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Fantasy राज-रानी (एक प्रेम कथा)

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राज-रानी (बदलते रिश्ते)
""अपडेट"" ( 10 )


अब तक,,,,,,

"अब ये तो तुम पर और तुम्हारी कूटनीति पर निर्भर करता है सम्राट कि तुम इस सबके बाद कैसी नीति अपनाते हो अथवा कैसे उस बालक पर हावी हो सकते हो?" महापंडित ने कहा__"तुमने उपाय का पूछा था सो मैने तुम्हें उपाय बता दिया है। अब आगे कैसे क्या करना है इसके बारे में सोचना तुम्हारा काम है।"

"अच्छी बात है पंडित।" विराट ने कहा__"तुमने यकीनन हमें ये सब बता कर खुश कर दिया है। तुम हमारे लिए बड़े ही काम के आदमी हो इस लिए अगर तुम चाहो तो तुम यहाॅ हमारी दुनियाॅ में सुखपूर्वक रह सकते हो।"

"मैं अपनी दुनियाॅ में ही ठीक हूॅ सम्राट।" उस महापंडित ने कहा__"अब मुझे वापस मेरी दुनियाॅ में जाने की आज्ञा दो।"
"अच्छी बात है पंडित।" विराट ने कहा__"लेकिन तुम हमें इस बात का वचन दो कि जब भी हमें किसी प्रकार की तुम्हारी ज़रूरत पड़ेगी तो तुम हमारे पास ज़रूर आओगे।"

महापंडित ने विराट को इस बात के लिए वचन दे दिया। उसके बाद उसे वापस उसकी दुनिया में भेजने के लिए नील को कह दिया गया। किन्तु वहाॅ पर मौजूद कोई भी शैतान ये नहीं जान पाया था कि अब तक यहाॅ पर जो भी बातें हुई थी उन बातों को किसी के दोनो कानों ने भली भाॅति सुन लिया था और फिर मुस्कुराते हुए वह वहाॅ से गायब हो गया था।


अब आगे,,,,,,,

शैतानों के पहले किंग यानी सोलेमान की पत्नी मारिया सारी बातें सुनने के बाद दबे पाॅव विराट के राजमहल से लौट आई थी। अपने महल में आकर वह उस जगह पहुॅची जहाॅ पर सोलेमान को बड़ी हिफाज़त से एक बड़े से संदूख के अंदर रखा गया था।

मारिया ने संदूख को खोल कर वहीं सोलेमान के सिर के पास एक स्टूल रख कर बैठ गई। संदूख के अंदर सोलेमान पत्थर के रूप में लेटा हुआ था। मारिया कुछ देर तक उसे अपनी छलक आई आॅखों से देखती रही तथा उसके सिर पर प्यार और स्नेह की भावना से हाथ फेरती रही।

"आप यहाॅ इस तरह पत्थर बने पड़े हुए हैं सम्राट।" मारिया अधीर भाव से किन्तु भारी आवाज़ में कह रही थी__"जबकि उधर आपका मित्र अपके लिए एक ऐसी कब्र खोदने के इन्तजाम में लगा हुआ है जिसमें आपको हमेशा के लिए दफना दिया जाए। देख रहे हैं न आप? आपके मित्र ने आपकी मित्रता का ये सिला देने का सोच रखा है। वो नहीं चाहता कि आप फिर से जीवित हो जाएं, और अपने राज्य को अपने उस मित्र से वापस ले लें। कितना समझाती थी मैं आपको कि आपका मित्र विराट अच्छे नेचर का नहीं है बल्कि छल कपट का जीता जागता एक पुतला है मगर आपने कभी मेरी इन बातों पर यकीन नहीं किया। आप हमेशा यही कहते थे कि आपका मित्र इस दुनिया में मित्रता का एक उदाहरण स्वरूप है।" मारिया कहते कहते कुछ पल के लिए ख़ामोश हो गई।

मारिया के चुप होते ही इतने बड़े महल में मौत जैसा सन्नाटा छा गया। इस महल में मारिया के सिवा दूसरा कोई नहीं रहता था। हलाॅकि सम्राट विराट ने सोलेमान के पत्थर बनते ही मारिया की देख रेख और उसकी उचित सेवा के लिए बहुत से मेल और फिमेल वैम्पायर्स रख दिये थे किन्तु मारिया ने ये कह कर उन सबको हटवा दिया था कि वो अपने पत्थर बन गए पति के साथ अकेली ही यहाॅ रहेगी। उसे अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए किसी की आवश्यकता नहीं है। विराट भला उसकी इन बातों को कैसे टाल देता इस लिए फिर वैसा ही हुआ जैसा मारिया चाहती थी।

दरअसल मारिया को विराट की नीयत पर पहले से ही कोई भरोसा नहीं था इस लिए जब विराट ने उसके लिए ये सब किया तो मारिया को लगा कि विराट ये सब उस पर नज़र रखने के लिए कर रहा है। इस ख़याल की वजह से मारिया ने इस सबके लिए मना कर दिया था। दूसरी बात ये थी कि वह यहाॅ अकेली रह कर ही उस बालक के बारे में पता करना चाहती थी। वह नहीं चाहती थी इस सबकी जानकारी विराट को हो। जबकि महल में बहुत से वैम्पायर्स के रहने पर उसे हमेशा ये अंदेशा रहता कि उसकी गतिविधियों की जानकारी कोई न कोई वैम्पायर विराट को ज़रूर दे देगा।

"आपको तो ये भी एहसास नहीं हुआ कभी कि आपका मित्र आपकी ही पत्नी पर हमेशा बुरी नीयत रखता था।" मारिया ने धीर गंभीर भाव से पुनः कहना शुरू किया__"वो तो अच्छा हुआ कि आपने अपनी सारी शक्तियाॅ मुझे दे दी थी जिसके डर से उसने कभी मुझ पर हाथ डालने की कोशिश नहीं की वरना वह आपके पत्थर बनते ही मुझे अपनी रखैल बना लेता। वो जानता है कि आपकी सारी शक्तियाॅ मेरे पास हैं इसी लिए उसने कभी मुझ पर ग़लत नीयत से हाथ डालने का दुस्साहस नहीं किया। उसका बस ही नहीं चलता इस बात पर कि वो मेरे रहते आपको कोई नुकसान पहुॅचा सके। वरना वो तो कब का आपको समाप्त भी कर चुका होता।" मारिया ने कहने के साथ ही झुक कर पत्थर बने सोलेमान के होठों पर चूमा और फिर बोली__"फिक्र मत कीजिए सम्राट। अब वो समय बहुत जल्द आने वाला है जब आप फिर से जीवित हो जाएंगे। आप नहीं जानते नाथ कि आपसे प्यार करने के लिए मैं कितना तड़प रही हूॅ। पाॅच सौ वर्ष बीत गए, मगर इन पाॅच सौ वर्षों में ऐसा कोई दिन ऐसा कोई पल नहीं गया जब मैने आपकी याद में आॅसू न बहाये हों। आपकी आगोश मे फिर से समाने के लिए मेरा मन और मेरा ये जिस्म कितना ब्याकुल हो चुका है, आप इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते। आपके लिए इतनी मोहब्बत भला दूसरा कौन कर सकेगा इस दुनिया में?? हाॅ नाथ, ये मेरी मोहब्बत ही है जो दिन प्रतिदिन और भी बढ़ती जा रही है। कहीं ऐसा न हो कि मैं आपकी इस मोहब्बत में किसी दिन पागल हो जाऊॅ।" मारिया फूट फूट कर रो पड़ी। पत्थर बने सोलेमान के शरीर से लिपट गई वह। काफी देर तक यूॅ ही लिपटी वह रोती रही फिर वैसे ही लिपटे हुए उसने कहा__"नाथ, जब वो दिव्य बालक मुझे मिल जाएगा तब उससे मुझे आपके सामने ही संभोग करना पड़ेगा और उसी बालक के वीर्य को आपके इस पत्थर बने शरीर पर छिड़कना पड़ेगा। तभी आप इस पत्थर शरीर से जीवित हो पाएंगे। ये सब तो आप भी जानते हैं नाथ, लेकिन कैसे कर पाऊॅगी मैं ऐसा? किसी दूसरे पुरुस से संभोग करना कैसे मुमकिन होगा मेरे लिए? मेरा तन मन सब कुछ सिर्फ आपका है सम्राट। आपकी मुक्ति का ये कैसा अनुचित उपाय बताया था उस महर्षि ने? कैसे वो किसी पतिव्रता पत्नी को इस तरह किसी और से संभोग करने पर मजबूर कर सकते हैं नाथ? ये कैसा विधान है इन ऋषियों का?"

पत्थर बना सोलेमान भला मारिया की इन सब बातों या सवालों का क्या जवाब देता? लेकिन मारिया की ये बातें और उसका ये करुण विलाप कोई न कोई तो ज़रूर सुन रहा होगा। ईश्वर की बनाई इस सृष्टि में ऐसे भी प्राणी पैदा हो जाते हैं जो शैतान की योनि में होकर भी ऐसे महान बन जाते हैं। मारिया उन महान प्राणियों का एक उदाहरण थी। वो शैतान की योनि में थी लेकिन इस योनि में भी उसका मन उसकी आत्मा जैसे पवित्र थी।

"मुझे माफ़ करना नाथ।" मारिया गंभीरता से कह रही थी__"मुझे आपको फिर से जीवित करने के लिए ये कार्य करना ही पड़ेगा। लेकिन आप तो जानते हैं न कि मेरे मन मंदिर में सिर्फ आप ही हैं, दूसरा कोई नहीं। मुझे पता चल चुका है सम्राट कि वो बालक जल्द ही हिमालय से आ रहा है। इस लिए मैं उसे रास्ते में ही किसी तरह अपने बस में कर लूॅगी, और उसे यहाॅ ले आऊॅगी। आपको फिर से जीवित करने के लिए ये काम मैं ज़रूर करूॅगी नाथ, ये मेरा वचन है आपसे।"
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उधर सम्राट विराट ने उस बालक यानी राज को किसी भी कीमत पर हासिल करने के लिए बहुत कुछ किया हुआ था। उसने वैम्पायर्स की भारी सेना तैयार कर ली थी। इतना ही नहीं उसने इस सबके लिए उन शैतानों को भी शामिल कर लिया था जो खुद कभी उसके ही सबसे बड़े दुश्मन हुआ करते थे।

विराट ने समझौता कर इसमें वेयरवोल्फ के किंग अनंत को भी अपने साथ मिला लिया था। सम्राट अनंत ने शर्त रखी थी कि वो विराट की बेटी मेनका से अपने बेटे जयंत की शादी करेगा। विराट को अनंत की इस शर्त से कोई आपत्ति नहीं थी इस लिए उसने अनंत की शर्त को स्वीकार कर लिया था। अब दोनो की शक्तियाॅ मिल चुकी थी राज एण्ड पार्टी से भिड़ने के लिए। विराट को किसी भी सूरत में राज को हासिल करना था। अपने बच्चों को तो वह वैसे भी इस बात के लिए दण्ड देना चाहता था कि उन्होने उसको बिना बताए और अपनी मर्ज़ी से उस बालक यानी राज को उसकी शैतानी दुनिया से ले जाकर हिमालय पहुॅच गए थे।
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तो एक तरफ महेन्द्र और रंगनाथ माधवगढ़ के लिए रवाना हो गए थे। जहाॅ पर उन्हें अशोक की बेटी रानी को महाशैतान के लिए उठाना था। माधवगढ़ पहुॅच कर वो दोनो सबसे पहले घर गए। महेन्द्र सिंह के घर में पहुॅच कर उन लोगों ने देखा कि महेन्द्र सिंह की बेटी पूनम आई हुई थी। महेन्द्र सिंह अपनी बेटी को यहाॅ देख कर हैरान रह गया था। उसकी बेटी अब काफी जवान दिख रही थी।
ईश्वर की बनाई हुई खूबसूरत रचना थी वह। जिसकी सुंदरता में वो खुद कुछ पल के लिए सम्मोहित सा हो गया था।
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पूनम ड्राइंगरूम में रखे सोफे पर कानों में हेडफोन लगाए मोबाइल से गाने सुन रही थी। महेन्द्र सिंह पर नज़र पड़ते ही उसके हाव भाव बदल गए। वह तुरंत ही सोफे से उठ कर ऊपर अपने कमरे की तरफ तेज़ी से बढ़ गई।

अपनी बेटी को इस तरह उससे बिना कुछ बोले चले जाते देख महेन्द्र सिंह को झटका सा लगा। उसे इस बात की बड़ी तक़लीफ हुई कि उसकी बेटी ने उससे बात तक नहीं की और उसे देखते ही इस तरह ऊपर चली गई जैसे अगर वह यहाॅ पर रुकी रहती तो उसका बाप उसे नोंच कर खा जाता।

महेन्द्र सिंह कुछ कह न सका, जबकि उसके बगल से ही खड़ा रंगनाथ उसके कंधे पर सहानुभूति के अंदाज़ से अपना हाॅथ रख हल्का सा दबा दिया। दोनो पिछले एक हप्ते से कृत्या के पास थे। दोनो के चेहरों पर दाढ़ी मूॅछें बढ़ गई थी। हुलिया बड़ा ही अजीब सा हो गया था दोनो का। ऐसा जैसे किसी ने उन्हे गीले कपड़ों की तरह निचोड़ लिया था। बात भी सही थी, निचोड़ ही तो लिया था कृत्या ने उन्हें। शाम सुबह दोनो वक्त वो दोनो कृत्या की हवस को मिटाने की कोशिश करते थे। मगर कृत्या तो फिर कृत्या ही थी जिसमें हवस की आग इस तरह कूट कूट कर भरी हुई थी मानो हवस का अथाह सागर समाहित हो उसमे। जो कभी खत्म ही नहीं हो सकता था।

महेन्द्र और रंगनाथ दोनो ही अपने अपने कमरों की तरफ बढ़ गए। जहाॅ पर उन्हें अपना हुलिया दुरुस्त करना था। पूनम की बेरुखी ने महेन्द्र सिंह के दिल को ठेस ज़रूर पहुॅचाई थी किन्तु वह जानता था कि ये सब उसकी पत्नी मोहिनी और बेटा पूरन की वजह से ही हुआ था। उसका खुद का कोई दोष नहीं था किन्तु हाॅ इस सबमें ख़ामोश रहना ही जैसे उसका सबसे बड़ा गुनाह हो गया था।

पूनम गर्मियों की छुट्टियों में यहाॅ आई थी, वो भी अपने मामा जी के साथ। वह आना तो नहीं चाहती थी किन्तु मामा जी की वजह से उसे आना पड़ा था। उसने आज तक किसी को नहीं बताया था कि वह क्यों अपने माता पिता के पास नहीं रहना चाहती थी। वह हमेशा ही इस सवाल पर अपने होंठ सिल लेती थी।

अपना हुलिया सही करने के बाद महेन्द्र और रंगनाथ दोनो ही घर से निकल गए। ये बड़ी अजीब बात थी कि किसी ने उनसे कोई बात नहीं की थी। महेन्द्र का साला इस वक्त घर पर था नहीं और उसकी बीवी व बेटा कंपनी में थे। मोहिनी कभी कंपनी नहीं जाती थी किन्तु घर पर पूनम थी इस लिए वह अपने बेटे के साथ कंपनी चली गई थी। घर के नौकर चाकर से ज्यादा इन सबका मतलब नहीं होता था।

महेन्द्र और रंगनाथ दोनो ही अशोक के घर की तरफ जाने का विचार किया। मकसद वही था अशोक की बेटी को उठाना।
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अशोक जब अपने घर पहुॅचा तो पूरे घर को सुनसान पाया किन्तु अंदर कहीं से किसी के बोलने की कुछ आवाज़ें भी सुनाई दी उसे। शाम हो रही थी इस वक्त और इस वक्त घर के सभी नौकर अपना अपना काम कर रहे होते थे। किन्तु आज ऐसा नहीं था। बल्कि घर में कहीं किसी नौकर का नामों निशान तक न था। हलाकि अशोक के लिए ये कोई नई बात नहीं थी। वह जानता था कि ये सब उसकी पहली पत्नी रेखा की वजह से होता था। रेखा अपने बेटे की वजह से आज कल अर्धपागल अवस्था को पहुॅच चुकी थी। वह कब किसके साथ क्या कर दे कोई नहीं समझ सकता था। आज भी ऐसा ही हुआ था। अभी कुछ देर पहले ही रेखा ने बड़े ही अच्छे मूड में होने का सबूत दिया था। उसने ऐसा ज़ाहिर किया जैसे वह एकदम ठीक है। उसने घर के सभी नौकरों को कह दिया कि वो सब घर से कुछ ही दूरी पर बने सर्वेन्ट क्वार्टर पर अपने अपने कमरों में चले जाएं। आज वह घर का सारा काम खुद करेगी क्योंकि आज उसका वर्षों का खोया हुआ बेटा आ रहा है। इस लिए वह उसके स्वागत के लिए सब कुछ अपने हाॅथों से ही करेगी। रेखा की इस बात पर नौकर भला क्या कहते? उन्हें तो अशोक का शख़्त आदेश था कि रेखा की कोई भी बात टाली न जाए। इस लिए रेखा के ऐसा कहते ही सारे नौकर चाकर घर से चले गए थे। नौकरों को रेखा की हालत का बखूबी पता था किन्तु आज उन लोगों के लिए भी एक नई बात थी और वो ये थी कि रेखा ने आज पहली बार ये कहा था कि आज उसका बेटा आ रहा है। और जितने आत्मविश्वास तथा स्वाभाविक रूप से कहा था उससे ऐसा लग रहा था जैसे रेखा की बात एकदम सच ही हैं। पर अर्धपागल की किसी बात का भला क्या भरोसा? ये नौकर भी समझते थे इस लिए उन लोगों ने कहा कुछ नहीं और चुपचाप चले गए थे अपने अपने कमरों में।

नौकरों के जाते ही रेखा ने बड़ी खुशी से घर का सारा काम किया और एक से बढ़ कर एक पकवान बनाया। इतना सबकुछ उसने अकेले ही किया और बहुत ही कम समय में किया। उसके बाद वह अपने कमरे में पहुॅची और अपने कमरे को इस तरह सजाया जैसे उसका बेटा इसी कमरे में आकर रहेगा उसके पास।

ये सब करने के बाद रेखा ने खुद को भी अच्छी तरह किसी दुल्हन की तरह सजाया। उसके बाद वह फूलों से सजे बड़े से बेड पर जाकर बैठ गई। तकिये के नीचे से उसने फोटुओं का एक एलबम निकाला और उसे खोल कर अपने बेटे की उन तस्वीरों को देखने लगी जिनमें राज पैदा होने से लेकर पाॅच साल तक का था। राज की हर तस्वीर को वो बड़े प्यार से देखती उन्हें चूमती और फिर उन्हें अपने सीने से लगा लेती। उसकी आॅखों से आॅसू बहने लगते।

"अब जल्दी से आ जा मेरे बेटे।" रेखा भर्राए गले से कह रही थी__"अब तेरे बिना मुझसे एक पल भी जिया नहीं जाता। मैं तुझसे इतना प्यार करती हूॅ और तू.....तू अपनी माॅ को इतना सताता है, इतना रुलाता है? क्या तुझे अपनी इस दुखियारी माॅ पर थोड़ा सा भी तरस नहीं आता? इतना क्यों तड़पाता है मुझे? भला मैंने तेरा क्या बिगाड़ा है रे...जो तू मुझे हर पल इस तरह दुख देता रहता है? मैं तो तेरी माॅ हूॅ न...तेरा कुछ बिगाड़ने का मैं भला सोच भी कैसे सकती हूॅ? मैं तो तेरी तरफ आने वाली हर मुसीबत को अपने ऊपर ले लूॅ...तुझे किसी भी प्रकार की खरोंच तक न लगने दूॅ। फिर क्यों अपनी माॅ को इस तरह अपनी यादों से पल पल रुला रहा है?" रेखा ने कहने के साथ ही एक तस्वीर को देख उसे चूम लिया।

फिर उसने एलबम का एक पेज पलटा। उसकी निगाहें दूसरे पेज पर मौजूद राज की उस तस्वीर पर पड़ीं जिसमें राज बिलकुल छोटा सा था। एकदम नंगा था वह, और उसमें वह रो रहा था। ये देख कर जैसे तड़प उठी रेखा। उसने सीघ्र ही उस तस्वीर पर अपना हाथ फेरा।

"मत रो मेरे बेटे।" रेखा ने एलबम उठाकर उस तस्वीर को अपनी छलक आई आॅखों से देखकर किन्तु पुचकारते हुए कहा__"मत रो मेरे लाल, किसने रुलाया तुझे? बता मुझे, मैं उसकी टाॅगें तोड़ दूॅगी। चुप हो जा
बेटे...मत रो..मेरा राजा बेटा।"

रेखा इस तरह बर्ताव कर रही थी एलबम में अपने बेटे की तस्वीर को देख कर जैसे वह तस्वीर नहीं बल्कि सचमुच में ही उसका बेटा जीता जागता उसके सामने बैठा हो।

"तुझे पता है बेटे।" रेखा कह रही थी__"सब मुझे पागल समझते हैं। वो समझते हैं कि मैं तेरे लिए पागल हो गई हूॅ। लेकिन तू तो जानता है न मेरे लाल कि तेरी ये माॅ पागल नहीं है। बस तेरे विरह में मैं किसी से ज्यादा बात नहीं करती। क्योंकि दुनिया में अब कोई भी मुझे अच्छा नहीं लगता। मेरे लिए अब तेरे सिवा दूसरा कोई भी अपना नहीं रहा। तू मेरी जान है, तू मेरी धड़कन है, तू ही मेरा सब कुछ है। बस जल्दी से मेरे पास आ जा मेरे लाल। देख मैंने तेरे स्वागत के लिए क्या क्या इन्तजाम किया हुआ है? तेरे लिए तेरी ही पसंद का मैने हर इक पकवान अपने हाॅथों से बनाया है और अपने हाथों से तुझे खिलाऊॅगी भी। इस लिए जल्दी से आ जा बेटा.. नहीं तो सब कुछ ठंडा हो जाएगा।"

ये कहने के बाद रेखा तस्वीर में मौजूद राज को इस आशा से देखने लगी जैसे वह उसकी ये बात मान कर तुरंत ही तस्वीर से निकल कर बाहर आ जाएगा। काफी देर की प्रतीक्षा के बाद भी जब ऐसा कुछ न हुआ तो रेखा का हृदय जैसे फट पड़ा। उसकी आॅखों से झर झर करके आॅसू बहने लगे। फूट फूट कर रो पड़ी वह।

"क्यों करता है तू ऐसा?" फिर वह बुरी तरह बिफरी सी बोली__"क्यों मेरा कहा नहीं मानता तू? क्या कोई बेटा अपनी माॅ की आज्ञा का इस तरह उलंघन करता है? मैं तो हर दिन हर पल तुझे अच्छे संस्कार और शिष्टाचार सिखाती हूॅ न..फिर कैसे तू मेरे दिये हुए संस्कारों को भूल कर मेरी बात नहीं मान सकता..बता मुझे? आख़िर क्यों इतना सताता है मुझे? आज तुझे बताना ही पड़ेगा मेरे लाल। आज तुझे मेरी हर बात माननी ही पड़ेगी...वरना...वरना तू सोच भी नहीं सकता कि मैं क्या करूॅगी फिर??? आज तू हमेशा की तरह चुप नहीं रह सकता...तुझे बोलना पड़ेगा।"

अचानक ही रेखा का सिर भारी हो गया। उसकी आॅखों के सामने अॅधेरा सा छाने लगा। उसने दोनो हाॅथों से अपने सिर को थाम लिया और लहरा कर वहीं बेड पर गिर पड़ी। तभी कमरे में धुएॅ का गुबार सा फैलने लगा और देखते ही देखते उस धुएं ने एक मानव आकृति का रूप ले लिया।

अभी उस धुएॅ की मानव आकृति ने बेड की तरफ बढ़ना ही चाहा था कि बाहर से किसी के आने की आहट से वह रुक गया। उसने खुद को छिपाने के लिए जल्दी से बेड के नीचे धुएॅ के रूप में ही समा गया। बाहर से आने वाली आहट कमरे के दरवाजे पर आकर रुक गई।

दरवाजे पर दो ब्यक्ति आकर खड़े हो गए। ये दोनो कोई और नहीं बल्कि महेन्द्र सिंह और रंगनाथ ही थे। दोनो ही कमरे के दरवाजे पर आकर कमरे के अंदर की तरफ बेड पर गिरी पड़ी रेखा को देखने लगे थे। रेखा की खूबसूरती और उसके गदराए हुए मादक से जिस्म पर नज़र पड़ते ही दोनों की आॅखों में वासना और हवस के कीड़े कुलबुला उठे। दोनो पिछले एक हप्ते से दोनो टाइम कृत्या के साथ हवस का नंगा नाच करते आ रहे थे, इस लिए रेखा जैसी हुस्न की देवी को देख दोनो ही इस अवस्था में आ गए थे।

दरअसल महेन्द्र व रंगनाथ रानी को उठाने के लिए अपने घर से सीधा अशोक के घर ही आए थे। यहाॅ पहुॅच कर उन्होंने देखा कि घर का मुख्य द्वार अंदर से बंद नहीं है। इस लिए मुख्य द्वार के बाहर ही लगी बेल को बजाए बिना ही घर के अंदर आ गए थे। अंदर आ कर दोनो ने देखा कि उनकी आशा के विपरीत इस वक्त घर में कहीं कोई नौकर चाकर मौजूद नहीं है। ये देख दोनो खुश हो गए थे। उन्हें लगा जिस काम के लिए वो दोनो यहाॅ आए थे वो अब बिना किसी विघ्न बाधा के ही हो जाएगा। इस लिए वो अब रानी की तलाश में लग गए थे लेकिन किसी भी कमरे में जब दोनो ने रानी को न पाया तो खोजते खोजते रेखा के कमरे में आ गए। इस कमरे में आकर दोनो ने बेड पर जब रेखा को इस तरह बेसुध सी पड़ी देखा तो दोनो ही अपने असल मकसद को भूल कर रेखा के रूप जाल में खो से गए।

दोनो इस तरह कमरे के अंदर दाखिल होकर बेड की तरफ बढ़े जैसे दोनो पर अचानक ही किसी सम्मोहन का असर हो गया हो। बेड के करीब पहुॅच कर दोनो ही रेखा के मादकता से भरे हुए जिस्म को खा जाने वाली नज़रों से घूरने लगे।

कुछ पल इसी तरह घूरने के बाद दोनो ने बेड पर बेसुध पड़ी रेखा पर जैसे ही अपना अपना हाॅथ बढ़ाया तो उसी वक्त जैसे एकदम से कयामत सी आ गई। पल भर में दोनो के जिस्म हवा में लहराते हुए कमरे के दरवाजे पर गुड़ीमुड़ी होकर धड़ाम से गिरे। किसी अज्ञात शक्ति ने बड़ा ज़ोर का झटका दिया था उन्हें।

महेन्द्र और रंगनाथ के हलक से घुटी घुटी सी चीख निकल गई। दोनो बड़ी ही सीघ्रता से उठे। दिलो दिमाग़ में जैसे झनाका सा हुआ। दोनो को अपने आदमियों की वो बातें याद आ गईं जब उनके आदमी इसके पहले रानी को उठाने आए थे और किसी भूत ने उनके आदमियों को भी इसी तरह पटका था।

महेन्द्र और रंगनाथ ये जानकर बुरी तरह घबरा गए कि उनके साथ भी वही हुआ है लेकिन फिर तुरंत सम्हल भी गए वो। दोनो ने कमरे के अंदर बड़ी बारीकी से देखा। तभी बेड के पास उन्हें काले धुएॅ की मानव आकृति खड़ी नज़र आई। ये देख दोनो ही उछल पड़े। वो मानव आकृति अब उनकी तरफ ही बढ़ती चली आ रही थी।

महेन्द्र और रंगनाथ एकदम से सतर्क हो गए। दोनो महान जादूगरनी और काली शक्तियों वाली कृत्या के शिष्य थे। कृत्या ने अब तक उन्हें कई काली शक्तियों से निपुड़ कर दिया था। इस लिए वो दोनो ही अब उस धुए की मानव आकृति से निपटने के लिए तैयार हो गए थे।

महेन्द्र ने सीघ्र ही मुख से कुछ बुदबुदाते हुए अपने दाहिने हाथ को मानव आकृति की तरफ किया। नतीजतन उसके हाथ से एक आग का गोला निकल कर मानव आकृति की तरफ तेज़ी से बढ़ा। जबकि उसके जवाब में मानव आकृति ने भी अपने हाथ को महेन्द्र की तरफ कर दिया। नतीजतन उसके हाथ से पानी का एक गोला निकल कर महेन्द्र द्वारा फेके गए आग के गोले की तरफ तेज़ी से बढ़ गया। कुछ ही पलों में दोनो गोले आपस में टकराए और नस्ट हो गए।

इससे पहले कि महेन्द्र व रंगनाथ कुछ और करते धुएॅ की मानव आकृति ने अपने दोनो हाथों को उनकी तरफ किया। जिससे एक तेज़ बिजली निकल कर उन दोनो के जिस्मों से टकराई और दोनो ही चीखते हुए दरवाजे के उस पार कहीं दूर जा कर गिरे। मानव आकृति तेज़ी से कमरे के बाहर की तरफ बढ़ी। बाहर आकर वह उस जगह पर कुछ दूर ही रुकी जहाॅ पर महेन्द्र और रंगनाथ गिरे पड़े कराह रहे थे।

दोनो तेज़ी से फर्स पर से फिर उठे। अपने सामने वही धुएॅ की मानव आकृति को देख इस बार दोनो ने एक साथ उस पर अपनी काली शक्ति से हमला किया। जवाब में मानव आकृति ने भी हमला किया। काफी देर तक यही चलता रहा। महेन्द्र और रंगनाथ उस मानव आकृति का कुछ नहीं बिगाड़ पा रहे थे। कुछ ही देर में दोनो ही असहाय अवस्था में आ गए। चेहरों पर परेशानी व घबराहट साफ नज़र आने लगी थी।

"कौन तुम?" आख़िर महेन्द्र ने उस मानव आकृति से पूछ ही लिया__"और यहाॅ किस लिए हमसे टकरा कर इन लोगों की रक्षा कर रहे हो?"
"क्यों तुम्हारी उस गुरू ने नहीं बताया?" मानव आकृति के मुख से बहुत ही भयानक आवाज़ निकली थी__"जिसके पास तुम दोनो काली शक्तियाॅ अर्जित करने गए थे?"

"तु..तुम ये सब कैसे जानते हो?" रंगनाथ ने चौंकते हुए पूछा__"और...और कौन हो तुम?"
"मैं सबकुछ जानता हूॅ तुम दोनो के बारे में।" उस मानव आकृति ने कहा__"और तुम्हारी गुरू उस कृत्या के बारे में भी। तुम दोनो जिस रास्ते पर चल पड़े हो उस रास्ते से अपने कदम वापस कर लो और सत्य की राह पर चलो। क्योंकि इसी में तुम दोनो का कल्याण है। अन्यथा तुम दोनो का अंत हो जाना निश्चित है।"

"तुम हमें धमका रहे हो?" महेन्द्र ने सहसा आवेशयुक्त स्वर में कहा__"तुम शायद जानते नहीं कि हमारी गुरू कृत्या में कितनी शक्तियाॅ हैं। इस लिए अगर अपना भला चाहते हो तो हमारे रास्ते से हट जाओ वर्ना अंजाम अच्छा नहीं होगा।"

"हाहाहाहाहा।" धुएॅ की उस मानव आकृति ने हॅसते हुए कहा__"तुम तो अपनी गुरू का इस तरह गुणगान कर रहे हो जैसे तुम्हारी गुरू कृत्या कोई देवी है जिसे कोई मार ही नहीं सकता। अरे मूर्खो इस धरती पर पैदा होने वाले हर चर अचर जीव की नियति एक न एक दिन इस संसार से मिट जाना ही होती है। तुम्हारी गुरू कृत्या, तुम दोनो और मैं भी यहाॅ तक कि हर कोई एक दिन इस दुनिया से मिट जाएगा।"

"तुम हमें साधु संतों जैसा प्रवचन सुना रहे हो लेकिन हमें तुम्हारे इस प्रवचन से कोई लेना देना नहीं है समझे?" रंगनाथ ने कहा__"अपनी भलाई चाहते हो तो हमारे रास्ते से हट जाओ और हमें हमारा काम करने दो।"

"तुम जिस काम को करने यहाॅ आए हो उस काम में तुम कभी सफल नहीं हो सकते।" मानव आकृति ने कहा__"क्यों कि तुम उस लड़की को हाथ भी नहीं लगा सकते। अगर हाथ लगाने की कोशिश करोगे तो जल कर खाक़ में मिल जाओगे। लेकिन उससे पहले तो तुम दोनो को मुझसे सामना करना पड़ेगा तभी इस घर के सदस्यों तक पहुॅच पाओगे।"

"लेकिन तुम हो कौन?" महेन्द्र ने कहा__"और इस घर के सदस्यों से तुम्हारा क्या वास्ता है?"
"इस बात का पता बहुत जल्द ही तुम्हें चल जाएगा।" मानव आकृति ने कहा__"अब जाओ यहाॅ से। ये तुम्हारे लिए सत्य की राह पर चलने का आख़िरी अवसर है, इसके बाद भी अगर तुम दोनो ने इस घर के सदस्यों की तरफ बुरी नीयत से देखा तो तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।"

महेन्द्र सिंह को लगा इससे बहस करने का कोई मतलब नहीं है। दूसरी बात वो दोनो समझ भी चुके थे कि इससे टकराना अभी उनके बस का नहीं है। अभी वो इतने सक्षम नहीं हुए थे कि वो इस जैसे किसी रहस्यमय इंसान का मुकाबला कर सकें। ये सोच कर उन दोनो ने यहाॅ से चुपचाप निकल जाना ही बेहतर समझा।

दोनो चुपचाप वहाॅ से निकल गए जबकि धुएं की मानव आकृति भी देखते ही देखते अपने स्थान से गायब हो गई। इन सबके जाते ही वहीं एक कोने में दीवार के उस पार छुपा अशोक सामने आ गया। उसके चेहरे पर बारह क्या बल्कि पूरे के पूरे चौबीस बजे हुए थे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा था उसकी आॅखों के सामने?? महेन्द्र और रंगनाथ को तो वह अच्छी तरह पहचान गया था किन्तु वह यह देखकर चकित था कि वो दोनो ऐसी शक्तियाॅ जानते थे और उसका प्रयोग भी उस मानव आकृति पर कर रहे थे। ये अलग बात है कि वो दोनो उस मानव आकृति से पार नहीं पा रहे थे। अशोक तो उस मानव आकृति को देख कर आश्चर्यचकित था और सोच रहा था कि ये क्या बला है? उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि ये सब किस लिए हो रहा था? दिलो दिमाग़ कुंद सा पड़ गया था उसका।
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अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,
आप सबकी प्रतिक्रिया का इन्तज़ार रहेगा,,,,,,

अब यहाॅ से जंग शुरू होगी दोस्तो,,,,
लगता है ये गुरुजी की ही कोई माया है राज के परिवार को सुरक्षित करने के लिए। जबरदस्त अपडेट।
 

Lib am

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राज-रानी (बदलते रिश्ते)
""अपडेट"" ( 11 )


अब तक,,,,,,,,

"तुम जिस काम को करने यहाॅ आए हो उस काम में तुम कभी सफल नहीं हो सकते।" मानव आकृति ने कहा__"क्यों कि तुम उस लड़की को हाथ भी नहीं लगा सकते। अगर हाथ लगाने की कोशिश करोगे तो जल कर खाक़ में मिल जाओगे। लेकिन उससे पहले तो तुम दोनो को मुझसे सामना करना पड़ेगा तभी इस घर के सदस्यों तक पहुॅच पाओगे।"

"लेकिन तुम हो कौन?" महेन्द्र ने कहा__"और इस घर के सदस्यों से तुम्हारा क्या वास्ता है?"
"इस बात का पता बहुत जल्द ही तुम्हें चल जाएगा।" मानव आकृति ने कहा__"अब जाओ यहाॅ से। ये तुम्हारे लिए सत्य की राह पर चलने का आख़िरी अवसर है, इसके बाद भी अगर तुम दोनो ने इस घर के सदस्यों की तरफ बुरी नीयत से देखा तो तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।"

महेन्द्र सिंह को लगा इससे बहस करने का कोई मतलब नहीं है। दूसरी बात वो दोनो समझ भी चुके थे कि इससे टकराना अभी उनके बस का नहीं है। अभी वो इतने सक्षम नहीं हुए थे कि वो इस जैसे किसी रहस्यमय इंसान का मुकाबला कर सकें। ये सोच कर उन दोनो ने यहाॅ से चुपचाप निकल जाना ही बेहतर समझा।

दोनो चुपचाप वहाॅ से निकल गए जबकि धुएं की मानव आकृति भी देखते ही देखते अपने स्थान से गायब हो गई। इन सबके जाते ही वहीं एक कोने में दीवार के उस पार छुपा अशोक सामने आ गया। उसके चेहरे पर बारह क्या बल्कि पूरे के पूरे चौबीस बजे हुए थे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा था उसकी आॅखों के सामने?? महेन्द्र और रंगनाथ को तो वह अच्छी तरह पहचान गया था किन्तु वह यह देखकर चकित था कि वो दोनो ऐसी शक्तियाॅ जानते थे और उसका प्रयोग भी उस मानव आकृति पर कर रहे थे। ये अलग बात है कि वो दोनो उस मानव आकृति से पार नहीं पा रहे थे। अशोक तो उस मानव आकृति को देख कर आश्चर्यचकित था और सोच रहा था कि ये क्या बला है? उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि ये सब किस लिए हो रहा था? दिलो दिमाग़ कुंद सा पड़ गया था उसका।
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अब आगे,,,,,,,,

आज अमावश्या थी। आज की रात हर कोई अपना अपना खेल खेलने को जैसे पूरी तरह से तैयार था। एक तरफ जहाॅ महेन्द्र सिंह व रंगनाथ दोनो मिलकर किसी भी तरह से आसुरी शक्तियों को पाने के लिए आज अमावश्या की रात किसी ऐसी कन्या को महाशैतान के सुपुर्द करने की कोशिश में लगे थे जो या तो अमावश्या को जन्मी हो या फिर पूर्णिमा को। इसके लिए वो किसी भी हद तक जा सकते थे। तो वहीं दूसरी तरफ शैतानों की दुनियाॅ में एक पतिव्रता औरत अपने पति को पुनः जीवित करने के लिए राज जैसे दिव्य बालक के साथ वो सब कुछ करने को तैयार थी जो काम करने के लिए आम हालात में कोई भी पतिव्रता स्त्री सोच भी नहीं सकती थी। किन्तु ये भी कदाचित् अपने पति के लिए उसका अगाध प्रेम ही था।

एक तरफ जहाॅ शैतानों का वर्तमान सम्राट विराट अपनी अभिलाषाओं व महत्वाकांक्षाओं की पूर्ती के लिए अपने कट्टर शत्रु वेयरवोल्फ जैसे शातानों से समझौता व मित्रता कर राज जैसे उस दिव्य व ईश्वरी शक्ति रखने वाले बालक से जंग करने को तैयार था जिसको हासिल कर लेने से वह संपूर्ण पृथ्वी पर सिर्फ वैम्पायर्स की ही सत्ता कायम कर सकता था। तो वहीं दूसरी तरफ एक माॅ व एक बहन का निश्छल प्रेम था जिसका करुण क्रंदन देवताओं का ही बस क्यों बल्कि ईश्वर का भी हृदय विदीर्ण कर सकता था। एक अपने बेटे के विरह में आज तेरह सालों से तड़प रही थी तथा अपने बेटे के लिए पागल सी हो गई थी। तो वहीं एक बहन थी जो वर्षों से अपने ही भाई की प्रेम दीवानी बन बैठी थी। ईश्वर ही जाने किसके भाग्य में क्या लिखा था लेकिन ये तो कदाचित् सभी जानते हैं कि अंततः जीत सत्य व प्रेम की ही होती है। मगर इस जीत के पहले क्या क्या घटित हो जाएगा इसका फैसला वक्त के सिवा कौन कर सकता था?

इसमें कोई शक़ नहीं और ना ही ये कोई मामूली बातें थी किन्तु आज जो कुछ भी होने जा रहा था, उस सबको देखने के लिए आकाश में कहीं देवता भी उपस्थित हो चुके होंगे।
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महेन्द्र और रंगनाथ उस मानव आकृति से परास्त होकर खाली हाॅथ वापस घर आ गए थे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि अपने कार्य की सिद्धि के लिए वह अब क्या करें? वो दोनो इस बात से तो हैरान थे ही कि अशोक के घर में धुएॅ की वो मानव आकृति क्यों और कहाॅ से आई थी लेकिन वो इस बात से भी हैरान थे कि अशोक की बेटी उन्हें हर कमरे में ढूॅढ़ने पर भी नहीं मिली थी। तो आख़िर वह गई कहाॅ? अगर वह नहीं मिली और उनके हाथ नहीं लगी तो भला वो कैसे अपने कार्य को पूरा कर सकेंगे? उनके दिमाग़ में उस मानव आकृति की वो बातें भी गूॅज रही थी कि इस घर के किसी भी सदस्य को गलत नीयत से छूना भी नहीं वरना अच्छा नहीं होगा। महेन्द्र व रंगनाथ इस बात से भयभीत भी हो गए थे। अब अगर उन्हें अशोक की बेटी रानी मिल भी जाती तो कदाचित् वो उसे हाथ भी न लगाते। तो फिर कैसे वो अपने कार्य को पूरा कर सकेंगे????

एकाएक ही महेन्द्र सिंह के दिमाग़ की बत्ती जल उठी। उसका हतास हो चुका चेहरा अचानक ही मारे खुशी के चमकने लगा था। रंगनाथ उसी को देख रहा था। अपने मित्र को यूॅ अचानक खुश होते देख उससे रहा न गया।

"क्या बात है महेन्द्र?" रंगनाथ ने चौंकते हुए कहा__"तुम अचानक इस तरह खुश क्यों हो गए? आख़िर किस बात की खुशी हो गई है तुम्हें यूॅ अचानक? जबकि हम इस वक्त गहन परेशानी में हैं। हमें समझ नहीं आ रहा कि कैसे हम अपने कार्य को पूरा करें? आज अमावश्या है और हमें जल्द से जल्द अमावश्या या पूनम को जन्मी किसी कुवारी कन्या का प्रबंध करना होगा। वरना हम वो हासिल नहीं कर सकेंगे महेन्द्र जिसके लिए हमने इतना कुछ कर डाला है।"

"चिन्ता क्यों करते हो यार?" महेन्द्र सिंह ने उसके कंधे को थपथपा कर कहा__"रानी नहीं मिलेगी तो क्या हुआ, मेरी अपनी बेटी तो है ना? देखो न.... कैसा संजोग है? मेरी जो बेटी अपने ननिहाल से कभी अपने माॅ बाप के पास नहीं आती थी, आज वह यहीं है। अपने माॅ बाप के घर में। ज़रा सोचो रंगनाथ, ऐसा क्यों हुआ? इसका मतलब कि ऊपर वाला हमारे साथ है। उसने हमारी इसी इच्छा की पूर्ति के लिए मेरी बेटी को यहाॅ भेजा है। ताकि हम उसे आसानी से ले जा सकें और महाशैतान को सुपुर्द कर सकें।"

"लेकिन महेन्द्र वो तुम्हारी बेटी है यार।" रंगनाथ ने कहा__"इस काम के लिए तुम भला कैसे अपनी ही बेटी की बलि दे सकते हो? क्या तुम्हारे दिल में अपनी बेटी के लिए ज़रा सा भी प्यार व स्नेह नही?"

"अरे तुम कौन सी बेटी की बात कर रहो हो रंगनाथ?" महेन्द्र सिंह मानो फट पड़ा था, बोला__"क्या उस बेटी की, जिसने मुझसे बात तक नहीं की? अरे बात करने की तो बात दूर उसने तो मेरी तरफ देखना भी गवारा नहीं किया। आज इतने बरस बीत गए, उसने कभी ये भी जानने की कोशिश नहीं की कि उसके माॅ बाप व भाई किस हाल में हैं? माॅ भाई का तो छोंड़ो रंगनाथ, उसने तो अपने बाप तक से बैर बना कर रखा है। उस बाप से जिसका कहीं कोई कसूर ही नहीं है। मैं तो खुद ही आज बरसों से इस बात से हर पल जल रहा हूॅ कि जिस बीवी को ऊम्र भर मैने दिलो जान से प्यार किया उसने अपने ही बेटे को अपना पति मान लिया और अपनी हवस को प्यार का नाम देकर दिन रात उसके साथ अपना मुह काला करती रही। कोई मेरे अंदर झाॅक कर देखे रंगनाथ....यहाॅ सिर्फ आग और नफ़रत के कुछ नहीं मिलेगा किसी को। ये आग और ये नफ़रत मेरे अपनों ने ही मुझे तोहफे में दी है। ये मेरे अंदर तब तक रहेगी मेरे यार जब तक मेरी साॅसें चलेंगी। एक हवस के लिए अपने ही बेटे की रंडी बन गई और एक अपने जिस्म को इन हवस के कीड़ों से बचाने के लिए हम सबसे नाता तोड़ लिया। रह गया मैं....मेरे हिस्से में क्या आया? बताओ रंगनाथ....मुझे क्या मिला? अरे नफ़रत की आग में जलने के लिए मुझे अकेला छोंड़ दिया सबने। इधर उधर मुह मारते हुए कुत्ते जैसी हालत कर दी गई है मेरी"

महेन्द्र सिंह भावना के आवेश में जैसे बहता चला गया था। उसे खुद नहीं पता था कि दिल में उमड़ते तूफान के कारण वह क्या क्या कहे चला जा रहा था। रंगनाथ को आज पहली बार पता चला कि उसका दोस्त अंदर से कितना दुखी है। उसने सहानुभूति से उसके कंधे पर हाथ रख हल्के से दबाया।

"दुखी मत हो मित्र।" फिर उसने कहा__"ये संसार सागर है, यहाॅ हर तरह के प्राणी पाए जाते हैं तथा हर तरह के लोग होते हैं जिन्हें नाना प्रकार के सुख व दुख मिलते हैं। ख़ैर छोड़ो इस बात को, ये बताओ कि अब क्या करना है?"

"करना क्या है।" महेन्द्र ने पत्थर जैसे कठोर स्वर में कहा__"फैसला हो चुका है मित्र। अशोक की बेटी नहीं मिली तो क्या हुआ मेरी बेटी पूनम ही सही। हम आज रात उसे ही उठा कर ले जाएॅगे। जिस बेटी के दिल में अपने पिता के लिए ऐसी सोच व भावना है उसका ऐसे काम के द्वारा चले जाना ही बेहतर है। मेरे अंदर ऐसे किसी रिश्ते के लिए अब कोई मोह नहीं रह गया जो मुझे अपना ही ना समझता हो।"

"अगर तुमने ये सोच ही लिया है तो फिर ऐसा ही करेंगे महेन्द्र।" रंगनाथ ने कहा__"किन्तु ये सब हम करेंगे कैसे?"
"मैने सब इन्तजाम किया हुआ है।" महेन्द्र ने कहा__"सबके सो जाने के बाद हम चुपके से पूनम के कमरे में दाखिल होंगे। उसके बाद उसे क्लोरोफाॅम सुॅघा कर बेहोश कर देंगे। उस हालत में उसे यहाॅ से ले जाने में कोई परेशानी नहीं होगी हमें।"

"और अगर पूनम ने कमरे के दरवाजे को अंदर से लाॅक किया हुआ होगा तो?" रंगनाथ ने कहा__"दूसरी बात तुम्हारा साला भी तो है, अगर वह उस समय जग रहा होगा तो दिक्कत हो जाएगी। और सबसे महत्वपूर्ण बात, बाहर द्वार पर लगे हुए हमारे आदमियों का क्या? उनके सामने से भला हम कैसे पूनम को उस तरह ले जाएॅगे?"

"वो सब मेरे आदमी हैं मित्र।" महेन्द्र सिंह ने कहा__"वो इस सब को देखेंगे ज़रूर लेकिन अपनी ज़बान नहीं खोलेंगे किसी के सामने। रही बात पूनम के कमरे की तो इस घर के सभी कमरों की एक एक चाभी मेरे पास है।"

"चलो ये तो ठीक है लेकिन सुबह जब सबको पता चलेगा खासकर तुम्हारे साले को तो क्या होगा?" रंगनाथ ने कहा__"पूनम के साथ साथ जब वह हम दोनों को भी यहाॅ से गायब पाएगा तो हज़ारों सवाल खड़े हो जाएंगे सबके मन में। तुम्हारी खुद की बीवी और तुम्हारा बेटा खुद सवाल खड़े कर सकते हैं। माॅ आख़िर माॅ होती है, अगर मोहिनी भाभी को ये पता चल गया कि उनकी बेटी को उनके पति यानी बाप ने ही गायब कर दिया है तो सोचो क्या होगा?"

"एक काम करते हैं।" महेन्द्र ने कुछ सोचते हुए कहा__"पूनम के साथ साथ हम साले को भी बेहोश करके उठा लेते हैं।"
"उससे क्या होगा?" रंगनाथ ने कहा__"इस से तो हमारे लिए समस्या ही हो जाएगी। हमें दो दो लोगों का बोझ उठाना पड़ जाएगा।"

"मेरा प्लान ये है कि पूनम के साथ साथ जब उसका मामा भी गायब हो जाएगा तो पूनम के गायब करने का शक़ मामा पर ही जाएगा।" महेन्द्र ने कहा__"क्योंकि कोई भी ब्यक्ति ये शक़ नहीं करेगा कि एक बाप ने अपनी बेटी को गायब किया बल्कि इस बात पर ज्यादा शक़ करेंगे कि मामा ने ही अपनी भाॅजी को गायब किया है। दूसरी बात, इस सबके बाद जब हम वापस आएॅगे और हमें यहाॅ इन सबके द्वारा इस सबका पता चलेगा तो हम खुद भी पूनम के मामा पर ही इसका आरोप लगाएॅगे। यहाॅ तक कि पुलिस केस भी करेंगे। और सबसे महत्वपूर्ण बात किसी के पास कोई सबूत तो होगा नहीं कि ये सब हमने किया है। हमारा पक्ष ज्यादा मजबूत रहेगा मित्र, इस लिए फिक्र की कोई बात नहीं है।"

"ठीक है फिर।" रंगनाथ ने कहा__"हम ऐसा ही करते हैं।"
"बिलकुल मित्र।" महेन्द्र ने सहसा कठोरता से कहा__"अपने बाप के लिए बेटी और साले को अपना बलिदान देना ही चाहिए।"
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उधर शैतानों के सम्राट ने अपने नये मित्र वेयरवोल्फ किंग यानी अनंत के साथ अपनी अपनी सेना के साथ मोर्चा सम्हाल लिया था। विराट ने नील के माध्यम से उस महापंडित को बुला लिया था। उससे पूछा गया था कि वो बालक उसके बच्चों के साथ कब और किस रास्ते से आएगा? महापंडित ने रास्ते और समय की जानकारी दे दी थी विराट को। अतः विराट ने अनंत के साथ अपनी अपनी सेना को उन रास्तों पर इस तरह लगा कर मोर्चा सम्हाला हुआ था कि आम सूरत में इस सबका किसी को आभास तक न हो सके कि उनके आस पास कोई मौजूद है।

आज क्योंकि अमावश्या थी इस लिए शाम ढलते ही रात का अॅधेरा गहराने लगा था। इस अॅधेरे में किसी आम इंसान को कुछ दिख भी नहीं सकता था कि यहाॅ पर आज कैसे कैसे शैतानों ने अपना डेरा जमाया हुआ है? ख़ैर ये तो शैतान थे, इनके लिए तो अॅधेरा ही सबकुछ होता है।

"महाराज विराट आप अपनी बात से मुकर मत जाइयेगा।" शिविर के अंदर पत्थर के ऊॅचे आसन पर बैठे वेयरवोल्फ किंग अनंत ने कहा था__"आपने वचन दिया है कि उस बालक के मिल जाने पर आप अपनी बेटी मेनका की शादी मेरे बेटे जयंत से करेंगे।"

"मुझे आपकी शर्त और अपना वचन अच्छी तरह याद है सम्राट अनंत।" विराट ने प्रभावशाली लहजे में कहा__"आप बिलकुल भी फिक्र न करें और ना ही आप मुझ पर किसी तरह का संदेह करें। हमारी ये मित्रता हमारे बच्चों की शादी के बाद एक अटूट रिश्ते में बदल जाएगी। आप मेरी इस बात का यकीन करें।"

"मुझे आप पर यकीन है महाराज।" अनंत ने कहा__"इसी लिए तो आज हम एक दूसरे के साथ हैं। बस एक बार वो बालक और आपके वो बच्चे हमारे हाॅथ लग जाएॅ।"

"ज़रूर हाॅथ लेगेंगे सम्राट अनंत।" विराट ने कहा__"हमने इतना पुख़्ता इन्जाम कर रखा है कि उनमे से कोई भी हमसे बच कर कहीं जा ही नहीं सकेगा।"

"बिलकुल ऐसा ही होगा महाराज।" अनंत ने कहा__"अब हमें भी यहाॅ से मैदान ए जंग की तरफ चलना चाहिए।"
"जी आपने बिलकुल ठीक कहा।" विराट ने अपने आसन से उठते हुए कहा__"चलिए चलते हैं।"

इसके बाद दोनो साथ ही शिविर के बाहर की तरफ निकल गए। यहाॅ पर एक विशेष बात ये थी कि कहीं पर भी रोशनी के लिए कोई मशाल वगैरह नहीं जलाया गया था, कदाचित् इस लिए कि मशाल की रोशनी से उजाला होता जिसके कारण किसी को भी पता हो सकता था कि यहाॅ पर कुछ लोग मौजूद हैं।
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उधर शैतानों के पहले किंग सोलेमान की पत्नी मारिया अपने पत्थर बने पति के पास कुछ विशेष तैयारियाॅ कर रही थी। आज वह बेहद खुश नज़र आ रही थी। जिस जगह सोलेमान को संदूख में रखा गया था उस जगह को आज सजाया गया था। सोलेमान और मारिया के विशाल और भव्य शयन कक्ष को आज बड़े ही बेहतरीन तरीके से मारिया ने खुद अपने हाथों से सजाया था। वह चाहती थी कि जब उसके पति सोलेमान जीवित होकर उठें तो वह उन्हें बड़े प्यार व सम्मान के साथ इस शयन कक्ष में लाए और खुद नई नवेली दुल्हन बन कर अपने आपको को सोलेमान की बाहों में सौंप दे।

बड़ी अजीब और सोचने वाली बात थी कि जहाॅ बाॅकी सब उस बालक यानी राज को हाॅसिल करने के लिए मैदान ए जंग में पहुॅच चुके थे वहीं मारिया अभी राजमहल में ही इन सबकी तैयारियों में लगी हुई थी। उसके सुंदर चेहरे पर आज एक अलग ही नूर था। एक अलग ही आत्मविश्वास था अपने पति को पुनः जीवित पा लेने का।

ये मारिया का पागलपन था या अपने पति के प्रति उसका अगाध प्रेम। एक ऐसा प्रेम जिसमें आज वह बावली सी नज़र आ रही थी। उसे इस बात का ख़याल तक न था कि अपने पति को पुनः जीवित करने के लिए उसे उस बालक(राज) को पहले हासिल करना होगा, उसके बाद उसे यहाॅ अपने पति के सामने लाकर उस बालक के साथ निर्वस्त्र होकर संभोग करना होगा। तत्पश्चात् उस बालक के वीर्य को अपने पति के पत्थर बने शरीर पर छिड़कना होगा। ये तभी संभव हो सकता था जब वह राज को पाने के लिए इस राजमहल से बाहर निकलती। दूसरी महत्वपूर्ण बात, वह राज को कैसे इस बात के लिए तैयार कर लेती कि वह उसके साथ संभोग करे और उसे अपना वीर्य दे ताकि वह उसके वीर्य को अपने पति के ऊपर छिड़क कर उसे पत्थर से पुनः सजीव कर सके?

मारिया की मानसिक अवस्था और उसकी गतिविधियों को देखकर तो ऐसा ही लगता था जैसे उसे इस सबकी कोई चिन्ता ही न हो। जैसे ये सब उसके लिए उसी तरह सहज व सरल था जैसे सामने रखी थाली से भोजन को निवाला बना बना कर खा जाना।

सारी तैयारियाॅ संपन्न कर लेने के बाद मारिया अपने पति के पास आ गई। नीचे फर्स पर एक बड़ा सा गोला बनाया था उसने। ऐसा लगता था जैसे लोग तंत्र मंत्र के लिए ज़मीन पर कोई गोल चक्र जैसा बनाते हैं। मारिया उस गोल चक्र के सामने आसन जमा कर बैठ गई। चक्र के प्रत्येक खानों में कुछ चीज़ें रखी हुई थी, तथा बीचो बीच काले रंग का कोई पत्थर सा रखा हुआ था। जिस पर कोई आकृति बनी हुई थी।

मारिया उस चक्र के पास ध्यानावस्था में बैठ गई। कुछ ही देर में उसके माथे के पास एक तेज़ रोशनी जैसा प्रकाश उत्पन्न हुआ जो उसके माथे के पास ही गोल गोल घूम रहा था। लगभग दो मिनट बाद मारिया के माथे के पास गोल गोल घूमता वो प्रकाश मारिया के माथे पर ही विलीन हो गया। इसके साथ ही मारिया ने अपनी आॅखें खोल दी।

मारिया के चेहरे पर एक चमक आ गई थी तथा होठों पर एक रहस्यमयी मुस्कान फैल गई थी। उसने तुरंत ही उठ कर पत्थर बने अपने पति की तरफ देखा और फिर मुस्कुराते हुए ही कहा__"मेरे सरताज! बहुत जल्द आप फिर से जीवित हो जाएॅगे। उसके बाद फिर से हमारा प्रेम मिलन होगा। लेकिन उसके लिए आप अभी कुछ समय तक इन्तज़ार कीजिए। मुझे यहाॅ से अब जल्द ही जाना होगा। मैं इस राजमहल को सुरक्षा कवच पहना कर जा रही हूॅ। मेरा इन्तज़ार कीजिएगा।"

ये कह कर मारिया ने सोलेमान के होठों को चूमा उसके बाद राजमहल के बाहर की तरफ बढ़ गई। बाहर आकर उसने अपने हाथों को हवा में फैलाया और राजमहल की तरफ झटक दिया। परिणामस्वरूप उसके हाथों से बिजली की कई चिंगारियाॅ सी निकली और समूचे राजमहल के ऊपर बिखर कर लोप हो गईं। ये देख मारिया मुस्कुराई और फिर पलट गई। खड़े खड़े ही उसने अपनी आॅखें बंद की और उस जगह से गायब हो गई।

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जैसा कि रानी ने कहा था वैसा ही किया गया था। यानी सारे घर को सुगंधित फूलों से सजा दिया गया था। घर के मुख्य दरवाजे से लेकर दूर मेन सड़क तक फूल बिछा दिये गए थे। अशोक अपनी बेटी की इस इच्छा को भला कैसे टाल देता?? आज बरसों बाद तो उसने अपनी बेटी के चेहरे पर इतनी ज्यादा खुशी देखी थी। बेटी को खुश देख कर वह खुद भी बेहद खुश हुआ था किन्तु इस खुशी की वास्तविकता से आज वह बुरी तरह चिन्तित व परेशान भी हो गया था। उसकी बेटी अपने ही भाई से अगाध प्रेम करने लगी थी। उस भाई से जिसका इस दुनियाॅ में कहीं कोई वजूद उसकी समझ में नहीं था। किन्तु वह भला क्या जानता था कि जहाॅ कोई उम्मीद नहीं होती दरअसल हर उम्मीद वहीं पर कायम होती है।

भाई के प्रेम का ये पागलपन ही था जिसकी वजह से आज रात ये घर फूलों से सजा हुआ था। अशोक ने महसूस किया था कि आज अगर वह रानी की इस बात को नहीं मानता तो शायद उसकी बेटी कोई अनर्थ कर बैठती। पर कहते हैं ना कि नियति के सामने किसी की नहीं चलती। दुनियाॅ में जिस पल जो होना है वह हर कीमत पर होकर ही रहेगा। फिर चाहे भले ही इसके बाद किसी का सर्वस्व बिगड़ जाए। कदाचित् ये एहसास अशोक को भी हो चुका था, किन्तु मानव प्रवत्ति ऐसी होती है कि सब कुछ जानते बूझते हुए भी वह वही करने लग जाता है जो उससे हो ही नहीं सकता।

अपने कमरे में आदमकद आईने के सामने बैठी रानी खुद को जैसे किसी दुल्हन की तरह सजाने में लगी हुई थी। उसके चेहरे पर इतना तेज़ और इतना नूर इसके पहले कभी भी देखने को नहीं मिला था। खुदा जाने क्या बात थी मगर ऐसा लगता था जैसे कोई अलौकिक तेज़ व शक्ति उसमें समा गई थी।

कमरे के दरवाजे पर खड़ी सुमन जाने कब से उसे यूॅ सजते सवॅरते हुए देखे जा रही थी। उसका चेहरा रानी की तरफ ही था किन्तु उसकी नज़रें जैसे कहीं खोई हुई थीं। उधर रानी का ध्यान तो खुद को सजाने पर ही था। उसे पता ही नहीं था कि सगी माॅ से भी बढ़ कर प्यार व स्नेह करने वाली उसकी सौतेली माॅ कब से उसे सजते सवॅरते हुए देख रही थी। दूध में हल्के केसर मिले हुए सफ्फाक़ बदन पर लाल रंग की साड़ी, उसी से मैच करता हुआ ब्लाऊज, दोनो हाॅथों में लाल रंग की ही चूड़ियाॅ जिनके बीच बीच में लाल रंग के ही थोड़े मोटे से कंगन थे। कानों में सोने के झुमके, नाॅक में सोने की ही बेसर टाइप की नथुनी, माॅग में सोने की गुच्छेदार लरी। गले में सोने का बड़ा सा हार जिसके बीच में हीरा जड़ा हुआ था। इन सबके बीच दो ही चीज़ों की कमी थी। माॅग में लाल रंग का सिंदूर और गले में मंगलसूत्र। मगर इन दो कमियों को पूरा करना उसके बस में न था। ये तो उसी के बस में था जिसे "पति परमेश्वर" कहा जाता है। और वो पति परमेश्वर कौन था इसका पता ऊपर बैठे परमेश्वर के सिवा कौन जान सकता था? ख़ैर, अभी तो किसी खूबसूरत दुल्हन की तरह सजी थी रानी। किन्तु इस वक्त वह कुछ परेशान सी दिख रही थी। इसकी वजह उसके ब्लाऊज की चैन थी। वह बार बार अपना हाॅथ पीछे ले जाकर ब्लाऊज की चैन को ऊपर खींचने की कोशिश कर रही थी। पर वह उससे ऊपर हो ही नहीं रहा था। नया ब्लाऊज था इस लिए शायद उसकी चैन कहीं फॅसी हुई थी। मासूम सी, बेकसूर सी और ज़रा परेशान सी वह चैन को ऊपर खींचने की नाकाम कोशिशों में लगी हुई थी।

दरवाजे पर खड़ी सुमन का ध्यान सहसा भंग हुआ और उसकी नज़र रानी पर पड़ी। उसे अपने ब्लाऊज की चैन बंद करते देख पहले तो वह चौंकी फिर सहसा ही मुस्कुरा उठी। अपनी मासूम सी और पागल सी बेटी पर उसे बड़ा प्यार आया। उसे चैन में उलझी देख वह तुरंत ही दरवाजे के अंदर की तरफ बढ़ कर रानी के पास पहुॅची।

आदमकद आईने में रानी ने जब अपने पीछे अपनी माॅ को देखा तो चैन को ऊपर खींचने में उलझा हुआ उसका हाॅथ रुक गया। आईने में अपनी माॅ को बड़े गौर से अपनी तरफ देखते देखा तो वह अनायास ही लजा गई। शर्म और हया की लाली से उसका चेहरा और भी लाल होता चला गया। उसकी नज़रें झुकती चली गईं तथा गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंठ थरथरा उठे।

"कितनी सुंदर लग रही है मेरी बेटी।" उसे इस तरह लजाते हुए देख सुमन ने मुस्कुराते हुए किन्तु अपनी आॅख में से एक उॅगली से काजल निकाल कर रानी के कान के पीछे साइड लगाते हुए कहा__"किसी की नज़र न लगे।"

रानी कुछ बोल न सकी, हाॅ इतना अवश्य हुआ कि उसकी शर्म और भी गहराती चली गई। उसका एक हाॅथ अभी भी उसकी पीठ पर उसी ब्लाऊज के चैन पर था।

"हाए! मेरी बेटी तो बुरी तरह शर्माए जा रही है।" सुमन ने रानी के सामने आकर उसकी ठुड्डी को अपने हाथ की उॅगलियों से ऊपर की तरफ ठेलते हुए कहा__"लेकिन अपनी माॅ से भला क्या शर्माना?"

"माॅ प्लीज।" रानी के होठों से बड़ी मुश्किल से निकला था।
"क्या हुआ?" सुमन हॅस पड़ी__"अच्छा चल कोई बात नहीं। और ये क्या तेरे ब्लाऊज की चैन कैसे खुली हुई है पीछे?"

"माॅ वो...वो चैन ऊपर आ ही नहीं रही है मुझसे।" रानी ने भोलेपन से किन्तु परेशानी जताते हुए कहा__"पता नहीं कैसी चैन है ये?"

"रुक मैं देखती हूॅ।" सुमन ने मुस्कुराते हुए कहा और उसकी पीठ की तरफ आ गई। रानी ने चैन पर से अपना हाॅथ हटा लिया।

"अरे वाह! आज तो मेरी बेटी ने अंदर ब्रा भी पहना हुआ है।" सुमन ने रानी को छेंड़ते हुए कहा__"पहले तो कभी नहीं पहनती थी। आज ऐसी क्या खास बात है?"

"माॅ आप ये....।" रानी तुरंत ही खड़ी हो गई थी। उसे सुमन की इस बात से बेहद शर्म महसूस हुई। उससे आगे कुछ कहा न गया।
"अरे तो इसमें क्या हुआ बेटी?" सुमन ने प्यार से कहा__"सब लड़कियाॅ पहनती हैं। तूने आज पहना तो क्या हो गया? अच्छा ये सब छोड़, ला मैं तेरे ब्लाऊज की चैन ऊपर कर देती हूॅ।"

सुमन के कहने पर रानी बोली तो कुछ न किन्तु स्टूल पर वापस ज़रूर बैठ गई। सुमन अपनी बेटी के इस तरह शरमाने पर मन ही मन हॅस रही थी। रानी बिलकुल छुई मुई सी बन गई थी। उसे देख सुमन को अपने बचपन की याद आ गई। वो ग़रीब थी, रानी की ऊम्र में उसने ब्रा पहनने की कल्पना भी न की थी। जो मिलता वही पहन लेती थी वह। ये सब याद आते ही उसकी आॅखों में आॅसू आ गए।

"ये ले बेटी हो गया।" चैन को ऊपर खींचने के बाद सुमन ने कहा था।
"ओह थैंक्यू माॅ।" रानी ने खुश होकर कहा__"थैंक्यू सो मच।"

"बस ऐसे ही हमेशा खुश रहा कर मेरी बच्ची।" सुमन ने मुस्कुरा कर कहा__"तेरे खुश रहने से ही इस दिल को सुकून मिलता है।"
"आप फिक्र मत कीजिए माॅ।" रानी ने कहा__"अब से मैं हमेशा ही खुश रहूॅगी।"

"अच्छा, अब से ऐसी क्या खास बात हो जाएगी भला?" सुमन ने गहरी नज़रों से रानी को देखते हुए पूछा__"जो मेरी बेटी खुश रहेगी।"
"आप तो सब जानती हैं माॅ।" रानी ने नज़रें झुकाकर कहा__"आप तो जानती हैं कि मेरी खुशी के पीछे की वजह क्या है?"

"बेटी अगर तेरी इजाज़त हो तो एक बात कहूॅ तुझसे?" सुमन ने सहसा गंभीरता से कहा।
"आपको मुझसे किसी बात के लिए इजाज़त माॅगने की क्या ज़रूरत है माॅ?" रानी ने मासूमियत से कहा__"आप बेझिझक कहिए जो भी आपको कहना हो।"

"क्या करूॅ बेटी। डर लगता है कि कहीं मेरी किसी बात से तुझे बुरा न लग जाए।" सुमन ने गंभीरता से कहा था।
"नहीं माॅ।" रानी ने सीघ्रता से कहा__"मुझे आपकी किसी भी बात का बुरा नहीं लग सकता। मैं जानती हूॅ आप हमेशा मेरे हित का ही सोचती हैं। मेरी हर खुशी का कोई दूसरा ख़याल करे या न करे पर आप ज़रूर ख़याल करती हैं। इस लिए आप ये कभी मत सोचिये कि मुझे आपकी किसी बात का बुरा लग सकता है। आप कहिए क्या कहना है आपको?"

"ठीक है बेटी।" सुमन ने धड़कते हुए दिल के साथ कहा__"तो अगर मैं ये कहूॅ तुझसे कि तेरा अपने ही भाई के प्रति इस तरह प्रेम रखना ग़लत है तो? और तुझे ऐसा नहीं करना चाहिए तो??"

रानी को सुमन की इस बात से ज़बरदस्त झटका लगा। ऐसा लगा जैसे उसके दिल पर कोई बज्रपात हो गया हो। पल भर में उसकी आॅखों में आॅसू आ गए। खूबसूरत चेहरा जो अभी तक किसी अलौकिक तेज़ से चमक रहा था उसमें एक ही पल में जैसे ग्रहण सा लग गया। होंठ थरथरा उठे। मुह से कोई शब्द तो न निकला किन्तु सुमन की तरफ कातर दृष्टि से देखने लगी थी वह।

सुमन के दिल का हाल भी रानी से जुदा नहीं था। किन्तु उसने अपने दिल के जज्बातों को शख़्ती से दबाया हुआ था। वह जानती थी कि इस वक्त वह कमजोर नहीं बन सकती। उसे इस बात को रानी से कहना ही पड़ेगा कि ये सब उचित नहीं है जो वह कर रही है।

"मैं जानती हूॅ मेरी बच्ची।" सुमन ने भर्राए स्वर में कहा__"और मैं समझती भी हूॅ कि मेरी इस बात से तेरे दिलो दिमाग़ को गहरी ठेस पहुॅचेगी किन्तु सच्चाई से मुह भी तो नहीं मोड़ा जा सकता बेटी। तू अब कोई दूध पीती बच्ची नहीं रही, बल्कि बड़ी हो गई है। और इसका प्रमाण ये है कि तू आज किसी दुल्हन की तरह सज सवॅर कर तैयार हो गई है। इस लिए ये तो तुझे भी पता होगा कि संसार में सगे भाई बहन के बीच इस तरह का रिश्ता नहीं हो सकता और ना ही होना चाहिए। क्योंकि इस रिश्ते को देश समाज या कानून कोई भी स्वीकार नहीं कर
ता। बल्कि हर कोई भाई बहन के बीच उत्पन्न हुए इस रिश्ते को ग़लत और अनुचित ही कहेगा। इस रिश्ते से देश समाज के बीच अपने घर परिवार की मान मर्यादा व इज्जत का हनन हो जाता है। समाज में बहुत से ऐसे लोग होते हैं जो ऐसा रिश्ता रखने वालों पर थू थू करते हैं और हर दिन अपनी तरह तरह की कड़वी बातों से जीना हराम कर देते हैं।" सुमन ने पल भर रुक कर एक गहरी साॅस ली फिर कहा__"इस लिए बेटी अगर हो सके तो इस रिश्ते को ज़ेहन से निकाल कर इस प्रेम को भूल जा। इसी में सबका हित है।"

"कितनी सहजता से आपने ये सब कह दिया माॅ।" रानी की रुलाई फूट गई__"लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है। अपने ही भाई से प्रेम का ये रोग़ मेरे रोम रोम में लग चुका है माॅ। अब भला कैसे मैं इस रोग़ से मुक्त हो सकती हूॅ? मैं चाहूॅ भी तो कुछ नहीं कर सकती। प्रेम का ये रोग़ तो अब मेरे मरते दम तक रहेगा।"

"ऐसा मत कह मेरी बच्ची।" सुमन तड़प कर बोली__"तू समझने की कोशिश कर पगली। ये रिश्ता हर दृष्टि से अनुचित है। क्या तुझे इसका ज्ञान नहीं है? क्या तूने कभी नहीं सोचा इसके बारे में?"

"मैं जानती हूॅ माॅ।" रानी ने रोते हुए कहा__"मैं जानती हूॅ कि ये ग़लत है लेकिन मैं क्या करूॅ माॅ....इसमें मेरी क्या ग़लती है? मैंने तो ये सब सोच समझ कर नहीं किया ना? भला क्या कोई किसी से सोच समझ कर प्रेम करता है? अरे ये तो वो बला है जो ना चाहते हुए भी हमारी आत्मा में घुस जाती है। और फिर ये बात आज ही क्यों की आपने? इसके पहले ही क्यों नहीं की थी? मैं तो शुरू से ही आपको अपने दिल की बातें बताती आ रही हूॅ। फिर आपने पहले ही इस सबके लिए क्यों नहीं रोंका मुझे? अगर पहले ही आपने रोंका होता या समझाया होता तो आज ये समस्या इतनी बड़ी नहीं बन जाती माॅ। मैं तो बच्ची थी। छोटी सी ऊम्र में मुझे अच्छे बुरे का ज्ञान नहीं था, किन्तु आप सब तो बड़े थे। आप सब तो समझदार थे, फिर क्यों नहीं इस सबको रोंका आप सबने? आज जबकि ये मेरी जीने की वजह बन गई है तब आपको समझ आया कि मुझे ये नहीं करना चाहिए।"

"मैं मानती हूॅ बेटी कि हम सब से बहुत बड़ी ग़लती हो गई है जो हमने तुम्हें पहले ही इस सबके लिए नहीं रोंका।" सुमन ने अधीरता से कहा__"लेकिन अब भी तो ये संभव है कि इस सबको भुला दिया जाए।"

"नहीं माॅ नहीं।" रानी रोते हुए वहीं फर्स पर सुमन के पास घुटनो पर गिर गई__"मैं अब नहीं भुला सकती उनको। मैं अब उनके बिना जीवित नहीं रह सकती। आपको और पापा को अगर इस सबसे इस बात का डर है कि देश समाज के बीच उनकी मान मर्यादा या इज्ज़त मिट्टी में मिल जाएगी तो आप मुझे ज़हर दे दीजिए माॅ। मेरे मर जाने से सारी समस्या ही खत्म हो जाएगी।" कहने के साथ ही रानी फूट फूट कर रोने लगी।

सुमन अपनी बेटी को इस तरह ज़ार ज़ार रोते देख तड़प उठी। उसका दिल हाहाकार कर उठा। उससे खड़े न रहा गया। उसने तुरंत ही फर्स पर घुटनों के बल गिरी रानी को उसके कंधों से पकड़ कर उठा लिया और उसे एक झटके से अपने सीने में छुपका लिया।

"मत रो मेरी बच्ची मत रो।" सुमन ने रोते हुए कहा__"तुझे इस तरह रोते देख मेरा हृदय फट जाएगा। अगर तेरे जीने की वजह तेरा अपने भाई के प्रति प्रेम है तो मेरे जीने की वजह भी तो सिर्फ तू ही है। मैं तुझसे अब कभी नहीं कहूॅगी कि तू ये सब छोंड़ दे और सब कुछ भूल जा। तू वही कर मेरी बच्ची जिसमें तुझे और तेरे दिल को खुशी मिलती हो।"

रानी उससे लिपटी जाने कितनी ही देर तक रोती रही। सुमन ने बड़ी मुश्किल से सम्हाला उसे। उसके बाद उसने खुद रानी को तैयार करना शुरू कर दिया। उसने सोच लिया था कि उसकी बेटी के भाग्य में जो होगा देखा जाएगा। किन्तु अब वह इस सबके लिए अपनी बेटी को कभी दुखी नहीं करेगी।
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अशोक काफी देर तक महेन्द्र व रंगनाथ के साथ साथ उस मानव आकृति के बारे में सोचता रहा। उसके मन में कई तरह के सवाल थे जिनका जवाब उसे मिल ही नहीं रहा था। वह सोच रहा था कि महेन्द्र और रंगनाथ उसके घर किस लिए आए थे, तब जबकि वह घर पर भी नहीं था? क्या रेखा के लिए आए थे वो दोनो? सुनसान घर में एक रेखा ही तो थी। यकीनन रेखा के लिए ही आए थे वो। उसके साथ कुछ ग़लत करना चाहते थे। अशोक की ये सब सोच सोच कर रूह काॅपी जा रही थी। उसने सोचा कि अच्छा हुआ था कि वह समय पर आ गया था, वरना ना जाने क्या हो जाता। लेकिन इस ख़याल ने भी उसे हिला दिया कि वो उन दोनों को अपनी मनमानी करने से भला रोंक भी कैसे सकता था? वो दोनो तो अद्भुत शक्तियाॅ जानते थे।

अशोक के ज़ेहन में ये सवाल भी उभरा कि धुएॅ की वो मानव आकृति कौन थी? यहाॅ क्या कर रही थी वह? और तो और महेन्द्र व रंगनाथ के साथ लड़ाई भी कर रही थी, किन्तु किस लिए? आख़िर किस लिए ऐसा कर रही थी वह? अरे हाॅ वह कई बार उन दोनो से बोली थी कि इस घर के सदस्यों को अगर बुरी नीयत से हाॅथ लगाया तो उनके लिए अच्छा नहीं होगा। लेकिन क्यों? वह मानव आकृति ऐसा क्यों कह रही थी? उसका भला हम सबसे क्या संबंध हो सकता है?

अशोक इस सबके बारे में जितना सोचता उतना ही उलझता जा रहा था। सोचते सोचते उसके दिमाग़ की नसें तक दर्द करने लगीं। इसके बावजूद वह किसी ठोस निष्कर्श पर न पहुॅच सका। थक हार कर उसने अपने दिलो दिमाग़ से इन सब बातों को झटक दिया और ख़ामोशी से रेखा के कमरे की तरफ बढ़ता चला गया।

अपनी पत्नी रेखा के कमरे में दाखिल होकर उसने देखा कि रेखा सजी सवॅरी बेड पर औंधी हुई पड़ी थी। अशोक उसे इस हालत में देख कर बुरी तरह घबरा गया। वह सीघ्रता से रेखा के पास पहुॅचा और अपने दोनो हाॅथों के सहारे उसने रेखा को पलटा कर उसे सही तरह से बेड पर लेटा दिया। तत्पश्चात उसने रेखा के करीब बैठ कर उसके गोरे सफ्फाक़ गालों को थपथपाते हुए मारे घबराहट के कहे जा रहा था__"रेखा, क्या हुआ तुम्हें? प्लीज़ रेखा आॅखें खोलो....क्या हुआ, आॅखें खोलो...आख़िर क्या हो गया है तुम्हें?"

अशोक जाने क्या क्या बोले जा रहा था तथा साथ ही साथ वह रेखा के दोनो कंधों को पकड़ झकझोरे भी जा रहा था। किसी अंजानी आशंका व भय के कारण उसकी हालत पल भर में देखने लायक हो गई थी। आॅखों में आॅसू लिए तथा भारी गले से वह रेखा को होश में लाने का प्रयास कर रहा था। किन्तु जब इतने पर भी रेखा पर कोई प्रतिक्रिया न हुई तो वह और भी घबरा गया।

अशोक लगभग भागते हुए किचेन की तरफ गया। फ्रिज से पानी की एक बोतल लेकर वह उतनी ही तेज़ी से रेखा के कमरे की तरफ दौड़ा। कमरे में पहुॅच कर उसने बोतल के पानी को अपने हाॅथ में डाल कर रेखा के चेहरे पर छिड़कने लगा। आख़िर कुछ ही देर में उसके इस प्रयास से रेखा के जिस्म में प्रतिक्रिया हुई। उसने अपनी आॅखें खोल दी। कुछ पल अजीब भाव से वह अपने चेहरे के पास झुके अशोक को देखती रही फिर जैसे ही उसे वस्तुस्थित का एहसास हुआ। वह हड़बड़ा कर उठ बैठी। पल भर में उसके चेहरे पर अथाह दुख के भाव जैसे प्रकट से हो गए। आॅखों सें किसी झरने की तरह आॅसू बह चले। एक झटके से वह अशोक से लिपट कर फूट फूट कर रोने लगी। अशोक उसकी इस हालत से बेहद दुखी हो गया। उसकी खुद की आॅखों में भी आॅसू थे। उसने रेखा को अपने से छुपका कर बड़े प्यार से उसके सिर पर अपने हाॅथ फेरने लगा। किन्तु फिर तभी रेखा एक झटके से ही अशोक से अलग हो गई। बदहवास सी इधर उधर देखने लगी।

"क्या हुआ रेखा?" अशोक ने चौंकने के साथ ही दुखी मन से पूछा__"क्यों अपने आपको इतना तक़लीफ़ दे रही हो तुम? क्यों उसको पाने की आस में दिन रात खुद को तड़पाती रहती हो? अरे जिसका कहीं कोई वजूद ही नहीं है दुनिया में उसके लिए भला कैसी उम्मीद करना रेखा?"

"ख़ ख़बरदार...ख़बरदार अशोक, जो एक लफ्ज़ भी मेरे बेटे के बारे में ऐसा कहा तो।" किसी नागिन की भाॅति एकाएक ही फुॅकार उठी थी रेखा, बोली__"मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। मेरे बेटे का इस दुनिया में वजूद है और ये बात मैं अच्छी तरह जानती हूॅ। मेरा मन मेरी आत्मा कहती है कि आज मेरा बेटा अपनी इस दुखियारी माॅ के पास ज़रूर आएगा। वो ज़रूर आएगा...मैंने उसके स्वागत के लिए सारे घर को सजाया हुआ है। उसके खाने के लिए उसकी ही पसंद का ब्यंजन बनाया है मैने। और....और मैं अपने हाॅथों से उसे खिलाऊॅगी। हाॅ हाॅ अपने बेटे को अपने हाॅथों से खिलाऊॅगी। मेरा बेटा आज आएगा.....वो अपनी माॅ के पास आएगा।"

अशोक को लगा कि उसका हृदय फट जाएगा। एक माॅ का अपने बेटे के लिए ये कैसा प्यार था? ये कैसा पागलपन था, ये कैसी दीवानगी थी? वह भी तो एक बाप था, उसके सीने में भी तो एक दिल था। जो अपने बेटे के विरह में जाने कब से तड़प रहा था। किन्तु उसने कभी किसी के सामने अपने दिल की इस तड़प को ज़ाहिर न होने दिया था। उसने खुद को कमज़ोर न होने दिया था वरना अपने परिवार की इतनी सारी दुखियारी आत्माओं को कौन सम्हालता? सब ही इस दुख में डूब जाते तो इस परिवार का क्या होता? इस लिए उसने कभी ये ज़ाहिर नहीं किया कि वह अंदर से उन्हीं की भाॅति दुखी है, बल्कि हमेशा अपने दुखों को शख़्ती से दबा कर उसने परिवार के सभी सदस्यों की देखभाल की। अपने इतने बड़े ब्यवसाय को बिखरने नहीं दिया।

भगवान ही जाने कि सारे परिवार वालों की किस्मत में क्या खोना और क्या पाना अभी लिखा था? किन्तु वक्त और हालात जिस तरह से आज अपना रंग दिखा रहे थे वह आम इंसानों की समझ से परे था। ऊपर बैठा हुआ विधाता क्या करना चाहता था इस बात का ज्ञान भला किसे हो सकता था?

अशोक को झटका सा लगा, उसने तुरंत ही पलट कर देखा। उसकी पत्नी रेखा एक बार पुनः अचेत हो गई थी। यह देख कर उसके अंदर एक हूक सी उठी। बड़ी मुश्किल से उसने खुद के जज़्बातों को सम्हाला। रेखा को सही तरीके से बेड पर लिटा कर वह उठा और दोनो हाॅथों से अपनी आॅखों से बहते आॅसुओं को पोंछते हुए कमरे से बाहर निकल गया।
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तो वहीं एक तरफ,,,,,
राज एण्ड पार्टी ने हिमालय से चलने के बाद इस वक्त एक जगह कयाम किया हुआ था। शाम ढल चुकी थी और शब ने अपने वजूद को और भी ज़्यादा ढॅक देने के लिए तारीकियों का इस्तकबाल कर लिया था।

मेनका, काया, रिशभ और वीर एक तरफ खड़े थे जबकि राज एक बड़े से पत्थर पर बैठा ध्यानामग्न था। जैसा कि मैंने बताया कि शाम ढल चुकी थी इस लिए गहरे ध्यान में बैठे राज के चेहरे के चारो तरफ एक दिव्य रोशनी सी फैली हुई थी जिसके प्रकाश से आस पास की हर चीज़ देखी जा सकती थी।

चारो काफी देर से राज को इस तरह ध्यान में बैठे देखे जा रहे थे। मेनका और काया ममतावश राज की तरफ देख रही थी। हिमालय से चल कर जब वो यहाॅ पर पहुॅचे तो राज ने उन सबसे कहा कि यहाॅ पर हम थोड़े समय विश्राम करेंगे उसके बाद ही आगे बढ़ेंगे। राज की बात को सुन कर सब वहीं पर रुक गए थे। जबकि राज पास में ही स्थित एक बड़े से पत्थर पर आसन जमाकर बैठ गया था। तब से वह ऐसे ही बैठा था।

लगभग आधे घंटे बाद उसके चेहरे के चारो तरफ फैली रोशनी लुप्त हुई और राज ने अपनी आॅखें खोलीं। राज की आॅखें खुलते ही उन चारो पर इसकी प्रतिक्रिया हुई।

"अब हमें चलना चाहिए यहाॅ से।" राज ने उन चारों को देखते हुए कहा__"लेकिन आगे का मार्ग खतरे से खाली नहीं है।"
"क्या मतलब?" वीर चौंका__"आगे किस बात का खतरा है?"

"माधवगढ़ की सीमा में प्रवेश करते ही हम पर शैतानों का हमला हो जाएगा।" राज ने कहा__"शैतानी दुनिया के दो दो सम्राट एक साथ हम पर हमला करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।"

"हाॅ इस बात के बारे में तो गुरूदेव ने हमें पहले ही सावधान रहने को कहा था।" काया ने कहा__"राज ने शायद ध्यान के द्वारा देख लिया है कि आगे का मार्ग कैसा है?"

"माॅ।" राज ने मेनका की तरफ देखते हुए कहा__"आपके पिता ने आपको कैद कर लेने का सोच रखा है। और अगर ऐसा हो गया तो बहुत हद तक वो अपने इरादों में कामयाब हो जाएॅगे।"

"ऐसा कैसे हो सकता है राज?" रिशभ ने कहा__"उनकी रणनीति क्या है आख़िर?"
"वो जानते हैं मामा जी कि वो मुझसे किसी भी तरह जीत नहीं सकते। इस लिए वो वेयरवोल्फ किंग अनंत को अपने साथ मिलाकर किसी भी तरह माॅ(मेनका) को पकड़ कर कैद करना चाहते हैं। उसके बाद आपके पिता माॅ को मोहरा बना कर मुझे हासिल करेंगे। वो जानते हैं कि मैं माॅ के लिए उनकी हर बात मानूॅगा। यही उनकी सोच है।"

"सम्राट से भला और किसी बात की उम्मीद भी क्या की जा सकती है?" वीर ने आवेश में कहा__"जब अपनी बाजुओं पर दम न रहा तो अपनी ही बेटी को मोहरा बनाने का सोच लिया उन्होंने। अपनी इच्छाओं के लिए किस हद तक जा सकते हैं ये आज पता चल गया।"

"तू सही कह रहा है मेरे यार।" रिशभ ने दुखी भाव से कहा__"मुझे दुख है कि ऐसा शैतान मेरा बाप है। लेकिन....कसम खुदा की, अगर उसने मेरी देवी जैसी बहन को हाॅथ भी लगाया तो मैं पल भर के लिए भी न सोचूॅगा कि वो मेरा बाप है। बल्कि नेस्तनाबूत करके रख दूॅगा उसे।"

"शान्त हो जा मेरे भाई।" मेनका ने नम आॅखों से रिशभ के कंधे को थपथपाते हुए कहा__"और ऐसे अल्फाज़ अपने पिता के लिए नहीं बोले जाते। वो जैसे भी हैं आख़िर हैं तो हमारे पिता ही। ये उनकी सोच और इच्छा की बात है कि वो क्या कर रहे हैं? किन्तु हम तो वही करेंगे न जिसमें सिर्फ संसार का हित होगा।"

"तो अब हमें क्या करना चाहिए?" वीर ने कहा__"आख़िर कोई न कोई रणनीति हमें भी तो बना लेनी चाहिए। जिससे कि हम अपने शत्रुओं का मुकाबला कर सकें?"

"इस बारे में तो राज ही बेहतर तरीके से बता सकता है।" काया ने कहा__"उसे तो गुरूदेव ने हर तरह की शिक्षा में परांगत किया है। इस लिए इस
के लिए राज ही हमें कोई रणनीति बताएगा।"

"मेरा विचार ये है कि हम सब माॅ(मेनका) को उनकी पहुॅच से दूर रखें।" राज ने कहा__"क्योंकि सम्राट विराट का मुख्य लक्ष्य माॅ को पकड़ना ही होगा। अगर वो माॅ को पकड़ लेंगे तो मुझसे लड़ने की उन्हें कोई ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी। वो तो माॅ के गले में ख़ंजर रख कर मुझे विवश करेंगे कि मैं उनके पास आ जाऊॅ और उनकी हर आज्ञा का पालन करूॅ। इस लिए हम सब माॅ को उनकी पहुॅच से दूर रखेंगे। बल्कि ये कहूॅ तो ज्यादा उचित होगा कि मेरी दोनो ही माॅओं को उनकी पहुॅच से देर रखना है।"

"ये सब तो ठीक है राज बेटे।" रिशभ ने कहा__"लेकिन सवाल ये है कि हम ये करेंगे कैसे? क्यों कि रास्ते में तो वो सब मौजूद हैं वहाॅ?"
"इसका प्रबंध मैं कर दूॅगा मामा जी।" राज ने कहा__"आप या वीर चाचू में से किसी को मेरी दोनों माॅओं के साथ जाना होगा। मैं तीनों को एक ऐसे सुरक्षा कवच के घेरे के अंदर कर दूॅगा जो अभेद्य होगा। उस पर किसी की कोई भी शक्ति अपना प्रभाव नहीं डाल सकेगी। जबकि मैं और आप में से कोई एक उनके सामने से गुज़र कर जाएॅगे।"

"अगर ऐसे किसी अभेद्य सुरक्षा कवच का तुम प्रबंध कर सकते हो राज तो हम सब साथ में ही उसके अंदर सुरक्षित होकर उनके सामने से क्यों नहीं जा सकते?" वीर ने सबकी तरफ देखते हुए कहा__"सुरक्षा कवच की वजह से कोई हमारा बाल भी बाॅका नहीं कर सकेगा और हम बड़े आराम से उनकी आॅखों के सामने से निकल जाएंगे।"

"ऐसा हो तो सकता है चाचू। लेकिन मैं ऐसा करना नहीं चाहता।" राज ने कहा था।
"लेकिन क्यों बेटे?" वीर मानो उलझ गया__"आख़िर क्यों नहीं करना चाहते तुम ऐसा?"

"इसका एक महत्वपूर्ण कारण है चाचू।" राज ने रहस्यमयी भाव से कहा__"और वो कारण क्या है ये मैं आप सबको बाद में बताऊॅगा। अभी आप वैसा ही कीजिए जैसा मैने कहा है।"

"ठीक है बेटे।" वीर ने कहा__"तो फिर मेनका और काया के साथ सुरक्षा कवच में रिशभ जाएगा। जबकि मैं तुम्हारे साथ चलूॅगा।"
"नहीं वीर।" रिशभ कह उठा__"राज के साथ मैं जाऊॅगा। तुम मेरी बहनों के साथ जाओगे।"

"लेकिन रिशभ यार......।" वीर का वाक्य अधूरा रह गया, क्योंकि रिशभ ने तुरंत ही उसके वाक्य को काट कर एकाएक कठोर भाव से कहा__"तुम उनके साथ ही जाओगे दोस्त। मुझे राज के साथ ही जाने दे। मैं राज के साथ जाकर अपने बाप से कुछ सवाल जवाब करना चाहता हूॅ। इस लिए मुझे जाने दे मेरे यार।"

"तुम पिता जी से बेवजह नहीं उलझोगे रिशभ।" सहसा मेनका कह उठी__"ये कोई वक्त नहीं है इन सब चीज़ों का। तुम सिर्फ राज के साथ उसकी ढाल बन कर रहोगे।"

"कुछ नहीं होगा बहना।" रिशभ ने ठंडे स्वर में कहा__"तुम फिक्र मत करो। तुम्हारे बेटे को मेरे रहते कोई छू भी नहीं सकेगा। ये मेरा वादा है तुमसे।"

"फिर भी भाई।" काया ने कहा__"ये समय अभी ठीक नहीं है। इस लिए आप अपने जज्बातों को काबू में रख कर ही काम लीजिए।"

"आप फिक्र मत कीजिए माॅ।" सहसा राज ने कहा__"हम दोनो मामा भाॅजों का कोई बाल भी बाॅका नहीं कर सकेगा।"
"कैसे फिक्र न करूॅ बता?" काया का स्वर भारी हो गया__"एक मेरा बेटा है तो एक मेरे भाई हैं। मैं तुम दोनों में से किसी के लिए भी कुछ अहित होते नहीं देख सकती।"

"आप तो बेवजह ही परेशान हो रही हैं माॅ जबकि ऐसा कुछ नहीं होगा जैसा आप सोचती हैं।" राज ने कहा__"ख़ैर, अब हमें चलना चाहिए।"

राज के कहने पर वीर आगे बढ़ कर प्यार व स्नेह से पहले राज को अपने गले से लगाया फिर रिशभ के गले मिला। उसके बाद वह मेनका व काया के पास जा कर खड़ा हो गया। तीनो के खड़े होते ही राज ने अपनी आॅखें बंद कर ली तथा अपने दोनों हाथ जोड़ लिए। कुछ ही पल में सामने हवा में एक बड़ा सा पानी के गुब्बारे जैसा पारदर्शी सा गोला प्रगट हो गया। गोले के चारो तरफ रह रह कर रोशनी चमक रही थी। इसके बाद देखते ही देखते वह गोला मेनका काया व वीर की तरफ बढ़ कर उन तीनो को अपने अंदर समा लिया।

राज ने अपनी आॅखें खोल ली। राज की इस क्रिया और उसकी इस क्रिया से निकले परिणाम को देखकर सबके होठों पर मुस्कान फैल गई।

"अब आप तीनो इस सुरक्षा कवच में बिलकुल सुरक्षित हैं।" राज ने कहा__"ये आपके इच्छानुसार आगे बढ़ता रहेगा।"

"ये तो बहुत अच्छी बात है राज बेटे।" वीर ने मुस्कुराकर कहा__"गुरुदेव के पास तो तुमने उनकी आज्ञा से अपनी शक्तियों का कुशल प्रदर्शन किया ही था जिनमें उनका निर्देश भी शामिल था। किन्तु आज से ये सब तुम अपनी बुद्धि और समझदारी से करने जा रहे हो। इस सबसे हम सब अति प्रसन्न हैं बेटे। हम सबका प्यार व आशीर्वाद सदा तुम पर कायम रहेगा।"


वीर की इस बात से राज ने मुस्कुराते हुए उन सबको हाथ जोड़ कर प्रणाम किया। उसके बाद राज के ही कहने पर वो तीनों हवा में उठ कर अदृश्य हो गए। वो सबको देख सकते थे किन्तु राज के सिवा अब उन्हें कोई दूसरा नहीं देख सकता था।

"अरे! ये तीनो कहाॅ गायब हो गए?" रिशभ ने चौंकते हुए राज से पूछा था।
"फिक्र मत कीजिये मामा जी वो सब मेरी नज़रों के सामने ही हैं।" राज ने कहा__"हाॅ लेकिन आप उन्हें देख नहीं सकते हैं। बल्कि आप ही क्या कोई भी उन्हें देख नहीं सकता।"

"ये तो कमाल हो गया राज बेटे।" रिशभ ने हॅस कर कहा__"यकीनन ये एक अद्भुत सुरक्षा कवच है।"
"जी मामा जी।" राज ने कहा__"चलिए अब हम भी आगे बढ़ते हैं।"

राज के कहने पर रिशभ चल दिया अपने भाॅजे के साथ। हिमालय से वो सब पैदल ही आए थे किन्तु यहाॅ से साधन का उपयोग कर लिया था इन लोगों ने। राज और रिशभ भी हवा में ही उड़ते हुए आगे बढ़ रहे थे।



अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,,,
अदभुत लेखन एवम संचालन। मजा आ गया पढ़ के। सब अपनी योजना बना रहे है मगर राज ने सभी की योजनाओं की बत्ती लगा दी है। ऐसे ही लिखते रहिए और अपडेट देते रहिए।
 

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राज-रानी (बदलते रिश्ते)
""अपडेट"" ( 12 )


अब तक,,,,,,,

"ये तो बहुत अच्छी बात है राज बेटे।" वीर ने मुस्कुराकर कहा__"गुरुदेव के पास तो तुमने उनकी आज्ञा से अपनी शक्तियों का कुशल प्रदर्शन किया ही था जिनमें उनका निर्देश भी शामिल था। किन्तु आज से ये सब तुम अपनी बुद्धि और समझदारी से करने जा रहे हो। इस सबसे हम सब अति प्रसन्न हैं बेटे। हम सबका प्यार व आशीर्वाद सदा तुम पर कायम रहेगा।"

वीर की इस बात से राज ने मुस्कुराते हुए उन सबको हाथ जोड़ कर प्रणाम किया। उसके बाद राज के ही कहने पर वो तीनों हवा में उठ कर अदृश्य हो गए। वो सबको देख सकते थे किन्तु राज के सिवा अब उन्हें कोई दूसरा नहीं देख सकता था।

"अरे! ये तीनो कहाॅ गायब हो गए?" रिशभ ने चौंकते हुए राज से पूछा था।
"फिक्र मत कीजिये मामा जी वो सब मेरी नज़रों के सामने ही हैं।" राज ने कहा__"हाॅ लेकिन आप उन्हें देख नहीं सकते हैं। बल्कि आप ही क्या कोई भी उन्हें देख नहीं सकता।"

"ये तो कमाल हो गया राज बेटे।" रिशभ ने हॅस कर कहा__"यकीनन ये एक अद्भुत सुरक्षा कवच है।"
"जी मामा जी।" राज ने कहा__"चलिए अब हम भी आगे बढ़ते हैं।"

राज के कहने पर रिशभ चल दिया अपने भाॅजे के साथ। हिमालय से वो सब पैदल ही आए थे किन्तु यहाॅ से साधन का उपयोग कर लिया था इन लोगों ने। राज और रिशभ भी हवा में ही उड़ते हुए आगे बढ़ रहे थे।
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अब आगे,,,,,,,

राज और रिशभ हवा में उड़ते हुए चले जा रहे थे। जहाॅ रिशभ के चेहरे पर इस ख़याल के तहत आक्रोश के भाव उजागर थे कि वह अपने पिता को सबक सिखाएगा वहीं राज के चेहरे पर कोई विकार या कोई भाव नहीं था बल्कि वह एकदम शान्त चित्त दिख रहा था।

"तो तुम क्या करने वाले हो राज?" रिशभ ने सहसा राज की तरफ देख कर कहा__"मेरा मतलब है कि उन तीनो को अभेद्य सुरक्षा कवच में डाल कर तुमने उन लोगों को सुरक्षित कर निश्चिंत हो गए लेकिन हम दोनो उन शैतानों के सामने जाकर उनसे जंग करेंगे। या शायद ऐसा भी न करने की सोच रखा हो तुमने, तो फिर क्या करने का सोचा है तुमने? तुमने इस तरह से उनके सामने से जाने का कारन बाद में बताने को कहा है। पर ऐसा क्या कारण हो सकता है?"

"इतना दिमाग़ घुमाने की क्या आवश्यकता है मामा जी?" राज मुस्कुराया__"आपको मैने कह तो दिया है न कि इसका कारण बता दूॅगा बाद में फिर आप क्यों इस बारे में इतना सोच विचार कर रहे हैं?"

"चलो कोई बात नहीं।" रिशभ ने कहा__"ये तो बताओ कि इस जंग के बाद हमें अपना ठिकाना कहाॅ बनाना है?"
"गुरूदेव ने कहा था कि जहाॅ मेरे असली माता पिता रहते हैं वहीं पर कहीं आस पास हमें अपने रहने का बंदोबस्त करना है। अभी तो ख़ैर रात्रि का समय है इस लिए हमें जंग के बाद कहीं रात गुज़ारनी पड़ेगी या अगर ऐसा होता है कि जंग में ही सारी रात गुज़र जाएगी तो दूसरे दिन हम इसका इन्तजाम करेंगे।"

"चलो ये तो ठीक है।" रिशभ ने कहा__"अब उस काल का क्या करना है? क्या अभी भी उसे तुम्हारे परिवार की सुरक्षा में लगाए रखना है?"
"काल का काम मेरे परिवार की देख रेख और सुरक्षा का ही रहेगा मामा जी।" राज ने कहा__"उसके रहते कोई मेरे परिवार को हानि नहीं पहुॅचा सकता।"

"सच कहते हो तुम।" रिशभ ने कहा__"उसके रहते कोई माई का लाल तुम्हारे परिवार को किसी प्रकार की क्षति नहीं पहुॅचा सकता। आख़िर तुमने उसे अपने अंश से ही तो पैदा किया था। तुमने उसे इतना शक्तिशाली बना कर भेजा था कि कोई उससे पार ही नहीं पा सकता था।"

"ये सब तो गुरूदेव के निर्देश से ही हुआ था मामा जी।" राज ने कहा__"आप तो सब जानते हैं मुझे तो अपने परिवार के बारे में कुछ पता ही नहीं था। मैं तो यही जानता था कि आप सब लोग ही मेरा परिवार हैं। आज भले ही मुझे इस बात का पता हो लेकिन आप सब मेरे लिए सगे परिवार से भी बढ़ कर हैं। और मुझे खुशी है कि ईश्वर ने मुझे एक नहीं बल्कि तीन तीन माॅएॅ दी और आप जैसे प्यार व स्नेह देने वाले मामा और चाचू मिले।"

"ये सब ईश्वर की ही कृपा है बेटे।" रिशभ ने सहसा गंभीर होकर कहा__"हम चारो तो शैतान थे। इंसानों का खून पी कर जीते थे। इस तरह के पाप करना ही हमारी नियति थी। लेकिन फिर तुम मिले और फिर जैसे हम चारो का उद्धार हो गया। उस शैतान योनि से मुक्ति मिल गई हमें। हम चारो के अंदर इंसानों जैसे ही प्राण आ गए। और अब हम चारो पूरी तरह इंसान बन गए। ये सब तुम्हारी वजह से हुआ राज। तुम न मिलते तो इस सबकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते थे।"

"मैं तो बस एक माध्यम था मामा जी।" राज ने कहा__"जो कुछ हुआ वो सब ईश्वर ने किया। उसी की इच्छा से ये सब चमत्कार हुए। वरना आप ही सोचिए एक ही जीवन में किसी प्राणी विशेष की योनि कैसे बदल सकती है? जबकि ईश्वर का विधान तो यही है कि कोई भी प्राणी या जीव मरने के बाद ही किसी दूसरी योनि को प्राप्त होता है। ये चमत्कार ईश्वर ही कर सकता है। उसने अपने ही बनाए विधि विधान को तोड़ कर आप चारों को इंसान की योनि में डाल दिया।"

"सच कहते हो राज।" रिशभ ने कहा__"ऐसा शायद ही किसी युग में हुआ हो।"
"ईश्वर को कोई नहीं समझ सकता मामा जी।" राज ने कहा__"वो कभी कभी ऐसा चमत्कार कर देता है जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। और ये सब उसी का प्रमाण है।"

"बिलकुल।" रिशभ ने कहा__"अरे लगता है हम माधवगढ़ की सीमा में पहुॅचने ही वाले हैं। और....और ऐसा लगता है जैसे माधवगढ़ की सीमा से ही शैतानों का दल लगा हुआ है।"

"आपके पिता जी ने जंग की पूरी तैयारी कर रखी है मामा जी।" राज ने मुस्कुरा कर कहा__"ऐसा लगता है जैसे शैतानों की दुनिया के सारे शैतान यहीं पर जमा हो गए हैं।"

"वो अब मेरा पिता नहीं रहा राज।" रिशभ ने तीखे भाव से कहा__"वो मेरी नज़र में अब सिर्फ शैतान है। मैं तो अब इंसान हूॅ बेटे..और मेरा पिता कोई शैतान नहीं हो सकता।"

"ऐसा आप समझते हैं मामा जी।" राज ने कहा__"जबकि सच तो सच ही होता है। उन्होंने आपको जन्म दिया है इस लिए आप हमेशा उनके बेटे ही कहलाएॅगे। कहते हैं कि बेटा चाहे जितना बड़ा हो जाए या फिर चाहे वो जो कुछ भी बन जाए किन्तु वह हर हाल में अपने पिता का बेटा ही बना रहता है। इंसान के जन्म के साथ ही रिश्ते भी जन्म ले लेते हैं, और इंसान के साथ ये रिश्ते उनके मरते दम तक बने ही रहते हैं। आप भले ही इस बात को न मानें किन्तु सच्चाई तो यथार्थ के रूप में बनी ही रहेगी। उसे कोई मिटा नहीं सकता, खुद भगवान भी।"

"क्या बात है।" रिशभ ने मुस्कुराते हुए कहा__"अब लगता है कि हमारा राज बड़ा हो गया है। वरना क्या ऐसा संभव है कि ऐसी बड़ी बड़ी बातें कोई छोटा बच्चा कर सके?"

"क्यों नहीं मामा जी।" राज भी मुस्कुराते हुए बोला__"दुनियाॅ में हर चीज़ संभव है। इस दुनियाॅ में ऐसे बहुत से बच्चे भी मिल जाएंगे जो बड़ी बड़ी बातें कर सकते हैं। ईश्वर की बनाई इस सृष्टि में वो सब संभव के रूप में मौजूद है जिसके बारे में ना तो हम सोच सकते हैं और ना ही कल्पना कर सकते हैं।"

"बहुत खूब।" रिशभ हॅस पड़ा__"भई अब तो मानना ही पड़ेगा। क्योंकि सबसे बड़ा प्रत्यक्ष प्रमाण तो मैं खुद हूॅ। जो इसके पहले शैतान योनि में था और आज इंसान की योनि में है। इससे बड़ा आश्चर्य भला और क्या होगा कि एक ही जीवन में दो योनियों में परिवर्तित हो गया मैं? सचमुच इसके पहले हम इसके बारे में ना तो सोच सकते थे और ना ही कल्पना कर सकते थे।"

"तो क्या आप इन सब बातों के बाद भी यही समझते हैं कि नाना विराट आपके पिता नहीं रहे?" राज ने रिशभ की तरफ देखते हुए कहा था। उसके होठों पर एक चंचल सी मुस्कान थी।

"मेरे समझने या ना समझने से क्या होता है बेटे।" रिशभ ने कहा__"सच तो यकीनन सच ही होता है मगर जब कोई ख़याल या विचार हमारे मन मस्तिष्क में इस कदर बैठ जाए कि हम उस सच्चाई को जानते बूझते हुए भी न स्वीकार करें तो बात ज़रा जुदा हो जाती है। कहने का मतलब ये कि भले ही ये सच्चाई हो कि विराट मेरे पिता हैं लेकिन जब मेरा मन मेरी आत्मा इस बात को मानेगी ही नहीं तो फिर क्या किया जाएगा?"

"आप ये कहना चाहते हैं कि सच भले ही ये हो कि विराट नाना आपके पिता हैं।" राज ने कहा__"लेकिन आप इस सच को नहीं मानते हैं?"
"बिलकुल।" रिशभ ने दो टूक जवाब देने के अंदाज़ से कहा__"मैं नहीं मानता कि वो शैतान मेरा पिता है।"

"बड़ी अजीब बात है।" राज ने कहा__"इस सच्चाई को न मानने की आख़िर क्या वजह है मामा जी? क्या ये कि आप अब एक इंसान हैं और आपके पिता शैतान हैं, शैतान की योनि में हैं?"

"नहीं राज।" रिशभ ने कहा__"सच तो ये है कि मेरे विचारों में ये परिवर्तन यहाॅ आने के बाद ये जान कर हुआ है कि मेरा पिता अपने स्वार्थ के लिए अपनी ही बेटी की बलि दे देने में भी संकोच नहीं कर रहा। उसे इस बात का ज़रा भी एहसास नहीं है वो क्या कर रहा है? इस लिए जो पिता ऐसी मानसिकता का हो वो मेरा बाप कहलाने का अधिकारी नहीं है।"

"क्या सिर्फ यही वजह है?" राज ने अजीब भाव से कहा__"या कुछ और भी वजह है?"
"तुम कहना क्या चाहते हो राज?" रिशभ ने चौंकते हुए कहा था, बोला__"भला और किन वजहों की तरफ तुम मेरा ध्यान ले जाना चाहते हो?"

"ऐसा कुछ नहीं है मामा जी।" राज ने मुस्कुरा कर कहा__"मैं आपका ध्यान कहीं नही ले जाना चाहता। लेकिन जो वजह आपने बताई वो इतनी बड़ी तो नहीं है कि उसके लिए आप ये सोच लें कि विराट नाना अगर अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए अपनी बेटी को बलि का बकरा बना रहे हैं तो अब वो आपके पिता कहलाने के अधिकारी ही नही रहे या आप उन्हें अपना पिता मानने से ही इंकार कर दें। माता पिता का पूर्ण अधिकार होता है अपने बच्चों के ऊपर। उन्होने जन्म देकर एक जीवन दिया है, इस लिए वो जो चाहें उनके साथ कर सकते हैं।"

"चलो छोंड़ो इन बातों को राज।" रिशभ ने बेचैनी से पहलू बदला__"मुझे लगता है बहुत ज्यादा बहस हो गई है इस विषय पर।"
"हाॅ ये तो है।" राज ने कहा__"देखिए हम लोग माधवगढ़ की सीमा में पहुॅच गए हैं। आपके पिता जी ने कदाचित चक्रब्यूह बना रखा है यहाॅ। हम लोगों के अलावा अगर कोई साधारण इंसान यहाॅ आया होता तो वह किसी कीमत पर ये न जान पाता कि यहाॅ पर कितने खतरनाक शैतानों ने अपनी पूरी फौज तैनात कर रखी है। क्योंकि पूरी शैतानों की फौज अदृश्य रूप में है।"

"सच कहा तुमने।" रिशभ के चेहरे पर एकाएक कठोरता आ गई__"लेकिन इतनी बड़ी फौज हमारा बाल भी बाॅका नहीं कर पाएगी राज। इन सबको मैं पल भर में मसल कर रख दूॅगा।"

"मामा जी आप मुझसे बड़े हैं।" राज ने कहा__"इस लिए आपको ये समझाने की ज़रूरत नहीं कि क्रोध और आवेश से नहीं बल्कि होश और विवेक से काम करना है।"

"मैं पूरी तरह होश में हूॅ बेटे।" रिशभ ने कहा__"तुम चिन्ता मत करो।"
"अभी आप कुछ नहीं करेंगे।" रिशभ ने कहा__"हम बिना कुछ किये यहाॅ से आगे बढ़ेंगे लेकिन पूरी तरह सावधान होकर। कुछ भी करने का पहला अवसर उन्हें ही देते हैं।"

"ठीक है।" रिशभ ने कहा__"अब चलो।"


दोस्तो, यहाॅ से इस कहानी को मैं हीरो की ज़ुबानी लिखूॅगा।

मैं और मामा जी जो कि हवा में उड़ते हुए आए थे और यहाॅ आकर अभी हवा में ही थे। इस लिए अब ऊपर से नीचे ज़मीन पर उतर आए। चूॅकि आज अमावश्या की रात थी इस लिए अॅधेरा गहरा हो गया था। किन्तु ये अॅधेरा आम इंसानों के लिए गहरा था, हम दोनो मामा भाॅजे के लिए नहीं। क्योंकि हम दोनों अपनी शक्तियों से इस अॅधेरे में भी उसी तरह देख रहे थे जैसे यहाॅ दिन का उजाला हो।

हमारे सामने का रास्ता साफ था जबकि अगल बगल शैतानों की पूरी फौज बहुत दूर तक कतारों से खड़ी थी। एक तरफ वैम्पायर्स थे तो दूसरी तरफ वेयरवोल्फ्स। उन सबने हमें देख लिया था, ये हम भी जानते थे। किन्तु क्या वो भी ये जानते थे कि हम उन्हें स्पष्ट देख रहे हैं। हम दोनो शान्ति से किन्तु पूरी तलह सतर्क होकर आगे बढ़े जा रहे थे। दोनो तरफ खड़े शैतानों की गिद्ध जैसी नज़रें हम पर ही टिकी हुई थी। किन्तु वो सब आश्चर्यजनक रूप से चुपचाप अपनी जगह पुतलों की तरह खड़े थे। मैं हैरान था कि इन्हें क्या हो गया है? ये सब पुतलों की तरह चुपचाप खड़े क्यों हैं? क्या ये तूफान के आने से पहले की शान्ति थी? या फिर वो किसी आदेश की प्रतीक्षा में थे?

मुझे एकाएक ध्यान आया कि ये सब शायद मेरी दोनो माॅ(मेनका/काया) की प्रतीक्षा में थे। क्योंकि विराट का प्लान यही था। वो मुझसे उलझ कर अपना काम ख़राब नहीं करना चाहता था। बल्कि मेरी माॅ यानी मेनका को किसी तरह पकड़ लेना चाहता था ताकि उनकी गर्दन पर ख़ंजर रख कर मुझे अपाहिज बना सकें।

पर शायद वो ये भूल गए थे कि सोच और दिमाग़ तो सबके पास होता है। और उसी सोच व दिमाग़ के बल पर वो इन सबकी सोच को मात भी दे सकता है। हम दोनो सतर्कता से चलते हुए लगभग काफी आगे तक बढ़ आए थे। अभी तक शैतानों की तरफ से कोई प्रतिक्रिया न हुई थी।

अचानक ही हम दोनो ने महसूस किया कि दोनो तरफ के शैतानों में हलचल शुरू हो गई है। वो सब एक दूसरे का चेहरा देखते और फिर ऊपर आकाश की तरफ देखने लगते।

"ये सब ऊपर क्यों देख रहे हैं राज?" रिशभ मामा ने धीमें आवाज़ से कहा__"कहीं ऐसा तो नहीं कि सुरक्षा कवच के अंदर मौजूद वो तीनों इन्हें दिखाई दे रहे हों?"
"नहीं मामा जी ये असंभव है।" मैंने भी धीमी आवाज़ में ही कहा__"वो सुरक्षा कवच इतना मामूली नहीं है जिसे कोई भी देख सके।"

"वैसे वो तीनो हैं कहाॅ?" रिशभ ने कहा__"तुम तो देख ही सकते हो न उन्हें तो बताओ फिर।"
"वो ऊपरी मार्ग से हमारे साथ ही चल रहें हैं।" मैंने बताया__"वो सब भी हमें और इन सभी शैतानों को देख रहे हैं।"

"अच्छा, ये तो अब बौखलाए हुए से नज़र आने लगे हैं देखो।" रिशभ मामा ने कहा।
"वो तो बौखलाएॅगे ही।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा__"जिसकी उन्हें ज़रूरत है वो तो कहीं दिख ही नहीं रहा इस लिए बेचारे बौखला तो जाएॅगे ही। ख़ैर बढ़ते रहिए...जब तक उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं होगी तब तक हम कुछ नहीं करेंगे।"

"ठीक है।" रिशभ ने कहा__"और अगर प्रतिक्रिया होती है तो एक तरफ का मैं सम्हालूॅगा और दूसरी तरफ का तुम सम्हाल लेना।"
"जैसी आपकी इच्छा।" मैने मुस्कुरा कर कहा।

हम दोनो सतर्कता से आगे बढ़ते हुए चले जा रहे थे। तभी सहसा भयंकर शोर शराबा गूॅज उठा दोनो तरफ से। एक तरफ वैम्पायर्स तो दूसरी तरफ वेयरवोल्फ्स। रिशभ मामा मेरे बाएॅ तरफ थे। शोर शराबा सुनते ही हम दोनो रुक गए और अपनी अपनी तरफ देखने लगे।
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उधर महेन्द्र के घर में।
प्लान में बदलाव किया गया था। महेन्द्र ने रंगनाथ से कहा कि हम ज्यादा इन्तज़ार करके अपना समय बरबाद नहीं कर सकते। क्योंकि हमें बहुत दूर जाना भी है। जबकि यहाॅ सबके सोने में समय भी लग सकता है। अपने कमरे में पूनम के जाते ही मोहिनी भी अपने बेटे के कमरे में चली जाएगी और वह देर रात तक अपने बेटे के साथ हवस का खेल खेलेगी। पूनम पढ़ने लिखने वाली लड़की है। वो इन छुट्टियों में भी कुछ न कुछ अपने कमरे में जाकर पढ़ाई करेगी। उधर महेन्द्र का साला भी संभव है जल्दी न सोए। कहने का मतलब ये कि इन सबके सोने में समय लग सकता है। जबकि हमें रात बारह बजे महाशैतान को कुवाॅरी कन्या सौंपना है। अब अगर हम समय से वहाॅ पहुॅचेंगे ही नहीं तो हमारा ये काम कैसे पूरा हो सकेगा??

इस लिए महेन्द्र सिंह ने अपना प्लान बदल दिया था। अब उसका प्लान था कि किचेन में जैसे ही डिनर तैयार होता है तो किसी तरह वह चुपके से उस खाने में नींद की दवा डाल देगा। ताकि खाना खाने के बाद सबको नीद का आभास हो और वो सब अपने अपने कमरों में जाकर चैन की नींद सो जाएॅ। किसी को इस बारे में ज्यादा शक़ भी नहीं होगा। हम आराम से पूनम और उसके मामा को यहाॅ से उठा ले जाएॅगे।

मामा को साथ में ले जाने के पीछे वही मकसद था जो पहले इन लोगों के प्लान में था। मतलब ये कि अगर किसी वजह से मोहिनी व उसके बेटे पूरन को इस बात अंदेशा हुआ तो पूनम के साथ मामा को भी गायब पाते देख वो यही सोचें कि ये सब पूनम के मामा ने ही किया होगा।

बस फिर क्या था, प्लान के मुताबिक महेन्द्र ने किचेन में जाकर देखा कि सबके लिए थाली लगी हुई थी। यानी बस खाने वालों की देरी थी। उसने तुरंत ही थाली में रखे भोजन में नीद की दवा पर्याप्त मात्रा में डाल दी। महेन्द्र के घर में खाना बनाने के लिए एक बाई थी जो यहीं रहती थी। किचेन में खाना तैयार कर तथा थाली सजा कर वह सबको खाना खाने के लिए ऊपर कहने गई हुई थी। महेन्द्र के लिए यही समय उपयुक्त था अपने प्लान को अंजाम देने के लिए। बाई के जाते ही वह तेज़ी से किचेन में पहुॅचा था। सब कुछ पहले से तैयार था उसका। ख़ैर, जब वह खुद मुतमईन हो गया कि सब ठीक है तब तुरंत ही किचेन से बाहर आकर वह घर से बाहर की तरफ निकल गया। उसका प्लान था कि बाई जब वापस ऊपर से नीचे आए तब वह और रंगनाथ उसे बाहर से आते हुए दिखें। ये अपने पक्ष को मजबूत रखने के लिए ज़रूरी था।

ख़ैर, कुछ ही देर में सब डायनिंग हाल में डिनर के लिए आ गए। बाई ने जब महेन्द्र व रंगनाथ को देखा तो उसने इन दोनो को भी खाने के लिए कहा। किन्तु इन लोगों ने ये कह कर खाने से मना कर दिया कि वो अभी शाम को बाहर से खाकर ही आए थे और ऐसा अक्सर होता भी था महेन्द्र बाहर से खाकर आ जाता था। ख़ैर, महेन्द्र ने देखा कि डायनिंग टेबल पर मोहिनी, पूरन, व मोहित(साला) मौजूद थे किन्तु पूनम मौजूद नहीं थी। ये देख महेन्द्र सिंह अंदर ही अंदर परेशान हो गया। क्योंकि पूनम को डिनर करना भी ज़रूरी था। हलाॅकि वो जानता था कि पूनम अपनी माॅ और भाई के पास नहीं जाती थी। किन्तु उसका खाना उसके रूम में बाई लेकर ज़रूर जाएगी। लेकिन समस्या ये थी कि पूनम अपने रूम में उस खाने को कब खाएगी? संभव है कि वह खाए ही न, या पढ़ने के बाद खाए।

महेन्द्र और रंगनाथ को लगा कि उनका प्लान ख़राब हो जाएगा। पर वो इसमें कर ही क्या सकते थे। वो खुद पूनम के कमरे में जाकर उसे खाना खाने के लिए ज़बरदस्ती तो कर नहीं सकते थे।

"अब क्या करें महेन्द्र?" रंगनाथ अपने कमरे में बैठे महेन्द्र से परेशानी में कहा__"अगर पूनम ने हमारे टाइम के हिसाब से खाना नहीं खाया तो सब गड़बड़ हो जाएगी।"

"हम कर भी क्या सकते हैं मित्र?" महेन्द्र ने चिन्तित भाव से कहा__"अब अगर मैं किसी तरह पूनम को खाना खिलाने के लिए किसी से कहूॅगा भी तो सबको मेरी ये बात अजीब लगेगी। क्योंकि इसके पहले मैंने कभी ऐसा नहीं किया था। अब तो यही शुक्र मनाओ कि सरिता(बाई) पूनम को उसके रूम में खाना देने जाए और पूनम उस खाने को बिना देर किये खा ले।"

"एक बार ये काम हो जाए महेन्द्र।" रंगनाथ ने कहा__"उसके बाद तो फिर किसी बात की चिन्ता ही नहीं होगी।"
"सच कहते हो मित्र।" महेन्द्र ने एकाएक अजीब भाव से कहा__"शक्तियाॅ मिलते ही मैं अपने दुश्मनों का वो हाल करूॅगा कि देवता भी उन्हें उस हाल में देख कर थर्रा जाएॅगे। लेकिन सबसे पहले तो मैं इन माॅ बेटों का कल्याण करूॅगा। इन दोनों ने मेरी अंतर्रात्मा को बहुत पीड़ा पहुॅचाई है। मैं इनकी हवस को सबसे पहले शान्त करूॅगा। इन दोनो की गाॅड में ऐसे शैतानी कीड़े डालूॅगा जो पल पल इनकी हवस को मिटाएॅगे।"

"वो सब तो ठीक है मित्र।" रंगनाथ ने कहा__"लेकिन उसके पहले ये सब तो हो। तुम ज़रा पता करने की कोशिश करो कि सरिता पूनम के रूम में उसके लिए खाना दे आई कि नहीं?"
"ठीक है, मैं पता करने की कोशिश करता हूॅ।" महेन्द्र कहने के साथ ही उठ कर बाहर की तरफ आहिस्ता से निकल गया।

कमरे से बाहर आते ही महेन्द्र की नज़र सीढ़ियाॅ उतरते सरिता पर पड़ी। उसे समझते देर न लगी कि सरिता ने पूनम के लिए खाना उसके रूम में पहुॅचा दिया है। वह ये देख कर खुश हो गया किन्तु फिर तुरंत ही वह फिर से उसी तरह चिन्तित नज़र आने लगा। कदाचित इस ख़याल से कि पूनम वह खाना खाएगी कब?

खाना खा कर सब लोग ऊपर अपने अपने कमरों में जा चुके थे। महेन्द्र ने दरवाजे के की होल से स्पष्ट देखा कि सबकी आॅखों में नींद की खुमारी के आसार दिखाई दिये थे। मतलब साफ था कि ये सब कमरों में जाते ही बिस्तर पर गहरी नींद में डूब जाने वाले थे।

सबके जाते ही महेन्द्र सिंह चुपके से दरवाजा खोल कर बाहर निकला। गैलरी से बढ़ते हुए वह सीढ़ियों के पास पहुॅचा। नीचे बाएॅ तरफ बने डायनिंग हाल पर उसकी नज़र पड़ी। सरिया अभी अभी किचेन से दो थाली लिए निकली थी। ये वही थालियाॅ थी जिनमें नीद की दवा मिली हुई थी। भोजन की दो थालियाॅ बच गई थी क्योंकि महेन्द्र और रंगनाथ ने खाना खाने से मना कर दिया था।

सरिता दोनो थालियों को लिए नीचे ही पीछे की साइड बने अपने कमरे की तरफ चली गई। उस कमरे में सरिता अपने पति राघव व एक लड़की के साथ रहती थी। उसकी लड़की अभी सात साल की थी। महेन्द्र समझ गया कि ये दोनो पति पत्नी भी थाली में रखा खाना खा कर अंटा ग़ाफिल हो जाएॅगे। ये महेन्द्र के लिए सोने पे सुहागा वाली बात थी।

सरिता के जाने के बाद महेन्द्र वापस पलटा और दबे पाॅव अपनी बेटी पूनम के कमरे की तरफ बढ़ गया। पूनम के कमरे के दरवाजे पर रुक कर उसने इधर उधर देखा। फिर झुक कर उसने दरवाजे के की-होल से कमरे के अंदर की तरफ देखने लगा वह। महेन्द्र सिंह यह देख कर खुशी से झूम उठा कि कमरे के अंदर बेड पर बैठी उसकी बेटी बेड के पास स्टूल पर रखी थाली में खाना खा कर उसी में हाॅथ धो रही थी। किन्तु हाॅथ धोते समय उसका हाव भाव ऐसा था जैसे उसे इस काम में कितना आलस लग रहा हो। हाॅथ धोने के बाद उसने मुॅह को साफ किया और फिर पानी पी कर स्टूल को दीवार की साइड खिसका दिया।

महेन्द्र सिंह समझ गया कि बहुत जल्द उसकी बेटी गहरी नींद में जाने वाली है। उधर कमरे के अंदर पूनम बेड पर लेट चुकी थी। सिरहाने पर एक बुक रखी थी जिसे उसने उठाया और उसे खोल कर उसके पेज पलटने लगी। कुछ ही पल में उसने पेजों को पलटना बंद किया और मन ही मन कदाचित उसे पढ़ने लगी।

इधर महेन्द्र सिंह तभी किसी आहट से बुरी तरह चौंका। तेज़ी से पलट कर देखा तो अपने पीछे रंगनाथ को खड़े पाया। रंगनाथ को देख कर महेन्द्र सिंह ने राहत की साॅस ली। उसका दिल अनायास ही बड़ी तेज़ी से धड़कने लगा था। रंगनाथ ने आॅख के इशारे से ही पूछा कि क्या देख रहे हो? महेन्द्र सिंह ने उसके कान में धीरे से बताया कि काम हो गया है। रंगनाथ ये सुन कर खुश हो गया।

महेन्द्र सिंह पुनः की-होल से कमरे के अंदर देखने लगा। वह ये देख कर मुस्कुराया कि उसकी बेटी जिस किताब को लिए पढ़ रही थी उसने उस किताब को अपने चेहरे पर गिरा लिया था। मतलब साफ था कि उसकी बेटी अब गहरी नीद में जा चुकी थी। पूनम बेचारी पढ़ते पढ़ते ही नीद की आगोश में पहुॅच गई थी। चेहरे पर किताब गिरी हुई थी। हलाकि उसने किताब को अभी भी दोनो हाॅथों से पकड़ा हुआ था।

इधर महेन्द्र ने एक पल भी जाया नहीं किया। पैन्ट की जेब से उसने दरवाजे की चाभी निकाली और उसे की-होल में डालकर विपरीत दिशा में घुमाया किन्तु चाभी न घूमी। ये देख महेन्द्र का दिल मानो बैठ सा गया। उसने कई बार कोशिश की किन्तु परिणाम वही। महेन्द्र सिंह एकाएक ही हैरान परेशान सा नज़र आने लगा। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि चाभी घूम क्यों नहीं रही है? रंगनाथ ने महेन्द्र को हैरान परेशान देखा तो पूछ ही लिया कि क्या हुआ?

महेन्द्र ने बताया कि चाभी घूम ही नहीं रही है। ये सुन कर रंगनाथ की हालत भी अजीब हो गई। फिर तुरंत ही उसने कहा कि ऐसा कैसे हो सकता है, चाभी इसी लाक की तो है ना? महेन्द्र ने कहा कि चाभी यही है। रंगनाथ ने महेन्द्र से चाभी लेकर खुद प्रयास किया। किन्तु उससे भी कुछ न हुआ। फिर सहसा उसने चाभी को अनायास ही इस तरफ घुमाया तो चाभी घूम गई। रंगनाथ को झटका सा लगा। दिमाग़ की बत्ती एकाएक ही जल उठी। उसने पलट कर महेन्द्र से कहा कि लाॅक तो पहले से ही खुला हुआ था दरवाजे का। इसी लिए चाभी खोलने वाली दिशा में नहीं घूम रही थी। महेन्द्र सिंह ये सुन कर ठगा सा खड़ा रह गया। उसने सोचा, साला जल्दबाजी में ख़याल ही नहीं आया कि ऐसा क्यों हो रहा था? और सबसे बड़ी बात ये भी विचार नहीं किया कि एक बार दरवाजे को अंदर की तरफ धकेल कर देख ले। अगर पहले ही ऐसा कर लेता तो कम से कम समय तो न बरबाद होता। महेन्द्र सिंह को खुद पर और अपनी इस बुद्धि पर बड़ा गुस्सा आया लेकिन फिर हजम करके रह गया।

दरवाजे का लाॅक तो पहले से ही खुला हुआ था इसी वजह से चाभी नहीं घूम रही थी। ख़ैर, कमरे का दरवाजा खोल कर दोनो अंदर दाखिल हुए। महेन्द्र ने रंगनाथ से कहा कि वह पूनम को अच्छी तरह चेक करके उठाए तब तक वह अपने साले को भी लेकर आता है।

महेन्द्र सिंह अपने साले के कमरे के पास पहुॅचा। इस बार उसने पहले दरवाजे को अंदर की तरफ धकेल कर चेक किया। किन्तु ये दरवाजा अंदर से लाक था। शायद मोहित ने कमरे में आते ही दरवाजा लाक कर लिया था।
महेन्द्र ने की-होल से झाॅक कर अंदर देखा। आशा के मुताबिक उसका साला गहरी नीद में ही था। ये देख वह तुरंत ही चाभी से लाक को खोल कर कमरे में दाखिल हुआ। मोहित को अच्छी तरह चेक करने के बाद उसने उसे अपने दोनो हाथों से पकड़ कर उठा लिया और उसे अपने कंधों पर लाद लिया। उसके बाद वह पलट कर कमरे से बाहर आ गया। दरवाजे को बंद करके वह दबे पाॅव गैलरी में चलते हुए सीढ़ियों के पास आया तो उसकी नज़र रंगनाथ पर पड़ी जो पूनम को लिए नीचे पहुॅच चुका था।

महेन्द्र सिंह अपने साले को लिए सीढ़ियाॅ उतरता चला गया। मोहित का वजन पैंसठ या सत्तर किलो से कम न था। लेकिन महेन्द्र उसे बड़े आराम से लिए आगे बढ़ता जा रहा था। कदाचित आसुरी शक्तियों का प्रभाव था जिससे ये भार उन्हें हल्का लग रहा था।

घर से बाहर आकर महेन्द्र ने देखा लोहे के गेट के पास कोई आदमी चौकीदार के रूप में नहीं था। महेन्द्र सिंह ये देख कर पहले तो हैरान हुआ फिर सीघ्रता से आगे बढ़ते हुए गेट के पार निकल गया। घर से काफी दूर आकर जिस जगह वह रुका उस जगह पर रंगनाथ पहले से मौजूद था। उसके पीछे ही एक कार खड़ी थी। महेन्द्र को देखते ही रंगनाथ ने कार की डिक्की खोली। महेन्द्र ने साले को डिक्की के अंदर आहिस्ता से डाल दिया। साले को अंदर डालने के बाद रंगनाथ ने डिक्की को वापस बंद कर दिया।

"पूनम कहाॅ है?" महेन्द्र ने पूछा।
"वो कार की पिछली सीट पर है।" रंगनाथ ने कहा__"अब रुकने का समय नहीं है। जल्दी चलो।"

रंगनाथ के कहने पर महेन्द्र तुरंत ही कार की ड्राइविंग सीट पर बैठा, रंगनाथ भी उसके बगल वाली सीट पर बैठ गया। रंगनाथ के बैठते ही महेन्द्र सिंह ने कार स्टार्ट करके आगे बढ़ा दी।

"बाहर लोहे के गेट पर तुम्हारा कोई आदमी नज़र नहीं आया।" रंगनाथ ने कहा__"क्या तुमने उन्हें हटा दिया था?"
"नहीं मैने उन्हें नहीं हटाया।" महेन्द्र ने ज़ोर देकर कहा__"शायद दोनो ही किसी कोने में चिलम फूॅकने गए होंगे। "

"ओह तभी वो दोनो नज़र नहीं आए।" रंगनाथ ने कहा__"चलो अच्छा ही हुआ मित्र। कोई सोच भी नहीं सकता अब कि उनके रहते हमने क्या खेल खे
ल लिया है?"

"अब आएगा मज़ा।" महेन्द्र ने कहा__"सब से बदला लूॅगा मैं और सबके साथ नंगानाच करूॅगा मैं। आज रात महाशैतान को खुश करके हम दोनो बेहद शक्तिशाली बनने वाले हैं।"
"सच कहा मित्र।" रंगनाथ ने कहा__"उसके बाद हम उस मानव आकृति को भी देख लेंगे जो अशोक के परिवार की कदाचित रक्षा कर रहा है।"

"हाॅ मित्र।" महेन्द्र सहसा गुर्राया__"और उस रानी को तो मैं अपनी रखेल बनाऊॅगा। अब इसके सिवा कोई दूसरी बात उसके साथ नहीं होगी।"
"वो तो ठीक है मित्र।" रंगनाथ ने कहा__"लेकिन रानी को तुम सिर्फ अपनी रखेल क्यों बनाओगे? क्या उसमें मेरा कोई अधिकार नहीं होगा?"

"बिलकुल अधिकार होगा मित्र।" महेन्द्र ने कहा__"हम दोनो अब एक ही तो हैं। सब कुछ एक साथ ही करेंगे और हर चीज़ का आनन्द भी उठाएॅगे। अशोक की वो छोकरी हम दोनो की ही रखेल बनेगी।"
"ये हुई न बात।" रंगनाथ खुश होता नज़र आया, बोला__"अब तो बस उस पल का इन्तज़ार है मित्र जिस पल हम दोनो महाशैतान को खुश करके उससे शक्तियाॅ पा जाएॅगे।"

"ऐसा ही होगा मित्र।" महेन्द्र ने कहा__"हमारी इतने दिनों की गाॅड फाड़ मेहनत हर्गिज़ भी जाया नहीं जाएगी।"

रंगनाथ महेन्द्र की इस बात से ठहाका लगा कर हॅस पड़ा था। उसके इस तरह हॅसने से महेन्द्र सिंह भी हॅसने लगा था। कार तेज़ी से शहर से बाहर की तरफ बढ़ती जा रही थी।
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उधर दूसरी तरफ,

अभी हम दोनो अपनी अपनी तरफ देख ही रहे थे कि एकाएक शोर शराबा इस तरह बंद हो गया जैसे कोई टेप रिकार्डर में बजता हुआ गाना अचानक बिजली चले जाने से बंद हो जाता है। दोनो तरफ से शोर बंद होते ही बीच रास्ते के दूसरी तरफ कुछ ही दूरी पर हमें वैम्पायर्स किंग और वेयरवोल्फ्स किंग खड़े नज़र आए। वो दोनो एकाएक ही प्रकट हुए थे। दोनो के हाॅथ में उनका बड़ा सा किन्तु अजीब सा हथियार था। वो दोनो चलकर हमारे कुछ पास आए और फिर रुक गए।

"तो जिसका हमें इतने वर्षों से बड़ी बेसब्री से इन्तज़ार था।" विराट कह रहा था__"वो पल और वो बालक आख़िर हमारे सामने आ ही गया। लेकिन जिस बालक की हमने कल्पना की थी उस बालक के जैसी खूबी तुममें तो दूर दूर तक नज़र नहीं आती। कहीं ऐसा तो नहीं कि जो कुछ हमने उस बालक के बारे में सुना था या कल्पना की थी वो सब महज कोरी बकवास थी?"

"आप ठीक कह रहे हैं महाराज विराट।" तभी वेयरवोल्फ किंग ने कहा__"हमें भी इस बालक में वैसी कोई बात नज़र नहीं आ रही है। ये तो कोई साधारण और मामूली सा अबोध बालक है। जो हमारे पास मरने के लिए आ गया है हाहाहाहाहा।"

"इसका पता तो तब चलेगा तुम्हें।" सहसा मामा जी ने आवेश में आकर कहा__"जब तुम और तुम्हारी ये कीड़े मकोड़ों जैसी सेना एक पल में धूल चाटती हुई नज़र आएगी।"

मैने मामा जी का हाॅथ पकड़ कर हल्के से दबाया, ये मेरा संकेत था कि वो अपने होशो हवाश में ही रहें।

"महाराज विराट।" वेयरवोल्फ किंग अनंत ने विराट से कहा__"ये तो आपका पुत्र रिशभ है ना? देखिए ज़रा, इसे तो ये भी नहीं पता कि अपने बड़ों से कैसी बातें की जाती हैं। ये निहायत ही बड़ा बददतमीज़ पुत्र है आपका।"

"माफ़ करें सम्राट अनंत।" विराट ने खेद भरे भाव से कहा__"किन्तु इसे इसकी इस धृष्ठता की सज़ा अवश्य मिलेगी। इन चारों ने शैतान होते हुए भी हमारे खिलाफ जाकर जो कुछ किया है उस सबकी सज़ा इन्हें अवश्य मिलेगी। लेकिन....।"

"लेकिन क्या महाराज?" अनंत चौंका था।
"लेकिन बाॅकी तीन कहीं दिख नहीं रहे हैं हमें।" विराट ने कहा__"इन दोनो के साथ ही होना चाहिए था न उन्हें? फिर गए कहाॅ वो?"

"ज़रूर हमारे डर से वो तीनो कहीं छिप गए होंगे।" अनंत ने हॅस कर कहा था।
"नहीं सम्राट।" विराट ने कहा__"वो तीनो इस बालक को इस तरह इसके साथ नहीं छोड़ेंगे। ज़रूर इसमें इस बालक की कोई चाल होगी। इसी ने कुछ किया होगा। बता लड़के कहाॅ छुपा दिया है तुमने उन तीनो को?"

"वो सब मेरे साथ ही हैं नाना जी।" राज ने मुस्कुरा कर कहा था।
"न नाना जी???" विराट बुरी तरह उछल पड़ा था__"तुमने हमें नाना जी कह कर संबोधित किया?"

"अब आप मेरे नाना जी हैं तो यही कह संबोधित करूॅगा न नाना जी।" राज ने फिर मुस्कुरा कर कहा__"आप तो जानते ही हैं कि आपकी दोनो बेटियाॅ मेरी माॅ हैं। उस हिसाब से तो आप मेरे नाना जी ही हुए न? और आपके ये बेटे जो मेरे साथ खड़े हैं ये मेरे मामा जी हैं।"

"ओह, तो तुमने इन सबसे रिश्ता जोड़ रखा है?" विराट हॅसा__"बहुत खूब लड़के। अपने बचाव के लिए अच्छा नाटक रचाया हुआ है तुमने। लेकिन तुम्हारा ये नाटक हमारे साथ नहीं चलेगा। इस लिए ये सब छोड़ो और हमें बताओ कि बाॅकियों को कहाॅ छुपाया हुआ है तुमने?"

"बाॅकियों को तो आप भूल ही जाइये नाना जी।" राज ने कहा__"जो आपके सामने हैं उनसे बात कीजिए। आपको तो मेरी ज़रूरत थी न, इस लिए मुझे हासिल करने के बारे में सोचिये। और अगर ये भी नहीं करना है तो बेकार में मेरा और अपना समय बरबाद मत कीजिए।"

"तुम समझते क्या हो अपने आपको?" तभी अनंत ने गुर्राते हुए कहा__"हम चाहें तो इसी वक्त तुम्हें चुटकियों में मसल सकते हैं।"
"हाॅथ लगा कर तो दिखा तू?" मामा जी गुस्से में दहाड़ उठे, बोले__"तेरे जैसों को मैं अपने कच्छे में लिए फिरता हूॅ समझा?"

मामा जी की इस बात से वेयरवोल्फ किंग गुस्से में बुरी तरह आग बबूला हो गया। उसने अपने हाथ में लिए बड़े से हथियार को उठा कर ज़ोर से ज़मीन पर पटका। ये कदाचित कोई संकेत था क्योंकि उसके ऐसा करते ही हमारे दाएॅ तरफ खड़ी वेयरवोल्फ की सेना एकाएक ही हरकत में आ गई।

अब तो जंग होनी तय थी। अनंत की भाॅति विराट भी गुस्से में आग बबूला हो गया था। अपने बेटे के द्वारा वह सम्राट अनंत के इस अपमान को सह नहीं सका था। उसने भी वैसा ही हथियार पटक कर संकेत कर दिया था।

दोनो तरफ की सेनाएॅ दौड़ते हुए हमारे पास आ रही थी। उधर विराट और अनंत ये देख कर ज़ोर ज़ोर से हॅसे जा रहे थे। मैंने मामा जी को संकेत दिया। वो तो जैसे मेरी ही प्रतीक्षा कर रहे थे। मामा जी ने आॅखें बंद कर ध्यान लगाया।

कुछ ही पल में तेज़ आॅधी चलने लगी। मामा जी के चारो तरफ गोल गोल घूमता हुआ एक बड़ा भयंकर सा बवंडर उत्पन्न हो गया। मामा जी उस बवंडर के अंदर थे और उनकी आॅखें लाल सुर्ख हो गई थी।

विराट और अनंत ये देख कर आश्चर्यचकित हो गए। चेहरे पर उलझन व परेशानी के भाव आ गए। इधर मामा जी तीब्र वेग से गोल गोल घूमते बवंडर के अंदर खड़े हुए ही अपने हाॅथों को फैलाया। उनके ऐसा करते ही बवंडर अपनी जगह से और भी उग्र होकर वेयरवोल्फ्स की तरफ बढ़ने लगा।

जैसा कि मामा जी ने पहले ही कहा था कि एक तरफ वो सम्हालेंगे और दूसरी तरफ मैं। इस लिए मामा जी के जाते ही मैंने अपने दोनों हाॅथों को फैला कर आसमान की तरफ देखा। मेरे ऐसा करते ही आसमान में बिजलियाॅ चमकने लगी और पूरे आसमान की चमकती हुई बिजलियाॅ एक साथ नीचे की तरफ आकर मुझमें समाने लगीं। इसके साथ ही एक तेज़ रोशनी मेरे चारो तरफ फैल गई। मेरी तरफ बढ़ते हुए हज़ारों वैम्पायर्स इस तेज़ रोशनी को देख कर रुक गए पर जो नहीं रुक पाए थे वो जैसे ही इस तेज़ रोशनी से टकराए तो जल कर राख हो गए।

रोशनी के लोप होते ही मैं एक नये रूप में उन सबके सामने खड़ा था।
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मुझे इस रूप में देख सब डर गए। विराट और अनंत चकित से देखते रह गए मुझे। उधर मामा जी के नजदीक जो भी आता वो उसे बवंडर में लपेट कर दूर फेंक रहे थे। सहसा उस बवंडर में आग भी उत्पन्न हो गई। जो भी आता उस आग रूपी बवंडर में जल कर दूर उड़ता हुआ गिरता।

"महाराज विराट ये सब क्या है?" अनंत ने चकित भाव से पूछा__"ये बालक तो कुछ और ही नज़र आने लगा। और आपका वो बेटा तो जैसे मौत ही बन गया है हमारी सेना के लिए। कुछ तो करना ही पड़ेगा हमें वरना थोड़ी ही देर में यहाॅ सब कुछ साफ हो जाएगा। हमारी सेना के सभी शैतान मारे जाएॅगे।"

"आप ठीक कहते हैं सम्राट।" विराट ने कहा__"हमें जल्द ही कुछ करना होगा। हमें किसी भी कीमत पर वो बालक चाहिए।"

ये कह कर दोनो ही सम्राटों ने अपनी अपनी आॅखें बंद कर ली। उनके ऐसा करते ही एक बार फिर से आसमान में बिजलियाॅ कड़कने लगीं। देखते ही देखते उन दोनो का रूप बदल गया।
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सम्राट विराट इस रूप में आते ही मेरी तरफ बढ़ने लगे। वहीं दूसरी तरफ सम्राट अनंत भी अपने नये रूप में मेरी तरफ बढ़ने लगे थे।
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दोनो ने एक साथ ही मेरी तरफ आग का गोला फेंका मैने उन दोनों गोलों को अपनी तलवार से किसी बाल की तरह छक्का लगा दिया। वो दोनो गोले उड़ते हुए वैम्पायर सेना के बीच उनके ऊपर ही गिरे। एक भयंकर विस्फोट हुआ और कई सारे वैम्पायर जल कर राख हो गए। ये देख दोनो ही तिलमिला गए और फिर से अपनी शक्तियों द्वारा आग का गोला फेंका मैने उस गोले के साथ भी वही किया। ऐसा कई बार हुआ, दोनो बुरी तरह गुस्से में आ गए और मेरी तरफ भागते हुए आने लगे।

उधर मामा जी सबका कल्याण करने में लगे हुए थे। मैंने अपने दोनों हाथों को वैम्पायर सेना की तरफ फैलाकर झटका दिया तो मेरे हाथों से लाल रंग की किरण निकल कर वैम्पायर्स सेना की तरफ लपकी। मै उन सबकी तरफ हाथों को फेरता रहा। वो सब उसमें जल जल कर राख होते रहे।

दोनो किंग तब तक मेरे पास आ गए और मुझ पर अपनी तलवार व हथौड़े से वार करने लगे। मैं अपनी तलवार से उनके वार को रोंकने लगा। मैं समझ गया था कि ये इसी तरह मुझसे लड़ते हुए तथा मुझे हराकर अपने काबू में करना चाहते हैं मुझे। वो मुझ पर पूरी शक्ति से अपनी तलवार व हथौड़े से वार कर रहे थे। उन दोनो का शरीर फौलाद की तरह था तथा बेहद ही बलशाली भी। मैंने ये सोच कर अपनी पीठ पर उगे पंखों को पीठ से गायब कर दिया कि कहीं ग़लती से उनका कोई वार मेरे पंखों पर ना लग जाए।

अपने दोनो सम्राटों को मुझसे लड़ते देख दोनो सेनाएॅ मामा जी की तरफ दोड़ पड़ीं। उनमें से बहुतों के पास शक्तियाॅ थी जो दूर से ही उस बवंडर पर शक्ति प्रयोग कर रहे थे।

दोनो सम्राट बड़ी तेजी से मुझ पर वार कर रहे थे और मैं भी उतनी ही तेजी से उनके वार को रोंक रहा था। मैने अभी तक उन पर कोई वार नहीं किया था बल्कि सिर्फ उन दोनों के वारों को रोंक ही रहा था।

काफी देर तक यही चलता रहा। उनका कोई वार मेरे शरीर के किसी हिस्से को छू भी नहीं पा रहा था। दोनो वार करते करते मानो अब थक से गए थे। कुछ ही देर में दोनो रुक गए और हैरत से मुझे देखने लगे।

"क्या हुआ आप दोनो तो थक गए लगता है?" मैने मुस्कुरा कर कहा__"थोड़ा और ज़ोर लगाइये। आप दोनो तो अपनी दुनियाॅ के शक्तिशाली सम्राट हैं न फिर इस तरह किसी बालक से कैसे हार सकते हैं?"

"इतना ज्यादा इतराने की ज़रूरत नहीं है लड़के।" विराट ने कहा__"हम तो बस तुम्हारे साथ खेल खेल रहे थे। हम देखना चाहते थे कि तुममें कोई बात है भी या नहीं?"
"अच्छा।" मैंने हॅसते हुए कहा__"तो फिर क्या देखा आप दोनो ने?"

"यही कि तुममें बात तो है।" अनंत ने कहा__"पर उतनी भी नहीं जितनी की हमने कल्पना की थी।"
"आप दोनो के लिए इतना ही काफी है।" मैने कहा__"अगर इससे ज्यादा किया तो आप दोनो एक पल भी मेरे सामने ठहर नहीं पाएॅगे। वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूॅ कि आप दोनो के लिए तो मेरे मामा जी ही पर्याप्त थे। वो तो माॅ ने उन्हें मना कर दिया था कि वो आपसे न उलझें क्योंकि कुछ भी हो आप उनके पिता तो हैं ही। इस लिए वो अपनी मर्यादा को पार नहीं करना चाहती थी।"

"ये हमें तुच्छ समझ रहा है महाराज।" अनंत ने कहा__"अब तो इसे दिखाना ही पड़ेगा कि हम दोनो क्या चीज़ हैं।"
"आप ठीक कह रहे हैं सम्राट।" विराट ने गुस्से से कहा__"इसे दिखाना ही पड़ेगा अब।"

मैं उनकी इस बात से मुस्कुरा उठा। दोनो ने मेरे चारो तरफ चक्कर लगाना शुरू कर दिया। बीच में मैं भी अपने स्थान पर घूम रहा था। लेकिन तभी मैं एक भयंकर चीख सुन कर बुरी तरह चौंक गया और इसके साथ ही मैं बुरी तरह मात भी खा गया।


अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,
अब क्या हुआ क्या राज के माओ को पकड़ लिया गया या उसके मामा पर कोई मुसीबत आ गई है। कुछ तो गड़बड़ हुई है।
 

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राज-रानी (बदलते रिश्ते)
""अपडेट"" (13)


अब तक,,,,,,,,

"इतना ज्यादा इतराने की ज़रूरत नहीं है लड़के।" विराट ने कहा__"हम तो बस तुम्हारे साथ खेल खेल रहे थे। हम देखना चाहते थे कि तुममें कोई बात है भी या नहीं?"
"अच्छा।" मैंने हॅसते हुए कहा__"तो फिर क्या देखा आप दोनो ने?"

"यही कि तुममें बात तो है।" अनंत ने कहा__"पर उतनी भी नहीं जितनी की हमने कल्पना की थी।"
"आप दोनो के लिए इतना ही काफी है।" मैने कहा__"अगर इससे ज्यादा किया तो आप दोनो एक पल भी मेरे सामने ठहर नहीं पाएॅगे। वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूॅ कि आप दोनो के लिए तो मेरे मामा जी ही पर्याप्त थे। वो तो माॅ ने उन्हें मना कर दिया था कि वो आपसे न उलझें क्योंकि कुछ भी हो आप उनके पिता तो हैं ही। इस लिए वो अपनी मर्यादा को पार नहीं करना चाहती थी।"

"ये हमें तुच्छ समझ रहा है महाराज।" अनंत ने कहा__"अब तो इसे दिखाना ही पड़ेगा कि हम दोनो क्या चीज़ हैं।"
"आप ठीक कह रहे हैं सम्राट।" विराट ने गुस्से से कहा__"इसे दिखाना ही पड़ेगा अब।"

मैं उनकी इस बात से मुस्कुरा उठा। दोनो ने मेरे चारो तरफ चक्कर लगाना शुरू कर दिया। बीच में मैं भी अपने स्थान पर घूम रहा था। लेकिन तभी मैं एक भयंकर चीख सुन कर बुरी तरह चौंक गया और इसके साथ ही मैं बुरी तरह मात भी खा गया।


अब आगे,,,,,,,

वो दोनो मेरे चारो ओर चक्कर लगा रहे थे। इधर मैं भी अपने स्थान पर उन दोनो की तरफ एक एक करके देखते हुए घूम रहा था। मैं तो यही समझ रहा था कि वो दोनो इस तरह चक्कर लगाते हुए मुझ पर कोई दाॅव लगा कर हमला करेंगे, जबकि ऐसा कुछ नहीं हुआ। बल्कि हुआ ये कि उन दोनो के चक्कर लगाने से ज़मीन पर मेरे चारो तरफ जो गोला सा बन गया था उस गोले से ही अचानक तीरों की तरह कुछ निकला और पलक झपकते ही वो ऊपर उठते हुए सब आपस में मिल गए। मतलब कि मैं चारो तरफ से एक गोल पिंजरे में कैद हो गया। मैं हैरान इस बात पर भी था कि इतनी बुरी तरह चीखा कौन था? मैं घूम घूम कर इधर उधर देख रहा था मगर चीखने वाला कहीं नज़र न आया मुझे।

"हा हा हा हा हा।" उधर दोनो ही मुझे इस तरह पिंजरे में कैद देख ज़ोर ज़ोर से हॅसे जा रहे थे, विराट ने कहा___क्यों बच्चे इधर उधर देख रहे हो हा हा हा हा?"

"महाराज ये शायद ये देख रहा है कि अभी इतनी बुरी तरह से चीखा कौन था?" अनंत ने हॅसते हुए कहा__"इस बेचारे को क्या पता कि वो चीख तो बस एक छलावा थी ताकि इसका ध्यान भटक जाए और हम इसे बड़ी आसानी से पिंजरे में कैद कर लें। हाहाहाहाहा।"

मैं उन दोनो की इस बात से हैरान रह गया था। क्योंकि मुझे ऐसा लगा था जैसे वो चीख मेरी माॅ मेनका की थी, पर ये तो महज एक छलावा था। जो इन दोनो ने मुझे फसाने के लिए किया था। ख़ैर, मुझे इस बात से राहत मिली कि मेरी माॅ को कुछ नहीं हुआ। ये लोग उनकी आवाज़ की नकल करके जाने कैसे ये सब कर लिया था?

"अब आया है ऊॅट पहाड़ के नीचे।" विराट ने हॅसते हुए कहा__"बड़ा इतरा रहा था। बड़ा सूरमा बन रहा था। इसे ये पता ही नहीं कि सबसे बड़े सूरमाओं के भी हम बाप हैं।"

"महाराज देखा था न आपने।" अनंत ने भी हॅसते हुए कहा__"कैसे छका रहा था ये हमें? ये समझ रहा था कि हम इसके सामने कुछ हैं ही नहीं। और...और क्या कह रहा था...हाॅ ये कि हम दोनो के लिए तो आपका वो बेटा रिशभ ही काफी है। हा हा हा हा।"

"कोई बात नहीं सम्राट।" विराट ने सहसा कठोरता से कहा__"इसको जो करना था कर लिया। जितना उछलना उछल लिया। अब हम इसे बताएॅगे कि हम क्या चीज़ हैं?"

"आप दोनो का अगर हो गया हो तो।" मैंने कहा__"अब मैं भी कुछ कहूॅ?"
"हाॅ हाॅ कह ले बच्चे।" अनंत हॅसा__"जितना मर्ज़ी कह ले क्योंकि उसके बाद तू कुछ कहने के लायक नहीं रह पाएगा।"

"ना तो मैं इतरा रहा था और ना ही मैं बेवजह उछल कूद कर रहा था?" मैने कहा__"लेकिन आप मुझे इस मामूली से पिंजरे में बंद करके ज़रूर इतरा रहे हैं। आप दोनो समझते हैं कि अब मैं कुछ कर ही नहीं सकता।"

"बिलकुल बच्चे।" विराट ने कहा__"ये कोई मामूली पिंजरा नहीं है। इससे बाहर निकलना असंभव है। इस लिए अब तुम कुछ नहीं कर सकते। तुम हमारे रहमो करम पर जीवित हो अभी और अगर आगे भी जीवित रहना चाहते हो तो तुम वही करोगे जो हम कहेंगे वरना तुम एक पल भी जीवित नहीं रह पाओगे।"

"आप अपने मनसूबों में कभी कामयाब नहीं हो पाएॅगे नाना जी।" मैने कहा__"मुझे अच्छी तरह मालूम है कि आपका ख़्वाब क्या है? इस लिए ये ख़्वाब आपका कभी पूरा नहीं होगा। रही बात इस पिंजरे की तो इसे नस्ट करना मेरे लिए कोई मुश्किल काम नहीं है।ये देखिए।।"

मैंने अपनी आॅखें बंद की। कुछ ही पल में मेरे शरीर से लाल पीली रोशनी निकलने लगी। देखते ही देखते मेरा पूरा आग में बदल गया। उस आग का ताप इतना ज्यादा हो गया कि वो पिंजरा पिघलने लगा। चारो तरफ इतना प्रकाश फैला हुआ था जैसे दोपहर हो। विराट और अनंत आग के उस ताप को सह न सके इस लिए दूर भाग गए। मेरे करीब जितने भी वैम्पायर्स और वेयरवोल्फ्स इधर उधर थे वो सब उस ताप में जल कर खाक में मिल गए। इधर कुछ ही पल में पिंजरा पिघलकर गायब हो गया। मैने अपने तेज को कम कर दिया। मेरे सामान्य होते ही वहाॅ पर फिर से अॅधेरा हो गया। विराट और अनंत जो बहुत दूर भाग गए थे वो जल्द ही मेरे पास पहुॅचे। उन दोनो के चेहरों पर हल्दी सी पुती हुई थी। आश्चर्यचकित से मुझे देखे जा रहे थे। आॅखों में डर और घबराहट साफ नज़र आ रही थी उनके।

"क्या हुआ आप दोनो को?" मैने मुस्कुरा कर कहा__"आपका वो महाबली व महाशक्तिशाली पिंजरा तो मेरा थोड़ा सा तेज़ भी सहन नहीं कर सका। पल भर में पिघल कर जाने कहाॅ लोप हो गया? बेचारे का नामो निशान तक नहीं रहा अब। आप तो कह रहे थे कि वो पिंजरा बहुत बड़ी बला था, फिर कैसे नस्ट हो गया?"

"ये ये कैसे हो सकता है महाराज?" अनंत ने विराट की तरफ हैरत से देखते हुए कहा__"कोई मनुष्य इतना शक्तिशाली कैसे हो सकता है? एक इंसान में इतना ईश्वरी तेज़ कैसे हो सकता है? ये असंभव बात है महाराज।"

"दुनियाॅ में असंभव कुछ भी नहीं है सम्राट अनंत।" विराट ने कहा__"इसका जीता जागता प्रमाण ये लड़का खुद है।"
"नाना जी।" मैने कहा__"आज मैं आप दोनो को सही सलामत जीवित छोंड़ रहा हूॅ। क्योंकि कुछ भी हो आप हैं तो मेरे नाना ही। मैं पहली ही मुलाक़ात में अपनी माॅ और मामा जी के पिता को हमेशा हमेशा के लिए समाप्त नहीं करना चाहता हूॅ। लेकिन अगर हमारी दूसरी मुलाक़ात इसी तरह जंग के रूप में हुई तो फिर आप मुझसे ये उम्मीद नहीं रखियेगा कि मैं आपको फिर से जीवित छोंड़ दूॅगा। इस लिए जाइए आप दोनो और अपनी बची कुची सेनाएॅ भी ले जाइये।"

मैंने अपने एक हाॅथ को मामा जी की तरफ किया। जिससे मेरे हाथ से एक लाल किरण निकली और वो मामा जी के चारो तरफ फैले बवंडर से जा टकराई। परिणामस्वरूप बवंडर धीरे धीरे शान्त होने लगा। मामा जी को भी पता चल गया कि जंग समाप्त हो चुकी है।

इधर मेरी इन बातों से विराट और अनंत कुछ न बोले। वो समझ चुके थे कि मुझसे जंग में वो किसी भी कीमत पर पार नहीं पा सकते हैं। अतः वो दोनो चुपचाप अपनी बची कुची सेनाएॅ लेकर वहाॅ से चले गए। लेकिन पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लग रहा था कि सम्राट विराट इस हार के बाद भी चुप बैठे रहेंगे।

"कहाॅ गए सब के सब?" मामा जी ने मेरे पास आते ही पूछा__"क्या तुमने उन सब को खत्म कर दिया राज? चलो ये बहुत अच्छा किया तुमने।"
"मैंने उनको जीवित छोंड़ दिया है।" मैंने गंभीरता से कहा था।
"क्या????" मामा जी उछल पड़े__"पर ऐसा क्यों किया राज?"

"मामा जी, वो आपके पिता और मेरे नाना जी हैं।" मैने कहा__"आज हम पहली बार मिले थे। मैं भला कैसे उन्हें मार देता?"
"उफ्फ राज।" मामा जी ने नाराज़गी भरे भाव से कहा__"उनसे रिश्ते जोड़ने की कोई ज़रूरत नहीं है तुम्हें। वो हमारे लिए सिर्फ शैतान हैं।"

"फिर भी, एक बार सुधरने का मौका तो भगवान भी सबको देते हैं मामा जी।" मैने कहा__"और इसी लिए मैने भी उन्हें जाने दिया।"
"ख़ैर, अब क्या करना है?" मामा जी ने गहरी साॅस ली__"जंग तो बहुत जल्द ही समाप्त हो गई।"

"वो तो आपने ही इतनी रफ्तार से सबको खत्म कर दिया मामा जी।" मैने कहा__"भला कब तक आपके सामने कोई बचा रहता?"
"सबसे अहम काम तो तुमने ही किया है राज।" मामा जी ने मुस्कुरा कर कहा__"मैने तो शतरंज के प्यादों को ही खत्म किया जबकि तुमने तो राजा को ही शह और मात दी है।"

"ख़ैर छोड़िये इस बात को।" मैने कहा__"मुझे अभी बहुत ज़रूरी काम करना है। इस लिए आप उन लोगों के साथ जाइये।"
"क्या मतलब है तुम्हारा?" मामा जी ने चौंकर मेरी तरफ देखा__"अभी ऐसा कौन सा ज़रूरी काम है तुम्हारा? और मैं उन लोगों के साथ जाऊॅ इसका क्या मतलब हुआ?"

"मुझे जिस ज़रूरी काम के लिए जाना है उसमें मुझे अकेले ही जाना है मामा जी।" मैने कहा__"मैं आपको बाद में सब कुछ बता दूॅगा। आप उन लोगों के साथ जाइये, मेरी फिक्र मत कीजिए।"

"लेकिन राज....?"
"मामा जी, मैने कहा ना।" मैने मामा जी की बात काटते हुए कहा__"आप चारो जाइये। मैने सुरक्षा कवच को संकेत दे दिया है। वो आप सबको एक ऐसी जगह ले जाकर उतारेगा जहाॅ हम सबके रहने का इंतजाम हो चुका है।"

"इंतजाम हो चुका है??" मामा जी उछल पड़े, बोले__"रहने का इंतजाम कब हुआ राज? हम सब तो अभी यहीं हैं?"
"हम सबके रहने का इन्तजाम काल ने किया है।" मैने बताया__"सुरक्षा कवच के साथ जब आप सब वहाॅ पहुॅचेंगे तो वहाॅ पर काल आप सबको मिल जाएगा। इधर मैं अपना काम खत्म करके आप सबके पास खुद ही आ जाऊॅगा। अब आप जाइये, देखिए सुरक्षा कवच आपको लेने के लिए ज़मीन पर उतर आया है।"


मेरी इस बात से मामा जी ने पलट कर देखा तो सचमुच सुरक्षा कवच उनके पीछे था। वो उसे अब देख सकते थे। मामा जी ने मेरी तरफ देखा तो मैने उन्हें जाने का इशारा किया। वो अनमने भाव से सुरक्षा कवच के अंदर चले गए। जहाॅ पर मेरी दोनो माॅ और वीर चाचू पहले से ही थे। उन तीनो ने मुझे देखा। उनकी आॅखों में भी यही सवाल था मैं कहाॅ जा रहा हूॅ? उन तीनो के सवालों को मामा जी ने अपनी बातों से जबाब देकर बता दिया। मेरा संकेत मिलते ही सुरक्षा कवच फिर से अदृश्य हो गया और ऊपर उठकर चला गया।

जब मैंने महसूस कर लिया कि वो जा चुके हैं तो मैं भी आगे बढ़ने लगा। कुछ दूर जाने के बाद मुझे अॅधेरे में ही एक ऊॅचा सा कुछ दिखा। मैंने अपनी चाल तेज़ कर दी। कुछ ही देर में जब मैं उस ऊॅची सी चीज़ के पास पहुचा तो पता चला कि वो कोई टूटा फूटा हुआ राजा रजवाड़ों का किला है। उसे देख कर मैं मुस्कुराया और तेज़ी से उस किले के अंदर की तरफ बढ़ गया।

किले के अंदर भयानक अॅधेरा था, किन्तु मैं देख सकता था। अंदर पहुॅच कर मैं इधर उधर देखने लगा। कहीं कुछ नज़र न आया मुझे।

"सामने आइये महारानी मारिया।" मैने प्रभावशाली स्वर में कहा था।

मेरे ऐसा कहते ही एक तरफ से काला धुआॅ सा आया और मेरे सामने आकर वह मानव आकृति से एक खूबसूरत औरत में बदल गया। वो शैतानो के पहले सम्राट सोलेमान की पत्नी मारिया थी। मेरे सामने आते ही उसने मुस्कुराकर मेरे सामने अपने सिर को हल्का सा ख़म करके मुझे अदब से सलाम किया।

"इस धरती के सबसे शक्तिशाली और दिव्य पुरूष को कनीज़ का सलाम।" मारिया ने अदब से कहा था।
"इस औपचारिकता की कोई ज़रूरत नहीं है महारानी।" मैने सम्मान से कहा__"आप मुझसे हर तरह से बड़ी हैं। इस लिए मुझे इस तरह आदर सम्मान देकर लज्जित न करें।"

"मैं तो आपसे सिर्फ ऊम्र में बड़ी हूॅ राज।" मारिया ने कहा__"जबकि आप योनियों में श्रेष्ठ मनुष्य योनि में हैं और इस धरती के अद्वतीय पुरुष हैं। इस लिए आपको सम्मान देना हर किसी का पहला कर्तव्य होना चाहिए। दूसरी बात आपकी वजह से मेरे पति पुनः जीवित हों जाएॅगे इस लिए आप मेरे लिए महान हैं। लेकिन....।"

"लेकिन क्या महारानी?" मैने पूछा।
"मैं इस बात से अभी तक हैरान हूॅ कि आप इतनी आसानी से मुझे मिल कैसे गए?" मारिया ने कहा__"जबकि मैने तो ये उम्मीद की थी कि अपने पति को आपके द्वारा जीवित करने के लिए मुझे आपसे युद्ध करना पड़ेगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। बल्कि आप मुझे स्वयं ही इस तरह मिल गए।"

"सब नियति का खेल है महारानी।" मैने कहा__"ईश्वर जो चाहता है वही होता है। आपने मुझसे जंग की अपेक्षा की थी। उस वक्त जब आप ध्यान में बैठी थी तब मैं भी ध्यान में बेठा था। ध्यान द्वारा ही मेरा आपसे संबंध हो गया। तब मैने आपसे कहा था कि आप मुझे जंग के बाद इस जगह मिलिये। ऐसा इस लिए था कि आप एक पतिव्रता औरत हैं। आपका अपने पति से प्रेम अगाध है। आपके मन में किसी के लिए कोई बुरा भाव नहीं है। इतने वर्षों से आप अपने पति के विरह में तड़प रही हैं। आपका प्रेम और उसमें समर्पण भाव इतना प्रबल है कि आपके लिए तो खुद ईश्वर को भी आना पड़ जाए। प्रेम ईश्वर का एक रूप है उसे कैसे निष्फल किया जा सकता है? इस लिए ईश्वर के संकेत से ये सब हुआ।"

"आप धन्य हैं राज।" मारिया की आॅखों में आॅसू आ गए__"आप मेरे प्रेम के लिए खुद आए और मेरा इतना कठिन रास्ता खुद ही आसान कर दिया। ये सच है कि मैं अगर आपसे युद्ध भी करती तो आपसे जीत नहीं सकती थी। मैने दूर से ही आपका पराक्रम और आपकी शक्ति देखी थी।"

"चलिए अब आपके राजमहल चलते हैं।" मैने कहा__"क्योंकि महर्षि के श्राप की अवधि का समय आने ही वाला है।"
"आप ये सब कैसे जानते हैं राज?" मारिया ने हैरानी से मेरी तरफ देखा था।
"मुझे सबका सब कुछ पता चल जाता है महारानी।" मैने हॅस कर कहा।

मेरे ऐसा कहने पर मारिया मुस्कुरा कर रह गई। जबकि मैं वहीं पर खड़े खड़े अपनी आॅखें बंद की। आॅख बंद करते ही मेरे शरीर में से हल्की रोशनी निकली और इसके साथ ही मैं तीन भागों में बॅट गया। मारिया फटी फटी आॅखों से आश्चर्यचकित सी मुझे देखती रह गई। मेरे तीन रूप हो गए थे। तीनों ही एक जैसे। ऐसे जैसे फिल्मों में एक ही किरदार के ट्रपल रोल हो जाते हैं वैसे ही।

मैंने अपनी आॅखें खोल दी। मैने देखा मेरे दाएॅ बाएॅ मेरे दो हमशक्ल जीते जागते खड़े थे। उन्हें देख कर मैंने उन दोनो को संकेत किया। वो दोनो मेरा संकेत मिलते ही गायब हो गए।

"चलिए महारानी मारिया।" मैने अचेत पुतले की तरह आॅखें फाड़े खड़ी मारिया से कहा।
"आं हाॅ हाॅ चलिए।" मारिया ने अजीब भाव से कहा__"ये ये सब क्या था राज? मेरा मतलब आपके तीन तीन हमशक्ल?।।"

"ये तो आप भी जानती हैं कि मैं कोई साधारण मनुष्य नहीं हूॅ।" मैने कहा__"इस लिए मैं जो भी करूॅ उसमें आश्चर्य कैसा महारानी? जो जैसा होता है उसकी क्रियाएॅ भी तो वैसी ही होती हैं। जैसे कि आप शैतान योनि में हैं तो आपकी क्रियाएॅ बाकी योनि के प्राणियों से अलग होंगी। मैं मनुष्य हूॅ किन्तु असाधारण मनुष्य हूॅ इस लिए मेरी क्रियाएॅ आम मनुष्यों से अलग ही रहेंगी।"

"सच कहा आपने।" मारिया ने समझने वाले भाव से कहा।
"अब चलें??" मैने कहा।
"जी बिलकुल।" मारिया मुस्कुराई।

इसके बाद हम दोनो ही वहाॅ से गायब हो गए और सीधा मारिया के राजमहल में प्रगट हुए। सब तैयारियाॅ हो चुकी थी पहले से ही किन्तु अब समस्या ये थी कि वो काम कैसे हो जिसके तहत सोलेमान को जीवित करना था?

मैं तो वैसे भी अभी अट्ठारह साल का बच्चा ही था, जबकि मारिया की उमर का शायद ही कोई अता पता हो। ये अलग बात है कि वो अपनी शक्तियों से आज भी जवान और खूबसूरत थी। मेरे अंदर अब इस ख़याल से ही झिझक व घबराहट होने लगी थी कि मुझे मारिया के साथ संभोग करना है और कदाचित यही हाल मारिया का भी था। उसने संदूक को खोल दिया था जो कि हम दोनो के बेहद करीब ही रखा हुआ था।

इसके आगे क्या होगा ये हम दोनो ही जानते थे लेकिन पहल कौन करे ये समस्या आ खड़ी हुई थी। मैं तो अपने बारे में अच्छी तरह जानता था कि इस काम के लिए पहल मुझसे नहीं हो सकती। मुझे इस काम कोई तज़ुर्बा ही नहीं था बल्कि अगर ये कहूॅ तो ग़लत न होगा कि इस सबके बारे में मैने आज तक सोचा ही नहीं था करने की तो बात ही दूर है। मैं अभी तक कुवाॅरा और ब्रम्हचारी ही था।

यही हाल मारिया का भी था। वो बेचारी इस ख़याल से ही मारे शर्म के गड़ी जा रही थी। बेशक वो एक शैतान थी और शैतान की पत्नी थी किन्तु शैतान होते हुए भी वह शैतानों से अलग थी। वह एक पतिव्रता थी। ये तो उसके भाग्य और नसीब की बात थी कि उसे अपने पति को पुनः जीवित करने के लिए पर पुरुष के साथ ऐसा काम करना था। वरना भला क्या वो ऐसे काम के बारे में सोच सकती थी?? जाने क्या भेद था तथा जाने क्या मकसद था ईश्वर का कि एक पतिव्रता के साथ इतना बड़ा अन्याय हो रहा था।

महर्षि के श्राप की अवधि में अभी बस कुछ ही समय शेष था। निर्धारित समय पर अगर मारिया मेरे साथ संभोग नहीं कर पाएगी तो उसका पति पुनः पाॅच सौ वर्षों के लिए पत्थर ही बना रहेगा और पाॅच सौ वर्षों बाद भी उसकी मुक्ति का उपाय यही रहेगा जो आज है। मारिया पिछले पाॅच सौ वर्षों से आज की रात की प्रतीक्षा कर रही थी। वह जानती थी कि अब उससे और प्रतीक्षा नहीं हो सकेगी। वह अपने पति के बिना अब और नहीं रह सकती थी।

"ये मेरे भाग्य की कैसी विडम्बना है राज?" सहसा मारिया ने गंभीरता से कहा__"ये आपके भगवान का कैसा इंसाफ है कि वो एक पतिव्रता के साथ ऐसा करवा रहा है? मैंने या मेरे पति ने तो सिर्फ यही किया था कि प्रेम रंग में वशीभूत होकर इंसानी दुनियाॅ में उस जगह पहुॅच गए थे जहाॅ वो महर्षि तपस्या कर रहे थे। हमें पता ही नहीं चला था कि हम ये कहाॅ पहुॅच गए हैं? मेरे पति की कोई ग़लती नहीं थी बल्कि मैं ही उन्हें बार बार कह रही थी कि हमें शादी किए सौ वर्ष हो गए और इस बीच हमने कभी बच्चे के बारे में नहीं सोचा। इस लिए मेरी इच्छा है कि मैं अब माॅ बनूॅ। मुझे आपके जैसा ही पराक्रमी और शक्तिशाली बेटा चाहिए। सम्राट मेरी बात कभी नहीं टालते थे। इस लिए उस दिन उन्होने मुझसे कहा कि ठीक है महल चल कर हम ये काम करेंगे। लेकिन मैंने ज़िद की कि हम इंसानी दुनियाॅ में ही ये काम करेंगे। सम्राट ने मेरी बात मान ली और हमने वहीं पर ये सब करने का सोचा। हमने देखा कि आस पास कोई नहीं है इस लिए हम दोनो पेड़ की घनी छाॅव के नीचे ही रतिक्रिया में लग गए। हमें नहीं पता था कि जिस पेड़ के नीचे हम दोनो रतिक्रिया में लगे हुए थे उसी पेड़ के उस पार एक महर्षि ध्यान में बैठे तपस्या कर रहे थे। हमारे द्वारा आपस में रतिक्रया करने से तपस्या में डूबे उस महर्षि का ध्यान भंग हो गया। हम दोनो इस बात से पूरी तरह बेख़बर थे। उधर महर्षि ध्यान व तपस्या भंग होने की वजह से अत्यंत क्रोधित हो उठे। उन्होंने उठ कर पेड़ के इस तरफ आकर देखा, हम दोनो निर्वस्त्र होकर संभोग क्रिया में मग्न थे। ये दृष्य देख कर महर्षि के क्रोध की कोई सीमा ना रही। उन्होंने पूरी शक्ति से दहाड़ते हुए हम दोनो को पुकारा। हम दोनो अचानक हुई इस क्रिया से बेहद डर गए। अपने सामने ऋषि को देख हम दोनो को समझ ही न आया कि हम क्या करें। फिर जैसे ही होश आया तो सबसे पहले मैने कपड़ो के द्वारा खुद के शरीर को ढॅका। जबकि सम्राट की हालत खराब थी। उन्हें होश ही नहीं था कि वो भी निर्वस्त्र हैं। मैने जल्दी से उन्हें झकझोर कर होश में लाने का प्रयास किया। तब तक ऋषि ने हमें श्राप दे दिया था। उसने मेरे पति को पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया। पर मुझे कोई श्राप नहीं दिया। मैं उनके दिये इस श्राप से भयभीत होकर रोने गिड़गिड़ाने लगी। उनसे क्षमा प्रार्थना करने लगी। आख़िर मेरे बहुत क्षमा प्रार्थना करने पर ऋषि अपना ध्यान लगाकर कुछ देर आॅखे बंद किये रहे फिर आॅखें खोल कर बोले हमने योग से देख लिया है कि तुम दोनो शैतान होते हुए भी मन से अच्छे हो। अब जबकि हमने श्राप दे दिया है इस लिए ये खाली नहीं जाएगा लेकिन तुम्हारा अपने पति के प्रति प्रेम देख कर हम इस श्राप से मुक्ति का उपाय बताते हैं। आज से पाॅच सौ वर्ष बाद धरती पर एक दिव्य बालक का जन्म होगा। पर ईश्वरी कारणवश पाॅच वर्ष की आयु में ही वह अपने माता पिता से अलग होकर एक दिव्य स्थान पर कुछ अच्छे शैतानों के साथ ले जाया जाएगा। उसके बाद जब वह दिव्य बालक युवावस्था में होगा तब वह पुनः अपनी जन्मभूमि की तरफ लौटेगा। उस बालक के द्वारा ही तुम्हारे पति की मुक्ति होगी। तुम्हें अपने पत्थर बने पति के सामने उस दिव्य बालक से निर्वस्त्र होकर संभोग करना होगा और उसके वीर्य को अपने पति के पत्थर बने शरीर पर छिड़कना होगा। वीर्य के छिड़कते ही तुम्हारा पति फिर से जीवित हो जाएगा। लेकिन अगर श्राप की अवधि के समय तुमने ये सब नहीं किया तो तुम्हारा पति फिर से उतनी ही अवधि के लिए पत्थर ही बना रहेगा। वो ऋषि इतना कह कर वहाॅ से गायब हो गए। उन्होंने मेरे पति की मुक्ति का जो समाधान बताया था उसे सुन कर हम दोनो ही पति पत्नी बेहद दुखी हुए थे। हम उनसे जानना चाहते थे कि इस तरह से मुक्ति मिलने का समाधान क्यों बताया था उन्होने? ये कैसा धर्मसंकट खड़ा कर दिया था उन्होंने हमारे लिए? मगर हमारे इन सवालों का जवाब देने के लिए अब वहाॅ कोई मौजूद नहीं था। ऋषि के जाते ही मेरे पति पत्थर में बदलने लगे थे इस लिए हम सीघ्र ही वहाॅ से राजमहल आ गए। सम्राट सोलेमान ने अपने सबसे अज़ीज़ मित्र विराट को बुलाकर उन्हें अपना राज्य धरोहर के रूप में सौंप दिया। विराट के सामने ही मेरे पति ने अपनी समस्त शक्तिया मुझे दे दी और कहा कि इन शक्तियों से तुम खुद की और मेरी सुरक्षा कर सकोगी। उसके बाद सब शून्य में बदल गया राज। मैं पिछले पाॅच सौ वर्षों से अपने पति को पुनः जीवित करने के लिए आपकी प्रतीक्षा कर रही थी। अब तो आप आ गए न राज, अब आपकी कृपा से मेरे नाथ फिर से जीवित हो जाएॅगे। मैं फिर से अपने प्रियतम की बाहों में समा सकूॅगी। अब और मुझसे ये विरह नहीं सहा जाता। आपको मेरे साथ उस क्रिया को करने की इज़ाज़त है राज। मैं आपके साथ उस संभोग क्रिया को करने के लिए तैयार हूॅ।"

मैं महारानी मारिया की दास्ताॅ सुन कर शान्त ही खड़ा था। मुझे उनकी दास्तां का पता था पहले से ही। मैं तो ये देख कर हैरान था कि मारिया जैसी शैतान का हृदय भी इतना विशाल हो सकता है। मैं जानता था कि मारिया का मन सिर्फ अपने पति के प्रेम में ही लगा हुआ था। उसमें किसी के लिए कोई स्थान नहीं था। शरीर तो जन्म से ही मैला होता है, पवित्रता तो मन और आत्मा में होती है। मैंने देखा कि मारिया अपना सिर झुकाए अपने कपड़े उतार रही थी। उसके चेहरे पर इस वक्त पत्थर की तरह दृढ़ता थी। कदाचित उसने ठान लिया था कि लाज और शर्म करके वह समय बरबाद नहीं करेगी।

तभी मैं चौंका, क्योंकि राजमहल के बाहर अत्यंत शोर शराबा होने लगा था। बाहर बहुत से शैतान राजमहल में प्रवेश करने की कोशिश कर रहे थे। किन्तु राजमहल को मारिया ने पहले सुरक्षा कवच में डाला हुआ था इस लिए अंदर नहीं आ पा रहा था। शैतानों के साथ उनके सम्राट भी थे। विराट और अनंत पूरी सेना के साथ आए हुए थे। वो बार बार राजमहल के सुरक्षा कवच को नस्ट करने के लिए शैतानी शक्तियों का प्रयोग कर रहे थे।

"देख रहे हैं न राज?" मारिया ने कहा__"ये सब जान चुके हैं कि आज सम्राट सोलेमान की मुक्ति की रात है और आप भी यहाॅ हैं। इस लिए विराट अपने मित्र अनंत के साथ आया है मेरे पति के पत्थ
र शरीर को तबाह करने। ताकि वो जीवित न हो सकें। "

"फिक्र मत कीजिए महारानी।" मैने मुस्कुरा कर कहा__"उन मूर्खों को पता ही नहीं है कि नियति से कोई जीत नहीं सकता। मैं चाहूॅ तो एक छड़ में इन सबको खाक़ में मिला दूॅ लेकिन ये सब महाराज सोलेमान के अपराधी हैं, इन्हें तो अब खुद सम्राट सोलेमान ही सज़ा देंगे।"

मैने देखा कि मारिया ने अपने जिस्म से सारे कपड़े उतार दिये थे। मैंने भी झिझकते हुए अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिये। मैं ऊम्र में अट्ठारह साल का अवश्य था किन्तु मेरा शरीर पूरी तरह परिपक्व था।

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उधर रेखा को होश आया। पहले तो वह बेड पर पड़े पड़े ही छत की तरफ तथा इधर उधर देखा उसके बाद अचानक ही हड़बड़ा कर उठ बैठी। कमरे में हर तरफ देखा उसने। कहीं कोई नहीं था। खुद को देखा तो किसी दुल्हन की तरह सजी पाया। बेड के एक साइड एलबम पड़ा था अस्त ब्यस्त सा। उसने उसे जल्दी से उठाया। नज़र पाॅच से के बच्चे पर पड़ी तो अनायास ही उसकी आॅखें भर आईं। उसने एलबम में मौजूद बच्चे की तस्वीर को प्यार से चूमा फिर उसे एक तरफ रख कर कमरे के बाहर की तरफ चल पड़ी।

कमरे के बाहर आकर वह सीड़ियाॅ उतरते हुए नीचे पहुॅची। हर तरफ बेहतरीन सजावट की गई थी आज। नीचे ही एक तरफ अशोक का कमरा था। रेखा ड्राइंगरूम से होते हुए मुख्य दरवाजे की तरफ बढ़ गई। मुख्य दरवाजे को खोल दिया उसने। दरवाजा खुलते ही हल्की ठंड हवा के झोंके ने उसके चेहरे को स्पर्श किया। रेखा दरवाजे के पास खड़ी कुछ देर दूर मुख्य सड़क के पास लगे लोहे के गेट को देखती रही उसके बाद वह दरवाजे की देहलीज़ पर ही बैठ गई। सारा शहर नींद में सोया पड़ा था और वह यूॅ आधी रात को मुख्य दरवाजा खोले देहलीज़ पर बैठ गई थी। सामने जगह जगह बल्ब लगे थे इस लिए आस पास की चीज़े दिख रही थी। रेखा को देहलीज़ पर बैठे हुए अभी कुछ ही देर हुई थी कि सहसा वातावरण में अजीब सा बदलाव महसूस हुआ। आस पास लगे सुन्दर से पेड़ हवा के हल्के तेज़ बहाव में अचानक ही इधर उधर झूमने लगे थे। एक अजीब तरह की धुंध सी दिखने लगी थी हर तरफ। रेखा को इस बात का कुछ भी ख़याल नहीं था, बल्कि वो तो कहीं खोई हुई थी। उसकी निगाहें लोहे वाले गेट की तरफ अपलक टिकी हुई थी। लोहे वाले गेट के दोनो तरफ के पिलरों के ऊपर गोल गोल ट्यूब की रोशनी थी जिससे वहाॅ का दृष्य स्पष्ट देखा जा सकता था।

बाहर हर जगह ज़मीन पर सफेद धुआॅ सा फैलता जा रहा था। लोहे वाले गेट के पास अचानक ही कोई आकृति धुएॅ में नमूदार हुई। उसने लोहे वाले गेट को खोला। रेखा बुरी तरह चौंकी थी। उसकी निगाहें एकटक लोहे वाले गेट पर ही टिकी थी। और जैसे ही गेट पर कोई प्रतिक्रिया हुई वह चौंक पड़ी थी। हृदय की गति एकाएक ही बढ़ गई थी उसकी। वह ये तो स्पष्ट देख रही थी कि गेट को खोलकर कोई आकृति अंदर दाखिल हुई है किन्तु आकृति को पहचानना मुश्किल था क्योंकि ज़मीन में फैला सफेद धुआॅ और ऊपर फैली धुंध ने सब कुछ जैसे अपने अधिकार में लिया हुआ था। वो आकृति इस तरफ ही आ रही थी। देहलीज़ पर बैठी रेखा की हालत प्रतिपल अजीब होती जा रही थी। वह देहलीज़ पर बैठी न रह सकी बल्कि किसी अंजाने भय के कारण वह तत्काल ही देहलीज़ से उठ कर खड़ी हो गई। उसकी नज़रें इस तरफ बढ़ रही आकृति पर ही जमी हुई थी।

वो आकृति बढ़ती हुई कुछ ही देर में रेखा के करीब आ कर खड़ी हो गई। रेखा के सामने वो आकृति एक बहुत ही संदर व आकर्शक युवक के रूप में खड़ी हो चुकी थी। रेखा हैरत से आॅखें फाड़े उसे देखे जा रही थी। ऐसा लगा जैसे वह एक पल में ही नर्जीव होकर किसी पुतले में बदल गई हो। जबकि उसके सामने खड़ा युवक उसे एकटक देखे जा रहा था। जाने कितनी ही देर तक यही आलम रहा।

"माॅ।" फिर सहसा उस युवक ने अधीरता से कहा।
उसकी आवाज़ और उसके द्वारा कहा गया अपने लिए माॅ शब्द सुनकर रेखा को झटका सा लगा। उसे होश आ गया। और आया भी तो ऐसा कि मानो आसमाॅ काॅप गया और ज़मीन थर्रा गई।

"र र राऽऽऽऽऽज।" रेखा की हृदयविदारक चीख सम्पूर्ण वातावरण में गूॅज उठी। लेकिन हृदय में भावनाओं और जज़्बातों का चक्रवात इतना तीब्र व प्रबल था कि उसे वह सम्हाल न सकी। एकाएक ही उसका जिस्म लहराया और वह देहलीज़ पर ही चक्कर खाकर गिर ही गई होती अगर पलक झपकते ही उस युवक ने उसे सम्हाल ना लिया होता। खुद युवक भी चीख़ पड़ा था अपनी माॅ की इस हालत को देख कर। वह युवक यकीनन राज ही था। रेखा का वर्षों पहले खोया हुआ वही बेटा जिसके विरह में आज उसकी ये हालत हो गई थी।


मेरी ज़ुबानी,,,,,,,

मैं माॅ को इस हाल में देख कर अत्यंत दुखी हो गया था। आज इतने सालों बाद उससे मिल रहा था फिर भी उसे सुख देने की बजाय दुख ही दे रहा था। मैने माॅ को अपनी गोद में उठा लिया और दरवाजे के अंदर जाकर पैर से ही दरवाजे को बंद किया। इसके बाद उनको लिए मैं उनके कमरे में पहुॅच गया।

मैंने उन्हें बिस्तर पर आहिस्ता से लेटाया। बेड के बगल में एक छोटे से स्टूल पर रखी पानी की बोतल उठा कर उससे पानी को अपनी हथेली में लिया और फिर उसे माॅ के चेहरे पर छिड़का। थोड़े ही प्रयास के बाद माॅ को होश आ गया। उन्होंने अपने इतने करीब और उजाले में मुझे देखा। पलक झपकते ही वह बिस्तर से उठ बैठी और झपट कर मुझसे लिपट गई। मैंने भी उन्हें खुद से छुपका लिया।

"मेरा बेटा आ गया न तू।" माॅ बुरी तरह रोते हुए कहे जा रही थी__"मैं जानती थी कि तू ज़रूर आएगा। मुझे पूरा विश्वास था बेटे। पर बाॅकी ये सब लोग न मुझे पागल समझते थे। कहते थे कि मैं तेरे लिए पागल हो गई हूॅ।"

"मत रोइये माॅ, अब तो मैं आ गया हूॅ ना?" मैंने उन्हें अलग कर उनके आॅसू पोछते हुए कहा__"अब आपको इस तरह दुखी होकर रोने की कोई ज़रूरत नहीं है।"

"मुझे रोने दे बेटे।" माॅ ने कहा__"मुझे आज जी भर के रो लेने दे। अभी तक तो तेरे विरह में रोती थी किन्तु आज तो मैं तेरे आने की खुशी में रो रो कर पागल हो जाना चाहती हूॅ। सारी दुनियाॅ के सामने चीख चीख कर कहूॅगी कि देख लो मेरा बेटा आ गया है। अब देख लो मेरे बेटे को....।"

जाने कितनी ही देर तक माॅ इसी तरह ऊल जुलूल बोलती रही। उनके रोने बिलखने की आवाज़ सुन कर मेरे पिता जो नीचे कहीं अपने कमरे में थे। वो भी आ गए। दरवाजे के पास पहुॅचकर जब उनकी नज़र मुझ पर पड़ी तो बुरी तरह हैरान रह गए। आश्चर्य से उनकी आॅखें फट पड़ी थी। फिर अचानक ही उन्हें होश आया। वो तेज़ी से अंदर की तरफ आए। मुझे देख कर उनके चेहरे पर अजीब से भाव उभरे।

"क कौन हो तुम??" पिता जी ने अजीब भाव से मुझसे कहा था। उनकी ये बात सुन कर मुझसे पहले माॅ बोल पड़ी__"क्या मतलब है तुम्हारा? मेरा बेटा है ये। वही बेटा जिसके वियोग में मैं जाने कब से तड़प रही थी। मैने तुमसे कहा था न अशोक कि आज मेरा बेटा आएगा। देख लो....आ गया मेरा बेटा।"

"तुम कैसे कह सकती हो कि ये तुम्हारा ही बेटा है?" पिता जी ने कहा__"जबकि मुझे तो ये कोई बहरूपिया लगता है।"
"अशोऽऽक।" माॅ की दहाड़ से पूरा कमरा झन्ना गया__"ख़बरदार जो मेरे बेटे के बारे में उल्टा सीधा बोला तो। मैं माॅ हूॅ इसकी। मैने पैदा किया है इसे। मुझसे बेहतर कौन बताएगा कि ये मेरा बेटा हे या नहीं? मेरी ममता मेरी आत्मा चीख चीख कर कहती हैं कि यही मेरा बेटा राज है।"

"मुझे माफ करना रेखा।" पिता जी की आॅखों में आॅसू आ गए__"यही तो सुनना चाहता था तुम्हारे मुख से। मुझे पता है कि एक माॅ ही अच्छी तरह बता सकती है कि कौन उसका बेटा है? तभी तो मैंने ऐसा कहा था। मुझे माफ करना बेटे।"

पिता जी ने मुझे गले से लगा लिया। उनकी आॅखों से बहते हुए आॅसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे। शायद ये वर्षों का जमा हुआ समंदर था जो आज फट पड़ा था। बड़ी मुश्किल से मैंने उन दोनो को सम्हाला। उसके बाद माॅ ने मुझसे कहा कि मैं बाथरूम जाक, फ्रेश हो जाऊॅ फिर वो अपने हाॅथों से मुझे अच्छा अच्छा खाना खिलाएॅगी।

उनके कहने पर मैं बाथरूम में चला गया। अभी तक उन्होंने मुझसे ये नहीं पूछा था कि मैं इतने सालों से कहाॅ था? ख़ैर, मैं फ्रेश हो कर आया तो माॅ मुझे अपने साथ ही नीचे ले गईं। जहाॅ पर डायनिंग टेबल सजी हुई थी। मैं एक कुर्सी पर बैठ गया उसके बाद माॅ मुझे अपने हाथों से खाना खिलाने लगीं। पिता जी भी मुझे प्यार से खिला रहे थे। मैं ये सब देख कर मन ही मन बेहद दुखी हो गया और मेरी आॅखों में आॅसू भर आए। मेरी आॅखों में आॅसू देख वो दोनो ही तड़प उठे।


दोस्तो अपडेट हाज़िर है,,,,,
The_InnoCent भाई बहुत ही जबरदस्त लिखते हो आप। एक रूप अगर मां के पास गया है तो एक रूप या तो रानी के पास गया होगा या फिर पूनम को बचाने। मजा आयेगा जब किंग सोलोमन विराट और अनंत की वाट लगाएंगे। जबरदस्त अपडेट।
 

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राज-रानी (बदलते रिश्ते)
""अपडेट"" ( 14 )


अब तक,,,,,,,,,,,

"तुम कैसे कह सकती हो कि ये तुम्हारा ही बेटा है?" पिता जी ने कहा__"जबकि मुझे तो ये कोई बहरूपिया लगता है।"
"अशोऽऽक।" माॅ की दहाड़ से पूरा कमरा झन्ना गया__"ख़बरदार जो मेरे बेटे के बारे में उल्टा सीधा बोला तो। मैं माॅ हूॅ इसकी। मैने पैदा किया है इसे। मुझसे बेहतर कौन बताएगा कि ये मेरा बेटा हे या नहीं? मेरी ममता मेरी आत्मा चीख चीख कर कहती हैं कि यही मेरा बेटा राज है।"

"मुझे माफ करना रेखा।" पिता जी की आॅखों में आॅसू आ गए__"यही तो सुनना चाहता था तुम्हारे मुख से। मुझे पता है कि एक माॅ ही अच्छी तरह बता सकती है कि कौन उसका बेटा है? तभी तो मैंने ऐसा कहा था। मुझे माफ करना बेटे।"

पिता जी ने मुझे गले से लगा लिया। उनकी आॅखों से बहते हुए आॅसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे। शायद ये वर्षों का जमा हुआ समंदर था जो आज फट पड़ा था। बड़ी मुश्किल से मैंने उन दोनो को सम्हाला। उसके बाद माॅ ने मुझसे कहा कि मैं बाथरूम जाक, फ्रेश हो जाऊॅ फिर वो अपने हाॅथों से मुझे अच्छा अच्छा खाना खिलाएॅगी।

उनके कहने पर मैं बाथरूम में चला गया। अभी तक उन्होंने मुझसे ये नहीं पूछा था कि मैं इतने सालों से कहाॅ था? ख़ैर, मैं फ्रेश हो कर आया तो माॅ मुझे अपने साथ ही नीचे ले गईं। जहाॅ पर डायनिंग टेबल सजी हुई थी। मैं एक कुर्सी पर बैठ गया उसके बाद माॅ मुझे अपने हाथों से खाना खिलाने लगीं। पिता जी भी मुझे प्यार से खिला रहे थे। मैं ये सब देख कर मन ही मन बेहद दुखी हो गया और मेरी आॅखों में आॅसू भर आए। मेरी आॅखों में आॅसू देख वो दोनो ही तड़प उठे।
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अब आगे,,,,,,,,,

मुझे यूॅ ग़मज़दा देख वो दोनो ही मुझे अपने से छुपका लिया। मुझे आज इतने वर्षों बाद इस तरह अपने सगे माता पिता का प्यार मिल रहा था। मन में और आत्मा एक पूर्ण तृप्ति का एहसास हो रहा था। ख़ैर, मेरे माता पिता ने अपने हाॅथों से ही खाने का हर ब्यंजन खिलाया। मेरा पेट इतना भर गया था कि मेरे पेट में दर्द सा होने लगा था। मेरे बहुत मना करने पर ही वो दोनो माने। उसके बाद माॅ मुझे अपने साथ ही अपने कमरे में ले गई। जबकि पिता जी अपने कमरे में चले गए ये कह कर कि वो सुबह मुझसे ढेर सारी बातें करेंगे।

कमरे में पहुॅच कर माॅ ने मुझे बेड पर लिटा दिया और खुद भी मेरे करीब ही लेट गई। वो मुझे एकटक देखे जा रही थी। उनकी आॅखों में मेरे लिए अथाह प्यार था, तथा उन्हीं आॅखों में प्यार से भरे आॅसू तैर रहे थे।

"तू मुझे अकेला छोंड़ कर कहाॅ चला गया था बेटे?" फिर माॅ ने मेरे सिर के बालों पर उॅगलियाॅ फेरते हुए कहा___"तुझे तो पता भी नहीं है कि तेरे चले जाने के बाद से अब तक कितनी तड़पी हूॅ मैं। मैं तो ज़िदा लाश ही बन गई थी। इस जिस्म के अंदर प्राण तो थे लेकिन उस प्राण में भी कोई प्राण नहीं थे।"

"ये सब कुछ हमारे नसीब की बात थी माॅ।" मैं ने माॅ की आॅखों से आॅसू पोंछते हुए कहा___"आपको अपने बेटे की जुदाई में इतना विरह सहना लिखा था और मुझे अपनी माॅ से दूर रहने का। जिस ऊम्र में मुझे अपनी माॅ के आॅचल की ठंडी व सुकून भरी छाॅव की ज़रूरत होती है उस ऊम्र में विधाता ने मुझे अपनी माॅ से दूर कर दिया। ख़ैर, अब उस विधाता से कोई शिकायत नहीं रही माॅ क्योंकि उसने एक फिर से मुझे अपनी माॅ के पास भेज दिया। अब मैं आपसे दूर कहीं नहीं जाऊॅगा। हमेशा आपके आॅचल तले ही रहूॅगा।"

"हाॅ मेरे लाल मैं तुझे अब कहीं नहीं जाने दूॅगी।" माॅ ने तड़प कर कहा___"तू चौबीसों घंटे सिर्फ मेरे पास रहेगा। मुझे तुझसे जी भर के प्यार करना है बेटे। मैं मेरी ममता को जी भर के तुझ पर लुटाऊॅगी।"

ये कह कर माॅ ने मुझे अपने वक्षों से लगा लिया। मुझे बड़ा सुकून मिल रहा था। मैने अपने एक हाॅथ को माॅ की ठीठ पर ले जाकर उन्हें अपनी तरफ ज़ोर से खींच लिया। माॅ खुद भी मुझे खींच कर अपने से चिपका लिया। माॅ पता नहीं और क्या क्या बोलती रहीं लेकिन मैं तो आज पहली बार सुकून की नींद में सो गया था।
______________________

उधर रानी अपने कमरे में किसी दुल्हन की तरह बेड पर सजी सवॅरी बैठी थी। उसने आलमारी से निकाल कर एक पेन्टिंग, एक तस्वीर को बड़े ग़ौर से देख रही थी। ये राज की तस्वीर थी। उस राज की जो सबसे पहले तो उसका जुड़वा भाई था और फिर उसका प्रेमी था। रानी को तस्वीर बनाने का कोई शौक नहीं था और ना ही उसे पेन्टिंग्स की कला आती थी। वो तो बस अपने भाई व अपने प्रियतम के ख़्वाब देखती थी। पिछले तेरह सालों से यही सब चल रहा था। उसके ख़वाबों में ही उसका भाई व प्रियतम छोटे से बड़ा हुआ और आज वह पूर्ण युवा हो गया था। एक दिन उसके मन में विचार आया था कि अपने प्रियतम की तस्वीर बनाए और फिर जब चाहे वो उसे देख सके। क्योंकि उसे देखने के लिए ख्वाब देखना पड़ता है और ख्वाब भी तो तभी आते हैं जब आॅखों को नींद आए। हलाॅकि आलम तो ऐसा था कि पलकें बंद करते ही सबसे पहले उसे उसका प्रियतम ही दिखता था। उसके सिवा कोई दूसरा पुरूष दिखा ही नहीं आज तक।

अपने मन में आए विचार के तहत रानी ने अपनी सौतेली माॅ यानी सुमन से कहा था कि उसे पेन्टिंग का सामान चाहिए। सुमन उसकी ये बात सुनकर चौंकी थी और पूछा भी कि किस लिए। तो उसने बताया कि उसे पेन्टिंग बनाना है। ख़ैर सुमन ने उसकी इच्छा की पूर्ति के लिए अशोक से कह दिया था। अशोक ने दूसरे ही दिन पेन्टिंग का सारा सामान लाकर अपनी बेटी के सुपुर्द कर दिया था।

उसके बाद रानी ने पेन्टिंग बनाने से पहले अपने प्रियतम को आॅखें बंद कर याद किया और लग गई थी पेन्टिंग बनाने में। पेन्टिंग बनाने में वह इतना डूब गई थी कि उसे अपने आस पास की किसी भी चीज़ का आभास ही नहीं रहा था। सुमन उसके पीछे खड़ी आश्चर्य से देखे जा रही थी। लगभग दो घंटे की मेहनत के बाद पेन्टिंग बन कर तैयार हो चुकी थी। पेन्टिंग भी ऐसी कि बड़े से बड़ा पेन्टर भी ऐसी पेन्टिंग न बना पाए।
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रानी के द्वारा बनाई गई इस पेन्टिंग को देख कर सुमन आश्चर्यचकित थी। उधर जैसे ही पेन्टिंग तैयार हुई तो अचानक ही जैसे रानी को होश आया। उसे ऐसा लगा जैसे अभी तक वह किसी सम्मोहन में थी। उसकी नज़र भी जब अपने द्वारा बनाई गई पेन्टिंग पर पड़ी तो हैरान रह गई। किन्तु फिर तुरंत ही उसके होठों पर मुस्कान फैल गई। यही तो था वो। यही तो उसका भाई था, यही तो उसका प्रियतम था। यही तो था जिसे वह अक्सर ख़्वाबों में देखती थी। यही था वो जिससे वह बेपनाह मोहब्बत करने लगी थी। यही था वो जिसकी याद में वह पल पल रोती तड़पती थी। अपने सामने आज इस पेन्टिंग के रूप में अपने प्रियतम को देख कर वह खुशी से फूली नहीं समा रही थी। अपने कमरे में खड़ी वह मारे खुशी के चकरघिन्नी की तरह घूमने लगी थी। सहसा उसकी नज़र अपने पीछे खड़ी सुमन पर पड़ी तो बुत बन कर खड़ी हो गई। फिर खुशी से उछलती बोली___"माॅ देखो, यही हैं वो। यही हैं वो जो अक्सर मेरे सपने में आते हैं। यही हैं माॅ....यही मेरे प्रियतम हैं।

सुमन को समझ न आया था कि उस बावरी की इस बात का वह क्या जवाब दे। लेकिन अपनी बेटी को आज इतना खुश देख वह भी खुश हो गई थी। उसने का कि तो ये है वो लड़का जिसने मेरी बेटी का सुख चैन छीना हुआ है। अपनी माॅ की इस बात से रानी ने कहा था कि नहीं माॅ। ऐसा मत कहिए उनके लिए। मुझे तो उनके द्वारा मेरा सुख चैन छीन लेने से भी खुशी मिलती है, मेरे दिल को दर्द तो होता है लेकिन वो भी बहुत मीठा लगता है। ऐसा लगता है जैसे कि ऐसा दर्द हर पल मुझे होता रहे।

सुमन जानती थी कि उसकी ये बेटी अपने ही भाई के प्रेम में बावरी हो चुकी है। वह उसकी इन बातों से मुस्कुरा कर रह गई थी। जबकि रानी ने कहा था कि पेन्टिंग वाली ये बातें वह पापा से या किसी से भी न कहेंगी।

आज उसी पेन्टिंग को लिए बेड पर बैठी थी रानी। उसकी आॅखों में बेचैनी के साथ साथ आॅसू भी थे।

"कितने कठोर हैं न आप?" रानी करुण भाव से कह रही थी___"आपको ज़रा सा भी अपनी इस प्रेम दिवानी पर तरस नहीं आता। कभी मेरी तरह आप भी यादों में तड़पो तो पता चले कि कितनी तक़लीफ़ होती है दिल को? नहीं नहीं....आप मत तड़पिये....हे भगवान जी ये मैने क्या कह दिया इनके लिए? मुझे क्षमा कर दीजिये भगवान जी। उनको कुछ मत कीजियेगा....उनकी सारी तक़लीफ़ें मुझे दे दीजिये। मैं उन्हें ज़रा सा भी तड़पते हुए नहीं देख पाऊॅगी।"

रानी की आॅखों से पल भर में आॅसूओं की बाढ़ सी आ गई थी। दिल में एक हूक सी उठी थी। खुद पर बेहद गुस्सा भी आया कि ऐसा कैसे कह दिया उसने अपने प्रियतम को?


मुझे दर्द दो तो दिल को क़रार आए।
कोई सितम भी करो तो प्यार आए।।

मुझे मिल जाएॅ तेरे रास्ते के काॅटे सभी,
तेरी राहों में चल कर खुद बहार आए।।

खुदा से बस यही आख़िरी रज़ा है मेरी,
नसीबों में एक दिन विसाले यार आए।।

करवटें बदल कर भी बात नहीं बनती,
किसी के हक़ में न ऐसा इन्तज़ार आए।।

तू मिले तो तेरी बाहों में फना हो जाऊॅ,
ऐ सनम ऐसा भी वक्त एक बार आए।।


ये सब बड़बड़ाती हुई रानी की आॅखों से नीर बह रहे थे। तस्वीर में वह राज के चेहरे पर प्यार से हाथ फेर रही थी। दिल में उमड़ते हुए ज़ज़्बात उसके काबू से बाहर हो चले थे।

अब आ भी जाओ के दिल को सबर नहीं होता है।
तुम्हारे बिना इक पल भी अब गुज़र नहीं होता है।।

मैंने तो हज़ारों दफ़ा समझा कर देख लिया हमदम,
क्या करूॅ के इस दिल पर कुछ असर नहीं होता है।।


खलवते ग़म में ही बसर हुई है तमाम ऊम्र अपनी,
खुशियों का कोई पल मुझे मयस्सर नहीं होता है।।

ऐसा न हो के तेरी याद में यूॅ ही तड़प के मर जाऊॅ,
तेरे हिज्र का ग़म हमदम कभी मुख़्तसर नहीं होता है।।


"अभी और कितना तड़पाओगे अपनी इस प्रेम दिवानी को?" रानी ने अधीरता से कहा___"आपने तो ख्वाब में कहा था कि आप मेरे ख़्वाबों से निकल कर आएॅगे मेरे पास। फिर क्यों नहीं आ रहे आप? क्या मेरे प्रेम में वो बात नहीं है जिससे मैं आपको पा सकूॅ? क्या मैं आपके लायक नहीं हूॅ? आप एक बार कह कर तो देखिए मेरे देवता, मैं आपके लिए अपना सब कुछ वार दूॅगी। मेरा तन मन सब कुछ आपका ही तो है। मेरा तो कुछ है ही नहीं सिर्फ आपके प्रेम के सिवा।"

रानी ने तस्वीर को उठाकर अपने हृदय से लगा लिया फिर बोली___"सुन लीजिए..मेरा दिल सिर्फ आप ही का नाम ले रहा है और कह रहा है कि अब और देर मत कीजिए। अब और प्रतीक्षा करने की क्षमता नहीं है मुझमें। पिछले तेरह सालों से तो आपकी प्रतीक्षा ही कर रहा है ये दिल। अब और नहीं मेरे देवता। मुझसे अब और सहन नहीं होता। मैं इस प्रेम की अग्नि में जल कर भस्म हो जाऊॅगी।"

रानी फूट फूट कर रो पड़ी। उसके खूबसूरत से चेहरे पर दुख और तड़प के भाव कत्थक कर रहे थे। तस्वीर को दोनो हाथों से पकड़ कर अपने हृदय से लगाए वह आॅगे बंद कर के रोये जा रही थी।

सहसा तभी कमरे में अजीब सा वातावरण फैल गया। कमरे की खिड़की पर जहाॅ कि पूरे में काॅच लगा था उसमें बाहर की तरफ से सफेद किन्तु हल्की सी रोशनी हुई तथा कमरे के बंद दरवाजे के नीचे झिरी से सफेद धुआॅ सा कमरे में दाखिल होने लगा। वो सफेद धुआॅ कमरे के समूचे फर्स पर फैल गया। उधर रानी इस सबसे बेख़बर उसी तरह रोये जा रही थी। किन्तु वो उस वक्त बुरी तरह हड़बड़ा गई जब उसे अपने बिलकुल करीब सफेद रोशनी का आभास हुआ। दरअसल रानी जिस तस्वीर को दोनो हाॅथों से पकड़े उसे अपने हृदय से लगाए हुए थी वो अचानक ही सफेद रोशनी से चमकने लगी थी। उसी सफेद रोशनी के आभास से हड़बड़ाई थी।

अपने हाॅथ में पकड़ी हुई तस्वीर को सफेद रोशनी से चमकती देख रानी अनायास ही बेहद डर भी गई थी, किन्तु आश्चर्य की बात थी कि उसने डरने के बाद भी तस्वीर को नहीं छोंड़ा। हलाॅकि आमतौर होता यही है कि इंसान को अगर या पता चल जाए कि उसने अपने हाॅथ में किसी रस्सी का कोई टुकड़ा नहीं बल्कि वास्तव में किसी सर्प को पकड़ा हुआ है तो वह बेहद डर जाता है। उसकी चीख़ निकल जाती है और वह अपने हाथ में पकड़ी उस चीज़ को डर दूर फैंक देता है। लेकिन रानी ने ऐसा नहीं किया था। बल्कि वह उसी तरह तस्वीर को मजबूती से पकड़े हुए थी। वह डर ज़रूर गई थी किन्तु तस्वीर को नहीं फेंका उसने, बल्कि डर से उसने अपनी आॅखें बंद कर ली थी।

उधर सफेद रोशनी से चमकती हुई उस तस्वीर में एकाएक ही एक सफेद रोशनी निकली और रानी के बगल में बेड पर जा कर मूर्तिमान हो गई। रानी ने डर से आॅखें बंद कर रही थी। लेकिन तभी वह बुरी तरह डरी भी और चौंक भी गई। कोई चीज़ उसके कंधे पर अचानक ही रख गई थी। बुरी तरह डरी सहमी रानी ने हिम्मत जुटा कर तथा अपनी गर्दन को दाहिने साइड मोड़ कर धीरे धीरे आॅखें खोलीं। बगल में बैठे शख्स पर नज़र पड़ते ही पहले तो हैरत से उसकी आॅखें फैलीं फिर सहसा मानो पत्थर बन गई वह।

तुम बुलाओ मैं न आता ऐसा नहीं होता।

मैं इतना भी पत्थर का बना नहीं होता।।
किस्मत ने खेला था खेल ही इस तरह,
वरना यूॅ रूहे मरासिम जुदा नहीं होता।।


"र राऽऽऽज।" रानी चीखते हुए एक झटके से राज से लिपट गई। फूट फूट कर रोने लगी थी वह। राज ने भी उसे खुद से छुपा लिया और प्यार से उसके सिर पर हाॅथ फेरता रहा।

"आप आ गए राज।" रानी रोते हुए कह रही थी___"लेकिन इतनी देर क्यों लगा दी आपने? आप तो अच्छी तरह जानते थे न कि मैं आपके लिए कितना तड़प रही थी। फिर भी इतनी देर कर दी आने। बहुत कठोर हैं आप।"

मेरी ज़ुबानी________

"माफ़ कर दो रानी।" मैंने कहा___"पर इसमें भी मेरी कोई ग़लती नहीं है। ये सब तो वक्त और हालातों की वजह से हुआ। वरना भला क्या मैं तुमसे जुदा रह सकता था? मैं तो एक पल भी तुमसे दूर नहीं सकता था। इसी लिए तो तुमसे मिलने अक्सर ख्वाबों में आता था।"

"उतने से इस दिल को कहाॅ तसल्ली मिलती है राज।" रानी ने अधीरता से कहा___"दिल को सुकून तो आज मिला है..आपके सीने से लग कर। आपको अपने सामने इतने करीब से देख कर मेरे दिल को खुशी मिली है। आपकी बाहों में अब अगर मुझे मौत भी आ जाए तो कोई ग़म नहीं होगा।"

"न नहीं ऐसा मत कहो रानी।" मैने उसे ज़ोर से भींचते हुए कहा___"तुम ऐसी बात कैसे कह सकती हो? आज के बाद तुम ऐसी अशुभ बात नहीं करोगी। तुम मेरी रूह हो, मेरा सब कुछ हो तुम।"

"अब आप मुझे छोंड़ कर कहीं नहीं जाएॅगे न राज?" रानी ने सहसा खुद को मेरे सीने से अलग कर मेरी तरफ देखते हुए कहा___"आप अब हमेशा मेरे पास ही रहेंगे।"

"हाॅ रानी...अब मैं हमेशा तुम्हारे पास ही रहूॅगा।" मैने रानी का चेहरा अपने दोनो हाॅथों की हॅथेली के बीच में लेकर कहा__"तुमसे ढेर सारी बातें करनी है। माॅ और पिता जी के प्यार व दुलार को छोटा सा बच्चा बन कर फिर से पाना है।"

"जैसा आपको अच्छा लगे वैसा कीजिए राज।" रानी ने कहा___"मेरी तो बस इतनी इल्तज़ा है कि मेरी छोंड़ कर अब कहीं नहीं जाइयेगा। इतने वर्षों की जुदाई में किसी तरह घुट घुट कर जिया है मैने लेकिन अब इससे ज्यादा नहीं।"

"हम तो कभी किसी अपने से जुदा होने की हसरत नहीं करते रानी।" मैने कहा__"ये तो वक्त और हालात ऐसे हो जाते हैं कि ना चाहते हुए भी हमें वो करना पड़ता है जिसे करने का हमारा दिल ज़रा भी गवारा नहीं करता।"

"आप कहना क्या चाहते हैं?" रानी ने बड़ी मासूमियत से देखा था मेरी तरफ।
"क्या तुमने कभी इस बारे में सोचा है रानी कि हमारे बीच वास्तव में क्या रिश्ता है?" मैने गंभीरता से कहा___"हम दोनो रिश्ते में भाई बहन हैं। इसके बावजूद हम दोनो के बीच प्रेम संबंध हो गया। ये नियति का कैसा खेल है? प्रेम संबंध कोई अनुचित तो नहीं लेकिन ये संबध जब ऐसे रिश्ते के बीच हो तो सारी दुनिया इसे अनुचित ही कहती है। इतना ही नहीं बल्कि किसी शास्त्र में भी इस रिश्ते के बीच ऐसे प्रेम संबंध को अनुचित ही बताया गया है।"

"इन सब बातों का क्या मतलब है?" रानी ने सशंक भाव से कहा___"अगर ऐसा है भी तो इसमे हमारी क्या ग़लती है? किसी भी इंसान के अंदर किसी के लिए ऐसे विचार या ऐसी भावनाओं का जन्म कौन देता है? सब कुछ करने वाला तो ईश्वर है ना। और जब ऐसा संबंध इस रिश्ते के बीच हो ही गया है तो उसे अब मिटाया भी नहीं सकता। मुझे बाकी कुछ नहीं पता राज मैं तो बस इतना समझ गई हूॅ कि अब मेरी हर साॅस में सिर्फ आप हैं और मैं आपके बिना अब एक पल भी जीने का सोच भी नहीं सकती।"

"मैं भी तो नहीं सोच सकता मेरी जान।" मैने कहा___"हम दोनो तो अब दो जिस्म एक जान हैं। बस ये सोच कर चिन्तित हो जाता हूॅ कि हम दोनो के इस रिश्ते की वजह से हमारे माता पिता दुखी होंगे। समाज में उनकी जो प्रतिष्ठा है वो धूल में मिल जाएगी।"

"हमने कोई पाप तो नहीं किया है राज, हमने तो प्रेम किया है।" रानी कह रही थी__"और ये प्रेम गंगा की तरह पवित्र है। हमारे इस प्रेम को उन्हें स्वीकार करना ही पड़ेगा। वरना हम यहाॅ से कहीं दूर जाकर एक अलग अपनी प्रेम की दुनियाॅ बनाएॅगे।"

"नहीं रानी ऐसा करना महज स्वार्थ ही कहलाएगा।" मैने कहा___"क्योंकि हम दोनो के जीवन पर सबसे पहले माता पिता का अधिकार है। उन्होंने हमें जन्म दिया है, वो हमारे जन्मदाता हैं। हम अपने स्वार्थ या खुशियों के लिए उन्हें किसी तरह का दुख नहीं दे सकते और ना ही उनकी इच्छाओं का या अरमानों का गला घोंट सकते हैं।"

"तो फिर क्या करेंगे हम?" रानी के चेहरे पर गहन चिन्ता के भाव आ गए___"अगर हम अपने माता पिता की इच्छाओं के बारे में सोचेंगे तो हमारा प्रेम कैसे फलेगा?"

"सब कुछ समय पर छोंड़ दो रानी।" मैने गंभीरता से कहा___"जब हमारे दिलों में एक दूसरे के लिए ये प्रेम पैदा हो ही चुका है तो इसका समाधान भी किसी न किसी तरह निकलेगा ही। प्रेम की राह बड़ी दुश्कर होती है। इस राह में बड़ी कठिन परीक्षा देनी पड़ती है तभी दो प्रेमियों का मिलन संभव होता है।"

"मैं हर परीक्षा देने को तैयार हूॅ राज।" रानी ने कहा___"बस आप मुझे छोंड़ कर अब कहीं नहीं जाइयेगा। हम दोनो मिल कर हर परीक्षा हर कठिनाईयों को पार करेंगे।"

मैं रानी की इस बात से मन ही मन खुश भी था और समझ भी रहा था कि वो मुझसे कितना प्यार करती है। मैने उसे अपने सीने से छुपका लिया। हम दोनो दुनिया जहान से बेख़बर एक दूसरे की बाहों में लिपटे हुए थे। एक दूसरे की आत्माएॅ आपस में घुल मिल रही थी। हम दोनो जाने कितनी ही देर तक यूॅ ही लिपटे रहे। हम दोनो को होश तब आया जब किसी चीज़ की आहट हुई। हम दोनो एक दूसरे से अलग हुए तथा पलट कर देखा तो कमरे के दरवाजे पर बाहर से कोई दस्तक दे रहा था। दरवाजा क्योंकि बंद था इस लिए हम नहीं जानते थे कि बाहर कौन है?

"आप बैठिए मैं देखती हूॅ।" रानी इतना कह कर बेड से नीचे उतर कर दरवाजे की तरफ बढ़ गई। कुंडी खोल कर देखा तो बाहर सुमन खड़ी थी। रानी उसे देख कर खुश हो गई।

"वो आ गए माॅ।" रानी एक झटके से उससे लिपट कर बोली___"वो आ गए। मैने कहा था ना कि वो आज ज़रूर आएॅगे। देख लीजिए वो आ गए मेरे पास। मेरे प्रेम और मेरे विश्वास की लाज रख ली उन्होंने।"

"हाॅ मेरी बच्ची।" सुमन की आॅखों से पल भर में ही आॅसू छलक आए___"मैं जानती हूॅ। मैने बाहर से सब सुन लिया है। आज मुझे पता चल गया कि मेरी बेटी ग़लत नहीं कह रही थी और ना ही उसका अपने प्रेम के लिए यकीन झूठा था। जिस बात की हम सबने उम्मीद ही न की थी वो आज सच्चाई का प्रमाण लेकर सामने आ गया है। चल मुझे भी उसे देख लेने दे। मैं भी तो उसकी माॅ हूॅ, मुझे भी देखने दे कि मेरा बेटा कैसा है? मैने तो बस तस्वीरों में ही देखा था उसे।"

"जी माॅ आइये ना।" रानी उससे अलग होकर दरवाजे से एक तरफ हट गई। रानी के एक तरफ होते ही सुमन कमरे में दाखिल हुई। उसके पीछे पीछे ही रानी भी पलट कर आ गई। सुमन की नज़र जैसे ही बेड पर बैठे राज पर पड़ी तो वह अपनी जगह ठिठक गई। आश्चर्य से आॅखें फाड़े तथा एकदम से बुत बन गई वह देखने लग गई थी उसे। होश तब आया जब राज बेड से उतर उसके करीब आया।

"माॅ।" मैने करुण भाव से पुकारा उन्हें।
"राऽऽऽज।" माॅ की रुलाई फूट गई। उन्होने झपट कर मुझे अपने गले से लगा लिया। वो एकदम से पागल सी नज़र आने लगी थी। मुझे अपने गले से अलग कर मेरे चेहरे को देखती और मेरे चेहरे पर हर जगह चूमने लगी। मुझे इस माॅ का ये प्यार देखकर बहुत खुशी हुई। मुझे अपने अंदर वैसा ही एहसास हुआ जैसे कि मुझे अपनी असल माॅ से मिल कर हो रहा था। काफी देर तक सुमन माॅ मुझे प्यार और स्नेह भावना से चूमती चाटती रही।

"मेरा बेटा आ गया।" माॅ ने कहा___"जिस तरह मेरी बेटी को यकीन था कि तू एक दिन ज़रूर आएगा वैसे ही मुझे भी यकीन था कि तू आएगा।"
"पर आप तो हमेशा यही कहती थी माॅ कि इनका दुनियाॅ में कहीं कोई वजूद ही नहीं है?" रानी ने सहसा हैरानी से कहा था।

"वो तो इस लिए कहती थी मेरी बच्ची कि तू किसी तरह अपने अंदर से उस प्रेम को निकाल सके जो प्रेम एक भाई से था।" माॅ ने करुण भाव से कहा___"क्योंकि भाई बहन के बीच इस प्रेम संबंध को ये दुनिया स्वीकार नहीं कर सकती। इस लिए मैं चाहती थी कि तेरे अंदर से अपने ही भाई के प्रति वो प्रेम मिट जाए। वरना सारी दुनिया हम पर कई तरह की उॅगलियाॅ उठाने लगती।"

"फिर भी आप मेरे अंदर से इनके लिए वो प्रेम नहीं मिटा सकीं न माॅ?" रानी ने कहा__"भला मिट भी कैसे सकता था? प्रेम कोई ब्लैकबोर्ड पर चाक से लिखा हुआ कोई अच्छर नहीं था जो मिटाने से मिट जाता। किसी के दिल में किसी के लिए जब एक बार प्रेम का अंकुर फूट जाता है तो फिर उसे किसी भी कीमत पर मिटाया नहीं जा सकता माॅ।"

"जानती हूॅ मेरी बच्ची।" माॅ ने कहा__"लेकिन इसके बावजूद उस प्रेम को तुम्हारे दिल से मिटाना मेरी मजबूरी थी। इंसान जब देश समाज के बीच रहता है तो उसको बहुत कुछ सोचना पड़ता है और बहुत कुछ त्याग भी करना पड़ता है। हमें देश समाज के अनुसार चलना पड़ता है बेटी।"

"कोई बात नहीं माॅ।" रानी ने कहा___"मुझे आपसे इस सबके लिए कोई शिकायत नहीं है क्योंकि मुझे पता है कि आप अपनी जगह सही कर रही थीं। लेकिन अब इस बात का अफसोस भी है कि हमारे इस प्रेम के चलते वही होना मुमकिन है जिस बात को आप नहीं चाहती थी।"

"अब तो मुझे भी इस देश समाज की कोई परवाह नहीं है मेरी बच्ची।" सुमन माॅ ने रानी के चेहरे को सहला कर कहा___"मुझे तुम दोनो के प्रेम का एहसास हो चुका है। माना कि तुम दोनो के बीच भाई बहन का रिश्ता है लेकिन प्रेम हर रिश्ते से बढ़ कर है। अगर विधाता यही चाहता है तो यही सही।"

"ओह माॅ।" रानी माॅ से लिपट गई। माॅ ने बाहें फैलाकर मुझे भी इशारा किया कि मैं भी उनसे लिपट जाऊॅ। इस लिए मैं भी खुश होकर उनसे लिपट गया। मन में यही चल रहा था कि प्रेम की एक राह में एक सफलता यहीं से मिलनी शुरू हो गई है। किन्तु ये भी मालूम था कि आगे का सफर कदाचित बहुत कठिन भी है।
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मारिया निर्वस्त्र होने के बाद बुरी तरह शर्मा रही थी। उसे इस तरह शर्माते देख ऐसा लग ही नहीं रहा था कि ये शैतान है। वो बिलकुल इंसानों की तरह ही किसी नई नवेली दुल्हन की तरह शर्मा रही थी। निर्वस्त्र तो मैं भी था किन्तु मैं मारिया की तरह इतना ज्यादा शर्मा नहीं रहा था। मेरी नज़र मारिया के खूबसूरत तरासे हुए किन्तु मादकता से भरे हुए जिस्म पर फिसल रही थी।

"ऐसे मत देखिए राज मुझे बहुत शर्म आ रही है।" मारिया अपने हाॅथों से अपने गुप्तांगों को छुपाने की नाकामयाब कोशिश करते हुए बोली थी___"मैं आज से पहले कभी किसी पर पुरूष के सामने इस तरह बेपर्दा नहीं हुई और ना ही इस बारे में कभी सोचा था।"

"मैं जानता हूॅ महारानी।" मैने कहा___"मैं जानता हूॅ कि आप शैतान होते हुए भी एक पतिव्रता नारी हैं। आपका आपके पति के प्रेम बहुत ऊॅचा है। इतना ऊॅचा कि उसे प्रणाम किया जाए।"

"ऋषि के श्राप का समय आ गया है राज।" मारिया ने कहा___"अब आप सीघ्र ही वो कीजिए जिसके बाद मेरे पति सोलेमान फिर से सजीव हो जाएॅ।
"जैसी आपकी आज्ञा महारानी।" इतना कहते ही मैं मारिया के करीब जाने लगा।

मुझे अपने अत्यंत करीब देख मारिया और भी शर्माने लगी। वह एकदम से छुईमुई सी नज़र आने लगी थी। मुझे समझ न आया कि मैं कहाॅ से और किस तरह से शुरूआत करूॅ? आप तो जानते हैं मुझे इस सबका कोई तज़ुर्बा नहीं था। फिर भी आगे बढ़ना तो अनिवार्य ही था।

मैने आहिस्ता से अपने दोनो हाथों से मारिया के नंगे कंधों को पकड़ा और उसे अपनी तरफ घुमाया। मेरे घुमाने से मारिया बग़ैर किसी अवरोध के मेरी तरफ घूम गई। जैसे ही उसका चेहरा मेरी तरफ हुआ उसने अपनी आॅखें बंद कर ली। उसके होठ अनायास ही काॅपने लगे थे। उसके होंठ ताजे खिले गुलाब की पंखुड़ियों की तरह थे। मेरा जी चाहा कि उन पंखुड़ियों को चूम लूॅ और साथ ही उन रस से भरे प्यालों को चूसने लग जाऊॅ। किन्तु मैं अपनी इस इच्छा को अपनी मर्ज़ी से परवान नहीं चढ़ा सकता था। होठों पर चुंबन करना प्रेम का प्रतीक होता है जबकि मैं मारिया को उस रूप से प्रेम नहीं कर सकता था। वो अपने पति से प्रेम करती थी। उसके होठों पर उसके पति का अधिकार था।

"महारानी आप तो जानती हैं मुझे इस सबका कोई तज़ुर्बा नहीं है।" मैने कहा___"पर मैने सुना है कि इंसान जब इस राह में आगे बढ़ता है तो सब अपने आप ही होने लगता है। क्या ये सच है?"

"मैं क्या बताऊॅ राज?" मारिया ने अपनी आॅखें बंद किये हुए ही कहा___"इस वक्त आपको जो समझ आए वो करते जाइये और मेरे पति को मेरे लिए फिर से सजीव कर दीजिए।"

"ठीक है महारानी।" मैने कहा___"मेरे मन में जैसे जैसे ख़याल आएॅगे मैं वैसा करता जाऊॅगा। लेकिन एक चीज़ की आपसे इज़ाज़त चाहता हूॅ।"
"आपको किसी चीज़ की इज़ाज़त माॅगने की इस वक्त कोई ज़रूरत नहीं है।" मारिया ने धीरे से अपनी आॅखें खोल मुझे देखते हुए कहा___"क्योंकि होना तो वही है जो नियति में लिखा जा चुका है।"

"नियति की बात छोड़िये महारानी।" मैने मुस्कुरा कर कहा___"वो तो एक मजबूरी है जबकि मैं आपकी इज़ाज़त से ही आगे बढ़ना चाहता हूॅ।"

"ऐसा कह कर आपने मेरा मान बढ़ा दिया है राज।" मारिया ने कहा__"और ये भी कि आप निहायत ही एक अच्छे इंसान हैं। इस लिए आपको मेरी तरफ से आगे बढ़ने की इज़ाज़त है। मैं किसी बात के लिए आपको मना नहीं करूॅगी।"

"शुक्रिया महारानी।" मैने कहा___"तो फिर आप भी सहयोग कीजिए आगे बढ़ने में। हम दोनो अब आगे बढ़ते हैं।"
"मैंने तो वैसे भी खुद को इस वक्त आपको सौंप दिया है राज।" मारिया ने कहा__"ये जिस्म इस वक्त आपके लिए है। आप जैसे चाहें इसका भोग करें। मेरा मन मेरी आत्मा में तो मेरे पति ही रहेंगे ना?"


मैंने उनकी बात का समर्थन किया और दोनो हाथों में मारिया का चेहरा ले लिया। मेरे ऐसा करते ही मारिया आॅखें फिर से बंद हो गईं। मैने झुक कर आहिस्ता से मारिया के होठों से अपने होंठ मिला दिये। मेरी इस क्रिया से मारिया के जिस्म में झुरझुरी सी हुई जबकि मैने उसके होठों को अपने होठों में लेकर उन्हें चूमने चूसने लगा। इस राह में ये मेरा पहला चुंबन था। मुझे उसके होठों को चूमने चूसने में बड़ा आनन्द मिल रहा था। मेरे अंदर बड़ी तेज़ी से हलचल होने लगी थी। कुछ ही देर में मैने महसूस किया कि मारिया भी मेरा साथ दे रही है। उसने अपने दोनो हाॅथ मेरी पीठ पर रखे और फिर वह भी मेरे होठों को मेरी तरह ही चूमने चूसने लगी।

मैं बड़ी तेज़ी से अपने होशो हवाश खो रहा था। मुझमें अजीब सा नशा सा छाता जा रहा था। मारिया के होठों को चूमते चूसते हुए ही मैने अपना एक हाथ नीचे सरका कर उसके सीने के दाहिनी चूची को मुट्ठी में भर कर ज़ोर से मसला। मारिया सिसक कर रह गई। मुझे उसकी बड़ी सी किन्तु ठोस चूची को मसलने में बड़ा मज़ा आ रहा था। मैने मारिया के होठों से अपने होठों को हटाकर उसे पलट दिया। उसकी नंगी पीठ मेरे नंगे सीने से सट गई। उसने अपने दोनो हाॅथों को उठा कर मेरे सिर के पीछे की तरफ ले जाकर मेरे सिर को पकड़ अपनी तरफ करने की कोशिश की। उसने अपना चेहरा भी मेरी तरफ मोड़ लिया था। मैने उसके होठों को अपने होठों में भर कर फिर से चूसना शुरू कर दिया जबकि अपने दोनो हाॅथों को मैं उसकी दोनो तरफ से आगे ले जाकर उसके दोनो पर्वत शिखरों को मुट्ठी में भर कर बुरी तरह भींचने लगा। मेरे ऐसा करते ही मारिया का जिस्म ज़ोर ज़ोर से हिलने लगा। इधर मेरा हथियार जो पलक झपकते ही जाने कब का खड़ा हो चुका था वो मारिया के पिछवाड़े से रगड़ खा रहा था। मारिया को भी इस बात का एहसास था, वो अपने पिछवाड़े को गोल गोल घुमाकर मेरे हथियार पर ज़ोर ज़ोर से घिसने लगी थी। उसकी साॅसे बहुत भारी थी। वह पागल सी हो चुकी थी। उसकी सारी शर्म जाने कहाॅ गुम हो गई थी। वह मेरे होठों को बुरी तरह चूसते हुए पल पल में काट भी रही थी। मुझे खुद कोई होश नहीं था। मेरे अंदर बड़ी तेज़ी कोई ज्वारभाटा की तरह वहराते हुए मेरे हथियार की तरफ बढ़ रहा था। मेरा हथियार किसी लोहे की तरह हो गया था। हल्का दर्द भी होने लगा था उसमे।

मारिया एक झटके से पलटी और फिर से मेरे होठों पर टूट पड़ी। वह बड़ी बेसब्री और ब्याकुल सी दिख रही थी। उसका एक हाॅथ बड़ी तेज़ी से नीचे आया और मेरे हथियार को मुट्ठी में भर लिया। मुट्ठी में कस कर उसने हाथ को आगे पीछे करने लगी। होठों से चूमती हुई वह मेरे सीने पर आई। सीने को चूमती हुई वह नीचे पेट से होते हुए हथियार तक पहुॅच गई। फर्स पर उकड़ू बैठ कर वह कुछ पल के लिए अपने एक हाॅथ में पकड़े मेरे मोटे तगड़े हथियार को देखा तो उसकी आॅखें हैरत से फैल गई। उसने सिर उठा कर मेरी तरफ देखा।

"जो लोग आपको बालक बालक कह रहे थे वो अगर आपके इस हथियार को देख लें तो बालक कहना भूल जाएॅगे।" मारिया ने मुस्कुराते हुए कहा___"क्यों कि ये किसी बालक का तो हो ही नहीं सकता।"

"अच्छा जी।" मैं भी मुस्कुरा पड़ा।
"हाॅ जी, ये तो किसी भरपूर मर्द का ही लगता है।" मारिया ने कहा___"पाॅच सौ वर्षों बाद जब ऐसा हथियार मेरी उस नाज़ुक चीज़ के अंदर जाएगा तो जाने मेरे प्राण बचेंगे भी या पल भर में ही मेरा ये शरीर छोंड़ जाएॅगे।"

"मुझे क्या पता महारानी?" मैने कहा___"मैं तो खुद ही इसे आज पहली बार इस रूप में देख रहा हूॅ आआआहहहहह।"

मेरे इतना कहने के साथ ही मारिया ने मेरे हथियार के ऊपरी भाग को अपने मुह में भर लिया था। कुछ देर उसे मुह में डालने के बाद वह उसे किसी कुल्फी की तरह चूसने लगी। मेरे अंदर आनन्द की कोई सीमा नहीं थी। मेरी आॅखें परम सुख की अनुभूति में बंद हो गई थी। मेरे रॅगों में बहते हुए लहूॅ भयंकर उबाल आ चुका था।

"आप सच कहते हैं राज।" मारिया ने मेरे हथियार को मुह से निकाल कर कहा___"आज से पहले ये इस तरह कभी खड़ा ही नहीं हुआ होगा। इसके सुपाड़े की खाल तक नहीं उतरी है अब तक। आपकी नॅथ उतरी ही नहीं है अब तक।"

"नॅथ???" मैं उसकी इस बात से उलझते हुए बोला___"ये क्या होती है??"
"आप भी कमाल करते हैं राज।" मारिया हॅस पड़ी, बोली___"पर कदाचित् इसमें आपका कोई दोष नहीं है। भला इसके पहले आपको इस सबका का ज्ञान भी कैसे होता? आप तो इन सबसे दूर थे।"

"किस ज्ञान की बात कर रही हैं आप?" मैने हैरत से पूछा था।
"यही कि जिस तरह एक लड़की एक औरत बन जाती है उसी तरह एक लड़का भी मर्द बन जाता है।" मारिया ने कहा___"इस सबकी प्रक्रिया भले ही आज के हिसाब से लोगों ने अलग अलग बना ली हो किन्तु यथार्थ तो वही होता है न।"

"आपकी बातें मुझे बिलकुल भी समझ नहीं आ रही हैं महारानी।" मै सच में उलझ कर रह गया था।
"सब समझ आ जाएगा राज।" मारिया कहने के साथ ही वहीं फर्स पर लेट गई और मुझे अपने ऊपर आने को कहा।

मैं हैरान परेशान सा था। किन्तु उसके कहे को मान कर मैं उसके ऊपर आ गया। मैं हैरान इस बात पर भी था कि जो मारिया इसके पहले इतना शर्मा रही थी और बिलकुल छुईमुई सी दिख रही थी वही अब खुद ही ये सब कर रही थी। शायद उसके अंदर की शैतानियत जाग गई थी।

"आपको थोड़ी ही देर में सब समझ आ जाएगा राज।" मेरे ऊपर आते ही मारिया ने मेरे हथियार को पकड़ कर उसके मुंड को अपनी योनि के द्वार पर फिट किया और फिर उसके बाद मुझे आहिस्सा आहिस्ता हथियार को योनि के भीतर डिलने को कहा। मैने वैसा ही किया। किन्तु उसकी योनि मेरे हथियार के हिसाब से छोटी समझ में आ रही थी। मेरा हथियार फिसल जाता था। मारिया ने उसे पकड़ कर कहा अब आहिस्ता आहिस्ता अंदर कीजिए।

मैं अंदर करने लगा किन्तु तभी मुझे दर्द हुआ। इस दर्द के साथ ही मैं रुक गया। मुझे रुकता देख मारिया ने मुझसे आॅखों के इशारे से ही पूछा कि क्या हुआ रुक क्यों गए आप? मैने बताया कि मुझे दर्द हो रहा है। मेरी इस बात से मारिया हॅस पड़ी।

"आज पहली बार सुन रही हूॅ कि संभोग करते हुए कोई मर्द बोले कि उसे दर्द हो रहा है।" मारिया ने हॅसते हुए कहा___"जबकि होता ये है कि लड़की ही कहती है उसे दर्द हो रहा है।"
"अब दर्द हो रहा है तो यही कहूॅगा न महारानी साहिबा।" मैं भी हॅस पड़ा था।

"इस हालात में एक मर्द लड़की के साथ क्या करता है जानते हैं आप?" मारिया ने समझाने वाले भाव से कहा___"वो अगर इस खेल का कुशल खिलाड़ी है तो बड़ी दक्षता से लड़की को बिना दर्द दिये अपना हथियार उसकी योनि के अंदर तक डाल देता है। या फिर ये सोच कर कि दर्द तो होना ही है इस लिए एक ही बार में एक ही झटके के साथ अपना हथियार लड़की की योनि में डाल देता है। मेरे कहने का मतलब यही है कि आप अपने या मेरे दर्द की परवाह ना करते हुए एक झटके में ही अपना हथियार मेरी योनि के अंदर तक डाल दीजिए। संभोग की इस प्रक्रिया में सिर्फ शुरूआत में ही दर्द होता है उसके बाद तो बस आनन्द ही मिलता है।"

मैं मारिया की बात समझ गया था इस लिए मैने विचार बना लिया कि अब ऐसा ही करना है। मारिया ने मेरे हथियार को योनि द्वार में टिका कर पकड़ा हुआ था। मैं अपनी आॅखें बंद करके तथा साॅसें बहाल करके पूरी ताकत से झटका दे दिया। मगर इसका परिणाम हम दोनो के लिए ही बेहद दर्दनाक निकला। हम दोनो के हलक से भयंकर चीखें निकल गई। आॅखों के सामने अॅधेरा सा छा गया था कुछ पल के लिए। हम दोनो एकदम रुक गए थे। दोनो के गुप्ताउंगों में असहनीय दर्द हो रहा था। ऐसा लगता था जैसे किसी ने चीर फाड़ रख दिया हो हमारे गुप्तांगों को।

ख़ैर, काफी देर बाद हम दोनो को राहत सी महसूस हुई। मैं मारिया के ऊपर ही पसरा हुआ था इस लिए अपने भार को उसके ऊपर से उठा कर मारिया की तरफ देखा। उसकी आॅखे बंद थी तथा आॅखों की कोरों से आॅसू बह रहे थे। चेहरे पर गहन पीड़ा के भाव जैसे ठहर कर रह गए थे।

"आप ठीक तो हैं ना महारानी?" मैने चिन्तित भाव से आहिस्ता से पूछा था।
"अब ठीक हूॅ राज।" मारिया ने कहा___"किन्तु थोड़ी ही देर पहले लगा था कि मेरे अंदर अब प्राण नहीं रहे। ख़ैर, ये बताइये आप ठीक हैं ना?"

"जी आपके जैसा मेरा भी हाल है।" मैने कहा___"बहुत तेज़ जलन हो रही है वहाॅ पर।"
"सब ठीक हो जाएगा।" मारिया ने भेदभरी मुस्कान के साथ कहा___"आज आप एक लड़की से औरत बन गए हैं। नहीं नहीं बालक से मर्द बन गए हैं।"

"क्या????" मैं उछल पड़ा था___"उसके पहले क्या कहा था आपने? लड़की से औरत???"
"हाॅ तो कुछ वैसा ही तो था।" मारिया ने हॅसते हुए कहा___"लड़कियों की तरह आपकी भी तो सील टूट गई आज।"

"सील????" मैं चकरा गया___"अब ये क्या चीज़ है?"
"हीहीहीहीही बस कीजिए राज।" मारिया की हॅसी छूट गई, बोली___"किसी और से पता कर लीजिएगा। अभी तो बस आप आगे का काम शुरू कीजिए।"

मैं मारिया के निर्देशानुसार शुरू हो गया था। हम दोनो को कुछ देर बाद ही इस क्रिया में असीम आनन्द मिलने लगा था। हम दोनो के बगल से ही खुले संदूख में सोलेमान का पत्थर बना शरीर रखा हुआ था। इधर हम दोनो संभोग की चरम सीमा पर थे। मेरे अंदर बड़ी तेज़ी से रक्त दौड़ते हुए मेरे हथियार की तरफ बढ़ता हा आ रहा था। मारिया की हालत अजीब हो गई थी। उसके चेहरे पर थकान दिख रही थी और हो भी क्यों ना वर्षों बाद संभोग में वह जाने कितनी बार झड़ चुकी थी।

और फिर आख़िर वह वक्त भी आया जब मुझे महसूस हो गया कि मेरे अंदर से बड़े ही प्रबल वेग से कुछ निकलने वाला है। मैने मारिया को बता दिया। मारिया तुरंत ही फर्स से उठ बैठी। ये अलग बात है कि उठने में बड़ी मुश्किल हुई थी उसे। मेरा हथियार उसकी योनि से बाहर आ गया था किन्तु उठते ही उसने फिर उसे अपनी योनि मे डाल लिया। मैने तेज़ी से झटके मारने शुरू कर दिये। कुछ ही देर में मेरे मुख से लम्बी लम्बी आहें निकलने लगी। मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे अंदर आनन्द की कोई सीमा ही ना हो। मेरा शरीर झटके खाने लगा। मेरे हथियार से वीर्य की धारा पिचकारियों की शक्ल में मारिया की योनि में गिरने लगी। कुछ ही देर में मुझे लगने लगा जैसे मेरे अंदर से मेरे प्राण चले गए हों। मैं असहाय सा मारिया की पीठ पर छुपक गया था।

कुछ पल बाद ही मारिया हिली जिससे मुझे कुछ होश आया और मैं उसकी पीठ से हट गया। मारिया को एकाएक ही जैसे समय की नज़ाक़त का एहसास हुआ। वह एकदम से हड़बड़ा गई। उसके चेहरे पर वही शर्म फिर से नज़र आने लगी। किन्तु उसने खुद को सम्हाला और अपने एक हाॅथ को अपनी योनी में लगाया। फिर जैसे उसने अपने अंदर से दबाव बनाया जिसके कारण उसकी योनि से मेरा और उसका दोनो का मिला हुआ वीर्य निकला। मैं उसकी इस क्रिया को देख सब कुछ समझ गया। वह हम दोनो के वीर्य के मिश्रण को अपनी योनि से लेकर सीधी हुई। उसके हाॅथ में पर्याप्त मात्रा में हम दोनो का वीर्य था। पास ही बगल में संदूख रखा हुआ था जिसमें सोलेमान का पत्थर रूपी शरीर पड़ा हुआ था। मारिया संदूख के करीब जाकर अपने हाॅथ में लिए हुए हम दोनो के वीर्य को सोलेमान के पत्थर बने शरीर पर बड़ी सावधानी से छिड़का।

इधर मैं अपने कपड़े पहनने लगा था जबकि मारिया अभी भी मादरजाद नंगी थी। उसे जैसे अपने नंगेपन का एहसास ही नहीं था। उधर मारिया के ने जैसे ही हम दोनों के वीर्य के मिश्रण को छिड़का वैसे ही सोलेमान के पत्थर बने शरीर पर अजीब सी प्रतिक्रिया होने लगी। ठोस पत्थर एकदम से किसी बर्फ की सिल्लियों की तरह चिटक चिटक कर पिघलने लगा। ये देख कर मारिया के चेहरे और आॅखों पर खुशी रूपी चमक आ गई। उसने झटके से पलट कर मेरी तरफ देखा तो चौंक पड़ी। मुझे कपड़े पहने देख उसे भी आभास हुआ कि वह तो नंगी ही है अभी। ये जानते ही पल भर में वह शर्म से पानी पानी होने लगी। वह एकाएक ही फिर से छुईमुई नज़र आने लगी। मैं मारिया के इस बदलते ब्यक्तिव पर हैरान था। पर ये भी सच था कि मुझे उसके इस रूप पर बड़ा प्यार भी आ रहा था। वह अपनी जगह पर सिकुड़ी सी खड़ी थी। होठों पर लाज व शर्म से भरी मुस्कान। मैं उसे इस तरह देख कर मुस्कुराया और फिर फर्स से उसके कपड़े उठा कर उसकी तरफ उछाल दिया। उसने जल्दी से हवा में ही अपने कपड़ों को पकड़ा और तेज़ी से ही उन्हें अपने जिस्म पर डालने लगी।

सोलेमान का पत्थर बना शरीर बड़ी तेज़ी से बदल रहा था। उसमें सफेद रोशनी जैसी धुंध फैली हुई थी। देखते ही देखते धुंध रूपी वो रोशनी और तेज़ हो गई। रोशनी के कारण सोलेमान का शरीर दिखना भी बंद हो गया और फिर तभी वह फैली हुई रोशनी सिमट कर सोलेमान के जिस्म पर समा गई। रोशनी के हटते ही जो नज़र आया उसे देख कर मारिया की आॅखों में खुशी के आॅसू आ गए। संदूख में अब जो सोलेमान पड़ा नज़र आया वो पत्दर का नहीं बल्कि सजीव शरीर के साथ था। उसकी आॅखें बंद थी। मारिया उससे लिपट कर खुशी के मारे फूट फूट कर रोने लगी। अभी वह उससे लिपटी रो ही रही थी कि अचानक ही मारिया के शरीर को झटका लगा और उसके शरीर से काला धुआॅ जिसमें कहीं कहीं बिजलियाॅ भी शामिल थी निकल कर सोलेमान के जिस्म में समाने लगा। संदूख के ऊपर गहरा काला धुआॅ छा गया और फिर एकाएक ही वो सारा धुआॅ ऊपर उठ कर नीचे फर्स पर बड़ी तेज़ी से आया। फर्स पर वह धुआॅ गोल गोल घूमते हुए कुछ ही देर में थम गया और अब धुएॅ के लोप होते ही जो शख़्सियत नज़र आई वो शैतानों के पहले किंग सोलेमान की थी।
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किंग सोलेमान को पहले की ही तरह का देख मारिया खुशी से फूली न समाई। वह जिस हालत में थी वैसे ही दौड़ कर सोलेमान से लिपट गई। सोलेमान ने मुस्कुराते हुए अपनी बाहों में जकड़ लिया। कुछ ही दूरी पर खड़ा मैं ये सब देखे जा रहा था।

"मैने आपको फिर से पा लिया सम्राट।" मारिया सोलेमान से लिपटी हुई कहे जा रही थी___"पाॅच सौ सालों बाद आज फिर से आप मुझे सही सलामत मिल गए। बहुत तड़पी हूॅ मैं आपके लिए। अब मुझे इस तरह अकेला छोड़ कर कभी मत जाइयेगा। कितना सुकून मिल रहा है मुझे आपकी इन बाहों में। इसी के लिए तो इतने सालों तड़प रही थी नाथ। मुझे खूब प्यार कीजिए। अपने प्यार से तृप्त कर दीजिए मुझे।"

"हम तुम्हारा शुक्रिया किन लफ्ज़ों से करें मेरी जान?" सोलेमान ने कहा___"तुम्हारी मोहब्बत ने हमें फिर से ज़िदा कर दिया। हम तुम्हारे सदा ऋणी रहेंगे मारिया।"

"मेरा शुक्रिया अदा करने की आपको कोई ज़रूरत नहीं है सम्राट।" मारिया ने कहने के साथ मेरी तरफ इशारा किया___"बल्कि शुक्रिया इनका अदा कीजिए जिनकी वजह से आप आज मुझे फिर से मिल गए हैं। ये इतने महान हैं कि खुद मेरी मुश्किलों को आसान करके यहाॅ आए और आपको उस क्रिया के द्वारा पत्थर शरीर से मुक्त किया।"

मारिया की बात सुनकर सम्राट सोलेमान चल कर मेरे पास आए और फिर मेरे सामने अपने दोनो हाथ जोड़ कर कहा___"आपका बहुत बहुत शुक्रिया दोस्त। आपने हमें फिर से जीवित कर दिया। इसके लिए हम आपके आभारी रहेंगे।"

"महाराज सोलेमान।" मैने कहा___"मैने कुछ नहीं किया। जो कुछ किया वो सब उस ईश्वर ने किया है। मैं तो बस एक माध्यम था बाॅकि सब उस ऊपर वाले ने किया है।"
"ईश्वर तो यकीनन हर चीज़ का कर्ता धर्ता है किन्तु प्रत्यक्ष में जो कर्ता है उसका एहतराम तो बनता ही है।" सोलेमान ने कहा___"हम आपके ऋणी हैं दोस्त। इस लिए अगर कभी हमे आपके लिए जान की कुर्बानी देने का मौका मिला तो हम खुशी से खुद को फना कर देंगे।"

"ऐसा मत कहें सम्राट।" मैने कहा___"आप मुझे दोस्त कहते हैं तो भला मैं ये कैसे चाह सकता हूॅ कि मेरे दोस्त को मेरे लिए फना हो जाना पड़े। मैं तो बस यही चाहता हूॅ सम्राट कि आप हमेशा सलामत रहें। आप दोनो का प्रेम जन्म जन्मान्तर तक यूॅ ही बरकरार रहे।"

"ऐसा मत कहो दोस्त।" सम्राट ने कहा___"शैतान की योनि में रहने की दुवा न दो। प्रेम तो यकीनन यूॅ ही बना रहेगा किन्तु शैतान की योनि से मुक्ति भला कौन नहीं चाहेगा???"

"प्रेम अगर सच्चा और पवित्र हो तो इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता सम्राट कि आप किस योनि में हैं।" मैने कहा___"प्रेम तो हर योनि के जीवों में होता है। ये ईश्वर की प्राप्ति और मोक्ष की प्राप्ति कि मार्ग है। बस अच्छे कर्म कीजिए, किसी योनि से घृणा करने का मतलब है ईश्वर की बनाई हुई सृष्टि का अपमान करना।"

"हाॅ ये तो है दोस्त।" सोलेमान ने कहा___"और हम आज से ये ख़याल अपने ज़हन से निकाल देंगे।"
"अब मुझे जाना होगा सम्राट।" मैने कहा__"मेरा काम पूरा हो गया और अब आप भी महारानी मारिया के साथ फिर से एक नया और आदर्श जीवन शुरू कीजिए।"

"अरे अभी तो हम दोस्त बने हैं मित्र।" सम्राट ने कहा___"आज इस अवसर पर भी आप इस तरह चले जाएॅगे तो हमें बिलकुल खुशी नहीं होगी। हम चाहते हैं कि कुछ दिन आप यहीं हमारे साथ ही रुकें ताकि हम अपने मित्र का तहे दिल से आदर सत्कार कर सकें।"

"इस सबकी कोई ज़रूरत नहीं है सम्राट सोलेमान।" मैने कहा___"आपने कह दिया तो समझिये सब कुछ हो गया।"
"तो फिर ये बताइये कि अब दोबारा कब मुलाक़ात होगी हमारी?" सम्राट ने पूछा।
"जब मिलना नियति में होगा तो मिल ही जाएॅगे महाराज।" मैने कहा___"अब जाने की इज़ाज़त दीजिए।"

"अब क्या कहूॅ मित्र?" सम्राट ने अधीरता से कहा___"दिल तो आपको जाने देने की इज़ाज़त नहीं देता मगर क्या करें?"
"मेरी आपसे गुज़ारिश है राज।" मारिया ने कहा___"हम जब भी आपको दिल से याद करें तो आप हमें अपना दीदार ज़रूर कराइयेगा।"
"चलिए ठीक है महारानी।" मैने मुस्कुराकर कहा। इसके बाद मैं वहाॅ से गायब हो गया एक विशेष जगह जाने के लिए।



अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,,,,
मस्त और जबरदस्त अपडेट। मां बाप को बेटा मिल गया, प्रेमिका को प्रेमी मिल गया और वर्षो से तड़पती पत्नी को पति मिल गया मगर शैतानों को कुछ नही मिला। अब शायद राज पूनम को बचाने जाए या फिर अपनी माओ, मामा और चाचा के पास जाए। बहुत खूब।
 

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राज-रानी (बदलते रिश्ते)
""अपडेट"" ( 15 )


अब तक,,,,,,,,,,

"हाॅ ये तो है दोस्त।" सोलेमान ने कहा___"और हम आज से ये ख़याल अपने ज़हन से निकाल देंगे।"
"अब मुझे जाना होगा सम्राट।" मैने कहा__"मेरा काम पूरा हो गया और अब आप भी महारानी मारिया के साथ फिर से एक नया और आदर्श जीवन शुरू कीजिए।"

"अरे अभी तो हम दोस्त बने हैं मित्र।" सम्राट ने कहा___"आज इस अवसर पर भी आप इस तरह चले जाएॅगे तो हमें बिलकुल खुशी नहीं होगी। हम चाहते हैं कि कुछ दिन आप यहीं हमारे साथ ही रुकें ताकि हम अपने मित्र का तहे दिल से आदर सत्कार कर सकें।"

"इस सबकी कोई ज़रूरत नहीं है सम्राट सोलेमान।" मैने कहा___"आपने कह दिया तो समझिये सब कुछ हो गया।"
"तो फिर ये बताइये कि अब दोबारा कब मुलाक़ात होगी हमारी?" सम्राट ने पूछा।
"जब मिलना नियति में होगा तो मिल ही जाएॅगे महाराज।" मैने कहा___"अब जाने की इज़ाज़त दीजिए।"

"अब क्या कहूॅ मित्र?" सम्राट ने अधीरता से कहा___"दिल तो आपको जाने देने की इज़ाज़त नहीं देता मगर क्या करें?"
"मेरी आपसे गुज़ारिश है राज।" मारिया ने कहा___"हम जब भी आपको दिल से याद करें तो आप हमें अपना दीदार ज़रूर कराइयेगा।"
"चलिए ठीक है महारानी।" मैने मुस्कुराकर कहा। इसके बाद मैं वहाॅ से गायब हो गया एक विशेष जगह जाने के लिए।
_______________


अब आगे,,,,,,,,,,,

रात के घने अॅधेरे में महेन्द्र सिंह की कार शहर से बाहर की तरफ तेज़ रफ्तार से दौड़ी जा रही थी। उसके बगल वाली सीट पर रंगनाथ बैठा था। रंगनाथ बार बार अपने बाॅए हाॅथ की कलाई पर बॅधी घड़ी को देख रहा था जिसमें समय प्रतिपल आगे ही बढ़ता जा रहा था। इस वक्त रात के ग्यारह बज चुके थे। उन दोनो को कुवाॅरी कन्या को लेकर सीघ्रता से कृत्या के पास उस जंगल में पहुॅचना था ताकि निर्धारित समय पर वो उस लड़की को महाशैतान के सुपुर्द कर सकें। अगर ऐसा नहीं हुआ तो उनकी सारी मेहनत और तपस्या पर पानी फिर जाना था।

महेन्द्र और रंगनाथ किसी जुनूनी अंदाज़ से जा रहे थे। इस वक्त उन दोनो के चेहरों पर पत्थर सी कठोरता थी। कार की पिछली सीट पर महेन्द्र की बेटी पूनम बेहोश पड़ी थी। उस बेचारी को इस बात का कोई पता ही नहीं था कि उसका बाप महज अपने स्वार्थ के लिए उसकी बलि देने जा रहा है। कार की डिक्की में महेन्द्र का साला था वही बेहोशी की हालत में। इन दोनो बेकसूरों की नियति में इतना बड़ा हादसा जैसे लिखा हुआ था।

शहर से दूर आकर महेन्द्र की कार की रफ्तार धीमी हो गई। क्योंकि यहाॅ से उन्हें सड़क से नीचे बाएॅ साइड में कार को उतारना था। जिस तरफ जंगल शुरू होता था। महेन्द्र कार को जंगल के किनारे किनारे बनी बहुत पुरानी पगडंडी से ले जाना था।

महेन्द्र ने सड़क से जैसे ही कार को बाएॅ साइड नीचे उतरने के लिए मोड़ा वैसे ही तत्काल उसे ब्रेक मारना पड़ा। कार के बाएॅ साइड अचानक ही एक तेज़ रोशनी फैल गई। महेन्द्र व रंगनाथ हतप्रभ से रह गए। हैरत की ज़्यादती से फटी उनकी आॅखें मानो निकल कर बाहर आ जाएॅगी। किसी पुतले की तरह बेजान से होकर कार में अपनी अपनी जगह बैठे रह गए थे वो।

उधर फैली हुई तेज़ रोशनी ने एकाएक ही अपना आकार बदलना शुरू किया और देखते ही देखते इंसानी शक्ल में उस स्थान पर खड़ा हो गया।
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महेन्द्र और रंगनाथ इस दृष्य को देख कर उछल पड़े। उनकी समझ में न आया कि ये कौन उनके सामने इस तरह आ गया है? दोनो ने एक दूसरे की तरफ देखा। जैसे पूछ रहे हों कि ये सब क्या है? किन्तु दोनो भला एक दूसरे को क्या बताते?

कार के बाएॅ साइड खड़ा वो शख्स कोई और नहीं बल्कि राज ही था। मारिया और सोलेमान के पास से वह सीधा यहीं आया था। उसे देख कर महेन्द्र और रंगनाथ को कुछ समझ न आया।

"कौन हो यार तुम?" रंगनाथ उधर की तरफ ही बैठा हुआ था कार में इस लिए उसी ने कार की खिड़की से सिर निकाल कर पूछा था, बोला___"और इस तरह हमारे रास्ते पर क्यों खड़े हो तुम?"

"मैं कौन हूॅ ये जानना तुम दोनो के लिए ज़रूरी नहीं है।" मैने कहा___"बस इतना समझ लो कि अगर अपना भला चाहते हो तो कार के अंदर से उन दोनो को बाहर निकाल मेरे हवाले कर दो जिन्हें तुम दोनो बेहोश करके लाए हो।"

"अरे ये क्या फालतू बकवास कर रहे हो तुम?" रंगनाथ उछल पड़ा___"किसे तुम्हरे हवाले कर दें और क्यों? तुम हो कौन और इस तरह हमारा रोंक कर क्यों खड़े हो गए? सामने से हट जाए लड़के वरना अच्छा नहीं होगा समझे?"

"ठीक ही कहते हैं बड़े बुजुर्ग।" मैने कहा__"कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते।"
"क्या मतलब???" रंगनाथ चौंका था।
"अभी पता चल जाएगा।" मैं चल कर कार के पास आया और कार का दरवाजा खोल कर रंगनाथ को उसके कालर से पकड़ कर कार से बाहर खींच लिया। वो मेरी इस हरकत से छटपटाने लगा और साथ ही ऊल जुलूल बकने लगा। उधर ड्राइविंग सीट पर बैठा महेन्द्र चकित रह गया। आश्चर्य से आखें फाड़े वह देखता रह गया। फिर जैसे उसे होश आया। वह तुरंत ही कार से बाहर निकला और मेरी तरफ गुस्से से आने लगा। तब तक मैने रंगनाथ को अपने सिर से ऊपर तक उठा कर कार की बोनट पर पटक दिया था। रंगनाथ के हलक से दर्द में डूबी हुई चीख निकल गई। उधर मेरी तरफ बढ़ता महेन्द्र ये देख कर रुक गया और फिर तुरंत ही अपने हाथ को गोल गोल चेहरे के सामने घुमा कर हाथ की मुट्ठी को मेरी तरफ करके खोल दिया। परिणामस्वरूप उसकी मुट्ठी से आग का एक गोला निकल कर मेरी तरफ आने लगा। वो गोला जब मेरी तरफ आया तो मैने उस गोले को अपना मुह खोल कर निगल लिया। ये देख कर महेन्द्र सिंह हैरान रह गया। उसने फिर से ऐसा ही किया और मैने फिर से उसके गोले को मुह खोल कर निगल लिया। उधर बोनट से किसी तरह उठ कर रंगनाथ मेरी तरफ झपटा तो मैंने खड़े खड़े ही फ्लाइंग किक उसकी छाती में रसीद कर दी जिससे वह उड़ता हुआ सीधा महेन्द्र से टकराया। महेन्द्र उसके साथ ही ज़मीन पर चित्त गिरा। दोनो के हलक से घुटी घुटी सी चीख निकल गई।

मैं तेज़ी से दोनो के पास पहुॅचा और फिर दोनो को लात घूसों पर धर दिया। दोनो बरी तरह चीखे जा रहे थे। दोनो में से किसी को उठने तक का मौका ना मिला। लात घूसे खा खाकर दोनो अधमरी सी हालत में आ गए।

"अभी दिमाग़ ठिकाने आया कि अभी और धुनाई करूॅ तुम दोनो की??" मैने लगभग गुर्राते हुए कहा था। मेरे ऐसा कहने पर दोनो ने कहा तो कुछ नहीं लेकिन अपने अपने हाॅथ जोड़ लिए। मतलब साफ था कि रहम की भीख माॅग रहे थे दोनो।

"तुम दोनो नीचता की इस हद तक गिर गए हो कि तुम अपने गंदे काम के लिए अपनी ही बेटी को बलि का बकरा बनाने चल दिए।" मैने कहा___"और हाॅ जिन शक्तियों को हासिल करने के लिए तुम लोग ये करने जा रहे थे न उससे तुम मेरा या मेरे परिवार का बाल भी बाॅका नहीं कर सकते। तुम दोनो और उस कृत्या की तो बात दूर बल्कि कृत्या का वो महाशैतान भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता।"


दोनो मेरी इस बात से हैरान रह गए। महेन्द्र सिंह ने हकलाते हुए कहा___"तो तो तुम अ अशोक के बेटे राज हो???"
"हाॅ....वही राज जिसे तुमने आज से तेरह साल पहले अपने आदमियों के हाथों जान से मरवाना चाहा था।"

"ये सब झूठ है।" महेन्द्र सिंह हड़बड़ा बोला था___"मैंने कभी कुछ नहीं किया। भला मैं क्यों तुम्हें मरवाना चाहूॅगा?"
"ज्यादा बनने की कोशिश मत करो महेन्द्र चाचा।" मैने कहा___"मैं तुम्हारा और तुम्हारे खानदान का सारा हालचाल जानता हूॅ। कहो तो सबकुछ बता भी दूॅ तम्हें।"

महेन्द्र सिंह अवाक् रह गया। हैरत से मेरी तरफ इस तरह देखने लगा था जैसे मेरे सिर पर अचानक ही आगरे का ताजमहल आकर कत्थक करने लगा हो।

"खैर जाने दो।" मैने ठंडे स्वर में कहा___"आज तो तुम्हें जीवित छोंड़ रहा हूॅ क्यों कि तुम एक ज़माने में मेरे पिता जी के जिगरी दोस्त हुआ करते थे। दूसरी बात मेरा उसूल है कि एक बार इंसान को सुधरने का मौका ज़रूर देता हूॅ किन्तु दूसरी ग़लती पर जीवित छोंड़ना मेरी फितरत में नहीं है।"

"लेकिन तुम्हारे पास ऐसी शक्तियाॅ कहाॅ से आईं बेटा?" सहसा रंगनाथ ने पूछा।
"ये जानना आपके लिए ज़रूरी नहीं है।" मैने कहा___"और अब मैं तुम्हारी इस कार से उन दोनो को लेकर जा रहा हूॅ। उम्मीद करता हूॅ कि अगली जब तुम दोनो से मुलाक़ात होगी तो अच्छे तरीके से होगी..समझ रहे हो ना?"

इतना कह कर मैं पलटा और कार से महेन्द्र की बेटी को निकाला तथा साथ ही डिक्की से महेन्द्र के साले को भी निकाला। वो दोनो मुझे देख रहे थे। इधर मैं दोनो को कार से निकाल कर पलक झपकते ही गायब हो गया। मुझे गायब होते देख वो दोनो उछल पड़े।

"ये तो हम सबका बाप है मित्र।" रंगनाथ ने कहा__"इससे मुकाबला करना बहुत मुश्किल है।"
"अरे मुकाबले की बात छोड़ो यार।" महेन्द्र सिंह उठते हुए बोला___"इतनी मेहनत से जिसे लेकर आए थे वो कमीना उसे अपने साथ ले गया। अब हम कैसे वो सब हासिल कर पाएॅगे जिसके लिए ये सब किया था?"

"अब तो समय भी निकल गया।" रंगनाथ भी उठते हुए बोला___"अब हम चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते।"
"समझ में नहीं आता कि अशोक का ये कपूत कहाॅ से आ टपका?" महेन्द्र सिंह ने दाॅत पीसते हुए कहा___"कम्बख्त को अभी आना था। साले ने सारे किये धरे पर पानी फेर दिया।"

"और तो और हरामी ने कितनी बेदर्दी से मारा है हमें।" रंगनाथ ने कराहते हुए कहा__"जिस्म का एक एक हिस्सा पके हुए फोड़े की तरह दुख रहा है।"

"ये सब छोड़ो मित्र और ये सोचो कि वो पूनम और मेरे साले को लेकर कहाॅ गया होगा?" महेन्द्र ने कहा था।
"हो सकता है वो उन दोनो को वापस तुम्हारे घर ही ले गया हो।" रंगनाथ ने कहा__"कहीं और ले जाने का तो कोई मतलब ही नहीं है।"

"अब क्या करें मित्र?" महेन्द्र ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"वापस अब घर भी नहीं जा सकते क्योंकि अगर उस हरामज़ादे ने घर में सबको हमारी ये सारी करतूतें बता दी होगी तो समझो बेड़ा गर्क ही हो गया अपना। इससे अच्छा तो यही है कि हम यहाॅ से सीधा कृत्या के पास चलते हैं। उसे सारी बात बता देंगे कि हमारे साथ क्या हुआ है?"

"सच कहते हो यार।" रंगनाथ बोला__"अब तो कृत्या ही बताएगी कि हम इस राज से कैसे निपट सकते हैं?"
"ठीक कहा तुमने।" महेन्द्र ने कहा___"कृत्या के पास ज़रूर इसका कोई न कोई तोड़ होगा। हमें सीघ्र ही उसके पास चलना चाहिए।"

इसके बाद दोनो कार में बैठ कर जंगल के किनारे किनारे बनी पुरानी पगडंडी से निकल गए। दोनो के चेहरों पर मार के नीले निसान थे। होठ फट गए थे जहाॅ से खून रिस रहा था।
_____________________

महेन्द्र सिंह की बेटी पूनम और उसके साले को लिए मैं महेन्द्र सिंह के घर में प्रकट हुआ और दोनो को उनके अपने अपने कमरे में बेड पर लेटा कर मैं गायब हो गया।

मेरे घर में मेरा एक अक्स मेरी माॅ का पास था जो उनके साथ ही बेड पर सो रहा था और मेरा दूसरा अक्स मेरी बहन रानी के साथ था। जबकि इधर मेरा ये तीसरा अक्स मारिया के पति की मुक्ति के बाद पूनम को संकट से बचा कर एक जगह स्थिर हो गया था। मैं अपने दूसरे अक्स के माध्यम से देख रहा था कि रानी मेरी बाहों में चिपकी आज चैन की नीद सो रही थी। वही हाल उधर मेरी माॅ का भी था। ख़ैर, अब मेरा काम हो चुका था इस लिए मुझे अपने दोनो अक्सों को वापस अपने में समा लेना था। किन्तु समस्या अब ये हो गई थी कि सुबह जब मेरी माॅ और बहन दोनो ही अपने पास मुझे न पाएॅगी तो संभव है उनकी हालत पहले से भी ज्यादा ख़राब हो जाए।

मुझे समझ नहीं आ रहा था कि अब मैं इस समस्या से कैसे मुक्ति पाऊॅ? तभी सहसा मेरे ज़हन में गुरूदेव का ख़याल आया। मैने मन ही मन सोचा कि इस समस्या का समाधान गुरूदेव से ही पूछना चाहिए। इस लिए मैने अपनी आॅखें बंद करके गुरूदेव का ध्यान लगाया। कुछ ही पल में मुझे मेरे मन में गुरूदेव की आवाज़ सुनाई दी।

"कहो पुत्र कैसे याद किया हमें?" गुरूदेव ने कहा___"क्या कोई समस्या आन पड़ी है तुम्हारे सामने??"
"प्रणाम गुरूदेव।" मैने उन्हें प्रणाम करते हुए कहा___"आप तो सब जानते हैं कि इस वक्त मेरी सबसे बड़ी समस्या क्या है? मैने अपने आपको तीन रूपों बाॅट कर तीनों लोगों के कस्टों दूर करके उनके विश्वास को टूटने नहीं दिया। किन्तु अब समस्या ये है कि मैं अपने बाॅकी दोनो रूपों को वापस कैसे बुलाऊॅ? क्योंकि सुबह जब मेरी माॅ और बहन मुझे अपने पास नहीं पाएॅगी तो उनकी क्या दशा हो जाएगी यही सोच कर घबरा रहा हूॅ। कृपया मेरी इस समस्या का समाधान कीजिए गुरूदेव।"

"समस्या तो यकीनन बड़ी विकट और विचित्र है पुत्र।" गुरूदेव ने कहा___"किन्तु ऐसा भी नहीं हो सकता कि तुम हमेशा तीन रूपों में ही रहो। ऐसे में सृष्टि के नियम कानून में संकट आ जाएगा। इस लिए इस समस्या का यही समाधान हो सकता है कि तुम अपनी माॅ और बहन के ज़हन से आज की रात का ये सारा मंज़र मिटा दो।"

"ऐसा करने से एक माॅ की ममता और एक प्रेम दीवानी के प्रेम के साथ क्या छल करना नहीं कहलाएगा गुरूदेव?" मैने पूछा।
"यकीनन छल कहलाएगा पुत्र।" गुरूदेव ने कहा___"किन्तु वो छल सृष्टि के हित के लिए होगा इस लिए उसमें तुम्हें कोई दोष नहीं लगेगा। सृष्टि कल्याण के लिए किया गया कोई भी कार्य ग़लत नहीं होता।"

"ठीक है गुरूदेव।" मैने कहा___"जैसी आपकी आज्ञा। अब मैं वही करूगा जो आपने बताया है।"
"मन में किसी तरह का बोझ रखने की भी कोई ज़रूरत नहीं है पुत्र।" गुरूदेव ने कहा____"क्योंकि बाद में तो तुम्हें इनसे मिलना ही है। इनके पास ही रहना है।"

"जी गुरूदेव।" मैने उन्हें प्रणाम किया और वो मेरे मन से गायब हो गए।
"मैं अपनी माॅ और बहन के ज़हन से आज की रात का सारा मंज़र मिटा देता हूॅ।" मैं मन ही मन सोच रहा था___"लेकिन उसके बाद वो फिर से पहले की तरह दुखी रहेंगी। ऐसा करता हूॅ कि मैं उनकी इस पीड़ा को भी थोड़ा कम कर देता हूॅ।"

मैने ये सब मन में सोच कर अपनी आॅखें बंद कर ली। थोड़ी ही देर में मेरे दोनो अक्स मेरे सामने आ गए और मुझमें समा गए। उसके बाद मैं गायब हो गया।

गायब होने के बाद जिस जगह मैं प्रकट हुआ वह जगह एक बेहतरीन अलीशान बॅगला था।
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यहीं पर अब मुझे रहना था अपने इस परिवार के साथ। काल ने बहुत ही खूबसूरत इंतजाम किया था। ये इलाका भी माधवगढ़ का ही था। यहाॅ से मेरे असली माता पिता का घर कुछ ही समय की दूरी पर था। जैसा कि आप जानते हैं कि मेरे पिता जी की दो बीवियाॅ हैं। पहली बीवी यानी कि मेरी माॅ(रेखा) मेरे पिता जी के साथ पहले वाले घर पर ही रहती हैं जबकि मेरी दूसरी माॅ(सुमन) मेरी बहन के साथ दूसरे घर में रहती हैं। इस घर को कुछ समय पहले ही पिता जी ने खरीद कर दिया था। मेरा ये घर मेरे उन दोनो घरों के बीच की सीमा पर स्थित है। काल को जैसा कहा था उसने बिलकुल वैसा ही इंतजाम किया था।


आप सब को संक्षेप में काल का परिचय दे देता हूॅ, क्योंकि हो सकता है आप सबके दिमाग़ में ये सवाल हो कि कहानी के बीच में ये काल कहाॅ से आ गया???

काल, ये मेरी शक्तियों का एक मामूली सा हिस्सा है जिसे मैने गुरूदेव की आज्ञा से प्रकट किया था। मुझे तो अपनी शक्तियों का कोई ज्ञान ही नहीं था। इस लिए उसके पहले गुरूदेव खुद मेरे परिवार के सदस्यों की दूर से ही सुरक्षा करते थे। जब मैं अट्ठारह साल का हुआ तो मेरी समस्त शक्तियाॅ जागृत हो गईं। किन्तु उसके पहले ही गुरूदेव ने मुझे योग और साधना की शिक्षा दे चुके थे। मुझमें जन्म से ही ईश्वरी शक्तियाॅ थी किन्तु वो सब अपनी समय सीमा पर ही जागृत होनी थी। गुरूदेव के आशीर्वाद से और समय की माॅग के अनुसार काल की रचना करनी पड़ी। काल के कितने ही रूप हो सकते हैं समय और परिस्थितियों के अनुसार।

जैसे ही मैं प्रकट हुआ काल मे सामने ही खड़ा था। ये वही काल था जो महेन्द्र और रंगनाथ से भिड़ा था किन्तु उस वक्त वह धुएॅ के रूप में था जबकि इस वक्त वो एक आम इंसान के रूप में मेरे सामने था। वो मेरा हमशक्ल था, बस रंग रूप में फर्क था। जहाॅ मैं एकदम गोरा चिट्ठा था वहीं वह साॅवले रंग का था।

मुझे देखते ही उसने अदम से सिर झुकाया और एक तरफ हट गया।
"तुमने तो यार बहुत खूबसूरत इंतजाम किया हुआ है।" मैने मुस्कुरा कर कहा___"लेकिन ये तो बताओ कि ये सब कानूनी तौर पर जायज़ है ना? कहीं ऐसा न हो कि बाद में कानून का कोई लफड़ा हो जाए?"

"ऐसा कुछ नहीं होगा राज।" काल ने कहा___"ये सब आपके नाम पर ही है। ये बॅगला अभी हाल ही में बनवाया गया था। मैने इसके मालिक से मुहमागी कीमत पर खरीदा है।"
"अच्छा कितनी कीमत देनी पड़ी तुम्हें?" मैं हॅस कर बोला था।
"सौ करोड़।" काल ने मुस्कुरा कर कहा।

"सौ करोड़???" मैं चौंका____"इतनी बड़ी रकम कहाॅ से आई तुम्हारे पास?"
"ये कैसा सवाल हुआ राज?" काल ने हैरानी से कहा___"आप तो जानते हैं कि ये सब मेरे लिए मामूली बात है।"

"हाॅ भई हो भी क्यों ना।" मैं मुस्कुराया___"लोगों के काले धन का बहुत अच्छा उपयोग किया है तुमने। वैसे किसके खाते से गायब किया है तुमने इतना सारा रुपया???"

"इस शहर के मंत्री जगमोहन वागले के खाते से।" काल ने मुस्कुरा कर कहा___"इसने विदेश में ढेर सारा काला धन दबा के रखा हुआ है। पिछले बारह साल से यही मंत्री है। हर बार अपनी पहुॅच और गुंडागर्दी की बदौलत ये मंत्री बन जाता है। इसका बेटा एक नंबर का बदमाश है, तथा इसके अंडरवर्ड से भी संबंध हैं।"

"बहुत खूब।" मैने कहा___"तो ये बात है। चलो बढ़िया है लगे रहो।"
"आपके सारे कागजात मैने तैयार कर दिये हैं राज।" काल ने कहा___"कल ही आप इस शहर के उस कालेज में दाखिला ले सकते हैं जिस कालेज में आपकी बहन रानी ने दाखिला लिया है।"

"ये तुमने बहुत अच्छा किया काल।" मैने खुश होकर कहा___"यहीं से परिवार के करीब जाने का रास्ता बनेगा। ख़ैर और क्या क्या इंतजाम किया है तुमने??"
"वीर रिशभ मेनका और काया के भी कागजात तैयार करवा दिये हैं मैने।" काल ने कहा___"वो चारो अब इस देश के नागरिक हैं। आम इंसानों की तरह रहने के लिए आम इंसानों जैसा जीवन भी यापन करना होगा। इस लिए मैने उनके लिए एक ब्यौसाय के लिए बात की है। एक शेठ है वो अपना माल बेचना चाहता है। कल ग्यारह बजे उससे मीटिंग करना है। सारी डील होने के बाद वो माल अपना हो जाएगा और फिर वीर और रिशभ दोनो ही उसका कार्यभार सम्हाॅलेंगे।"

"क्या बात है यार।" मै मुस्कुराया___"सब कुछ इंतजाम कर रखा है तुमने तो। ख़ैर छोड़ो ये सब, चलो अंदर चलते हैं।"

उसके बाद हम दोनो ही अंदर आ गए। अंदर बड़े से ड्राइंगरूम में रखे सोफों पर सब बैठे मेरा ही इंतज़ार कर रहे थे। मुझे देखते ही मेरी माॅ(मेनका) अपनी जगह से खड़ी होकर मुझे अपने गले से लगा लिया।

"कितने देर लगा दी आने में?" माॅ ने कहा___"कहाॅ था अब तक?"
"आप तो जानती हैं माॅ कि आज की रात मुझे अपनी माॅ(रेखा) और बहन दोनो के पास पहुॅचना ज़रूरी था। इस लिए उनसे मिलने ही गया था।"

"तो आख़िर अपनी असल माॅ से मिल ही लिया मेरे बेटे ने?" काया माॅ ने कहा___"और बहन से भी। उस बहन से जो तुझसे अगाध प्रेम करती है। लेकिन वहाॅ से इतना जल्दी कैसे आ गया तू? मेरा मतलब कि उन लोगों ने तुझे आने कैसे दिया?"

"उनको तो पता ही नहीं है कि मैं उनके पास से जा चुका हूॅ।" मैने कहा।
"क्या मतलब है इस बात का?" वीर चाचू चौंके।

फिर मैने उन सबको सारी दास्तां बताई। गुरूदेव की सारी बातें बताई और ये भी कि अब उन दोनो को आज की रात का कोई मंज़र याद नहीं रहेगा। यै भी बताया कि मैं तीन भागों में बॅटा हुआ था। अपने एक भाग का मैने बताया कि कैसे मैं मारिया से मिला और फिर उसके साथ जाकर तथा संभोग क्रिया के बाद उसके पति सोलेमान को जीवित किया। मेरी ये सब बातें सुन कर सब हैरान रह गए। खास कर मारिया की बात सुनकर।

"और तो सब ठीक है लेकिन सोलेमान को जीवित करने की क्या ज़रूरत थी भला?" रिशभ मामा ने कहा___"वो शैतानो का शैतान है। भविष्य में वो हमारे लिए ख़तरा बन सकता है।"
"ऐसा कुछ नहीं होगा मामा जी।" मैने कहा___"उसने मुझे अपना मित्र कहा है। वो शैतान ज़रूर है किन्तु उसका स्वभाव अच्छा है।"

"चलो कोई बात नहीं।" मेनका माॅ ने कहा____"अब जो हो गया उस पर क्या परेशान होना?"
"फिर तो सोलेमान जीवित होते ही अपना राज्य मेरे पिता विराट से ले लेंगे।"

"हाॅ इसमें कोई शक नहीं है।" मैने कहा__"पर शायद विराट इतनी आसानी से राज्या वापिस न करें।"
"राज्य तो देना पड़ेगा।" वीर चाचू ने कहा___"आख़िर राज्य तो उनका ही था। भला किसी की अमानत में खयानत करने का क्या मतलब हो सकता है?"


दोस्तो छोटा सा अपडेट हाज़िर है,,,,,,
तो राज ने पूनम को भी बचा ही लिया और महेंद्र और रंगनाथ का शक्ति पाने का प्लान भी फेल कर दिया। अब देखते है क्रत्या क्या प्लान बनाती है राज के लिए। अति सुंदर अपडेट।
 

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राज-रानी (बदलते रिश्ते)
""अपडेट"" ( 16 )


अब तक,,,,,,,,,

"और तो सब ठीक है लेकिन सोलेमान को जीवित करने की क्या ज़रूरत थी भला?" रिशभ मामा ने कहा___"वो शैतानो का शैतान है। भविष्य में वो हमारे लिए ख़तरा बन सकता है।"
"ऐसा कुछ नहीं होगा मामा जी।" मैने कहा___"उसने मुझे अपना मित्र कहा है। वो शैतान ज़रूर है किन्तु उसका स्वभाव अच्छा है।"

"चलो कोई बात नहीं।" मेनका माॅ ने कहा____"अब जो हो गया उस पर क्या परेशान होना?"
"फिर तो सोलेमान जीवित होते ही अपना राज्य मेरे पिता विराट से ले लेंगे।"

"हाॅ इसमें कोई शक नहीं है।" मैने कहा__"पर शायद विराट इतनी आसानी से राज्या वापिस न करें।"
"राज्य तो देना पड़ेगा।" वीर चाचू ने कहा___"आख़िर राज्य तो उनका ही था। भला किसी की अमानत में खयानत करने का क्या मतलब हो सकता है?"
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अब आगे,,,,,,,,,

सुबह हुई!
एक नये दिन और एक नये जीवन की शुरूआत हुई। मेरे साथ जितने भी लोग थे वो सब के सब कोई मामूली इंसान नहीं थे बल्कि सबके पास सुपर नेचरल पावर्स थीं किन्तु ये बात हमारे सिवा दुनियाॅ के बाॅकी आम इंसान नहीं जानते थे और ना ही हम उन्हें इस बात की जानकारी देना चाहते थे। हम सबने फैसला किया कि आज के बाद कोई भी अपनी शक्तियों का बेवजह उपयोग नहीं करेगा। शक्तियों का प्रयोग तभी किया जाएगा जब हमारे पास दूसरा कोई चारा ही न रह जाए। बाॅकी हम सब सभी आम इंसानों की तरह ही रहेंगे।

सुबह मेरी नींद खुली तो देखा मेरे बिलकुल पास मेरे बेड पर ही मेरी दूसरी माॅ यानी काया बैठी थी। जाने वो कब से चुपचाप बैठी हुई थी। वो एकटक मेरे चेहरे को ही देखे जा रही थी, उनके होंठो पर हल्की सी मुस्कान फैली हुई थी। मैं उन्हें देख कर चौंका।

"अरे माॅ आप??" मैने सीघ्रता से बेड से उठकर तथा बेड की पिछली पुश्त से पीठ टिका कर कहा___"आप चुपचाप क्यों बैठी हैं? मुझे जगाया भी नहीं आपने।"
"बस अपने बेटे को देख रही थी।" काया माॅ ने कहा___"तू सोते हुए बेहद मासूम लग रहा था। इस लिए मैं तेरे उसी मासूम से चेहरे को जी भर के देख रही थी। पर तू तो जग गया रे, चल फिर से सो जा न। अभी मेरा जी नहीं भरा है तुझे उस तरह देखने से।"

"हाहाहाहा क्या माॅ आप भी।" मैं पहले तो हॅसा फिर शर्मा कर बोला___"अब तो जग गया हूॅ और आज बहुत से काम भी करने हैं।"
"ओये होये देख तो कैसे शर्मा रहा है मेरा बेटा?" काया माॅ मुस्कुराते हुए बोली__"जैसे कोई नई नवेली दुल्हन शरमाती है।"

"हाॅ तो आप ऐसी बात करेंगी तो शरम तो आएगी ही मुझे।" मैने कहा।
"मुझे तो नहीं लगता कि तुझे शरम भी आती है।" काया माॅ ने भेदभरी मुस्कान मे कहा।
"अच्छा, ऐसा क्यों लगता है आपको?" मैने चौंकते हुए पूछा था।

"अब जाने दे बेटा।" काया माॅ ने पहलू बदला, किन्तु भेदभरी मुस्कान अभी भी थी उनके होंठो पर, बोली___"मेरा मुह मत खुलवा।"
"अब तो आपको बताना ही पड़ेगा माॅ।" मैं उलझनपूर्ण भाव से बोला था।

"देख जहाॅ तक मुझे याद है तू हमेशा हमारे पास ही रहा है।" काया माॅ कह रही थी___"बचपन से लेकर अब तक तू अपनी दोनो माॅओं की गोद में ही रहा है। हमें तो समझ ही नहीं आया कि हमारा बेटा कब बड़ा हो गया और जवान भी?"

"आप ये क्या कह रही हैं माॅ?" मैने धड़कते दिल से कहा।
"तूने अपने जीवन में पहली बार किसी से संभोग भी किया तो एक शैतान के साथ।" काया माॅ ने धीरे से कहा___"और उस क्रिया के बाद सोलेमान को जीवित भी कर दिया।"

मैं काया माॅ की ये बात सुन कर बुरी तरह हड़बड़ा गया। मुझे इतनी शरम आई कि पूछो मत। मुझे सिर उठा कर उनसे नज़रें मिलाने की भी हिम्मत न हुई।

"अरे तू तो फिर से शरमा गया।" काया माॅ ने हॅसते हुए कहा___"अच्छा ये बता कि मारिया के पास कैसे पहुॅच गया था तू और वो सब कैसे कर दिया?"
"ओह माॅ आप ये क्या पूछ रही हैं?" मैं सोच कर हैरान रह गया था कि माॅ मुझसे ये कैसे पूछ सकती हैं___"आप सबको कल रात बताया तो था मैने?"

"वो तो तूने ऐसे ही बताया था कि तू यहाॅ वहाॅ गया और ये वो किया।" काया माॅ ने अजीब अंदाज़ से कहा___"जबकि मुझे अच्छे से जानना है कि तू कैसे मारिया से मिला और उसके साथ तूने वो सब कैसे किया??"

काया माॅ की ये बात सुन कर मैं सन्न रह गया। हैरत से उनकी तरफ देख रहा था मैं। मुझे समझ में नहीं आ रहा था आज मेरी इस माॅ की बुद्धि को क्या हो गया है? भला कौन माॅ अपने बेटे से ऐसे सवाल करती है?

"अरे ऐसे आॅखें फाड़ फाड़ कर क्या देख रहा है तू?" काया ने कहा___"बता न वो सब कैसे किया तूने?"
"माॅ आप ये कैसी बातें पूछ रही हैं?" मैं हैरान परेशान सा बोला___"भला ऐसी बातें मैं आपसे कैसे कह सकता हूॅ? और आप भी ऐसी बात मुझसे कैसे पूछ सकती हैं?"

"अरे मैं एक एक बात थोड़ी न पूॅछ रही हूॅ तुझसे।" काया माॅ ने कहा___"मैं तो बस ये जानना चाहती हूॅ कि मारिया तुझे कैसे मिली और तू उसके साथ वो सब करने के लिए कैसे राज़ी हो गया? वो सब तूने अपनी मर्ज़ी से किया या उस कमीनी ने तुझे उसके लिए मजबूर किया था?"

"मुझे किसी चीज़ के लिए इस धरती पर कौन मजबूर कर सकता है माॅ?" मैने कहा__"वो सब तो मैने अपनी इच्छा से किया।"
"यही तो जानना चाहती हूॅ मैं।" काया माॅ ने कहा___"कि वो सब कैसे हुआ और तूने अपनी इच्छा से ये सब क्यों किया?? "

"मैदाने जंग से आप सबको भेजने के बाद मैं आगे बढ़ता चला गया।" मैने कहना शुरू किया____"मारिया से मेरा कनेक्शन उस वक्त हो गया था जब हम सब हिमालय से चलने के बाद एक जगह रुके थे। आपको याद है न मैं वहाॅ पर ध्यान में बैठा हुआ था। उसी समय मारिया भी ध्यान में मुझे खोज रही थी। जब मेरा और उसका कनेक्शन हो गया तो मैंने उसे जंग के बाद उसी स्थान पर कुछ दूरी पर एक टूटा हुआ खंडहरनुमा किला था वहाॅ पर मिलने को कहा था। ख़ैर, जंग के बाद और आप सबको भेजने के बाद मैं उस खंडहर की तरफ बढ़ गया जहाॅ पर मुझे मारिया मिली और फिर मैं उसके साथ उसके राजमहल चला गया।"

"पर सवाल ये है बेटे कि तू उसके पास गया क्यों?" काया माॅ ने कहा___"भला उसके साथ वो सब करके उसके पति को जीवित करने की क्या ज़रूरत थी?"
"ये सब विधी का विधान है माॅ।" मैने कहा___"अगर मैं नहीं जाता तो उस महर्षि का श्राप झूठा हो जाता। मारिया के पति की मुक्ति सिर्फ मेरे द्वारा ही होनी थी उस क्रिया से। यही उस महर्षि का कथन था। महर्षि का श्राप या उनके द्वारा गया हर शब्द ईश्वर का माना जाता है क्योंकि वो महर्षि बहुत बड़े ब्रम्हॠषि थे। उनका कहा झूठा हो जाने का मतलब है ईश्वर के बनाए विधान को झूठा कर देना। इस लिए मुझे इस सबके लिए वहाॅ जाना ही था। दूसरी बात मारिया और उसका पति सोलेमान शैतानयोनि में भले ही हैं किन्तु उनका आचरण इंसानों की तरह है। मारिया एक पतिव्रता वैम्पायर है। उसका अपने पति के लिए प्रेम बहुत ऊॅचा है। इस लिए उसका प्रेम और पतिव्रत का तेज़ विफल कैसे हो जाएगा भला?"

"ओह तो ये सब बातें थी उसके पास जाने की?" काया माॅ ने गहरी साॅस ली____"लेकिन भला ये कैसी विचित्र बात है कि महर्षि ने एक पतिव्रता को पर पुरूष के साथ वो सब करने की क्रिया बताई थी? क्या इससे मारिया का सतीत्व नष्ट नहीं हो जाएगा?"

"बिलकुल नहीं माॅ।" मैने कहा___"बल्कि इसके बाद तो उसका सतीत्व और भी बढ़ गया है। उसने अपने पति को फिर से पाने के लिए ये सब किया और यही सब क्यों कि महर्षि द्वारा निर्धारित भी था। इससे उसके सतीत्व पर कोई ऑच नहीं आएगी।"

"चलो छोड़ो ये सब।" काया माॅ ने कहा___"और हाॅ अब तू भी जल्दी से फ्रेश हो जा। हम सब नास्ते के लिए तेरा इन्तज़ार करेंगे।"
"ठीक है माॅ आप चलिए मैं थोड़ी देर में आता हूॅ।" मैंने कहा और बेड की दूसरी साइड से उतर कर मैं बाथरूम में चला गया। मेरे जाते ही माॅ भी मुस्कुराते हुए चली गईं।


फ्रेश होकर मैने कपड़े पहने और फिर अपने रूम से बाहर आ गया। नीचे सब नास्ते पर बैठे हुए थे। मैंने उन सबके पैर छूकर आशीर्वाद लिया और अपनी दोनो माॅओं के बीच बैठ गया। हमारे इस बॅगले में काल ने कई सारे नौकर व नौकरानी भी रख दिये थे इस लिए किसी को कुछ काम करने की ज़रूरत ही नहीं पड़नी थी।

"तो आज तुम काॅलेज एडमीशन के लिए जाने वाले हो राज?" सहसा वीर चाचू ने मेरी तरफ देख कर पूछा था।
"जी चाचू।" मैने कहा___"अब आम इंसानों की तरह तो सब कुछ करना ही पड़ेगा हमें। आप अपने लेवल का काम कीजिए मैं अपने लेवल का करने जा रहा हूॅ।"

"ओए इसमे लेवल कहाॅ से आ गया?" वीर चाचू ने चौंक कर कहा___"तुम कहना क्या चाहते हो हम सब बूढ़े हो गए हैं???"
"ओफ्फो चाचू मैने ऐसा तो नहीं कहा?" मैने हड़बड़ा कर कहा___"आप तो बेवजह ही जाने क्या समझ बैठे?"

"बात तो वही है।" वीर चाचू ने कहा___"तुम्हारा इशारा तो वही है।"
"अच्छा ठीक है चाचू।" मैने कहा___"एक काम करते हैं हम सब ही काॅलेज में एडमीशन ले लेते हैं और हम साथ में ही पढ़ते हैं।"

"बस बस रहने दो तुम।" वीर चाचू ने सकपका कर कहा___"ये काॅलेज वाला काम तुम ही करो। हम सब तो इस ऊम्र से आगे जा चुके हैं। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि हम सब बूढ़े हो गए हैं। मैं तो अभी भी बहुत जवान हूॅ। सोच रहा हूॅ कोई अच्छी सी लड़की ढूॅढ़ कर उससे शादी कर लूॅ और अपना घर बसा लूॅ।"

"ये तो आपने बहुत ही अच्छा सोचा है चाचू।" मैने मुस्कुराते हुए कहा___"अब आप ये काम कर ही लीजिए। कम से कम मेरी एक चाची तो हो जाएगी। मैं तो सोच रहा हूॅ कि रिशभ मामा भी कोई अच्छी सी लड़की ढूॅढ़ लें ताकी मुझे एक मामी भी मिल जाए। वाह कितना अच्छा होगा एक घर में ही इतने सारे रिश्ते मिल जुल कर रहेंगे।"

"तुम दोनो का हो गया हो तो अब हम सब नास्ता करें?" रिशभ मामा ने कहा था।
"राज ठीक ही तो कह रहा है भाई।" काया माॅ ने कहा___"अब जब हम सब इंसानों की तरह ही यहाॅ रहने वाले हैं तो ये सब भी करना चाहिए। आप दोनो शादी कर लो, कम से कम दो दो नई भाभियाॅ आ जाएॅगी इस घर में। बड़ा मज़ा आएगा।"

"उस हिसाब से तो फिर तुम दोनो को भी शादी कर लेना चाहिए।" मामा जी ने कहा।
"ये हर्गिज़ नहीं हो सकता।" मेनका माॅ ने शख्ती से कहा___"इंसानी दुनियाॅ में शादी के बाद लड़की को अपना घर छोड़ कर अपने पति के घर जाना होता है। जबकि हम दोनो यहीं अपने बेटे के पास ही रहेंगे। हमें शादी करने की कोई ज़रूरत नहीं है।"

"शादी करके इंसान अपना एक परिवार बनाता है।" मामा जी ने कहा___"बच्चे पैदा करता है। जबकि हमारे पास तो आलरेडी राज है जिसे हम अपना बेटा ही मानते हैं। इस लिए अब किसी से शादी करने का तो कोई सवाल ही पैदा नहीं होता।"

"मैं तो हमेशा आप सबका बेटा ही रहूॅगा मामा जी।" मैने कहा___"लेकिन आप दोनो शादी करेंगे तो मुझे खुशी होगी। मैं चाहता हूॅ कि इस घर में हम सबके अलावा भी कोई और आए।"

"राज ठीक कह रहा है रिशभ।" वीर चाचू ने झट से कहा___"हम दोनो को शादी कर ही लेना चाहिए। भाई मैं तो करूॅगा शादी तुझे रॅडवा रहना तो रह। मैं आज से ही किसी लड़की की तलाश में लग जाता हूॅ।"

"ये क्या बक रहे तुम?" मामा जी ने हैरत से चाचू की तरफ देखा था।
"मैं बक नहीं रहा मेरे यार।" चाचू ने कहा__"मैं तो तेरे लिए भाभी लाने की सोच रहा हूॅ।"
"बकवास मत करो तुम।" मामा जी सहसा गुस्से से बोले___"और आदी वादी के बारे में सोचना भी मत समझे।"

"अरे ये क्या बात हुई यार?" चाचू ने भी आवेश में कहा___"तुमको नहीं करना शादी तो मत करो, लेकिन ये क्या बात हुई कि दूसरे को भी शादी न करने दो?"
"ठीक है जा मर।" मामा जी ने गुस्से में कहा और उठ कर बाहर निकल गए।

हम सब उनके इस बिहैवियर से चकित रह गए। हम में से किसी को भी समझ न आया कि वो इस तरह गुस्सा क्यों हो गए वीर की शादी की बात से।

"हद है यार।" चाचू ने कहा___"मुझे समझ नहीं आता कि इसको मेरी शादी से ऐतराज़ क्यों है?"
"कोई तो बात होगी ही।" मेनका माॅ ने कहा__"छोड़ो उसे, तुम सब नास्ता करो। मैं उसे समझा दूॅगी।"

मुझे मामा जी का इस तरह गुस्से से उठ कर चले जाना अच्छा नहीं लगा। मैं अपनी जगह से उठ कर बाहर की तरफ गया। बाहर आकर देखा तो मामा जी लान में एक तरफ खड़े दिखे। मैं उनके पास गया और पीछे से उनसे दुलारवश छुपक गया।

"क्या हुआ मेरे इतने प्यारे मामा जी को?" मैने छुपके हुए ही कहा।
"मुझे परेशान मत करो राज।" मामा जी ने कहा___"जाओ यहाॅ से मुझे अकेले रहने दो थोड़ी देर के लिए।"

"पहले आप बताइये कि आपको चाचू की शादी से ऐतराज़ क्यों है?" मैने पूछा।
"वो शादी करके एक अलग परिवार कैसे बना सकता है?" मामा जी ने खुद को मुझसे छुड़ा कर तथा मेरी तरफ पलट कर कहा___"क्या तुम उसके बेटे नहीं हो? क्या वह तुम्हें अपना बेटा नहीं मानता? अगर मानता है तो उसे शादी करने की क्या ज़रूरत है? शादी भी तो इंसान बच्चों के लिए करता है?"

"क्या सिर्फ यही वजह है आपके नाराज़ होने की?" मैने पूछा।
"हाॅ, वो शादी करेगा, बच्चे होंगे तो वो फिर अपने बच्चों को ही अपना समझेगा।" मामा जी ने कहा___"तुम्हारे प्रति आज जो उसका प्रेम है वो कल नहीं रह जाएगा।"

"ओह मामा जी सिर्फ इतनी सी बात के लिए आप चाचू से नाराज़ हो गए?" मैने कहा___"अच्छा आप बताइये कि बीवी बच्चे हो जाने पर क्या आपका प्यार मेरे लिए कम हो जाएगा? अगर आप भी यही समझते हैं जाने दीजिए।"

"मेरे प्यार तुम्हारे लिए किसी भी कीमत पर कम नहीं हो सकता राज।" मामा जी ने मेरा चेहरा अपनी हॅथेलियों के बीच लेकर कहा___"और ऐसा कभी सोचना भी मत कि मेरे दिल तुम्हारे लिए कभी प्यार कम हो जाएगा।"

"अगर आपका खुद के बारे में ऐसा विचार और विश्वास है तो चाचू भी तो यही समझते होंगे।" मैने कहा___"प्यार तो ऐसी चीज़ है जो हर हाल में अपनी जगह कायम रहता है। किसी के आ जाने से उसमें कोई फर्क नहीं पड़ता।"

"तुम नहीं समझोगे राज।" मामा जी ने कहा___"इंसान को दुनिया में सबसे ज्यादा अपने बच्चे ही प्यारे लगते हैं। बाॅकी सब महज एक अपवाद बन कर रह जाता है।"
"ऐसा कुछ नहीं है मामा जी।" मैने कहा__"अपने बच्चों के आ जाने से कोई दूसरे बच्चा उसका दुश्मन तो नहीं बन जाता न। और फिर दुनियाॅ सबको अपनी इच्चाएॅ अपने अरमान पूरे करने का हक़ होता है। इस जीवन अपनी किसी इच्छा को पूरा भी न कर पाए तो फिर जीवन ब्यर्थ सा लगने लगता है। एक टीस सी दिल में दबी रहती है हमेशा। इस लिए ख्वाहिशों को इस तरफ दफन नहीं करना चाहिए। इंसान खुश भी तभी रहता है जब उसकी इच्छाओं की पूर्ति होती रहे।"

"तुमने ये कैसे समझ लिया मेरे यार कि बीवी बच्चों के आ जाने से मेरा प्यार राज के लिए कम हो जाएगा??" सहसा पीछे से चाचू की आवाज़ आई___"क्या अपने दोस्त को इतना ही समझा है? अरे पगले ये प्यार जब किसी से होता है तो वो कम नहीं होता बल्कि हर दिन हर पल और भी बढ़ता जाता है। और राज तो हम सबकी जान है यार..ये हमारा मसीहा है...जिसने हमें शैतान से इंसान बना दिया। ऐसे मसीहा को भला कौन मूर्ख होगा जो भुला देगा?"

मामा जी उनकी इस बात से कुछ न बोले। जबकि चाचू ने फिर कहा___"मुझे दुख है कि तुमने अपने दोस्त को समझा ही नहीं कभी।" चाचू की आॅखों से आॅसू छलक पड़े। ये देख कर मामा जी झपट कर उन्हें अपने गले से लगा लिया।

"मुझे माफ़ कर दे मेरे यार।" मामा जी खुद भी दुखी भाव से बोले___"मैं तो सिर्फ इसी लिए नाराज़ हुआ था कि बीवी बच्चों के आने से तू कहीं राज को प्यार कम न कर दे। मगर अब मुझे कोई शिकवा नहीं है। तू धूमधाम से शादी कर यार। मैं तेरी शादी में जी भर के नाचूॅगा।"

"तुम क्या समझते हो मैं अकेले शादी कर लूॅगा?" चाचू ने मामा जी से अलग हो कर कहा___"मैं शादी तभी करूॅगा जब तुम भी शादी करने के लिए हाॅ कहोगे।"
"यार मेरी ज़रा भी इच्छा नहीं है शादी करने की।" मामा जी ने कहा___"तुम कर लो ना।"

"हर्गिज़ नहीं।" चाचू ने मजबूती से इंकार में सिर हिलाते हुए कहा___"तुमको भी करनी ही पड़ेगी और ये मेरा आख़िरी फैसला है। अब अगर तुमने इंकार किया तो समझ लेना। यहीं पर उठा कर पटक दूॅगा तुम्हें।"
"अच्छा इतना दम है?" मामा जी हॅसे।
"अरे नहीं होगा तो लगा लूॅगा दम।" चाचू ने नाटकीय अंदाज़ में कहा।

उसके बाद हम तीनो अंदर आ गए। हम सबने नास्ता किया। उसके बाद चाचू और मामा काल के साथ मीटिंग के लिए निकल गए जबकि मैं काॅलेज के लिए निकल पड़ा।
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उधर आधी रात के बाद महेन्द्र और रंगनाथ कृत्या के पास पहुॅचे। उन्हें खाली हाॅथ देख कर कृत्या गुस्से से आग बबूला हो गई। वह तो जाने कब से सारी तैयारियाॅ करने के बाद उन दोनो का इन्तज़ार कर रही थी। किन्तु निर्धारित समय के बाद भी इतनी देरी से खाली हाॅथ उन्हें आए हुए देख उसके क्रोध की कोई सीमा न रही।

कृत्या ने उन दोनो बहुत बुरी तरह से डाॅटा और खरी खोटी सुनाई। वो दोनो सिर झुकाए चुपचाप खड़े रहे। जब कृत्या का गुबार निकल गया तो दोनो ने कृत्या को सारी बात बताई कि कैसे रास्ते में उन्हें राज मिला और उससे लड़ाई हुई तथा फिर कैसे वह उसकी बेटी पूनम व उसके साले को अपने साथ ले गया। सारी बातें सुनने के बाद कृत्या ख़ामोश रह गई। उसके चेहरे पर गंभीर भाव आकर ठहर गए थे।

"ओह तो वो आख़िर आ ही गया।" कृत्या ने गंभीरता से कहा___"जिसका मुझे अंदेशा था वही हुआ। चलो अब हो भी क्या सकता है? लेकिन तुम्हें एक मौका और दे रही हूॅ मैं। आज से दो महीने बाद एक विशेष रात होगी। वो रात शैतानों के लिए बहुत ही खास होती है। अगर उस रात तुम अपने इस काम में कामयाब हो गए तो समझो तुम दोनो असीम काली शक्तियों के स्वामी बन सकते हो।"

"हम ज़रूर कामयाब होंगे कृत्या।" महेन्द्र सिंह ने कहा___"इस बार कुवाॅरी लड़की का इन्तजाम कहीं और से करेंगे।"
"कहीं से भी करो लेकिन शर्त वही है।" कृत्या ने कहा___"लड़की का जन्म अमावश्या या पूर्णिमा की रात ही हुआ हो। लेकिन इस बार एक लड़की से काम नहीं चलेगा। दो महीने बाद जो विशेष रात होगी उस रात तुम दोनो को महाशैतान के लिए ग्यारह लड़कियों का इंतजाम करना होगा।"

"ग ग्यारह???" रंगनाथ ने हैरत से कहा___"लेकिन इतनी सारी लड़कियों का हम भला कैसे इंतजाम कर सकेंगे?"
"ये तुम जानो।" कृत्या ने कहा___"अगर काली शक्तियाॅ पाना चाहते हो तो ये इंतजाम करना ही पड़ेगा तुमको।"

"हम ज़रूर इंतजाम करेंगे कृत्य" महेन्द्र सिंह ने कहा___" लेकिन अगर इस बार भी वो राज हमारे सामने आ गया तो हम क्या करेंगे? उसने साफ शब्दों में कहा है कि इस तरह की अगली मुलाक़ात हमारे लिए मौत से कम नहीं होगी।"

"इस बार ऐसा होगा तो नहीं लेकिन अगर हो तो मुझे याद कर लेना।" कृत्या ने कहा__"मैं तुरंत ही तुम लोगों के पास हाज़िर हो जाऊॅगी।"
"वो बहुत खतरनाक है कृत्या।" रंगनाथ ने कहा___"उसके पास असीम दैवी शक्तियाॅ हैं। हमने अपनी आॅखों से देखा है उसे। महेन्द्र के द्वारा फेंके गए हर आग के गोले को वो मुख से निगल जाता था। ऐसा लगता था जैसे उस पर किसी शक्ति का कोई असर ही नहीं होता।"

"हो सकता है कि उसके पास कुछ विशेष शक्तियाॅ हों।" कृत्या ने कहा___"किन्तु उससे वह शक्तिमान तो नहीं हो सकता और ना ही अजेय हो सकता। उसने भी इसी मृत्यलोक में जन्म लिया है और इस मृत्युलोक में जन्म लेने वाला हर प्राणी एक दिन मरता ज़रूर है। वह अमर नहीं हो सकता। इस लिए उससे इतना ज्यादा भयभीत होने की ज़रूरत नहीं है। उसकी कोई न कोई कमज़ोरी अवश्य होगी जिसके द्वारा उसे मिटाया जा सकता है। हम उसकी उस कमज़ोरी का पता लगाएॅगे।"

"कुछ भी करो कृत्या।" महेन्द्र ने कहा___"लेकिन उसे खत्म ज़रूर करो वरना वो हम सबके लिए खतरा बन जाएगा।"
"चिन्ता मत करो तुम।" कृत्या ने कहा__"उसे खत्म करने का उपाय या तरीका मैं बहुत पता कर लूॅगी। तब तक तुम अपने काम लग जाओ।"

"ठीक है कृत्या।" रंगनाथ ने कहा__"हम कल से ही लड़कियों की तलाश शुरू कर देते हैं। अब हम दो महीने बाद ही उन सभी लड़कियों को लेकर यहाॅ आएॅगे।"
"आओ आज की रात मुझे तुम दोनो खुश करो।" कृत्या ने कहा___" उसके बाद सुबह यहाॅ से निकल जाना।"

कृत्या की ये बात सुन कर दोनो ही मुस्कुराते हुए उसके पीछे पीछे अंदर की तरफ चले गए।
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उधर जब सुबह हुई तो मेरी माॅ(रेखा) बिलकुल सामान्य हालत में ही बेड से उठी। उन्हें पिछली रात का कुछ भी याद नहीं था और ना ही अब उनके अंदर अपने बेटे के पहले जैसा दुख या तड़प थी। पिछली रात वो किसी नई नवेली दुल्हन की तरह सजी हुई थी किन्तुजब मैं यहाॅ से गया तब उनका ये लिबास भी बदल दिया था अपनी शक्ति से। इतना ही नहीं सारे घर में जो सजावट की गई थी उसे मैने मिटा दिया था। उनका बर्ताव एक दम से बदल गया था। वही हाल मेरे पिता जी का भी था उन्हें भी कुछ याद नहीं था। जब वो उठे तो उनके कमरे में चाय लेकर खुद माॅ गई थी। पिता जी ये देख कर पहले तो बहुत हैरान हुए उसके बाद बेहद खुश भी हुए।

"कहीं मैं कोई स्वप्न तो नहीं देख रहा रेखा, क्योंकि आज इतने सालों बाद तुम इस तरह मेरे लिए चाय लेकर आई हो?" पिता जी ने कहा___"ये सब परिवर्तन कैसे हुआ? ख़ैर जाने दो जैसे भी हुआ हो। मैं तो इसी बात से खुश हूॅ कि तुम खुद चलकर मेरे कमरे में मेरे लिए चाय लेकर आई।"

"तुम सच कह रहे हो अशोक।" माॅ ने पिता जी को चाय पकड़ाते हुए कहा___"परिवर्तन तो हुआ है। पर ये हुआ कैसे ये मुझे भी समझ नहीं आ रहा। आज ऐसा लगता है जैसे दिलो दिमाग़ से कोई बोझ उतर गया है। मन बिलकुल हल्का लग रहा है।"

"मुझे लगता है कल रात तुम सुकून की नींद सोई हो।" पिता जी ने कहा___"मैने देखा था तुम्हें। तुम इत्मीनान से सोई हुई थी। वरना इतने सालों से तुम ठीक से सोती कहाॅ थी भला? किसी भी इंसान के अपनी समय सीमा तक सोना भी ज़रूरी होता है। तभी वह शरीर और मन से खुश रह सकता है। किसी चीज़ का हद से ज्यादा चिन्तन करना भी एक अच्छे भले इंसान को बीमार बना देता है। वहीं सब तुम्हारे साथ हो रहा था। ख़ैर जाने दो। अब तो सब ठीक है ना?"

"हाॅ अशोक।" माॅ ने कहा___"अब बहुत हल्का महसूस हो रहा है।"
"देखो रेखा।" पिता जी ने समझाने वाले अंदाज़ से कहा___"बेटे के खोने का दुख तुम्हीं बस को नहीं था मुझे भी बहुत ज्यादा था और आज भी है। किन्तु उस चीज़ को लेकर बैठ जाने से भला क्या होगा? ये तो इस संसार की सच्चाई है कि जो इंसान इस धरती पर पैदा होता है वो अपनी नियति भी लिखा कर आता है। इस संसार से एक दिन सभी को जाना होता है अपनों को छोंड़ कर। जाने वाले मनुष्य का हम कुछ दिन शोग़ मनाते हैं उसके बाद फिर से सब कुछ भूल कर अपने जीवन पथ पर आगे बढ़ जाते हैं। यही इस इस संसार का नियम है। किसी की यादों के सहारे जीवन को इस तरह जिया नहीं जाता।"

"तुम ठीक कह रहे हो अशोक।" माॅ ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"लेकिन अपनों के जाने का ख़याल तो आ ही जाता है और उस ख़याल के साथ दुख लगना भी तो एक स्वाभाविक बात है। ख़ैर छोड़ो, हम आज से फिर से एक नया जीवन शुरू करते हैं।"

"ओह रेखा मैं बता नहीं सकता कि तुम्हारे मुख से ये सुन कर मैं कितना खुश हो गया हूॅ?" पिता जी ने खुश होकर कहा___"अब अगर तुमने ये सोच ही लिया है तो एक काम और कर लो रेखा।"

"हाॅ बिलकुल।" माॅ ने कहा__"बोलो क्या करना है मुझे?"
"अपनी बेटी को अपना लो।" पिता जी ने धड़कते दिल से कहा___"उस बेटी को अपना कर उसे जी भर कर प्यार दो रेखा जिसे वर्षों से तुमने अपने बेटे के खोने का जिम्मेदार ठहराया हुआ है। उस बेकसूर का सारा बचपन सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी नफरत का दुख सहते हुए गुज़र गया। उस मासूम को अपने ममता के आॅचल में छुपा लो रेखा। तुम नहीं जानती और ना ही कभी तुमने इस बात का एहसास किया है कि वो तुमसे ज्यादा राज के वियोग में तड़प रही है वर्षों से। एक भाई के खोने का दुख और दूसरा दुख इस बात का कि तुमने इस सबके लिए उसे ही कसूरवार बनाया है। वो बेचारी अपनी माॅ की नफरत से पल पल मर रही है। तुम नहीं जानती रेखा वो इस दुख से इतना ब्यथित है कि वह हमेशा बीमार ही रहती है। इस लिए अगर ये परिवर्तन हुआ है तो उसे भी अपना लो। उसे इतना प्यार करो रेखा कि उसका सारा दुख पल भर में दूर हो जाए। और सुमन को भी आदर और प्यार दो जिसे तुमने हमेशा ही जलील किया है। उसने तुम्हारी बेटी को अपनी जान से भी ज्यादा प्यार किया है, उसे सहारा दिया है वरना हमारी बेटी कब का इन दुखों से मर गई होती।"

"कहना कितना आसान होता है अशोक।" माॅ ने कहा___"पर उस पर अमल करना कभी कभी बेहद मुश्किल हो जाता है। परिवर्तन हुआ है लेकिन इतना भी नहीं कि एक ही दिन में दिल से नफरत जैसी चीज़ मिट जाए।"

"क्या मतलब??" पिता जी ने चौंकते हुए कहा था।
"उन दोनो के लिए मेरे दिल में प्यार तभी जगेगा न अशोक जब मेरे दिल से उनके लिए नफरत मिट जाए?" माॅ ने कहा___"इस लिए सोचने दो मुझे। शायद ये परिवर्तन एक दिन मेरे दिल से नफरत को भी मिटा दे।"

इतना कह कर माॅ वहाॅ से उठ कर पिता जी के कमरे से बाहर चली गई।
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वहीं दूसरी तरफ भी हाल था। रानी और सुमन को भी पिछली रात का कुछ भी याद नहीं था। रानी जो पिछली रात सजीधजी हुई थी वो सब बदल दिया था मैने। रानी बेड पर आराम से लेटी सो रही थी। सोते समय उसके चेहरे पर इस वक्त सारे संसार की मासूमियत विद्यमान थी।

तभी दरवाजा खुला और सुमन कमरे में दाखिल हुई। उसके हाथ में एक ट्रे थी जिसमें चाय के दो कप रखे हुए थे। उसने ट्रे को बेड के बगल से रखे एक स्टूल पर रखा और बेड के करीब आकर बैठ गई। वह रानी को बड़े ग़ौर से देखती रही फिर अपना दाहिना हाथ बढ़ा कर उसने रानी के माथे से फेरते हुए सिर पर फेरने लगी।

"अब उठ भी जाओ मेरी राजकुमारी।" सुमन ने बड़े प्यार से कहा___"आज पापा के साथ काॅलेज में एडमीशन के लिए जाना है न?"

सुमन के इस प्रकार कहने पर रानी ने धीरे धीरे अपनी आॅखें खोली फिर बोली__"मैं तो सुबह ही जग गई थी माॅ बस आपका इन्तज़ार कर रही थी।"
"हाॅ मुझे पता है।" सुमन ने मुस्कुराते हुए कहा___"पर बिना मेरे बुलाए कभी खुद से भी उठ जाया करो न।"

"ऐसा कभी नहीं हो सकता माॅ।" रानी उठकर सुमन से गले लगते हुए बोली__"हर सुबह मुझे आपका ये प्यार चाहिए। ताकि मेरा दिल खुश रह सके दिन भर।"
"मेरा प्यार तो सदा तेरे साथ है बेटी।" सुमन ने कहा___"एक तू ही तो है मेरी जीने की वजह वरना किस उद्देश्य से इतनी बड़ी ज़िन्दगी जीती मैं? तुझे देख कर ही तो जी रही हूॅ मैं। बस तू हमेशा खुश रहा कर मेरी बच्ची।"

"आप चिन्ता मत कीजिए माॅ।" रानी ने सुमन का हाॅथ अपने हाॅथ में थाम कर कहा__"अब से मैं हमेशा ही खुश रहूॅगी। अब चलिए मुझे बाथरूम भी जाना है। उसके बाद पापा के साथ काॅलेज भी जाना है एडमीशन के लिए।"
"ठीक है जल्दी से फ्रेश होकर तू तैयार हो जा, तेरे पापा आते ही होंगे।" सुमन ने कहा और रानी के माथे पर हल्के से चूम कर बाहर चली गई। जबकि रानी मुस्कुराते हुए बाथरूम की तरफ बढ़ गई।

कुछ समय बाद जब रानी तैयार होकर नीचे पहुॅची तो उसने देखा कि उसके पापा आ गए थे और ड्राइंग रूम में रखे रखे सोफे पर बैठे अखबार पढ़ रहे थे। रानी खुश होकर अशोक के पास गई और बगल से सोफे पर बैठ कर अशोक का बायाॅ बाजू थाम कर उससे चिपक गई, फिर बोली___"गुड मार्निंग पापा।"

"वेरी गुड मार्निंग माई स्वीट प्रिंसेस।" अशोक उसे आज खुश देख कर खुद भी खुश होते हुए बोला___"तो आज हमारी बेटी को काॅलेज में एडमीशन के लिए चलना है?"
"जी पापा।" रानी ने उसी अवस्था मे कहा___"चलिए पहले नास्ता कर लेते हैं फिर चलेंगे काॅलेज।"

"हाॅ बिलकुल चलो।" अशोक ने खुश हो गया फिर किचेन की तरफ देखते हुए ज़रा ऊॅचे स्वर में बोला___"सुमन जल्दी नास्ता लाओ। हम दोनो को लेट हो रहा है।"
"आ गई नास्ता लेकर जनाब।" सुमन किचेन से आती हुई खुशी से बोली___"आराम से दोनो बाप बेटी खाइये उसके बाद आराम से ही जाइये और मेरी बेटी का काॅलेज में एडमीशन करवाइये।"

"ये भी कोई कहने की बात है क्या?" अशोक ने हॅसते हुए कहा___"मैं तो कहता हूॅ हमारी बेटी के साथ साथ तुम्हें भी काॅलेज में एडमीशन ले लेना चाहिए।"
"क्या????" सुमन बुरी तरह चौंकी___"ये क्या कह रहे हो तुम? भला मेरी ये कोई ऊम्र है पढ़ने लिखने की?"

"अरे क्या हुआ तुम्हारी ऊम्र को?" अशोक ने मुस्कुरा कर कहा___"अच्छी भली तो हो। आज भी तुम हमारी बेटी की बड़ी बहन ही लगती हो। यकीन न हो तो पूछ लो रानी से? मैं सच कह रहा हूॅ न बेटी??" अंतिम वाक्य अशोक ने रानी की तरफ देख कर बोला था।

"जी पापा, आपने बिलकुल ठीक कहा।" रानी ने मुस्कुरा कर कहा___"माॅ तो मेरी बड़ी बहन ही लगती हैं।"
"हे भगवान।" सुमन ने कहा___"बाप तो बाप बेटी भी माशा अल्लाह है।"

"यार तुम भी कमाल करती हो।" अशोक ने कहा___"हम दोनो तो वही कह रहे हैं जो नज़र आ रहा है।"
"अब बस भी करो।" सुमन के चेहरे पर लाली सी आ गई थी___"कुछ भी अनाप शनाप बोलते रहते हो।"

"देखा बेटी।" अशोक ने रानी से कहा__"अब अगर सच बोलूॅ तो वो भी इन्हें अनाप शनाप लग रहा है।"
"हाॅ पापा।" रानी ने कहा___"पर वो क्या है न कि सच इतना जल्दी हजम नहीं हो पाता न। इस लिए माॅ ऐसा कह रही हैं।"

"उफ्फ क्या हो गया है आज तुम दोनो बाप बेटी को?" सुमन ने कहा___"दोनो मेरे पीछे हाॅथ धोकर क्यों पड़ गए हो आज?"
"अभी हाॅथ कहाॅ धोया है माॅ।" रानी ने शरारत से कहा___"अभी तो हम नास्ता ही कर रहे हैं।"

"अच्छा बाबा अब बस भी करो तुम दोनो।" सुमन ने हॅसते हुए कहा___"और चुपचाप नास्ता करो।"
"जो हुकुम बेगम साहिबा।" अशोक ने अदम सिर झुका कर कहा।

सबने खुशी खुशी नास्ता किया उसके बाद अशोक और रानी काॅलेज एडमीशन के लिए निकल गए।
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यूनिवर्सिटी आॅफ माधवगढ़!
बहुत ही मशहूर और टाॅप काॅलेजों में से एक था ये। यहाॅ पर एक से बढ़ कर एक टाॅपर पढ़ते थे। जिनमें से एक टाॅपर मैं खुद था। अरे भाई इसमें हॅसने की क्या बात है यार? आप सब तो मेरे बारे में अच्छी तरह जानते हैं। मेरे लिए ये सब उसी तरह आसान है जैसे थाली में रखे भोजन को निवाला बना बना कर खाते जाना। काल ने मेरे पिछले सभी क्लासेज़ के डाकूमेन्ट्स बना दिये थे। अब तो बस उन काग़जात के आधार पर इस काॅलेज में मुझे एडमीशन लेना था। यूॅ तो मुझे पढ़ने लिखने की कोई ज़रूरत ही नहीं किन्तु फिर भी काॅलेज लाइफ जीना चाहता हूॅ और यहीं से अपने घर परिवार के बीच पहुॅचना चाहता हूॅ एक अनोखे तरीके से।

मेरी कार काॅलेज के पास पहुॅचते ही रुकी। मुझे यहाॅ के बारे में ज्यादा पता नहीं था। काल ने जिस तरह बताया वैसा ही आ गया था मैं। मैं पहले इधर उधर देखा मुझे काफी सारे लड़के लड़कियाॅ दिखे जो खुद भी मेरी हाई फाई कार को आॅखें फाड़े देखने लगे थे।

मैने कार आगे बढ़ा कर पार्किंग में लगाई और उससे उतर कर बाहर आ गया। कार को लाॅक करके मैं अपने काग़जातों की फाइल लेकर काॅलेज के अंदर की तरफ बढ़ गया। इधर उधर फैले सारे लड़के लड़कियाॅ मुझे देखते रह गए।

मैने किसी पर ध्यान नहीं दिया और आगे बढ़ता चला गया। मेरी पर्शनाल्टी और लुक सबसे अलग था। इसका कारण ये था कि मैं कोई साधारण इंसान नहीं था। मुझमें ईश्वरीय शक्तियाॅ थी जिनका तेज़ अलग ही नज़र आ रहा था मेरे चेहरे पर।
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ख़ैर, एक घंटे बाद मेरा एडमीशन हो ही गया। प्रिंसिपल मेरे काग़जात देख कर हैरान था। उसने मुझसे बहुत से सवाल पूछे जिनका मैने बेझिझक और बड़े अच्छे तरीके से जवाब दिया। मेरे जवाबों से वह बड़ा खुश हुआ और झट से एडमीशन कर दिया। उनके कुछ सवाल मेरे परिवार से संबंधित भी थेजिन्हें जान कर वह चौंका था। मैने उनसे कुछ महत्वपूर्ण बातों के लिए वचन भी लिया और फिर मैं खुशी खुशी चला आया वहाॅ से।

मुझे पता था कि इस काॅलेज में कोई और भी मेरा अज़ीज़ एडमीशन के लिए आने वाला है इस लिए मैं जल्द से जल्द इस वक्त काॅलेज से निकल जाने वाला था। दिल तो कह रहा था कि एक बार उसकी झलक देख लूॅ लेकिन मैंने दिल की इच्छाओं को मार कर काॅलेज से बाहर आ गया।

सारे लड़के लड़कियाॅ मुझे इस तरह जल्दी में बाहर जाते देख चौंके लेकिन मैंने किसी पर ध्यान न दिया और पार्किंग की तरफ बढ़ गया। जैसे ही मैं पार्किंग की तरफ अपनी कार के पास पहुॅचा वैसे ही एक कार मेरे बगल से हार्न बजाती हुई पार्किंग में दाखिल हुई। मेरे दिल की धड़कन अनायास ही बढ़ गई। मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी सबसे अनमोल चीज़ मेरे आस पास ही कहीं आ गई है। मुझे उस चीज़ के बारे में समझते देर न लगी। मैने इधर उधर न देखा और झट से जाकर अपनी कार का ड्राइविंग डोर खोल कर सीट पर बैठा। कार के इग्नीशन में चाभी घुमाकर मैने कार को स्टार्ट किया और फिर एक झटके से यू-टर्न लेकर मैं पार्किंग से बाहर की तरफ तेज़ी से कार को दौड़ा दिया। किन्तु तभी मुझे किसी की चीख सुनाई दी। मैने बैक मिरर में देखा कोई लड़की चिल्ला रही थी, इतना ही नहीं मेरी कार के पीछे वह तेज़ी से दौड़ती हुई आ भी रही थी। ये देख कर मेरे अंदर बड़ा तेज़ दर्द सा उठा मगर मैं रुका नहीं बल्कि आॅधी तूफान बना वहाॅ से दूर चला गया। मगर मैं जानता था कि पत्थर दिल बनने में मुझे कितना ज़ोर लगाना पड़ा था। मेरी आॅखें छलक पड़ी थी। किन्तु ये तो अभी शुरुआत थी।
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उधर पार्किंग से मेरे जाने के बाद बड़ा अजीब ही मंज़र हो गया था। मेरी कार के पीछे दौड़ते हुए आने वाली लड़की कोई और नही बल्कि रानी थी। मेरी जुड़वा बहन थी जो मुझसे बेइंतहां प्रेम करती थी।

जैसे ही मैंने कार को स्टार्ट करके वहाॅ से चला था वैसी रानी बड़े ज़ोर से चिल्लाई थी।
"भाऽऽऽऽईईईई।" रानी पूरी शक्ति से चीखी थी। उसकी इस चीख़ को सुनकर पिता जी ड्राइविंग डोर खोल कर तेज़ी से उसकी तरफ दौड़ते हुए आए।

"क्या हुआ बेटी।" बदहवाशी की हालत में पिता जी ने पूछा था___"तुम इतनी ज़ोर से क्यों चीखी थी?" मगर उनकी इस बात का रानी ने कोई जवाब न दिया बल्कि जितनी शक्ति वह चीखी थी उतनी ही शक्ति से वह पार्किंग के बाहर की तरफ दौड़ भी पड़ी थी। उसके पीछे पिता जी भी दौड़ पड़े थे।

रानी कुछ दूर दौड़ी और जब मेरी कार उसे न दिखी तो रुक गई वह। पल भर में उसकी हालत दखने लायक हो गई। ऐसा लग रहा था जैसे उसमें जान ही न बची हो। एकदम से बुत बन गई थी वह। पथराई ऑखों से वह पार्किंग के बाहर देखे जा रही थी। पिता जी उसकी इस हालत को देख कर बेहद परेशान और दुखी हो गए। उन्होंने रानी के दोनो कंधों से पकड़ कर उसे झकझोर कर होश में लाया।

"होश आओ मेरी बच्ची।" पिताजी ने दुखी भाव से चीख कर कहा___"क्या हो गया है तुम्हें?"

उनके इस वाक्य से रानी को जैसे झटका लगा। उसने अजीब भाव से पिता जी की तरफ देखा और फिर एकाएक ही उसका चेहरा बिगड़ गया। वह एक झटके से पिता के सीने से लिपट गई और फूट फूट कर रो पड़ी।

"मत रो बेटी मत रो।" पिता जी ने आहत भाव से कहा___"तुझे इस तरह रोते देख कर मेरा हृदय फट जाएगा। आख़िर ऐसा क्या हो गया है जिसके कारण तू अचानक इस तरह हो गई?"

"पापा मैने अभी अभी भाई को देखा था, वो उसी कार में थे जो अभी यहाॅ से गई है।" रानी ने रोते हुए कहा__"मैं उन्हें देख कर ही चीखी थी। उन्हें ज़ोर से पुकारा लेकिन वो मेरे पुकारने पर भी नहीं रुके।"

"ये क्या कह रही हो तुम बेटा?" पिताजी बुरी तरह चौंके थे उसकी इस बात से__"भला वो यहाॅ कैसे हो सकता है? तुम्हें ज़रूर ही कोई भ्रम हुआ है। वो कोई और ही रहा होगा बेटी। इसी लिए तो वह रुका नहीं। और सबसे बड़ी बात उसका इस दुनियाॅ में कहीं कोई अता पता नहीं है। वह अगर जीवित भी होगा तो अब तक तो वह बड़ा हो गया होगा। तेरी ही ऊम्र का होगा वो। अब तो उसे पहचानना भी मुश्किल है बेटी।"

"नहीं पापा।" रानी पिताजी से अलग होकर बोली___"मैं उन्हें लाखों की भीड़ में भी पहचान सकती हूॅ। आप तो जानते ही हैं कि मैं अक्सर उन्हीं के सपने देखती हूॅ। मैने उन्हें सपने में ही बड़ा होते हुए देखा है। ये वही थे पापा....मेरी ऑखें धोखा नहीं खा सकती।"

"तुम सच में बावरी हो गई हो।" पिताजी ने उसके चेहरे को प्यार से सहलाया__"इतना भी नहीं समझती कि सपनों का हकीक़त की दुनियाॅ से कोई वास्ता नहीं होता। वो बस सपने ही होते हैं।"

"पर उनके सारे सपने सच हैं पापा।" रानी ने भोलेपन से कहा___"भला क्या कभी ऐसा होता है कि किसी इंसान को बचपन से लगातार एक ही सपना आए और दूसरा कोई सपना ही न आए? जबकि होता तो यही है कि इंसान हर रात एक अलग ही स्वप्न देखता है।"

"दुनियाॅ में ऐसा किसी किसी के साथ होता है बेटी।" पिताजी ने कहा___"पर इसका मतलब ये नहीं कि उसमें कोई सच्चाई होती है।"
"अब मैं आपको कैसे यकीन दिलाऊॅ?" रानी ने हताश भाव से कहा था।

"छोंड़ो इस बात को।" पिताजी ने कहा__"चलो हमें एडमीशन भी तो करवाना है न।"
रानी ने हाॅ में सिर हिलाया और पिताजी के साथ काॅलेज के अंदर की तरफ बढ़ गई। ये अलग बात थी उसके मन में अंधड़ मचा हुआ था। इतना ही नहीं पिताजी के भी मन में एकाएक हलचल मच गई थी। किन्तु उनके सोचने का नज़रिया ज़रा अलग था।


अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,,,,
यार ये राज को रानी से मिलना चाहिए था तभी तो मजा आता। चलो कुछ सोचा होगा उसने देखते है।
 

Lib am

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राज-रानी (बदलते रिश्ते)
""अपडेट"" ( 17 )


अब तक,,,,,,,,,

"नहीं पापा।" रानी पिताजी से अलग होकर बोली___"मैं उन्हें लाखों की भीड़ में भी पहचान सकती हूॅ। आप तो जानते ही हैं कि मैं अक्सर उन्हीं के सपने देखती हूॅ। मैने उन्हें सपने में ही बड़ा होते हुए देखा है। ये वही थे पापा....मेरी ऑखें धोखा नहीं खा सकती।"

"तुम सच में बावरी हो गई हो।" पिताजी ने उसके चेहरे को प्यार से सहलाया__"इतना भी नहीं समझती कि सपनों का हकीक़त की दुनियाॅ से कोई वास्ता नहीं होता। वो बस सपने ही होते हैं।"

"पर उनके सारे सपने सच हैं पापा।" रानी ने भोलेपन से कहा___"भला क्या कभी ऐसा होता है कि किसी इंसान को बचपन से लगातार एक ही सपना आए और दूसरा कोई सपना ही न आए? जबकि होता तो यही है कि इंसान हर रात एक अलग ही स्वप्न देखता है।"

"दुनियाॅ में ऐसा किसी किसी के साथ होता है बेटी।" पिताजी ने कहा___"पर इसका मतलब ये नहीं कि उसमें कोई सच्चाई होती है।"
"अब मैं आपको कैसे यकीन दिलाऊॅ?" रानी ने हताश भाव से कहा था।

"छोंड़ो इस बात को।" पिताजी ने कहा__"चलो हमें एडमीशन भी तो करवाना है न।"
रानी ने हाॅ में सिर हिलाया और पिताजी के साथ काॅलेज के अंदर की तरफ बढ़ गई। ये अलग बात थी उसके मन में अंधड़ मचा हुआ था। इतना ही नहीं पिताजी के भी मन में एकाएक हलचल मच गई थी। किन्तु उनके सोचने का नज़रिया ज़रा अलग था।
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अब आगे,,,,,,,,,,,

काॅलेज की पार्किंग से निकल कर जब मैं काफी दूर आ गया तो मैने कार को एक साइड में लाकर रोंक दिया। मेरा मन बहुत अशान्त था, मेरे अंदर तेज़ तूफान चल रहा था। मेरे दिल में तीब्र पीड़ा हो रही थी। मैं जानता था कि इसकी वजह क्या है। मैने जानबूझ कर खुद को पत्थर दिल बनाया और रानी को दुख दिया। उसके दिल को छलनी किया। उस मासूम को रुलाया मैने जिसके दिल में मेरे सिवा किसी के लिए भी चाहत नहीं है। मुझे खुद पर बेहद गुस्सा भी आ रहा था, ऐसा लग रहा था कि खुद को जान से मार दूॅ मगर ये भी नहीं कर सकता था मैं।

सड़क के किनारे कार में मैं सीट की पिछली पुश्त से पीठ टिका कर तथा अपनी ऑखें बंद करके काफी देर तक यूॅ ही बैठा रहा। अपने अंदर उफनते हुए तूफान को शान्त करता रहा। उसके बाद मैं वहाॅ से वापस अपने घर जाने का सोचा। कार को आगे बढ़ा कर यू टर्न लिया और घर की तरफ कार को दौड़ा दिया।

घर पहुॅच कर मैंने कार को पोर्च में खड़ी कर घर के अंदर बढ़ गया। अंदर ड्राइंग रूम में मेरी दोनो माॅ बैठी लूडो खेल रही थी। मुझे देखते ही उन्होने खेलना बंद कर दिया और मुस्कुरा कर देखने लगी मुझे। मैं चुपचाप उन दोनो के बीच जाकर बैठ गया और फिर मेनका माॅ की गोद में अपना सिर रख कर वहीं लेट सा गया।

"लगता है माॅ से थोड़ी देर के लिए भी मेरा बेटा दूर नहीं रह सका।" मेनका माॅ ने मेरे सिर पर हाॅथ फेरते हुए कहा___"तभी तो आकर मेरी गोद में सिर रख कर लेट गया है।"
"मुझे तो कुछ और ही लग रहा है दीदी।" काया माॅ ने मेरे चेहरे की तरफ ध्यान से देखते हुए कहा___"इसका चेहरा बता रहा है कि ये किसी बात के लिए बहुत उदास व दुखी है।"

काया माॅ की बात सुन कर मेनका माॅ के चेहरे पर चिन्ता की लकीरें गर्दिश करने लगी। वो मेरे चेहरे के पास झुकते हुए बोलीं___"क्या हुआ है मेरे बेटे को? किस बात के लिए उदास या दुखी है? क्या काॅलेज में एडमीशन नहीं हुआ तेरा?"

"एडमीशन तो हो गया है माॅ।" मैने अधीरता से कहा__"मेरी उदासी की वजह तो कुछ और है।"
"क्या मतलब?" मेनका माॅ के माथे पर सिलवटें उभरीं।

फिर मैने उन्हें सब कुछ बता दिया कि कैसे पार्किंग में मुझे अपनी बहन और पिता जी दिखे और जिन्हें देख कर मैं वहाॅ से नौ दो ग्यारह हुआ। कैसे मेरी बहन मुझे देख कर चीखी और मुझे पुकारा उसने तथा कैसे वो मेरे कार के पीछे दौड़ी थी? मेरी सारी बातें सुनने के बाद वो दोनो हैरान रह गईं।

"लेकिन राज आख़िर तुम वहाॅ से इस तरह भागे क्यों थे?" काया माॅ ने कहा___"तुम्हें तो उनसे मिलना चाहिए था और बताना चाहिए था कि तुम्हीं उनके बेटे हो जो बचपन में खो गए थे।"

"नहीं माॅ।" मैने कहा___"ये सब इतना आसान नहीं है और ना ही ये सब इतना जल्दी हो सकता है। मैं उनसे ज़रूर मिलूॅगा किन्तु दूसरे तरीके से। अभी तो बहुत कुछ करना है मुझे और बहुत कुछ होना भी है। भले ही उस सबके लिए मुझे खुद को पत्थर ही क्यों न बनाना पड़े।"

"क्या करना चाहते हो तुम?" मेनका माॅ ने हैरानी से देखा मुझे।
"बस देखते जाइये माॅ।" मैने कहा___"अभी तो मैं खुद भी नहीं जानता कि आगे क्या और कैसे होगा?"

"ख़ैर, ये बता कि तुम्हारी बहन और तुम्हारे पिता जी वहाॅ कैसे पहुॅच गए थे?" मेनका माॅ ने कहा___"भला काॅलेज की पार्किंग में उनका क्या काम???"
"वो उसी काॅलेज में मेरी बहन रानी का एडमीशन कराने आए थे।" मैने बताया।
"अरे हाॅ ये तो मेरे ज़हन में ही नहीं था।" मेनका माॅ ने कहा___"तो अब इसका मतलब ये हुआ कि तुम दोनो भाई बहन अब एक ही काॅलेज में पढ़ने वाले हो। इतना ही नहीं तुम दोनो रोज़ाना एक दूसरे से मिलोगे भी।"

"जी माॅ।" मैने कहा।
"तो अब क्या करोगे तुम?" काया माॅ ने कहा___"मेरा मतलब है कि आज तो तुम उससे बच कर निकल गए लेकिन अब जब रोज़ ही उससे मुलाक़ात होगी तो क्या करोगे फिर??"

"उससे मिलने में समस्या नहीं है माॅ।" मैने कहा___"फिलहाल तो मैं ये नहीं चाहता कि शुरुआत में ही पिता जी को मेरे बारे में पता चल जाए। बाॅकी बाद का कार्यक्रम आपको धीरे धीरे पता चलता रहेगा।"

"अच्छा ऐसा क्या करने वाला है तू?" काया माॅ ने कहा___"कुछ उल्टा पुल्टा मत करना जो भी करना सोच समझ कर करना।"
"हाॅ माॅ, आप फिक्र मत कीजिए।" मैने मुस्कुरा कर कहा___"आप तो जानती हैं कि मैं उल्टा पुल्टा करने का सोच भी नहीं सकता।"

ऐसे ही बातें होती रहीं कुछ देर फिर मैं अपने कमरे में चला गया। शाम को वीर चाचू और रिशभ मामा जी भी आ गए। उनके साथ काल भी था। हम सब नीचे ही ड्राइंगरूम में बैठे हुए थे। रिशभ मामा ने बताया कि काम हो गया है। यानी जिस माल का सौदा होना था वो बढ़िया तरीके से हो गया था। सारी काग़जी कार्यवाही फाइनल हो चुकी थी और अब वो माल हमारा था। हम सब इस बात से खुश हो गए थे।
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वहीं दूसरी तरफ रानी अपने कमरे में बेड पर लेटी आज काॅलेज के पार्किंग में हुई घटना के बारे में सोच रही थी। रह रह कर उसकी ऑखों के सामने वो मंज़र घूम जाता। कार की ड्राइविंग सीट पर बैठे राज को उसने स्पष्ट रूप से देखा था। वही चेहरा था जो अक्सर उसके सपनों में राज का होता था। बस फर्क ये था कि जहाॅ उसके सपनों वाले राज की वेशभूषा साधारण रूप की होती थी या कभी कभी ऐसा भी होता कि वो कभी पुराने समय के किसी योद्धा जैसी वेशभूषा में दिखने लगता था वहीं आज जो राज दिखा उसकी वेशभूषा बिलकुल आज के समय की थी। वह एकदम से माडर्न था। किन्तु उसके चेहरे का तेज़ वही था जो सपनों में नज़र आता था।

रानी के ज़हन से पार्किंग वाला वो दृष्य जा ही नहीं रहा था। उसका मन बड़ा ब्याकुल था। दिल में रह रह कर पीड़ा हो रही थी। एक ऐसी बेचैनी थी जो खत्म ही नहीं हो रही थी।


खुश हो गए थे हम आपका दीदार करके।
मगर आपको क्या मिला हमे बेक़रार करके।।

कोई शिकवा करें तो तौहीन ए वफ़ा होगी,
आपका जी नहीं भरता सितम हज़ार करके।।

जाने किस उम्मीद में खुद को रोंका है वरना,
ऑखें तो थक गई हैं आपका इंतज़ार करके।।

फक़त एक ही आरज़ू है के आपकी बाहों में,
हम फना हो जाएॅ बस आपसे प्यार करके।।

आपने एक बार भी पलट कर न देखा हमें,
कितना रोये थे हम आपको पुकार करके।।


"मैं जानती हूॅ कि वो आप ही थे।" रानी मन ही मन कह रही थी___"मेरी ऑखें धोखा नहीं खा सकती और ना ही मेरा दिल मुझसे झूठ बोल सकता है। वो आप ही थे मगर...आप मेरे पुकारने पर भी नहीं रुके। ये आपने अच्छा नहीं किया राज। आप जानते हैं कि मैं आपसे कितना प्रेम करती हूॅ। आप ये भी जानते हैं कि मैं आपके लिए ही पागल हूॅ। फिर क्या बात थी कि आप रुके नहीं? क्या कोई इस तरह पत्थर दिल बन जाता है? ऐसा मत कीजिए मेरे साथ वरना आपकी रानी किसी दिन तड़प कर मर जाएगी।"

रानी की आॅखों से ऑसुओं की धारा बहने लगी। उसके लाख रोंकने की कोशिशों के बाद भी उसकी रुलाई फूट गई। वह तुरंत उल्टा लेट गई और तकिये में अपना चेहरा छुपा लिया। वह नहीं चाहती थी कि उसके रोने की या सिसकियों की आवाज़ कमरे से बाहर चली जाए। कारण सुमन अक्सर उसे देखने आया करती है और दरवाजे के पास खड़ी होकर ध्यान से अंदर की आवाज़ें सुना करती है। ये बात रानी जानती थी इसी लिए उसने जल्दी से अपना चेहरा तकिये में छुपा लिया था।

दर्द ए दिल हद से गुज़र क्यों नहीं जाता।
मेरा दिल टूट कर बिखर क्यों नहीं जाता।।

क्या कमी रह गई है मेरी इबादतों में खुदा,
उनके संग ये जीवन सवॅर क्यों नहीं जाता।।

मिले ग़र ख़ुदा कहीं तो उससे पूछूॅगी मैं,
के दरिया से मिलने समंदर क्यों नहीं जाता।।

जैसे गुज़रता है हर पल अज़ाबों में मेरा,
वैसा ही कोई पल उधर क्यों नहीं जाता।।

रानी रोते हुए जाने क्या क्या बड़बड़ाए जा रही थी और फिर वैसे ही कुछ देर में वह सो भी गई। किन्तु आने वाला समय उसे कैसी कैसी सौगात देने वाला था इसका उसे पता तक न था।
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ऐसे ही समय गुज़रता गया और मेरे काॅलेज शुरू हो गए। आज मेरा पहला दिन था काॅलेज के लिए। लेकिन अगर ये कहूॅ तो ग़लत न होगा कि मेरी पढ़ाई का ही ये पहला दिन था। बचपन में जब पाॅच साल का था तब स्कूल गया था उसके बाद अब सीधा काॅलेज जा रहा हूॅ। बड़ी अजीब और कमाल की बात थी ये। ख़ैर मैं अपने कमरे में तैयार हो रहा था। मेरे बलिष्ट शरीर पर काॅलेज का यूनीफार्म था। बेड पर ही एक बैग रखा था जिनमें कुछ किताबें थी। मुझे नहीं पता था कि स्कूल काॅलेजों में कैसे क्या होता है? बस अभी कुछ दिनों से थोड़ा बहुत पढ़ा और सुना था।

तैयार होकर तथा बेड से अपना बैग उठा कर जैसे ही मैं दरवाजे की तरफ बढ़ा वैसे ही काया माॅ आ गईं। मुझे इस तरह तैयार देख कर मुस्कुराई वो।

"ओहो कितना सुंदर और प्यारा लग रहा है मेरा बेटा।" काया माॅ ने अपनी ऑख से काजल निकाल कर मेरे कान के नीचे लगा दिया फिर बोली___"किसी की नज़र न लगे मेरे बेटे को।"

"क्या बात है माॅ।" मैं उनके द्वारा की गई इस क्रिया से मुस्कुराया___"आप तो सच में इंसानी दुनियाॅ के सारे तौर तरीके सीख गई हैं।"
"अब जब यहीं रहना है तो सब कुछ सीखना ही पड़ेगा न राज?" काया माॅ ने भी मुस्कुराते हुए कहा___"खैर छोड़, चल नीचे नास्ता रेडी है। मैं तुझे ही बुलाने आई थी।"

"ठीक है माॅ चलिये।" मैने कहा।
"आजा एक बार गले तो लग जा मेरे।" काया माॅ ने बाहें फैलाते हुए कहा___"मेरे सीने में ठंडक पड़ जाएगी।"

मैं उनकी बाहों में समा गया। माॅ ने मुझे कस कर खुद से छुपका लिया। कुछ पलों बाद हम अलग हो गए।

"अब चल सब तेरा इंन्तज़ार कर रहे हैं।" काया माॅ ने कहा और बाहर की तरफ बढ़ गईं। मैं भी उनके पीछे अपना बैग उठा कर चल दिया।

नीचे आकर हम सबने नास्ता किया। थोड़ी देर इधर उधर की बातें हुईं। वीर चाचू और रिशभ मामा ने मुझे ढेर सारी शुभकामनाएॅ दी काॅलेज जाने के लिए और फिर ये भी कहा कि अपना ख़याल रखना।

सबका आशीर्वाद लेने के बाद मैं बैग लेकर बाहर निकल गया। वो सब भी मेरे पीछे पीछे बाहर ही आ गए। बाहर आकर मैं अपनी कार में बैठा और मेन रोड की तरफ दौड़ा दिया। मेन रोड पर आते ही मेरी कार हवा से बातें करने लगी। इस बीच ज़हन में बस एक ही बात थी कि काॅलेज में जब रानी से आमना सामना होगा तब क्या होगा? कैसे मैं उस सबके लिए खुद को मजबूत कर पाऊॅगा जिस काम के लिए मैंने सोच रखा है?

कुछ समय बाद ही मेरी कार काॅलेज की पार्किंग में पहुॅच चुकी थी। मैने कार को पार्किंग में लगा कर तथा उसे लाॅक कर पार्किंग से बाहर आ गया। इधर उधर देख भी रहा था कि कहीं रानी तो मौजूद नहीं है आस पास। मुझे काल ने बताया था कि काॅलेज में रैगिंग होती है। मतलब कि नये लड़के लड़कियों के साथ काॅलेज के सीनियर लोग रैगिंग करते हैं। ये सीनियर्स पर डिपेंड करता है कि वो हमसे क्या पूछते हैं अथवा क्या करने को कहते हैं? काल ने मुझसे कहा था कि उनके बिहैवियर से मुझे गुस्सा भी आ सकता है इस लिए अपने गुस्से पर काबू रखना ना कि कोई फसाद खड़ा कर देना। मैं काल की बातों को याद कर काॅलेज के गेट के अंदर दाखिल हो गया।

यूॅ तो मुझे किसी बात का डर नहीं था और ना ही मैं किसी चीज़ से डरने या झुकने वाला था। फिर भी क्योंकि आज ये मेरा पहला दिन था इस लिए मैं नहीं चाहता था कि मेरे द्वारा कोई लफड़ा हो जाए।

काॅलेज के गेट के अंदर जा कर मैंने देखा कई जगह कुछ लड़के लड़कियाॅ झुंड बना कर खड़े थे। मुझे समझते देर न लगी कि ये सब किस लिए है। मतलब साफ था सीनियर लोग रैगिंग रूपी क्लास ले रहे थे जूनियर्स की। मैं चुपचाप एक तरफ से बढ़ने लगा। मेरे जैसे इंसान का भी दिल धड़कने लगा था। अभी मैं कुछ दूर ही बढ़ पाया था कि एक तरफ से किसी की आवाज़ आई। पर मैं रुका नहीं बढ़ता ही रहा।

"ओये हीरो सुनाई नहीं देता क्या तुझे?" एक लड़के ने लगभग चिल्लाते हुए कहा था। मैं रुक गया और उस तरफ पलट भी गया। तब तक वो लड़का भी आ गया। उसके साथ में कई सारे लड़के लड़कियाॅ थे।

"अरे ये तो वही है भाई।" एक अन्य लड़के ने मुझे देखते हुए पहले वाले से कहा__"जो उस दिन हाई फाई कार से आया था।"
"अरे हाॅ ये तो वही है।" पहले वाले ने कहा___"खैर जाने दे, चल अपना इन्ट्रो दे।"

"राज।" मैने नम्रता से कहा।
"अबे पूरा इंट्रो दे।" उसने आॅखें दिखाते हुए कहा___"माॅ बाप ने सिखाया नहीं कि जब कोई परिचय पूछे तो कैसे देना चाहिए?"

"मुझे सब राज ही कहते हैं सर।" मैने शालीनता से कहा।
"अबे आगे पीछे कोई कास्ट भी होती है कि नहीं?" दूसरे ने कहा___"या ऐसे ही है किसी लावारिस की तरह?"

"हाय कितना हैण्डसम एण्ड गुड लुकिंक है ये।" तभी उनके बीच खड़ी एक लड़की बोल पड़ी। उसकी इस बात से पहले वाले ने उसे खा जाने वाली नज़रों से देखा।
"अबे साले गूॅगा है क्या?" तभी दूसरे लड़के ने कहा___"बताता क्यों नहीं कि नाम के आगे क्या लगाता है तू? या सचमुच ही लावारिस है?"

"मेरे नाम के बाद मेरा सरनेम तो है लेकिन मैं बताना ज़रूरी नहीं समझता।" मैने पुरज़ोर लहजे में कहा___"मैं इस काॅलेज में बी एस सी फर्स्ट इयर का स्टूडेन्ट हूॅ। मुझे लगता है कि इतना काफी है मेरा इंट्रो।"

"साले अपने सीनियर से ज़ुबान लड़ाता है?" पहले वाला गुस्से में बोला___"इसकी सज़ा मिलेगी तुझे।"
"हाय सज़ा में इसे बोलो रोनी के ये मेरे होंठो को कम से कम दो मिनट तक चूसे।" वह लड़की फिर से किन्तु मादकता से बोली।

"ये क्या बकवास है?" रोनी उस पर चिल्लाया__"तुम्हारा दिमाग़ तो ख़राब नहीं हो गया?"
"गोल्डी सही कह रही है रोनी।" एक दूसरी लड़की ने कहा___"अगर तुम इस चिकने को सज़ा देना चाहते हो तो इसे बोलो कि ये हम सभी लड़कियों के होंठो को चूसे।"

"मीराऽऽ।" दूसरा लड़का चिल्लाया उस पर___"गोल्डी की तरह तुम्हारा भी दिमाग़ ख़राब हो गया है क्या?"
"तुम क्यों गला फाड़ रहे हो मोहित?" मीरा ने खा जाने वाली नज़रों से देखा उसे___"तुमसे तो कुछ होता नहीं, दूसरे से ही करवाऊॅगी ना?"

"सटअप।" रोनी ने ज़ोर से दोनो को देख कर कहा___"तुम दोनो अपनी बकवास बंद करो वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।" फिर उसने मेरी तरफ देख कर कहा___"तेरी सज़ा ये है कि काॅलेज के गेट से जो भी पहली लड़की अंदर आएगी तू उसके होंठो पर किस भी करेगा और उसके बूब्स भी दबाएगा। चल शुरू हो जा।"

"काश! ये सब ये मेरे साथ करता तो कितना अच्छा होता।" गोल्डी ने धीरे से कहा था। उसकी आवाज़ मेरे कानों तक पड़ चुकी थी।

"आप सीनियर हैं।" मैने कहा___"आपको अपने जूनियर्स को अच्छी बातों की शिक्षा देनी चाहिए ना कि ये सब करने के लिए मजबूर करना चाहिए। माफ़ करना सर लेकिन मुझे आपकी ये सज़ा मंजूर नहीं है बल्कि कोई सज़ा ही मंजूर नहीं है। अगर आप एक अच्छे इंसान होते तो आपकी हर बात मानता लेकिन आप तो निहायत ही घटिया किस्म के इंसान हैं।"

"साले तेरी ये हिम्मत कि मुझे घटिया बोले?" रोनी ने गुस्से में भभकते हुए कहा___"रुक अभी बताता हूॅ कि रोनी से ऐसे बात करने का अंजाम क्या होता है?"

"एक मिनट।" मैने कहा___"ये बताइये कि यहाॅ पर आपके अभी और कोई दोस्त हैं?"

"क्या मतलब??" रोनी चकराया___"अबे साले मैं अकेला ही काफी हूॅ तेरे लिए।"
"वो तो ठीक है।" मैने कहा__"लेकिन मैं ये सब इस लिए पूछ रहा था कि बाद में आप सभी को हास्पिटल लेकर कौन जाएगा??"

"हाहाहाहा अच्छा जोक था।" रोनी हॅसा__"तू चिन्ता मत कर अभी एक पल में तेरी हड्डियों को तोड़ता हूॅ मैं।"
"माफ़ करना काल।" मैने मन ही मन कहा__"तुम्हारी सलाह से मुकर रहा हूॅ मैं।"

मैं चुपचाप खड़ा था, ऐसे अंदाज़ में जैसे मुझे किसी बात की चिन्ता ही नहीं। रोनी मेरे सामने अपने दोनो हाॅथों को कराटे की शक्ल देकर खड़ा था। वो मुझे लापरवाही से खड़े देख मुस्कुरा रहा था। एकाएक ही वह मेरी तरफ बढ़ा और अपने दाहिने हाॅथ की कराॅट मुझ पर चलाई किन्तु मैंने बिजली की सी स्पीड से खुद को बचाया और उसी स्पीड से उसके हाॅथ को पकड़ कर अपना दाहिना हाॅथ तेज़ी से नीचे से ऊपर किया। कड़कड़ की आवाज़ के साथ ही उसका हाॅथ टूट गया। वह बड़े ज़ोर से चिल्लाया। साथ ही बाएॅ हाथ से अपने उस हाॅथ को थामें वह ज़मीन में बैठता चला गया। दर्द से उसका बुरा हाल था।

किसी को समझ ही न आया कि एक पल में ये क्या हो गया। रोनी की इस हालत को देख उसके सभी दोस्त बुरी तरह हैरान हुए फिर वो सब भी मेरी तरफ एक साथ गुस्से से झपट पड़े। देखने वालों ने देखा और आॅखें फाड़ फाड़ कर देखा कि कैसे दो पल में वो सब भी ज़मीन पर पड़े तड़प रहे थे।

काॅलेज के अंदर उस जगह पर भीड़ इकट्ठी हो गई। हर चेहरा मेरी तरफ आश्चर्य से देख रहा था। वातावरण में सिर्फ रोनी और उसके दोस्तो की कराहों की आवाज़ें गूॅज रही थी। मैं आगे बढ़ते हुए रोनी के पास पहुॅचा और उसके पास ही बैठ कर बोला___"क्या हुआ, तुम तो एक झटका भी झेल नहीं पाए मेरा और ना ही तुम्हारे ये चमचे दोस्त। ख़ैर, आगे का क्या इरादा है? अभी और झटका चाहिए या अब सीधा हास्पिटल जाना है?"

रोनी दर्द से कराहते हुए मुझे देखता रहा। तभी वहाॅ पर प्रिंसिपल की आवाज़ गूॅजी।

"ये सब क्या तमाशा है?" प्रिंसिपल ने चीखते हुए कहा___"किसने की इनकी ये हालत? यहाॅ पढ़ने आते हो या इस तरह मार पीट करने?"

किसी ने उनकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। प्रिंसिपल ने सबकी तरफ देखा फिर मेरी तरफ देख कर कहा__"क्या तुमने इनकी ये हालत की है?"

"सर ये सब अपनी हालत के खुद ही जिम्मेदार हैं।" मैने कहा__"हर कोई यहाॅ पढ़ने ही तो आता है। किन्तु कुछ लोग रैगिंग द्वारा विद्यार्थियों के मनोबल और उनकी भावनाओं को क्षति पहुॅचाते हैं। कुछ ऐसी गंदी सोच वाले विद्यार्थी भी हैं जो बाॅकी विद्यार्थियों को तुच्छ समझते हैं और उन्हें सबके सामने अपमानित करते हैं तथा उन्हें नीचा दिखाते हैं। ये काॅलेज विद्या का एक मंदिर है और यहाॅ पर हर विद्यार्थी एक समान है।"

"वो सब तो ठीक है बेटे।" प्रिंसिपल मेरी बातों से प्रभावित नज़र आया___"लेकिन ये भी तो ग़लत है न कि किसी विद्यार्थी का हाॅथ पैर ही तोड़ दिया जाए। किसी बात को प्यार से या समझा बुझा कर भी तो सुलझाया जा सकता था ना?"

"आज के ज़माने में प्यार की भाषा कौन समझता है सर?" मैने कहा___"ये लोग यही भाषा समझते हैं। मैने शुरू में इनसे इज्जत तमीज़ शिष्टाचार हर तरह से बात की किन्तु सब ब्यर्थ था सर। अब आप ही बताइये खुद के आत्म सम्मान की या फिर किसी लड़की के इज्जत व सम्मान की बात के लिए भी ये न करता तो धिक्कार था मुझ पर और मेरी इंसानियत पर।"

प्रिसिंपल देखता रह गया मेरी तरफ। चारो तरफ खड़े विद्यार्थी एक साथ बोल उठे कि मैने जो किया अच्छा किया। प्रिंसिपल ने मुझसे कहा कि मैं उनसे उनके आॅफिस में मिलूॅ। धीरे धीरे सारे विद्यार्थी वहाॅ से चले गए। किसी ने एम्बूलेन्स बुलवा दिया था फोन करके। इस लिए रोनी और उसके दोस्तों को हास्पिटल ले जाया गया।

"तुम जानते हो राज कि जिन्हें तुमने मारा है वो किस शख्सियत से ताल्लुक रखते हैं?" अपने ऑफिस में प्रिंसिपल मुझसे कह रहा था__"रोनी, ये मार्टिन ढिसिल्वा का बेटा है। मार्टिन ढिसिल्वा इस शहर का बहुत बड़ा आदमी है। कहने को तो ये इस शहर का विधायक है लेकिन इसके संबंध बड़े बड़े मंत्रियों से हैं। बड़े बड़े मंत्री भी इसकी बात नहीं टाल सकते। सुना तो ये भी है कि ये पुलिस और कानून की आॅखों में धूल झोंक कर बड़े बड़े ग़ैर कानूनी काम भी करता है। मैं ये सब तुम्हें इस लिए बता रहा हूॅ क्यों कि तुम्हें भी पता चले कि तुमने किस पर हांथ उठाया है और इसका परिणाम क्या हो सकता है?"

"आप फिक्र मत कीजिये सर।" मैने नम्रता से कहा___"इन सभी सूरमाओं से मैं निपट लूॅगा।"
"वैसे एक बात तो मैं भी कहूॅगा।" प्रिंसिपल ने कहा___"तुमने उनकी धुलाई करके बहुत अच्छा किया है। इस काॅलेज का नाम यकीनन बहुत है लेकिन इस काॅलेज में इनके कारण गृहण भी लगा हुआ है। जब से ये विधायक का बेटा और उसके वो लफंगे दोस्त इस कालेज में आए हैं तब से इस कालेज की प्रतिष्ठा मिट्टी में मिल गई है। ये पिछले चार साल से इसी काॅलेज में हैं, हर बार फेल होते हैं मगर इन्हें कालेज से निकाला भी नहीं जा सकता। क्योकि इसका बाप कालेज की बुनियादें हिला देगा।"

"आप चिन्ता न करें सर।" मैने मुस्कुरा कर कहा___"इन्हें कालेज से निकालने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी बल्कि ये खुद ही यहाॅ से भाग जाएंगे।"
"वो कैसे?" प्रिंसिपल चौंका___"भला ऐसा कैसे हो सकता है बेटा?"

"बस आप देखते जाइये।" मैने कहा__"ये खुद कहेंगे कि हमारी टीसी हमें दे दीजिए।"
"अच्छा।" प्रिंसिपल हॅसा___"ये तो कमाल ही हो जाएगा बेटे। ख़ैर अब तुम जाओ और अपनी क्लासेस अटेन्ड करो।"
"ओके सर।" मैंने कहा और पलट कर प्रिंसिपल के आॅफिस से बाहर आ गया।

बाहर आकर मैने काल को फोन किया और उसे सारी बात बताई। ये भी कहा कि वो सब देख ले उधर का, यहाॅ पर रोनी का बाप मार्टिन ढिसिल्वा न आए बस। ये कैसे होगा ये तुम जानो। काल ने मुझसे कहा कि आप फिक्र मत कीजिए। अब भला उस पगले को कौन बताए कि फिक्र नाम की चीज़ तो अपनी डिक्शनरी में है ही नहीं।

मगर ग़लत था मैं।
मैं क्लास में पहुॅचा तो सब मुझे घूर कर देखने लगे। किन्तु जिस पर मेरी नज़र पड़ी उसे देख कर तो मेरे तोते ही उड़ गए। दरअसल आगे वाले गेट से मैं क्लास में घुसा था और सामने की दीवार की साइड पहली लाइन की पहली सीट पर ही रानी बैठी थी। क्लास में अभी तक कोई मास्टर या मैडम नहीं आई थी। रानी को देख कर जितनी तेज़ी से मेरे तोते उड़े थे उतनी ही तेज़ी से मैने खुद को सम्हाल भी लिया था। मैने तुरंत ही उस पर से अपनी नज़रें हटा कर सबकी तरफ देखने लगा।

यही हाल रानी का भी था। वो एकटक मुझे देखे जा रही थी। उसकी ऑखों में पलक झपकते ही ऑसू आ गए थे। इधर मैं बीच की खाली जगह से चलते हुए पीछे साइड चला गया और वहीं पर एक खाली कुर्सी पर बैठ गया। मेरे अंदर ज़बरदस्त तूफान चालू था मगर मैं उसे काबू में करने के लिए प्रयास कर रहा था। मुझे महसूस हो रहा था कि दो ऑखें मुझे ही देखे जा रही हैं किन्तु मैं उस तरफ नहीं देख रहा था। मैं जानता था कि उस तरफ देखूॅगा तो उसका शक यकीन में बदल जाएगा। जबकि अगर मैं किसी अजनबी की तरह बिहैव करूॅगा और उसकी तरफ नहीं देखूॅगा तो वह सोचने पर मजबूर हो जाएगी कि कहीं मैं सच में कोई दूसरा तो नहीं हूॅ?

तभी क्लास में एक टीचर आया। उसे देख कर सब अपनी कुर्सी से खड़े हो गए। सबको देख कर मैं भी खड़ा हो गया।

"सिट डाउन सिट डाउन।" टीचर ने मुस्कुराते हुए कहा___"मैं आप सबका टीचर हूॅ, मेरा नाम शरद सक्सेना है और मैं आप सबको केमिस्ट्री पढ़ाऊॅगा। लेकिन आज सबसे पहले आप सब मुझे अपना अपना इंट्रो देंगे। चलो सब एक एक करके इंट्रो दो मुझे।"

सभी लड़के लड़कियों ने एक एक करके अपना इंट्रो देना शुरू कर दिया। रानी ने भी अपना इंट्रो दे दिया। मैं जानता था कि वो मेरी बारी का इन्तज़ार कर रही होगी। मैं खुद भी अंदर से बेहद घबराया हुआ था। यूॅ तो उसे पक्का यकीन था कि मैं ही उसका भाई हूॅ किन्तु वो मेरे मुख से मेरा इंट्रो सुन कर और भी ज्यादा आस्वस्त हो जाना चाहती थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि इस सिचुएशन से कैसे बचूॅ मैं? मैं उसकी तरफ नहीं देख रहा था क्योंकि देखने का मतलब था कि उसके यकीन को और भी मजबूत बना देना। मैं अंदर से घबराया हुआ ज़रूर था किन्तु चेहरे पर उस घबराहट के निशान नहीं ला रहा था। ये मेरे लिए मुश्किल तो था पर मेरी कोशिश ज़ारी थी कि उसे मेरे चेहरे पर किसी प्रकार की शिकन न दिखे। मैं क्लास में सबसे पीछे तो नहीं लेकिन बीच से कुछ पीछे ही बैठा था।

सभी लड़के और लड़कियाॅ एक एक करके अपना इट्रो दे रहे थे। मेरे दिल की धड़कन प्रतिपल बढ़ती ही जा रही थी। मैं मन ही मन ईश्वर से फरियाद कर रहा था कि मुझे इस सिचुएशन से बचा ले। हलाॅकि ये मेरी सोच थी जबकि सच्चाई तो ये थी कि किसी न किसी दिन रानी को मेरा नाम पता चल ही जाना था। या फिर ऐसा भी हो सकता था कि वो किसी माध्यम से मेरे बारे में पता कर ले। यकीनन ऐसा हो सकता था। ये बात मुझे भी पता थी किन्तु इस वक्त और कुछ दिन मैं इस सबसे बचना चाहता था। मैं उसे इग्नोर करके खुश तो नहीं था लेकिन मजबूरी थी।

अभी मैं ये सोच ही रहा था कि मेरे सामने की कुर्सी पर बैठा हुआ लड़का उठा और अपना इंट्रो देने लगा। संभव था कि उसके बाद मेरा ही नंबर आए इंट्रो देने के लिए। मेरा दिल धाड़ धाड़ करके बजने लगा था जिसकी धमक मुझे अपनी कनपटियों पर किसी भारी हॅथौड़े की मानिन्द गूॅजती महसूस हो रही थी। मेरे ज़हन में तो ये तक विचार आ गया कि मैं उठ कर यहाॅ से भाग जाऊॅ लेकिन मैं ऐसा कर नहीं सकता था। इतना बेबस व लाचार मैं कभी न हुआ था। मेरे सामने वाले लड़के ने अपना इंट्रो देकर अपने स्थान पर बैठ गया। मैं टीचर की तरफ देख रहा था कि अब वह किसकी तरफ देखता है? क्योंकि वह जिसकी तरफ देखेगा उसे ही उठ कर अपना इंट्रो देना होगा।

टीचर ने उस लड़के बाद उसके बगल वाली कुर्सी पर बैठी एक लड़की की तरफ देखा। मैने मन ही मन राहत की साॅस ली। वो लड़की उठ कर अपना इंट्रो देने लगी। उसके बगल में दो लड़कियाॅ और थी। कुछ ही देर में वो लड़की भी अपना इंट्रो देकर बैठ गई। मुझे लगा टीचर कहीं मेरी तरफ न देखने लगे और हुआ भी वही। वो उस लड़की के बाद सहसा मेरी तरफ ही देखने लगा। मेरी हालत ख़राब, मेरे पास कोई चारा नहीं था। मुझे अपनी जगह से उठना ही पड़ेगा और अपना इंट्रो भी देना पड़ेगा। मुझे पूरा यकीन था कि रानी मुझे ही देख रही है। हलाॅकि मैं जब क्लास में आया तभी उसकी तरफ देखा था उसके बाद अब तक मैने उसकी तरफ नहीं देखा था।

मैंने खुद को सम्हाला और पूरे आत्मविश्वास के साथ खड़ा हो गया। मुझे अपने माथे व चेहरे पर पसीने की हल्की नमी का एहसास हुआ, मतलब साफ था कि मैं अंदर से अभी भी घबराया हुआ था। टीचर मेरी तरफ ही देख रहा था। मैंने अपना इंट्रो देने के लिए मुह खोला ही था कि बाहर घंटी की आवाज़ सुनाई दी।

"ओह बेल बज गई।" टीचर कह उठा___"कोई बात नहीं बेटे। तुम्हारा और बाॅकी स्टूडेन्ट्स का इंट्रो कल लूॅगा।"

ये कह कर टीचर क्लास से बाहर चला गया। मैने मन ही मन राहत की साॅस ली और जल्दी से अपनी जगह बैठ गया। मैने सारी क्लास में सरसरी तौर पर अपनी दृष्टि घुमाई और एक नज़र रानी पर भी डाली। वो अभी भी मुझे ही देख रही थी। मैने तुरंत ही उससे नज़रें हटा ली। मेरे मन मे ख़याल उभरा कि कैसी पागल है अभी भी मुझे ही देख रही है। सच कहूॅ तो मुझे उस बहुत ज्यादा प्यार आया और ये सोच कर बेहद पीड़ा भी हुई कि जो टूट टूट कर मझसे प्यार करती है मैं उसी से छिप रहा हूॅ और उससे दूर भाग रहा हूॅ। मुझे खुद पर बेहद गुस्सा भी आ रहा था।

काफी देर हो गई दूसरा कोई टीचर ही नहीं आया। मेरे बगल में बैठे कुछ लड़के बातें कर रहे थे। उनकी बातों से ही पता चला कि एक दो दिन तो बस इंट्रो ही होगा। संभव है उसके बाद ही ठीक से क्लासेस लगेंगी। ये सुनकर मैंने सोचा कि कहीं मैं फिर से न इंट्रो के चक्कर में फॅस जाऊॅ। इस लिए मुझे निकल जाना चाहिए यहाॅ से।

खाली पीरियड देख कर कुछ लड़के व लड़कियाॅ क्लास से बाहर जा रहे थे। मैं भी अपनी जगह से उठा और बाहर निकल गया। बाहर आकर मैने देखा कि मेरी क्लास के लड़के लड़कियाॅ एक तरफ बढ़े जा रहे थे। मैं भी उनके पीछे ही चल पड़ा। थोड़ी ही देर में मैं उनके पीछे चलते हुए जिस जगह पहुॅचा वो कन्टीन थी जहाॅ पर कई सारे स्टूडेन्ट्स खा पी रहे थे। मैं जब वहाॅ पर पहुॅचा तो सब एकदम से शान्त हो गए। कन्टीन के सामने कुछ टेबल व कुर्सियाॅ रखी थी जिन पर कुछ लड़के व लड़कियाॅ बैठी हुई थी। कोई कुर्सी खाली न दिखी मुझे। मैने कुर्सियों पर बैठे सभी लोगों पर नज़रें डाली। सबके सब एक झटके में खड़े हो गए। तभी एक लड़का आया और मुझसे बोला___"भाई आप बैठ जाओ यहाॅ पर।"

मैं समझ गया था कि ये सब मुझसे डर रहे हैं क्योंकि इन सबने रोनी और उसके दोस्तों का हाल देखा था। एक तरह से मैं पहले दिन ही कालेज में मशहूर हो गया था।

"इट्स ओके।" मैने कहा___"तुम अपनी जगह आराम से बैठ जाओ।" फिर मैने उन सबसे भी कहा___"आप सब लोग अपनी अपनी जगह बैठ जाइये प्लीज़। मुझसे डरने की कोई ज़रूरत नहीं है। मैं भी आप सबकी तरह एक विद्यार्थी ही हूॅ।"

मेरी इस बात से सब पर प्रतिक्रिया हुई। सब के सब थोड़ी ही देर में अपनी अपनी जगह बैठ गए। किन्तु वो लड़का मेरे पास ही खड़ा रहा।
"तुम भी बैठ जाओ भाई।" मैने उस लड़के से कहा।
"नहीं भाई आप बैठ जाइये।" उस लड़के ने कहा___"मैं आपके लिए चाय काॅफी लेकर आता हूॅ।"

"इसकी कोई ज़रूरत नहीं है यार।" मैने हॅस कर कहा___"अब जाओ बैठ जाओ तुम।"

मैंने कन्टीन वाले से एक कप चाय ली और वहीं पर खड़े खड़े पीने लगा। सब मेरी तरफ ही हैरत से देख रहे थे।

"आप सब मुझे इस तरह क्यों देख रहे हैं?" मैने उन सबकी तरफ देखते हुए कहा___"क्या मैं कोई अजूबा लगता हूॅ आप सबको? मैने आप सबसे पहले ही कहा है कि मैं भी आप सबके जैसा ही हूॅ और.......।" कहते कहते मैं एकाएक ही रुक गया। कारण तभी सामने से आती हुई रानी दिखी मुझे। उसके चेहरे पर संसार भर की वीरानी व उदासी थी। उसे इस तरह देख कर मेरा दिल रो पड़ा। किन्तु मैने जल्द ही खुद को सम्हाला।

"अगर उस हादसे के बाद आप लोग मुझे कोई गुंडा या आवारा समझते हैं तो ठीक है मैं चला जाता हूॅ यहाॅ से।" मैने फिर से कहना शुरू कर दिया था___"लेकिन इतना ज़रूर कहूॅगा कि मैंने जो किया वो ग़लत नहीं था। रैगिंग का मतलब ये नहीं होता कि आप किसी की इज्जत और उसके स्वाभिमान का हनन करें। चलता हूॅ दोस्तो।"

मैंने कन्टीन वाले को चाय का पैसा दिया और चल दिया वहाॅ से।

"रुक जाइये।" ये आवाज़ रानी की थी। उसकी आवाज़ सुन कर मैं ठिठक गया और पलट कर उसकी तरफ देखा। वो मुझे बड़े ध्यान से देख रही थी। उसकी आॅखों में कुछ ऐसे भाव थे कि मैं उससे नज़रें नहीं मिला पा रहा था।

"जी कहिये।" मैने सामान्य लहजे से कहा।
"अगर मैं ये कहूॅ।" रानी ने अजीब अंदाज़ से कहा___"कि मैं आपको बहुत अच्छी तरह से पहचानती हूॅ तो आप क्या कहेंगे इस बारे में?"

"इसमें कौन सी बड़ी बात है मिस?" मैने कहा___"इस कालेज का हर ब्यकित मुझे जानने लगा है।"
"ये लोग तो आपको आज से जानने लगे हैं।" रानी ने कहा___"जबकि मैं आपको बहुत अरसे से जानती हूॅ।"

"अरे ये तो बड़ी कमाल की बात है।" मैने चौंकने की ऐक्टिंग की___"लेकिन आप मुझे कैसे जानती हैं? जबकि जहाॅ तक मुझे याद है हम एक दूसरे से आज से पहले कभी मिले ही नहीं हैं।"

"आप ठीक कह रहे हैं।" रानी ने कहा___"हम आज से पहले कभी नहीं मिले इसके बावजूद मैं आपको जानती हूॅ। और मैं ये भी जानती हूॅ कि आप भी मुझे जानते हैं।"

"देखिये मिस।" मैने कहा___"अगर आप फिल्में देखती हैं और कल्पनाएॅ करती हैं तो ये अच्छी बात हो सकती है लेकिन आपको ये भी ख़याल होना चाहिए कि फिल्मी दुनियाॅ और कल्पना एक ही बात है जिसका हकीकत से कोई वास्ता नहीं होता।"

"आपकी इस बात का क्या मतलब हुआ?" रानी ने पूछा।
"मैं नहीं जानता कि आप ये सब किस उद्देश्य से कह रही हैं?" मैने कहा___"मैं बस इतना जानता हूॅ कि मैं आपको नहीं जानता।"

"अगर मैं ये कहूॅ कि आप झूॅठ बोल रहे हैं तो?" रानी ने कहा।
"आप भी कमाल करती हैं मिस।" मैने झंझलाने की ऐक्टिंग की___"भला मुझे आपसे झूॅठ बोलने की ज़रूरत ही क्या है? मैने भला कौन सा आपसे कर्ज़ा लिया हुआ है जिसके लिए मुझे बेइमान बन कर आपसे झूॅठ बोलना पड़े?"

रानी देखती रह गई मुझे। मेरे दो टूक जवाबों का असर ये हुआ कि पल भर में उसकी आॅखों में आॅसू तैरने लगे। मैं उसकी ऑखों में ऑसू देख अंदर ही अंदर टूटने लगा। वो मेरी जान थी, उसकी ऑखों में ऑसू नहीं देख सकता था मैं। इतना भी पत्थर नहीं था मैं।

वह मुझे एकटक देखती रही फिर वह पलटी और कन्टीन से बाहर चली गई। मुझे लगा कहीं वह कोई उल्टा पुल्टा काम न कर बैठे इस लिए मैने मन ही मन काल को याद किया और उससे कहा कि वह रानी के आस पास ही रहे।


अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,,,,
ये चक्कर क्या है जो राज रानी से भाग रहा है क्या वो रानी के प्यार को आजमा रहा है या कुछ और प्लान है।
 

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राज-रानी (बदलते रिश्ते)
""अपडेट"" ( 18 )


अब तक,,,,,,,,,,,,

"देखिये मिस।" मैने कहा___"अगर आप फिल्में देखती हैं और कल्पनाएॅ करती हैं तो ये अच्छी बात हो सकती है लेकिन आपको ये भी ख़याल होना चाहिए कि फिल्मी दुनियाॅ और कल्पना एक ही बात है जिसका हकीकत से कोई वास्ता नहीं होता।"

"आपकी इस बात का क्या मतलब हुआ?" रानी ने पूछा।
"मैं नहीं जानता कि आप ये सब किस उद्देश्य से कह रही हैं?" मैने कहा___"मैं बस इतना जानता हूॅ कि मैं आपको नहीं जानता।"

"अगर मैं ये कहूॅ कि आप झूॅठ बोल रहे हैं तो?" रानी ने कहा।
"आप भी कमाल करती हैं मिस।" मैने झंझलाने की ऐक्टिंग की___"भला मुझे आपसे झूॅठ बोलने की ज़रूरत ही क्या है? मैने भला कौन सा आपसे कर्ज़ा लिया हुआ है जिसके लिए मुझे बेइमान बन कर आपसे झूॅठ बोलना पड़े?"

रानी देखती रह गई मुझे। मेरे दो टूक जवाबों का असर ये हुआ कि पल भर में उसकी आॅखों में आॅसू तैरने लगे। मैं उसकी ऑखों में ऑसू देख अंदर ही अंदर टूटने लगा। वो मेरी जान थी, उसकी ऑखों में ऑसू नहीं देख सकता था मैं। इतना भी पत्थर नहीं था मैं।

वह मुझे एकटक देखती रही फिर वह पलटी और कन्टीन से बाहर चली गई। मुझे लगा कहीं वह कोई उल्टा पुल्टा काम न कर बैठे इस लिए मैने मन ही मन काल को याद किया और उससे कहा कि वह रानी के आस पास ही रहे।
_______________________


अब आगे,,,,,,,,,,,,

रानी के इस तरह चले जाने से मैं बेहद परेशान व चिन्तित हो गया था। उसे दुखी देख कर मैं खुद भी अंदर से कोई खुश नहीं था किन्तु ये तो कदाचित अभी शुरूआत थी। अभी तो और आग में जलना था, उसमें तपना था।


रोनी और उसके दोस्तों की धुलाई के बाद अभी तक उसका बाप काॅलेज नहीं आया था। मतलब साफ था कि काल ने सब सम्हाल लिया था। उसने ये सब कैसे किया होगा ये भी सोचने वाली बात थी। रानी तो चली ही गई थी इस लिए अब मैंने घर जाना मुल्तवी कर दिया था और बाॅकी के पीरियड्स अटेन्ड किया। जैसा कि क्लास में लड़के बात कर रहे थे वही हुआ। सारे टीचर इंट्रो ही ले रहे थे। सभी पीरियड्स ऐसे ही निकल गए। मैं तो बस इस लिए रुक गया था कि यहाॅ के बारे में कुछ जानने को मिल जाएगा।

काॅलेज की छुट्टी के बाद मैं वापस घर आ गया। घर में मेरी दोनो माॅओं ने मुझसे काॅलेज के बारे में हाल चाल पूछा। मैने उन्हें लड़ाई वाला छोंड़ कर सब बता दिया। रानी वाला मैटर भी बता दिया।

"ये तो तुमने ग़लत किया राज।" काया माॅ ने कहा___"उस मासूम का दिल दुखाना क्या अच्छी बात है? बल्कि होना तो ये चाहिए कि तुझे ऐसा कोई काम करना ही नहीं चाहिए जिससे रानी का दिल दुखे। मुझे तो सोच कर ही उसके लिए दुख होता कि वो बिना वजह ही तुम्हारी बेरुखी से दुखी हो रही है।"

"आपको क्या लगता है माॅ मुझे इस सबसे कोई खुशी मिलती है?" मैने कहा___"हर्गिज़ नहीं माॅ। उससे ऐसा ब्यौहार करके उससे ज्यादा मुझे तक़लीफ़ होती है। अपने आप पर इतना भयंकर क्रोध आता कि लगता है कि उस क्रोध में मैं सारी दुनियाॅ को जला कर राख कर दूॅ। मगर अपने दुख व क्रोध को उसी तरह पी जाता हूॅ जैसे कभी भगवान शंकर हलाहल को पिया था।"

"तो फिर ये सब क्यों कर रहा है राज?" मेनका माॅ ने प्यार से कहा___"कब तक उसे दुख देता रहेगा? ये तो तुम भी जानते हो कि उसे पूरा यकीन है कि तुम ही उसके भाई हो और तुम ही वो इंसान हो जिसे वह दिलो जान से प्यार करती है। किन्तु वह इस सच्चाई को जानते हुए भी तुम्हारे मुख से सुनना चाहती है। और फिर तुम भी कब तक उससे भाग सकोगे? इस लिए बेहतर यही है कि उसे उसके सवालों के सही सही जवाब दे दो और उसे अपने सीने से लगा कर उसकी उस तड़प को शान्त कर दो जो वर्षों से उसके अंदर है।"

"करूॅगा माॅ।" मैने गहरी साॅस ली___"बस थोड़े दिन और। उसे गले भी लगाऊॅगा और उसे बताऊॅगा भी मैं ही हूॅ उसका सब कुछ लेकिन ज़रा अलग तरीके से।"
"तुम और तुम्हारा तरीका।" मेनका माॅ ने कहा___"पता नहीं क्या अनाप शनाप मन में सोचते रहते हो? मेरी बच्ची को अब और रुलाया तो देख लेना मुझसे बुरा कोई न होगा।"

"क्याऽऽऽ????" मैं बुरी तरह हैरान रह गया, फिर बोला___"ये क्या कह रही हैं माॅ? मतलब वो अब आपकी बच्ची हो गई और मैं कुछ भी नहीं?"
"तू तो मेरी जान है रे।" मेनका माॅ ने मुस्कुरा कर कहा___"किन्तु वो तो मेरी जान की भी जान है ना। फिर कैसे उसे दुखी देख सकती हूॅ बता?"

"वैसे सोचने वाली बात है दीदी।" सहसा काया माॅ ने कहा___"ईश्वर ने भी क्या ग़जब का खेल रचाया है। एक ही माॅ से पैदा हुए इन दोनो जुड़वा भाई बहन के बीच प्रेम का ऐसा संबंध हो गया? इस धरती पर भला कौन भाई बहन के बीच ऐसे संबंध को मान्यता देता है?"

"अब ये तो ईश्वर ही जाने काया कि उसने ऐसा क्यों किया?" मेनका माॅ ने कहा___"ये प्रेम तो ऐसा है कि इन दोनो ने कभी एक दूसरे को देखा तक नहीं, मिलने की तो बात दूर। दूर रह कर भी एक दूसरे से इस तरह प्रेम हो गया। इसे ईश्वर का चमत्कार ही कहा जाएगा। अगर यही प्रेम संबंध ये दोनो पास रह बनाते तो कदाचित इसे अनुचित और पाप क़रार दिया जाता। यही समझा जाता कि दोनो अपनी हवस में इतने अंधे हो गए कि इन्हें अपने बीच के रिश्ते का ख़याल ही नहीं रहा कभी। लेकिन ये सब तो इन दोनो ने बिना एक दूसरे को देखे तथा बिना मिले ही किया, बल्कि किया भी कहाॅ ये तो बस हो गया। अब इस संबंध को दुनियाॅ समाज मान्यता दे या ना दे क्या फर्क पड़ता है?"

"फर्क तो पड़ता है दीदी।" काया माॅ ने कहा___"क्योंकि इन दोनो को इसी दुनिया और समाज के बीच रहना है। ये दोनो इस दुनियाॅ तथा इस समाज से अलग भला कहाॅ जाएॅगे? और जब यहीं रहना है तो इन्हें इस समाज के नियम कानून को तो मानना ही पड़ेगा।"

"ईश्वर ने अगर इनके बीच ऐसा संबंध स्थापित कर ही दिया है तो उसने इसका कोई न कोई उपाय भी अवश्य किया होगा।" मेनका माॅ ने कहा___"भला ईश्वर से बेहतर कौन जान सकता है कि इनके लिए क्या सही है और क्या ग़लत?"

"हाॅ ये बात तो है दीदी।" काया माॅ ने कहा___"ख़ैर ये तो आने वाला समय ही बताएगा कि इनके साथ क्या होता है?"
"कुछ भी हो।" मेनका माॅ ने कहा___"मैं तो हमेशा अपने बेटे के साथ ही हर क़दम पर रहूॅगी। मेरी सारी ज़िदगी तथा मेरा सारा सुख दुख अब मेरे बेटे से ही है।"

"ये तो आपने बिलकुल सही कहा।" काया माॅ ने कहा___"हम सब राज के लिए ही समर्पित हैं। मैंने तो सोच लिया है कि मेरी हर साॅस सिर्फ मेरे बेटे के लिए है।"
"अब छोंड़िये इन सब बातों को।" सहसा इस बीच मैने हस्ताक्षेप किया___"मुझे भूख लगी है, आप दोनो तो बातों के चक्कर में ये भूल ही गईं कि बेटा भूखा भी होगा।"

"अरे हाॅ।" मेनका माॅ चौंक पड़ी___"हाय रे कैसे भूल गई मैं? रुक अभी मैं तेरे लिए गरमा गरम खाना लाती हूॅ।"
"ठीक है माॅ।" मैने कहा___"मैं तब तक कपड़े चेन्ज़ करके आता हूॅ।"

ये कह कर मैं ऊपर अपने कमरे की तरफ बढ़ गया। जबकि मेरी दोनो माॅ किचेन की तरफ बढ़ गईं। जहाॅ पर एक औरत जिसका नाम देविका था, वह रात के लिए खाना बना रही थी।

"अभी कितना समय लगेगा देविका।" मेनका माॅ ने उससे पूछा___"अगर बन गया हो तो राज के लिए एक थाली लगा दो फटाफट।"
"जी अच्छा।" देविका ने कहा__"आप चलिए मैं थाली लगा कर खुद ही ले आती हूॅ।"
"ठीक है।" मेनका माॅ ने कहा___"लेकिन थोड़ा जल्दी करना।"

इतना कह कर वो दोनो किचेन से बाहर आ गईं और डायनिंग हाल में रखी कुर्सियों पर बैठ गईं। कुछ देर में मैं भी चेन्ज करके आ गया और उन दोनो के बीच वाली कुर्सी पर बैठ गया। कुछ ही पलों में देविका थाली सजा कर ले आई और डायनिंग टेबल पर मेरे सामने रख दिया। उसके बाद मेरी दोनो माॅ ने मुझे अपने हाॅथों से खिलाना शुरू कर दिया।

खाना खाने के बाद मैं अपने कमरे में चला गया और बेड पर लेट गया।
________________________

उधर काॅलेज से जाने के बाद रानी अपने घर पहुॅची। उसने अपने अंदर भड़क रहें जज़्बातों को बड़ी मुश्किल से सम्हाला हुआ था। अपने कमरे में जाते ही वह धम्म से बेड पर औंधे मुह गिर पड़ी और फिर वहीं आॅसुओं की धारा बहाने लगी।

"ऐसा क्यों कर रहे हैं आप मेरे साथ?" रानी तकिये में मुह छुपाए करुणायुक्त स्वर में धीमी आवाज़ में कह रही थी___"क्यों जान बूझ कर अजनबी बन रहे हैं मुझसे? आख़िर ऐसी क्या ख़ता हो गई है मुझसे जिसकी सज़ा इस तरह से दे रहे हैं मुझे? इतनी बेरुखी इतना अजनबीपन क्यों दिखा रहे हैं राज? मुझे इस तरह दुख देने से आपको भी तो तक़लीफ़ होती होगी न? फिर क्यों कर रहे हैं ऐसा?"


गए थे जिनके पास कई निशानियाॅ लिए हुए।
लौट आए उनके पास से उदासियाॅ लिए हुए।।

खूब सिला दिया है हमारी चाहत का सनम,
कहाॅ जाएॅगे आपकी मेहरबानियाॅ लिए हुए।।

पहले भी बसर हुई थी यूॅ ही शब ए फिराक़,
अब भी गुज़रेगी शब तन्हाईयाॅ लिए हुए।।

मेरे अश्कों से हर रोज़ समंदर डूब जाता है,
यादें रुलाती हैं हर पल शहनाईयाॅ लिए हुए।।

ख़ौफ ए रुसवाई से लबों को सी लिया हमने,
किसी दिन मर जाएॅगे ख़ामोशियाॅ लिए हुए।।


"अगर आप यही चाहते हैं कि मैं आपसे दूर ही रहूॅ तो ठीक है राज।" रानी ने जैसे अंदर ही अंदर फैसला ले लिया, बोली___"कल से आपको शिकायत का मौका नहीं दूॅगी। आपकी करीब आने की कोशिश नहीं करूॅगी मैं। मेरे लिए ये मुश्किल तो बहुत है लेकिन रो रोकर ही सही कर लूॅगी। पहले भी तो आपके बग़ैर तन्हां ही अपने जीवन का हर पल गुज़ारा था अब आपके इतना पास होते हुए भी गुज़ार लूॅगी।"

अभी रानी ये सब बड़बड़ा ही रही थी कि कमरे में सुमन दाखिल हुई। अपनी बेटी को इस तरह औंधी पड़ी देख वह चौंकी। तुरंत ही उसके पास उसके बेड के किनारे बैठी और अपने एक हाॅ से रानी के सिर को सहलाया।

रानी अपने सिर पर किसी का कोमल व प्यार भरा स्पर्श पाकर चौंकी। उसे समझते देर न लगी कि ये स्पर्श किसका है। उसने झट से उसी अवस्था में लेटे हुए अपनी ऑखों से ऑसुओं को पोंछा और फिर पलटी तथा उठ कर बेड पर बैठ गई। प्रतिमा की नज़र जैसे ही रानी के लाल सुर्ख चेहरे पर पड़ी तो वह चौंक पड़ी। रानी का चेहरा तथा उसकी ऑखों ने उसे जता दिया कि उसकी बेटी अभी रो रही थी। ये जान कर सुमन का हृदय फिर से जैसे हाहाकार कर उठा।

"तो आख़िर मेरी बाटी ने अपना वादा तोड़ ही दिया।" सुमन ने नम ऑखों से कहा___"शायद इस लिए कि मेरा प्यार उसकी नज़र में कुछ भी नहीं। आख़िर मुझे ये समझा दिया कि मैं तुम्हारी सौतेली माॅ हूॅ।"

"नहींऽऽऽ।" रानी फफक कर रो पड़ी तथा साथ ही वह सुमन से लिपट भी गई, बोली__"ऐसा मत कहिए माॅ। मैंने भूल से भी कभी अपने मन में ये ख़याल नहीं लाया कि आप मेरी कैसी माॅ हैं? मैंने तो बचपन से सिर्फ आपको ही अपनी माॅ माना और समझा है माॅ। मेरे मन में आपकी ऐसी छवि है माॅ जिसकी इबादत की जाए। आप संसार की सबसे श्रेष्ठ माॅ हैं माॅ। फिर आप ये क्यों कह रही हैं कि मैने आपको सौतेली समझ लिया?"

"सच्चाई को किसी प्रमाण की ज़रूरत नहीं होती।" सुमन ने कहा___"वो तो हर हाल में सच्चाई ही कहलाती है। और ये तो सच ही है ना कि मैं तुम्हारी सौतेली माॅ हूॅ। मैने तुम्हें अपनी कोख से जन्म नहीं दिया और ना ही तुम्हें अपनी छाती का दूध पिलाया है।"

"तो क्या हुआ माॅ?" रानी ने सुमन से अलग होकर उसकी ऑखों में देखते हुए कहा__"इस से ये तो नहीं कह सकते न कि आप माॅ नहीं हैं। यशोदा माॅ ने क्या कृष्ण को अपनी कोख से जन्म दिया था? नहीं न? उन्होने तो कृष्ण को पाला पोषा ही तो था। फिर सारा संसार उन्हें यशोदा का लाल ही कहता है। आप मेरी यशोदा माॅ ही तो हैं माॅ। मैं मानती हूॅ कि मैने अपना वादा तोड़ा और खुद को रुलाया किन्तु इसमें मेरी कोई ग़लती नहीं है माॅ। कुछ दिनों से हालात ही ऐसे हो गए हैं कि मैं चाह कर भी खुद को सम्हाल नहीं पाती माॅ।"

"कैसे हालात हो गए हैं बेटी?" सुमन सहसा चौंकी___"तुमने मुझसे बताया क्यों नहीं? क्या बात है बेटी मुझे जल्दी बताओ कि क्या हुआ है ऐसा जिसकी वजह से तुमने अपना वादा तोड़ दिया?"

"मैं पापा के साथ जिस दिन काॅलेज में एडमीशन करवाने गई थी।" रानी ने कहना शुरू किया___"उस दिन मैने काॅलेज की पार्किंग में राज को देखा माॅ।"
"क्या?????" सुमन उछल पड़ी____"ये क्या कह रही हो तुम??"

"हाॅ माॅ।" रानी ने कहा और फिर उसने उस दिन की सारी बातें सुमन को बता दी। सारी बातें सुन कर सुमन चकित भाव से देखती रह गई रानी को।

"लेकिन ये कैसे हो सकता है बेटी?" फिर सुमन ने कहा___"वो वहाॅ किस लिए आया होगा? नहीं बेटी, मुझे तो लगता है कि तुम्हें कोई वहम हुआ होगा।"
"यही बात पापा भी बोल रहे थे माॅ।" रानी ने कहा___"जबकि मुझे पक्का यकीन था कि वो राज ही थे। और आज तो सारी बात ही क्लियर हो गई।"

"क्या मतलब??" सुमन हैरान।
"उस दिन मैं भी सोच रही थी कि राज वहाॅ पर किस लिए आए रहे होंगे?" रानी ने कहा__"किन्तु आज जब मैं कालेज गई तो सब समझ में आ गया। दरअसल राज भी उसी काॅलेज में उस दिन अपना एडमीशन कराने ही आए थे और आज तो वो सभी स्टूडेन्ट्स की तरह काॅलेज की यूनिफार्म में ही काॅलेज आए थे। सबसे बड़ी बात वो भी उसी सब्जेक्ट के साथ उसी क्लास में हैं जिसमें मैं हूॅ। अब आप ही बताईये माॅ क्या ये सब भी मेरा वहम है?"

"ये तो सचमुच बड़े आश्चर्य की बात है।" सुमन ने हैरत से कहा___"ख़ैर, उसके बाद क्या हुआ? मेरा मतलब कि क्या तुम राज से मिली या क्या वो तुमसे मिला?"
"नहीं माॅ।" रानी ने अधीरता से कहा__"वो तो मुझसे मिलने नहीं आए बल्कि मैं खुद ही उनसे मिलने गई थी।"

"अच्छा।" सुमन ने कहा___"तो क्या हुआ फिर?"
"मुझे क्लास में ही उनका बिहैवियर अजीब लग रहा था माॅ।" रानी ने सुमन को आज काॅलेज की सारी बातें बताई। ये कि कैसे वह काॅलेज की कन्टीन में उससे मिली और उनसे क्या बाते हुईं। सारी बातें सुन कर सुमन एक बार फिर से हैरान रह गई।

"तो तुम्हें ये लगता है कि।" सुमन ने कहा__"वही राज है और वो इस बात को मानने से इंकार कर रहा है कि वो तुम्हें जानता है? हो सकता है बेटी कि वो सही कह रहा हो। मेरा मतलब कि वो राज वो न हो जिसे तुम अपना भाई समझती हो बल्कि वो कोई और ही हो। इस दुनिया में एक ही शक्ल सूरत के चेहरे कहीं न कहीं मिल ही जाते हैं बेटी लेकिन इसका मतलब ये नहीं होता कि वो हमारे अपने ही होते हैं।"

"मेरा दिल मेरी आत्मा इस बात को पूरे यकीन से मानती है माॅ कि वो ही मेरे राज हैं।" रानी ने कहा___"जैसे एक माॅ दूर से ही महसूस कर लेती है कि आस पास ही कहीं उसकी औलाद मौजूद है वैसे ही मैं महसूस कर चुकी हूॅ माॅ। उनसे बात करके भी मुझे एहसास हो रहा था कि यही राज हैं।"

"चल मान लिया कि वही राज है।" सुमन ने कहा___"लेकिन सवाल ये उठता है कि वो इस बात से इंकार क्यों कर रहा है कि वो तुम्हें नहीं जानता? अगर तुमने उसे पहचान लिया है तो उसे भी तो पहचान लेना चाहिए था तुम्हें? ख़ैर, ये बताओ कि क्या तुमने उससे उसका नाम पता पूछा?"

"नहीं माॅ।" रानी खेद भरे भाव से कहा__"ये पूछने का ख़याल ही नहीं आया। आता भी कैसे? क्योंकि मैं तो यही समझती थी कि वो राज ही हैं इस लिए उनसे नाम पूछने का कोई तुक भी नहीं था।"
"तो फिर सबसे पहले ये पता करने की कोशिश करो कि उसका नाम क्या है तथा उसके माता पिता का क्या नाम है?" सुमन ने कहा___"ये पता करना कोई मुश्किल बात तो है नहीं। अगर ये पता चल गया तो सब समझ में आ जाएगा कि सच्चाई क्या है? अगर वो तुम्हारा भाई ही है तो उसके माता पिता का नाम भी वही होगा जो तुम्हारे काग़जातों में तुम्हारे माता पिता का दर्ज़ है।"

"ठीक है माॅ।" रानी ने कहा___"आपने सही कहा, मुझे सबसे पहले यही पता करना चाहिए था उसके बाद ही उनसे मिलना चाहिए था। अगर वो राज ही होते तो उनका सच और झूॅठ तुरंत पकड़ में आ जाता।"

"चलो ठीक है।" सुमन ने कहा___"ये सब छोड़ो और फ्रेश हो जाओ। मैं डिनर का इंतजाम करती हूॅ।"
"ओके माॅ।" रानी ने कहा___"आप चलिए मैं भी फ्रेश होकर आती हूॅ और फिर किचेन में खाना बनाने में आपकी मदद करती हूॅ।"

"क्या????" सुमन बुरी तरह चौंकी___"तुम किचेन में मेरी मदद करोगी??"
"क्यों नहीं माॅ?" रानी जाने क्या सोच कर एकाएक ही शरमा गई___"खाना पीना बनाना मुझे भी तो आना चाहिए न। इस लिए आप मुझे भी हर तरह का खाना बनाना सिखा दीजिए।"
"ओए होए।" सुमन ने नाटकीय अंदाज़ से कहा___"क्या बात है मेरी बिटिया रानी, आज खाना बनाना सीखने की बात क्यों करने लगी अचानक?"

"ओफ्फो।" रानी पहले तो सकपका गई फिर सहसा तुनक कर बोली___"अब क्या मैं खाना बनाना भी नहीं सीख सकती?"
"अरे हाॅ बिलकुल सीख सकती है।" सुमन ने झट से कहा___"क्यों नहीं सीख सकती। ये तो हर लड़की का पहला काम है। चलो ठीक है फ्रेश होकर जल्दी आओ फिर।"

सुमन ने कहा और मुस्कुराती हुई कमरे से बाहर चली गई जबकि रानी भी अपने चेहरे पर शरम की लाली लिए बाथरूम में घुस गई।



दोस्तो एक छोटा सा अपडेट हाज़िर है,,,,,,,

आज मैं घर जा रहा हूॅ, इस लिए अब होली के बाद ही मेरी दोनो कहानियों के अपडेट आ सकेंगे।

आप सभी को होली की ढेर सारी शुभकामनाएॅ।
बहुत अच्छा छोटू अपडेट था, पता नही इस राज के दिमाग में क्या चल रहा है।
 

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राज-रानी (बदलते रिश्ते)
""अपडेट"" ( 19 )


अब तक,,,,,,,,,

"चलो ठीक है।" सुमन ने कहा___"ये सब छोड़ो और फ्रेश हो जाओ। मैं डिनर का इंतजाम करती हूॅ।"
"ओके माॅ।" रानी ने कहा___"आप चलिए मैं भी फ्रेश होकर आती हूॅ और फिर किचेन में खाना बनाने में आपकी मदद करती हूॅ।"

"क्या????" सुमन बुरी तरह चौंकी___"तुम किचेन में मेरी मदद करोगी??"
"क्यों नहीं माॅ?" रानी जाने क्या सोच कर एकाएक ही शरमा गई___"खाना पीना बनाना मुझे भी तो आना चाहिए न। इस लिए आप मुझे भी हर तरह का खाना बनाना सिखा दीजिए।"
"ओए होए।" सुमन ने नाटकीय अंदाज़ से कहा___"क्या बात है मेरी बिटिया रानी, आज खाना बनाना सीखने की बात क्यों करने लगी अचानक?"

"ओफ्फो।" रानी पहले तो सकपका गई फिर सहसा तुनक कर बोली___"अब क्या मैं खाना बनाना भी नहीं सीख सकती?"
"अरे हाॅ बिलकुल सीख सकती है।" सुमन ने झट से कहा___"क्यों नहीं सीख सकती। ये तो हर लड़की का पहला काम है। चलो ठीक है फ्रेश होकर जल्दी आओ फिर।"

सुमन ने कहा और मुस्कुराती हुई कमरे से बाहर चली गई जबकि रानी भी अपने चेहरे पर शरम की लाली लिए बाथरूम में घुस गई।
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अब आगे,,,,,,,,,,

दूसरे दिन जब मैं काॅलेज पहुॅचा तो काॅलेज के सभी लड़के लड़कियाॅ फिर से मुझे घूरने लगे। ये देख कर मेरा दिमाग़ ख़राब होने लगा लेकिन फिर मैंने सोचा छोड़ो यार इनको। ये तो सब के सब एक नम्बर के चूतिया हैं। मैं उन सबको नज़रअंदाज़ करके कंटीन की तरफ बढ़ गया। क्लास शुरू होने में अभी समय था।

कंटीन में पहुॅचा तो वहाॅ पर भी कुछ लड़के लड़कियाॅ कुर्सियों पर बैठे हुए थे। मुझे देखते ही सबके सब उठ गए। उनके इस तरह उठ जाने से मुझे लगा ये सब मुझे सच में कोई गुंडा या दादा समझते हैं। मैने तो कल ही सबसे कह दिया था कि मुझसे किसी को डरने की कोई ज़रूरत नहीं है, क्योंकि मैं भी तो उनके जैसा ही एक आम स्टूडेन्ट हूॅ। मगर ये साले कुत्ते की दुम ही निकले। मेरा दिमाग़ फिर से क़राब हो गया।

मैं एक लड़के की तरफ तेज़ी से बढ़ा और बिना कुछ कहे उसको धुनना शुरू कर दिया। मेरी इस हरकत से सब हैरान हो गए। उसको छोंड़ कर मैं दूसरे की तरफ बढ़ा और उसे भी धुनना शुरू कर दिया। कहने का मतलब ये कि कंटीन में बैठे सभी लड़कों की धुनाई कर दी मैने। लड़कियों को कुछ नहीं कहा। उन पर हाॅथ नहीं चलाना चाहता था मैं। कुछ लड़के तो कंटीन से भाग गए थे। कंटीन में उस स्थान पर अफरा तफरी सी मच गई। किसी को समझ नहीं आ रहा था कि मैने ऐसा क्यों किया? आख़िर किसी ने ऐसा किया क्या था जिसके कारण मैने उन सबकी धुनाई कर दी।

सबको मारने के बाद मैं एक खाली कुर्सी पर बैठ गया। जिनकी धुनाई हुई थी वो सब ज़मीन पर पड़े कराह रहे थे। लड़किया अपनी अपनी कुर्सी छोंड़ कर दूर खड़ी थर थर काॅप रही थी। उन सबको मैं बारी बारी से देखता रहा। कंटीन वाला ऑखें फाड़े देख रहा था, उसको पता नहीं क्या सूझा कि वह तुरंत ही मेरे लिए एक गरमा गरम चाय ले आया।

"अब तुम सब लोग मुझसे पूछो कि मैने तुम लोगो को क्यों मारा?" मैने कंटीन वाले से चाय लेकर कहा___"जबकि तुम लोगों ने तो ऐसा कुछ किया ही नहीं था? है ना?"


मेरी इस बात पर कोई कुछ न बोला। बल्कि चकित होकर ज़रूर देखने लगे थे।

"अरे पूछो भी अब।" मैने चिल्लाते हुए उन सबसे कहा था।
"हाॅ हाॅ क्यों मारा हमें?" सबने एक साथ कहा।
"गुड, वैरी गुड।" मैने कहा__"इसका जवाब ये है कि मैने तुम लोगों से कल क्या कहा था? याद है? चलो फिर से बता देता हूॅ। मैने तुम सबसे कल ये कहा था कि मुझसे किसी को डरने की कोई ज़रूरत नहीं है, क्योंकि मैं भी तुम लोगों जैसा ही एक आम सा स्टूडेन्ट हूॅ। आज जब मैं यहाॅ आया तो तुम सब अपनी कुर्सियों से इस तरह खड़े हो गए जैसे मैं कोई स्टूडेन्ट नहीं बल्कि कोई गुंडा या दादा हूॅ। ये जान कर ही मुझे गुस्सा आया तुम सब पर। मैने सोचा कि कल जब मैने बड़े प्रेम से तुम सबको बता चुका था तो फिर वो बात तुम सबको समझ क्यों नहीं आई? कल मैने रोनी को मारा लेकिन उसमें भी ग़लती उसी की थी। वो साला सबके साथ बुरा ब्यौहार करता था और तुम सब नपुंसकों की तरह उसका हर अत्याचार सहते थे। ख़ैर, मैने इस काॅलेज की गंदगी को साफ की तो उसका तुम लोगों ने ये मतलब निकाला कि मुझे कहीं का गुंडा मवाली समझने लगे और मुझसे डरने लगे। इसी बात पर मुझे गुस्सा आया और मैने तुम सबकी धुनाई कर दी। तुम लोग ये क्यों नहीं समझते कि मैं भी तुम जैसा ही हूॅ और यहाॅ पढ़ने आया हूॅ?"

मेरी इन बातों से ज़मीन पर पड़े कराह रहे लड़कों पर असर हुआ। वो सब उठ कर खड़े हो गए। सब मेरे पास आए।

"भाई हम सबको माफ़ कर दो।" उनमें से एक बोला___"हम सच में तुमसे डर रहे थे। क्योंकि कल रोनी और उसके दोस्तों को जिस बेरहमी से तुमने मारा था उसे देख कर हम सबके मन में तुम्हारे प्रति डर बैठ गया था। हम सब इस बात से खुश थे कि चलो कोई तो आया जिसने रोनी जैसे घटिया लड़के को उसकी करनी का सबक सिखाया। पर तुम्हारे लिए वो जो डर बैठ गया था हम सबके अंदर वो भी धीरे धीरे निकल ही जाता भाई।"

"यार इतना किसी से डरना भी अच्छा नहीं होता।" मैने कहा___"अपने अंदर से इस डर नाम की चीज़ को निकालो और उसकी जगह पर आत्मविश्वास को बैठाओ। तभी जीवन में आगे बढ़ पाओगे। और हाॅ ये बताओ ज्यादा लगी तो नहीं न तुम लोगो को? देखो अगर तुम लोगों को ज्यादा लगा हो और दर्द हुआ हो तो एक काम करो तुम सब मुझे मार कर अपना बदला ले लो। कसम से उफ्फ तक नहीं करूॅगा। लेकिन प्लीज़ भाई लोगो मुझसे इस तरह डरना छोंड़ दो। मुझे ये बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता। मैं भी तुम सबके साथ हॅसी खुशी रहना और पढ़ना चाहता हूॅ।"

मेरी इस बात से सबके सब मुस्कुरा दिये। कंटीन में जितने भी भी वहाॅ मौजूद थे सबके चेहरों पर मुस्कान तैर गई।

"ओह भाई तुम सच में बहुत अच्छे हो।" एक लड़के ने कहा और मुझे अपने गले से लगा लिया। मैने भी उसे गले लगा लिया। उसके बाद मैंने सबसे माफ़ी माॅगी जो मैने उनको मारा था। सबने उस बात को हॅस कर टाल दिया और मुझसे हाॅथ मिलाया। मेरी सबसे दोस्ती हो गई। इस सबसे मैं बेहद खुश हो गया। मैने कंटीन वाले को बोला कि मेरे सभी भाइयों को भरपेट नास्ता खिलाओ और वो भी जो कुछ वो खाना चाहें।

दूर खड़ी लड़कियाॅ ये सब देख रही थीं। मैं उनके पास गया।
"मैने आप लोगों पर तो हाॅथ नहीं उठाया था फिर भी अगर आप लोगों मेरी किसी बात से तक़लीफ़ हुई हो तो मुझे माफ़ करना।" मैने उन सभी लड़कियों से हाॅथ जोड़ कर कहा था।

"पहले शुरू में ज़रूर हमें बुरा लगा कि कैसे आप किसी को बिना वजह इस तरह मार सकते हैं?" एक लड़की ने कहा___"पर फिर उसका असली कारण जान कर तथा आपका उन सबसे माफ़ी माॅगना देख कर हमें अच्छा भी लगा। इस लिए अब हम आपसे नाराज़ नहीं हैं।"

"तो फिर आइये आप सब भी।" मैने उन सबकी तरफ देखते हुए कहा___"हम सब एक साथ बैठ कर नास्ता करते हैं।"
"ठीक है चलिये।" सबने एक साथ कहा।

उसके बाद हम सब वहीं पर बैठ कर नास्ता करने लगे। अब किसी के भी चेहरे पर मेरे प्रति कोई डर जैसा भाव नहीं था बल्कि हर चेहरा खिला हुआ था।

"वैसे भाई एक बात तो बताओ।" एक लड़के ने कहा___"कल जब तुम रोनी और उसके दोस्तों को पीट रहे थे तब क्या तुम्हें ज़रा भी डर नहीं लगा कि उनसे पंगा लेने का अंजाम क्या होगा?"

"मैं किसी अंजाम की परवाह नहीं करता सुधीर।" मैने कहा___"मेरा उसूल है कि खुद कभी किसी के साथ ग़लत न करो और ग़लत न होने पर किसी से डरो भी नहीं। बल्कि ग़लत करने वाले को उसी वक्त सबक सिखा दो।"

"पर भाई तुम नहीं जानते कि रोनी कितना खतरनाॅक लड़का है।" एक अन्य लड़के ने कहा___"और उसका बाप तो पूछो ही मत। बहुत बड़ा आदमी है और प्वालिटीशियन भी। वो ज़रूर अपने बेटे की उस दशा का बदला तुमसे लेगा। वो तुम्हें इस काॅलेज़ से निकलवा भी सकता है।"

"अगर ऐसी बात है तो अब तक उसका बाप अपने बेटे का बदला लेने मेरे पास आया क्यों नहीं?" मैने मुस्कुरा कर कहा___"जबकि हादसा तो कल हुआ था। उसके बाप को तो कल ही मेरा तीया पाॅचा करने आना चाहिए था। मगर देख लो अब तक नहीं आया।"

"ये बात तो तुमने बिलकुल सही कहा भाई।" एक तीसरे लड़के ने कहा___"मैं भी सोचूॅ साला वो नेता अब तक आया क्यों नहीं? लेकिन भाई ऐसा कैसे हो सकता है भला कि इतना खतरनाक आदमी अपने बेटे की उस दशा का कोई बदला ही न ले बल्कि चुपचाप बैठा रह जाए?"

"निखिल सही कह रहा है।" सहसा इस बीच एक लड़की बोल पड़ी___"हम सब के दिमाग़ में भी कल से यही बात चल रही है कि रोनी का बाप अपने बेटे का बदला तुमसे बहुत बुरी तरह लेगा। लेकिन अभी तक ऐसा कुछ नहीं हुआ ये बड़े आश्चर्य की बात है।"

"भाई सच सच बताओ कौन हो तुम?" सुधीर ने कहा___"ये तो हमने भी देखा है कि तुम बहुत ही हाई फाई कार से काॅलेज आते हो। इसका मतलब साफ है कि तुम भी कोई मामूली आदमी नहीं हो।"

"मैं मामूली ही हूॅ भाई।" मैने हॅस कर कहा__"अब ये सब छोड़ो और चलो क्लास का समय हो गया है।"
"ये तो गोली देने वाली बात हो गई भाई।" एक लड़के ने कहा___"मतलब साफ है तुम अपने बारे में हमें बताना ही नहीं चाहते। अभी तो बोल रहे थे कि हम सब आज से तुम्हारे दोस्त हैं। तो फिर ये कैसी दोस्ती है कि खुद के बारे में हमसे बताओ ही न?"

"अच्छा ठीक है पंकज भाई।" मैने कहा__"मैं तुम सबको अपने बारे में सब कुछ बता दूॅगा। लेकिन अभी क्लास का समय है।"
"ठीक है क्लास के बाद तुम हमें अपने बारे में बताओगे।" पंकज ने कहा___"हम सब भी तुम्हें अपने अपने बारे में बताएॅगे।"
"ठीक है अब चलो सब।" मैने कहा और कुर्सी से उठ गया।

हम सब कंटीन से बाहर की तरफ आ गए। बाहर आते ही मेरी नज़र रानी पर पड़ी। वो तुरंत ही पलट कर तेज़ तेज़ क़दम बढ़ाते हुए क्लास की तरफ बढ़ी जा रही थी। मुझे समझते देर न लगी कि ये छुप कर हमारी बातें सुन रही थी। मैं उसकी इस हरकत पर मन ही मन मुस्कुराया और क्लास की तरफ बढ़ गया।

क्लास में पहुॅच कर मैं कल वाली जगह पर ही बैठने वाला था कि सहसा सुधीर ने मुझे आवाज़ दी। मैंने देखा वो मुझे अपने पास बगल वाली कुर्सी पर बैठने को कह रहा था। मैने देखा कि जिस जगह वह मुझे बैठने का कह रहा था उसके बगल में ही रानी बैठी हुई थी। ये देख कर मैने तुरंत ही सुधीर को मना कर दिया कि मैं यहीं पर ठीक हूॅ। मैने एक नज़र रानी पर डाली वो मुझे ही देख रही थी। उसने भी सुधीर को ये कहते सुन लिया था कि मैं उसके बगल में बैठ जाऊॅ। इस लिए रानी ये देख रही थी कि मैं वहाॅ पर बैठता हूॅ कि नहीं?

मुझे लगा कि अगर मैं उस जगह नहीं बैठूॅगा तो रानी यही समझेगी कि मैं उसकी वजह से वहाॅ पर नहीं बैठ रहा हूॅ। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं अब क्या करूॅ? अगर मैं ये कहता हूॅ कि मैं रानी को नहीं जानता तो फिर मुझे उस जगह पर बैठने से कोई ऐतराज़ नहीं होना चाहिए। और अगर नहीं बैठता तो रानी फिर यही समझेगी कि मैं वही हूॅ यानी उसका भाई, और मैं उससे झूॅठ बोल रहा हूॅ। इतना ही नहीं उससे कतरा भी रहा हूॅ।

मैंने देखा कि सुधीर अभी भी मुझे अपने पास बुला रहा है। मैने भी फैंसला कर लिया कि मैं उस जगह पर ही जाकर बैठूॅगा। मैं रानी को ये नहीं साबित करने देना चाहता था कि मैं ही उसका भाई राज हूॅ। इस लिए मैं बेझिझक अपनी जगह से आगे बढ़ गया और जाकर सुधीर के पास पहुॅच गया।

"यार मैं लड़कियों के पास बैठना पसंद नहीं करता हूॅ।" मैं सुधीर के बगल से बैठते हुए ज़रा मिजाज़ से कहा___"पता नहीं क्यों पर मुझे न एक अजीब सी बेचैनी सी होने लगती है।"

मैं ये सब कह सुधीर से रहा था लेकिन सुना रानी को रहा था। मैं जानता था वो मुझे ही देख रही होगी। दिल तो मेरा भी बहुत कर रहा था कि उसके इतने पास आकर अब एक नज़र उसे देख ही लूॅ मगर देखा नहीं मैंने।

"ऐसा क्यों भाई?" उधर मेरी बात के जवाब में सुधीर ने हॅसते हुए कहा__"लड़कियों के पास बैठने से बेचैनी क्यों होने लगती है तुम्हें? क्या लड़कियों से डर लगता है तुम्हें?"

"अरे नहीं यार।" मैने कहा___"ऐसी बात नहीं है। बस अपनी फितरत ही ऐसी है। लड़कियों से हमेशा दूर ही रहता हूॅ।"
"भाई मैं कल से नोटिस कर रहा हूॅ कि तुम्हारे बगल से बैठी वो लड़की हर वक्त तुम्हें ही देखती रहती है।" सुधीर ने मेरे कान के पास मुह ले जाकर धीमें लहजे में कहा___"भाई ऐसा क्या जादू कर दिया तुमने उस पर? काॅलेज में कल ही तो पहला दिन था तुम्हारा और कल ही किसी लड़की पर इतना खतरनाक जादू??"

"भाई मैने ऐसा कुछ नहीं किया है।" मुझे सुधीर की इस बात से हैरानी हुई___"और हाॅ एक बात और इस बारे में ऐसी कोई बात मुझसे नहीं करोगे तुम।"
"अरे भाई।" सुधीर चौंका___"ये क्या कह रहे हो तुम? देखो तो सही उसे। कसम से कहता हूॅ भाई उसके जैसी लड़की मैने ख्वाब में भी नहीं देखी आज तक। उसके चेहरे पर बड़ा ग़जब का नूर है भाई। इतना ही नहीं उसका चेहरा ऐसे चमक रहा है जैसे वो कोई दिव्य आत्मा हो। वैसे उसके जैसे ही तुम्हारे चेहरे पर भी नूर व तेज़ है। आख़िर ऐसी क्या बात हो सकती है भाई बताओ न?"

"तुम्हारी ऑखें ख़राब हो गई हैं।" मैने धीमे स्वर में कहा___"पता नहीं क्या अनाप शनाप बके जा रहे हो तुम?"
"मैं बक नहीं रहा भाई।" सुधीर ने उसी तरह धीमे स्वर में कहा___"बल्कि सच कह रहा हूॅ। तुम किसी से भी पूछ सकते हो क्लास में। देखो वो लड़की अभी भी तुम्हारी तरफ ही देख रही है। उसकी ऑखें बता रही हैं कि उसके अंदर तुम्हारे लिए कितना प्रेम है। काश! ऐसी किस्मत मेरी होती भाई। पर मैं जानता हूॅ कि ऐसी किस्मत हज़ार जन्म के बाद भी मुझे नहीं मिल सकती।"

"अगर तुम्हें यही बकवास करना है तो जा रहा हूॅ मैं यहाॅ से वापस।" मुझे उसकी बात से खीझ सी हुई थी।
"रुको भाई।" सुधीर ने हड़बड़ा कर कहा__"मैं अब कुछ नहीं बोलूॅगा। तुम बस यहीं पर बैठो।"

उसके बाद हम दोनो सीधे बैठ गए। मुझे महसूस हुआ कि दो ऑखें मुझे ही घूर रही हैं। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि रानी भरी क्लास में मुझे इस तरह क्यों घूर रही है? उसे सोचना चाहिये कि क्लास में सब लोग उसके बारे में क्या क्या नहीं सोचेंगे?

तभी क्लास में एक टीचर आया। हम सबने खड़े होकर उसका अभिनन्दन किया। उसके बाद टीचर ने सभी का इंट्रो लेना शुरू कर दिया। उसने सबकी तरफ निगाह दौड़ाई और मुझ पर नज़र पड़ते ही उसकी निगाह स्थिर हो गई।

"कल मैं तुमसे ही इंट्रो ले रहा था न कि बेल बज गई थी?" टीचर ने कहा__"यस तुम्हीं हो वो। चलो बेटा अपना इंट्रो दो।"

मैं अपनी जगह से खड़ा हो गया। आज मेरे अंदर कोई घबराहट जैसा भाव नहीं था।

"सबसे पहले तो आपको मेरा प्रणाम सर, आप मेरे आचार्य हैं गुरू हैं।" मैने बड़ी शालीनता से कहा___"मेरा नाम राजवर्धन है, मेरे गुरू तो मुझे राजवर्धन ही कहते हैं पर मेरे परिवार के सब लोग मुझे राज कह कर पुकारते हैं।"

मेरे इस तरह इंट्रो देने पर क्लास के कुछ लड़के व लड़कियाॅ हॅसने लगे।

"शट-अप।" टीचर ने ज़ोर से डाॅटते हुए कहा था___"तुम सबको किस बात पर हॅसी आई बताओ? इस लड़के ने मुझे प्रणाम किया और वो सब कहा इस लिए??? तुम सब सोच रहे होगे कि ये लड़का किस युग का है जो ऐसी बातें कर गया? मगर इसमें हॅसने वाली बात नहीं है। बल्कि सोचने वाली बात है। तुम सब आज वैज्ञानिक युक में हो और एक नये कल्चर के साथ आगे बढ़ रहे हो। लेकिन तुम सब ये भूल गए हो कि सबसे बड़ा कल्चर क्या होता है। आज जिस बात पर तुम्हें हॅसी आई है वो सबसे बड़ी चीज़ है जिसे आज का हर इंसान भूलता जा रहा है। एक समय था जब बेटा सुबह उठ कर सबसे पहले अपने माता पिता के पैरों को छू कर उनका आशीर्वाद लेता था और आज ऐसा है कि हर बात पर सिर्फ हैलो हाय रह खया है। शर्म आनी चाहिए तुम सबको।"

टीचर की इन बातों पर पूरी क्लास में सन्नाटा छा गया। जो लड़के लड़किया मेरी बात पर हॅसे थे उनके सिर झुक गए। जबकि__

"तो बेटे, अगर तुम्हारे गुरू तुम्हें राजवर्धन कहते हैं तो हम भी तुम्हें राजवर्धन ही कहेंगे।" टीचर ने बड़े प्यार से कहा___"आख़िर हम भी तो तुम्हारे गुरू ही हैं। तुम्हारे इस तरह इंट्रो देने से पता चलता है कि तुम ज़रूर किसी बहुत अच्छे घर के लड़के हो। तुम्हारे मात पिता यकीनन बहुत अच्छे इंसान होंगे। ठीक है बेटे तुम बैठ जाओ और हाॅ खूब मन लगा कर पढ़ाई करो। जीवन में कामयाबियाॅ तुम्हारे क़दमों में होंगी।"

मैं उनकी बात से उन्हें अभिवादन कर अपनी जगह बैठ गया। टीचर ने बाॅकी सबका इंट्रो लिया उसके बाद बेल बज गई और वो चले गए। मैने सोचा यार ये कैसी पढ़ाई चल रही है? टीचर के जाने के बाद कुछ ही देर में एक और टीचर आया। उसने पहले वाले टीचर की तरह किसी का इंट्रो नहीं लिया बल्कि उसने अपना विषय पढ़ाया और फिर वो भी चला गया। ऐसे ही क्लास चलती रही। मैने एक बार भी रानी की तरफ नहीं देखा। मैने अपने ध्यान को बस टीचर के द्वारा पढ़ाए गए चैप्टर पर ही लगाए रखा था। ख़ैर, काॅलेज की छुट्टी हुई और हम सब स्टूडेन्ट क्लास से बाहर की तरफ चल पड़े।

क्लास से बाहर जब मैं आया तो सुधीर भी मेरे साथ ही था। कुछ ही देर में वो सारे भी मेरे पास आ गए जो इसके पहले कंटीन में मेरे दोस्त बने थे। मैं आप सबको इन सभी दोस्तों का संक्षिप्त सा परिचय देना चाहूॅगा।


1, सुधीर मिश्रा, ये मेरी ही क्लास में पढ़ता है। बहुत अच्छा लड़का है। पढ़ाई में होशियार है लेकिन तबीयत से ज़रा कमज़ोर है। घर परिवार मध्यम ही है। इसका बाप किसी प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता है। इसके बाद इसकी एक बहन है जो अभी स्कूल में पढ़ती है। माॅ हाउसवाइफ ही है।

2, निखिल खन्ना, ये भी मेरी क्लास में ही है। पढ़ने में होशियार है। ऑखों में नज़र का चश्मा लगाए रखता है। थोड़ा मोटा टाइप का है। घर परिवार अच्छा है। इसका बाप पीएनबी बैंक में काम करता है। ये अपने बाप का इकलौता बेटा है। इसकी माॅ भी हाउसवाइफ है।

3, पंकज सिंह, ये मेरी क्लास में नहीं है बल्कि इसका सब्जेक्ट अलग है। पढ़ने में तेज़ है। इसके बाप का खुद का कारोबार है। इसकी दो बहने हैं। एक इससे बड़ी है जिसकी दो साल पहले शादी हो गई है और दूसरी इससे छोटी है जो अभी स्कूल में पढ़ती है। माॅ हाउसवाइफ ही है।

3, शेखर बंसल, ये पंकज की क्लास में है। पढ़ने में तेज़ है। इसका बाप पेशे से डाक्टर है। इसका एक बड़ा भाई है जो कनाडा में रहता है। बहन नहीं है। माॅ एचडीएफसी बैक में नौकरी करती है।

4, प्रिया सिन्हा, ये पंकज और शेखर के साथ ही पढ़ती है। पढ़ने में होशियार है। इसके पिता आर्मी में मेजर हैं। इसका एक बड़ा भाई है जिसकी कुछ समय पहले ही शादी हुई है। ये अपनी माॅ और भाई के साथ ही माधवगढ़ में रहती है। इसका भाई प्रेम सिन्हा माधवगढ़ में ही एक बैंक में करता है। प्रिया एक खूबसूरत लड़की है लेकिन ज्यादा किसी से बात नहीं कर पाती क्योंकि इसका स्वभाव ज़रा शर्मीला है।


5, साक्षी सिंह, ये मेरी ही क्लास में पढ़ती है। ऑखों में नज़र का चश्मा लगाती है। दिखने में सुंदर है। थोड़ा गुस्सैल स्वभाव की है। इसका बाप एयरफोर्स में है। इसका एक छोटा भाई है जो स्कूल में पढ़ता है। माॅ इसकी डाक्टर है और खुद का एक क्लीनिक चलाती है।

6, नितिन शर्मा, ये मेरी ही क्लास में है। इसका शरीर थोड़ा पतला है। इस लिए ये हमेशा ढीले कपड़े ही पहनता है ताकि इसके शरीर का पतलापन ज्यादा समझ में न आए किसी को। पढ़ने में तेज़ है। माॅ विधवा है जो किसी प्राइवेट कंपनी में काम करती है। इसका इसकी माॅ के अलावा और कोई नहीं है।

7, नकुल चौहान, ये कामर्स का स्टूडेन्ट है। इसके बाप की एक बड़ी सी फर्नीचर की दुकान है। माॅ हाउसवाइफ है। इसकी एक बड़ी बहन है जिसकी शादी पिछले साल हो गई है।

8, शीतल वर्मा, ये नकुल की क्लास में ही है। थोड़ी मोटी है लेकिन दिखने में सुंदर है। इसकी ऑखों पर भी नज़र का चश्मा लगा रहता है। इसके बाप का इम्पोर्ट एक्सपोर्ट का बिजनेस है। इसके दो भाई हैं जो इससे बड़े हैं। उन दोनो की शादी हो चुकी है। माॅ हाउसवाइफ है।

9, रागनी तिवारी, ये साॅवली सी है लेकिन इसकी पर्शनालिटी ग़जब की है। ये मेरी ही क्लास में है। इसका बाप पुलिस में सब-इंस्पेक्टर है। माॅ हाउसवाइफ है। एक भाई है जो इससे छोटा है और अभी स्कूल में पढ़ता है।

10, आदित्य सोनी, ये भी शीतल और नकुल की क्लास में है। इसके बाप की ज्वैलरी की बड़ी भारी दुकान है। माॅ हाउसवाइफ है। एक जुड़वा बहन है जो इसके साथ ही पढ़ती है। उसका नाम परिधि सोनी है।

11, ऑचल श्रीवास्तव, ये प्रिया सिन्हा व पंकज की क्लास में है। दिखने में खूबसूरत है। इसके बाप का प्रापर्टी का बिजनेस है। माॅ हाउसवाइफ है। एक भाई है जो पुणे में ज्वाब करता है।

दोस्तो ये था इन लोगों का संक्षिप्त परिचय।


"भाई क्यों न हम सब लोग बगल वाले पार्क में चलें।" सुधीर ने कहा___"अभी तो शाम होने में काफी वक्त है। वहाॅ पर तुम हम सबको अपने बारे में बता भी देना। क्यों दोस्तो क्या कहते हो तुम सब?"

सुधीर की इस बात से सबने एक साथ हाॅ कहा।

"चलो ठीक है।" मैने कहा___"लेकिन हम ज्यादा समय तक पार्क में नहीं रुकेंगे। क्योंकि लड़कियों के लिए फिर शाम हो जाएगी जिससे उनको अपने घर जाने में परेशानी हो जाएगी।"

"सही कहा भाई।" निखिल ने कहा___"हमारे पास एक से डेढ़ घंटे का समय है। इस लिए भाई के बारे में जान कर और अपने अपने बारे में हम सब एक दूसरे को बता निकल लेंगे। अब तो हम सब दोस्त ही हैं इस लिए जान पहचान तो होती ही रहेगी।"

"चलो फिर देर मत करो।" शीतल ने कहा__"मुझे घर भी जल्दी जाना पड़ेगा नहीं तो माॅ बहुत डाॅटेगी मुझे।"

हम सब एक साथ आगे बढ़ने ही वाले थे कि एक आवाज़ ने हम सबको रुकने पर मजबूर कर दिया। मुझे वो आवाज़ पहचानने में देर न हुई। ये रानी की आवाज़ थी।

"रुक जाइये आप सब।" रानी ने आवाज़ दी थी, पास आकर मुझसे बोली___"क्या इस ग्रुप में मेरे लिए भी कोई जगह है?"

रानी ने इतनी मासूमियत से ये कहा था कि उसका एक एक शब्द मेरे दिल में उतरता चला गया। मैं जानता था कि वो बेचारी मेरे करीब आना चाह रही थी। मेरी असलियत मेरे ही मुख से जानना चाहती थी। मुझे उस पर तरस भी आया और प्यार भी।

"जी बिलकुल जगह है।" मैने संतुलित भाव से कहा___"पर ये कोई ग्रुप नहीं है। ये एक रिश्ता है, दोस्ती का, भावनाओं का।"
"हाॅ जी।" रानी ने कहा___"मेरा मतलब वही है कि इस दोस्ती के रिश्ते में क्या मेरे लिए भी कोई जगह है? मुझे भी आप सबके बीच उसी रिश्ते से रहना है।"

"अच्छी बात है।" मैने कहा___"अब से आप भी हमारे साथ हैं, क्यों दोस्तो?"

मेरी इस बात से सबने एक साथ सहमति जताई। उसके बाद हम सब पार्क की तरफ बढ़ गए। सुधीर बार बार मुझे देख कर मुस्कुरा देता था। मुझे उसका मुस्कुराना अच्छी तरह समझ में आ रहा था पर मैंने उसे कुछ कहा नहीं। ख़ैर, कुछ ही देर में हम सब पार्क में पहुॅच गए। मैं सोच रहा था कि रानी के सामने अब मैं इन लोगों को क्या और कैसे अपने बारे में बताऊॅगा?


दोस्तो अपडेट हाज़िर है,,,,,,,,,

मैने सोचा कि छोटा सा ही सही पर इसका भी आज एक अपडेट दे ही दूॅ।
मस्त कॉलेज लाइफ एंजॉय कर रहा है अपना हीरो।
 
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