वाले पुरुष को देख कर मुग्ध हो जाती है। वह सोचती है जिस पुरुष की उन्होंने कल्पना की वह सामने बैठा है। जिसे सोच कर उसने अपनी योनि सहलाई थी वही पुरुष सामने बैठा है। दोनो एक दूसरे को देखे जा रहे थे। तब राजा विक्रम कहते हैं
आप बहुत खूबसूरत है रानी रत्ना
और ये कहते हुए विक्रम हीरा और माणिक्य से जड़ा हुआ हार रत्ना को उपहार देते हैं और कहते हैं
ये आपके लिए प्रीये
हार देख कर रत्ना प्रफुल्लित हो जाती है क्योंकि उसे हीरो का हार बहुत पसन्द है
रत्ना का चेहरा खुशी से और दमकने लगता है जिसे देख कर राजा विक्रम कहते हैं
आपके इन होंठो को देख कर चूमने का मन करता है
और ऐसा कह कर वो नंदिनी के होंठों को चूम लेते हैं। पहले चुम्बन से रत्ना का पूरा शरीर गनगना जाता है और उसे अलग तरह की अनुभूति होती है। अनायास ही उसके होंठ उसके काबू में नहीं रहते और वह भी राजा विक्रम के होंठों को चूसने लगती है। दोनों एक दूसरे को चूमने में लगे रहते हैं। रत्ना के जीवन में उसे पहली बार होंठों पर पुरुष के चुम्बन का अनुभव हो रहा था। वह खुद को उत्तेजित महसूस कर रही थी।
राजा बिक्रम थोड़ी देर बाद होंठों को छोड़ते हैं, तो रत्ना इतनी उत्तेजित रहती है की वह स्वयं आगे बढ़ कर विक्रम के होंठों को चूसने लगती है। इससे राजा विक्रम की भी काम भावना बढ़ जाती है और वह भी रत्ना के होंठों की चूमते हुए उसे पकड़ कर शय्या पर लेट जाते है और चूमते चूमते रत्ना की लाल ओढ़नी उसके सिर से हटा कर अलग कर देते हैं।
उत्तेजनावश, धीरे धीरे राजा विक्रम अपने हाथ नीचे ले जाते है और रत्ना के स्तनों को चोली के ऊपर से सहलाने लगते हैं जिससे रत्ना की आह निकल जाती है। धीरे धीरे राजा विक्रम रत्ना के स्तनों को दबाने लगते हैं जिससे रत्ना अत्यंत उत्तेजित हो जाती है। इसके मुंह से दबी दबी ऊंह ऊंह की आवाज निकलने लगती है ।
उसी बीच विक्रम धीरे धीरे रत्ना की चोली की डोर खोल देते हैं जिससे चोली ढीली हो जाती है और विक्रम धीरे धीरे चोली रत्ना के बदन से अलग कर देते हैं। अब रत्ना कमर के ऊपर से पूरी नंगी हो जाती है और उसके स्तन पूरे नंगे खड़े रहते हैं।
विक्रम रत्ना के नंगे स्तनों को सहलाने लगते हैं और फिर अचानक स्तनों के चुचूको को उंगलियों से मसल देते हैं जिससे रत्ना के मुंह से आह निकल जाती है। और दोनो अपने होंठ अलग कर लेते हैं। रत्ना के स्तन पूरे नंगे थे, केवल आभूषण उसके नग्न शरीर पर लक लक कर रहे थे जिन्हें देख कर राजा विक्रम कहते हैं
अति सुन्दर, अति सुन्दर। रानी रत्ना आपके स्तन अत्यंत सुंदर है। संगमरमर सा सुन्दर!!! आह, इसकी जितनी प्रशंसा करूं कम है। बिल्कुल गोरे गोरे स्तन।
और ऐसा कह कर वो रत्ना के स्तन को अपने मुंह में लेकर चूसने लगते हैं जिससे रत्ना का मुंह उत्तेजना के मारे खुला रह जाता है। इधर राजा विक्रम रत्ना के एक स्तन की मुंह में लेकर चूस रहे थे तो दूसरी तरफ दूसरे स्तन के चुचुकों को अपनी उंगलियों से मिंज रहे थे जिससे रत्ना और उत्तेजित हुए जा रही थी। उसका पूरा शरीर मानों हवा में था। राजा विक्रम रत्ना के स्तनों को चूसते जा रहे थे और अपने हाथ को रत्ना के पूरे शरीर पर फेर रहे थे । धीरे धीरे वे अपने हाथ से रत्ना के नितम्बों को सहलाने और मसलने लगते है जिससे रत्ना की कामुकता बढ़ती जा रही थी ।
राजा विक्रम धीरे धीरे अपने हाथ और नीचे ले जाकर लहंगा ऊपर उठाने लगते हैं और जांघों तक उठा कर अपने हाथ अन्दर डाल देते हैं और रत्ना की नंगी जांघों को सहलाते हुए उसके नंगे नितम्बों को सहलाने और मसलने लगते हैं। नंगे नितम्बों पर पुरुष के हाथ का स्पर्श रत्ना को अलग अनुभूति दिला रहा था। फिर राजा विक्रम अपने हाथ बाहर निकाल लेते हैं और लहंगे के ऊपर से ही ही रत्ना जी योनि को दबा देते हैं जिससे रत्ना की सिसकी निकल जाती है। फिर विक्रम लहंगे की डोरी पकड़ कर खोल देते हैं जिससे उसकी गांठ खुल जाती है और विक्रम लहंगे को नीचे सरकाने लगते हैं लेकिन रत्ना के नितम्बों से दबे रहने के कारण लहंगा निकल नहीं पाता है। तब रत्ना अपने नितम्ब को थोड़ा ऊपर कर देती है जिसके बाद विक्रम रत्ना के पैरों से लहंगा निकाल देते हैं। अब रत्ना पूरी तरह नंगी हो चुकी थीं । राजा विक्रम अब अपने हाथ सीधे रत्ना की बूर पर रख देते हैं।
विक्रम पाते हैं कि रत्ना के बूर पर एक भी बाल नहीं है और बूर बिल्कुल चिकनी है जिससे विक्रम को आश्चर्य होता है और वे अपना मुंह रत्ना की चूची पर से हटा कर उसकी बूर देखते हैं तो रत्ना की नंगी बूर की खूबसूरती देख कर मंत्र मुग्ध रह जाते हैं । उसकी बूर पर एक भी झांट नहीं था। विक्रम ने आज तक चिकनी बूर नहीं देखी थी । विक्रम ने आव देखा ना ताव, सीधे रत्ना की योनि पे अपने होंठ रख दिए। रत्ना की तो सांस ही रुक गई। उसने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि कोई उसकी बूर को चूम सकता है। लेकिन राजा विक्रम तो एक कदम आगे बढ़ कर रत्ना की बुर को चाटने लगे, उसे चुसने लगे।
इससे रत्ना की स्थिति और खराब होने लगी, उस पर हवस हावी होने लगी । वह जोर जोर से सांस लेने लगी। उसके मुंह से तरह तरह की आवाजें निकालने लगी। उसका पूरा शरीर रह रह कर ऐंठने लगा । उत्तेजना के मारे उसकी हालत खराब होने लगी। अब राजा विक्रम रत्ना को सीधे लिया कर उसकी दोनों जांघों को फैला दिया और फिर उसकी योनि को फैला कर जीभ से चाटने लगे। बीच बीच में वो योनि को चूस भी रहे थे । रत्ना अपने दोनों हाथों से विक्रम का बाल पकड़ कर उसके मुंह को योनि पे दबा रही थी। उह्न उह्न की आवाज उसके मुंह से निकल रही थी। फिर अचानक से उसका शरीर अकड़ा और वह विक्रम के मुंह में झड़ गई और राजा विक्रम को ऊपर खींच कर उनके होंठ चूसने लगी।
राजा विक्रम भी होंठ चूसते चूसते रत्ना के स्तनों को फिर से दबाने लगे। रत्ना भी राजा विक्रम के शरीर पर हाथ फेरते हुए हाथ नीचे ले गई और धोती हटा कर सीधे विक्रम के लन्ड पर हाथ रख दिया। लन्ड पर हाथ रखते ही वह आश्चर्यचकित रह गई और अपने होंठ हटा कर राजा विक्रम के लिंग को देखने लगी और सुपाड़े पर अपना अंगूठा फेरने लगी । राजा विक्रम ने ऐसा देखा तो उन्होंने अपनी धोती निकाल फेंकी। अब दोनो बिस्तर पर पूरे नंगे थे। रत्ना विक्रम के लन्ड पर हाथ फेरते हुए सहलाते रहती है और सोचती है कि क्या पुरुषों का लिंग इतना लम्बा हो जाता है ।
फिर अचानक से रत्ना नीचे की ओर आती है और विक्रम के लन्ड को मुंह में लेकर चूसने लगती है। अब राजा विक्रम की हालत खराब होने लगी। वो भी अपनी कमर हिलाने लगते हैं और रत्ना की मुंह को चोदने लगते हैं । रत्ना विक्रम के लन्ड को छोड़ने का नाम ही नहीं ले रही थी। रत्ना पूरे चाव से विक्रम के लन्ड को चूस रही थी । दोनो पूरी तरह गरम हो चुके थे। तब राजा विक्रम ने रत्ना को लिटाया और उसके स्तन को चूसने लगे और अपने लन्ड को रत्ना की बुर पर रगड़ने लगे। रत्ना डर रही थी कि इतना लिटा लन्ड उसकी बूर में कैसे जायेगा। वह धीरे से कहती हैं
ये बहुत बड़ा है, ये अंदर कैसे जायेगा। बहुत दर्द होगा।।
लेकिन राजा विक्रम तो औरतों को अच्छी तरह से समझते थे, तो उन्होंने कहा
तुम बिलकुल चिंता मत करों, कुछ नहीं होगा । मै धीरे धीरे बड़े प्यार से करूंगा।
राजा विक्रम अब रत्ना के एक स्तन को चूसने लगे और दूसरे स्तन को दबाने लगे। रत्ना के मुंह से आह आह निकलने लगी। रत्ना की बुर पूरी पनियाई हुई थी और थोड़ा सा धक्का देने से विक्रम के लन्ड का सुपाड़ा थोड़ा सा बुर के अन्दर घुस गया जिससे रत्ना बिलबिल गई । लेकिन राजा विक्रम रत्ना के स्तन को जोर जोर से चूसने लगे जिससे रत्ना को दर्द का अहसास अब मजा में तब्दील हो गया। रत्ना अब मस्ती में बोलने लगी
आह आह मजा आ रहा है मेरे राजा। और चूसो मेरे स्तन कमर हिलाओं मेरे राजा।
राजा विक्रम को बुर में लन्ड डालते हुए महसूस होने लगा की रत्ना की बुर पूरी तरह से चिकनी हो गई है और उन्होंने तुरन्त अपना लन्ड पूरा अंदर डाल दिया और लन्ड बुर को चीरते हुए बच्चेदानी तक पहुंच गया। विक्रम थोड़ी देर शांत रहे, फिर अपनी कमर हिलाना शुरू कर दिया ।रत्ना का ये पहला अनुभव था। अतः उसे अद्भुत आनद आ रहा था और वह बोले जा रही थी
आह, आह बहुत मजा आ रहा है। और जोर से चोदो राजा और जोर से चोदो आह आह
आह आपका लन्ड मेरे अन्दर तक जा रहा है। उफ्फ उफ्फ बहुत मजा आ रहा है मेरे राजा।
ऐसे ही ये चूदाई चल रही थी तो राजा विक्रम ने थोड़ा लन्ड बाहर निकाला तो रानी रत्ना be गुर्राते हुए लन्ड अपने हाथ से पकड़ कर अपनी बुर में डाल दिया और अपनी कमर हिलाते हुए बड़बड़ाने लगी
ओह राजन, मुझे ये पता ही नहीं था की चूदाई में इतना मजा आता है। आह आह आह और चोदो और चोदो मुझे।
इधर विक्रम भी लगातार चोदे जा रहे थे
इस बीच रत्ना तीन बार झड़ चुकी थी । फिर अचानक से राजा विक्रम का भी शरीर ऐंठने लगा और उनके लन्ड ने भी रत्ना की बुर में अपना पानी छोड़ दिया। और फिर दोनो ऐसे ही नंगे एक दूसरे से चिपके लेटे रहे।
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