राज-रानी (बदलते रिश्ते)
""अपडेट"" ( 11 )
अब तक,,,,,,,,
"तुम जिस काम को करने यहाॅ आए हो उस काम में तुम कभी सफल नहीं हो सकते।" मानव आकृति ने कहा__"क्यों कि तुम उस लड़की को हाथ भी नहीं लगा सकते। अगर हाथ लगाने की कोशिश करोगे तो जल कर खाक़ में मिल जाओगे। लेकिन उससे पहले तो तुम दोनो को मुझसे सामना करना पड़ेगा तभी इस घर के सदस्यों तक पहुॅच पाओगे।"
"लेकिन तुम हो कौन?" महेन्द्र ने कहा__"और इस घर के सदस्यों से तुम्हारा क्या वास्ता है?"
"इस बात का पता बहुत जल्द ही तुम्हें चल जाएगा।" मानव आकृति ने कहा__"अब जाओ यहाॅ से। ये तुम्हारे लिए सत्य की राह पर चलने का आख़िरी अवसर है, इसके बाद भी अगर तुम दोनो ने इस घर के सदस्यों की तरफ बुरी नीयत से देखा तो तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।"
महेन्द्र सिंह को लगा इससे बहस करने का कोई मतलब नहीं है। दूसरी बात वो दोनो समझ भी चुके थे कि इससे टकराना अभी उनके बस का नहीं है। अभी वो इतने सक्षम नहीं हुए थे कि वो इस जैसे किसी रहस्यमय इंसान का मुकाबला कर सकें। ये सोच कर उन दोनो ने यहाॅ से चुपचाप निकल जाना ही बेहतर समझा।
दोनो चुपचाप वहाॅ से निकल गए जबकि धुएं की मानव आकृति भी देखते ही देखते अपने स्थान से गायब हो गई। इन सबके जाते ही वहीं एक कोने में दीवार के उस पार छुपा अशोक सामने आ गया। उसके चेहरे पर बारह क्या बल्कि पूरे के पूरे चौबीस बजे हुए थे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा था उसकी आॅखों के सामने?? महेन्द्र और रंगनाथ को तो वह अच्छी तरह पहचान गया था किन्तु वह यह देखकर चकित था कि वो दोनो ऐसी शक्तियाॅ जानते थे और उसका प्रयोग भी उस मानव आकृति पर कर रहे थे। ये अलग बात है कि वो दोनो उस मानव आकृति से पार नहीं पा रहे थे। अशोक तो उस मानव आकृति को देख कर आश्चर्यचकित था और सोच रहा था कि ये क्या बला है? उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि ये सब किस लिए हो रहा था? दिलो दिमाग़ कुंद सा पड़ गया था उसका।
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अब आगे,,,,,,,,
आज अमावश्या थी। आज की रात हर कोई अपना अपना खेल खेलने को जैसे पूरी तरह से तैयार था। एक तरफ जहाॅ महेन्द्र सिंह व रंगनाथ दोनो मिलकर किसी भी तरह से आसुरी शक्तियों को पाने के लिए आज अमावश्या की रात किसी ऐसी कन्या को महाशैतान के सुपुर्द करने की कोशिश में लगे थे जो या तो अमावश्या को जन्मी हो या फिर पूर्णिमा को। इसके लिए वो किसी भी हद तक जा सकते थे। तो वहीं दूसरी तरफ शैतानों की दुनियाॅ में एक पतिव्रता औरत अपने पति को पुनः जीवित करने के लिए राज जैसे दिव्य बालक के साथ वो सब कुछ करने को तैयार थी जो काम करने के लिए आम हालात में कोई भी पतिव्रता स्त्री सोच भी नहीं सकती थी। किन्तु ये भी कदाचित् अपने पति के लिए उसका अगाध प्रेम ही था।
एक तरफ जहाॅ शैतानों का वर्तमान सम्राट विराट अपनी अभिलाषाओं व महत्वाकांक्षाओं की पूर्ती के लिए अपने कट्टर शत्रु वेयरवोल्फ जैसे शातानों से समझौता व मित्रता कर राज जैसे उस दिव्य व ईश्वरी शक्ति रखने वाले बालक से जंग करने को तैयार था जिसको हासिल कर लेने से वह संपूर्ण पृथ्वी पर सिर्फ वैम्पायर्स की ही सत्ता कायम कर सकता था। तो वहीं दूसरी तरफ एक माॅ व एक बहन का निश्छल प्रेम था जिसका करुण क्रंदन देवताओं का ही बस क्यों बल्कि ईश्वर का भी हृदय विदीर्ण कर सकता था। एक अपने बेटे के विरह में आज तेरह सालों से तड़प रही थी तथा अपने बेटे के लिए पागल सी हो गई थी। तो वहीं एक बहन थी जो वर्षों से अपने ही भाई की प्रेम दीवानी बन बैठी थी। ईश्वर ही जाने किसके भाग्य में क्या लिखा था लेकिन ये तो कदाचित् सभी जानते हैं कि अंततः जीत सत्य व प्रेम की ही होती है। मगर इस जीत के पहले क्या क्या घटित हो जाएगा इसका फैसला वक्त के सिवा कौन कर सकता था?
इसमें कोई शक़ नहीं और ना ही ये कोई मामूली बातें थी किन्तु आज जो कुछ भी होने जा रहा था, उस सबको देखने के लिए आकाश में कहीं देवता भी उपस्थित हो चुके होंगे।
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महेन्द्र और रंगनाथ उस मानव आकृति से परास्त होकर खाली हाॅथ वापस घर आ गए थे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि अपने कार्य की सिद्धि के लिए वह अब क्या करें? वो दोनो इस बात से तो हैरान थे ही कि अशोक के घर में धुएॅ की वो मानव आकृति क्यों और कहाॅ से आई थी लेकिन वो इस बात से भी हैरान थे कि अशोक की बेटी उन्हें हर कमरे में ढूॅढ़ने पर भी नहीं मिली थी। तो आख़िर वह गई कहाॅ? अगर वह नहीं मिली और उनके हाथ नहीं लगी तो भला वो कैसे अपने कार्य को पूरा कर सकेंगे? उनके दिमाग़ में उस मानव आकृति की वो बातें भी गूॅज रही थी कि इस घर के किसी भी सदस्य को गलत नीयत से छूना भी नहीं वरना अच्छा नहीं होगा। महेन्द्र व रंगनाथ इस बात से भयभीत भी हो गए थे। अब अगर उन्हें अशोक की बेटी रानी मिल भी जाती तो कदाचित् वो उसे हाथ भी न लगाते। तो फिर कैसे वो अपने कार्य को पूरा कर सकेंगे????
एकाएक ही महेन्द्र सिंह के दिमाग़ की बत्ती जल उठी। उसका हतास हो चुका चेहरा अचानक ही मारे खुशी के चमकने लगा था। रंगनाथ उसी को देख रहा था। अपने मित्र को यूॅ अचानक खुश होते देख उससे रहा न गया।
"क्या बात है महेन्द्र?" रंगनाथ ने चौंकते हुए कहा__"तुम अचानक इस तरह खुश क्यों हो गए? आख़िर किस बात की खुशी हो गई है तुम्हें यूॅ अचानक? जबकि हम इस वक्त गहन परेशानी में हैं। हमें समझ नहीं आ रहा कि कैसे हम अपने कार्य को पूरा करें? आज अमावश्या है और हमें जल्द से जल्द अमावश्या या पूनम को जन्मी किसी कुवारी कन्या का प्रबंध करना होगा। वरना हम वो हासिल नहीं कर सकेंगे महेन्द्र जिसके लिए हमने इतना कुछ कर डाला है।"
"चिन्ता क्यों करते हो यार?" महेन्द्र सिंह ने उसके कंधे को थपथपा कर कहा__"रानी नहीं मिलेगी तो क्या हुआ, मेरी अपनी बेटी तो है ना? देखो न.... कैसा संजोग है? मेरी जो बेटी अपने ननिहाल से कभी अपने माॅ बाप के पास नहीं आती थी, आज वह यहीं है। अपने माॅ बाप के घर में। ज़रा सोचो रंगनाथ, ऐसा क्यों हुआ? इसका मतलब कि ऊपर वाला हमारे साथ है। उसने हमारी इसी इच्छा की पूर्ति के लिए मेरी बेटी को यहाॅ भेजा है। ताकि हम उसे आसानी से ले जा सकें और महाशैतान को सुपुर्द कर सकें।"
"लेकिन महेन्द्र वो तुम्हारी बेटी है यार।" रंगनाथ ने कहा__"इस काम के लिए तुम भला कैसे अपनी ही बेटी की बलि दे सकते हो? क्या तुम्हारे दिल में अपनी बेटी के लिए ज़रा सा भी प्यार व स्नेह नही?"
"अरे तुम कौन सी बेटी की बात कर रहो हो रंगनाथ?" महेन्द्र सिंह मानो फट पड़ा था, बोला__"क्या उस बेटी की, जिसने मुझसे बात तक नहीं की? अरे बात करने की तो बात दूर उसने तो मेरी तरफ देखना भी गवारा नहीं किया। आज इतने बरस बीत गए, उसने कभी ये भी जानने की कोशिश नहीं की कि उसके माॅ बाप व भाई किस हाल में हैं? माॅ भाई का तो छोंड़ो रंगनाथ, उसने तो अपने बाप तक से बैर बना कर रखा है। उस बाप से जिसका कहीं कोई कसूर ही नहीं है। मैं तो खुद ही आज बरसों से इस बात से हर पल जल रहा हूॅ कि जिस बीवी को ऊम्र भर मैने दिलो जान से प्यार किया उसने अपने ही बेटे को अपना पति मान लिया और अपनी हवस को प्यार का नाम देकर दिन रात उसके साथ अपना मुह काला करती रही। कोई मेरे अंदर झाॅक कर देखे रंगनाथ....यहाॅ सिर्फ आग और नफ़रत के कुछ नहीं मिलेगा किसी को। ये आग और ये नफ़रत मेरे अपनों ने ही मुझे तोहफे में दी है। ये मेरे अंदर तब तक रहेगी मेरे यार जब तक मेरी साॅसें चलेंगी। एक हवस के लिए अपने ही बेटे की रंडी बन गई और एक अपने जिस्म को इन हवस के कीड़ों से बचाने के लिए हम सबसे नाता तोड़ लिया। रह गया मैं....मेरे हिस्से में क्या आया? बताओ रंगनाथ....मुझे क्या मिला? अरे नफ़रत की आग में जलने के लिए मुझे अकेला छोंड़ दिया सबने। इधर उधर मुह मारते हुए कुत्ते जैसी हालत कर दी गई है मेरी"
महेन्द्र सिंह भावना के आवेश में जैसे बहता चला गया था। उसे खुद नहीं पता था कि दिल में उमड़ते तूफान के कारण वह क्या क्या कहे चला जा रहा था। रंगनाथ को आज पहली बार पता चला कि उसका दोस्त अंदर से कितना दुखी है। उसने सहानुभूति से उसके कंधे पर हाथ रख हल्के से दबाया।
"दुखी मत हो मित्र।" फिर उसने कहा__"ये संसार सागर है, यहाॅ हर तरह के प्राणी पाए जाते हैं तथा हर तरह के लोग होते हैं जिन्हें नाना प्रकार के सुख व दुख मिलते हैं। ख़ैर छोड़ो इस बात को, ये बताओ कि अब क्या करना है?"
"करना क्या है।" महेन्द्र ने पत्थर जैसे कठोर स्वर में कहा__"फैसला हो चुका है मित्र। अशोक की बेटी नहीं मिली तो क्या हुआ मेरी बेटी पूनम ही सही। हम आज रात उसे ही उठा कर ले जाएॅगे। जिस बेटी के दिल में अपने पिता के लिए ऐसी सोच व भावना है उसका ऐसे काम के द्वारा चले जाना ही बेहतर है। मेरे अंदर ऐसे किसी रिश्ते के लिए अब कोई मोह नहीं रह गया जो मुझे अपना ही ना समझता हो।"
"अगर तुमने ये सोच ही लिया है तो फिर ऐसा ही करेंगे महेन्द्र।" रंगनाथ ने कहा__"किन्तु ये सब हम करेंगे कैसे?"
"मैने सब इन्तजाम किया हुआ है।" महेन्द्र ने कहा__"सबके सो जाने के बाद हम चुपके से पूनम के कमरे में दाखिल होंगे। उसके बाद उसे क्लोरोफाॅम सुॅघा कर बेहोश कर देंगे। उस हालत में उसे यहाॅ से ले जाने में कोई परेशानी नहीं होगी हमें।"
"और अगर पूनम ने कमरे के दरवाजे को अंदर से लाॅक किया हुआ होगा तो?" रंगनाथ ने कहा__"दूसरी बात तुम्हारा साला भी तो है, अगर वह उस समय जग रहा होगा तो दिक्कत हो जाएगी। और सबसे महत्वपूर्ण बात, बाहर द्वार पर लगे हुए हमारे आदमियों का क्या? उनके सामने से भला हम कैसे पूनम को उस तरह ले जाएॅगे?"
"वो सब मेरे आदमी हैं मित्र।" महेन्द्र सिंह ने कहा__"वो इस सब को देखेंगे ज़रूर लेकिन अपनी ज़बान नहीं खोलेंगे किसी के सामने। रही बात पूनम के कमरे की तो इस घर के सभी कमरों की एक एक चाभी मेरे पास है।"
"चलो ये तो ठीक है लेकिन सुबह जब सबको पता चलेगा खासकर तुम्हारे साले को तो क्या होगा?" रंगनाथ ने कहा__"पूनम के साथ साथ जब वह हम दोनों को भी यहाॅ से गायब पाएगा तो हज़ारों सवाल खड़े हो जाएंगे सबके मन में। तुम्हारी खुद की बीवी और तुम्हारा बेटा खुद सवाल खड़े कर सकते हैं। माॅ आख़िर माॅ होती है, अगर मोहिनी भाभी को ये पता चल गया कि उनकी बेटी को उनके पति यानी बाप ने ही गायब कर दिया है तो सोचो क्या होगा?"
"एक काम करते हैं।" महेन्द्र ने कुछ सोचते हुए कहा__"पूनम के साथ साथ हम साले को भी बेहोश करके उठा लेते हैं।"
"उससे क्या होगा?" रंगनाथ ने कहा__"इस से तो हमारे लिए समस्या ही हो जाएगी। हमें दो दो लोगों का बोझ उठाना पड़ जाएगा।"
"मेरा प्लान ये है कि पूनम के साथ साथ जब उसका मामा भी गायब हो जाएगा तो पूनम के गायब करने का शक़ मामा पर ही जाएगा।" महेन्द्र ने कहा__"क्योंकि कोई भी ब्यक्ति ये शक़ नहीं करेगा कि एक बाप ने अपनी बेटी को गायब किया बल्कि इस बात पर ज्यादा शक़ करेंगे कि मामा ने ही अपनी भाॅजी को गायब किया है। दूसरी बात, इस सबके बाद जब हम वापस आएॅगे और हमें यहाॅ इन सबके द्वारा इस सबका पता चलेगा तो हम खुद भी पूनम के मामा पर ही इसका आरोप लगाएॅगे। यहाॅ तक कि पुलिस केस भी करेंगे। और सबसे महत्वपूर्ण बात किसी के पास कोई सबूत तो होगा नहीं कि ये सब हमने किया है। हमारा पक्ष ज्यादा मजबूत रहेगा मित्र, इस लिए फिक्र की कोई बात नहीं है।"
"ठीक है फिर।" रंगनाथ ने कहा__"हम ऐसा ही करते हैं।"
"बिलकुल मित्र।" महेन्द्र ने सहसा कठोरता से कहा__"अपने बाप के लिए बेटी और साले को अपना बलिदान देना ही चाहिए।"
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उधर शैतानों के सम्राट ने अपने नये मित्र वेयरवोल्फ किंग यानी अनंत के साथ अपनी अपनी सेना के साथ मोर्चा सम्हाल लिया था। विराट ने नील के माध्यम से उस महापंडित को बुला लिया था। उससे पूछा गया था कि वो बालक उसके बच्चों के साथ कब और किस रास्ते से आएगा? महापंडित ने रास्ते और समय की जानकारी दे दी थी विराट को। अतः विराट ने अनंत के साथ अपनी अपनी सेना को उन रास्तों पर इस तरह लगा कर मोर्चा सम्हाला हुआ था कि आम सूरत में इस सबका किसी को आभास तक न हो सके कि उनके आस पास कोई मौजूद है।
आज क्योंकि अमावश्या थी इस लिए शाम ढलते ही रात का अॅधेरा गहराने लगा था। इस अॅधेरे में किसी आम इंसान को कुछ दिख भी नहीं सकता था कि यहाॅ पर आज कैसे कैसे शैतानों ने अपना डेरा जमाया हुआ है? ख़ैर ये तो शैतान थे, इनके लिए तो अॅधेरा ही सबकुछ होता है।
"महाराज विराट आप अपनी बात से मुकर मत जाइयेगा।" शिविर के अंदर पत्थर के ऊॅचे आसन पर बैठे वेयरवोल्फ किंग अनंत ने कहा था__"आपने वचन दिया है कि उस बालक के मिल जाने पर आप अपनी बेटी मेनका की शादी मेरे बेटे जयंत से करेंगे।"
"मुझे आपकी शर्त और अपना वचन अच्छी तरह याद है सम्राट अनंत।" विराट ने प्रभावशाली लहजे में कहा__"आप बिलकुल भी फिक्र न करें और ना ही आप मुझ पर किसी तरह का संदेह करें। हमारी ये मित्रता हमारे बच्चों की शादी के बाद एक अटूट रिश्ते में बदल जाएगी। आप मेरी इस बात का यकीन करें।"
"मुझे आप पर यकीन है महाराज।" अनंत ने कहा__"इसी लिए तो आज हम एक दूसरे के साथ हैं। बस एक बार वो बालक और आपके वो बच्चे हमारे हाॅथ लग जाएॅ।"
"ज़रूर हाॅथ लेगेंगे सम्राट अनंत।" विराट ने कहा__"हमने इतना पुख़्ता इन्जाम कर रखा है कि उनमे से कोई भी हमसे बच कर कहीं जा ही नहीं सकेगा।"
"बिलकुल ऐसा ही होगा महाराज।" अनंत ने कहा__"अब हमें भी यहाॅ से मैदान ए जंग की तरफ चलना चाहिए।"
"जी आपने बिलकुल ठीक कहा।" विराट ने अपने आसन से उठते हुए कहा__"चलिए चलते हैं।"
इसके बाद दोनो साथ ही शिविर के बाहर की तरफ निकल गए। यहाॅ पर एक विशेष बात ये थी कि कहीं पर भी रोशनी के लिए कोई मशाल वगैरह नहीं जलाया गया था, कदाचित् इस लिए कि मशाल की रोशनी से उजाला होता जिसके कारण किसी को भी पता हो सकता था कि यहाॅ पर कुछ लोग मौजूद हैं।
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उधर शैतानों के पहले किंग सोलेमान की पत्नी मारिया अपने पत्थर बने पति के पास कुछ विशेष तैयारियाॅ कर रही थी। आज वह बेहद खुश नज़र आ रही थी। जिस जगह सोलेमान को संदूख में रखा गया था उस जगह को आज सजाया गया था। सोलेमान और मारिया के विशाल और भव्य शयन कक्ष को आज बड़े ही बेहतरीन तरीके से मारिया ने खुद अपने हाथों से सजाया था। वह चाहती थी कि जब उसके पति सोलेमान जीवित होकर उठें तो वह उन्हें बड़े प्यार व सम्मान के साथ इस शयन कक्ष में लाए और खुद नई नवेली दुल्हन बन कर अपने आपको को सोलेमान की बाहों में सौंप दे।
बड़ी अजीब और सोचने वाली बात थी कि जहाॅ बाॅकी सब उस बालक यानी राज को हाॅसिल करने के लिए मैदान ए जंग में पहुॅच चुके थे वहीं मारिया अभी राजमहल में ही इन सबकी तैयारियों में लगी हुई थी। उसके सुंदर चेहरे पर आज एक अलग ही नूर था। एक अलग ही आत्मविश्वास था अपने पति को पुनः जीवित पा लेने का।
ये मारिया का पागलपन था या अपने पति के प्रति उसका अगाध प्रेम। एक ऐसा प्रेम जिसमें आज वह बावली सी नज़र आ रही थी। उसे इस बात का ख़याल तक न था कि अपने पति को पुनः जीवित करने के लिए उसे उस बालक(राज) को पहले हासिल करना होगा, उसके बाद उसे यहाॅ अपने पति के सामने लाकर उस बालक के साथ निर्वस्त्र होकर संभोग करना होगा। तत्पश्चात् उस बालक के वीर्य को अपने पति के पत्थर बने शरीर पर छिड़कना होगा। ये तभी संभव हो सकता था जब वह राज को पाने के लिए इस राजमहल से बाहर निकलती। दूसरी महत्वपूर्ण बात, वह राज को कैसे इस बात के लिए तैयार कर लेती कि वह उसके साथ संभोग करे और उसे अपना वीर्य दे ताकि वह उसके वीर्य को अपने पति के ऊपर छिड़क कर उसे पत्थर से पुनः सजीव कर सके?
मारिया की मानसिक अवस्था और उसकी गतिविधियों को देखकर तो ऐसा ही लगता था जैसे उसे इस सबकी कोई चिन्ता ही न हो। जैसे ये सब उसके लिए उसी तरह सहज व सरल था जैसे सामने रखी थाली से भोजन को निवाला बना बना कर खा जाना।
सारी तैयारियाॅ संपन्न कर लेने के बाद मारिया अपने पति के पास आ गई। नीचे फर्स पर एक बड़ा सा गोला बनाया था उसने। ऐसा लगता था जैसे लोग तंत्र मंत्र के लिए ज़मीन पर कोई गोल चक्र जैसा बनाते हैं। मारिया उस गोल चक्र के सामने आसन जमा कर बैठ गई। चक्र के प्रत्येक खानों में कुछ चीज़ें रखी हुई थी, तथा बीचो बीच काले रंग का कोई पत्थर सा रखा हुआ था। जिस पर कोई आकृति बनी हुई थी।
मारिया उस चक्र के पास ध्यानावस्था में बैठ गई। कुछ ही देर में उसके माथे के पास एक तेज़ रोशनी जैसा प्रकाश उत्पन्न हुआ जो उसके माथे के पास ही गोल गोल घूम रहा था। लगभग दो मिनट बाद मारिया के माथे के पास गोल गोल घूमता वो प्रकाश मारिया के माथे पर ही विलीन हो गया। इसके साथ ही मारिया ने अपनी आॅखें खोल दी।
मारिया के चेहरे पर एक चमक आ गई थी तथा होठों पर एक रहस्यमयी मुस्कान फैल गई थी। उसने तुरंत ही उठ कर पत्थर बने अपने पति की तरफ देखा और फिर मुस्कुराते हुए ही कहा__"मेरे सरताज! बहुत जल्द आप फिर से जीवित हो जाएॅगे। उसके बाद फिर से हमारा प्रेम मिलन होगा। लेकिन उसके लिए आप अभी कुछ समय तक इन्तज़ार कीजिए। मुझे यहाॅ से अब जल्द ही जाना होगा। मैं इस राजमहल को सुरक्षा कवच पहना कर जा रही हूॅ। मेरा इन्तज़ार कीजिएगा।"
ये कह कर मारिया ने सोलेमान के होठों को चूमा उसके बाद राजमहल के बाहर की तरफ बढ़ गई। बाहर आकर उसने अपने हाथों को हवा में फैलाया और राजमहल की तरफ झटक दिया। परिणामस्वरूप उसके हाथों से बिजली की कई चिंगारियाॅ सी निकली और समूचे राजमहल के ऊपर बिखर कर लोप हो गईं। ये देख मारिया मुस्कुराई और फिर पलट गई। खड़े खड़े ही उसने अपनी आॅखें बंद की और उस जगह से गायब हो गई।
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जैसा कि रानी ने कहा था वैसा ही किया गया था। यानी सारे घर को सुगंधित फूलों से सजा दिया गया था। घर के मुख्य दरवाजे से लेकर दूर मेन सड़क तक फूल बिछा दिये गए थे। अशोक अपनी बेटी की इस इच्छा को भला कैसे टाल देता?? आज बरसों बाद तो उसने अपनी बेटी के चेहरे पर इतनी ज्यादा खुशी देखी थी। बेटी को खुश देख कर वह खुद भी बेहद खुश हुआ था किन्तु इस खुशी की वास्तविकता से आज वह बुरी तरह चिन्तित व परेशान भी हो गया था। उसकी बेटी अपने ही भाई से अगाध प्रेम करने लगी थी। उस भाई से जिसका इस दुनियाॅ में कहीं कोई वजूद उसकी समझ में नहीं था। किन्तु वह भला क्या जानता था कि जहाॅ कोई उम्मीद नहीं होती दरअसल हर उम्मीद वहीं पर कायम होती है।
भाई के प्रेम का ये पागलपन ही था जिसकी वजह से आज रात ये घर फूलों से सजा हुआ था। अशोक ने महसूस किया था कि आज अगर वह रानी की इस बात को नहीं मानता तो शायद उसकी बेटी कोई अनर्थ कर बैठती। पर कहते हैं ना कि नियति के सामने किसी की नहीं चलती। दुनियाॅ में जिस पल जो होना है वह हर कीमत पर होकर ही रहेगा। फिर चाहे भले ही इसके बाद किसी का सर्वस्व बिगड़ जाए। कदाचित् ये एहसास अशोक को भी हो चुका था, किन्तु मानव प्रवत्ति ऐसी होती है कि सब कुछ जानते बूझते हुए भी वह वही करने लग जाता है जो उससे हो ही नहीं सकता।
अपने कमरे में आदमकद आईने के सामने बैठी रानी खुद को जैसे किसी दुल्हन की तरह सजाने में लगी हुई थी। उसके चेहरे पर इतना तेज़ और इतना नूर इसके पहले कभी भी देखने को नहीं मिला था। खुदा जाने क्या बात थी मगर ऐसा लगता था जैसे कोई अलौकिक तेज़ व शक्ति उसमें समा गई थी।
कमरे के दरवाजे पर खड़ी सुमन जाने कब से उसे यूॅ सजते सवॅरते हुए देखे जा रही थी। उसका चेहरा रानी की तरफ ही था किन्तु उसकी नज़रें जैसे कहीं खोई हुई थीं। उधर रानी का ध्यान तो खुद को सजाने पर ही था। उसे पता ही नहीं था कि सगी माॅ से भी बढ़ कर प्यार व स्नेह करने वाली उसकी सौतेली माॅ कब से उसे सजते सवॅरते हुए देख रही थी। दूध में हल्के केसर मिले हुए सफ्फाक़ बदन पर लाल रंग की साड़ी, उसी से मैच करता हुआ ब्लाऊज, दोनो हाॅथों में लाल रंग की ही चूड़ियाॅ जिनके बीच बीच में लाल रंग के ही थोड़े मोटे से कंगन थे। कानों में सोने के झुमके, नाॅक में सोने की ही बेसर टाइप की नथुनी, माॅग में सोने की गुच्छेदार लरी। गले में सोने का बड़ा सा हार जिसके बीच में हीरा जड़ा हुआ था। इन सबके बीच दो ही चीज़ों की कमी थी। माॅग में लाल रंग का सिंदूर और गले में मंगलसूत्र। मगर इन दो कमियों को पूरा करना उसके बस में न था। ये तो उसी के बस में था जिसे "पति परमेश्वर" कहा जाता है। और वो पति परमेश्वर कौन था इसका पता ऊपर बैठे परमेश्वर के सिवा कौन जान सकता था? ख़ैर, अभी तो किसी खूबसूरत दुल्हन की तरह सजी थी रानी। किन्तु इस वक्त वह कुछ परेशान सी दिख रही थी। इसकी वजह उसके ब्लाऊज की चैन थी। वह बार बार अपना हाॅथ पीछे ले जाकर ब्लाऊज की चैन को ऊपर खींचने की कोशिश कर रही थी। पर वह उससे ऊपर हो ही नहीं रहा था। नया ब्लाऊज था इस लिए शायद उसकी चैन कहीं फॅसी हुई थी। मासूम सी, बेकसूर सी और ज़रा परेशान सी वह चैन को ऊपर खींचने की नाकाम कोशिशों में लगी हुई थी।
दरवाजे पर खड़ी सुमन का ध्यान सहसा भंग हुआ और उसकी नज़र रानी पर पड़ी। उसे अपने ब्लाऊज की चैन बंद करते देख पहले तो वह चौंकी फिर सहसा ही मुस्कुरा उठी। अपनी मासूम सी और पागल सी बेटी पर उसे बड़ा प्यार आया। उसे चैन में उलझी देख वह तुरंत ही दरवाजे के अंदर की तरफ बढ़ कर रानी के पास पहुॅची।
आदमकद आईने में रानी ने जब अपने पीछे अपनी माॅ को देखा तो चैन को ऊपर खींचने में उलझा हुआ उसका हाॅथ रुक गया। आईने में अपनी माॅ को बड़े गौर से अपनी तरफ देखते देखा तो वह अनायास ही लजा गई। शर्म और हया की लाली से उसका चेहरा और भी लाल होता चला गया। उसकी नज़रें झुकती चली गईं तथा गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंठ थरथरा उठे।
"कितनी सुंदर लग रही है मेरी बेटी।" उसे इस तरह लजाते हुए देख सुमन ने मुस्कुराते हुए किन्तु अपनी आॅख में से एक उॅगली से काजल निकाल कर रानी के कान के पीछे साइड लगाते हुए कहा__"किसी की नज़र न लगे।"
रानी कुछ बोल न सकी, हाॅ इतना अवश्य हुआ कि उसकी शर्म और भी गहराती चली गई। उसका एक हाॅथ अभी भी उसकी पीठ पर उसी ब्लाऊज के चैन पर था।
"हाए! मेरी बेटी तो बुरी तरह शर्माए जा रही है।" सुमन ने रानी के सामने आकर उसकी ठुड्डी को अपने हाथ की उॅगलियों से ऊपर की तरफ ठेलते हुए कहा__"लेकिन अपनी माॅ से भला क्या शर्माना?"
"माॅ प्लीज।" रानी के होठों से बड़ी मुश्किल से निकला था।
"क्या हुआ?" सुमन हॅस पड़ी__"अच्छा चल कोई बात नहीं। और ये क्या तेरे ब्लाऊज की चैन कैसे खुली हुई है पीछे?"
"माॅ वो...वो चैन ऊपर आ ही नहीं रही है मुझसे।" रानी ने भोलेपन से किन्तु परेशानी जताते हुए कहा__"पता नहीं कैसी चैन है ये?"
"रुक मैं देखती हूॅ।" सुमन ने मुस्कुराते हुए कहा और उसकी पीठ की तरफ आ गई। रानी ने चैन पर से अपना हाॅथ हटा लिया।
"अरे वाह! आज तो मेरी बेटी ने अंदर ब्रा भी पहना हुआ है।" सुमन ने रानी को छेंड़ते हुए कहा__"पहले तो कभी नहीं पहनती थी। आज ऐसी क्या खास बात है?"
"माॅ आप ये....।" रानी तुरंत ही खड़ी हो गई थी। उसे सुमन की इस बात से बेहद शर्म महसूस हुई। उससे आगे कुछ कहा न गया।
"अरे तो इसमें क्या हुआ बेटी?" सुमन ने प्यार से कहा__"सब लड़कियाॅ पहनती हैं। तूने आज पहना तो क्या हो गया? अच्छा ये सब छोड़, ला मैं तेरे ब्लाऊज की चैन ऊपर कर देती हूॅ।"
सुमन के कहने पर रानी बोली तो कुछ न किन्तु स्टूल पर वापस ज़रूर बैठ गई। सुमन अपनी बेटी के इस तरह शरमाने पर मन ही मन हॅस रही थी। रानी बिलकुल छुई मुई सी बन गई थी। उसे देख सुमन को अपने बचपन की याद आ गई। वो ग़रीब थी, रानी की ऊम्र में उसने ब्रा पहनने की कल्पना भी न की थी। जो मिलता वही पहन लेती थी वह। ये सब याद आते ही उसकी आॅखों में आॅसू आ गए।
"ये ले बेटी हो गया।" चैन को ऊपर खींचने के बाद सुमन ने कहा था।
"ओह थैंक्यू माॅ।" रानी ने खुश होकर कहा__"थैंक्यू सो मच।"
"बस ऐसे ही हमेशा खुश रहा कर मेरी बच्ची।" सुमन ने मुस्कुरा कर कहा__"तेरे खुश रहने से ही इस दिल को सुकून मिलता है।"
"आप फिक्र मत कीजिए माॅ।" रानी ने कहा__"अब से मैं हमेशा ही खुश रहूॅगी।"
"अच्छा, अब से ऐसी क्या खास बात हो जाएगी भला?" सुमन ने गहरी नज़रों से रानी को देखते हुए पूछा__"जो मेरी बेटी खुश रहेगी।"
"आप तो सब जानती हैं माॅ।" रानी ने नज़रें झुकाकर कहा__"आप तो जानती हैं कि मेरी खुशी के पीछे की वजह क्या है?"
"बेटी अगर तेरी इजाज़त हो तो एक बात कहूॅ तुझसे?" सुमन ने सहसा गंभीरता से कहा।
"आपको मुझसे किसी बात के लिए इजाज़त माॅगने की क्या ज़रूरत है माॅ?" रानी ने मासूमियत से कहा__"आप बेझिझक कहिए जो भी आपको कहना हो।"
"क्या करूॅ बेटी। डर लगता है कि कहीं मेरी किसी बात से तुझे बुरा न लग जाए।" सुमन ने गंभीरता से कहा था।
"नहीं माॅ।" रानी ने सीघ्रता से कहा__"मुझे आपकी किसी भी बात का बुरा नहीं लग सकता। मैं जानती हूॅ आप हमेशा मेरे हित का ही सोचती हैं। मेरी हर खुशी का कोई दूसरा ख़याल करे या न करे पर आप ज़रूर ख़याल करती हैं। इस लिए आप ये कभी मत सोचिये कि मुझे आपकी किसी बात का बुरा लग सकता है। आप कहिए क्या कहना है आपको?"
"ठीक है बेटी।" सुमन ने धड़कते हुए दिल के साथ कहा__"तो अगर मैं ये कहूॅ तुझसे कि तेरा अपने ही भाई के प्रति इस तरह प्रेम रखना ग़लत है तो? और तुझे ऐसा नहीं करना चाहिए तो??"
रानी को सुमन की इस बात से ज़बरदस्त झटका लगा। ऐसा लगा जैसे उसके दिल पर कोई बज्रपात हो गया हो। पल भर में उसकी आॅखों में आॅसू आ गए। खूबसूरत चेहरा जो अभी तक किसी अलौकिक तेज़ से चमक रहा था उसमें एक ही पल में जैसे ग्रहण सा लग गया। होंठ थरथरा उठे। मुह से कोई शब्द तो न निकला किन्तु सुमन की तरफ कातर दृष्टि से देखने लगी थी वह।
सुमन के दिल का हाल भी रानी से जुदा नहीं था। किन्तु उसने अपने दिल के जज्बातों को शख़्ती से दबाया हुआ था। वह जानती थी कि इस वक्त वह कमजोर नहीं बन सकती। उसे इस बात को रानी से कहना ही पड़ेगा कि ये सब उचित नहीं है जो वह कर रही है।
"मैं जानती हूॅ मेरी बच्ची।" सुमन ने भर्राए स्वर में कहा__"और मैं समझती भी हूॅ कि मेरी इस बात से तेरे दिलो दिमाग़ को गहरी ठेस पहुॅचेगी किन्तु सच्चाई से मुह भी तो नहीं मोड़ा जा सकता बेटी। तू अब कोई दूध पीती बच्ची नहीं रही, बल्कि बड़ी हो गई है। और इसका प्रमाण ये है कि तू आज किसी दुल्हन की तरह सज सवॅर कर तैयार हो गई है। इस लिए ये तो तुझे भी पता होगा कि संसार में सगे भाई बहन के बीच इस तरह का रिश्ता नहीं हो सकता और ना ही होना चाहिए। क्योंकि इस रिश्ते को देश समाज या कानून कोई भी स्वीकार नहीं करता। बल्कि हर कोई भाई बहन के बीच उत्पन्न हुए इस रिश्ते को ग़लत और अनुचित ही कहेगा। इस रिश्ते से देश समाज के बीच अपने घर परिवार की मान मर्यादा व इज्जत का हनन हो जाता है। समाज में बहुत से ऐसे लोग होते हैं जो ऐसा रिश्ता रखने वालों पर थू थू करते हैं और हर दिन अपनी तरह तरह की कड़वी बातों से जीना हराम कर देते हैं।" सुमन ने पल भर रुक कर एक गहरी साॅस ली फिर कहा__"इस लिए बेटी अगर हो सके तो इस रिश्ते को ज़ेहन से निकाल कर इस प्रेम को भूल जा। इसी में सबका हित है।"
"कितनी सहजता से आपने ये सब कह दिया माॅ।" रानी की रुलाई फूट गई__"लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है। अपने ही भाई से प्रेम का ये रोग़ मेरे रोम रोम में लग चुका है माॅ। अब भला कैसे मैं इस रोग़ से मुक्त हो सकती हूॅ? मैं चाहूॅ भी तो कुछ नहीं कर सकती। प्रेम का ये रोग़ तो अब मेरे मरते दम तक रहेगा।"
"ऐसा मत कह मेरी बच्ची।" सुमन तड़प कर बोली__"तू समझने की कोशिश कर पगली। ये रिश्ता हर दृष्टि से अनुचित है। क्या तुझे इसका ज्ञान नहीं है? क्या तूने कभी नहीं सोचा इसके बारे में?"
"मैं जानती हूॅ माॅ।" रानी ने रोते हुए कहा__"मैं जानती हूॅ कि ये ग़लत है लेकिन मैं क्या करूॅ माॅ....इसमें मेरी क्या ग़लती है? मैंने तो ये सब सोच समझ कर नहीं किया ना? भला क्या कोई किसी से सोच समझ कर प्रेम करता है? अरे ये तो वो बला है जो ना चाहते हुए भी हमारी आत्मा में घुस जाती है। और फिर ये बात आज ही क्यों की आपने? इसके पहले ही क्यों नहीं की थी? मैं तो शुरू से ही आपको अपने दिल की बातें बताती आ रही हूॅ। फिर आपने पहले ही इस सबके लिए क्यों नहीं रोंका मुझे? अगर पहले ही आपने रोंका होता या समझाया होता तो आज ये समस्या इतनी बड़ी नहीं बन जाती माॅ। मैं तो बच्ची थी। छोटी सी ऊम्र में मुझे अच्छे बुरे का ज्ञान नहीं था, किन्तु आप सब तो बड़े थे। आप सब तो समझदार थे, फिर क्यों नहीं इस सबको रोंका आप सबने? आज जबकि ये मेरी जीने की वजह बन गई है तब आपको समझ आया कि मुझे ये नहीं करना चाहिए।"
"मैं मानती हूॅ बेटी कि हम सब से बहुत बड़ी ग़लती हो गई है जो हमने तुम्हें पहले ही इस सबके लिए नहीं रोंका।" सुमन ने अधीरता से कहा__"लेकिन अब भी तो ये संभव है कि इस सबको भुला दिया जाए।"
"नहीं माॅ नहीं।" रानी रोते हुए वहीं फर्स पर सुमन के पास घुटनो पर गिर गई__"मैं अब नहीं भुला सकती उनको। मैं अब उनके बिना जीवित नहीं रह सकती। आपको और पापा को अगर इस सबसे इस बात का डर है कि देश समाज के बीच उनकी मान मर्यादा या इज्ज़त मिट्टी में मिल जाएगी तो आप मुझे ज़हर दे दीजिए माॅ। मेरे मर जाने से सारी समस्या ही खत्म हो जाएगी।" कहने के साथ ही रानी फूट फूट कर रोने लगी।
सुमन अपनी बेटी को इस तरह ज़ार ज़ार रोते देख तड़प उठी। उसका दिल हाहाकार कर उठा। उससे खड़े न रहा गया। उसने तुरंत ही फर्स पर घुटनों के बल गिरी रानी को उसके कंधों से पकड़ कर उठा लिया और उसे एक झटके से अपने सीने में छुपका लिया।
"मत रो मेरी बच्ची मत रो।" सुमन ने रोते हुए कहा__"तुझे इस तरह रोते देख मेरा हृदय फट जाएगा। अगर तेरे जीने की वजह तेरा अपने भाई के प्रति प्रेम है तो मेरे जीने की वजह भी तो सिर्फ तू ही है। मैं तुझसे अब कभी नहीं कहूॅगी कि तू ये सब छोंड़ दे और सब कुछ भूल जा। तू वही कर मेरी बच्ची जिसमें तुझे और तेरे दिल को खुशी मिलती हो।"
रानी उससे लिपटी जाने कितनी ही देर तक रोती रही। सुमन ने बड़ी मुश्किल से सम्हाला उसे। उसके बाद उसने खुद रानी को तैयार करना शुरू कर दिया। उसने सोच लिया था कि उसकी बेटी के भाग्य में जो होगा देखा जाएगा। किन्तु अब वह इस सबके लिए अपनी बेटी को कभी दुखी नहीं करेगी।
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अशोक काफी देर तक महेन्द्र व रंगनाथ के साथ साथ उस मानव आकृति के बारे में सोचता रहा। उसके मन में कई तरह के सवाल थे जिनका जवाब उसे मिल ही नहीं रहा था। वह सोच रहा था कि महेन्द्र और रंगनाथ उसके घर किस लिए आए थे, तब जबकि वह घर पर भी नहीं था? क्या रेखा के लिए आए थे वो दोनो? सुनसान घर में एक रेखा ही तो थी। यकीनन रेखा के लिए ही आए थे वो। उसके साथ कुछ ग़लत करना चाहते थे। अशोक की ये सब सोच सोच कर रूह काॅपी जा रही थी। उसने सोचा कि अच्छा हुआ था कि वह समय पर आ गया था, वरना ना जाने क्या हो जाता। लेकिन इस ख़याल ने भी उसे हिला दिया कि वो उन दोनों को अपनी मनमानी करने से भला रोंक भी कैसे सकता था? वो दोनो तो अद्भुत शक्तियाॅ जानते थे।
अशोक के ज़ेहन में ये सवाल भी उभरा कि धुएॅ की वो मानव आकृति कौन थी? यहाॅ क्या कर रही थी वह? और तो और महेन्द्र व रंगनाथ के साथ लड़ाई भी कर रही थी, किन्तु किस लिए? आख़िर किस लिए ऐसा कर रही थी वह? अरे हाॅ वह कई बार उन दोनो से बोली थी कि इस घर के सदस्यों को अगर बुरी नीयत से हाॅथ लगाया तो उनके लिए अच्छा नहीं होगा। लेकिन क्यों? वह मानव आकृति ऐसा क्यों कह रही थी? उसका भला हम सबसे क्या संबंध हो सकता है?
अशोक इस सबके बारे में जितना सोचता उतना ही उलझता जा रहा था। सोचते सोचते उसके दिमाग़ की नसें तक दर्द करने लगीं। इसके बावजूद वह किसी ठोस निष्कर्श पर न पहुॅच सका। थक हार कर उसने अपने दिलो दिमाग़ से इन सब बातों को झटक दिया और ख़ामोशी से रेखा के कमरे की तरफ बढ़ता चला गया।
अपनी पत्नी रेखा के कमरे में दाखिल होकर उसने देखा कि रेखा सजी सवॅरी बेड पर औंधी हुई पड़ी थी। अशोक उसे इस हालत में देख कर बुरी तरह घबरा गया। वह सीघ्रता से रेखा के पास पहुॅचा और अपने दोनो हाॅथों के सहारे उसने रेखा को पलटा कर उसे सही तरह से बेड पर लेटा दिया। तत्पश्चात उसने रेखा के करीब बैठ कर उसके गोरे सफ्फाक़ गालों को थपथपाते हुए मारे घबराहट के कहे जा रहा था__"रेखा, क्या हुआ तुम्हें? प्लीज़ रेखा आॅखें खोलो....क्या हुआ, आॅखें खोलो...आख़िर क्या हो गया है तुम्हें?"
अशोक जाने क्या क्या बोले जा रहा था तथा साथ ही साथ वह रेखा के दोनो कंधों को पकड़ झकझोरे भी जा रहा था। किसी अंजानी आशंका व भय के कारण उसकी हालत पल भर में देखने लायक हो गई थी। आॅखों में आॅसू लिए तथा भारी गले से वह रेखा को होश में लाने का प्रयास कर रहा था। किन्तु जब इतने पर भी रेखा पर कोई प्रतिक्रिया न हुई तो वह और भी घबरा गया।
अशोक लगभग भागते हुए किचेन की तरफ गया। फ्रिज से पानी की एक बोतल लेकर वह उतनी ही तेज़ी से रेखा के कमरे की तरफ दौड़ा। कमरे में पहुॅच कर उसने बोतल के पानी को अपने हाॅथ में डाल कर रेखा के चेहरे पर छिड़कने लगा। आख़िर कुछ ही देर में उसके इस प्रयास से रेखा के जिस्म में प्रतिक्रिया हुई। उसने अपनी आॅखें खोल दी। कुछ पल अजीब भाव से वह अपने चेहरे के पास झुके अशोक को देखती रही फिर जैसे ही उसे वस्तुस्थित का एहसास हुआ। वह हड़बड़ा कर उठ बैठी। पल भर में उसके चेहरे पर अथाह दुख के भाव जैसे प्रकट से हो गए। आॅखों सें किसी झरने की तरह आॅसू बह चले। एक झटके से वह अशोक से लिपट कर फूट फूट कर रोने लगी। अशोक उसकी इस हालत से बेहद दुखी हो गया। उसकी खुद की आॅखों में भी आॅसू थे। उसने रेखा को अपने से छुपका कर बड़े प्यार से उसके सिर पर अपने हाॅथ फेरने लगा। किन्तु फिर तभी रेखा एक झटके से ही अशोक से अलग हो गई। बदहवास सी इधर उधर देखने लगी।
"क्या हुआ रेखा?" अशोक ने चौंकने के साथ ही दुखी मन से पूछा__"क्यों अपने आपको इतना तक़लीफ़ दे रही हो तुम? क्यों उसको पाने की आस में दिन रात खुद को तड़पाती रहती हो? अरे जिसका कहीं कोई वजूद ही नहीं है दुनिया में उसके लिए भला कैसी उम्मीद करना रेखा?"
"ख़ ख़बरदार...ख़बरदार अशोक, जो एक लफ्ज़ भी मेरे बेटे के बारे में ऐसा कहा तो।" किसी नागिन की भाॅति एकाएक ही फुॅकार उठी थी रेखा, बोली__"मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। मेरे बेटे का इस दुनिया में वजूद है और ये बात मैं अच्छी तरह जानती हूॅ। मेरा मन मेरी आत्मा कहती है कि आज मेरा बेटा अपनी इस दुखियारी माॅ के पास ज़रूर आएगा। वो ज़रूर आएगा...मैंने उसके स्वागत के लिए सारे घर को सजाया हुआ है। उसके खाने के लिए उसकी ही पसंद का ब्यंजन बनाया है मैने। और....और मैं अपने हाॅथों से उसे खिलाऊॅगी। हाॅ हाॅ अपने बेटे को अपने हाॅथों से खिलाऊॅगी। मेरा बेटा आज आएगा.....वो अपनी माॅ के पास आएगा।"
अशोक को लगा कि उसका हृदय फट जाएगा। एक माॅ का अपने बेटे के लिए ये कैसा प्यार था? ये कैसा पागलपन था, ये कैसी दीवानगी थी? वह भी तो एक बाप था, उसके सीने में भी तो एक दिल था। जो अपने बेटे के विरह में जाने कब से तड़प रहा था। किन्तु उसने कभी किसी के सामने अपने दिल की इस तड़प को ज़ाहिर न होने दिया था। उसने खुद को कमज़ोर न होने दिया था वरना अपने परिवार की इतनी सारी दुखियारी आत्माओं को कौन सम्हालता? सब ही इस दुख में डूब जाते तो इस परिवार का क्या होता? इस लिए उसने कभी ये ज़ाहिर नहीं किया कि वह अंदर से उन्हीं की भाॅति दुखी है, बल्कि हमेशा अपने दुखों को शख़्ती से दबा कर उसने परिवार के सभी सदस्यों की देखभाल की। अपने इतने बड़े ब्यवसाय को बिखरने नहीं दिया।
भगवान ही जाने कि सारे परिवार वालों की किस्मत में क्या खोना और क्या पाना अभी लिखा था? किन्तु वक्त और हालात जिस तरह से आज अपना रंग दिखा रहे थे वह आम इंसानों की समझ से परे था। ऊपर बैठा हुआ विधाता क्या करना चाहता था इस बात का ज्ञान भला किसे हो सकता था?
अशोक को झटका सा लगा, उसने तुरंत ही पलट कर देखा। उसकी पत्नी रेखा एक बार पुनः अचेत हो गई थी। यह देख कर उसके अंदर एक हूक सी उठी। बड़ी मुश्किल से उसने खुद के जज़्बातों को सम्हाला। रेखा को सही तरीके से बेड पर लिटा कर वह उठा और दोनो हाॅथों से अपनी आॅखों से बहते आॅसुओं को पोंछते हुए कमरे से बाहर निकल गया।
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तो वहीं एक तरफ,,,,,
राज एण्ड पार्टी ने हिमालय से चलने के बाद इस वक्त एक जगह कयाम किया हुआ था। शाम ढल चुकी थी और शब ने अपने वजूद को और भी ज़्यादा ढॅक देने के लिए तारीकियों का इस्तकबाल कर लिया था।
मेनका, काया, रिशभ और वीर एक तरफ खड़े थे जबकि राज एक बड़े से पत्थर पर बैठा ध्यानामग्न था। जैसा कि मैंने बताया कि शाम ढल चुकी थी इस लिए गहरे ध्यान में बैठे राज के चेहरे के चारो तरफ एक दिव्य रोशनी सी फैली हुई थी जिसके प्रकाश से आस पास की हर चीज़ देखी जा सकती थी।
चारो काफी देर से राज को इस तरह ध्यान में बैठे देखे जा रहे थे। मेनका और काया ममतावश राज की तरफ देख रही थी। हिमालय से चल कर जब वो यहाॅ पर पहुॅचे तो राज ने उन सबसे कहा कि यहाॅ पर हम थोड़े समय विश्राम करेंगे उसके बाद ही आगे बढ़ेंगे। राज की बात को सुन कर सब वहीं पर रुक गए थे। जबकि राज पास में ही स्थित एक बड़े से पत्थर पर आसन जमाकर बैठ गया था। तब से वह ऐसे ही बैठा था।
लगभग आधे घंटे बाद उसके चेहरे के चारो तरफ फैली रोशनी लुप्त हुई और राज ने अपनी आॅखें खोलीं। राज की आॅखें खुलते ही उन चारो पर इसकी प्रतिक्रिया हुई।
"अब हमें चलना चाहिए यहाॅ से।" राज ने उन चारों को देखते हुए कहा__"लेकिन आगे का मार्ग खतरे से खाली नहीं है।"
"क्या मतलब?" वीर चौंका__"आगे किस बात का खतरा है?"
"माधवगढ़ की सीमा में प्रवेश करते ही हम पर शैतानों का हमला हो जाएगा।" राज ने कहा__"शैतानी दुनिया के दो दो सम्राट एक साथ हम पर हमला करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।"
"हाॅ इस बात के बारे में तो गुरूदेव ने हमें पहले ही सावधान रहने को कहा था।" काया ने कहा__"राज ने शायद ध्यान के द्वारा देख लिया है कि आगे का मार्ग कैसा है?"
"माॅ।" राज ने मेनका की तरफ देखते हुए कहा__"आपके पिता ने आपको कैद कर लेने का सोच रखा है। और अगर ऐसा हो गया तो बहुत हद तक वो अपने इरादों में कामयाब हो जाएॅगे।"
"ऐसा कैसे हो सकता है राज?" रिशभ ने कहा__"उनकी रणनीति क्या है आख़िर?"
"वो जानते हैं मामा जी कि वो मुझसे किसी भी तरह जीत नहीं सकते। इस लिए वो वेयरवोल्फ किंग अनंत को अपने साथ मिलाकर किसी भी तरह माॅ(मेनका) को पकड़ कर कैद करना चाहते हैं। उसके बाद आपके पिता माॅ को मोहरा बना कर मुझे हासिल करेंगे। वो जानते हैं कि मैं माॅ के लिए उनकी हर बात मानूॅगा। यही उनकी सोच है।"
"सम्राट से भला और किसी बात की उम्मीद भी क्या की जा सकती है?" वीर ने आवेश में कहा__"जब अपनी बाजुओं पर दम न रहा तो अपनी ही बेटी को मोहरा बनाने का सोच लिया उन्होंने। अपनी इच्छाओं के लिए किस हद तक जा सकते हैं ये आज पता चल गया।"
"तू सही कह रहा है मेरे यार।" रिशभ ने दुखी भाव से कहा__"मुझे दुख है कि ऐसा शैतान मेरा बाप है। लेकिन....कसम खुदा की, अगर उसने मेरी देवी जैसी बहन को हाॅथ भी लगाया तो मैं पल भर के लिए भी न सोचूॅगा कि वो मेरा बाप है। बल्कि नेस्तनाबूत करके रख दूॅगा उसे।"
"शान्त हो जा मेरे भाई।" मेनका ने नम आॅखों से रिशभ के कंधे को थपथपाते हुए कहा__"और ऐसे अल्फाज़ अपने पिता के लिए नहीं बोले जाते। वो जैसे भी हैं आख़िर हैं तो हमारे पिता ही। ये उनकी सोच और इच्छा की बात है कि वो क्या कर रहे हैं? किन्तु हम तो वही करेंगे न जिसमें सिर्फ संसार का हित होगा।"
"तो अब हमें क्या करना चाहिए?" वीर ने कहा__"आख़िर कोई न कोई रणनीति हमें भी तो बना लेनी चाहिए। जिससे कि हम अपने शत्रुओं का मुकाबला कर सकें?"
"इस बारे में तो राज ही बेहतर तरीके से बता सकता है।" काया ने कहा__"उसे तो गुरूदेव ने हर तरह की शिक्षा में परांगत किया है। इस लिए इसके लिए राज ही हमें कोई रणनीति बताएगा।"
"मेरा विचार ये है कि हम सब माॅ(मेनका) को उनकी पहुॅच से दूर रखें।" राज ने कहा__"क्योंकि सम्राट विराट का मुख्य लक्ष्य माॅ को पकड़ना ही होगा। अगर वो माॅ को पकड़ लेंगे तो मुझसे लड़ने की उन्हें कोई ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी। वो तो माॅ के गले में ख़ंजर रख कर मुझे विवश करेंगे कि मैं उनके पास आ जाऊॅ और उनकी हर आज्ञा का पालन करूॅ। इस लिए हम सब माॅ को उनकी पहुॅच से दूर रखेंगे। बल्कि ये कहूॅ तो ज्यादा उचित होगा कि मेरी दोनो ही माॅओं को उनकी पहुॅच से देर रखना है।"
"ये सब तो ठीक है राज बेटे।" रिशभ ने कहा__"लेकिन सवाल ये है कि हम ये करेंगे कैसे? क्यों कि रास्ते में तो वो सब मौजूद हैं वहाॅ?"
"इसका प्रबंध मैं कर दूॅगा मामा जी।" राज ने कहा__"आप या वीर चाचू में से किसी को मेरी दोनों माॅओं के साथ जाना होगा। मैं तीनों को एक ऐसे सुरक्षा कवच के घेरे के अंदर कर दूॅगा जो अभेद्य होगा। उस पर किसी की कोई भी शक्ति अपना प्रभाव नहीं डाल सकेगी। जबकि मैं और आप में से कोई एक उनके सामने से गुज़र कर जाएॅगे।"
"अगर ऐसे किसी अभेद्य सुरक्षा कवच का तुम प्रबंध कर सकते हो राज तो हम सब साथ में ही उसके अंदर सुरक्षित होकर उनके सामने से क्यों नहीं जा सकते?" वीर ने सबकी तरफ देखते हुए कहा__"सुरक्षा कवच की वजह से कोई हमारा बाल भी बाॅका नहीं कर सकेगा और हम बड़े आराम से उनकी आॅखों के सामने से निकल जाएंगे।"
"ऐसा हो तो सकता है चाचू। लेकिन मैं ऐसा करना नहीं चाहता।" राज ने कहा था।
"लेकिन क्यों बेटे?" वीर मानो उलझ गया__"आख़िर क्यों नहीं करना चाहते तुम ऐसा?"
"इसका एक महत्वपूर्ण कारण है चाचू।" राज ने रहस्यमयी भाव से कहा__"और वो कारण क्या है ये मैं आप सबको बाद में बताऊॅगा। अभी आप वैसा ही कीजिए जैसा मैने कहा है।"
"ठीक है बेटे।" वीर ने कहा__"तो फिर मेनका और काया के साथ सुरक्षा कवच में रिशभ जाएगा। जबकि मैं तुम्हारे साथ चलूॅगा।"
"नहीं वीर।" रिशभ कह उठा__"राज के साथ मैं जाऊॅगा। तुम मेरी बहनों के साथ जाओगे।"
"लेकिन रिशभ यार......।" वीर का वाक्य अधूरा रह गया, क्योंकि रिशभ ने तुरंत ही उसके वाक्य को काट कर एकाएक कठोर भाव से कहा__"तुम उनके साथ ही जाओगे दोस्त। मुझे राज के साथ ही जाने दे। मैं राज के साथ जाकर अपने बाप से कुछ सवाल जवाब करना चाहता हूॅ। इस लिए मुझे जाने दे मेरे यार।"
"तुम पिता जी से बेवजह नहीं उलझोगे रिशभ।" सहसा मेनका कह उठी__"ये कोई वक्त नहीं है इन सब चीज़ों का। तुम सिर्फ राज के साथ उसकी ढाल बन कर रहोगे।"
"कुछ नहीं होगा बहना।" रिशभ ने ठंडे स्वर में कहा__"तुम फिक्र मत करो। तुम्हारे बेटे को मेरे रहते कोई छू भी नहीं सकेगा। ये मेरा वादा है तुमसे।"
"फिर भी भाई।" काया ने कहा__"ये समय अभी ठीक नहीं है। इस लिए आप अपने जज्बातों को काबू में रख कर ही काम लीजिए।"
"आप फिक्र मत कीजिए माॅ।" सहसा राज ने कहा__"हम दोनो मामा भाॅजों का कोई बाल भी बाॅका नहीं कर सकेगा।"
"कैसे फिक्र न करूॅ बता?" काया का स्वर भारी हो गया__"एक मेरा बेटा है तो एक मेरे भाई हैं। मैं तुम दोनों में से किसी के लिए भी कुछ अहित होते नहीं देख सकती।"
"आप तो बेवजह ही परेशान हो रही हैं माॅ जबकि ऐसा कुछ नहीं होगा जैसा आप सोचती हैं।" राज ने कहा__"ख़ैर, अब हमें चलना चाहिए।"
राज के कहने पर वीर आगे बढ़ कर प्यार व स्नेह से पहले राज को अपने गले से लगाया फिर रिशभ के गले मिला। उसके बाद वह मेनका व काया के पास जा कर खड़ा हो गया। तीनो के खड़े होते ही राज ने अपनी आॅखें बंद कर ली तथा अपने दोनों हाथ जोड़ लिए। कुछ ही पल में सामने हवा में एक बड़ा सा पानी के गुब्बारे जैसा पारदर्शी सा गोला प्रगट हो गया। गोले के चारो तरफ रह रह कर रोशनी चमक रही थी। इसके बाद देखते ही देखते वह गोला मेनका काया व वीर की तरफ बढ़ कर उन तीनो को अपने अंदर समा लिया।
राज ने अपनी आॅखें खोल ली। राज की इस क्रिया और उसकी इस क्रिया से निकले परिणाम को देखकर सबके होठों पर मुस्कान फैल गई।
"अब आप तीनो इस सुरक्षा कवच में बिलकुल सुरक्षित हैं।" राज ने कहा__"ये आपके इच्छानुसार आगे बढ़ता रहेगा।"
"ये तो बहुत अच्छी बात है राज बेटे।" वीर ने मुस्कुराकर कहा__"गुरुदेव के पास तो तुमने उनकी आज्ञा से अपनी शक्तियों का कुशल प्रदर्शन किया ही था जिनमें उनका निर्देश भी शामिल था। किन्तु आज से ये सब तुम अपनी बुद्धि और समझदारी से करने जा रहे हो। इस सबसे हम सब अति प्रसन्न हैं बेटे। हम सबका प्यार व आशीर्वाद सदा तुम पर कायम रहेगा।"
वीर की इस बात से राज ने मुस्कुराते हुए उन सबको हाथ जोड़ कर प्रणाम किया। उसके बाद राज के ही कहने पर वो तीनों हवा में उठ कर अदृश्य हो गए। वो सबको देख सकते थे किन्तु राज के सिवा अब उन्हें कोई दूसरा नहीं देख सकता था।
"अरे! ये तीनो कहाॅ गायब हो गए?" रिशभ ने चौंकते हुए राज से पूछा था।
"फिक्र मत कीजिये मामा जी वो सब मेरी नज़रों के सामने ही हैं।" राज ने कहा__"हाॅ लेकिन आप उन्हें देख नहीं सकते हैं। बल्कि आप ही क्या कोई भी उन्हें देख नहीं सकता।"
"ये तो कमाल हो गया राज बेटे।" रिशभ ने हॅस कर कहा__"यकीनन ये एक अद्भुत सुरक्षा कवच है।"
"जी मामा जी।" राज ने कहा__"चलिए अब हम भी आगे बढ़ते हैं।"
राज के कहने पर रिशभ चल दिया अपने भाॅजे के साथ। हिमालय से वो सब पैदल ही आए थे किन्तु यहाॅ से साधन का उपयोग कर लिया था इन लोगों ने। राज और रिशभ भी हवा में ही उड़ते हुए आगे बढ़ रहे थे।
अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,,,