• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery राजमाता कौशल्यादेवी

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
19,599
48,366
259
उन्होंने यौन इच्छा सहित सभी पर विजय प्राप्त कर ली थी। उनके योग के गहन अभ्यास, शारीरिक सौष्ठव और उनके शरीर में ऊर्जा को केंद्रित व नियंत्रित करने की शक्ति के कारण वह कई भौतिक और आध्यात्मिक समस्याओं का निवारण करने में महारथ रखते थे। वे हिमालय में, विशाल नदियों के किनारे तलहटी में रहते थे। उन मे से कुछ आगे पहाड़ों और जंगलों में चले गए और उन्हों ने ऐसी आध्यात्मिक ऊँचाइयाँ हासिल कीं जहाँ से वे कभी वापस नहीं लौटे।

और जो गुरु शाही परिवारों से जुड़े थे, उन्हें कई पीढ़ियों में एक बार इस कर्तव्य को पूरा करने के लिए याद किया जाता था; जब राजा प्रजोत्पति के लिए सक्षम ना हो तब इन गुरुओं की मदद ली जाती थी। किसी भी तरह शाही राजवंश का अंत होने से बचाने के लिए यह अंतिम उपाय का प्रयोग किया जाता था।

यह सब ज्ञान महाराजा को उनके किशोरावस्था के दिनों में प्रशिक्षण के दौरान दिया जाता था लेकिन राजा कमलसिंह ने यह कभी नहीं सोचा था कि उसके साथ ही ऐसा करने की नोबत आएगी।

काफी हिचकिचाहट और अनिच्छा के बावजूद अंत में कमलसिंह को राजमाता कौशल्यादेवी के इस प्रस्ताव पर सहमत होना ही पड़ा। तैयारियां होने लगी। लेकिन यह सब बेहद गुप्त तरीके से करना जरूरी था। राजमाता ने अपनी खास तीन दासियों का एक दल बनाया और उनके साथ शाही रक्षकों में से तीन बहादुर, शक्तिशाली और विश्वसनीय जवानों को अपनी 'तीर्थयात्रा' के लिए तैयार होने को कहा।

इस अनुचर में केवल राजमाता और महारानी को ही इस यात्रा का वास्तविक उद्देश्य पता था। यात्रा में दो रात्री पड़ाव में अलग अलग जगहों पर रुकना था और गंतव्य स्थान पर पहुँच जाने पर वहां ४ से ६ सप्ताह बिताने थे और गर्भावस्था की पुष्टि होने के पश्चात ही वापस लौटना था।

शाही रक्षकों के दल का प्रमुख पथ की जाँच करते हुए, अनुचर के आगे-आगे चले। कभी-कभी वह आगे के मार्ग का निरीक्षण करने के लिए अपने सैनिकों को आगे भेजता था। अन्य समय में वह यह सुनिश्चित करने के लिए कि पीछे से कोई खतरा ना आए, वह दल के पीछे की ओर चलता था।

इस दल में शामिल एक २० साल का युवक, जो सेना के अश्वदल के प्रमुख का बेटा था और उसका परिवार कई पीढ़ियों से बिल्कुल इसी तरह राज परिवार की बड़ी ही वफादारी से सेवा कर रहा था। १८ साल की उम्र में ही वह शाही रक्षक दल में जुड़ा, सेवा की, विभिन्न अभियानों में भाग लिया और परिपक्व हुआ।

उसका नाम शक्ति सिंह था। वह एक अनुभवी सैनिक था, अपनी युवावस्था के बावजूद काफी ताकतवर और बहादुर था। वह अपने महाराजा से केवल तीन वर्ष ही छोटा था। उसका लंबा, चौड़े कंधे वाला और तंदूरस्त मांसपेशियो से पुष्ट शरीर शाही पोशाक और कवच में बड़ा ही शानदार लग रहा था। अपनी मुछ पर ताव देते वह बड़े ही नियंत्रण के साथ अपने अश्व पर सवार था।

दल की सारी महिलायें शक्ति सिंह की मौजूदगी से बड़ा ही सुरक्षित महसूस कर रही थी। राजमाता को उस लड़के से विशेष स्नेह था क्योंकी वह उसे बचपन से देखती आई थी और वह उनके बेटे के साथ खेला भी करता था।

राजमाता ने बग्गी की खिड़की से शक्ति सिंह को देखा, उसे इतनी शालीनता और आत्मविश्वास से खुद को संभालते हुए देखकर उन्हे गर्व महसूस हुआ। उन्हों ने मन में एक आह भरी। शक्ति सिंह को यह नहीं पता था कि राजमाता के मन में क्या चल रहा था। असल में किसी को नहीं पता था कि उनकी वास्तविक योजना क्या थी.. उन्हे बस यही उम्मीद थी कि वह अपने उद्देश्य में सफल हो पाएं।

राजमाता ने पिछले कुछ महीनों की घटनाओं पर विचार किया. वह जानती थी कि उसका बेटा नामर्द था। उसने कमलसिंह दो कनिष्ठ दासियों को भी चोदने की इजाजत सिर्फ इसलिए दी थी ताकि उसे एहसास हो जाए कि उसकी बात सुनने के अलावा राजा के पास ओर कोई विकल्प ना हो।

उनके पति की असामयिक मृत्यु के कारण उनके बेटे को कम उम्र में ही राजगद्दी पर बिराजमान कर दिया गया था। उस खेमे में साज़िश और षड्यन्त्र इस कदर चल रहे थे की राजनीति में बिननुभवी और भोगविलास में डूबे रहते नए महाराजा की स्थिति काफी कमज़ोर थी।

कमलसिंह की राजगद्दी को बरकरार रखने के लिए और पड़ोसी राज्यों से मजबूत सहयोग बनाए रखने के हेतु वहाँ की राजकुंवरिओ से उनका विवाह भी करवाया गया था।

कमलसिंह की स्थिति कोई और मजबूती से स्थापित करने के लिए, उसका वारिस होना राजमाता को अंत्यन्त आवश्यक महसूस हुआ। अभी के योजना के अनुसार वह गर्भाधान के लिए महारानी को गुरुजी के आश्रम ले जा रही थी। उनका संयोजन उन्हे बौद्धिक और आध्यात्मिक रुझान वाली संतान दे सकता था। लेकिन राजमाता तो निर्भीक, बहादुर और मजबूत वारिस चाहती थी जो इस राज्य को आने वाले समय में संभाल सके।

राजमाता कौशल्यादेवी का यह दृढ़ता से मानना था की गुरुओं द्वारा प्रदत्त पुत्र उस उद्देश्य को पूरा नहीं कर पाएगा। वह चाहती थी की महारानी की कोख ऐसा कोई मजबूत, बलिष्ठ व बहादुर मर्द भरे, जिससे आने वाली संतान में वह सारे गुण प्राकृतिक रूप से आ जाए। अश्वदल का प्रमुख, शक्ति सिंह, इन सारे मापदंडों में खरा उतरता था। वह भरोसेमंद, सक्षम और व्यावहारिक रूप से पारिवारिक भी था। सभी मायनों में राजमाता को शक्ति सिंह का चयन सबसे श्रेष्ठ प्रतीत हुआ।

राजमाता जानती थी की इस योजना का अमल इतना आसान नहीं होने वाला था. महारानी और शक्ति सिंह दोनों इस बात को लेकर सहमत होने जरूरी थे। महारानी पद्मिनी, पड़ोसी राज्य के एक शक्तिशाली राजा की बेटी थीं; यदि वह इस बात को मानने से इनकार कर दे तो उनकी सारी योजना पर पानी फिर सकता था।

रही बात शक्ति सिंह की... इस मामले में राजमाता को उसकी वफ़ादारी पर भरोसा तो था, पर संभावना यह भी थी की वह अपने महाराज की पत्नी के साथ संभोग करने से इनकार कर दे।

योजना के अमल करने पर आखिर क्या होगा इस विचार ने राजमाता के मन को द्विधा से भर दिया।

अंत में उन्हों ने आज रात ही महारानी पद्मिनी और शक्ति सिंह से इस बारे में बात करने का मन बना लिया। ऐसा करने से उन दोनों को इस विचार से अभ्यस्त होने का समय मिल जाएगा और वह अगले दो दिनों तक इस पर विचार कर सकें।

राजमाता ने तो संभोग के लिए रात्री के तीसरे प्रहार का शुभ समय चुन रखा था। उन्हों ने यह भी सोच रखा थी की वह स्वयं कार्य की निगरानी करेगी ताकि कार्य समय सीमा के भीतर हो और सुनिश्चित ढंग से हो। वह चाहती थी कि गर्भधारण के लिए संभोग चिकित्सकीय तरीके से किया जाए और इसमें किसी भी प्रकार की आत्मीयता या संबंधों की जटिलता न हो। संभोग का मतलब सिर्फ और सिर्फ जननांगों का संयोग और कुछ नहीं। उनकी उपस्थिति यह सुनिश्चित करेगी।

योजना के अनुसार, राजमाता ने शक्ति सिंह को इस बारे में बताया। शक्ति सिंह हैरान रह गया!! उसने सपने भी यह नहीं सोचा था की राजमाता इतने भद्दे शब्दों में उसे महरानी को चोदने के लिए कहेगी!!! राजमाता ने यह भी स्पष्ट किया की महारानी पद्मिनी को चोदते समय ना ही उसके स्तन दबाने है, ना ही चुंबन करना है!! जितनी जल्दी हो सके लिंग और योनि का घर्षण कर, अपना गाढ़ा गरम पुष्ट वीर्य महारानी की योनिमार्ग में काफी भीतर तक छोड़ना है, बस!!!
Awesome update again 👌🏻 and superb writing ✍️ dear vakharia :applause:
 
  • Love
Reactions: vakharia

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
19,599
48,366
259
"मैं तुम यह इसलिए कह रही हूं क्योंकि मेरे खयाल से तुम अब तक कुँवारे हो और और हो सकता है कि तुमने किसी स्त्री का अनुभव न किया हो इस कारण अपने नीचे लेटी स्त्री को देखकर प्रलोभन तुम पर हावी हो जाएगा। पर तुम ऐसे किसी भी प्रलोभन के वश में आकार कुछ नहीं करोगे। तुम्हें बस अपना काम करना है और चले जाना है।। समझे?" युवा शक्ति सिंह की आँखों में देखते हुए महारानी ने आदेश दिया।

शक्ति सिंह अभी भी सकते में था। राजमाता की बातों से लगे सदमे के साथ दूसरा झटका उसे तब लगा जब उसे एहसास हुआ की उनकी यह बातें सुनकर उसका लँड खड़ा हो गया था। गनीमत थी की सैनिक की पोशाक और कवच के नीचे उसके उत्थान को राजमाता देख नहीं पा रही थी।

अगर यही बात राजमाता ने आधे घंटे बाद कही होती तो वह सामान्य कपड़ों में अपने तंबू में बैठा होता और उसके वस्त्रों मे लँड तंबू बनाकर राजमाता को सलाम ठोक रहा होता!!

वास्तव में, अभी वह इस बात से डरा हुआ था कि कहीं उसकी जरा सी भी हरकत उसकी उत्तेजित स्थिति को उजागर न कर दे।

"मैं यह नहीं कर सकता," वह बुदबुदाया, हालांकि उसके मन में महारानी के दो पैरों के बीच बैठकर, उसकी नरम मुलायम गुलाबी गद्देदार चुत में अपना लंड डालने का विचार दृढ़ता से चल रहा था।

"तुम्हें यह करना ही होगा। जिस राजा और राज्य के लिए तुम अपना जीवन देने के लिए तैयार रहते हो, उस मुकाबले यह तो बड़ा ही क्षुल्लक छोटा सा कार्य है। इसे अपना कर्तव्य समझकर तुम्हें यह करना है," राजमाता ने आदेश दिया। शक्तिसिंह का यह जवाब राजमाता के लिए अपेक्षित था और वह पहले से ही तैयार थी।

राजमाता की आदेशात्मक आवाज सुनकर शक्तिसिंह ने चुप्पी साध ली। उनके स्वभाव से वह भलीभाँति परिचित था। वह किसी भी बात के लिए "ना" सुनने की आदि नहीं थी।

शक्तिसिंह की चुप्पी से राजमाता को पूरी स्थिति नियंत्रण में रहती दिखी।

"राजमाता, आप कहो तो में अभी अपनी जान देने के लिए तैयार हूं, लेकिन आप जो आदेश दे रही है वह मुझे उचित नहीं लग रहा है। मैंने कभी भी महामहिम महारानी जी की ओर किसी भी तरह से नहीं देखा है और हमेशा अपना सिर उनके सामने झुकाकर रखता हूं। जो कार्य आप कह रहे है वह में सपने में भी सोच नहीं सकता... इस तरह का विश्वासघात में अपने महाराज के साथ कतई नहीं कर सकता" शक्ति सिंह ने अपना विरोध प्रकट करते हुए कहा. महारानी के संग अपना कौमार्य खोने के विचार से उसका दिमाग चकरा गया। उसके मन को वह अवसर याद आया जब उसने पहली बार महारानी के पुष्ट स्तन युग्म के उरोजों को पहली बार देखा था!! दो बड़े गुंबज जैसे उनके बेहद सख्त दिखने वाले स्तन इतने ललचाने वाले थे के देखने वाले की लार टपक जाएँ!! उन विराट स्तनों को खुला देखने के विचार से ही उसके लंड में हरकत हुई और सुपाड़े के छेद पर गीलापन भी महसूस हुआ।

शक्ति सिंह घुटने टेक कर झुक गया ; आंशिक रूप से यह सुनिश्चित करने के लिए कि उसके खड़े लँड का राजमाता को पता न चले और आंशिक रूप से इसलिए क्योंकि वह सोचने का वक्त चुराना चाहता था।

"यह कहना जरूरी नहीं समझती पर फिर भी कह रही हूँ, इस कार्य के लिए महाराज की मंजूरी है। तुझे क्या लगता है कि महारानी और मैं उनकी जानकारी के बिना इतनी लंबी तीर्थयात्रा पर जा रहे हैं?" राजमाता हँसी।

कौशल्यादेवी खड़ी हुई और शक्तिसिंह के पास आई जहां वह घुटनों के बल बैठा था। उसके कंधे पर हाथ रखकर उसके ताकतवर शरीर को महसूस किया। महारानी ऐसे तगड़े जिस्म से स्पर्श और संभोग कर कैसी प्रतिक्रिया देगी, वह मन ही मन में सोचने लगी। कंधे से आगे बढ़कर राजमाता के हाथ शक्तिसिंह की स्नायुबद्ध छाती पर पहुंचे। उनके मुंह से एक धीमी आह निकाल गई।

शक्तिसिंह को वह उस नजर से देख रही थी जिस नजर से ऋतु में आई मादा किसी तंदुरुस्त पुरुष को संभोग हेतु देखती है। उस एक पल के लिए वह यह भूल गई की वह एक सैनिक या साधारण प्रजागण को देख रही थी।

"बेटा, तुम एक अच्छे इंसान हो। अगर इस बात का इतना गंभीर महत्व ना होता तो मैं तुमसे कभी ऐसा कुछ करने के लिए नहीं कहती। और मैं अपने आंतरिक दायरे के बाहर किसी से भी इस बात का जिक्र नहीं कर सकती। क्या तुम्हें एहसास है, अगर तुम यह नहीं करोगे तो मुझे किसी ओर की मदद लेकर महारानी को गर्भवती करना होगा?" राजमाता ने अपना तर्क दिया।

शक्ति सिंह ने राजमाता की ओर देखा। उनकी भावपूर्ण, बड़ी, सुंदर और दयालु आँखें देखकर वह पिघलने लगा। वह उन्हे मना ना कर सका. और वह नहीं चाहता था कि कोई और महारानी को छुए। किसी ओर की बजाए वह खुद ही यह कार्य करे तो बेहतर है।

केवल विडंबना यह थी की महारानी के बारे में सोचकर ही वह इतना उत्तेजित हो गया था, जब उनका वास्तविक नंगा शरीर उसके नीचे चुदवाने के लिए पड़ा होगा, तब वह कैसे अपने आप को उनके बड़े बड़े स्तनों को छूने से, उन्हे चूसने, चूमने से, दूर रख पाएगा!!

राजमाता का आदेश था के केवल लँड-चुत का घर्षण कर वीर्य गिराना था। पर शक्तिसिंह की अपनी भावनाओ का क्या!! विश्व का कौन सा मर्द अपने साथ सोई अति सुंदर मदमस्त नग्न स्त्री को बिना कुछ किए संभोग कर सकता है!! राजमाता की बातें सुनते वक्त ही वह मन ही मन में महारानी के बड़े गुंबजदार स्तनों के साथ खेलने लगा था... उनकी केले की जड़ जैसी मस्त जांघों को सहलाने लगा था... उनकी सुडौल गांड को अपनी दोनों हथेलियों में भरकर नापने लगा था!!

शक्तिसिंह के मन में लड्डू फूटने लगे पर फिर भी वह राजमाता के सामने ऐसा दिखावा कर रहा था जैसे वह झिझक में हो।

उसने कहा

"फिर भी राजमाता, आप जो मांग रही हो वह मेरे बस के बाहर है, में कुंवारा जरूर हूँ पर वह इसलिए नहीं की मुझे कभी मौका नहीं मीला!! इसलिए हूँ क्योंकी मैंने अपने प्रथम संभोग के बारे में कई बातें सोच रखी है। में चाहता हूँ की मेरा प्रथम संभोग एकदम खास हो और किसी खास के साथ हो!!" शक्तिसिंह ने थोड़ी हिम्मत जुटाकर कह दिया। अब सामने वाले का हाथ नीचे ही है तो थोड़ा सा भाव खाने में भला क्या ही हर्ज!!

राजमाता ने उत्तर दिया,


"हाँ, में मानती हूँ की जो में मांग रही हूँ वह तुम्हारे लिए बेहद कठिन है। पर यह मांग में किसी और से कर नहीं सकती इसीलिए मैं तुमसे कह रही हूँ।"

शक्ति सिंह की बातों का उन पर गहरा असर हुआ। उसकी बातों से राजमाता स्पष्ट रूप से समझ गई की उसकी झिझक संभोग करने को लेकर नहीं पर जो शर्ते उन्हों ने रखी थी उसको लेकर थी। वह जानती थी की किसी भी पुरुष के लिए सुंदर नग्न तंदूरस्त स्त्री को बिना किसी पूर्वक्रीडा के भोगना असंभव सा था। वह स्वयं चालीस वर्ष की थी और उनके पति की असामयिक मृत्यु के कारण उनकी भी इच्छाएँ अधूरी रह गई थीं। उनका खाली बिस्तर रोज रात को उन्हे काटने को दौड़ता था पर अपने पद की गरिमा को बरकरार रखने के लिए उन्हों ने अपनी शारीरिक इच्छाओं का गला घोंट दिया था।

एक पल के लिए राजमाता का जिस्म अपने आप की कल्पना शक्तिसिंह के साथ करने लगा। कैसा होता अगर वह खुद ही वो खास व्यक्ति बन जाए जिसकी इस नौजवान सिपाही को अपेक्षा थी!! वह मन ही मन सोचने लगी, की अगर परिस्थिति अलग होती तो वह खुद ही सामने से शक्तिसिंह को आमंत्रित कर अपने भांप छोड़ते भूखे भोंसड़े की आग बुझा लेती!! और साथ ही साथ उसे महारानी के साथ संभोग के लिए तैयार भी कर लेती। इससे उसकी आग भी बुझ जाती और साथ ही साथ महारानी को किस नाजुकता से संभालना है, इसका जायज भी शक्तिसिंह को दिला देती। साथ ही साथ शक्तिसिंह की कामुकता और उसके कौमार्य की गर्मी भी शांत हो जाती और महारानी के साथ भावनात्मक या यौन जुड़ाव का जोखिम भी सीमित हो जाता।

अपनी जांघों के बीच की गर्माहट और गिलेपन की मात्र बढ़ते ही राजमाता ने अपने विचारों पर लगाम कस दी।

वह बोली

"तुम इसे अपने पहले संभोग की तरह मत सोचो। यह सिर्फ तुम्हारा काम और कर्तव्य है जिसे तुम्हें बिना दिमाग लगाए निभाना है। अपने सपने और इच्छाएँ तुम किसी और के साथ पूरे कर लेना" कठोर चेहरे के साथ उन्हों ने कहा।

वातावरण में नीरव शांति छा गई।

शक्ति सिंह घुटनों के बल ही बैठ रहा . "जैसी आपकी आज्ञा राजमाता। में तैयार हूँ। लेकिन जाहिर तौर पर इस कार्य के लिए बहुत सारी व्यवस्थाएं करनी पड़ेगी। क्या महारानी इस बात के लिए राजी है?"

राजमाता ने उत्तर दिया:

"हां, वह जानती है कि उन्हे क्या करना है। बस यह नहीं जानती कि इस कार्य के लिए मैंने तुम्हें चुना है," यह कहते वक्त राजमाता के चेहरे पर जो खुशी का भाव था वह शक्तिसिंह देख न पाया क्योंकी राजमाता की पीठ उसकी ओर थी।

"राजमाता, क्या आप को नहीं लगता की कुछ भी निश्चित करने से पहले, महारानी की सहमति जान लेना आवश्यक है? शक्तिसिंह ने पूछा

"तुम सिर्फ अपने काम से काम रखो... किस से क्या कहना है या किसकी सहमति लेनी है यह मुझे तुमसे जानने की जरूरत नहीं है समझे!!" राजमाता गुस्से से तमतमाते हुए बोली.. और फिर उन्हे एहसास हुआ की अभी तो शक्तिसिंह से काम निकलवाना है... जब तक कार्य सफलता पूर्वक सम्पन्न ना हो जाए तब तक उसे अपने क्रोध पर काबू रख बड़े ही विवेक से काम लेना होगा।

उन्होंने थोड़ी सी नीची आवाज में धीरे से कहा

"महरानी पद्मिनी बिल्कुल वैसा ही करेगी जैसा मैं कहूँगी। आप दोनों को मानसिक रूप से इस कार्य के लिए तैयार रहने की आवश्यकता है, बस इतना ही। इस बात से संबंधित अन्य तैयारियां और समय सब में संभाल लूँगी। बस तुम महारानी के साथ मिलन के लिए स्नान करके तैयार रहना। एक स्त्री को कैसे चोदते है वो तो तुम्हें पता है न!!"
Mind blowing update and superb writing ✍️skills dear vakharia ❣️❣️❣️❣️ 💥💥💥💥💥💥💥💥💥
 
  • Love
Reactions: vakharia

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
19,599
48,366
259
"पता तो है पर केवल सैद्धांतिक रूप से" शक्ति सिंह ने जवाब दिया। वह अपनी इस स्थिति को कोस रहा था जिसमें उसे अपने यौन रहस्यों को एक बड़ी उम्र की महिला के साथ साझा करना पड़ रहा था।, वह भी उसकी शाही राजमाता के साथ, जिनसे ज्यादातर लोगों को बात करने का भी मौका नहीं मिलता था।

"और यह सैद्धांतिक ज्ञान तुमने कैसे प्राप्त किया?" राजमाता ने पूछा

"जी, मैंने वात्स्यायन की कामसूत्र की पुस्तक पढ़ी है" हल्की सी शर्म के साथ शक्तिसिंह ने उत्तर दिया।

"मतलब तुम्हें मूलभूत बातों का ज्ञान है.. हम्मम" राजमाता यह सुनिश्चित करना चाहती थी की यह नौसिखिया सैनिक उसकी योजना की मुताबिक कार्य करे और कैसे भी करके महारानी को गर्भवती बनाने में सफल रहे। वह चाहती थी की एक ही बार के सटीक संभोग से उन्हे फल प्रदान हो जाए ताकि उन दोनों का दोबारा मिलन करवाने का जोखिम ना उठाना पड़े। वह किसी भी प्रकार की चूक होने की कोई गुंजाइश छोड़ना नहीं चाहती थी।

"जी, मूलभूत ज्ञान से थोड़ा ज्यादा ही जानता हूँ में" शक्तिसिंह ने आँखें झुकाकर उत्तर दिया

"इसमें ज्यादा ज्ञान की कोई आवश्यकता नहीं है। बस तुम्हें उसके सुराख में अपना लंड घुसाकर, मजबूती से आगे पीछे करते हुए तेजी से झटके तब तक लगाने है जब तक तुम्हारा वीर्य-स्खलन ना हो जाए" राजमाता ने बताया और फिर पूछा " क्या सच में तुमने कभी किसी कन्या या स्त्री के साथ संभोग नहीं किया है?"

"जी नहीं," शक्तिसिंह ने दृढ़ता से उत्तर दिया। वह अब राजमाता से इस बारे में ज्यादा बात करना नहीं चाहता था।

"पक्का किसी के साथ नहीं किया है? संग्रामसिंह की बेटी के साथ भी नहीं?" राजमाता ने शैतानी मुस्कान देते हुए पूछा

शक्तिसिंह चकित हो गया। राजमाता की जानकारी पर वह अचंभित रह गया। वैसे राजपरिवारों के संपर्क में रहते गुप्तचरो के चलते यह सब बातें उनके ज्ञान में होना कोई बड़ी बात नहीं थी। राज्य का असली कारभार तो राजमाता ही चलाती थी। चप्पे चप्पे की खबर उन्हे होना लाज़मी ही था।

शक्तिसिंह सकपकाकर बोला

"हाँ, वो बस एक बार... जब वह मेरे घाव पर मरहम लगा रही थी तब..." शर्म से उसकी आँखें झुक गई

"अच्छा...!! क्या हुआ था तब? विस्तार से बता मुझे..." राजमाता ने फट से पूछा और फिर मन में सोचा "गजब की कटिली लड़की है संग्रामसिंह की बेटी.. बेचारे इस कुँवारे का क्या दोष?"

"जी.. वो.. जब मेरे पीठ पर मरहम लगा रही थी तब उसने अपने स्तन पीछे रगड़ दिए और मेरे ऊपर अपने पूरे जिस्म का वज़न डाल दिया..." शक्तिसिंह ने शरमाते हुए कहा

"बस इतना ही!! उसे तो सिर्फ खेल कहते है... चुदाई थोड़ी न हुई थी!!" राजमाता ने चैन की सांस ली... और फिर मन में सोचने लगी "मतलब अभी भी कुंवारा लड़का मिलने की संभावना है.. क्यों ना इस युवा भमरे को अपनी विधवा छत्ते में... नहीं नहीं... कैसे गंदे खयाल आ रहे है मन में" उन्हों ने अपने आप को कोसा

"फिर कुछ ज्यादा नहीं हुआ... में उत्तेजित हो गया और पलट गया... उसको अपने ऊपर लेने गया तब उसका स्तन मेरे हाथों में आ गया... उसने भी मेरे वस्त्र के ऊपर से मेरे लँड को पकड़कर दबोचा... हम एक दूसरे के जिस्म से देर तक खिलवाड़ करते रहे पर उस दौरान उसने मेरे लँड को एक बार भी नहीं छोड़ा..." शक्तिसिंह बोलता ही गया

"फिर क्या हुआ?" राजमाता की साँसे यह सब सुनकर तेज चलने लगी थी। उनका चेहरा उत्तेजना से लाल हो गया था

"जी... फिर.. अममम.. फिर.. जी.. वो.. वो मेरे लँड ने जवाब दे दिया और उसके हाथों में ही.... फिर वो शरमाकर वहाँ से भाग गई.. " शक्तिसिंह ने समापन किया

"बस वही... " राजमाता बोल उठी "वही तो चाहिए... तुम्हारे लंड को बिलकूल वैसा ही जवाब महारानी की चुत के भीतर देना है"

"जी समझ गया" शक्तिसिंह ने उत्तर दिया

"क्या समझा? तू हस्तमैथुन करता है कभी?" राजमाता ने अनायास ही पूछा.. उनका रक्तचाप इस संवाद के कारण काफी तेज हो गया था और उनके अंदरूनी हिस्से गीले हो चुके थे। अंतर्वस्त्रों से हल्की सी बूंद उनकी जांघों से होकर गाँड़ के छिद्र तक पहुँच चुकी थी। वह जानती थी की शक्तिसिंह हस्तमैथुन करता हो या ना हो पर उन्हे आज रात तंबू में जाकर अपना दाना घिसकर प्यास बुझानी पड़ेगी। उनका मन कर रहा था की इस कच्चे कुँवारे सैनिक को अपने तंबू में ले जाकर अपना घाघरा उठाकर तब तक सवारी करे जब तक उनका मन न भर जाए। पर महारानी के कभी भी उनके तंबू में आ जाने के डर से ऐसा करना मुमकिन ना था। अन्यथा आज राजमाता की वासना की आग में शक्तिसिंह की बलि अवश्य चढ़ जाती।

शक्तिसिंह ने अब तक जवाब नहीं दिया था। उसे लगा की मौन ही इस प्रश्न का श्रेष्ठ उत्तर होगा। वह चुप्पी साधे मुंह झुकाकर बैठा रहा।

राजमाता ने शक्तिसिंह की ठुड्डी पकड़ी और उसका चेहरा ऊपर किया। अब वह उसकी आँखों में आँखें डाल देख रही थी। इस तनावपूर्ण और उत्तेजक परिस्थिति के चलते उनकी तेज साँसों से राजमाता के उरोज ऊपर नीचे हो रहे थे।

राजमाता के स्तनों की हलचल और उनकी हल्की सी नीचे हुई चोली के बीच से दिखती तगड़ी दरार ने शक्तिसिंह को हिलाकर रख दिया। वह स्वयं से पूछ रहा था की इतने समय तक उसकी नजर राजमाता के इस खजाने पर कैसे नहीं पड़ी??

फिर मन ही मन उसने अपने आपको उत्तर दिया "क्योंकी में इस राज्य और राजपरिवार का वफादार सेवक हूँ"

"में फिरसे तुझे पूछ रही हूँ... क्या तुम हस्तमैथुन करते हो? जवाब दो?" राजमाता ने थोड़ी सख्ती से पूछा

शक्तिसिंह का गला सुख गया। राजमाता उसके इतने करीब खड़ी थी की उनके जिस्म की प्रस्वेद और इतर की मिश्रित गंध उनके नथुनों में घुसकर बेहद उत्तेजित कर रही थी।

"अब सुनो, तुम्हें महारानी को तब तक चोदना है जब तक तुम वहीं उत्तेजना महसूस करो जो हस्तमैथुन करते वक्त होती है। स्खलन का समय नजदीक आता दिखे तब संभोग की गति और बढ़ा देना। किसी भी सूरत में ठुकाई की अवधि को लंबी करने की कोशिश मत करना, समझे!! तेजी से झटके लगाओगे तब जबरदस्त स्खलन होगा और तुम्हारा बीज महारानी के अंदर स्थापित हो जाएगा। उनकी योनि के हर हिस्से को वीर्य से तरबतर कर देना है। वीर्य की हर बौछार के बाद लंड को थोड़ा सा बाहर खींचकर और अंदर तक डालना और ध्यान रहे, महारानी की चुत से वीर्य की एक भी बूंद बाहर नहीं निकालनी चाहिए"

शक्तिसिंह को राजमाता के शब्दों पर विश्वास नहीं हो रहा था!! ऐसे शब्दों का प्रयोग वह महारानी के लिए कैसे कर सकती है!! उसकी असमंजस स्थिति को देख राजमाता को यूं लगा की उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है।

"लगता है मुझे ही समझाना पड़ेगा..चल मेरे साथ" कहते हुए राजमाता अपने तंबू की तरफ चल दी।

सारे तंबू एक दूसरे से दूरी पर बने हुए थे। फिलहाल कोई भी अपने तंबू के बाहर नहीं था। शक्तिसिंह यंत्रवत राजमाता के पीछे पीछे उनके तंबू में गया और पर्दा गिरा दिया।

पर्दा गिरते ही राजमाता ने शक्तिसिंह को अपनी तरफ खींचा... उसके कवच और से होते हुए धोती के अंदर अपना हाथ घुसा दिया। शक्तिसिंह के घुँघराले झांटों के ऊपर से होते हुए उनकी उँगलियाँ उसके सुलगते सख्त सुपाड़े पर पहुँच गई।

राजमाता की उँगलियाँ गरम सुपाड़े की शानदार मोटाई को नापने में मशगूल हो गई। हाथ को थोड़ा सा और अंदर सरकाने पर उन्हे शक्तिसिंह के हथियार की लंबाई और मोटाई का अंदाजा लग गया। एक पल के लिए तो उन्हे महारानी की फिक्र हो गई, ऐसा दमदार तगड़ा हथियार था!! शक्तिसिंह के लंड को नापते हुए वह यह भी सोच रही थी की अगर लंबाई थोड़ी और होती तो बच्चेदानी के मुख तक पहुंचकर गर्भाधान को सुनिश्चित करने में ओर आसानी होती।

अपने लँड पर राजमाता के हाथों के स्पर्श से शक्तिसिंह की टाँगे कमजोर होने लगी। राजमाता का हाथ और उनका पूरा जिस्म अब शक्तिसिंह पर हावी होने लगा था। जिस व्यक्ति को बचपन से लेकर आजतक सन्मानपूर्वक देखा था वह आज उसके शरीर के अंदरूनी हिस्सों को धड़ल्ले से महसूस कर रही थी।

शक्तिसिंह के लँड को महसूस करते हुए राजमाता की आँखें ऊपर चढ़ गई... वह सिसकियाँ भरने लगी... उनके अंदर की हवसखोर रांड अब बाहर आने लगी।

जब राजमाता ने शक्तिसिंह की धोती को ढीला किया तब उसकी जुबान हलक के नीचे उतर गई!! ढीला करते ही धोती नीचे गिर गई। अब शक्तिसिंह कमर के नीचे सम्पूर्ण नग्न था और वो भी राजमाता की आँखों के सामने!!

राजमाता शक्तिसिंह के इतने करीब थी की उनकी भारी भरकम चूचियाँ बिल्कुल चेहरे के सामने प्रस्तुत थी। बड़ा
मन किया की उनको धर दबोचे पर मुश्किल से इच्छा को शक्तिसिंह ने काबू में रखा।
Must update tha bhai👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻💥💥💥💥💥💥💥💥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥
 
  • Love
Reactions: vakharia

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
19,599
48,366
259
"हम्म... बस इसी की इस्तेमाल करना है..." लंड पर ऊपर से नीचे तक हथेली घुमाते हुए राजमाता बोली। लाल सुपाड़ा बिल्कुल सूखा था पर उसके ऊपर के छेद पर वीर्य की बूंद प्रकट हो चुकी थी और चिकनाहट प्रदान कर रही थी।

कौशल्यादेवी ने अपने अंगूठे से वीर्य की उस बूंद को सुपाड़े के चारों ओर मल दिया... वह लंड हिलाकर शक्तिसिंह को पराकाष्ठा तक ले जाकर यह दिखाना चाहती थी की दो पिचकारियों के बीच कैसे झटके लगाए जाए। अंदर धक्का लगाते वक्त पिचकारी निकालनी चाहिए और दो पिचकारियों के बीच के अवकाश के दौरान लंड को बाहर खींचना चाहिए। इस तरह के समन्वय से वीर्य का जरा सा भी व्यय नहीं होगा और सारा वीर्य महारानी की चुत से होकर उनके गर्भाशय तक जाकर पर्याप्त मात्रा में शुक्राणु उनके अंड से मिलने भेज सकेगा।

राजमाता मूल से लेकर सुपाड़े तक हथेली में लंड को ऊपर नीचे कर रही थी। शक्तिसिंह के होश गुम हो चुके थे। वह किसी भी प्रकार के विचार करने की परिस्थिति में न था। वह बस संचालित हो रहा था... सारा संचालन राजमाता ही कर रही थी।

"इस तरह होती है असली चुदाई... " बोलते हुए राजमाता की आवाज कांपने लगी... उनका मुंह लार से भर गया था और उनके गुलाबी रसीले होंठों से लार एक बार टपक भी गई।

"यह मेरी मुठ्ठी ही महारानी पद्मिनी की चुत है ऐसा समझ.. जब मेरी मुठ्ठी ऊपर जाती है तब तेरे लंड का मुंह उसकी चुत के होंठों पर होगा... समझा.." चुदाई के खेल के बारे में ज्ञान बांटते हुए वह बोली

शक्तिसिंह चाहकर भी बोलने की हालत में नहीं था...

"ज.. जी.. " मुश्किल से इतना ही बोल पाया।

राजमाता ने अब लँड पर पकड़ और मजबूत कर दी और ऊपर नीचे करने की गति भी बढ़ा दी। लंड से वीर्य की कुछ और बुँदे निकल आई और राजमाता के हाथों की हलचल के कारण पूरा लंड उन वीर्य की बूंदों से लिप्त हो गया। लंड और हाथ दोनों चिकने हो गए थे।

"चुदाई के दौरान भी तेरा लंड ऐसे गीला हो जाएगा, और उस गिलेपन में महारानी की चुत भी अपना सहयोग देगी। पर अधिक चिकनाई से घर्षण कम हो जाएगा और तुम्हें चरमोत्कर्ष तक पहुँचने में ज्यादा समय लगेगा...!! इसलिए तुम्हें जननांगों में स्निग्धता बढ़ने से पहले ही स्खलन तो पहुँचने की कोशिश करनी है। अगर तुम्हारा लंड गीला हो जाए तो तुम्हें उसे चुत से बाहर निकालकर पोंछ लेना है.. फिलहाल तो हम सिर्फ अभ्यास कर रहे है इसलिए गीला ही रहने देते है" कहते हुए वह लंड को हिलाती रही। शक्तिसिंह पर क्या बीत रही थी वह सिर्फ वोही जानता था।

राजमाता के हाथ की अंगूठियाँ लंड पर बेहद चुभ रही थी और दर्द भी हो रहा था। पर शक्तिसिंह का चेहरा देख वह यह भांप गई। उन्हों ने लंड को थोड़ी देर के लिए मुक्त किया, अपनी अंगूठियाँ निकालकर रख दी और फिर से लंड पकड़कर गुर्राते हुए हिलाने लगी।

लंड अपनी पकड़ को थोड़ा सा ढीला करते हुए वह बोली

"चुत कभी भी मुठ्ठी जितना कसाव लंड पर नहीं डाल सकती। जल्दी से पिचकारी मारने का नुस्खा यह है की तुम्हें ये जानना होगा की तुम्हारे सुपाड़े का कौन सा हिस्सा सबसे ज्यादा संवेदनशील है.. " अपने अनुभव और ज्ञान को सांझा करते हुए वह तीव्रता से लंड को हिलाने लगी।

सुपाड़े का संवेदनशील हिस्सा ढूँढने के लिए राजमाता ने अपने अंगूठे को सुपाड़े के हर हिस्से पर दबा के घुमाया और उस दौरान वह शक्तिसिंह को देखती रही ताकि अनुमान लगा सके की कौन सा हिस्सा सबसे ज्यादा नाजुक है। शक्ति सिंह अपनी मुठ्ठीयां भींच कर तंबू की छत की ओर देख रहा था। उसका पूरा शरीर धनुष्य की प्रत्यंचा की तरह मूड गया था। उसके पैरों के अंगूठे में भी अंदर की तरफ मुड़ गए थे।

अचानक वह बदहवासी से बुरी तरह कांपने लगा...

"आहहहहहहह.......!!!!!!" वह गुर्राया। वह चीखना चाहता था पर कैसे भी करके उसने अपनी चीख को गले में दबाकर रखा.. वह जानता था की जरा सी भी ज्यादा आवाज करने पर उसके साथी तुरंत तंबू में घुस आएंगे और फिर....

"वहीं... बिल्कुल वहीं हिस्सा... जो सबसे ज्यादा संवेदनशील है... " राजमाता ने विजयी सुर में कहा "इस हिस्से का तुम्हें चतुराई से इस तरह उपयोग करके महारानी के चुत के होंठों पर रगड़ना है... में बताती हूँ कैसे.."

राजमाता ने अपनी कलाइयों से कड़े और कंगन उतार दिए ताकि कोई अतिरिक्त आवाज ना हो। और वह नहीं चाहती थी की खुरदरी चूड़ियों से शक्तिसिंह के लंड को कोई नुकसान पहुंचे। उनकी योजना की सफलता इस लंड की ताकत पर ही तो निर्भर थी।

"जब मेरी मुठ्ठी ऊपर हो तो समझो तुम्हारा लंड पद्मिनी की चुत के बाहर है.. " जिस मात्रा में अब तक वीर्य निकल चुका था, राजमाता की पूरी हथेली इतनी स्निग्ध हो गई थी की लंड आसानी से उनकी मुठ्ठी के बीच ऊपर नीचे हो रहा था..

"मेरी मुठ्ठी जब नीचे जाती है... तब समझो की तुम धक्का लगाकर लंड को पद्मिनी की चुत के अंदर दाखिल कर रहे हो.. और याद रखना... धक्का लगाने का काम लंड का है... चुत ज्यों की त्यों पड़ी रहेगी अपनी जगह.. बिना हिले-डुले"। यह कहते वक्त राजमाता को यह विचार आया की इस चुदाई के दौरान महरानी पद्मिनी भी तो हरकत कर सकती है!! जैसे की गाँड़ उचक कर उलटे धक्के मारना, सिसकना, या फिर जांघों की चौकड़ी मारकर शक्तिसिंह के लंड को जकड़ लेना...

"अब यह ध्यान से देख.. " लंड की चमड़ी नीचे कर सुपाड़े को निर्वस्त्र करते हुए वह बोली "जब तेरा लंड चुत के अंदर जाएगा तब ये चमड़ी ऐसे ही पीछे की तरफ हो जाएगी और तेरा सुपाड़ा अंदर चुत की दीवारों के बीच फंस जाएगा...!!"

"ऊँह.. "शक्तिसिंह कराह उठा

"तुम देख और समझ भी रहे हो क्या? जवाब दो.. तुम्हें सब कुछ बारीकी से देखकर सीखना है... अपने आप पर काबू रखो और इधर ध्यान केंद्रित करो.. " राजमाता शक्तिसिंह से वह कह रही थी जो उसके लिए करना मुमकिन न था। नौसिखिये लंड पर किसी अनुभवी औरत का हाथ घूम रहा हो तब विश्व का कोई भी पुरुष किसी भी चीज पर अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर सकता।

उत्तेजना के साथ साथ उसे यह डर भी था की उसे अपने तंबू में ना देखकर कहीं उसके साथी ढूंढते हुए ना आ जाएँ... या तो फिर कहीं महारानी तंबू में आ पहुंची तो??? क्या सोचेगी वह जब राजमाता को अपने सैनिक का लंड मुठ्ठी में पकड़े हुए देखेगी?? फिर भी वह चाहता था की राजमाता का ये अभ्यास चलता रहे।

फिलहाल शक्तिसिंह की इच्छा राजमाता को दबोचकर उनके पलंग पर गिराकर उन पर चढ़ जाने की थी। उसका मन कर रहा था की वह किसी जानवर की तरह टूट पड़े और उनका घाघरा उठाकर तब तक चोदे जब तक उनके भूखे भोंसड़े के परखच्चे ना उड़ा दे। अभी वह राजमाता की मुठ्ठी में अपने लँड को कमर आगे पीछे कर मजे ले रहा था। उसकी नजर घुटनों के बल बैठी राजमाता की, तेज चलती साँसों के कारण, ऊपर नीचे हो रही भरपूर चूचियों पर चिपक सी गई थी। उत्तेजना के कारण आए पसीने से राजमाता का चेहरा चमक रहा था। उनके चेहरे के भाव किसी नशीली वासना से भरी रंडी जैसा प्रतीत हो रहा था। शक्तिसिंह ने बड़ी मुश्किल से उन चूचियों को पकड़कर मसलने की इच्छा को मन में ही दबाएँ रखा।

"बस यही उत्तेजना को और बढ़ाते हुए तुम्हें स्खलन की ओर अग्रेसर रहना है। याद रहे, वह महारानी है और तुम एक सामान्य सैनिक। उसके साथ तुम्हारे संभोग की अवधि न्यूनतम सीमा से आगे नहीं बढ़नी चाहिए।" राजमाता ने गहरी सांस छोड़ते हुए कहा

"सबसे खास बात... तुम्हें अपने लिंग-मणि का यह संवेदनशील हिस्सा, उनकी चुत की दीवारों पर रगड़ना है..." फिर से अंगूठे से वह भाग को दबाकर शक्तिसिंह की आह निकालते हुए वह बोली "यह वाला हिस्सा... समझे के नहीं!!"

सुपाड़े के उस हिस्से पर राजमाता का अंगूठा लगते ही शक्तिसिंह उछल पड़ा.. उसे राजमाता के काम-कौशल पर यकीन हो गया... वह सोचने लगा की राजमहल के बंद कमरों में तो यह स्त्री न जाने क्या क्या गुल खिलाती होगी!!!

वीर्य से सने लँड को अपने हाथों से हिलाए जा रही थी राजमाता। शक्तिसिंह अपने स्खलन को मुश्किल से रोक रहा था ताकि यह मजेदार अभ्यास को जितना लंबा हो सके खींच सके।

"यह गया अंदर..." सुपाड़े की त्वचा को पूरी नीचे की तरफ खींचकर उन्हे ने लँड को मूल पर प्रहार किया "और ये निकला बाहर... " लँड के ऊपरी हिस्से को अपने मुठ्ठी में भींचकर राजमाता बोली

मुठ्ठी के हर झटके के साथ वीर्य की धाराएँ बाहर निकल आती थी। राजमाता ने सावधानी से सुपाड़े को अपनी मुट्ठी में पकड़ लिया; वह अब गति बढ़ाकर इस महत्वपूर्ण और असीम आनंददायक कार्य को पूरा करने में जुट गई।

शक्तिसिंह सोच रहा था की यह सब अनायास ही नहीं हुआ है... राजमाता ने उसे फँसाने की और तैयार करने के बहाने खुद मजे लेने की योजना पहले से ही तय कर रखी होगी।

"अब में गति बढ़ा रही हूँ... अंदर-बाहर.. फिर से अंदर बाहर" शक्तिसिंह आँखें बंद कर अपना चेहरा ऊपर कर मस्ती में डूब चुका था। राजमाता की आँखें इस घोड़े के लंड पर चिपकी हुई थी। वह हिंसक तरीके से लंड को हिलाते हुई खुद भी सिसकियाँ भर रही थी।

"यह मजेदार गरम फुला हुआ सुपाडा, मेरे भोंसड़े के अंदर होना चाहिए था" राजमाता का दिमाग अब वासना से तप रहा था। इस दौरान कब शक्तिसिंह का हाथ उनकी चोली के अंदर चला गया उसका उन्हे पता ही नहीं चला।

शक्तिसिंह की उंगलियों ने उनकी निप्पल को चोली में से ढूंढ निकाला।

"आह... आह.. हाँ करते रहिए... आह..!!" वह हर धक्के के साथ गुर्राता था, उसकी निगाहें राजमाता की शानदार लंबी उंगलियों, शाही मुट्ठी और उसके बीच फंसे बेहद संवेदनशील लंड पर टिकी हुई थीं।

राजमाता यह खेल में इस कदर खो गई थी की अभ्यास तो किनारे रह गया और वह अपनी काम-पिपासा का खयाल रखने में व्यस्त हो गई। कई सालों से मर्द के अवयवों का नजदीकी मुआयना करने का मौका नहीं मिला था। आज इस जवान तगड़े सिपाही का हथियार चलाते वक्त इतना आनंद आ रहा था की उसे छोड़ने का मन ही नहीं कर रहा था।

राजमाता के मुंह से लार टपक कर वीर्य से सने लंड पर गिरकर उसे और स्निग्धता प्रदान कर रही था। वहाँ शक्तिसिंह के हाथ में आइ राजमाता की निप्पल को उसने उत्तेजना के मारे ऐसे दबा दिया की राजमाता के मुंह से हल्की सी चीख निकल गई।

"मत करो ऐसा, शक्तिसिंह" राजमाता हांफते हुए बोली.. "कृपा कर उसे छोड़ दो और मेरे सामने देखो... "

शक्तिसिंह ने उनकी बात को अनसुना कर उनके पूरे स्तन को पकड़कर भींच दिया और फिर उसे सानने और सहलाने लगा। राजमाता ने इसका विरोध नहीं किया। वह विरोध कर सक्ने की परिस्थिति में भी न थी।

"जब में मुठ्ठी को नीचे की तरफ दबाती हूँ तब देखो तुम्हारा सुपाड़ा कैसे फूल जाता है!!!!" राजमाता की आँखें ऊपर की तरफ चढ़ गई थी। इस मूसल की मालिश और साथ में उनके स्तनों का मर्दन!! दोनों चीजें एक साथ वह बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। फिर भी यह दिखावा कर रही थी जैसे अभी भी वह शक्तिसिंह को अभ्यास का ज्ञान दे रही हो।

शक्ति ने परमानंद में कराहते हुए सिर हिलाया।
Superb update and awesome writing ✍️ vakharia
🔥🔥🔥💥💥💥❣️❣️❣️❣️💐💐💐✍️
 
  • Love
Reactions: vakharia

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
19,599
48,366
259
"लंड की त्वचा पीछे की ओर खिंच गई है, सुपाड़ा फूल गया है; यदि इस स्थिति में तुम्हारा लंड महारानी की चुत के गहराइयों में वीर्य स्खलित कर देता है, तो मकसद पूरा हो जाएगा। अब मुझे बताओ, क्या तुम स्खलन के लिए पर्याप्त रूप से उत्तेजित हो?" राजमाता ने पूछा

जवाब में शक्तिसिंह ने राजमाता की कलाई पकड़कर लंड की हलचल को ओर तेज करने का इशारा किया। राजमाता ने अपना दूसरा हाथ जमीन पर टीका दिया ताकि उनके शरीर का संतुलन ठीक से बना रहे। शक्तिसिंह का फुँकारता हुआ लंड उनके चेहरे के बिल्कुल सामने और बेहद नजदीक था।

पागलों की तरह बेतहाशा लंड हिलाने की कवायत के कारण राजमाता के खुले बाल आगे की ओर आ गिरे थे। उन्होंने तुरंत बालों को पीछे की ओर किया ताकि जब वीर्य का स्खलन हो तब दोनों वह द्रश्य सफाई से देख सके।

"बस अब... होने ही वाला है... आह!!" अपनी चरमसीमा की क्षण नजदीक आती देख, शक्तिसिंह फुसफुसाया

शक्तिसिंह को पराकाष्ठा तक ले जाने के लिए जिस हिसाब और ताकत से लंड को हिलाना पड़ रहा था इसे देख राजमाता ने अंदाजा लगा लिया की महारानी पद्मिनी की चुत को स्खलन के पूर्व कितनी ठुकाई करवानी पड़ेगी। वह सोच रही थी की क्या कभी कमलसिंह ने महारानी की चुत में कभी इतने जबरदस्त धक्के लगाएँ भी होंगे या नहीं!!! कमलसिंह की शारीरिक क्षमता को देखकर लगता नहीं थी की वह ऐसी दमदार चुदाई कर पाया होगा!! तो फिर अगर शक्तिसिंह के मजबूत झटके चुत में खाने के बाद कहीं महारानी उसके लंड की कायल हो गई तो!! वह एक जोखिम जरूर था। जो मज़ा उन्हे लंड को केवल हाथ में लेने में आ रहा था... चुत में लेने पर तो यकीनन ज्यादा मज़ा आएगा!!

"अपनी नजर इस तरफ रखो" राजमाता ने आदेशात्मक सुर में कहा

शक्तिसिंह का शरीर अनियंत्रित रूप से अचानक ज़ोर से हिलने डुलने लगा।

"इस स्थिति में तुम्हें झटकों की गति और तीव्र करनी है... बिल्कुल भी रुकना नहीं है...!!" शक्तिसिंह की चरमसीमा नजदीक आते देख राजमाता ने अपनी मुठ्ठी को उसके लंड पर तेजी से ऊपर नीचे करना शुरू किया।

"आआआ.............हहहहहह!!" शक्तिसिंह की जान उसके लंड में अटक गई थी। अगर वह हस्तमैथुन कर रहा होता तो गति धीमी कर इस आनंददायक अवधि को और लंबा खींचता... पर इस वक्त तो राजमाता का हाथ यंत्र की तरह उसके लंड पर अविरत चल रहा था।

शक्तिसिंह का गुदा-छिद्र संकुचन महसूस करने लगा... उसका समग्र अस्तित्व जैसे एक ही चीज पर अटक गया था।

"मार दे अपनी पिचकारी, मेरे लाडले...!!" किसी वेश्या की तरह गुर्रा कर राजमाता ने शक्तिसिंह को उस अंतिम पड़ाव पर उकसाया

"छोड़ दे जल्दी... तेरी हर पिचकारी के साथ मैं और मजबूती से झटके लगाऊँगी... " सिसकते हुए वह बोली

उनके यह कहते है... शक्तिसिंह का शरीर ऐसे थरथराया की एक पल के लिए दोनों का संतुलन चला गया। शक्तिसिंह ने मजबूती से राजमाता के कंधों को कस के जकड़ लिया और उठाकर अपने समक्ष खड़ा कर दिया... अपने चेहरे को राजमाता के उन्नत स्तनों के बीच दबाते हुए वह उनकी हथेली को बेतहाशा चोदने लगा।

शक्तिसिंह और राजमाता एक दूसरे के सामने खड़े थे और लंड उन दोनों के बीच ऊपर की तरफ मुंह कर था... थरथराकर कांपते हुए शक्तिसिंह ने एक जबरदस्त लंबी पिचकारी छोड़ी जो दोनों के बीच में होकर राजमाता के स्तनों और गर्दन पर जा गिरी। एक के बाद एक पिचकारी ऐसे छूट रही थी जैसे गुलेल से पत्थर!!

"बिल्कुल ऐसे ही... छोड़ता रहे... और छोड़... "राजमाता ने अभी भी लंड को जकड़ रखा था और ऊपर नीचे कर रही थी।

"लंड को पीछे की तरफ खींच... और फिर एक जोरदार धक्का मारकर पिचकारी दे मार फिरसे..." शक्तिसिंह की आँखों के सामने अंधेरा सा छा गया... वह यंत्रवत राजमाता के निर्देश के मुताबिक करता जा रहा था।

"और एक बार छोड़... " राजमाता ने उसे और उकसाया और लंड को झटकाया

"अब यह तरकीब देख... पिचकारियाँ मारने के बाद अपने टट्टों में फंसे आखरी रस को बाहर निकालना है तो अपने कूल्हों को मजबूती से भींच और टट्टों और गाँड़ के बीच वाले हिस्से पर दबाव देकर लंड में जोर से पिचकारी मारने की कोशिश कर... "

राजमाता पसीने से तरबतर हो गई थी और उनके कपाल, चोली, स्तन और पल्लू पर जगह जगह वीर्य की धाराएँ अब नीचे की ओर बह रही थी।

अपने कूल्हे और नीचे के हिस्से को दबाते हुए शक्तिसिंह चिल्लाया

"बस निकल रहा है राजमाता...!!"

पूरा जोर लगाकर शक्तिसिंह ने आखिरी पिचकारी मार दी। इस बार राजमाता ने बड़ी ही सफाई से अपने आप को उस पिचकारी के मार्ग से दूर रखा... सारा वीर्य जमीन पर जा गिरा...

शक्तिसिंह का लंड अब भी राजमाता की मुठ्ठी में तड़प रहा था... उसका लाल मुंह जाग से भर गया था... लंड के ऊपर के घुँघराले बाल भी वीर्य से लिप्त हो गए थे। राजमाता की मुठ्ठी का कोई भी हिस्सा बिना वीर्य का न था।

यह स्खलन ने शक्तिसिंह के बर्दाश्त की सारी हदों की परीक्षा ले ली। ऐसा एहसास उसने आजतक अपने जीवन में कभी महसूस नहीं किया था। पता नहीं कैसे पर उसने बिना अनुमति के राजमाता की चोली से उनके एक बड़े से स्तन को बाहर निकालकर बादामी रंग की निप्पल को मुंह में भर चूसने लगा।

राजमाता की चुत में कामरस की बाढ़ आई हुई थी... पूरा भोसड़ा चिपचिपा हो रखा था... शक्तिसिंह के निप्पल चूसते ही इस आग में और इजाफा हो गया... रात अभी जवान थी और इस सुलगती आग का भी कोई समाधान ढूँढना था।

वह शक्तिसिंह को निप्पल चूसने से रोकना चाहती थी पर तभी उन्हे एहसास हुआ की उनका हाथ वीर्य से लिप्त था। वह अपनी हथेली पर लगे गाढ़े वीर्य की गर्माहट को महसूस कर पा रही थी। पूरे तंबू में वीर्य की गंध फैल चुकी थी।

"हम्म.. इतनी मात्रा में वीर्य महारानी के लिए पर्याप्त होगा" राजमाता ने मन में सोचा.. "महारानी के घुटने उठाकर चुदवाऊँगी और वीर्यपात के बाद भी घुटने वैसे ही रखूंगी, ताकि इस घोड़े का किंमती रस अंदर जाकर उसके गर्भाशय के अंड को सफलता पूर्वक फलित कर दे "

"इसी तरह मजबूत झटके लगाकर तुरंत स्खलन करना है... तुम्हें केवल वीर्य छोड़ने पर ही ध्यान केंद्रित करना है ना की मजे लूटने पर... मज़ा तो तुम्हें यहाँ मिल ही रहा है अभी" राजमाता बोली

राजमाता ने शक्तिसिंह के सुपाड़े के गीले कपड़े की तरह निचोड़ दिया... शक्तिसिंह कराह उठा!! सुपाड़े से वीर्य की कुछ और बूंदें टपक पड़ी। वह अब भी उसके लंड को थन की तरह दुह रही थी और शक्तिसिंह उनके स्तनों पर ध्वस्त होकर सर रखे खड़ा था।

जैसे जैसे उत्तेजना के तूफान का जोर कम हो रहा था, वैसे ही वह दोनों वास्तविकता के ओर नजदीक आने लगे।

"यह मजे और आनंद सिर्फ आज के लिए ही थे" राजमाता अपने असली राजसी रूप में आने लगी।

"फिर से कह रही हूँ, जब वह मौका आएगा तब रानी के साथ केवल तुम्हें अपना कर्तव्य निभाना है... तुम्हें आनंद लेने की अपेक्षा बिल्कुल नहीं करनी... वह अनुचित होगा!"

शक्तिसिंह ने हाँ में सर हिलाया। राजमाता की निप्पल वह अभी भी चूस रहा था। बेमन से उसने निप्पल को छोड़ा।

राजमाता ने उसका लंड अभी छोड़ न था। शक्तिसिंह को ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो राजमाता ने उसके शरीर की सारी स्फूर्ति और ताकत अपनी मुठ्ठी से खींच ली थी। उसका शरीर ढीला पड़ गया था और बेहद थकान के कारण उसे नींद या रही थी। उसकी आँखें झेंपने लगी थी।

राजमाता ने उसकी आँखों की ओर देखा और मुस्कुराई

"तो अब तुम्हें पता चल गया की क्या और कैसे करना है। और मुझे भी तसल्ली हो गई की मैने सही मर्द को इस कार्य के लिए चुना है।" अपने वीर्य सने हाथ को शक्तिसिंह की धोती पर पोंछते हुए राजमाता ने कहा

इतनी मात्रा में निकले गाढ़े वीर्य को देख वह मन ही मन खुश हो गई।


3
Awesome update again and sexy hot writing ✍️ :hot: :hot: :hot: :hot: :hot: :hot: :hot: ❣️❣️❣️❣️💥💥💥💥💥💥
 
  • Love
Reactions: vakharia

vakharia

Supreme
4,873
11,006
144
Bij dan to ho gaya. Rani ke garbh ne sayad bij ko grahan bhi kar liya. Magar kam uttjejna se lambe wakt se vanchit raj mata apne aap ko rok na pai. Tandurast balagali shipahi Shakti Singh ki kaya ko dekh kar vo khud hi ghode sawari karne Shakti Singh par chadh gai. Lambe wakt ki bhunkh ne ye karne par majbur to kar diya lekin usi lambe wakt se yoni jo raj mata ki sukud sukh gai thi. Bina prahar kare hi var ho gaya. Kahi esa na ho ki rajmata kayal hokar prem karne lage.
Thanks Shetan for the lovely comments ❤️
 

vakharia

Supreme
4,873
11,006
144
T
Samay chahe jo bhi ho raj ghrana shuru se hi aiyash raha hai. Jaha maharani pane pati raja ke bare me janti hi thi ki vo napushak hai. Hana kami karna ek bahana hi tha. Use sirf garbh hi dharan nahi karna tha. Apni vashna ko bhi shant karna tha. Jo Shakti Singh ki kaya dekh kar kayal ho gai. Vahi rajmata ki bhi yahi ichha thi. Aur apne banae shadiyantra ke anusar apni bari ka intjar kar rahi thi.
Par in sab me sabhi apna bhed kisi ko batana nahi chahte. Taki wakt aane par vo majbur na ho. Ha dusre ke bhed jan ne me jarur dilchaspi rahi hogi.


IMG-20240601-083454 IMG-20240601-083443

Thanks 💖❤️💖
 

vakharia

Supreme
4,873
11,006
144
Ye to samaz aa gaya ki vashna par kisi ka jor nahi. Jisne kabu pa liya to vo mahan ban gaya. Chahe raja mata ne kitni bhi bandishe laga li. Par maharani ne khud ko biljul nahi roka. Samay ki maryada vo bhi janti thi. Aur rajamata use kahatak kitna rok sakti hai. Ye bhi vo janti thi. Maharani ko pata tha ki uski bagawat rajmata rok to paegi nahi. Shakti Singh to ek gulam hi hai. Vo vahi karega jesa hukam milega. Maharani ne khub chaturani se apni vashna ko tript kiya. Bahot hi kamukh update.

bollywood-actress
Thanks a lot ♥️ :love3:
 
Top